Bihar Board 12 political science notes | समकालीन विश्व में सुरक्षा
Bihar Board 12 political science notes | समकालीन विश्व में सुरक्षा
(SECURITY IN CONTEMPORARY WORLD)
याद रखने योग्य बातें
• समकालीन विश्व : सामान्यतः द्वितीय विश्वयुद्ध के बार की दुनिया को समकालीन
विश्व कहा जाता है।
• राष्ट्र के केन्द्रीय मूल्य : प्रभुसत्ता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना।
• विश्व की लगभग कुल आबादी : सात अरब लोग।
• सारकार के समक्ष युद्ध स्थिति के तीन विकल्प : 1. आत्मसमर्पण करना, 2. दूसरे
पक्ष की बात बिना युद्ध किए मान लेना, 3. युद्ध से होने वाली हानि को बढ़ाने के संकेत
देना कि शत्रु पक्ष डरकर आक्रमण करने से बाज आ जाए।
• सुरक्षा के क्षेत्र में अवरोध : राष्ट्र की सुरक्षा नीति का संबंध युद्ध की आकांक्षा को रोकना
अवरोध कहलाता है।
• शंक्ति संतुलन : आपात स्थिति को ध्यान में रखते हुए युद्ध की स्थिति आने पर अपने
संभावित शत्रु से टक्कर लेने के लिए पहले ही अन्य राष्ट्रों का सहयोग प्राप्त करके उसे
अपने पक्ष में बनाए रखना शक्ति संतुलन कहलाता है ताकि शत्रु को ईंट का जवाब पत्थर
से दिया जा सके।
• गठबंधन : यह प्रारंभिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। गठबंधन में अनेक देश
शामिल होते हैं और वह सैन्य आक्रमण को रोकने या उससे रक्षा करने के लिए उचित
कदम उठाते हैं।
• पारंपरिक धारणा के अनुसार आंतरिक सुरक्षा : देश के अंदर कानून और व्यवस्था
बनाए रखना ताकि लोगों की जान माल और सम्मान की रक्षा की जा सके।
• न्याय-युद्ध : सीमिति हिंसा का प्रयोग अथवा आत्मरक्षा के लिए ही युद्ध करना या दूसरों
को जनसंहार से बचाने के लिए युद्ध करना।
• निशस्त्रीकरण : हथियारों के निर्माण या उनको हासिल करने पर अंकुश लगाना।
• अस्त्र नियंत्रण : कुछ विशेष हथियारों के प्रयोग से परहेज करना।
• सी० डब्ल्यू० सी० (CWC): केमिकल विपन्स कन्वेंशन (रसायन हथियार सम्मेलन) यह
सम्मेलन 1992 में हुआ इनके प्रयोग पर पाबंदी लगा दी गई।
• बी० डब्ल्यू. सी० (BWC): बायोलॉजिकल वीमन्स कन्वेन्शन। (यह कन्वेशन 1972 में
जैविक हथियारों के प्रयोग को रोकने के लिए संधि के रूप में सामने आई। इनके प्रयोग
पर पाबंदी लगा दी गई।
• ग्लोबल वार्मिंग (Global worming) : वैश्विक ताप में वृद्धि।
• मानवता की सुरक्षा : यानि संपूर्ण विश्व की सुरक्षा।
• एड्स से सर्वाधिक प्रभावित महाद्वीप : अफ्रीका।
• एड्स से प्रभावित दूसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र : दक्षिणी एशिया।
• द्विपक्षीय : दो राष्ट्रों के मध्य।
एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षापयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. परंपरागत सुरक्षा नीति के कौन-कौन तत्त्व हैं? [B.M. 2009A]
(क) शक्ति-संतुलन
(ख) गठबंधन की. राजनीति
(ग) सामूहिक सुरक्षा
(घ) उपर्युक्त सभी उत्तर-(घ)
2. किस अमेरिकी राष्ट्रपति ने नयी विश्व व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत किया? [B.M.2009A]
(क) रिचर्ड निक्सन
(ख) जिम्मी कार्टर
(ग) रोनाल्ड रीगन
(घ) जार्ज बुश उत्तर-(घ)
3. परमाणु-अप्रसार संधि पर किस देश ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं? [B.M.2009AJ
(क) ईरान
(ख) उत्तरी कोरियन
(ग) भारत
(घ) चीन उत्तर-(ग)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. सुरक्षा क्या है? (What is Security?)
उत्तर-सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी। मानव का अस्तित्व और किसी देश
का जीवन खतरों से भरा होता है। तब क्या इसका मतलब यह है कि हर तरह के खतरे को सुरक्षा पर खतरा माना जाय?
2. सुरक्षा से जुड़े केन्द्रीय मूल्यों (या चीजों) का उल्लेख कीजिए।
Mention central values (or things) related with Security.
उत्तर-सुरक्षा के केन्द्रीय मूल्य (Central Values or things of Security)-आदमी
जब भी अपने घर से बाहर कदम निकालता है तो उसके अस्तित्व अथवा जीवनयापन के तरीकों
को किसी न किसी अर्थ में खतरा जरूर होता है। यदि हमने खतरे का इतना व्यापक अर्थ लिया
तो फिर हमारी दुनिया में हर घड़ी और हर जगह सुरक्षा के ही सवाल नजर आयेंगे।
इसी कारण जो लोग सुरक्षा विषयक अध्ययन करते हैं उनका कहना है कि केवल उन चीजों
को ‘सुरक्षा’ से जुड़ी चीजों का विषय बनाया जाय जिनसे जीवन के ‘केन्द्रीय मूल्यों’ को खतरा
हो। तो फिर सवाल उठता है कि किसके केन्द्रीय मूल्य? क्या पूरे देश के ‘केन्द्रीय मूल्य’? आम
स्त्री-पुरुषों के केन्द्रीय मूल्य? क्या नागरिकों की नुमाइंदगी करने वाली सरकार हमेशा ‘केन्द्रीय
मूल्यों का वही अर्थ ग्रहण करती है जो कोई साधारण नागरिक?
3. किसी सरकार के समक्ष युद्ध की स्थिति में जो तीन विकल्प होते हैं उनका उल्लेख
कीजिए।
Mention those three alternative which come before “Government due to
War situations.”
उत्तर-बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं-
(i) युद्ध छिड़ने पर स्थिति को देखते हुए शत्रु के सामने हथियार डालना या आत्मसमर्पण करना।
(ii) विरोधी पक्ष की बात को बिना युद्ध किए ही मान लेना। (iii) विरोधी पक्ष को डराने के लिए
ऐसे संकेत देना यदि वह युद्ध छेड़ेगा अथवा बंद करेगा तो वह (सरकार) अपने सहयोगियों अथवा कदमों से ऐसे विनाशकारी कदम उठाएगी जिन्हें सुनकर हमलावर बाज आए तो अपनी रक्षा करने के लिए ऐसे हथियारों का प्रयोग करना कि शत्रु तुरंत पीछे हट जाए या पराजित हो जायें।
4. सुरक्षा नीति का संबंध किससे होता है? इसे क्या कहा जाता है? इसे रक्षा कव कहा जाता।
With whom security policy is related? What term is used for it? When does is called defence?
उत्तर-युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की
नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की
आशंका को रोकने में होता है जिसे ‘अपरोध’ कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा
उसको समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है।
5. युद्ध का क्या अर्थ है? यह क्या देता है?
What do you mean by the term War? What is given by War?
उत्तर-युद्ध का अर्थ है-विनाश। युद्ध देता है-सभी को विध्वंस, मृत्यु, आपात, जन
धन, हानि पीछे छोड़ देता है विकलांग, विधवाएँ, अनाथ बच्चे, भय, भयंकर बीमारियाँ और कई
बार तो शहरों, गाँवों और लोगों का नामोनिशान भी मिटा देता है। युद्ध वस्तुतः किसी को सुरक्षा
नहीं देता।
6. सुरक्षा की दृष्टि से संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या स्थिति है? समझाइए।
What is the position of United Nations from the point of view of Security? Explain.
उत्तर-किसी देश के भीतर हिंसा के खतरों से निपटने के लिए एक जानी-पहचानी व्यवस्था
होती है-इसे सरकार कहते हैं। लेकिन, विश्व-राजनीति में ऐसी कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं जो सबके
ऊपर हो। यह सोचने का लालच हो सकता है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ ऐसी सत्ता है अथवा ऐसा बन
सकता है। बहरहाल, फिलहाल अपनी बनावट के अनुरूप संयुक्त राष्ट्रसंघ अपने सदस्य देशों का
दास है और इसके सदस्य देश जितनी सत्ता इसको सौंपते और स्वीकारते हैं उतनी ही सत्ता इसे
हासिल होती है। अत: विश्व-राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी
होती है।
7. मानव अधिकारों से आप क्या समझते हैं? संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों के
घोषणा-पत्र को कव स्वीकृति दी?
What do you understand by Human Rights? When did the United Nations
give its acceptance to the Human Rights?
उत्तर-मानव अधिकार उन अधिकारों को कहते हैं जो कि प्रत्येक मनुष्य को मानव होने के
नाते अवश्य ही मिलने चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र को 10 दिसंबर, 1948 ई. को स्वीकृति दी
और प्रत्येक देश की सरकार से यह आशा की कि वह अपने नागरिकों को यह अधिकार प्रदान
करेगी।
8. किन्हीं पाँच मानव अधिकारों के नाम लिखिए।
Write the names of any five Human Rights.
उत्तर-मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र में 20 मानव अधिकारों की सूची सम्मिलित है जिनमें
से कुछ महत्त्वपूर्ण अधिकार निम्नलिखित हैं-
(1) जीवन की सुरक्षा व स्वतंत्रता का अधिकार।
(2) दासता व बंधुआ मजदूरी से स्वतंत्रता का अधिकार।
(3) स्वतंत्र न्यायपालिका से न्याय प्राप्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार।
(4) विवाह करने व पारिवारिक जीवन का अधिकार।
(5) कहीं भी आने-जाने व घूमने-फिरने की स्वतंत्रता का अधिकार।
9. 10 दिसंबर, 1948 ई. की तिथि का क्या महत्त्व है?
What is the importance of the Date 10th December 1948?
उत्तर-10 दिसंबर, 1948 ई. संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में एक बहुत महत्त्वपूर्ण दिन माना
जाता है क्योंकि इसी दिन संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने ‘मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र’ (Charter of Human Rights) स्वीकार किया था। इस घोषणा-पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सरकारों से यह अपेक्षा की गई थी कि वे अपने नागरिकों के अधिकारों का आदर करेंगी। मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी मनुष्यों को मानव होने के नाते अवश्य मिलने चाहिए। 10 दिसंबर का दिन संपूर्ण विश्व के देशों में मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
10. ‘परमाणु युद्ध और उसके प्रभाव’ का संक्षिप्त विवरण लिखें।
Briefly describe the Atomic War and its effects.
उत्तर-(1) परमाणु अस्त्र न केवल युद्ध में लड़ने वाले देशों का बल्कि मानव मात्र का
विनाश कर सकते हैं।
(2) यदि सभी देशों की शक्ति इकट्ठी कर दें, जिनके पास परमाणु बम हैं, तो वह शक्ति
इतनी होगी कि सारे विश्व को कई बार नष्ट किया जा सकता है।
(3) वैज्ञानिकों का विचार है कि यदि परमाणु बम का प्रयोग किया गया तो बम गिरने से
रेडियोधर्मिता के बादल इतनी तेजी से उठेंगे कि सुदूर स्थानों में रहने वाले करोड़ों लोग भी मारे
जा सकते हैं।
(4) यदि विश्व में परमाणु युद्ध हुआ, तो पूरी मानव जाति नष्ट हो जाएगी।
11. मानवीय अधिकारों को लागू करने में कौन-सा मूल विचार निहित है?
What is the basic idea behind the enforcing Human Rights?
उत्तर-मानवीय अधिकारों को लागू करने के पीछे मूल विचार यह है कि सभी राष्ट्रों को
मनुष्यों के मध्य पाया जाने वाला हर प्रकार का अन्यायपूर्ण भेदभाव समाप्त करना चाहिए। जातीय भेदभाव से दोषपूर्ण कोई भी समाज न्यायपूर्ण समाज नहीं कहला सकता है।
12. सामाजिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
What do you mean by the term Social Rights?
उत्तर-इनमें मुख्य रूप से ये अधिकार शामिल हैं-(i) विवाह करने और घर बसाने का
अधिकार। (ii) कुटुंब समाज की प्राथमिक इकाई है, जिसे राज्य और समाज का पूर्ण संरक्षण मिले।
(iii) शिक्षा का अधिकार। कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी। शिक्षा का लक्ष्य
मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना जगाना है।
13. मानव अधिकारों में सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
Mention Cultural Rights out of the Human Rights.
उत्तर-प्रत्येक मनुष्य को समाज में सांस्कृतिक जीवन में मुक्त रूप से भाग लेने, कलाओं
का आनंद लेने और वैज्ञानिक प्रगति के फायदों में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है।
घोषणा-पत्र के अंत में यह भी कहा गया है कि ”प्रत्येक व्यक्ति का उस समुदाय के प्रति
कर्तव्य है, जिसमें उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव है” नैतिकता सार्वजनिक व्यवस्था और
जनकल्याण की दृष्टि से इन स्वतंत्रताओं के प्रयोग पर मर्यादाएँ लगाई जाएंँगी।
14. वैश्विक तापवृद्धि विश्व में किस प्रकार खतरा उत्पन्न करता है? उदाहरण दीजिए।
Increase in temperature or golbal warming caused danger in the World
Give an example.
उत्तर-वैश्विक ताप वृद्धि (Global warming) विश्व के अनेक भागों में भौगोलिक खतरों
को उत्पन्न करता है।
उदाहरण-वैश्विक तापवृद्धि से अगर समुद्रतल 1.5-2.0 मीटर ऊँचा उठता है तो बीच का 20 प्रतिशत हिस्सा डूब जाएगा: कमोबेश पूरा मालदीव सागर में समा जाएगा और थाइलैंड
की 50 फीसदी आबादी को खतरा पहुंँचेगा।
15. ‘विश्व-स्तर पर शरणार्थी समस्या’ पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
Write a brief note on the Refugee problem at a Would Level.
उत्तर-विश्व का शरणार्थी-मानचित्र विश्व के संघर्ष-मानचित्र से लगभग हू-ब-हू मेल खाता
है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में सशस्त्र संघर्ष और युद्ध के कारण लाखों लोग शरणार्थी बने
और सुरक्षित जगह की तलाश में निकले हैं। 1990 से 1995 के बीच सत्तर देशों के मध्य कुल
93 युद्ध हुए और इसमें लगभग साढ़े 55 लाख लोग मारे गये। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति,
परिवार और कभी-कभी पूरे समुदाय को सर्वव्याप्त भय अथवा अजीविका, पहचान और जीवनयापन के परिवेश के नाश के कारण जन्मभूमि छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। युद्ध और शरणार्थियों के प्रवास के आपसी रिश्ते पर नजर डालने से पता चलता है कि सन् 1990 के दशक में कुल 60 जगहों से शरणार्थी प्रवास करने को मजबूर हुए और इसमें तीन को छोड़कर शेष सभी के मूल में सशस्त्र संघर्ष था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. किसी देश की सुरक्षा, आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है।’
इस कथन को समझाते हुए बताइए कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विश्व की दो महान
शक्तियों ने अपनी सीमाओं के बाहर खतरों पर ध्यान क्यों केन्द्रित किया?
‘Security of a country depends on internal peace and law and order.’
Explaining this statement, discuss why did the two super powers of the
world concentred their attraction on outside side boundaries security?
उत्तर-(1) पारंपरिक धारणा के अनुसार किसी देश की सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून
व्यवस्था पर अवलंबित होती है। अगर किसी देश के भीतर रक्तपात हो रहा हो अथवा होने की
आशंका हो तो वह देश सुरक्षित कैसे हो सकता है? यह बाहर के हमलों से निपटने की तैयारी
कैसे करेगा जबकि खुद अपनी सीमा के भीतर सुरक्षित नहीं है? इसी कारण सुरक्षा की परंपरागत धारणा का जरूरी अंदरूनी सुरक्षा से भी है।
(2) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया तो इसका कारण
यही था कि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त
थे। हमने पहले कहा था कि संदर्भ और स्थिति को नजर में रखना जरूरी है। आंतरिक सुरक्षा
एतिहासिक रूप से सरकारों का सरोकार बनी चली आ रही थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ऐसे हालात और संदर्भ सामने आये कि आंतरिक सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं कम महत्त्व की चीज बन गई।
(3) सन् 1945 के बाद ऐसा जान पड़ा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अपनी
सीमा के अंदर एकीकृत और शांति संपन्न हैं। अधिकांश यूरोपीय देशों, खासकर ताकतवर पश्चिमी मुल्कों के सामने अपनी सीमा के भीतर बसे समुदायों अथवा वर्गों से कोई गंभीर खतरा नहीं था। इस कारण इन देशों ने अपना ध्यान सीमापार के खतरों पर केन्द्रित किया।
2. ‘शक्ति-संतुलन’ क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?
What is ‘Balance of Power’? How could a state achieve this?
[ NCERT T.B.Q.7]
उत्तर-(1) परंपरागत सुरक्षा-नीति तत्त्व और है। इसे शक्ति-संतुलन कहते है। कोई भी
अपने अड़ोस-पड़ोस में देखने पर पाता है कि कुछ मुल्क छोटे हैं तो कुछ बड़े। इससे इशारा
किया जाता है कि भविष्य में किस देश से उसे खतरा हो सकता है। मिसाल के लिए कोई पड़ोसी
संभव है यह न कहे कि वह हमले की तैयारी में जुटा है। हमले का कोई प्रकट कारण भी नहीं जान पड़ता हो। फिर भी यह देखकर कि कोई देश बहुत ताकतवर है यह भांपा जा सकता है कि भविष्य में वह हमलावर हो सकता है इस वजह से हर सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति-संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है।
(2) कोई सरकार दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए
जी-तोड़ कोशिश करती है। जो देश नजदीक हों, जिनके साथ अनबन हो या जिन देशों के साथ
अतीत में लड़ाई हो चुकी हो उनके साथ शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करने पर खास तौर पर
जोर दिया जाता है। शक्ति-संतुलन बनाये रखने की यह कवायद ज्यादातर अपनी सैन्य-शक्ति
बढ़ाने की होती है लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य-शक्ति का यही आधार है।
3. आतंकवाद सुरक्षा के लिए परंपरागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरंपरागत
खतरे की श्रेणी में?
Is terrorism come under traditional dangers or under non-traditional
dangers?
उत्तर-(1) आतंकवाद अपरंपरागत श्रेणी में आता है। आतंकवाद का आशय राजनीतिक
खून-खराबे से है जो जान-बूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं।
(2) कोई राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापंसद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग अथवा
बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आतंकित करने के लिए नागरिकों
को निशाना बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों
अथवा संघर्षों में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है।
(3) आतंकवाद के चिर-परिचित उदाहरण हैं विमान-अपहरण अथवा भीड़ भरी जगहों जैसे
रेलगाड़ी, होटल, बाजार या ऐसी ही अन्य जगहों पर बम लगाना। सन् 2001 के 11 सितंबर को
आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला बोला। इस घटना के बाद से दूसरे मुल्क
और वहाँ की सरकारें आतंकवाद पर ज्यादा ध्यान देने लगी हैं बहरहाल, आतंकवाद कोई नयी
परिघटना नहीं है। गुजरे वक्त में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएं मध्यपूर्व, यूरोप, लातिनी
अमेरिका और दक्षिण एशिया में हुई।
4. तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में
क्या अंतर है?
What are the differences in the threats that people in the Third World face and those living in the First World face? [NCERT T.B.Q.4)
उत्तर-(i) तीसरी दुनिया से हमारा अभिप्राय जापान को छोड़कर संपूर्ण एशियाई अफ्रीकी
और लैटिन अमेरिकी देशों से है। इन देशों के सामने विकसित देशों की जनता के सामने आने
वाले मौजूदा खतरों से बड़ा अंतर है।
(ii) विकसित देशों से हमारा अभिप्राय प्रथम दुनिया और द्वितीय दुनिया के देशों से है। प्रथम
दुनिया के देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पश्चिमी यूरोप के
अधिकांश देश आते हैं जबकि दूसरी दुनिया में प्रायः पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और अधिकतर पूर्वी यूरोप के देश शामिल किए जाते हैं।
(iii) तीसरी दुनिया के देशों के सामने बाह्य सुरक्षा का खतरा तो है ही लेकिन उनके सामने
आंतरिक खतरे भी बहुत हैं। उन्हें बाहरी खतरों में विदेशी बड़ी शक्तियों के वर्चस्व का खतरा होता है। वे देश उन्हें अपनी सैन्य सर्वस्व, राजनैतिक विचारधारा के वर्चस्व और आर्थिक सहायता सशर्त देने के वर्चस्व से डराते रहते हैं। प्रायः बड़ी शक्तियाँ उनके पड़ोसी देशों के आतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके या मनमानी कठपुतली सरकारें बनाकर उनसे मनमाने तरीके से तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरे पैदा करते रहते हैं जैसे अपरोक्ष रूप से वह आतंकवाद को बढ़ावा देकर या मनमानी कीमतों पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति या अपने हित के लिए ही उदारीकरण, मुक्त
व्यापार, वैश्वकरण, सशर्त निवेश आदि के द्वारा आंतरिक आर्थिक खतरे जैसे कीमतों की बढ़ोतरी, बेरोजगारी में वृद्धि, निर्धनता, आर्थिक विषमता को प्रोत्साहन देकर, उन्हें निम्न जीवन स्तर की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से धकेलकर नए-नए खतरे पैदा करते हैं।
(iv) तीसरी दुनिया के सामने आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू और अन्य महामारियाँ भी खतरा
बनकर आती हैं। इन देशों में प्राय: पारस्परिक घृणा, संकीर्ण भावनाओं के कारण उत्पन्न होती रहती है। जैसे धार्मिक उन्माद, जाति भेद-भाव पर आधारित आंतरिक दंगों का खतरा, महिलाओं और बच्चों का निरंतर बढ़ता हुआ यौवन और अन्य तरह का शोषण, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि से भी इन देशों में खतरा उत्पन्न होता रहता है। कई बार बड़ी शक्तियाँ इन देशों में सांस्कृतिक शोषण और पाश्चात्य सांस्कृतिक ऐसे मूल्यों को बढ़ावा देती हैं जिनके कारण उनकी पहचान और संस्कृति खतरे में आ सकती है।
(v) यहाँ तक विकसित राष्ट्रों का प्रश्न है उनके सामने अपनी परमाणु बमों के वर्चस्व को
बनाए रखना और विश्व की अन्य शक्तियों को नई परमाणु शक्ति बनने से रोकना है। दूसरी और
पहली दुनिया के देश चाहते हैं कि नाटो बना रहे लेकिन वारसा जैसा कोई सैन्य संगठन भूतपूर्व
साम्यवादी देश पुन: न गठित करने पाए।
(vi) विकसित देश यह भी चाहते हैं कि सभी देश मुक्त व्यापार, उदारीकरण और वैश्वीकरण
को अपनाए, सभी तेल उत्पादक राष्ट्र उन्हें उनकी इच्छानुसार ठीक-ठाक कीमतों पर निरंतर तेल
की सप्लाई करते रहें और उनके प्रभाव में रहें।
(vii) विकसित देश यह चाहते हैं कि वह आतंकवाद अथवा तथाकथित इस्लामिक धर्माधता
के पक्षधर आतंकवादियों से निपटने के लिए न केवल वे सभी परस्पर सहयोग करें अपितु तीसरी
दुनिया के सभी देश भी उनके साथ रहें।
(viii) विकसित देश चाहते हैं कि एड्स, बर्ड फ्लू जैसी सभी नई महामारियों को रोकने में
किसी भी प्रकार की ढिलाई नहीं हो और कोई भी राष्ट्र रासायनिक हथियार, जैविक हथियार न
बनाए और संयुक्त राष्ट्र संघ में भी केवल पाँच स्थायी शक्तियों की विशेष स्थिति बनी रहे और
अंतर्राष्ट्रीय मंच या क्षेत्रीय संगठन अथवा अतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या विश्व बैंक उनके मार्ग-दर्शन
के अनुसार ही चलते हुए राष्ट्रों को ऋण दें ताकि अधिकांश उनकी बहुराष्ट्रीय निगमों को वर्चस्व
और एकाधिकार विश्व स्तर में बना रहे। वे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उभरती हुई शक्तियों जैसे चीन,
भारत आदि के प्रभाव से भी चिंतित हैं।
5. भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों है? तीन कारण बताकर स्पष्ट
कीजिए।
Why is India a staunch supporter of the Human Rights? Explain by giving
three reasons.
उत्तर-I. मानव अधिकार ऐसे अधिकारों को कहते हैं जो कि प्रत्येक मनुष्य को पहचान देने
के नाते अवश्य ही प्राप्त होने चाहिए।
II. भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है। इसके तीन प्रमुख कारण अग्रलिखित
हैं-(1) भारत का यह मानना है कि आधुनिक युग में कोई भी स्वतंत्र व लोकतांत्रिक देश मानव
अधिकारों के बिना न तो प्रगति कर सकता है और न ही उस देश में शांति स्थापित कर सकती
है। (2) मानव अधिकार ऐसे अधिकार हैं जो कि मानव की उन्नति व प्रगति के लिए अति आवश्यक व महत्त्वपूर्ण है। (3) भारत विश्व शांति तथा मानवता के उत्थान में विश्वास रखता है। इसलिए यह मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है।
6. प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में क्यों
मनाया जाता है?
What is December 10th celebrated all once the World every Year as Human Rights Day:
उत्तर-10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में “मानव अधिकार दिवस” के रूप में इसलिए मनाया
जाता है क्योंकि 10 दिसंबर, 1948 ई. को “मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र” (Charter of
Human Rights) स्वीकार किया था। इस घोषणा-पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की
सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नागरिकों के अधिकारों का आदर करेंगी। मानव
अधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी मनुष्यों को मानव होने के नाते मिलने ही चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक व सामाजिक परिषद् ने 1946 ई. में मानव अधिकारों की समस्या
के बारे में एक आयोग की नियुक्ति की। आयोग ने 1948 ई. में अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की
महासभा को प्रदान की और संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 ई. को मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र को स्वीकृति दे दी जिसमें 20 मानव अधिकारों की एक सूची का वर्णन किया गया था। अत: प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस मनाकर प्रत्येक देश की सरकार को यह याद दिलाया जाता है कि वे अपने नागरिकों को उन्नति व विकास के लिए मानव अधिकार प्रदान करें।
7. निरस्त्रीकरण शब्द को स्पष्ट कीजिए।
Explain the term “Disarmament”.
उत्तर-निरस्त्रीकरण का अर्थ है कि मानवता का संहार करने वाले अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण
बंद हो व आणविक शस्त्रों पर प्रतिबंध लगे। विश्व के अनेक देशों ने अणुबम तथा हाइड्रोजन बम
बना लिए हैं और कुछ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति को दिन-प्रतिदिन खतरा बढ़ रहा है। एक देश द्वारा बनाए गए संहारक शस्त्रों का उत्तर दूसरा देश अधिक विनाशक शस्त्रों का निर्माण करके देता है। भारत प्रारंभ से ही निरस्त्रीकरण के पक्ष में रहा है। इस दृष्टि से संसार में होने वाले किसी भी सम्मेलन का भारत ने स्वागत किया है। 1961 ई. में भारत ने अणुबम न बनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा में रखा था। जेनेवा में होने वाले निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंत में हम यह कह सकते हैं कि निरस्त्रीकरण में ही विश्व का कल्याण निहित है।
8. निरस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है? कोई दो कारण बताइए।
Why is Dis-armament necessary? Give two reasons.
उत्तर-आधुनिक युग में निरस्रीकरण बहुत आवश्यक है। इसके दो कारण निम्नलिखित
(1) अणु व परमाणु बमों जैसे भयानक अस्त्र-शस्त्रों के बनने व प्रतिदिन उनमें बढ़ोतरी होने
से विश्व-शांति खतरे में पड़ गई है। तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
विश्व के अधिकतर विद्वानों का यह मत है कि यदि घातक हथियारों के बनाने व उनके जमा करने
की क्रिया पर रोक न लगाई गई तो इसके परिणामस्वरूप मानव सभ्यता का अस्तित्व ही खतरे में
पड़ जाएगा।
(2) घातक हथियारों का निर्माण केवल खतरनाक ही नहीं है बल्कि अधिक महँगा भी है।-
नए-नए अस्त्र बनाने की होड़ में प्रति वर्ष अरबों रुपए व्यय किए जाते हैं। उदाहरण 1980 ई. में
विश्व के सब देशों ने मिलकर शस्त्रास्त्रों पर जो धन व्यय किया वह था 6 हजार करोड़ रुपए। यह
धन अनुत्पादक कार्यों पर व्यय हुआ। यदि शस्त्रास्त्रों के निर्माण के कुछ धन बचाया जा सके तो
उसी धन को भूखों, निर्धनों तथा बीमारों के लाभ के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
9. सुरक्षा के परंपरागत परिप्रेक्ष्य में बताएँ कि अगर किसी राष्ट्र पर खतरा मँडरा रहा
हो तो उसके सामने क्या विकल्प होते हैं?
What are the choice able to a state when its security is threatened,
according to the traditional security perspective?
उत्तर-(i) अधिकतर हमारा सामना सुरक्षा की पारंपरिक अर्थात् राष्ट्रीय सुरक्षा की धारणा से
होता है। सुरक्षा की पारंपरिक अवधारणा में सैन्य खतरे को किसी देश के लिए सबसे ज्यादा
खतरनाक माना जाता है। इस खतरे का स्रोत कोई दूसरा मुल्क होता है जो सैन्य हमले की धमकी देकर संप्रभुता, स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखंडता जैसे किसी देश के केन्द्रीय मूल्यों के लिए खतरा पैदा करता है। सैन्य कार्यवाही से आम नागरिकों के जीवन को भी खतरा होता है।
(ii) शायद ही कभी ऐसा होता हो कि किसी युद्ध में सिर्फ सैनिक घायल हों अथवा मारे जायें।
आम स्त्री-पुरुषों को भी युद्ध में हानि उठानी पड़ती है। अक्सर निहत्थे और आम औरत-मर्दो को
जंग का निशाना बनाया जाता है; उनका और उनकी सरकार का हौसला तोड़ने की कोशिश होती है।
(iii) बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते
हैं-आत्मसमर्पण करना तथा दूसरे पक्ष की बात को बिना युद्ध किए मान लेना अथवा युद्ध से
होने वाले नाश को इस हद तक बढ़ाने के संकेत देना कि दूसरा पक्ष सहमकर हमला करने से बाज आये या बुद्ध ठन जाय तो अपनी रक्षा करना ताकि हमलावर देश अपने मकसद में कामयाब न हो सके और पीछे हट जाए अथवा हमलावर को पराजित कर देना।
(iv) युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की नीति
के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा नीति का संबंध युद्ध की आशंका
को रोकने में होता है जिसे ‘अपरोध’ कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको
समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है।
10. सैन्य गठबंधन के क्या उद्देश्य होते हैं? किसी ऐसे सैन्य गठबंधन का नाम बताएँ
जो अभी मौजूद है। इस गठबंधन के उद्देश्य भी बताएँ।
What are the objectives of military alliances? Give an example of a
functioning military alliance with its specific objectives.
[NCERT T.B.Q.8]
उत्तर-(i) गठबंधन में कई देश शामिल होते हैं और सैन्य हमले को रोकने अथवा उससे
रक्षा करने के लिए समवेत कदम उठाते हैं। अधिकांश गठबंधनों को लिखित संधि के एक औपचारिक रूप मिलता है और ऐसे गठबंधनों को यह बात बिल्कुल स्पष्ट रहती है कि खतरा किससे है। किसी देश अथवा गठबंधन की तुलना में अपनी ताकत का असर बढ़ाने के लिए देश गठबंधन बनाते हैं।
(ii) नाटो (NATO) एक बहुत शक्तिशाली गठबंधन है जो आज भी मौजूद है। इस गठबंधन
के उद्देश्य संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में सभी अमेरिकी और पश्चिमी यूरोपीय देशों की
सामूहिक सैन्य सुरक्षा को बनाए रखना और पश्चिमी देशों के सैन्य, वैचारिक, सांस्कृतिक और
आर्थिक वर्चस्व को बनाए रखना है। यह किसी भी अपने मित्र देश या उन देशों को जो उन्हें तेल
इत्यादि प्राकृतिक संसाधन प्रदान करते हैं उन्हें अपने राजनैतिक और आर्थिक हितों के अनुकूल
बनाए रखने के लिए अपनी मनपसंद सरकार और राजनैतिक व्यवस्था बनाए रखने के भी इच्छुक हैं। वे किसी अन्य देश को वहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने या राजनैतिक व्यवस्था को उनके प्रतिकूल बनाने की इजाजत किसी कीमत पर नहीं देना चाहते।
(iii) गठबंधन राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन
भी बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सन् 1980 के दशक में सोवियत
संघ के खिलाफ इस्लामी उग्रवादियों को समर्थन दिया लेकिन ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व में
अल-कायदा नामक समूह के आतंकवादियों ने जब 11 सितंबर, 2001 के दिन उस पर हमला
किया तो उसने इस्लामी उग्रवादियों के खिलाफ मोर्चा खोला दिया।
(iv) सुरक्षा की परंपरागत धारणा में माना जाता है कि किसी देश की सुरक्षा को ज्यादातर
खतरा उसकी सीमा के बाहर से होता है। इसकी वजह है अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था। इस निर्मम मैदान
में ऐसी कोई केन्द्रीय ताकत नहीं जो देशों के व्यवहार-बर्ताव पर अंकुश रखने में सक्षम हो। किसी
देश के भीतर हिंसा के खतरों से निपटने के लिए एक जानी-पहचानी व्यवस्था होती है-इसे
सरकार कहते हैं। लेकिन, विश्व-राजनीति में ऐसी कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं जो सबके ऊपर हो।
(v) यह सोचने का लालच हो सकता है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ ऐसी सत्ता है अथवा ऐसा बन
सकता है। बहरहाल, फिलहाल अपनी बनावट के अनुरूप संयुका राष्ट्रसंघ अपने सदस्य देशों का दास है और इसके सदस्य देश जितनी सत्ता इसको सौंपते और स्वीकारते हैं उतनी ही सत्ता इसे हासिल होती है। अतः विश्व-राजनीति में हर देश को अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी खुद उठानी
होती है।
11. पर्यावरण के तेज नुकसान से देशों की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपने तर्कों की पुष्टि करें।
Rapid environmental degradation is causing a serious threat to security.
Do you agree with the statement? Substantiate your arguments.
[NCERT T.B.Q.9]
उत्तर-पर्यावरण के तेज नुकसान से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। हम
इस कथन से पूर्णत: सहमत हैं। अपने निर्णय की पुष्टि से हम अग्र तर्क दे सकते हैं-
(i) विश्व की आबादी निरंतर बढ़ रही है। वह सात सौ करोड़ के आंकड़े को पहले ही पार
कर चुकी है। इस विशाल मानव समूह के लिए निवास स्थान, रोजगार के लिए नए-नए कारखानों
के निर्माण के लिए भूमि-स्थल, जल संसाधनों का अभाव अभी से महसूस किया जा रहा है। विश्व
के अनेक देशों और क्षेत्रों में वनों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण और प्राकृतिक संतुलन बिगड़
रहा है जिससे मानव की भावी पीढ़ियों के लिए भयंकर खतरा पैदा होता जा रहा है।
(ii) जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, मिट्टी, प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव स्वरूप,
सामान्य जीवन और शांत वातावरण के लिए खतरा पैदा हो गया है। समुद्रों में विकसित और
औद्योगिक राष्ट्रों द्वारा निरंतर फेंके जाने वाला कूड़ा जल में रहने वाले जीवों के जीवन के लिए
खतरा बन चुका है। अनेक राष्ट्रों को समुद्रों से मानव भोजन मिलता है और अनेक समुदाय के
लोगों को रोटी-रोजी भी समुद्र से मिलती है। समुद्र से अनेक खनिज संपदा और उपयोगी पदार्थ
प्राप्त किए जाते हैं जो औद्योगिक और यातायात विकास के लिए बहुत आवश्यक है।
12. क्या आपने ‘शांति-सेना’ के बारे में सुना है? क्या आपको लगता है कि यह
विरोधाभाषी बात है?
Have you heard about peace keeping force? Do you feel it is a controdictory thing?
उत्तर-हमने शांति सेना के बारे में कई बार दूरदर्शन
पर सुना है और समाचार-पत्रों में पढ़ा है।
हमारे विचारानुसार दिए गए कार्टून के माध्यम से यह
दिखाने का प्रयास किया गया है कि जो सैनिक शक्ति का
प्रतीक है, जिसकी पीठ पर बंदूक और युद्ध सामग्री है वह
कबूतर पर बैठा है। कबूतर को शांति का प्रतीक या शांतिदूत
माना जाता है। वस्तुत: बल के आधार पर शांति स्थापित
नहीं हो सकती यदि होगी भी तो वह अस्थायी होगी और
वह तुरंत कुछ ही समय बाद एक नए संघर्ष, तनाव या
हिंसात्मक घटनाओं को जन्म देगी।
13. सुरक्षा से जुड़े केन्द्रीय मूल्यों के स्वरूप की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
Explain briefly the nature of centre values related with Security.
उत्तर-केन्द्रीय मूल्यों का स्वरूप (Nature of centre Value)-सुरक्षा से जुड़े हुए
केन्द्रीय मूल्य हैं-राष्ट्र या उसमें रहने वाले लोगों के जीवन, संपत्ति और मान-सम्मान की रक्षा।
केन्द्रीय विषयों के साथ-साथ हम केंद्रीय मूल्यों पर मंडराते खतरों की बात कहते हैं तो यह सवाल भी उठता है कि ये खतरे कितने गहरे होने चाहिए? जो मूल्य हमें प्यारे हैं कमोबेश उन सभी को बड़े या छोटे खतरे होते हैं। क्या हर खतरे को सुरक्षा की समझ में शामिल किया जा सकता है? जब भी कोई राष्ट्र कुछ करता है अथवा कुछ करने में असफल होता है तो संभव है इससे किसी
अन्य देश के केन्द्रीय मूल्यों को हानि पहुंचती हो। जब भी राहगीर अपनी राह में लूटा जाता है तो
आम आदमी के रोजमर्रा के जीवन को क्षति पहुंचती है। फिर भी, अगर हम सुरक्षा का इतना व्यापक अर्थ करें तो हाथ-पाँव हिलाना भी मुश्किल हो जाएगा; हर जगह हमें खतरे नजर आएंँगे।
इस तरह देखें तो हम इन बातों के एक निष्कर्ष निकाल सकते हैं। सुरक्षा का रिश्ता फिर बड़े
गंभीर खतरों से है। ऐसे खतरे जिनकी रोकने के उपाय न किए गए तो हमारे केन्द्रीय मूल्यों को
अपूरणीय क्षति पहुंँचेगी।
14. ‘सुरक्षा अपने आप में भुलैयादार धारणा है।’ व्याख्या कीजिए।
‘Security is a confuring concept in its itself.’ Explain.
उत्तर-अनेक व्यक्ति यह स्वीकार करते हैं कि सुरक्षा शब्द या पद अपने आप में भुलैयादार
धारणा है। उदाहरण के लिए हम यह पूछ सकते हैं कि क्या सदियों अथवा दशकों से विभिन्न
समाजों में सुरक्षा की एकसमान धारणा चली आ रही है? ऐसा हो तो आश्चर्यजनक है क्योंकि
संसार में कितनी ही बातें रोज बदलती रहती हैं। फिर हम यह सवाल भी कर सकते हैं कि क्या
किसी खास समय में विश्व के सभी समाजों में सुरक्षा की एक जैसी धारणा रहती है? यह बात
भी हजम नहीं होती और आश्चर्यजनक लगती है कि करीब 200 मुल्कों के 7 अरब लोग सुरक्षा
की एक जैसी धारणा रखते हों? ऐसे में आपको यह जानकर कोई धक्का नहीं लगेगा कि सुरक्षा
एक विवादग्रस्त धारणा है। सुरक्षा को व्यापक रूप से समझाने के लिए हमें इसकी तीन कोटियों
(Categories) को समझना चाहिए। वे कोटियाँ या श्रेणियाँ हैं-(i) बाहरी सुरक्षा से संबंधित
खतरा उत्पन्न करने वाले कारक और उनसे निपटने के लिए पारंपरिक तरीकों को अपनाना। (ii)
आंतरिक खतरों को जानना और उनसे निपटने के लिए नीति-निर्धारण और उपाय तय करना। (iii) वे आंतरिक और बाह्य घटनाएँ जो खतरनाक कहलाई जा सकती हैं अथवा नहीं या जिन्हें मानव जीवन का सामान्य हिस्सा माना जा सकता है। उदाहरण के लिए जन संपर्क साधनों द्वारा उठाए गए मसलों या अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाए गए कुछ ऐसे मसले जो मानवाधिकारों या सामान्य मानवीय जीवन के विकास और अस्तित्व से जुड़े हों लेकिन वे किसी देश की प्रभुसत्ता, भू-क्षेत्र या समुदाय अथवा जाति-विशेष या संपूर्ण मानवजाति के लिए तुरंत बहुत ज्यादा भयंकर खतरे पैदा करने वाली न हो।
15. निर्धनता विश्व के लिए किस तरह एक खतरा है?
How is poverty a danger for the World?
उत्तर-खतरे का एक और स्रोत वैश्विक निर्धनता है। विश्व की जनसंख्या फिलहाल 6
अरब 20 करोड़ है और अगले 25 वर्षों में यह 7 से 8 अरब तक हो जाएगी। संभव है यह आंँकड़ा 9-10 अरब तक पहुँच जाये। फिलहाल विश्व की कुल आबादी-वृद्धि का 50 फीसदी सिर्फ 6 देशों-भारत, चीन, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और इंडोनेशिया में घटित हो रहा है।अनुमान है कि अगले 50 सालों में दुनिया के सबसे गरीब देशों में जनसंख्या तीन गुनी बढ़ेगी ।
जबकि इसी अवधि में अनेक धनी देशों की जनसंख्या घटेगी। प्रति व्यक्ति उच्च आय और
जनसंख्या की कम वृद्धि के कारण धनी देश अथवा सामाजिक समूहों को और धनी बनने में मदद
मिलती है जबकि प्रति व्यक्ति निम्न आय और जनसंख्या की तीव्र वृद्धि एक साथ मिलकर गरीब
देशों और सामाजिक समूहों को और गरीब बनाते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. सुरक्षा के पारंपरिक तरीके कौन-कौन-से हैं? उनमें से प्रत्येक की संक्षिप्त व्याख्या
कीजिए।
What are the traditional ways or methods of Security? Explain briefly each out of them.
उत्तर-सुरक्षा को पारंपरिक तरीके (Traditional methods of Security)-
प्रस्तावना (Introduction)-सुरक्षा की परंपरागत धारणा में स्वीकार किया जाता है कि
हिंसा का इस्तेमाल यथासंभव सीमित होना चाहिए। युद्ध के लक्ष्य और साधन दोनों से इसका संबंध है ‘न्याय-युद्ध’ की यूरोपीय परंपरा का ही यह परवर्ती विस्तार है कि आज लगभग पूरा विश्व मानता है कि किसी देश को युद्ध उचित कारणों यानी आत्म-रक्षा अथवा दूसरों को जनसंहार से बचाने के लिए ही करना चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार किसी युद्ध में युद्ध-साधनों का सीमित इस्तेमाल होना चाहिए। युद्धरत् सेना को चाहिए कि वह संघर्षविमुख शत्रु, निहत्थे व्यक्ति अथवा आत्मसमर्पण करने वाले शत्रु को न मारे। सेना को उतने ही बल का प्रयोग करना चाहिए जितना आत्मरक्षा के लिए जरूरी हो और उसे एक सीमा तक ही हिंसा का सहारा लेना चाहिए। बल प्रयोग तभी किया जाय जब बाकी उपाय असफल हो गए हों।
तरीके या विधियाँ (Measures ofMethods)-सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना
से इंकार नहीं करती कि देशों के बीच एक न एक रूप में सहयोग हो। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण
है-निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा विश्वास की बहाली।
(i) निरस्त्रीकरण (Disornaments)-निरस्त्रीकरण की मांग होती है कि सभी राज्य चाहे
उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आयें।
उदाहरण के लिए, 1972 की जैविक हथियार संधि (बॉयोलॉजिकल वीपन्स कंवेंशन BWC) तथा
1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल वीपन्स कंवेंशन-CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है। पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तख्त करने वालों में सभी महाशक्तियां शामिल हैं लेकिन महाशक्तियाँ-अमेरिका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थीं इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया।
(ii) अस्त्र नियंत्रण (Arms Control)-अस्त्र नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित
करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा-कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरुआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों को सीमित संख्या में ऐसी रक्षा-प्रणाली तैनात करने की अनुमति थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा-प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया।
(iii) संधियाँ (Treaties)-अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र-नियंत्रण की कई अन्य
संधियों पर हस्ताक्षर किए जिसमें सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि-2 (स्ट्रैटजिक आर्स लिमिटेशन
ट्रीटी-SALTII) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (स्ट्रेटजिक आर्स रिडक्शन ट्रीटी-(START)
शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी-NPT (1968) भी एक अर्थ में अस नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया। जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे या उनका परीक्षण कर लिया था उन्हें इस संधि के अंतर्गत इन हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। जो देश सन् 1967 तक ऐसा नहीं कर पाये थे उन्हें ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया। परमाणु अप्रसार संधि ने परमाण्विक आयुधों को समाप्त तो नहीं किया लेकिन इन्हें हासिल कर सकने वाले देशों की संख्या जरूर कम की।
(iv) विश्वास की बहाली (Restoring Confidence)-सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में
यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा
सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश सूचनाओं तथा
विचारों के नियमित आदान-प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि इन बलों को कहाँ तैनात किया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित
करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो
जाएँ।
निष्कर्ष (Conclusion)—कुल मिलाकर देखें तो सुरक्षा की परंपरागत धारणा मुख्य रूप
से सैन्य बल के प्रयोग अथवा सैन्य बल के प्रयोग की आशंका से संबद्ध है। सुरक्षा की पारंपरिक
धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुंचता है और सैन्य बल से ही सुरक्षा
को कायम रखा जा सकता है।
2. देशों के सामने फिलहाल जो खतरे मौजूद हैं उनमें परमाण्विक हथियार का सुरक्षा
अथवा अपरोध के लिए बड़ा सीमित उपयोग रह गया है। इस कथन का विस्तार
करें। (Nuclear weapons as deterrence or defence have limited usage against contemporary security threats to states. Explain the statement.)
[NCERT T.B.Q.10]
उत्तर-(i) सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण तीन आधार (Three important bases of
Security)-सुरक्षा की परंपरागत धारणा इस संभावना से इंकार नहीं करती कि देशों के बीच
एक न एक रूप में सहयोग हो। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है-निरस्त्रीकरण, अस्त्र-नियंत्रण तथा
विश्वास की पुनर्स्थापना या बहाली।
(ii) निरस्त्रीकरण (Disarmament)-निरस्त्रीकरण की माँग होती है कि सभी राज्य चाहे
उनका आकार, ताकत और प्रभाव कुछ भी हो, कुछ खास किस्म के हथियारों से बाज आयें।
(iii) भयंकर हथियारों के प्रयोग को रोकने के लिए संधि (Treaty efforts to stop
use of most dangerous.Weapons)-उदाहरण के लिए, 1972 की जैविक हथियार संधि
(बॉयोलॉजिकल वीपन्स कंवेंशन BWC) तथा 1992 की रासायनिक हथियार संधि (केमिकल
वीपन्स कंवेंशन- CWC) में ऐसे हथियारों को बनाना और रखना प्रतिबंधित कर दिया गया है।
पहली संधि पर 100 से ज्यादा देशों ने हस्ताक्षर किए हैं और इनमें से 14 को छोड़कर शेष ने
दूसरी संधि पर भी हस्ताक्षर किए। इन दोनों संधियों पर दस्तख्त करने वालों में सभी महाशक्तियाँ
शामिल हैं लेकिन महाशक्तियाँ-अमेरिका तथा सोवियत संघ सामूहिक संहार के अस्त्र यानी
परमाण्विक हथियार का विकल्प नहीं छोड़ना चाहती थी इसलिए दोनों ने अस्त्र-नियंत्रण का सहारा लिया।
(iv) अस्त्र-नियंत्रण (Arms Control)-अस्त्र-नियंत्रण के अंतर्गत हथियारों को विकसित
करने अथवा उनको हासिल करने के संबंध में कुछ कायदे-कानूनों का पालन करना पड़ता है। सन् 1972 की एंटी बैलेस्टिक मिसाइल संधि (ABM) ने अमेरिका और सोवियत संघ को बैलेस्टिक मिसाइलों को रक्षा-कवच के रूप में इस्तेमाल करने से रोका। ऐसे प्रक्षेपास्त्रों से हमले की शुरुआत की जा सकती थी। संधि में दोनों देशों को सीमित संख्या में ऐसी रक्षा-प्रणाली तैनात करने की अनुमति थी लेकिन इस संधि ने दोनों देशों को ऐसी रक्षा-प्रणाली के व्यापक उत्पादन से रोक दिया।
(v) दो महाशक्तियों के प्रयास (Efforts of two Super Powers)-संयुक्त राज्य
अमेरिका और सोवियत संघ ने अस्त्र-नियंत्रण की कई अन्य संधियों पर हस्ताक्षर किए जिसमें
सामरिक अस्त्र परिसीमन संधि-2 (स्ट्रैटजिक आर्स लिमिटेशन ट्रीटी-SALTII) और सामरिक अस्त्र न्यूनीकरण संधि (स्ट्रेटजिक आर्स रिडक्शन ट्रीटी-(START) शामिल हैं। परमाणु अप्रसार संधि (न्यूक्लियर नॉन प्रोलिफेरेशन ट्रीटी-NPT (1968) भी एक अर्थ में अस्त्र-नियंत्रण संधि ही थी क्योंकि इसने परमाण्विक हथियारों के उपार्जन को कायदे-कानून के दायरे में ला खड़ा किया।
(vi) नये अणु परमाणु शक्तियों पर रोकें (Check on new atomiic or Nuclear
Porwers)-जिन देशों ने सन् 1967 से पहले परमाणु हथियार बना लिये थे या उनका परीक्षण
कर लिया था उन्हें इस संधि के अंतर्गत इन हथियारों को रखने की अनुमति दी गई। जो देश सन्
1967 तक ऐसा नहीं कर पाये थे उन्हें ऐसे हथियारों को हासिल करने के अधिकार से वंचित किया गया। परमाणु अप्रसार संधि ने परमाण्विक आयुधों को समाप्त तो नहीं किया लेकिन इन्हें हासिल कर सकने वाले देशों की संख्या जरूर कम की।
(vii) विश्वास बहाली (Confidence Re-generation)-सुरक्षा की पारंपरिक धारणा में
यह बात भी मानी गई है कि विश्वास बहाली के उपायों से देशों के बीच हिंसाचार कम किया जा
सकता है। विश्वास बहाली की प्रक्रिया में सैन्य टकराव और प्रतिद्वन्द्विता वाले देश सूचनाओं तथा
विचारों के नियमित आदान-प्रदान का फैसला करते हैं। दो देश एक-दूसरे को अपने फौजी मकसद तथा एक हद तक अपनी सैन्य योजनाओं के बारे में बताते हैं। ऐसा करके ये देश अपने प्रतिद्वन्द्वी को इस बात का आश्वासन देते हैं कि उनकी तरफ से औचक हमले की योजना नहीं बनायी जा रही देश एक-दूसरे को यह भी बताते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल है। वे यह भी बता सकते हैं कि उनके पास किस तरह के सैन्य-बल हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि इन बलो को कहाँ तैनात किया जा रहा है। संक्षेप में कहें तो विश्वास बहाली की प्रक्रिया यह सुनिश्चित
करती है कि प्रतिद्वन्द्वी देश किसी गलतफहमी या गफलत में पड़कर जंग के लिए आमादा न हो
जाएँ।
उपसंहार (Conclusion)-कुल मिलाकर देखें तो सुरक्षा की परंपरागत धारणा मुख्य रूप
से सैन्य-बल के प्रयोग अथवा सैन्य-बल के प्रयोग की आशंका से संबद्ध है। सुरक्षा की पारंपरिक
धारणा में माना जाता है कि सैन्य बल से सुरक्षा को खतरा पहुंचता है और सैन्य-बल से ही सुरक्षा
को कायम रखा जा सकता है।
3. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान विभिन्न शक्तियों देशों के सामने क्या बाहरी खतरे थे?
विचार-विमर्श कीजिए।
What were the external dangerous before different power countries?
Discuss.
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विभिन्न शक्तियों/देशों के समक्ष बाहरी खतरे
(External danger before different powers/countries after the Second World War)-(i) साम्राज्यवादी देशों के सामने खतरे (Dangers before imperialists
Porver)- विश्वयुद्ध के बाद शीतयुद्ध का दौर चला और इस दौर में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के
नेतृत्व वाला पश्चिमी गुट तथा सोवियत संघ की अगुआई वाला साम्यवादी गुट एक-दूसरे के
आमने-सामने थे। सबसे बड़ी बात यह कि दोनों गुटों को अपने ऊपर एक-दूसरे से सैन्य हमले
का भय था। इसके अतिरिक्त, कुछ यूरोपीय देशों को अपने उपनिवेशों में उपनिवेशीकृत जनता
से खून-खराबे की चिंता सता रही थी। अब ये लोग आजादी चाहते थे। इस सिलसिले में हम याद
करें कि सन् 1950 के दशक में फ्रांस को वियतनाम अथवा सन् 1950 और 1960 के दशक में
ब्रिटेन को केन्या में जूझना पड़ा।
(ii) उपनिवेशों के समक्ष खतरे (Dangers before Colonies)-उपनिवेशों ने सन्
1940 के दशक के उत्तरार्द्ध से आजाद होना शुरू किया और उनके सुरक्षा-सरोकार अक्सर यूरोपीय ताकतों के समान ही थे। कुछ नव स्वतंत्र देश यूरोपीय ताकतों के समान शीतयुद्धकालीन गुटों में एक न एक के सदस्य बन गए। ऐसे में इन देशों में जोर पड़कते शीतयुद्ध की चिंता करनी थी और दूसरे खेमे में जाने वाले अपने पड़ोसी देश अथवा दूसरे गुट के नेता (संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा सोवियत संघ) से दुश्मनी ठाननी थी या अमेरिका अथवा सोवियत संघ के किसी साथी देश से वैर मोल लेना था। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जितने युद्ध हुए उसमें एक-तिहाई युद्धों के लिए शीतयुद्ध जिम्मेदार रहा। इनमें अधिकांश युद्ध तीसरी दुनिया में हुए। जिस तरह विदा होती
औपनिवेशिक ताकतों को उपनिवेशों में खून-खराबे का भय सता रहा था उसी तरह आजादी के
बाद कुछ उपनिवेशिक मुल्कों को डर था कि उनके यूरोपीय औपनिवेशिक शासक कहीं उन पर
हमला न बोल दें। ऐसे में इन मुल्कों को एक साम्राज्यवादी युद्ध से अपनी रक्षा के लिए तैयारी
करनी पड़ी।
(iii) एशियाई-अफ्रीकी राष्ट्रों के समक्ष खतरे (Dangerous before Asian and
African countries)-एशिया और अफ्रीका के नव स्वतंत्र देशों के सामने खड़ी सुरक्षा की
चुनौतियाँ यूरोपीय देशों के मुकाबले दो मायनों में विशिष्ट थीं। एक तो इन देशों को अपने पड़ोसी
देश से सैन्य हमले की आशंका थी। दूसरे, इन्हें अंदरूनी सैन्य-संघर्ष की भी चिंता करनी थी।
(क) इन देशों को सीमापर से खतरा तो था ही, खासकर पड़ोसी देशों से; साथ ही भीतर से भी खतरे की आशंका थी। अनेक नव स्वतंत्र देश संयुक्त राज्य अमेरिका या सोवियत संघ अथवा औपनिवेशिक ताकतों से कहीं ज्यादा अपने पड़ोसी देशों से आशंकित थे। इनके बीच सीमा रेखा और भू-क्षेत्र अथवा आबादी पर नियंत्रण को लेकर या एक-एक करके सभी सवालों पर झगड़े हुए।
(ख) अलग राष्ट्र बनाने पर तुले अंदर के अलगाववादी आंदोलनों से भी इन देशों को खतरा
था। कोई पड़ोसी मुल्क ऐसे अलगाववादी आंदोलन को हवा दे अथवा उसकी सहायता करे तो दो
पड़ोसी देशों के बीच तनाव की स्थिति बनती थी (विश्व के सशस्त्र संघर्षों में 95 प्रतिशत अब
आंतरिक युद्ध के अंतर्गत हैं। सन् 1946 से 1991 के बीच गृहयुद्धों की संख्या में दोगुनी वृद्धि हुई है जो पिछले 200 वर्षों में सबसे लंबी छलांग है।) इस तरह, पड़ोसी देशों से
युद्ध और आंतरिक संघर्ष नव-स्वतंत्र देशों के सामने सुरक्षा की सबसे बड़ी चुनौती थे।
4. आजकल अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पारस्परिक सहयोग को क्यों महत्त्वपूर्ण समझा
जा रहा है? समझाइए।
Explain why is mutual co-operation considered important for
International Security now a days?
उत्तर-अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और पारस्परिक सहयोग (International Security and
Mutual Security)―
(1) आज की दुनिया परस्पर बहुत समीप आ गई है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर मँडराते इन अनेक
अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए सैन्य-संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की जरूरत है। आतंकवाद से लड़ने अथवा मानवाधिकारों को बहाल करने में भले ही सैन्य-बल की कोई भूमिका हो (और यहाँ भी सैन्य-बल एक सीमा तक ही कारगर हो सकता है) लेकिन गरीबी मिटाने, तेल तथा बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति बढ़ाने, अप्रवासियों और शरणार्थियों की आवाजाही के प्रबंधन तथा महामारी के नियंत्रण में सैन्य-बल के क्या मदद मिलेगी यह कहना मुश्किल है। वस्तुतः ऐसे अधिकांश मसलों में सैन्य-बल के प्रयोग से मामला और बिगड़ेगा।
(2) ज्यादा प्रभावी यही होगा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से रणनीतियाँ तैयार की जायें। सहयोग
द्विपक्षीय (दो देशों के बीच), क्षेत्रीय, महादेशीय अथवा वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह इस
बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है और विभिन्न देश इससे निबटने के लिए कितने
इच्छुक तथा सक्षम हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर
की अन्य संस्थाएंँ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन (संयुक्त राष्ट्रसंघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक,
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि) स्वयंसेवी संगठन (एमनेस्टी इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, निजी संगठन
तथा दानदाता संस्थाएँ, चर्च और धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन, सामाजिक और विकास संगठन) व्यवसायिक संगठन और निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ (जैसे नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा) शामिल हो सकती हैं।
(3) सहयोग मूलक सुरक्षा में भी अंतिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी उन सरकारों से निबटने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे सकती है जो अपनी ही जनता हो मार रही हों, अथवा गरीबी, महामारी और प्रलयंकारी घटनाओं की मार झेल रही जनता के दुःख-दर्द की उपेक्षा कर रही हो। ऐसी स्थिति में सुरक्षा की आपरंपरिक धारणा का जोर होगा कि बल-प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से और सामूहिक रूप में किया जाए न कि कोई एक देश अंतर्राष्ट्रीय और स्वयंसेवी संगठनों समेत अन्यों की मर्जी पर कान दिए बगैर बल प्रयोग का रास्ता अख्तियार करे।
5. परंपरागत और अपारंपरिक सुरक्षा में क्या अंतर है? गठबंधनों का निर्माण करना
और उनको बनाये रखना इनमें किस कोटि में आता है?
What is the difference between traditional and non-traditional security?
Which category would the creation and sustenance of alliances belong to? [NCERT T.B.Q.3]
उत्तर- सुरक्षा की विभिन्न धारणाओं की दो कोटियों (Categories) में रखा जाता है अर्थात्
(i) सुरक्षा की पारंपरिक धारणा और (ii) सुरक्षा की आंतरिक धारणा दोनों में अंतर हैं।
गठबंधन का निर्माण और सुरक्षा कोटि (Formation of alliance and Categoryof
Security)-गठबंधन पारंपरिक सुरक्षा नीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। गठबंधन में प्राय: अनेक देश शामिल होते हैं। वे सैन्य आक्रमण को रोकने या उससे रक्षा करने के लिए उचित कदम उठाते हैं या परस्पर विचार विनिमय करके नीति-निर्धारण करते हैं। ज्यादातर गठबंधनों को लिखित-संधि में एक औपचारिक रूप मिलता है।
गठबंधनों से यह बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी जाती है कि खतरा किससे है। किसी देश या
गठबंधन की तुलना में अपनी सुरक्षा का प्रभाव बढ़ाने के लिए गठबंधन किया जाता है। गठबंधनों का आधार राष्ट्रीय हित होता है और राष्ट्रीय हितों के बदलने पर गठबंधन भी बदल जाते हैं।
6. महामारियाँ विश्व के लिए किस तरह खतरे उत्पन्न कर रही हैं? समझाइए।
Explain how epidemics are creating dangers for the World? Explain.
उत्तर-(i) एचआईवी-एड्स, बर्ड फ्लू और सार्स (सिवियर एक्यूट रेसपिरेटॅरी सिंड्रोम-
SARS) जैसी महामारियाँ अप्रवास, व्यवसाय, पर्यटन और सैन्य-अभियानों के जरिए बड़ी तेजी
से विभिन्न देशों में फैली हैं। इन बीमारियों के फैलाव को रोकने में किसी एक देश की सफलता
अथवा असफलता का प्रभाव दूसरे देशों में होने वाले संक्रमण पर पड़ता है।
(ii) अनुमान है कि 2003 तक पूरी दुनिया में 4 करोड़ लोग एचआईवी-एड्स से संक्रमित
हो चुके थे। इसमें दो-तिहाई लोग अफ्रीका में रहते हैं जबकि शेष के 50 फीसदी दक्षिण एशिया
में। उत्तरी अमेरिका तथा दूसरे औद्योगिक देशों में उपचार की नयी विधियों के कारण सन् 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध के वर्षों में एचआईवी एड्स से होने वाली मृत्यु की दर में तेजी से कमी आयी
है लेकिन अफ्रीका जैसे गरीब इलाके के लिए ये उपचार कीमत को देखते हुए आकाश-कुसुम कहे जाएँगे जबकि अफ्रीका को ज्यादा गरीब बनाने में एचआईवी-एड्स महत्त्वपूर्ण घटक साबित हुआ है।
(ii) एबोला वायरस, हैन्टावायरस और हेपेटाइटिस-सी जैसी कुछ नयी महामारियाँ उभरी हैं
जिनके बारे में जानकारी भी कुछ खास नहीं है। टीबी, मलेरिया, डेंगू बुखार और हैजा जैसी पुरानी महामारियों ने औषधि-प्रतिरोधक रूप धारण कर लिया है और इससे इनका उपचार कठिन हो गया है। जानवरों में महामारी फैलने के भारी आर्थिक दुष्प्रभाव होते हैं।
(iv) सन् 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध के सालों से ब्रिटेन ने ‘मैड-काऊ’ महामारी के भड़क
उठने के कारण अरबों डॉलर का नुकसान उठाया है और बर्ड फ्लू के कारण कई दक्षिण एशियाई
देशों को मुर्गा-निर्यात बंद करना पड़ा। ऐसी महामारियाँ बताती है कि देशों के बीच पारस्परिक
जनसंख्या घट रही है और राष्ट्रीय मीमाएँ अब पहले की तुलना में कम सार्धक रह गई है। इन महामारियों का संकेत है कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने की जरूरत है।
(v) सुरक्षा की धारणा में विस्तार करने का यह मतलब नहीं है कि हम हर तरह के कष्ट या
बीमारी को सुरक्षा विषयक चर्चा के दायरे में शामिल कर सकते हैं। अगर हम ऐसा करते हैं तो
सुरक्षा की धारणा में संगति नहीं रह जाती। ऐसे में हर चीज सुरक्षा का मसला हो सकती है। इसी
कारण किसी मसले को सुरक्षा का मसला कहलाने के लिए एक सर्व स्वीकृत न्यूनतम मानक पर
खरा उतरना जरूरी है। मिसाल के लिए, अगर किसी मसले से संदर्भी (राज्य अथवा जनसमूह)
के अस्तित्व को खतरा हो रहा हो तो उसे सुरक्षा का मसला कहा जा सकता है चाहे इस खतरे की
प्रकृति कुछ भी हो।
उपसंहार (Conclusion)-(क) मालदीव को वैश्विक तापवृद्धि से खतरा हो सकता है
क्योंकि समुद्र तल के ऊँचा उठने से इसका ज्यादातर हिस्सा डूब जाएगा जबकि दक्षिणी अफ्रीकी
देशों में एचआईवी-एड्स से गंभीर खतरा है क्योंकि यहाँ हर 6 वयस्क व्यक्ति में एक इस रोग
(बोस्तवाना की हालत सबसे बदतर है। वहाँ 3 में से एक व्यक्ति एचआई-एड्स पीड़ित है) से
पीड़ित है।
(ख) सन् 1994 में रवांडा की तुत्सी जनजाति के अस्तित्व पर खतरा मंडराया क्योंकि
प्रतिद्वन्द्वी हेतु जनजाति ने कुछ ही हफ्तों में लगभग 5 लाख तुत्सी लोगों को मार डाला। इससे
पता चलता है कि सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा भी सुरक्षा की पारंपरिक धारणा के समान स्थानीय संदर्भो के अनुकूल परिवर्तनशील है।
7. भारतीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए किस किस्म की सुरक्षा को वरीयता दी
जानी चाहिए-
पारंपरिक या अपारंपरिक? अपने तर्क की पुष्टि में आप कौन-से उदाहरण देंगे?
Looking at the Indian scenario, who type of security has been given priority in India, traditional or non-traditional? What examples could you site to substantiate the argument? [NCERT T.B.Q. 11)
उत्तर-भारतीय सुरक्षा की वरीयता (Preference of India Security)-
प्रस्तावना (Introduction)-भारत को पारंपरिक (सैन्य) और अपारंपरिक खतरों का
सामना करना पड़ा है। ये खतरे सीमा के अंदर से भी उभरे और बाहर से भी। भारत की सुरक्षा-नीति के चार बड़े घटक हैं और अलग-अलग वक्त में इन्हीं घटकों के हेर-फेर से सुरक्षा की रणनीति बनायी गई है।
(i) प्रथम घटक या कारक (Firstelement or Factor)-सुरक्षा-नीति का पहला घटक
रहा सैन्य-क्षमता को मजबूत करना क्योंकि भारत पर पड़ोसी देशों से हमले होते हैं। पाकिस्तान ने 1947-48, 1965, 1971 तथा 1999 में और चीन ने सन् 1962 में भारत पर हमला किया। दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के चारों तरफ परमाणु हथियारों से लैस देश हैं। ऐसे में भारत के परमाणु परीक्षण करने के फैसले (1998) को उचित ठहराते हुए भारतीय सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दिया था। भारत ने सन् 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया था।
(ii) दूसरा घटक या कारक (Second element or Factor)-भारत की सुरक्षा नीति
का दूसरा घटक है अपने सुरक्षा हितों को बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कायदों और संस्थाओं को
मंजबूत करना। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण (Echolocations) और निरस्त्रीकरण के प्रयासों की हिमायत की। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों में संयुक्त राष्ट्रसंघ को अंतिम पंच मानने पर जोर दिया। भारत ने हथियारों के अप्रसार के संबंध में एक सार्वभौम और बिना भेदभाव वाली नीति चलाने की पहलकदमी की जिसमें हर देश को सामूहिक संहार के हथियारों (परमाणु. जैविक, रासायनिक) से संबद्ध बराबर के अधिकार और दायित्व हों।
भारत ने नव-अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की मांँग उठायी और सबसे बड़ी बात यह कि दो
महाशक्तियों की खेमेबाजी से अलग उसने गुटनिरपेक्षता के रूप में विश्व-शांति का तीसरा विकल्प सामने रखा। भारत उन 160 देशों में शामिल है जिन्होंने 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए है। क्योटो प्रोटोकॉल में वैश्विक तापवृद्धि पर काबू रखने के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के संबंध में दिशा निर्देश बताए गए हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा की पहलकदमियों के समर्थन में भारत ने अपनी सेना संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांतिबहाली के मिशनों में भेजी है।
(iii) तीसरा घटक या कारक (Third element or Factor)-भारत की सुरक्षा रणनीति
का तीसरा घटक है देश की अंदरूनी सुरक्षा समस्याओं से निबटने की तैयारी। नगालैंड, मिजोरम
पंजाब और कश्मीर जैसे क्षेत्रों से कई उग्रवादी समूहों ने समय-समय पर इन प्रांतों को भारत से
अलगाने की कोशिश की। भारत ने राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था का पालन किया है। यह व्यवस्था विभिन्न समुदाय और जन-समूहों को अपनी शिकायतों को खुलकर रखने और सत्ता में भागीदारी करने का मौका देती है।
(iv) चौथा कारक या घटक (Fourth element or factor)-आखिर में एक बात यह
कि भारत में अर्थव्यवस्था को इस तरह विकसित करने के प्रयास किए गए हैं कि बहुसंख्यक
नागरिकों को गरीबी और अभाव से निजात मिले तथा नागरिकों के बीच आर्थिक असमानता ज्यादा न हो। ये प्रयास ज्यादा सफल नहीं हुए हैं। हमारा देश अब भी गरीब है और असमानताएँ मौजूद हैं। फिर भी, लोकतांत्रिक राजनीति से ऐसे अवसर उपलब्ध हैं कि गरीब और वंचित-नागरिक अपनी आवाज उठा सकें। लोकतांत्रिक रीति से निर्वाचित सरकार के ऊपर दबाव होता है कि वह आर्थिक संवृद्धि को मानवीय विकास का सहगामी बनाए। इस प्रकार, लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक आदर्श नहीं है; लोकतांत्रिक शासन जनता को ज्यादा सुरक्षा मुहैया कराने का साधन भी है। इस संदर्भ में भारतीय लोकतंत्र की सफलता और असफलताओं के बारे में आप एक और किताब में विस्तार से पढ़ेगे। यह किताब स्वातंत्रयोत्तर भारत की राजनीति पर केन्द्रित है।
8. विश्व स्तर पर असमानता किस प्रकार के खतरे उत्पन्न करती है? व्याख्या कीजिए।
How does inequality of world level create dangers? Explain.
उत्तर-असमानता और विश्व के लिए खतरे (Inequality and dangers for the
World)-
(i) विश्वस्तर पर यह असमानता उत्तरी गोलार्द्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से
अलग करती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में असमानता अच्छी-खासी बढ़ी है। यहाँ कुछ देशों ने
आबादी की रफ्तार को काबू में किया है और आय को बढ़ाने में सफल रहे हैं जबकि बाकी देश
ऐसा नहीं कर पाये हैं। उदाहरण के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा सशस्त्र संघर्ष अफ्रीका के सहारा
मरुस्थल के दक्षिणवर्ती देशों में होते हैं। यह इलाका दुनिया का सबसे गरीब इलाका है। 21वीं सदी के शुरुआती समय में इस इलाके के युद्धों में शेष दुनिया की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मारे
गए।
(ii) दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद गरीबी के कारण अधिकाधिक लोग बेहतर जीवन
खासकर आर्थिक अवसरों की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक मतभेद उठ खड़ा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कायदे-कानून अप्रवासी (जो अपनी मर्जी से स्वदेश छोड़ते हैं) और शरणार्थी (जो युद्ध, प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होते है) में भेद करते हैं।
(iii) सामान्यतया उम्मीद की जाती है कि कोई राज्य शरणार्थियों को स्वीकार करेगा लेकिन
उन्हें अप्रवासियों को स्वीकारने की बाध्यता नहीं होती। शरणार्थी अपनी जन्मभूमि को छोड़ते हैं
जबकि जो लोग अपना घर-बार छोड़ चुके हैं परंतु राष्ट्रीय सीमा के भीतर ही है उन्हें “आंतरिक
रूप से विस्थापित जन” कहा जाता है। सन् 1990 के दशक के शुरुआती सालों में हिंसा से बचने
के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने वाले कश्मीरी पंडित “आंतरिक रूप से विस्थापित जन” के उदाहरण हैं।
9. नीचे दिए गए कार्टून को समझें। कार्टून में युद्ध और आतंकवाद का जो संबंध दिखाया
गया है उसके पक्ष या विपक्ष में एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [NCERT T.B.Q. 12)
Read the cartoon below and write a short note in favour or against the
connection between war and terrorism depicted in thie cartoon.
उत्तर-ऊपर दिए गए कार्टून को समझने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि आजकल
युद्ध और आतंकवाद में परस्पर गहरा संबंध हो गया है। एक ओर युद्ध आतंकवाद में परस्पर गहरा संबंध हो गया है। एक ओर युद्ध आतंकवाद को कुचलने के लिए शुरू किया गया दिखाया गया है या उसका पैमाना विशाल होता हुआ दिखाया गया है तो दूसरी ओर आतंकवाद विश्व के अनेक भागों में छोटे-छोटे क्षेत्रों या भौगोलिक इकाइयों में है, वह युद्ध के भय से सोया हुआ है लेकिन अंत में वह भी मानव के विनाश के लिए एक महत्त्वपूर्ण और प्रबल कारक है। इस कार्टून के पक्ष और विपक्ष में टिप्पणी निम्न है-
(क) पक्ष में (In favour of Cartoon)-दिए गए कार्टून के रूप में यह कहा जा सकता
है कि युद्ध को प्राय: मानव विनाश के लिए बहुत बड़ा खतरा माना जाता रहा है। यह खतरा
परंपरागत है जबसे मानव पैदा हुआ है तभी से उसे युद्ध करना पड़ता है। यह युद्ध मानव को
अपने राज्य या देश या धर्म या संसाधनों की रक्षा और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए लड़ना
पड़ा। युद्ध के पक्षधर देश यह मानते हैं कि आतंकवाद को कुचलने के लिए सभी राष्ट्र एक हो
जाएँ वे तब तक युद्ध का मोर्चा खोले रहें जब तक आतंकवाद समाप्त नहीं हो जाता।
(ख) विपक्ष में तर्क (Arguments in against of the Cartoon)-आतंकवाद मानव
या विश्व सुरक्षा के लिए एक नया खतरा है यद्यपि आतंकवाद आदिकाल से चल रहा है लेकिन
वह आतंकवाद बहुत सीमित क्षेत्र तक था जो व्यक्ति या समाज शक्ति के सिद्धांत में विश्वास
करते हुए यह मानता था कि शक्ति ही ठीक है (Might is right)। वह कमजोर व्यक्ति समुदाय
या राज्य को निकल जाता था। उसे व्यक्तिगत या क्षेत्रीय स्तर पर संघर्ष या लड़ाई लड़नी होती
थी। उस समय लड़ाई या युद्ध का प्रभाव सीमित होता था। आज आतंकवाद न केवल एक देश
के लिए वरन् संपूर्ण विश्वजाति के लिए खतरा बन गया है। आतंकवादी अपनी विचारधारा-राजनैतिक या धार्मिक सिद्धांत और शिक्षाएँ अथवा प्राथमिकताएँ थोपने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। वे हथियारों का सहारा लेकर निर्दोष लोगों के मस्तिष्क और मन पर अपना प्रभाव जबरदस्ती डालकर उन्हें अपनी टोली में खींचते हैं और उन्हें प्रशिक्षण देते है और फिर छोटे बम या मानव बम अथवा संभव हो तो अधिक शक्तिशाली बम प्रयोग करने के लिए भेजते रहते हैं। धन लूटना, आतंक के भय का प्रचार-प्रसार करना, मीडिया का सहारा लेकर अपनी विचारधारा को प्रसारित करना, बड़ी-बड़ी शक्तियों या सरकारों के विरुद्ध गुरिल्ला अथवा खुले चुनौतीपूर्ण युद्धों या संघर्षों को जारी करना सर्वत्र भय के साथ-साथ प्रतिरक्षा के लिए सरकारों को गहरे जाल बिछाकर रखना या बड़ी संख्या में आंतरिक सुरक्षा का इंतजाम करने के लिए विवश करना। युद्ध का तो एक समय होता है लेकिन विश्व के वर्तमान आतंकवाद के शुरू होने और अंत होने का समय अभी तो
दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। इससे प्रायः निर्दोष महिलाएं, बच्चे, वयोवृद्ध लोग ज्यादा प्रभावित
होते हैं। आतंकवादी मानव मूल्यों करुणा आदि से कोई संबंध नहीं रखते। युद्ध भी विनाश लात
है। शांति भंग करता है। मानव जीवन और आर्थिक हानियाँ दिखाता है तो आतंकवाद मानन,
वित्तीय हानि के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक दृष्ट प्रभाव डालता है। मानव-मानव के संदेह की जर
से सदैव देखता है। कई बार आतंकवादी अपने ही समुदाय के लोगों के प्रति सर्वत्र घृणा फैलाते
हैं। वे अपने ही धर्म के अनुयायियों को जाने-अनजाने में अपनी गलत कार्यर्वाहियों का निशाना
बना देते हैं।
संक्षेप में यह कार्टून यह दिखाता है कि युद्ध की जड़ में एक अहम् कारण आतंकवाद है जो
मानव सुरक्षा के लिए एक नया सरोकार बनाए हुए है।
10. सुरक्षा की दृष्टि से खतरे के नए स्रोत लिखिए।
Write new sources of danger related with Security.
उत्तर-सुरक्षा खतरे के नए स्रोत (Nero sources of danger related with
security)-सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा के दो पक्ष हैं मानवता की सुरक्षा और विश्व सुरक्षा।
ये दोनों सुरक्षा के संदर्भ में खतरों की बदलती प्रकृति पर जोर देते हैं।
(1) आतंकवाद (Terrorism)-आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो
जान-बूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय
आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक है। कोई
राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापसंद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग अथवा बल-प्रयोग
की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आतंकित करने के लिए नागरिकों को निशाना
बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्षों में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है।
(II) उदाहरण (Example)-आतंकवाद के चिर-परिचित उदाहरण हैं विमान अपहरण
अथवा भीड़ भरी जगहों जैसे रेलगाड़ी, होटल, बाजार या ऐसी ही अन्य जगहों पर बम लगाना।
सन् 2001 के 11 सितंबर को आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला बोला। इस घटना के बाद से दूसरे मुल्क और वहां की सरकारें आतंकवाद पर ज्यादा ध्यान देने लगी हैं बहरहाल, आतंकवाद कोई नयी परिघटना नहीं है। गुजरे वक्त में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएं मध्यपूर्व, यूरोप, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एशिया में हुई।
(2) मानवाधिकार (Human Rights)-मानवाधिकारों के लिए खतरे अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा
के लिए नए स्रोतों का अंग माना जाता है। मानवाधिकार को तीन कोटियों में रखा गया है। हो
सकता है आपको लगे कि मानवाधिकारों की इससे कहीं ज्यादा कोटियाँ हो सकती हैं लेकिन इन
तीनों कोटियों से मानवाधिकार विषयक चर्चा की शुरुआत की जा सकती है। पहली कोटि राजनीतिक अधिकारों की है जैसे अभिव्यक्ति और सभा करने की आजादी। दूसरी कोटि आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की है। अधिकारों की तीसरी कोटि में उपनिवेशीकृत जनता अथवा जातीय और मूलवासी अल्पसंख्यकों के अधिकार आते हैं।
उदाहरण (Examples)-1990 के दशक से कुछ घटनाओं मसलन रवांडा में जनसंहार,
कुवैत पर इराक का हमला और पूर्वी तिमूर में इंडोनेशियाई सेना के रक्तपात के कारण बहस चल
पड़ी है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ को मानवाधिकारों के हनन की स्थिति में हस्तक्षेप करना चाहिए या
नहीं। कुछ का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का घोषणा-पत्र अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को अधिकार देता
है कि वह मानवाधिकारों की रक्षा के लिए हथियार उठाये। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी है जिनका तर्क है कि संभव है, ताकतवर देशों के हितों से यह निर्धारित होता हो कि संयुक्त राष्ट्रसंघ
मानवाधिकार उल्लंघन के किस मामले में कार्यवाही करेगा और किसमें नहीं।
★★★