bihar board 12 pol science | कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
bihar board 12 pol science | कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना
(CHALLENGES TO AND RESTORATION OF THE CONGRESS SYSTEM)
याद रखने योग्य बातें
• जवाहरलाल नेहरू का देहांत : मई, 1964
• खतरनाक दशक : 1960 का दशक प्रणाली के लिए खतरनाक दशक कहा जाता है।
• भारत के दूसरे प्रधानमंत्री एवं उनका जीवन काल : लालबहादुर शास्त्री, 1904-1966
• के. कामराज : नेहरू जी की मृत्यु के उपरान्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष।
• भारत के तीसरे और प्रथम महिला प्रधान मंत्री : श्रीमती इंदिरा गाँधी।
• इंदिरा गाँधी का जीवन काल : 1917-1984
• श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री के रूप में दो बार कालांश : (i) 1967 में निरंतर
1977 तक (ii) 1980 से 1984 तक।
• इंदिरा गाँधी का सर्वाधिक मशहूर नारा : 1980 के आम चुनाव के दौरान गरीबी
हटाओ का नारा।
• इंदिरा गाँधी के नेतृत्व के दौरान भारत-पाक दूसरा युद्ध : 1971
• इंदिरा गाँधी की हत्या का काल दिन : 31 अक्टूबर, 1984
• चौथा आम चुनाव : 1967
• अमरीकी मुद्रा का नाम : डॉलर।
• राम मनोहर लोहिया का जीवन काल : 1910-1967
• लोहिया के दो प्रसिद्ध समाचारपत्र : (i) मैनकाइंड, (ii) जन।
• एस. निजलिंगप्पा का जीवनकाल : 1902-2000
• राष्ट्रपति जाकिर हुसैन का देहांत : 1969
• कांग्रेस द्वारा अधिकारिक अथवा घोषित (नामांकित) राष्ट्रपति पद के लिए
पराजित उम्मीदवार : वी वी गिरि के मुकाबले एन. संजीव रेड्डी हारे थे।
• पाँचवाँ आम लोकसभा चुनाव : फरवरी 1971
एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. 1967 के चुनाव के संबंध में निम्नलिखित कथनों में कौन सही है? [B.M. 2009A]
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन अनेक राज्यों में विधानसभा के
चुनाव में हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा और विधान सभा दोनों चुनाव हार गई।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन अन्य राजनीतिक दलों के
गठबंधन से सरकार का निर्माण किया।
(घ) केन्द्र में कांग्रेस सत्तासीन रही और उसका प्रभाव भी बढ़ा।
उत्तर (क)
6. ‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने किस चुनाव को अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाया? [B.M.2009A]
(क) 1971 का मध्यावधि चुनाव
(ख) 1967 का चौथा चुनाव
(ग) 1957 का दूसरा चुनाव
(घ) 1991 में उत्तर-(क)
7. कांग्रेस पार्टी को भंग कर लोक सेवक संघ गठित करने का सुझाव किसने दिया
था? [B.M. 2009A]
(क) जयप्रकाश नरायण
(ख) एम. एन. राय
(ग) महात्मा गांधी
(घ) अरविंद उत्तर-(ग)
8. 1967 में कांग्रेस व्यवस्था को चुनौती मिली, परिणामस्वरूप निम्न बातों में क्या
असंगत है? [B.M.2009A]
(क) कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें
(ख) कांग्रेस में अन्तर्कलह
(ग) 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की हार
(घ) सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति में हास उत्तर-(घ)
9. 1967 में स्थापित राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों ने किस संवैधानिक पद को समाप्त
किए जाने की मांँग की? [B.M. 2009A]
(क) राज्यपाल
(ख) उपराष्ट्रपति
(ग) वित्त आयोग के अध्यक्ष
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(क)
10. ताशकंद समझौता कब और किसके बीच किया गया? [B.M. 2009A]
(क) 10 जनवरी 1966, भारत-पाक
(ख) 11 जनवरी 1966, भारत-पाक
(ग) 20 जनवरी 1970, भारत-चीन
(घ) 1965 भारत-पाक उत्तर-(क)
11. जवाहर लाल नेहरू का देहांत कब हुआ? [Board Exam. 2009A; B.M. 2009A]
(क) 27 मई,1964
(ख) 30 मई 1957
(ग) 27 मई, 1960
(घ) 28 मई, 1963 उत्तर-(क)
12. लाल बहादुर शास्त्री का निधन कब हुआ? [B.M. 2009A]
(क) 10/11 जनवरी, 1996
(ख) जून, 1996
(ग) 4 जनवरी, 1996
(घ) 5 मार्च, 1963 उत्तर-(क)
13. कांग्रेस पार्टी का केन्द्र में प्रभुत्व कब तक रहा? [B.M. 2009A]
(क) 1947-1977 तक
(ख) 1947-1970 तक
(ग) 1947-1960 तक
(घ) 1947-1990 तक उत्तर-(क)
14. भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही तथा प्रतिबद्ध न्यायपालिका की धारणा को किसने
जन्म दिया? [B.M.2009A]
(क) इंदिरा गाँधी
(ख) लाल बहादुर शास्त्री
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) जवाहरलाल नेहरू उत्तर-(क)
15. किसने कहा है सम्प्रदायवाद फासीवाद का रूप है? [B.M. 2009A]
(क) महात्मा गाँधी
(ख) जवाहरलाल नेहरू
(ग) सरदार पटेल
(घ) बी. आर. अम्बेदकर उत्तर-(ख)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का संबंध है-
Whom would you identify with the following slogans phrases?
(क) जय जवान, जय किसान (Jai Jawan, Jai Kisan)
(ख) इंदिरा हटाओ (Indra Hatao!)
(ग) गरीबी हटाओ (Garibi Hatao!) [NCERT, T.B.Q.3]
उत्तर-(क) लालबहादुर शास्त्री। (ख) विरोधी दल। (ग) इंदिरा गाँधी।
2. प्रारंभ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न क्या था? कितने वर्ष गुजरते-गुजरते इस दल में
व्यापक फूट दिखाई देने लगी? आजकल इस दल का चुनाव चिह्न क्या है?
उत्तर-(i) प्रारंभ में कांग्रेस का चुनाव चिह्न दो बैलों की जोड़ी थी। (ii) आजादी के 22 वर्ष
गुजरते-गुजरते कांग्रेस में व्यापक फूट हो गई थी। (iii) आजकल हाथ इस दल का चुनाव चिह्न है।
3. 1960 के दशक में कांग्रेस प्रणाली को पहली बार चुनौती क्यों मिली?
उत्तर-कांग्रेस प्रणाली को 1960 के दशक में पहली बार चुनौती मिली। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
गहन हो चली थी और ऐसे में कांग्रेस को अपना प्रभुत्व बरकरार रखने में मुश्किलें आ रही थीं।
विपक्ष अब पहले की अपेक्षा कम विभाजित और कहीं ज्यादा ताकतवर था। कांग्रेस को इस विपक्ष की चुनौती का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को अंदरूनी चुनौतियां भी झेलनी पड़ी क्योंकि अब यह पार्टी अपने अंदर की विभिन्नता को एक साथ थामकर नहीं चल पा रही थी।
4. लालबहादुर शास्त्री के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-श्री लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में हुआ। उन्होनें 1930 से स्वतंत्रता आंदोलन
में भागीदारी की और उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। उन्होंने काँग्रेस पार्टी के महासचिव का
पदभार संँभाला। वे 1951-56 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे। इसी दौरान रेल दुर्घटना
की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। 1957-64 के बीच
भी वे मंत्री पद पर रहे। उन्होंने जय-जवान, जय किसान का मशहूर नारा दिया था।
5. श्रीमती इंदिरा गाँधी के जीवनी के कुछ पहलुओं, प्रसिद्ध नारे और उपलब्धियों का
अत्यनत संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर-इंदिरा गाँधी का संक्षिप्त जीवन परिचय, पहलू और उपलब्धियाँ : इंदिरा
प्रियदर्शनी 1917 में जवाहर लाल नेहरू के परिवार में उत्पन्न हुई। वह शास्त्री के देहांत के बाद
भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रही। युवा कांग्रेस (Youth Congress) कार्यकर्ता के रूप में स्वतंत्रता-आंदोलन में भागीदारी, 1958 में कांग्रेस की अध्यक्ष, 1964-66 में शास्त्री मंत्रिमंडल में केंद्रीय मंत्री के पद पर रहीं।
1967,1971 और 1980 के आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को अपने नेतृत्व में विजयी बनाया।
उन्होंने लोक लुभावन ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया, 1971 के युद्ध में जीत का श्रेय और प्रिवीपर्स की समाप्ति, बैंकों के राष्ट्रीयकरण, आण्विक-परीक्षण तथा पर्यावरण-संरक्षण के कदम उठाए। 31 अक्टूबर 1984 के दिन आपकी हत्या कर दी गई।
6. दल-बदल पर एक अत्यंत संक्षिप्त नोट लिखिए। [B.M.2009A]
उत्तर-भारत की राजनीति में ध्यानाकर्षण करने वाली कुरीति (बुराई) दल-बदल रही है।
1967 के आम चुनाव की एक खास बात दल-बदल ही रही। इस विशेषता के कारण कई राज्यों
में सरकारों के बनने बिगड़ने की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दृष्टिगोचर हुई।
जब कोई जन प्रतिनिधि किसी विशेष राजनैतिक पार्टी का चुनाव चिह्न लेकर चुनाव लड़े और
वह चुनाव जीत जाए और अपने स्वार्थ के लिए या किसी अन्य कारण मूल देश छोड़कर किसी अन्य दल में शामिल हो जाए। इसे दल-बदल कहते हैं।
1967 के सामान्य चुनावों के बाद कांग्रेस को छोड़ने वाले विधायकों ने तीन राज्यों हरियाणा,
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में गैर कांग्रेसी सरकारों को गठित करने में अहम भूमिका निभाई। इस दल-बदल के कारण ही देश में एक मुहावरा या लोकोक्ति “आया राम, गया राम” बहुत प्रसिद्ध
हो गया।
7. एस• निजलिंगप्पा कौन थे? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-एस• निजलिंगप्पा का जन्म 1902 में हुआ। वह कांग्रेस के कद्दावर और महान नेता थे।
उन्हें देश के नए संविधान निर्माण के लिए गठित संविधान सभा का सौभाग्य प्राप्त हुआ था वह
लोकसभा के सदस्य रहे। वह मैसूर (कर्नाटक) के मुख्यमंत्री भी रहे थे। आधुनिक कर्नाटक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वह 1968 से 1971 तक कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे। वर्ष 2000 ई. में उनका निधन हुआ।
8. कर्पूरी ठाकुर का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
उत्तर-कर्पूरी ठाकुर का जन्म 1924 में हुआ। वह कई बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री बने।
दिसम्बर 1970 और जून 1971 तथा जून 1979 और अप्रैल 1979 के दौरान वह इस पद पर रहे थे।
कर्पूरी ठाकुर महान स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक प्रसिद्ध-समाजवादी नेता थे। उन्होंने
मजदूर एवं किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
कर्पूरी ठाकुर देश के इतिहास में समाजवादी नेता और गैर-काँग्रेसवाद के जनक और राम
मनोहर लोहिया के समर्थक थें।
जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाए गए बिहार के आंदोलन में वह भागीदारी करते रहे। बिहार
के मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण (रिजर्वेशन)
लागू करने के कारण सारे देश में पहचान बनाई। लोहिया के समान वह भी अंग्रेजी भाषा के प्रयोग के कट्टर विरोधी थे।
9. के• कामराज कौन थे? उनके जीवन के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-के• कामराज का जन्म 1903 में हुआ था। वे देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। वे
देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने कांग्रेस के एक प्रमुख नेता के रूप में अत्यधिक ख्याति
प्राप्त की।
उन्हें मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री के पद पर रहने का सौभाग्य मिला। मद्रास प्रांत में
शिक्षा का प्रसार और स्कूली बच्चों को दोपहर का भोजन देने की योजना लागू करने के लिए उन्हें
अत्यधिक ख्याति प्राप्त हुई।
उन्होंने 1963 में कामराज योजना नाम से मशहूर एक प्रस्ताव रखा जिसके अंतर्गत उन्होंने
सभी वरिष्ठ (Senior) कांग्रेसी नेताओं को त्यागपत्र दे देने का सुझाव दिया ताकि जो अपेक्षाकृत
कांग्रेस पार्टी के युवा कार्यकर्ता हैं वे पार्टी की कमान संभाल सके। वह काँग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 1975 में उनका देहांत हो गया।
10. राम मनोहर लोहिया का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर- राम मनोहर लोहिया का जन्म 1910 में हुआ था। वे समाजवादी नेता एवं विचारक
थे तथा स्वतंत्रता सेनानी एवं कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे। वे मूल पार्टी में विभाजन के
बाद सोशलिस्ट पार्टी एवं बाद में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता बने। 1963 से 1967 तक
लोकसभा सांसद रहे। वे मैन काइड एवं जन के संस्थापक संपादक बने। गैर यूरोपीय समाजवादी
सिद्धांत के विकास में उनका मौलिक योगदान रहा। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर गैर-कांग्रेसवादी विचारधारा के संयोजनकर्ता और रणनीतिकार के रूप में उभरे। उन्होंने जीवन भर दलित और पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए जाने की वकालत की। उन्होंने प्रारंभ में नेहरू के खिलाफ मोर्चा खोला। भाषा की दृष्टि से वे अंग्रेजी के घोर विरोधी थे। उनका देहांत 1967 में हुआ।
11. सी. नटराजन अन्नादुर्राई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर -सी- नटराजन का जन्म 1909 में हुआ। वे 1967 से मद्रास (तमिलनाडु) के मुख्यमंत्री
रहे। वे एक प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक एवं प्रभावशाली वक्ता थे। मद्रास राज्य में जस्टिस उनका
पार्टी से संबंध रहा। 1934 में वे द्रविड़ कषगम में शामिल हो गए।
1949 में उन्होंने द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डी.एम के.) का एक राजनैतिक दल के रूप में गठन
किया।
अन्नादुर्राई द्रविड़ सस्कृति के समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी (भाषा) का विरोध किया और
तमिलनाडु में हिन्दी विरोधी आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया।
सी• नटराजन राज्यों की व्यापक स्वायत्तता के कट्टर समर्थक थे।
12. श्री. वी. वी. गिरि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-श्री. वी. वी. गिरि का 1894 में हुआ। काँग्रेस नेता होने के साथ-साथ आंध्र प्रदेश
में एक मजदूर नेता के रूप में ख्याति प्राप्त की। वे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में श्रममंत्री रहने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, केरल, मैसूर (कर्नाटक) तीनों राज्यों के राज्यपालों के पदों पर रहने के साथ-साथ 1969 से 1974 तक भारत के उपराष्ट्रपति एवं जाकिर हुसैन के निधन के बाद कार्यकारी राष्ट्रपति पद पर रहे। उन्होंने 1969 में निर्दलीय (स्वतंत्र) प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस पार्टी के एन. संजीव रेड्डी को जो अधिकृत प्रत्याशी को पराजित कर एक नया इतिहास रचा। सन् 1980 में उनका निधन हो गया।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जैसे-जैसे नेहरू का अंत राष्ट्र के नेताओं और राजनीतिज्ञों को दिखाई देने लगा, वे
उसे राजनैतिक उत्तराधिकार की एक चुनौती क्योंकर समझने लगे?
उत्तर-भारत में राजनैतिक उत्तराधिकार की चुनौती (Challenge of Political
Succession in India) : (i) 1964 के मई में नेहरू की मृत्यु हो गई। वे पिछले एक साल से
भी ज्यादा समय से बीमार चल रहे थे। इससे नेहरू के राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बड़े
अंदेशे लगाए गए कि नेहरू के बाद कौन? लेकिन, भारत जैसे नव-स्वतंत्र देश में इस माहौल में
एक और गंभीर सवाल हवा में तैर रहा था कि नेहरू के बाद आखिर इस देश में होगा क्या?
(ii) भारत से बाहर के बहुत-से लोगों को संदेह था कि यहाँ नेहरू के बाद लोकतंत्र कायम
भी रह पाएगा या नहीं। दूसरा सवाल इसी संदेह के दायरे में उठा था। आशंका थी कि बाकी बहुत
से नव-स्वतंत्र देशों की तरह भारत भी राजनीतिक उत्तराधिकार का सवाल लोकतांत्रिक ढंग से हल नहीं कर पाएगा।
(iii) राजनैतिक उत्तराधिकार के चयन में असफल रहने की दशा में भय था कि सेना राजनीतिक
भूमिका में उतर आएगी। इसके अतिरिक्त, इस बात को लेकर भी संदेह थे कि देश के सामने
बहुविध कठिनाइयाँ आन खड़ी है और नया नेतृत्व उनका समाधान खोज पाएगा या नहीं। 1960
के दशक को ‘खतरनाक दशक’ कहा जाता है, क्योंकि गरीबी, गैर-बराबरी, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि के सवाल अभी अनसुलझे थे। संभव था कि इन सारी कठिनाइयों के कारण देश में लोकतंत्र की परियोजना असफल हो जाती अथवा खुद देश ही बिखर जाता।
2. जवाहरलाल नेहरू के उपरान्त लालबहादुर की सत्ता में आने से लेकर उनकी मृत्यु
उपरान्त तक कुछ राजनैतिक घटनाओं और उपलब्धियों का संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर-शास्त्री जी का उत्तराधिकार के रूप में चयन (Selection of Shastriji as a
successor) : (i) जवाहर लाल नेहरू के उत्तराधिकारी का सवाल इतनी आसानी से हल कर लिया गया कि आलोचक ठगे-से रह गए। नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज ने अपनी पार्टी के नेताओं और सांसदों से सलाह-मशविरा किया। उन्होंने पाया कि सभी लालबहादुर शास्त्री के पक्ष में हैं। शास्त्री, कांग्रेस संसदीय दल के के निर्विरोध नेता चुने गए और इस तरह वे देश के प्रधानमंत्री बने।
(ii) शास्त्री जी के व्यक्तित्व के प्रभावशाली गुण (Impressive merits of Shastri’s
Personality)-लालबहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश के थे और नेहरू के मंत्रिमंडल में कई सालों
तक मंत्री रहे थे। उनको लेकर कभी किसी किस्म का विवाद नहीं उठा। अपने आखिरी सालों में
नेहरू उन पर ज्यादा-से-ज्यादा निर्भर होते गए थे। शास्त्री अपनी सादगी और सिद्धांत निष्ठा के
लिए प्रसिद्ध थे। एक दफा वे एक बड़ी रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी स्वीकार करते हुए रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे चुके थे।
(iii) प्रधानमंत्री के रूप में शास्त्री जी (ShastrijiasaPrimeMinister)-ला लबहादुर
शास्त्री, 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस पद पर वे बड़े कम दिनों तक रहे लेकिन
इसी छोटी अवधि में देष्ठा ने दो बड़ी चुनौतियों का सामना किया। भारत, चीन युद्ध के कारण पैदा
हुई आर्थिक कठिनाइयों से उबरने की कोशिश कर रहा था। साथ ही मॉनसून की असफलता से देश में सूखे की स्थिति थी। कई जगहों पर खाद्यान्न का गंभीर संकट आन पड़ा था। फिर, 1965 में पाकिस्तान के साथ भी युद्ध करना पड़ा। इसके बारे में आपने पिछले अध्याय में पढ़ा था। शास्त्री ने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया, जिससे इन दोनों चुनौतियों से निपटने के उनके दृढ़ संकल्प का पता चलता है।
(iv) ताशकंद समझौता और निधन (Tashkand Agreement and death)-
प्रधानमंत्री के पद पर शास्त्री बड़े कम दिनों तक रहे। 10 जनवरी 1966 को ताशकंद तब भूतपूर्व
सोवियत संघ में था और आज यह उज्वेकिस्तान की राजधानी है। युद्ध की समाप्ति के सिलसिले
में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान से बातचीत करने और एक समझौते
पर हस्ताक्षर करने के लिए वे ताशकंद गए थे।
3. 1965 से लेकर 1967 में हुए आम चुनाव से पूर्व शास्त्री जी के उपरान्त इंदिरा गाँधी
के प्रमुख राजनैतिक नेताओं के साथ-साथ टकराव एवं उन द्वारा अपने नियंत्रण को
कुशलतापूर्वक बढ़ाने संबंधी कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-लालबहादुर शास्त्री के उपरान्त इंदिरा गाँधी 1965-66 (Indira Gandhi after
Lal Bahadur Shastri):
(i) लालबहादुर शास्त्री की जनवरी 1966 में मृत्यु हुई। शास्त्री की मृत्यु से कांग्रेस के सामने
दुबारा राजनीतिक उत्तराधिकारी का सवाल उठ खड़ा हुआ। इस बार मोरारजी देसाई और इंदिरा
गाँधी के बीच कड़ा मुकाबला था। मोरारजी देसाई बंबई प्रांत (मौजूदा महाराष्ट्र और गुजरात) के
मुख्यमंत्री के पद पर रह चुके थे। केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी रह चुके थे। जवाहरलाल नेहरू की बेटी
इंदिरा गाँधी गुजरे वक्त में कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर रह चुकी थीं। शास्त्री के मंत्रिमंडल में उन्होंने
सूचना मंत्रालय का प्रभार संभाला था। इस दफा पार्टी के बड़े नेताओं ने इंदिरा गाँधी को समर्थन
देने का मन बनाया लेकिन इंदिरा गाँधी के नाम पर सर्वसम्मति कायम नहीं की जा सकी। ऐसे में
फैसले के लिए प्रतिस्पर्धा के बावजूद पार्टी में सत्ता का हस्तांतरण बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो
गया। इसे भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता के रूप में देखा गया।
(ii) नए प्रधानमंत्री को जमने में थोड़ा वक्त लगा। इंदिरा गाँधी यूँ तो बड़े लम्बे समय से
राजनीति में सक्रिय थीं, लेकिन लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में बड़े कम दिनों से मंत्री पद पर
थीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संभवतया यह सोचकर उनका समर्थन किया होगा कि प्रशासनिक और राजनीतिक मामलों में खास अनुभव न होने के कारण समर्थन और दिशा-निर्देशन के लिए इंदिरा गाँधी उन पर निर्भर रहेंगी।
(iii) प्रधानमंत्री बनने के एक साल के अंदर इंदिरा गाँधी को लोकसभा के चुनावों में पार्टी
की अगुआई करनी पड़ी। इस वक्त तक देश की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो गई थी। इससे
इंदिरा की कठिनाइयाँ ज्यादा बढ़ गईं। इन कठिनाइयों के मद्देनजर उन्होंने पार्टी पर अपना नियंत्रण बढ़ाने और अपने नेतृत्व कौशल को दिखाने की कोशिश की।
4. 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
What were the factors which led to the popularity of Indira Gandhi
Government in the early 1970s? [NCERT, T.B.Q. 7]
उत्तर-(i) इंदिरा कांग्रेस को इंदिरा गाँधी के रूप में एक करिशमाई नेता मिल गया। वह
प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की पुत्री भी और उन्होंने स्वयं को गांधी, नेहरू परिवार का वास्तविक
राजनैतिकि उत्तराधिकारी बताने के साथ-साथ अधिक प्रगतिशील कार्यक्रम जैसे सूत्री कार्यक्रम,
गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का वायदा और कल्याणकारी सामाजिक, आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुई हैं। भारत में प्रायः नायक पूजा और भेड़चाल काफी प्रभावशाली साबित होती है।
(ii) इंदिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवी-
पर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध
चुनाव जिता कर लाना। इन सबने इंदिरा गाँधी को लोकप्रिय बनाया।
5. 1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में ‘सिंडिकेट’ का क्या अर्थ है? सिंडिकेट
ने काँग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
What does the term ‘syndicate’ mean in the context of the party of the
sixties? What role did the Syndicate play in the party? [NCERT, T.B.Q. 8]
उत्तर-(i) अर्थ (Meaning)-कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को एक अनौपचारिक रूप
से सिंडिकेट के नाम से पुकारा जाता था। इस समूह के नेताओं को पार्टी के संगठन पर अधिकार
नियंत्रण था। ‘सिंडिकेट’ के अगुआ मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और फिर कांग्रस पार्टी के
अध्यक्ष रह चुके के• कामराज थे। इसमें प्रांतों के ताकतवर नेता जैसै बंबई सिटी (अब मुंबई) के
एक• के• पाटिल, संजीव रेड्डी और पश्चिम बंगाल के अतुल्य घोष शामिल थे। लालबहादुर शास्त्री
और उसके बाद इंदिरा गांधी, दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुए
थे।
(ii) भूमिका (Role)-इंदिरा गाँधी के पहले मंत्रिपरिषद् में इस समूह की निर्णायक भूमिका
रही। इसने तब नीतियों के निर्माण और क्रियान्वयन में भी अहम भूमिका निभायी थी। कांग्रेस के
विभाजित होने के बाद सिंडिकेट के नेताओं और उनके प्रति निष्ठावान कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में
ही रहे। चूंँकि इंदिरा गाँधी की कांग्रेस (आर ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, इसलिए
भारतीय राजनीति के ये बड़े और ताकतवर नेता 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए।
6. गैर-कांग्रेसवाद पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-गैर-कांग्रेसवाद (Non-Congressism) : (i) आजादी के बाद से ही कुछ
समाजवादी नेताओं ने देश में कांग्रेस विरोधी या यूँ कहे गैर कांग्रेसवाद का राजनैतिक माहौल बनाने का प्रयास किया। वास्तव में भारत विभिन्नताओं का एक विशाल देश था, जो आज भी है। देश में सारा राजनैतिक माहौल और अन्य क्षेत्रों से जुड़ी हुई स्थिति देश की दतगत राजनीति से
अलग-थलग नहीं रह सकती थी। विपक्षी दल जनविरोध की अगुवाई कर रहे थे और सरकार पर
दबाव डाल रहे थे। कांग्रेस की विरोधी पार्टियों ने महसूस किया कि उसके वोट बँट जाने के कारण
ही कांग्रेस सत्तासीन है।
(ii) राजनैतिक जो दल अपने कार्यक्रम अथवा विचारधाराओं के धरातल पर एक-दूसरे से
कदम अलग थे, वे सभी दल एकजुट हुए और उन्होंने कुछ राज्यों में एक कांग्रेस विरोधी मोर्चा
बनाया तथा अन्य राज्यों में सीटों के मामले में चुनावी तालमेल किया। इन दलों को लगा कि इंदिरा
गाँधी की अनुभवहीनता और कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक से उन्हें कांग्रेस को सत्ता से हटाने का एक अवसर हाथ लगा है।
(iii) समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया ने इस रणनीति को ‘गैर-कांग्रेसवाद’ का नाम दिया।
उन्होंने ‘गैर-कांग्रेसवाद’ के पक्ष में सैद्धांतिक तर्क देते हुए कहा कि कांग्रेस का शासन अलोकतांत्रिक और गरीब लोगों के हितों के खिलाफ इसलिए गैर-कांग्रेसी दलों का एक साथ आना जरूरी है, ताकि गरीबों के हक में लोकतंत्र को वापस लाया जा सके।
7. “आया राम और गया राम” पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-(i) एम एल• ए• या विधायकों द्वारा तुरंत-फुरंत पार्टी छोड़कर दूसरी-तीसरी पार्टी में
शामिल होने की घटना से भारत के राजनीतिक शब्दकोश में ‘आया राम-गया राम’ का मुहावरा
शामिल हुआ। इस मुहावरे की प्रसिद्धि के साथ एक घटना जुड़ी है। 1967 के चुनावों के बाद
हरियाणा के एक विधायक-गया लाल ने राजनीतिक निष्ठा बदलने का जैसे एक कीर्तिमान ही
स्थापित कर दिया था। उन्होंने एक पखवाड़े के अंदर तीन बार अपनी पार्टी बदले। पहली वे कांग्रेस से यूनाइटेड फ्रंट में गए, फिर यूनाइटेड फ्रंट से कांग्रेस में चले गए।
(ii) कहा जाता है कि जब गया लाल ने यूनाइटेड फ्रंट छोड़कर कांग्रेस में आने की इच्छा
प्रकट की तो कांग्रेस के नेता राव वीरेन्द्र सिंह (रिवाड़ी, हरियाणा के सर्वाधिक ख्याति प्राप्त नेता)
उन्हें लेकर चंडीगढ़ प्रेस के सामने घोषणा की-“गया राम था अब आया राम है”। गया लाल की
इस हड़बड़ी को आया राम-गया राम’ के मुहावरे में हमेशा के लिए दर्ज कर लिया गया। उनकी
इस हड़बड़ी को लेकर बहुत-से चुटकले और कार्टून बने। बाद के समय में दल-बदल रोकने के
लिए संविधान किया गया।
लेकिन कई बार अब भी दल-बदल या आया राम, गया राम के उदाहरण देखने को मिलते
हैं। लोकतंत्र के साथ दल-बदल या आया राम या गया राम एक निंदनीय और भद्दा मजाक है।
8. प्रिवीपर्स की समाप्ति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-प्रिवीपर्स की समाप्ति (End of Privi Purse) :
(i) पृष्ठभूमि और अर्थ (Background andMeaning) : जब भारत को छोड़कर अंग्रेज
गए और देश स्वतंत्र हुआ उस समय लगभग 565 रजवाड़े या देशी रियासतें थीं। पहले अध्याय
में अपने देशी रियासतों के विल के बारे में पढ़ा था। देशी रियासतों का विलय भारतीय संघ में
करने से पहले सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि रियासतों के तात्कालीन शासक परिवार को
निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार होगा। साथ ही सरकार की तरफ से उन्हें कुछ
विशेष भत्ते भी दिए जाएंगे। ये दोनों आधार मानकर तय की जाएंगी कि जिस राज्य का विलय
किया जाना है उसका विस्तार, राजस्व और क्षमता कितनी है। इस व्यवस्था को ‘प्रिवीपर्स कहा
गया।
(ii) आलोचना (Cirticism)-रियासतों के विलय के समय राजा-महाराजाओं को दी गई
इस विशेष सुविधा की कुछ खास आलोचना नहीं हुई थी। उस वक्त देश की एकता, अखंडता
का लक्ष्य ही प्रमुख था।
बहरहाल ये वंशानुगत विशेषाधिकार भारतीय संविधान में वर्णित समानता और
सामाजिक-आर्थिक न्याय के सिद्धांतों से मेल नहीं खाते थे। नेहरू ने कई दफे इस व्यवस्था को
लेकर अपना असंतोष जताया था।
(iii) 1967 के आम चुनाव एवं प्रिवीपर्स (Generalelectionof1967 and Question
of Privi Purse)-1967 के चुनावों के बाद इंदिरा गाँधी ने ‘प्रिवीपर्स’ को खत्म करने की मांग
का समर्थन किया। उनकी राय थी कि सरकार को ‘प्रिवी पर्स’ की व्यवस्था समाप्त कर देनी चाहिए। मोरारजी देसाई प्रिवी पर्स की समाप्ति को नैतिक रूप से गलत मानते थे। उनका कहना था कि यह ‘रियासतों के साथ विश्वासघात’ के बराबर होगा।
(iv) इंदिरा सरकार और उच्चतम न्यायलय के दृष्टिकोण एवं प्रिवीपों की समाप्ति
(The role and outlook of the government of Mrs. Indra Gandhi and appex court of country and evolution of Privi Purse)-प्रिवी पर्स की व्यवस्था को खत्म करने के लिए सरकार ने 1970 में संविधान में संशोधन के प्रयास किए, लेकिन राज्यसभा में यह मंजूरी नहीं पा सका। इसके बाद सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, लेकिन इसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। इंदिरा गाँधी ने इसे 1971 के चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाया और इस मुद्दे पर उन्हें जन समर्थन भी खूब मिला। 1971 में मिली भारी जीत के बाद संविधान में संशोधन हुआ और इस तरह प्रिवीपर्स की समाप्ति की राह में मौजूद कानूनी अड़चनें खत्म हो गईं।
9. ऊँचे पदों पर भारत में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं?
उत्तर-(i) भारतीय समाज पुरुष प्रधान है। अधिकांश कानून प्राचीन, मध्यकाल और ब्रिटिश
काल में भी पुरुषों द्वारा बनाए गए और महिलाओं को समाज में गैर-बराबरी का दर्जा दिया गया
(ii) लड़की को जन्म से मृत्यु तक पिता, पति अथवा विधवा होने पर किसी अन्य परिवार
के पुरुष, मुखिया के अधीन और बुढ़ापे में पुत्रों के अधीन रहा ना होता था। लड़कियों की शिक्षा
की उपेक्षा की जाती थी। लड़कों की तुलना में उनके जन्म और पालन-पोषण में नकारात्मक भेद-भाव किया जाता था।
(iii) सती प्रथा, बहु पत्नी विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, कन्या वध या भ्रूण हत्या, विधवा
विवाह की मनाही, अशिक्षा आदि ने नारियों को समाज में पिछड़े रखा। पैतृक संपत्ति से उनकी
बेदखली और आर्थिक रूप से पुरुषों पर उनका अंवलंबित होना, उन्हें ऊंँचे पदों पर आने से दूर
रखने में महत्त्वपूर्ण कारक साबित हुए।
(iv) भारत में नारियों को सरकारी नौकरियाँ विशेषकर ऊंँचे पदों पर अपनी संकीर्ण मानसिकता
के कारण नहीं देखना चाहते। ये बात आज 60 वर्षों के बाद भी संविधान में समानता, स्वतंत्रता
आदि के अधिकार मिलने के बावजूद भी राजनैतिक दलों के नेता अपने अहं को ठेस लगने के
भय से या कुछ महत्त्वपूर्ण स्त्रियाँ नेतागण ईर्ष्यालु स्वभाव और अपने महिला जगत में प्रतिद्वंद्वी
खड़े होने के भय से राज्य विधानसभाओं और देश की संसद में एक-तिहाई स्थान देने की केवल
बाते करते हैं।
(v) किसी भी राजनैतिक दल की कार्यकारिणी से उन्हें 50 प्रतिशत या 40 प्रतिशत उच्च
पदों पर आज भी स्थान नहीं हैं। स्त्री और पुरुष दोनों तरह के प्रमुख नेताओं के कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। भ्रूण हत्याओं के लिए यदि पुरुष या पिता जिम्मेदार है तो लेडी डॉक्टर्स और स्वयं माताएँ का जिम्मेदार नहीं हैं। हर माता बेटे के लिए भगवान या वाहे-गुरु या अलग से प्रार्थना/इबादत करती है। वह स्वयं पुत्र और पुत्री के पालन में भेद-भाव करती है। केवल पुरुषों को दोषी ठहराना पूर्णतयाः उचित जान नहीं पड़ता।
(vi) स्वयं सास के रूप में महिलाएं परिवार की शिक्षित युवतियों को सरकार नौकरियों पर
जाने के लिए इसलिए रोकती है। क्योंकि बहू की गैर-हाजिरी में उन्हें अपने ही पौत्र/पौत्री का मल-मूत्र साफ करना पड़ सकता है या उनकी देखभाल करनी पड़ सकती है और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ का सम्पूर्ण बोझ या अधिकांश घर का कामकाज उन्हें भी करना पड़ सकता है। पुरुष सामाजिक कटाक्ष या तानों के भय ये महिलाओं की कमाई पर निर्भर हो। महिलाओं को प्रायः ऊंँचे पदों पर जाने या घर की चारदीवारी से मिलने में रोकते हैं।
10. स्वतंत्रता के बाद भारत जैसे नए राष्ट्र की कौन-सी चुनौतियाँ थीं? [B.M.2009A]
उत्तर-1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के चलते, भारत का विभाजन हुआ और
भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्यों की स्थापना हुई। देश विभाजन के चलते देश की
राष्ट्रीय एकता काफी प्रभावित हुई। देश का वातावरण खून-खराबा, लूटपाट तथा सांप्रदायिक दंगों से विषाक्त हो गया। वैसे तो स्वतंत्र भारत के समक्ष अनेक समस्याएँ और चुनौतियाँ थीं, लेकिन प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन चुनौतियाँ थीं, जिनपर काबू पाए बिना हम देश की एकता को बचाने के कामयाब नहीं रह सकते थे-
1. राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने की चुनौती
2. देश में लोकतंत्र बहाल करने की चुनौती तथा
3. संपूर्ण समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करने की चुनौती।
11. प्रथम तीन आम चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व से आप क्या समझते हैं?
[Board Exam. 2009A; B.M.2009A]
उत्तर-स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जीत सुनिश्चित
थी। इसका कारण था कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की भूमिका काफी सराहनीय थी। परिणामस्वरूप 1952 के आम चुनाव में कुल 489 सीटों में 364 सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीती।
1957 में देश का दूसरा आम चुनाव हुआ। इस आम चुनाव में भी लोकसभा के लिए निर्धारित
494 स्थानों में कांग्रेस को 371 स्थान प्राप्त हुए। इतनी बड़ी संख्या में लोकसभा में कांग्रेस की
जीत से कांग्रेसी नेता काफी खुश थे और ऐसा लगने लगा कि अगले कई दशकों में कांग्रेस के
प्रभुत्व में शायद ही कमी आए। लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आती गई। 1962 के
आमचुनावों में भी लोकसभा के 494 स्थानों में कांग्रेस को 361 स्थान मिले। उल्लेखनीय है कि
इन तीनों आमचुनावों में कांग्रेस पार्टी भारतीय राजनीति पर हावी रही।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. चौथे आम चुनाव 1967 पर एक लेख लिखिए।
उत्तर-(i) प्रस्तावना (Introduction) -भारत के राजनैतिक और चुनावी इतिहास को
1967 के वर्ष को अत्यंत महत्त्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। 1952 के प्रथम चुनाव से लेकर 1966 तक कांग्रेस पार्टी का सारे देश के अधिकांश राज्यों और केन्द्र में राजनैतिक दबदबा कायम रहा लेकिन 1967 के आम चुनाव में इस प्रवृत्ति में गहरा परिवर्तन आया।
(ii) 1967 के आम चुनाव एवं उससे पूर्व देश के समझ आर्थिक समस्याएँ एवं
ganfareni (Economic problem and challenges before the general election 1967)-(क) चौथे आम चुनावों के आने तक देश में बड़े बदलाव हो चुके थे। दो प्रधानमंत्रीयों का जल्दी-जल्दी देहावसान हुआ और नए प्रधानमंत्री को पद संभाले हुए अभी पूरा एक साल का अरसा भी नहीं गुजरा था। साथ ही, इस प्रधानमंत्री को राजनीति के लिहाज से कम अनुभवी माना जा रहा था।
(iii) चुनाव से पूर्व आर्थिक संकट समस्याएँ एवं स्थिति (Economic crisis/
problems and situation before election)-1967 के चुनाव से पूर्व ही कई वर्षों से चुके
हैं कि इस अरसे में देश गंभीर आर्थिक संकट में था। मॉनसून की असफलता, व्यापक सूखा, खेती की पैदावार में गिरावट, गंभीर खाद्य संकट, विदेशी मुद्रा-भंडार में कमी, औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में गिरावट के साथ ही साथ सैन्य खर्चे में भारी बढ़ोतरी हुई थी। नियोजन और आर्थिक विकास के संसाधनों को सैन्य-मंद में लगाना पड़ा। इन सारी बातों से देश की आर्थिक स्थिति विकट हो गई थी। आर्थिक स्थिति की विकटता के कारण कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ। लोग आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि खाद्यान्न की कमी, बढ़ती हुई बेरोजगारी और देश की दयनीय आर्थिक स्थिति को लेकर विरोध पर उतर आए।
(iv) रुपये का अवमूल्यन (Devaluation of Rupee)-इंदिरा गाँधी की सरकार के
शुरुआती फैसलों में एक था- रुपये का अवमूल्यन करना। माना गया कि रुपये का अवमूल्यन
अमरीका के दबाव में किया गया। पहले के वक्त में 1 अमरीकी डॉलर की कीमत 5 रुपये थी, तो
अब बढ़कर 7 रुपये हो गई।
(v) जन आक्रोश (Public Anger)-देश में अकसर ‘बंद’ और ‘हड़ताल’ की स्थिति
रहने लगी। सरकार ने इसे कानून और व्यवस्था की समस्या माना न कि जनता की बदहाली की
अभिव्यक्ति। इससे लोगों की नाराजगी बढ़ी और जन विरोध ने ज्यादा उग्र रूप धारण किया।
(vi) वामपंथियों द्वारा व्यापक संघर्ष छेड़ना (Beginning of large scale struggle by
leftists)-साम्यवादी और समाजवादी पार्टी ने व्यापक समानता के लिए संघर्ष छेड़ दिया। आप
अलगे अध्याय में पढ़ेंगे कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अलग हुए साम्यवादियों के एक समूह
ने मार्क्सवादी-लेनिनवादी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी बनायी और सशस्त्र कृषक-विद्रोह का नेतृत्व
किया। साथ ही, इस पार्टी ने किसानों के बीच विरोध को संगठित किया। इस अवधि में गंभीर
किस्म के हिन्दू-मुस्लिम दंगे भी हुए। आजादी के बाद से अब तक इतने गंभीर सांप्रदायिक दंगे
नहीं हुए थे।
(vii) चुनाव का जनादेश (Public Mandate of election)-व्यापक जन-असंतोष
और राजनीतिक दलों के ध्रुवीकरण के इसी माहौल में लोकसभा में और राज्य विधानसभाओं के लिए 1967 के फरवरी माह में चौथे आम चुनाव हुए। कांग्रेस पहली बार नेहरू के बिना मतदाताओं का सामना कर रही थी।
(viii) चुनाव के परिणामों से कांग्रेस को राष्ट्रीय और प्रांतीय स्तर पर गहरा धक्का लगा
तत्कालीन अनेक राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने चुनाव परिणामों को ‘राजनीतिक भूकंप’ की संज्ञा दी।
कांग्रेस को जैसे-तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, लेकिन उसको प्राप्त मतों के प्रतिशत
तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई थी। अब से पहले कांग्रेस को कभी न तो इतने कम
वोट मिले थे और न ही इतनी कम सीटें मिली थीं। इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव
हार गए थे। तमिलनाडु से कामराज, महाराष्ट्र के एस.के. पाटिल, पश्चिम बंगाल से अतुल्य घोष
और बिहार से के बी- सहाय जैसे राजनीतिक दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी थी।
(ix) इंदिरा गाँधी के मंत्रिमंडल के आधे मंत्री चुनाव हार गए थे। तमिलनाडु से कामराज,
महाराष्ट्र के एस.के. पाटिल, पश्चिम बंगाल से अतुल्य घोष और बिहार के के बी. सहाय जैसे
राजनीतिक दिग्गजों को मुँह की खानी पड़ी थी।
राजनीतिक बदलाव की यह नाटकीय स्थिति आपको राज्यों में और ज्यादा स्पष्ट नजर आएगी।
(x) कांग्रेस को सात राज्यों में बहुमत नहीं मिला। दो अन्य राज्यों में दलबदल के कारण यह
पार्टी सरकार नहीं बना सकी। जिन 9 राज्यों में कांग्रेस के हाथ से सत्ता निकल गई थी, वे देश के
किसी एक भाग में कायम राज्य नहीं थे। ये राज्य पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों में थे। कांग्रेस
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास और केरल
में सरकार नहीं बना सकी।
(xi) चुनावी इतिहास में यह पहली घंटना थी, जब किसी गैर-कांग्रेसी दल को किसी राज्य
में पूर्ण बहुमत मिला। अन्य आठ राज्यों में विभिन्न गैर-कांग्रेसी दलों की गठबंधन सरकार बनी।
उस समय आमतौर पर कहा जाता था कि दिल्ली से हावड़ा जाने के लिए ट्रेन पर बैठो, तो यह
ट्रेन अपने पूरे रास्ते में एक भी कांग्रेस-शासित राज्य से होकर नहीं गुजरेगी। लोग कांग्रेस को
सत्तासीन देखने के अभ्यस्त थे और उनके लिए यह एक विचित्र अनुभव था। तो क्या मान लिया
जाए कि कांग्रेस का दबदबा खत्म हो गया?
2. भारतीय इतिहास में राष्ट्रपति पद के लिए हुए 1969 के चुनाव संबंधी घटनाओं और
परिणाम पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर-(i) कांग्रेस के दो गुटों में टकराव (Clash between two group of congress
party)-सिंडिकेट और इंदिरा गाँधी के बीच की गुटबाजी 1969 में राष्ट्रपति पद के चुनाव के
समय खुलकर सामने आ गई। तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यु के कारण उस साल
राष्ट्रपति का पद खाली था। इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद उस साल सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी से इंदिरा गांधी की बहुत दिनों से राजनीतिक अनबन चली आ रही थी। ऐसे में इंदिरा गांधी ने भी हार नहीं मानी।
(ii) मोराजी देसाई द्वारा त्यागपत्र (Resign by MorarjiDesai)-चौदह अग्रणी बैंकों
के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी ‘प्रिवी पर्स’ को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा भी की। उस वक्त मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभरे और इसके परिणामस्वरूप मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया।
(iii) काँग्रेस अध्यक्ष द्वारा व्हिप जारी करना (Whip Issued by the Congress
President)-गुजरे वक्त में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे, लेकिन इस
बार मामला कुछ अलग ही था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में ताकत को
आजमा ही लिया जाए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने ‘व्हिप’ जारी किया कि
सभी ‘कांग्रेसी सांसद और विधायक पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजीव रेड्डी को वोट डालें।’
(iv) अंतर आत्मा की आवाज के अनुसार मत डालने पर जोर देना (To stress on
listening ofvoiceofconscious and to cast vote according to it)-वोट डालें। ‘इंदिरा गाँधी के समर्थक गुट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विशेष बैठक आयोजित करने की याचना की, लेकिन उनकी यह याचना स्वीकार नहीं की गई। वी.वी. गिरि का छुपे तौर पर समर्थन
करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने खुलेआम अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने को कहा।
इसका मतलब यह था कि कांग्रेस के सांसद और विधायक अपनी मनमर्जी से किसी भी उम्मीदवार को वोट डाल सकते हैं। आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी.वी. गिरि ही विजयी हुए। वे स्वतंत्र उम्मीदवार थे, जबकि एन. संजीव रेड्डी कांग्रेस पार्टी के अधिकारिक उम्मीदवार थे।
3. किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना
चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके
सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
How should a political party resolveits internal differences? Here are some suggestions. think of each and list out their advantages and shortcomings.
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना
(Follow the footsteps of the party president)
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना
(Listen to the majority group)
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना (Secret ballot voting on every issue)
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना
(Consult the senior and experienced leaders of the party)
[NCERT, T.B.Q.5]
उत्तर-(क) फायदा (Profit) : पार्टी में अनुशासन बढ़ेगा,
घाटा (Loss) : पार्टी में अध्यक्ष या बड़े नेताओं के दादागिरी बढ़ेगी और दल में आंतरिक
लोकतंत्र घटेगा।
(ख) फायदा (Profit) : पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। छोटे कार्यकर्ताओं में अधिक
प्रसन्न्ता होगी।
घाटा (Loss) : दल में गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। प्रायः हर मामले में बहुसंख्यक और
अल्पसंख्यक खेमा सामने आएगा।
(ग) फायदा (Profit) : यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक और निष्पक्ष चुनाववादी है।
घाटा (Loss) : राजनैतिक पार्टी के अध्यक्ष के विहप जारी करने के बावजूद भी आशा के
अनुरूप कई बार परिणाम नहीं मिलते।
(घ) फायदा (Profit) : पार्टी के वरिष्ठ और अनुभव का लाभ उठाने का अवसर कम आयु
के नेताओं का इसी पीढ़ी को लाभ मिलेगा।
घाटा (Loss) : पार्टी में केवल वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की तूती बोलगा और नायक
पूजा (Hero worship) को बढ़ावा मिलेगा।
4. निम्नलिखित में किसे किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप
में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
State which of these were reasons for the defeat of the in 1967. Give reasons for your answer.
(क) कांग्रेस पार्टी में करिशमाई नेता का अभाव
(The absence of a charismatic leader in the party)
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट (Split the party)
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना
(Increased moblisation of regional, ethnic and communal groups)
(घ) गैर कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता
(Increasing unity among non-congress parties)
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद
(Internal differences within the Congress Party) [NCERT, T.B.Q.6] |
उत्तर-(क) इसको कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस
में अनेक वरिष्ठ और अनुभवी नेता थे।
(ख) यह कांग्रेस की पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस दो गुटों में बँटती
जा रही थी। सिंडिकेटों का कांग्रेस के संगठन पर अधिकार था तो इंडिकेट या इंदिरा समर्थकों को
व्यक्तिगत वफादारी और कुछ कर दिखाने की चाहत के कारण मतभेद बढ़ते जा रहे थे। एक गुट
पूँजीवाद, उदारवाद, व्यक्तिवाद को ज्यादा चाहता था, दूसरा गुट रूसी ढंग से समाजवादी
राष्ट्रीयकरण पुरानी देशी राजा विरोधी नीतियों की खुलेआम बाते करते थे।
(ग) 1967 में पंजाब में अकाली अल, तमिलनाडु में डी जे के जैसे दल अनेक राज्यों में
क्षेत्रीय, जातीय और साम्प्रदायिक की लाभबंदी को बढ़ावा मिलने के कारण कांग्रेस को भारी धक्का लगा। वह केन्द्र से स्पष्ट बहुमत न प्राप्त कर सकी और कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता पूर्णतया नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रांतों में ऐसा
हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद के काराण बहुत जल्दी ही आंतरिक छूट या फूट कालांतर
में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के
कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।
5. कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई।
Discuss the major issue which led to the formal split of the party in 1969.
[NCERT, T.B.Q.9)
उत्तर-कांग्रेस पार्टी में, 1969 में टूट के कारण (Causes of division in Congress
Party in 1969) : (i) 1969 के राष्ट्रपति के चुनाव में इंदिरा गाँधी और उसके समर्थकों द्वारा
उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि के वी वी गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप
में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन करें।
(ii) इंदिरा गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को
प्राप्त विशेषाधिकार यानी ‘प्रिवीपर्स’ को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की
घोषणा भी की। उस वक्त मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों
मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभरे और इसके परिणामस्वरूप मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया।
(iii) गुजरे वक्त में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे, लेकिन इस बार
मामला कुछ अलग ही था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में ताकत को आजमा
ही लिया जाए। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने ‘व्हिप’ जारी किया कि सभी ‘कांग्रेसी सांसद और विधायक पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार संजीव रेड्डी को वोट डालें।’
(iv) इंदिरा गाँधी के समर्थक गुट ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विशेष बैठक आयोजित
करने की याचना की, लेकिन उनकी यह याचना स्वीकार नहीं की गई। वी॰वी॰ गिरि का छुपे तौर
पर समर्थन करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने खुलेआम अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने
को कहा। इसका मतलब यह था कि कांग्रेस के सांसद और विधायक अपनी मनमर्जी से किसी भी उम्मीदवार को वोट डाल सकते हैं।
(v) आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी• वी• गिरि ही विजयी हुए। वे स्वतंत्र उम्मीदवार
थे, जबकि एन• संजीव रेड्डी कांग्रेस पार्टी के अधिकारिक उम्मीदवार थे।
(vi) कांग्रेस पार्टी के अधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। कांग्रेस
अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी से निष्कासित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा कि अपनी पार्टी ही असली कांग्रेस है। 1969 के नवंबर तक सिंडिकेट की अगुआई वाले कांग्रेसी खेमे को कांग्रेस (ऑर्गेनाइजेशन) और इंदिरा गाँधी की अगुआई।
6. 1971 के आम चुनाव और देश की राजनीति में कांग्रेस के पुनर्स्थापना से जुड़ी
राजनीतिक घटनाओं और परिणामों का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-(i) 1971 का आम चुनाव (General Election of 1971) : इंदिरा गाँधी ने
दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग करने की सिफारिश राष्ट्रपति को भी की। वह अपनी सरकार के
लिए जनता का पुनः आदेश प्राप्त करना चाहती थी। इसीलिए फरवरी 1971 में देश का पाँचवाँ
लोक सभा का आम चुनाव हुआ।
(ii) कांग्रेस और ग्रैंड अलायंस में मुकाबला (Contest between Congress and
Grand Alliance) : चुनावी मुकाबला कांग्रेस (आर) के विपरीत जान पड़ रहा था। आखिर नई
कांग्रेस एक जर्जर होती हुई पार्टी का हिस्सा भर थी। हर किसी को विश्वास था कि कांग्रेस पार्टी
की असली सांगठनिक ताकत कांग्रेस (ओ) के नियंत्रण में है। इसके अतिरिक्त, सभी बड़ी
गैर-साम्यवादी और गैर-कांग्रेसी विपक्षी पार्टियों ने एक चुनावी गठबंधन बना लिया था। इसे ‘ग्रैड
अलायंस’ कहा गया। इससे इंदिरा गांधी के लिए स्थिति और कठिन हो गई। एमएसपी, पीएसपी,
भारतीय जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांतिदल, चुनाव में एक छतरी के नीचे आ गए।
शासक दल ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया।
(iii) दोनों राजनैतिक खेमों में अंतर (Difference between Both Political Groups
or Alliances) : इसके बावजूद नयी कांग्रेस के साथ एक ऐसी बात थी, जिसका उसके बड़े
विपक्षियों के पास अभाव था। नयी कांग्रेस के पास एक मुद्दा था; एक अजेंडा और कार्यक्रम था।
‘ग्रैंड अलायंस’ के पास कोई सुसंगत राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। इंदिरा गांधी ने देश भर में
घूम-घूम कर कहा कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक ही कार्यक्रम है: इंदिरा हटाओ। इसके
विपरीत उन्होंने लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने मशहूर नारे ‘गरीबी हटाओं’ के जरिए एक शक्ल प्रदान किया। इंदिरा गांधी ने सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि, ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी संपदा के परिसीमन, आय और अवसरों की असमानता की समाप्ति तथा ‘प्रिवीपर्स’ की समाप्ति पर अपने चुनाव अभियान में जोर दिया। ‘गरीबी हटाओ’ के नारे से इंदिरा गांधी ने वंचित तबकों खासकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की। ‘गरीबी हटाओ’ का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गाँधी की राजनीतिक रणनीति थी। इसके सहारे वे अपने लिए विश्वव्यापी राजनीतिक समर्थन की बुनियाद तैयार करना चाहती थीं।
(iv) चुनाव के परिणाम (ResultsofElection)-1971 के लोकसभा चुनावों के नतीजे
उतने ही नाटकीय थे, जितना इन चुनावों को करवाने का फैसला। कांग्रेस (आर) और सीपीआई
के गठबंधन को इस बार जितने वोट या सीटें मिलीं, उतनी कांग्रेस पिछले चार आम चुनावों में
कभी हासिल न कर सकी थी। इस गठबंधन को लोकसभा की 375 सीटें मिलीं और इसने कुल
48.4 प्रतिशत वोट हासिल किए। अकेले इंदिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ने 352 सीटें और 44
प्रतिशत वोट हासिल किए थे। अब जरा इस तस्वीर की तुलना कांग्रेस (ओ) के उजाड़ से करें :
इस पार्टी में बड़े-बड़े महारथी थे, लेकिन इंदिरा गाँधी की पार्टी को जितने वोट मिले थे, उसके
एक-चौथाई वोट ही इसकी झोली में आए। इस पार्टी को महज 16 सीटें मिलीं। अपनी भारी-भरकम जीत के साथ इंदिरा गांधी की अगुआई वाला कांग्रेस ने अपने दावे को साबित कर दिया कि वही ‘असली कांग्रेस’ है और उसे भारतीय राजनीति में फिर से प्रभुत्व के सथान पर पुनर्स्थापित किया। विपक्षी ‘ग्रैंड अलायंस’ धराशयी हो गया था। इस ‘महाजोट’ को 40 से भी कम सीटें मिली थी।
(v) बंगलादेश का निर्माण और भारत पाक युद्ध : 1971 के लोकसभा चुनावों के तुरंत
बाद पूर्वी पाकिस्तान (अब बंग्लादेश) में एक बड़ा राजनीतिक और सैनय संकट उठ खड़ा हुआ।
चौथे अध्याय में आप पढ़ चुके हैं कि 1971 के चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान में संकट पैदा हुआ और भारत-पाक के बीच युद्ध छिड़ गया। इसके परिणामस्वरूप बंग्लादेश बना। इन घटनाओं से इंदिरा गाँधी को लोकप्रियता में चार चाँद लग गए। विपक्ष के नेताओं तक ने उसके राज्यकौशल की प्रशंसा की।
(vi) राज्यों में कांग्रेस की पुनर्स्थापना (Re-establishmentof Congress instate) :
1972 के राज्य विधानसभा के चुनावों में उनकी पार्टी को व्यापक सफलता मिली। उन्हें गरीबों और वंचितों के रक्षक और एक मजबूत राष्ट्रवादी नेता के रूप में देखा। पार्टी के अंदर अथवा बाहर उसके विरोध की कोई गुंजाइश न बची। कांग्रेस लोकसभा के चुनावों में जीती थी और राज्य स्तर के चुनावों में भी। इन दो लगातार जीतों के साथ कांग्रेस का दबदबा एक बार फिर कायम हुआ। कांग्रेस अब लगभग सभी राज्यों में सत्ता में थी। समाज के विभिन्न वर्गों में यह लोकप्रिय भी थी। महज चार साल की अवधि में इंदिरा गाँधी ने अपने नेतृत्व और कांग्रेस पार्टी के प्रभुत्व के सामने खड़ी चुनौतियों को धूल चटा दी थी। जीत के बाद इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस-प्रणाली के पुनर्स्थापित जरूर किया, लेकिन कांग्रेस-प्रणाली की प्रकृति को बदलकर।
7. सुभाष चंद्र बोस के जीवन-चरित्र को संक्षेप में लिखें। [Board Exam. 2009A]
उत्तर-नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई. में उड़ीसा के कटक शहर
में हुआ था। उन्होंने आई.सी.एस. (I.C.S.) की परीक्षा पास कर के भी नौकरी स्वीकार नहीं किए। स्वतंत्रता प्रेमी तथा देशभक्त नेताजी ने देश सेवा को अपना लक्ष्य बनाया और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। वे पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर थे और अहिंसा के हिमायती नहीं थे। वे विचारों से एक महान क्रांतिकारी थे और अंग्रेजों का घनघोर विरोध शक्ति पूर्वक किये। फलस्वरूप उन्हें अनेक बार जेल भी जाना पड़ा। साईमन कमीशन के बहिष्कार आंदोलन में उन्होंने अहम् भूमिका निभायी थी। उन्होंने ‘पूर्ण स्वराज्य’ प्रस्ताव की पारित करने सम्पूर्ण सहयोग किये। सन् 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभ होने पर सुभाष बाबू ने सम्पूर्ण भारतवर्ष का दौरा किये भार से आह्वान किये कि एक-एक अंग्रेजों को खदेड़ कर देश से बाहर निकाल
दें। ब्रिटिश सरकार उन्हें अपना बहुत बड़ा शत्रु समझती थी और उनकी गतिविधियों पर पूरा ध्यान रखती थीं। युद्ध के दौरान उन्हें कलकत्ता में गिरफ्तार किया गया किन्तु वे वहाँ से भाग निकले। पठान की वेषभूषा में पहले काबुल होते हुए इटली, जर्मनी और जापान पहुंँचे। जापानियों की सहायता से नेताजी ने आजाद हिन्द फौज का गठन किया। इस फौज के सामने उन्होंने कहा था “हमारी मातृभूमि स्वतंत्रता चाहती है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” नेताजी ने ‘जयहिन्द’ और ‘दिल्ली चलो’ जैसे नारे दिए। सन् 1945 में एक वायूयान दुर्घटना में उनकी मौत की जानकारी मिली। किन्तु आजाद भारत में पुनः यह सनसनीखेज खबर फैली कि नेताजी की मौत ब्रिटिश सरकार को झांसा देने के लिए फैलायी गयी थी। वास्तव में उनकी मृत्यु का कोई प्रामाणिक आधार अभी तक सरकारी स्तर से दुबारा घोषित नहीं किया गया। किन्तु ऐसे महापुरुष तो अमर होते ही हैं। आज भी सम्पूर्ण भारत क्या विश्व में उनका नाम दिनमान की तरह
प्रकाशवान है।
★★★