12th Psychology

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 2

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 2

BSEB 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1. प्रतिबल की समायोजी प्रविधि के रूप में संवेग उन्मुखी उपाय का वर्णन करें।
उत्तर: यह अनुमान लगाया जाता है कि यह शारीरिक रोग और अवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अल्सर, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी कड़े दबाव से संबंधित होती है। जीवन शैली में परिवर्तनों के कारण दबाव में निरंतर वृद्धि हो रही है। अतएव विद्यालय, दूसरी संस्थाएँ, दफ्तर एवं समुदाय उन तकनीकों को जानने हेतु उत्सुक हैं जिनके द्वारा दबाव का प्रबंधन किया जा सके। इनमें से कुछ तकनीकें निम्नलिखित हैं-

  1. विश्राम की तकनीकें।
  2. जैव प्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक तकनीक।
  3. सृजनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण।
  4. ध्यान प्रक्रियाएँ।
  5. संज्ञानात्मक-व्यवहारात्मक तकनीकें।
  6. व्यायाम तथा योग।

प्रश्न 2. असामान्यता का मनोगतिकी मॉडल क्या है?
उत्तर: मनोगतिक प्रतिरूप(Psychodynamicmodel)-व्यवहार सामान्य हो अथवा असामान्य व्यक्ति अपने आंतरिक मनोविचारों एवं शक्तियों से प्रेरित होता है जिसके प्रति वह स्वयं चेतन रूप से अनभिज्ञ रहता है। मनोगतिक मॉडल में सर्वप्रथम फ्रॉयड ने कहा कि तीन केंद्रीय शक्तियों के द्वारा व्यक्तित्व की संरचना निर्धारित होती है। मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेग (इदम् या इद), तार्किक चिंतन (अहम्) तथा नैतिक मानक (पराहम्)। इस प्रकार फ्रॉयड ने माना है कि असामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वन्द्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से प्रारंभ होता है।

प्रश्न 3. व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक कार्यों एवं स्वास्थ्य पर अल्कोहॉल के बुरे प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर: शराब मस्तिष्क के संचार रास्ते के साथ हस्तक्षेप करता है और जिस तरह से मस्तिष्क लग रहा है और काम करता है को प्रभावित कर सकते हैं। इन अवरोधों मूड और व्यवहार में बदला और यह कठिन स्पष्ट रूप से सोचने और समन्वय के साथ स्थानांतरित करने के लिए कर सकते हैं। शराब का मनोवैज्ञानिक प्रभाव शामिल हैं-(क) नींद पैटर्न में परिवर्तन, (ख) मन और व्यक्तित्व में परिवर्तन,(ग) अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक रोगों की स्थिति, (घ) ऐसे छोटा ध्यान अवधि और समन्वय के साथ समस्याओं के रूप में संज्ञानात्मक प्रभाव। शराब के अन्य ज्ञात मनोवैज्ञानिक प्रभाव चिंता, आतंक विकार, मतिभ्रम, भ्रम और मानसिक विकारों में शामिल हैं। बहुत ज्यादा पीने अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकते हैं, आपके शरीर की बीमारी के लिए एक बहुत आसान लक्ष्य बना रही है। शोध से पता चलता है कि लंबे समय तक शराब के अत्यधिक सेवन के प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार का कारण बनता है।

प्रश्न 4. गरीबी तथा वंचना में अंतर करें।
उत्तर: वंचन तथा गरीबी के बीच एक अंतर है कि वंचन उस दशा को संदर्भित करता है जिसमें व्यक्ति अनुभव करता है कि उसकी कोई मूल्यवान वस्तु खो गई है तथा उसे वह प्राप्त नहीं हो रही है जिसके वह योग्य था। दूसरी ओर निर्धनता का अर्थ ऐसे संसाधनों की वास्तविक कमी है जो जीविका के लिए आवश्यक है। वंचन में अधिक महत्वपूर्ण यह होता है कि व्यक्ति ऐसा प्रत्यक्षण करता है या सोचता है कि जो भी कुछ उसके पास है वह उससे बहुत कम है जो उसको उपलब्ध होना चाहिए। निर्धन व्यक्तियों की दशा और भी बुरी हो जाती है यदि वे निर्धनता के साथ वंचन का भी अनुभव करते हैं।

निर्धनता तथा वंचन दोनों का ही संबंध सामाजिक असुविधा से है अर्थात् वह स्थिति जिसके कारण समाज के कुछ वर्गों को उन सुविधाओं का उपयोग नहीं करने दिया जाता है जो समाज के शेष वर्गों के व्यक्ति करते हैं।

प्रश्न 5. सामान्य कौशल तथा विशिष्ट कौशल में क्या अंतर है?
उत्तर: सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के होते हैं। जिसकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है चाहे वे किसी भी क्षेत्र के विशेष क्यों नहीं। खासकर सभी प्रकार के व्यवसायी मनोवैज्ञानिक जैसे-नैदानिक, स्वास्थ्य मनोविज्ञान, औद्योगिक, सामाजिक, पर्यावरणीय सलाहकार की भूमिका में रहने वालों के लिए यह कौशल आवश्यक है।
विशिष्ट कौशल मनोविज्ञान के किसी क्षेत्र में विशेषता से है जैसे-नैदानिक स्थितियों में कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए यह आवश्यक है कि वह चिकित्सापरक तकनीकों, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में प्रशिक्षण प्राप्त करें।

प्रश्न 6. बुद्धि और अभिक्षमता में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बुद्धि और अभिक्षमता में निम्नलिखित भेद है-
(i) बुद्धि-बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की व्यापक सामान्य संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यतया कम बुद्धि रखने वाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा निष्पादन करने की संभावना नहीं रखते परन्तु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता।

(ii) अभिक्षमता-अभिक्षमता का अर्थ किसी व्यक्ति की कौशलों के अर्जन के लिए अंतर्निहित संभाव्यता से है। अभिक्षमता परीक्षणों का उपयोग यह पूर्वकथन करने में किया जाता है कि व्यक्ति उपयुक्त पर्यावरण और प्रशिक्षण प्रदान करने पर कैसा निष्पादन कर सकेगा। एक उच्च यांत्रिक अभिक्षमता वाला व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाकर एक अभियंता के रूप में अच्छा कार्य कर सकता है। इसी प्रकार भाषा की उच्च अभिक्षमता वाले एक व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर एक अच्छा लेखक बनाया जा सकता है।

प्रश्न 7. आत्मसिद्धि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: आत्मसिद्धि का अर्थ अपने संदर्भ में व्यक्ति के अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समर । से है। व्यक्ति के यही अनुभव एवं विचार व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति के अस्तित्व को परिभाषित करते हैं।

प्रश्न 8. सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करें। इसके प्रमुख तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर: संवेगात्मक बुद्धि को संवेगात्मक क्षेत्र में समायोजन कहा जा सकता है, जो जीवन में सफलता पाने में बहुत अधिक सहायक होता है। संवेगात्मक बुद्धि का संबंध वास्तव में व्यक्ति के कुछ ऐसे शीलगुणों से होता है जो संवेग की अवस्था में अभियोजन में सहायक होते हैं। इसके माध्यम से उसे अपने संवेगों की पहचान होती है तथा दूसरों के संवेगों को सही ढंग से समझते हुए सही ढंग से अभियोजन का प्रयास करता है। इसके माध्यम से वह लोगों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करता है।

संवेगात्मक बुद्धि (E.Q.) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सैलोवी तथा मायर (Salovey and Mayer) ने 1990 में किया था। उन्होंने इसके पाँच प्रमुख तत्त्वों की चर्चा की है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-

  1. अपने संवेगों को पहचानना
  2. अपने संवेगों को प्रबंधन करना
  3. अपने आप को अभिप्रेरित करना
  4. दूसरों के संवेगों की पहचान करना
  5. अन्तर्वैयक्तिक संबंधों को संतुलित करना।

प्रश्न 9. व्यक्तित्व को परिभाषित करें।
उत्तर: व्यक्तित्व का तात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है। लोग सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते हैं कि वे किस तरीके के विभिन्न स्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। कुछ सूचक शब्दों (जैसे-शर्मीला, संवेदनशील, शांत, . गंभीर, स्फूर्त आदि) का उपयोग प्रायः व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये शब्द व्यक्तित्व के विभिन्न घटकों को इंगित करते हैं। इस अर्थ में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार की विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तित्व व्यक्तियों की उन विशेषताओं को भी कहते हैं जो अधिकांश परिस्थितियों में प्रकट होती हैं।

प्रश्न 10. सामूहिक अचेतन का अर्थ बताइए। अथवा, सामूहिक अचेतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: सामूहिक अचेतन कार्ल गुंग (carl Jung) द्वारा प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। सामूहिक अचेतन में पूरे मानव जाति की अनुभूतियाँ जो हमलोगों में से प्रत्येक को अपने पूर्वजों से प्राप्त होता है, संचित होती है। ऐसी अनुभूतियाँ आदिरूप (arche types) के रूप में संचित होती है। सूर्य को देवता मानकर पूजा करने का विचार हमें अपने पूर्वजों से ही प्राप्त हुआ है जो सामूहिक अचेतन का एक उदाहरण है।

प्रश्न 11. तनाव स्वास्थ्य को किस ढंग से प्रभावित करता है?
उत्तर: वे व्यक्ति जो तनावग्रस्त होते हैं प्रायः आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। तनाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थों, जैसे केफीन को अधिक सेवन एवं सिगरेट, मद्य तथा अन्य औषधियों; जैसे-उपशामकों इत्यादि के अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं; जैसे-एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा घूर्णी या चक्कर आ जाना। तनाव के कुछ ठेठ या प्रारूपी व्यवहारात्मक प्रभाव, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात, अनुपस्थिता में व्याघात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में ह्रास हैं।

प्रश्न 12. द्वन्द्व एवं कुंठा का प्रतिबल के स्रोत के रूप में वर्णन करें।
उत्तर: द्वन्द्व-द्वन्द्व एक ऐसा प्रक्रम है जिसमें एक व्यक्ति या समूह यह प्रत्यक्षण करते हैं कि दूसरे उनके विरोधी हितों को रखते हैं और दोनों पक्ष एक-दूसरे का खंडन करने का प्रयास करते रहते हैं। द्वन्द्व सभी समाज में घटित होते हैं।
कंठा-जब व्यक्ति अपने लक्ष्य पर नहीं पहुँचता है तो इससे उसमें कुंठा उत्पन्न होता है और इस कुंठा से वह बाधक स्रोत के प्रति आक्रामकता दिखलाता है परंतु जब बाधक स्रोत व्यक्ति से अधिक सबल एवं मजबूत होता है तो वह अपनी आक्रामकता तथा वैर-भाव एक कमजोर स्रोत की ओर विस्थापित कर देता है तथा तरह-तरह के पूर्वाग्रहित व्यवहार करने लगता है।

प्रश्न 13. लोगो चिकित्सा की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर: लोगो चिकित्सा जिंदगी पर आधारित चिकित्सा है। व्यक्ति द्वारा दबाव ग्रस्त परिस्थितियों में भी अर्थ ढूँढने को सार्थकता पर बल डाला जाता है। इस प्रक्रिया का अर्थ निर्माण कहा जाता है। इस अर्थ निर्माण प्रक्रिया का आधार जीवन में आध्यात्मिक सच्चाई की खोज होती है। जिस तरह से व्यक्ति का अचेतन मूल प्रवृत्तियों का भंडार होता है, ठीक उसी तरह से व्यक्ति में एक आध्यात्मिक अचेतन होता है जिसमें जिंदगी का मूल्य, स्नेह तथा सौंदर्यात्मक अभिज्ञता आदि संचित होते हैं। जब व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक शारीरिक या आध्यात्मिक पक्षों से उसके जीवन की समस्याएँ जुड़ती है, तो उससे तंत्रिकातापी दुश्चिता की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 14. आदिरूप तथा रूढिकृति में अंतर करें।
उत्तर: आदि रूप-आदि रूप एक ऐसा अमूर्तिकरण होता है जिसके द्वारा समूह या वर्ग विशेष उदाहरण का प्रतिनिधित्व होता है। आदि रूप की अभिव्यक्ति गुणों के रूप में होती है। जैसे एक प्रोफेसर का आदि रूप एक ऐसा व्यक्ति के रूप में होता है जो छात्रों को पढ़ाता है।
रूढिकति-रूढिकृति से तात्पर्य किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में पूर्व स्थापित सामान्य प्रत्याशाओं तथा सामान्यीकरण से होता है। जैसे-हिन्दू समाज में एक महत्वपूर्ण रूढियुक्त है कि गाय उनकी माता है, परंतु मुस्लिम समुदाय में इस तरह की रूढ़ियुक्ति नहीं पायी जाती है।

प्रश्न 15. अनुरूपता तथा अनुपालन में अंतर करें।
उत्तर: अनुरूपता (Conformity)-अनुरूपता व्यक्ति अपने व्यक्तिगत विचार एवं मतों का त्याग करके समूह दबाव के सामने झुक जाता है। समूह दबाव में समूह के मानक (Norms), मूल्यों (values) रीति-रिवाजों द्वारा व्यक्ति पर दबाव दिया जाता है। जैसे-एक 20 वर्षीय युवती विधवा हो जाने के बाद यदि सामाजिक मानकों एवं परंपराओं के दबाव के अनुरूप फिर दोबारा शादी नहीं करने का निश्चय करती है, तो वह अनुरूपता का उदाहरण होगा।
अनपालन(Compliance)-जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अनुरोध या निवेदन के अनुरूप व्यवहार करता है तो इसे अनुपालन (Compliance) कहा जाता है। अनुपालन के अनेक उदाहरण हमारे समाज में मिलते हैं। जैसे-शिक्षक छात्र को कक्षा में भाषण समाप्त होने पर मिलने का अनुरोध करते हैं, नेता जनता से उन्हें वोट देने का अनुरोध करते हैं, पिता पुत्र को पढ़ने का अनुरोध करते हैं, आदि-आदि।

प्रश्न 16. अंतरावैयक्तिक संचार तथा अंतरवैयक्तिक संचार में अंतर करें।
उत्तर: अंतरावैयक्तिक संचार अंतरावैयक्तिक संचार, संचार का वैसा स्तर होता है जिसमें व्यक्ति अपने-आप से बातचीत करता है। दूसरे शब्दों में संप्रेषक तथा प्रमापक दोनों ही स्वयं व्यक्ति होता है। इसके अंतर्गत चिंतन प्रक्रियाएँ, वैयक्तिक निर्णय प्रक्रिया तथा स्व के बारे में सोचना आदि सम्मिलित होता है।
अंतरवैयक्तिक संचार अंतरवैयक्तिक संचार संप्रेषण का वैसा स्तर होता है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संप्रेषण होता है या उनके बीच एक संप्रेषणीय संबंध स्थापित किया जाता है। आमने-सामने का संप्रेषण, साक्षात्कार सामूहिक चर्चा अंतरवैयक्तिक संचार के उदाहरण हैं।

प्रश्न 17. बुद्धि परीक्षण की उपयोगिताओं का वर्णन करें।
उत्तर: बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि की माप की जाती है। इसका प्रमुख उपयोग निम्न क्षेत्रों में कियाजाता है-

  • शिक्षा के क्षेत्र में- बुद्धि परीक्षण का उपयोग शिक्षण संस्थाओं में अधिक होता है। इस परीक्षण से शिक्षक पता लगा लेते हैं कि वर्ग में कितने तेज बुद्धि के, कितने औसत बुद्धि के और कितने छात्र मंद बुद्धि के छात्र हैं, जिससे पाठ्य सामग्री तैयार करने में आसानी होती है।
  • बाल निर्देशन में– बुद्धि परीक्षण द्वारा बच्चों की बुद्धि मापकर उसी के अनुरूप उन्हें मार्ग निर्देशित किया जाता है। अधिक बुद्धि के बच्चों के साथ कम बुद्धि वाले बच्चे सही ढंग से समायोजन नहीं कर पाते हैं और वे मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं।
  • मानसिक दुर्बलता की पहचान में- मानसिक रूप से दुर्बल बच्चे समाज या राष्ट्र पर बोझ होते हैं! बुद्धि परीक्षण द्वारा ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर ली जाती है।
  • व्यावसायिक निर्देशन में- बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि ,मापकर बच्चों एवं किशोरों की बुद्धि के अनुकूल व्यवसाय में जाने का निर्देश दिया जाता है। तब उसमें मानसिक संतोष अधिक होता है। कार्य में सफलता मिलती है।

प्रश्न 18. प्राकृतिक पर्यावरण तथा निर्मित पर्यावरण में अंतर करें।
उत्तर: प्राकृतिक पर्यावरण- प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत नदियाँ, पहाड, वन आदि क्षेत्र आते हैं। जिसे प्रकृति ने हमें उपहारस्वरूप मुफ्त में प्रदान किया है।
निर्मित पर्यावरण- मनुष्य अपनी सुख-सुविधा के लिए नगर, आवास, बाजार, सड़क, कारखाना, बाँध, पार्क आदि का निर्माण किया है जिसे निर्मित पर्यावरण कहते हैं।

प्रश्न 19. तादात्म्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: किसी अन्य व्यक्ति को अधिक पसंद करने या सम्मान देने के फलस्वरूप अपने आप को उस व्यक्ति के समान समझना तादात्म्य कहलाता है। तादात्मीकरण में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या समूह के व्यवहारों को किसी बाहर दबाव या डर से नहीं बल्कि उसे अपने व्यक्तित्व का ही एक अंश मानकर स्वेच्छा से स्वीकार कर लेता है। एक रोगी डॉक्टर के साथ तादात्मीकरण कर वैसा ही व्यवहार करता है जैसा डॉक्टर उसे करने के लिए कहता है।

प्रश्न 20. अंतरसमूह प्रतिस्पर्धा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: अंतर समूह प्रतिस्पर्धा एक महान समाज मनोवैज्ञानिक शेरिफ के प्रयोग का तीसरी अवस्था है जिसमें प्रतियोगिता के दोनों समूह को कुछ ऐसी परिस्थितियों में रखा गया जहाँ वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके। जैसे-खेल-कूद में दोनों समूह को एक-दूसरे के विरोध में रखा गया। इस प्रतिस्पर्धा में से दोनों समूहों में एक-दूसरे के प्रति काफी तनाव (tension) तथा विद्वेष (hostility) आदि उत्पन्न हो गई। यहाँ तक कि एक समूह के सदस्य दूसरे सदस्य को गाली भी देने लगे थे।

प्रश्न 21. उत्तरदायित्व के बिखराव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: उत्तरदायित्व का बिखराव- जब व्यक्ति अकेले रहता है तो उसमें परोपकारिता का भाव अधिक देखा जाता है और उसमें जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने की प्रवृत्ति एवं संभावना अधि क रहती है। परंतु इसके विपरीत जब एक से ज्यादा व्यक्ति रहते हैं तो उपरोक्त व्यवहार व्यक्ति में बहुत कम देखा जाता है। हर व्यक्ति यह सोचता है कि यह काम करना सिर्फ मेरी नहीं वरन् साझे की जिम्मेवारी है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि सभी का दायित्व समान मात्रा में होता है किसी अकेले का नहीं होता है। इस परिस्थिति में उत्तरदायित्व का बिखराव देखने को मिलता है।

प्रश्न 22. साक्षात्कार की अवस्थाएँ क्या हैं?
उत्तर: साक्षात्कार में साक्षात्कारकत्ता को विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
(i) प्रारंभिक अवस्था- यह साक्षात्कार की सबसे पहली अवस्था है। वास्तव में साक्षात्कार की सफलता उसकी प्रारंभिक तैयारी पर ही निर्भर होती है। यदि इस अवस्था में गलतियाँ होगी तो साक्षात्कार का सफल होना संभव नहीं है।

(ii) प्रश्नोत्तर की अवस्था साक्षात्कार की यह सबसे लंबी अवस्था है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछता है और साक्षात्कारदाता उसके प्रश्नों को सावधानीपूर्वक सुनता है और कुछ रूककर उसे समझता है, उसके बाद उत्तर देता है। उसके उत्तर देते समय साक्षात्कारकर्ता उसके हाव-भाव, मुखाकृति का भी अध्ययन करता है।

(iii) समापन की अवस्था-साक्षात्कार का यह सबसे अंतिम चरण है। जब साक्षात्कारकर्ता को सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाय और ऐसा अनुभव हो कि उसे महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है तो साक्षात्कार का समापन किया जाता है। इस अवस्था में साक्षात्कारदाता के मन में बननेवाली प्रतिकूल अवधारणा का निराकरण करना चाहिए। साक्षात्कारदाता भी जब यह कहता है कि और कुछ पूछना है तो उसे प्रसन्नतापूर्वक समापन की सूचना देनी चाहिए तथा सफल साक्षात्कार के लिए उसे धन्यवाद भी देना चाहिए।

प्रश्न 23. हरितगृह के प्रभावों का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर: जलवायु में होने वाले ऐसे परिवर्तन को ही ‘हरित गृह प्रभाव’ (Green house effect) कहते हैं। हरित गृह में एक शीशे की छत होती है। जो सूर्य के प्रकाश को अंदर आने देती है। जबकि गर्म हवा को अंदर आने से रोकती है। इसी तरह वायुमंडल से निकलने वाली तीन गैसें-कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड सूर्य की गर्मी को अपनो ओर खींचती हैं तथा संपूर्ण पृथ्वी को एक विस्तृत हरित गृह में तब्दील कर देती हैं। इन गैसों के स्तर में वृद्धि का सिलसिला 18वीं सदी से प्रारंभ होकर अभी तक अनवरत जारी है। वृद्धि की यह रफ्तार यदि इसी ढंग से जारी रही, तो अनुमान है कि वर्ष 2100 तक (यानी आने वाले 92 वर्षों तक) पृथ्वी तल पर वायु का तापमान 3.5 डिग्री फारेनहाइट से काफी बढ़ जाएगा। केवल एक या दो डिग्री की बढोत्तरी पर वायमंडल में परिवर्तन हो सकता है तथा पूरे विश्व की कृषि बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इसके कारण ध्रुवीय बर्फ के पहाड़ पिघल सकते हैं और समुद्र तल के जलस्तर में वृद्धि हो सकती है। फलस्वरूप तटवर्ती इलाके में बाढ़ आ सकती है।

प्रश्न 24. समूह के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर: समूह के निम्नलिखित कार्य है-

  • समूह सदस्यों के आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। कुछ समूह प्राथमिक आवश्यकताओं (जैसे-भूख, प्यास, आवास, वस्त्र) की पूर्ति करते हैं तो कुछ गौण आवश्यकताओं की।
  • समूह अपने नेता के आधिपत्य की भावना की पूर्ति करता है। सदस्य नेता को पितातुल्य मानते हैं और उसे प्रतिष्ठा से सम्मानित करते हैं।
  • समूह अपने लिए आवश्यकताओं का सृजन करता है। इन नई आवश्यकताओं के सृजन से सदस्यों का संबंध समूह के साथ कायम रहता है।
  • समूह सदस्यों में भाईचारे और अपनापन का कार्य करता है। सदस्य अपने को समूह का अंग मानता है और समूह के साथ तादात्म्य स्थापित करता है।
  • समूह का कार्य सदस्यों के लिए जीवन-मूल्य निर्धारित करना है।
  • समूह लक्ष्य निर्धारित करता है। सामाजीकरण में योगदान देता है। सांस्कृतिक निरंतरता को कायम रखता है। आदर्श का कार्य करता है तथा सदस्यों के बीच सुरक्षा एवं विश्वास की भावना पैदा करता है।

प्रश्न 25. पूर्वधारणा को परिभाषित करें।
उत्तर: पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह अंग्रेजी शब्द Prejudice का हिन्दी रूपान्तर है। Prejudice लैटिन भाषा के Prejudicium से निकला है, जिसका अर्थ होता है। मुकदमा से पहले न्यायालय में परीक्षा हो जाना है। इसका तात्पर्य हुआ कि बिना परीक्षा किए ही किसी समस्या का निर्णय दे दिया जाना। आधुनिक युग में द्वन्द्वों, संघर्षों इत्यादि का मुख्य कारण पूर्वधारणा ही है।

पूर्वधारणा की परिभाषा अनेक विद्वानों द्वारा दी गई। युंग (Young) ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है, “पूर्वधारणा एक व्यक्ति की अन्य व्यक्तियों के प्रति पूर्वनिर्धारित अभिवृत्तियाँ या विचार है जो कि सांस्कृतिक मूल्यों और अभिवृत्तियों पर आधारित होते हैं।”

किम्बल युंग ने पूर्वधारणा को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया है, “पूर्वधारणा में रूढ़ि प्रक्रियाओं, किवदन्तियों एवं पौराणिक कथाओं इत्यादि का प्रयोग जिसमें एक समूह लेबल या चिह्न का प्रयोग किया जाता है ताकि एक व्यक्ति या समूह जो कि पूर्ण रूप से समझा जाता है उसका वर्गीकरण, विशेषीकरण किया जा सके एवं उसे परिभाषित किया जा सके।”

जेम्स ड्रेवर (James Drever) के शब्दों में, “पूर्वधारणा एक अभिव्यक्ति है बहुधा जो संवेगात्मक रंग की होती है। जो प्रतिकूल या अनुकूल होती है जो विशेष प्रकार के कार्य या वस्तुओं के प्रति कुछ विशेष व्यक्तियों के प्रति विशेष सिद्धान्तों के प्रति होती है।”
इस प्रकार, उपयुक्त परिभाषाओं को देखते हुए पूर्वधारणा की एक समुचित परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है-”पूर्वधारणा एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के प्रति पहले निर्धारित मनोवृत्ति या विचार है जो सांस्कृतिक मूल्यों और मनोवृत्तियों पर आधारित है।”

प्रश्न 26. योग के आठ अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर: योग के आठ यंग निम्नलिखित हैं-

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि।

प्रश्न 27. असामान्य व्यवहार क्या है?
उत्तर: असामान्य व्यवहार व्यक्ति के वैसे व्यवहार को कहा जाता है। जिसमें अचेतन का प्रभाव रहता है। यानि इस व्यवहार की चेतना व्यक्ति को नहीं रहती है। असामान्य व्यवहार का अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान में किया जाता है। सभी अच्छे लोग जो व्यवहार करते हैं। उनसे अलग नए ढंग को ही असामान्य व्यवहार कहा जाता है। अर्थात् व्यक्ति का वैसा व्यवहार जो सामान्य से अलग होता है, असामान्य व्यवहार कहलाता है।
असामान्य व्यवहार की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • असन्नता से ग्रसित-असामान्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हर समय निराश, परेशान, चिंता से घिरे हुए रहते हैं।
  • मनोरंजन के प्रति कम रूचि-असामान्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति ज्यादातर दुखी ही रहता है।
  • दक्षता की अपेक्षाकृत कम कार्यक्षमता-असामान्य व्यवहार वाले व्यक्तियों में क्षमता की बहुत कमी होती है।

प्रश्न 28. मनोवृत्ति के कौन-कौन से घटक हैं? चर्चा करें।
उत्तर: समाज मनोविज्ञान में मनोवृत्ति की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं। सचमुच में मनोवृत्ति भावात्मक तत्त्व का एक तंत्र या संगठन होता है। इस तरह से मनोवृत्ति ए० बी० सी० तत्त्वों का एक संगठन होता है। इन घटकों को निम्न रूप से देख सकते हैं

  • संज्ञानात्मक तत्त्व-संज्ञानात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति वस्तु के प्रति विश्वास से होता है।
  • भावात्मक तत्त्व-भावात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में वस्तु के प्रति सुखद या दुखद भाव से होता है।
  • व्यवहारपरक तत्त्व-व्यवहारपरक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति के पक्ष में तथा विपक्ष में क्रिया या व्यवहार करने से होता है।

मनोवृत्ति की इन तत्त्वों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) कर्षणशक्ति-मनोवृत्ति तीनों तत्त्वों में कर्षणशक्ति होता है। कर्षणशक्ति से तालिका मनोवृत्ति की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता की मात्रा से होता है।

(ii) बहुविधता-बहुविधता की विशेषता यह बताती है कि मनोवृत्ति के किसी तत्त्व में कितने कारक होते हैं। किसी तत्त्व में जितने कारक होंगे उसमें जटिलता भी इतनी ही अधिक होगी। जैसे सह-शिक्षा के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति को संज्ञा कारक, सम्मिलित हो सकते हैं-सह-शिक्षा किस स्तर से आरंभ होना चाहिए। सह-शिक्षा के क्या लाभ हैं, सह-शिक्षा नगर में अधिक लाभप्रद होता है या शहर में आदि। बहुविधता को जटिलता भी कहा जाता है।

(iii) आत्यन्तिकता-आत्यन्तिकता से तात्पर्य इस बात से होता है कि व्यक्ति को मनोवृत्ति के तत्त्व कितने अधिक मात्रा में अनुकूल या प्रतिकूल है।

(iv) केन्द्रिता-इसमें तात्पर्य मनोवृत्ति की किसी खास तत्त्व के विशेष भूमिका से होता है। मनोवृत्ति के तीन तत्त्वों में कोई एक या दो तत्त्व अधिक प्रबल हो सकता है और तब वह अन्य दो तत्त्वों को भी अपनी ओर मोड़कर एक विशेष स्थिति उत्पन्न कर सकता है जैसे यदि किसी व्यक्ति को सह-शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत अधिक विश्वास है अर्थात् उसका संरचनात्मक तत्त्व प्रबल है तो अन्य दो तत्त्व भी इस प्रबलता के प्रभाव में आकर एक अनुकूल मनोवृत्ति के विकास में मदद करने लगेगा।
स्पष्ट है कि मनोवृत्ति के घटकों की कुछ विशेषताएँ होती हैं। इन घटकों की विशेषताओं मनोवृत्ति की अनुकूल या प्रतिकूल होना प्रत्यक्ष रूप से आधारित है।

प्रश्न 29. मनोदशा विकृति क्या है? इसके मुख्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर: मनोदशा विकृति में व्यक्ति की संवेगात्मक अवस्था में रूकावट उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति में सबसे ज्यादा अवसाद भावदशा विकार होता है। इसमें व्यक्ति के अंदर नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न हो जाती है।
मुख्य भावदशा विकार में तीन प्रकार के विकार होते हैं-

  • अवसादी विकार इस प्रकार के रोगियों में उदास होने, चिंता में डूबे रहने, शारीरिक तथा ‘मानसिक क्रियाओं में कमी, अकर्मण्यता, अपराधी प्रवृति आदि के लक्षण पाये जाते हैं।
  • उन्मादी विकार-उन्मादी विकार में रोगी हर समय खुश दिखाई देता है।
  • द्विध्रुवीय भावात्मक विचार-इसमें उत्साह और अवसाद दोनों के आक्षेप होते हैं।

प्रश्न 30. प्रतिबल के संप्रत्यय का अर्थ स्पष्ट करें।।
उत्तर: शब्द की उत्पति लैटिन के शब्द (Strictus) से हुई है। इसका अर्थ है जकड़ना या कसा हुआ। प्रतिबल प्रतिस्थति व्यक्ति में घातक या हानिकारक आशंका के भाव उत्पन्न करती है।।
अर्थात् प्रतिबल शब्द से उन परिस्थितियों का बोध होता है जिसमें व्यक्ति यह अनुभव करता है कि वह द्वंद्व के दौर से गुजर रहा है। उस द्वंद्व की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि संवेगात्मक तथा आंगिक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ अपनी क्षमताओं की निष्क्रियता का भी उसे अनुभव होने लगता है।

प्रश्न 31. व्यक्ति के विकास में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर: अंत:स्रावी ग्रंथियों का मनुष्य के व्यक्तित्व विकास पर विशेष उसकी शारीरिक क्रियाओं और शारीरिक रोग पर पड़ता है। वे व्यक्ति के संवेग एवं चिंतन को भी प्रभावित करते हैं। इन ग्रंथियों का प्रभाव व्यक्ति के जन्म के पहले और बाद के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। इन ग्रंथियों का एक साथ विकास नहीं होता है। यदि किसी व्यक्ति के अन्त:स्रावी ग्रंथि में उनके बाल्यकाल में कोई विकास या असंतुलन होता है तो उसका कुप्रभाव उसके आगे के जीवन पर भी पड़ेगा।

अन्तःस्रावी ग्रंथियों के अन्तर्गत थायराइड ग्रंथि, परा थायराइड ग्रंथि, मूत्र ग्रंथि जनन ग्रंथि, पीयूष ग्रंथि आदि आते हैं। इनमें कुछ स्राव होता है। इस स्राव से व्यक्ति की पाचन क्रिया, क्रियाशीलता स्तर, उत्तेजना प्रकृति प्रभावित होती है।

प्रश्न 32. अभिक्षमता के स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर: किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को अभिक्षमता कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का एक ऐसा समायोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र का ज्ञान अथवा कौशल के अधीन की क्षमता को प्रदर्शित करता है जैसे यदि हमें गणित की किसी समस्या का समाधान ढूँढना होता है तो हम किसी गणित के जानकार व्यक्ति से सहायता लेते हैं लेकिन यदि किसी कविता (हिन्दी) में कोई कठिनाई होती है तो इसके लिए हम हिन्दी के जानकार व्यक्ति से सहायता लेते हैं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की ये विशिष्ट योग्यता तथा कौशल ही अभिक्षमताएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 33. बुद्धि क्या है? इसके स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर: बुद्धि व्यक्तियों के मानसिक शक्तियों या क्षमताओं का वह समुच्चय है जिससे वह उद्देश्यपूर्ण क्रिया, विवेकशील चिंतन तथा प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है। इससे स्पष्ट है कि बुद्धि में कोई एक तरह की क्षमता नहीं बल्कि कई तरह की क्षमताओं का समावेश होता है। इन क्षमताओं में तीन तरह की क्षमता अर्थात उद्देश्यपूर्ण क्रिया करने की क्षमता, विवेकशील चिंता करने की क्षमता तथा प्रभावकारी ढंग से समायोजित करने की क्षमता सम्मिलित होती है।

प्रश्न 34. निरीक्षण विधि के प्रमुख अवस्थाओं को लिखें।
उत्तर: निरीक्षण विधि के दो प्रमुख अवस्थाएँ हैं-
(i) प्रकृतिवादी प्रेक्षण–यह प्राथमिक तरीका है जिससे हम देखते हैं कि लोग भिन्न स्थितियों में कैसे व्यवहार करते हैं।

(ii) सहभागी प्रेक्षण-इसमें प्रेक्षक की प्रक्रिया में सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह उस स्थिति में स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है जहाँ प्रेक्षण करना है। इस तकनीक का मानवशास्त्री बहुतायत से उपयोग करते हैं जिनका उद्देश्य होता है कि उस सामाजिक व्यवस्था का प्रथमतया दृष्टि से एक प्ररिप्रेक्ष्य विकसित कर सके जो एक बाहरी व्यक्ति को सामान्यता उपलब्ध नहीं होता है।

प्रश्न 35. कुले के समूह विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर: कूले द्वारा किया गया समूह विभाजन अधिक संतोषप्रद है। इन दोनों समूहों में निम्नलिखित अंतर पाया जाता है।

  • प्राथमिक समूह का आकार छोटा होता है जैसे परिवार, जबकि गौण समूह का आकार बड़ा होता है जैसे राजनीतिक दल।
  • प्राथमिक समूह को सदस्यों में औपचारिकता नहीं होती है। जबकि गौण समूह के सदस्यों में औपचारिकता अधिक होती है।
  • प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक संबंध होता है जबकि गौण समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक संबंध नहीं होता है।

प्रश्न 36. मानव व्यवहार पर पड़ने वाले प्रदूषण के प्रभाव लिखें।
उत्तर: पर्यावरणीय प्रदूषण वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण के रूप में हो सकता है जो मानव व्यवहार को प्रभावित करता है।
(i) मानव व्यवहार पर प्रदूषण का प्रभाव-वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन, 21% ऑक्सीजन, तथा 0.03% कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। जिसका प्रभाव-मानव के स्वास्थ्य व व्यवहार पर पड़ता है।

(ii) मानव व्यवहार पर जल प्रदूषण का प्रभाव-जल प्रदूषण से तात्पर्य जल के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन से है कि उसके रूप, गंध, स्वाद से मानव के स्वास्थ्य और कृषि, उद्योग एवं वाणिज्य को हानि पहुँचे जल प्रदूषण कहलाता है। जल जीवन के लिए एक बुनियादी जरूरत है। जल प्रदूषण से विभिन्न प्रकार के मानवीय रोग जैसे पीलिया, हैजा, टायफाइड आदि फैलते हैं।

प्रश्न 37. अंतर समूह द्वंद्व के क्या कारण हैं?
उत्तर: अंतर समूह द्वंद्व के निम्नलिखित कारण हैं-

  • किसी छोटे से छोटे विवाद को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना।
  • दोनों पक्षों में संप्रेक्षण का अभाव एवं दोषपूर्ण संप्रेक्षण।
  • पूर्व में किए गए किसी नुकसान का बदला लेने की भावना।
  • पूर्वाग्रही प्रत्यक्षा
  • प्रत्यक्षित असमता आदि।

प्रश्न 38. सेवार्थी केन्द्रित चिकित्सा को संक्षेप में बताएँ।
उत्तर: कार्ल रोजर्स द्वारा प्रतिपादित इस चिकित्सा में स्व के सम्प्रत्यय की अहम भूमिका है। सेवार्थी के अनुभवों के समक्ष, उसके प्रति सहृदय होना उनमें सुरक्षा की भावना उत्पन्न करना आदि महत्त्वपूर्ण बातें हैं ताकि समाकलित होने में सहायक सिद्ध होती है। समायोजन बुद्धि के साथ ही व्यक्तिगत संबंधों में सुधार आता है। जो कि सेवार्थी को अपनी वास्तविकता का ‘स्व’ होने में सहायता प्रदान करती है जिसमें चिकित्सक की भूमिका एक सुगमकर्ता के रूप में जानी जाती है।

प्रश्न 39. समाजोपकारी व्यवहार की विशेषता को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर: समाजोपकारी व्यवहार से तात्पर्य है कि किसी हित के भाव से दूसरों के लिए कुछ करना या उनके कल्याण के बारे में सोचना।
समाजोपकारी व्यवहार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • इसमें व्यक्तियों को लाभ पहुँचाने या उनका भला करने का लक्ष्य होना चाहिए।
  • इस व्यवहार को नि:स्वार्थ करना चाहिए।
  • व्यक्ति अपनी स्वेच्छा से करे न कि किसी प्रकार के दबाव के कारण।
  • इसमें व्यक्ति को सहायता करने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    उदाहरणार्थ यदि कोई धनी व्यक्ति अवैध तरीके से प्राप्त किया हुआ बहुत सारा धन इस आशय से दान करता है। कि उसका चित्र एवं नाम समाचारपत्रों में छप जाएगा तो उसे समाजोपयोगी व्यवहार नहीं कहा जा सकता है।

प्रश्न 40. वैयक्तिक तथा समूह बुद्धि परीक्षण में क्या अन्तर हैं?
उत्तर: वैयक्तिक तथा समूह बुद्धि परीक्षण में निम्नलिखित अंतर है-

वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण समूह बुद्धि परीक्षण
1. इस परीक्षण के आयोजन में श्रम एवं साथ किया जाता है। 1. समूह परीक्षण में पूरे समूह का परीक्षण एक समय अधिक लगता है।
2. इस परीक्षण का परिणाम विश्वसनीय होने के साथ-साथ शुद्ध भी होता है। 2. इस परीक्षण का परिणाम कम विश्वसनीय होता है। 

 

3. ये परीक्षण कम आयु के बच्चे के लिए सर्वश्रेष्ठ है | 3. ये परीक्षण कम आयु के बच्चे के लिए जटिल होते हैं।
4. इस पद्धति में परीक्षक का प्रशिक्षित होना अत्यधिक आवश्यक है। 4. इस परीक्षण में परीक्षक का प्रशिक्षण होना अनिवार्य नहीं है।
5. इनमें प्रयोगकर्ता तथा छात्र का सीधा संबंध होने के कारण उनमें घनिष्ठता अत्यधिक होती है। 5. इस परीक्षण में प्रयोगकर्ता तथा छात्र का संबंध न होकर पूरे समूह के साथ होने के कारण घनिष्ठता नहीं होती है।

प्रश्न 41. प्रेक्षण के लाभ एवं हानि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर: प्रेक्षण के निम्नलिखित लाभ एवं हानि है-

  • प्रेक्षण के माध्यम से प्राकृतिक या स्वाभाविक स्थिति में व्यवहार को देखने तथा उसका अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है।
  • अन्य लोगों को प्रेक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है अथवा किसी स्थिति में निवास करनेवाले लोगों के लिए भी इस प्रयोग का प्रेक्षण उपयोगी है।
  • प्रेक्षण से संबंधित दैनिक क्रियाएँ नित्यकर्म की भाँति होती है जो प्रायः प्रेक्षणकर्ता की दृष्टि से चूक जाती है।
  • प्रेक्षणकर्ता अनेक बार भावनाओं के अधीन होकर पूर्वाग्रह की भावना का भी समायोजन कर लेता है जिसके कारण परिणाम उचित प्राप्त नहीं होते हैं।
  • वास्तविक अनुक्रियाएँ एवं व्यवहार प्रेक्षणकर्ता की अनुपस्थिति में प्रभावित हो सकता है जो कि प्रेक्षण की दृष्टि से अनुपयोगी सिद्ध होता है।

प्रश्न 42. साक्षात्कार कौशल का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर: मनोविज्ञान के क्षेत्र में साक्षात्कार की उपयोगिता में प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। साक्षात्कार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है। साक्षात्कार को अन्य प्रकार के वार्तालाप की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण संज्ञा दी जा सकती है। क्योंकि उसका एक पूर्व निर्धारित उद्देश्य होता है तथा उसकी संरचना केन्द्रित होती है। साक्षात्कार अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-परामर्शी साक्षात्कार, रेडियो साक्षत्कार, कारक परीक्षक साक्षात्कार, उपचार साक्षात्कार, अनुसंधान साक्षात्कार आदि।

प्रश्न 43. व्यक्ति समूह में क्यों शामिल होता है बताएँ?
उत्तर: व्यक्ति निम्न कारणों से समूह में शामिल होते हैं-

  • प्रतिष्ठा या हैसियत की दृष्टि से।
  • सुरक्षा की दृष्टि से।
  • व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि।
  • लक्ष्य की प्राप्ति।
  • ज्ञान और जानकारी या सूचना प्रदान करना।
  • आत्म सम्मान।

प्रश्न 44. दबाव के प्रकार का वर्णन करें।
उत्तर: दबाव के प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • भौतिक एवं पर्यावरणीय दबाव- भौतिक दबाव वे कहलाते हैं जिनके कारण हमारी शारीरिक अवस्था में परिवर्तन पैदा होता है। पर्यावरणीय दबाव हमारे परिवेश की ऐसी अवस्थाएँ होती है जो मूलतः अपरिहार्य होती है। उदाहरणार्थ, शीतकाल की सर्दी, ग्रीष्मकाल की गर्मी आदि।
  • मनोवैज्ञानिक दबाव- मनोवैज्ञानिक दबाव वे कहलाते हैं जो हमारे मन में उत्पन्न होते हैं।
  • सामाजिक दबाव- इस प्रकार के दबाव बाह्य होते हैं और अन्य लोगों के साथ हमारी अन्तक्रियाओं के कारण पैदा होते हैं। उदाहरणार्थ, तनावपूर्ण संबंध, लड़ाई-झगड़ा आदि सामाजिक दबाव के उदाहरण हैं।

प्रश्न 45. पर्यावरणीय चेतना को बढ़ाने की किन्हीं दो विधियों की विवेचना करें।
उत्तर: पर्यावरणीय चेतना को बढ़ाने की दो विधियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) पर्यावरण संबंधी परिवर्तन के लिए राजी करना- प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा भाषण एवं सभा के माध्यम से लोगों के आज के पर्यावरण के दुष्परिणाम को बताना और कैसे इसमें लाभदायक परिवर्तन किया जाए इसके लिए लोगों को न केवल जानकारी दें बल्कि राजी भी करें। यह काम जनसंपर्क के माध्यम जैसे समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन से किया जा सकता है।

(ii) पारितोषिक देना- पर्यावरण में समुचित परिवर्तन लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना जरूरी है। पर्यावरण परिवर्तन संबंधी अच्छे कार्यों के लिए उन्हें पारितोषिक देना जरूरी है यह इस तरह का हो सकता है। आर्थिक लाभ (नकद पुरस्कार) उपयोगी सामान देना, प्रशंसा एवं प्रशस्ति पत्र देकर उनको पर्यावरण संबंधी आवश्यक लाभदायक परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

प्रश्न 46. मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के पुनर्वास की प्रविधियों का वर्णन करें।
उत्तर: मनोवैज्ञानिक विकारों के उपचार के दो घटक होते हैं। पहला लक्षण में कमी आना तथा दूसरा जीवन की गुणवत्ता में सुधार आना। कम तीव्र विकारों जैसे सामान्यीकृत दुश्चिता प्रतिक्रियात्मक दुर्भीति के लक्षणों में कोई कमी आना जीवन की गुणवत्ता में सुधार से संबंधित होता है। जबकि मनोविद्लता जैसे गंभीर तथा खतरनाक मानसिक विकारों के लक्षणों में कमी आना रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार से संबंधित नहीं हो सकता। क्योंकि कई रोगी नकारात्मकता के लक्षणों से ग्रसित होते हैं। इस प्रकार के रोगियों में आराम निर्भरता लाने के लिए पुनःस्थापना की आवश्यकता होती है।

पुनःस्थापना में मुख्यतः रोगियों को व्यावसायिक चिकित्सा, सामाजिक कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है। पुनःस्थापना का उद्देश्य रोगी को सशक्त तथा समाज का एक उत्पादक सदस्य बनाना होता है। व्यावसायिक चिकित्सा में रोगियों को कागज की थैली बनाना, मोमबत्ती आदि बनाना सिखाया जाता है जिसे वे कार्य अनुशासन आसानी से बना सकें। सामाजिक प्रशिक्षण रोगियों को भूमिका निर्वाह, अनुकरण तथा अनुदेश के लिए दिया जाता है। जिसके आधार पर वह अंतर्वैयक्तिक कौशल विकसित कर सके।

प्रश्न 47. भारत में मुख्य सामाजिक समस्याओं का वर्णन करें।
उत्तर: वंचना, असुविधा या अहित और भेदभाव हमारे जीवन की महत्वपूर्ण समस्याएँ हैं जो व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन एवं सामाजिक जीवन को अधिक प्रभावित करते हैं।
भारत में मुख्य सामाजिक समस्याओं में निर्धनता, अशिक्षा, असमानता, बेरोजागारी बढ़ती हुए महंगाई, स्वास्थ्य, पेयजल आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 48. समूह संघर्ष क्या है? इसके कारणों का वर्णन करें।
उत्तर: समूह संघर्ष के अन्तर्गत एक व्यक्ति या समूह या प्रत्यक्षण करते हैं कि अन्य व्यक्ति उनके विरोधी हितों को रखते हैं तथा दोनों पक्ष एक दूसरे का खण्डन करने का प्रयत्न करते रहते हैं।
समूह संघर्ष के निम्नलिखित कारण है-

  • जब एक समूह के सदस्य स्वयं की अपेक्षा दूसरे समूहों के सदस्यों से करते हैं और यह महसूस करते हैं कि वे जो भी चाहते हैं वह उसके पास नहीं है। किंतु वह दूसरे समूह के पास है।
  • संघर्ष का दूसरा कारण किसी एक के पक्ष का यह विश्वास होता है कि एक पक्ष दूसरे से श्रेष्ठ हैं और वे जो कर रहे हैं उसे होना चाहिए। जब ऐसा नहीं होता है तो दोनों पक्ष एक-दूसरे पर दोष लगाते हैं।
  • दोनों ही पक्षों में संप्रेक्षण का अभाव एवं दोषपूर्ण सम्प्रेषण संघर्ष का एक मुख्य कारण है।
  • पूर्वाग्रही प्रत्यक्षण अधिकतर संघर्ष के कारण होते हैं।

प्रश्न 49. संचार की बाधाओं को दूर करने के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर: संचार में प्रथम कठिनाई भाषा की जटिलता होती है। पारस्परिक समझ के लिए शब्दों का भेद एक बड़ी बाधा है। संचार की बाधाओं को दूर करने में निम्न तत्व सहायक होते हैं। संचार स्पष्ट, प्राप्तकर्ता के प्रत्याश के अनुरूप, समुचित, समयानुसार, एकसमान, लोचदार तथा स्वीकार्य होना चाहिए। अफसरशाही व लाल फीताशाही से संचार माध्यमों का पूर्णत: मुक्त होना चाहिए।

प्रश्न 50. अभिक्षण क्या है?
उत्तर: किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को अभिक्षमता कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का एक समायोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथावा कौशल की क्षमता को प्रदर्शित करता है। जैसे-यदि हमें गणित की किसी समस्या का समाधान ढूँढना हो तो हम किसी गणित के जानकार व्यक्ति से सहायता लेते हैं लेकिन यदि किसी हिन्दी कविता कठिनाई होती है तो इसके लिए हम हिन्दी जानकार व्यक्ति से सहायता लेते हैं। इसी में कोई समस्या होती है तो स्कूटर मेकेनिक के पास जाते हैं। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की ये विशिष्ट तथा कौशल ही अभिक्षमताएँ कहलाती हैं।

रक्षा करने का प्रयास करता है। जैसे-कोई प्रबल कामेच्छा से ग्रस्त व्यक्ति यदि अपनी ऊर्जा को धार्मिक क्रियाकलापों में लगाता है तो ऐसा व्यवहार प्रतिक्रिया निर्माण का उदाहरण है।

प्रश्न 51. चेतना के तीन स्तरों के बारे में लिखें।
उत्तर: फ्रायड के व्यक्तित्व के सिद्धान्त में सांवेगिक द्वन्द्वों के स्रोतों एवं परिणामों पर तथा इनके द्वारा की जानेवाली प्रतिक्रिया पर विचार किया गया है। ऐसा विचार करते हुए चेतना के तीन स्तरों के रूप में देता है।

  1. चेतन- इसके अर्न्तगत वे चिंतन, भावनाएँ और क्रियाएँ आती हैं जिनके प्रति लोग जागरूक रहते हैं।
  2. अवचेतन- इसके अन्तर्गत वे मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिसके प्रति लोग तभी जागरूक जब वे उनपर सावधानीपूर्वक ध्यान केन्द्रित करते हैं।
  3. अचेतन- यह चेतना का तीसरा स्तर है। इसके अन्तर्गत ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिसके प्रति लोग जागरूक नहीं होते हैं।

प्रश्न 52. मन:चिकित्सा के प्रमुख प्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर: यद्यपि सभी मन: चिकित्साओं का उद्देश्य मानव कष्टों का निराकरण करना होता है तथापि वे संप्रत्ययों, विधियों और तकनीक में एक-दूसरे से बहुत भिन्न होते हैं। इस तरह मनः चिकित्सा को तीन व्यापक समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. मनोगतिक चिकित्सा
  2. व्यवहार चिकित्सा
  3. अस्तित्वपरक चिकित्सा।

इन तीनों चिकित्साओं के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्या के अलग-अलग कारण होते हैं। जैसे-मनोगतिक चिकित्सा व्यक्ति के मानस में विद्यमान द्वन्द्व को मनोवैज्ञानिक समस्याओं का स्रोत मानता है तो व्यवहार चिकित्सा, व्यवहार एवं संज्ञान के दोषपूर्ण अधिगम को इसकी उत्पति का कारण मानता है। इसी तरह अस्तित्वपरक चिकित्सा की अभिधारणा है कि अपने जीवन और अस्तित्व के अर्थ से सम्बन्धित प्रश्न ही मनोवैज्ञानिक समस्याओं का कारण होते हैं।

जिस तरह से ये तीनों विधियाँ मनोवैज्ञानिक समस्याओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक-दूसरे से भिन्न हैं उसी तरह मनोवैज्ञानिक समस्याओं का निराकरण भी ये अलग-अलग तरीकों से करती हैं।

प्रश्न 53. वायु प्रदूषण क्या हैं? इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?
उत्तर: आधुनिकीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण हमारे पर्यावरण को हवा की गुणवत्ता अत्यधिक प्रभावित हुई है। हवा हमारे तथा सभी जीव-जंतुओं के जीवन के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वाहनों तथा उद्योगों से निकलनेवाला धुआँ, धूम्रपान आदि से हवा में खतरनाक जहर घुल जाते हैं। इसे हम वायु-प्रदूषण के नाम से जानते हैं।

हम इस समस्या के प्रति अपनी सजगता बढ़ाकर इस पर नियंत्रण कर सकते हैं-वाहनों को अच्छी हालत में रखने से या ईंधन रहित वाहन का उपयोग कर तथा धूम्रपान की आदत छोड़कर हम वायु-प्रदूषण को कम कर सकते हैं।

प्रश्न 54. किन्हीं तीन प्रकार के रक्षायुक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर: फ्रायड ने विभिन्न प्रकार की रक्षायुक्तियों का वर्णन किया है। जिनमें तीन की चर्चा नीचे की जा रही है-
(a) दमन (Repression)-दमन रक्षा युक्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसमें दुश्चिंता उत्पन्न करने वाले व्यवहार एवं विचार पूरी तरह चेतना के स्तर से विलुप्त कर दिए जाते हैं। जब लोग किसी भावना या इच्छा का दमन करते हैं तो वे उस भावना या इच्छा के प्रति बिल्कुल जागरूक नहीं होते हैं।

(b) को प्रक्षेपण (Projection)-प्रक्षेपण में व्यक्ति अपने विशेषकों को दूसरों पर आरोपित कर देता है। जैसे-किसी व्यक्ति में अगर प्रबल आक्रामक प्रवृत्तियाँ हैं तो वह दूसरे लोगों में अत्यधिक रूप से अपने प्रति होनेवाले व्यवहारों को आक्रामक देखता है।

(c) प्रतिक्रिया निर्माण (Reaction Formation)-प्रतिक्रिया निर्माण में व्यक्ति अपनी वास्तविक भावनाओं और इच्छाओं के ठीक विपरीत प्रकार का व्यवहार अपनाकर अपनी दुश्चिता से रक्षा करने का प्रयास करता है। जैसे-कोई प्रबल कामेच्छा से ग्रस्त व्यक्ति यदि अपनी ऊर्जा को धार्मिक क्रियाकलापों में लगाता है तो ऐसा व्यवहार प्रतिक्रिया निर्माण का उदाहरण है।

प्रश्न 55. प्राथमिक समूह तथा गौण समूह में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: कूले द्वारा किया गया समूह विभाजन अधिक संतोषप्रद है। इन दोनों समूहों में निम्नांकित अंतर पाया जाता है-
प्राथमिक समूह का आकार छोटा होता है। जैसे-परिवार; जबकि गौण समूह का आकार बड़ा होता है। जैसे-राजनीतिक दल।
प्राथमिक समूह के सदस्यों में औपचारिकता नहीं होती है या कम होती है; जबकि गौण समूह के सदस्यों में औपचारिकता अधिक होती है।

प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध होता है; जबकि गौण समूह सदस्यों के बीच घनिष्ठ पारस्परिक सम्बन्ध नहीं होता है।
प्राथमिक समूह छोटा होता है, अत: इसके सदस्यों में आमने-सामने का सम्बन्ध होता है; जबकि गौण समूह का बड़ा होता है, अतः इसके सदस्यों में आमने-सामने का सम्बन्ध नहीं होता है।

प्रश्न 56. परामर्श का अर्थ लिखें।
उत्तर: परामर्श एक प्राचीन शब्द है फलतः इसके अनेक अर्थ बताए गए हैं। वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार, “परामर्श का अर्थ पूछताछ पारस्परिक तर्क-वितर्क या विचारों का पारस्परिक विनिमय है।” रॉबिन्सन ने परामर्श की अत्यन्त स्पष्ट परिभाषा देते हुए कहा है कि परामर्श में वे सभी परिस्थितियाँ सम्मिलित कर ली जाती हैं, जिससे परामर्शप्रार्थी अपने आपको पर्यावरण के अनुसार समायोजित करने में सहायता प्राप्त कर सकें। परामर्श दो व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है। परामर्शदाता तथा परामर्शप्रार्थी। परामर्शप्रार्थी की कुछ समस्याएँ तथा आवश्यकताएँ होती हैं जिनको वह अकेला बिना किसी की राय या सुझाव के पूरा नहीं कर सकता है। इन समस्याओं के समाधान तथा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे वैज्ञानिक राय की आवश्यकता होती है और यह वैज्ञानिक राय या सुझाव कही परामर्श कहलाता है।

प्रश्न 57. व्यक्तित्वशील गुण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: व्यक्तित्व का निर्माण अनेक प्रकार शीलगुणों से होता है। शीलगुण आपस में संयुक्त रूप से कार्य करते हैं, जिनसे व्यक्ति के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन को उचित दिशा एवं गति प्राप्त होती है। इसी कारण इसे सामान्य भाषा में व्यक्तित्व की विशेषताएँ भी कहा जाता है। अब प्रश्न है कि शीलगुण से क्या अभिप्राय है ? मनोवैज्ञानिकों ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा है कि व्यक्तित्व की स्थायी विशेषताएँ जिनके कारण उनके व्यवहार में स्थिरता दिखाई पड़ती है, शीलगुण के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 58. स्थापना संक्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: यदि एक बच्चा रात का भोजन करने में परेशान करता है तो स्थापन संक्रिया यह होगी कि चायकाल के समय खाने की मात्रा को घटा दिया जाए। उससे रात के भोजन के समय भूख बढ़ जाएगी तथा इस प्रकार रात के भोजन के समय खाने का प्रबलन मूल्य बढ़ जाएगा।

प्रश्न 59. बुद्धि-लब्धि क्या है? किस प्रकार मनोवैज्ञानिक बुद्धि-लब्धि प्राप्तांकों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करते हैं?
उत्तर: बुद्धि-लब्धि- किसी व्यक्ति की मानसिक आयु को उसकी कालानुक्रमिक आयु से भाग देने के बाद उसको 100 से गुणा करने से उसकी बुद्धि-लब्धि प्राप्त हो जाती है।
Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 4 1
कालानुक्रमिक आयु मनोवैज्ञानिक बुद्धि-लब्धि प्राप्तांकों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करते हैं। इसे निम्नलिखित तालिका द्वारा समझा जा सकता है-
बुद्धि-लब्धि के आधार पर व्यक्तियों का वर्गीकरण

बुद्धि-लब्धि वर्णनात्मक वर्गनाम जनसंख्या प्रतिशत
130 से अधिक अतिश्रेष्ठ 2.2
120 – 130  श्रेष्ठ 6.7
110 – 119 उच्च औसत 16.1
90 – 109 औसत 50.0
80 – 89 निम्न औसत 16.1
70 – 79 सीमावर्ती 6.7
70 से कम मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त/मंदित 2.2

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि जनसंख्या के लगभग 2 प्रतिशत व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि 130 से अधिक होती है और उतने ही प्रतिशत व्यक्तियों की बुद्धि-लब्धि 70 से कम होती है। पहले वर्ग के लोगों को बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली कहा जाता है जबकि दूसरे वर्ग के लोगों को मानसिक रूप से चुनौतीग्रस्त या मानसिक रूप से मंदित कहा जाता है। ये दोनों वर्ग अपनी संज्ञानात्मक, संवेगात्मक तथा अभिप्रेरणात्मक विशेषताओं में सामान्य लोगों की अपेक्षा पर्याप्त भिन्न होते हैं।

प्रश्न 60. सामान्य कौशल क्या है? समझाएँ।
उत्तर: ये कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिक को होती है चाहे उनकी विशेषता का क्षेत्र कोई भी हो। ये कौशल सभी व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक के लिए आवश्यक है चाहे वे नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र के हों, औद्योग़िक/संगठनात्मक, सामाजिक तथा बौद्धिक कौशल दोनों शामिल होते हैं। यह उपेक्षा की जाती है कि किसी भी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण उन विद्यार्थियों को नहीं दिया जाना चाहिए जिनमें इन कौशलों का अभाव हो। एक बार इन कौशलों का प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने के बाद ही किसी विशिष्ट प्रशिक्षण देकर उन कौशलों का अग्रिम विकास किया जा सकता है?

प्रश्न 61. साक्षात्कार और प्रेक्षण में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: साक्षात्कार की विधि में परीक्षणकर्ता व्यक्ति से वार्तालाप करके सूचनाएँ एकत्र करता है। इसे प्रयुक्त होते हुए देखा जा सकता है जब कोई परामर्शदाता किसी सेवार्थी से अंत:क्रिया करता है, एक विक्रेता घर-घर जाकर किसी विशिष्ट उत्पाद की उपयोगिता के संबंध में सर्वेक्षण करता है, कोई नियोक्ता अपने संगठन के लिए कर्मचारियों का चयन करता है अथवा कोई पत्रकार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के विषयों पर महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का साक्षात्कार करता है।

प्रेक्षण में व्यक्ति को नैसर्गिक या स्वाभाविक दशा में घटित होने वाली तात्क्षणिक व्यवहारपरक घटनाओं का व्यवस्थित, संगठित तथा वस्तुनिष्ठ ढंग से अभिलेख तैयार किया जाता है। कुछ गोचर, जैसे-‘मातृ-शिशु अंत:क्रिया’ का अध्ययन प्रेक्षण-प्रणाली द्वारा सरलता से किया जा सकता है। प्रेक्षण-प्रणाली की एक बड़ी समस्या यह है कि इसमें स्थिति पर प्रेक्षक का बहुत कम नियंत्रण होता है और प्रेक्षण से प्राप्त विवरण की प्रेक्षण द्वारा व्यक्तिनिष्ठ व्याख्या की जा सकती है।

प्रश्न 62. मनोमितिक उपागम और सूचना प्रक्रमण उपागम में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मनोमितिक उपागम में वृद्धि को अनेक प्रकार की योग्यताओं का एक समुच्चय माना जाता है। यह व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले निष्पादन को उसकी संज्ञानात्मक योग्यताओं के एक सूचकांक के रूप में व्यक्त करता है। दूसरी ओर, सूचना प्रक्रमण उपागम में बौद्धिक तर्कना तथा समस्या समाधान में व्यक्तियों द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रक्रियाओं का वर्णन किया जाता है। इस उपागम का प्रमुख केंद्रबिंदु एक बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं पर होता है। बुद्धि की संरचना तथा
उसमें अंतर्निहित विभिन्न विमाओं पर अधिक ध्यान न देकर सूचना प्रक्रमण उपागम बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहारों में अंतर्निहित संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के अध्ययन पर अधिक बल देता है।

प्रश्न 63. बुद्धि संरचना मॉडल की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जे० पी० गिलफोर्ड ने बुद्धि संरचना मॉडल (Structure of intellect model) प्रस्तुत किया जिसमें बौद्धिक विशेषताओं को तीन विमाओं में वर्गीकृत किया गया है-संक्रियाएँ, विष्यवस्तु तथा उत्पाद। संक्रियाओं को तीन तात्पर्य बुद्धि द्वारा की जाने वाली क्रियाओं से है। इसमें संज्ञान, स्मृति अभिलेखन, स्मृति प्रतिधारण, अपसारी उत्पादन, अभिसारी उत्पादन तथा मूल्यांकन की क्रियाएँ होती हैं। विषयवस्तु का संबंध उस सामग्री या सूचना के स्वरूप से होता है जिस पर व्यक्ति को बौद्धिक क्रियाएँ करनी होती हैं।

इसमें चाक्षुष श्रवणात्मक, प्रतीकात्मक (जैसे-अक्षर तथा संख्याएँ), अर्थविषयक (जैसे-शब्द) तथा व्यवहारात्मक (व्यक्तियों के व्यवहार, अभिवृत्तियों,, आवश्यकताओं आदि से संबंधित सूचनाएँ) रहती हैं। उत्पादन का अर्थ उस स्वरूप से होता है जिसमें व्यक्ति सूचनाओं का प्रक्रम करता है। उत्पादों को इकाई, वर्ग संबंध, व्यवस्था, रूपांतरण तथा निहितार्थ में वर्गीकृत किया जाता है। चूँकि इस वर्गीकरण में 6 × 5 × 6 वर्ग बनते हैं इसलिए इस मॉडल में 180 प्रकोष्ठ होते हैं। प्रत्येक प्रकोष्ठों में एक से अधिक कारक भी हो सकते हैं। प्रत्येक कारक का वर्णन तीनों विमाओं के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 64. वैयक्तिक तथा समूह बुद्धि परीक्षण में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण वह परीक्षण होता है जिसके द्वारा एक समय में एक ही व्यक्ति का बुद्धि परीक्षण किया जा सकता है। समूह बुद्धि परीक्षण को एक साथ बहुत-से व्यक्तियों को समूह में दिया जा सकता है। वैयक्तिक परीक्षण में आवश्यक होता है कि परीक्षणकर्ता परीक्षार्थी से सौहार्द्र स्थापित करे और परीक्षण सत्र के समय उसकी भावनाओं, भावदशाओं और अभिव्यक्तियों के प्रति संवेदनशील रहे।

समूह परीक्षण में परीक्षणकर्ता को परीक्षार्थियों की निजी भावनाओं से परिचित होने का अवसर नहीं मिलता। वैयक्तिक परीक्षणों में परीक्षार्थी पूछे गए प्रश्नों का मौखिक अथवा लिखित रूप में भी उत्तर दे सकता है अथवा परीक्षणकर्ता के आदेशानुसार वस्तुओं का प्रहस्तन भी कर सकता है। समूह परीक्षण में परीक्षार्थी सामान्यतः लिखित उत्तर देता है और प्रश्न भी प्रायः बहुविकल्पी स्वरूप के होते हैं।

प्रश्न 65. व्यक्तित्व को आप किस प्रकार परिभाषित करते हैं? व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम कौन-से हैं?
उत्तर: व्यक्तित्व का तात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है। लोग सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते हैं कि वे किस तरीके के विभिन्न स्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। कुछ सूचक शब्दों (जैसे-शर्मीला, संवेदनशील, शांत, गंभीर, स्फूर्त आदि) का उपयोग प्राय: व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये शब्द व्यक्तित्व के विभिन्न घटकों को इंगित करते हैं। इस अर्थ में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार की विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तित्व व्यक्तियों की उन विशेषताओं को भी कहते हैं जो अधिकांश परिस्थितियों में प्रकट होती हैं।
व्यक्तित्व के अध्ययन के प्रमुख उपागम निम्नलिखित हैं-

  1. प्रारूप उपागम
  2. विशेषक उपागम
  3. अंतःक्रियात्मक उपागम।

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