12th Hindi

Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण एकार्थक शब्द

Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण एकार्थक शब्द

BSEB Class 12th Hindi व्याकरण एकार्थक शब्द

अहंकार–मन का गर्व। झूठे अपनेपन का बोध।
दर्प–नियम के विरुद्ध काम करने पर भी घमण्ड करना।
अभिमान–प्रतिष्ठा में अपने को बड़ा और दूसरे को छोटा समझना।
घमण्ड–सभी स्थितियों में अपने को बड़ा और दूसरे को हीन समझना।
अनुग्रह–कृपा। किसी छोटे से प्रसन्न होकर उसका कुछ उपकार या भलाई करना।
अनुकम्पा–बहुत कुछ।
किसी के दुःख से दु:खी होकर उसपर की गयी दया।
अनुरोध–अनुरोध बराबर वालों से किया जाता है।
प्रार्थना–ईश्वर या अपने से बड़ों के प्रति इच्छापूर्ति के लिए ‘प्रार्थना की जाती है।
अस्त्र–वह हथियार, जो फेंककर चलाया जाता है। जैसे–तीर, बी, आदि।
शस्त्र–वह हथियार जो हाथ में थामकर चलाया जाता है। जैसे–तलवार।
अपराध–सामाजिक कानून का उल्लंघनं ‘अपराध’ है। जैसे–हत्या।
पाप–नैतिक नियमों का उल्लंघन ‘पाप’ है। जैसे–झूठ बोलना।
अवस्था–जीवन के कुछ बीते हुए काल या स्थिति को ‘अवस्था’ कहते हैं। जैसे–आपकी अवस्था क्या होगी? रोगी की अवस्था कैसी है?
आयु–सम्पूर्ण जीवन की अवधि को ‘आयु’ कहते हैं। जैसे–आप दीर्घायु हों। आपकी आयु लम्बी हो !

अपयश–स्थायी रूप से दोषी होना।
कलंक–कुसंगति के कारण चरित्र पर दोष लगाना।
अधिक–आवश्यकता से ज्यादा। जैसे–बाढ़ में गंगा में जल अधिक हो जाता है।
काफी–आवश्यकता से अधिक। जैसे–गर्मी में भी गंगा में काफी पानी रहता है।
अनुराग (Affection)–किसी विषय या व्यक्ति पर शुद्धभाव से मन केन्द्रित करना।
आसक्ति (Attachment)–मोहजनित प्रेम को ‘असाक्ति’ कहते हैं।
अन्तःकरण (Conscience)–विशुद्ध मन की विवेकपूर्ण शक्ति।।
आत्मा (Soul)–जीवों में चेतन, अतीन्द्रिय और अभौतिक तत्व, जिसका कभी नाश नहीं होता।
अध्यक्ष (President)–किसी गोष्ठी, समिति, परिषद् या संस्था के स्थायी प्रधान को अध्यक्ष कहते हैं।
सभापति (Chairmna)–किसी आयोजित बड़ी अस्थायी सभा के प्रधान को ‘सभापति’ कहते हैं।
अर्चना–धूप, दीप, फूल, इत्यादि से देवता की पूजा।
पूजा–बिना किसी सामग्री के भी भक्तिपूर्ण विनय अथवा प्रार्थना।
अभिनन्दन–किसी श्रेष्ठ का मान या स्वागत।
स्वागत–अपनी सभ्यता और प्रथा के वश किसी को सम्मान देना।
आदि–साधारणतः एक या दो उदाहरण के बाद ‘आदि’ का प्रयोग होता है।।

इत्यादि–साधारणत: दो से अधिक उदाहरण के बाद ‘इत्यादि’ का प्रयोग होता है।
आज्ञा–आदरणीय या पूज्य व्यक्ति द्वारा किया गया कार्यनिर्देश। जैसे–पिताजी की आज्ञा है कि मैं धूप में बाहर न जाऊँ।
आदरणीय–अपने से बड़ों या महान् व्यक्तियों के प्रति सम्मानसूचक शब्द।
पूजनीय–पिता, गुरु या महापुरुषों के प्रति सम्मानसूचक शब्द।
इच्छा–किसी भी वस्तु की साधारण चाह।।
अभलाषा–किसी विशेष वस्तु की हार्दिक इच्छा।
‘उत्साह–काम करने की बढ़ती हुई रुचि।
साहस–भय पर विजय प्राप्त करना।
कष्ट (Distress)–अभाव या असमर्थता के कारण मानसिक और शारीरिक कष्ट होता है।
क्लेश (Agony)–यह मानसिक अप्रिय भावों या अवस्थाओं का सूचक है।
पीड़ा (Pain)–रोग–चोट आदि के कारण शारीरिक ‘पीड़ा’ होती है।
कृपा (Kindness)–दूसरे के कष्ट दूर करने की साधारण चेष्टा।
दया (Mercy)–दूसरे के दु:ख को दूर करने की स्वाभाविक इच्छा।
कंगाल–जिसे पेट पालने के लिए भीख मांगनी पड़े।
दीन–निर्धनता के कारण जो दयापात्र हो चुका है।

खेद (Regret)–किसी गलती पर दु:खी होना। जैसे–मुझे खेद है कि मैं समय पर न पहुँच सका।
शोक (Mourming)–किसी की मृत्यु पर दु:खी होना। जैसे–गाँधी की मृत्यु से सर्वत्र शोक छा गया।
क्षोभ (Anguish)–सफलता न मिलने या असामाजिक स्थिति पर दुखी होना।
दुःख (Sorrow)–साधारण कष्ट या मानसिक पीड़ा।
ग्रन्थ–इससे पुस्तक के आकार की गुरुता और विषय के गाम्भीर्य का बोध होता है।
पुस्तक–साधारणतः सभी प्रकार की छपी किताब को ‘पुस्तक’ कहते हैं।।
निपुण (Adept)–जो अपने कार्य या विषय का पूरा–पूरा ज्ञान प्राप्त कर उसका अच्छा जानकार बन चुका है।
दक्ष (Adroit)–जो हाथ से किए जानेवाले काम अच्छी तरह और जल्दी करता है। जैसे–वह कपड़ा सीने में दक्ष है।
कुशल (Skilful)–जो हर काम में मानसिक तथा शारीरिक शक्तियों का अच्छा प्रयोग करना जानता है।
कर्मठ–जिस काम पर लगाया जाय उसपर लगा रहनेवाला।
निबन्ध (Essay)–ऐसे गद्यरचना, जिसमें विषय गौण हो और लेखक का व्यक्तित्व और उसकी शैली प्रधान हो।
लेख (Articles)–ऐसी गद्यरचना, जिसमें वस्तु या विषय की प्रधानता हो।
निधन (Demise)–महान् और लोकप्रिय व्यक्ति की मृत्यु को ‘निधन’ कहा जाता है।
मृत्यु (Death)–सामान्य शरीरान्त को ‘मृत्यु’ कहते हैं।
निकट–सामीप्य का बोध। जैसे–मेरे गाँव के निकट एक स्कूल है।

पास–अधिकार के सामीप्य का बोध। जैसे–धनिकों के पास पर्याप्त धन है।
प्रेम–व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है। जैसे–ईश्वर से प्रेम, स्त्री से प्रेम आदि।
स्नेह–अपने से छोटों के प्रति ‘स्नेह’ होता है। जैसे–पुत्र से स्नेह।
प्रणय–सख्यभावमिश्रित अनुराग। जैसे–राधा–माधव का प्रणय।
प्रणाम–बड़ों को ‘प्रणाम’ किया जाता है।
नमस्कार–बराबरवालों को ‘नमस्कार’ या ‘नमस्ते’ किया जाता है।
पारितोषिक (Prize)–किसी प्रतियोगिता में विजयी होने पर पारितोषित दिया जाता है।
पुरस्कार (Reward)–किसी व्यक्ति के अच्छे काम या सेवा से प्रसन्न होकर ‘पुरस्कार’ दिया ज्ञाता है।
पत्नी–किसी की विवाहिता स्त्री।
महिला–भले घर की स्त्री। स्त्री–कोई भी औरत।
पुत्र–अपना बेटा। बालक–कोई भी लड़का।
बड़ा (Big)–आकार का बोधक। जैसे–हमारा मकान बड़ा है।
बहुत (Much)–परिमाण का बोधक। जैसे–आज उसने बहुत खाया।
बुद्धि–कर्तव्य का निश्चय करती है। ज्ञान–इन्द्रियों द्वारा प्राप्त हर अनुभव।
बहुमूल्य–बहुत कीमती वस्तु पर जिसका मूल्य–निर्धारण किया जा सके।

अमूल्य–जिसका मूल्य न लगाया जा सके।
मित्र–वह पराया व्यक्ति जिसके साथ आत्मीयता हो।
बन्धु–आत्मीय मित्र। सम्बन्धी।।
मन–मन में संकल्प–विकल्प होता है।
चित्त–चित्त में बातों का स्मरण विस्मरण होता है।
महाशय–सामान्य लोगों के लिए ‘महाशय’ का प्रयोग होता है।
महोदय–अपने से बड़ों को या अधिकारियों को ‘महोदय’ लिखा जाता है।
यन्त्रणा–असह्य दुःख का अनुभव (मानसिक)।
यातना–आघात में उत्पन्न कष्टों की अनुभूति (शारीरिक)।
विश्वास–सामने हुई बात पर भरोसा करना, बिल्कुल ठीक मानना।
विषाद–अतिशय दुःखी होने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़ होना।
व्यथा–किसी आघात के कारण मानसिक अथवा शारीरिक कष्ट या पीड़ा।
सेवा–गुरुजनों की टहल। शुश्रूषा–दीन–दुखियों और रोगियों की सेवा।।
साधारण (Ordinary)–जो वस्तु या व्यक्ति एक ही आधार पर आश्रित हो।
जिसमें कोई विशिष्ट गुण या चमत्कार न हो।

सामान्य (Common)–जो बात दो अथवा कई वस्तुओं तथा व्यक्तियों आदि में समान रूप से पायी जाती हो उसे ‘सामान्य’ कहते हैं।
स्वतन्त्रता (Freedom)–’स्वतन्त्रता’ का प्रयोग व्यक्तियों के लिए होता है; जैसे–भारतीयों को स्वतन्त्रता मिली है।
स्वाधीनता (Independence)–’स्वाधीनता’ देश या राष्ट्र के लिए प्रयुक्त होती है। जैसे–भारत की स्वाधीनता मिली।
सखा–जो आपस में एकप्राण, एकमन, किन्तु दो शरीर है।
सुहृद्–अच्छा हृदय रखनेवाला।
सहानुभूति–दूसरे के दु:ख को अपना दु:ख समझना।
स्नेह–छोटों के प्रति प्रेमभाव रखना।
सम्राट्–राजाओं का राजा। राजा–एक साधारण भूपति।

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