bihar board 12 political | नियोजित विकास की राजनीति
bihar board 12 political | नियोजित विकास की राजनीति
(POLITICS OF PLANNED DEVELOPMENT)
याद रखने योग्य बातें
• राष्ट्र-निर्माण : भौगोलिक एकीकरण राज्य गठन एवं देश की एकता, अखण्डता
लोकतंत्रीय सरकार तथा राष्ट्र विकास।
• लोकतंत्र : वह शासन प्रणाली जिसकी अन्तिम निर्णय की सत्ता जनता में हो-लोगों की,
लोगों द्वारा तथा लोगों के लिए कार्य करने वाली सरकार।
• नियोजित विकास की राजनीति : राज्य सरकार के विकास से जुड़ी वे नीतियाँ एवं
कार्यक्रम जो नियोजित ढंग से सरकार द्वारा बनाये जायें, चलाये जायें तथा नियंत्रित किये
जायें।
• विकास : इसका अर्थ ज्यादा-से-ज्यादा आधुनिक होना और आधुनिक होने का अर्थ था,
पश्चिमी औद्योगिक देशों की तरह होना।
• पूँजीवाद : वह अर्थव्यवस्था जो उत्पादन के साधन पर पूँजीपतियों के आधिपत्य का
समर्थन करती है।
• समाजवादी : वह अर्थव्यवस्था जो उत्पादन के साधनों पर समाज/राज्य या सरकार के
अधिकार का समर्थन करती है।
• योजना आयोग : वह कमीशन (आयोग) जो देश के विकास के लिए योजनाएं बनाता
है। देश का प्रधानमंत्री इसका चेयरमैन (अध्यक्ष) होता है।
• बजट : सरकारी (या व्यक्ति विशेष या परिवार विशेष) आय-व्यय का वार्षिक ब्योरा।
• प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल : 1951 से 1956 तक।
• प्रथम पंचवर्षीय योजना का सर्वाधिक प्राथमिकता वाला क्षेत्र : कृषि क्षेत्र।
• पी०सी० महालनोविक : दूसरी पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों पर जोर देने वाली
अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों की टोली का एक नेता।
• एक महत्त्वपूर्ण भूमि सुधार : जमींदारी प्रथा का उन्मूलन।
• श्वेत क्रांति : अधिक दूध तथा उस पर आधारित श्वेत वस्तुओं के उत्पादन जैसे मक्खन,
दही, पनीर आदि में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी।
• भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण : 1967 के बाद की अवधि में 14 बैंकों का
राष्ट्रीयकरण।
एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. ‘बॉम्बे प्लान’ के वारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है?
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का ब्लू-प्रिंट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया था। [NCERT, T.B.Q.1]
उत्तर-(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
2. निम्नलिखित कथनों में कौन-से तथ्य सही हैं और कौन-से गलत?
(क) योजना आयोग की स्थापना 1950 में की गई।
(ख) मिश्रित अर्थव्यवस्था में केवल सरकार ही यह निश्चित करती है कि किन वस्तुओं का
उत्पादन किया जाये, कैसे किया जाये और किनके लिए किया जाये।
(ग) भूमि सुधार का कार्यक्रम केरल तथा पश्चिमी बंगाल में सफल रहा।
उत्तर-(i) सही, (ii) गलत, (iii) सही।
3. निम्नलिखित का मेल करें: [NCERT, T.B.Q.4]
(क) चरण सिंह (i) औद्योगीकरण
(ख) पी०सी० महालनोबिस (ii) जोनिंग
(ग) बिहार का अकाल (iii) किसान
(घ) वर्गीज कूरियन (iv) सहकारी डेयरी
उत्तर-(क) चरण सिंह (iii) किसान
(ख) पी-सी-महालनोबिस (i) औद्योगीकरण
(ग) बिहार का अकाल (ii) जोनिंग
(घ) वर्गीज कूरियन (iv) सहकारी डेयरी
4. भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में
कौन-सा विचार शामिल नहीं था? [NCERT, T.B.Q.2]
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता उत्तर-(ख)
5. भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार … ग्रहण किया गया था
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से
(ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से
(घ) किसान संगठनों की मांँगों से [NCERT,T.B.Q.3]
(i) सिर्फ ख और घ
(ii) सिर्फ घ और ग
(iii) सिर्फ घ और ग
(iv) उपर्युक्त सभी उत्तर-(iii)
6. भारत के आर्थिक विकास की योजना अर्थात् ‘बॉम्बे प्लान’ में कितने उद्योगपति
थे? [B.M. 2009A]
(क) दस
(ख) आठ
(ग) पाँच
(घ) तीन उत्तर-(ख)
7. प्रथम पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या थी? [B.M. 2009A]
(क) 1951-56
(ख) 1952-57
(ग) 1947-52
(घ) 1955-1960 उत्तर-(क)
8. भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से
कौन-सा विचार शामिल नहीं था? [B.M.2009A]
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्मनिर्भरता उत्तर-(ख)
9. हमारी नियोजन व्यवस्था किस विचारधारा पर आधारित है? [B.M. 2009A]
(क) उदारवाद
(ख) साम्यवाद
(ग) लोकतांत्रिक समाजवाद
(घ) गाँधीवाद उत्तर-(ग)
10. भारतीय योजना आयोग के अध्यक्ष होते हैं- [Board Exam. 2009A; B.M. 2009A]
(क) वित्तमंत्री
(ख) रिजर्व बैंक के गवर्नर
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) वित्त आयोग के अध्यक्ष उत्तर-(ग)
11. भारत में हरित क्रांति के जनक माने जाते हैं- [B.M. 2009A]
(क) एम. एस. स्वामीनाथन
(ख) ए. पी. जे. अब्दुल कलाम
(ग) इंदिरा गाँधी
(घ) अमर्त्य सेन उत्तर-(क)
12. भारत की विकास की योजना में प्रथम प्राथमिकता किससे संबंधित है? [B.M.2009A]
(क) उद्योग
(ख) कृषि
(ग) आधारभूत संरचना
(घ) विदेश नीति उत्तर-(ख)
13. भारतीय अर्थव्यवस्था को हम क्या कहेंगे? [B.M. 2009A]
(क) निजी अर्थव्यवस्था
(ख) पूंजीवादी अर्थव्यवस्था
(ग) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(ग)
14. एक साथ कितने निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया?
[Board Exam. 2009A; B.M. 2009A]
(क) 8
(ख) 10
(ग) 12
(घ) 14 उत्तर-(घ)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. उन कारणों/कारकों का उल्लेख कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने इस्पात उद्योग
उड़ीसा में स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा?
उत्तर-(क) इस्पात की विश्वव्यापी मांँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्त्वपूर्ण
जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था और अभी इसका दोहन
बाकी था। उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित मांँग को भुनाना चाहा।
उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात-निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र
पर हस्ताक्षर किए।
(ख) सरकार सोच रही थी कि इससे राज्य में जरूरी पूँजी-निवेश भी हो जाएगा और रोजगार
के अवसर भी बड़ी संख्या में सामने आएंँगे।
2. उड़ीसा में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना का, वहाँ के आदिवासियों ने क्यों विरोध
किया था?
उत्तर-लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित इलाकों में
हैं-खासकर इस राज्य के आदिवासी-बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है कि अगर यहाँ
उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर-बार से विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी।
3. पर्यावरणविदों के विरोध के क्या कारण थे? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र
उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों
देना चाहती थी?
उत्तर-उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि
खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता है कि अगर उद्योग लगाने
की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूंँजी निवेश को बाधा पहुंँचेगी।
4. विकास सम्बन्धी निर्णय लेने से पूर्व सरकार को क्या-क्या सावधानियांँ बरतनी पड़ती
हैं। लोकतंत्र में किन-किन विशेषज्ञों की सलाह महत्त्वपूर्ण मानी जाती है?
उत्तर-(1) सरकार को विकास सम्बन्धी योजना के बारे में निर्णय लेने से पूर्व एक
सामाजिक-समूह के हितों को दूसरे सामाजिक-समूह के हितों की तुलना में तोला जाता है।
(2) वर्तमान (मौजूदा) पीढ़ी (Generation) और भावी (आने वाली) पीढ़ी के हितों को भी
लाभ-हानि की तुलना पर मापना पड़ता है।
(3) लोकतंत्र में विकास सम्बन्धी उन निर्णयों को जो जनता तथा पर्यावरण को प्रभावित करने
से जुड़े होते हैं। उनके लेने से पूर्व खनन पर्यावरण और अर्थशास्त्र विशेषज्ञों की राय जानना
महत्त्वपूर्ण होता है, परंतु अन्तिम निर्णय निश्चित तौर पर राजनीतिक (अर्थात् जन प्रतिनिधियों या
सरकार का ही होना चाहिए क्योंकि जन प्रतिनिधि ही जन भावनाओं तथा जनमत ही परवाह
करते हैं।
5. 1940 और 1950 के दशक में नियोजन के पक्ष में दुनिया भर से हवा क्यों बह रही
थी?
उत्तर-अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए नियोजन के विचार को 1940 और 1950 के
दशक में पूरे विश्व में जन समर्थन मिला था। यूरोप ‘महामंदी’ का शिकार होकर कुछ सबक सीख
चुका था, जापान और जर्मनी ने युद्ध की विभीषिका झेलने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था फिर खड़ी कर ली थी और सोवियत संघ ने 1930 तथा 1940 के दशक में भारी कठिनाइयों के बीच शानदार आर्थिक प्रगति की थी। इन सारी बातों के कारण नियोजन के पक्ष में दुनिया भर में हवा बह रही थी।
6. “भारत में स्वतंत्रता से पहले ही नियोजन के पक्ष में कुछ उद्योगपति आ गए थे।”
इस कथन के पक्ष में संक्षेप में तर्क दीजिए।
उत्तर-यद्यपि भारत अगस्त 1947 में स्वतंत्र हुआ लेकिन उससे पहले ही लगभग दो-ढाई
वर्ष पूर्व ही नियोजन के पक्ष में जोरदार ढंग से बात-चीत चलने लगी। 1944 में उद्योगपतियों का
एक तबका एकजुट हुआ। इस समूह ने देश में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का एक संयुक्त
प्रस्ताव तैयार किया। इसे ‘बॉम्बे प्लान’ कहा जाता है। ‘बॉम्बे प्लान’ की मंशा थी कि सरकार
औद्योगिक तथा अन्य आर्थिक निवेश के क्षेत्र में बड़े कदम उठाए। इस तरह दक्षिणपंथी हों अथवा
वामपंथी, उस वक्त सभी चाहते थे अस्तित्व में आय। प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष बने। भारत अपने
विकास के लिए कौन-सा रास्ता और रणनीति अपनाएगा-यह फैसला करने में इस संस्था ने केन्द्रीय और सबसे प्रभावशाली भूमिका निभाई।
7. जे०सी० कुमारप्पा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-जे.सी. कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे.सी. कार्नेलियस
था। इन्होंने अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की भी अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की। यह महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गांधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृषि इकोनॉमी ऑफ परमानैस को बड़ी ख्याति मिली। एक योजना आयोग के सदस्य के रूप में उन्हें ख्याति मिली।
8. चकबन्दी (Consolidation of holdings) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-चकबन्दी से अभिप्राय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा एक भू-स्वामी के इधर-उधर
हुए खेतों के बदले में लगभग उसी किस्म के उतने ही आकार के एक या दो खेत इकट्ठे
दे दिये जाते हैं।
9. चकबन्दी से क्या लाभ हैं?
उत्तर-चकबन्दी से कृषकों को उन्नत किस्म के आदानों का प्रयोग करने में सहायता मिलती
है। तथा वे कम-से-कम प्रयत्नों से अधिकतम उत्पादन करने सफल होते हैं। इससे उत्पादन लागत में भी कम आती है।
10. भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-भूमि सुधार से अभिप्राय भूमि (जोतों) के स्वामित्व में परिवर्तन लाना। दूसरे शब्दों
में भूमि सुधार में भूमि के स्वामित्व के पुनः वितरण को शामिल किया जाता है।
11. HYV बीजों का प्रयोग किन-किन राज्यों में किया गया?
उत्तर-HYV बीजों का प्रयोग पंजाब, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में किया गया।
12. HYV वीजों के प्रयोग से किस प्रकार के अनाज पैदा करने वाले क्षेत्रों को लाभ
हुआ?
उत्तर-HYV बीजों के प्रयोग से गेहूँ पैदा करने वाले क्षेत्रों को लाभ हुआ।
13. कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिये क्या प्रयत्न किये गये?
उत्तर-असमानता को दूर करने के लिए भूमि सुधार किया गया तथा उत्पादन में वृद्धि लाने
के लिए उन्नत बीजों का प्रयोग किया गया। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया गया। कृषि में
आधुनिक मशीनों तथा उपकरणों को प्रयोग में लाया गया।
14. जमींदारी उन्मूलन से होने वाले दो लाभ लिखें।
उत्तर-(1) कृषक का शोषण होना बंद हो गया। (2) कृषि-उत्पाद में वृद्धि हुई।
15. जमींदारी उन्मूलन से क्या न्याय का उद्देश्य (Goal of Equity) पूर्णतः प्राप्त हो
गया?
उत्तर-नहीं, जमींदारी उन्मूलन से न्याय का उद्देश्य पूरी तरह प्राप्त नहीं किया जा सका।
16. योजना की परिभाषा दीजिए।
उत्तर―योजना से अभिप्राय किसी निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों से
है। नियोजन के अन्तर्गत देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लक्ष्य रखे जाते हैं जिसकी प्राप्ति
के लिए देश में और देश के बाहर सभी साधन जुटाए जाते हैं। उद्देश्यों की प्राप्ति तथा साधनों के
जुटाने के लिए सम्बन्धित देश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को देखते हुए विकास की व्यूह
रचना निर्धारित की जाती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. देश की स्वतंत्रता के उपरान्त विकास के स्वरूप एवं इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के
बारे में किस सीमा तक टकराव था? क्या यह टकराव आज भी जारी है? संक्षेप
में समझाइए।
उत्तर-राजनीतिक टकराव एवं विकास (Political Clash and Development)-
(i) भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले
लिए गए। इनमें कोई भी फैसला बाकी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे के
सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या यों कहें कि एक ‘विजन’ से बंँधे हुए थे।
(ii) लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि
और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों है। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी,उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है।
(iii) सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। जो भी हो, आर्थिक-संवृद्धि हो
और सामाजिक न्याय भी मिले- इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन-सी भूमिका (पूर्णतया
सक्रिय या पूर्णतया निष्क्रिय) निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केंद्रीय संगठन
(अर्थात् योजना आयोग) जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाए? क्या सरकार को कुछ
महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद (सार्वजनिक क्षेत्र) चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय
आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?
(iv) उपर्युक्त प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए
उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करना जरूरी था. साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।
2. वामपंथ एवं दक्षिणपंथ के अर्थ स्पष्ट कीजिए। भारतीय राजनीतिक दलों को ध्यान
में रखकर दोनों रुझानों का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-(1) वामपंथ (Left Route or Ideology)-प्रायः वामपंथ (Left Ideology)
का उल्लेख करते हुए उन लोगों या दलों की ओर संकेत किया जाता है जो प्राय: साम्यवादी या
समाजवादी, माओवादी, लेनिनवादी, नक्सलवादी, प्रजासमाजवादी, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल
स्वयं को इसी विचारधारा के पक्षधर एवं उस पर चलने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाते है।
प्राय: ये गरीब एवं पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते है। वे इन्हीं वर्गों को लाभ पहुंँचाने
वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते है।
भारत में भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) समाजवादी दल
स्वयं को वामपंथी मानते हैं। ये लेनिनवादी-मार्क्सवादी या भूतपूर्व सोवियत संघ या साम्यवादी
चीन की नीतियों एवं विकास कार्यक्रम को ही अधिक अच्छा समझते रहे है। समाजवादी दल भी
स्वयं को वामपंथी मानता है।
(2) दक्षिणपंथ (Rightist ideology)-इस विचारधारा से उन लोगों या दलों की ओर
इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार को अर्थव्यवस्था में गैर जरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भूतपूर्व स्वतंत्रता पार्टी, भारतीय जनसंख्या, वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को (विशेषकर 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) दक्षिणपंथ की राजनीतिक पार्टियों कहा जाता है। वर्तमान भारतीय जनता दल एवं ज्यादातर एन.डी.ए. से जुड़े दल भी दक्षिणपंथी
(3) अन्तर्राष्ट्रीय फिजा से हम सोवियत संघ की पूर्व राजनीतिक साम्यवादी (बोल्शेविक दल)
पार्टी या चीन की कम्युनिस्ट वामपंथी तो अमेरिका की दोनों राजनीतिक पाटियो-डेमोक्रेटिक पार्टी
तथा रिपब्लिकन पार्टी तथा ब्रिटेन की कन्जरवेटिव पार्टी दक्षिणपंथ के अच्छे उदाहरण हैं। प्रायः
दक्षिणपंथ उदारवाद, वैश्वीकरण, पूँजीवाद, व्यक्तिवाद, उन्मुक्त व्यापार आदि के पक्षधर होते है।
वामपंथ भूमि सुधारों, उद्योगों तथा भूमि एवं उत्पादन साधनों का स्वामित्व एवं प्रबन्ध प्रायः
किसानों एवं मजदूरों के दिये जाने के पक्षधर होते हैं। 1947 से 1990 तक कांग्रेस पार्टी को मध्यवर्ती या केन्द्रीय नीतियों पर चलने वाली पार्टी माना जाता था।
3. आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों
को सुलझा लिया गया? [NCERT,T.B.Q.5]
उत्तर-(1) आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद निम्नलिखित थे
विकास के क्षेत्र में आर्थिक समृद्धि हो और सामाजिक न्याय भी मिले-इसे सुनिश्चित करने
के लिए सरकार कौन-सी भूमिका निभाए? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय
संगठन जरूरी है जो पूरे देश के लिए योजना बनाए? क्या सरकार को कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय आर्थिक संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा?
(II) उपर्युक्त में कुछ प्रश्न आंशिक तौर पर सुलझा लिए गए हैं लेकिन कुछ अभी भी
बाकी है।
(i) सभी विचारधारा के नेतागण और राजनैतिक दल आर्थिक समृद्धि और आर्थिक सामाजिक
दोनों तरह की बात करते हैं।
(ii) सभी इस बात पर आज भी सहमत है कि देश के व्यापार, उद्योगों और कृषि को क्रमश:व्यापारियों, उद्योगपतियों और किसानों के भरोसे पूरी तरह नहीं छोड़ा जा सकता।
(iii) सरकार ने सन् 1947 से लेकर 1990 के दशक के शुरू होने से पहले आर्थिक विकास
में प्रमुख भूमिका निभाई लेकिन 1990 के दशक से लेकर आज वर्ष 2007 तक हम यह कह सकते हैं कि मिश्रित नीति छोड़ दी गई है और देश में नई आर्थिक नीति अपनाई जा रही है लेकिन
नियोजन की नीति को छोड़ा नहीं गया। अब भी उसके उद्योगों में सरकार का एकाधिकार है। जैसे रेलवे उद्योग, लेकिन धीरे-धीरे अनेक उद्योगों में सहकारी हिस्सों को बेचा जा रहा है और उदारीकरण और वैश्वीकरण के अन्तर्गत देशी और विदेशी पूंजीपतियों, कम्पनियों के हिस्से और निवेश को निरन्तर बढ़ाया जा रहा है।
4. पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था?
दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी? [NCERT, T.B.Q.6]
उत्तर-(1) पहली पंचवर्षीय योजना में देश में लोगों गरीबी के जालल से निकालने की
योजना थी और इस योजना में ज्यादा जोर कृषि क्षेत्र पर दिया गया। इसी योजना के अंतर्गत बाँध
और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन के कारण कृषि-क्षेत्र को गहरी मार लगी थी
और इस क्षेत्र पर तुरंत ध्यान देना जरूरी था। भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आबंटित की गई। इस पंचवर्षीय योजना में माना गया था कि देश में भूमि के वितरण का जो ढर्रा मौजूद है। उससे कृषि के विकास को सबसे बड़ी बाधा पहुंँचती है। इस योजना में भूमि सुधार पर जोर दिया गया और उसे देश के विकास की बुनियादी चीज माना गया।
(2) दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली पंचवर्षीय योजना से निम्न अर्थों में अलग थी-दूसरी
पंचवर्षीय योजना में भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। पहली योजना का मूलमंत्र था
धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। इसके
लिए हरसंभव दिशा में बदलाव की बात तय की गई थी। सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने
के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के
उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली।
5. हरित क्रांति क्या थी? हरित क्रांति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों
का उल्लेख करें। [Board Exam. 2009A; B.M. 2009A; NCERT, T.B.Q.7]
उत्तर-(1) हरित क्रांति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-सरकार ने
खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा
किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे, शुरू-शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की
नीति अपनाई थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन
लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहां के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम है वे कम समय में उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर ख़रीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरुआत थी जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।
(a) हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम (Two Positive Results of Green
Revolution) –
(i) हरित क्रांति में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। हरित
क्रांति से खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी)
और देश में खाद्यान्न की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई।
(ii) इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज
हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए
जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।
(III) हरित क्रांति के दो नकारात्मक परिणाम (Two Negative Results of Green Revolution)-(i) इस क्रांति का एक बुरा परिणाम तो यह हुआ कि गरीब किसानों और
भू-स्वामियों के बीच का अंतर मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों
के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थिति पैदा हुई।
(ii) हरित क्रांति के कारण कृषि में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व
वाले किसानों का उभार हुआ। इन्हें बदलावों से फायदा हुआ था और देश के अनेक हिस्सों में ये
प्रभावशाली बनकर उभरे।
6. भारत ने योजना पद्धति को क्यों चुना?
उत्तर-देश की आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए भारत ने योजना पद्धति
को चुना। आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने का आर्थिक नियोजन के अतिरिक्त दूसरा विकल्प स्वतंत्र बाजार व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादक सभी क्रियायें लाभ की दृष्टि से करता है परंतु यह व्यवस्था भारत के लिए निम्नलिखित कारणों से अनुपयुक्त थी-
(1) भारत में आय में भारी असमानता पाई जाती है। उत्पादन धनी व्यक्तियों के लिए जायेगा
क्योंकि उनके पास वस्तुएँ खरीदने की शक्ति है।
(2) अधिकांश व्यक्ति निर्धन होने के कारण साख, पैसा उपभोग वस्तुओं पर खर्च कर देंगे
और बचत नहीं होगी।
(3) निर्धन व्यक्तियों के लिए आवास, शिक्षा, चिकित्सा आदि की ओर ध्यान नहीं दिया
जायेगा क्योंकि वे आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है।
(4) इस बात की संभावना है कि दीर्घकालिक आर्थिक बातों को ध्यान न दिया जाए जैसे
आधारभूत और भारी उद्योग, आदि।
7. हरित क्रांति के विषय में कौन-कौन-सी आशंकायें थीं? क्या वे आशंकायें सच
निकलीं?
उत्तर-हरित क्रांति के विषय में दो भ्रान्तियाँ थीं-(1) हरित क्रांति से अमीरों तथा गरीबों
में विषमता बढ़ जायेगी क्योंकि बड़े जमींदार ही इच्छित अनुदानों का क्रय कर सकेंगे और उन्हें
ही हरित क्रांति का लाभ मिलेगा और वे अधिक धनी हो जायेंगे। निर्धनों को हरित क्रांति से कुछ
लाभ नहीं होगा। (2) उन्नत बीज वाली फसलों पर जीव-जन्तु आक्रमण करेंगे।
ये दोनों भ्रान्तियाँ सच नहीं हुई क्योंकि सरकार ने छोटे किसानों को निम्न ब्याज दर पर ऋणों
की व्यवस्था की और रासायनिक खादों पर आर्थिक सहायता दी ताकि वे भी उन्नत बीज तथा
रासायनिक खाद सरलता से खरीद सकें और उनका उपयोग कर सकें। जीव-जन्तुओं के आक्रमणों को भारत सरकार द्वारा स्थापित अनुसंधान संस्थाओं (Research Institutes) की सेवाओं द्वारा कम कर दिया गया।
8. पंचवर्षीय योजनाओं के चार प्रमुख उद्देश्यों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। [B.M. 2009A]
उत्तर-(1) पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य (The Goals of Five Year Plans)
पंचवर्षीय योजनाओं के प्रमुख उद्देश्य हैं :
(i) आर्थिक संवृद्धि, (ii) आधुनिकीकरण, (iii) आत्मनिर्भरता तथा (iv) न्याय।
(i) आर्थिक संवृद्धि से अभिप्राय निरंतर सकल घरेलू उत्पाद तथा प्रति सकल घरेलू उत्पाद
में वृद्धि है। लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए आर्थिक संवृद्धि (अधिक वस्तुओं तथा
सेवाओं का उत्पादन करना) आवश्यक है। सकल घरेलू उत्पाद में मुख्यतः तीन क्षेत्रों का योगदान
होता है। किसी अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र (कृषि क्षेत्र) तथा किसी अर्थव्यवस्था में द्वितीयक
तथा तृतीयक क्षेत्र (विनिर्माण क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र) का आर्थिक विकास होने पर कृषि क्षेत्र का
योगदान घटता जाता है और अन्य क्षेत्रों का योगदान बढ़ता जाता है।
(ii) आधुनिकीकरण (Modermisation)-उत्पादन में नई तकनीकी का प्रयोग करना
तथा सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं।
(iii) आत्मनिर्भरता (Self-Reliance)-आत्मनिर्भरता से अभिप्राय उन वस्तुओं के आयात से बचना है जिनका उत्पाद देश के अन्दर किया जा सकता है।
(iv) न्याय या समता (Equity)-न्याय से अभिप्राय है सम्पत्ति तथा आय की विषमता
को कम करना और प्रत्येक के लिए आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करना।
9. भारत की दस पंचवर्षीय योजनाओं की अवधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-दस पंचवर्षीय योजनाओं की अवधियाँ (Periods of First Ten Five Year
Plans):
फोटो-1
10. हरित क्रांति क्या है? इसे क्यों लागू किया गया और इससे किसानों को कैसे लाभ
पहुँचा? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-हरित क्रांति (Green Revolution)-हरित क्रांति से अभिप्राय उत्पादन की
तकनीक को सुधारने तथा कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है। हरित क्रांति की दो
मुख्य विशेषताएँ हैं : (i) उत्पादन की तकनीकी को सुधारना तथा (ii) उत्पाद में वृद्धि करना। इस संदर्भ में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने लिखा था, “हरित क्रांति का आशय यह नहीं है कि खेतों में मेड़बन्दी करवाकर फावड़े, तगारी, मेंटी, हल इत्यादि उपयोगी कृषि के साधन प्राप्त करके कृषि की जाए अपितु इन साधनों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि करना है।
हरित क्रांति लागू करने के कारण (Causes of Green Revolution)-हरित क्रांति
लागू करने का उद्देश्य कृषि क्षेत्रक में उत्पादकता में वृद्धि करना है तथा औपनिवेशिक काल के
कृषि गतिरोध को स्थायी रूप से समाप्त करना है।
किसानों को लाभ (Advantages to the farmers)-हरित क्रांति से किसानों को
अग्रलिखित लाभ हुआ-(1) हरित क्रांति से किसान अधिक गेहूँ तथा चावल उत्पन्न करने में
समर्थ हुआ है। किसान के पास अब बाजार में बेचने के लिए काफी अनाज है। (2) किसानों के
जीवन-स्तर में सुधार हुआ है।
11. महालनोविस के जीवन तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-महालनोबिस की उपलब्धियों (Achievements of Mahalanobis)-वह
महान योजनाकर तथा अर्थशास्त्री थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में पहली पंचवर्षीय योजना
का सूत्रपात 1951 में हुआ था। इस योजना में कृषि क्षेत्र को बहुत महत्त्व दिया गया था परंतु
वास्तव में योजना का चित्र वास्तविक रूप से आरंभ द्वितीय पंचवर्षीय योजना से हुआ था। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ही भारतीय योजना के उद्देश्यों के विषय में वास्तविक विचारों का उल्लेख किया गया था और यह दूसरी पंचवर्षीय योजना महालनोबिस के विचारों पर आधारित थी। इस दृष्टिकोण से वह भारतीय योजना का निर्माता कहा जा सकता है।
महालनोबिस का जन्म 1893 में कलकता (कोलकाता) में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई
कलकत्ता (कोलकाता) में प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) तथा इंग्लैंड में कैम्ब्रिज
विश्वविद्यालय (Cambridge University) में की। उन्होंने सांख्यिकी (Statistics) के विषय में इतना अधिक योगदान दिया कि उनकी विश्व में प्रसिद्धि हो गई और उन्हें 1946 में Britain’s
Royal Society का सदस्य बना लिया गया। इन्होंने कलकत्ता में भारतीय सांख्यिकीय संस्था
(Indian Statistical Institute) की स्थापना की और सांख्य (Sankhya) नाम की एक पत्रिका (Journal) शुरू की।
दूसरी पंचवर्षीय योजना में उन्होंने भारत तथा विश्व के विख्यात अर्थशास्त्रियों को आमंत्रित
किया ताकि वे उन्हें भारत के आर्थिक विकास के बारे में परामर्श दें। वे भारत को आर्थिक विकास के पथ पर डालने के लिए सर्वदा स्मरणीय रहेंगे।
12. योजना आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए। [B.M. 2009A]
अथवा
निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखकर भारतीय योजना आयोग का संक्षिप्त
विवरण दीजिए:
(क) अन्य आयोगों से योजना आयोग किन अर्थों में निम्न माना जाता है?
(ख) योजना आयोग के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
(ग) इस आयोग के द्वारा राज्य अपनी किन प्रमुख नीतियों को लागू करना चाहता
था?
उत्तर-(क) योजना आयोग और अन्य आयोग (Difference between plaming
commission and other commission)-योजना आयोग संविधान द्वारा स्थापित बाकी
आयोगों अथवा दूसरे निकायों की तरह नहीं है। योजना आयोग की स्थापना, मार्च 1950 में, भारत सरकार ने एक सीधे-सादे प्रस्ताव के जरिए की। यह आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है और इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमंडल उन्हें मंजूर करे। जिस प्रस्ताव के जरिए योजना आयोग की स्थापना हुई थी।
(ख) कार्य (Functions)-योजना आयोग कार्य के दायरे क्या होंगे इस संबंध में
अग्रलिखित बातें कही गई थी : “भारत के संविधान में भारत के नागरिकों को कुछ मौलिक
अधिकार दिए गए हैं और राज्य के लिए नीति-निर्देशक तत्त्वों का उल्लेख किया गया है।
नीति-निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत यह बात विशेष रूप से कही गई है कि राज्य एक ऐसी समाज-रचना को बनाते-बचाते हुए… लोगों की भलाई के लिए प्रयास करेगा जहाँ राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाएँ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की भावना से अनुप्राणित हो….राज्य अन्य बातों के अतिरिक्त अपनी नीतियों को इस तरह बनाएगा और अमल में लाएगा।
(ग) नीतियों का क्रियान्वयन (Implementation of Policy)- राज्य ने योजना आयोग
के माध्यम से अपनी निम्नलिखित तीन तरह की नीतियों और उद्देश्यों को लागू करने का निर्णय
किया था। वे थी-(1) स्त्री और पुरुष, सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों का
बराबर-बराबर अधिकार हो। (2) समुदाय के भौतिक संसाधनों की मिल्कियत और नियंत्रण को इस तरह बाँटा जाएगा कि उससे सर्व-सामान्य की भलाई हो, और (3) अर्थव्यवस्था का संचालन इस तरह नहीं किया जाएगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एकाध केंद्रित हो जाएं और जनसामान्य की भलाई की बाधित हो।
13. नियोजित विकास की आवश्यकता क्यों है? [Board Exam. 2009A; B.M.2009AJ
उत्तर-नियोजित विकास, सम्पूर्ण समाज एवं सामाजिक व्यवस्था के उत्थान के लाभ
को सामने रखता है जिससे नागरिक एक बेहतर एवं अधिक मानवीय जीवन व्यतीत कर सकें।
नियोजित विकास एक ऐसी भौतिक वास्तविकता एवं मानसिक स्थिति है जिसमें एक समाज
सामाजिक, आर्थिक एवं संस्थागत प्रक्रिया के विशिष्ट संयोजन से बेहतर जीवन के साधन प्राप्त
करता है। इसके लिए सभी समाजों के निम्नलिखित तीन लक्ष्य होने चाहिए – (i) भोजन, स्वास्थ्य,आवास एवं सुरक्षा जैसी मूलभूत वस्तुओं की उपलब्धता एवं वितरण को बढ़ाना चाहिए। (ii) जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए उच्च आय, अधिक रोजगार, बेहतर शिक्षा एवं सांस्कृतिक तथा मानवीय मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए। (iii) आर्थिक और सामाजिक विकल्पों की उपलब्धता में वृद्धि करनी चाहिए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए।
उत्तर-प्रस्तावना (Introduction)-अनेक वर्षों की अधीनता के बाद स्वतंत्र भारत ने
नियोजन को अपनाने को निर्णय लिया जा सके। अंतर्गत राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रसार पर जोर दिया जाना अनिवार्य था क्योंकि उस समय व्यावहारिक रूप में देश की बागडोर जवाहरलाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेता के पास थी। रोजगार को उत्पन्न करने के लिए भारत में राज्य क्षेत्र को विकसित किया और देश में नए आर्थिक हितों को जन्म दिया गया। उन सभी गलत आर्थिक नीतियों को छोड़ने का प्रयास किया गया जो साम्राज्यवादियों ने अपने मातृ देश (ब्रिटेन) के हित के लिए लिखी थी।
रोजगार बढ़ाने का प्रयास (Means to increase employment)-1 अप्रैल 1951 से
पहली योजना लागू हुई उन यद्यपि इस योजना में कृषि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया लेकिन
सरकार ने ऐसे कार्यक्रमों को अधिक प्राथमिकता दी जिससे देश के लोगों को ज्यादा-से-ज्यादा
रोजगार दिया जा सके क्योंकि रोजगार मिलने पर ही देश की गरीबी दूर हो सकती थी। देश के
अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ यह मानते थे कि योजनाओं द्वारा निश्चित लागत से बनाये गये कार्यक्रमों से अलग हटकर हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के बारे में नहीं सोच सकते। द्वितीय पंचवर्षीय योजना स्पष्ट करती है, “निम्नलिखित लागत में रोजगार अन्तर्निहित है और अवश्य ही, लागत के स्वरूप को निश्चित करते समय इस सोच-विचार को एक प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस तरह की योजना में लागत की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि होगी तथा विकासवादी खर्च का अर्थ है कि वह आय में वृद्धि करेगा तथा हर क्षेत्र में श्रम की मांग में वृद्धि करेगा।
सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार (Expansion of Public Industry)-देश में भारी
उद्योगों को लगाने, तेल की खोज और कोयले के विकास के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा के विकास
के कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। इन सभी कार्यक्रमों को चलाने
का मुख्य दायित्व देश की केन्द्रीय सरकार पर था। पहली योजना की बजाय दूसरी योजना में इस
कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दिया गया। अनेक देशों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े-बड़े
लौह इस्पात उद्योग शुरू किए गए।
नए आर्थिक हित (New Economic interest)-देश में आर्थिक हितों को संरक्षण और
बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी अपनाया गया। वस्तुतः
समाजवाद और पूँजीवाद व्यवस्थाओं के सभी गुणों को अपनाने का प्रयत्न किया गया। देश में
एक नई आर्थिक नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। रोजगार के क्षेत्र में
सार्वजनिक खासकर सेवाओं (Services) द्वारा रोजगार देने वाला एक विशाल उद्यम विकसित हो सका। यद्यपि देश में सरकार को आशा के अनुरूप सफलताएँ नहीं मिली और रोजगार के अवसर धीमी गति से ही उत्पन्न हो सके।
2. अकाल एवं पंचवर्षीय योजनाओं के निलंबन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-यद्यपि भारत ने पंचवर्षीय योजनाएँ 1951 से ही अपना ली थी लेकिन 1960 के
दशक में कृषि की दशा बद से होती गई। 1940 और 1950 के दशक में ही खाद्यान्न के
उत्पादन की वृद्धि दर, जनसंख्या की वृद्धि दर से जैसे-तैसे अपने को ऊपर रख पाई थी। 1965
से 1967 के बीच देश के अनेक हिस्सों में सूखा पड़ा। इसी अवधि में भारत ने दो युद्धों का सामना किया और उसे विदेशी मुद्रा के संकट को भी झेलना पड़ा। भारत की खाद्यान्न सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होना अनिवार्य था। भारत के इस खाद्यान्न ने देश के विकासवादी दृष्टिकोण में अलग प्रकार
के पूर्ण बदलाव को जन्म दिया।
बिहार में खाद्यान्न संकट सबसे ज्यादा विकराल था। यहाँ स्थिति लगभग अकाल जैसी हो
गई थी। बिहार के सभी जिलों में खाद्यान्न का अभाव बड़े पैमाने पर था। इस राज्य के 9 जिलों
में अनाज की पैदावार सामान्य स्थिति की तुलना में आधी से भी कम थी। इनमें पाँच जिले अपनी
पैदावार की तुलना में महज एक-तिहाई ही अनाज उपजा रहे थे। अकाल, आर्थिक योजना में नवीन कृषक नीति संशोधन के विकास को निम्नलिखित दिशा में ले गया-
(1) छोटी सिंचाई पर जोर देते हुए, नवीन सिंचाई नीति को प्रवेश दिया,
(2) निवेशों की एकाग्रता-निश्छलता से बाहर निकालने के लिए अधिक उत्पादकीय क्षेत्रों में
उन्नत बीज तथा उर्वरक को प्रवेश दिया।
(3) व्यापक भूमि के सर्वेक्षण को प्रवेश दिया, तथा
(4) योजना प्राथमिकताओं तथा दुर्लभ संसाधनों, विदेशी विनिमय के साथ के पुनरावंटन का
पुनर्मूल्यांकन।
खाद्य संकट के कई परिणाम हुए। सरकार को गेहूँ का आयात करना पड़ा और विदेशी मदद
(खासकर संयुक्त राज्य अमरीका की) भी स्वीकार करनी पड़ी। अब योजनाकारों के सामने पहली
प्राथमिकता तो यही थी कि किसी भी तरह खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भरता हासिल की जाए।
पूरी योजना-प्रक्रिया और इससे जुड़ी आशा तथा गर्वबोध को इन बातों से एक धक्का लगा।
खाद्यान्न के अभाव में कुपोषण बड़े पैमाने पर फैला और इसने गंभीर रूप धारण किया।
अनुमान के मुताबिक बिहार के अनेक हिस्सों में उस समय प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का आहार 2200 कैलोरी से घटकर 1200 कैलोरी हो गया था, जबकि एक सामान्य आदमी के लिए रोजाना 2450 कैलोरी के आहार की जरूरत होती है। 1967 में बिहार में मृत्यु-दर पिछले साल की तुलना में 34 प्रतिशत बढ़ गई थी। इन वर्षों के दौरान बिहार में उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तुलना में खाद्यान्न की कीमतें भी काफी बढ़ी। अपेक्षाकृत समृद्ध पंजाब की तुलना में गेहूँ और चावल बिहार में दोगुने अथवा उससे भी ज्यादा दामों में बिक रहे थे। सरकार ने उस वक्त ‘जोनिंग’ या इलाकाबंदी की नीति अपना रखी थी। इसकी वजह से विभिन्न राज्यों के बीच खाद्यान्न का व्यापार नहीं हो पा रहा था। इस नीति के कारण उस वक्त बिहार में खाद्यान्न की उपलब्धता में भारी गिरावट आई थी। ऐसी दशा में समाज के सबसे गरीब तबके पर सबसे ज्यादा चोट पड़ी।
3. ‘हरित क्रांति एवं इसके राजनीतिक त्याग’ विषय पर निबंध लिखिए।
उत्तर-हरित क्रांति (Green Revolution)-हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि की उत्पादन
तकनीकी को सुधारने एवं कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है। हरित क्रांति के मुख्य तत्त्व
थे-(i) रासायनिक खादों का प्रयोग (ii) उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग (iii) सिंचाई सुविधाओं
में विस्तार (iv) कृषि का मशीनीकरण आदि। हरित क्रांति के प्रयासों के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में
बहुमुखी प्रगति हुई है। कृषि क्रान्ति से पूर्व देश को भारी मात्रा में खाद्यान्नों को आयात करना पड़ता था जबकि आज हमारा देश इस क्षेत्र में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। यद्यपि राष्ट्र को हरित क्रांति से लाभ हुआ परंतु प्रयोग की जाने वाली तकनीकी जोखिम से मुक्त नहीं थी। इसके बारे में संक्षेप में दो संशय थे-(i) इससे छोटे तथा बड़े किसानों के बीच असमानता बढ़ जायेगी और (ii) उन्नत किस्म के बीजों पर जीव-जन्तु शीघ्र आक्रमण करते हैं, परंतु ये दोनों संशय सही नहीं निकले।
हरित क्रांति के राजनैतिक त्याग (Political Sacrifices of the Green
Revolution)-(i) भुखमरी राज्य की स्थिति से भारत खाद्यान्न निर्माण करने वाले राज्य के
रूप में परिवर्तित हो गया। इस गतिविधि ने राष्ट्रों के सौहार्द्र से, विशेषकर तीसरी दुनिया से काफी
प्रशंसा प्राप्त की।
(ii) हरित क्रांति उन तत्त्वों में से एक था जिसने श्रीमती इंदिरा गाँधी (1967-84) तथा उनके
दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को, भारत में एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बना डाला।
(iii) हरित क्रांति सभी हिस्सों और जरूरतमंद किसानो को फायदा नहीं पहुंँचा सकी। 1950 से 1980 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 3-3.5 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से आगे बढ़ी।
(iv) सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उद्यमों में भ्रष्टाचार और अकुशलता का जोर बढ़ा। नौकरशाही
भी आर्थिक विकास में ज्यादा सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रही थी। सार्वजनिक क्षेत्र अथवा
नौकरशाही के प्रति शुरू-शुरू में लोगों में गहरा विश्वास था लेकिन बदले हुए माहौल में यह
विश्वास टूट गया। जनता का भरोसा टूटता देख नीति-निर्माताओं ने 1980 के दशक के बाद से
अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम कर दिया।
4. दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम-कृषि विकास का विवाद
चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे? [NCERT, T.B.Q. 8]
उत्तर-दूसरी पंचवर्षीय योजना और औद्योगिक विकास बनाम-कृषि विकास का
faara (Second Five years plans and Industrial development verses agricultural development)―
(i) स्वतंत्रता के बाद भारत जैसे पिछड़ी अर्थव्यवस्था के देश में विवाद खड़ा हुआ कि उद्योग
और कृषि में से किस क्षेत्र में ज्यादा संसाधन लगाए जाएँ।
(ii) अनेक लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति
का अभाव था और इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण खेती और ग्रामीण इलाकों को चोट पहुंँची।
(iii) जे.सी. कुमारप्पा जैसे गांधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका
प्रस्तुत किया था जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर ज्यादा जोर था। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय
अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केंद्र में रखने की बात बड़े सुविचारित और दमदार ढंग से
उठायी थी।
(iv) चौधरी चरण सिंह कांग्रेस पार्टी में थे और बाद में उससे अलग होकर इन्होंने भारतीय
लोकदल नामक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि नियोजन से शहरी और औद्योगिक तबके समृद्ध हो
रहे हैं और इसकी कीमत किसानों और ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही है।
(v) कई अन्य लोगों का सोचना था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तेज किए बगैर
गरीबी के मकड़जाल से छुटकारा नहीं मिल सकता। इन लोगों का तर्क था कि भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में खाद्यान्न के उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति अवश्य अपनायी गई थी। राज्य ने भूमि-सुधार और ग्रामीण निर्धनों के बीच संसाधन के बँटवारे के लिए कानून बनाए।
(vi) नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम तथा सिंचाई परियोजनाओं पर बड़ी रकम
खर्च करने की बात मानी गई थी। नियोजन की नीतियाँ असफल नहीं हुई। दरअसल, इनका
कार्यान्वयन ठीक नहीं हुआ क्योंकि भूमि-संपन्न तबके के पास सामाजिक और राजनीतिक ताकत ज्यादा थी। इसके अतिरिक्त, ऐसे लोगों की एक दलील यह भी थी कि यदि सरकार कृषि पर ज्यादा धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीबी की विकराल समस्या का समाधान न कर पाती।
5. “अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति निर्माताओं ने
गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का
विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।” इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने
तर्क दीजिए। [NCERT, T.B.Q.9] )
उत्तर-पक्ष में तर्क (Arguments in Favour)-
(i) अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारत के आर्थिक नीति बनाने वाले
विशेषज्ञों ने बड़ी भारी गलती की आज 1990 से ही भारत ने नई आर्थिक नीति अपना ली है और वह बड़ी तेजी से उदारीकरण वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश के अनेक बड़े नेता जो दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री भी है ये भी अनेक बड़े नेता जो दुनिया के माने हुए अर्थशास्त्री भी हैं ये भी निजी क्षेत्र, उदारीकरण और सरकारी हिस्सेदारी को जल्दी-से-जल्दी सभी व्यवसायों, उद्योगों आदि में समाप्त करना चाहते हैं।
(ii) दुनिया की दो बड़ी संस्थाओं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से भारत को तभी
ऋण और ज्यादा-से-ज्यादा निवेश मिल सकते हैं जबकि बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ, विदेशी निवेशकों
का स्वागत हो और उद्योगों के विकास के लिए आंतरिक सुविधाओं का बड़े पैमाने पर सुधार हो।
इन सबके लिए सरकार पूँजी नहीं जुटा सकती। यह कार्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ और देशी बड़े-बड़े पूँजीपति लोग कर सकते हैं जो बड़ी-बड़ी जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं।
(iii) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता में भारत तभी ठहर सकता है जब नीति क्षेत्र को छूट
दे दी गई होती।
विपक्ष में तर्क (Arguments inAgainst)-(i) जो लोग वामपंथी विचारधारा के समर्थक
हैं। सार्वजनिक क्षेत्र और सरकारी हिस्से को बढ़ाना चाहते हैं वे तर्क देते हैं कि भारत को सुदृढ
कृषि और औद्योगिक क्षेत्र में आधार सरकारी वर्ण और मिश्रित नीति से मिला है। यदि ऐसा नहीं
होता तो भारत पिछड़ा रहता।
(ii) भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या ज्यादा है। यहाँ बेरोजगारी है। गरीबी
है, यदि पश्चिमी देशों की होड़ में भारत में सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था में कम कर दिया जाएगा तो बेरोजगारी बढ़ेगी, गरीबी फैलेगी, धन और पूँजी कुछ ही कम्पनियों के हाथों में केन्द्रित हो जाएगा जिससे आर्थिक विषमता और बढ़ जाएगी।
(iii) भारत एक कृषि प्रधान देश है। वह अमेरिका जैसे देशों का कृषि उत्पादन में मुकाबला
नहीं कर सकता। कुछ देश स्वार्थ के लिए पेटेट प्रणाली को कृषि में लागू करना चाहते हैं और जो
सहायता राशि सरकार भारतीय किसानों को देती है वे उसे अपने दबाव द्वारा पूरी तरह समाप्त
करना चाहते हैं जबकि अपने देश के किसानों को वह हर तरह से आर्थिक सहायता देकर विकासशील देशों को कृषि सहित हर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में मात देना चाहते हैं।
6. हरित क्रांति के भारतीय राजनीति पर प्रभाव पड़ने के कारणों का उल्लेख करें
[B.M. 2009A]
उत्तर-हरित क्रांति के प्रभाव केवल ग्रामीण स्तर की राजनीति पर ही नहीं बल्कि शहर की
राजनीति को भी प्रभावित किया है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं :
(i) हरित क्रान्ति से किसानों में जागृति आई। इस क्रांति से किसानों की आर्थिक दशा में सुधार
हुआ है। उनका राजनीतिक महत्त्व भी बढ़ा है। साथ ही सामाजिक स्थिति में भी बदलाव आया है। इस प्रकार वह कृषक जो लंबे समय तक उपेक्षितं एवं दीन-हीन अवस्था में थे, हरित क्रांति के
फलस्वरूप अचानक राजनीतिक महत्त्व का विषय बन गये।
(ii) राजनीति में किसान नेता का उदय हुआ और आज भारत का सम्पूर्ण राजनीति किसानों
पर केन्द्रित हो गई है। चौधरी चरण सिंह अपने को किसान का सबसे बड़ा नेता मानते थे। चौधरी
देवीलाल, अजित सिंह, ओम प्रकाश चौटाला, प्रकाश सिंह बादल एवं देवगौड़ा आदि अपने को
किसानों का नेता मानते हैं और किसानों के दम पर राजनीति करते हैं। यह सब हरित क्रांति का ही प्रभाव है।
(iii) हरित क्रांति से किसानों में चेतना आयी और अब वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए
आंदोलन एवं प्रदर्शन का सहारा लेते हैं। आज भारतीय किसान यूनियन के नेता चौ. महेन्द्र सिंह
टिकैत राजनीतिक पार्टियों के साथ अपनी माँग की पूर्ति हेतु सौदेबाजी भी करते हैं।
(iv) हरित क्रांति के परिणामस्वरूप न केवल किसान बल्कि राजनीतिक दलों, नेताओं,
अधिकारियों की विचारधारा एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। सभी राजनीतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्र में किसानों को मुफ्त बिजली, खाद, बीज, कीटनाशक इत्यादि की आपूर्ति करते हैं, जिससे किसानों का वोट प्राप्त हो सके। किसान सम्मेलन और किसान रैली के माध्यम से मजदूर संघों को संगठित करने का प्रयास किया जाता है। राजनीति का रुख गाँवों की तरफ हुआ है।
अत: कहा जा सकता है हरित क्रान्ति भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन
लाने में मिल का पत्थर साबित हुआ है।
★★★