8th sanskrit

class 8th sanskrit book solution | रविषष्ठी – व्रतोत्सवः

रविषष्ठी – व्रतोत्सवः

class 8th sanskrit book solution

वर्ग – 8

विषय – संस्कृत

पाठ 13 – रविषष्ठी – व्रतोत्सवः

 रविषष्ठी – व्रतोत्सवः
( सन्धि , विभक्ति )
[ मूलतः दक्षिण विहार…….परिचय दिया गया है ]
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प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी………विशिष्टता वर्तते।

अर्थ – प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सबसे अधिक तेजस्वी और आरोग्यपद माना जाता है । इसमें सभी जीव , प्राणी और वनस्पतियाँ ( पेड़ – पौधे ) प्राण को पाते हैं । इसकी उपयोगिता को विचार कर देव रुप से  इसको लोग पूजते हैं । प्राचीन काल से सूर्य भगवान पूजे जाते हैं । सूर्य के पूजन में कोई पुरोहित मध्यस्थ ( विचौलिया ) नहीं होता है यह इस व्रत को विशेषता है ।

कार्तिको मासः वर्षाशीतयोः …….अर्घ्यदानं कुर्वन्ति ।

अर्थ– कार्तिक मास वर्षा और शौत के बीच में होता है । उसी प्रकार चैत्र मास शीत और ग्रीष्म के सन्धि काल में होता है । संधिकाल में स्थित ये दोनों मासों में अनेक रोग , बुखार , खाँसी आदि उत्पन्न होते हैं । वहाँ रोगों के विनाश के लिए उपवास आवश्यक है । उपवास छठ पर्व में अनिवार्य रूप से होता है । अतः इस व्रत का वैज्ञानिक महत्व है । चैत्र मास में सूर्य प्रकाश से गेहूँ आदि अन्न पकते हैं । उनका प्रयोग इस व्रत के नैवेद्य ( प्रसादी ) के लिए होता है । इसीलिए चैत्र कालिक व्रत उत्सव प्रायः शहरों आयोजित होता है । सब तरह से ( दोनों मास के व्रत में ) तालाब या नदी रूपी जलाशय इस व्रत में आवश्यक है । सागर तट पर स्थित लोग सागर में भी स्नान कर अर्घ्य दान
करते हैं

यस्मिन् मासे रविषष्ठी व्रतोत्सवः…….. अपरेभ्यश्च प्रयच्छन्ति ।

अर्थ – जिस मास में छठ पर्व आयोजित होता है । उसमें उस परिवार के लोग प्रथम दिवस से ही नहीं खाने योग्य पदार्थों को खाना वर्जित हो जाता है । शुक्ल पक्ष के चौथे दिन संयत ( नहाय खाय ) नामक क्रियाकलाप प्रारम्भ होता है । उस दिन स्नान कर पवित्र सिद्ध अन – भात आदि पकाये जाते हैं । प्रियजन को भी व्रती भोजन कराते हैं । वस्तुतः उसी दिन में संयम ( नियम ) प्रारम्भ होता है । पांचवें दिन एक बार ही व्रती लोग खीर और रोटी सूर्यास्त के बाद खाते हैं । इष्टजनों ( मित्र वर्गों ) को भी भोजन कराया जाता है । इसके बाद छठे दिन सम्पूर्ण दिन व्रतो लोग निराहार रहकर सायंकाल में सूपों में फल रखकर और दीपक जलाकर सूर्य के लिए अर्घ्यदान करते हैं । यह दृश्य बहुत पवित्र और मनोहर होता है । रात्री में जमीन पर सोकर व्रती लोग पुनः प्रातःकाल में सातवें दिन उदयमान ( उगते हुए ) सूर्य को स्नान करके अध्यंदान पूर्व दिन के तरह हो करते हैं । उसके बाद पारण किया जाता है । व्रती लोग स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं और दूसरों को भी देते हैं ।

इत्थं रविषष्ठी व्रतोत्सवः……….. वर्धमानः दृश्यते ।

अर्थ – इस प्रकार छठ पर्व सूर्य उपासना का महत्वपूर्ण अवसर है । वस्तुत : इसमें षष्ठी देव का पूजन संतान लाभ के लिए तथा सूर्य का पूजन आरोग्यता के लिए होता है । दोनों का पूजन मिश्रण रूप यह व्रत है । क्रमशः इसका प्रसार बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है ।

शब्दार्थ –
प्राकृतिकपदार्थेषु = प्राकृतिक पदार्थों में । सर्वाधिकः = अत्यधिक , सबसे बढ़कर । तेजस्वी = तेजस्वी , आत्मबल से युक्त , ओज से युक्त , कर्जावान् ( व्यक्ति ) । आरोग्यापदः = नीरोगता प्रदान करने वाला । मन्यते = माना जाता है । लभन्ते = प्राप्त करते हैं । विचार्य विचार करके , सोचकर । देवरूपेण = देवता के रूप में । पूजयन्ति = पूजते हैं । प्राचीनकालात् = पुराने समय से । पूजने = पूजा करने के समय में । कश्चित् = कोई । मध्यस्थः = बीच में रहने वाला , बिचौलिया । अपेक्षितः = आवश्यक । शीतः = जाड़ा । अवस्थितः = स्थित ।अमृता भाग -3 75 एवमेव ( एवम् + एव ) = इसी प्रकार , ऐसा ही । ग्रीष्मः = गर्मी । सन्धिकालः = जोड़नेवाला / बीच वाला समय । अनयोः = दोनों में । ज्वरकासादयः = बुखार , खाँसी आदि । प्रभवन्ति = उत्पन्न होते हैं । विनाशाय = विनाश के लिए । चैत्रमासे = चैत महीने में । अन्नानि = अन्न । पच्यन्ते = पकायें जाते हैं । वितप्तानि = धूप में सुखाये हुए । पच्यते = पकाये जाते हैं । गोधूमः = गेहूँ । नैवेद्याय = पूजा की सामग्री के लिए । ग्रामेषु = गाँवों में । कार्तिकालिकाः = कार्तिक माह वाला । नगरेषु = नगरों / शहरों । बहुधा = प्रायः । सर्वथा = सब तरह के । तडागः = तालाब । सागरतटेषु = समुद्र के किनारे । स्नात्वा = स्नान करके । अर्घ्यदानम् = चढ़ावा , पूजन सामग्री का दान । यस्मिन् = जिसमें । अभक्ष्याः = नहीं खाने योग्य । वर्जिताः = मना किये हुए । तदा = तब । सिद्धान्नम् = पका हुआ अन्न । ओदनादिकम् ( ओदन + आदिकम् ) = भात आदि । इष्टजनानपि ( इष्टजनान् + अपि ) = प्रिय लोगों को भी । भोजयन्ति = खिलाते हैं । प्रारभते = शुरू होता है । पायसम् = खीर । रोटिका = रोटी । अनन्तरम् = बाद में , पश्चात् । कुर्वन्ति = करते हैं । ततः = इसके बाद । अनाहाराः = बिना भोजन किए । धारयित्वा = रखकर । प्रज्चाल्य = जलाकर । शयित्वा = सोकर । उदीयमानाय = उगते हुए को । पूर्ववत् = पहले की तरह । क्रियते = किया जाता है । अपरेभ्यः = दूसरों को । प्रयच्छन्ति = देते हैं । इत्थम् = इस प्रकार । वर्धमानः = बढ़ता हुआ । दृश्यते = दिखलायी देता है , देती है ।

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेदः
आरोग्यप्रदश्च = आरोग्यप्रदः + च ( विसर्ग सन्धि ) । कश्चित् = कः + चित् ( विसर्ग सन्धि ) ।
एवमेव = एवम् + एव ।
व्रतोत्सव : = व्रत + उत्सवः ( गुण सन्धि ) ।
तस्मादेव = तस्मात् + एव ( व्यञ्जन सन्धि ) । एकवारमेव = एकवारम् + एव ।
सूर्यास्तादनन्तरम् = सूर्यास्यात् + अनन्तरम् ( व्यञ्जन सन्धि ) ।
अपरेभ्यश्च = अपरेभ्यः + च ( विसर्ग सन्धि ) ।

प्रकृति – प्रत्यय – विभाग :

मन्यते =√मन् लट् लकार , प्रथम पुरुष , एकवचन लभन्ते =√लभ् लट् प्रकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन विचार्य =वि +√ चर + ल्यप्
पूजयन्ति =√पूज् लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन पूज्यते=√पूज + यक् ( य ) कर्मवाच्य , लट् लकार , प्रथम पुरुष , एकवचन
अवस्थितः=अव + √स्था + क्त पुल्लिङ्ग , एकवचन
प्रभवन्ति=प्र + √भू लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
प्राप्नोति=प्र + √आप् लट् लकार , प्रथम पुरुष , एकवचन
पच्यन्ते=√पच + यक , कर्मवाच्य , प्रथम पुरुष , बहुवचन
प्रसिद्धः=प्र + √सिध् + क्त , पुंल्लिङ्ग , एकवचन आयोजित : =आ + √यूज् + णिच् + क्त , पुल्लिङ्ग , एकवचन
स्नात्वा= √स्ना + क्त्वा
कुर्वन्ति = √कृ लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
वर्जिताः = √वृज + क्त , पुं . / स्त्री . , बहुवचन स्नात्वा =√स्ना + क्त्वा
भोजयन्ति =√भुज + णिच् लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
प्रारभते =प्र + आ + √रभ् लट् लकार , प्रथम पुरुष , एकवचन
शयित्वा  =शीड़ + क्त्वा
प्रयच्छन्ति = प्र +√ दाण लट् लकार , प्रथम पुरुष , बहुवचन
वर्धमानः = √वृध + शानच् पल्लिङ्ग , एकवचन
दृश्यते= √दृश् + यक् ( य ) कर्मवाच्य , प्रथम पुरुष , एकवचन

अभ्यासः



मौखिक
1. अघोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत –
प्राकृतिकपदार्थेषु , तेजस्वी , आरोग्यप्रदः वर्षाशीतयोः , शीतग्रीष्मयोः ज्वरकासादयः , रविषष्ठीव्रते , अनिवार्यतया , गोधूमादीनि , नैवेद्याय , व्रतोत्सवस्तु , सागरेऽपि , रविषष्ठीव्रतोत्सवः , अभक्ष्याः , पायसरोटिकयोः , सूर्यास्तादनन्तरं , प्रज्वाल्य , अपरेभ्यश्च ।
2. निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थ वदत् –
उत्तरम् – प्राकृतिकपदार्थेषु = प्राकृतिक पदार्थों में । तेजस्वी = तेज , उर्जावान् । आरोग्यप्रद = आरोग्यता प्रदान करने वाला । ज्वरकासादयः = बुखार – खाँसी आदि । गोधूमादीनि = गेहूं आदि । नैवेद्याय = प्रसादी के लिए । रनात्वा = स्नान कर । अर्घ्यदानम् = अर्घ्य का दान । अभक्ष्या = नहीं खाने योग्य । वर्जिता = मना ( वर्जित ) । इष्ट जनान् = इष्ट जनों को । तस्मात् इसलिए । पायसरोटिकयोः = खीर रोटी का । प्रज्वाल्य = जलाकर । अपरेभ्यः = दूसरों को ।। वर्धमानः = बढ़ता हुआ ।
3. सत्यम् असत्यम् वा वदत् –
प्रश्नोत्तरम्
( क ) प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्यः आरोग्यप्रदः मन्यते । ( सत्यम् )
( ख ) सूर्यः देवरूपेण पूज्यते । ( सत्यम् )
( ग ) कार्तिको मासः शीतवसन्तयोः मध्ये अवस्थितः । ( असत्यम् )
( घ ) चेत्रो मासः शीत ग्रीष्मयोः सन्धि कालः ।( सत्यम् )

4.  बिहार में मनाये जाने वाले किसी एक पर्व का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तरम् -बिहार पर्व प्रधान राज्य है यहाँ होली दिवाली , छठ इत्यादि पर्व धूमधम और श्रद्धा से मनाया जाता है । उसी पर्यों में से एक पर्व केवल बिहार में मनाये जाने वाला है । चतुर्थी चन्द्र पूजन ( चौथ चन्द्रा ) व्रत भी बिहारवासी प्रायः उत्तर बिहार में बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं ।
चन्द्रमा को कल्पना हितकारी देव रूप में कर के लोग यह व्रत करते हैं । यह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है । एक दिन पूर्व से ही पूरा परिवार शुद्ध और पवित्र अन्न खाते हैं । व्रत के रोज व्रती उपवास रखकर सायंकाल में खीर , पुड़ी , फल दही लेकर चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं । व्रती स्वयं प्रसाद खाकर दूसरों को बाँटते हैं । दृष्ट मित्र भी प्रसाद खने के लिए आते हैं । कहा जाता है कि मिथ्या कलंक से वचने के लिए भावशुक्ल चतुर्थी चन्द्र का पूजन करना चाहिए ।
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लिखित

1. एकपदेन उत्तरत –
( क ) प्राकृतिक पदार्थेषु सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च कः ?
उत्तरम् – सूर्यः ।
( ख ) कार्तिक मासः कस्मात् मासात् पश्चात् आगच्छति ?
उत्तरम् – आश्विनमासात् ।
( ग ) रोगाणां विनाशाय कः आवश्यकः ?
उत्तरम् – व्रतः ।
( घ ) रवि षष्ठी व्रतोत्सवः कदा मन्यते ?
उत्तरम् कार्तिक – चैत्र मासयोः ।
( ङ ) सूर्योपसानायाः महत्वपूर्णः अवसरः कः ?

उत्तरम् – रविषष्ठी – व्रतोत्सवः ।

2. पूर्ण वाक्येन उत्तरत –
( क ) रविषष्ठी व्रतोत्सवः अन्येन केन नाम्ना ज्ञायते ?

उत्तरम् – रवि षष्ठी व्रतोत्सवः अन्येन छठपर्वेन नाम्ना ज्ञायते ।
( ख ) रवि षष्ठी व्रतोत्सवः कदा मन्यते ?
उत्तरम् -रवि षष्ठी व्रतोत्सवः कार्तिक चैत्र मासयोः मन्यते ।
( ग ) छठ – व्रतोत्सवे कस्य पूजा भवति ?
उत्तरम् – छठ – व्रतोत्सवे सूर्यस्य पूजा भवति ।
( घ ) रवि षष्ठी व्रतोत्सवः कार्तिक मासस्य कस्मिन् दिवसे मन्यते ?
उत्तरम् – रविषष्ठीव्रतोत्सवः कार्तिक मासस्य षष्ठी दिवसे मन्यते ।
( ङ ) कार्तिक मासस्य शुक्लपक्षस्य सप्तमदिवसे किं भवति ?
उत्तरम् – कार्तिक मासस्य शुक्लपक्षस्य सप्तमदिवसे पारणं भवति ।





3. उदाहरणानुसारं लिखत

एकवचनम्             बहुवचन
उत्तरम्-
( क ) लभते             लभन्ते
( ख ) वर्तते              वर्त्तन्ते
( ग ) प्रभवति           प्रभवन्ति
( घ ) भवति            भवन्ति
( ङ ) करोति           कुर्वन्ति
( च ) प्रारभते           प्रारमन्ते
( छ ) भोजयति        भोजयन्ति
( ज ) प्रयच्छति         प्रयच्छन्ति
( झ ) पश्यति           पश्यन्ति

4. उदाहरणानुसारेण विभक्ति निर्णयं कुरुत
यथा –पदार्थेषु                    सप्तमी विभक्ति उत्तरम् – वनस्पतयः               प्रथमा विभक्ति
प्राचीनकालात्                    पंचमी विभक्ति
वर्षाशीतयोः                      सप्तमी / षष्ठी विभक्ति
रोगाणाम्                          षष्ठी विभक्ति
रविष्ठी व्रत                        सप्तमी विभक्ति
वतस्य                              षष्ठी विभक्ति
नैवेद्याय                           चतुर्थी विभक्ति
भूमौ                               सप्तमी विभक्ति सूर्योपासनायाः                      षष्ठी विभक्ति

5. मेलनं कुरुत

( क ) सूर्यः       ( 1 ) ऊर्जावान्
( ख ) तेजस्वी     ( 2 ) रविः
( ग ) अनिवार्य :   ( 3 ) प्रायः
( घ ) बहुधा         ( 4 ) अपरिहार्यः
( ङ ) स्नात्वा        ( 5 ) विस्तारः
( च ) प्रसारः          ( 6 ) स्नानं कृत्वा
उत्तरम्- ( क ) ( 2 ) । ( ख ) ( 1 ) । ( ग ) ( 4 ) । ( घ ) ( 3 ) । ( ङ ) ( 6 ) । ( च ) ( 5 ) ।

6. कोष्ठात् शब्दं चित्वा रिक्त स्थानानि पूरयत-
उत्तरम् –
( क ) प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च मन्यते ( सूर्य : / चन्द्रः )
( ख ) वर्षा शीतयोः मध्ये अवस्थितः कार्तिकः मासः ( कार्तिक : चैत्रः ) ।
( ग ) कार्तिक मासे अभक्ष्याः पदार्थाः वर्जिता भवन्ति । ( वर्जिता / अवर्जिताः )
( घ ) छठ इति व्रतोत्सवे सूर्याय अयंदानं दीयते । ( सूर्याय / चन्द्राय )
( ङ ) रविषष्ठी व्रतोत्सवरस्य वैज्ञानिक महत्वं वर्तते । ( वैज्ञानिकोआर्थिक )

7. निम्नलिखितानां पदानां सन्धि सन्धि विच्छेदं वा कुरुत –
उत्तरम्— ( क ) आरोग्यप्रदः + य = आरोग्यप्रदश्च । ( ख ) व्रत + उत्सवः = व्रतोत्सवः ।
( ग ) तस्मात् + एव = तस्मादेव ।
( घ ) क : + चित् = कश्चित ।
( ङ ) सूर्य + अस्तः = सूर्यास्त :।

8. शब्दान् दृष्ट्वा लिखत-
उत्तरम् -ज्योत्स्ना , तेजस्वी , अनिवार्यतया , नैवेद्याय , व्रतोत्सवः , सागरेऽपि , पायसरोटिकयो :, प्रत्वाल्प , अपरेभ्यः ।
9. वर्ग पहेलीतः धातु रूपं निस्सारयत्–
ति ह स थः न्ति मः
ह स जि ह सा मि
स ति ह स थ ह
न्ति ह स तः सा सा
ह सा मः ह मः वः
उत्तर – हसति हसतः हसन्ति
हससि हसथः हसथ
हसामि हसावः हसामः

10. संस्कृते अनुवदत-
प्रश्नोत्तरम्
( क ) रविषष्ठ व्रतोत्सव बिहार का एक प्रसिद्ध पर्व है । = रवि षष्ठव्रतोत्सवः विहारस्य एकः प्रसिद्धः पर्वः अस्ति ।
( ख ) यह मुख्यतः कार्तिक महीना में मनाया जाता है । = अयं मुख्यतः कार्तिक मासे मन्यते ।
( ग ) प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सर्वाधिक रोग विनाशक माना जाता है । = प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिक : रोग विनाशक : मन्यते ।
( घ ) कार्तिक माह वर्षा और शीत ऋतु के मध्य स्थित है । = कार्तिक मासे वर्षा – शीतयो : ऋतक्यो : मध्ये स्थितः अस्ति ।

11. अधोलिखित तद्भव – शब्दानों कृते पाठात् चित्त्वा संस्कृत पदानि लिखत –
यथा — सूरजः = सूर्यः
उत्तरम्-
माह -मास :
कातिक -कार्तिक
गेह -गोधूमः
तालाब = तडागः
सूप -शूर्पः
रात -रात्री
छठी -षष्ठी D
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                     योग्यता – विस्तारः

सूर्य की पूजा वैदिक काल से भारत में होती रही है । प्रारम्भ में सूर्य को प्राकृतिक देवताओं में सबसे अधिक दृश्य होने के कारण मान्यता मिली । उन दिनों सूर्य को भी अन्य वैदिक देवताओं के समान यज्ञों में आहुतियां दी जाती थीं । कालक्रम से पुराणों का विकास हुआ तथा देवताओं से सम्बद्ध आख्यान बनने लगे । ज्योतिष में तिथियों और नक्षत्रों से सम्बद्ध कथाएँ भी प्रचलित हुई । बहुदेववाद का व्यापक परिवेश पौराणिक युग में दिखाई पड़ने लगा । सूर्य से सम्बद्ध भविष्यमहापुराण तथा साम्ब उपपुराण विकसित हुए जिनमें सूर्यपूजा का व्यापक विवरण दिया गया । सप्तमी तिथि के देवता के रूप में सूर्य को जोड़ा गया । इसके पीछे वैज्ञानिक कारण था कि सूर्य की किरणों में सात रंग होते हैं , इसलिए सूर्य को सात घोड़ों के रथ पर चलने वाला कहा गया । हिन्दू पञ्चांगों में रविवार को सप्तमी तिथि पड़ने से इसे ‘ भानुसप्तमी ‘ कहा जाता है । वैसे रविवार का दिन सूर्य से ही सम्बद्ध है । इस दिन बहुत से श्रद्धालु सूर्य के सम्मान में अलवण ( नमक न खाने का ) व्रत करते हैं । सूर्यपूजा का पुनरुद्धार प्रायः ईसा की प्रथम शताब्दी  में दक्षिण बिहार में किया गया । वहाँ सूर्य से सम्बद्ध कई तीर्थस्थानों एवं मन्दिरों का निर्माण राजाओं को सहायता से हुआ । औरंगाबाद जिले में देव का सूर्यमन्दिर , नालन्दा के निकट बड़गाँव का मन्दिर , अँगारी का सूर्यमन्दिर , पुर्याक ( पण्डारक ) का मन्दिर तथा अन्य कई सूर्यमन्दिर सूर्यपूजा के प्रसिद्ध स्थल हैं ।
रविषष्ठीव्रतोत्सव कार्तिक तथा चैत्र – दो महीनों में चार दिनों का पर्व है । मुख्यतः षष्ठी देवी की पूजा की परम्परा सन्तानलाभ के लिए विकसित हुई थी । उसे सूर्यसप्तमी से जोड़कर इस व्रतोत्सव में संयम की भव्य कल्पना की गयी । वस्तुत : उपर्युक्त दोनों महीनों में ऋतुपरिवर्तन के कारण रोग आदि बाधाएँ सम्भाव्य हैं इसलिए उपर्युक्त धार्मिक कार्यक्रम के अन्तर्गत उपवास और संयम के नियम जुड़ जाने से इन बाधाओं पर अद्भुत नियंत्रण होता है । इसलिए स्वास्थ्य – विज्ञान को धर्म के साथ जोड़कर यह आस्था का महान् उत्सव प्रचलित हुआ । आज के प्रसारवादी युग में इस उत्सव को दूर – दूर तक फैलने में देर नहीं लगी है । इसमें मुख्य कार्य पवित्र होकर सूर्य को सायंकाल और प्रात : काल अर्घ्य देना है जो किसी जलाशय के निकट होता है । बिहार का इसे सबसे बड़ा और भव्य पर्व कहें तो इसमें आश्चर्य नहीं । सूर्य को अर्घ्य देने का मंत्र इस प्रकार है–
एहि सूर्य ! सहस्रांशो ! तेजोराशे ! जगत्पते !!
     अनुकम्पय मां देव ! गृहाणायं नमोऽस्तु ते ।।  

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