bihar board class 9 samajik vigyan – संरचना एवं महत्त्व
भौतिक स्वरूप : संरचना एवं महत्त्व
bihar board class 9 samajik vigyan
class – 9
subject – geography
lesson 2 – भौतिक स्वरूप : संरचना एवं महत्त्व
भौतिक स्वरूप : संरचना एवं महत्त्व
महत्त्वपूर्ण तथ्य-
विशाल आकार होने के कारण हमारे देश के भौतिक स्वरूप में बहुत विविधता पाई जाती है। इस भौतिक स्वरूप के रूप-रेखा को तैयार होने में करोड़ों वर्ष लगे हैं, भारत के भौतिक स्वरूप के निर्माण की प्रक्रिया को बताने में अधिकतर भूगर्भशास्त्रियों ने “प्लेट-विवर्ततनिक” सिद्धांत पर सहमति दी है जिसके अनुसार सम्पूर्ण भू-पर्पटी कई प्लेटों में विभाजित है, जिसका हिस्सा प्रायद्वीपीय पठार है। सामान्य तौर पर इन प्लेटों को तीन भागों में विभाजित किया गया है। कुछ प्लेटें एक-दूसरे के करीब आती हैं और विनाशी प्लेट सीमान्त का निर्माण करती है।
एक-दूसरे से दूर जाती हैं तो निर्माणक प्लेट सीमान्त का निर्माण करती हैं। जब दो प्लेट एक-दूसर से दूर जाती है तथा एक दूसरे के विपरीत दिशा में जाती हुई एक-दूसरे को रगड़ती हैं तो उस संरक्षी प्लेट सीमान्त कहते हैं। भारत का सम्पूर्ण क्षेत्रफल विभिन्न भागों में विभाजित है। इसका
11% भाग पर्वतीय, 28% भाग पठारी, 18% पहाड़ी और 43% भू-भाग मैदानी है। पहाड़ी एवं पठारी भाग की औसत ऊँचाई 300-900 मीटर के बीच है तथा मैदान एवं तटीय क्षेत्र की औसत ऊंचाई 160 मीटर से भी कम है। झीलों के निक्षेपित होने से वृहद हिमालय में कई घाटियों का निर्माण हुआ है। उत्तर की उच्च भूमि के मध्य में 1000 मीटर से भी अधिक गहरी गार्ज पाई जाती है। यह दक्षिण की ओर चाप बनाते हुए उत्तर-पूर्व की ओर चली जाती है जहाँ ये पटकोई, नागा, मणिपुर तथा लुसाई के नाम से विख्यात है। हिमालय क्षेत्र में कई छोटी-बड़ी हिमानियाँ मिलती हैं
जिनमें गंगोत्री, यमुनोत्री, सियाचीन, बाल्टोरा, निआको तथा बतूरा प्रमुख हैं। यहाँ कई प्रसिद्ध दर्रे भी हैं जिनमें जोजिला बुर्जिल, लाचला, शिपकिला, थागला, नाथुला, जालेपला दर्रे आदि प्रमुख हैं। उत्तरी पर्वतीय भाग के दक्षिण का विशाल समतल भू-भाग गंगा-सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के तलछटों के निक्षेप से बना है। दक्षिण के पठार के पूर्वी और पश्चिमी किनारे पर तटीय मैदानों का विकास हुआ है। उत्तर के विशाल मैदान के उत्तर-पश्चिम में शुष्क प्रदेश है जो राजस्थान की मरुभूमि कहलाती है जो थार मरुस्थल का एक भाग है।
सामान्य तौर पर भारत को छ: भौतिक विभागों में बाटते हैं-प्रथम भाग में हिमालय की पर्वत
श्रेणी है जो भारत की उत्तरी सीमा पर फैली है। ये पर्वत श्रृंखलाएँ पश्चिम से पूर्व दिशा में सिंधु और ब्रह्मपुत्र के बीच करीब 2500 कि० मी० की लम्बाई में अर्द्धवृत्त के रूप में फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग कि. मी. है। इसकी चौड़ाई कश्मीर में 500 कि० मी० एवं
अरुणाचल में मात्र 160 कि. मी. है। पश्चिम भाग की अपेक्षा पूर्वी भाग की ऊँचाई में अधिक विविधता है तथा इसकी तीन समानान्तर शृंखलाएँ हैं। सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महान या आंतरिक हिमालय या हिमाद्रि कहते हैं। महान हिमालय के समानान्तर दक्षिण में स्थित श्रृंखला को लघु हिमालय अथवा मध्य हिमालय कहते हैं। हिमालय के सबसे दक्षिणी श्रृंखला को बाहरी हिमालय, उप हिमालय अथवा शिवालिक कहते हैं।
द्वितीय भाग में हिमालय पर्वत के दक्षिण और दक्षिणी पठार के उत्तर तीन प्रमुख नदी प्रणालियों और उसकी सहायक नदियों से बना विशाल मैदान अर्थात् सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान आता है। इस विशाल के मोटे तौर पर चारे उप-भाग हैं-सिन्धु और इसकी सहायक नदियों के द्वारा बना भाग पश्चिमी मैदान या पंजाब का मैदान कहते हैं। विशाल मैदान का दूसरा भाग राजस्थान का मैदान कहलाता है। बालुका स्तूप इसकी प्रमुख कलाकृति है। विशाल मैदान का तीसरा भाग यमुना नदी से लेकर पूर्व में बंग्लादेश की पश्चिमी सीमा तक फैले मैदान को मध्यवर्तीय मैदान या गंगा का मैदान कहते हैं। इस विस्तृत मैदान को तीन उपभागों में बाँटा गया है। ऊपरी गंगा का मैदान, मध्यवर्ती गंगा का मैदान तथा निचली गंगा का मैदान, विशाल मैदान का चौथा तथा अंतिमभाग है-ब्रह्मपुत्र का मैदान।
तृतीय भाग में दक्षिण का पठार प्राचीन गोंडवाना भूमि का अंश है। इसकी औसत ऊँचाई 600-900 मीटर है। इसे दो भागों में बाँटा गया है-मध्य उच्चभूमि तथा दक्कन का पठार । चतुर्थ भाग में दक्षिण के पठार के दोनों किनारों पर तटीय मैदान का विस्तार है। इस मैदान के दो भाग
हैं-पश्चिमी तटीय मैदान तथा पूर्वी तटीय मैदान । इसकी औसत ऊँचाई 10.60 कि०मी० के मध्य है। पाँचवें भाग में भारतीय मरुस्थल आता है जो राजस्थान के पश्चिम में स्थित है। यह 644 कि. मी. लम्बा तथा 160 कि. मी. चौड़ा है। इसका कुल क्षेत्रफल 104000 कि. मी. है। यह शुष्क
जलवायु वाला क्षेत्र है तथा यहाँ वर्षा 15 से.मी. से भी कम होती है। अंतिम भाग में द्वीप समूह आते हैं। इसके अंतर्गत 1256 द्वीप हैं । ये मुख्यतः दो समूहों में हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में 572 द्वीप है, अरब सागर में 47 द्वीप हैं। इसके अंतर्गत गंगा सागर और महानदी के डेल्टा के अनेक द्वीप स्थित हैं।
अर्थात् भारत के प्राकृतिक विभाग अत्यधिक विषमताओं से परिपूर्ण है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1.निम्नलिखित में कौन-सी चोटी भारत में नहीं है ?
(क) केर
(ख) कामेट
(ग) माउंट एवरेस्ट
(घ) नंदा देवी
उत्तर-(ग)
2.बिहार के उत्तर-पश्चिमी किनारे पर हिमालय की कौन-सी श्रेणी है ?
(क) महान हिमालय
(ख) शिवालिक
(ग) मध्य हिमालय
(घ) पूर्वी हिमालय
उत्तर-(ख)
3.हिमालय के निर्माण में कौन-सा सिद्धांत सर्वमान्य है ?
(क) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत
(ख) भूमंडलीय गतिशीलता सिद्धांत
(ग) प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ग)
4.सैडल चोटी की ऊँचाई है?
(क) 515 मी.
(ख) 460 मी०
(ग) 642 मी.
(घ) 798 मी.
उत्तर-(ग)
5.भारत का सबसे प्राचीन भूखण्ड
(क) प्रायद्वीपीय पठार
(ख) विशाल मैदान
(ग) उत्तर का पर्वतीय भाग
(घ) तटीय मैदान
उत्तर-(क)
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. हिमालय की तीन समान्तर श्रेणियों के नाम लिखें।
उत्तर-हिमालय की तीन समान्तर श्रेणियाँ हैं-
(i) सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को महान या आंतरिक हिमालय या हिमालय कहते हैं।
(ii) महान हिमालय के समानान्तर दक्षिण में स्थित श्रृंखला को लघु हिमालय अथवा मध्य हिमालय कहते हैं।
(iii) हिमालय के सबसे दक्षिणी श्रृंखला को बाहरी हिमालय, उपहिमालय अथवा शिवालिक कहा जाता है।
प्रश्न 2. काराकोरम के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर का नाम क्या है ?
उत्तर-काराकोरम के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर का नाम-माउंट गाडविन, आस्टिन।
प्रश्न 3. कौन-सा तटीय मैदान अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है ?
उत्तर-पूर्वी तटीय मैदान, पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा है। इसकी चौड़ाई 160-350 कि. मी. है।
प्रश्न 4. तटीय मैदान में स्थित झीलों के नाम लिखें।
उत्तर-पश्चिम तटीय मैदान की झीलों में नेम्बा नद तथा पूर्वी तटीय मैदान की झीलों में चिटका, पुलिकट तथा कोलेरू प्रमुख
प्रश्न 5. पश्चिमी घाट पर्वत का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर-पश्चिमी घाट पर्वत का दूसरा नाम सहयाद्रि की पहाड़ियाँ हैं।
प्रश्न 6. मध्य गंगा के मैदान की चार विशेषताओं के नाम बताएँ।
उत्तर-मध्य गंगा के मैदान की चार विशेषताएँ-
(i) इसकी लंबाई 1400 कि. मी. तथा चौड़ाई 140-500 कि० मी. है।
(ii) इस मैदान में पुरानी तलछट की परतें पाई जाती हैं जिसे बाँगर कहते हैं।
(iii) इस मैदान में नई तलछट की परतें भी पाई जाती हैं जिसे खादर कहते हैं।
(iv) ब्रह्मपुत्र के साथ मिलकर गंगा अपने मुहाने पर खेल्य बनाती है जो संसार में सबसे बड़ा है।
प्रश्न 7. हिमालय और प्रायद्वीपीय पर्वतों के दो प्रमुख अन्तर बताएँ।
उत्तर-हिमालय और प्रायद्वीपीय पर्वतों के दो प्रमुख अन्तर-
१.हिमालय पर्वत प्रायद्वीपीय पर्वतों की अपेक्षा अधिक ऊँचे हैं।
२.हिमालय पर्वत प्रायद्वीपीय पर्वतों की अपेक्षा अधिक लंबे हैं।
प्रश्न 8. “खादर” और “बांगर’ किसे कहते हैं?
उत्तर-खादर और बांगर में अन्तर-
खादर-नम कछारी भाग, जो निचले मैदान हैं और जहाँ बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुँचकर नयी मिट्टी को परत जमा कर देता है, खादर कहलाता है।
बांगर-गंगा के मैदान में जहाँ नदियों द्वारा पुरानी मिट्टी के ऊँचे मैदान बन गए हैं वहाँ नदियों के बाद का जल नहीं पहुंच पाता है उसे बांगर कहते हैं।
प्रश्न 9. पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अन्तर बताएं।
उत्तर-पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट में अन्तर-
पूर्वी घाट
[¡] यह उत्तर में गंगा के मुहाने से दक्षिण में कन्या कुमारी अंतरीप तक फैला है।
[¡¡] इसकी चौड़ाई 160-350 किलोमीटर है। नदियां धीमी गति से बहती है जिसके कारण मिट्टी का जवाब होता है।
पश्चिमी घाट
[¡] यह उत्तर में खंभात की खाड़ी से लेकर दक्षिण में कन्या कुमारी अंतरीप तक फैला है।
[¡¡] इसकी औसत चौड़ाई 10.60 किलोमीटर है। नदियां अधिक तीव्र गति से बहती है जिसके कारण मिट्टी का जवाब नहीं हो पाता है
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. उत्तर के विशाल मैदान की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर-भारत में विशाल मैदान का निर्माण हिमालय पर्वत के दक्षिण और दक्षिणी पठार के उत्तर तीन प्रमुख नदी प्रणालियों और उसकी सहायक नदियों से मिलकर बना है। यह मैदान जलोढ़ मिट्टी से बना है। यह भारत ही नहीं विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला
मैदान है। यह 7 लाख वर्ग किलोमीटर है। पश्चिम से पूर्व इसकी लम्बाई 2400 किमी है और इसकी चौड़ाई 150-500 किमी है। यह मैदान सामान्यतः समुद्र तल से 240 मीटर से अधिक ऊँचा नहीं है।
इस मैदान के चार उपभाग हैं-
(i) पंजाब का मैदान
(i) राजस्थान का मैदान
(iii) गंगा का मैदान
(iv) ब्रह्मपुत्र का मैदान
(¡) पंजाब का मैदान-सिंधु और इसकी सहायक नदियों के द्वारा बना भाग पश्चिम मैदान या पंजाब का मैदान कहलाता है। भारत में पंजाब और हरियाणा का पश्चिम हिस्सा इसमें शामिल है। इस भाग में हिमालय से निकलने वाली और इसकी सहायक नदियाँ-झेलम, चेनाब, रावी, व्यास तथा सतानुज हैं। रावी और व्यास के दोआब को ऊपरी बारी को दोआब कहते हैं तथा व्यास और सतलुज के बीच के दोआब को विस्ट दोआब कहते हैं। इस मैदान की औसत ऊंचाई 130 से 300 मीटर तक है तथा सामान्य ढाल उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर है।
(ii) राजस्थान का मैदान-विशाल मैदान का दूसरा उपभाग राजस्थान का मैदान है। इसकाविस्तार अरावली पर्वत के पश्चिम में है और यह मुख्यतः अर्द्धशुष्क और शुष्क प्रदेश है। बालुका स्तूप यहाँ की प्रमुख स्थलाकृति है। इस मैदान के पूर्वी भाग में कई पहाड़ियाँ हैं जिन्हें ‘टोर’ कहते हैं। लूनी इस प्रदेश की प्रमख नदी है और यह वर्षा के दिनों में कच्छ के रन तक जाती है। इस प्रदेश में सांवर, डेगना, दिदवाना तथा कचापन जैसे प्रसिद्ध खारे पानी के झील हैं।
(iii) मध्यवर्ती मैदान या गंगा का मैदान-इसका विस्तार यमुना नदी से लेकर पूर्व में बंगलादेश की पश्चिमी सीमा तक है। यह घघ्यर से तिस्ता नदी तक लगभग 1400 किमी. लप्या है। इसकी ढाल उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है। इस विस्तृत मैदान को तीन उपभागों में बाँटा गया है। ऊपरी गंगा का मैदान जिसके अंतर्गत दिल्ली से इलाहाबाद तक का क्षेत्र, मध्यवर्ती गंगा का मैदान जिसके अंतर्गत इलाहाबाद से फरक्का तक का क्षेत्र, निचली गंगा का मैदान जिसके अंतर्गत गंगा का डेल्टा प्रदेश आता है। बिहार राज्य का अधिकतर भाग गंगा और सहायक नदियों
द्वारा लाई गई मिट्टियों से बना है। बिहार में यह दो भागों में बँटा है-उत्तरी गंगा का मैदान जिसकी प्रमुख नदियाँ गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, महानन्दा हैं तथा दक्षिणी गंगा का मैदान जिसकी प्रमुख नदियाँ सोन, पुनपुन, फल्गु, चानन हैं।
(iv) ब्रह्मपुत्र का मैदान-इसका विस्तार राज्य में सदिया के उत्तर-पूर्व से होकर धुवरी स्थान
तक लगभग 650 कि मी लम्बा है। इसके पश्चिमी भाग को छोड़कर सभी ओर ऊँचे पहाड़ी भाग
हैं। ब्रह्मपुत्र नदी इस मैदान के मध्य से होकर गुजरती है।
नदियों द्वारा पर्वत से नीचे उतरते समय शिवालिक ढाल पर 8-16 किमी की चौड़ी पट्टी के रूप में छोटे-बड़े पत्थर जमा हो जाते हैं जिन्हें हम “भाबर” कहते हैं। गंगा के मैदान में जहाँ नदियों के बाढ़ का पानी ऊँचाई की वजह से नहीं पहुंच पाता उसे “खादर” कहते हैं। इनका
प्रत्येक वर्ष पुनर्नवीकरण होता है। इसलिए यह कृषि के लिए आदर्श एवं उपजाऊ है।
प्रश्न 2. प्रायद्वीपीय पठार को विभाजित कर किसी एक की चर्चा विस्तार से करें।
उत्तर-प्रायद्वीपीय पठार त्रिभुजाकार आकृति का है तथा प्राचीन गोंडवाना भूमि का अंश है। इसकी औसत ऊंचाई 600-900 मीटर है। इसके उत्तर में अरावली, विंध्याचल एवं सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं। पश्चिम में पश्चिम घाट पर्वत तथा पूर्व में पूर्वी घाट की पहाड़ियाँ हैं।
इस पठारी भाग के मुख्यतः दो भाग हैं-
(i) मध्य उच्च भूमि
(ii) दक्कन का पठार।
दक्कन का पठार-दक्कन के पठार को दक्कन ट्रैप भी कहते हैं। इसका विस्तार लगभग 5 लाख वर्ग कि. मी. में है तथा यह लावा निर्मित है। यहाँ लावा की अधिकतम गहराई लगभग 2134 मीटर है। इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के अधिकांश भाग, पश्चिमी आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक तथा तमिलनाडु के कुछ भाग आते हैं।
पश्चिमी घाट पर्वत उत्तर में तामी पदी के बार तट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में कन्याकुमारी अन्तरीप तक फैला है जिसकी लम्बाई लगभग 1600 किमी. है। इसे सहयादि की पहाड़ियाँ भी कहते हैं। यहाँ चार प्रमुख दर्रे भी हैं जिन्हें थालघाट, भोरघाट, पालघाट और शिनकोटा कहते हैं।
दक्षिण की ओर पश्चिमी घाट पर्वत नीलगिरि पर्वत द्वारा पूर्वी घाट से मिल जाता है। जिसकी सबसे ऊँची चोटी दोदा बेटा 2670 मीटर ऊँची है। लेकिन द भारत की सर्वोच्च चोटी दोदा बेटा नहीं बल्कि अन्नामुडी (2695 मी०) है जो अन्नामलाई की पहाड़ी पर स्थित है।
पूर्वी घाट पर्वत, पूर्वी समुद्र तटीय मैदान के समानान्तर महानदी की घाटी से दक्षिण में नीलगिरि तक फैले हैं जिसकी लंबाई 1800 कि० मी. है। यह पश्चिमी घाट पर्वत की अपेक्षा अधिक कॅटे-छंटे तथा पहाड़ियों के रूप में हैं। उड़ीला में महेन्द्र गिरि, आन्ध्रप्रदेश में नलामलई,
मालकोंडा तमिलनाडु में अन्नामलाई, पचामलाई, शिवराय, पलनी, बेलगिरी प्रमुख पहाड़ियाँ हैं। ये पहाड़ियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों द्वारा पृथक होती हैं।
प्रश्न 2. हिमालय पर्वत श्रृंखला की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-हिमालय पर्वत शृंखला भारत की उत्तरी सीमा पर फैला हुई है जो बनावट के दृष्टिकोण से वलित पर्वत शृंखला है। ये पर्वत शृंखला पश्चिम से पूर्व दिशा में सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र के बीच करीब 2500 कि० मी० में फैली है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग कि मी० है। यह विश्व की सबसे ऊँची पर्वत श्रेणी है। इसकी चौड़ाई कश्मीर में 500 कि० मी० एवं अरुणाचल में मात्र 160 कि० मी० है। पूर्वी घाट में ऊँचाई में विविधता के कारण इसकी तीन समानान्तर सबसे उत्तरी भाग में स्थित श्रृंखला को आंतरिक हिमालय या हिमादि कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 6100 मीटर है। इसके शिखर सर्वाधिक ऊँचे हैं। इसका उपरी भाग हमेशा बर्फ से ढंका रहता है। जम्मू कश्मीर के उत्तर में कुछ अन्य श्रेणियाँ भी हैं जिसमें जॅस्कार पर्वत श्रेणी तथा काराकोरम पर्वत श्रेणी है। इसमें काराकोरम पर्वत श्रेणी जिसे ट्रांस हिमालय भी कहते हैं, भारत का सबसे ऊँचा तथा विश्व का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। इसे गाडविन आस्टीन तथा गौरीनन्दा पर्वत
भी कहते हैं।
महान हिमालय के समानान्तर दक्षिण में स्थित श्रृंखला को लघु हिमालय कहते हैं। यह हिमालय की सबसे खंडित श्रेणी है। इसकी ऊँचाई 1800 मीटर से 4500 मी० तथा औसत चौड़ाई 50 कि. मी. है। कुछ चोटियाँ 5000 मीटर से अधिक ऊँची हैं, शीत ऋतु में यहाँ 3-4 महीने तक बर्फ गिरती है। कश्मीर की पीरपंजल श्रेणी इसी का एक भाग है। यहाँ के पर्यटन स्थलों में कश्मीर
की घाटी, शिमला, मसूरी, नैनिताल, दार्जिलिंग आदि प्रमुख हैं।
हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रृंखला को बाहरी हिमालय या शिवालिक कहा जाता है। यह हिमालय की सबसे निचली शृंखला है। यह पश्चिम में पोतवार के पठारी क्षेत्र से प्रारम्भ होकर पूरब की ओर तिस्ता नदी तक फैला है। इसकी औसतन ऊँचाई 900-1500 मी० के बीच तथा चौड़ाई
10-50 कि. मी. है। इसमें कुछ विस्तृत घाटियाँ भी हैं जिन्हें दून या द्वार कहते हैं । जैसे देहरादून, कोटलीदून एवं पाटलीदून, बुटवाल, काँगड़ा घाटी, अलीपुर द्वार इत्यादि। बिहार के लगभग 856 वर्ग कि. मी. क्षेत्र में इसका विस्तार है जिन्हें सोमेश्वर की पहाड़ियाँ कहते हैं।
इसके अतिरिक्त हिमालय को पश्चिम से पूर्वी क्षेत्र तक नदी घाटियों की सीमा के आधार पर विभाजित किया जाता है। सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित भाग को कुमायुं हिमालय, काली तथा तिस्ता नदियाँ नेपाल हिमालय का एवं तिस्ता तथा दिहांग नदियाँ असम हिमालय का सीमांकन करती हैं। ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय की पूर्वी सीमा बनाती है। दिहांग के बाद हिमालय दक्षिण की ओर एक तीखा मोड़ बनाते हुए भारत की पूर्वी सीमा के साथ फैल जाता है जिसे पूर्वी पहाड़ियाँ कहते हैं। इनमें पूर्वांचल की पटकोई, नागा, लुसाई तथा मणिपुर की पहाड़ियाँ शामिल हैं।