11-Political Science

Bihar board class 11th notes civics chapter 5

                           

             Bihar board class 11th notes civics chapter 5

               Bihar board class 11th notes civics chapter 5  

 

  अधिकार
                                                        पाठ्यक्रम
•दावे से अधिकार किस प्रकार भिन्न है ?
•सही दावों के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं ?
•हम व्यक्ति तथा समुदाय के अधिकारों के मध्य विवाद को किस प्रकार सुलझाते हैं ?
•राज्य किस प्रकार अधिकारों को प्रदान करता है व अवरुद्ध करता है?
                                                          स्मरणीय तथ्य
                                             (Points to be Remember)
अधिकार (Righus)-अधिकार सामाजिक जीवन की चे लाभदायक परिस्थितियाँ हैं, जो
नागरिक के वास्तविक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होती हैं -मैकन (Right are
certain advantageous conditions of social well being which
indespensable to the true development of the citizen. -Maccun.)
वास्तव में अधिकार समाज या राज्य द्वारा स्वीकार की गई वे परिस्थितियाँ हैं जो मानव
विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं और चूँकि समाज का उद्देश्य श्रेष्ठ मानव का निर्माण
करना है अत: आदर्श समाज उसी को कहा जाता है जिसमें मनुष्य बिना कोई संघर्ष किए
अनुकूल परिस्थितियों को प्राप्त कर लेता है।
अधिकारों के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Right)-(i) किसी व्यक्ति
या व्यक्ति समूह की मांग अधिकार होनी चाहिए। (i) माँग उसके विकसित उच्च जीवन
के लिए आवश्यक एवं न्यायोचित हो। (iii) समाज उस मांग को उचित समझकर स्वीकार करे।
अधिकारों के प्रकार (Kinds of Rights)-(i) कानूनी अधिकार, (ii) नैतिक अधिकार,
(iii) प्राकृतिक अधिकार, (iv) सामाजिक अधिकार, (v) राजनीतिक अधिकार, (vi)
आर्थिक अधिकार, (vii) मौलिक अधिकार।
अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धान्त (Important Theories of Rights)-(i) अधिकारों
का प्राकृतिक सिद्धान्त (Natural Theory of Rights)- लॉक (Locke) तथा रूसो
(Rousseau) के अनुसार प्राकृतिक अधिकार समाज के बनने से पूर्व व्यक्तियों को प्राप्त
थे। हॉब्स (Hobbes) इन अधिकारों से सहमत नहीं था। टॉमस पेन (Thomas) तथा
जेफरसन (Jefferson) ने जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा सम्पत्ति के अधिकारों को
प्राकृतिक माना है।
अधिकारों का उदारवादी सिद्धांत (Liber Theory of Rights)- राज्य व्यक्ति के
जीवन, स्वतंत्रता व सम्पत्ति के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कानून नहीं बना सकता।
लोगों को यह भी अधिकार प्राप्त है कि सीमा से बाहर जाने वाले व शक्तियों का दुरूपयोग
करने वाले शासन को वे अपदस्थ कर दें।
लास्की का अधिकार का सिद्धांत (Loski’s Theory of Rights)– लास्की (Laski)
के अनुसार अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थतियां हैं जिनके अभाव में सामान्यतया
कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वोच्च विकास नहीं कर सकता।
अधिकारों का मार्क्सवादी सिद्धांत (Marxist Theory of Rights) – मार्क्सवाद के
अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था में नागरिक व राजनीतिक अधिकारों का कोई मूल्य नहीं है।
राज्य का यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों को अधिक सुरक्षा प्रदान करे।
अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत (Idealistic Theory ofRights)-जिस मांँग को
नैतिक दृष्टि से औचित्य हो, उसे ही राज्य का समर्थन मिलना चाहिए। टी. एच. ग्रीन का
मत है कि “अधिकारों का केवल कानूनी पक्ष ही नहीं, उसका एक नैतिक पक्ष भी होता है।”
कानूनी अधिकारों का सिद्धान्त (Theory of Legal Rigus)-17वीं शताब्दी के प्रमुख
विचारक थामस हॉब्स, उन्नीसवीं शताब्दी के बेन्थम और ऑस्टिन ने अधिकारों के कानूनी
सिद्धांत को मान्यता दी है। वास्तव में अधिकार राज्य की देन हैं।
कर्तव्य (Duties)-आचरण के वे नियम जो हमारे लिए आवश्यक हैं और हमारे दायित्वों
को स्पष्ट करते हैं, कर्तव्य कहलाते हैं।
• अधिकारों और कर्तव्यों में संबंध (Relationship between Right and Duties)
(i) एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्तव्य है। (ii) एक व्यक्ति का अधिकार स्वयं
उसका भी कर्तव्य है। (iii) अधिकार और कर्तव्य जुड़े हुए हैं। (iv) यदि कोई हमारे
अधिकारों का हनन करने लगे तो उसका यह अभिप्राय नहीं कि हम भी उसके अधिकारों
का हनन करें।
                                         पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. अधिकार क्या हैं वे महत्वपूर्ण क्यों हैं ? अधिकारों का दावा करने के लिए
उपयुक्त आधार क्या हो सकता है?
उत्तर-अधिकार का अर्थ-अधिकार मनुष्य के सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियांँ हैं।
जिनके अभाव में मनुष्य अपना विकास नहीं कर सकता। जिस देश में नागरिकों को अधिकार प्राप्त
नहीं होते, वहांँ के नागरिक अपना विकास नहीं कर सकते। राज्य द्वारा अपने नागरिकों को दिए
अधिकारों को देखकर ही उस राज्य को अच्छा या बुरा कहा जा सकता है। अधिकारों की सृष्टि
समाज में ही होती है और इनका आधार व्यक्ति और समाज का कल्याण करना है।
इस सम्बन्ध कुछ परिभाषाएंँ निम्नलिखित हैं-
(i) लास्की-“अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ हैं। जिनके बिना साधारणतः
कोई मनुष्य अपना विकास नहीं कर सकता।”
(ii) हालैंड-“अधिकार एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के कर्तव्यों को समाज के मन और
शान्ति द्वारा प्रभावित करने की क्षमता है।”
अधिकार का महत्व-
(i) अधिकार से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
(ii) अधिकार से व्यक्ति के अन्दर पाई जाने वाली शक्तियों का विकास होता है।
(iii) इससे व्यक्ति और समाज की उन्नति होती है।
(iv) अधिकार सरकार को निरंकुश बनने से रोकते हैं।
(v) अधिकार सामाजिक कल्याण का एक साधन है।
(vi) अधिकार व्यक्ति के जीवन को सुखमय बनाता है।
अधिकार के मांग का आधार-
(i) मनुष्य अपनी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहता है, इसी से उसके जीवन का
विकास होता है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उसे अवसर मिलना चाहिए। इस अवसरों
की प्राप्ति के लिए वह प्रयत्न करता है। उसकी सबसे पहली मांग यही होती है कि उसे ऐसे अवसर
मिले जिनसे वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। अधिकारों का निर्माण इन्हीं मांगों के
आधार पर होता है।
(ii) मांग अधिकार तभी बन सकती है जबकि उनकी प्राप्ति उन्हें जीवन के लिए आवश्यक
दिखाई दे। यदि कोई ऐसी मांग करता है जो जीवन के विकास में सहायक के स्थान पर बाधक
बन जाए, तो उस मांग को अधिकार के रूप में कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता।
(iii) समाज उस मांग को उचित समझकर स्वीकार करे।
प्रश्न 2. किन आधारों पर यह अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं ?
उत्तर-यद्यपि सभी अधिकार जीवन की परिस्थितियों के रूप में महत्वपूर्ण और आवश्यक
हैं परन्तु अधिकारों को सार्वभौमिक कहा जा सकता है, क्योंकि उनकी सभी कालों में सभी लोगों
द्वारा मांग रही है और दावे रहे हैं। वे अपने व्यवहार और सभ्यता के कारण महत्वपूर्ण हैं। ये
अधिकार मानव अस्तित्व के लिए मौलिक अधिकार हैं। वस्तुत: अधिकार मौलिक शतें हैं जो
सुरक्षित और सुव्यवस्थित मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं। विस्तृततः अधिकार वे शर्ते हैं जो
मानव जाति के लिए आत्मसम्मान और महत्वपूर्ण हैं। निम्नलिखित अधिकारों को सार्वभौमिक
अधिकार कहा जा सकता है- (i) जीविका का अधिकार, (ii) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, (iii) शिक्षा
का अधिकार।
(i) जीविका का अधिकार-जीविका का अधिकार व्यक्ति के जीवन का आधार है जिससे
उसका जीवन चलता है। इसलिए यह अति महत्वपूर्ण आवश्यक और सार्वभौमिक है। यदि एक
व्यक्ति को अच्छा रोजगार प्राप्त है तो इससे उसको आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बनने का अवसर
मिलेगा और इससे उसका महत्व और स्तर बढ़ जाएगा। जब एक व्यक्ति की आवश्यकताएँ, विशेष
रूप से आर्थिक आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं तो उसके प्रतिभा और कौशल में विकास होता
है और उसका शोषण समाप्त हो जाता है।
(ii) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें विभिन्न प्रकार से अपने को
व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है जिससे व्यक्ति रचनात्मक और मौलिक बनता है। इस
अधिकार द्वारा लोग अपने को लिखित, बोलकर या कलात्मक रूप से व्यक्त कर सकते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सरकार की प्रजातांत्रिक सांस्कृतिक और प्रजातांत्रिक व्यवस्था का प्रदर्शन
है। इस अधिकार के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
(iii) शिक्षा का अधिकार-शिक्षा का अधिकार व्यक्ति को मानसिक, नैतिक और
मनोवैज्ञानिक विकास में सहायता करता है। इससे हमें उपयोगी कौशल प्राप्त होते हैं जिससे हम.
जीवन के विविध पक्षों के चुनाव में सक्षम हो जाते हैं। इसलिए शिक्षा के अधिकार के सार्वभौमिक
अधिकार के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
प्रश्न 3. संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखे
जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने वास और जीने के तरीके को संरक्षित
रखने तथा बच्चों के बंधुआ मज़दूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया
जा सकता है।
उत्तर-आज का विश्व प्रजातांत्रिक सरकार का विश्व है जिसमें संस्कृति, जाति, रंग, क्षेत्र,
धार्मिक और व्यवसाय के प्रति जागरुकता और चेतना बढ़ रही है। व्यक्ति का सर्वांगीण विकास
शिक्षा, संस्कृति और धर्म के अधिकार से जुड़ा हुआ है। इसलिए लोगों को उनके नये क्षेत्रों जैसे
शिक्षा, संस्कृति, बाल अधिकार, महिला अधिकार, बुजुर्गों के अधिकार, मानवाधिकार, श्रमिक
अधिकार, कृषक अधिकार, पर्यावरण आदि अधिकार दिए जा रहे हैं।
आज का समाज सामान्य रूप से बहुवादी समाज है जिसमें नागरिकों को विकास करने का
और लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक आवास की सुरक्षा के अधिकार दिए गए हैं। भारतीय
संविधान में शिक्षा और संस्कृति का अधिकार दिया गया है, जिसमें विभिन्न क्षेत्र के लोगों को
अपनी सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने और उनको विकसित करने का अधिकार दिया गया
है। वे लोग विभिन्न प्रकार के रहन-सहन से सम्बन्धित होते हैं। वे विभिन्न प्रकार के वेश-भूषा,
व्यवहार, त्योहार और अन्य सभ्यताओं में सम्बद्ध होते हैं। वे शिक्षा से अपनी संस्कृति की प्रगति
कर सकते हैं।
बच्चों को शोषण के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है। जिससे वे पुरानी
प्रथाओं एवं बुराइयों जैसे बंधुआ मजदूरी को दूर कर सकते हैं। उनकी सम्मान की रक्षा के लिए
मौलिक अधिकार भी दिए गए हैं।
प्रश्न 4. राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अंतर बताइए। हर प्रकार
के अधिकार के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर-यद्यपि लोगों को विभिन्न प्रकार की दशाओं और सुविधाओं की आवश्यकता होती
है। जिनको वे अधिकार के रूप में प्राप्त करना चाहते हैं, परन्तु सार्वभौमिक रूप से लोगों के
सर्वांगीण विकास के लिए सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकार अत्यधिक
महत्वपूर्ण हैं। राजनीतिक अधिकार वे सुविधाएं और परिस्थितियाँ हैं जिसमें लोगों को व्यक्तिगत
विकास के अधिकार दिए जाते हैं और प्रजातात्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर दिया जाता
है। कुछ महत्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
(i) कानून के समक्ष समानता, (ii) अभिव्यक्ति का अधिकार, (iii) मतदान का अधिकार, (iv)
निर्वाचित होने का अधिकार, (v) संघ बनाने का अधिकार, (vi) प्रतिनिधि चुनने का अधिकार,
(vii) राजनैतिक दल बनाने का अधिकार।
आर्थिक अधिकार-आर्थिक अधिकार वे जीवित दशाएँ और परिस्थितियाँ हैं जो व्यक्ति के
भौतिक विकास जैसे भोजन, कपड़ा, मकान, विश्राम और रोजगार आदि की आवश्यकताओं से
सम्बन्धित हैं। आर्थिक अधिकार के अंतर्गत पर्यारी मजदूरी भी है जो आवश्यकताओं और उचित
कार्यदशाओं से जुड़ा है। राजनैतिक अधिकार और आर्थिक अधिकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
मुख्य आर्थिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
(i) कार्य करने का अधिकार, (ii) आवास एवं कार्य करने कि उचित दशाएँ, (iii) रोजगार
का अधिकार, (iv) पर्याप्त मजदूरी का अधिकार, (v) विश्राम का अधिकार, (vi) न्यूनतम
आवश्यकता जैसे-आवास, भोजन, वस्त्र आदि का अधिकार, (vii) सम्पत्ति का अधिकार,
(viii) चिकित्सा सुविधा का अधिकार।
सांस्कृतिक अधिकार-आर्थिक और राजनैतिक अधिकारों के अलावा सांस्कृतिक अधिकार
भी मानव विकास, सुव्यवस्थित जीवन मनोवैज्ञानिक और नैतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
(i) प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार,
(ii) स्थानीय वेशभूषा, त्योहार, पूजा और उत्सव मनाने का अधिकार,
(iii) शैक्षिक संस्थाओं (स्थानीय भाषायें और भूगोल के विकास के लिए) की स्थापना का
अधिकार
प्रश्न 5. अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएं लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या
कीजिए
उत्तर-क्योंकि अधिकार राज्य से प्राप्त मांग एवं दावे हैं, इसलिए यह स्वाभाविक है कि राज्य
की यह जिम्मेदारी है कि वह लोगों को सुनिश्चित दशाएँ और सुविधाएं उनके कल्याण और
रोजगार के लिए प्रबन्ध करे। ऐसा करने से राज्य के कार्य में कुछ कमियां आ जाती हैं। नागरिकों
के अधिकार सुनिश्चित करते हुए राज्य प्राधिकरण को लोगों के जीवन और स्वतंत्रता को अक्षुण्ण
रखते हुए अपना कार्य करना चाहिए। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि राज्य अपनी प्रभुता के कारण
शक्तिशाली है परन्तु नागरिकों के साथ संबंध राज्य की प्रभुता की प्रकृति पर निर्भर है। राज्य अपनी
रक्षा से ही अस्तित्व में नहीं होता बल्कि लोगों की सुरक्षा से ही कायम रह सकता है। यह नागरिक
ही होता है जिसका महत्व अधिक होता है, कल्याण और विकास के लिए कार्य करना चाहिए
जो राज्य की प्रभुता का क्षेत्र होता है। राज्य के कानून लोगों के लिए उनके कार्य के लिए उत्तरदायी
और संतुलित है। कानून राज्य और लोगों के मध्य संबंध को नियंत्रित करता है। यह राज्य का
कर्तव्य है कि वह आवश्यक दशाएं उपलब्ध कराए जिनकी नागरिकों द्वारा अपने कल्याण एवं
विकास में मांग या दावे किए जाते हैं। राज्य को इस संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय लेना चाहिए।
परन्तु प्राधिकरण द्वारा इसे रोका और सीमित कर दिया जाता है।
                                          परीक्षोपयोगी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
                             (Important Questions for Examination)
                                                         वस्तुनिष्ठ प्रश्न
                                               (Objective Questions)
1. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख करते हुए निम्न में से किस देश
का अनुसरण किया गया है:                                         [B.M.2009 A]
(क) ब्रिटेन
(ख) अमेरिका
(ग) आस्ट्रेलिया
(घ) स्विट्जरलैंड                                     उत्तर-(क)
2. संपत्ति का अधिकार निम्न में से किस वर्ग में आता है: [B.M.2009A]
(क) विधिक अधिकार
(ख) मानव अधिकार
(ग) मूल अधिकार
(घ) नैसर्गिक अधिकार                               उत्तर-(क)
3. किसने कहा है ? ‘अधिकार एवं कार्य आपस में जुड़े हुए हैं।’ [B.M.2009 A]
(क) लास्की
(ख) लॉक
(ग) हाब्स
(घ) जे. एस. मिल                                        उत्तर-(क)
4. निम्नलिखित में से कौन से अधिकारों की विशेषता नहीं है- [B.M.2009 A]
(क) असीमित होते हैं
(ख) केवल राज्य में ही संभव है
(ग) परिस्थिति के अनुसार बदलते रहते हैं
(घ) अधिकार विकास का द्योतक है                  उत्तर-(क)
5. अधिकारों के वैधानिक सिद्धांत का समर्थन किसने किया था ? [B.M.2009 A]
(क) रूसो
(ख) वाल्टेयर
(ग) टॉमन पेन
(घ) आस्टिन                                                   उत्तर-(घ)
6. मौलिक अधिकार का वर्णन भारतीय संविधान के किस भाग में है? [B.M.2009A]
(क) भाग-4
(ख) भाग-3
(ग) भाग-2
(घ) भाग-1                                                     उत्तर-(ख)
7. मूल अधिकारों का निम्न कौन-सा वर्ग अस्पृश्यता की समिति है ? [B.M.2009 A]
(क) धर्म का अधिकार
(ख) समानता का अधिकार
(ग) स्वतंत्रता का अधिकार
(घ) शोषण के विरुद्ध अधिकार                           उत्तर-(ख)
                                                       अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
                                      (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
(What do you understand by rights ?)
उत्तर-अधिकार-व्यक्ति की उन मांँगों को, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तथा राज्य द्वारा
संरक्षण प्राप्त न हो, अधिकार कहते हैं। कभी-कभी अरिक्षत माँगें भी अधिकार बन जाती हैं
भले ही उन्हें कानून का संरक्षण प्राप्त न हुआ हो। उदाहरण के लिए काम पाने का अधिकार राज्य
ने भले ही स्वीकार न किया हो, परन्तु उसे अधिकार ही कहा जाएगा, क्योंकि काम के बिना कोई
भी व्यक्ति अपना सर्वोच्च विकास नहीं कर सकता। बैन तथा पीटर्स (Benn and Peters) ने
अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा है, “अधिकारों की स्थापना एक सुस्थापित नियम द्वारा होती
है। वह नियम चाहे कानून पर आधारित हो या परम्परा पर।”
वास्तव में अधिकार समाज या राज्य द्वारा स्वीकार की गई वे परिस्थतियाँ हैं जो मानव विकास
के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं और चूँकि समाज का उद्देश्य श्रेष्ठ मानव का निर्माण करना है अत:
आदर्श समाज उसी को कहा जा सकता है जिसमें मनुष्य बिना संघर्ष किए इन अनुकूल परिस्थतियों
को प्राप्त कर ले।
प्रश्न 2. अधिकारों के आवश्यक तत्व बताइए।
(Mention the essential elements of rights.)
उत्तर-अधिकारों के आवश्यक तत्व (Essential Elements of Rights)-
(i) किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह की मांग अधिकार होनी चाहिए।
(ii) मांग उसके विकसित उच्च जीवन के लिए आवश्यक एवं न्यायोचित हो।
(iii) समाज उस मांग को उचित समझकर स्वीकार करे।
प्रश्न 3. अधिकारों की परिभाषा दीजिए।
(Define Rights.)
उत्तर-ऑस्टिन के अनुसार-“अधिकार एक व्यक्ति की वह सामर्थ्य है जिसमें वह किसी
दूसरे से कोई काम करा सकता हो या दूसरे को कोई काम करने से रोक सकता हो।”
लास्की (Laski) के अनुसार, “अधिकार सामान्य जीवन की वह परिस्थितियाँ हैं जिनके बिना
कोई व्यक्ति अपने जीवन को पूर्ण नहीं कर सकता।” इस प्रकार अधिकार ऐसी अनिवार्य परिस्थिति
है जो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है। वह व्यक्ति की मांग है तथा उसका हक है जिसे
समाज, राज्य तथा कानून भौतिक मान्यता देते हैं और उसकी रक्षा करते हैं।
उदाहरणार्थ, यदि मनुष्य जीवित न रहे तो वह कुछ भी नहीं कर सकता और यदि स्वतंत्रता
न मिले तो वह अपनी उन्नति के लिए कुछ भी नहीं कर सकता। अत: व्यक्ति का जीवन, जीविका
तथा स्वतंत्रता उसके व्यक्तित्व के विकास की आवश्यक परिस्थितियां हैं। अतः वे मनुष्य के
अधिकार हैं।
प्रश्न 4. अधिकार और दावों में क्या अन्तर है?
(What are the difference between rights and claims ?)
उत्तर– अधिकार सामान्य जीवन का एक ऐसा वातावरण है जिसके बिना कोई व्यक्ति अपने
जीवन का विकास नहीं कर सकता। अधिकार व्यक्ति के विकास और स्वतंत्रता का एक ऐसा दावा
है जो कि व्यक्ति और समाज दोनों के लिए लाभदायक है तथा जिसे समाज मानता है और राज्य
लागू करता है। अधिकार उन सामाजिक दावों का नाम है जो यदि व्यक्ति को प्राप्त न हो तो वह
विकास नहीं कर सकता। अधिकार और दावों में निम्न अन्तर है-
(i) अधिकार दे दावे हैं जिन्हें समाज मान्यता देता है और जो राज्य द्वारा लागू किए जाते
हैं। ऐसी मान्यता के अभाव में अधिकार केवल खोखले दावे ही सिद्ध होंगे।
(ii) केवल वे ही दावे अधिकार बनते हैं जिन्हें समाज मान्यता देता है।
(iii) दावों को अधिकार कहलाने के लिए यह आवश्यक है कि उनका उद्देश्य समाज का
हित हो।
प्रश्न 5. व्यक्ति को प्राप्त किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन कीजिए।
(Describe any three rights of individuals.)
अथवा, विभिन प्रकार के अधिकारों के नाम लिखिए। उनमें से किन्हीं तीन का वर्णन कीजिए।
(Name the different kinds of rights. Describe any three of them.)
उत्तर-व्यक्ति को समाज द्वारा अनेक अधिकार प्राप्त होते हैं। जैसे मौलिक अधिकार,
राजनीतिक अधिकार, सामाजिक अधिकार, आर्थिक अधिकार, धार्मिक अधिकार, कानूनी अधिकार,
प्राकृतिक अधिकार, नैतिक अधिकार आदि। इनमें तीन अधिकारों का वर्णन निम्न प्रकार से किया
जा सकता है-
1. आर्थिक अधिकार (Economic Rights) – प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार किसी भी
व्यवसाय को अपना सकता है; परन्तु किसी भी व्यक्ति को समाज विरोधी व्यवसाय अपनाने का
अधिकार नहीं है।
2. धार्मिक अधिकार (Religious Rights)- व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार धर्म मानने का
अधिकार है। धर्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसी सुविधा से वंचित नहीं किया
जा सकता जो कि राज्य अपने नागरिकों को प्रदान करता है।
3. राजनैतिक अधिकार (Political Rights)-जिन देशों में प्रजातंत्र की स्थापना है, उन
राज्यों में प्रत्येक व्यक्ति को वयस्कता के आधार पर मताधिकार प्रदान किया गया है। बिना किसी
भेदभाव के सरकारी पद पर नियुक्त होने का अधिकार है। चुनाव लड़ने का भी अधिकार है।
प्रश्न 6. किन्हीं दो राजनैतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
(Describe any two political rights.)                                     (Imp.)
उत्तर-दो राजनीतिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. मतदान का अधिकार (Right to Vote)-जिन देशों में प्रजातंत्रीय शासन है वहाँ
नागरिकों को वयस्कता के आधार पर मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है।
2. चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to Contest Election)- लोकतंत्रीय देशों में
प्रत्येक व्यक्ति को निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार प्राप्त है। निर्वाचित होने पर उन्हें सरकार
के निर्माण में शामिल होने का भी अधिकार है।
प्रश्न 7. नागरिक का क्या अर्थ है ?
(What is meant by citizenship ?)
उत्तर-नागरिकता (Citizenship) – नागरिकता से नागरिक के जीवन की एक स्थिति
निश्चित होती है जिसके कारण वह राज्य द्वारा दिए गए सभी सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकारों
का प्रयोग करता है। राज्य के प्रति कुछ कर्तव्यों का पालन करता है। अतः एक नागरिक को राज्य
का सदस्य होने के नाते जो स्तर (Status) अथवा पद प्राप्त होता है, उसे नागरिकता कहते हैं।
प्रश्न 8. नागरिकों के दो धार्मिक अधिकार का वर्णन कीजिए।
(Describe two religious rights of the citizens.)
उत्तर-नागरिकों के दो धार्मिक अधिकार निम्नलिखित हैं-
1. धार्मिक विश्वास का अधिकार (Right to religious belien – कोई भी मनुष्य
अपनी इच्छानुसार धार्मिक विश्वास रख सकता है। धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है। अतः प्रत्येक
मनुष्य को अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार पूजा-पाठ करने का अधिकार है।
2. धार्मिक प्रचार का अधिकार (Right to religious preaching) – प्रत्येक धर्म के
मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार करने का समान अधिकार प्राप्त है। धर्म प्रचारक अपने धर्म
के प्रचार के लिए शान्तिपूर्ण सम्मेलन कर सकते हैं।
प्रश्न 9. भारतीय संविधान में दिए गए किन्हीं दो मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
(Mention any two fundamental duties as prescribed in the constitution of India.)
अथवा, नागरिकों के किन्हीं दो कर्तव्यों का उल्लेख करें।
(State any two duties performed by a citizen.)
उत्तर-भारत के संविधान में 1976 ई० में नागरिकों के दस मौलिक कर्तव्यों को 42वें
संशोधन द्वारा जोड़ा गया। उनमें से दो मौलिक कर्तव्यों का विवेचन निम्नलिखित है-
(i) भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके
आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
(ii) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय
में संजोए और उनका पालन करें।
प्रश्न 10. नागरिक द्वारा निभाए जाने वाले कुछ कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
(Mention some of the duties which areperfomed by the citizen.) (M. Imp.)
उत्तर-नागरिकों द्वारा निभाए जाने वाले कुछ कर्तव्यों का उल्लेख निम्नलिखित है-.
(i) हमें अपने राज्य के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।
(ii) सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना चाहिए।
(iii) सरकार द्वारा लगाए करों को देना चाहिए।
(iv) सैनिक सेवा हमारा एक अन्य कर्त्तव्य है।
(v) जन-सम्पत्ति की रक्षा नागरिक का कर्तव्य होता है।
(vi) नागरिक के अन्य कर्तव्यों में मताधिकार का प्रयोग, सरकार को सहयोग देना, अन्याय
के विरुद्ध आवाज उठाना आदि सम्मिलित किए जा सकते हैं।
प्रश्न 11. “अधिकार में कर्त्तव्य निहित है”, स्पष्ट करो।
(“Rights imply duties.” Clarify.)
अथवा, अधिकार और कर्त्तव्य के आपसी संबंधों के किन्हीं दो उदाहरणों का उल्लेख कीजिए।
(Give any two examples of the relations between rights and duties.)
उत्तर-यद्यपि अधिकार और कर्त्तव्य देखने में अलग-अलग प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तव में
वे एक-दूसरे से पृथक नहीं हैं। अधिकार और कर्त्तव्य सदैव साथ-साथ चलते हैं। अधिकार और
कर्तव्यों में घनिष्ठ संबंध होता है। कर्त्तव्य के बिना अधिकारों की कल्पना नहीं की जा सकती।
कर्तव्यों के पालन करने के बाद ही अधिकारों की कल्पना की जा सकती है। अतः अधिकारों और
कर्तव्यों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का
दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नहीं। अत: यह ठीक ही कहा गया है कि “अधिकारों में कर्त्तव्य
निहित हैं।” उदाहरणत:-
(i) यदि एक नागरिक भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार मांगता है तो यह उसका कर्तव्य
है कि वह अपने भाषण में किसी दूसरे नागरिक का अपमान न करे।
(ii) यदि कोई व्यक्ति किसी अधिकार का उपयोग करता है तो उसका कर्तव्य है कि वह
दूसरे के अधिकारों में बाधा न डाले, जैसे एक व्यक्ति को मतदान का अधिकार है तो उसका
यह कर्त्तव्य है कि वह दूसरे के मताधिकार में किसी प्रकार की बाधा न डाले।
प्रश्न 12. ‘समानता का अधिकार’ पर टिप्पणी लिखो।
(Write a note on ‘Right to Equality’.)
उत्तर-भारतीय संविधान में नागरिकों को 6 मूल अधिकार दिए गए हैं। इनमें सबसे पहला
मूल अधिकार समानता का अधिकार है। अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता का अधिकार इस प्रकार
दिया गया है-
(i) कानून के समक्ष समानता (Equality before law)– यह अनुच्छेद 14 में दिया गया है।
(ii) सामाजिक समानता (Equality before law) – अनुच्छेद 15 में दिया गया है।
(iii) सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार (Equality of opportunity in matter
of public employment) – अनुच्छेद 16 में दिया गया है।
(iv) अस्पृश्यता का अन्त (Abilition of Untouchability)-अनुच्छेद 17 में दिया गया है।
(v) अपराधियों की समाप्ति (Abilition of Titles)-संविधान के अनुच्छेद 18 में दिया
गया है।
प्रश्न 13. ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखो।
(Write a note on ‘Freedom of Speech and Expression.’)
उत्तर-भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों में स्वतंत्रता का अधिकार भी प्रमुख है।
संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार नागरिकों को भाषण, लेखन, पुस्तक, चलचित्र व अन्य किसी
माध्यम से विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है। लास्की का कथन है, कि “एक मनुष्य को जो
वह सोचता है उसे कहने का अधिकार देना, उसके व्यक्तित्व की पूर्णता का एकमात्र साधन है।”
अनुच्छेद 19 में दी गई छः स्वतंत्रताओं में भाषण और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुच्छेद
19(2) के अनुसार कुछ सीमाएँ भी लगाई गई हैं :-
(i) राज्य की सुरक्षा, (ii) विदेशी राज्यों के साथ मैत्री सम्बन्ध, (iii) सार्वजनिक व्यवस्था,
(iv) सदाचार व नैतिकता, (v) विशिष्टता, (vi) अपराध करने को उकसाने से रोकना आदि।
प्रश्न 14, कानूनी अधिकार की परिभाषा दें। इसके कोई दो उदाहरण दीजिए।
(Define legal rights. Give its two examples.)
उत्तरकानूनी अधिकार (Legal Rights) – कानूनी अधिकार वे अधिकार हैं, जो किसी
भी समाज में राज्य के कानूनों द्वारा निश्चित और सुरक्षित होते हैं। इनमें बाधा डालने वालों को
राज्य द्वारा दण्ड दिया जाता है। दो उदाहरण निम्नलिखित हैं :-
(i) समानता का अधिकार (Right to Equality)- समानता के अधिकार का अर्थ समान
अवसरों की प्राप्ति से है। भारत के नागरिक कानून की दृष्टि से समान हैं। जाति, धर्म, लिंग, वंश
अथवा जन्म के आधार पर उनमें भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(ii) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Liberry) – प्रत्येक नागरिक को स्वयं के विकास
की पूर्ण स्वतंत्रता है। वह भाषण दे सकता है, सभा कर सकता है, समुदाय बना सकता है। उसे
देश के किसी भी भाग में जाने की स्वतंत्रता है। व्यवसाय करने के लिए भी वह स्वतंत्र है। देश
के किसी भी भाग में उसे निवास की स्वतंत्रता है। उसे न्याय प्राप्ति की भी स्वतंत्रता है।
प्रश्न 15. भारत में मतदान का अधिकार किसको है ?
(Who has the right to vote in India ?)
उत्तर-भारत में मतदान का अधिकार प्रत्येक वयस्क स्त्री-पुरुष को प्राप्त है परन्तु इन सभी
वयस्कों में निम्न योग्यताएं होनी चाहिए :
(i) वह देश का नागरिक हो और देश के प्रति आस्था रखता हो।
(ii) वह निर्धारित आयु रखता हो। भारत में यह आयु सीमा 18 वर्ष कर दी गई है।
(iii) वह देशद्रोही, सजायाफ्ता पागल, अथवा दिवालिया न हो।
(iv) उसका नाम मतदाता सूची में हो।
प्रश्न 16. कानून के सम्मुख समानता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
(Write a short note on equality before law.)              (Imp.)
उत्तर-कानून के सम्मुख समानता (Equality before law) का अर्थ है-विशेषाधिकार
का अभाव व सभी सामाजिक वर्गों पर कानून की समान बाध्यता। कानून के समक्ष समानता के
अन्तर्गत सभी कमजोर व शक्तिशाली समान समझे जाते हैं। इस अधिकार के अन्तर्गत मूल भाव
यह है कि समान व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार किया जाए तथा किसी के साथ धर्म, जाति,
भाषा, रंग, नस्ल, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस अधिकार में यह तथ्य भी
निहित है कि कमजोर को राज्य का संरक्षण प्राप्त होना चाहिए। भारत में अनुसूचित जातियों तथा
अनुसूचित जनजातियों के साथ विशेष व्यवहार इस तथ्य का उदाहरण है।
प्रश्न 17. ‘काम का अधिकार’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(Write a short note on ‘Right to Work’.)
उत्तर-काम के अधिकार का अर्थ है कि सरकार नागरिकों के लिए ऐसी व्यवस्था करे जिससे
कि वे कोई सरकारी या गैर-सरकारी नौकरी प्राप्त कर सके या उन्हें कोई व्यवसाय करने का
अवसर मिल सके और वे अपना जीवन निर्वाह कर सके। अभी तक भारत में काम का अधिकार
मूल अधिकार में सम्मिलित नहीं किया गया है यद्यपि समय-समय पर इसकी मांग उठती रहती है।
                                                लघु उत्तरात्मक प्रश्न
                                  (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
(Explain the theory of Natural Rights.)
उत्तर-अधिकारों के जन्म, उदय तथा विकास से संबंधित अनेक सिद्धांत बताए जाते है। इस
सिद्धान्तों में प्राकृतिक अधिकारों का सिद्धान्त भी उल्लेखनीय है। प्राकृतिक अधिकारों से अभिप्राय
वे अधिकार जो मनुष्य को प्रकृति एवं ईश्वर की देन होते हैं। ये अधिकार मनुष्य को इसलिए प्राप्त
होते हैं कि वे मनुष्य हैं। इस प्रकार के अधिकारों से संबंधित सिद्धान्त के समर्थकों में हॉब्स, लॉक
तथा रूसो का नाम लिया जाता है। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त को आज कोई नहीं मानता।
इसका कारण यह है कि समाज से पहले, समाज से ऊपर समाज से बाहर तथा उसके विरुद्ध
कोई अधिकार नहीं होता।
प्रश्न 2. किन परिस्थतियों में नागरिक राज्य के आज्ञा की अवहेलना कर सकता है?
(Under what circumstances can a citizen disobey the State ?)
उत्तर-राज्य की अवज्ञा के अधिकार का अर्थ है गैर-कानूनी सत्ता की अवज्ञा। यह अधिकार
जनता को प्राप्त अधिकारों में सर्वाधिक मौलिक माना गया है। एक अच्छे संविधान को ऐसे
अधिकार अपने नागरिकों को प्रदान करना चाहिए। ऐसे अधिकारों के कारण लोग तानाशाही व
स्वेच्छाचारी सरकार के विरुद्ध आवाज उठा सकते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले, भारत में महात्मा
गाँधी ने अवज्ञा के अधिकार का प्रयोम असहयोग आंदोलन (सन् 1920-22 ई०) तथा सविनय
अवज्ञा आंदोलन (1930-34 ई०) में किया था।
प्रश्न 3. आप यह कैसे कहेंगे कि अधिकार एवं कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो
पहलू हैं?
(How would you say that rights and duties are two sides of a coin?
अथवा, अधिकार एवं कर्तव्यों के बीच संबंध बताइए।
(Describe the relationship between rights and duteis.)
उत्तर-यद्यपि अधिकार और कर्तव्य देखने में अलग-अलग प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तव में
ये एक-दूसरे से भिन्न हैं। अधिकार एवं कर्त्तव्य सदैव साथ-साथ चलते हैं। जब हम किसी के
अधिकारों का उल्लेख करते हैं तो उसका अर्थ समझा जाता है कि इस व्यक्ति के कुछ कर्तव्य
भी हैं। कर्तव्यों के बिना अधिकारों का न कोई प्रश्न है और न ही कोई अस्तित्व।
अधिकार और कर्तव्यों में संबंध (Relationship between Righs and Duties)-
(i) अधिकार एवं कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं (Rights and Duties are comple-
mentary to each other)- यह बात सर्वमान्य है कि किसी भी व्यक्ति का कोई भी अधिकार
उस समय ही मिल सकता है जब वह अपने कर्तव्य का पालन करे। अधिकार एवं कर्तव्य
एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसे यदि एक नागरिक भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार मांगता है तो
इस अधिकार में ही उसका यह कर्तव्य निहित है कि वह अधिकार से अनुचित लाभ न उठाए।
तथा अपने भाषण से सरकार अथवा किसी नागरिक का अपमान न करे।
(ii) अधिकार एवं कर्तव्यों का एक ही उद्देश्य है (Same Objectives ofRighsande
Duties)-अधिकारों तथा कर्तव्यों की उत्पत्ति मनुष्य को सुखी करने के लिए हुई है। दोनों का
उद्देश्य तथा लक्ष्य नागरिकों को सुखी बनाना है। नागरिकों की शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक
उन्नति कराना ही मुख्य उद्देश्य है। ये दोनों व्यक्ति के सफल जीवन व्यतीत करने में सहायता देते हैं।
(iii) कर्तव्यों के बिना अधिकारों का अस्तित्व असंभव है (No Right without
Duties)- कर्तव्यों के बिना अधिकारों की कल्पना नहीं की जा सकती। जहाँ मनुष्य को केवल
अधिकार ही मिले हों, वहाँ वास्तव में अधिकार न होकर शक्तियां प्राप्त होती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)- उपरोक्त सभी बातों का मनन करने के उपरान्त हम इस बात
से पूरी तरह सहमत हैं कि अधिकार एवं कर्त्तव्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं तथा एक के बिना दूसरों
का न अस्तित्व हो सकता है और न ही महत्व।
प्रश्न 4. नैतिक और वैधानिक (कानूनी) अधिकारों में अन्तर कीजिए।
(Distinguish between moral and legal rights.)
उत्तर-अधिकार एक प्रकार की सुविधाएँ हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति अपना विकास सरलता व
शीघ्रता से कर सकता है। नैतिक और वैधानिक अधिकारों में निम्नलिखित अन्तर होता है-
नैतिक अधिकारों की उत्पत्ति व्यक्ति की नैतिक भावना द्वारा होती है। इसका संबंध व्यक्ति
के नैतिक आचरण से होता है। ये अधिकार नैतिक संहिता (ethical code) पर आधारित होते
हैं। इन अधिकारों का अनुमोदन राज्य द्वारा नहीं किया जाता बल्कि समाज की नैतिक भावना, जनमत
तथा धर्मशास्त्रों द्वारा इन्हें स्वीकार किया जाता है। दूसरी ओर वैधानिक अधिकार उन अधिकारों
को कहा जाता है जो राज्य द्वारा व्यक्ति को प्रदान किए जाते हैं और कानून द्वारा जिनको सुरक्षा
प्रदान की जाती है। इन अधिकारों का प्रयोग कानून के अन्तर्गत किया जा सकता है और इनका
उल्लंघन अपराध माना जाता है। जिसके लिए राज्य दंड की व्यवस्था कर सकता है।
                                                      दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
                                       (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. संवैधानिक अधिकारों तथा प्राकृतिक अधिकारों में अन्तर कीजिए।
(Distinguish between Constitutional Rights and Natural Rights.)
उत्तर-संवैधानिक अधिकारों को कानूनी अधिकार भी कह सकते हैं। यह वे अधिकार हैं जो
हमें संविधान द्वारा प्रदान किए जाते हैं। नैसर्गिक या प्राकृतिक अधिकारों का स्रोत “दैवी नियम”
या नैतिक मूल्य है। लॉक तथा अन्य कई विचारकों का मत है कि राज्य की स्थापना से पहले
भी व्यक्ति को कुछ अधिकार प्राप्त थे जिन्हें इन विद्वानों ने प्राकृतिक अधिकार माना है। इन दोनों
के बीच चार प्रमुख भेद हैं-
(i) दोनों प्रकार के अधिकारों का उद्गम अलग-अलग स्रोतों से हुआ।
(ii) संवैधानिक या विधिक अधिकार लिखित रूप में पाये जाते हैं अत: वे निश्चित व स्पष्ट
होते हैं। इसके ठीक विपरीत प्राकृतिक अधिकारों का स्वरूप प्रायः अनिश्चित रहता है।
अलग-अलग विद्वानों की प्राकृतिक अधिकारों के बारे में अलग-अलग मान्यताएं हैं। अरस्तू ने तो
दासों की खरीद-फरोख्त को भी व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार माना है।
(iii) संवैधानिक या विधिक अधिकारों की अवहेलना अपराध है, जिसकी सजा कानून के
अनुसार दी जा सकेगी। परन्तु प्राकृतिक अधिकारों का स्वरूप एकदम अस्पष्ट है। अतः उनकी
अवहेलना करने वालों को किस आधार पर दण्ड दिया जा सकता है।
(iv) प्राकृतिक अधिकारों के समर्थक सम्पत्ति और नागरिक स्वतंत्रता पर किसी प्रकार का
प्रतिबन्ध सहन नहीं करते, जबकि संवैधानिक अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं।
प्रश्न 2. अधिकार से क्या अभिप्राय है ? अधिकार के आधारभूत तत्व (लक्षण)
समझाइए।
(What are rights ? Mention the basic elements (attributes) of right)
उत्तर-व्यक्ति की उन मांँगों को, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो तथा राज्य द्वारा संरक्षण
प्राप्त हो, अधिकार कहते हैं। कभी-कभी असंरक्षित मांगें भी अधिकार कहलाती है, भले ही उन्हें
कानून का संरक्षण प्राप्त न हुआ हो। उदाहरणार्थ, काम प्राने का अधिकार (Right to work)
राज्य ने भले ही स्वीकार न किया हो परन्तु उसे अधिकार ही माना जाएगा, क्योंकि काम के बिना
कोई भी व्यक्ति अपना सर्वोच्च विकास नहीं कर सकता। बेन और पीटर्स (Benn&Peters) ने
अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा है अधिकारों की स्थापना एक ‘सुस्थापित’ नियम द्वारा होती
है, वह नियम चाहे कानून पर आधारित हो या परम्परा पर (Rightis an established rule
either legal or conventional, which accords the right)
अधिकार के आवश्यक तत्व (Basic Elements of Right)-
(i) मांँग अथवा दावा (Aclaim)-व्यक्ति अथवा समाज की कुछ आवश्यकताएँ होती हैं।
जिन्हें किसी विशेष स्थिति या अवस्था में ही पूरा किया जा सकता है। व्यक्ति इस प्रकार की स्थिति
की मांँग करता है।
(ii) मांँगे न्यायोचित होनी चाहिए (Claim would beJustify)-अधिकार केवल एक
मांँग या दावा ही नहीं है वरन् वह नैतिक मान्यताओं के अनुकूल माँग या दावा होना चाहिए।
(iii) राज्य अथवा समाज की स्वीकृति (Social Sanction) – कोई भी मांग तब तक
अधिकार का रूप ग्रहण नहीं करती जब तक कि उसे समाज की स्वीकृति न मिल जाए। समाज
की स्वीकृति मिलने पर माँगें अधिकार बन जाती हैं भले ही उन्हें कानूनी मान्यता न मिली हो। समाज
की स्वीकृति न मिलने से माँगें अधिकार नहीं बन सकतीं, क्योंकि समाज से पृथक, व्यक्ति का
अस्तित्व स्वीकार ही नहीं करता वरन् उसकी पूर्ति के लिए प्रयास भी करता है। समाज उन्हीं मांँगों
को स्वीकृति देता है जो सबके हित की अर्थात् समाज हित में हो।
(iv) अधिकार व कर्त्तव्य आपस में जुड़े रहते हैं (Rights implies duties)-अधिकारों
में कर्त्तव्य निहित है। मेरा कर्तव्य है कि मैं दूसरों को भी उन स्वतंत्रताओं का उपभोग करने दूंँ
जिनका मैं स्वयं उपभोग कर रहा हूँ। इस प्रकार एक व्यक्ति का अधिकार दूसरे व्यक्ति का कर्तव्य
तथा एक व्यक्ति का कर्तव्य दूसरे व्यक्ति का अधिकार बन जाता है।
(v) काल और देश के अनुसार अधिकारों का स्वरूप बदलता रहता है (Rights
change with time and place)- अधिकारों की कोई ऐसी सूची बन सकना असंभव है जिसमें
परिवर्तन की कोई गुंजाइश न हो। एक समय दास खरीदना व बेचना अधिकारों में सम्मिलित था;
परन्तु अब यह पूरे विश्व में कहीं भी मान्य नहीं है।
प्रश्न 3. किन्हीं तीन ऐसी परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जिनमें अधिकारों को
प्रतिबन्धित किया जा सकता है।
(Describe any three situations in which rights can be restricted.) (M. Imp.)
उत्तर-अधिकार कभी भी निरंकुश या असीम नहीं होते, उनके साथ कर्तव्य जुड़े रहते हैं।
व्यक्ति के अधिकार दूसरे व्यक्तियों के अधिकारों से भी बंधे तथा सीमित होते हैं। जैसा मैं चाहता
हूँ वैसा दूसरे व्यक्ति भी चाहते हैं। अत: अधिकारों को सीमित किया जा सकता है। जिन तीन
परिस्थितियों में अधिकारों को प्रतिबन्धित किया जा सकता है, उनका विवरण निम्नलिखित है-
(i) अन्य सदस्यों के अधिकार के लिए (For Other’s Rights)-व्यक्ति समाज का अंग
है और दूसरों के साथ मिल-जुलकर ही वह रह जाता है। व्यक्ति के अधिकार उसके अन्य साथियों
के अधिकार से प्रतिबन्धित रहते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने अधिकार का प्रयोग इस प्रकार नहीं
कर सकता जिससे दूसरे लोगों को अपने अधिकार का प्रयोग करने में बाधा पड़े। अधिकार सबको
समान रूप से मिले होते हैं अत: उनका प्रयोग भी इस प्रकार किया जा सकता है कि सभी अपने
अधिकारों का प्रयोग कर सकें।
(ii) समाज हित के लिए (For Social Welfare)-अधिकार समाज में ही मिल सकते।
हैं। समाज से बाहर उनका कोई अर्थ नहीं होता। इसलिए व्यक्ति के अधिकार सामाजिक कल्याण
से सीमित हैं। इसका अर्थ यह है किसी व्यक्ति को कोई ऐसा अधिकार नहीं दिया जा सकता जो
समाज का अहित करता हो। सामाजिक कल्याण की दृष्टि से व्यक्ति के अधिकार पर सीमा लगायी
जा सकती है।
(iii) राज्य की स्वतंत्रता तथा सुरक्षा हेतु (For the liberty and security of the
State)- यदि किसी व्यक्ति के अधिकार की पूर्ति करने से राज्य की स्वतंत्रता अथवा सुरक्षा को
खतरा उत्पन्न हो जाए तो उस व्यक्ति के ऐसे अधिकार पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।
उदाहरण के लिए प्रत्येक नागरिक का अधिकार है कि वह अपने राष्ट्र के विषय में सूचनाएंँ प्राप्त
कर सके, परन्तु किसी सूचना को प्रकट करने पर यदि राज्य की सुरक्षा को खतरा होने की
सम्भावना हो तो सूचना गोपनीय रखी जा सकती है।
प्रश्न 4. नागरिक अधिकारों और राजनीतिक अधिकारों में अन्तर कीजिए।
(Distinguish between Civil Rights and Political Rights.)
उत्तर-नागरिक अधिकारों और राजनीतिक अधिकारों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
(i) नागरिक अधिकार (Civil Rights) का अभिप्राय उन अधिकारों से है जिनके बिना
नागरिक या राज्य में रहने वाले अन्य व्यक्ति सभ्य जीवन नहीं बिता सकते हैं। नागरिक अधिकारों
में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। लोकतन्त्रीय राज्यों में किसी
भी व्यक्ति को कानून के उल्लंघन पर निश्चित कानूनों के आधार पर न्यायालय द्वारा दण्डित किया
जा सकता है। इस प्रकार कानून द्वारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता बनी रहती है।
(ii) राजनीतिक अधिकार (Political Rights) से अभिप्राय उन अधिकारों से है जो
नागरिक को निश्चित योग्यताएं प्राप्त करने पर शासन में भागीदारी का अधिकार देते हैं। ये
अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त होते हैं। चुनाव में भाग लेने का अधिकार एक राजनीतिक
अधिकार है। भारत में नागरिक अन्य योग्यताओं के साथ 25 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद
लोकसभा तथा 30 वर्ष की आयु पूरी करने पर राज्य सभा का चुनाव लड़ने का अधिकार रखता है।
प्रश्न 5. अधिकार संबंधी प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
( (Discuss important theories of rights.)             (V.Imp.)
उत्तर-(i) अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धांत (Natural Theoryof Rights) – प्राकृतिक
अधिकार जन्मजात होते हैं और उनका अस्तित्व किसी न किसी रूप से राज्य के गठन से पूर्व
भी था। प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त ने निरंकुश शासकों की निरंकुशता पर बन्धन लगाकर
मनुष्य की स्वतंत्रता को प्रकट किया। लॉक (Locke) का मत है कि प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति
को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे। रूसो (Rousseau) प्राकृतिक अवस्था को स्वर्ग के समान
समझता है। प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य पर किसी प्रकार के बन्धन नहीं थे। टामस पेन, जेफरसन
ने भी जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा सम्पत्ति के अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार माना है।
(ii) अधिकारों के उदारवादी सिद्धान्त (Liberal Theoryof Rights)-लॉक (Locke)
को आधुनिक युग के उदारवाद का जन्मदाता कहा जाता है। उसने घोषित किया कि राज्य का
निर्माण मनुष्य ने स्वयं किया है, और उसका कार्य शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करना मात्र है।
इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण अधिकार व्यक्ति ने अपने पास रखे हैं। राज्य व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता
व सम्पत्ति के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कानून नहीं बना सकता। लोगों को यह भी
अधिकार है कि सीमा से बाहर जाने वाले व शक्ति दुरुपयोग करने वाले शासक को वे अपदस्थ
कर दें।
(iii) ऐतिहासिक अधिकारों का सिद्धान्त (Historica! Theory of Rights)- इस
सिद्धान्त के अनुसार अधिकारों का जन्म इतिहास से हुआ है। वे उन रीति-रिवाजों और प्रयोगों
पर आधारित हैं जो उपयोगी समझे जाते थे तथा जो काफी समय तक माने जाते रहे।
(iv) लोक कल्याणकारी अधिकार सिद्धान्त (Social Welfare Theory of Rights)
इस सिद्धान्त के समर्थकों का विचार है कि व्यक्ति को अधिकार इसलिए दिया जाता है ताकि वह
समाज का उपयोगी अंग बन जाए। बेन्थम तथा ज. एस. मिल इस सिद्धान्त के समर्थक थे। लास्की
(Laski) कहते हैं, “समाज उपयोगिता के बिना अधिकार निरर्थक है।” (Right have no
meaning without social utility).
(v) आदर्शवादी सिद्धान्त (Idealist Theory of Rights)– इस सिद्धान्त के समर्थक
राज्य को एक दैवी संस्था मानते हैं। हेगेल (Hegal) ने कहा था- “राज्य पृथ्वी पर भगवान् का
अवतरण है।” (State is march of God on the earth) इस सिद्धान्त के समर्थक कहते हैं कि
व्यक्ति को अधिकार समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त होता है।

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