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bihar board 12 poli science | भारत के विदेश संबंध

bihar board 12 poli science | भारत के विदेश संबंध

                       (INDIA’S EXTERNAL RELATIONS)
                                        याद रखने योग्य बातें
• गुटनिरपेक्षता की नीति : वह विदेश नीति जो किसी भी (दोनों में से) बड़े सैन्य गुट
में से शामिल न होने के सिद्धांत की पक्षधर होती है तथा अन्तर्राष्ट्रीय हर मसले को
गुण-दोष के आधार पर उसका समर्थन या विरोध करती है।
• भारत के पड़ोसियों के साथ स्वतंत्रता उपरान्त तीन युद्ध : (i) 1962 चीन भारत
युद्ध (ii) 1965 तथा 1971 में लड़े गये भारत-पाक युद्ध।
• प्राय: उपनिवेशवाद की समाप्ति का माना जाने वाले कालांश : 1945 से 1990 के
बीच के वर्ष।
• बुनियादी तौर पर किसी देश की आजादी किस कारक बनी होती है : आजादी
बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों से बनी होती है।
• चीन में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना : 1949 में।
• नाटो (NATO): उत्तर अटलांटिक संधि संगठन। नेता सं. रा. अमरीका।
• स्वेज नहर (मिस्र के अधीन) पर आक्रमण : 1965 में ब्रिटेन ने आक्रमण किया था।
• एफ्रो-एशियाई प्रथम सम्मेलन : इंडोनेशिया के शहर बांडुग में 1955 में हुआ।
• भारत पर चीन का आक्रमण : 1962
• चीनी शासक अध्यक्ष चाउ एन लाई का भारत दौरा : 1956
• दलाईलामा : तिब्बत का धार्मिक नेताप।
• भारत में दलाईलामा द्वारा शरण लेना : 1959
• चीन द्वारा परमाणु परीक्षण : 1964
• अरब-इजरायल युद्ध : 1973
• सी•टी• बी• टी• : कंप्रिहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी सी टी-बी-टी-।
• भारत द्वारा सफल परमाणु परीक्षण : मई, 1998
• राष्ट्र की शक्ति के तीन साधन : संसाधन या प्राकृतिक सम्पदा, पूँजी और धन,
जनशक्ति और उनकी योग्यता।
            एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
                                                        वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. निम्न कथनों का मिलान कीजिए।
(क) घाना                     (i) जवाहरलाल नेहरू
(ख) मिस्र                    (ii) एन. क्रुमा
(ग) भारत                    (iii) नासिर
(घ) यूगोस्लाविया           (iv) सुकर्णो
(ङ) यूगोस्लाविया           (v) मार्शल टीटो
उत्तर―
(क) घाना                    (ii) एन• क्रुमा
(ख) मिस्र                    (iii) नासिर
(ग) भारत                    (i) जवाहरलाल नेहरू
(घ) यूगोस्लाविया           (v) मार्शल टीटो
(ङ) यूगोस्लाविया          (iv) सुकर्णो
2. इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाएँ-
(क) गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य
अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध शुरुआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक संबंधों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमरीका से भारत की निकटता का
परिणाम थी।
उत्तर-(क)√ (ख)x (ग)√ (घ)√
3. निम्न कथनों के समक्ष गलत अथवा सही का चिह्न लगाइए-
(क) एफ्रो-एशियाई सम्मेलन 1955 में बांडुग में हुआ।
(ख) हर देश की आजादी बुनियादी तौर पर विदेशी संबंधों से बनी होती है।
(ग) भारतीय संविधान में अनुच्छेद 51 में विदेशी नीति से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय शांति और
सुरक्षा के बढ़ावे के लिए कुछ राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत दिए हैं।
(घ) भारत और बांग्लादेश में अब तक अनेक बड़े युद्ध हो चुके हैं।
उत्तर-(क)x (ख)√ (ग)√ (घ)x
4. भारत ने लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्रता पायी-                [B.M. 2009A]
(क) 15 अगस्त, 1947
(ख) 26 जनवरी, 1950
(ग) 15 अगस्त, 1948
(घ) 26 जनवरी, 1951                             उत्तर-(क)
5. पंचशील के पांच सिद्धांत किसके द्वारा घोषित किए गये थे? [B.M. 2009A]
(क) लालबहादुर शास्त्री
(ख) राजीव गाँधी
(ग) जवाहरलाल नेहरू
(घ) अटल बिहारी वाजपेयी                      उत्तर-(ग)
6. लालबहादुर शास्त्री के देहांत के बाद कौन भारत का प्रधानमंत्री बना?    [B.M. 2009A]
(क) चौधरी चरण सिंह
(ख) मोरारजी देसाई
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) श्रीमती इंदिरा गाँधी                            उत्तर-(घ)
7. इनमें से किसने ‘खुले द्वार’ की नीति अपनाई?                [B.M.2009A]
(क) चीन
(ख) यूरोपीय संघ
(ग) जापान
(घ) अमेरिका                                          उत्तर-(क)
8. किस भारतीय प्रधानमंत्री ने गुटनिरपेक्षता को एक आंदोलन का रूप दिया?  [B.M.2009A]
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) मोरारजी देसाई
(ग) अटल बिहारी वाजपेयी
(घ) इंदिरा गाँधी                                      उत्तर-(घ)
(क) लालबहादुर शास्त्री
9. भारतीय विदेश नीति का आधार स्तम्भ है- Board Exam. 2009A; B.M. 200941
(क) विश्व शांति
(ख) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
(ग) पंचशील
(घ) सभी                                                   उत्तर-(घ)
10. पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ हुआ?    [Board Exam. 2009A; B.M. 2009A]
(क) नई दिल्ली में
(ख) बेलग्रेड में
(ग) कैरो में
(घ) हवाना में                                             उत्तर-(ख)
11. भारतीय विदेश नीति का निम्न में से कौन निर्धारक तत्त्व नहीं है? [B.M. 2009A]
(क) गुटनिरपेक्षता
(ख) उपनिवेशवाद का विरोध
(ग) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व
(घ) हिन्दूवाद का प्रचार एवं प्रसार                   उत्तर-(घ)
12. भारत में परमाणु कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य क्या बतलाया जाता है ?    [B.M. 2009A]
(क) महाशक्ति बनने की होड़ में शामिल होना
(ख) पाकिस्तान तथा चीन पर दबाव बनाना
(ग) अमेरिका पर दबाव बनाना
(घ) अपनी ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करना।              उत्तर-(घ)
13. भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करता है?     [B.M.2009A]
(क) इसे भेदभाव पूर्ण मानता है
(ख) इससे गुटनिरपेक्षता की नीति प्रभावित होगी
(ग) भारत परमाणु बमों का प्रसार चाहता है
(घ) इसमें से कोई नहीं                                 उत्तर-(क)
14. भारत व पाकिस्तान के मध्य कारगिल युद्ध कब हुआ था?       [B.M. 2009A]
(क) 1995
(ख) 1996
(ग) 1999
(घ) 1990                                      उत्तर-(ग)
15. भारत व श्रीलंका के बीच मुक्त व्यापार समझौता कब लागू हुआ? [B.M. 2009Aj
(क) मार्च, 2000
(ख) जून, 2000
(ग) चार्च, 1999
(घ) मार्च, 1998                               उत्तर-(क)
16. भारतीय विदेशी नीति के विकास में प्रथम प्राथमिकता किससे संबंधित थी?
                                                                                       [B.M. 2009A]
 (क) उद्योग
(ख) स्वतंत्रता
(ग) राष्ट्रीय हित
(घ) कृषि                                        उत्तर-(ग)
17. भारत-चीन युद्ध किस वर्ष हुआ? [Board Exam. 2009A; B.M.2009A]
(क) 1971
(ख) 1982
(ग) 1972
(घ) 1962                                     उत्तर-(घ)
18. पहला परमाणु परीक्षण कव किया गया?              [B.M. 2009A]
(क) 1971
(ख) 1982
(ग) 1972
(घ) 1962                                     उत्तर-(घ)
                                 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. किसी देश के लिए विदेशी संबंध क्यों महत्त्वपूर्ण होते हैं?
                                     अथवा
आजादी किन चीजों से बुनियादी (मूलत:) तौर पर बनती है?
उत्तर–प्रत्येक सम्पूर्ण सम्प्रभुत्व राष्ट्र के लिए विदेशी संबंध सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं
क्योंकि उसकी आजादी बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों से ही बनी होती है। यही आजादी की
कसौटी भी है। बाकी सारा कुछ तो स्थानीय स्वयात्तता (Local Autonomy) है। यदि एक बार विदेशी सम्बन्ध किसी देश के हाथ से निकलकर दूसरे के हाथ में चले जाएँ तो फिर किस सीमा तक उसके हाथ से ये सम्बन्ध (अर्थात् विदेश नीति) छूटे और जिन मामलों में छूटे वहाँ तक कि वह देश स्वतंत्र भी नहीं रहता।
2. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त कई देशों ने शक्तिशाली राष्ट्रों की इच्छानुसार अपनी
विदेश नीति क्यों अपनायी थी?
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के तुरंत बाद (1945 ई. के उपरान्त) के दौर में अनेक विकासशील
देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति इसलिए अपनाई क्योंकि
इन देशों से (सुपर तथा ताकतवर शक्तियों) से इन्हें (नव स्वतंत्र देश या विकासशील देश अनुदान
(Grants) अथवा ऋण (कर्ज) मिल रहा था।
3. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त दुनिया के विभिन्न देश दो खेमों में क्यों बँट गए थे?
इन खेमों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर-(1) द्वितीय विश्वयुद्ध दो बड़े सैन्य खेमों में लड़ा गया था। एक खेमे के देश पराजित
हुए (जापान, जर्मनी तथा इटली इनमें प्रमुख थे।) तो दूसरे खेमे के राष्ट्र (संयुक्त राज्य अमेरिका,
सोवियत संघ, ब्रिटेन आदि) जीते थे। इनमें विजयी खेमे के देशों में विचारधाराओं-पूँजीवाद
(दक्षिणीपंथ) तथा साम्यवाद (वामपंथ) के दो सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र संयुक्त राज्य अमेरिका
तथा सोवियत संघ थे। उन्होंने नये स्वतंत्र राष्ट्रों तथा विकासशील देशों में से ज्यादा से ज्यादा
देशों को अपनी ओर सैन्य गुटों से मिलाने के लिए साम, दाम, दण्ड और भेद की नीतियाँ अपनाई
ताकि वे अन्तर्राष्ट्रीय रंग मंच पर अपनी-अपनी वर्चस्वता का डंका बजा सके।
(2) विकासशील देश अपने तुरंत विकास के लिए शक्तिशाली/धनी तथा विकसित देशों से
अनुदान/उदार शर्तों पर ऋण तथा नवीनतम तकनीक (प्रौद्योगिकी) प्राप्त करना चाहते थे इसलिए
वे अपनी विदेश नीति उनकी इच्छानुसार तय करते हुए उनकी इच्छानुसार उनके सैन्य गठबंधन में
शामिल हो गये। इस कारण से दुनिया के विभिन्न देश दो खेमों में बँट गए।
(3) एक सैन्य गुट (या खेमा) संयुक्त राज्य अमरीका और उसके समर्थक देशों (कनाडा,
ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी आदि का रहा तो दूसरा खेमा सोवियत संघ के प्रभाव में रहा। इसमें
शामिल देश थे-हंगरी, पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लोवाकिया, रोमानिया आदि।
4. विदेशी संबंध के विषय में संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों
के अन्तर्गत अनुच्छेद 51 में) क्या कहा है? संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बढ़ावे’ के
लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत के हवाले (संदर्भ से) कहा गया है कि राज्य-
(क) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
(ख) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
(ग) संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के
प्रति आदर बढ़ाने का, और
(घ) अंतर्राष्ट्रीय विवादों को पारस्परिक बातचीत द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का,
प्रयास करेगा।
5. 1950 के दशक में भारत अमरीकी सम्बन्धों में खटास पैदा होने के दो कारणों का
उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(1) पाकिस्तान अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य-गठबंधन में शामिल हो गया। इससे
अमरीका तथा भारत के संबंधों में खटास पैदा हो गई।
(2) अमरीका, सोवियत संघ से भारत की बढ़ती हुई दोस्ती लेकर भी नाराज था।
6. भारत की नियोजन विकास की रणनीति भारत पर दो विदेशी क्षेत्र से जुड़े क्या बुरे
प्रभाव पड़े थे?                                                           [B.M. 2009A]
उत्तर-(1) भारत की नियोजन विकास रणनीति में आयात कम करने तथा संसाधन-आधार
तैयार करने पर जोर दिया गया जिसके फलस्वरूप निर्यात के मामले में प्रगति बड़ी ही सीमित
रही। (2) बाहरी दुनिया से भारत का आर्थिक लेनदेन बड़ा सीमित रहा।
7. प्रथम एफ्रो-एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ, कब हुआ? इसकी कुछ विशेषताएँ
बताइए।
उत्तर–एफ्रो-एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े शहर बांडुग में 1955 में
हुआ।
विशेषताएँ (Features) : (i) आमतौर पर इसे बांडुग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
(ii) इस सम्मेलन में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने
इंडोनेशिया से नस्लवाद खासकर दक्षिण अफ्रिका में रंग-भेद का विरोध किया।
8. चीन ने तिब्बत में 1958 में अब तक क्या दृष्टिकोण अपना रखा है ? इस संबंध में
तव से भारत का क्या दृष्टिकोण रहा है?
उत्तर-(1) 1955-56 के बाद चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया था। 1958 में चीनी
आधिपत्य के विरुद्ध तिब्बत में सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीन की सेनाओं ने दबा दिया।
(2) स्थिति बिगड़ती देखकर तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाईलामा ने सीमा पारकरन भारत
में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण मांगी। भारत ने दलाईलामा को शरण दे दी। चीन ने
भारत के इस कदम का कड़ा विरोध किया। पिछले 50 सालों में बड़ी संख्या में तिब्बती जनता ने
भारत में शरण ली है।
(3) चीन ने ‘स्वायत्त तिब्बत का क्षेत्र’ बनाया है और इस इलाके को वह चीन का अभिन्न
अंग मानता है। तिब्बती जनता चीन के इस दावे को नहीं मानती कि तिब्बत चीन का अभिन्न अंग
है। ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में चीनी वाशिंदों को तिब्बत लाकर वहाँ बसाने की चीन की नीति का
तिब्बती जनता ने विरोध किया।
(4) तिब्बती चीन के इस दावे को भी नकारते हैं कि तिब्बत को स्वायत्तता दी गई है। वे
मानते हैं कि तिब्बत की पारंपरिक संस्कृति और धर्म को नष्ट करके चीन वहाँ साम्यवाद फैलाना
चाहता है।
9. वी. के. कृष्णामेनन पर एक अति लघु नोट लिखिए।
उत्तर-वी. के कृष्णामेनन का जन्म 1897 में हुआ। वह 1934 से 1947 के बीच ब्रिटेन
की लेबर पार्टी में बहुत सक्रिय (Active) रहे। वे इंग्लैंड में भारत के उच्च आयुक्त (High
Commissioner) और कालांतर से संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के मुखिया रहे। वह संसद के दोनों सदनों अर्थात् राज्यसभा और लोकसभा, दोनों में सांसद रहे। 1956 में वे संघीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री थे। 1957 से वे भारत के रक्षा मंत्री रहे। उन्हीं के काल में भारत-चीन युद्ध 1962 में हुआ जिसमें भारत पराजित हुआ और कृष्णामेनन ने रक्षा मंत्री पद से त्याग-पत्र दे दिया।
10. चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं पर आंतरिक क्षेत्रीय नीतियों के हिसाब
से क्या उल्लेखनीय प्रभाव डाला? संक्षेप में बताइए।
उत्तर-चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डावाँडोल स्थिति के प्रति
सचेत किया। यह इलाका अत्यंत पिछड़ी दशा में था और अलग-थलग पड़ गया था। राष्ट्रीय
एकता और अखंडता के लिहाज से भी यह इलाका चुनौतीपूर्ण था। चीन-युद्ध के तुरंत बाद इस
इलाके को नयी तरतीब में ढालने की कोशिशें शुरू की गई। नगालैंड को प्रांत का दर्जा दिया गया।
मणिपुर और त्रिपुरा हालांकि केंद्रशासित प्रदेश थे लेकिन उन्हें अपनी विधानसभा के निर्वाचन का अधिकार मिला।
11. 1962 और 1965 के युद्धों का भारतीय रक्षा व्यय (Expenditure) पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर भारत ने अपने सीमित संसाधनों के साथ नियोजित विकास की शुरुआत की थी।
पड़ोसी देशों के साथ संघर्ष के कारण पंचवर्षीय योजना पटरी से उतर गई। 1962 के बाद भारत
को अपने सीमित संसाधन खासतौर से रक्षा क्षेत्र में लगाने पड़े। भारत को अपने सैन्य ढाँचे का
आधुनिकीकरण करना पड़ा। 1962 में रक्षा-उत्पाद विभाग और 1965 में रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना हुई। तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66) पर असर पड़ा और इसके बाद लगातार तीन एक-वर्षीय योजना पर अमल हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना 1969 में ही शुरू हो सकी। युद्ध के बाद भारत का रक्षा-व्यय बहुत ज्यादा बढ़ गया।
12. 1962 के बाद 1979 तक भारत-चीन संबंध का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-भारत और चीन के बीच संबंधों को सामान्य होने में करीब दस साल लग गए।
1976 में दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध बहाल हो सके। शीर्ष नेता के तौर पर पहली
बार अटल बिहारी वाजपेयी (वे तब विदेश मंत्री थे) 1979 में चीन के दौरे पर गए। बाद में, नेहरू
के बाद राजीव गाँधी बतौर प्रधानमंत्री चीन के दौरे पर गए। इसके बाद से चीन के साथ भारत के
संबंधों में ज्यादा जोर व्यापारिक मसलों पर रहा है। ‘समकालीन विश्व राजनीति’ की किताब में
आप इन बातों को पढ़ चुके हैं।
13. भारत चीन युद्ध का विपक्षी दलों विशेषकर कम्युनिस्ट पार्टी पर क्या प्रभाव हुआ
था? संक्षेप में लिखिएं।
उत्तर–भारत-चीन युद्ध और चीन-सोवियत संघ के बीच बढ़ मतभेद से भारतीय कम्युनिस्ट
पाटी (भाकपा) के अंदर बड़ी उठा-पटक मची। सोवियत संघ का पक्षधर खेमा भाकपा में ही रहा
और उसने कांग्रेस के साथ नजदीकी बढ़ायी। दूसरा खेमा कुछ समय के लिए चीन का पक्षधर रहा और यह खेमा कांग्रेस के साथ किसी भी तरह की नजदीकी के खिलाफ था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1964 में टूट गई। इस पार्टी के भीतर जो खेमा चीन का पक्षधर था उसने मार्क्सवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सी-पी-आई.एम.-माकपा) बनाई। चीन-युद्ध के क्रम में माकपा के कई नेताओं को चीन का पक्ष लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
14. भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 अथवा पाक-बंगलादेश और भारत युद्ध के तीन
राजनैतिक प्रभाव लिखिए।
उत्तर-(1) भारतीय सेना के समक्ष 90,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना को
आत्मसर्मपण करना पड़ा था।
(2) बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट के उदय के साथ भारतीय सेना ने अपनी तरफ
से एकतरफा युद्ध-विराम घोषित कर दिया। बाद में, 3 जुलाई 1972 को इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला-समझौते पर हस्ताक्षर हुए और इससे अमन की बहाली हुई।
15. विदेश नीति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-विदेश नीति से अभिप्राय (Meaning of the Foreign Policy) : आधुनिक
समय में प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए विदेश नीति निर्धारित
करनी पड़ती है। संक्षेप में विदेश नीति से तात्पर्य उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा अन्य राज्यों
के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं
रह सकता। उसे राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करता है, उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।
16. भारतीय विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर–भारत की विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा निम्न प्रकार की जा सकती
है-(1) भारत की विदेश नीति का उदय संसार में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलनों के युग में हुआ था। अतः यह स्पष्ट है कि भारतीय विदेश नीति का जन्म एक विशेष पर्यावरण में हुआ था। (2)
हमारी विदेश नीति का उदय दूसरे विश्वयुद्ध के बाद परस्पर निर्भरता वाले विश्व के दौर में हुआ
था। (3) भारत की विदेश नीति के मूलाधारों को उपनिवेशीकरण के विघटन की प्रक्रिया को भी एक कारक माना जा सकता है। (4) भारत की विदेश नीति का जन्म उस समय हुआ था जबकि विश्व में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे।
17. विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर-किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति निश्चित करने के लिए निम्नलिखित चार कारक
अनिवार्य माने जाते हैं-
(1) राष्ट्रीय हित
(2) राज्य की राजनीतिक स्थिति
(3) पड़ोसी देशों से संबंध
(4) अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक वातावरण
प्रत्येक राज्य अपनी नीति, जहाँ अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निश्चित करता है, वहाँ उसे
अन्य कारकों जैसे-बदलती क्षेत्रीय राजनीति तथा विश्व में होने वाली घटनाओं के प्रभाव का भी
ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा विचारधाराएँ, लक्ष्य, आदि भी विदेश नीति निश्चित करने
में सहायक होते हैं।
18. विदेश नीति के लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विदेश नीति के मुख्यतः दो लक्ष्य होते हैं-
(1) राष्ट्रीय हित (National Interests) : राष्ट्रीय हितों में आर्थिक क्षेत्र में राष्ट्रीय विकास,
राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय स्थिरता या स्वामित्व, रक्षा क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा आदि का विशेष ध्यान
रखना पड़ता है।
(2) विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण (Attitudes torwards international
problems) : इनमें प्रमुख रूप से विश्वशांति, राज्यों का आर्थिक विकास, मानव अधिकार,
आदि शामिल है।
19. भारतीय विदेशी नीति का सार “शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व” का महत्त्व बताइए।
                                               अथवा
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-भारतीय विदेश नीति का सार “शांतिपूर्ण सहा-अस्तित्व” है। शांतिपूर्ण
सह-अस्तित्व का अर्थ है : बिना किसी मनमुटाव के साथ मैत्रीपूर्ण ढंग से एक देश का दूसरे देश
के साथ रहना। यदि भिन्न राष्ट्र एक-दूसरे के साथ पड़ोसियों की भांति नहीं रहेंगे तो विश्व में शांति
की स्थापना नहीं हो सकती। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व विदेश नीति का मात्र एक सिद्धांत ही नहीं है
अपितु यह राज्यों के बीच व्यवहार का एक तरीका भी है।
20. एशियाई संबंध सम्मेलन 1947 पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-प्रथम एशियाई संबंध सम्मेलन 23 मार्च से 2 अप्रैल 1947 को नई दिल्ली में हुआ
था। इस सम्मेलन में 25 से अधिक देशों के लगभग 250 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। पंडित
नेहरू ने इसे एक ऐतिहासिक सम्मेलन बताया था। इस सम्मेलन के मुख्य लक्ष्य निम्नलिखित
थे-
(1) सभी प्रकार के आक्रमणों का विरोध करना।
(2) विश्व शांति पर बल देना।
(3) एशिया-अफ्रिका मित्रता पर जोर देना।
(4) परमाणु शक्ति का जोरदार विरोध करना।
(5) स्वतंत्रता, सुरक्षा तथा विकास के समान अवसरों की सभी देशों को समान उपलब्धि के लिए प्रयत्न करना।
21. प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कहाँ तथा कब हुआ था? वाद में ऐसे सम्मेलनों की सूची
तैयार कीजिए।
उत्तर-प्रथम गुटनिरपेक्ष सम्मेलन 1961 ई. में बेलग्रेड में हुआ. था। दूसरा सम्मेलन काहिरा
में 1964 ई. में हुआ था। तीसरा सम्मेलन लुसाका में 1970 में हुआ था। पांचवा सम्मेलन 1976
ई. में कोलम्बो में हुआ था। छठा सम्मेलन हवाना में 1979 ई. में हुआ था। सातवाँ सम्मेलन भारत
की राजधानी नई दिल्ली में 1983 ई. में हुआ था। आठवाँ सम्मेलन हरारे में 1986 ई. में हुआ था
तथा नौवाँ सम्मेलन 1989 ई. में एक बार फिर बेलग्रेड में हुआ। दसवाँ सम्मेलन 1992 ई. में
जकार्ता में तथा ग्यारहवाँ सम्मेलन कार्टाजेना में 1995 में हुआ। 12 वाँ सम्मेलन डरबन (द•
अफ्रीका) तथा 13 वाँ सम्मेलन 24 फरवरी 2003 को कुआलालम्पुर (मलेशिया) में हुआ।
22. विदेश नीति की परिभाषा दीजिए।                               [B.M. 2009A]
उत्तर-प्रत्येक राज्य आज विश्व के दूसरे राज्यों से संबंध बनाता है। सभी राज्य एक-दूसरे
पर निर्भर रहते है। एक राज्य जिन सिद्धांतों के आधार पर विदेशी राज्यों से संबंध स्थापित करता
है, उसे उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।
रूथन स्वामी (RuthanSwami) के अनुसार, “विदेश नीति वर्तमान समय में ऐसे सिद्धांतों
और व्यवहारों का समूह है जिनके द्वारा एक राज्य दूसरे राज्यों से संबंधों को नियमित करता है।”
हिल के अनुसार “विदेश नीति एक राष्ट्रों की तुलना में अपने हितों को विकसित करने के
लिए लिए गए उपायों का मूल सार है।’
हार्टमैन (Hartman) के अनुसार “विदेश नीति सोच-समझकर चुने हुए राष्ट्रीय हितों का
सूत्रबद्ध विवरण है।” (A foreign policy is a systematic statement of deliberately selected national interests.)
निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि विदेश नीति किसी राज्य के ऐसे सिद्धांतों और व्यवहारों
का समूह है जिनके द्वारा वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा और उनकी वृद्धि के लिए दूसरे राज्यों
के संबंध में लागू करता है।
23. भारतीय विदेश नीति राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है?
                                                                                                 [B.M.2009A]
उत्तर-भारत की गुटनिरपेक्षता, दूसरे देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध, जातीय भेदभाव का विरोध
और संयुक्त राष्ट्र का समर्थन आदि विदेश नीति के सिद्धांत भारत के राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित
रखने में काफी हद तक सहायक सिद्ध हुए हैं। वास्तव में भारत प्रारंभ से ही शांतिप्रिय देश रहा
है। इसलिए उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत ने संसार के सभी देशों से मित्रतापूर्वक सम्बन्ध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के सम्बन्ध विश्व की महाशक्तियों (रूस तथा अमेरिका) एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे हैं।
                                              लघु उत्तरीय प्रश्न
1. क्या 1950 और 1960 के दशक को विश्व राजनीति में भारत विश्व के दोनों बड़े
सैन्य गुटों (या खेमों) में से किसी भी गुट (खेमे) में शामिल था? क्या भारत अपनी
विदेश नीति को शांतिपूर्ण ढंग से लागू करने और अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों से बचे रहने
में सफल रहा?
उत्तर-(1) 1950 और 1960 के दशकों में भारत विश्व राजनीति में विश्व के दोनों बड़े
सैन्य गुटों में से किसी भी गुट (खेमों) में शामिल नहीं था।
(2) भारत अपनी विदेश नीति को शांतिपूर्ण ढंग से लागू करने में तो सफल रहा। उसने
निष्पक्ष होकर संयुक्त राष्ट्र संघ पर अपनी विदेश नीति को लागू किया। वह संयुक्त राज्य अमरीका
तथा सोवियत संघ दोनों तथा दोनों के ही समर्थक बड़ी शक्तियों से वित्तीय वैज्ञानिक या प्रौद्योगिक
सहयोग तथा मार्गदर्शन ले सका। उसने अनेक देशों से सांस्कृतिक, व्यापारिक समझौते भी किये।
उसने चीन के साथ पंचशील, एफ्रो-एशियाई एकता सम्मेलनों, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ-साथ
गुटनिरपेक्षता आंदोलन में भी भाग लिया।
लेकिन उसे अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों में उलझना पड़ा। उसे चीन के साथ 1962 में तथा पाकिस्तान
से 1965 तथा 1971 में युद्ध करने पड़े। उसे कई देशों में तनाव कम या उनकी स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुरोध पर शांति सेनाएंँ भेजनी पड़ी।
2. नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते
थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
Why did Nehru regard conduct of foreign relations as an essential
indicator of independence? State any two reasons with examples to
support your reading.                      [NCERT, T.B.Q. 3]
उत्तर-भारत की विदेश नीति के संचालन के संदर्भ में नेहरू का दृष्टिकोण (Nehru
outlook torun the foreign policy of India) : भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रीय एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाई। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ विदेश मंत्री भी थे। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री के रूप में 1946 से 1964 तक उन्होंने भारत की विदेश नीति की रचना और क्रियान्वयन पर गहरा प्रभाव डाला। नेहरू की विदेश नीति के तीन बड़े उद्देश्य थे-कठिन संघर्ष से प्राप्त संप्रभुता को बचाए रखना, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना और तेज रफ्तार से आर्थिक विकास करना। नेहरू इन उद्देश्यों को गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाकर हासिल करना चाहते थे।
इस संदर्भ में नेहरू जी द्वारा विदेश नीति की रचना संबंधी एक उद्धरण जो उनसे प्रभावित
और कालातर में उन्हीं के मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले एक केबिनेट मंत्री मेनन का उदाहरण दे
देना उचित जान पड़ता है।
“आमतौर पर हमारी नीति ताकत की राजनीति से अपने को अलग रखने और महाशक्तियों
के एक खेमे के विरुद्ध दूसरे खेमे में शामिल न होने की है। आज दो अग्रणी खेमे रूस और
अमरीका-ब्रिटेन के हैं। हमें दोनों के साथ दोस्ताना संबंध रखना है। साथ ही उनके खेमे में शामिल
भी नहीं होता है। रूस और अमरीका एक-दूसरे को लेकर बहुत शंकित हैं और अन्य देशों पर भी
शक करते हैं। इस कारण हमारा रास्ता कठिन है और दोनों हम पर शक कर सकते हैं कि हम उनके विरोधी खेमे की तरफ झुक रहे हैं। इससे बचा नहीं जा सकता।’
दो कारण और उदाहरण (Two Reasons and Examples) : (i) भारत गुटों से अलग
रहकर दोनों देशों से सहायता प्राप्त करना चाहता था ताकि देश का जल्दी-से-जल्दी विकास हो
सके। नेहरू जी ने गुटनिरपेक्षता आंदोलन के जनक समूह के सदस्यों में से एक उल्लेखनीय सदस्य के रूप में कुछ वर्षों तक भूमिका निभाई।
(ii) भारत स्वतंत्र नीति को इसलिए अनिवार्य मानता था ताकि देश में लोकतंत्र, कल्याणकारी
राज्य के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपनिवेशवाद, जातीय भेद-भाव, रंग-भेद भाव का
मुकाबला डट कर किया जा सके। नेहरू जी ने एफ्रो-एशियाई सम्मेलन में भाग लिया। इंडोनेश्यिा
की स्वतंत्रता का समर्थन किया। चीन, तिब्बत आधिपत्य को स्वीकार किया। चीन के सुरक्षा परिषद में सदस्यता का समर्थन किया। उससे पहले ही 1949 में साम्यवादी चीन को सबसे पहले मान्यता दी और सोवियत संघ ने हंगरी पर जब आक्रमण किया तो उसकी निंदा की।
3. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला को कहा जाए तो आप
इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएंँ कि भारत
की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
Identify and two aspects of India’s foreign policy that you would like to
retain and two that you would like to change, if you were to become a decision maker. Give reasons to support your position. [NCERT,T.B.Q.5]
उत्तर-वैसे तो मैं कक्षा बारहवीं का विद्यार्थी हूँ लेकिन एक नागरिक के रूप में और राजनीति
विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मुझे प्रश्न में जो कहा गया उसके अनुसार मैं दो पहलुओं को
बरकरार रखना चाहूंँगा।
(6) सी•टी•बी•टी• के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को
जारी रखूँगा।
(ii) मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से
सहयोग जारी रखूँगा।
(iii) दो बदलने वाले पहलू निम्नलिखित होंगे
(क) मैं गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग करके संयुक्त राज्य अमेरिका और
पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा क्योंकि आज दुनिया में पश्चिमी देशों
की तूती बोलती है और वे ही सम्पत्ति और शक्ति सम्पन्न हैं। रूस और साम्यवाद निरंतर ढलाने
की दिशा में अग्रसर हो रहा है।
(ख) मैं पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक संधि करूँगा तो जर्मनी के बिस्मार्क की तरह अपने
राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ देश के साथ ऐसी संधि करुंगा ताकि
चीन 1962 की तरह भारत को मनमाने ढंग से अपने आक्रमण को निशाना बनाकर हमारे देश के
भू-भाग को अपने कब्जे में न रखे और शीघ्र ही तिब्बत, बारमासा, हाँगकाँग को अंतर्राष्ट्रीय समाज में स्वायत्पूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न करूंगा और संभव हुआ तो नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ सामूहिक प्रतिरक्षा संबंधी व्यापक उत्तरदायित्व और गठजोड़ की संधियाँ/समझौते करूंँगा।
4. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए :
Write short notes on the following.
(क) भारत की परमाणु नीति (India’s Nuclear policy)
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति
(Consensus in foreign policy maters)                     [B.M.2009A]
उत्तर-(क) भारत की परमाणु नीति (Nuclear policy of India) : भारत के 1974
के मई में परमाणु परीक्षण किया। तेज गति से आधुनिक भारत के निर्माण के लिए नेहरू ने हमेशा विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर अपना विश्वास जताया था। नेहरू की औद्योगीकरण की नीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक – परमाणु कार्यक्रम था। इसकी शुरुआन 1940 के दशक के अंतिम सालों में होमी जहाँगीर भाभा के निर्देशन में हो चुकी थी। भारत शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल के लिए अणु ऊर्जा बनाना चाहता था। नेहरू परमाणु हथियारों के खिलाफ थे। उन्होंने महाशक्तियों पर व्यापक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए जोर दिया। बहरहाल, परमाणु आयुधों में बढ़ोतरी होती रही।
साम्यवादी शासन वाले चीन ने 1964 के अक्तूबर में परमाणु परीक्षण किया। अणुशक्ति-संपन्न
बिरादरी यानी संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने, जो संयुक्त राष्ट्र
संघ की सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य भी थे, दुनिया के अन्य देशों पर 1968 की परमाणु अप्रसार संधि को थोपना चाहा। भारत हमेशा से इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता आया था। भारत ने इस पर दस्तखत करने से इंकार कर दिया था। भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो इसे उसने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का कहना था कि वह अणुशक्ति को सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल करने की अपनी नीति के प्रति दृढ़ संकल्प है।
(ख) विदेश नीति के मामलों पर सर्व-सहमति (All agree about affairs related
vith foreign policy) : यद्यपि हमारे देश के राजनीतिक दलों के बीच विदेश नीति के बारे में
छोटे-मोटे मतभेद जरूर लेकिन भारतीय राजनीति में विभिन्न दलों के बीच राष्ट्रीय सीमा सुरक्षा
तथा राष्ट्रीय हित के मसलों पर व्यापक सहमति है। इस कारण, हम देखते हैं कि 1962-1972 के बीच जब भारत ने तीन युद्धों का सामना किया और इसके बाद के समय जब समय-समय पर
कई पार्टियों ने सरकार बनाई-विदेश नीति की भूमिका पार्टी राजनीति में बड़ी सीमित रही।
5. क्या भारत की विदेश नीति से यह झलकता है कि भारत क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति
बनना चाहता है? 1971 के बांग्लादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
Does India’s foreign policy reflect her desire to be an important regional
power? Argue your case with the Bangladesh war of 1971 as an example.
                                                                                    [NCERT, T.B.Q.8]
उत्तर-भारत की विदेश नीति से यह बिल्कुल नहीं झलकता कि भारत क्षेत्रीय स्तर की
महाशक्ति बनना चाहता है। 1971 का बंगला देश इस बात को बिल्कुल साबित नहीं करता। बंगला देश के निर्माण के लिए स्वयं पाकिस्तान की पूर्वी पाकिस्तान के प्रति उपेक्षापूर्ण नीतियाँ, बंगालियों की अपनी भाषा, संस्कृति के प्रति अटूट प्यार और उसे यह पूर्ण यकीन था कि भारत एक शांतिप्रिय देश है। वह शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीतियों में विश्वास करता आया है, कर रहा है और भविष्य में भी करेंगा।
भारत ने आज तक बंगलादेश पर न आक्रमण किया और न वह सोच रहा है। बंगला देश
के साथ मामूली मामलों को छोड़कर भारत के साथ अच्छे संबंध हैं।
चीन भी यह मानता हैं कि भारत अब 1962 का भारत नहीं है। पाकिस्तान मानता है कि
भारत एक बड़ी शक्ति बनता जा रहा है। उसका कारण है। यहाँ के प्राकृतिक संसाधन, शांतिपूर्ण
पंचशील, निशस्त्रीकरण, गुटनिरपेक्षता आदि सिद्धांतों पर टिकी उसकी विदेश नीति है। भारत तो
महावीर स्वामी ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर यकीन करता है लेकिन वह कायरों का नहीं
बल्कि वह वीरों और वीरांगनाओं का देश है जिसकी गवाही न केवल स्वामी राजस्थानियों का,
मराठों का बल्कि स्वतंत्र भारत का 1857 से लेकर आज 2008 तक इतिहास गवाही दे रहा है।
6. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह राष्ट की विदेश नीति पर असर डालता
है? भारत की विदेश-नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
How does political leadership of a nation affect its foreign policy? Explain this with the help of examples from India’s foreign policy.
                          [Board Exam. 2009A; B.M. 2009ABNCERT, T.B.Q.9]
उत्तर-हर देश का राजनैतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है।
उदाहरण के लिए नेहरू जी के सरकार के काल में गुटनिरपेक्षता की नीति बड़ी जोर-शोर में चली
लेकिन शास्त्री जी ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देकर यह साबित कर दिया कि भारत
की तीनों तरह की सेनाएंँ हर दुश्मन को जवाब देने की ताकत रखती है। उन्होंने स्वाभिमान से
जीना सिखाया। ताशकंद समझौता किया लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति को नेहरू जी के समान
जारी रखा।
कहने को श्रीमती-इंदिरा गांँधी नेहरू जी की पुत्री थीं लेकिन भावनात्मक रूप से वह रूस से
अधिक प्रभावित थीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भूतपूर्व देशी नरेशों के प्रिवीपर्स समाप्त किये, गरीबी हटाओ का नारा दिया और रूस से दीर्घ अनाक्रामक संधि की।
राजीव गांँधी के काल में चीन पाकिस्तान सहित अनेक देशों से संबंध सुधारे गए तो श्रीलंका
के उन देशद्रोहियों को दबाने में वहांँ की सरकार को सहायता देकर यह बता दिया भारत
छोटे-बड़े देशों की अखंडता का सम्मान करता है।
कहने को एन.डी.ए. या बी• जे• पी• की सरकार कुछ ऐसे तत्त्वों से प्रभावित थी साम्प्रदायिक
आक्षेप से बदनाम किए जाते है लेकिन उन्होंने भारत को चीन, रूस, अमेरिका, पाकिस्तान,
बांगलादेश, श्रीलंका जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों से विभिन्न क्षेत्रों से समझौते करके
बस, रेल, वायुयान, उदारीकरण उन्मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आतंकवादी विरोधी नीति को
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पड़ोसी देशों में उठाकर यह साबित कर दिया कि भारत की विदेश नीति केवल देश हित में होगी उस पर धार्मिक या किसी राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व नहीं होगा।
अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति, नेहरू जी की विदेश नीति से जुदा न होकर लोगों
को अधिक प्यारी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का हुआ विस्तार जय जवान के साथ आपने
दिया नारा ‘जय जवान जय किसान और जय विज्ञान’।
7. कारगिल की लड़ाई पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-कारगिल की लड़ाई (Battle of Kargil):
(1) 1999 के शुरुआती महीनों में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे
द्राक्ष, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिद्दीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना की इसमें मिलीभगत भाँप कर भारतीय सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत में आयी। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे ‘कारगिल की लड़ाई’ के नाम से जाना जाता है।
(2) 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकतर
ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था
क्योंकि इससे ठीक एक साल पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।
(3) जो भी हो यह लड़ाई सिर्फ कारगिल के क्षेत्र तक ही सीमित रही। पाकिस्तान में, इस
लड़ाई को लेकर बहुत विवाद मचा। कहा गया कि सेना के प्रमुख ने प्रधानमंत्री को इस मामले में
अँधेरे में रखा था। इस लड़ाई के तुरंत बाद पाकिस्तान की हुकूमत पर जनरल परवेज मुशर्रफ की
अगुआई में पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण कर लिया।
8. गुटनिरपेक्षता के सार तत्त्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-गुटनिरपेक्षता आंदोलन के सार तत्त्व का विवेचन निम्नलिखित है-
(1) साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद का विरोध करना। यदि संसार में साम्राज्यवाद और
उपनिवेशवाद का अंत हुआ है तो उसका श्रेय गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जाता है। इस आंदोलन से
नव-उपनिवेशवाद को क्षति पहुंची है।
(2) गुटनिरपेक्ष आंदोलन के कारण जाति-भेद, नस्ल-भेद आदि को भी हानि हुई है। गुटनिरपेक्ष
देशों में इन अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के विरुद्ध समय-समय पर आवाज उठाई गई है।
(3) युद्धों को टालने तथा विश्व में शांति, सुरक्षा स्थापित करने में भी गुटनिरपेक्षता की
सराहनीय भूमिका रही है। गुटनिरपेक्षता के कारण आक्रमणकारी नीतियों को क्षति पहुंची है।
(4) गुटनिरपेक्ष आंदोलनों ने अपने भिन्न-भिन्न मंचों पर विदेशी आक्रमण, कब्जे, आधिपत्य
के साथ-साथ बड़ी-बड़ी शक्तियों के हस्तक्षेप व उनमें गुटबंदी की भी निंदा की है।
9. भारत की विदेश नीति की एक विशेषता के रूप में “अंतर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण
समाधान” पर एक टिप्पणे लिखिए।
उत्तर-साधारण शब्दों में विदेश नीति से तात्पर्य उस नीति से है जो राज्य अथवा देश द्वारा
अन्य राज्यों अथवा देशों के प्रति अपनाई जाती है। भारत ने भी 1947 ई. में राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अपनी एक स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई। इसकी कई विशेषताएँ हैं और उनमें से एक विशेषता है अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान। इस कार्य के लिए भारत ने विश्व को पंचशील के पाँच सिद्धांत दिये तथा हमेशा ही संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन किया। समय-समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शांति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायत प्रदान की। जैसे स्वेज नहर की समस्या, हिन्द-चीन का प्रश्न, वियतनाम की समस्या, कांगो की समस्या, साइप्रस की समस्या, भारत-पाक युद्ध, इराक-ईरान युद्ध आदि अन्तर्राष्ट्रीय विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भारत ने भरसक प्रयास किए और अपने अधिकतर प्रयत्नों में सफलता भी प्राप्त की।
10. भारत और विश्व शांति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व में शांति की स्थापना करना है।
जवाहर लाल नेहरू ने 1949 में कहा था कि “भारतीय विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य पंचशील,
शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, निशस्त्रीकरण, मानव अधिकारों का समर्थन आदि हैं। भारत ने 1947 से
1989 तक विश्व की दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध समाप्त करवाने के लिए हमेशा प्रयत्न
किया। उपनिवेशों के स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन किया। भारत हमेशा से ही विश्व शांति के
प्रयास करता रहता है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जाने वाली शांति स्थापना के लिए सैनिक कार्यवाही में अपना
सहयोग दिया है। भारत ने इस उद्देश्य के लिए कई देशों में अपनी सेनाएं भेजी है। उदाहरण के
लिए कई देशों में अपनी सेनाएँ भेजी हैं। उदाहरण के लिए 1950 में कोरिया के युद्ध में भारत ने
चिकित्सा शिष्टमंडल भेजा था। इसी प्रकार कांगो में (1960-64), साहप्रस (1964) मिस्र तथा
गाजा में (1956) तथा अन्य राज्यों में भी संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर शांति स्थापना के लिए
सैनिक टुकड़ियाँ भेजी हैं।
11. भारत की विदेश नीति के संदर्भ में ‘पंचशील’ का अर्थ बताइए।   [B.M.2009A]
उत्तर-पंचशील का अर्थ है ‘पाँच सिद्धांत’। ये सिद्धांत हमारी विदेश नीति का मूल आधार
हैं। इन पाँच सिद्धांतों के लिए ‘पंचशील’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले 29 अप्रैल 1954
को किया गया था। ये ऐसे सिद्धांत है कि यदि इनपर विश्व के सब देश चलें तो विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धांत अग्रलिखित हैं-
(1) एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
(2) एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
(3) एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
(4) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को मानना।
(5) आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।
भारतीय नेताओं और विशेषकर जवाहरलाल नेहरू के अनुसार उपर्युक्त सिद्धांत पर चलने
से स्थायी अन्तर्राष्ट्रीय शांति स्थापित की जा सकती है।
12. भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्षण अथवा उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-प्रत्येक राष्ट्र की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना होता है। अतः
भारत की विदेश नीति का भी प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति व विकास करना है।
भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का समर्थन करना तथा आपसी मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान
का प्रयत्न करना.
(2) विश्वव्यापी तनाव दूर करके परस्पर समझौते को बढ़ावा देना और संघर्ष नीति तथा सैन्य
गुटबाजी का विरोध करना।
(3) शस्त्रों की होड़ विशेष रूप से आणविक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना तथा व्यापक
निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना।
(4) राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना ताकि राष्ट्र की स्वतंत्रता व अखण्डता पर हर प्रकार के
खतरे को रोका जा सके।
(5) साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद, पृथकतावाद तथा सैन्यवाद का विरोध करना।
(6) स्वतंत्रता आंदोलनों, लोकतांत्रिकों संघर्षों व आत्म-निर्धारण के संघर्षों का समर्थन करना।
(7) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा पंचशील के आदर्शों को बढ़ावा देना।
(8) विश्व के सभी राष्ट्रों विशेष तौर से पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना।
(9) राष्ट्रों के बीच संघर्ष वातावरण को कम करना व उनमें आपसी सूझ-बूझ तथा मैत्रीपूर्ण
सम्बन्धों को बढ़ावा देना।
(10) एक लोकतांत्रिक विश्व की स्थापना के लिए मानव अधिकारों को एक आवश्यक शर्त
के रूप में मान्यता दिए जाने तथा उन्हें लागू किए जाने पर जोर देना।
13. भारत की विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता का महत्त्व बताइए। [B.M. 2009A]
उत्तर-भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धांत गुटनिरपेक्षता है। इसका अर्थ है कि
भारत अन्तर्राष्ट्रीय विषयों के संबंध में अपनी स्वतंत्र निर्णय लेने की नीति का पालन करता है।
सारा विश्व 1991 तक दो गुटों में विभाजित था : एक अमेरिकी गुट तथा दूसरा सोवियत संघ के
नेतृत्व में साम्यवादी गुट। भारत ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद अपनी विदेशी नीति में गुटनिरपेक्षता
के सिद्धांत को अत्यधिक महत्त्व दिया। गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जन्म देने तथा उसको बनाए रखने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 1961 से लेकर 24 फरवरी 2003 द्वारा इसके 13 वें शिखर सम्मेलन (कुआलालम्पुर तक भारत ने इसको बराबर सशक्त बनाए रखने का प्रयत्न किया है। भारत प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय समस्या का समर्थन या विरोध उसमें निहित गुण और दोषों के आधार पर करता है। भारत ने यह नीति अपने देश की राजनीतिक, आर्थिक और भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए अपनायी है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद से ही भारत को अमेरिकन तथा पूर्व सोवियत संघ के गुटों ने अपनी ओर आकर्षित करने तथा अपने गुट में शामिल करने का प्रयास किया परंतु किसी भी गुट में शामिल नहीं हुआ। नेहरू, नासिर तथा टीटो के द्वारा शुरू किया गया गुट निरपेक्ष आंदोलन आज 116 राष्ट्रों की सदस्यता से परिपूर्ण है। अभी तक भारत में 13 आम चुनाव हो चुके हैं। प्रत्येक बार बनने वाली सरकारों ने अपनी विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता की नीति ही अपनायी है।
14. “भारत की विदेश नीति जातिवाद व रंगभेद का विरोध करती है।” स्पष्ट करें।
                                                                                         [B.M.2009A]
उत्तर-जातिवाद व रंगभेद (Rocial discrimination) : भारत की विदेश नीति की
एक प्रमुख विशेषता जातिभेद व रंगभेद का विरोध है। भारत ने सदा ही जातिभेद व रंगभेद का
विरोध किया है। यूरोप के श्वेत जातियों ने अन्य जातियों के साथ दुर्व्यवहार किया है। उन्हें हेय
समझा है। उन्हें हीन बता कर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया है। भारत में भी अंग्रेजों ने
भारतीयों के साथ बड़े अत्याचार किये थे। भारत ने स्वतंत्र होने के पश्चात अफ्रीका के अश्वेत
लोगों के साथ यूरोप की श्वेत जातियों द्वारा किये जाने वाले भेदभाव का कड़ा विरोध किया।
रोडेशिया (जिम्बाब्वे) तथा दक्षिण अफ्रीका के गोरे शासन की नीतियों का भारत ने खुलकर निरंतर विरोध किया और अफ्रीकी जनता के स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग दिया है। इतना ही नहीं अफ्रीकी देशों में और विशेषतः दक्षिण अफ्रीका में गोरी अल्पसंख्यक सरकार ही अश्वेतों के विरुद्ध रंगभेद नीति के सम्बन्ध में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से कठोर रुख अपनाने का आग्रह किया। भारत के प्रयासों के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र ने रंगभेद की नीति के विरुद्ध अनेक प्रस्ताव पारित किए हैं।
15. गुटनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा तटस्थता से उसका भेद कीजिए।
                                                                                        [B.M:2009A]
उत्तर-गुटनिरपेक्षता का अर्थ है : किसी भी गुट में सम्मिलित न होना और किसी भी
गुट या राष्ट्र के कार्य की सराहना या निन्दा आँख बन्द करके, बिना सोचे-समझे न करना। वास्तव
में गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने वाला राष्ट्र अपने लिए एक स्वतंत्र विदेश नीति का निर्धारण
करता है। वह राष्ट्र अच्छाई या बुराई, उचित व अनुचित का निर्णय स्व-विवेक से करता है। दूसरे
विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। इसमें एक पश्चिमी देशों का गुट था
और दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के काफी प्रयास किए, परंतु भारत ने दोनों ही प्रकार के सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया। इस कारण ही भारत एक गुटनिरपेक्ष राष्ट्र कहलाता है। भारत ने यह निश्चय किया कि वह किसी सैनिक गठबन्धन का सदस्य नहीं बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा तथा निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।
गुटनिरपेक्षता और तटस्थता में अंतर है। गुटनिरपेक्ष देश युद्ध तथा शांति में तटस्थ नहीं
रहते। अन्तर्राष्ट्रीय कानून गुटनिरपेक्षता को मान्यता नहीं देता जबकि यह तटस्थता को मान्यता
देता है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार तटस्थ देश के कुछ अधिकारों व कर्तव्य होते हैं दूसरी ओर
गुटनिरपेक्ष देश के अन्तर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार कोई अधिकार व कर्तव्य निश्चित नहीं किए
जाते।
16. भारत के गुटनिरपेक्षता की नीति क्यों अपनाई हैं?               [B.M. 2009A]
उत्तर-15 अगस्त 1947 ई. को स्वतंत्रता के पश्चात् भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को
अपनाया। भारत द्वारा इस नीति को अपनाने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(1) भारत ने अपने को गुट संघर्ष में सम्मिलित करने की अपेक्षा देश की आर्थिक, सामाजिक
तथा राजनीतिक प्रगति की ओर ध्यान देने में अधिक लाभ समझा क्योंकि हमारे सामने अपनी
प्रगति अधिक आवश्यक है।
(2) सरकार द्वारा किसी भी गुट के साथ मिलने से यहाँ की जनता में विभाजनकारी प्रवृत्ति
उत्पन्न होने का भय था और उससे राष्ट्रीय एकता को धक्का लगता।
(3) किसी भी गुट के साथ मिलने और उसका पिछलग्गू बनने से राष्ट्र की स्वतंत्रता कुछ
अंश तक अवश्य प्रभावित होती है।
(4) भारत स्वयं एक महान देश है और इसे अपने क्षेत्र में अपनी स्थिति को महत्वपूर्ण
के लिए किसी बाहरी शक्ति की आवश्यकता नहीं थी।
16. ताशकंद समझौता क्या है?                            [Board Exam. 2009A]
उत्तर-10 जनवरी, 1966 को सोवियत प्रधानमंत्री कोसीजिन के प्रयास से भारत और
पाकिस्तान के बीच ताशंकद समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता भारतीय प्रधानमंत्री
लाल बहादुर शास्त्री एवं पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खाँ के बीच हुआ, जिसके अन्तर्गत यह घोषणा की गयी कि भारत और पाकिस्तान आपस में सद्भाव एवं शांतिपूर्ण संबंध बहाल करेंगे और अपने लोगों के बीच दोस्ताना संबंध बढ़ाने का भी संकल्प लिया गया।
समझौता की शर्तों के अनुसार दोनों देश युद्ध पूर्व की सीमा रेखा पर लौटने और भविष्य में
अपने संबंधों को मित्रता और सहयोग के आधार पर विकसित करने पर भी बल दिया गया।
17. शिमला समझौता क्या है?                              [Board Exam. 2009A]
उत्तर-1971 में भारत-पाक युद्ध की समाप्ति के बाद दोनों देशों के बीच 1972 में शिमला
समझौता हुआ। यह समझौता 3 जुलाई, 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति जेड. ए. भुट्टो के बीच सम्पन्न हुआ जिसका उद्देश्य था कि दोनों देश आपसी विवादों और समस्याओं को आपसी समझौता से सुलझाएंगे। एक-दूसरे पर बल प्रयोग नहीं करेंगे। प्रांतीय अखंडता को नहीं तोड़ेंगे और न ही राजनीतिक स्वतंत्रता में दखल देंगे। दोनों देश मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देंगे। साथ-ही-साथ यातायात, संचार, संस्कृति, विज्ञान आदि में दोनों देश एक-दूसरे की सहायता करेंगे।
                                            दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भारत की विदेश नीति विश्व शांति की स्थापना में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है?
                                                                                        [B.M. 2009A]
उत्तर-प्रस्तावना : भारत ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् जो विदेश नीति अपनाई उसके
अनुसार गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेशी नीति का आधार बनाया। विश्व के सभी देशों
के साथ और विशेषतया अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाये रखना और विश्व
शांति को बनाए रखना भारत की विदेश नीति के उद्देश्य रहे हैं। विश्व शांति की स्थापना में भारत
के योगदान का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है-
विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान (Contribution of Indian in
maintaining world-peace) :
(i) भारत की तटस्थता की नीति (India’s policy of neutrality)-अन्तर्राष्ट्रीय
मामलों में भारत ने हमेशा तटस्थता की नीति को अपनाया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सारा
विश्व दो विरोधी गुटों में बंटा हुआ है और ये दोनों गुट संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के रास्ते
में एक रुकावट सिद्ध हो रहे थे। इन दोनों गुटों के आपसी खिंचाव के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की
शंकाए बढ़ती जा रही हैं परंतु भारत हमेशा इन दोनों गुटों से तटस्थ रहा है और दोनों महाशक्तियों
को एक-दूसरे से नजदीक लाने के लिए कोशिशें करता रहा है।
(ii) सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the military alliances)-विश्व में
बहुत-से सैनिक गुट बने जैसे नाटो, सैन्ट्रो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा है कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधक हैं। अतः भारत ने हमेशा इन सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं की बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है।
(iii) निःशस्त्रीकरण में सहायता (Support of disarmament)-संयुक्त राष्ट्र संघ ने
निःशस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है। इस समस्या को हल करने के लिए बहुत से
प्रयास किए हैं। भारत ने इस समस्या को समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र की मदद की
है क्योंकि भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की स्थापना हो सकती है। सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था, “विकास स्वतंत्रता, निःशस्त्रीकरण और शांति परस्पर एक-दूसरे से संबंधित हैं। क्या नाभिकीय अस्त्रों के रहते शांति संभव है?… एक नाभिकीय विमानवाहक पर जो खर्च होता है वह 53 देशों के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से अधिक है। नाग ने अपना फन फैला दिया है। समूची मानव जाति भयाक्रांत और भयभीत निगाहों से उसे इस झूठी आशा के साथ देख रही है कि वह उसे काटेगा नहीं।”
(iv) जातीय भेदभाव का विरोध (Opposition of the policy of dicriminations
based on caste, creed and colour)-भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय
भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेदभाव को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिण अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाता तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है।
(v) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (Co-operation to the United Nation)-संयुक्त
राष्ट्र संघ के उद्देश्यों को भारतीय संविधान में भी दिया गया है तथा भारत शुरू से ही इसका सदस्य रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्तिशाली बनाना और उसके कार्यों में सहयोग देना भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शांति प्रयासों में भारत ने
हर प्रकार की सहायता प्रदान की। जैसे स्वेज नहर, हिन्द-चीन के प्रश्न, वियतनाम की समस्या,
साइप्रस आदि में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर अपनी सेवाएं भी भेजी थीं। भारत कई बार
सुरक्षा परिषद का भी सदस्य चुना गया है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेन्सियों का सदस्य
बनकर क्रियात्मक योगदान प्रदान करता रहा है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी
सदस्यता के लिए भारत प्रयासरत है।
2. विदेश नीति से क्या अभिप्राय है? भारत की विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांतों का
विवेचन कीजिए।                                                           [B.M. 2009A]
                                   अथवा,
भारतीय विदेश नीति के मूल सिद्धांत क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
                                   अथवा,
भारत विदेश नीति के चार आधारभूत सिद्धांत बताइए।
उत्तर-विदेश नीति (Foreign Policy) : साधारण शब्दों में विदेश नीति से तात्पर्य उस
नीति से है जो एक राज्य द्वारा राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र
देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। उमेराजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक
जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने
के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करता है उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of India’s foreign
policy) :
(i) गुटनिरपेक्षता (Non-alignment)-दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में
विभाजित हो गया। इसमें एक पश्चिम देशों का गुट था और दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों
महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के काफी प्रयास किए, परंतु भारत के दोनों ही प्रकार
के सैनिक गुटों से अलग रहने निश्चय किया और तय किया कि वह किसी सैनिक गठबंधन का
सदस्य नहीं बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा तथा प्रत्येक राष्ट्रीय महत्त्व के प्रश्न पर स्वतंत्र
तथा निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।
(ii) उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का विरोध (Opposition to colonialism and
imperialism)-साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतंत्रता का अपहरण करके उनके शोषण
करते हैं। संघर्ष और युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा है। द्वितीय महायुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका व लेटिन अमेरिका के अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र हो गए। पर साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो पाया है। भारत ने एशियाई और अफ्रीकी देशों की एकता का स्वागत किया है।
(iii) अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly relations with other
countries)-भारत की विदेश नीति की अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों
से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण संबंध एशिया
के देशों से ही बढ़ाए हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी संबंध बनाए हैं। भारत के नेताओं
ने कई बार स्पष्ट घोषणा की है कि भारत सभी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।
(iv) पंचशील और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Panchsheel and Peaceful
Co-existence)-पंचशील का अर्थ है पाँच सिद्धांत। ये सिद्धांत हमारी विदेश नीति के मूल
आधार हैं। इन पाँच सिद्धांतों के लिए “पंचशील” शब्द का प्रयोग सबसे पहले 24 अप्रैल 1954
ई. को किया गया था। ये ऐसे सिद्धांत हैं कि यदि इन पर विश्व के सब देश चलें तो विश्व में
शांति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
1. एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
2. एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
3. एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
4. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को मानना।
5. आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।
पंचशील के ये पांँच सिद्धांत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। ये
संसार के बचाव की एकमात्र आशा हैं क्योंकि आज का युग परमाणु बम और हाइड्रोजन बम का
युग है। युद्ध के छिड़ने से कोई भी नहीं बच पायेगा। अतः केवल इन सिद्धांतों को मानने से ही
संसार में शांति स्थापित हो सकती है।
(v) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा (Safeguarding the national interests)-भारत प्रारंभ
से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए उसने अपनी विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर
आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को
पूरा करने के लिए भारत ने संसार के सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों (रूस तथा अमेरिका) एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे हैं।
3. “विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे
दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक
उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
“The conduct of foreign affairs is an outcome of a two-way interaction
between domestic compulsions and prevailing internatinal climate”. Take one example from India’s external relations in the 1960s to substantiate your answer.                                  [NCERT, T.B.Q.4]
उत्तर-घरेलू आवश्यकता और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ (Domestic Necessities
and international circumstances) :
(क) जिस तरह किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अंदरूनी और बाहरी कारक निर्देशित
करते हैं उसी तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वातावरण का असर
पड़ता है। विकासशील देशों के पास अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के भीतर अपने सरोकारों को पूरा करने
के लिए जरूरी संसाधनों का अभाव होता है। इसके चलते वे बढ़े-चढ़े देशों की अपेक्षा बड़े सीधे-सादे लक्ष्यों को लेकर अपनी विदेश नीति तय करते हैं। ऐसे देशे का जोर इस बात पर होता है कि उनके पड़ोस में अमन-चैन कायम रहे और विकास होता रहे।
(ख) भारत एक विकासशील देश है। इसके अतिरिक्त, विकासशील देश आर्थिक और सुरक्षा
की दृष्टि से ज्यादा ताकतवर देशों पर निर्भर होते हैं। इस निर्भरता का भी उनकी विदेश नीति पर
जब-तब असर पड़ता है। दूसरे विश्वयुद्ध के तुरंत बाद के दौर में अनेक विकासशील देशों ने
ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति अपनाई क्योंकि इन देशों से इन्हें
अनुदान अथवा कर्ज मिल रहा था। इस वजह से दुनिया के विभिन्न देश दो खेमों में बँट गए। एक
खेमा संयुक्त राज्य अमरीका और उसके समर्थक देशों के प्रभाव में रहा तो दूसरा खेमा सोवियत
संघ के प्रभाव में।
उदाहरण (Example) :(1) भारत अभी बाकी विकासशील देशों को गुटनिरपेक्षता की नीति
के बारे में आश्वस्त करने में लगा था कि पाकिस्तान अमरीकी नेतृत्व वाले सैन्य-गठबंधन में
शामिल हो गया। इस वजह से 1950 के दशक में भारत-अमरीकी संबंधों में खटास पैदा हो गई।
अमरीका, सोवियत संघ से भारत की बढ़ती हुई दोस्ती को लेकर भी नाराज था।
(2) 1956 में जब ब्रिटेन ने स्वेज नहर के मामले को लेकर मिस्त्र पर आक्रमण किया तो
भारत ने इस नव-औपनिवेशिक हमले के विरुद्ध विश्वव्यापी विरोध की अगुवाई की। इसी साल
सोवियत संघ ने हंगरी पर आक्रमण किया था लेकिन भारत ने सोवियत संघ के इस कदम की
सार्वजनिक निंदा नहीं की। ऐसी स्थिति के बावजूद, कमोवेश भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर
स्वतंत्र रवैया अपनाया। उसे दोनों खेमों के देशों ने सहायता और अनुदान दिए।
(3) बांडुग-सम्मेलन में ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला
सम्मेलन 1961 के सितंबर में बेलग्रेड में हुआ। गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना में नेहरू की
महती भूमिका रही थी।
(ग) उपसंहार तथा पुष्टि (Conclusion or Proof) : भारत ने अपने सीमित संसाधनों
के साथ नियोजित विकास की शुरुआत की थी। पड़ोसी देशों के साथ संघर्ष के कारण पंचवर्षीय
योजना पटरी से उतर गई। 1962 के बाद भारत को अपने सीमित संसाधन खासतौर से रक्षा क्षेत्र
में लगाने पड़े। भारत को अपने सैन्य ढाँचे का आधुनिकीकरण करना पड़ा। 1962 में रक्षा-उत्पाद विभाग और 1965 में रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना हुई। तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966) पर असर पड़ा और इसके बाद लगातार तीन एक-वर्षीय योजना पर अमल हुआ। चौथी पंचवर्षीय योजना 1969 ही शुरू हो सकी। युद्ध के बाद भारत का रक्षा-व्यय बहुत ज्यादा बढ़ गया।
साम्यवादी शासन वाले चीन ने 1964 के अक्तूबर में परमाणु परीक्षण किया। अणुशक्ति-संपन्न
बिरादरी यानी संयुक्त राज्य अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ने, जो संयुक्त राष्ट्र
संघ की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य भी थे, दुनिया के अन्य देशों पर 1968 की परमाणु अप्रसार-संधि को थोपना चाहा। भारत हमेशा से इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता आया था। भारत ने जब अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो इसे उसने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया। भारत का कहना था कि वह अणुशक्ति को सिर्फ शांतिपूर्ण उद्देश्यों में इस्तेमाल करने की अपनी नीति के प्रति दृढ़ संकल्प है।
4. भारत की विदेश नीति का निर्माण और शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार
मानकर हुआ। लेकिन, 1962-1972 की अवधि यानी महज दस सालों में भारत को
तीन युद्धों का सामना करना पड़ा, क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश
नीति की असफलता है। अथवा, आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम
मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
India’s foreign policy was built around the principles of peace and
coorperation. But India fought three wars in a space of ten years between 1962 and 1972. Would you say that this was a failure if the foreign policy?
Or, would you say that this was a result of international situation? Give
reasons to support your answer.                             [NCERT, T.B.Q.7]
उत्तर-(1) भारत की विदेश नीति देश के निर्माण, शांति और सहयोग आधार पर टिकी
हुई है, लेकिन यह भी सत्य है कि 1962 में चीन ने ‘चीनी हिंदुस्तानी भाई-भाई’ का नारा दिया
और पंचशील पर हस्ताक्षर किए लेकिन भारत पर 1962 में आक्रमण करके पहला युद्ध थोप दिया। निःसंदेह यह भारत की विदेश नीति की असफलता थी। इसका कारण यह था कि हमारे देश के कुछ नेता अपनी छवि के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शांति के दूत कहलवाना चाहते थे। यदि उन्होंने कूटनीति से काम लेकर दूरदर्शिता दिखाई होती तो कम-से-कम चीन के विरुद्ध किसी ऐसी बड़ी शक्ति से गुप्त समझौता किया होता जिसके पास परमाणु हथियार होते या संकट की घड़ी में वह चीन उस समय दिखाई जा रही दादागिरी का उचित जवाब देने में हमारी सहायता करती।
(2) 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया लेकिन उस समय लालबहादुर शास्त्री
के नेतृत्व में भारतीय सरकार की नीति असफल नहीं हुई और उस महान नेता, का जय जवान,
जय किसान की आंतरिक नीति के साथ-साथ भारत की विदेश नीति की धाक भी जमी।
(3) 1971 में बंगला देश के मामले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने एक सफल
कूटनीतिज्ञ के रूप में बंगलादेश का समर्थन किया और एक शत्रु देश की कमर स्थायी रूप से
तोड़कर यह सिद्ध किया कि युद्ध में सब जायज है, हम बड़े भाई है पाकिस्तान के, ऐसे आदर्श
वादी नारों का व्यावहारिकता में कोई स्थान नहीं है।
(4) हम तीन अवसरों के तीन नियम-नियम मूल्यांकन आपके समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं।
राजनीति में कोई स्थायी दोस्त नहीं होता। विदेशी संबंध राष्ट्रहितों पर टिके होते हैं। इर समय
आदर्शों का ढिंढोरा पीटने से काम नहीं चलता। हम परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं यू एन ए. स्थायी
स्थान प्राप्त करेंगे और राष्ट्र की एकता, अखंडता, भू-भाग, आत्मसम्मान, यहाँ के लोगों के
जानमाल की प्रतिरक्षा करेंगे, केवल मात्र हमारा यही मंतव्य है और हम सदा ही इसके पक्ष में
निर्णय लेंगे, काम करेंगे। आज की परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि हमें बराबरी से हर मंच, हर स्थान पर
बात करनी चाहिए लेकिन यथासंभव अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा सहयोग, प्रेम, भाईचारे को बनाए
रखने का प्रयास भी करना चाहिए।
                                                      ★★★

 

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