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bihar board 12 class Psychology notes | मनोवैज्ञानिक विकार

bihar board 12 class Psychology notes | मनोवैज्ञानिक विकार

bihar board 12 class Psychology notes | मनोवैज्ञानिक विकार

मनोवैज्ञानिक विकार

        [Psychological disorders] ]
      पाठ्यक्रम
अपसामान्यता तथा मनोवैज्ञानिक विकार के संप्रत्यय; मनोवैज्ञानिक विकारों का वर्गीकरण; अपसामान्य व्यवहार के अंतर्निहित कारक; प्रमुख मनोवैज्ञानिक विकार।
          याद रखने योग्य बातें
1. अपसामान्य व्यवहार वह व्यवहार है जो विसामान्य, कष्टप्रद, अपक्रियात्मक और दु:खद होता है।
2. ‘अपसामान्य’ का शाब्दिक अर्थ है ‘जो सामान्य से परे है’ अर्थात जो स्पष्ट रूप से परिभाषित मानकों या मापदंडों से हटकर है।
3. वैसे व्यवहार जो सामाजिक मानकों से विचलित होते हैं और जो उपयुक्त संवृद्धि एवं क्रियाशीलता में बाधक होते हैं, अपसामान्य व्यवहार कहलाते हैं।
4. सामान्य और उपसामान्य व्यवहार में विभेद करने के लिए प्रयुक्त उपागमों में दो मूल और द्वंदात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न हुए हैं। पहला उपागम अपसामान्य व्यवहार को सामाजिक मानकों से विचलित व्यवहार मानता है तथा दूसरा उपागम अपसामान्य व्यवहार को दुरनुकूलक व्यवहार के रूप में समझता है।
5. समाज के कुछ मानक समाज में उचित आचरण के लिए कथित या अकथित नियम होते हैं।
6. वे व्यवहार, विचार और संवेग जो सामाजिक मानकों को तोड़ते हैं उपसामान्य कहे जाते हैं।
7. प्रत्येक समाज के मानक उसकी विशिष्ट संस्कृति, उसके इतिहास, मूल्यों, आदतों, कौशलों, प्रौद्योगिकी और कला से विकसित होते हैं।
8. मनोवैज्ञानिक अंत:क्रियात्मक या जैव-मनो-सामाजिक उपागम में ये तीन कारक-जैविक,
मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक-मनोवैज्ञानिक विकारों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
9. मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है हो जाती है।
9. मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है।
10.हिपोक्रटस, सुकरात और विशेष रूप से प्लेटो ने सवंगिक उपागम को विकसित किया और बाधित व्यवहार को संवेग और तर्क के बीच द्वंद्व के कारण उत्पन्न माना।
11, मध्य युग में भूतविद्या यानी मानसिक समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति में दुष्ट आत्माएँ होती है और अंधविश्वासों ने उपसामान्य व्यवहार के कारणों की व्याख्या करने में महत्त्व प्राप्त किया।
12. पुनर्जागरण काल में उपसामान्य व्यवहार के बारे में जिज्ञासा और मानवतावाद पर बल दिया गया और मनोवैज्ञानिक द्वंद्व तथा अंतर्वैयक्तिक संबंधों में बाधा को मनोवैज्ञानिक विकारों का महत्त्वपूर्ण कारण माना।
13. जैविक मॉडल के अनुसार उपसामान्य व्यवहार का एक जीव-रासायनिक या शरीर-क्रियात्मक आधार होता है। जैविक कारक जैसे-दोषपूर्ण जीन, अंत:स्रावी असंतुलन, कुपोषण, चोट तथा अन्य दशाएँ शरीर के कार्य एवं सामान्य विकास में बाधा पहुंचाते हैं।
14, जब कोई विद्युत आवेग तंत्रिका कोशिका के अंतिम छोर तक पहुंचता है तब अक्षतंतु उद्दीप्त
होकर कुछ रसायन प्रवाहित करते हैं जिसे तंत्रिक-संचारक या न्यूरोट्रांस-मीटर कहते हैं।
15. मनोवैज्ञानिक मॉडल के अनुसार अपसामान्य-व्यवहार में मनोविज्ञानिक और अंतवैयक्तिक कारकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
16. फ्रॉयड के अनुसार उपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होनेवाले मानसिक द्वंद्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।
17. व्यवहारात्मक मॉडल बताता है कि सामान्य और उपसामान्य दोनों व्यवहार अधिगत होते हैं और मनोवैज्ञानिक विकार व्यवहार करने के दुरनुकूलक तरीके सीखने के परिणामस्वरूप होते हैं।
18. रोगोन्मुखता दबाव मॉडल का मानना है कि जब कोई रोगोन्मुखता किसी दवावपूर्ण स्थिति के कारण सामने आ जाती है तब मनोविकार उत्पन्न होते हैं।
19. रोगोन्मुखता दवाव मॉडल के तीन घटक हैं- 1.रोगोन्मुखता या कुछ जैविक विपथन जो वंशगत हो सकते हैं,
2. रोगोन्मुखकता के कारण किसी मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति दोषपूर्णता उत्पन्न हो सकती है और
3. विकारी प्रतिबलकों की उपस्थिति है।
20. लम्बे समय तक चलनेवाले, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय जो किसी भी विशिष्ट वस्तु के प्रति जुड़े हुए नहीं होते हैं तथा भविष्य के प्रति आकुलता एवं आशंका तथा अत्यधिक तथा अत्यधिक सतर्कता यहाँ तक कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार की छानबीन शामिल होती है सामान्यीकृत दुश्चिता विकार कहलाता है।
21. दुर्भीति-जिन लोगों को दुर्भीति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु, लोभ या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अतर्क भय होता है। दुर्भांति बहुधा धीरे-धीरे या सामान्यीकृत दुश्चिता विकार से उत्पन्न होती है।
22. सामाजिक दुर्भीति-दूसरों के साथ बर्ताव करते समय तीव्र और अक्षम करनेवाला भय तथा
उलझन करने का लक्षण है।
23. वृत्तिभीति-जब लोग अपरिचित स्थितियों में प्रवेश करने के भय से ग्रसित हो जाते हैं तथा जीवन की सामान्य गतिविधियों का निर्वहन करने को उनकी योग्यता भी अत्यधिक सीमित हो जाती है।
24. मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार से पीड़ित कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं।
25. काय आलंबिता विकार-व्यक्ति अस्पष्ट और बार-बार घटित होनेवाले तथा बिना किसी अंगिक कारण के शारीरिक लक्षण जैसे-पीड़ा, अम्लता इत्यादि को प्रदर्शित करता है।
26. परिवर्तन विकार-व्यक्ति संवेदी या पेशीय प्रकार्यों जैसे-पक्षाघात, अंधापन इत्यादि में क्षति या हानि प्रदर्शित करता है जिसका कोई शारीरिक कारण नहीं होता किन्तु किसी दबाव या मनोवैज्ञानिक समस्याओं के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया के कारण हो सकता है।
27. व्यक्तित्व लोप-व्यक्तित्व लोप में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। आत्म-प्रत्यक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है।
28. स्वकायदुश्चिता रोग-जब चिकित्सा आश्वासन, किसी भी शारीरिक लक्षणों का न पाया जाना या बीमारी के न बढ़ने के बावजूद रोगी लगातार यह मानता है कि उसे गंभीर बीमारी है स्वकायदुश्चिता रोग कहलाता है।
    एन. सी. ई. आर. टी. पाठ्यपुस्तक तथा        परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
                 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
              (Objective Questions)
1. सभी ऐल्कोहॉल पेय पदार्थों में होता है:
(क) मिथाइल ऐल्कोहॉल
(ख) एथाइल ऐल्कोहॉल
(ग) कीटोन
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
2. निम्नलिखित में कौन-सा मादक पदार्थ है ?
(क) कैफीन
(ख) गाँजा
(ग) भांग
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
3. निम्नलिखित में कौन निकोटिन की श्रेणी में आता है ?
(क) हशीश
(ख) हेरोइन
(ग) तंबाकू
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ग)
4. गांजा एक प्रकार का-
(क) कैफीन है
(ख) कोकीन है
(ग) केनेबिस है
(घ) निकोटिन है
उत्तर-(ग)
5. निम्नलिखित में कौन मादक पदार्थ की श्रेणी में आते हैं ?
(क) गोंद
(ख) पेंट
(ग) सिगरेट
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर (ख)
6. निम्नलिखित में कौन कैफीन नहीं है ?
(क) कॉफी
(ख) चॉकलेट
(ग) कफ सरप
(घ) कोको
उत्तर- -(घ)
7. मेस्कालाइन एक-
(क) विभ्रांति उत्पादक है।
(ख) निकोटिन है
(ग) शामक
(घ) ओपिऑयड है
उत्तर-(ग)
8.शशविसामान्य कष्टप्रद अपक्रियात्मक और दुःखद व्यवहार को कहा जाता है-
(क) सामान्य व्यवहार
(ख) अपसामान्य व्यवहार
(ग) विचित्र व्यवहार
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
9. निम्नलिखित में अपसामान्य व्यवहार के कौन-से परिप्रेक्ष्य नहीं हैं?
(क) अतिप्राकृत
(ख) अजैविक
(ग) जैविक
(घ) आगिक
उत्तर (ख)
10. हेरोइन एक प्रकार का-
(क) कोकीन है
(ख) केनेबिस है
(ग) ओपिऑयड है
(घ) कैफीन है
उत्तर (ग)
11. निम्नलिखित में कौन ओपिऑयड नहीं है?
(क) मॉफिन
(ख) कफ सिरप
(ग) पीड़ानाशक गोलियाँ
(घ) एल. एल. डी.
उत्तर-(घ)
12. निम्नलिखित में कौन काय-आलंबिता विकार के लक्षण नहीं हैं ?
(क) खूब खाना
(ख) सिरदर्द
(ग) थकान
(घ) उलटी करना
उत्तर (क)
13. निम्नलिखित में कौन कायरूप विकार नहीं है ?
(क) परिवर्तन विकार
 (ख) स्वकायदुश्चिता रोग
(ग) विच्छेदी विकार
(घ) पीड़ा विकार
उत्तर (ग)
14. किस प्रकार में व्यक्ति प्रत्यावर्ती की कल्पना करता है जो आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं रख सकते हैं?
(क) विच्छेदी पहचान विकार
(ख) पीड़ा विकार
(ग) विच्छेदी स्मृतिलोप
 (घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
15. उतर अभिघातज दबाव विकार के लक्षण होते हैं-
(क) बार-बार आनेवाले स्वज
(ख) एकाग्रता में कमी
(ग) सांवेगिक शून्यता का होना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर (घ)
16. किसी विशिष्ट वस्तु, दूसरों के साथ अंतःक्रिया तथा अपरिचित स्थितियों के प्रति अविवेकी भय का होना कहलाता है :
(क) आतंक विकार
(ख) दुर्भीति
(ग) उत्तर अभिघातज दबाव विका
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ख)
17. दुश्चिंतित व्यक्ति में कौन-से लक्षण पाए जाते हैं ?
(क) हृदय गति का तेज होना
(ख) साँस की कमी होना
(ग) दस्त होना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
18. आनुवंशिक कारकों का संबंध कहाँ पाया जाता है ?
(क) भावदशा विकारों में
(ख) मनोविदलता में
(ग) मानसिक मंदन में
 (घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
19. दुश्चिता विकार का संबंध किससे है?
(क) डोपामाइन से
(ख) सीरोटीनिन से
(ग) गामा एमिनोब्यूटिरिकएसिड से
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर (ग)
20. निम्नलिखित में किसने सर्वांगीण उपागम को विकसित किया?
(क) प्लेटो
(ख) वायु
(ग) पार्कर
घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(क)
21. निम्नांकित में कौन मनोवैज्ञानिक विकारों के वर्गीकरण का नवीनतम पद्धति
(क)DSM-IIR
(ख) DSM-IV
(ग)ICD-9
(घ) WHO
उत्तर-(ख)
22. मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन निम्नांकित में से किसने किया है ?
(क) वाटसन
(ख) एडलर
(ग) ऑलपोर्ट
(घ) फ्रायड
उत्तर-(घ)
23. निम्नलिखित में कौन असामान्य व्यवहार से संबंधित नहीं है ? 
(क) मानसिक असंतुलन
(ख) क्रोमोसोम असमानता
(ग) याददाश्त का कमजोर होना
 (घ) शरीर गठन
उत्तर-(ग)
24. विचारों, प्रेरणाओं, आवश्यकताओं अथवा उद्देश्यों के परस्पर विरोध के फलस्वरूप पैदा हुई विक्षोप या तनाव की स्थिति क्या कहलाती है ? 
(क) द्वन्द्व
(ख) तर्क
(ग) कुण्ठा
(घ) दमन
उत्तर-(क)
प्रति 25. तनाव के कई कारण होते हैं जिससे तनाव उत्पन्न होता है, उन्हें कहा जाता है-
(क) प्रतिगमन
(ख) प्रतिबलक
(ग) प्रत्याहार
(घ) अनुकरण
उत्तर-(ख)
26. एक लड़की का अपने पिता से कामुक लगाव तथा अपने माँ का स्थान लेने की इच्छा को कहा जाता है-
(क) इलेक्ट्रा या पितृ मनोग्रंथि
(ख) ओडिपस या मातृ मनोग्रंथि
(ग) जीवन-प्रवृत्ति
(घ) मृत्यु-प्रकृति
उत्तर-(क)
27. एक व्यक्ति काम पर जाने के लिए घर से बाहर निकलते समय बार-बार दरवाजे के ताले की जांच, कम-से-कम दस बार करता है, वह विकार से ग्रसित है-
(क) दुर्भीति
(ख) आंतक
(ग) सामान्यीकृत दुश्चिता
(घ) मनोग्रस्ति-बाध्यता
उत्तर-(घ)
 28. सामान्य, असामान्य तथा श्रेष्ठ में केवल का अंतर होता है- 
(क) मात्रा का
(ख) क्रम का
(ग) दूरी का
(घ) समय का
उत्तर-(क)
29. हेरोइन एक प्रकार का-
(क) कोकीन है
(ख) केनेबिस है
(ग) ओपिआयड है
(घ) केफीन है
उत्तर (ग)
30. शीलगुण कहलाने के लिए आवश्यक है-
(क) व्यवहार में संगतता
(ख) व्यवहार में स्थिरता
(ग) व्यवहार में संगतता तथा स्थिरता दोनों
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर (ग)
31. मनोविदलता के उप-प्रकारों में से कौन-सा एक नहीं है ?
(क) व्यामोहाभ प्रकार
(ख) विसंगठित प्रकार
(ग) अवधान-न्यूनता अतिक्रिया प्रकार
(घ)अविभेदित प्रकार
उत्तर-(ग)
32. ‘तदनुभूति’ अनुभव करने की क्षमता अधिक रखनेवालों में सबसे उपयुक्त उदाहरण
(क) मदर टेरेसा
(ख) हेमवती नंदन बहुगुणा
(ग)मेघा पाटेकर
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
33. अगर कोई व्यक्ति में उन्माद तथा विषाद दोनों तरह की मानसिक अवस्थाएं क्रम से होती हैं तो इसे DSM-IV में क्या संज्ञा दी गई है ?
(क) उत्साद-विषाद मनोविक्षिप्त
(ख) द्वि-ध्रुवीय विकार
(ग) मुख्य विषाद
(घ) मन:स्थिति विकार
उत्तर-(ख)
34. मनोविदालिता पद का प्रयोग सबसे पहले किसने किया था?
(क) ब्लियूलर
(ख) मोरेल
(ग) फ्रायड
(घ) क्रेपलिन
उत्तर (क)
35. सामान्य अनुकूलन संलक्षण में कितनी अवस्थाएं पायी जाती हैं ?
(क) तीन
(ख) दो
(ग) चार
(घ)पाॅंच
उत्तर (क)
36. DSM-IV के अनुसार निम्नांकित में से किसे दुश्चिता विकृति की श्रेणी में नहीं रखा गया है?
(क) दुर्भीति
(ख) तीव्र प्रतिबल विकृति
(ग) रूपांतर विकृति
(घ) मनोग्रस्ति-बाध्यता विकृति
उत्तर-(ग)
37. मनोविदलता के रोगी में सबसे ज्यादा कौन-सी विभ्रांति पायी जाती है?
क) श्रवण विभ्रांति
(ख) दैहिक विभ्रांति
(ग) दृष्टि विभ्रांति
(घ) स्पर्शी विभ्रांति
उत्तर-(क)
38. निम्नांकित में कौन-से दुश्चिता विकार नहीं है ?
(क) दुर्मीति विकार
(ख) आंतक विकार
(ग) मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार
(घ) मनोविच्छेदी
उत्तर-(क)
39. बार-बार हाथ धोना, किसी चीज को छूना या गिनना मानसिक विकार के लक्षण हैं?
(क) दुर्भीति विकार
(ख) मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार
(ग) आंतक विकार
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(क)
40. निम्नलिखित में विकास का सही क्रम कौन-सा है?
(क) अहं-पराह-उपाहं
(ख) उपाहं-पराहं-अहं
(ग) उपाहं-अहं-पराहं
(घ) पराहं-अहं-उपारहं
उत्तर-(ग)
41. फ्रायड के द्वारा दिए गए रक्षा युक्तियों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है-
(क) दमन
(ख) विस्थापन
(ग) प्रतिगमन
(घ) दलन
उत्तर-(क)
42. कायरूप विकार निम्न में किससे संबंधित है ?
(क) शारीरिक समस्या से
(ख) मनोवैज्ञानिक समस्या से
(ग) आनुवंशिक समस्या से
(घ) दैवीय समस्या से
उत्तर-(क)
          अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
      (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अपसामान्य व्यवहार से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-अपसामान्य व्यवहार वह व्यवहार है जो विसामान्य, कष्टप्रद, अपक्रियात्मक और
दु:खद होता है। उन व्यवहारों को अपसामान्य समझा जाता है जो सामाजिक मानकों से विचलित होते हैं और जो उपयुक्त संवृद्धि एवं क्रियाशीलता में बाधक होते हैं।
प्रश्न 2. दुरनुकूलक व्यवहार क्या है ?
उत्तर-किसी व्यवहार को दुरनुकूलक कहने का तात्पर्य यह है कि समस्या बनी हुई है। इससे यह संकेत मिलता है कि व्यक्ति की सुभेद्यता, बचाव की अक्षमता या पर्यावरण में असाधारण दबाव के कारण जीवन में समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं।
प्रश्न 3. ओझा कौन होता है ?.
उत्तर-कई समाजों में ओझा वे व्यक्ति समझे जाते हैं जिनका संबंध अतिप्राकृत शक्तियों से होता है और जिनके माध्यम से प्रेतात्माएँ व्यक्तियों से बात करती हैं।
प्रश्न 4. मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर-मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएँ व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 5. ग्लेन के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार क्यों उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर-ग्लेन के अनुसार, यह भौतिक संसार चार तत्त्वों से बना है। जैसे-पृथ्वी, वायु, अग्नि और जल,जो
मिलकर हमारे शरीर के चार आवश्यक द्रव, जैसे-रक्त, कला पित्त और श्लेष्मा बनाते हैं। इनमें प्रत्येक द्रव भिन्न-भिन्न स्वभाव को बनाते हैं। इन चार वृत्तियों में असंतुलन होने से विभिन्न विकार उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 6. अपसामान्य व्यवहार के आधुनिक मनोगतिक सिद्धांतों की आधारशिला किसने रखी थी?
उत्तर-संत ऑगस्टीन ने।
प्रश्न 7. योहान वेयर के मुताबिक मनोवैज्ञानिक विकार के क्या कारण थे ?
उत्तर-योहान वेयर के मुताबिक मनोवैज्ञानिक द्वंद्व तथा अंतर्वैयक्तिक संबंधों में बाधा को मनोवैज्ञानिक विकारों का महत्त्वपूर्ण कारण माना।
प्रश्न 8. अठारहवीं शताब्दी में मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति क्या जागरुकता आई ?
उत्तर-अठारहवीं शताब्दी में मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति वैज्ञानिक अभिवृत्ति में वृद्धि के कारण इन विकारों से ग्रसित लोगों के प्रति करुणा या सहानुभूति की भावना बढ़ी जिससे सुघार आंदोलन का बल प्राप्त हुआ।
प्रश्न 9. अठारहवीं शताब्दी में सुधार आंदोलन का सकारात्मक पक्ष क्या था?
उत्तर-सुधार आंदोलन का एक पक्ष यह था कि संस्था-विमुक्ति के प्रति रुझान बढ़ा जिसमें मानसिक रूप से बीमार लोगों के ठीक होने के पश्चात् सामुदायिक देख-रेख के ऊपर जोर दियआ
प्रश्न 10. भारत में तथा अन्यत्र बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण का कौन-सा संस्करण प्रयुक्त होता है और उसे क्या कहा जाता है ?
उत्तर-भारत में अन्यत्र बीमारियों के अंतराष्ट्रीय वर्गीकरण का दसवां संस्करण प्रयुक्त होता है, जिसे आई. सी. डी.-10 व्यवहारात्मक एवं मानसिक विकारों का वर्गीकरण कहा जाता है।
प्रश्न 11. कुछ जैविक कारकों को लिखिए जो हमारे व्यवहार के सभी पक्षों को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-दोषपूर्ण जीन, अंतःस्रावी असंतुलन, कुपोषण, चोट आदि।
प्रश्न 12. तंत्रिका संचारक किसे कहते हैं ?
उत्तर-जब कोई विद्युत आवेग तंत्रिका-कोशिका के अंतिम छोर तक पहुंचता है तब अक्षतंतु उद्दीप्त होकर कुछ रसायन प्रवाहित करते हैं जिसे तत्रिका संचारक कहते हैं।
प्रश्न 13. दुश्चिता विकार का संबंध किससे है ?
उत्तर-दुश्चिता विकार का संबंध न्यूरोट्रांसमीटर गामा एमिनाब्यूटिरिक एसिड की निम्न क्रियाशीलता से है।
प्रश्न 14. मनोविदलता का संबंध किससे है?.
उत्तर-मनोविदलता का संबंध डोपामाइन की अतिरेक क्रियाशीलता से है।
प्रश्न 15. अवसाद का संबंध किससे है?
उत्तर-अवसाद का संबंध सीरोटोनिन की निम्न क्रियाशीलता से है।
प्रश्न 16. आनुवंशिक कारकों का संबंध किस प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों से है ?
उत्तर-आनुवंशिक कारकों का संबंध भावदशा विकारों, मनोविदलता, मानसिक मंदन तथा अन्य मनोवैज्ञानिक विकारों से पाया गया है।
प्रश्न 17. उन मनोवैज्ञानिक और अंतर्वैयक्तिक कारकों को लिखिए जिनकी अपसामान्य व्यवहार में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
उत्तर-इन कारकों में मातृत्व वंचन, माता-पिता और बच्चे के बीच दुरनुकूलक संबंध, दुरनुकूलक परिवार संरचना तथा अत्यधिक दबाव का होना है।
प्रश्न 18. मनोवैज्ञानिक मॉडल के मनोगतिक सिद्धांत क्या हैं ?
उत्तर-मनोगतिक सिद्धांतवादियों का विश्वास है कि व्यवहार चाहे सामान्य हो या असामान्य वह व्यक्ति के अंदर की मनोवैज्ञानिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है जिनके प्रति वह स्वय चेतन रूप से अनभिज्ञ होता है।
प्रश्न 19. गत्यात्मक शक्तियाँ क्या होती हैं ?
उत्तर-गत्यात्मक शक्तियाँ आंतरिक शक्तियाँ हैं जो एक-दूसरे से अंत:क्रिया करती तथा उनकी यह अंत:क्रिया व्यवहार, विचार और संवेगों को निर्धारित करती हैं।
प्रश्न 20. मनोगतिक मॉडल को सर्वप्रथम किसने प्रतिपादित किया था ?
उत्तर-यह मॉडल सर्वप्रथम फ्रॉयड द्वारा प्रतिपादित किया गया था।
प्रश्न 21. फ्रॉयड के अनुसार कौन-सी तीन केन्द्रीय शक्तियाँ व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं?
उत्तर-फ्रॉयड के अनुसार निम्नलिखित तीन केन्द्रिीय व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं-(i) मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताएँ, (ii) अंतर्नोद तथा आवेग, (ii) तार्किक चिंतन तथा नैतिक मानक।
प्रश्न 22. फ्रॉयड के अनुसार अपसामान्य व्यवहार क्या है ?
उत्तर-फ्रॉयड के अनुसार अपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होनेवाले मानसिक द्वंद्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था में होता है।
प्रश्न 23. व्यवहारात्मक मॉडल क्या है ?
उत्तर-यह मॉडल बताता है कि सामान्य और अपसामान्य दोनों व्यवहार अधिगम होते हैं और
मनोवैज्ञानिक विकार व्यवहार करने के दुरनुकूलक तरीके सीखने के परिणामस्वरूप होते हैं।
प्रश्न 24. अधिगम प्राचीन अनुबंधन क्या है ?
उत्तर-अधिगम प्राचीन अनुबंधन यह कालिक साहचर्य है जिसमें दो घटनाएँ बार-बार एक-दूसरे के साथ घटित होती हैं।
प्रश्न 25. क्रियाप्रसूत अनुबंधन क्या है ?
उत्तर-क्रियाप्रसूत अनुबंधन में व्यवहार किसी पुरस्कार से संबंधित किया जाता है।
प्रश्न 26. सामाजिक अधिगम क्या है?
उत्तर-सामाजिक अधिगम दूसरे के व्यवहारों का अनुकरण करके सीखना है।
प्रश्न 27. रोगोन्मुखता-दबाव मॉडल क्या है.?
उत्तर-रोगोन्मुखता-दबाव मॉडल के अनुसार, जब कोई रोगोन्मुखता किसी दबावपूर्ण स्थिति के कारण सामने आ जाती है तब मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 28. रोगोन्मुखता-दबाव मॉडल के तीन घटक कौन-से हैं ?
उत्तर-इस मॉडल के तीन घटक हैं-
(i) रोगोन्मुखता या कुछ जैविक विपथन जो वंशागत हो सकते हैं।
(ii) रोगोन्मुखता के कारण किसी मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति दोषपूर्णता उत्पन्न हो सकती है।
(ii) विकारी प्रतिबलकों की उपस्थिति।
प्रश्न 29. दुश्चितित व्यक्ति में किन लक्षणों का सम्मिलित रूप रहता है ?
उत्तर -दुश्चितित व्यक्ति में निम्न लक्षणों का सम्मिलित रूप रहता है-
हृदयगति का तेज होना, सांस की कमी होना, दस्त होना, भूख न लगना, बेहोशी, चक्कर आना, पसीना आना, निद्रा की कमी, बार-बार मूत्र त्याग करना तथा कंपकंपी आना।
प्रश्न 30. सामान्यीकृत दुश्चिता व्यक्ति में किन लक्षणों का सम्मिलित रूप रहता है?
उत्तर-सामान्यीकृत दुश्चिता विकार में लंबे समय तक चलनेवाले, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय होते हैं तो किसी भी विशिष्ट वस्तु के प्रति जुड़े हुए नहीं होते हैं।
प्रश्न 31. सामान्यीकृत दुश्चिता विकार के क्या लक्षण होते हैं ?
उत्तर-इनके लक्षणों में भविष्य के प्रति आकुलता एवं आशंका तथा अत्यधिक सतर्कता, यहाँ तक कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार के खतरे की छानबीन शामिल होती है।
प्रश्न 32. आंतक विकार क्या है?
उत्तर-आंतक विकार एक तरह का दुश्चिता विकार होता है जिसमें दुश्चिता के दौरे लागता पड़ते हैं और व्यक्ति तीव्र त्रास या दहशत का अनुभव करता है।
प्रश्न 33. आंतक आक्रमण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-आंतक आक्रमण का तात्पर्य हुआ कि जब भी कभी विशेष उद्दीपक से संबंधित विचार उत्पन्न हों तो अचानक तीव्र दुश्चिता अपनी उच्चतम सीमा पर पहुँच जाए। इस तरह के के विचार अकल्पित तरह से उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 34. आंतक विकार के मैदानिक लक्षण क्या-क्या हैं?
उत्तर-इसके नैदानिक लक्षणों में सांस की कमी, चक्कर आना, कंपकंपी, दिल धड़कना, दम
घुटना, जी मिचलाना, छाती में दर्द या बेचैनी, सनकी होने का भय, नियंत्रण खोना या मरने का
एहसास सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 35. दुर्भीति क्या है?
उत्तर-दुर्भाति एक प्रकार का भय है। जिन लोगों में दुर्भाति होती है उन्हें किसी विशिष्ट वस्तु, लोग या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अतर्क भय होता है।
प्रश्न 36, दुर्भाति कितने प्रकार की होती है?
उत्तर-दुर्भीति तीन प्रकार की होती है-विशिष्ट दुर्भाति, सामाजिक दुभीति तथा विवृतिभीति
प्रश्न 37. विशिष्ट दुर्मीति क्या है?
उत्तर-इसमें सामान्यतः घटित होनेवाली दुर्भांति होती है। इसमें अविवेकी या अतर्क भय जैसे किसी विशिष्ट प्रकार के जानवर के प्रति तीव्र भय का होना या किसी बंद जगह में होने का भय का होना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 38. सामाजिक दुर्भति का क्या लक्षण होता है ?
उत्तर-दूसरों के साथ बर्ताव करते समय तीव्र और अक्षम करनेवाला भय और उलथप अनुभव करना सामाजिक दुर्मीति का लक्षण है।
प्रश्न 39. विवृतिभीति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-विवृतिभीति शब्द उस समय प्रयुक्त किया जाता है जब लोग अपरिचित स्थितियों में प्रवेश करने के भय से ग्रसित हो जाते हैं। इससे ग्रसित अधिकांश लोग अपने घर से निकलने में घबराते हैं।
प्रश्न 40. मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार क्या है?
उत्तर-जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि ये उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुंचाते हैं।
प्रश्न 41, मनोग्रस्ति व्यवहार किसे कहते हैं ?
उत्तर-किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है।
प्रश्न 42. बाध्यता व्यवहार किसे कहते हैं ?
उत्तर-किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार कहलाता है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 43. अभिघातज उत्तर दबाव विकार का अनुभव किन लोगों में पाया जाता है?
उत्तर-कई लोग जो किसी प्राकृतिक विपदा (जैसे-सुनामी) में फंस चुके होते हैं या किसी गंभीर दुर्घटना या युद्ध की स्थितियों को अनुभव कर चुके होते हैं, वे अभिघातज उत्तर दबाव विकार का अनुभव करते हैं।
प्रश्न 44. उत्तर अभिघातक दबाव विकार के क्या लक्षण होते हैं ?
उत्तर-उत्तर अभिघातक दबाव विकार के लक्षणों में बार-बार किसी स्वप्न का आना,
अतीतावलोकन, एकाग्रता की कमी और सांवेगिक शून्यता शामिल हो सकती है।
प्रश्न 45. कायरूप विकार क्या है ?
उत्तर-कायरूप विकारों में शक्ति को मनोवैज्ञानिक कठिनाइयाँ होती हैं और वह शिकायत उन शारीरिक लक्षणों की करता है जिसका कोई जैविक कारण नहीं होता।
प्रश्न 46. कायरूप विकार में किस प्रकार के रोग सम्मिलित हैं ?
उत्तर-कायरूप विकारों में पीड़ा विकार, काय-आलंबिता विकार, परिवर्तित विकार तथा
स्वकार्यदुश्चिता रोग सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 47. काय-आलंबिता विकार क्या है ?
उत्तर-काय-आलबिता विकार के रोगियों में कई प्रकार की और बार-बार घटित होनेवाली या लंबे समय तक चलनेवाली शारीरिक शिकायतें होती हैं।
प्रश्न 48. काय-आलंबिता विकारवाले व्यक्तियों की क्या सामान्य शिकायतें होती हैं ?
उत्तर-उनमें सामान्य शिकायतें हैं-सिरदर्द, थकान, हृदय की धड़कन, बेहोशी का दौरा, उल्टी करना और एलर्जी।
प्रश्न 49. काय-आलंबिता विकार के रोगी की क्या अवधारणा होती है?
उत्तर-इस विकार के रोगी यह मानते हैं कि वे बीमार हैं, अपनी बीमारी का लंबा और विस्तृत ब्यौरा बताते हैं तथा काफी मात्रा में दवाएं लेते हैं।
प्रश्न 50. परिवर्तन विकार क्या है ?
उत्तर-परिवर्तन विकार के लक्षणों में शरीर के कुछ मूल प्रकार्य में से सबमें या कुछ अंशों में क्षति बनाई जाती है।
प्रश्न 51. परिवर्तन विकार के लक्षणों को लिखिए।
उत्तर-पक्षाघात, अंधापन, बधिरता या बहरापन और चलने में कठिनाई का होना इसके सामान्य लक्षण होते हैं।
प्रश्न 52. स्वकायदुरिंचता रोग का निदान कब किया जाता है ?
उत्तर-स्वकायदुश्चिता रोग का निदान तब किया जाता है जब चिकित्सा आश्वासन, किसी भी शारीरिक लक्षणों का न पाया जाना या बीमारी के न बढ़ने के बावजूद रोगी लगातार यह मानता है कि उसे गंभीर बीमारी है।
प्रश्न 53. विच्छेदी विकार की क्या विशेषता होती है?
उत्तर-चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तन जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है, विच्छेदी विकार की मुख्य विशेषता होती है।
प्रश्न 54. विच्छेदी स्मृतिलोप क्या है ?
उत्तर-विच्छेदी स्मृतिलोप में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात
आंगिक कारण नहीं होता है।
प्रश्न 55. व्यक्तित्व लोप क्या है?
उत्तर-व्यक्तिगत लोप में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। व्यक्तिगत लोप में आत्म-प्रत्यरक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लप्त हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 56, भावदशा विकार क्या है ?
उत्तर-भावदशा विकार में व्यक्ति की भावदशा या लंबी संवेगात्मक स्थिति में बाधाएँ आ जाती हैं।
प्रश्न 57. मनोविदलता के सकारात्मक लक्षणों को लिखिए।
उत्तर-मनोविदालता के सकारात्मक लक्षणों में व्यक्ति के व्यवहार में विकृत अतिशयता तथा विलक्षणता का बढ़ना पाया जाता है। भ्रमासक्ति असंगठित चिंतन एवं भाषा, प्रवर्धित प्रत्यक्ष और विभ्रम तथा अनुपयुक्त भाव मनोविदलता में सबसे अधिक पाये जानेवाले लक्षण हैं।
प्रश्न 58, भ्रमासक्ति क्या है?
उत्तर-भ्रमासक्ति एक झूठा विश्वास है जो अपर्याप्त आधार पर बहुत मजबूती से टिका रहता है। इस पर तार्किक युक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा वास्तविकता में जिसका कोई आधार नहीं होता।
प्रश्न 59. ‘अलोगिया’ क्या है?
उत्तर-अलोगिया एक प्रकार का रोग है जिसमें व्यक्ति में वाक्-अयोग्यता पाई जाती है जिसमें, भाषण, विषय तथा बोलने में कमी पाई जाती है।
प्रश्न 60. मनोविदलता के केटाटोनिक प्रकार की क्या विशेषताएं होती हैं?
उत्तर-चरमपेशीय गतिहीनता, चरमपेशीय निष्क्रियता, चरम नकारावृत्ति या मूकता।
प्रश्न 61. बच्चों में बहिःकरण विकार क्या होते हैं?
उत्तर-बहिःकरण विकारों में वे व्यवहार आते हैं जो विध्वंसकारी, अक्सर आक्रामक और बच्चे के पर्यावरण में जो लोग हैं उनके प्रति विमुखता वाले होते हैं।
प्रश्न 62. बच्चों में आंतरिकीकरण विकार क्या होते हैं?
उत्तर-आंतरिकीकरण विकार वे स्थितियाँ होती हैं जिनमें बच्चा अवसाद, दुश्चिता और अस्वस्थता या कष्ट महसूस करता है जो दूसरों को दिखाई नहीं दे सकती हैं।
प्रश्न 63. वियोगज दुश्चिता विकार क्या है?
उत्तर-वियोगज दुश्चिता विकार एक ऐसा आंतरिकीकृत विकार है जो बच्चों में विशिष्ट रूप से होता है। इसका सबसे प्रमुख लक्षण अतिशय दुरिंचता है, यहाँ तक कि अपने माता-पिता से अलग होने पर बच्चे अतिशय भय का अनुभव करते हैं।
प्रश्न 64‌, स्वलीन विकार क्या होता है?
उत्तर-स्वलीन विकारवाले बच्चों का सामाजिक अंत:क्रिया और संप्रेषण में कठिनाई है, उनकी बहुत सीमित अभिरुचियाँ होती हैं तथा उनमें एक नियमित दिनचयाँ की तीव्र इच्छा होतो है। 70 प्रतिशत के लगभग स्वालीनता से पीड़ित बच्चे मानसिक रूप से मंद होते हैं।
प्रश्न 65. मादक द्रव्य दुरुपयोग विकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-नियमित रूप से लगातार मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न होनेवाले दुरनुकूलक व्यवहारों से संबंधित विकारों को मादक द्रव्य दुरुपयोग विकार कहा जाता है।
प्रश्न 66. मादक द्रव्य निर्भरता से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-मादक द्रव्य निर्भरता में जिस मादक द्रव्य का व्यसन होता है उसके सेवन के लिए तीव्र इच्छा जागृत होती है, व्यक्ति सहिष्णुता और विनिवर्तन लक्षण प्रदर्शित करता है तथा उसे आवश्यक रूप से उस मादक द्रव्य का सेवन करना पड़ता है।
प्रश्न 67. ‘सहिष्णुता’ से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-सहिष्णुता का तात्पर्य व्यक्ति के वैसा ही प्रभाव पाने के लिए अधिक-से-अधिक उस मादक द्रव्य के सेवन से है।
प्रश्न 68. ‘विनिवर्तन’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-विनिवर्तन का तात्पर्य उन शारीरिक लक्षणों से है जो जब उत्पन्न होते हैं जब व्यक्ति मन:प्रभावी मादक द्रव्य का सेवन बंद या कम कर देता है।
            लघु उत्तरात्मक प्रश्न
         (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अवसाद और उन्माद से संबंधित लक्षणों की पहचना कीजिए।
उत्तर-अवसाद-इसमें कई प्रकार के नकारात्मक भावदशा और व्यवहार परिवर्तन होते हैं। इनके लक्षणों में अधिकांश गतिविधियों में रुचि या आनंद नहीं रह जाता है। साथ ही अन्य लक्षण भी हो सकते हैं; जैसे-शरीर के भार में परिवर्तन, लगातार निद्रा से संबंधित समस्याएँ, थकान, स्पष्ट रूप से चिंतन करने में असमर्थता, क्षोभ, बहुत धीरे-धीरे कार्य करना तथा मृत्यु और आत्महत्या के विचारों का आना, अत्यधिक दोष या निकम्मेपन की भावना का होना।
उन्माद- इससे पीड़ित व्यक्ति उल्लासोन्मादी, अत्यधिक सक्रिय, अत्यधिक बोलनेवाले तथा आसानी से चित्त-अस्थिर हो जाते हैं, उन्माद की घटना या स्थिति स्वत: कभी-कभी ही दिखाई देती है, इनका परिवर्तन अवसर अवसाद के साथ होता रहता है।
प्रश्न 2. अतिक्रियाशील बच्चों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
                 अथवा,
आवेगशील बच्चों की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-जो बच्चे आवेगशील (impulsive) होते हैं वे अपनी तात्कालिक प्रतिक्रियाओं पर नियंत्रण नहीं कर पाते या काम करने से पहले सोच नहीं पाते। वे प्रतीक्षा करने में कठिनाई महसूस करते हैं। या अपनी बारी आने की प्रतीक्षा नहीं कर पाते, अपने तात्कालिक प्रलोभन को रोकने में कठिनाई होती है या परितोषण में विलंब या देरी सहन नहीं कर पाते। छोटी घटनाएं जैसे चीजों को गिरा देना काफी सामान्य बात है जबकि इससे अधिक गंभीर दुर्घटनाएं और चोटें भी लग सकती हैं। अतिक्रिया (Hyperactivity) के भी कई रूप होते हैं। ए० डी० एच० डी० वाले बच्चे। हमेशा
कुछ न कुछ रहते हैं। इस के समय स्थिर या शांत बैठे रहना उनके लिए बहुत कठिन होता है। बच्चा चुलबुलाहट कर सकता है, उपद्रव कर सकता है, कमरे में ऊपर चढ़ सकते हैं या वह ही कमरे में निरूदेश्य दौड़ सकते हैं। माता-पिता और अध्यापक ऐसे बच्चे के बारे में कहते हैं कि उसके पैर में चक्की लगी है, जो हमेशा चलता रहता है तथा लगातार बातें करता रहता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में या चार गुना अधिक पाया जाता है।
प्रश्न 3. तर्क एवं प्रबोधन काल की महत्ता को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दीको तर्क एवं प्रबोधन का काल (Age of reason and enlightenment) कहा जाता है। इसलिए अपसामान्य व्यवहार को समझने के लिए आस्था और धर्मसिद्धांत के बजाय वैज्ञानिक पद्धति का अभ्युदय हुआ।अठारहवीं शताब्दी में मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति वैज्ञानिक अभिवृत्ति में वृद्धि के कारण इन विकारों लोगों के प्रति करुणा या सहानुभूति की भावना बढ़ी जिससे सुधार आंदोलन (Reforms moverment) को बल प्राप्त हुआ। यूरोप और अमेरिका दोनों में शरणस्थलों का आश्रयस्थानों में सुधार किया जाने लगा। इस सुधार आंदोलन का एक पक्ष यह था कि संस्था-विमुक्ति (Deinstitutionalisation) के प्रति रुझान बढ़ा जिसमें मानसिक रूप से बीमार लोगों के ठीक होने के पश्चात् सामुदायिक देख-रेख के ऊपर
जोर दिया जाने लगा।
प्रश्न 4. मनोवैज्ञानिक विकारों के वर्गीकरण पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-अमरीकी मनोरोग संघ ने विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक विकारों का वर्णन तथा वर्गीकरण करते हुए एक अधिकारिक पुस्तिका (Official manual) प्रकाशित की है। इसका वर्तमान संस्करण डायग्नोस्टिक एवं स्टैटिस्टिकल मैनुअल ऑफ मॅटल डिसऑर्डर, चतुर्थ संस्करण (डी० एस० एम०-IV) रोगी के (Diagnostic and Statistical Manual of Mental
Disorders, IVEdition) ‘मानसिक विकार’ के केवल एक वृहत् पक्ष पर नहीं बल्कि पाॅंच विमाओं या आयामों पर मूल्यांकन करता है। ये विमाएं जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा अन्य दूसरे, पक्षों से संबंधित है।
भारत में तथा अन्यत्र, बीमारियों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण का दसवाॅं संस्करण (International Classification of Disease (ICD-10 Classification of Behavioural and Mental Disorders) कहा जाता है। इस योजना में, प्रत्येक विकार के नैदानिक लक्षण और उनसे संबंधित अन्य लक्षणों तथा नैदानिक पथप्रदर्शिका का वर्णन किया गया है।
प्रश्न 5. अपसामान्य व्यवहार के लिए आनुवंशिक कारक किस प्रकार जिम्मेदार है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-आनुवंशिक कारकों (Genetic factors) का संबंध भावदशा विकारों, मनोविदलता, मानसिक मंदन तथा अन्य मनोवैज्ञानिक विकारों में पाया गया है। यद्यपि शोधकर्ता यह नहीं पहचान पाए हैं कि कौन-से विशिष्ट जीन मुख्यतः इसके दोषी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांशतः कोई एक जीन किसी विशेष व्यवहार या मनोवैज्ञानिक विकार के लिए उत्तरदायी नहीं होता बल्कि कई जीन मिलकर हमारे कई प्रकार के व्यवहारों तथा सांवेगिक प्रतिक्रियाओं, क्रियात्मक तथा अपक्रियात्मक दोनों को उत्पन्न करते हैं। यद्यपि इस बात के काफी पुष्ट प्रमाण हैं कि आनुवांशिक/जीवरासायनिक कारक भिन्न-भिन्न प्रकार के मानसिक विकारों जैसे-मनोविदलता, अवसाद, दुश्चिता इत्यादि में अपनी भूमिका रखते हैं तथापि केवल जीवविज्ञान ही अधिकांश मनोवैज्ञानिक विकारों का कारण नहीं होते।
प्रश्न 6. संज्ञानात्मक और मानवतावादी अस्तित्वपरक मनोवैज्ञानिक मॉडलों की विवेचना कीजिए।
उत्तर(i) संज्ञानात्मक मॉडल (vognitive model) ने मनोवैज्ञानिक कारकों पर जोर दिया है। इस मॉडल के अनुसार, अपसामान्य व्यवहार संज्ञानात्मक समस्याओं के कारण घटित हो सकते
हैं। लोगों की अपने बारे में ऐसी धारणाएँ और अभिवृत्तियाँ हो सकती हैं जो अविवेकशील और गलत हैं और सामान्य धारणा बना सकते हैं जिसके कारण किसी एक घटना, जो महत्त्वपूर्ण नहीं है, के आधार पर ही वे वृहत् नकारात्मक निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
(ii) मानवतावादी-अस्तित्वपरक मॉडल (Humanstic existential model) है, जो मनुष्य के अस्तित्व के व्यापक पहलुओं पर जोर देता है। मानवतावादी सोचते हैं कि मनुष्यों में जन्म से ही मित्रवत्, सहयोगी और रचनात्मक होने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है और वह स्वयं को विकसित करने के लिए है। अच्छाई और संवृद्धि के लिए मनुष्य अपनी इस क्षमता का उपयोग
करने को प्रेरित होते हैं। अस्तित्ववादियों का विश्वास है कि जन्म से हमें अपने अस्तित्व को अर्थ प्रदान करने की पूरी स्वतंत्रता होती है, इस उत्तरदायित्व को हम निभा सकते हैं या परिहार कर सकते हैं। जो उत्तरदायित्व से मुॅंह मोड़ते हैं वे खाली, अप्रमाणिक तथा अपक्रियात्मक जीवन जीते हैं।
प्रश्न 7. मादक द्रव्यों के दुरुपयोग तथा निर्भरता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-मादक द्रव्य दुरुपयोग (Substance abuse) में बारंबार घटित होनेवाले प्रतिकूल या हानिकारक परिणाम होते हैं जो मादक द्रव्यों के सेवन से संबोधत होते हैं। जो लोग नियमित रूप से मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं, उनके पारिवारिक और सामाजिक संबंध बिगड़ जाते हैं,वे कार्य स्थान पर ठीक से निष्पादन नहीं कर पाते तथा दूसरों के लिए शारीरिक खतरा उत्पन्न करते हैं।
  मादक द्रव्य निर्भरता (Substance dependence) में जिस मादक द्रव्य का व्यसन होता है उसके सेवन के लिए तीव्र इच्छा जागृत होती है, व्यक्ति सहिष्णुता और विनिवर्तन लक्षण प्रदर्शित करता है तथा उसे आवश्यक रूप से उस मादक द्रव्य का सेवन करना पड़ता है। सहिष्णुता का तात्पर्य व्यक्ति के ‘वैसा ही प्रभाव’ पाने के लिए अधिक-से-अधिक उस मादक द्रव्य के सेवन
से है। विनिवर्तन का तात्पर्य मन:प्रभावी (Psychoactive) मादक द्रव्य का सेवन बंद या कम
कर देता है। मन:प्रभावी मादक द्रव्य वे मादक द्रव्य हैं जिनमें इतनी क्षमता होती है।
प्रश्न 8. क्या विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है ? इसके विभिन्न रूपों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-हाँ, विकृत शरीर प्रतिमा भोजन विकार को जन्म दे सकती है। भोजन विकार में क्षुधा अभाव क्षुधतिशयता तथा अनियंत्रित भोजन सम्मिलित हैं। क्षुधा-अभाव (Anorexia nervosa) में व्यक्ति को अपनी शरीर प्रतिमा के बारे में गलत धारणा होती है जिसके कारण वह अपने को अधिक वजनवाला समझता है। अक्सर खाने को मना करना, अधिक व्यायाम-बाध्यता का होना तथा साधारण आदतों को विकसित करना, जैसे दूसरों के सामने न खाना-इनसे व्यक्ति काफी मात्रा में वजन घटा सकता है और मृत्यु की स्थिति तक अपने को भूखा रख सकता है। क्षुधातिशयता
(Bulima nervosa) में व्यक्ति बहुत अधिक मात्रा में खाना खा सकता है, इसके बाद रेचक और मूत्रवर्धक दवाओं के सेवन से या उल्टी करके, खाने को अपने शरीर से साफ कर सकता है। व्यक्ति पेट साफ होने के बाद तनाव और नकारात्मक संवेगों से अपने आपको मुक्त महसूस करते हैं। अनियंत्रित भोजन (Binge eating) में अत्यधिक. भोजन करने का प्रसंग बारंबार पाया जाता है।
प्रश्न 9. मुख्य दुश्चिता विकारों तथा उनके लक्षणों को लिखिए। 
उत्तर-मुख्य दुश्चिंता विकार तथा उनके लक्षण इस प्रकार हैं-
(i) सामान्यीकृत दुश्चिंता विकार-दीर्घ, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र जिसका संबंध किसी वस्तु से नहीं होता है तथा जिसमें अतिसर्तकता और पेशीय तनाव होता है।
(ii) आंतक विकार-बार-बार दुश्चिता के दौरे पड़ना जिसमें तीव्र त्रास या दहशत और आशंका की भावना; जिसे पहले से न बताया जा सके ऐसे ‘आंतक के आक्रमण’ साथ ही शारीरिक लक्षण जैसे सांस फूलना, धड़कन, कंपन, चक्कर आना तथा नियंत्रण खोने का यहाँ तक कि मृत्यु का भाव होना।
 (iii) दुर्भीति-किसी विशिष्ट वस्तु, दूसरों के साथ अंत:क्रिया तथा अपरिचित स्थितियों के प्रति अविवेकी भय का होना।
(iv) मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार-कुछ विचारों में संलग्न रहना जिन्हें व्यक्ति शर्मनाक और अप्रिय समझता है; कुछ ऐसी क्रियाएँ जैसे-जाँचना, धोना, गिनना इत्यादि को बार-बार करने के आवेग पर नियंत्रण न कर पाना।
(v) उत्तर अभिघातज दबाव विकार-बार-बार आनेवाले स्वप्न, अतीतावलोकन, एकाग्रता में कमी और सांवेगिक शून्यता का होना जो किसी अभिघातज या दबावपूर्ण घटना, जैसे-प्राकृतिक
विपदा, गंभीर दुर्घटना इत्यादि के पश्चात् व्यक्ति द्वारा अनुभव किए जाते हैं।
प्रश्न 10. मनोग्रस्ति और बाध्यता के बीच विभेद स्थापित कीजिए।
उत्तर-जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार (Obessive compulsive disorder) से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि वे उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुंचाते हैं। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक
पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार (Obessive behaviour) कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है। किसी व्यवहार को बार-बार करने की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार (Compulsive behaviour) कहलाता है। कई तरह की बाध्यत में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।
प्रश्न 11. अभिघातज उत्तर दबाव विकार को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-अक्सर कई लोक जो किसी प्राकृतिक विपदा (जैसे-सुनामी) में फंस चुके होते हैं या किसी आतंकवादी बम विस्फोट के शिकार हो चुके होते हैं या किसी गंभीर दुर्घटना या युद्ध की स्थितियों को अनुभव कर चुके होते हैं, वे अभिघातज उत्तर दबाव विकार (Post-traumatic stress disorder, PTSD) का अनुभव करते हैं। उत्तर अभिघातज दबाव विकार के लक्षण का कई प्रकार के होते हैं लेकिन उनमें बार-बार किसी स्वप्न का आना, अतीतावलोकन, एकाग्रता में कमी और सांवेगिक शून्यता शामिल हो सकती है।
प्रश्न 12. काय-आलंबिता विकार को संक्षेप में बताइए।
उत्तर-काय-आलंबिता विकार (Somatisation disorder) के रोगियों में कई प्रकार की और बार-बार घटित होनेवाली या लंबे समय तक चलनेवाली शारीरिक शिकायतें होती हैं। ये शिकायतें नाटकीय और बढ़े-चढ़े रूप से प्रस्तुत की जा सकती हैं। इनमें सामान्य शिकायतें हैं-सिरदर्द, थकान, हृदय की धड़कन, बेहोशी का दौरा, उल्टी करना और एलर्जी
इस विकार के रोगी या मानते हैं कि वह बीमार है, अपनी बीमारी का लंबा और विस्तृत ब्यौरा बतात
काफी मात्रा में दवाएँ लेते हैं।
प्रश्न 13. आत्महत्या को किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर-आत्महत्या को निम्नलिखित लक्षणों के प्रति सजग रहकर रोका जा सकता है-
(i) खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन।
(ii) मित्रों, परिवारों और नियमित गतिविधियों से विनिवर्तन।
(iii) उग्र क्रिया व्यवहार, विद्रोही व्यवहार, भाग जाना।
(iv) मद्य एवं मादक द्रव्य सेवन।
(v) व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन आना।
(vi) लगातार ऊब महसूस करना।
(vii) एकाग्रता में कठिनाई।
(viii) आनंददायक गतिविधियों में अभिरुचि का न होना।
प्रश्न 14. द्विध्रुवीय भावदशा विकार को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-इस प्रकार के भावदशा विकार, जिसमें उन्माद और अवसाद बारी-बारी से उपस्थित होते हैं, में कभी-कभी सामान्य भावदशा की अवधि भी आती है। इसे द्विध्रुवीय भावदशा विकार में आत्महत्या के प्रयास का आजीवन खतरा सबसे ज्यादा रहता है। मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के अतिरिक्त खतरे के अन्य कारण व्यक्ति की आत्महत्या करने की संभावना को बताते हैं। इनमें प्रमुख हैं-उम्र, लिंग, नृजातीयता या प्रजाति और हाल में घटित जीवन की गंभीर घटनाएँ। किशोर और युवाओं में आत्महत्या के खतरे उतने ही अधिक हैं जितने 70 वर्ष से ऊपर के लोगों में। लिंग भी प्रभावित करनेवाला एक कारक है अर्थात् स्त्रियों की तुलना पुरुषों में आत्महत्या करने के बारे में सोचने की दर अधिक है। आत्महत्या के प्रति सांस्कृतिक अभिवृत्तियाँ भी आत्महत्या की दर को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, जापान में शर्म और बदनामी की स्थिति से निपटने के लिए आत्महत्या सांस्कृतिक रूप से उचित तरीका है। जिन लोगों में आत्महत्या के प्रति उन्मुखता होती है उनमें नकारात्मक प्रत्याशाएं, निराशा, यथार्थ से हटकर बनाए गए ऊंचे मानकों का होना तथा आत्म-मूल्यांकन में अति-आलोचना करना मुख्य बातें होती हैं।
प्रश्न 15. अवसाद के पूर्वयोगी कारक को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-अवसाद के पूर्वयोगी कारक-मुख्य अवसादी तथा द्विध्रुवीय विकारों में आनुवांशिक विकारों में आनुवांशिक संरचना या आनुवंशिकता खतरे का एक महत्त्वपूर्ण कारण है। उम्र भी इस विकार के खतरे का कारण है। उदारहणार्थ स्त्रियों को प्रारंभिक प्रौढ़ावस्था में अधिक खतरा रहता है जबकि पुरुषों के लिए प्रारंभिक मध्यावस्था में सबसे ज्यादा खतरा होता है। इसी तरह लिंग भी एक महत्त्वपूर्ण कारण होता है जिनकी भूमिका इन विभेदक खतरों के संदर्भ में होती है। उदाहरणार्थ, पुरुषों की तुलना में स्त्रियों में अवसादी विकार से ग्रसित होने की संभावना अधिक
रहती है। अन्य खतरे के कारण, जीवन की नकारात्मक घटनाओं और सामाजिक अवलंब की कमी का अनुभव करता है।
प्रश्न 16. बच्चों के बहिःकरण और आंतरिकीकरण विकारों में क्या अंतर है ?
उत्तर-बहिःकरण विकारों (Externalising disorders) या अनियंत्रित विकारों में वे व्यवहार आते हैं जो विध्वंसकारी, अक्सर आक्रामक और बच्चे के पर्यावरण में जो लोग हैं उनके प्रति विमुखता वाले होते हैं। आंतरिकीकरण विकार (Internalising disorders) या अनियंत्रित समस्याएं व स्थितियाँ होती हैं जिनमें बच्चा अवसाद, दुश्चिंता और अस्वस्थता या कष्ट महसूस ******** जा दसरों को दिखाई नहीं दे सकती है।
प्रश्न 17. विरुद्धक अवज्ञाकारी विकार को संक्षेप में समझाइए। आचारण विकार और समाजविरोधी व्यवहार क्या होते हैं?
उत्तर-विरुद्धक अवज्ञाकारी विकार (Oppositional Defiant disorder, ODD) से ग्रसित बच्चे उम्र के अनुपयुक्त हठ या जिद प्रदर्शित करते हैं तथा चिड़चिड़े, दुराग्रही, अवज्ञाकारी और शत्रुतापूर्ण तरह से व्यवहार करनेवाले होते हैं। ए. डी. एच. डी. के विपरीत ओ. डी. डी. की दर लड़के और लड़कियों में ज्यादा भिन्न नहीं होती। आचरण विकार (Conduct disorder) तथा समाजविरोधी व्यवहार (Antisocial behaviour) उन व्यवहारों और अभिवृत्तियों के लिए
प्रयुक्त होते जो उम्र के उपयुक्त नहीं होते तथा जो परिवार की प्रत्याशाओं, सामाजिक मानकों और
दूसरों के व्यक्तिगत या स्वत्व अधिकारों का उल्लंघन करनेवाले होते हैं। आचरण विकार के विशिष्ट व्यवहारों में ऐसे आक्रामक व्यवहार आते हैं जो जानवरों या मनुष्यों को किसी प्रकार की हानि पहुंचाने वाले या हानि की धमकी देनेवाले हों और ऐसे व्यवहार जो आक्रामक तो नहीं है किन्तु संपत्ति का नुकसान करनेवाले हों। गंभीर रूप से धोखा देना, चोरी करना और नियमों का उल्लंघन करना भी ऐसे व्यवहारों में शामिल होते हैं बच्चे कई तरह के आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं। जैसे-शाब्दिक आक्रामकता (Verbal aggression) (गालियाँ देना, कसम देना), शारीरिक आक्रामकता (Physical aggression) (मारना,झगड़ना), शत्रुतापूर्ण आक्रामकता (Hostile aggression) (दूसरों को चोट पहुंचाने के इरादे से प्रदर्शित आक्रामकता) और अग्रलक्षी आक्रामकता (Proactive aggression) (बिना उकसाने के भी दूसरे लोगों को धमकाना और डराना, उन पर प्रभावी या प्रबल होना)।
प्रश्न 18. आंतरिकीकरण विकार को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-आंतरिकीकरण विकारों में वियोगज दुश्चिता विकार (Separation anxiety disorder) और अवसाद (depression) मुख्यतः होते हैं। वियोगज दुश्चिता विकार (एस. ए. डी.) एक ऐसा आंतरिकीकृत विकार है जो बच्चों में विशिष्ट रूप से होता है। इसका सबसे प्रमुख लक्षण अतिशय दुश्चिंता है, यहाँ तक कि अपने माता-पिता से अलग होने पर बच्चे अतिशय भय का अनुभव करते हैं। इस विकार से ग्रसित बच्चे कमरे में अकेले रहने में, स्कूल अकेले जाने में और नई स्थितियों में प्रवेश से घबराते हैं तथा अपने माता-पिता से छाया की तरह उनके हर काम में चिपके रहते हैं। वियोगज न हो इसके लिए बच्चे चिल्लाना, हंगामा करना, मचलना या आत्महत्या के हावभाव प्रदर्शित करना जैसे व्यवहार कर सकते हैं।
प्रश्न 19. स्वलीन विकारवाले बच्चों की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर-स्वलीन विकार (Autistic disorder) या स्वलीनता इनमें सबसे अधिक पाया जानेवाला विकार होता है। स्वलीन विकारवाले बच्चों को सामाजिक अंत:क्रिया ओर संप्रेषण में कठिनाई होती है, उनकी बहुत सीमित अभिरुचियाँ होती हैं तथा उनमें एक नियमित दिनचर्या की तीव्र इच्छा होती है। सत्तर प्रतिशत के लगभग स्वलीनता से पीड़ित बच्चे मानसिक रूप से मंद होते हैं।
स्वलीनता से ग्रस्त बच्चे दूसरों में मित्रवत् होने में गहन कठिनाई का अनुभव करते हैं। वे सामाजिक व्यवहार प्रारंभ करने में असमर्थ होते हैं तथा अन्य लोगों की भावनाओं के प्रति अनुक्रियाशील प्रतीत नहीं होते हैं। वे अपने अनुभवों या संवेगों को दूसरों के साथ बाँटने में असमर्थ होते हैं। वे संप्रेषण और भाषा की गंभीर असामान्यताएँ प्रदर्शित करते हैं जो काफी समय तक बनी रहती हैं। बहुत से स्वलीन बच्चे कभी भी वाक् (बोली) का विकास नहीं कर पाते हैं और
वे जो कर पाते हैं, उनका वाक्-प्रतिरूप पुनरावर्ती और विसामान्य होता है। स्वलीनता से पीड़िता बच्चे सीमित अभिरुचियाँ प्रदर्शित करते हैं और इनके व्यवहार पुनरावर्ती होते हैं; जैसे वस्तुओं को एक लाइन से लगाना या रूढ शरीर गति, जैसे-शरीर को इधर-उधर हिलानेवाले होते हैं। ये पेशीय गति स्व-उद्दीप्त, जैसे-हाथ से मारना या आत्म-हानिकर जैसे-दीवार से सिर पटकना हो सकते हैं।
प्रश्न 20. क्या विसामान्य व्यवहार का एक दीर्घकालिक प्रतिरूप अपसामान्य समझा जा सकता है ? इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-अपसामान्य का शाब्दिक अर्थ है-“जो सामान्य से परे है” अर्थात् जो स्पष्ट रूप से परिभाषित मानकों या मापदंडों से हटकर है। वे व्यवहार, विचार और संवेग जो सामाजिक मानकों को तोड़ते हैं, अपसामान्य कहे जाते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धान्तकारों के अनुसार, जिन लोगों में कुछ समस्याएं होती हैं उनमें अपसामान्य व्यवहारों की उत्पत्ति सामाजिक संज्ञाओं और भूमिकाओं से प्रभावित होती है। जब लोग समाज के मानकों को तोड़ते हैं तो उन्हें ‘विसामान्य’ और मानसिक रोगी जैसी संज्ञाएँ दी जाती हैं। इस प्रकार की संज्ञाएँ उन लोगों से इतनी अधिक जुड़ जाती हैं कि लोग उन्हें सनकी इत्यादि पुकारने लगते हैं और उन्हें उसी बीमार की तरह क्रिया करने के लिए उकसाते रहते हैं। धीरे-धीरे वह व्यक्ति बीमार की भूमिका स्वीकार कर लेता है तथा अपसामान्य व्यवहार करने लगता है। अतः, विसामान्य व्यवहार का एक दीर्घकालिक प्रतिरूप उपसामान्य जा सकता है।
प्रश्न 21. दुर्भीति विकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-दुर्भीति विकार एक बहुत ही सामान्य दुश्चिता विकार है, जिसमें व्यक्ति अकारण या अयुक्तिक अथवा विवेकहीन डर अनुभर करता है। इसमें व्यक्ति कुछ खास प्रकार की वस्तुओं या परिस्थितियों से डरना सीख लेता है। जैसे, जिस व्यक्ति में मकड़ा से दुर्भीति होता है वह व्यक्ति वहाँ नहीं जा सकता है जहाँ मकड़ा उपस्थित हो। जबकि मकड़ा एक ऐसा जीव है जो व्यक्ति विशेष के लिए खतरा पैदा नहीं करता है। फिर भी व्यक्ति में दुर्भीति उत्पन्न हो जाने पर सामान्य
व्यवहार को विचलित कर देता है। यद्यपि डरा हुआ व्यक्ति यह जानता है कि उसका डर अयुक्तिक है, फिर भी वह उक्त डर से मुक्त नहीं हो पाता है। इसका कारण व्यक्ति का आंतरिक रूप से चिंतित होना होता है। व्यक्ति का यह चिंता किसी खास वस्तु से अनुकूलित होकर संलग्न हो जाता है। उदाहरणार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण दुर्भीतियाँ जैसे बिल्ली से डर एलूरोफोबिया, मकड़ा से डर एरेकनोफोबिया, रात्रि से डर नायक्टोफोबिया तथा आग से डर पायरोफोबिया आदि दुर्भीति के उदाहरण हैं।
प्रश्न 22. एक ध्रुवीय विषाद क्या है ?
उत्तर-एक ध्रुवीय विषाद को मुख्य विषाद भी कहा जाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में उदास मनोदशा, भूख, वजन तथा नींद में कमी तथा क्रिया स्तर (Activity level) में भयंकर क्षुब्धता पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति किसी कार्य में जल्द थकान महसूस करने लगते हैं, उनका आत्म-संप्रत्यय ऋणात्मक (Negative) होता है तथा उनमें आत्म-निंदा की प्रवृति भी अधिक होती है।
               दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
           (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. कायरूप विकार से आपका क्या तात्पर्य है ? विभिन्न कायरूप विकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-कायरूप विकार वे दशाएँ या स्थितियां हैं जहाँ बिना किसी शारीरिक बीमारी के शारीरिक लक्षण प्रदर्शित होते हैं। कार्यरूप विकारों में व्यक्ति को मनोविज्ञानिक कठिनाइयां होती है और वह शिकायत उन शारीरिक लक्षणों की करता है जिसका कोई जैविक कारण नहीं होता। कायरूप विकारों में पीड़ा विकार, कार्य-आलंबित विकारी, परिवर्तन विकार तथा स्वकायदुश्चित लोग सम्मिलित होते हैं।
(i) पीड़ा विकार (Pain disorder) में अति तीव्र और अक्षम करनेवाली पीड़ा बताया जाता है जो या तो बिना किसी अभिक्षेय जैविक लक्षणों के होता है या जितना जैविक लक्षण होना चाहिए उससे कहीं ज्यादा बताया जाता है। व्यक्ति किस प्रकार अपनी पीड़ा को समझता है यह उसके पूरे समायोजन को प्रभावित करता है। कुछ पीड़ा रोगी सक्रिय साधक व्यवहार सीख सकते है अर्थात पीड़ा की अवहेलना करके सक्रिय रह सकते हैं। दूसरे निष्क्रिय साधक व्यवहार प्रयुक्त करते हैं जो घटी हुई सक्रियता और सामाजिक विनिवर्तन को बढ़ावा देता है।
(ii) काय-आलंबिता विकार (Somatisation disorder) के रोगियों में कई प्रकार की और बार-बार घटित होनेवाली या लंबे समय तक चलनेवाली शारीरिक शिकायतें होती हैं। ये शिकायतें नाटकीय और बढ़े-चढ़े रूप से प्रस्तुत की जा सकती हैं। इनमें सामान्य शिकायतें हैं-सिरदर्द, थकान, हृदय की धड़कन, बेहोशी का दौरा, उलटी करना और एलर्जी। इस विकार
के रोगी यह मानते हैं कि वे बीमार का लंबा और विस्तृत ब्यौरा बताते हैं तथा काफी मात्रा में
दवाएं लेते हैं।
(iii) परिवर्तन विकार (Conversion Disorder) के लक्षणों में शरीर के कुछ मूल प्रकायें में से सब में या कुछ अंशों में क्षति बताई जाती है। पक्षाघात, बधिरता या बहरापन और चलने में कठिनाई का होना इसके सामान्य लक्षण होते हैं। यह लक्षण अधिकांशतः किसी दबावपूर्ण अनुभव के बाद घटित होते हैं जो अचानक उत्पन्न हो सकते हैं।
(iv) स्वकायदुश्चिता रोग (Hypochondriasis) का निदान तब किया जाता है जब चिकित्सा आश्वासन, किसी भी शारीरिक लक्षणों का न पाया जाना या बीमारी के न बढ़ने के बावजूद रोगी लगातार यह मानता है कि उसे गंभीर बीमारी है। स्वकायदुश्चिता रोगी को अपने
शरीरिक अंगों की स्थिति के बारे में मनोग्रस्ति ध्यानमग्नता तथा चिंता रहती है तथा वे बराबर
अपने स्वास्थ के लिए आकुल रहते हैं।
प्रश्न 2. लोगों के बीच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है, क्या यह मनोविदलता का सकारात्मक या नकारात्मक लक्षण है ? मनोविदलता के अन्य लक्षणों तथा उप-प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-लोगों के बीच बात करते समय रोगी बारंबार विषय परिवर्तन करता है। यह मनोविदलता का सकारात्मक लक्षण है।
मनोविदलता के लक्षण-मनोविदलता के लक्षण तीन श्रेणियों में समूहित किए जा सकते हैं-
(i) सकारात्मक लक्षण।
(ii) नकारात्मक लक्षण।
(iii) मन:चालित लक्षण।
(i) सकारात्मक लक्षण में व्यक्ति के व्यवहार में ‘विकृत अतिशयता’ तथा ‘विलक्षणता का बढ़ना’ पाया जाता है। भ्रमासिक्त, असंगठित चिंतन एवं भाषा, प्रवर्धित प्रभ्रम तथा अनुपयुक्त भाव मनोविदलता में सबसे अधिक पाए जानेवाले लक्षण हैं।
मनोविदलता से ग्रसित कई, व्यक्तियों में भ्रमासक्ति (Delusions) विकसित हो जाते हैं। भ्रमासक्ति एक झूठी विश्वास है जो अपर्याप्त आधार पर बहुत मजबूती से टिका रहता है। इस पर तार्किक युक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा वास्तविकता में जिसका कोई आधार नहीं होता। मनोविदलता में उत्पीड़न भ्रमासक्ति से ग्रसित लोग यह विश्वास करते हैं कि लोग उनके विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं, उनकी जासूसी कर रहे हैं या उन्हें जानबूझकर उत्पीड़ित किया जा रहा
मनोविदलता में ग्रसित लोगों में संदर्भ भ्रमासक्ति (Delusions of reference) भी हो सकता है
जिसमें वे दूसरों के कार्यों या वस्तुओं और घटनाओं के प्रति विशेष और व्यक्तिगत अर्थ जोड़ देते हैं। अत्यहंमन्यता भ्रमासक्ति (Delusions of grandeur) में व्यक्ति अपने आपको बहुत सारी विशेष शक्तियों से संपन्न मानता है तथा नियंत्रण भ्रमासक्ति (Delusions of conrol) में वे मानते हैं कि उनके विचार, भावनाएं और क्रियाएं दूसरों के द्वारा नियंत्रित की जा रही हैं।
मनोविदलता में व्यक्ति तर्कपूर्ण ढंग से सोच नहीं सकते तथा विचित्र प्रकार से बोलते हैं। यहाँ औपचारिक चिंतन विकार (Formal thought disorder) उनके संप्रेषण को और कठिन बना देता है। उदाहरणार्थ, एक विषय से दूसरे विषय पर तेजी से बदलना जो चिंतन की सामान्य संरचना को गड़बड़ कर देता है। और यह तर्कहीन लगने लगता है (विषय के साहचर्य को खोना,विषय- अवपथन), नए शब्दों या मुहावरों की खोज करना (नव शब्द निर्माण) और एक ही विचार को अनुयुक्त तरह से बार-बार दोहराना संतनन।
मनोविदलता रोगी की विभ्रांति (Haillucination) हो सकती है, अर्थात् बिना किसी बाह्य उद्दीपक के प्रत्यक्षण करना। मनोविदलता में श्रवण विभ्रांति (Auditory hallucination) सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। रोगी ऐसी आवाजें या ध्वनि सुनते हैं जो सीधे रोगी से शब्द, मुहावरे और वाक्य बोलते हैं (द्वितीय-व्यक्ति विभ्रांति) या आपस में रोगी से संबंधित बातें करते हैं
(तृतीय-व्यक्ति विभ्रांति)। इन विभ्रांतियों में अन्य ज्ञानेंद्रियाँ भी शामिल हो सकती हैं, जिनमें स्पर्शी
विभ्रांति (Tactile hallucination) (कई प्रकार की झुनझुनी, जलन), दैहिक विभ्रांति (Somatic hallucination) (शरीर के अंदर कुछ घटित होना, जैसे-पेट में साँप का रेंगना इत्यादि), दृष्टि विभ्रांति (Visual hallucination) (जैसे-लोगों या वस्तुओं की सुस्पष्ट दृष्टि या रंग का अस्पष्ट प्रत्यक्षण), रससंवदी विभ्रांति (Gustatory hallucination) (अर्थात खाने और पीने की वस्तुओं का विचित्र स्वाद) तथा घ्राण विभ्रांति (Olfactory halluncination) (धुएँ और
जहर की गंध) प्रमुख है।
मनोविदलता के रोगी अनुपयुक्त भाव (Inappropriate affect) भी प्रदर्शित करते हैं अर्थात ऐसे संवेग जो स्थिति के अनुरूप न हों।
(ii) नकारात्मक लक्षण (Negative symptom), विकट न्यूनता होते हैं जिनके वाक्-अयोग्यता, विसंगत एवं कुंठित भाव, इच्छाशक्ति का ह्रास और सामाजिक विनिवर्तन सम्मिलित होते हैं। मनोविदलता के रोगियों में अलोगिया (Alogia) या वाक्-अयोग्यता पाई जाती है जिसमें भाषण, विषय तथा बोलने में कमी पाई जाती है। मनोविदलता के कई रोगी दूसरे अधिकांश लोगों की तुलना में कम क्रोध, उदासी, खुशी तथा अन्य भावनाएँ प्रदर्शित करते हैं। इसलिए उनके विसंगत भाव (Blunted affect) होते हैं। कुछ रोगी किसी भी प्रकार का संवेग प्रदर्शित नहीं करते जिसे कुठित
भाव (Flat affect) की स्थिति कहते हैं। मनोविदलता के रोगी इच्छाशक्ति न्यूनता (Aulition) अर्थात् किसी काम को शुरू करने या पूरा करने में असमर्थता तथा उदासीनता प्रदर्शित करते हैं। इस विकार के रोगी सामाजिक रूप से अपने को अलग कर देते हैं तथा अपने विचारों और
कल्पनाओं में पूर्ण से खोए रहते हैं।
(ii) मनःचालित लक्षण-मनोविदलता के रोगी मन:चालित लक्षण (Psycho-motor symptoms) भी प्रदर्शित करते हैं। वे अस्वाभाविक रूप से चलते तथा विचित्र मुख-विकृतियों एवं मुद्राएं प्रदर्शित करते हैं। यह लक्षण अपनी चरम-सीमा को प्राप्त कर सकते हैं जिसे केटाटोनिया (Catatonia) कहते हैं। कैटाटोनिया जडिमा (Catatonia rigidity) अर्थात् घंटों तक एक ही मुद्रा में रहना प्रदिर्शत करते हैं। दूसरे अन्य रोगी केटाटोनिक संस्थिति (Catatonia posturing) अर्थात् विचित्र उटपटांग मुद्राओं को लंबे समय तक प्रदर्शित करते हैं।
मनोविदलता के उप प्रकार
डी. एस.एम. IV टी.आर. (DSM-IV-TR) के अनुसार,
मनोविदलता के उप-प्रकार तथा उनकी विशेषताएं निम्न हैं-
(i) व्यामोहाभ प्रकार (Paranoid type): श्रवण विभ्राति और भ्रमासक्ति में ध्यानमग्नता कोई अनुपयुक्त भाव या विसंगठित वाक् (भाषा) या व्यवहार नहीं।
(ii) विसंगठित प्रकार (Disorganised type) :विसंगठित वाक् (भाषा) और व्यवहार; अनुपयुक्त या कुंठित भावः कोई केटाटानिक लक्षण नहीं।
(ii) केटाटोनिक प्रकार (Catatonic type) : चरम पेशीय गतिहीनता; चरम पेशीय निष्क्रियता; चरम नकरावृति (अनुदेशों के प्रति प्रतिरोध) या मूकता (बोलने से मना करना)।
(iv) अविभेदित प्रकार (Undifferentiated type): किसी भी उप प्रकार में सम्मिलित होने योग्य नहीं परन्तु लक्षण मापदंड के अनुकूल हों।
(v) अवशिष्ट प्रकार (Residual type) : कम-से-कम मनोविदलता के एक प्रसगिक वृत्त का अनुभव किया हो; कोई सकारात्मक लक्षण नहीं किंतु नकारात्मक लक्षण प्रदर्शित करता हो।
प्रश्न 3. विच्छेदन से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विचारों और संवेगों के बीच संयोजन का हो जाना ही विच्छेदन कहलाता है। विच्छेदन में अवास्तविकता की भावना, मनमुटाव या विरक्ति, व्यक्तित्व-लोप और कभी-कभी अस्मिता-लोप या परिवर्तन भी पाया जाता है। चेतना में अचानक और अस्थायी परिवर्तन जो कष्टकर अनुभवों को रोक देता है, विच्छेदी विकार (Dissociative disorder) की मुख्य विशेषता होती है।
विच्छेद के विभिन्न रूप इस प्रकार से हैं :
(1) विच्छेदी स्मृतिलोप (Dissociative amnesia) में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात आंगिक कारण (जैसे-सिर में चोट लगना) नहीं होता है। कुछ लोग को अपने अतीत के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता है। दूसरे लोग कुछ विशिष्ट घटनाएं, लोग, स्थान या वस्तुएँ याद नहीं कर पाते, जबकि दूसरी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति बिल्कुल ठीक होती है। यह विकार अक्सर अत्यधिक दबाव में संबंधित होता है।
(ii) विच्छेदी आत्मविस्मृति (Dissociative fugue) का एक आवश्यक लक्षण है-घर और कार्य स्थान से अप्रत्याशित यात्रा, एक नई पहचान की अवधारणा तथा पुरानी पहचान को याद न कर पाना। आत्मविस्मृति सामान्यता समाप्त हो जाती है। जब व्यक्ति अचानक जागता है और आत्मविस्मृति की अवधि में जो कुछ घटित हुआ उसकी कोई स्मृति नहीं रहती।
(ii) विच्छेदी पहचान विकार (Dissociative identity disorder) को अक्सर बहु व्यक्तित्व वाला कहा जाता है। यह सभी विच्छेदी विकारों में सबसे अधिक नाटकीय होती है।
अक्सर यह बाल्यावस्था के अभिघातज अनुभवों से संबंधित से होता है। इस विकार में व्यक्ति प्रत्यावर्ती व्यक्तियों की कल्पना करता है जो आपस में एक-दूसरे के प्रति जानकारी रख सकते हैं या नहीं रख सकते हैं।
(iv) व्यक्तित्व लोप (Depersonalisation) में एक स्वप्न जैसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति को स्व और वास्तविकता दोनों से अलग होने की अनुभूति होती है। व्यक्तित्व-लोप में आत्म-प्रत्यक्षण में परिवर्तन होता है और व्यक्ति का वास्तविकता बोध अस्थायी स्तर पर लुप्त हो जाता है या परिवर्तित हो जाता है।
प्रश्न 4. दुर्भीति क्या है ? यदि किसी को साॅंप से अधिक भय हो तो क्या वह सामान्य दुर्भाति दोषपूर्ण या गलत अधिगम के कारण हो सकता है ? यह दुर्भीति किस प्रकार विकसित हुई होगी ? विश्लेषण कीजिए।
उत्तर– दुर्भीति में लोगों को किसी विशिष्ट वस्तु, लोक या स्थितियों के प्रति अविवेकी या अतर्क भय होता है।
 दुर्भीति बहुधा धीरे-धीरे या सामान्यीकृत दुश्चिता विकास के उत्पन्न होती है। यदि किसी को साँप से अधिक भय हो तो यह सामान्य दुर्भीति दोषपूर्ण के कारण हो सकता है। यह एक प्रकार की विशिष्ट दुर्भीति होती है। इसमें अविवेकी या अतर्क भय जैसे किसी विशिष्ट प्रकार के जानवर के प्रति तीव्र भय का होना या किसी बंद जगह में होने के भय को होना सम्मिलित होते हैं। यह दुर्भीति दुश्चिता विकार से उत्पन्न हुई होगी।
प्रश्न 5. दुश्चिता को ‘पेट में तितलियों का होना’ जैसी अनुभूति कहा जाता है। किस अवस्था में दुश्चिता विकार का रूप ले लेती है ? इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-हमें दुश्चिता का अनुभव तब होता है जब हम किसी परीक्षा की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं या किसी दंत चिकित्सक के पास जाना होता है या कोई एकल प्रदर्शन प्रस्तुत करना होता है यह सामान्य है, जिसकी हमसे प्रत्याशा की जाती है। यहाँ तक कि इसमें में अपना कार्य अच्छी तरह करने की अभिप्रेरणा भी मिलती है। इसके विपरीत, जब उच्च स्तरीय दुश्चिता जो कष्टप्रद होती है तथा हमारे सामान्य क्रियाकलापों में बाधा पहुंचती हैं तब यह मनोवैज्ञानिक विकारों की
सबसे सामान्य श्रेणी, दुश्चिता विकार की उपस्थिति की संकेत है।
प्रत्येक व्यक्ति को आकुलता और भय होते हैं सामान्यत: दुश्चिता (Anxiety) शब्द को भय और आशंका की विसृत, अस्पष्ट और अप्रीतिकर भावना के रूप में परिभाषित किया जाता है। दुश्चितित व्यक्ति में निम्न लक्षणों का सम्मिलित रूप रहता है, यथा, हृदय गति से तेज होना, साँस की कमी होना, दस्त होना, भूख न लगना, बेहोशी, घुमनी या चक्कर आना, पसीना आना निद्रा की कमी, बार-बार मूत्र त्याग करना तथा कँपकँपी आना। दुश्चिता विकार कई प्रकार के होते हैं-
(i) सामान्यीकृत दुश्चिता विकार (Generalised anxiety disorder) होता है जिसमें लंबे समय तक चलनेवाले, अस्पष्ट, अवर्णनीय तथा तीव्र भय होते हैं जो किसी भी विशिष्ट वस्तु के प्रति जुड़े हुए नहीं होते हैं। इनके लक्षणों में भविष्य के प्रति आकुलता एवं आशंका तथा अत्यधिक सतर्कता, यहाँ तक कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार के खतरे की छानबीन, शामिल होती है। इसमें पेशीय तनाव भी होता है जिसके कारण व्यक्ति विश्राम नहीं कर पाता, बेचैन रहता है तथा स्पष्ट
रूप से कमजोर और तनावग्रस्त दिखाई देता है।
(ii) आतंक विकार (Panic disorder) में दुश्चिता के दौरे लगातार पड़ते हैं और व्यक्ति तीव्र त्रास या दहशत का अनुभव करता है। आतंक आक्रमण का तात्पर्य हुआ कि जब भी कभी विशेष उद्दीपक से संबंधित विचार उत्पन्न हों तो अचानक तीव्र दुश्चिंता अपनी उच्चतम सीमा पर पहुॅंच जाए। इस तरह के विचार अकल्पित तरह से उत्पन्न होते हैं इसके नैदानिक लक्षणे में सॅंस की कमी, घुमनी या चक्कर आना, कॅंपकॅंपी, दिल धड़कना, दम घुटना, जी मिचलाना, छाती में दर्द या बेचैनी-सनकी होने का भय, नियंत्रण खोना या मरने का एहसास सम्मिलित होते है।
प्रश्न 6. उन मनोवैज्ञानिक मॉडलों का वर्णन कीजिए जो मानसिक विकारों के मनोवैज्ञानिक कारणों को बताते हैं।
उत्तर-मनोवैज्ञानिक मॉडल के अंतर्गत मनोगतिक, व्यवहारपरक, संज्ञानात्मक तथा मानवतावादी-अस्तित्वपरक मॉडल सम्मिलित है।
(i) आधुनिक मनोवैज्ञानिक मौडल में मनोगतिक मॉडल (Psychodynamic model) यह सबसे प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध है। मनोगतिक सिद्धांतवादियों का विश्वास है कि व्यवहार चाई सामान्य हो या आसामान्य वह व्यक्ति के अंदर की मनोवैज्ञानिक शक्तियों के द्वारा निर्धारित होता है, जिनके प्रति वह गत्यात्मक कहलाती है, अर्थात् वे एक-दूसरे से अंत:क्रिया करती है तथा उनकी यह अंत:क्रिया व्यवहार, विचार और संवेगों को निर्धारित करती है। इन शक्तियों के बीच द्वंद्व के
परिणामस्वरूप फ्रॉयड (Freud) द्वारा प्रतिपादित किया गया था जिनका विश्वास था कि तीन केंद्रीय शक्तियाँ व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं-मूल प्रवृतिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेग (इदम् या इड) तार्किक चिंतन (अहम्) तथा नैतिक मानक (पराहम्)। फ्रॉयड के अनुसार अपसामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होनेवाले मानसिक द्वंद्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से होता है।
(ii) एक और मॉडल जो मनोवैज्ञानिक कारणों की भूमिका पर जोर देता है वह व्यवहारात्मक मॉडल (Behavioral model) है। यह मॉडल बताता है कि सामान्य और अपसामान्य दोनों व्यवहार अधिगत होते हैं। यह मॉडल उन व्यवहारों पर ध्यान देता है। जो अनुबंधन (Conditioning) के कारण सीखे गए हैं तथा इसका उद्देश्य होता है कि जो कुछ सीखा गया है। उसे अनधिगत या भुलाया जा सकता है। अधिगम प्राचीन अनुबंधन (कालिक साहचर्य जसमें दो घटनाएँ बार-बार
एक दूसरे के साथ-साथ घटित होती है), क्रियाप्रसूत अनुबंधन (जिसमें व्यवहार किसी पुरस्कार से संबंधित (जिसमें व्यवहार किसी पुरस्कार से संबंधित किया जाता है) तथा सामाजिक अधिगम (दूसरे के व्यवहारों का अनुकरण करके सीखना) से हो सकता है। यह तीन प्रकार के अनुबंधन सभी प्रकार के व्यवहार, अनुकूली या दुरनुकूलक के लिए उत्तरदायी हैं।
(iii) सामाजिक-सांस्कृतिक मॉडल (Socio-cultural model) के अनुसार, सामाजिक और सांस्कृतिक शक्तियाँ जो व्यक्तियों को प्रभावित करती हैं, इनके संदर्भ में उपसामान्य व्यवहार को ज्यादा अच्छे ढंग से समझा जा सकता है। चूॅंकि व्यवहार सामाजिक शक्तियों के द्वारा ही विकसित होता है अत: ऐसे कारक जैसे कि परिवार संरचना और संप्रेषण, सामाजिक तंत्र, सामाजिक दशाएं तथा सामाजिक नामपत्र और भूमिकाएँ अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं। ऐसा देखा गया है कि कुछ पारिवारिक व्यवस्थाओं में व्यक्तियों में उपसामान्य व्यवहार उत्पन्न होने की संभावना अधिक होती है।कुछ परिवारों में ऐसी जालबद्ध संरचना होती है जिसमें परिवार के सदस्य एक-दूसरे की गतिविधियों, विचारों और भावनाओं में कुछ ज्यादा ही अंतनिहित होते हैं। इस तरह के परिवारों के बच्चों को जीवन में स्वावलंबी होने में कठिनाई आ सकती है। इससे भी बड़े स्तर का सामाजिक
तंत्र हो सकता है जिसमें व्यक्ति के सामाजिक और व्यावसायिक संबंध सम्मिलित होते हैं। कई अध्ययनों से यह पता नहीं होता है अर्थात गहन और संतुष्टिदायक अंतर्वैयक्तिक संबंध जीवन में नहीं प्राप्त होता, वे उन लोगों की अपेक्षा अधिक और लंबे समय तक अवसादग्रस्त हो सकते हैं, जिनके अच्छे मित्रतापूर्ण संबंध होते हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक सिद्धांतकारों के अनुसार, जिन लोगों में कुछ समस्याएँ होती हैं उनमें अपसामान्य व्यवहारों की उत्पति संज्ञाओं और भूमिकाओं से प्रभावित होता है। जब लोग समाज के मानकों को तोड़ते हैं तो उन्हें ‘विसामान्य’ और ‘मानसिक रोगी’ जैसी संज्ञाएँ दी जाती हैं। इस प्रकार की संज्ञाएं इतनी ज्यादा उन लोगों से जुड़ जाती हैं कि लोग उन्हें ‘सनकी’ इत्यादि पुकारने लगते हैं और इन्हें बीमार की तरह से क्रिया करने के लिए उकसाते रहते हैं। धीरे-धीरे वह व्यक्ति बीमार की भूमिका स्वीकार कर लेता है तथा अपसामान्य व्यवहार करने लगता है।
(iv) इन मॉडलों के अतिरिक्त, व्यवहार की एक बहुमान्य व्याख्या रोगोन्मुखता-दबाव मॉडल
(Diathesistress model) द्वारा की गई है। इस मॉडल के अनुसार, जब कोई रोगोन्मुखता (किसी विकार के लिए जैविक पूर्ववृत्ति) किसी दबावपूर्ण स्थिति के कारण सामने आ जाती है तब मनोवैज्ञानिक विकार उत्पन्न होते हैं। दूसरा घटक हैं। पहला घटक रोगोन्मुखता या कुछ जैविक विपथन जो वंशगत हो सकते हैं। दूसरा घटक यह है कि रोगोन्मुखता के कारण किसी मनोवैज्ञानिक विकार के प्रति दोषपूर्णता उत्पन्न हो सकती है, जिसका तात्पर्य यह हुआ कि व्यक्ति उस विकार के विकास के लिए ‘पूर्ववृत्त’ या ‘खतरे में रहनेवाले व्यक्ति को इस तरह के दबावकारकों का सामना करना पड़ता है तो उनकी यह पूर्ववृत्ति वास्तव में विकार को जन्म दे सकती है। इस मॉडल का कोई विकारों, जैसे दुश्चिंता, अवसाद और मनोविदलता पर अनुप्रयोग किया गया है।
प्रश्न 7. कायरूप तथा विच्छेदी विकारों के प्रमुख अभिलक्षणों को लिखिए।
उत्तर-कायरूप विकारों के अभिलक्षण :
(i) स्वकायदुश्चिता रोग-चिकित्सक के द्वारा जाँच तथा किसी भी बीमारी के लक्षण न होने या विकार के न होने के आश्वासन के बावजूद महत्त्वहीन लक्षणों को व्यक्ति द्वारा गंभीर बीमारी समझा जाना।
(ii) काय-आलंबिता- व्यक्ति अस्पष्ट और बार-बार घटित होनेवाले तथा बिना किसी आंगिक कारण के शारीरिक लक्षण जैसे पीड़ा, अम्लता इत्यादि को प्रदर्शित करता है।
(iii) परिवर्तन-व्यक्ति संवेदी या पेशीय प्रकार्यों (जैसे-पक्षाघात, अंधापन इत्यादि) में क्षति या हानि प्रदर्शित करता है जिसका कोई शारीरिक कारण नहीं होता किन्तु किसी दबाव या मनोवैज्ञानिक समस्याओं के प्रति व्यक्ति की अनुक्रिया के कारण हो सकता है।
2. विच्छेदी विकारों के अभिलक्षण :
(i) विच्छेदी स्मृतिलोप-व्यक्ति अपनी महत्त्वपूर्ण, व्यक्तिगत सूचनाएँ, जो अक्सर दबावपूर्ण और अभिघातज सूचना से संबंधित हो सकती हैं, का पुन:स्मरण करने में असमर्थ होता है। विस्मण
की मात्रा सामान्य से परे होती है।
(ii) विच्छेदी आत्मविस्मृति-व्यक्ति एक विशिष्ट विकार से ग्रसित होता है जिसमें स्मृतिलोप और दबावपूर्ण पर्यावरण से भाग जाना दोनों का मेल होता है।
(iii) विच्छेदी पहचान (बहु-व्यक्तित्व)-व्यक्ति दो या अधिक, भिन्न और वैषम्यात्मक,व्यक्तित्व का प्रदर्शित करता है जो अक्सर शारीरिक दुव्यवहार के इतिहास से जुड़ा होता है।
प्रश्न 8. विभिन्न स्तर के मानसिक मंदनवाले व्यक्तियों के अभिलक्षण को एक तालिका द्वारा समझाइए।
उत्तर– तालिका विभिन्न स्तर के मानसिक मंदनवाले व्यक्तियों के अभिलक्षण
प्रश्न 9. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए :
(i) मद्यसेवन एवं निर्भरता
(ii) हेरोइन दुरुपयोग एवं निर्भरता
(iii) कोकीन दुरुपयोग एवं निर्भरता
उत्तर-(i) मद्यसेवन एवं निर्भरता-जो लोग मद्य या शराब का दुरुपयोग करते हैं वे काफी मात्रा में शराब का सेवन करने के लिए इस पर निर्भर रहते हैं। धीरे-धीरे शराब पीना उनके सामाजिक व्यवहार तथा सोचने और काम करने की क्षमता को प्रभावित करने लगता है। कई लोगों में शराब का दुरुपयोग उस पर निर्भरता की सीमा तक पहुँच जाता है। इसका तात्पर्य हुआ कि उनका शरीर शराब में सहन करने की क्षमता विकसित कर लेता है तथा उन्हें वही प्रभाव पाने के लिए ज्यादा मात्रा में शराब पीने पड़ती है। जब वे शराब पीना बंद कर देते हैं तो उन्हें विनिवर्तन अनुक्रियाओं का अनुभव होता है। मद्यव्यसनता करोड़ों परिवारों, सामाजिक संबंधों और जीविकाओं को बर्बाद कर देती है। शराब पीकर गाड़ी चलानेवाले कई सड़क दुर्घटनाओं के जिम्मेदार होते हैं। मद्यव्यसनिता से ग्रसित लोगों के बच्चों पर भी इसका गंभीर प्रभाव पड़ता है। इन बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याओं की उच्च दर पाई जाती है, विशेषकर दुश्चिता, अवसाद, दुर्मीता और मादक द्रव्यों के सेवन संबद्ध विकार। अधिक शराब पीना शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से खराब कर सकता है।
(ii) हेरोइन दुरुपयोग एवं निर्भरता-हेरोइन का दुरुपयोग सामाजिक तथा व्यावसायिक क्रियाकलापों में महत्त्वपूर्ण ढंग से बाधा पहुंचाता है। अधिकांश दुरुपयोग करनेवाले हेरोइन पर निर्भरता विकसित कर लेते हैं, इसी के इर्द-गिर्द अपना जीवन केंद्रित कर लेते हैं इसके लिए सहिष्णुता बना लेते हैं और जब वे इसका सेवन बंद कर देते हैं तो विनिवर्तन प्रतिक्रिया का अनुभव करते हैं। हेरोइन दुरुपयोग का सबसे प्रत्यक्ष खतरा इसकी मात्रा का सेवन है जो मस्तिष्क में श्वसन केंद्रों को धीमा कर देती है और कई मामलों में मृत्यु का कारण बनती है।
(iii) कोकीन दुरुपयोग एवं निर्भरता-कोकीन का लगातार उपयोग एक ऐसे दुरुपयोग प्रतिरूप को बनाता है जिसमें व्यक्ति पूरे दिन नशे की हालत में रह सकता है तथा अपने कार्य स्थान और सामाजिक संबंधों में खराब ढंग से व्यवहार कर सकते हैं। यह अल्पकालिक स्मृति तथा अवधान में भी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। निर्भरता बढ़ जाती है जिससे कोकीन व्यक्ति के जीवन पर हावी हो जाता है, इच्छित प्रभाव के लिए अधिक मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है और इसका सेवन बंद करने से व्यक्ति अवसाद, थकावट, निद्रा-संबंधित समस्या, उत्तेजनशीलता और दुश्चिता का अनुभव करता है। मनोवैज्ञानिक क्रियाकलापों और शारीरिक क्षेम या कल्याण पर इसका खतरनाक प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 10. मद्य के प्रभावों को लिखिए।
उत्तर-मद्य के प्रभाव-
(i) सभी ऐल्कोहॉल पेय पदार्थों में एथाइल एल्कोहॉल होता है।
(ii) यह द्रव्य रक्त में अवशोषित होकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक जाता है (मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु) जहाँ यह क्रियाशीलता को मंद करता है।
(iii) एथाइल एल्कोहॉल मस्तिष्क के उन हिस्सों को सुस्त करता जो निर्णय अवरोध को नियंत्रित करते हैं; लोग ज्यादा बातूनी और मैत्रीपूर्ण हो जाते हैं और वे अधिक आत्मविश्वास तथा खुशी का अनुभव करते हैं।
(iv) जैसे-जैसे ऐल्कोहॉल अवशोषित होता है, यह मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, शराब पीनेवाले व्यक्ति ठीक से निर्णय नहीं कर पाते, बोली कम स्पष्ट और कम सावधानी वाली हो जाती है, स्मृति विसामान्य होने लगती है; बहुत लोग संवेगात्मक या भावुक, उग्र और आक्रामक हो जाते हैं।
(v) पेशीय कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं उदाहरणार्थ, चलते समय लोग अस्थिर हो जाते हैं तथा सामान्य कार्य करना में भी अकुशल हो जाते हैं; दृष्टि धुंधली हो जाती है और सुनने में उन्हें कठिनाई होती है;उन्हें वाहन चलाने या साधारण-सी समस्या का समाधान करने में भी कठिनाई
होती है।
प्रश्न 11, “चिकित्सक व्यक्ति के शारीरिक लक्षणों को देखकर बीमारी का निदान करते हैं।” मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-मनोवैज्ञानिक विकार भी अन्य बीमारियों की तरह होते हैं जो कि अनुकूलन की असफलता के कारण होती है। मनोवैज्ञानिक विकार किसी भी असामान्य बात की तरह हमारे लिए असुविधा उत्पन्न कर सकता है और भयभीत भी कर सकता है। मनोवैज्ञानिक विकारों के बारे में लोगों के अस्पष्ट बिचार हैं जो अंधविश्वास, अज्ञान और भय के तत्त्वों पर आधान्तिक होते हैं। सामान्यतः भी माना जाता है कि मनोवैज्ञानिक विकार कुछ शर्मनाक पहलू है तथा मानसिक रोगों पर लगे कलंक के कारण लोग मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेने में हिचकिचाते हैं क्योंकि
अपनी समस्याओं को वे लज्जास्पद समझते हैं। परन्तु मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान किया जा सकता है।
अतिप्राकृत दृष्टिकोण के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार अलौकिक और जादुई शक्तियों जैसे-बुरी आत्माएँ या शैतान के कारण इनका निदान आज भी झाड़-फूंक और प्रार्थना द्वारा किया जाता है। जैविक और आंगिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक विकार शरीर और मस्तिष्क के उचित प्रकार से काम नहीं करने के कारण होती है तथा कई प्रकार के विकारों को दोषपूर्ण जैविक प्रक्रियाओं को ठीक करके दूर किया जा सकता है जिसका परिणाम समुन्नत प्रकार्यों में होती है। मनोवैज्ञानिक उपागम के अनुसार मनोवैज्ञानिक समस्याएं व्यक्ति के विचारों, भावनाओं तथा संसार
को देखने के नजरिए में अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है। भूत-विद्या और अंधविश्वासों के अनुसार विकारों में ग्रसित व्यक्ति में दुष्ट आत्माएं होती हैं और मध्य युग में उनका धर्मशास्त्रीय उपचार पर बल दिया जाता था। पुनर्जागरण काल में मानसिक विकारों का निदान के लिए चिकित्सा उपचार पर जोर दिया जाता था। परन्तु आज वैज्ञानिक युग में मनोवैज्ञानिक विकारों के प्रति वैज्ञानिक अभिवृति में वृद्धि हुई है। आज मनोवैज्ञानिक विकारों में ग्रसित व्यक्तियों के प्रति करुण या सहानुभूति की भावना में वृद्धि हुई है तथा मनोवैज्ञानिक विकारों का निदान मनोवैज्ञानिक व्यवाय द्वारा तथा उपयुक्त देख-रेख द्वारा लोगों एवं विशेषकर मनोवैज्ञानिक द्वारा किया जाता है।

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