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bihar board 12 biology solutions | मानव स्वास्थ्य और रोग

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मानव स्वास्थ्य और रोग

           [HUMAN HEALTH AND DISEASE]
महत्वपूर्ण तथ्य
• स्वास्थ्य केवल रोग की अनुपस्थिति नहीं है। यह संपूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की स्थिति है। टाइफॉइड, हैजा, न्यूमोनिया, त्वचा का कवकीय संक्रमण, मलेरिया आदि और कई अन्य रोग मानव कष्ट के प्रमुख कारण हैं।
• रोगवाहक द्वारा होने वाले रोग जैसे मलेरिया, विशेषरूप से प्लैज्मोडियम फैल्सीपेरस से होने वाला मलेरिया का यदि उपचार नहीं किया जाए तो प्राणघातक सिद्ध हो सकता है।
• जब हमें रोग-कारक ऐजेंटों का खतरा होता है तो हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इन रोगों की रोकथाम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
• हमारे शरीर के जन्मजात रक्षा-तंत्र जैसे कि त्वचा, श्लेषमक झिल्लियाँ, हमारे आँसुओं में मौजूद रोगाणुरोधी पदार्थ, लार और भक्षाणुक कोशिकाएँ आदि, रोगाणुओं को हमारे शरीर में प्रवेश करने से रोकने में सहायता करते हैं। अगर रोगाणु हमारे शरीर में प्रवेश करने में सफल हो जाते हैं तो विशिष्ट प्रतिरक्षी (तरल प्रतिरक्षा अनुक्रिया) और कोशिकाएँ (कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा अनुक्रिया) इन रोगाणुओं को मार देती है।
• अन्य रोगों में, एड्स और कैंसर से विश्वभर में बहुत मौतें होती हैं। मानव प्रतिरक्षान्यूनता विषाणु (एच आई वी) से होने वाला रोग जिसे एड्स घातक होता है, लेकिन अगर कुछ सावधानियाँ बरती जाएँ तो इसकी रोकथाम हो सकती हैं।
• अगर जल्दी पता लगा लिया जाए और समुचित चिकित्सीय उपाय अपनाएँ जाएँ तो कई कैंसर ठीक हो जाते हैं।
• युवकों और किशोरों में ड्रग तथा ऐल्कोहल का कुप्रयोग चिंता का कारण बन गया है।
          NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास (Exercises)
1. कौन-से विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय है, जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा-उपायों के रूप में सुझाएँगें?
उत्तर-संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए हम निम्नलिखित उपाय सुझाएंगे-
(i) रोग और शरीर के विभिन्न प्रकार्यों पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता (लोगों को रोगों के प्रति शिक्षित करना)।
(ii) संक्रामक रोगों के प्रति टीकाकरण (प्रतिरक्षीकरण) कार्यक्रमों का आयोजन करना।
(iii) अपशिष्टों (वेस्ट) का समुचित निपटान ताकि वातावरण स्वच्छ बना रहे।
(iv) रोगवाहकों (वेक्टर्स) पर नियंत्रण रखने के उपाय करने चाहिए जैसे गंदगी के ढेर और गंदे पानी को ( बाढ़ या नालियों के पानी को ) इकट्ठा न होने दें।
(v) खाने और पानी आपूर्ति के संसाधनों का स्वच्छ रखरखाव रखने के लिए लोगों एवं सरकार (प्रशासन) को प्रेरित करें।
2. जैविकी के अध्ययन ने संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने में किस प्रकार हमारी सहायता की है?
उत्तर-जीव विज्ञान में हुई प्रगति से हमें अनेक संक्रामक रोगों से निबटने के लिए कारगर हथियार मिल गए हैं। टीका (वैक्सीन) के उपयोग और प्रतिरक्षीकरण कार्यक्रमों से चेचक जैसे जानलेवा रोग का पूरी तरह से उन्मूलन कर दिया गया है। वैक्सीन के प्रयोग से पोलियो,
डिप्पथीरिया, न्यूमोनिया और टिटनस जैसे अनेक संक्रामक रोगों को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है। जैव प्रौद्योगिकी (बायोटेक्नोलॉजी) नए-नए और अधिक सुरक्षित वैक्सीन बनाने के कगार पर है। प्रतिजैविकों (एंटीबायोटिक) एवं अन्य दूसरी औषधियों की खोज ने भी संक्रामक रोग के प्रभावों को कम कर ढंग से उपचार करने में हमें सक्षम बनाया है।
3. निम्नलिखित रोगों का संचरण कैसे होता है?
(क) अमीबता, (ख) मलेरिया, (ग) एस्कैरिसता,
(घ) न्यूमोनिया।
उत्तर-(क) अमीयता-मानव की वृहत् आंत्र में पाए जाने वाले एंटअमीबा हिस्टोलिटिका नामक प्रोटोजोआ परजीवी से अमीबता (अमीविएसिस) या अमीबी अतिसार होता है। कोष्ठबद्धता (कब्ज), उदरीय पीड़ा और ऐंठन, अत्यधिक श्लेषमक और रक्त के थक्के वाला पल इस रोग के लक्षण हैं। घरेलू मक्खियाँ इस रोग की वाहक हैं जो परजीवी को संक्रमित व्यक्ति के खाद्य पदार्थों तक ले जाकर उन्हें संदूषित कर देती हैं। मल पदार्थ द्वारा संदूषित पेयजल और खाद्य पदार्थ संक्रमण
के प्रमुख स्रोत हैं।
(ख) मलेरिया-प्लैज्मोडियम नामक एक बहुत ही छोटा-सा प्रोटोजोआ मलेरिया के लिए उत्तरदायी है। प्लैमोडिया की विभिन्न जातियाँ (प्लैमेलिरिआई और प्लैफैल्सीपेरम) विभिन्न प्रकार के मलेरिया के लिए उत्तरदायी है। इनमें से प्लैज्मोडियम फैल्सीपेरम द्वारा होने वाला दुलीभ (मेलिगनेट ) सबसे गंभीर है और यह घातक भी हो सकता है। मादा ऐनोफेलीज मच्छर मानव में इस रोग का संचारण करती है।
(ग) एस्कैरिसता-आंत्र परजीवी ऐस्कारिस से ऐस्कैरिसता (ऐस्कैरिएसिस) नामक रोग होता है। आंतरिक रक्तस्त्राव, पेशीय पीड़ा, ज्वर, अरक्तता और आंत्र का अवरोध इस रोग के लक्षण हैं। इस परजीवी के अण्डे संक्रमित व्यक्ति के मल के साथ बाहर निकल आते हैं और मिट्टी, जल, पौधों आदि को संदूषित कर देते हैं। स्वस्थ व्यक्ति में यह संक्रमण संदूषित पानी, शाक-सब्जियों, फलों आदि के सेवन से हो जाता है।
(घ) न्यूमोनिया-स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनी और हीमोफिल्स इंफ्लुएंजी जैसे जीवाणु मानव में न्यूमोनिया रोग के लिए उत्तरदायी हैं। इस रोग में फुप्फुस के वायुकोष्ठ संक्रमित हो जाते हैं। संक्रमण के फलस्वरूप वायुकोष्ठों में तरल भर जाता है जिसके कारण सांस लेने में गंभीर समस्याएँ
पैदा हो जाती हैं। ज्चर, ठिठुरन, खांसी और सिरदर्द आदि न्यूमोनिया के लक्षण हैं।
4. जल-वाहित रोगों की रोकथाम के लिए आप क्या उपाय अपनायेंगे?
उत्तर-पानी के द्वारा संचारित होने वाले कुछ मुख्य रोग है-टाइफॉइड, अमीबता, ऐस्केरिसता आदि। इन रोगों की रोकथाम के लिए-
(i) पानी को उबाल कर या फिल्टर करके पीना चाहिए। पीने के पानी को साफ बर्तन में ढककर रखें।
(ii) जलाशयों, कुंडों और मलकुंडों तथा तालाबों की समय समय पर सफाई करनी चाहिए।
(iii) मलेरिया और फाइलेरिया जैसे रोगों के रोगवाहकों और उनके प्रजनन की जगहों का नियंत्रण खत्म कर देना चाहिए। इसके लिए आवासीय क्षेत्रों में और उसके आस-पास जल को जमा नहीं होने देना चाहिए। शीतलयंत्रों ( कूलर) की नियमित सफाई, मच्छरदानी का प्रयोग, मच्छर के डिम्बकों को खाने वाली मछलियाँ संग्रहित पानी में डालनी चाहिए। खाइयों, जलनिकास क्षेत्रों और अनूपों ( दलदलों) आदि में कीटनाशकों के छिड़काव किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त दरवाजों और खिड़कियों में जाली लगानी चाहिए ताकि मच्छर अन्दर न घुस सके।
5. डीएनए वैक्सीन के संदर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्याय से चर्चा कीजिए।
उत्तर-पुनयोगजन डीएनए (रिकम्बिनेट डीएन ) प्रौद्योगिकी से जीवाणु या खमीर ( यीस्ट ) में रोगजनक की प्रतिजनी पॉलीपेप्टाइड का उत्पादन होने लगा है। इस विधि से टीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा है और इसलिए प्रतिरक्षीकरण हेतु उन टीकों की उपलब्धता खूब बढ़ी हैं जैसे-खमीर से बनने वाला यकृतशोथ बी का टीका।
6. प्राथमिक और द्वितीयक लसीकाओं के अंगों के नाम बताइए।
उत्तर-लसीकाम अंग-ये ही वे अंग हैं जिनमें लसीकाणुओं की उत्पत्ति या परिपक्वन (मैचुरेसन ) और प्रचुरोद्भवन (प्रोलिफरेसन ) होता है। अस्थि मज्जा ( बोन मैरो) और थाइमस ऐसे प्राथमिक लसीकाभ अंग हैं जहाँ अपरिपक्व लसीकाणु, प्रतिजन संवेदनशील लसीकाणुओं में विभेदित होते हैं।
परिपक्वन के वाद लसीकाणुप्लीहा (स्प्लीन), लसीका ग्रंथियों, टांसिलों, क्षुदांत्र के पेयर पैचों और परिशेषिका (अपेंडिक्स) जैसे द्वितीयक अंगों में चले जाते हैं। द्वितीयक लसीकाभ अंग ऐसे स्थान हैं जहाँ लसीकाणुओं की प्रतिजन के साथ पारस्परिक क्रिया होती है जो बाद में प्रचुर संख्या में उत्पन्न होकर प्रभावी कोशिकाएँ बन जाती हैं।
7. इस अध्याय में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध संकेताक्षर इस्तेमाल किए गए हैं। इनका पूरा रूप बताइए-
(क) एम ए एल टी
(ख) सी एम आई
(ग) एड्स
(घ) एन ए सी ओ
(च) एच आई वी।
उत्तर-(क) एम ए एल टी- म्यूकोसल एसोसिएटेड लिम्फॉयड टिशू (श्लेष्म संबद्ध लसीकाभ ऊत्तक)
(ख) सी एम आई- सेल मेडिएटेड इम्युनिटी (कोशिका- माध्यित प्रतिरक्षा)
(ग) एड्स- एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेंसी सिंड्रोम
(उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूनता संलक्षण)
(घ) एन ए सी ओ- नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन
(राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन)
(च) एच आई वी- ह्यूमन इम्यूनो डिफिसिएंसी वायरस
(मानव से प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु)
8. निम्नलिखित में भेद कीजिए और प्रत्येक के उदाहरण दीजिए-
(क) सहज (जन्मजात) और उपार्जित प्रतिरक्षा।
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा।
उत्तर-(क) सहज (जन्मजात) और उपार्जित प्रतिरक्षा में अन्तर-
सहज प्रतिरक्षा (इनेट इम्युनिटी) एक प्रकार की अविशिष्ट रक्षा है जो जन्म के समय मौजूद होती है। यह प्रतिरक्षा हमारे शरीर में बाह्य कारकों के प्रवेश के सामने विभिन्न प्रकार के रोध खड़ा करने से हासिल होती है। सहज प्रतिरक्षा में चार प्रकार के रोध होते हैं। जैसे-
(i) शारीरिक रोध (फिजिकल बैरियर)-हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकता है। श्वसन, जठरांत्र (गैस्ट्रोटेटाइनल) और जननमूत्र पथ को अस्तरित करने वाली एपिथीलियम का श्लेष्मा आलेप (म्यूकस कोटिंग) भी शरीर में घुसने वाले रोगाणुओं को रोकने में सहायता करता है।
(ii) कार्यिकीय रोध(फीजियोलॉजिकल बैरियर)-अमाशय में अम्ल, मुँह में लार, आँखों के आँसू, ये सभी रोगाणुओं की वृद्धि को रोकते हैं।
(iii) कोशिकीय रोष (सेल्युलर बैरियर)-हमारे शरीर के रक्त में बहुरूप केंद्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (पी एम एन एल-न्यूट्रोफिल्स) जैसे कुछ प्रकार के श्वेताणु और
एककेंद्रकाणु (मोनासाइट्स) तथा प्राकृतिक, मारक लिंफोसाइट्स के प्रकार एवं ऊत्तकों में वृहत् भक्षकाणु (मैक्रोफेजेज) रोगाणुओं का भक्षण करते और नष्ट करते हैं।
(iv) साइटोकाइन रोध-विषाणु संक्रमित कोशिकाएँइंटरफेरॉन नामक प्रोटीनों का स्त्रवण करती हैं जो असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणु- संक्रमण से बचाती हैं।
उपार्जित प्रतिरक्षा (एक्वायर्ड इम्यूनिटी)-उपार्जित प्रतिरक्षा रोगजनक विशिष्ट है। इसका अभिलक्षण स्मृति है। इसका अर्थ यह है कि हमारे शरीर का जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया ( रेस्पांस ) करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते हैं। बाद में उसी रोगजनक से सामना होने पर बहुत ही उच्च तीव्रता की द्वितीयक या पूर्व वृत्तीय (एनामिस्टिक) अनुक्रिया होती है। इसका कारण यह तथ्य है कि हमारे शरीर को प्रथम ‘मुठभेड़’ की स्मृति है।
प्राथमिक और द्वितीयक प्रतिरक्षा अनुक्रियाएँ हमारे शरीर के रक्त में मौजूद दो विशेष प्रकार के लसीकाणुओं द्वारा होती हैं। ये हैं-बी-लसीकाणु। रोगजनकों की अनुक्रिया में बी-लसीकाणु हमारे रक्त में प्रोटीनों सेना उत्पन्न करते हैं ताकि वे रोग से लड़ सकें। ये प्रोटीने प्रतिरक्षी कहलाती हैं।
(ख) सक्रिय और निष्क्रिय प्रतिरक्षा में अंतर-
जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो उसके शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा (एक्टिव इम्युनिटी) कहलाती हैं सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है।
प्रतिरक्षीकरण (इन्यूनाइजेशन) के दौरान जानबूझकर रोगाणुओं का टीका देना अथवा प्राकृतिक संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेरित करता है। जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाये प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसीव इम्युनिटी) कहलाती है। दुग्धस्त्रवण (लैक्टेशन ) के प्रारंभिक दिनों के दौरान माँ द्वारा नावित पीले तरल पीयूष (कोलोस्ट्रम ) में प्रतिरक्षियों (IgA) की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।
9. प्रतिरक्षी (प्रतिपिंड) अणु का अच्छी तरह नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-
चित्र : प्रतिरक्षी अणु की संरचना
10. वे कौन से विभिन्न रास्ते हैं जिनके द्वारा मानव प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (एच आई वी) का संचारण होता है?
उत्तर-आमतौर पर एच आई वी का संक्रमण निम्नलिखित तरीकों से हो सकता है-
(i) संक्रमित व्यक्ति के यौन संपर्क से,
(ii) संदूषित रक्त और रुधिर उत्पादों के आधान से;
(iii) संक्रमित सुइयों के साझा प्रयोग से जैसा कि अंत: शिरा (इंट्रावेनस) द्वारा ड्रग का क्रुप्रयोग करने वालों के मामले में और
(iv) संक्रमित माँ से अपरा द्वारा उसके बच्चों में।
जिन लोगों में यह संक्रमण होने का बहुत ज्यादा खतरा है वे ऐसे व्यक्ति हैं जो अनेकों से मैथुन करते हैं, मादक द्रव्य व्यसनी जो अंत: शिरा द्वारा ड्रग लेते हैं, ऐसे जिन्हें बार-बार रक्त-आघान की जरूरत होती है और संक्रमित माँ से जन्में बच्चे।
11. वह कौन-सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का हास करता है?
उत्तर-संक्रमित व्यक्ति के शरीर में आ जाने के बाद विषाणु वृहत् भक्षकाणु (मेक्रोफेज) में प्रवेश करता है जहाँ उसका आरएनए जीनोम, विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व (रिवर्स ट्रांसक्रप्टेज एंजाइम) की सहायता से प्रतिकृतीयन (रेप्लीकेसन) द्वारा विषाणवीय डीएनए बनाता है। यह विषाणवीय डीएनए परपोषी की कोशिका के डीएनए में समाविष्ट होकर संक्रमित कोशिकाओं को विषाणु कण पैदा करने का निर्देश देता है। वृहत् भक्षकाणु विषाणु उत्पन करना जारी रखते हैं और इस तरह एक एच आई वी फैक्टर की तरह काम करते हैं। इसके साथ ही एच आई वी सहायक टी-लसीकाणुओं (टी एच) में घुसकर प्रतिकृति है और संतति विषाणु पैदा करता है। रुधिर में छोड़े गए संतति विषाणु दूसरी सहायक टी-लसीकाणुओं पर हमला करते हैं। यह क्रम बार-बार
दोहराया जाता है जिसकी वजह से संक्रमित व्यक्ति के शरीर में सहायक टी लसीकाणुओं की संख्या में उत्तरोत्तर कमी होती है। इस अवधि के दौरान बार-बार बुखार और दस्त आते हैं तथा वजन घटता है। सहायक टी-लसीकाणुओं की संख्या में गिरावट के कारण व्यक्ति जीवाणुओं, विशेष रूप से माइक्रोबैक्टीरियम, विषाणुओं, कवकों यहाँ तक कि टॉक्सोप्लैज्मा जैसे परजीवियों के संक्रमण का शिकार हो जाता है। रोगी में इतनी प्रतिरक्षा न्यूनता हो जाती है कि वह इन संक्रमणों से अपनी रक्षा करने में असमर्थ हो जाता है। एड्स के लिए व्यापक रूप से काम में लाया जाने वाला नैदानिक
परीक्षण एंजाइम्स संलग्न प्रतिरक्षा रोधी आमापन एलीसा (एलीसा-एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोजारबेट एस्से) है। प्रति-पश्चविषाणवीय (एंट्री रिट्रोवायरल) औषधियों से एड्स का उपचार आंशिक रूप से ही प्रभावी है। ये औषधियाँ रोगी की अवश्यंभावी मृत्यु को आगे सरका सकती हैं, रोक नहीं सकती।
12. प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-हमारे शरीर में कोशिका वृद्धि और विभेदन अत्यधिक नियंत्रित और नियमित है। कैंसर कोशिकाओं में, ये नियामक संदमन क्रियाविधियाँ टूट जाती हैं। प्रसामान्य कोशिकाएँ ऐसा गुण दर्शाती हैं जिसे संस्पर्श संदमन (कांटेक्ट इनहिबिसन ) कहते हैं और इसी गुण के कारण दूसरी कोशिकाओं से उनका संस्पर्श उनकी अनियंत्रित वृद्धि को संदमित करता है। ऐसा लगता है कि कैंसर कोशिकाओं में यह गुण खत्म हो गया है। इसके फलस्वरूप कैंसर कोशिकाएं विभाजित होना जारी रख कोशिकाओं का भंडार खड़ा कर देती हैं जिसे अर्बुद (ट्यूमर ) कहते हैं। अर्बुद दो प्रकार के होते हैं-सुदम (बिनाइन) और दुर्दम (मैलिग्नेंट )। सुदम अर्बुद फैलते तथा इनसे मामूली क्षति होती हैं दूसरी ओर दुर्दम अर्बुद प्रचुरोद्भवी कोशिकाओं का पुंज हैं जोनवद्रव्यीय नियोप्लास्टिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। ये बहुत तेजी से बढ़ती हैं और आस-पास के सामान्य ऊत्तकों पर हमला
करके उन्हें क्षति पहुँचाती हैं।
13. मैटास्टेसिस का क्या मतलब है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-अर्बुद कोशिकाएँ सक्रियता से विभाजित और वर्धित होती हैं जिससे वे अत्यावश्यक पोषकों के लिए सामान्य कोशिकाओं से स्पर्धा करती हैं और उन्हें भूखा मारती हैं। ऐसे अर्बुदों से उतरी हुई कोशिकाएँ रक्त द्वारा दूरदराज स्थलों पर पहुँच जाती हैं और जहाँ भी ये जाती है नये अर्बुद बनाना प्रारंभ कर देती हैं। मैटास्टेसिस कहलाने वाला यह गुण दुर्दम अर्बुदों का सबसे डरावना गुण है।
14. ऐल्कोहल/ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ।
उत्तर-ड्रग और ऐल्कोहल के तत्कालिक प्रतिकूल प्रभाव अंधाधुंध व्यवहार, ,बर्बरता और हिंसा के रूप में व्यक्त होते हैं। ड्रगों की अत्यधिक मात्रा से श्वसन-पात (रिस्पाइरेटरी फेल्योर), हृदय पात (हर्ट-फेल्योर) अथवा प्रमस्तिष्क रक्तस्त्राव ( सेरेब्रल हेमरेज ) के कारण समूर्छा (कोमा) और मृत्यु हो सकती है। ड्रगों का संयोजन या ऐल्कोहल के साथ उनके सेवन का आमतौर पर यह परिणाम अतिमात्रा होती है। युवाओं में ड्रग और ऐल्कोहल दुरुपयोग के सबसे सामान्य लक्षण शैक्षिक क्षेत्र में प्रदर्शन में कमी, बिना किसी स्पष्ट कारण के स्कूल या कॉलेज से अनुपस्थिति, व्यक्तिगत स्वच्छता की रुचि में कमी, विनिवर्तन, एकाकीपन, अवसाद,थकावट, आक्रमणशील और विद्रोही व्यवहार, परिवार और मित्रों से बिगड़ते संबंध, शौक एवं रुचि में कमी, सोने और खाने की आदतों में परिवर्तन, भूख और वजन में घट-बढ़ आदि प्रमुख हैं।
ड्रग ऐल्कोहल के कुप्रयोग के दूरगामी परिणाम भी हो सकते हैं। अगर कुप्रयोगकर्ता को ड्रग/ऐल्कोहल खरीदने के लिए पैसे नहीं मिलें तो वह चोरी का सहारा ले सकता/सकती है। ये प्रतिकूल प्रभाव केवल ड्रग/ऐल्कोहल का सेवन करने वाले तक सीमित नहीं रहता। कभी-कभी ड्रग/ऐल्कोहल अपने परिवार या मित्र आदि के लिए भी मानसिक और आर्थिक कष्ट का कारण बन सकता/सकती है।
जो अंतःशिरा द्वारा ड्रग लेते हैं उनको एड्स और यकृतशोथ-बी जैसे गंभीर संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है।
गर्भावस्था के दौरान ड्रग एवं ऐल्कोहल का उपयोग गर्भ पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। महिला खिलाड़ियों द्वारा उपचयी स्टेराइडों के सेवन के अनुषंगी प्रभावों में पुंस्त्वन, बड़ी आक्रामकता, भावदशा में उतार-चढ़ाव, अवसाद, असामान्य आर्तव चक्र, मुँह और शरीर पर बालों की अत्यधिक वृद्धि, भगशेफ का बढ़ जाना, आवाज का गहरा होना शामिल है।
पुरुष खिलाड़ियों में मुँहासे, बढ़ी आक्रामकता, भावदशा में उतार-चढ़ाव, अवसाद, वृषणों के आकार का घटना, शुक्राणु उत्पादन में कमी, यकृत और वृक्क की संभावित दुष्क्रियता, वक्ष का बढ़ना, समयपूर्व गंजापन, प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना आदि शामिल हैं।
15. क्या आप सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहल/ड्रग सेवन के लिए प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
उत्तर-ऐसे मामलों में माता-पिता और अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो और सुसंगत अनुशासन हो, ऐल्कोहल/ड्रग/तंबाकू के कुप्रयोग का खतरा कम कर देता है। यहाँ दिए गए कुछ उपाय किशोरों में ऐल्कोहल और ड्रग के कुप्रयोग की रोकथाम तथा नियंत्रण में विशेषरूप से कारगर होंगे-
(i) आवश्यक समकक्षी दबाव से बचें-प्रत्येक बच्चे की पसंद और आदतें व्यक्तित्व होता है, जिसका सम्मान और जिसे प्रोत्साहित करना चाहिए। बालक को उसकी अवसीमा (थ्रेसोल्ड) से अधिक करने के लिए आवश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए।
(ii) शिक्षा और परामर्श-समस्याओं और दबावों का सामना करने और निराशाओं तथा असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा एवं परामर्श उन्हें देना चाहिए। यह भी उचित होगा कि बालक की ऊर्जा को खेल-कूद, पढ़ाई, संगीत, योग और पाठ्यक्रम के अलावा दूसरी स्वस्थ गतिविधियों की दिशा में भी लगाना चाहिए।
(iii) माता-पिता और समकक्षियों से सहायता लेना- माता-पिता और समकक्षियों से फौरन मदद लेना चाहिए, ताकि वे उचित मार्गदर्शन कर सकें। निकट और विश्वसनीय मित्रों से भी सलाह लेनी चाहिए। युवाओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए समुचित सलाह से उन्हें अपनी चिंता और अपराध भावना को अभिव्यक्त करने में सहायता मिलेगी।
(iv) संकट के संकेतों को देखना-सावधान माता-पिता और अध्यापकों को चाहिए कि ऊपर बताए गए खतरे के संकेतों पर ध्यान दें और उन्हें पहचानें। मित्रों को भी चाहिए कि अगर वे परिचित को ड्रग या ऐल्कोहल लेते हुए देखें तो वे उस व्यक्ति के भले के लिए माता-पिता या अध्यापक को बताने में हिचकिचाएं नहीं। इसके बाद बीमारी को पहचानने और उसके पीछे छुपे कारणों का पता लगाने के लिए उचित उपाय करने होंगे। इससे समुचित चिकित्सीय उपाय आरंभ करने में सहायता मिलेगी।
(v) व्यावसायिक और चिकित्सा सहायता लेना-जो व्यक्ति दुर्भाग्यवश ड्रग/ऐल्कोहल के कुप्रयोग रूपी दलदल में फँस गया है उसकी सहायता के लिए उच्च योग्यता प्राप्त मनोवैज्ञानिकों, मनोरोगविज्ञानियों आदि से व्यसन छुड़ाने तथा पुनः स्थापना कार्यक्रमों हेतु काफी सहायता उपलब्ध है। ऐसी सहायता से प्रभावित व्यक्ति पर्याप्त प्रयासों और इच्छाशक्ति द्वारा इस समस्या से पूरी तरह छुटकारा पा सकता है और पूर्णरूपेण प्रसामान्य
और स्वस्थ जीवन जी सकता है।
16. ऐसा क्यों है जब कोई व्यक्ति ऐल्कोहल या ड्रग लेना शुरू कर देता है तो उस आदत से छुटकारा पाना कठिन होता है? अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए।
उत्तर-सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ऐल्कोहल और ड्रग की अंतर्निहित व्यसनी प्रकृति है, लेकिन व्यक्ति इस बात को समझ नहीं पाता। ड्रगों और ऐल्कोहल के कुछ प्रभावों के प्रति लत, एक मनोवैज्ञानिक आशक्ति है। जो व्यक्ति को उस समय भी ड्रग एवं ऐल्कोहल लेने के लिए प्रेरित करने से जुड़ी है जबकि उनकी जरूरत नहीं होती या उनका इस्तेमाल आत्मघाती है। ड्रग के बार-बार उपयोग से हमारे शरीर में मौजूद ग्राहियों का सह्य स्तर बढ़ जाता है। इसके फलस्वरूप ग्राही, ड्रगों या ऐल्कोहलन की केवल उच्चतर मात्रा के प्रति अनुक्रिया करते हैं, जिसके कारण अधिकाधिक मात्रा में लेने की लत पड़ जाती है। लेकिन एक बात बुद्धि में बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए कि इन ड्रग को एक बार लेना भी व्यसन बन सकता है। इस प्रकार, ड्रग और ऐल्कोहल
की व्यसनी शक्ति उन्हें इस्तेमाल करने वाले/वाली को एक दोषपूर्ण चक्र में घसीट लेते हैं, जिनसे इनका नियमित सेवन (कुप्रयोग) करने लगते हैं और इस चक्र से बाहर निकलना उनके बस में नही रहता। किसी मार्गदर्शन या परामर्श के अभाव में व्यक्ति व्यसनी (लती) बन जाता है और उनके ऊपर आश्रित होने लगता है।
17. आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रग के सेवन के लिए क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर-जिज्ञासा, जोखिम उठाने और उत्तेजना के प्रति आकर्षण और प्रयोग करने की इच्छा, ऐसे सामान्य कारण हैं जो किशोरों को ड्रग और ऐल्कोहल के प्रति अभिप्रेरित करते हैं। बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा उसे प्रयोग करने के लिए अभिप्रेरित करती है। ड्रग और ऐल्कोहल के प्रभाव को फायदे के रूप में देखने से समस्या और भी जटिल हो जाती है।
ड्रग या ऐल्कोहल का पहली बार सेवन जिज्ञासा या प्रयोग करने के कारण हो सकता है। लेकिन बाद में बच्चा इनका उपयोग समस्याओं का सामना करने से बचने के लिए करने लगता है। पिछले कुछ समय से शैक्षिक क्षेत्र में या परीक्षा में सबसे आगे रहने के दबाव से उत्पन्न तनाव ने भी किशोरों को ऐल्कोहल या ड्रगों को आजमाने के लिए फुसलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। युवकों में यह बोध भी कि धूम्रपान करना, ड्रग या ऐल्कोहल का उपयोग व्यक्ति के ‘ठंडा’ या ‘प्रगति’ का प्रतीक है, यही इन आदतों को शुरू करने का मुख्य कारण है। इस बोध को बढ़ावा ,देने में टेलीविजन, सिनेमा, समाचार पत्र, इंटरनेट ने भी सहायता की है। किशोरों में ड्रग और ऐल्कोहल के कुप्रयोग के अन्य कारणों में, परिवार के ढांचे में अस्थिरता या एक-दूसरे को सहारा देने तथा मित्रों के दबाव का अभाव है।
माता-पिता और अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो और सुसंगत अनुशासन हो, ऐल्कोहल/ड्रग/तंबाकू के कुप्रयोग का खतरा कम कर देता है।
प्रत्येक बच्चे की अपनी पसंद और अपना व्यक्तित्व होता है, जिसका सम्मान करना चाहिए। किसी बात के लिए उन पर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए। समस्याओं और दबावों का सामना करने और निराशाओं तथा असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा एवं परामर्श उन्हें देना चाहिए। युवाओं की समस्याओं को सुलझाने में उनकी मदद करनी चाहिए। जो व्यक्ति दुर्भाग्यव ड्रग/ऐल्कोहल के कुप्रयोग रूपी दलदल में फँस गया है उसकी सहायता के लिए उच्च योग्र प्राप्त मनोवैज्ञानिकों, मनोरोगविज्ञानियों की सहायता उपलब्ध करानी चाहिए।
      परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. चेचक किसके कारण होता है?
(a) विषाणु
(b) जीवाणु
(c) कवक
(d) मच्छर
उत्तर-(a) विषाणु।
2. वायरस जनित रोग क्या है?
(a) मलेरिया
(b) इंफ्लुएंजा
(c) डिप्थीरिया
(d) सिफलिस
उत्तर-(b)डिप्थीरिया
3. चिकेनपॉक्स किसके द्वारा होता है?
(a) एडिनोवाइरस
(b) SV40वाइरस
(c) वैरिसेला वाइरस
(d) जीवाणुभोजी T2
उत्तर-(c)वैरिसेला वाइरस।
4. ट्यूबरकुलोसिस किससे होता है?
(a) बैसिलस से
(b) ट्रैपोनेमा से
(c) माइक्रोबैक्टीरिया
(d) कोरिनबैक्टीरियम
उत्तर-(c)माइक्रोबैक्टीरिया।
5. तंबाकू का मुख्य अवयव है-
(a) कोकीन
(b) मार्फिन
(c)निकोटीन
(d) थीयीन
उत्तर-(c)निकोटीन।
6. एल्कोहल से कौन-से अंग पर कुप्रभाव पड़ता है?
(a) हृदय
(b) मस्तिष्क
(c) यकृत
(d) फेफड़े
उत्तर-(c)यकृत।
7. कौन-सी औषधि गहरी निंद्रा प्रेरित करती है?
(a) सेडेटिव
(b) ओपिएट नार्कोटिक
(c) स्टीमुलेन्ट
(d) हैलूसिनोजेन
उत्तर-(a) सेडेटिव।
8. निकोटीन होता है-
(a) प्रोटीन
(b) अमीनो अम्ल
(c) विटामिन
(d) क्षाराम
उत्तर-(d)क्षाराभा
9. मलेरिया का कारक जीव है-
(a) जीवाणु
(b) विषाणु
(c) कवक
(d) प्रोटोजोआ
उत्तर-(d) प्रोटोजोआ।
10. इनमें से कौन संक्रामक रोग है?
(a) जीवाणु के कारण होने वाला
(b) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलने वाला
(c) पोषकों की कमी के कारण होने वाला
(d) शरीर के एक भाग से अन्य भाग होने वाला
उत्तर-(b) एक व्यक्ति से दूर व्यक्ति तक फैलने वाला।
11. संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं?
(a) वायु
(b) जल
(c) शारीरिक स्पर्श
(d) सभी कारणों से
उत्तर-(d)सभी कारणों से।
12. गैर-संक्रमित रोगों की निम्न में से क्या विशेषता होगी?
(a) ये रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते
(b) ये रोगाणु जीवित नहीं होते
(c) ये रोग आहार के अभाव से होते हैं
(d) सभी कारण हो सकते हैं।
उत्तर-(d) सभी कारण हो सकते हैं
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. कभी-कभी आनुवंशिक और अज्ञात कारणों से शरीर अपनी ही कोशिकाओं पर हमला कर देता है।यह………
कहलाता है।
2. ……मानव शरीर के लसीकाभ ऊत्तक का लगभग 50 प्रतिशत है।
3. ………छूने या शरीर के संपर्क में आने से नहीं फैलता।
4. औषधियों से………… का उपचार आंशिक रूप से ही प्रभावी है।
5. कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु……….. कहलाते हैं।
उत्तर-1. स्व-प्रतिरक्षा रोग,2. एम ए एल टी,3. एड्स,
4. एड्स, 5. अर्बुदीय विषाणु।
III. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सत्य है और कौन-सा असत्य है :
1. यह सच है कि धूम्रपान, ड्रग या ऐल्कोहल के सेवन की आदतें पड़ने की संभावना छोटी उम्र में, ज्यादातर किशोरावस्था के दौरान अधिक होती है।
2. किसी भी लत से छुटकारा पाने के लिए परामर्श तथा चिकित्सा सहायता की आवश्यकता नहीं होती है।
देता है।
3. भाँग के फूलों के शीर्ष, यत्तियाँ और राल (रेसिन ) के विभिन्न संयोजन मैरिजुआना, हशीश, चरस और गाँजा बनाने के काम आते हैं।
4. कोकीन की अत्यधिक मात्रा से विभ्रम (हैलुसिनेशन) हो जाता है।
5. बर्बिट्यूरेट, एंफेटेमीन, बेंजोडायजेपीन और लाइसर्जिक अम्ल ‘डाइएथिल एमाइड्स जैसे ड्रग और इन जैसे अन्य ड्रग जो अवसाद (डिप्रेशन ) और अनिद्रा (इनसोम्नीया) जैसे मानसिक व्याधि से ग्रस्त रोगियों की सहायता के लिए सामान्यतया औषधियों के रूप में काम में लिए जाते हैं, इनका भी कुप्रयोग होता है।
6. भारत वर्ष में प्रतिवर्ष दस लाख से भी ज्यादा लोग कैंसर से पीड़ित होते हैं और इससे बड़ी संख्या में मर जाते हैं।
उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. सत्य, 6.सत्य।
IV. स्तंभ-I में दिए गए पदों का स्तंभ-II पदों के साथ सही मिलान करें:
उत्तर-(a)-6, (b)-8, (c)-2, (d)-1, (e)-4, (f)-5, (g)-7, (h)-3.
             अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किन्हीं चार बीमारियों के नाम बताइए जिनके बारे में राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाई जाती है।
उत्तर-मलेरिया, यकृतशोथ बी, तपेदित, लकवा, एड्स आदि।
प्रश्न 2. कोई तीन रोगों के नाम बताइए जो एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक संचारित होते हैं।
उत्तर-(i) इन्फ्लुएंजा, (ii) यकृतशोथ, (iii) तपेदिक।
प्रश्न 3. रिकेट्स तथा मधुमेह संक्रामक रोग हैं या गैर संक्रामक?
उत्तर-गैर-संक्रामका
प्रश्न 4. अमीबा अतिसार वाले वर्ग के जीव द्वारा की गई एक अन्य बीमारी का नाम बताइए।
उत्तर-फाइलेरिया।
प्रश्न 5. किन्हीं चार विषाणुक रोगों के नाम बताइए।
उत्तर-एंफ्लुएंजा (सर्दी-जुकाम), यकृतशोथ (पीलिया), चेचक, खसरा आदि।
प्रश्न 6. वायु से फैलने वाले किन्हीं दो संक्रामक रोगों के नाम लिखो।
उत्तर-खसरा, चेचका
प्रश्न 7. बैक्टीरिया से फैलने वाले दो रोगों के नाम लिखो।
उत्तर-हैजा, मलेरिया।
प्रश्न 8. अतिसार रोग से पीड़ित रोगी के क्या लक्षण हैं?
उत्तर-पतले या हरे दस्त के साथ मामूली-सा बुखार होना।
प्रश्न 9. चेचक तथा तपेदिक के उत्पन्नकारी जीवों के नाम लिखो।
उत्तर-चेचक्र- वाइरसा
तपेदिक-स्ट्रोप्टोकोकस जीवाणु।
प्रश्न 10. किन्हीं दो आनुवंशिक रोगों के नाम बताइए।
उत्तर-हीमोफिलिया, दाँत कोशिका अरक्तता।
प्रश्न 11. जीवाणुओं के द्वारा होने वाले कुछ संचरणीय रोगों के नाम बताओ।
उत्तर-हैजा, टिटनेस, टाइफाइड, तपेदिका
प्रश्न 12. सीधे संपर्क से मनुष्यों में होने वाले एक रोग का नाम बताओ।
उत्तर-डिप्थीरिया।
प्रश्न 13. एड्स सर्वप्रथम कहाँ पाया गया था?
उत्तर-यह रोग सर्वप्रथम अमेरिका में 1981 में पाया गया था।
प्रश्न 14. एड्स रोग का कारक जीव क्या है?
उत्तर-विषाणु।
प्रश्न 15. कैंसर रोग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-कैंसर एक निरन्तर वृद्धि करने वाली असीमित संरचना है, जिसमें वृद्धि तथा विभेदन करने वाले कारक समाप्त हो चुके होते हैं।
प्रश्न 16. एलर्जी किसे कहते हैं?
उत्तर-किसी पदार्थ के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता को एलर्जी कहते हैं।
प्रश्न 17. कैंसर रोग का उपचार कैसे किया जाता है?
उत्तर-आमतौर पर कैंसर रोग के उपचार के लिए शल्य क्रिया, विकिरण चिकित्सा और प्रतिरक्षा-चिकित्सा का सहारा लिया जाता है।
प्रश्न 18. ड्रग/ऐल्कोहल के सेवन से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर-ड्रगों की अत्यधिक मात्रा से श्वसन-पात (रिस्पाइरेटरी फेल्योर), हृदय-पात (हर्ट फेल्योर ) अथवा प्रमस्तिष्क रक्तस्त्राव (सेरेब्रल हमेरेज) के कारण समूर्छा (कोमा) और मृत्यु हो सकती है।
प्रश्न 19. आनुवंशिक विकार क्या है?
उत्तर-वे अपूर्णताएँ जिसको लेकर बच्चा जन्मता है और वे अपूर्णताएँ जो बच्चे को जन्म से ही माँ-बाप से वंशागत रूप से मिलती हैं।
प्रश्न 20. संक्रामक रोग किसे कहते हैं?
उत्तर-जो रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में आसानी से संचारित हो सकते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं।
                      लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. महामारी क्या है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-एक ऐसी बीमारी, जो एक विशिष्ट क्षेत्र में काफी जनसंख्या को रोगग्रस्त करती है, महामारी कहलाती है। कभी-कभी हमारे देश में विषूचिका महामारी का रूप धारण कर लेती है। विपूचिका जीवाणुजनित रोग है और इसमें अनियंत्रित उल्टियाँ तथा दस्त होते हैं। यह बड़ी संख्या में लोगों को भावि करती है जिससे निर्जलीकरण तथा मृत्यु तक हो जाती है।
प्रश्न 2. सामुदायिक स्वास्थ्य के प्रति कार्य कर रही किन्हीं दो संस्थाओं के नाम बताइए।
उत्तर- (i) सरकारी अस्पताल और औषधालय।
(ii) राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन का क्रम।
(iii) तपेदिक उन्मूलन कार्यक्रम।
(iv) राष्ट्रीय उन्मूलन कार्यक्रम।
(v) राष्ट्रीय पल्स पोलियो कार्यक्रम (कोई दो नाम लिखें)।
प्रश्न 3. गर्भावस्था के दौरान माँ को दिए जाने वाले टीके का नाम बताइए।
उत्तर-
प्रश्न 4. अपने क्षेत्र के अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रयुक्त सावधानियों की सूची बनाइए।
उत्तर-(1) बस्तियों से कचरे का निकास व उचित स्वच्छता का प्रबंधन।
(2) स्वच्छ व रोगाणु रहित पेयजल उपलब्ध कराना।
(3) किसी बीमारी के फैलने का खतरा उत्पन्न होने पर विभिन्न प्रतिरक्षाकरण कार्यक्रमों तथा कई अन्य स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों को चलाना।
(4) स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करना।
(5) वातावरण को स्वस्थ रखने के लिए हमें कचरे को निपटाने के मामले में सावधान रहना चाहिए। जैसे-
(i) प्रतिदिन मकान की साफ-सफाई करनी चाहिए।
(ii) कूड़ेदान में कचरा फेंकना चाहिए। कचरे को सड़क पर या गलियों में न फेंकें।
(iii) कूड़दानों को ढंक कर रखना चाहिए ताकि उसमें जानवर आदि प्रवेश न कर सकें।
प्रश्न 5. स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान किसे कहते हैं?
उत्तर-अच्छे स्वास्थ्य का अर्थ है कि हमारे शरीर के सभी अंग सुचारू रूप से कार्य कर रहे हैं। शरीर तथा मस्तिष्क, दोनों की संतोषजनक स्थिति इसमें शामिल है। अच्छे स्वास्थ्य वाले व्यक्ति खुशमिजाज और तनावमुक्त रहते हैं तथा जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं। यदि आपका स्वास्थ्य अच्छा है, केवल तभी आप दूसरों की व समुदाय की मदद कर पायेंगे। उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार क्या आप अपने स्वास्थ्य को अच्छा मानते हैं?
स्वयं को रोगमुक्त रखने तथा अच्छा स्वास्थ्य पाने के लिए हमें स्वास्थ्य-विज्ञान के प्रति जागरूक होना चाहिए। विभिन्न रीतियाँ, जो हमें अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने में मदद करती हैं, स्वास्थ्य विज्ञान कहलाती हैं। अंग्रेजी का शब्द ‘हाइजीन’ (Hygiene) एक ग्रीक शब्द ‘हाइजिया’ से बना है जिसका अर्थ है-‘स्वास्थ्य की देवी’। स्वास्थ्य-विज्ञान का संबंध व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दोनों ही स्वास्थ्य से है। अत: स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञान एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
उत्तम स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए समुचित पोषण, शारीरिक व्यायाम, आराम एवं निंद्रा, स्वच्छता और चिकित्सा देख-रेख, आवश्यक अंग हैं। स्वास्थ्य में व्यक्तिगत तथा सामुदायिक दोनों स्वास्थ्य शामिल हैं।
प्रश्न 6. प्लैज्मोडियम के जीवन चक्र की अवस्थाएँ आरेख द्वारा दर्शाइए।
उत्तर-
चित्र : प्लैज्मोडियम के जीवन चक्र में अवस्थाएँ
प्रश्न 7. सक्रिय तथा निष्क्रिय प्रतिरक्षा क्या है? उदाहरण के साथ समझाइए।
उत्तर-जब परपोषी प्रतिजनों (एंटीजेंस) का सामना करता है तो उसके शरीर में प्रतिरक्षी पैदा होते हैं। प्रतिजन, जीवित या मृत रोगाणु या अन्य प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं। इस प्रकार की प्रतिरक्षा सक्रिय प्रतिरक्षा (ऐक्टिव इम्युनिटी) कहलाती है। सक्रिय प्रतिरक्षा धीमी होती है और अपनी पूरी प्रभावशाली अनुक्रिया प्रदर्शित करने में समय लेती है। प्रतिरक्षीकरण संक्रमण के दौरान संक्रामक जीवों का शरीर में पहुँचना सक्रिय प्रतिरक्षा को प्रेरित करता है। जब शरीर की रक्षा के लिए बने बनाए प्रतिरक्षी सीधे ही शरीर को दिए जाते हैं तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) कहलाती है। शिशु के लिए माँ का दूध क्यों बहुत ही आवश्यक माना जाता है? दुग्ध
स्रवण (लैक्टेशन) के प्रारंभिक दिनों के दौरान माँ द्वारा स्रावित पीले से तरल ‘पीयूष’ (कोलोस्ट्रम) में प्रतिरक्षियो (IgA) की प्रचुरता होती है जो शिशु की रक्षा करता है। सगर्भता (प्रेग्नेंसी) के दौरान भ्रूण को भी अपरा (प्लेसेंटा ) द्वारा माँ से कुछ प्रतिरक्षी मिलते हैं। ये निष्क्रिय प्रतिरक्षा के कुछ उदाहरण हैं।
प्रश्न 8. प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत किस पर आधारित है? यह कैसे कार्य करता है?
उत्तर-प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति के गुण पर आधारित है। टीकाकरण में रोगजनक या निष्क्रियता/दुर्बलीकृत रोगजनक (टीका) की प्रतिजनी प्रोटीनों को निर्मित शरीर में प्रवेश कराई जाती है। इन प्रतिजनों के विरुद्ध शरीर में उत्पन प्रतिरक्षियाँ वास्तविक संक्रमण के दौरान रोगजनी कारकों को निष्प्रभावी बना देती है। टीका स्मृति-बी और टी-कोशिकाएँ भी बनाते हैं जो परिवर्ती प्रभावन (सव्सीक्वेंट एक्सपोजर) होने पर रोगजनक को जल्दी से पहचान लेती हैं और प्रतिरक्षियों के भारी उत्पादन से हमलावर को हरा देती हैं। अगर व्यक्ति किन्हीं ऐसे घातक रोगाणुओं से संक्रमित होता है जिसके लिए फौरन प्रतिरक्षियों की आवश्यकता है, जैसा कि टिटनेस में, तो प्रभावकारी निष्पादित प्रतिरक्षियों या प्रतिआविष (एंटीटॉक्सिन-एक ऐसी निर्मित जिसमें आविष के लिए प्रतिरक्षियाँ होती हैं) को टीके के रूप में सीधे ही दिए जाने की जरूरत है। सांप के काटे जाने के मामलों में भी रोगी को जो सुई लगाई जाती है उसमें सर्प विष (वेनम)
के विरुद्ध निष्पादित प्रतिरक्षी होते हैं। इस प्रकार का प्रतिरक्षीकरण निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण कहलाता है।
प्रश्न 9. ऐलर्जी किसे कहते हैं? इस रोग की पहचान कैसे की जाती हैं? इस रोग के लक्षण तथा इस रोग को नियंत्रित करने वाली औषधियों के विषय में जानकारी दीजिए।
उत्तर-पर्यावरण में मौजूद कुछ प्रतिजनों के प्रति प्रतिरक्षा तंत्र की अतिरंजित अनुक्रिया ऐलर्जी कहलाती है। ऐसे पदार्थ, जिनके प्रति ऐसी प्रतिरक्षित अनुक्रिया होती है ऐलर्जन कहलाते हैं। इनके प्रति बनने वाली प्रतिरक्षियाँ IgE प्रकार की होती हैं। एलर्जन के सामान्य उदाहरण हैं-धूल में चिचड़ी, पराग, प्राणी लघुशल्क (डॅडर) आदि। ऐलर्जीय अनुक्रियाओं के लक्षणों में छींकना, पनीली आँखें, बहती नाक और सांस लेने में कठिनाई शामिल हैं। ऐलर्जी मास्ट कोशिकाओं से हिस्टैमिन और सीरोटोनिन जैसे रसायनों के निकलने के कारण होती है। ऐलर्जी का कारण जानने के लिए रोगी को संभावित एलर्जनों की बहुत ही थोड़ी सी मात्रा टीके द्वारा दी जाती है और प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है प्रतिहिस्टैमिन, एड्रीनेलिन और स्टीराइडों जैसी औषधियों के प्रयोग से ऐलर्जी के लक्षण जल्दी घट जाते हैं। लेकिन, आधुनिक जीवन शैली के फलस्वरूप लोगों में प्रतिरक्षा घटी है और एजर्लनों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। भारतवर्ष के महानगरों दो अधिकाधिक बच्चे
पर्यावरण के प्रति संवदेनशीलता के कारण ऐलर्जियों और दमा (अस्थमा) से पीड़ित रहते हैं। इसका कारण बच्चों के प्रारंभिक जीवनकाल में उन्हें बहुत सुरक्षित पर्यावरण में रखना हो सकता है।
प्रश्न 10. एड्स की रोकथाम पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर-एड्स की रोकथाम-एड्स को ठीक नहीं किया जा सकता, इसलिए इसकी रोकथाम ही सबसे उत्तम उपाय है। इसके अलावा, एचआईवी संक्रमण सचेतन, व्यवहार, पैटर्न के कारण फैलता है न कि न्यूमोनिया या टाइफॉइड की तरह अनजाने में यह ठीक है कि रक्त-आधान रोगियों में (माँ से) आदि में यह संक्रमण सही निरागनी (मॉनिटरिंग) न होने के कारण हो सकता है। एकमात्र बहाना अनभिज्ञता हो सकती है लेकिन कहावत बिल्कुल सही है कि ‘अज्ञानता के कारण मत मरो।’ हमारे देश में राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एन ए सी ओ-नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन) और अन्य गैर-सरकारी संगठन (एन जी ओ) लोगों को एड्स के बारे में शिक्षित करने के लिए बहुत काम कर रहे हैं। एचआईवी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने अनेक कार्यक्रम आरंभ किए हैं। रक्त बैंकों के रक्त को एचआईवी से मुक्त करना, सार्वजनिक और निजी अस्पतालों और क्लिनिकों में केवल प्रयोज्य (डिस्पोजेबल) सुईयाँ और रिगरेज ही काम में लाई जाएँ-इसकी व्यवस्था करना, कंडोम का मुफ्त वितरण, ड्रग के कुप्रयोग को नियंत्रित करना, सुरक्षित यौन संबंधों की सिफारिश करना और सुग्राही समष्टि ( सेप्टेवुल पॉपुलेशन ) में एचआईवी के लिए नियमित जांच को बढ़ावा देना, इन कार्यक्रमों में से कुछ एक हैं।
एचआईवी से संक्रमण या एड्स से ग्रस्त होना कोई ऐसी बात नहीं है जिसे छुपाया जाए, क्योंकि छुपाने से यह संक्रमण और भी ज्यादा लोगों में फैल सकता है। समाज में एचआईवी/एड्स संकमित लोगों को सहायता और सहानुभूति की जरूरत होती है एवं उन्हें देय दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए। जब तक समाज इसे एक ऐसी समस्या के रूप में नहीं देखेगा जिसका समाधान
सामूहिक तौर पर किया जाना चाहिए, तब तक रोग के व्यापक रूप से फैलने की गुंजाइश कई गुना ज्यादा बढ़ेगी। यह एक ऐसी व्याधि है जिसके फैलाव को समाज और चिकित्सक वर्ग के सम्मिलित प्रयास से ही रोका जा सकता है।
प्रश्न 11. कैंसर रोग के कारण क्या हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर-कैंसर के कारण-प्रसामान्य कोशिकाओं का कैंसरी नवद्रव्यीय कोशिकाओं में रूपांतरण को प्रेरित करने वाले कारक भौतिक, रासायनिक अथवा जैविक हो सकते हैं। ये कारक कैंसरजन कहलाते हैं। एक्स-किरण और गामा किरणों जैसे आयनकारी विकिरण और पराबैंगनी जैसे अनायनकारी विकिरण डीएनए को क्षति पहुँचाते हैं, जिससे नवद्रव्ययी रूपांतरण होता है। तम्बाकू के धुएँ में मौजूद रासायनिक कैंसरजन फेंफड़े के कैंसर के मुख्य कारण हैं। कैंसर उत्पन्न करने वाले विषाणु अर्बुदीय विषाणु (आंकोजेनिक वायरस) कहलाते हैं। इनमें जो जीन होते हैं उन्हें विषाणुवीय अर्बुदजीन (वायरल आंकोजिन) कहते हैं। इसके अलावा प्रसामान्य कोशिकाओं में कई जीनों का पता चला है जिन्हें कुछ विशेष परिस्थितियों में सक्रियित किए जाने पर वे कोशिकाओं का कैंसरजनी रूपांतरण कर देते हैं। ये जीन कोशिकीय अर्बुदजीन (सेल्यूलर आंकोजिन-सी आंक) या आदिअर्बुद जीन (प्रोटो-आकोजिन ) कहलाते हैं।
प्रश्न 12. कैंसर रोग का उपचार कैसे किया जाता है?
उत्तर-कैंसर का उपचार-आमतौर पर कैंसर के उपचार के लिए शल्यक्रिया, विकिरण चिकित्सा और प्रतिरक्षा चिकित्सा का सहारा लिया जाता है। विकिरण चिकित्सा में, अर्बुद कोशिकाओं को घातकरूप से किरणित (इरेटेड) किया जाता है लेकिन अर्बुद के ढेर के पास वाले
प्रसामान्य ऊत्तकों का पूरा ध्यान रखा जाता है। कैंसर-कोशिकाओं को मारने के लिए अनेक रसोचिकित्सीय (कीमोथेरा प्यूटिक) औषध काम में लाए जाते हैं। इनमें से कुछ औषध विशेष अर्बुदों के लिए विशिष्ट हैं। अधिकांश औषधों के अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) होते हैं जैसे कि बालों का झड़ना, अरक्तता आदि। अधिकांश कैंसर का उपचार शल्यकर्म, विकिरण चिकित्सा और रसोचिकित्सा के संयोजन से किया जाता है। अर्बुद कोशिकाएँ प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पता लगाए जाने और नष्ट किए जाने से बचती हैं। इसलिए, ऐसे पदार्थ दिए जाते हैं जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपांतरण कहते हैं, जैसे कि Y-इंटरफेरॉन, जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करता और अर्बुद को नष्ट करने में सहायता करता है।
               दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. व्यक्तिगत स्वास्थ्य-विज्ञान क्या है? व्यक्तिगत स्वास्थ्य-विज्ञान में शामिल किन्हीं चार गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-स्वस्थ तथा रोगमुक्त रहने के लिए स्वयं की देखभाल की व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान है। अच्छे व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान के कुछ मुख्य पहलु अग्रलिखित हैं-
(1) संतुलित आहार-संतुलित आहार प्राप्त करना अपनी रुचि और अपनी सामर्थ्य पर निर्भर करता है। संतुलित आहार में सही अनुपात में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज और रुक्षांश शामिल हैं।
(2) व्यक्तिगत स्वास्थ्य-विज्ञान-स्वयं को स्वच्छ रखने के लिए कुछ कार्य प्रतिदिन किए जाते हैं। ये कार्य हैं-
(i) नियमित शौच की आदत-हमारा पाचन-तंत्र सुचारू रूप से कार्य कर रहा है तो आहार-नाल के भीतर बचा अपचित भोजन शौच के समय नियमित रूप से बाहर
निकल जाता है।
(ii) खाने से पूर्व हाथों को धोना-गंदे हाथों से भोजन करने से हम बीमार पड़ सकते हैं, क्योंकि हमारे हाथ में लगी गंदगी में कुछ बीमारी फैलाने वाले कीटाणु हो सकते हैं। शौच जाने के बाद अपने हाथों को धोना चाहिए। साबुन से हाथ धोना उन्हें रोगाणुमुक्त बनाता है।
(iii) नियमित स्नान करना एवं स्वच्छ-साफ कपड़े पहनना-धूल से रोगाणु पनपते हैं। नियमित स्नान से शरीर धूल, जुओं और रोगाणुओं से मुक्त रहता है।
(iv) दाँतों की सफाई-भोजन के पश्चात् खाने के कुछ कण दाँतों में चिपके रह सकते हैं। ये खाद्यकण कीटाणुओं के पनपने का माध्यम बनते हैं, मसूड़ों व दाँतों को हानि पहुँचाते हैं और बदबू पैदा करते हैं। दाँतों पर पहले ब्रुश करना एक बहुत अच्छी आदत है।
(3) घरेलू स्वास्थ्य विज्ञान-
(i) घर को स्वच्छ तथा धूल-मिट्टी, मक्खियों एवं रोगाणुओं से मुक्त रखना चाहिए।
(ii) खाना पकाने के बर्तन, तश्तरी एवं अन्य बर्तन भी साफ रखना चाहिए।
(4) सावधानीपूर्वक भोजन पकाना-
(i) भोजन को एक स्वच्छ रसोई में स्वच्छ रीति से पकाना चाहिए।
(ii) पकाए गए भोजन को ताजा खाना चाहिए या किसी ठंडे, मक्खी रहित स्थान पर रखना चाहिए।
(iii) फ्रिज में या उससे बाहर रखे हुए दूध को पुन: उबालना चाहिए ताकि वह रोगाणु-मुक्त बन जाए।
प्रश्न 2. संक्रामक एवं गैर-संक्रामक रोगों में अंतर स्पष्ट करें। संक्रामक रोगों के फैलने के किन्हीं चार तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर-रोगों का कारक के आधार पर वर्गीकरण हो सकता है। ऐसे रोग, जो वायु, जल, शारीरिक स्पर्श अथवा रोगवाहकों, जैसे-मक्खियों व मच्छरों से फैलते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। जैसे-मलेरिया, टाइफाइड, सर्दी-जुकाम, खसरा व तपेदिक। ऐसे रोग विषाणु, जीवाणु, कवक, कृमि, प्रोटोजोआ, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं।
गैर-संक्रमित रोग रोगाणु जनित नहीं होते। ये रोग आहारी अभाव से हो सकते हैं। जैसे-रिकेट्स, स्कर्वी, क्वाशियोरकॉर आदि। आनुवंशिक दोष हॉर्मोनी असंतुलन, एलर्जी आदि के कारण हो सकते
संक्रामक रोगों के फैलने के कुछ निम्नलिखित कारण इस प्रकार हैं-
(i) विषाणुक रोग- इंफ्लुएंजा।
कारक जीव – इंफ्लुएंजा विषाणु।
संक्रमण की विधि – प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क।
लक्षण – ज्वर, बदन दर्द, गला खराब, छींकना।
निवारण (चिकित्सा) – सावधानी बरतकर, द्वितीयक संक्रमण रोकने के लिए, ऐंटिबायोटिक लेना।
(ii) रोग – यकृतशोथ (पीलिया)।
कारक जीव-विषाणु।
संक्रमण की विधि – दूषित जल।
लक्षण – कमजोरी, शरीर का तापमान बढ़ना, मूत्र, आँखों व नखों का पीलापन, भूख की कमी, जी मचलना तथा वमन।
निवारण/चिकित्सा – उपचारित जल पीना, टीकाकरण, संक्रमित व्यक्ति एवं उसकी वस्तुओं के संपर्क से दूर रहना।
(iii) रोग-दाद।
कारक जीव – कवक।
संक्रामक विधि – प्रत्यक्ष संपर्क।
लक्षण – चमड़ी/त्वचा तथा खोपड़ी पर रंगहीन गोल चकते, खुजली, लालिमा।
निवारण/चिकित्सा – व्यक्तिगत स्वच्छता।
(iv) रोग – हैजा।
कारक जीव-जीवाणु।
संक्रामक विधि – दूषित भोजन व जल, रोगी के मल में उपस्थित रोगाणुओं से।
लक्षण – पतले दस्त, वमन, निर्जलीकरण, पेशी ऐंठन।
निवारण/चिकित्सा – स्वच्छ एवं उपचारित जल का प्रयोग, टीकाकरण, प्रदूषण से बचाव।
प्रश्न 3. प्रतिरक्षाकरण क्या है? राष्ट्रीय प्रतिरक्षा कार्यक्रमों के अनुसार बीमारी स्पष्ट करते हुए किन्हीं चार टीकों के नाम व उम्र बताइए जब उन्हें दिया जाना चाहिए।
उत्तर-रोगों के खिलाफ शरीर को बचाने की शारीरिक क्षमता को प्रतिरक्षा कहते हैं। माँ का दूध शैशव काल में नवजात शिशु के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह उसे रोगों से लड़ने की प्रतिरक्षा करता है। प्रतिरक्षा दो प्रकार की होती है-
(i) सहज प्रतिरक्षा (जन्मजात)।
(ii) उपार्जित प्रतिरक्षा (व्यक्ति के जीवनकाल में प्राप्त)।
प्रतिरक्षा के तरीके
(i) रोगग्रस्त होने पर-किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति उस बीमारी के खिलाफ आजीवन प्रतिरक्षा प्राप्त कर लेता है, जैसे-चेचक, खसरा या गलसुआ।
(ii). टीकाकरण द्वारा-पोलियो, तपेदिक, यकृतशोथ इत्यादि जैसी बीमारियों के खिलाफ टीके लगवा कर।
“टीके, क्षीण किए रोगाणु हैं। जब ये शरीर में प्रवेश करते हैं तो रोगों के खिलाफ शारीरिक प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं लेकिन रोग नहीं पैदा करते।” कई संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए टीकों द्वारा प्रतिरक्षाकरण अत्यधिक कारगर ढंग है। लकवा, चेचक, टिटनेस, पतले दस्त,काली खाँसी, तपेदिक और विभिन्न प्रकार के यकृतशोथों के खिलाफ टीके उपलब्ध हैं। आजीवन प्रतिरक्षा के लिए अधिकतर प्रतिरक्षण को कम उम्र में प्रदान किया जाना चाहिए।
कुछ महत्त्वपूर्ण प्रतिरक्षा टीकाकरण का ब्यौरा निम्न प्रकार से हैं-

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