12th Business

Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

BSEB 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

प्रश्न 1. अल्पकाल तथा दीर्घकाल में अन्तर बताएँ।
उत्तर: अल्पकाल यह समयावधि है जिसमें उत्पादन के कुछ साधन परिवर्ती होते हैं और कुछ स्थिर। अल्पकाल में केवल परिवर्ती साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है। इसके विपरीत दीर्घकाल एक लम्बी समयावधि है। इसमें उत्पादन के सभी साधन परिवर्ती होते हैं।

प्रश्न 2. औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में क्या संबंध है ?
उत्तर: औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में सम्बन्ध (Relationship between AP and MP)-

  • औसत उत्पाद तब तक बढ़ता है जब तक सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  • औसत उत्पाद उस समय अधिकतम होता है जब सोमान्त उत्पाद औसत उत्पाद के बराबर होता है।
  • औसत उत्पाद तब गिरता है जब सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से कम होता है।

प्रश्न 3. औसत उत्पाद तथा कुल उत्पाद में सम्बन्ध बतायें।
उत्तर: औसत उत्पाद एवं कुल उत्पाद में सम्बन्ध (Relationship between AP and TP)-

  • जब कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ता है तो औसत उत्पाद भी बढ़ता है।
  • जब कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है तो औसत उत्पाद घटता है।
  • कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद हमेशा धनात्मक रहते हैं।

प्रश्न 4. कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर: कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में सम्बन्ध (Relation between TP, AP)-

  • आरम्भ में कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद तथा औसत उत्पाद सभी बढ़ते हैं। इस स्थिति में सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  • जब औसत उत्पाद अधिकतम व स्थिर होता है तो सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद के बराबर होता है।
  • इसके बाद औसत उत्पाद और सीमान्त उत्पाद कम होता है, सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से कम होता है, शून्य होता है और ऋणात्मक होता है परन्तु औसत उत्पाद तथा कुल उत्पाद हमेशा धनात्मक होते हैं।
  • जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तब कुल उत्पाद अधिकतम होता है।

प्रश्न 5. अल्पकाल तथा अति अल्पकाल में अन्तरं स्पष्ट करें।
उत्तर: अल्पकाल तथा अति अल्पकाल में अन्तर (Difference between short period and very short period)- अति अल्पकाल से अभिप्राय उस समय-अवधि से है जब बाजार में पूर्ति बेलोचदार होती है जैसे सब्जियों, दूध आदि की पूर्ति। ऐसी अवधि में कीमत के घटने-बढ़ने से पूर्ति को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता। पूर्ति अपरिवर्तनशील रहती है।

प्रश्न 6. प्रतिफल के नियम से क्या अभिप्राय है ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर: प्रतिफल के नियम (Laws of Returns)- साधन आगतों में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से सम्बन्धित नियम को प्रतिफल के नियम कहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रतिफल के नियम साधन आगतों और उत्पादन के बीच व्यवहार विधि को बताते हैं। प्रतिफल . के नियम इस बात का अध्ययन करते हैं कि साधनों की मात्रा में परिवर्तन करने पर उत्पादन की मात्रा में कितना परिवर्तन होता है।

प्रतिफल के नियम के प्रकार (Types of Law of returns)- प्रतिफल के नियम दो प्रकार के होते हैं- (i) साधन के प्रतिफल के नियम। पैमाने के प्रतिफल के नियम साधन के प्रतिफल के नियम अल्पकाल से संबंधित हैं जबकि पैमाने के प्रतिफल के नियम दीर्घकाल से संबंध रखते हैं।

प्रश्न 7. साधन के प्रतिफल किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर: साधन के प्रतिफल (Returns to Factor)- जब उत्पादक अन्य साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए उत्पादन के एक ही साधन में परिवर्तन करके उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन करना चाहता है तो उत्पादन के साधनों तथा उत्पादन के संबंध को साधन के प्रतिफल कहते हैं। साधन के प्रतिफल का सम्बन्ध परिवर्तनशील साधनों में परिवर्तन होने के कारण उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, जबकि स्थिर साधनों में परिवर्तन नहीं होता, परन्तु परिवर्तनशील तथा स्थिर साधनों के अनुपात में परिवर्तन हो जाता है। इसे परिवर्ती अनुपात का नियम भी कहते हैं।

साधन के प्रतिफल के प्रकार (Types of Returns to Factor)- इसे बढ़ते (वर्धमान) सीमान्त प्रतिफल भी कहते हैं। साधन के बढ़ते प्रतिफल वह स्थिति है जब स्थिर साधन की निश्चित इकाई के साथ परिवर्तनशील साधन अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में परिवर्तनशील साधनों का सीमान्त उत्पादन बढ़ता जाता है और उत्पादन की सीमान्त लागत कम होती जाती है इसलिए इसे ह्रासमान लागत का नियम भी कहते हैं। साधन के बढ़ते प्रतिफल को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है-
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प्रश्न 8. साधन के समान प्रतिफल के तीन कारण लिखें।
उत्तर: साधन के समान प्रतिफल के तीन कारण (Causes of constant returns of factor) साधन के समान प्रतिफल के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(i) स्थिर साधनों का अनुकूलतम प्रयोग (Optimum Utilisation of Fixed Factors)- नियम स्थिर साधनों का अनुकूलतम उपयोग होने के कारण क्रियाशील होता है। जैसे-जैसे परिवर्ती साधन की अधिक इकाइयाँ प्रयोग में लायी जाती हैं, एक ऐसी अवस्था आ जाती है जब स्थिर साधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है। इससे आगे परिवर्ती साधन की और अधिक इकाइयों के उपयोग से उत्पादन की मात्रा में समान दर में वृद्धि होगी।

(ii) परिवर्तित साधनों का अनुकूलतम प्रयोग (Most Efficient Utilisation of Variable Factors)- जब स्थिर साधन के साथ परिवर्तनशील साधन की बढ़ती हुई इकाइयों का प्रयोग क्रिया जाता है तो. एक ऐसी स्थिति आती है जिसमें सबसे अधिक उपर्युकत श्रम विभाजन सम्भव होता है। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील साधन जैसे श्रम का सबसे अधिक उपयुक्त प्रयोग संभव होता है तथा सीमान्त उत्पादन अधिकतम मात्रा पर स्थिर हो जाता है।

(iii) आदर्श साधन अनुपात (Ideal Factor Ratio)- जब स्थिर तथा परिवर्तनशील साधन का आदर्श अनुपात में प्रयोग किया जाता है तो समान प्रतिफल की स्थिति होती है। इस स्थिति में साधन का सीमान्त उत्पादन अधिकतम मूल्य पर स्थिर हो जाता है।

प्रश्न 9. आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
आन्तरिक बचतें:

  1. ये वे लाभ हैं जो किसी फर्म को अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं।
  2. आन्तरिक बचतों से प्राप्त होने वाले लाभ एक व्यक्तिगत फर्म तक ही सीमित होते हैं।
  3. आन्तरिक बचतें केवल बड़े पैमाने की फर्मों को प्राप्त होती हैं।
  4. आन्तरिक बचतों के उदाहरण हैं- तकनीकी बचतें, प्रबन्धकीय बचतें, विपणन बचतें आदि।

बाह्य बचतें:

  1. ये वे लाभ हैं जो समस्त उद्योग के विकसित होने पर सभी फर्मों को प्राप्त होते हैं।
  2. बाह्य बचतों से प्राप्त होने वाले लाभ उद्योगों की फर्मों को प्राप्त होते हैं।
  3. बाह्य बचतें छोटे प्रकार पैमाने की फर्मों को प्राप्त होती हैं।
  4. बाह्य बचतों के उदाहरण हैं : उत्तम परिवहन एवं संचार सुविधाओं की उपलब्धि, सहायक उद्योगों की स्थापना, कच्चे माल का सुगमता से प्राप्त होना आदि।

प्रश्न 10. किसी साधन के सीमान्त भौतिक उत्पाद में परिवर्तन होने पर कुल भौतिक उत्पाद में परिवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर: कुल भौतिक उत्पाद और सीमान्त भौतिक उत्पाद परस्पर संबंधित हैं। अन्य आगतों को स्थिर रखकर जब परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग किया जाता है तो कुल भौतिक उत्पाद में जो परिवर्तन होता है, उसे सीमान्त भौतिक उत्पाद कहते हैं। कुल भौतिक उत्पाद सीमान्त भौतिक उत्पाद का जोड़ होता है। जब सीमान्त भौतिक उत्पाद धनात्मक होता है तो कुल भौतिक उत्पाद में वृद्धि होती है। जब सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक होता है तो उत्पाद कम होने लगता है। सीमान्त भौतिक उत्पाद में परिवर्तन उत्पादन की तीन अवस्थाओं को प्रकट करता है। उत्पादन की प्रथम अवस्था में सीमान्त भौतिक उत्पाद में वृद्धि होती है। उत्पादन की दूसरी अवस्था में यह धनात्मक तो रहता है, लेकिन कुल उत्पाद में वृद्धि घटती हुई दर से होती है। उत्पादन की तीसरी अवस्था में सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है और कुल उत्पाद में गिरावट आती है।

प्रश्न 11. निजी लागत और सामाजिक लागत में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: निजी लागत (Private Cost)- निजी लागत वह लागत है जो किसी फर्म को एक वस्तु के उत्पादन में खर्च करनी पड़ती है। वस्तु के उत्पादक में उत्पादन द्वारा आगतों के खरीदने और किराए पर लेने के लिए किया गया. खर्चे निजी लागत कहलाती है। जैसे-ब्याज, मजदूरी, किराया आदि।

सामाजिक लागत (Social Cost)- सामाजिक लागत वह लागत है जो सारे समाज को वस्तु के उत्पादन के लिए चुकानी पड़ती है। सामाजिक लागत पर्यावरण प्रदूषण के रूप में होती है। जैसे-कारखाने द्वारा गंदे पानी को नदी में बहाना। इससे नदी की मछलियाँ मर जाती हैं और पानी को पीने योग्य बनाने के लिए नगर निगम को अधिक पैसे खर्च करना पड़ता है।

इसी प्रकार शहर में स्थिर फैक्टरो के धुएँ से पर्यावरण के दूषित होने पर शहरी नागरिकों. के डॉक्टरी खर्च और लांडरी खर्च में वृद्धि सामाजिक लागत है।

फर्म के उत्पादन की लागत से हमारा आशय निजी लागत से है, न कि सामाजिक लागत से।

प्रश्न 12. पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को समझायें।
उत्तर: पैमाने के बढ़ते प्रतिफल (Increasing returns to scale)- पैमाने के बढ़ते प्रतिफल
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उस स्थिति को प्रकट करते हैं जब उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाये जाने पर उत्पादन में वृद्धि अनुपात से अधिक होती है। दूसरे शब्दों में उत्पादन के साधनों में 10 प्रतिशत की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। नीचे चित्र में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को दर्शाया गया है।

चित्र से पता चलता है कि उत्पादन के साधनों में 10 प्रतिशत की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। वह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की स्थिति है।

प्रश्न 13. औसत स्थिर लागत वक्र किस प्रकार का दिखाई देता है ? यह ऐसा क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर: औसत स्थिर लागत (AFC) उतनी ही कम होती जाती है जितनी अधिक इकाइयों का उत्पादन किया जाता है। अतः औसत स्थिर लागत वक्र हमेशा बायें से दायें को नीचे की ओर झुकता हुआ होता है परन्तु यह कभी X अक्ष को स्पर्श नहीं करता क्योंकि औसत स्थिर लागत कभी भी शून्य नहीं हो सकती और उत्पादन का स्तर शून्य होने पर स्थिर लागत बनी रहती है।

प्रश्न 14. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की क्या प्रकृति होती है ?
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की प्रकृति (Nature of price line under perfect competition)- पूर्ण. प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज (Horizontal) अर्थात् X- अक्ष के समान्तर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत का निर्धारण करता हैं फर्म उस कीमत को स्वीकार करती है। दी हुई कीमत पर एक फर्म एक वस्तु की जितनी भी मात्रा बेचना चाहती है, बेच सकती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा न केवल OX-अक्ष के समान्तर होती है, अपितु औसत आगम तथा सीमान्त आगम वक्र को भी ढकती है। कीमत रेखा को पूर्ण प्रतियोगिता फर्म का माँग वक्र भी कहा जाता है।
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प्रश्न 15. एकाधिकारी प्रतियोगिता में सीमान्त आगम तथा औसत आगम में सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर: एकाधिकारी प्रतियोगिता में सीमान्त आगम तथा औसत आगम में सम्बन्ध (Relationship between MR and AR under Monopolistic Competition)- एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्म अपनी कीमत कम करके अधिक माल बेच सकती है। अत: माँग वक्र (औसत आगम वक्र) ऊपर से नीचे की ओर ढालू होता है। जब AR वक्र नीचे की ओर होता है तो -MR वक्र इसके नीचे होता है। इस बात का स्पष्टीकरण नीचे तालिका तथा रेखाचित्र से किया गया है-
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प्रश्न 16. पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा तथा कुल आगम में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा तथा कुल आगम में सम्बन्ध (Relation between price line and perfect competition under perfect competition) पूर्ण प्रतियागिता में कीमत तथा कुल आगम में महत्वपूर्ण सम्बन्ध है। कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्र कुल आगम के बराबर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म कीमत को स्वीकार करती है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को इसे स्वीकार करना पड़ता है वह दी हुई कीमत पर अपने उत्पाद की जितनी चाहं इकाइयाँ बेच सकती है। अत: कुल आगम कीमत तथा बेची गई इकाइयों का गुणनफल होगा। रेखाचित्र में वस्तु की कीमत OP है। PA कीमत रेखा है। फर्म की विक्रय की मात्रा OQ है। अत: कुल आगम OP × OQ होगा। यह OQRP आयत के क्षेत्रफल को प्रदर्शित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता में कुल आगम कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्रफल के बराबर है।
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प्रश्न 17. पूर्ति के नियम के अपवाद बताइये।
उत्तर: अपवाद (Exceptions)-

  • कीमत में और परिवर्तन की आशा।
  • कृषि वस्तुओं की स्थिति में-चूँकि कृषि मुख्य रूप से प्रकृति पर निर्भर करती हैं जो अनिश्चित होती है।
  • उन पिछड़े देशों में जिनमें उत्पादन के लिए पर्याप्त साधन नहीं पाये जाते।
  • उच्च स्तर की कलात्मक वस्तुएँ।

प्रश्न 18. बाजार पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? इसे कैसे प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर: बाजार पूर्ति (Market Supply)- बाजार पूर्ति से अभिप्राय विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी विक्रेताओं की एक सामूहिक पूर्ति से है। व्यक्तिगत पूर्ति के जोड़ने से बाजार पूर्ति प्राप्त होती है। मान लो एक बाजार में गेहूँ के तीन विक्रेता (A, B तथा C) हैं। इनकी पूर्ति को जोड़ने से हमें बाजार पूर्ति प्राप्त होगी। बाजार पूर्ति को नीचे तालिका की सहायता से समझाया गया है-
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प्रश्न 19. निजी आय तथा वैयक्तिक आय में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: निजी आय तथा वैयक्तिक आय में निम्नलिखित अंतर है-
निजी आय:

  1. निजी उद्यमों तथा कर्मियों द्वारा समस्त स्रोत से प्राप्त आय।
  2. यह विस्तृत अवधारणा है।
  3. इसमें निगम कर, अवितरित लाभ इत्यादि शामिल हैं।
  4. निजी आय = NI – सार्वजनिक क्षेत्र को घरेलू उत्पदि से प्राप्त आय + समस्त

वैयक्तिक आय:

  1. व्यक्तियों तथा परिवारों को प्राप्त होने वाली आय
  2. यह संकुचित अवधारणा है।
  3. इसमें ये सब शामिल नहीं हैं।
  4. वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – अवितरित लाभ चालू अंतरण

प्रश्न 20. क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित कीमत-
(i) संतुलन कीमत से अधिक है, (ii) संतुलन कीमत से कम है ?
उत्तर:
(i) बाजार में प्रचलित कीमत के संतुलन कीमत से अधिक होने पर यह सोचते हुए कि दूसरे स्थानों से यहाँ पर अधिक लाभ कमा सकते हैं, फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। परिणामस्वरूप प्रचलित कीमत पर बाजार में आधिक्य पूर्ति होगी। यह आधिक्य पूर्ति बाजार मूल्य में कमी लाएगी और बाजार कीमत कम होकर संतुलन कीमत के बराबर हो जाएगी।

(ii) इस स्थिति में बहुत सी फर्मे जिन्हें हानि हो रही होगी वे फर्मे इस उद्योग से बाहार निकल आएँगी। परिणामस्वरूप प्रचलित बाजार मूल्य पर आधिक्य माँग की स्थिति उत्पन्न होगी। आधिक्य माँग बाजार मूल्य में वृद्धि लाएगी और बाजार मूल्य संतुलन कीमत कम हो जाएगी।

प्रश्न 21. एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम के श्रेष्ठ चयन की शर्त क्या है ?
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम में श्रेष्ठ चयन की शर्त (Condition for optimal choice of labour in perfectly competitive firm)- श्रम बाजार में श्रम की माँग फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों के कार्य के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से। प्रत्येक फर्म का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। फर्म को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जबकि नीचे दी गई शर्त पूरी होती है-
W = MRPL       MRPL = MR × MPL
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त उत्पाद के मूल्य के बराबर होती है। अतः श्रम के आदर्श (श्रेष्ठ) चयन की शर्त मजदूरी दर तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य में समानता है।

प्रश्न 22. बाजार के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करें।
उत्तर: बाजार के विभिन्न प्रकारों का निम्नलिखित उल्लेख है-
1. पूर्ण प्रतियोगिता- पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती हैं जिसमें एक समान वस्तु के बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता होते हैं। एक क्रेता तथा एक विक्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाते और यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित रहता है।

2. एकाधिकार- एकाधिकार दो शब्दों से मिलकर बना है-एक + अधिकार अर्थात् बाजार की वह स्थिति जब बाजार में वस्तु का केवल एक मात्र विक्रेता हो। एकाधिकारी बाजार दशा में वस्तु का एक अकेला विक्रेता होने के कारण विक्रेता का वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण रहता है। विशुद्ध एकाधिकार में वस्तु का निकट स्थापन्न की उपलब्ध नहीं होता।

3. एकाधिकारी प्रतियोगिता- वास्तविक जगत में न तो पूर्ण प्रतियोगिता प्रचलित होती और न ही एकाधिकार। वास्तविक बाजार में प्रतियोगिता एवं एकाधिकार दोनों के ही तत्त्व उपस्थित रहते हैं। इस बाजार दशा के समूह के उत्पादक विभेदीकृत वस्तुओं दोनों के ही तत्त्व उपस्थित रहते हैं। इस बाजार दशा में समूह के उत्पादक विभेदीकृत वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जो एक समान तथा समरूप नहीं होता है, किन्तु निकट स्थापन्न अवश्य होता है।

प्रश्न 23. स्थानापन्न वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: स्थानापन्न वस्तुएँ वे सम्बन्धित वस्तुएँ हैं जो एक-दूसरे के बदले एक ही उद्देश्य के लिए प्रयोग की जा सकती है। उदाहरण के लिए चाय और कॉफी। स्थानापन्न वस्तुओं में से एक वस्तु की माँग तथा दूसरी वस्तु की कीमत में धनात्मक सम्बन्ध होता है। अर्थात् एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग बढ़ती है तथा कीमत कम होने पर माँग कम होती है।

प्रश्न 24. चालू जमा खाता क्या है ?
उत्तर: चालू खाते की जमाएँ चालू जमाएँ कहलाती हैं। चालू खाता वह खाता है जिसमें जमा की गई रकम जब चाहे निकाली जा सकती है। चूंकि इस खाते में आवश्यकतानुसार कई बार रुपया निकालने की सुविधा रहती है, इसलिए बैंक इस खाते का धन प्रयोग करने में स्वतंत्र नहीं होता। यही कारण है कि बैंक ऐसे खातों पर ब्याज बिल्कुल नहीं देता। कभी-कभी कुछ शुल्क ग्राहक से वसूल करता है।

प्रश्न 25. पूर्ण प्रतियोगिता से क्या समझते हैं ?
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें एक समान वस्तु के बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता होते हैं। एक क्रेता तथा विक्रेता बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर पाते और यही कारण है कि पूर्ण प्रतियोगिता में बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित रहती है।

प्रश्न 26. व्यावसायिक बैंक के तीन प्रमुख कार्यों को बतायें।
उत्तर: व्यावसायिक बैंक के तीन प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • जमाएँ स्वीकार करना
  • ऋण देना
  • साख निर्माण।

प्रश्न 27. सरकारी बजट के किन्हीं तीन उद्देश्यों को बतायें।
उत्तर: सरकारी बजट के किन्हीं तीन उद्देश्य निम्नलिखिः हैं-

  • आर्थिक विकास को प्रोत्साहन
  • संतुलित क्षेत्रीय विकास
  • रोजगार का सृजना

प्रश्न 28. भुगतान संतुलन क्या है ?
उत्तर: भुगतान संतुलन का संबंध किसी देश के शेष विश्व के साथ सभी आर्थिक लेन-देन के लेखांकन के रिकार्ड हैं। प्रत्येक देश विश्व के अन्य देशों के साथ आर्थिक लेन-देन करता है। इस लेन-देन के फलस्वरूप रसे अन्य देशों से प्राप्तियाँ होती है तथा उसे अन्य देशों को भुगतान. करना पड़ता है। भुगतान संतुलन इन्हीं प्राप्तियों एवं भुगतानों का विवरण हैं।

प्रश्न 29. संतुलित और असंतुलित बजट में भेद करें।
उत्तर: संतुलित बजट : संतुलित बजट वह बजट है जिसमें सरकार की आय एवं व्यय दोनों बराबर होते हैं।
असंतुलित बजट : वह बजट जिसमें सरकार की आय एवं सरकार की व्यय बराबर नहीं होते असंतुलित बजट दो प्रकार का हो सकता है-

  • वजन का बजट या अतिरेक बजट जिसमें आय व्यय की तुलना में अधिक हो।
  • घाटे का बजट जिसमें व्यय आय की तुलना में अधिक हो।

प्रश्न 30. अर्थशास्त्र की विषय वस्तु की विवेचना करें।
उत्तर: प्रो. चैपमैन अर्थशास्त्र के विषय-वस्तु में धन के उपयोग, उत्पादन, विनिमय तथा वितरण को शामिल करते हैं। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री प्रो. बोल्डिंग इसके विषय वस्तु में निम्न पाँच मदों को शामिल करते है।

  • उपयोग (Consumption)- उपयोग का अर्थ उस आर्थिक क्रिया से है, जिसका संबंध मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं की उपयोगिता का प्रयोग करने से है।
  • उत्पादन (Production)- उत्पादन का अर्थ वस्तुओं तथा सेवाओं द्वारा उपयोगिता या मूल्य में वृद्धि करने से है।
  • विनिमय (Exchange)- विनिमय में उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है जिसमें वस्तुओं तथा सेवाओं का क्रय-विक्रय दूसरी वस्तुओं के साथ अथवा मुद्रा के साथ किया जाता है।
  • वितरण (Distribution)- वितरण का अर्थ राष्ट्रीय आय का विभिन्न उत्पादन के साधनों में वितरण करना है। साधनों को मजदूरी लगान ब्याज तथा लाभ के रूप में पुरस्कार दिया जाता है।
  • सार्वजनिक वित्त (Public Finance)- इसमें सरकार की उन सभी क्रियाओं को शामिल किया जाता है, जो अर्थव्यवस्था की कुशल व्यवस्था के लिए अपनानी पड़ती है। इसमें सरकारी बजट सार्वजनिक आय तथा व्यय आदि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 31. भुगतान शेष के चालू खाता एवं पूँजी खाता में अन्तर बताएँ।
उत्तर: चालू खाता : चालू खाते के अन्तर्गत उन सभी लेन देनों को शामिल किया जाता है जो वर्तमान वस्तुओं और सेवाओं के आयात निर्यात के लिए किए जाते हैं। चालू खाते के अन्तर्गत वास्तविक व्यवहार लिखे जाते हैं।

पूँजी खाता : पूँजी खाता पूँजी सौदों निजी एवं सरकारी पूँजी, अन्तरणों और बैंकिंग पूँजी प्रवाह का एक रिकार्ड है पूँजी खाता ऋणों और दावों के बारे में बताता है। उसके अन्तर्गत सरकारी सौदे विदेशी प्रत्यक्ष विनियोग पार्टफोलियो विनियोग को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 32. बाजार की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर: बाजार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • एक क्षेत्र
  • क्रेताओं और विक्रेताओं की अनुपस्थिति
  • एक वस्तु
  • वस्तु का एक मूल्य.

प्रश्न 33. रोजगार का परंपरावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर: रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार आसानी से काम मिल जाता है। दूसरे शब्दों में प्रचलित मजदूरी दर पर अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। काम करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए दी गई मजदूरी दर पर बेरोजगारी की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को बनाने में डेबिड रिकार्डों, पीगू, मार्शल आदि व्यष्टि अर्थशास्त्रियों ने योगदान दिया है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त में जे. बी. से का रोजगार सिद्धान्त बहुत प्रसिद्ध है।

प्रश्न 34. संक्षेप में अनैच्छिक बेरोजगार को समझाइए।
उत्तर: यदि दी गई मजदूरी दर या प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को आसानी से कार्य नहीं मिल पाता है तो इस समस्या को’ अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।

एकं अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

  • अर्थव्यवस्था में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति हो सकती है।
  • प्राकृतिक संसाधनों की कमी।
  • पिछड़ी हुई उत्पादन तकनीक।
  • आधारित संरचना की कमी आदि।

प्रश्न 35. साधन आय को कितने भागों में बाँटा जाता है ?
उत्तर: उत्पादन के साधनों द्वारा प्रदान की गयी सेवाओं के बदले में जो आय प्राप्त प्राप्त होती है। उसे. साधन आय कहते हैं। साधन आय को निम्न भाग में बाँटा जा सकता है लगान, ब्याज, मजदूरी इत्यादि।

प्रश्न 36. एक देश में भूकंप से बहुत से लोग मारे गये उनके कारखाने ध्वस्त हो गए। इसका अर्थव्यवस्था के उत्पादन संभावना वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: बहुत से लोगों के मरने तथा कारखानों के ध्वस्त होने से संसाधनों में कमी होगी। संसाधनों की कमी होने पर संभावना वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
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प्रश्न 37. अर्थशास्त्र में संतुलन से क्या अभिप्राय है ? समझायें।
उत्तर: संतलन (Equilibrium)- भौतिक विज्ञान में संतुलन का अर्थ स्थिर अवस्था से लिया जाता है। संतुलन की अवस्था में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होती या किसी प्रकार की गति नहीं होती किन्तु अर्थशास्त्र में संतुलन का अर्थ स्थिर अथवा अर्थव्यवस्था में गतिहीनता से नहीं लिया जाता। अर्थशास्त्र में संतुलन की अवस्था उस स्थिति को कहते हैं जिसमें गति तो होती है परन्तु गति की दर में परिवर्तन नहीं होता। यह वह अवस्था है जिसमें अर्थव्यवस्था की कोई एक इकाई या भाग या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अपने इष्ट बिन्दु पर होती है और उनमें उस बिन्दु से हटने की.कोई प्रवृत्ति नहीं होती।

प्रश्न 38. प्रारम्भिक उपयोगिता, सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
(i) प्रारंभिक उपयोगिता (Initial Utility)- किसी वस्तु की प्रथम इकाई के उपभोग करने से जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उसे प्रारम्भिक उपयोगिता कहते हैं। मान लो एक संतरा खाने में 10 इकाइयों (यूनिटों) की उपयोगिता प्राप्त होती है तो यह उपयोगिता प्रारम्भिक उपयोगिता कहलाएगी।

(ii) सीमान्त उपयोगिता (Marginal Utility)- किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं। मान लो एक आम खाने से कुल उपयोगिता 10 यूनिट है और दो आम खाने से कुल उपयोगिता 18 यूनिट है। ऐसी अवस्था में दूसरे आम से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता 8 (18-10) होगी। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।

(iii) कल उपयोगिता (Total Utility)- किसी निश्चित समय में कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता कुल उपयोगिता होती है। कुल उपयोगिता की गणना करने के लिए सीमान्त उपयोगिताओं को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 39. उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर: उपयोगिता (Utility)- उपयोगिता पदार्थ का वह गुण है जिसमें किसी आवश्यकता की संतुष्टि होती है। प्रा० एडवर्ड के शब्दों में “अर्थशास्त्र में उपयोगिता के अर्थ उस संतुष्टि आनन्द या लाभ से है जो किसी व्यक्ति को धन या सम्पत्ति के उपभोग से प्राप्त होती है।” उपयोगिता का सम्बन्ध प्रयोग मूल्य (Value use) से होता है। जिन वस्तुओं में प्रयोग मूल्य होता है, उसमें . उपयोगिता विद्यमान होती है। उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता का फलन है।

उपयोगिता की विशेषताएँ (Characteristics of utility)-

  • उपयोगिता भावगत (subjective) है। यह व्यक्ति के स्वभाव, आदत व रुचि पर निर्भर करती है।
  • वस्तुओं की उपयोगिता समय तथा स्थान के साथ बदलती रहती है।
  • उपयोगिता का लाभदायकता से कोई निश्चित सम्बन्ध नहीं होता।
  • उपयोगिता कारण है तथा संतुष्टि परिणाम है।
  • उपयोगिता का. किसी वस्तु को स्वादिष्टता से कोई सम्बन्ध नहीं होता।

प्रश्न 40. विदेश मुद्रा के हाजिर बाजार क्या होते हैं ?
उत्तर: हाजिर बाजार : विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन दैनिक आधार पर होते हैं तो ऐसे बाजार को हाजिर बाजार या चालू बाजार कहते हैं। इस बाजार में विदेशी मुद्रा की तात्कालिक दरों पर विनिमय होता है।

प्रश्न 41. केन्द्रीय बैंक का अर्थ लिखिए।
उत्तर: एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रणाली की सर्वोच्च संस्था को केन्द्रीय बैंक कहते हैं। केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति बनाता है और उसका क्रियान्वयन करवाता है। यह ऋणदाताओं का अन्तिम् आश्रयदाता होता है।

प्रश्न 42. सीमान्त उपयोगिता तथा उपयोगिता में क्या संबंध है ?
उत्तर: सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में सम्बन्ध (Relationship between Marginal Utility and Total Utility)-

  • कुल उपयोगिता आरम्भ में लगातार बढ़ती है और एक निश्चित बिन्दु के पश्चात् यह घटनी शुरू हो जाती है, परन्तु सीमान्त उपयोगिता आरम्भ से ही घटना शुरू कर देती है।
  • जब कुल उपयोगिता बढ़ती है तो सीमान्त उपयोगिता धनात्मक होती है।
  • जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है।
  • जब कुल उपयोगिता घटती है तब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 43. सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम समझाएं।
उत्तर: सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम (Law of diminishing marginal utility)- सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य की विवेचना करता है कि जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई का उपभोग करता है अन्य बातें समान रहने पर उसे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। एक बिन्दु पर पहुँचने पर यह शून्य हो जाती है और यदि उपभोक्ता इसके पश्चात् भी वस्तु की सेवन जारी रखता है तो यह ऋणात्मक हो जाती है।

इस नियम के लागू होने के दो मुख्य कारण हैं-

  • वस्तुएँ एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती तथा
  • एक विशेष समय पर एक विशेष आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है।

प्रश्न 44. माँग में वृद्धि तथा माँग में कमी में अन्तर बताएँ।
उत्तर: माँग में वृद्धि तथा माँग में कमी (Increase in demand and decrease in demand)-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 6
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 7

प्रश्न 45. आय प्रभाव, प्रतिस्थापन प्रभाव और कीमत प्रभाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: आय प्रभाव (Income Effect)- वस्तु की कीमत कम होने पर उपभोक्ता उसी आय से अधिक मात्रा में वस्तुएँ खरीद सकता है। जब उपभोक्ता की क्रय शक्ति में वृद्धि हो जाती है, तो वह वस्तु की अधिक मात्रा खरीदता है। इसे आय प्रभाव कहते हैं।

प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect)- किसी वस्तु (चाय) की कीमत बढ़ने पर जब उपभोक्ता उसकी माँग पर कम और उसकी प्रतिस्थापन वस्तु (कॉफी) की माँग अधिक करते हैं तो इसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं।

कीमत प्रभाव (Price Effect)- आय प्रभाव और प्रतिस्थापन प्रभाव के योग को कीमत प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 46. माँग की लोच मापने की कुल व्यय विधि समझाएँ।
उत्तर: माँग की लोच को मापने की कुल व्यय विधि (Total outlay method to measure the elasticity of demand)- इस विधि के अन्तर्गत कीमत परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तु एवं होने वाले कुल व्यय पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता हैं इस विधि से केवल यह ज्ञात किया जा सकता है कि माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर है, इकाई से अधिक है अथवा इकाई से कम। इस प्रकार इस विधि के अनुसार माँग की लोच तीन प्रकार की होती है- (i) इकाई से अधिक लोचदार, (ii) इकाई के बराबर लोच तथा (iii) इकाई से कम लोचदार माँग।

  • इकाई से अधिक लोचदार मांग (Greater than unit)- जब कीमत के कम होने पर कुल व्यय बढ़ता है और उसके बढ़ने पर कुल व्यय घटता है तब माँग की लोच इकाई से अधिक होती है।
  • इकाई के बराबर लोच (Unitary elastic)- जब कीमत में परिवर्तन होने पर कुल व्यय स्थिर रहता है, तब माँग की लोच इकाई के बराबर होती है।
  • इकाई से कम लोचदार मांग (Less than unit)- जब कीमत बढ़ने से कुल व्यय बढ़ना है और कीमत के कम होने पर कुल व्यय घटता है तो उस समय माँग की लोच इकाई से कम होती है।

प्रश्न 47. माँग के नियम की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर: माँग के नियम की विशेषताएँ (Characteristics of law.of demand)-

  • माँग के नियम के अनुसार किसी वस्तु की कीमत और माँग की गई मात्रा में विपरीत संबंध होता है।
  • यह नियम माँग में परिवर्तन की दिशा का बोध कराता है, न कि उसकी मात्रा में परिवर्तन का।
  • इस नियम के अनुसार कीमत और माँग में आनुपातिक संबंध नहीं है।
  • यह नियम वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उसकी माँगी गई मात्रा पर प्रभाव बताता है, न कि माँग में परिवर्तन का वस्तु की कीमत पर।

प्रश्न 48. माँग के नियम के मुख्य अपवाद लिखें।
उत्तर: माँग के नियम के मुख्य अपवाद (Exceptions to the law of demand)- माँग के नियम के मुख्य अपवाद निम्नलिखित हैं-

  • घटिया वस्तएँ (Inferior Goods)- प्रायः घटिया वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होता। घटिया वस्तुओं की माँग उनकी कीमत गिरने से कम हो जाती है।
  • दिखावे की वस्तुएँ (Prestigious Goods)- माँग का नियम प्रतिष्ठामूलक वस्तुओं जैसे-हीरे-जवाहरात तथा अन्य वस्तुएँ जैसे कीमती वस्त्र, ए. सी., कार आदि पर लागू नहीं होता।
  • अनिवार्य वस्तुएँ (Essential Goods)- अनिवार्य वस्तुएँ जैसे अनाज, नमक, दवाई आदि पर माँग का नियम लागू नहीं होता।
  • फैशन (Fashion)- फैशन में आने वाली वस्तुओं पर भी माँग का नियम लागू नहीं होता।

प्रश्न 49. मांग की कीमत लोच का एकाधिकारी, वित्तमंत्री तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
(i) एकाधिकारी के लिए महत्त्व (Importance for Monopolist)- एकाधिकारी वस्तु की कीमत का निर्धारण वस्तु की मांग की लोच के आधार पर करता है। यदि वस्तु की मांग लोचदार है तो वह नीची कीमत निर्धारित करेगा। इसके विपरीत यदि माँग बेलोचदार है तो एकाधिकारी ऊँची कीमत निर्धारित करेगा।

(ii) वित्त मंत्री या सरकार के लिए महत्त्व (Importance for Finance Minister or Government)- सरकार अधिकतर उन वस्तुओं पर कर लगाती है जिनकी माँग बेलोचदार होती है ताकि अधिक से अधिक आगम गप्त हो सके। इसके विपरीत लोचदार वस्तुओं पर कर लगाने से उनकी माँग कम हो जाती है जिससे सरकार को करों के रूप में कम आगम प्राप्त हो सकती है।

(iii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्व (Importance in International Trade)- जिन वस्तुओं की माँग बेलोचदार है उनके लिए एक देश अन्य देशों से अधिक कीमत ले सकता है।

प्रश्न 50. व्यक्तिगत माँग वक्र तथा बाजार माँग वक्र में क्या अन्तर बताएं।
उत्तर: व्यक्तिगत माँग वक्र तथा बाजार माँग वक्र में अन्तर (Difference between individual demand curve and market demand curve)- व्यक्तिगत माँग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु की मांगी गई मात्राओं को प्रकट करता है। इसके विपरीत बाजार माँग वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं द्वारा मांगी गई मात्राओं को प्रकट करता है। बाजार माँग वक्र को व्यक्तिगत वक्रों के समस्त जोड़ के द्वारा खींचा जाता है।

प्रश्न 51. माँग की आय लोच समझाइये।
उत्तर: माँग की आय लोच से अभिप्राय इस बात को माप करने से है. कि उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँगी गई मात्रा में कितना परिवर्तन होता है। माँग की आय लोच को मापने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 8
Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 9
यहाँ ∠Q = माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
ΔY = माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
Y = प्रारम्भिक परिवर्तन
Q = प्रारम्भिक माँग

माँग की आय लोच की तीन श्रेणियाँ हैं-

  • ऋणात्मक,
  • धनात्मक तथा
  • शून्य।

प्रश्न 52. उत्पादन फलन की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर: उत्पादन फलन की विशेषतायें-

  • उत्पादन के साधन एक दूसरे के स्थानापन्न हैं अर्थात् एक या कुछ साधनों में परिवर्तन होने पर कुल उत्पादन में परिवर्तन हो जाता है।
  • उत्पादन के साधन एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात् चारों साधनों के संयोग से ही उत्पादन होता है।
  • कुछ साधन विशेष वस्तु के उत्पादन के लिये विशिष्ट होते हैं।

प्रश्न 53. आय विधि से सम्बन्धित सावधानियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर: आय विधि से संबधित सावधानियाँ ये हैं-

  • गैर-कानूनी ढ़ग से कमाई गयी आय (जैसे-तस्करी, कालाबाजारी, जुआ, चोरी, डाका, आदि से प्राप्त आय) पर
  • हस्तारण आय (जैसे-छात्रवृति, वृद्धावस्था पेंशन, बेकारी भत्ता आदि) को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करना चाहिए।
  • स्व उद्योग के लिए उत्पादन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए।
  • निगम कर लाभ का एक अंग है। अतः इसे अलग से राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 54. राष्ट्रीय आय को व्यय विधि से कैसे मापा जाता है ?
उत्तर: राष्ट्रीय आय की विभिन्न विधियों में व्यय विधि भी एक है। राष्ट्रीय आय को व्यय विधि से निम्न रूप से मापा जा सकता है-

व्यय विधि:
‘निजी अंतिम उपयोग व्यय + सरकारी अंतिम अपयोग – सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष करं – मूल्य ह्रास।
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आया
= राष्ट्रीय आय।

प्रश्न 55. मुद्रा की विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: व्यापार में विभिन्न पक्षों के बीच मुद्रा विनिमय या भुगतान के माध्यम का काम करती है। भुगतान का काम लोग किसी भी वस्तु से कर सकते हैं परन्तु उस वस्तु में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए। कोई भी वस्तु अलग-अलग समय काल एवं परिस्थितियों में अलग हो सकती है। जैसे पुराने समय में लोग विनिमय के लिए कौड़ियों, मवेशियों, धातुओं अन्य लोगों के ऋणों का प्रयोग करते थे। इस प्रकार के विनिमय में समय एवं श्रम की लागत बहुत ऊँचीहोती थी। विनिमय के लिए मुद्रा को माध्यम बनाए जाने में समय एवं श्रम की लागत की बचत, होती है। आदर्श संयोग तलाशने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने से व्यापार प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

प्रश्न 56. वस्त एवं सेवा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: वस्तु एवं सेवा में निम्नलिखित अन्तर हैं-
वस्तु:

  1. वस्तु भौतिक होती है अर्थात् वस्तु का आकार होता है। उसे छू सकते हैं।
  2. वस्तु के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में अन्तर पाया जाता है।
  3. वस्तु का भविष्य के लिए भण्डारण कर सकते हैं।
  4. उदाहरण-मेज, किताब, वस्त्र आदि।

सेवा:

  1. सेवा अभौतिक होती है। वस्तु सेवा का कोई आकार नहीं होता है। उसे छू नहीं सकते हैं।
  2. सेवा का उत्पादन एवं उपभोग काल एक ही होता है।
  3. सेवा का भविष्य के लिए भण्डारण नहीं कर सकते हैं।
  4. उदाहरण-डॉक्टर की सेवा, अध्यापक की सेवा।

प्रश्न 57. मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा की भूमिका बताइए।
उत्तर: मूल्य की इकाई एवं भुगतान का माध्यम लेने के बाद मुद्रा मूल्य के भण्डार का कार्य भी सहजता से कर सकती है। मुद्रा का धारक इस बात से आश्वस्त होता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मालिक उनके बदले मुद्रा को स्वीकार कर लेते हैं। अर्थात् मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण मुद्रा का धारक उसके बदले कोई भी वांछित चीज खरीद सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में कार्य करती है।

मुद्रा के अतिरिक्त स्थायी परिसंपत्तियों जैसे भूमि, भवन एवं वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे बचत, ऋण पत्र आदि में भी मूल्य संचय का गुण होता है और इनसे कुछ आय भी प्राप्त होती है। परन्तु इनके स्वामी को इनकी देखभाल एवं रखरखाव की जरूरत होती है, इसमें मुद्रा की तुलना में कम तरलता पायी जाती है और भविष्य में इनका मूल्य कम हो सकता है। अतः मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में अन्य चीजों से बेहतर है।

प्रश्न 58. नकद साख पर चर्चा कीजिए।
उत्तर: ग्राहक की साख सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक द्वारा ग्राहक के लिए उधार लेने की सीमा के निर्धारण को नकद साख कहते हैं। बैंक का ग्राहक तय सीमा तक की राशि का प्रयोग कर सकता है। इस राशि का प्रयोग ग्राहक को आहरण क्षमता से तय किया जाता है। आहरण क्षमता का निर्धारण ग्राहक की वर्तमान परिसंपत्तियों के मूल्य, कच्चे माल के भण्डार, अर्द्धनिर्मित एवं निर्मित वस्तुओं के भण्डारन एवं हुन्डियों के आधार पर किया जाता है। ग्राहक अपने व्यवसाय एवं उत्पादक गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों पर . अपना कब्जा करने की कार्यवाही शुरू कर सकता है। ब्याज केवल प्रयुक्त ब्याज सीमा पर चुकाया जाता है। नकद साख व्यापार एवं व्यवसाय संचालन में चिकनाई का काम करती है।

प्रश्न 59. मुद्रा की आपूर्ति क्या होती है ?
उत्तर: मुद्रा रक्षा में सभी प्रकार की मुद्राओं के योग को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। मुद्रा की आपूर्ति में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

  • मुद्रा की आपूर्ति एक स्टॉक है। यह किसी समय बिन्दु के उपलब्ध मुद्रा की सारी मात्रा को दर्शाता है।
  • मुद्रा के स्टॉक से अभिप्राय जनता द्वारा धारित स्टॉक से है। जनता द्वारा धारित स्टॉक समस्त स्टॉक से कम होता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा की आपूर्ति के चार वैकल्पिक मानों के आँकड़े प्रकाशित (M1, M2, M3, M4) है।

जहाँ M1 = जनता के पास करेन्सी+जनता की बैंकों में माँग जमाएँ
M2 = M + डाकघरों के बचत बैंकों में बचत जमाएँ
M3 = M2 + बैंकों की निबल समयावधि योजनाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठन की सभी जमाएँ।

प्रश्न 60. समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: अर्थशास्त्र का वह भाग जिसमें समूची अर्थव्यवस्था से संबंधित विभिन्न योगों या औसतों का अध्ययन किया जाता है, समष्टि अर्थशास्त्र कहलाता है। उदाहरण के लिए, कुल रोजगार, राष्ट्रीय आय, कुल उत्पादन, कुल निवेश, कुल उपभोग, कुल बचत, समग्र माँग, समग्र पूर्ति, सामान्य कीमत स्तर, मजदूरी स्तर, लागत, संरचना, स्फीति, बेरोजगारी, भुगतान शेष, विनिमय दरें, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियाँ आदि समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। दूसरे शब्दों में, इसे योगमूलक अर्थशास्त्र (Aggregative ecomomics) भी कहा जाता है जो विभिन्न योगों के बीच आपसी संबंधों, उनके निर्धारण एवं उनमें उतार-चढ़ाव के कारणों की जाँच करता है। इस प्रकार, समष्टि का संबंध समूची अर्थव्यवस्था के कार्यव्यवहार से होता है।

प्रश्न 61. वस्तु विनिमय की कठिनाइयाँ लिखिए।
उत्तर: वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कठिनाइयाँ है-

  • इस प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापने की कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती. है। अतः वस्तु विनिमय लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में एक बाधा है।
  • आवश्यकताओं का दोहरा संयोग विनिमय का आधार होता है। व्यवहार में दो पक्षों में हमेशा एवं सब जगह परस्पर वांछित संयोग का तालमेल होना बहुत मुश्किल होता है।
  • स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई होती है। दो पक्षों के बीच सभी लेन-देनों का निपटारा साथ के साथ होना मुश्किल होता है अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों के संबंध में वस्तु की किस्म, गुणवत्ता, मात्रा आदि के संबंध में असहमति हो सकती है।

प्रश्न 62. भारत में नोट जारी करने की क्या व्यवस्था है ?
उत्तर: भारत में नोट जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था कहा जाता है। जारी की गई मुद्रा के लिए न्यूनतम सोना व विदेशी मुद्रा सुरक्षित निधि में रखी जाती है।

प्रश्न 63. भारत में मुद्रा की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर: भारत में मुद्रा की पूर्ति करते हैं-

  • भारत सरकार।
  • केन्द्रीय बैंक
  • व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 64. वाणिज्य बैंक कोषों का अन्तरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर: वाणिज्य बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन राशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों, जैसे-चेक, ड्राफ्ट, विनिमय, बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

प्रश्न 65. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: 2 अक्टूबर 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए। इनका कार्यक्षेत्र एक राज्य के या दो जिले तक सीमित रखा गया। ये छोटे और सीमित किसानों, खेतिहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु-उद्योगों, वाणिज्य, व्यापार तथा अन्य क्रियाओं के विकास में सहयोग करते हैं। .

प्रश्न 66. श्रम विभाजन व विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है ?
उत्तर: श्रम विभाजन एवं विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में लोग अभीष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 67. कीमत नम्यता वस्तु बाजार में सन्तुलन कैसे बनाए रखती है ?
उत्तर: कीमत नम्यता (लोचनशीलता) के कारण वस्तु व सेवा बाजार में सन्तुलन बना रहता है। यदि वस्तु की माँग, आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है अर्थात् अतिरेक माँग की स्थिति पैदा हो जाती है तो वस्तु बाजार में कीमत का स्तर अधिक होने लगता है। कीमत के ऊँचे स्तर पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा उत्पादक वस्तु आपूर्ति अधिक मात्रा में करते हैं। वस्तु की कीमत में वृद्धि उस समय तक जारी रहती है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है। नीची को माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति कम करते हैं। माँग व पूर्ति में परिवर्तन वस्तु की माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है।

प्रश्न 68. वास्तविक मजदूरी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: श्रमिक अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाओं के प्रतिफल के रूप में कुल जितनी उपयोगिता प्राप्त कर सकते हैं उसे वास्तविक मजदूरी कहते हैं। दूसरे शब्दों में श्रमिक की अपनी आमदनी से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता को वास्तविक मजदूरी कहते हैं। वास्तविक मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की मौद्रिक मजदूरी एवं कीमत स्तर से होता है। वास्तविक मजदूरी एवं मौद्रिक मजदूरी में सीधा संबंध होता है अर्थात् ऊँची मौद्रिक मजदूरी दर पर वास्तविक मजदूरी अधिक होने की संभावना होती है। वास्तविक मजदूरी व कीमत स्तर में विपरीत संबंध होता है। कीमत स्तर अधिक होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थात् वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 69. मजदूरी-कीमत नभ्यता की अवधारणा समझाइए।
उत्तर: मजदूरी-कीमत नम्यता का आशय है कि मजदूरी व कीमत में लचीलापन। वस्तु-श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन होने पर मजदूरी दर व कीमत में स्वतंत्र रूप से. परिवर्तन को मजदूरी-कीमत नम्यता कहा जाता है। श्रम बाजार में श्रम की माँग बढ़ने से मजदूरी दर बढ़ जाती है तथा श्रम की माँग कम होने से श्रम की मजदूरी दर कम हो जाती है। इसी प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत माँग कम होने से कीमत घट जाती है। मजदूरी कीमत नम्यता के कारण श्रम एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 70. व्यष्टि स्तर एवं समष्टि स्तर उपयोग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर: व्यष्टि स्तर पर उपभोग उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है जिन्हें विशिष्ट समय एवं विशिष्ट कीमत पर परिवार खरीदते हैं। व्यष्टि स्तर पर उपभोग वस्तु की कीमत, आय एवं संपत्ति, संभावित आय एवं परिवारों की रूचि अभिरूचियों पर निर्भर करता है।

समष्टि स्तर पर केन्ज ने मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की रचना की है। केन्ज के अनुसार अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है लोग अपना उपभोग बढ़ाते हैं परन्तु उपभोग में वृद्धि की दर राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर से कम होती है। आय के शून्य स्तर पर स्वायत्त उपभोग किया जाता है। स्वायत्त उपभोग से ऊपर प्रेरित निवेश उपभोग प्रवृति एवं राष्ट्रीय आय के स्तर से प्रभावित होता है।
C = C¯¯¯¯ + by
जहाँ C उपभोग, C¯¯¯¯ स्वायत्त निवेश, b सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, y राष्ट्रीय आय।

प्रश्न 71. वितरण फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर: प्रत्येक सरकार की एक राजकोषीय नीति होती है। राजकोषीय नीति के माध्यम से प्रत्येक सरकार समाज में आय के वितरण में समानता या न्याय करने की कोशिश करती है। सरकार से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 72. निजी व सार्वजनिक वस्तुओं में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर: निजी एवं सार्वजनिक वस्तुओं में दो मुख्य अन्तर होते हैं जैसे-

  • निजी वस्तुओं का उपयोग व्यक्तिगत उपभोक्ता तक सीमित होता है लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी विशिष्ट उपभोक्ता तक सीमित नहीं होता है, ये वस्तुएँ सभी उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है।
  • कोई भी उपभोक्ता जो भुगतान देना नहीं चाहता या भुगतान करने की शक्ति नहीं रखता निजी वस्तु के उपभोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग से किसी को वंचित रखने का कोई तरीका नहीं होता है।

प्रश्न 73. सार्वजनिक उत्पादन एवं सार्वजनिक बन्दोबस्त में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: सार्वजनिक बन्दोबस्त (व्यवस्था) से अभिप्राय उन व्यवस्थाओं से है जिनका वित्तीयन सरकार बजट के माध्यम से करती है। ये सभी उपभोक्ताओं को बिना प्रत्यक्ष भुगतान किए मुफ्त में प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन सरकार प्रत्यक्ष रूप से भी कर सकती है अथवा निजी क्षेत्र से खरीदकर भी इनकी व्यवस्था की जा सकती है।

सार्वजनिक उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं सेवाओं से है जिनका उत्पादन सरकार द्वारा संचालित एवं प्रतिबंधित होता है। इसमें निजी या विदेशी क्षेत्र की वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यवस्था की अवधारणा सार्वजनिक उत्पादन से भिन्न है।

प्रश्न 74. राजकोषीय नीति के प्रयोग बताएँ।
उत्तर: General Theory of Income, Employment, Interest and Money में जे० कीन्स ने राजकोषीय नीति के निम्नलिखित प्रयोग बताएँ हैं-

  • इस नीति का प्रयोग उत्पादन-रोजगार स्थायित्व के लिए किया जा सकता है। व्यय एवं कर नीति में परिवर्तन के द्वारा सरकार उत्पादन एवं रोजगार में स्थायित्व पैदा कर सकती है।
  • बजट के माध्यम से सरकार आर्थिक उच्चावचनों को ठीक कर सकती है।

प्रश्न 75. राजस्व बजट और पूँजी बजट का अन्तर क्या है ?
उत्तर: राजस्व बजट : सरकार की राजस्व प्राप्तियों एवं राजस्व के विवरण को राजस्व बजट कहते हैं।
राजस्व प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) कर राजस्व एवं (ii) गैर कर राजस्व।
राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किए गए खर्चों का विवरण है।

राजस्व बजट में वे मदें आती हैं जो आवृत्ति किस्म की होती हैं और इन्हें चुकाना नहीं पडता है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

पूँजी बजट : सरकार की पूँजी प्राप्तियों एवं पूँजी व्यय के विवरण को पूँजी बजट कहते हैं।
पूँजी प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है :
(i) ऋण प्राप्तियाँ एवं (ii) गैर ऋण प्राप्तियाँ।

पूँजी व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के लिए पूँजी निर्माण पर किये गये व्यय को दर्शाता है।
पूँजी घाटा = पूँजीगत व्यय – पूँजीगत प्राप्तियाँ
पूँजीगत राजस्व सरकार के दायित्वों को बढ़ाता व पूँजीगत व्यय से परिसंपत्तियों का अर्जन होता है।

प्रश्न 76. सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करें।
उत्तर: सार्वजनिक व्यय का तीन वर्गों में बाँटते हैं-
(i) राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यय- राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किया गया व्यय होता है। इस व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है।

पूँजीगत व्यय भूमि, यंत्र-संयंत्र आदि पर किया गया निवेश होता है। इस व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण होता है।

(ii) योजना व्यय एवं गैर योजना व्यय- योजना व्यय में तात्कालिक विकास और निवेश : ममें शामिल होती हैं। ये मदें योजना प्रस्तावों के द्वारा तय की जाती है। बाकी सभी खर्च गैर योजना व्यय होते हैं।

(iii) विकास व्यय तथा गैर विकास व्यय- विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर-विभागीय उद्यमों के गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, सरकार द्वारा गैर विभागीय उद्यमों एवं स्थानीय निकायों को प्रदत ऋण भी शामिल किए जाते हैं।
गैर-विकास व्यय में प्रतिरक्षा, आर्थिक अनुदान आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 77. खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव बताइए।
उत्तर: खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • अर्थव्यवस्था में जितना अधिक खुलापन होता है. गुणक का मान उतना कम होता है।
  • अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा खुली होती है व्यापार शेष उतना ज्यादा घाटे वाला होता है।

खुली अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को जन्म देती है। खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक का प्रभाव उत्पाद व आय पर कम होता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का अधिक खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए कम लाभप्रद या कम आकर्षक होता है।

प्रश्न 78. विदेशी मदा की पर्ति को समझाइए।
उत्तर: एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती है उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं।

विदेशी विनिमय की पूर्ति को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं-

  • निर्यात दृश्य व अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं।
  • विदेशों द्वारा उस देश में निवेश।
  • विदेशों से प्राप्त हस्तांतरण भुगतान।

विदेशी विनिमय की दर तथा आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। ऊँची विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की अधिक आपूर्ति होती है।

प्रश्न 79. विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था पर चर्चा करें।
उत्तर: विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। परन्तु इस व्यवस्था में स्थिर घोषित विनिमय दर के दोनों ओर 10 प्रतिशत उतार-चढ़ाव मान्य होने चाहिए। इससे सदस्य देश अपने भुगतान शेष के समजन का काम आसानी से कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी देश का भुगतान शेष घाटे का है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस देश को अपनी मुद्रा की दर 10 प्रतिशत तक घटाने की छूट होनी चाहिए। मुद्रा की दर कम होने पर दूसरे देशों के लिए उस देश की वस्तुएँ एवं सेवाएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे विदेशों में उस देश की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है और उस देश को विदेशी मुद्रा पहले से ज्यादा प्राप्त होती है।

प्रश्न 80. चालू खाते व पूँजीगत खाते में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: चालू खाते व पूँजीगत खाते में निम्नलिखित अंतर है-
चालू खाता:

  1. भुगतान शेष के चालू खाते में वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात व आयात शामिल करते हैं।
  2. भुगतान शेष के चालू खाते के शेष का एक देश की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश का चालू खाते का शेष उस देश के पक्ष में होता है तो उस देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।

पूँजी खाता:

  1. भुगतान शेष के पूँजी खातों में विदेशी ऋणों का लेन-देन, ऋणों का भुगतान व प्राप्तियाँ, बैकिंग पूँजी प्रवाह आदि को दर्शाती है।
  2. भुगतान शेष का देश की राष्ट्रीय आय का प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है ये केवल परिसम्पतियों की मात्रा को दर्शाते हैं।

प्रश्न 81. भुगतान शेष की संरचना के पूँजी खाते को समझाएँ।
उत्तर: पूँजी खातों में दीर्घकालीन पूँजी के लेन-देन को दर्शाया जाता है। इस खाते में निजी व सरकारी पूँजी लेन-देन, बैंकिंग पूँजी प्रवाह में अन्य वित्तीय विनिमय दर्शाए जाते हैं।

पँजी खाते की मदें : इस खाते की प्रमुख मदें निम्नलिखित है-
(i) सरकारी पूँजी का विनिमय : इससे सरकार द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण तथा विदेशों को दिए गए ऋणों के लेन-देन, ऋणों के भुगतान तथा ऋणों की स्थितियों के अलावा विदेशी मुद्रा भण्डार, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भंडार विश्व मुद्रा कोष के लेन-देन आदि को दर्शाया जाता है।

(ii) बैंकिंग पंजी : बैंकिंग पूँजी प्रवाह में वाणिज्य बैंकों तथा सहकारी बैंकों की विदेशी लेनदारियों एवं देनदारियों को दर्शाया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक के पूँजी प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं।

(iii) निजी ऋण : इसमें दीर्घकालीन निजी पूँजी में विदेशी निवेश ऋण, विदेशी जमा आदि को शामिल करते हैं। प्रत्यक्ष पूँजीगत वस्तुओं का आयात व निर्यात प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 82. वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसकी क्या कमियाँ हैं ?
उत्तर: वस्तु विनिमय वह प्रणाली होती है जिसमें वस्तुओं व सेवाओं का विनिमय एक-दूसरे के लिए किया जाता है उसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ है-

  • वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापन करने के लिए एक सामान्य इकाई का अभाव। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में लेखे की कोई सामान्य इकाई नहीं होती है।
  • दोहरे संयोग का अभाव- यह बड़ा ही विरला अवसर होगा जब एक वस्तु या सत्र के मालिक को दूसरी वस्तु या सेवा का ऐसा मालिक मिलेगा कि पहला मालिक जो देना चाहता है और बदले में लेना चाहता है दूसरा मालिक वही लेना व देना चाहता है।
  • स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई- वस्तु विनिमय में भविष्य के निर्धारित सौदों का निपटारा करने में कठिनाई होती है। इसका मतलब है वस्तु के संबंध में, इसकी गुणवत्ता व मात्रा आदि के बारे में दोनों पक्षों में असहमति हो सकती है।
  • मूल्य में संग्रहण की कठिनाई- क्रय शक्ति के भण्डारण का कोई ठोस उपाय वस्तु विनिमय प्रणाली में नहीं होता है क्योंकि सभी वस्तुओं में समय के साथ घिसावट होती है तथा उनमें तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण निम्न स्तर का होता है।

प्रश्न 83. मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है ?
उत्तर: एक व्यक्ति भूमि, बॉण्ड्स. मुद्रा आदि के रूप में धन को धारण कर सकता है। अर्थव्यवस्था में लेन देन एवं सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग के योग मुद्रा की कुल माँग कहते हैं। सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग का ब्याज की दर के साथ उल्टा संबंध होता है। जब ब्याज की दर ऊँची होती है तब सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऊँची ब्याज पर सुरक्षित आय बढ़ने की आशा हो जाती है। परिणामस्वरूप लोग सट्टा उद्देश्य के लिए जमा की गई मुद्रा की निकासी करके उसे बाँड्स में परिवर्तित करने की इच्छा करने लगता है। इसके विपरीत जब ब्याज दर घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती है तो लोग सट्टा उद्देश्य के लिए मद्रा की माँग असीमित रूप से बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 84. एकाधिकार तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में क्या अन्तर है ?
उत्तर: एकाधिकार प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में निम्नलिखित अंतर हैं-
एकाधिकार प्रतियोगिता:

  • एकाधिकार बाजार को उस स्थिति को प्रकट करता है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है संक्षेप में एकाधिकार का ऊर्जा है सभी प्रकार की प्रतियोगिता का अभाव। इस बाजार में फर्म ही उद्योग है और उद्योग ही फर्म है।

एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता:

  • एकाधिकार प्रतियोगिता वह स्थिति है, जिसमें मिलती-जुलती वस्तुओं के विक्रेता होता है। प्रत्येक विक्रेता की वस्तु अन्य विक्रेताओं से किसी-न-किसी रूप से भिन्न-भिन्न होती है।

प्रश्न 85. सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: संतुलन कीमत-संतुलन कीमत वह कीमत है जिसपर माँग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं। या जहाँ क्रेताओं की खरीद या बिक्री एक-दूसरे के समान होती है। संतुलन मात्रा-संतुलन मात्रा वह मात्रा होती है जिसपर माँग की मात्रा तथा पूर्ति की मात्रा दोनों बराबर होती है।

प्रश्न 86. वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष को दूर करने में किस प्रकार सहायक होती है ?
उत्तर: मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनियम की कमियाँ निम्न रूप से दूर हो जाती है-

  • विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग को तलाशने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। दोहरे संयोग को तलाशने में प्रयुक्त ऊर्जा व समय की बचत होती है।
  • लेखे का इकाई के रूप में मुद्रा का प्रयोग होने पर वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को मापने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  • मूल्य संचय के लिए मुद्रा के प्रयोग से धन व सम्पति संग्रह करने में कठिनाई समाप्त हो जाती है।
  • स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मुद्रा का प्रयोग करने से माँग गुणवता आदि के संबंध में कोई असहमति नहीं होती है।

प्रश्न 87. अपूर्ण रोजगार तथा अति पूर्ण रोजगार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: अपूर्ण रोजगार संतुलन- अपूर्ण रोजगार की स्थिति से तात्पर्य संतुलन की उस स्थिति से है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल माँग उसकी पूर्ति के बराबर नहीं होती है। इस स्थिति में सभी योग्य स्वस्थ व्यक्तियों को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं।

अतिपूर्ण रोजगार संतुलन- अतिपूर्ण रोजगार की स्थिति से तात्पर्य संतुलन की उस स्थिति से है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल माँग उनकी पूर्ति के बराबर होती है। इस स्थिति में सभी योग्य स्वस्थ व्यक्तियों को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 88. निवेश गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: निवेश गुणांक का सीमांत उपयोग प्रवृति (MPC) से प्रत्यक्ष संबंध है। MPS के बढ़ने पर निवेश गुणांक बढ़ता है तथा कम होने पर कम होता है।

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