bihar board 12 class biology | पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन
bihar board 12 class biology | पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन
पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन
[SEXUAL REPRODUCTION IN FLOWERING PLANTS]
महत्त्वपूर्ण तथ्य
• परागकण नर युग्मक जनन पीढ़ी (जनन) का प्रतिनिधित्व करते हैं। परागकणों में दो सतही भित्ति होती है जो बाहर बाह्यचोल तथा अंदर की ओर अंतश्चोल कहलाती है।
• स्त्रीकेसर में तीन अंग होते हैं-वर्तिकान, वर्तिका तथा अण्डाशय।
• परागण एक प्रक्रम है, जिसमें परागकण परागकोश से वर्तिकार तक स्थानांतरित होते हैं। परागण एजेंट या तो अजीवीत होते हैं या फिर जीवीय होते हैं।
• पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण के अंतर्गत वे सभी घटनाएँ शामिल होती है। जो वर्तिकान पर परागकण के अवनमन से शुरू होकर भ्रूणकोश की परागनली में प्रवेश या पराग के संदमन तक की क्रिया होती है।
• एक विशिष्ट पुंकेसर दो भागों में विभक्त रहता है-इसमें लंबा एवं पतला डंठल तंतु कहलाता है तथा अंतिम सिरा सामान्यतः द्विपालिक संरचना परागकोश कहलाता है।
• जब एक परागकोश अपरिपक्व होता है, तब घने सुसंबद्ध सजातीय कोशिकाओं का समूह जिसे बीजाणुजन ऊत्तक कहते हैं।
• एक पराग मातृकोशिका से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को लघुबीजाणुधानी कहते हैं।
• लघुबीजाणु रचना के समय चार कोशिकाओं के समूह में व्यवस्थित होते हैं उन्हें लघुबीजाणु चतुष्क कहते हैं।
• परागकण में सुस्पष्ट रूप से दो परतों वाली भित्ति होती है। कठोर बाहरी भित्ति को बाह्यचोल कहते हैं। परागकण की आंतरिक भित्ति को अंत:चोल कहा जाता है।
• अपरा से उत्पन्न होने वाली दीर्घबीजाणुधानी सामान्यत: बीजांड कहलाती है। बीजांड एक छोटी-सी संरचना है जो एक वृत्त, जिसे बीजांडवृत्त कहते हैं, द्वारा अपरा से जुड़ी होती है।
• गुरूबीजाणु मातृकोशिकाओं से गुरूबीजाणुओं की रचना के प्रक्रम को गुरूबीजाणुजनन कहते हैं।
• अण्डाशय की दीवार, फल की दीवार के रूप में विकसित होती है जिसे फल भित्ति कहते हैं।
• कुछेक प्रजातियों में फल की रचना में पुष्पासन भी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। इस प्रकार के फलों कोआभासी फल कहते हैं। अधिकतर फल केवल अण्डाशय से विकसित होते हैं और उन्हें वास्तविक फल कहते हैं। कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी हैं जिनमें बिना निषेचन के फल विकसित होते हैं, उन्हें अनिषेकजनित फल कहते हैं।
• एक बीज में एक से अधिक भ्रूण की उपस्थिति को बहुभ्रूणता कहते हैं।
NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास (Exercises)
1. एक आवृत्तबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ; जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद्का विकास होता है?
उत्तर-पुष्प में नर एवं मादा जनन संरचनाएँ-पुमंग तथा जायांग विभेदित एवं विकसित रहती हैं।
पुमंग पुष्प का नर भाग होता है। इसमें पुंकेसर (stamens)आते हैं। प्रत्येक पुंकेश्वर में परागकोश (anthers) होते हैं। प्रत्येक परागकोश के अंदर परागकण (Pollen grains) होते हैं जो पराग थैलों में स्थित नर युग्मक होते हैं।
जायांग, पुष्प का मादा भाग होता है। इस चक्र के प्रत्येक सदस्य को स्त्रीकेसर (pistil) कहते हैं। प्रत्येक स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं-ऊपरी चपटा वर्तिकाग्र (stigma), एक मध्यम लम्बा सिलिंडराकार वर्तिका (style) तथा एक निचला फूला भा अण्डाशय (ovary)।
चित्र : पुष्प के एल. एस. का आरेखीय निरूपण
2. लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अंतर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन संपन्न होता है? इन दोनों घटनाओं के अंत में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताएँ।
उत्तर-बीजाणुजनन ऊत्तक की प्रत्येक कोशिका एक लघुबीजाणु चतुष्टय की वृद्धि करने में सक्षम होती है। प्रत्येक कोशिका एक सक्षम पराग मातृकोशिका होती है। एक पराग मातृकोशिका से अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा लघुबीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को लघुबीजाणुधानी कहते हैं। प्रत्येक लघुबीजाणुधानी के अंदर कई हजार लघुबीजाणु और परागकण निर्मित होते हैं, परागकण परागकोश के स्फुटन मुक्त होते हैं।
अपरा से उत्पन्न होने वाली दीर्घबीजाणुधानी को सामान्यतः गुरुबीजाणुधानी (बीजाण्ड) कहते हैं। बीजांड एक छोटी-सी संरचना है जो एक वृत या डंठल, जिसे बीजांडवृत कहते हैं, द्वारा अपरा से जुड़ी होती है। गुरूबीजाणुधानी मातृकोशिका अर्द्धसूत्री विभाजन से गुजरती है। अर्द्धसूत्रीविभाजन के परिणामस्वरूप चार गुरुबीजाणुओं का उत्पादन होता है।
3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें-परागकण, बीजाणुजन ऊत्तक, लघुबीजाणु चतुष्क, पराग मातृकोशिका, नर युग्मक।
उत्तर-सही विकासीय क्रम इस प्रकार है-(i)बीजाणुजन ऊत्तक, (ii) लघुबीजाणु चतुष्क, (iii) पराग मातृकोशिका, (iv) परागकण, (v) नर युग्मक।
4. एक प्रारूपी आवृत्तबीजी बीजांड के भागों को दिखाते हुए स्पष्ट एवं साफ-सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर-
चित्र : बीजांड के अंग-एक व्यापक गुरुबीजाणु मातृकोशिका,
एक डीयाड तथा एक गुरूबीजाणु का ट्रेटाड (चतुष्टक) प्रदर्शित है।
5. आप मादा युग्मकोद्भिद् के एक बीजाणुज विकास से क्या समझते हैं?
उत्तर-अधिकांश पुष्पी पादपों में गुरूबीजाणुओं में से एक कार्यशील होता है जबकि अन्य तीन अपविकसित (अपभ्रष्ट ) हो जाते हैं। केवल कार्यशील गुरूबीजाणु स्त्री (मादा) युग्मकोद्भिद् (भ्रूणकोश ) के रूप में विकसित होता है। एक अकेले गुरूबीजाणु से भ्रूणकोश के बनने की विधि को एक बीजाणुज विकास कहा जाता है।
6. एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद् के 7-कोशीय, 8-न्युक्लियेट (केन्द्रक) प्रकृति की व्याख्या करें।
उत्तर-एक प्ररूपी आवृत्तबीजी भ्रूणकोश परिपक्व होने पर 8-न्युक्लिकृत वस्तुत: 7-कोशिकीय होता है।
चित्र : भ्रूणकोश के 1, 2, 4 तथा 8 न्युक्लियेट चरण तथा एक परिपक्व भ्रूणकोश
7. उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है? क्या अनुन्मीलिय पुष्पों में परपरागण संपन्न होता है? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें।
उत्तर-कुछ पादप जैसे कि वायोला (सामान्य पानसी), ओक्जेलीस तथा कोमेनीना (कनकौआ) दो प्रकार के पुष्प पैदा करते हैं-उन्मील परागणी पुष्प, अन्य प्रजाति
के पुष्यों के समान ही होते हैं, जिसके परागकोश एवं वर्तिकाग्र अनावृत होते हैं तथा अनुन्मील्य परागणी पुष्प कमी भी अनावृत्त नहीं होते हैं। इस प्रकार के पुष्पों में, परागकोश एवं वर्तिकान एक-दूसरे के बिल्कुल नजदीक स्थित होते हैं। जब पुष्प कलिका में परागकोश स्फुटित होते हैं। तब परागकण वर्तिकान के संपर्क में आकर परागण को प्रभावित करते हैं। अत: अनुम्मील्य परागणी पुष्प हमेशा स्वयुग्मक होते हैं क्योंकि यहाँ पर वर्तिकान पट क्रास या परपरागण
अवतरण के अवसर नहीं होते हैं।
चित्र : अनुन्मील्य परागणी पुष्प
8. पुष्पों द्वारा स्वपरागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें।
उत्तर-पुष्पीय पादपों ने बहुत सारे ऐसे साधन या उपाय विकसित कर लिए हैं जो स्वपरागण को हतोत्साहित एवं परपरागण को प्रोत्साहित करते हैं।
स्वपरागण को रोकने के लिए एक अन्य साधन है, एकलिंगीय पुष्पों का उत्पादन। अगर एक ही पौधे पर नर या मादा दोनों ही पुष्प उपलब्ध हों जैसे-एरंड, मक्का, यह स्वपरागण को रोकता है। स्वपरागण रोकने का एक उपाय है स्व-असामंजस्या यह एक वंशानुगत प्रक्रम है। उसी पुष्प या उसी पादप के अन्य पुष्प से जहाँ बीजांड के निषेचन को पराग अंकुरण या स्त्रीकेसर में परागनलिका वृद्धि को रोका जाता है।
9. स्व-अयोग्यता क्या है? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्वपरागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुंच पाती है?
उत्तर-परागण बिल्कुल सही प्रकार के परागकणों का स्थानांतरण सुनिश्चित नहीं कराता है। प्राय: गलत प्रकार के पराग भी उसी वर्तिकान पर आ पड़ते हैं। स्त्रीकेसर में यह सक्षमता होती है कि वह पराग को पहचान सके कि वह उसी वर्ग के सही प्रकार का पराग र सुयोग्य ) है या फिर गलत प्रकार का (अयोग्य) है। यदि पराग सही प्रकार का होता है तो स्त्रीकेसर उसी स्वीकार कर लेता है तथा परागण-पश्च घटना के लिए प्रोत्साहित करता है जो कि निषेचन की ओर बढ़ता है।
यदि पराग गलत प्रकार का होता है तो स्त्रीकेसर वर्तिकान पर पराग अंकुरण या वर्तिका में पराग नलिका वृद्धि रोककर पराग को अस्वीकार कर देता है। एक स्त्रीकेसर द्वारा पराग के पहचानने की सक्षमता उसी स्वीकृति या अस्वीकृति द्वारा अनुपालित होती है, जो परागकणों एवं स्त्रीकेसर के बीच निरंतर संवाद का परिणाम है।
10. बैगिंग (बोरा वस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोग है?
उत्तर-बैगिंग (बोरा वर वरण) या थैली लगाना एक कृत्रिम संकरण विधि है। फसल की उन्नति या प्रगतिशीलता कार्यक्रम के लिए एक प्रमुख उपागम है। विपुसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की थैली से आवत किया जाना चाहिए जो सामान्यत: बटर पेपर (पतले कागज) की बनी होती है ताकि इसके वर्तिकान को अवांछित परागों से बचाया जा सके। इस प्रक्रम को बैगिंग (या बोरा वस्त्रावरण) कहते हैं। जब बैगिंग पुष्प का वर्तिकाग्र सुग्राह्यता को प्राप्त करता है तब नर
अभिभावक से संग्रहित परागकोश के पराग को उस पर छिटका जाता है और उस पुष्प को पुनः आवरित करके, उसमें फल विकसित होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
11. त्रि-संलयन क्या है? यह कहाँ और कैसे संपन्न होता है? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्युक्लीआई का नाम बताएँ।
उत्तर-एक सहाय कोशिका में प्रवेश करने के पश्चात् पराग नलिका द्वारा सहाय कोशिका के जीवद्रव्य में दो नर युग्मक अवमुक्त किए जाते हैं। इनमें से एक नर युग्मक अण्ड कोशिका की ओर गति करता है आर केन्द्रक के साथ संगलित होता है, जिससे युग्मक संलयन पूर्ण होता है। जिसके परिणाम में एक द्विगुणित कोशिका युग्मनज (जाइगोट ) की रचना होती है। दूसरी ओर वह संगलित होकर त्रिगुणित (प्राइमरी इंडोस्पर्म न्युक्लियस PEN) प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक बनाता है। जैसाकि इसके अन्तर्गत तीन अगुणितक न्युक्ली (केंद्रिकी ) सम्मिलित होते हैं। अत: इसे त्रिसंलयन कहते हैं।
चित्र : (अ) एक निषेचित पुटी युग्मनज तथा प्रारंभिक भ्रूणपोष
(ब) द्विबीजपत्री में भ्रूण विकास चरण
12. एक निषेचित बीजांड में, युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर-भ्रूण भ्रूणकोश या पुटी के बीजांडद्वारी सिरे पर विकसित होता है जहाँ पर युग्मनज स्थित होता है। अधिकतर युग्मनज तब विभाजित होते हैं जब कुछ निश्चित सीमा तक भ्रूणपोष विकसित हो जाता है। यह एक प्रकार का अनुकूलन है ताकि विकासशील भ्रूण को सुनिश्चित पोषण प्राप्त हो सके।
13. इनमें विभेद करें-
(क) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलाँकुर चोल
(ग) अध्यावरण तथा बीज चोल
(घ) परिभ्रूण पोष एवं फल भित्ति।
उत्तर-(क) बीज पत्राधार और बीज पत्रोपरिक में अंतर-
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल में अंतर-
(ग) अध्यावरण तथा बीजचोल में अंतर-
(घ) परिभ्रूण पोष एवं फल भित्ति में अंतर-
14. एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है?
उत्तर-कुछ प्रजातियों जैसे सेब, स्ट्राबेरी (रसभरी), अखरोट आदि में फल की रचना में पुष्पासन भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाता है। इस प्रकार के फलों को आभासी फल कहते हैं।
अधिकतर फल केवल अण्डाशय से विकसित होते हैं और उन्हें यथार्थ या वास्तविक फल कहते हैं।
15. विपुंसर से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?
उत्तर-यदि कोई मादा जनक द्विलिंगी पुष्प धारण करता है तो पराग के प्रस्फुटन से पहले पुष्प कलिका से परागकोश के निष्कासन हेतु एक जोड़ा चिमटी का प्रयोग आवश्यक होता है। इस चरण को विपुंसन कहा जाता है। विपुंसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की थैली से आवृत्त किया जाना चाहिए जो सामान्यत: बटर पेपर की बनी होती है ताकि इसके वर्तिकान को अवांछित परागों से बचाया जा सके। इस प्रक्रम को बैगिंग कहते हैं। यह तकनीक बढ़िया किस्म के पादप प्राप्त करने के लिए व्यापक रूप से व्यापारिक पादप पुष्प उत्पादन करने वाले लोगों द्वारा अपनाई जा रही है।
16. यदि कोई व्यक्ति वृद्धिकारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेक जनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेक जनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों?
उत्तर-यद्यपि अधिकतर प्रजातियों में फल निषेचन का परिणाम होते हैं। लेकिन कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी है जिनमें बिना निषेचन के फल विकसित होते हैं। ऐसे फलों को अनिषेकजनित फल कहते हैं। इसका एक उदाहरण केला है। अनिषेक फलन को वृद्धि हॉर्मोन्स के प्रयोग से प्रेरित किया जा सकता है और इस प्रकार के फल बीजरहित होते हैं। इसके अन्य उदाहरण हैं बीजरहित अंगूर, संतरा, नींबू और टमाटर आदि इस प्रक्रम द्वारा इन फलों तथा सब्जियों का सफलतापूर्वक व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है।
17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर-परागकण भित्ति रचना की सबसे आंतरिक परत टेपीटम होती है। यह विकासशील परागकणों को पोषण देती है। टेपीटम की कोशिकाएँ सघन जीवद्रव्य (साइटोप्लाज्म) से भरी होती हैं और सामान्यतः एक से अधिक केंद्रकों से युक्त होती हैं।
चित्र : (अ) एक परिपक्व परागकोश की अनुप्रस्थ काट
चित्र : (ब) भित्तियों को प्रदर्शित करते हुए एक लघुबीजाणुपानी का विस्तरित परिदृश्य
चित्र : (स) एक स्फुटित परागकोश
18. असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर-कुछेक पुष्पी पादपों जैसे कि एस्ट्रेसिया तथा घासों ने बिना निषेचन के ही बीज पैदा करने की प्रक्रिया विकसित कर ली, जिसे असंगजनन कहते हैं।
यदि संकर किस्म के संग्रहित बीज को बुआई करके प्राप्त किया जाता है तो उसकी पादप संतति पृथक्कृत होगी और वह संकर बीज की विशिष्टता को यथावत नहीं रख पाएगा। यदि एक संकर (बीज) असंगजनन से तैयार की जाती है तो संकर संतति में कोई पृथक्करण की विशिष्टताएँ नहीं होगी। इसके बाद किसान प्रतिवर्ष फसल-दर-फसल संकर बीजों का उपयोग जारी रख सकते हैं और उसे प्रतिवर्ष संकर बीजों को खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। संकर बीज उद्योग में असंगजनन की महत्ता के कारण दुनिया भर में, विभिन प्रयोगशालाओं में असंगजनन की
आनुवांशिकता को समझने के लिए शोध और संकर किस्मों में असंगजनित जीन्स को स्थानांतरित करने पर अध्ययन चल रहे हैं। बागवानी एवं कृषि विज्ञान में असंगजनन के बहुत सारे लाभ हैं।
|. परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
।. वस्तुनिष्ठ प्रश्न:
1. पुष्य के मादा जनन अंग किस में होते हैं?
(a) जायांग
(b) पुमंग
(c) परागकोश
(d) पुंकेसर
उत्तर-(a) जायांग।
2. पुंकेसर कितने भागों में बँटा होता है?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर-(b) दो।
3. परागकोश एक चार दिशीय (चतुष्कोणीय) संरचना होती है जिसमें चार कोनों पर क्या समाहित होती है?
(a) लघुबीजाणुधानी
(b) पराग पुटी
(c) टेपीटम
(d) जीवद्रव्य
उत्तर-(a) लघुबीजाणुधानी।
4. जब एक परागकोश अपरिपक्व होता है तब घने सुसंबद्ध सजातीय कोशिकाओं का समूह होता है, उसे क्या कहते हैं?
(a) बीजाणुजन ऊत्तक
(b) लघुबीजाणुंचतुष्टय
(c) लघुबीजाणु जनन
(d) परागकण
उत्तर-(a) बीजाणुजन ऊत्तक।
5. परागकण किसका प्रतिनिधित्व करता है?
(a) नर युग्मकोद्भिद्
(b) मादा युग्मकोद्भिद्
(c) दोनों
(d) किसी का भी नहीं
उत्तर-(a) नर युग्मकोद्भिद्।
6. परागकण के बाह्यचोल मे सुस्पष्ट द्वारक या रंध्र होते हैं उन्हें क्या कहते हैं?
(a) बाह्यचोल
(b) अंतःचोल
(c) जनन छिद्र
(d) जनन कोशिकाएँ
उत्तर-(c)जनन छिद।
7. परागकण की आंतरिक भित्ति अंत:चोल किसकी बनी होती हैं?
(a) सेलूलोज
(b) पेक्टिन
(c) दोनों की
(d) किसी की भी नहीं
उत्तर-(c) दोनों (a) और (b) की।
8. परागकण का बाह्मचोल किसका बना होता है?
(a) सेलूलोज
(b) पेक्टिन
(c) स्पोरोपोलेनिन
(d) तीनों का
उत्तर-(c) स्पोरोपोलेनिन।
9. पराग किससे भरपूर होते हैं?
(a) विटामिन
(b) प्रोटीन
(c) पोषणों
(d) तीनों से
उत्तर-(c)पोषणों।
10. स्त्रीकेसर का भाग निम्न में से कौन-सा है?
(a) वर्तिकान
(b) वर्तिका
(c) अण्डाशय
(d) तीनों
उत्तर-(d) तीनों।
11. अपरा से उत्पन्न होने वाली दीर्घ बीजाणुधानी सामान्यत: क्या कहलाती है?
(a) गर्भाशयी गुहा
(b) बीजांडवृत
(c) बीजांड
(d) अपरा
उत्तर-(c) बीजांड।
12. निम्न में से जलीय घास कौन-सी है?
(a) वैलिसनैरिया
(b) हाइडिला
(c) जोस्टेरा
(d) उपरोक्त तीनों
उत्तर-(c) उपरोक्त तीनों।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. एक बीज में एक से अधिक भ्रूण की उपस्थिति को…………….कहते हैं।
2. एक प्राचीन बीज ल्यूपाइन…………. है जिसे आक्रटिक टुंड्रा से खनिज किया गया था।
3……………..को कठोर बीज-आवरण संरक्षण प्रदान करता है।
4. कुछ ऐसी प्रजातियाँ भी हैं जिसमें बिना निषेचन के फल विकसित होते हैं; ऐसे फलों को………..कहते हैं।
5. कुछेक प्रजातियों में फल की रचना में पुष्पासन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार के फलों को……………..कहते हैं।
6. अधिकतर फल केवल अण्डाशय से विकसित होते हैं उन्हें………….. कहते हैं।
उत्तर-1. बहुभ्रूणता, 2. ल्युपिनस आर्कटीकस, 3. युवा भ्रूण, 4. अनिषेकजनित फल, 5. आभासी फल,
6. यथार्थ या वास्तविक।
III. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है और कौन-सा असत्य है :
1. बीजपत्राधार में बीजपत्रों के स्तर से नीचे बेलनाकार प्रोटीन, जोकि मूलांत सिरा या मूलज के शीर्षांत पर समाप्त होती है। यह मूल प्रीर्ष एक ढक्कन द्वारा आवृत्त होती है, जिसे मूल गोप कहते हैं।
2. भ्रूण विकास की प्रारंभिक अवस्था एक बीजपत्री तथा द्विबीजपत्री दोनों हो में समान होती है।
3. बीज के परिपक्व होने से पहले भ्रूणपोष पूरी तरह से विकासशील भ्रूण (जैसे-मटर, मूंगफली, सेम आदि) द्वारा उपभोग कर लिया जाता है या फिर परिपक्व बीज में विद्यमान रहता है (जैसे-अरंडी और नारियल)।
4. त्रिसन्नयन परिघटना को दोहरा निषेचन कहा जाता है।
5. विपुंसिन पुष्पों को उपयुक्त आकार की थैली से आवृत्त किया जाना चाहिए जो सामान्यतः बटर पेपर की बनी होती है ताकि इसके वर्तिकान को अवांछित परागों से बचाया जा सके। इस प्रक्रम को बैगिंग कहते हैं।
6. कृत्रिम संकरीकरण फसल की उन्नति या प्रगतिशीलता कार्यक्रम के लिए प्रमुख उपागम है।
उत्तर–1 सत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. सत्य,
6. सत्य।
IV. स्तंभ-1 में दिए गए पदों का स्तंभ-II पदों के साथ सही मिलान करें:
उत्तर-(a) – 8, (b) – 5, (c) – 7, (d) – 2. (e) – 10,
(f) -3, (g) – 9, (h) – 13.
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. फूल का कौन-सा भाग प्रायः फल का रूप लेता है?
उत्तर-अण्डाशय।
प्रश्न 2. स्वपरागण की परिभाषा दें।
उत्तर-परागकणों का एक फूल के परागकोश से उसी फूल के वर्तिकान पर पहुँचना स्वपरागकण कहलाता है।
प्रश्न 3. एक द्विलिंगी पादप का उदाहरण दें।
उत्तर-डेट पाम।
प्रश्न 4. हर्मानोडाइट पुष्प क्या है?
उत्तर-एक ऐसा पुष्प जिसमे स्त्रीकेसर तथा पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं उदाहरण-चाइना रोज।
प्रश्न 5. क्लोन क्या है?
उत्तर-आनुवंशिक रूप से समान जनसंख्या क्लोन कहलाती है।
प्रश्न 6. परागकण का बाह्यचोल किससे बना होता है?
उत्तर- स्पोरोपोलेनिन।
प्रश्न 7. परागकोश किसे कहते हैं?
उत्तर-पुंकेसर दो भागों में बँटा हुआ होता है। इसका एक भाग फिलामेंट कहलाता है तथा अंतिम सिरा द्विपालिक संरचना परागकोश कहलाता है।
प्रश्न 8. लघुबीजाणुधानी से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-प्रत्येक कोशिका एक सक्षम पराग मातृकोशिका होती है। एक पराग मातृकोशिका से भद्धंसूतो विभाजन द्वारा लघुबीजाणु के निर्माण की प्रक्रिया को लघुबीजाणुधानी कहते हैं।
प्रश्न 9. लघुनीवाणु चतुष्टय या चतुष्क से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-लघुबीजानु रचना के समय चार कोशिकाओं के समूह में व्यवस्थित होते हैं उन्हें नघुगीजाणु चतुष्टय स चतुष्क कहते हैं।
प्रश्न 10. जनन छिद्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-परागकण के बाहाचोल में सुस्पष्ट द्वारक या रंध्र होते हैं जिन्हें जनन छिद कहते हैं।
प्रश्न 11. बीजांडवृत्त किसे कहते हैं?
उत्तर-नीजांड एक छोटी-सी संरचना है जो एक वृत्त या डंठल, जिसे बीजांडवंत कहते हैं, द्वारा अपना जुड़ी होती है।
प्रश्न 12. गुरुबीजाणु जनन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-गुरुबीजाणु मातुकोशिकाओं से गुरूबीजाणुओं की रचना के प्रक्रम को गुरूबीजाणु जनन कहते हैं।
प्रश्न 13. परागण किसे कहते हैं?
उत्तर-परागकणों का स्वीकेसर के वर्तिकाग्रतक स्थानांतरण या संचारण को परागण कहा जाता है।
प्रश्न 14. बैगिंग से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-केवल अपेक्षित परागों का उपयोग परागण के लिए किया जाए तथा वर्तिकान को सदूषण होने से बचाने से प्रक्रम को बैगिंग कहते हैं।
प्रश्न 15. दोहरा निषेचन से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर-एक भ्रूण पुटी (भ्रूणकोश ) में दो प्रकार के संनयन, युग्मक संलयन तथा त्रिसंलवन स्थान लेते हैं। इस परिघटना को दोहरा निषेचन कहते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्नलिखित की परिभाषा लिखिए-(i) स्वपराग, (ii) परपरागण।
उत्तर-(i) स्वपरागण-यदि एक फल के परागकोश से निकले परागकण उसी फूल के वर्तिकान पर पहुँच जाएँ, तब इसे स्वपरागण कहते हैं।
(ii) परपरागण-जब किसी एक पौधे के परागकोश से निकले परागण उसी स्पीशीज के एक अन्य पौधे के वर्तिकान पर पहुंचते हैं, तब इसे परपरागण कहते हैं।
प्रश्न 2. पादपों में परागण की आवश्यकता एवं महत्त्व पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन हेतु परागण प्रथम सोपान होता है। परागण के फलस्वरूप निषेचन, फिर बीजों, पुनः फलों का उत्पादन होता है। वह जीवन को सतत्ता को सुनिश्चित करते हैं। इसका महत्त्व निम्नलिखित है-
(i) पोषण स्त्रोत-बीज तथा फल मानव व जन्तुओं दोनों के लिए पोषण का स्त्रोत है।
(ii) उच्च गुणयुक्त पादप-पर-परागण में दो पादपों के लक्षणों का योग होता है। प्राप्त लक्षणधारी पादप उच्च गुणयुक्त होते हैं।
(iii) संकर बीज-परागण द्वारा संकर बीज का उत्पादन किया जाता है। ये अधिक उत्पादन देने वाले तथा मनचाहे गुणों वाले पौधों की प्राप्ति में सहायक होते हैं।
प्रश्न 3. द्विनिषेचन (double fertilization) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-प्रत्येक परागकण में दो पुंयुग्मक होते हैं। ये बीजांड-द्वार से भ्रूणकोश तक पहुंचते हैं।
पुंयुग्मकों में से एक अण्ड के साथ संलयित होकर युग्मज का निर्माण करता है। इसे युग्मक-संलयन (syangamy) कहते हैं। दूसरा पुंयुग्मक द्विगुणित केंद्रक) से संलयित होकर त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोध केन्द्रक बनाता है जिसे त्रिसंलयन कहते हैं।
चित्र: द्विनिषेचन
इस प्रकार एक भ्रूणकोश में दो लैंगिक संलयन संपन्न होते हैं। इस घटना को द्विनिपेचन कहते हैं।
प्रश्न 4. ‘अनिषेचन फल’ क्या है?
उत्तर-कुछ पौधे बिना निषेचन के ही फल उत्पादन की क्षमता रखते हैं। उन्हें अनिषेचित फल कहते हैं। ये बीजरहित या अनुत्पादक बीज वाले होते हैं। कुछ प्राकृतिक अनिषेचित फल निम्नलिखित है-
(क) बिना परागण के अण्डाशय द्वारा प्रदर्शित फल का निर्माण होता है। उदाहरण-केला, नींबू, अनानास।
(ख) परागण होता है किन्तु निषेचन नहीं उदाहरण- कुछ आर्किड।
(ग) निषेचन के उपरांत भ्रूण का विफल होकर फल निर्माण करना उदाहरण-अंगूर। कृत्रिम रूप से निम्न ऑक्सीन तथा जिबरेलिन सांद्रता द्वारा अनिषेचित फल प्राप्त किए जा सकते हैं जैसे-बीजरहित अंगूर, संतरे, नींबू, टमाटर, तरबूज आदि। इनका व्यापारिक महत्व बहुत अधिक है।
प्रश्न 5. स्वपरागण तथा परपरागण में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-स्वपरागण तथा परपरागण में अंतर निम्न हैं-
प्रश्न 6. परागकोश की संरचना का सचित्र वर्णन करें।
उत्तर-परागकोश पुंकेसर का वह भाग होता है जिसमें परागकण होते हैं। यह द्विपालित होता इसकी प्रत्येक पाली में दो दीर्धाकृत स्थित कोश अर्थात् परागकोश विद्यमान होते हैं।
प्रत्येक परागकोश असंख्यक परागकण धारण करता है। परागकोश की भित्ति 4-5 परतों की बनी होती है। परिवर्धित होते हुए परागकण मध्य परतों पर टेपीटम के उत्पादों को उपभोग में लाते हुए मात्र बाह्य त्वचा एवं अंत: त्वचा को अवशेष के रूप में छोड़ देते हैं।
प्रश्न 7. त्रिसंलयन क्या है? इस प्रक्रिया का अंतिम उत्पाद क्या होता है? यह किस रूप में परिवर्धित होता है?
उत्तर-तीन केन्द्रकों का मिलना त्रिसंलयन है जो आवृत्तबीजी पौधों के पुष्पों में होता है। स्त्रीकेसर 8-केन्द्रक युक्त होते हैं। जिसमें भ्रूणपोष के बीच में दोधुवी केन्द्रक संयुक्त होकर द्विगुणित (2n) केन्द्रक बनाते हैं।
दो पुंयुग्मकों में से एक अण्ड के साथ तथा दूसरा इस द्विगुणित केन्द्रक से संलयन कर (3n) त्रिकेन्द्रक युक्त रचना का निर्माण करता है। इसे ही त्रिसंलयन कहते हैं। विसंलयन की प्रक्रिया के उपरांत त्रिगुणित प्राथमिक केन्द्रक का निर्माण करता है।
प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका (3n) बारंबार सूत्री विभाजन कर भ्रूणपोष का निर्माण करती है।
भ्रूणपोष विकसित होते ही भ्रूण तथा अंकुरण के दौरास्नवोद्भिद् के निर्माण तक पोषण प्रदान करती हैं।
प्रश्न 8. किसी परिपक्व बीजांड की आंतरिक संरचना दर्शाते हुए उसका भली-भाँति संकेतित चित्र बनाइए।
उत्तर-
चित्र: परिपक्व बीजांड की आंतरिक संरचना
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किसी पुष्पी पादप के जीवन-चक्र में परागण एक महत्त्वपूर्ण परिघटना है। इसके लिए उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-परागण, परागकणों का, परोगकोश से स्थानांतरित होकर पुष्प के वर्तिकान की सतह पर जमा होने की प्रक्रिया है।
एक ही पुष्प के परागकोश से पराग उसी पुष्प के वर्तिकान तक स्थानांतरित हो जाएँ तो यह स्थिति स्वपरागण अथवा स्वमयुग्मन कहलाती है। उदाहरण–मटर, गेहूँ, धान आदि।
जब परागकण एक पुष्प के परागकोश से उसी पादप के दूसरे पुष्प तक चला जाता है तो यह सपादयीइस परागण कहलाती है।
कुछ पादपों में परागकण एक युष्प के परागकोश से दूसरे पादप के पुष्प तक पहुँचते हैं, इसे परपरागण कहते हैं।
परागण किसी पुष्पी पादप के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि परागण के पश्चात् ही पौधे में निषेचन की प्रक्रिया संभव हो पाती है। लैंगिक जनन हेतु परागण अत्यंत आवश्यक कदम है।
परागण के लिए अनेक कारक उत्तरदायी हैं-
वायु-परागण (Anemophily)-सामान्यत: एकलिंगी पौधों यथा नारियल, खजूर, मक्का, घास की विभिन्न जातियाँ, भांग आदि में परागण वायु द्वारा होता है।
इनमें परागकण बड़ी संख्या में, सूक्ष्म, सपाट व शुष्क होते हैं अत: वायु की दिशा में परागकण बहुत दूरी तक गति करते हैं। चीड़ के पंख-युक्त परागकण जनक पादपों से कई सौ किलोमीटर दूर तक बिखरे पाए जाते हैं।
जल-परागण (Hydrophily)-जलोद्भिद पौधों में वैलिसनैरिया, सिरेटोफिल्लम एवं जोस्टेरा आदि में नर तथा मादा पुष्य जल में तैरते हुए एक-दूसरे से मिलकर निषेचित हो जाते हैं।
जंतु-परागण (Zoophily)-मकरंद एवं सुंगधि तथा चटरन रंग कीटों की पुष्पों की ओर आकर्षित करते हैं। ऐस्टरेसी एवं लेमिएसी कुल के पुष्प मधुमक्खियों एवं तितलियों द्वारा परागित किए जाते हैं। इन्हें कीट-परागण कहते हैं।
चिड़ियों द्वारा पक्षी-परागण, परारा, बोतल-ब्रुश, ढाक एवं सिल्क कॉटन वृक्ष आदि में होता है। कल्प वृक्ष अण्डसोनिया एवं काइजीलिया में परागण चमगादड़ों द्वारा संपन्न किया जाता है जिसे चमगादड़-परागण कहते हैं।
प्रश्न 2. किसी परागकण की संरचना और इसके अंकुरण की अभिक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर-परागकण नर गैमिटोफाइट को प्रदर्शित करता है। प्रत्येक परागकण में दो तथा कभी-कभी तीन कोशिकाएँ होती है-(i) कायिक कोशिका, (ii) जनन कोशिका।
परागकणों का आकार अधिकतर गोल या अण्डाकार होता है तथा दो परतोंयुक्त होता है। बाह्य परत-
(i) बाह्यचोल तथा अंदर की परत-
(ii) अंत:चोल कहलाती है।
बाह्य चोल (exine) स्पोरोलीन से निर्मित होता है जोकि ऑक्सीकरण या लीचिंग से बचा रहता है।
अंत:चोल (intine) पेक्टो-सेल्यूलोज का बना होता है।
बाह्य स्तर कहीं एक स्थान पर बहुत पतला या गायब होता है जसे जन-छिद्र (aperture) कहते हैं। इन्हीं जनन-छिदों द्वारा अंकुरण उपरांत पराग-नलिका बाहर निकलती है। सामान्यतः द्विबीजपत्री पौधों के परागकणों में तीन तथा एकबीजपत्री में एक जनन-छिद्र पाया जाता है।
चित्र : परागकण की संरचना : (अ) बाह्यदृश्य (ब) आंतरिक चोल
परागकणों का अंकुरण-परागकण वर्तिकान पर गिरने के उपरांत उस पर विद्यमान पोषक एवं नमी की उपस्थिति में अंकुरण प्रारंभ कर देते हैं।
परागकण एक सूक्ष्म प्रवर्ध जनन-नलिका निकालता है जो आगे पराग-नलिका के रूप में वृद्धि करती है।
पराग नलिका ऐसे एंजाइमों का उत्पादन करती है जो वर्तिका एवं वर्तिकाग्र के ऊत्तकों का पाचन करते हैं। पराग नलिका कैल्शियम-बोरोन आइनोसिटाल शर्करा जटिल की एक विशिष्ट सांदण प्रवशता के कारण रसायन अनुवर्ती एवं अंतराकोशिकीय विधियों से वर्तिका में वृद्धि करती है।
जनन कोशिका के केन्द्रक अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा दो पुंयुग्मकों का निर्माण करते हैं। अंतत: पराग-नलिका बीजांडद्वार तथा भ्रूणकोश में एक सहायक कोशिका द्वारा प्रवेश करती है। बाद में दोनों पुंयुग्मक भ्रूणकोश में विसर्जित कर दिए जाते हैं।
चित्र : पराग कणों का अंकुरण
प्रश्न 3. (क) बीज सुसुप्तता क्या है? यह किस प्रकार होती है? बीजसुसुप्तता किस प्रकार तोड़ी जा सकती है?
(ख) चित्र की सहायता से द्विनिषेचन को दिखाएँ।
उत्तर-(क) अनुकूल परिस्थितियों में भी बीज में अंकुरण का न होना बीज सुसुप्तता कहलाती है।
सुसुप्ततावस्था के निम्न कारण होते हैं-
(i) कठोर बीजावरण होने की स्थिति में 02 तथा जल का प्रवेश नहीं हो पाता।
(ii) भ्रूण का अपूर्ण विकसित होना।
(iii) बीजावरण का अपारगम्य होना।
(iv) निरोधकों (inhibiters) की उपस्थिति यथा-केरूलिक अम्ल ABAI
(v) आनुवंशिक कारण।
बीज सुमुप्तता को तोड़ने के लिए निम्न कार्य किए जा सकते हैं-
(i) स्कारीफिकेशन द्वारा।
(ii) बुआई पूर्व वीज को जल में भिंगोना।
(iii) बीज को मांद्रसल्फ्यूरिक अम्ल से उपचारित करना।
(iv) बीज का पोटाशियम नाइट्राइट (KNO2) तथा थियोयूरिया आदि से उपचार करना।
(v) ऑक्सिन तथा जिब्रलिन जैसे हॉर्मोन द्वारा सुसुप्तावस्था को तोड़ना।
चित्र: द्विनिषेचन
प्रश्न 4. किसी भ्रूण के परिवर्धन से आप क्या समझते हैं? अपने उत्तर की पुष्टि हेतु उपयुक्त चित्र भी बनाइए।
उत्तर-भ्रूणपाष का परिवर्धन प्राथमिक भ्रूणपोष कोशिका (3n) में बारंबार सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इसका परिवर्धन भ्रूण के परिवर्धन से ठीक पहले प्रारंभ होता है और तीन प्रकार का होता है-केन्द्रीय, कोशिकीय या माध्यमिक केन्द्रकी। इसके भ्रूणपोष में केन्द्रक पुनः विभाजित होता है तथा उत्पादित केन्द्रक परिधि में व्यवस्थित हो जाते हैं। विशाल केन्द्रीय अवकाशिका छूट जाती है। माइटोकाइनेसिस परिधि से प्रारंभ होकर केन्द्र की ओर अग्रसर होता है।
उपरोक्त रचना परिपक्व होने पर कोशिकीय हो जाती है जो सर्वाधिक सामान्य प्रकार का भृणा** है। ऐसा मक्का, गेहूँ, धान आदि में पाया जाता है।
कोशिकीय-इसमें प्रत्येक केंद्रकी विभाजन के बाद साइटोकाइनेंसि द्वारा दो असमान कोशिकाएँ निर्मित करती है। बाद वाले विभाजनमुक्त केंद्रकी होते हैं जिससे कोशिका द्रव्य विभाजन के उपरांत भ्रूणपोष कोशिकीय बन जाता है।
माध्यमिक-इसमें कोशिका द्रव्य विभाजनसूत्री विभाजन के बाद दो असामान्य कोशिकाएँ बनाते हैं। इसके बाद वाले विभाजन स्वतंत्र केंद्रकी होते हैं। जिससे भ्रूणपोष कोशिकीय बन जाता है।
भ्रूणपोष के परिवर्धन के साथ-साथ युग्मज भी विभाजन कर भ्रूण का निर्माण शुरू कर देता है। युग्मज के प्रथम विभाजन से बीजांडद्वार की ओर एक आधाराधार कोशिका और निमाग की ओर एक अध्याधार कोशिका का उत्पादन होता है। अध्याधार विभाजित होकर 4-8 कोशिकाओं की एक पंक्ति निर्मित करती है। इसकी शीर्षस्थ कोशिका विभिन्न तलों में विभाजित होकर कोशिकाओं का एक झुंड बनाती है जो प्राक्भ्रूण कहलाता है ताकि निलंबक भ्रूण इसमें से पोषण प्राप्त कर सके।
प्राक्भ्रूण की कुछ, निलंबक के समीप स्थित कोशिकाएं प्रांकुर एवं बीजपत्रों का निर्माण करती हैं। द्विबीजपत्री पादपों में दो बीजपत्रों का उत्पादन होता है, वहीं एकबीजपत्रियों में दो में से एक बीजपत्र प्रारंभिक अवस्था में खो जाता है और एक परिपक्व बीजपत्र बचता है। जैसे-भ्रूण एवं भूणपोष परिवर्धित और परिपक्व होते हैं, बीजांड के अध्यावरण कठोर हो जाते हैं तथा बीज निर्माण प्रारंभ हो जाता है।
चित्र: द्विबीजपत्री पादप में भ्रूण परिवर्धन
प्रश्न 5. धूणपोष के परिवर्धन पर टिप्पणी लिखिए। इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन, उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर-त्रिसंलयन द्वारा द्विनिषेचन के दौरान, भ्रूणपोष मातृकोशिका का निर्माण होता है। यह बहुकोशिकीय पोषक ऊत्तक है जिसमें पोषक तत्त्व संचित होते हैं।
भूणपोष का परिवर्धन प्राथमिक भूणपोष कोशिका (3n) के बारबार सूत्री विभाजन द्वारा होता है। इसका परिवर्धन भ्रूण के परिवर्धन से ठीक पहले प्रारंभ होता है। परिवर्धन के तरीके के अनुसार भ्रूणपोष निम्न प्रकार के होते हैं-
(क) केन्द्रीय भ्रूणपोच-सर्वाधिक पाया जाने वाला भ्रूणपोष है। त्रिगुणित केन्द्रक में मुक्त केन्द्रक विभाजन होता है। बीच में एक बड़ी रिक्तिका उत्पन्न होती है, जो क्रमश: आकार में घटती जाती है और अन्ततः लुप्त
जाती है तथा अधिक मात्रा में कोशिका द्रव्य बनाती है।
परिधीय भाग से कोशिका भित्ति बनना प्रारंभ होता है और केन्द्र की तरफ बढ़ता है और इस प्रकार केन्द्र की भूणपोष निर्मित होता है। उदाहरण-नारियल में भ्रूणपोप बाहर की ओर बहुकेन्द्रक तथा केन्द्र की ओर मुक्त केन्द्रक होते हैं।
(ख) कोशकीय भ्रूणपोष-इस प्रकार के भ्रूणपोष में प्रत्येक केन्दक विभाजन के बाद कोशिका भित्ति बनती है। अत: प्रारंभ से ही कोशिकाएँ एक केन्द्रकी होती है। उदाहरण-पीटुनिया, घतुरा, बालसम आदि।
(ग) माध्यमिक भ्रूणपोष-प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक निमाग की ओर चला जाता है। प्रथम केन्द्रक विभाजन के उपरांत छोटा निमाग कोशिका तथा बड़ी बीजांड द्वार कोशिका बनती है। बीजांड कोशिका मुक्त रूप से विभाजित हो कोशिका भित्ति बनाती है। इस प्रकार इसमें कोशकीय तथा केन्द्रकी दोनों के गुण विद्यमान होते हैं। यह एक बीजपत्री में नहीं होता।