bseb 8th class hindi note | दीनबन्धु ‘ निराला ‘ ( जीवनी )
दीनबन्धु ‘ निराला ‘ ( जीवनी )
bseb 8th class hindi note
वर्ग – 8
विषय – हिंदी
पाठ 15 – दीनबन्धु ‘ निराला ‘ ( जीवनी )
दीनबन्धु ‘ निराला ‘ ( जीवनी )
–आचार्य शिवपूजन सहाय
( आधुनिक काल के……. करना पाठ का उद्देश्य है । )
संक्षेप –
आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रतिष्ठित कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी ” निराला ” जी को दीनबन्धु ” निराला ” कहा जाता है । सचमुच में दीनबन्धु थे । दीन – दुखियों पीड़ित के साथ बन्धुत्व की भावना रखने वाला उसका यथोचित सेवा , सहायता करने वाला ही दीनबन्धु कहला सकता है।
महाकवि रहीम ने तो दीनबन्धु को दीनबन्धु भगवान कहा है —
जो रहीम दीनहिं लखै , दीनबन्धु सम होय ।
जो निराला जी पर अक्षरशः सही बैठता है । वे दीनों पीड़ितों को खोज – खोजकर सेवा सहायता किया करते थे । भगवान ने आकर्षक व्यक्तित्व के साथ उदार मन भी ” निराला ” जी को प्रदान किया था । स्वयं भोजन करने वक्त भी यदि कोई याचक आ जाता तो अपना भोजन याचक को खिलाकर स्वयं तृप्त हो जाते थे । साहित्य साधना करने के कारण अर्थाभाव तो सदैव रहा ही लेकिन जो कुछ भी आय होता उसे गरीबों में बाँटकर उन्हें आनन्द आता था । वे भले स्वयं पुराना कपड़ा पहने हों लेकिन निर्वस्त्र दीन को देख वे नया वस्त्र ही दे दिया करते थे । दीनों की सहायता के कारण ही उनके घर में गद्दा आदि आरामदायक उपस्कर नहीं खरीद पाये ।
परमात्मा ने उनकी मनोवृत्ति और प्रवृत्ति समझकर ही कलकत्ता के श्री रामकृष्ण मिशन ” वेलूर मठ ” में सेवा के लिए नियुक्त किया था ।
” निराला ” जी ” यथा नियुक्तऽस्मि तथा करोमि ” के कथन को पूर्णतः पालन किया करते थे । प्रतिवर्ष वेलूर मठ में परमहंस जी तथा विवेकानन्द जी की जयन्ती के अवसर पर दीन बन्धुओं ( दरिद्रनारायणों ) के भोजन कराने वक्त पूर्णत : दीनबन्धु दिखते थे । बड़े लगन और प्रेम से दीनों को भोजन कराते देख सब लोग उन पर मुग्ध हो जाते थे । ” निराला ” जी की मातृभाषा हिन्दी थी लेकिन बंगाली भाषा भी मातृभाषा के समान ही बोलते थे जिसके कारण बंगाली लोग उन्हें बंगाली समाज का ही आदमी मान उनसे कवीन्द्र ” रवीन्द्रनाथ ‘ के गीत सुनकर प्रसन्न हो जाते थे ।
आकर्षक रूप , लम्बे – तगड़े शरीर , सुन्दर स्वास्थ्य विलक्षण मेघाशक्ति , मनोहर आवाज , दयार्द्र स्वभाव चिन्तनशील मस्तिष्क , सुहावनी लुभावनी आँखें सुन्दर अनार की तरह दन्तक्ति धुंघराले बाल छोटा मुख – विवर , पतली होठ , चौड़ी छाती इत्यादि सब प्रकार से भगवान ने उनको आकर्षक बना दिया था । लेकिन वे विषय – वासना से बिल्कुल दूर रहे । साहित्य साधना के इच्छुक नर – नारी प्रायः उनके इर्द – गिर्द रहा करते । लेकिन वे किसी को आँख उठाकर भी नहीं देखते थे ।
देश की आर्थिक विषमता पर यदि वे कभी बोलते थे तो वे अत्यन्त उग्र साम्यवादी जैसा प्रतीत होते थे । जबकि उग्रता रूपी अवगुण उनमें लेश मात्र भी नहीं था ।
कलकत्ता जैसा शहर जहाँ धनकुवेरों ( धनवानों ) की कमी नहीं था लेकिन लँगड़े – लूले , अन्धी कोढ़ी और निकम्मे दीनबन्धु के प्रति ध्यान देने वाले केवल ” निराला ” जी थे ।
जबकि स्वस्थ व्यक्ति की सहायता करने को वे उन्मुख नहीं थे । लेकिन जब कोई माँग देता जो चीज माँग देता ” निराला ” जी उसकी याचना पूर्ण करने की कोशिश करते थे । उपलब्ध नहीं होने पर हाथ जोड़कर ही सबको संतुष्ट कर दिया करते थे । भले उनके पास पैसों की कमी हो लेकिन दोनों के मन को आनन्दित करने में ही आनन्द प्राप्त करते थे ।
कभी – कभी तो लालची आदमी भी उनके दान – शील स्वभाव से आकर्षित होकर लाभ पा लेता था लेकिन उनके मन को कभी ठेस नहीं पहुंचा ।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि – ‘ निराला ‘ जी अपनी आवश्यकता को भूलकर दूसरों की आवश्यकता पूरा करने में आनन्द पाते थे ।
निराला की उदारता से प्रभावित कलकत्ता के रिक्शे वाले हो या ताँगावाले सभी साग्रह उनको बिठाते थे । रास्ते के गरीब लोग भी उन्हें चलते – फिरते आशीष दिया करते थे ।
धन्य थे ‘ निराला ‘ जी साहित्य जगत में उनके जैसा विशिष्ट गुण वाले और आचरण वाले कवि या लेखक नहीं दिखते ।
जिस व्यक्ति में अन्य लोगों से विशिष्ट गुण ही वैसे लोगों का स्मरण करना ईश्वर की दी गई वाणी को सार्थक करना है ।
शब्दार्थ –
कल्पतरु = इच्छापूर्ति करनेवाला काल्पनिक पेड़ । सटीक = उपयुक्त । दीन =गरीब । समस्त = संपूर्ण । सर्वत्र = सभी जगह । अर्चना = प्रार्थना । सम्मान = प्रतिष्ठा । प्रभाव = असर । आप्यायित = प्रसन्न । तृप्त = संतुष्ट । बेसाहना = खरीदना एकत्रित करना । अधर = ओठ । सिरजनहार = ईश्वर । वार्तालाप = बातचीत । विलीन = समाप्त । संचय = संग्रह । ध्येय = उद्देश्य । लखे = देखना । दाडिम = अनार । युक्तियुक्त = सटीक । परिस्थिति = हालत । नागवार = नापसंद । निहाल करना = खुश कर देना । मामूली = साधारण । व्यर्थ = बेकार । साहित्यानुरागी = साहित्य प्रेमी । कामिनी – कंचन = विषय – वासना । मुक्तहस्त = खुले हाथ से । अविरल = लगातार ।
प्रश्न – अभ्यास
पाठ से –
1. निराला को ‘ दीनबन्धु ‘ क्यों कहा गया है ?
उत्तर– ” निराला ” जी सदैव दीन – दुखियों की सेवा तत्पर रहा करते थे । गरीबों को स्वजन की तरह स्नेहपूर्वक मदद करना उनको प्रकृति ओर से प्राप्त था । लंगड़े – लूले , अन्धे अपाहिज लोगों को अन्न – वस्त्र देकर संतुष्ट कर देना उनका स्वभाव था । लोग उन्हें “ दीनबन्धु ” कहकर पुकारते थे । जो व्यक्ति दीन – दुखियों , पीड़ितों के पास जा – जाकर मदद करता हो , क्या वह मानव भगवान दीनबन्धु के समान ” दीनबन्धु ” कहलाते का अधिकारी नहीं । उपरोक्त अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही उन्हें ” दीनबन्धु ” कहा गया है ।
2. निराला सम्बन्धी बातें लोगों को अतिरंजित क्यों जान पड़ती हैं ?
उत्तर — याचकों के लिए कल्पतरू होना , मित्रों के लिए मुक्त हस्त दोस्त – परस्त होना , मित्रों और अतिथियों के स्वागत सत्कार में अद्वितीय हौसला दिखाने वाले , लंगड़े – लले , अन्ये , दीन जनों को खोज खोजकर मदद देने वाले निराला सम्बन्धित बातें लोगों को अतिरंजिल जान पड़ती है । क्योंकि उपरोक्त गुणों का होना आसान नहीं । धनी लोग तो बहुत होते हैं लेकिन निराला जिस भाव से मदद दोनों को करते थे वह आम लोगों को अतिरजित करने वाला ही है । 3. निम्न पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए ।
( क ) ” जो रहीम दीनहिं लखै , दीनबन्धु सम होय ।
उत्तर – जो व्यक्ति गरीबों को देखता है , उसको मदद देता है वह व्यक्ति दीनबन्धु भगवान की तरह हो जाता है ।
( ख ) “ पुण्यशील के पास सब विभूतियाँ आप ही आप आती हैं । “
उत्तर — जो व्यक्ति पुण्यशील होते हैं । जो उदार प्रवृत्ति के लोग होते हैं । उनके पास सब प्रकार की विभूतियाँ ( सुख – सम्पदा ) स्वयं पहुंच जाती हैं । अर्थात् पुण्यात्मा को भगवान पुण्य करने के लिए सब कुछ दे देते हैं ।
( ग ) “ धन उनके पास अतिथि के समान अल्यावधि तक ही टिकने आता था । “
उत्तर– ” निराला ” जी इतने उदार प्रवृत्ति के थे कि जब – जब धन का आय हुआ तब – तब दौड़ – दौड़कर , खोज – खोजकर दोनों की मदद में वे खर्च कर देते थे । इसलिए आज का आया पैसा आज ही खत्म कर देना उनका स्वभाव था । इसलिए कहा जा सकता है कि ‘ धन उनके पास कम समय तक ही टीक पाता था ।
व्याकरण –
श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द : -उच्चारण , मात्र या वर्ण के साधारण बदलाव के बावजूद सुनने में समान परन्तु भिन्न अर्थ देनेवाले शब्द को श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द कहते हैं ।
जैसे – दिन – दिन । दीन = गरीब ।
निम्नलिखित श्रुतिसमभिन्नार्थक शब्द युग्मों का अर्थ लिखिए
1. समान = बराबर । सम्मान = प्रतिष्ठा ।
2. केवल = एक ही । कैवल्य = एकता का भाव ।
3. बन = बनना । वन = जंगल ।
4. भगवान = ईश्वर । भाग्यवान = भाग्यशाली ।
5. छात्र = विद्यार्थी । छत्र = छाता ।
6. अन्य = दूसरा । अन्न = भोजन का अन्न ।
7. द्रव्य = धन – पैसा । द्रव = तरल पदार्थ ।
8. जगत् = संसार । जगत = कुएँ के चारो ओर बना चबूतरा ।
9. अवधी = भाषा | अवधि = समय ।
10. क्रम = एक के बाद एक । कर्म = कार्य ।
11. आदि = इत्यादि । आदी खाने की एक वस्तु ।
12. चिंता = सोचना । चिता = मृतक को जलाने के लिए श्मशान में रखे गये लकड़ी के ढेर जिस पर मृतक को जलाया जाता है ।
अनेकार्थक शब्द –
कुछ ऐसे शब्द प्रयोग में आते हैं , जिनके अनेक अर्थ होते हैं । प्रसंगानुसार इनके अर्थ भिन्न – भिन्न होते हैं ।
उत्तर 1. मन – मेरा मन करता है कि मनभर चावल खरीद लूँ ।
2. हर – हर व्यक्ति को कोई हर नहीं सकता है ।
3. कर वह अपने कर से पुस्तक वितरक कर दिया ।
4. अर्थ – आज के अर्थ युग में थोड़ा धन कोई अर्थ नहीं रखता ।
5. मंगल मंगल दिन भी मेरा मंगल ही रहेगा ।
6. पास – तुम्हारे पास वाली लड़की क्या परीक्षा में पास कर गई ।
7. काल -वह अल्पकाल में ही काल के गाल में चला गया ।
8. पर – चिड़िया के पर कट गये , पर वह जीवित था ।
इन्हें जानिए
प्रस्तुत पाठ में लेखक ने निराला के लिए ‘ दीनबंधु ‘ विशेषण का प्रयोग किया है । कुछ अन्य प्रतिष्ठित विभूतियों से संबंधित विशेषण इस प्रकार हैं :
विशेषण
( क ) कथा -सम्राट मुंशी प्रेमचन्द
( ख ) मैथिल कोकिल. विद्यापति
( ग ) भारत कोकिला सरोजनी नायडू
( घ ) देशरत्न. डॉ . राजेन्द्र प्रसाद
( ङ ) लोकनायक जयप्रकाश नारायण.