bihar board 12 history notes | राजा किसान और नगर
bihar board 12 history notes | राजा किसान और नगर
आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ
2. (लगभग 600 ई. पू. से 600 ई. तक)
KINGS, FARMERS AND TOWNS
[Early States and Economics (About 600 BCE-600 CE)]
महत्वपूर्ण तथ्य एवं घटनायें
● ई.पू. छठी शताब्दी : दो महान धर्मों जैन और बौद्ध धर्म, आरम्भिक राज्यों, साम्राज्यों और
रजवाड़ों का विकास ।
● प्रिसेंप : ये ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एक अधिकारी थे । उन्होंने 1830 ई. में ब्राह्मी और
खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला ।
● अभिलेख शास्त्र : अभिलेखों का अध्ययन करने वाले विषय को अभिलेख शास्त्र कहा जाता है।
● अभिलेख : पत्थरों, दीवारों, ताम्रपत्र, सिक्कों और मुद्राओं आदि कुछ बातें उत्कीर्ण की जाती
थी। इन्हें अभिलेख कहते हैं।
● प्राकृत : उन भाषाओं को कहा जाता था जो जनसामान्य की भाषाएं होती थी ।
● जनपद : एक ऐसा भूखण्ड है जहां कोई जन (लोग, कुल या जनजाति) अपना पाँव रखता
है अथवा बस जाता है।
● ओलीगार्की या समूह शासन : वह शासन जहाँ सत्ता पुरुषों के एक समूह के हाथ में होती
है । जैसे रोमन गणराज्य का शासन ।
● अरामेइक और यूनानी लिपि : इनका प्रयोग अफगानिस्तान के अभिलेखों में किया गया था।
● सुवर्णगिरि : इसका शाब्दिक अर्थ सोने का पहाड़ है । यह कर्नाटक में स्थित है और सोने
की खदान के लिए उपयोगी था ।
● धम्म महामात्त : अशोक ने धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात्त नामक अधिकारी की
नियुक्ति की थी।
● मौर्य सम्राट की सेना : मेगास्थनीज के अनुसार मौर्य सेना में 6 लाख पैदल सैनिक 30 हजार
घुड़सवार, व 9 हजार हाथी थे।
● सरदारी : एक शक्तिशाली व्यक्ति सरदार कहलाता था । उसके कार्य को सरदार कहा जाता
था । उसका कार्य विशेष अनुष्ठान का संचालन, युद्ध में नेतृत्व करना और विवादों में मध्यस्थ
की भूमिका निभाना था ।
● स्वर्गपुत्र : चीन के अनेक शासकों को स्वर्गपुत्र कहा जाता है।
● हरिषेण : ये समुद्रगुप्त के राजकवि थे और उन्होंने प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद स्तम्भ लेख
की रचना की थी।
● सुदर्शन झील : शक शासक भद्रदामन ने इस झील का निर्माण सिंचाई के लिए करवाया था।
● गृहपति : घर का मुखिया होता था और घर में रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरों और
दासों पर उसका नियंत्रण होता था ।
● हर्षचरित : यह ग्रन्थ संस्कृत में बाणभट्ट ने लिखा इसमें कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की
जीवनी है।
● प्रभावती गुप्त : प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री थी जिसने आचार्य चलास्वामी को
भूमिदान के रूप में दंगुन गाँव दान में दिया था ।
● पाटलिपुत्र : आधुनिक युग में इसकी पहचान पटना से की गई है। इसका विकास पाटलिग्राम
से हुआ । चौथी शताब्दी ई.पू. यह मगध की राजधानी थी और एशिया का सबसे बड़ा नगर।
● उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र : मिट्टी के इन पात्रों पर चमकदार कलई चढ़ी होती है। संभवतः
इनका उपयोग अमीर लोग किया करते थे।
● मुद्राशास्त्र : यह सिक्कों का अध्ययन है । इसके अंतर्गत सिक्कों पर अंकित चित्र, लिपि,
धातु का विश्लेषण आदि का भी अध्ययन किया जाता है।
● ई.पू. 500-400 ई.पू.- मगध में शासकों की सत्ता स्थापित हुई।
● ई.पू. 326- भारत पर सिकन्दर का आक्रमण ।
● ई.पू. 327- प्रथम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यरोहण ।
● अशोक शासन- ई.पू. 272 से 231 ई.पू. ।
● ई.पू. 200-100 ई.पू.- सरदारियों का शासन जिसमें शक, चोल, चेर और पाण्ड्यों का
शासन शामिल था ।
● कनिष्क का राज्यारोहण-78 ई.पू. ।
● गुप्त शासन का आरम्भ-ई. 320 |
● चन्द्रगुप्त द्वितीय-375-415 ई. ।
एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
बहुविकल्पीय प्रश्न
(Multiple Choice Questions)
प्रश्न 1. मगध का निम्न से किन नदी/नदियों के व्यापार मार्ग पर नियंत्रण था ?
(क) गंगा
(ख) गंडक
(ग) सोन
(घ) सभी उत्तर-(घ)
प्रश्न 2. ‘वज्जि’ को सामाजिक ग्रंथों में कहा गया है-
(क) गणसंघ
(ख) गणतंत्र
(ग) कुल्तंत्रीय
(घ) सभी उत्तर-(क)
प्रश्न 3. मगध के किस राजा ने लिच्छवियों के संगठन को नष्ट कर दिया था-
(क) कालाशोक
(ख) बिम्बिसार
(ग) अजातशत्रु
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(घ)
प्रश्न 4. निम्न में से कौन सा महाजनपद राजस्थान, जयपुर, भरतपुर, अलवर क्षेत्र में
स्थित थे?
(क) कुरु
(ख) पांचाल
(ग) मत्स्य
(घ) चेदि उत्तर-(ग)
प्रश्न 5. ‘अवंति’ महाजनपद की राजधानी थी-
(क) तोसली
(ख) अनुराधापुर
(ग) महिष्यति
(घ) मथुरा उत्तर-(ग)
प्रश्न 6. कौशाम्बी को आधुनिक किस नाम से जाना जाता है ?
(क) कन्नौज
(ख) कुशीनगर
(ग) कानपुर
(घ) कोसल उत्तर-(क)
प्रश्न 7. पंच चिन्ह वाले सिक्के बने होते थे-
(क) सोने के
(ख) चाँदी के
(ग) ताम्बे के
(घ) ख और दोनों उत्तर-(घ)
प्रश्न 8. प्राचीन भारत की प्रारंभिक लिपि को कहा जाता है-
(क) पाली
(ख) ब्राह्मी
(ग) देवनागरी
(घ) यूनानी उत्तर-(घ)
प्रश्न 9. भारतीय उपमहाद्वीप में अशोक के कितने बृहत शिलालेख पाए गए हैं-
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) दस
(घ) चौदह उत्तर-(घ)
10. सोलह महाजन पदों का उदय हुआ- [B.M.2009A]
(क) मौर्यकाल में
(ख) बुद्धकाल में
(ग) गुप्तकाल में
(घ) ऋग्वैदिक काल में उत्तर-(ख)
11. दुःख निवारण के लिए बुद्ध ने बताया- [B.M.2009]
(क) सामाजिक नियम
(ख) आर्य सत्य
(ग) अष्टांगिक मार्ग
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(ग)
12. महावीर ने पार्श्वनाथ के सिद्धांतों में एक तत्व (व्रत) और जोड़ दिया। जो है-
[B.Exam/B.M.2009A,B.Exam. 2013(A)]
(क) सत्य
(ख) अहिंसा
(ग) अपरिग्रह
(घ) ब्रह्मचर्य उत्तर-(घ)
13. मौर्यकालीन इतिहास के विषय में निम्न में से किस साक्ष्य से जानकारी नहीं होती-
(क) साहित्यिक
(ख) पुरातात्विक
(ग) मुद्राएं
(घ) अभिलेख उत्तर-(ग)
14. अशोक के अभिलेखों को पढ़ने वाला प्रथम व्यक्ति था- [B.M.2009A]
(क) हैबेल
(ख) प्लीट
(ग) कनिंघम
(घ) जेम्सप्रिंसेस उत्तर-(घ)
15. मौर्य कला का निम्न में से कौन सर्वाधिक महत्वपूर्ण नमूना है ? [B.M. 2009A]
(क) चैत्य
(ख) स्तूप
(ग) गुहावस्तुकला
(घ) स्तम्भ उत्तर-(घ)
16. अर्थशास्त्र और इंडिका से निम्नलिखित वंश पर प्रकाश पड़ता है-
[B.Exam./B.M.2009A,B.Exam.( 2012(A)]
(क) मौर्य वंश
(ख) गुप्त वंश
(ग) सातवाहन वंश
(घ) कुषाणवंश उत्तर-(क)
17. कलिंग पर विजय प्राप्त करने वाला शासक था- [B.M.2009A]
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख) अशोक
(ग) बिन्दुसार
(घ) कुणाल उत्तर-(ख)
18. धम्म की भाषा थी- [B.M.2009A]
(क) देवनागरी
(ख) प्राकृत
(ग) संस्कृत
(घ) खरोष्ठी उत्तर-(ख)
19. अशोक के कलिंग विजय का उल्लेख किस शिलालेख में है?
[B.Exam/B.M.2009(A), B.Exam.2011 (A)]
(क) प्रथम
(ख) सप्तम
(ग) दशम्
(घ) तेरहवें उत्तर-(घ)
20. प्रयाग-प्रशस्ति में किस शासक की विजयों का वर्णन है ? [B.M.2009A]
(क) चंद्रगुप्त मौर्य
(ख) अशोक
(ग) समुद्र गुप्त
(घ) दस कुमार उत्तर-(ग)
21. अशोक का संबंध किस राजवंश से है ? [B.M. 2009(A), B.Exam.2010 (A)]
(क) नन्द वंश
(ख) मौर्य वंश
(ग) गुप्त वंश
(घ) चोल वंश उत्तर-(ख)
22. प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की?
[B.M.2009(A), B.Exam. 2010 (A), B.Exam. 2013(A)]
(क) विष्णु शर्मा
(ख) कालिदास
(ग) हरिषेण
(घ) वाणभट्ट उत्तर-(ग)
22 लोन अभिलेखों की भाषा है? [B.M.2009A]
(क) हिन्दी
(ख) संस्कृत
(ग) उर्दू
(घ) प्राकृत उत्तर-(घ)
24. सोलह महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली कौन था ?
[B.Exam./B.M.2009A,B.Exam. 2013 (A)]
(क) मगध
(ख) कोसल
(ग) अति
(घ) गंधार उत्तर-(क)
25. किस शासक ने ‘धम्म नीति’ का प्रतिपादन किया ? [B.M.2009A]
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख) बिन्दुसार
(ग) अशोक
(घ) सम्प्रति उत्तर-(ग)
26. ‘अर्थशास्त्र”नामक ग्रंथ का लेखक कौन था ? [B.M.2009A]
(क) अश्वघोष
(ख) बाणभट्ट
(ग) बसुबन्धु
(घ) कौटिल्य उत्तर-(घ)
27. यूनानी स्रोतों के अनुसार मौर्यों की सेना में कितने पैदल सैनिक थे ?[B.M.2009A]
(क) छह लाख
(ख) दस लाख
(ग) पाँच लाख
(घ) एक लाख उत्तर-(क)
28. ‘प्रयाग-प्रशस्ति’ किस राजवंश से संबंधित है ? [B.M.2009A]
(क) मौर्य
(ख) शुंग
(ग) कुषाण
(घ) गुप्त उत्तर-(घ)
29. किस वंश के राजाओं ने अपने को ‘देवपुत्र’ घोषित किया ?
(क) नन्द वंश
(ख) मौर्य वंश
(ग) शुंग वंश
(घ) कुषाण वंश उत्तर-(घ)
30. साँची का स्तूप किस राज्य में अवस्थित है ? [B.M.2009A]
(क) छत्तीसगढ़
(ख) मध्य प्रदेश
(ग) उत्तर प्रदेश
(घ) गुजरात उत्तर-(ख)
31. स्तूप का संबंध किस धर्म से है ? [B.M.2009A, B.Exam. 2009(A), 2012(A)]
(क) ब्राह्मण
(ख) जैन
(ग) बौद्ध
(घ) इस्लाम उत्तर-(ग)
32. मौर्य कला का निम्न में से कौन सर्वाधिक महत्वपूर्ण नमूना है ? [B.M. 2009A]
(क) चैत्य
(ख) स्तूप
(ग) गुहावास्तुकला
(घ) स्तम्भ उत्तर-(घ)
33. त्रिपटक का संबंध किस धर्म से है ?
[B.Exam./B.M.2009A,B.Exam.2011 (A)]
(क) जैन
(ख) शैव
(ग) बौद्ध
(घ) वैष्णव उत्तर-(ग)
34. प्रथम बौद्ध संगीति कहाँ हुई थी ? [B.M.2009A]
(क) पाटलिपुत्र
(ख) वैशाली
(ग) कश्मीर
(घ) राजगृह उत्तर-(घ)
35. श्वेताम्बर और दिगम्बर का संबंध किस धर्म से था ?
[B.M.2009A, B.Exam. 2010 (A)]
(क) हिन्दू
(ख) इस्लाम
(ग) जैन
(घ) बौद्ध उत्तर-(ग)
36. जैन संगीति कहाँ हुई थी ? [B.M.2009A]
(क) कश्मीर
(ख) दिल्ली
(ग) बलमी
(घ) काशी उत्तर-(ग)
37. शिशुनाग वंश एवं नन्दवंश का केन्द्र था- [B.M.2009A]
(क) काशी
(ख) कोशल
(ग) अंग
(घ) मगध उत्तर-(घ)
38. ‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब हुई थी ? [B.Exam. 2011 (A)]
(क) छठी शताब्दी ईसा पूर्व
(ख) पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व
(ग) चौथी शताब्दी ईसा पूर्व
(घ) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व उत्तर-(ग)
39. ‘राज तरंगिणी’ के लेखक कौन थे ? [B.Exam. 2011 (A)]
(क) पतंजलि
(ख) बाणभट्ट
(ग) विशाखदत्त
(घ) कल्हण उत्तर-(घ)
40. पतंजलि के महाभाष्य से हमें जानकारी मिलती है- [B.Exam.2011 (A)]
(क) गुप्त काल की
(ख) मौर्य काल की
(ग) प्राक्-मौर्य काल की
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(क)
41. मौर्य कालीन टकसाल का प्रधान कौन [B.Exam.2011 (A)]
(क) कोषाध्यक्ष
(ख) मुद्राध्यक्ष
(ग) पण्याध्यक्ष
(घ) लक्षणाध्यक्ष उत्तर-(घ)
42. ‘हीनयान’ और ‘महायान’ सम्प्रदाय किस धर्म से सम्बन्धित है ? [B.Exam.2012(A)]
(क) जैन
(ख) बौद्ध
(ग) हिन्दु
(घ) सिख उत्तर-(ख)
43. धम्म महामात्रों को किसने नियुक्त किया ? [B.Exam.2012(A)]]
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख) अशोक
(ग) कनिष्क
(घ) बिन्दुसार उत्तर-(ख)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. 1880 ई. में प्रिंसेप द्वारा लिपियों के अर्थ निकालने से क्या लाभ हुए ?
उत्तर-(i) इस खोज से आरम्भिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को नई दिशा
मिली।
(ii) भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की
वंशावलियों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग
किया।
प्रश्न 2. ई. पू. छठी शताब्दी को परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है ?
उत्तर-(i) इस काल में आरम्भिक राज्यों एवं नगरों का उदय हुआ । यह लोहे के प्रयोग और
सिक्कों के विकास से सम्भव हुआ ।
(ii) इसी काल में बौध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।
प्रश्न 3. गण और संघ राज्यों में शासन कैसे चलता था ?
उत्तर-(i) गण और संघ राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था ।
(ii) इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था । भगवान महावीर और भगवान बुद्ध
इन्हीं गणों से संबंधित थे।
प्रश्न 4. धर्मशास्त्र कब लिखे गये ? इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-(i) लगभग छठी शताब्दी ई० पू० में धर्म शास्त्र नामक ग्रंथों की रचना शुरू की गई।
(ii) इनमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया और यह अपेक्षा की जाती
थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही होंगे।
प्रश्न 5. मगध नये-नये धार्मिक आन्दोलन का केन्द्र क्यों हुआ?
उत्तर-(i) उन दिनों मगध राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था । इसलिए यदि यहाँ के
शासकों को बौद्ध या जैन मत में लाया जाता तो उनके भतों के फैलने की सम्भावना काफी
अधिक थी।
(ii) केवल यही नहीं सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी मुख्य केन्द्र उन
दिनों मगध ही था । वहाँ से धर्म प्रचार करके आगे बढ़ना सुगम था । इस कारण मगध धार्मिक
आन्दोलन का केन्द्र हुआ ।
प्रश्न 6. विवेचन करें कि ईसा की छठी सदी से चौथी सदी तक नगरीकरण के
कौन-कौन से कारण थे?
उत्तर-(i) बौद्ध काल में बड़े-बड़े राज्य अस्तित्व में आ चुके थे । इस प्रकार उनकी
राजधानियाँ, देखते ही देखते बड़े-बड़े नगरों का रूप धारण कर गई ।
(ii) सिक्कों के आविष्कार ने जो व्यापार को प्रोत्साहन दिया उसके कारण भी अनेक
व्यापारिक केन्द्र बड़े-बड़े नगरों में परिणित हो गए । ये नगर प्रायः नदियों के किनारे बसे
हुए थे और दूसरे नगरों से जुड़े हुए थे । इस व्यापार ने भी उन्हें वैभवशाली बनाने में बड़ी
सहायता की।
(iii) कुछ स्थान औद्योगिक इकाइयों के रूप में भी उभरे और देखते ही देखते नगरों में
बढ़ते चले गये।
प्रश्न 7. ‘उत्तरी काला पालिशदार अवस्था’ नामक पद स्पष्ट करें।
उत्तर-‘एन० बी० पी० फेज या उत्तरी काला पालिशदार अवस्था’ मिट्टी के बर्तन बनाने
की उस अवस्था को कहते हैं जब चमकीले पालिशदार बर्तन धनी व्यक्तियों की खाने की मेजों
को सजाते थे । ऐसी अवस्था भारत में छठी शताब्दी ई० पू० में थी।
प्रश्न 8. “पंचमार्कड या आहत मुद्रायें” नामक पद का आशय प्रकट करें ।
उत्तर-ये वे मुद्रायें थीं जिन पर कोई-न-कोई चिह्न अंकित होता था । कई बार इन पर शासक
की आकृति, उनके वंश का निशान और कई बार तिथि भी अकित होती थी । ऐसी पंचमार्कड
या आहत मुद्रायें इतिहास को जानने में बड़ी उपयोगी सिद्ध होती हैं।
प्रश्न 9. महावीर स्वामी अथवा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन करें । [B.Exam.2012(A)]
उत्तर-महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया । उनके अनुसार मनुष्य
को त्रिरत्न अर्थात् शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन का पालन करना चाहिए । उन्होंने
मोक्ष-प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम
मार्ग स्वीकार किया । वह समझते थे कि पशु, वायु, अग्नि, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं में आत्मा
है और इन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। उन्हें वेदों, जाति-पाति या यज्ञ तथा बलि में कोई विश्वास
नहीं था । उनका विचार था कि अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण मनुष्य जन्म लेता है और
आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया
कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें ।
प्रश्न 10. लिपि शब्द का अर्थ क्या है ?
उत्तर-वास्तव में ‘लिपि’ और ‘दिपी’ शब्दों का एक ही अर्थ है। अपने शिलालेखों में
अशोक ने लिपि का प्रयोग किया जो सम्भवतः ईरानी शब्द दिपि से ही लिया गया था । जो प्राचीन ईरानियों के लिए ‘दिपी’ का महत्त्व था वही भारतीयों के लिए ‘लिपि’ का था ।
प्रश्न 11. कलिंग युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-अशोक ने कलिंग (या आधुनिक उड़ीसा) के साथ 261 ई० पू० में एक युद्ध लड़ा।
इस युद्ध के बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े-
(i) इस युद्ध के विनाश को देखकर अशोक इतना विचलित हुआ कि उसने युद्ध का मार्ग
सदा के लिए त्याग दिया और धर्म-विजय का मार्ग अपना लिया ।
(ii) अशोक अब बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया और इस धर्म को एक छोटे से मत से
एक विश्व धर्म बना दिया ।
प्रश्न 12. मौर्य वंश के पतन के दो मुख्य कारण लिखें।
उत्तर-(i) अशोक ने कलिंग के युद्ध के पश्चात् जब बौद्ध धर्म को अपना लिया तो उसकी
सारी सैनिक गतिविधियाँ बन्द-सी हो गई, जो साम्राज्य के लिए बड़ी घातक सिद्ध हुई।
(ii) विदेशी आक्रमणकारियों ने, विशेषकर हिन्द-यूनानियों और हिन्द-पार्थियनों ने, इस
कमजोरी का लाभ उठाकर देश पर आक्रमण करने शुरू कर दिये । उनके भयंकर प्रहारों के सामने, सैनिक शक्ति में शिथिल, मौर्य साम्राज्य टिक न सका ।
प्रश्न 13. ‘धम्म’ शब्द का आशय 20-30 शब्दों में स्पष्ट करें ।
उत्तर-‘धम्म’ सामाजिक व्यवहार के उन नियमों को कहा जाता है जो नैतिकता पर
आधारित होते हैं, जैसे बड़ों का आदर करना, छोटों से प्यार करना आदि । कलिंग की विजय
के पश्चात् अशोक ने ऐसे ही ‘धम्म’ का प्रचार किया ।
प्रश्न 14. राजगाह का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-(i) राजगाह मगध की राजधानी थी । इस शब्द का शाब्दिक अर्थ-‘राजाओं का घर’
है। यह आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम है।
(ii) पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबन्द शहर था । बाद में चौथीं शताब्दी ई०
पू० में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया ।
प्रश्न 15. यूनानी यात्री मेगास्थनीज द्वारा सेना के लिए वर्णित छ: उपसमितियों के कार्यों
का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(i) नौसेना का संचालन करना । (ii) यातायात और खानपान का संचालन करना । (iii)
पैदल सैनिकों का संचालन करना । (iv) अश्वारोहियों का संचालन । (v) रथारोहियों का संचालन ।(vi) हाथियों का संचालन ।
प्रश्न 16. दक्षिण के सरदारों के क्या कार्य थे?
उत्तर-(i) सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था उसका कार्य विशेष अनुष्ठान का
संचालन, युद्ध के समय नेतृत्व करना और विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाना
आदि शामिल हैं।
(ii) वह अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है और अपने समर्थकों में उस भेंट का वितरण करता
: है। सरदारी में सामान्य रूप से कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते हैं।
प्रश्न 17. मनुस्मृति में सीमाओं का क्या महत्त्व बताया गया है ?
उत्तर-(i) मनुस्मृति आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रंथ है।
(ii) इसके अनुसार सीमाओं की अनभिज्ञता से विश्व में विवाद होते हैं। इसलिए उसे सीमाओं
की पहचान के लिए गुप्त निशान जमीन में गाड़कर रखना चाहिए।
प्रश्न 18. सिकन्दर भारत पर आक्रमण क्यों करना चाहता था ?
उत्तर-(i) इसका पहला कारण यह दिया जाता है कि सिकन्दर एक महान् विजेता था जो
भारत जीत कर अपने नाम को चार चांद लगाना चाहता था।
(ii) दूसरा कारण यह बताया जाता है कि वह भारतीय संस्कृति की महानता के विषय में
बहुत कुछ सुन चुका था इसलिए वह स्वयं इस तथ्य की सत्यता को भारत आकर परखना चाहता था।
प्रश्न 19. श्रेणी के क्या कार्य थे?
उत्तर-प्रत्येक श्रेणी (गिल्ड) व्यवसाय में संगठित था। यह जन-साधारण से धन लेती और
ऋण देती थी। श्रेणी लोगों के लिए मन्दिर, बाग, विश्राम गृह आदि बनवाती थी। वह सदस्यों
की सुरक्षा भी करती थी।
प्रश्न 20. गुप्त वंश की जानकारी के मुख्य स्रोत क्या हैं ?
उत्तर-इलाहाबाद और सांची के अभिलेख, भूमि अनुदान संबंधी दस्तावेज, सिक्के और
फाह्यान एवं कालीदास की साहित्यिक कृतियां ।
प्रश्न 21. इलाहाबाद या प्रयाग-स्तम्भ अभिलेख का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-इलाहाबाद या प्रयाग का स्तम्भ अभिलेख गुप्तकाल का एक महान ऐतिहासिक स्रोत
है। इस अकेले स्रोत पर बहुत कुछ समुद्रगुप्त की महानता निर्भर करती है। इस अभिलेख की
33 लाइनें हैं जो संस्कृत भाषा में हैं। इस लेख के रचयिता समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिसेन
थे जिसने अपने आश्रयदाता की विजयों और सैनिक पराक्रमों का वर्णन किया है।
प्रश्न 22. दिल्ली के लौह-स्तम्भ अभिलेख का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-दिल्ली में कुतुबमीनार के पास लौह-स्तम्भ पर किसी चन्द्र नामक राजा का अभिलेख
खुदा हुआ मिला है। यह अभिलेख चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से अब जोड़ा जाता है। इस
अभिलेख से पता चलता है कि चन्द्र ने पश्चिमोत्तर दिशा में और बंगाल में निरन्तर विजय प्राप्त
की और अपने वंश की कीर्ति को चार चाँद लगा दिये।
प्रश्न 23. समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। क्यों ?
उत्तर-भारत का नेपोलियन समुद्रगुप्त-समुद्रगुप्त ने मगध राज्य को शक्तिशाली बनाकर
तथा छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर देश में राजनैतिक एकता की स्थापना की। समुद्रगुप्त की महान सैनिक सफलताओं के कारण डॉ. वी. ए. स्मिथ ने उसे भारतीय नेपोलियन कहा है। जिस प्रकार नेपोलियन ने लगभग सारे यूरोप को जीता। उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने भी सारे भारत को जीता था।
भारत में कोई भी शासक उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला न था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. आरंभिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन की चर्चा कीजिए।
हड़प्पा के नगरों की तुलना में यह कितना भिन्न है ? [N.C.E.R.T. T.B.Q.1]
Discuss the evidence of craft production in early historic cities. In what
ways is this different from the evidence from Harppan cities?
उत्तर-आरंभिक ऐतिहासिक शहरों का अनेक स्थानों पर उत्खनन किया गया है। इन शहरों
में हमें अनेक स्थानों पर शिल्प उत्पादन के प्रमाण मिले हैं-
(i) लोग उत्कृष्ट श्रेणी के कटोरे और थालियाँ बनाते थे जिन पर चिकनी कलई चढ़ी
होती थी। इन्हें उत्तरी अश्वेत पॉलिश भाँड (एन. बी. पी. डब्ल्यू. = N.B.P.W.) मृदभांड से जाना
जाता है।
(ii) मृदभांडों के साथ-साथ इन नगरों में गहने, उपकरण, हथियार, बर्तन और सोने-चाँदी,
कांस्य, ताँबे, हाथी दाँत, शीशे, शुद्ध और पक्की मिट्टी की मूर्तियाँ भी बनाई जाती थीं।
(iii) इन नगरों में वस्त्र बुनने का कार्य, बढ़ईगिरी, मृदभांड बनाने का कार्य, आभूषण बनाने
का कार्य, लोहे के औजार, उपकरण वस्तुएँ आदि तैयार करने का कार्य भी होता था। संभवत.
सुन्दर मिट्टी के बर्तन केवल धनी लोगों के द्वारा प्रयोग में लाये जाते थे।
(iv) अनेक बार शिल्पकार और उत्पादन अपनी श्रेणियाँ (Guils) बनाते थे जो शिल्पकारों
के लिए पहले तो कच्चे माल को खरीदती थी फिर उनके द्वारा तैयार किये गये मालों को बाजार
में बेचती थी। शिल्पकार नगरों में रहने वाले संभ्रांत लोगों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए
अनेक प्रकार के उपकरणों का इस्तेमाल करते थे।
भेद (Differences)
(i) यद्यपि मकानों और भवनों के अवशेष देश में इन आरंभिक शहरों में भी ढूँढे गये हैं लेकिन
ये शहर कई मामलों में हड़प्पाई शहरों से भिन्न हैं ।
(ii) हड़प्पा के लोग इन प्रारंभिक शहरों के लोगों के समान लोहे के प्रयोग को नहीं जानते
थे। इसलिए हम कह सकते हैं कि प्रारंभिक शहरों के शिल्पकार लोहे से विभिन्न प्रकार के औजार
और उपकरण नहीं बनाते थे लेकिन हमें यह प्रमाण मिलता है कि प्रारंभिक शहरों के लोग बड़ी
मात्रा में लोहे के औजार, उपकरण और वस्तुएँ बनाते थे।
प्रश्न 2. महाजनपद की प्रमुखताओं का चित्रण कीजिए। [N.C.ER.T. T.B.Q.2]
Describe the salient features of Mahajanpadas.
उत्तर-(i) महाजनपदों की संख्या 16 थी जिनमें से लगभग 12 राजतंत्रीय राज्य और 4
गणतंत्रीय राज्य थे।
(ii) महाजनपद को प्राय: लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है।
(iii) ज्यादातर महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से
प्रसिद्ध राज्यों में अनेक लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा
कहलाता था ।
(iv) गणराज्यों में भूमि सहित अनेक आर्थिक स्रोतों पर गण के राजा सामूहिक नियंत्रण
रखते थे।
(v) महाजन पद एक राजधानी होती थी जिन्हें प्रायः किले से घिरा था। किले
बन्द राजधानियों के रख-रखाव और प्रारंभिक सेनाओं नौकरशाही के लिए आर्थिक स्रोत की
जरूरत होती थी।
(vi) महाजनपदों में लगभग छठी शताब्दी ई. पू. से ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्रों
नामक ग्रंथों की रचनाएँ शुरू की। इनमें शासक सहित अन्य लोगों के लिए नियमों का निर्धारण
किया गया और यह उम्मीद की गई कि सभी राज्यों में राजा क्षत्रिय वर्ण के ही होंगे ।
(vii) शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूलना माना
जाता था । क्या वनवासियों और चरवाहों से भी कर रूप में कुछ लिया जाता था ? हमें इतना
तो ज्ञात है कि सम्पत्ति जुटाने का एक वैध उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा
करना भी माना जाता था।
(viii) धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र तैयार कर लिये।
बाकी राज्य अब भी सहायक-सेना पर निर्भर थे जिन्हें प्रायः कृषक वर्ग से नियुक्त किया जाता था।
प्रश्न 3. जेम्स प्रिंसेप कौन थे ? भारतीय इतिहास की उसने कैसे सेवा की ? लगभग
150 शब्दों में समझाइए ।
Who was James Princep? How did he served the Indian history. Explain
in about 150 words.
उत्तर-I. परिचय (Introduction)-जेम्स प्रिंसेप ब्रिटिश इंडिया कंपनी का एक अधिकारी
अभिलेखों का अध्ययन करने वाला एक कुशल विद्वान था ।
II. प्रिंसेप द्वारा भारतीय इतिहास में सेवा (Service render by Pricep to Indian .
History)
(i) भारतीय अभिलेख विज्ञान में एक उल्लेखनीय प्रगति 1830 के दशक में हुई, जब ईस्ट
इंडिया कम्पनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला।
इन लिपियों का उपयोग सबसे आरंभिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है। प्रिंसेप को
पता चला कि अधिकांश अभिलेखों और सिक्कों पर पियदसी, यानी मनोहर मुखाकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों पर राजा का नाम अशोक भी लिखा है । बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक सर्वाधिक प्रसिद्ध शासकों में से एक था ।
(ii) इस शोध से आरंभिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को नई दिशा मिली,
क्योंकि भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने, उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की
वंशावलियों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग
किया। परिणास्वरूप बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनीतिक इतिहास का एक सामान्य चित्र तैयार हो गया ।
(iii) उसके बाद विद्वानों ने अपना ध्यान राजनीतिक इतिहास के संदर्भ की और लगाया और
यह छानबीन करने की कोशिश की कि क्या राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक तथा सामाजिक
विकासों के बीच कोई संबंध था । शीघ्र ही यह आभास हो गया, कि इनमें संबंध तो थे, लेकिन
संभवतः सीधे संबंध हमेशा नहीं थे।
प्रश्न 4. सामान्य नागरिकों के जीवन का पुनर्चित्रण इतिहासकार कैसे करते हैं ?
How do historians reconstruct the lives of ordinary people?
[N.C.ER.T. T.B.Q.3]
उत्तर-सामान्य नागरिकों के जीवन का पुनर्चित्रण करने के लिए इतिहासकार विभिन्न स्रोतों
का सहारा लेते थे-
(i) वैदिक इतिहास-लगभग 600 ई. पू. से 600 ई. तक के भारतीय समाज के साधारण
लोगों के बारे में वैदिक साहित्य से पर्याप्त जानकारी मिलती है । उदाहरण के लिए ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद के साथ-साथ ब्राह्मण ग्रंथ-वेदांत, रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को साधारण नागरिकों के जीवन के बारे में जानाकारी प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
(ii) साहित्यिक साधनों से हमें उत्तर भारत, दक्षिण पठार और कर्नाटक जैसे अनेक क्षेत्रों में
विकसित हुई कृषक बस्तियों के विषय में जानकारी मिलती है। साथ ही दक्कन और दक्षिण भारत में चारवाह बस्तियों के प्रमाण भी मिलते हैं।
(iii) दक्षिण भारत में प्रायः शवाधान से हमें दक्षिण भारत और मध्य भारत के लोगों के शवों
के अंतिम संस्कार के नये तरीकों के बारे में जानकारी मिलती है । इन कब्रों को महापाषाण के
नाम से जाना जाता है। अनेक स्थानों पर पाया गया है कि साधारण लोगों के शवों के साथ
विभिन्न प्रकार के लोहे से बने उपकरणों और हथियारों को भी दफनाया जाता था ।
(iv) इतिहासकार सर्वसाधारण के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए ग्रंथों के साथ-साथ
अभिलेखों, सिक्कों और चित्रों को भी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों के रूप में प्रयोग करते हैं । वे
सिक्कों और चित्रों में भी साधारण लोगों के बारे में जानने का प्रयास करते हैं।
(v) अभिलेखों से हमें साधारण लोगों की भाषाओं के बारे में जानकारी मिलती है । प्राकृत
उत्तरी भारत में और तमिल दक्षिण भारत में सर्वसाधारण की भाषा होती थी। कुछ उत्तर भारत
में लोग पालि और संस्कृत का प्रयोग करते थे ।
(vi) इस काल में किसानों, साधारण व्यापारियों, चारवाहों आदि लोगों से सरकार भू-राजस्व
और अनेक तरह के कर वसूल करते थे ।
(vii) इतिहासकार सामान्य लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए दान-संबंधी आदेशों
और रिकॉर्डों का भी अध्ययन करते हैं । भूमि दान से संबंधित विज्ञप्तियों से कृषि विस्तार और
कृषि के ढंग और उपज बढ़ाने के तरीकों के बारे में जानकारी मिलती है । भूमिदान के प्रचलन
से राज्यों और किसानों के बीच के संबंधों की झाँकी मिलती है।
(viii) नगरों में रहने वाले सर्वसाधारण लोगों में धोबी, बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार,
स्वर्णकार, लौहकार, छोटे व्यापारी और छोटे धार्मिक व्यक्ति आदि होते थे ।
प्रश्न 5. पाण्ड्य सरदारों को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना ठगुना गाँव की वस्तुओं
से कीजिए । आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई जाती हैं ?
Compare and contrast the list of things given to the Pandyan chief with
those produced in the village of Thanguna. Do you notice any similarities or differences? [N.C.E.R.T. TB.Q.4]
उत्तर-समानताएँ (Similarities)-पाण्ड्य सरदार के लिए लोग उपहार में देने के लिए
हाथी-दाँत, सुगंधित लकड़ी, मधु शहद, चंदन, सुरमा, हल्दी, इलायची, मिर्च, नारियल, आम
जड़ीबूटी, केला, बाघों के बच्चे और शेरों, हाथी, भालू, हिरन, कस्तूरी, मृग, लोमड़ी, जंगली मोर,
मुर्गे, बोलने वाले तोते आदि लाये जबकि ठंगुना गाँव के लोग घास, चमड़े की वस्तुएँ, चारकोल,
खनिज पदार्थ, कुछ वृक्ष फूल और दूध आदि लाये। दोनों में समानता है कि लोग सरकारी
सरदारों अथवा पदाधिकारियों को दान देते थे।
असमानताएँ (Differences)—पाण्ड्य राज्य के लोग खुशी-खुशी से अपने सरदार को
उसकी वन यात्रा के दौरान नाचते-गाते हुए आदर के साथ विभिन्न उपहार देते हैं। लोग उपहार
इसलिए लाये क्योंकि सरदार को विभिन्न कारणों से उनकी जरूरत थी। सरदार अपनी इच्छानुसार इन शहरों का उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिए करते होंगे दूसरी ओर प्रभावती गुप्त ने दान देने के लिए ठंगुना गाँव के निवासियों, ब्राह्मणों और अन्य प्राणियों को दान देने के लिए आदेश दिया।
वह उन्हें पुनः पाने के लिए दान करने के लिए आदेश देती है। वह अग्रहार (वह भू-भाग जो
ब्राह्मणों को दान में दिया जाता था) से कर वसूल नहीं करती थी।
प्रश्न 6. अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं का उल्लेख कीजिए।
List some of the problems faced by epigraphists. [N.C.E.R.T. T.B.Q.5)
उत्तर-अभिलेखशास्त्रियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(i) वे कुछ अभिलेखों पर दी गई लिपि को पढ़ ही नहीं पाते क्योंकि जिन युगों के वे अभिलेख
होते हैं उनके समकालीन अभिलेखों पर कहीं भी उस लिपि का प्रयोग अन्य अभिलेखों की भाषाओं के साथ कहीं नहीं हुआ होता । दो भाषाओं के समानांतर उपयोग के अभाव में अभिलेखशास्त्री असहाय हो जाते हैं । उदाहरण के लिए हड़प्पा सभ्यता की मोहरों और अन्य वस्तुओं पर दिये गये लेखों को अभी तक नहीं पढ़ा जा सका है।
(ii) कुछ अभिलेखों में एक ही राजा के लिए भिन्न-भिन्न नामों/उपाधियों अथवा सम्मानजनक
प्रतीकों और संबोधनों का प्रयोग किया जाता है । इसलिए अभिलेखशास्त्री निष्कर्ष निकालने में’
काफी परिश्रम करने के लिए या समय व्यतीत करने के लिए विवश हो जाते हैं। उदाहरण के
लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप के सामने मौर्य सम्राट अशोक के अभिलेख
की समस्या ले आये।
(iii) अभिलेखों में उन लोगों की उपलब्धियाँ, क्रियाकलाप या विचार लिखे जाते हैं, जो उन्हें
बनवाते हैं । इनमें राजाओं के क्रियाकलाप तथा महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को
दिये गये दान का ब्यौरा होता है । यानी अभिलेख एक प्रकार से स्थायी प्रमाण होते हैं। कई
अभिलेखों में इनके निर्माण की तिथि भी खुदी होती है। जिन पर’ तिथि नहीं मिलती है, उनका
काल निर्धारण आमतौर पर पुरालिपि अथवा लेखन शैली के आधार पर काफी सुस्पष्टता से किया जा सकता है। उदाहरण के लिए लगभग 250 ई. पू. में अक्षर ‘अ’ इस प्रकार लिखा जाता था और 500 ई. में यह इस प्रकार लिखा जाता था ।
(iv) अभिलेखशास्त्रियों की इच्छा हो या न हो कई भाषाओं और लिपियों का अध्ययन करने
के लिए मजबूर होना पड़ता है क्योंकि एक ही शासक या उसके वंश से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों
या देशों में मिलने वाले अभिलेखों में लगभग एक ही युग में भिन्न-भिन्न भाषाओं और लिपियों
का प्रयोग होता है । इस संदर्भ में अशोक के अभिलेख सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं ।
(v) अशोक के अधिकांश अभिलेख प्राकृत में हैं, जबकि पश्चिमोत्तर से मिले अभिलेख
अरामाइक और यूनानी भाषा में हैं । प्राकृत के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गये थे,
जबकि पश्चिमोत्तर के कुछ अभिलेख खरोष्ठी में लिखे गये थे । अरामाइक और यूनानी लिपियों
का प्रयोग अफगानिस्तान में मिले अभिलेखों में किया गया था ।
प्रश्न 7. विभिन्न नगरों की स्थिति और उनके द्वारा अदा की गई विभिन भूमिकाओं
का (600 ई. पू. से 400 ई. तक) वर्णन कीजिए ।
(Discuss the location and different role played by major towns of period of yourstudy (600 B.C.-400A.D.).)
उत्तर-भारत में बड़ी संख्या में कई नगरों का विकास लगभग छठी शताब्दी ई. पू. में
उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ । जैसा कि हमने पढ़ा है, इनमें से अधिकांश नगर महाजनापदों की राजधानियाँ थीं । प्रायः सभी नगर यातायात मार्गों के किनारे बसे थे । पाटलिपुत्र जैसे कुछ नगर नदीमार्ग के किनारे बसे थे । उज्जयिनी जैसे अन्य नगर भूतल मार्गों के किनारे थे । इसके अलावा पुहार जैसे नगर समुद्रतट पर थे । जहाँ से समुद्री मार्ग प्रारम्भ हुए । मथुरा जैसे अनेक शहर, व्यावसायिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधि यों से संपन्न थे।
प्रश्न 8. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्व है ? [B.Exam.2009A]
उत्तर-अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुए
लेखाभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन की जानकारी
मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसके धम्म, प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय
पहलुओं आदि के विषय में सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास लेखन में अभिलेख की
महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महादेय ने
अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयत्न किया है।
प्रश्न 9. मौर्यों के राजनैतिक इतिहास के मुख्य स्रोत क्या-क्या है ? [B.M. 2009A]
अथवा, मौर्य कालीन इतिहास के प्रमुख श्रोतों का संक्षिप्त विवरण दें।
[B.Exam. 2009A,B.Exam.2011 (A), B.Exam.2013 (A)]
(What are the main sources of political history of Maurayas ?)
उत्तर-(1) मेगास्थनीज की इंडिका (Indica of Megasthaneze)-मौर्यकालीन भारत
के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिये मेगास्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’ (Indica) एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें तत्कालीन शासन व्यवस्था, समाज, राजनैतिक व आर्थिक अवस्था पर महत्त्वपूर्ण विवरण मिलता है।
(2) कौटिल्य का अर्थशास्त्र (Kautilya’s Arthshastra)― कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी
तत्कालीन भारत के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है जिससे मौर्यों के बारे में पता चलता है।
(3) विशाखदत्त का मुद्राराक्षस (Vishakhdutta’s Mudraraksha)-इस प्रमुख ग्रन्थ में नन्द वंश का चन्द्रगुप्त द्वारा नाश का वर्णन है।
(4) जैन और बौद्ध साहित्य (Jains and Buddhists Literature) -जैन और बौद्ध
दोनों धर्मों के साहित्य में तत्कालीन समाज, राजनीति आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
(5) अशोक के शिलालेख (Inscription of Ashoka)-स्थान-स्थान पर लगे अशोक
के शिलालेखों से भी मौर्यकालीन प्रशासन, धर्म, समाज अर्थव्यवस्था आदि पर प्रकाश पड़ता है।
प्रश्न 10. देश की एकता हेतु अशोक ने कौन-से तीन मार्ग अपनाए ?
Which were the three ways adopted by Ashoka for the unity of country?
उत्तर-(क) राजनैतिक एकीकरण (Political unity) अशोक ने सम्पूर्ण देश को
एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया । केवल कलिंग ही एक ऐसा देश था, जो उसके
अधीन न था। ई. पू. 261 में उसने कलिंग को भी जीत लिया । इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह
उसकी अन्तिम विजय थी, परन्तु उसने राजनैतिक एकीकरण का अपना विचार पूरा किया ।
(ख) एक भाषा और एक लिपि (One language and one script)-अशोक ने
अपने अभिलेखों में एक भाषा (प्राकृत) और एक ही लिपि (ब्राह्मी लिपि) का प्रयोग किया, परन्तु
आवश्यकता पड़ने पर उसने प्राकृत के साथ-साथ यूनानी तथा संस्कृत भाषा ब्राह्मी लिपि के साथ खरोष्ठी अरेमाइक और यूनानी लिपियों का भी प्रयोग किया ।
(ग) धार्मिक सहिष्णुता (Religious tolerance)-अशोक ने स्वयं बौद्ध धर्म ग्रहण
कर लिया था, परन्तु उसने कभी भी दूसरे धर्म वालों पर इसे अपनाने का दबाव नहीं डाला ।
अपने राज्य में रहने वाले विभिन्न धर्मों के मानने वालों को उसने अपने-अपने तरीकों से
पूजा-अर्चना आदि करने की छूट दे दी थी।
प्रश्न 11. कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ? [B.M.2009A]
What a short note on Kalinga war and its impacts.
उत्तर-कलिंग युद्ध में एक भीषण रक्तपात को देखकर अशोक का दिल दहल गया । उसे
युद्ध के नाम से घृणा हो गई और उसने भविष्य में युद्ध न करने की शपथ ली । उसने अपनी
जीवनधारा को ही बदल दिया । कलिंग युद्ध के अधोलिखित प्रभाव पड़े-
1. धर्म विजय (Victory of Religion)―अशोक ने अपने विश्व विजय के स्वप्न व प्रण
को तोड़कर धर्म विजय की ओर कदम बढ़ाये । उसे अब प्रतीत होने लगा था कि विश्व पर सबसे
बड़ी विजय मानव-हृदयों पर विजय प्राप्त करना है।
2. बौद्ध धर्म ग्रहण करना (To adopt Buddha Religion)-कलिंग युद्ध ने अशोक
की आँखें खोल दी । उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया । यह संभव हो सकता है कि यदि कलिंग
युद्ध न होता तो वह बौद्ध धर्म ग्रहण न करता ।
3. जीवन शैली में परिवर्तन (Changes in life style)-कलिंग युद्ध से पूर्व अशोक ने
भी अपने पूर्वजों की भाँति युद्ध लड़े, शिकार खेले, माँसाहार किया और विलासिता का जीवन
बिताया परन्तु इस युद्ध ने उसकी जीवन धारा को ही बदल डाला । वह अहिंसा का पुजारी और
दीन-दुखियों का रक्षक बन गया ।
4. निर्बल सैनिक संगठन (Weak Military Administration)-युद्ध नीति का त्याग
करने के साथ ही सेना का मनोबल गिर गया । मौर्य साम्राज्य के पतन के लिये सेना काफी हद तक उत्तरदायी है।
प्रश्न 12. अशोक के धम्म (धर्म) के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the religion of Ashoka?) [B.M.2009A]
अथवा /Or
अशोक के धर्म पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए । [B.Exam.2011 (A)]
Write a brief note on the religion of Ashoka.
अथवा /Or
अशोक के धम्म के बारे में लिखिए। [B.Exam.2013(A)]]
Write about Ashoka’s dhamma.
उत्तर-(i) कलिंग युद्ध में भीषण रक्तपात को देखकर अशोक का हृदय काँप उठा और उसने
भविष्य में अहिंसा की नीति अपनाने की ठानी ।
(ii) उसने बौद्ध धर्म से दीक्षा ले ली । अशोक एक नये मत का संस्थापक बन गया जो अशोक
के धर्म के नाम से प्रसिद्ध है। अपने धर्म के द्वारा वह प्राणी का उद्धार करना चाहता था।
(iii) इस धर्म के द्वारा उसने मृत्यु बाद के जीवन को भी सुधारने का प्रयास किया क्योंकि
इसमें शुद्ध आचरण पर बल दिया जाता है।
अशोक का धम्म-मूलभूत सिद्धान्त
1. संयम अथवा इन्द्रियों पर नियंत्रण, 2. भावशुद्धि अथवा विचारों की पवित्रता, 3. कृतज्ञता,
4. दृढ़ शक्ति, 5. दया, 6. शौच अथवा पवित्रता, 7. सत्य, 8. सुश्रुता सेवा, 9. दान, 10. सम्पत्तिपत्ति अथवा सहायता करना, 11. अपिचित्ति अथवा आदर ।
(iv) अशोक सब धर्मों का आदर करता था। उसके अनुसार सब धर्मों का सार ग्रहण करो,
किसी धर्म की निन्दा मत करो । सब धर्मों का मूल एक ही है। अशोक के धर्म (बौद्ध धर्म)
का प्रमुख सिद्धान्त था-बड़ों का सम्मान करना । उसके अनुसार मनुष्य को पवित्र जीवन व्यतीत
करना चाहिए।
(v) अशोक ने दान करने को भी महत्त्व दिया है । उसका धर्म सामान्य जीवन को प्रेरणा
देता है। उसका आडंबर में विश्वास नहीं था क्योंकि आडंबर से शुद्ध एवं सरल जीवन का मार्ग
प्रशस्त नहीं होता । इस धर्म का अन्य सिद्धान्त अहिंसा है । अशोक के अनुसार जीव जन्तुओं
पर दया करना हमारा परम कर्तव्य है।
प्रश्न 13. चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण दें। [B.M.2009A]
उत्तर-समुद्रगुप्त की प्रशस्ति के अनुसार उसने उत्तरी भारत (आर्यावर्त) के नौ शासकों को
परास्त किया था। आर्यावर्त के अन्तर्गत पूर्वी समुद्र से लेकर पश्चिम समुद्र तक का क्षेत्र तथा
हिमालय, विंध्याचल पर्वत के बीच का क्षेत्र आ रहा है। ये उत्तरी भारत शासक थे-रूद्रदेव, मतिल
नागदत्त, चंद्रवर्मन, गणपतिनाग, नागसेन, अच्युत, नंदी बलवर्मा।
प्रश्न 14. मौर्य शासकों द्वारा किये गये आर्थिक प्रयासों का वर्णन करें।
Desctibe the economic efforts done by Mauryan kings.
उत्तर-(i) कौटिल्य ने कृषकों, शिल्पियों और व्यापारियों से वसूल किये बहुत से करों का
उल्लेख किया है।
(ii) सम्भवतः कर निर्धारण का कार्य सर्वोच्च अधिकारी द्वारा होता था । सन्निधाता राजकीय
कोषागार एवं भण्डार का संरक्षक होता था ।
(iii) वास्तव में कर-निर्धारण का विशाल संगठन पहली बार मौर्य काल में देखने में आया।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में करों की सूची इतनी लम्बी है कि यदि वास्तव में सभी कर राजा के
लिये जाते होंगे, तो प्रजा के पास अपने भरण-पोषण के लिये नाममात्र को ही बचता होगा ।
(iv) ग्रामीण क्षेत्रों में राजकीय भण्डारघर होते थे । इससे स्पष्ट होता है कि कर अनाज के
रूप में वसूल किया जाता था । अकाल, सूखा या अन्य प्राकृतिक विपदा में इन्हीं अन्य-भण्डारों
से स्थानीय लोगों को अन्न दिया जाता था ।
(v) मयूर, पर्वत और अर्धचन्द्र के छाप वाली रजत मुद्राएँ मौर्य-साम्राज्य की मान्य मुद्राएँ
थीं। ये मुद्राएँ कर वसूली एवं कर्मचारियों के वेतन के भुगतान में सुविधाजनक रहीं होंगी । बाजार
में लेन-देन भी इन्हीं से होता था ।
प्रश्न 15. अशोक के अभिलेख और गुप्त (शासक) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
(Write a short note on Ashoka’s inscription and Gupta’s the rulers.)
उत्तर-अशोक के बाद अभिलेखों को हम दो वर्गों में बाँट सकते है-सरकारी अभिलेख और
निजी अभिलेख । सरकारी अभिलेख या तो राजकवियों की लिखी हुई प्रसस्तियाँ है या
भूमि-अनुदान पत्र । प्रसस्तियों का प्रसिद्ध उदाहरण समुद्र गुप्त का प्रयाग अभिलेख है जो अशोक स्तभ पर उत्तीर्ण है । इस प्रसस्ति में समुद्रगुप्त की विजयों और नीतियों का पूरा विवेचन मिलता है। इसी प्रकार के अभिलेखों के अन्य उदाहरण कलिंगराज खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख, गौतमी बलश्री का नासिक अभिलेख, रुद्रदामा का गिरनार शिलालेख, स्कद गुप्त का भीतरी स्तंभ लेख और जूनागढ़ शिलालेख, बंगाल के शासन विजयसेन का देवपाड़ा अभिलेख और चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का ऐहोल अभिलेख है ।
निजी अभिलेख बहुधा मंदिरों में या दीवारों मूर्तियों पर उत्कीर्ण हैं । इन पर जो तिथियाँ खुदी
हैं उनसे इन मंदिरों के निर्माण या प्रति-प्रतिष्ठापन का समय ज्ञात होता है। इस प्रकार इन अभिलेखों से मूर्ति-कला और वास्तुकला के विकास पर प्रकाश पड़ता है और तत्कालीन धार्मिक दशा की जानकारी प्राप्त होती है। इन अभिलेखों से भाषाओं के विकास पर भी प्रकाश पड़ता है।
उदाहरणस्वरूप गुप्त काल से पहले के अधिकतर अभिलेख प्राकृत भाषा में हैं और ब्राह्मणेतर
धार्मिक संप्रदाओं, जैसे कि बौद्ध धर्म और जैन धर्म का उल्लेख है । गुप्त एवं गुप्तोत्तर काल
के अधिकतर अभिलेख संस्कृत में हैं और उनमें विशेष रूप में ब्राह्मण धर्म का उल्लेख है ।
प्रश्न 16. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है ?
What is the importance of inscription in writing history?
[B.Exam. 2009, 2013(A)]
उत्तर-अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुये
लेखाभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन की जानकारी
मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसके धम्म, प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय
पहलुओं आदि के विषय में सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास लेखन से अभिलेख की महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महोदय ने
अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयत्न किया है।
प्रश्न 17. बौद्ध संगीतियाँ’ क्यों बुलाई गयीं ? चतुर्थ बौद्ध संगीति का क्या महत्व है ?
[B.Exam. 2010, 2012(A)]
उत्तर-गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् समय-समय पर बौद्ध धर्म की व्याख्या हेतु
अनेक बौद्ध सभाओं का आयोजन किया गया जिन्हें बौद्ध संगीति के नाम से जाना जाता है।
चतुर्थ-बौद्ध संगीति-
समय-प्रथम शताब्दी ई०।
स्थान-कुण्डलवन (कश्मीर)
शासन-कनिष्क (कुषाण वंश)
अध्यक्ष-वसुमित्र, संगीति के उपाध्यक्ष आश्वघोष थे। महत्त्व-इस संगीति का आयोजन इस
आशय से किया गया था कि बौद्धों के मतभेदों को दूर किया जा सके। इस संगीति में महासांधिकों का बोलबाला रहा। त्रिपिटक पर प्रामाणिक भास्य ‘विभाषा शास्त्र’ की रचना इसी संगीति में हुई।
इस संगीति के पश्चात् ही बौद्ध अनुयायी हीनयान तथा महायान दो समुदायों में विभाजित हो गये।
प्रश्न 18. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें। [B.Exam.2011(A)
उत्तर-चन्द्रगुप्त द्वितीय ने केवल एक महान विजेता बल्कि एक कुशल प्रशासक भी था। गुप्त
प्रशासन का निर्माण उसी ने किया। उसका 40 वर्षों का दीर्घकालीन शासन शांति, सुव्यवस्था और
संवृद्धि का काल था।
चन्द्रगुप्त द्वितीय की प्रमुख उपलब्धियाँ :
(i) बंगाल के युद्ध क्षेत्र में उसने शत्रुओं के एक संघ को पराजित किया था।
(ii) सिंधु के सातों मुखों को पार कर उसने बाहिलको को जीता था।
(iii) दक्षिण भारत में उसकी ख्याति फैली हुई थी।
(iv) वह भगवान विष्णु का परम भक्त था।
प्रश्न 19. गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।
Discuss the main teachings of Gautam Buddha. [B. Exam. 2011, 2013(A)]
उत्तर-गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई० पूर्व कपिलवसतु के लुम्बिनी ग्राम में शाक्य कुल के
क्षेत्रिय वंशीय राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ था। उनके बचपन में ही उनकी माता महामाया का
देहान्त हो जाने के कारण मौसी गौतमी ने उनका पालन पोषण किया। 16 वर्ष की आयु में यशोधरा नामक सुंदरी से उसका विवाह हुआ तथा 28वें वर्ष उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। उन्होंने सांसारिक दुःखों से द्रवित होकर 29वें वर्ष गृह त्याग दिया। 35 वर्ष की आयु में गया (बिहार) में उर्वला नामक स्थान पर ज्ञान की प्राप्ति हुई। 483 ई० पूर्व में 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका निधन हुआ।
बौद्ध धर्म के उपदेश :
गौतम बुद्ध के बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उन्होंने सांसारिक दुखों के चार कारण बताए :-
1. जीवन दुखमय है, 2. तृष्णा, मोह, लालसा, दुख के कारण हैं, 3. इन कारणों को दूर
करके दुखों से छुटकारा पाया जा सकता है और 4. उसके लिए सत्य मार्ग का ज्ञान आवश्यक है।
बुद्ध ने दुःख निवारण हेतु अष्टांगिक मार्ग का प्रावधान किया। 1. सम्यक् भाषण, 2. सम्यक्
कर्म, 3. सम्यक् प्रयल, 4. सम्यक् भाव, 5. सम्यक् ध्यान, 6. सम्यक् संकल्प, 7. सम्यक् दृष्टि,
8. सम्यक् निर्वाह।
प्रश्न 20. मौर्य प्रशासन की जानकारी दें। [B.Exam.2012(A)]]
उत्तर-मौर्य प्रशासन अत्यन्त उच्च कोटि का था। राजा सर्वोपरि था। राजा का मंत्री
आमात्य कहलाता था। मौर्य शासकों ने कठोर दण्ड का प्रावधान कर समाज को भयमुक्त प्रशासन प्रदान किया। मौर्य शासकों के शासन में सभी वर्ग के लोग सुखी एवं समृद्ध थे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मौर्य प्रशासन के प्रमुख अंगों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें
से कौन-कौन से अंगों के प्रमाण मिलते हैं ? [N.C.ER.T. T.B.Q.6]
Discuss the main features of Mauryan administration. Which of these
elements are evident in the Ashokan inscription that you have studied ?
उत्तर-मौर्य प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ और अशोक के अभिलेखों से प्राप्त होने वाले
साक्ष्य (प्रमाण) (Main features of the Mauryan administration and evidences
from the Ashoka inscriptions) –
(i) पाटलिपुत्र (Pataliputra) ― मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी । एशिया के
तत्कालीन सर्वाधिक विशालतम शहरों में से एक था । इसी नगर से मौर्य साम्राज्य के संस्थापक
चंन्द्रगुप्त मौर्य (329 ई.) अपने साम्राज्य को चार दिशाओं में विस्तृत किया । यह साम्राज्य उत्तर
पश्चिम में अफगानिस्तान, बलूचिस्तान से लेकर दक्षिण के सिद्धपुर तक पूर्व में बिहार से लेकर
पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। उसी के महापात्र अशोक ने (उड़ीसा) कलिंग को जीतकर
मौर्य साम्राज्य को और अधिक विस्तृत किया और इसी राजधानी शहरं से कलिंग पर भी राज्य
किया गया । यद्यपि कालांतर में इस नगर का महत्त्व कम हो गया जिस समय चीनी-यात्री ह्वेनसांग सातवीं सदी में भारत आया था तो यह नगर खंडहर में बदल गया था और इसकी जनसंख्या भी कम हो गई थी।
(ii) साम्राज्य की स्थिति (Position of Emperor)-यदि हम मौर्य साम्राज्य से संबंधित
विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों (इंडिका अर्थशास्त्र, अशोक के शिलालेख आदि) का अध्ययन करें
तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंँचते हैं कि मौर्य समाज की साम्राज्य में सर्वोच्च स्थिति थी । सरकार
के सभी अंग जैसे विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और सेना व वित्त पर उसी का नियंत्रण था । उसके काल में अधिकारीगण आधुनिक उदार, लोकतांत्रिक सरकार के आधुनिक मंत्रियों की तरह शक्ति संपन्न नहीं थे और उनका अस्तित्व पूर्णतया सम्राट की मर्जी पर निर्भर था । चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार और अशोक महान शक्ति संपन्न सफल मौर्य सम्राट थे ।
(iii) स्वरूप अथवा मौर्य सम्राट का व्यवहार (Nature or behaviour of the
Mauryan Emperor)-प्रत्येक शासक का स्वभाव अथवा व्यवहार भिन्न-भिन्न होता था ।
चन्द्रगुप्त मौर्य निसंदेह एक अधिक कठोर और अनुशासनप्रिय सम्राट था तो उसकी तुलना में
अशोक अधिक उदार, शांत स्वभाव का सम्राट था । अशोक ने कलिंग विजय करने के उपरांत
अपने संदेश को शिलालेखों पर खुदवाकर अपने अधिकारियों को एक प्रशासक के रूप में
जनकल्याण में जुड़ी हुई अपनी प्राथमिकताएँ बता दी। उसने प्रायः अपनी जनता को संतान के
तुल्य (समान) समझा । एक बार शक्तिशाली ढंग से आदेश देकर वह परिश्रमी सम्राट विनम्र
और शांत होकर अपने आदेशों का अधिकारियों द्वारा अनुपालन विनम्रता से देखता रहता था ।
अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से धम्म का प्रचार किया । इनमें बड़ों के प्रति आदर,
संन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे
के धर्मों और परंपराओं का आदर शामिल है।
(iv) मौर्य साम्राज्य के राजनैतिक केन्द्र (Political centre of the Mauryan Empite)-
मौर्य साम्राज्य के पाँच प्रमुख राजनीतिक केन्द्र थे, राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केन्द्र
तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि । इन सबका उल्लेख अशोक के अभिलेखों में किया गया है । यदि हम इन अभिलेखों का परीक्षण करें तो पता चलता है कि आधुनिक पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत से लेकर आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा और उत्तरांचल तक हर स्थान पर एक जैसे संदेश उत्कीर्ण किये गये थे । क्या इतने विशाल साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था समान रही होगी ? इतिहासकार अब इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि ऐसा संभव नहीं था । साम्राज्य में शामिल क्षेत्र बड़े विविध और भिन्न-भिन्न प्रकार के थे। कहाँ अफगानिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र और कहाँ उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र । यह संभव है कि सबसे प्रबल प्रशासनिक नियंत्रण साम्राज्य की राजधानी तथा उसके आस-पास के प्रांतीय केन्द्रों पर रहे हों । इन केन्द्रों का चयन बड़े ध्यान से किया गया। तक्षशिला और उज्जयिनी दोनों लम्बी दूरी वाले महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित थे, जबकि सुवर्णगिरि (अर्थात् सोने के पहाड़) कर्नाटक में सोने की खदान के लिए उपयोगी था ।
(v) राजा के अधिकारियों के कार्य (Functions of the King’s officials) मौर्य
सम्राट के द्वारा नियुक्त विभिन्न अधिकारी विभिन्न कार्यों का निरीक्षण किया करते थे । सम्राट
के अधिकारी क्या-क्या कार्य करते थे. इस विषय में इंडिका के लेखक मेगास्थनीज के विवरण
का एक अंश दिया गया है । साम्राज्य के महान अधिकारियों में से कुछ नदियों की देख-रेख
और भूमिमापन का काम करते हैं जैसा कि मिस्र में होता था । कुछ प्रमुख नहरों से उपनगरों के
लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुखद्वार का निरीक्षण करते हैं ताकि हर स्थान पर पानी की समान
पूर्ति हो सके । यही अधिकारी शिकारियों का संचालन करते हैं और शिकारियों के कृत्यों के
आधार पर उन्हें इनाम या दंड देते हैं। वे कर वसूली करते हैं और भूमि से जुड़े सभी व्यवसायों का निरीक्षण करते हैं साथ ही लकड़हारों, बढ़ई, लोहारों और खननकर्ताओं का भी निरीक्षण करते हैं।
मौर्यकालीन शीर्षस्थ अधिकारी (तीर्थ)
तीर्थ सम्बन्धित विभाग तीर्थ सम्बन्धित विभाग
1.मंत्री प्रधानमंत्री, 11. व्यावहारिक नगर का प्रमुख न्यायाधीश
2. पुरोहित प्रधानमंत्री 12. नागरक (पौर) नगर व्यवस्था का सर्वोच्च
3. सेनापति युद्ध विभाग का मंत्री अधिकारी
4. युवराज राजा का उत्तराधिकारी
5. समाहर्ता राजस्व विभाग का मंत्री 13. दुर्गपाल राजकीय दुर्ग रक्षकों का
प्रधान
6. सन्निधाता राजकीय कोषाध्यक्ष
7.प्रदेष्या फौजदारी न्यायालय का 14.अन्तपाल सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक
न्यायाधीश 15.आटविक वन विभाग का प्रधान
8. नायक नगर रक्षा का अध्यक्ष 16. दौवारिक राजमहलों की व्यवस्था
9. कर्मान्तिक उद्योगों एवं कारखानों का का प्रधान
प्रधान 17.आन्तर्वशिक अन्तःपुर का अध्यक्ष
10. दण्डपाल सर्वोच्च पुलिस अधिकारी 18. मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष परिषद् का अध्यक्ष
(vi) कानून एवं व्यवस्था तथा सेना का प्रयोग (Law and order and use of
Army)-मौर्य साम्राज्य के संचालन के लिए भूमि और नदियों दोनों मार्गों से आवागमन बना रहना
अत्यंत आवश्यक था । राजधानी से प्रांतों तक जाने में कई सप्ताह या महीनों का समय लगता
होगा । इसका अर्थ यह है कि यात्रियों के लिए खान-पान की व्यवस्था और उनकी सुरक्षा भी
करनी पड़ती होगी। यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि सेना सुरक्षा का एक प्रमुख माध्यम रही होगी।
(vii) सेना संगठन छ: उपसमितियों के कार्य (Military organisation and works
of sir-words Committies) ― मेगास्थनीज ने सैनिक गतिविधियों के संचालन के लिए एक
समिति और छ: उपसमितियों का उल्लेख किया है। इनमें से एक का काम नौसेना का संचालन
करना था, तो दूसरी यातायात और खानपान का संचालन करती थी। तीसरी का काम पैदल सैनिकों का संचालन, चौथी का अश्वारोहियों, पाँचवीं का रथारोहियों तथा छठी का काम हाथियों का संचालन करना था । दूसरी उपसमिति का दायित्व विभिन्न प्रकार का था । उपकरणों के ढोने
के लिए बैलगाड़ियों की व्यवस्था, सैनिकों के लिए भोजन और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था
करना तथा सैनिकों की देखभाल के लिए सेवकों और शिल्पकारों की नियुक्ति करना ।
(viii) अशोक के द्वारा एक नये अधिकारी की नियुक्ति (Appointment of a New
Oficial by Ashoks)― अशोक ने अपने साम्राज्य को अखंड बनाये रखने का प्रयास किया ।
ऐसा उन्होंने धम्म के प्रचार द्वारा भी किया । जैसा कि हमने अभी ऊपर पढ़ा, धम्म के सिद्धान्त
बहुत ही साधारण और सार्वभौमिक थे। अशोक के अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन
इस संसार में और इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा । धम्म के प्रचार के लिए धम्ममहामात्त
नाम से विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की गई ।
प्रश्न 2. यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेख शास्वी डी. सी. सरकार का
कथन है-“भारतीय के जीवन, संस्कृति और क्रियाओं का ऐसा कोई अंग नहीं है, जिनका
प्रतिबिंब अभिलेखों में नहीं है ।” चर्चा कीजिए। [N.C.E.R.T. T.B.Q.7]
This is a statement made by one of the best-known epigraphists of the
twentieth century. D. C. Sircar-“There is no aspect of life, Culture and
activities of the Indians that is not reflected in inscriptions”. Discuss.
उत्तर-I. प्रस्तावना (Introducition)-इतिहास की रचना की दृष्टि से अभिलेख बहुत
ही महत्त्वपूर्ण स्रोत है। अभिलेख विशेषज्ञ इतिहास डी. सी. सिरकार ने ठीक ही कहा है कि
भारतीय के जीवन, संस्कृति और क्रियाओं का कोई अंग नहीं है, जिनका प्रतिबिंब अभिलेखों में
भी हुआ है। सामान्यतः अभिलेखों में उन्हीं लोगों की उपलब्धियों/गतिविधियों और विचारों को
लिपिबद्ध किया जाता था जो उन्हें विभिन्न स्थानों पर स्थापित करने के विषय में निर्णय लेते थे।
अभिलेखों में महिलाओं और पुरुषों द्वारा धार्मिक संस्थाओं को दिये गये दान का विवरण
होता है। अभिलेख एक तरह से स्थायी साक्ष्य होते हैं 1 अनेक अभिलेखों में इनके निर्माण की
तिथि खुदी होती है, कुछ की तिथि का निर्धारण उन पर लिखी गई लिपि की बनावट के
आधार पर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए लगभग 350 ई. पू. में वर्ण ‘अ’ इस प्रकार
लिखा जाता था 500 ई. में यह के रूप में लिखा जाने लगा।
II. धार्मिक संस्थाओं एवं अन्य दान प्राप्त करने वाले विषयों में अभिलेखों द्वारा दिया
गया विवरण (Description of gifts to different institution and deseriprion given in Inscriptions)― विभिन्न अभिलेखों में राजाओं या संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा मंदिरों, विहारों या स्तूपों आदि को दिये गये भू-दानों अथवा दान राशियों का उल्लेख प्राप्त होता है। इनमें दान देने वाले नाम के साथ-साथ उसके व्यवसाय का उल्लेख भी मिलता है।
III. मौर्य युग के विषय से सूचनाएँ और अभिलेख (Informatiom about of the
Mauryan age and inscriptions)-अभिलेखों से हमें नगरों में रहने वाले धोबी, बुनकर,
लिपिक, बढ़ाई, कुम्हार, स्वर्णकार, लौहकार, अधिकारी, धार्मिक गुरु व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे होते हैं।
कभी-कभी उत्पादकों और व्यापारियों के संघों या श्रेणी का भी उल्लेख मिलता है। यह
श्रेणियाँ संभवत: पहले कच्चे माल को खरीदती थी; फिर उनसे सामान तैयार कर बाजार में बेच
देते थे।
IV. व्यापार के बारे में सूचना और अभिलेख (Information about Trade and
Inscription)― लगभग इसी समय के दौरान हमें अभिलेखों से दूर-दूर देशों के साथ भारतीय
व्यापारिक संबंध के बारे में जानकारी मिलती है । जो भी हो हमें यह मानना पड़ेगा कि इतिहासकार, इतिहास के पूर्ण निर्माण और उसे समझने के लिए अभिलेखों का सहारा ही नहीं लेते बल्कि विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों पर जोर देते हैं।
प्रश्न 3. उत्तर-मौर्यकाल में विकसित राजधर्म में विचारों की चर्चा कीजिए ।
(Discuss the notions of kingship that developed in the Post Mattryan
period.) [N.C.E.R.T. T.B.Q.8]]
उत्तर-उत्तर मौर्य काल में राज कर्म के विचार (सिद्धान्त ) (Notions of Kingship
during Post Mauryan Period)-(i) उत्तर मौर्यकाल में राजाओं के लिए उच्च अस्तित्व
प्राप्त करने का एक साधन विभिन्न देवी-देवताओं के साथ जुड़ना था । मध्य एशिया से लेकर
पश्चिमोत्तर भारत तक शासन करने वाले कुषाण शासकों ने (लगभग प्रथम शताब्दी ई. पू. से
प्रथम शताब्दी ई. तक) इस उपाय का सबसे उद्धरण प्रस्तुत किया ।
(ii) कुषाण इतिहास रचना अभिलेखों और साहित्य परंपरा के माध्यम से की गई है।
जिस प्रकार के राजधर्म को कुषाण शासकों ने प्रस्तुत करने की इच्छा की उसका सर्वोत्तम प्रमाण
उनके सिक्कों और मूर्तियों से प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास मठ के एक देवस्थान
पर कुषाण शासकों की विशालकाय मूर्तियाँ लगाई गई थीं । अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर
भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ मिली हैं।
(iii) कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इन मूर्तियों के जरिए कुषाण स्वयं को देवतुल्य प्रस्तुत
करना चाहते थे। कई कुषाण शासकों ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ की उपाधि भी लगाई थी।
संभवतः वे उन चीनी शासकों से प्रेरित हुए होंगे, जो स्वयं को स्वर्ग पुत्र कहते थे ।
(iv) चौथी शताब्दी ई. में गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े साम्राज्यों के साक्ष्य मिलते हैं। इनमें
से कई साम्राज्य सामंतों पर निर्भर थे । अपना निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे जिसमें भूमि पर नियंत्रण भी शामिल था । वे शासकों का आदर करते थे और उनकी सैनिक सहायता भी
करते थे। जो सामंत शक्तिशाली होते थे वे राजा भी बन जाते थे और जो राजा दुर्बल होते थे,
वे बड़े शासकों के अधीन हो जाते थे।
(v) गुप्त शासकों का इतिहास, साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया
है। साथ ही कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी प्रशस्तियाँ भी उपयोगी रही
हैं । यद्यपि इतिहासकार इन रचनाओं के आधार पर ऐतिहासिक तथ्य निकालने का प्रायः प्रयास
करते हैं लेकिन उनके रचयिता तथ्यात्मक विवरण की अपेक्षा उन्हें काव्यात्मक ग्रंथ मानते थे ।
उदाहरण के तौर पर इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राटों के सबसे संभवतः शक्तिशाली सम्राट समुद्रगुप्त के राजकवि थे, ने संस्कृत में की थी।
प्रश्न 4. पुस्तक में वर्णित काल में कृषि के क्षेत्र में कितने परिवर्तन आये ?
(To what extent were agricultural practices transformed in the period
under consideration ?) [N.C.E.R.T. T.B.Q.9]
उत्तर-कृषि के क्षेत्र में आये परिवर्तन (Changes took place in Agricultural
fields)―
(i) करों की बढ़ती मांँग को पूरा करने के लिए किसानों ने उपज बढ़ाने के नये तरीके शुरू
कर दिये । उपज बढ़ाने का एक तरीका हल का प्रचलन था, जो छठी शताब्दी ई. पू. से ही गंगा
और कावेरी की घाटियों के उर्वर कछारी क्षेत्र में फैल गया था। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती
थी, वहाँ लोहे के फाल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी । इसके
अलावा गंगा की घाटी में धान की रोपाई की वजह से उपज में भारी वृद्धि होने लगी। हालांकि
किसानों को इसके लिए कमरतोड़ मेहनत करनी पड़ती थी।
(ii) यद्यपि लोहे के फाल वाले हल की वजह से फसलों की उपज बढ़ने लगी, लेकिन ऐसे
हलों का उपयोग उपमहाद्वीप के कुछ ही हिस्से में सीमित था । पंजाब और राजस्थान जैसी
अर्द्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग बीसवीं सदी में शुरू हुआ ।
जो किसान उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहते थे उन्होंने खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया, जो ऐसे इलाके के लिए कहीं अधिक उपयोगी था ।
(iii) उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से
सिंचाई करना था । व्यक्तिगत लोगों और कृषक समुदायों ने मिलकर सिंचाई के साधन निर्मित
किये । व्यक्तिगत तौर पर तालाबों, कुओं और नहरों जैसे सिंचाई साधन निर्मित करने वाले लोग
प्राय: राजा या प्रभावशाली लोग थे, जिन्होंने अपने इन कामों का उल्लेख अभिलेखों में भी करवाया।
(iv) यद्यपि खेती की इन नई तकनीकों से उपज तो बढ़ी लेकिन इसके लाभ समान नहीं थे।
इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि खेती से जुड़े लोगों में उत्तरोत्तर भेद बढ़ता जा रहा था । कहानियों में विशेषकर बौद्ध कथाओं में भूमिहीन खेतिहार श्रमिकों, छोटे किसानों और बड़े-बड़े जमींदारों का उल्लेख मिलता है । पालि भाषा में गृहपति का प्रयोग छोटे किसानों और जमीदारों के लिए किया जाता था। बड़े-बड़े जमींदार और ग्राम प्रधान शक्तिशाली माने जाते थे, जो प्रायः किसानों पर नियंत्रण रखते थे। ग्राम प्रधान का पद प्रायः वंशानुगत होता था ।
(v) आरंभिक तमिल संगम साहित्य में भी गाँवों में रहने वाले विभिन्न वर्गों के लोगों का
उल्लेख है, जैसे कि वे वेल्लालर या बड़े जमींदार; हलवाहा या उल्वर और दास अणिमई यह
संभव है कि वर्गों की इस विभिन्नता का कारण भूमि के स्वामित्व, श्रम और नई प्रौद्योगिकी के
उपयोग पर आधारित हो । ऐसी परिस्थिति में भूमि का स्वामित्व महत्त्वपूर्ण रहा हो गया जिनकी
चर्चा विधि ग्रंथों में प्राय: की जाती थी।
प्रश्न 5. मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?
(What were the causes of decline of Mauryas empire?)
उत्तर-उत्थान और पतन प्रकृति के नियम हैं। प्रत्येक उत्थान के बाद पतन अवश्यंभावी है।
अतः मौर्य वंश भी, जिसकी स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने की और अशोक के समय में जो उन्नति
की चरम सीमा पर पहुंँच गया था, अशोक की मृत्यु के 50 वर्ष बाद ही नष्ट हो गया। मौर्य
साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे:
(1) अशोक के दुर्बल उत्तराधिकारी (Weak successors of Ashoka)-चन्द्रगुप्त मौर्य
एवं अशोक, मौर्य वंश के प्रतापी तथा शक्तिशाली शासक थे, परन्तु अशोक के उत्तराधिकारी
दशरथ व वृहद्रथ आदि अयोग्य एवं निर्बल थे। वे देश में शान्ति व्यवस्था बनाए रखने में समर्थ
नहीं थे। अतः वे न तो आन्तरिक विद्रोहों को दबा सके और न ही विदेशी आक्रमणकारियों का
मुकाबला कर सके जिसके कारण मौर्य साम्राज्य का पतन होना प्रारम्भ हो गया।
(2) उत्तराधिकार के निश्चित नियम का अभाव (Lackoffixed law of succession)-
मौर्य वंश में उत्तराधिकार का कोई निश्चित सिद्धान्त नहीं था। अतः उत्तराधिकार के लिए प्रायः
युद्ध छिड़ जाते थे। अशोक ने स्वयं अपने 99 भाइयों को मारकर राजसिंहासन प्राप्त किया था ।
अशोक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार के लिये युद्ध होते रहे, जिससे मौर्य साम्राज्य की शक्ति
कमजोर हो गई।
(3) ब्राह्मणों द्वारा विरोध (Opposition by Brahmins)-प्रसाद शास्त्री के अनुसार मौर्य
साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण ब्राह्मणों का विरोध था। ब्राह्मणों का समाज में विशेष
स्थान था। अशोक ने राज्य के अधिकारियों को समस्त प्रजा से समान व्यवहार करने का आदेश
दिया था।
प्रश्न 6. अशोक के धर्म के प्रमुख सिद्धान्त क्या थे ?
What were the main principles of Ashoka’s religion?
उत्तर-अशोक के धर्म के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित थे :
(i) बड़ों का आदर (Elder’ regards)-अशोक ने अपने शिलालेख में लिखा है कि
माता-पिता, अध्यापकों और अवस्था तथा पद में जो बड़े हों उनका उचित आदर करना चाहिए
और उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।
(ii) छोटों के प्रति उचित व्यवहार (Proper behaviour with youngers)-बड़ों को
अपने से छोटों के प्रति प्रेम-भाव रखना चाहिए और उनसे दया तथा नम्रता का व्यवहार करना चाहिए।
(iii) सत्य बोलना (Speak truth)-मनुष्य को सदा सत्य बोलना चाहिए। दिखावे की
भक्ति से सत्य बोलना अधिक अच्छा है।
(iv) अहिंसा (Non-violence)-मनुष्य को मन, वाणी और कर्म से किसी जीव को दुःख
नहीं देना चाहिए।
(v) दान (Donation)-अशोक के धर्म में दान का विशेष महत्व है। उसके अनुसार अज्ञान
के अन्धकार में भूले-भटके लोगों को धर्म का दान करके प्रकाश में लाना सबसे उत्तम दान है।
(vi) पवित्र जीवन (Pure Life)-मनुष्य को पाप से बचना चाहिए और पवित्र जीवन व्यतीत
करना चाहिए।
(vii) शुभ कर्म (Pure Action)-प्रत्येक मनुष्य बुरे कर्म का बुरा और अच्छे कर्म का अच्छा
फल प्राप्त करता है। इसलिए उसे शुभ कर्म करने चाहिए ताकि उसका लोक और परलोक सुघरे ।
(viii) सच्चे रीति-रिवाज (True Rituals)-मनुष्य को झूठे रीति-रिवाजों, जादू-टोना, व्रत
तथा अन्य दिखावों के जाल में नहीं फंसना चाहिए। उसे पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए :
बड़ों का आदर करना चाहिए : तथा उसे सत्य बोलना चाहिए। यही सच्चे रीति-रिवाज हैं।
(ix) धार्मिक सहनशीलता (Religious tolerance)-मनुष्य को अपने धर्म का आदर
करना चाहिए लेकिन दूसरे धर्मों की निन्दा नहीं करनी चाहिए।
इस प्रकार अशोक ने सभी धर्मों के मुख्य नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह किया और उन्हें
साधारण लोगों तक पहुँचाया ताकि वे उस पर चलकर अपना लोक और परलोक सुधार सकें।
प्रश्न 7. अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रसार में क्या योगदान दिया ?
What was Ashoka’s contribution in expansion of Buddhism?
उत्तर-(i) अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद 265 ई. पू. में बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। उसने
अपने पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा तथा स्वयं को इस धर्म के प्रचार में लगा दिया था ।
(ii) उसने सम्राट होकर भी भिक्षुओं जैसा जीवन बिताया । उसने अहिंसा को अपनाकर शिकार
करना, माँस खाना छोड़ दिया था । उसने राजकीय वधशाला में पशु-वध पर रोक लगा दी थी
। जनता राजा के आदर्शों पर चलती थी।
(iii) उसने बौद्ध-धर्म के नियम स्तम्भों, शिलालेखों आदि पर खुदवाकर ऐसे स्थानों पर लगवा
दिये थे कि जहाँ से जनता देखकर उन्हें पढ़ सके और तत्पश्चात् अमल करे ।
(iv) उसने लगभग 84000 बौद्ध विहारों और 48000 स्तूफों का निर्माण कराया । यह
मुख्य-मुख्य नगरों में स्थापित किये।
(v) उसने कई धार्मिक नाटकों का आयोजन किया जिनमें बौद्ध-धर्म पर आचरण करने पर
स्वर्ग का प्राप्ति दिखाई गई थी। अतः बौद्ध धर्म को ग्रहण करने के लिये जनता प्रेरित हुई।
(vi) बौद्ध-धर्म के मतभेदों को दूर करने के लिये अशोक ने 252 ई. पू. में एक विशाल सभा
का आयोजन किया था, जिससे लोग इस धर्म की ओर आकर्षित हुए । सम्राट अशोक स्वयं बौद्ध
तीर्थों-सारनाथ, कपिलवस्तु एवं कुशीनगर गया । रास्ते में उसने बौद्ध-धर्म का प्रचार किया। उसने
धर्म महामात्रों की नियुक्ति की, जो देखते थे कि लोग इस धर्म का पालन कर रहे हैं या नहीं।
(vii) जन साधारण तक बौद्ध-धर्म की शिक्षाओं को पहुँचाने के लिये पालि भाषा में
शिलालेख और बौद्ध साहित्य का अनुवाद कराया था । उसने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए
कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गंधार, चीन, जापान, सीरिया श्रीलंका व मिस्र आदि देशों में भिक्षु भेजे ।
(viii) सम्राट ने सम्पूर्ण राजकीय तंत्र बौद्ध-धर्म के प्रचार में लगा दिया । सार्वजनिक समारोहों
को रोककर उनके स्थान पर बौद्ध उत्सव मनाने प्रारम्भ कर दिये । उसने नाचने-गाने तथा मद्यपान
पर रोक लगा दी थी तथा लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी।
प्रश्न 8. सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ कहके क्यों पुकारा गया है ? विस्तार से
fafay 1 (Write about the personlity of Ashoka on the basis of inscriptions.)
उत्तर-अशोक ने अपनी प्रजा के जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक ऐसे कार्य किए
जिन्होंने उसे न केवल भारत वरन् विश्व का एक महानतम् सम्राट बना दिया । कलिंग युद्ध के
बाद उसने दिग्विजय के स्थान पर धर्म-विजय को अपनी साम्राज्य नीति का आधार बनाया। डॉ.
राधा कुमुद मुकर्जी ने अशोक की महानता के बारे में लिखा है कि “प्रत्येक युग तथा प्रत्येक देश
में अशोक जैसा सम्राट् पैदा नहीं होता । अशोक आज संसार के इतिहास में अपनी समता नहीं
रखता ।” कुछ इसी प्रकार के भाव अभिव्यक्त करते प्रसिद्ध विद्वान एच० जी० वेल्स ने विश्व
इतिहास की रूपरेखा नामक पुस्तक में अशोक की विश्व के महानतम् सम्राटों में गणना करते हुए
लिखा है कि “इतिहास के पन्नों पर भीड़ लगाने वाले सहस्त्रों सम्राटों, राजाधिराजाओं,
धर्मधिकारियों और राजसी श्रेष्ठता तथा ऐसे ही अन्य व्यक्तियों के बीच केवल अशोक का नाम
ही एक तारे की भाँति जगमगाता है।”
अशोक की महानता के कारण अशोक की महानता के निम्नलिखित कारण थे-
(i) शांति एवं अहिंसा की नीति का पालन (Peace and policy of non-violence)-
कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने युद्ध और दिग्विजय की नीति का परित्याग कर दिया और शांति
तथा अहिंसा को अपनी राजनीति का आधार बनाया ।
(ii) जन-सेवा (Public Service)-बौद्ध-धर्म के बाद अशोक ने अपना जीवन जन सेवा
में समर्पित कर दिया । उसने राज-वैभव का परित्याग कर निर्धनों एवं दुखियों की सेवा करने
का व्रत ले लिया । उसने उनके जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक कार्य किए।
(iii) शिकार खेलना तथा पशु-हत्या पर रोक (Checkon Hunting and Killing of
animals)―अशोक ने शिकार खेलना और पशुओं का वध करना बन्द कर दिया । उसने रोगी
पशुओं के इलाज के लिए अस्पताल खुलवाए ।
(iv) आदर्श शासक (An ideat ruler)― अशोक एक आदर्श राजा था और उच्च कोटि
का शासन-प्रबंधक था। उसने लोगों के नैतिक स्तर को ऊँचा उठाने के लिए महामात्रों की नियुक्ति
की । उसका कहना था कि “सभी प्रजा मेरी संतान है और जिस प्रकार मेरी इच्छा है कि मेरी
संतान इस लोक तथा परलोक में सुख तथा शांति का उपभोग करे उसी प्रकार मैं सारी प्रजा के
सुख तथा समृद्धि का इच्छुक हूँ।”
(v) बौद्ध-धर्म का प्रचार (Spread of Buddhism)― कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक
बौद्ध-धर्म का अनुयायी हो गया और उसने इस धर्म के प्रचार के लिए राज्य की संपूर्ण शक्ति
और शाधन लगा दिए । उसने विदेशों में धर्म प्रचारक भेजकर गंगा की घाटी के धर्म को विश्व
धर्म बना दिया ।
(vi) प्रजा का नैतिक उत्थान (Moral upliftment of the public)-अशोक ने अपनी
प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए ‘धर्म-महामात्र’ नामक राज्याधिकारियों की नियुक्ति की और सभी
धर्मों की अच्छी बातों को लेकर एक नया धर्म चलाया जो ब्राह्मण जैन धर्म के प्रति विशेष रूप
से उदार था ।
(vii) धार्मिक सहनशीलता (Policy of Religions tolerance) अशोक संकीर्ण
धार्मिक विचारों का व्यक्ति नहीं था । उसमें उच्च कोटि की धार्मिक सहनशीलता व उदारता थी।
बौद्ध मत का अनुयायी होते हुए भी वह ब्राह्मण धर्म तथा जैन धर्म के प्रति उदार था।
(viii) कला, शिक्षा व साहित्य का विकास (Growth of Arr. Education and
Literature)― अशोक के समय तक्षशिला शिक्षा का एक प्रमुख केन्द्र था जहाँ वेद, बौद्ध
साहित्य, विज्ञान, कला, गणित, ज्योतिषशास्त्र की शिक्षा दी जाती थी। इसके अतिरिक्त उसके
शासन काल में कला का भी खूब विकास हुआ । उसने अनेक स्तूपों तथा विहारों का निर्माण
कराया तथा श्रीनगर और देवापटन नामक दो नए नगर बसाए ।
(ix) लोक कल्याण कार्य (Welfare Works)-अशोक ने अपने राज्य में सड़क बनवाई,
सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये, यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशालाएं बनवाई, पशुओं
तथा मनुष्यों के लिए अस्पताल खुलवाये ।
(x) विशाल साम्राज्य (Big or Vast of Empire) ― अशोक को उत्तराधिकार में एक
विशाल साम्राज्य मिला था, जिसका उसने और अधिक विस्तार किया। उसका साम्राज्य हिमालय
से लेकर कर्नाटक तक, खाड़ी बंगाल से लेकर हिन्दुकुश तक तथा पश्चिम में अरब सागर तक
फैला था ।
(xi) पड़ोसी राज्यों से अच्छे संबंध (Good relation withneighbouring states)-
अशोक ने अपने पड़ोसी राज्यों से मित्रता के संबंध स्थापित किए । उसने दूसरे देशों को जीतने
को स्थान पर वहाँ धर्म-प्रचारक भेजे और उन्हें औषधियाँ तथा चिकित्सक भेजे ।
प्रश्न 9. गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों की चर्चा करें।
(Describe the causes responsible for the decline of the Gupta Empire.)
अथवा /Or गुप्त साम्राज्य के पतन के क्या-क्या करण थे?
(What were the causes of decline the Gupta Empire?)
उत्तर-गुप्त साम्राज्य के पतन के निम्नलिखित कारण थे-
(i) अयोग्य उत्तराधिकारी (Weak Successors)― विशाल गुप्त साम्राज्य को संभालने के
लिये समुद्रगुप्त के बाद कोई सबल शासक न हुआ, अतः केन्द्रीय सत्ता के कमजोर होते ही कई
राज्यों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।
(ii) उत्तरधिकार के नियम का अभाव (Lack of the Law of Succession)-
उत्तराधिकार नियम अभाव के कारण सम्राट के मरते ही गृह युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती
थी अत: जो शक्तिशाली होता था, वही राजगदी प्राप्त कर लेता था ।
(iii) सीमावर्ती क्षेत्रों की अवहेलना (Negligence of the frontiers)-चन्द्रगुप्त द्वितीय
के पश्चात् किसी भी गुप्त शासक ने सीमावर्ती क्षेत्रों पर ध्यान नहीं दिया । अत: विदेशी
आक्रमणकारी बिना रोक टोक भारत में प्रवेश कर लेते थे ।
(iv) बौद्ध-धर्म का प्रभाव (Efect of Buddhism)-बौद्ध-धर्म के प्रभाव ने राजाओं एवं
सेनाओं को अहिंसावादी बना दिया । दूसरे शब्दों में सेना बौद्ध-धर्म के प्रभाव के कारण पंगु हो
गई । अतः जिन-जिन गुप्त शासकों ने बौद्ध-धर्म ग्रहण किया, मानो उन्होंने शत्रुओं को बुलावा
दिया था।
(v) विशाल साम्राज्य (Vast Empire)-गुप्त साम्राज्य बहुत विशाल था । उस समय
यातायात के साधन नहीं के बराबर थे, अत: इतने बड़े राज्य पर नियंत्रण रखना कठिन था । इस
प्रकार गुप्त साम्राज्य की विशालता भी पतन का एक कारण बनी।’
(vi) सैनिक दुर्बलता (Military Weakness)― यद्यपि गुप्त काल सुख-समृद्धि का युग
था, परन्तु बहुत लम्बे समय तक युद्ध न होने से सेना सुख-प्रिय, विलासी एवं आलसी हो गई,
फलस्वरूप सेना शक्तिहीन हो गई।
(vii) आंतरिक विद्रोह (Intemal Revolts)―जब गुप्त साम्राज्य शक्तिशाली थे तो उनके
भारतीय राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी, परन्तु गुप्त सम्राटों की सैनिक शक्ति
कमजोर पड़ गई, तो यह शासक विद्रोह करने लगे। मालवा के राजा यशोवर्मन तथा वाकाटक
के राजा नरन्द्रसेन ने विद्रोह करके स्वयं को स्वतंत्र कर लिया ।
(viii) हूणों के आक्रमण (Attack of Hunas)-गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण
हूण जाति के आक्रमण थे । ये आक्रमण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद ही प्रारंभ हो
गये थे। डॉ. वीसेन्ट स्मिथ के अनुसार-“पाँचवीं और छठी शताब्दी के हूणों के आक्रमणों ने
गुप्त साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया और इस प्रकार कई नये राज्यों के जन्म के लिये क्षेत्र
तैयार कर दिया।”
(ix) आर्थिक संकट (Economic Crisis) धन की कमी भी गुप्त साम्राज्य के पतन का
कारण बनी । स्कंदगुप्त को पुष्यमित्र को शुंग जाति और हूण जाति से बहुत से युद्ध करने पड़े।
इससे सरकारी खजाना खाली हो गया । इस प्रकार आर्थिक कठिनाइयाँ बढ़ जाने से गुप्त सामाज्य छिन्न-भिन्न हो गया ।
प्रश्न 10. चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवनी एवं उपलब्धियों की विवेचना करें ? [B.Exam.2011 (A)]]
उत्तर-चन्द्रगुप्त मौर्य भारत में मौर्य साम्राज्य का संस्थापक था। चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के उन
महानतम सम्राटों में है जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा कृतियों से इतिहास के पृष्ठों में क्रांतिकारी
परिवर्तन उत्पन्न किया है। उसका उदय वस्तुतः इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है। देश को विदेशी आक्रांताओं की दासता से मुक्त करने तथा नन्दों के घृणित एवं अत्याचारों शासन से जनता को प्राण दिलाने तथा देश को राजनीतिक एकता के सूत्र में संगठित करने का श्रेय उसी सम्राट को प्राप्त है।
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में ईरान की सीमा से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक एवं पूर्व में मगध से लेकर पश्चिमी में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। 305 ई० पूर्व चन्द्रगुप्त का सेल्यूकस से युद्ध हुआ जिसमें सेल्यूकस पराजित हुआ। सेल्युकस ने अपना एक
राजदूत मेगास्थनीज को चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था।
सेल्यूकस ने-चन्द्रगुप्त को आकोर्सिया (कंधार), परोपनिसके (काबुल), एरिया (हेरात) एवं
गेड्रोसिया (ब्लूचिसतान) का प्रांत सौंप दिया था।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य की सहायता से नन्दवंशों का समूल नाश कर भारत
में मौर्य वंश की नींव डाली थी। प्लूटार्क का कथन है कि चन्द्रगुप्त ने 6 लाख सैनिकों को लेकर सम्पूर्ण भारत का रौंद डाला।
चन्द्रगुप्त एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता एवं कुशल प्रशासक था। उसने देश में पहली
बार एक सूसंगठित शासन व्यवस्था की स्थापना की और वह व्यवस्था इतनी उच्च कोटि की थी
कि आगे जाने वाली पीढ़ियों के आदर्श स्वरूप बनी रही। जैन परम्पराओं के अनुसार अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह जैन हो गया तथा भद्रवाहु की शिष्यता ग्रहण कर ली। 298 ई० पूर्व में उसने जैन विधि से उपवास कर अपना प्राण त्याग किया।
प्रश्न 11. राजतंत्र और वर्ण में संबंध स्थापित करें। [B.Exam.2009(A)]
उत्तर-प्राचीन भारत में सैद्धान्तिक रूप से राजतंत्र और वर्ण में गहरा संबंध था। अर्थशास्त्र
और धर्मसूत्रों में इस बात पर बल दिया गया है कि राजा को क्षत्रीय वर्ण का होना चाहिए। शास्त्रों
में वर्णित यह व्यवस्था सदैव कारगर नहीं होती थी। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ
गैर-क्षत्रियों को राज्य करते हुए दिखलाया गया है। उदाहरण के लिए नंदवंशी शूद्र थे, मौर्यों को
शूद्र, क्षत्रिय अथवा निम्नकुलोत्पन्न माना गया है। शुंग सातवाहन, ब्राह्मण थे। भारत आने वाले
मध्य एशियाई राजाओं को यवन या मलेच्छ माना गया है। अनेक विद्वान गुप्त शासकों को वैश्य
मानते हैं। इस प्रकार सैद्धान्तिक रूप से क्षत्रिय को ही आदर्श राजा के रूप में मान्यता थी। परन्तु
व्यावहारिक रूप से किसी भी वर्ग का व्यक्ति शक्ति संसाधन सम्पन्न होकर राजा बन जा सकता
था।
प्रश्न 12. प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के विभिन्न श्रोतों का वर्णन करें।
[B.Exam.2011 (A)]]
उत्तर-प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के विभिन्न स्रोत निम्नलिखित हैं :
(i) पुरातात्विक स्रोत : प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए पुरातात्विक स्रोत का विशेष महत्व
है। पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक और भवन, मूतियाँ आदि प्रमुख हैं।
अभिलेख : पुरातात्विक स्रोतों के अन्तर्गत सबसे महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है। सबसे प्राचीन
अभिलेख अशोक के हैं। अशोक के अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में है। अन्य अभिलेखों के
अध्ययन से तात्कालीन शासकों के राजनीतिक विस्तार के अध्ययन पर प्रकाश पड़ता है।
सिक्के : पुरातात्विक स्रोतों में सिक्के का स्थान भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इन सिक्कों को
राजाओं के अतिरिक्त संभवतः व्यापारियों श्रेणियों, नगरनिगमों ने चालू किया था। इनसे
इतिहासकारों को विशेष सहायता नहीं मिली है। मुद्रा के अध्ययन से देश की आर्थिक स्थिति की विशेष जानकारी प्राप्त होती है। उसके अतिरिक्त सांस्कृतिक, राजनीतिक, धार्मिक महत्व की चीजों की भी जानकारी उससे प्राप्त होती है। समुद्रगुप्त के सिक्कों पर ग्रुप बना है और ‘अश्वमेघ पराक्रम’ लिखा है।
स्मारक और भवन : प्राचीनकाल के महलों और मन्दिरों की शैली से वास्तुकला के विकास
पर प्रकाश पड़ता है। उत्तर भारत के मंदिरों की शैली नागर शैली तथा दक्षिण भारत के मंदिरों
की कला द्रविड़ शैली कहलाती है।
मूर्तियाँ : उसी प्रकार प्राचीन काल में कुषाणों, गुप्त शासकों, गुप्ततोत्तर शासकों ने जो मूर्तियाँ
बनायो उनसे जनसाधारण की धार्मिक अवस्थाओं और मूर्तिकला के विकास पर प्रकाश पड़ता है।
(ii) साहित्यिक स्रोत : साहित्य दो प्रकार का है:
(i) धार्मिक साहित्य (ii) लौकिक साहित्य।
(i) धार्मिक साहित्य : धार्मिक साहित्य में ब्राह्मणोत्तर और ब्राहणे साहित्य की चर्चा की जा
सकती है। ब्राह्मण ग्रंथों में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण तथा स्मृति आते हैं जबकि
ब्राह्मणेत्तर ग्रंथों में बौद्ध तथा जैन साहित्यों से संबंधित रचनाओं का उल्लेख किया जा सकता
है। उसी प्रकार लौकिक साहित्य में ऐतिहासिक ग्रंथों, जीवनियों, कल्पना प्रधान तथा गल्प साहित्य का वर्णन किया जा सकता है।
वेद : वेद भारत के सर्वप्राचीन धर्मग्रंथ हैं जिसके रचयिता वेदव्यास को माना जाता है। वेदों
की संख्या चार है : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। इनमें ऋग्वेद आर्यों का सबसे
प्राचीनतम ग्रंथ हैं। सामवेद में मुख्यतः यज्ञों के अवसर पर गाए जाने वाले मंत्रों का संग्रह है। इसे
भारतीय संगीत का जन्मदाता कहा जाता है, यजुर्वेद में यज्ञों के नियमों एवं विधि विधानों का
संकलन मिलता है। अथर्ववेद में जादू-टोना का वर्णन है।
ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद्, ब्राह्मण-ग्रंथ वैदिक संहिताओं की व्याख्या करने के लिए
गद्य में लिखे गए हैं। प्रत्येक संहिता के लिए अलग-अलग ब्राह्मण-ग्रंथ हैं जैसे ऋग्वेद के लिए
ऐतरेय एवं कौषीतकी; यजुर्वेद के लिए तैत्तिरीय तथा शतपथ, सामवेद के लिए पंचविश अथर्ववेद
के लिए गोपथ आदि।
वेदांग तथा सूत्र : वेदों को समझ लिए छः वेदांगों की रचना की गई है : शिक्षा, कल्प,
ज्योतिष, व्याकरण, निरूक्त तथा छन्द।
महाकाव्य : महाकाव्यों में रामायण एवं महाभारत का विशिष्ट महत्व हैं। महाभारत में धर्म,
अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी है।
पुराण : पुराणों के रचयिता लोमहर्ष अथवा उनके पुत्र उग्रश्रूवा माने जाते हैं। पुराणों की
संख्या 18 है। अधिकांश पुराणों की रचना तीसरी-चौथी शताब्दी के काल में की गई थी।
ब्राह्मणेत्तर साहित्य : उसमें बौद्ध ग्रंथ एवं जैन ग्रंथ का महत्वपूर्ण स्थान है। बौद्ध ग्रंथों में
त्रिपिटक सबसे महत्वपूर्ण है। त्रिपिटक हैं। (i) विनयपिटक : संघ संबंधी नियम तथा आचार की
शिक्षाएँ (ii) सुत्रपिटक (धार्मिक सिद्धान्त अथवा धर्मोपदेश) तथा (iii) अभिदम्म पिटक :
(दार्शनिक सिद्धान्त) दीपवंश एवं महावंश नामक दो पाली ग्रंथों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय
में सूचनाएँ मिलती हैं।
नागसेन द्वारा रचित ‘मिलिन्दपनहो’ है जिससे हिंद-यवन शासक मेनाण्डर के विषय में
जानकारी मिलती है।
जैन साहित्य : जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैन ग्रंथों में परिशिष्ट पर्वन,
भद्रबादुचरित, आवश्यक सूत्र, अचारांग सूत्र, भगवती सूत्र, कालिकापुराण आदि विशेष रूप से
उल्लेखनीय हैं।
लौकिक साहित्य : इसके अन्तर्गत कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र, कामन्दक का नीतिसार, कल्हण
द्वारा रचित राजतरंगिणी, सामेश्वर कृत रसमाला, राजशेखर कृत प्रबंधकोष आदि को शामिल किया जा सकता है।
अर्द्ध ऐतिहासिक रचनाओं में पाणिनी की अष्टत्रयायी, पतंजलि का महाभाष्य, विशाखदत्त
का मुद्राराक्षस तथा कालीदास कृत मालविकाग्निमित्र आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
(iii) विदेशी विवरण : प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में विदेशी विवरण का महत्वपूर्ण
योगदान है। मेगास्थनीज कृत ‘इण्डिका’, टालमी का भूगोल, पिलनी का नेचुरल हिस्ट्री आदि का
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में विशिष्ट योगदान है।
प्रश्न 13. क्या गुप्त काल प्राचीन भारत का ‘स्वर्णयुग’ था ? [B.Exam.2011 (A)]
उत्तर-गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारतीय इतिहास के उस युग का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें
सभ्यताओं तथा संस्कृति के प्रत्येक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई तथा हिंदू संस्कृति अपने उत्कर्ष
की पराकाष्ठा पर पहुँच गयी। गुप्तकाल की चहुमुखी प्रगति को ध्यान में रखकर ही इतिहासकारों
ने उस काल को स्वर्ण युग (Golden Age) की संज्ञा से अभिहित किया है।
निश्चितत: यह काल प्रतापी राजाओं और अपनी सर्वोत्कृष्ट संस्कृति के कारण भारतीय
इतिहास के पृष्ठों में स्वर्ण के समान प्रकाशित है। मानव जीवन के सभी क्षेत्रों ने उस समय
प्रफुल्लता एवं समृद्धि के दर्शन किये थे।
निम्न विशेषताओं के कारण गुप्त काल को भारतीय इतिहास का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता
है :-
(i) राजनीतिक एकता का काल (ii) महान सम्राटों का काल (iii) आर्थिक समृद्धि का काल
(iv) धार्मिक सहिष्णुता का काल (v) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का काल (vi) साहित्य, विज्ञान एवं
कला के चरमोत्कर्ष का काल (vii) भारतीय संस्कृति के प्रचार का काल।
(i) राजनीतिक एकता का काल-मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात पहली बार इत्तने व्यापक
रूप से राजनीतिक एकता स्थापित की गयी! अपने उत्कर्ष काल में गुप्त साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में सौराष्ट्र तक फैला हुआ था। दक्षिणापथ के शासक उनकी राजनीतिक प्रभुसत्ता स्वीकार करते थे।
(ii) महान सम्राटों का काल-गुप्तकाल में महान एवं यशस्वी सम्राटों का उदय हुआ जिन्होंने
अपनी विजयों द्वारा एकछत्र शासन की स्थापना की। समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय, विक्रमादित्य
स्कन्दगुप्त आदि उस काल के योग्य तथा प्रतापी सम्राट थे।
(iii) आर्थिक समृद्धि का काल-आर्थिक दृष्टि से गुप्त साम्राज्य समृद्धि का काल था। लोगों
की जीविका का प्रमुख स्रोत कृषि कर्म ही था। सिंचाई की उत्तम व्यवस्था की गयी थी। कृषि
के साथ-साथ व्यापार और व्यवसाय भी उन्नति पर थे।
(iv) धार्मिक सहिष्णुता का काल-गुप्त राजाओं का शासनकाल वैष्णव धर्म की उन्नति के
लिए प्रसिद्ध है। परंतु अन्य धर्मों के प्रति वे पूर्णरूपेण उदार व सहिष्णु बने रहे।
(v) श्रेष्ठ शासन व्यवस्था का काल-प्रतिभावन गुप्त नरेशों ने जिस शासन व्यवस्था का
निर्माण किया। वह न केवल प्राचीन अपितु आधुनिक युग के लिए भी आदर्श की वस्तु कही जा सकती है। यह व्यवस्था प्रत्येक दृष्टि से उदार एवं लोकोपकारी थी। शांति एवं व्यवस्था का राज्य था जहाँ आवागमन पूर्णतया सुरक्षित था।
(vi) साहित्य, विज्ञान एवं कला के चरमोत्कर्ष का काल-गुप्तकालीन शाति एवं
सुव्यवस्था के वातावरण में साहित्य, विज्ञान एवं कला का चरमोत्कर्ष हुआ। संस्कृत राजभाषा के
पद पर आसीन हुई तथा संस्कृत साहित्य का अभूतपूर्व विकास हुआ। महान कवि कालिदास उस
युग की अमूल्य धरोहर हैं। कला के विविध पक्षों वास्तु, तक्षण चित्र आदि का सम्यक विकास
हुआ।
(vii) भारतीय संस्कृति के प्रचार का काल-गुप्तकाल भारतीय संस्कृति के प्रचार और
प्रसार के लिए प्रसिद्ध है। यद्यपि गुप्त के पहले से ही उत्साही भारतीयों ने मध्य और दक्षिण पूर्वी
एशिया के विभिन्न भागों में अपना उपनिवेश स्थापित किए तथापि उन उपनिवेशों में हिंदु संस्कृति
का प्रचार विशेषतया गुप्त काल में हुआ।
उपरोक्त तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में गुप्त साम्राज्य को स्वर्णयुग माना जाता है। किन्तु कुछ आधुनिक
युग के इतिहासकार जिसमें आर० एस० शर्मा, रोमिला थापर आदि प्रमुख हैं, गुप्तकाल को
स्वर्णयुग कहना उचित नहीं मानते हैं।
प्रश्न 14. मगध साम्राज्य के उत्थान के क्या कारण थे ?
What were the causes of rise of Magadh Empire? [B.Exam. 2013(A)]
उत्तर-मगध साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास रहा है। इस साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त
मौर्य द्वारा की गई थी। उन्होंने नंद-वंश के शासक को युद्ध में परास्त कर सिंहासन प्राप्त किया
तथा विशाल मगध राज्य की स्थापना की। मगध साम्राज्य के उत्थान के लिए उनकी शासन
व्यवस्था का विशेष योगदान था। उनके उत्तराधिकारी अर्थात् उनके पुत्र बिन्दुसार तथा बिन्दुसार
के पुत्र सम्राट अशोक ने न केवल इस परंपरा को कायम रखा, बल्कि साम्राज्य के उत्थान के
लिए निरंतन प्रयासरत् रहे। अतः इसका श्रेय उनलोगों के सुव्यवस्थित शासन-संचालन तथा कुशल प्रबंधन को दिया जा सकता है।
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख साहित्यिक पुरातात्विक श्रोतों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि होती
है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगास्थनीज का इण्डिका, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस जैसे ग्रंथ मगध
साम्राज्य की शासन-व्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। उपरोक्त ग्रंथों के विवरण के माध्यम
से तत्कालीन मगध साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास का पता चलता है। पुरातात्विक स्रोतों में अशोक के शिलालेख, स्तम्भलेख, ताम्रपत्र, कुम्हरार (पाटलिपुत्र) के अवशेष मगध साम्राज्य के उत्थान के महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। चीनी यात्रियों ह्वेनसांग तथा फाहियान ने भी तत्कालीन मौर्य साम्राज्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान सम्राट ही नहीं एक अपूर्व योद्धा भी था। उसने मगध साम्राज्य जो
मौर्य-साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता था, उसकी सीमाओं का विस्तार उत्तर-पश्चिम में ईरान
की सीमा से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक एवं पूर्व में मगध से लेकर पश्चिम में सौराष्ट्र तक
किया। वह एक महान विजेता, साम्राज्य निर्माता एवं कुशल प्रशासक था। चन्द्रगुप्त के देहांत के
बाद उसके परवर्ती बिन्दुसार तथा सम्राट अशोक ने भी उस परंपरा को बनाए रखा। सम्राट अशोक ने कलिंग विजय में व्यापक नरसंहार से द्रवित होकर बौद्ध धर्म को स्वीकार किया तथा धर्म-प्रचार में अपनी शक्ति लगा दी। जन-कल्याण एवं सुन्दर शासन व्यवस्था द्वारा उसने अपनी प्रजा के हित में अनेक कार्य किए।
मौर्य-वंश के पतन के पश्चात् मगध साम्राज्य पर गुप्त वंश के शासकों ने आधिपत्य स्थापित
किया। चन्द्रगुप्त द्वितीय जो विक्रमादित्य के नाम से प्रसिद्ध हुए, मगध के शासक हुए। उन्होंने मगध साम्राज्य के विकास के अनेक कार्य किए। वह अपनी न्यायप्रियता एवं प्रजापालन के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् समुद्रगुप्त मगध साम्राज्य के शासक हुए। वे महान योद्धा थे। उन्होंने अनेक देशों पर मगध साम्राज्य की विजय पताका फहरायी। उन्हें भारत का “नेपोलियन” नाम से भी पुकारा जाता है।
अत: मगध साम्राज्य के उत्थान का कारण शासकों द्वारा सुशासन तथा कुशल-प्रबंधन रहा
है। जनहित, न्यायप्रियता तथा साम्राज्य के विकासोन्मुख कार्यों द्वारा ही मगध साम्राज्य उन्नति के
शिखर पर पहुँच सका।
प्रश्न 15. महावीर के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।
Narrate the life and teaching of Mahavira. [B. Exam. 2010(A), 2012 (A)]
उत्तर-जैनों के 24वें तथा अंतिम तीर्थकर महावीर स्वामी थे जो जैन धर्म के वास्तविक
संस्थापक भी माने जाते हैं। महावीर का जन्म 540 ई० पूर्व वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ
था। उनके पिता सिद्धार्थ (जाति) ज्ञातृक क्षत्रिय कुल के प्रधान थे। उनकी माता त्रिशला वैशाली
को लिच्छवी राजकुमारी थी। महावीर का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था। सत्य की
तलाश में महावीर 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर सन्यासी हो गये। 12 वर्ष की गहन तपस्या
के बाद जम्मियग्राम के निकट जुलिक नदी के तट पर एक साल वृक्ष के नीचे कैवल्य (सर्वोच्च
ज्ञान) प्राप्त हुआ। महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में राजगृह के निकट पावापुरी में 468 ई०
पूर्व में हुई।
जैन धर्म के सिद्धान्त : महावीर ने पंच महाव्रत के सिद्धान्त पर अधिक बल दिया। जैन
धर्म में अहिंसा का प्रमुख स्थान है। हिंसा करना पाप समझा जाता है। इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति को हिंसा के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए।
दूसरा महाव्रत सत्य का है। इसे पूरा करने के लिए मनुष्य को क्रोध, भय और लोभ का
परित्याग करना चाहिए।
तीसरा महाव्रत अस्तेय का है। इसका अर्थ है आवश्यकता से अधिक धन का संग्रह नहीं करना
चाहिए।
चौथा महाव्रत ब्रह्मचर्य है। इसका अर्थ सभी विषय-वासनाओं का परित्याग करना है। ब्रह्मचर्य
द्वारा ही चरित्र का निर्माण हो सकता है।
पाँचवाँ महाव्रत ब्रह्मचर्य है। इसका अर्थ सभी विषय-वासनाओं का परित्याग करना है।
ब्रह्मचर्य द्वारा ही चरित्र का निर्माण हो सकता है।
पाँच महाव्रतों के अतिरिक्त जैन धर्म में तपस्या पर भी अधिक बल दिया गया है। तपस्या
द्वारा इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है। अपने शरीर को कष्ट देना ही तपस्या है। पापों का
प्रायश्चित करने के लिए विनय, सेवा, ध्यान एवं स्वाध्याय है। जैन सम्प्रदाय के लोग अनेक कठोर
भौतिक आचरण के नियमों का अनुसरण करते हैं। महावीर जैनियों को नियमित, अनुशासित एवं
अनासक्त जीवन व्यतीत करने के लिए उपदेश देते थे।
इस प्रकार, जैन धर्म के आदर्श सरल, सुबोध एवं व्यावहारिक थे। महावीर ने ब्रह्मचर्य और
गृहस्थ जीवन पालन करने के लिए साधारण आदर्श, लोगों के सामने रखा था। इन नियमों का
पालन बिना किसी कठिनाई के किया जा सकता है। इन नियमों में यज्ञ और बलि आदि का कोई
स्थान नहीं था और ब्राह्मणों की सर्वोपरिता ठुकरा दी गई थी। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य-
ये सभी नियम अत्यन्त प्रिय थे और इनका पालन करना आसान था। जैन धर्म में जाति-पाति और ऊँच-नीच का कोई स्थान नहीं था। समाज के सभी लोग इस धर्म के आदर्शों का पालन कर मोक्ष प्राप्त कर सकते थे। महावीर ने जैन धर्मावलम्बियों का एक संघ गठित किया, जिनके कठोर नियमों का पालन प्रत्येक सदस्य को करना पड़ता था। महावीर के प्रयत्न के कारण जैन धर्म का काफी प्रचार हुआ।
प्रश्न 16, कनिष्क प्रथम की जीवनी एवं उपलब्धियों का विवरण दें। [B. Exam.2011 (A)]
उत्तर-कनिष्क भारत में कुषाण राजाओं में सबसे महान शासक था। वह 78 ई० पूर्व में
गद्दी पर बैठा तथा उसने जिस संवत् की स्थापना की कालान्तर में शक संवत के नाम से प्रसिद्ध
हुई।
कनिष्क का साम्राज्य मध्य एशिया, ईरान, अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान तक था। वह एक
महान विजेता, साम्राज्य निर्माता तथा विद्या एवं कला-कौशल का उदार संरक्षक था। वह एक
कुशल सेना नायक तथा कुशल प्रशासक था। वह बौद्ध धर्म का ‘महान संरक्षक था। उसने भारतीय धर्म, कला एवं विद्वता को संरक्षण प्रदान किया और इस प्रकार उसने मध्य तथा पूर्वी एशिया में भारतीय संस्कृति के प्रवेश का द्वार खोल दिया।
कनिष्क ने कुल 23 वर्षों तक शासन किया। यदि हम उसके राज्यारोहण की तिथि 78 ई०
को मानें तो उसकी मृत्यु 101 ई० के लगभग हुई।
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