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bihar board 8 biology notes | ध्वनियाँ तरह-तरह की

bihar board 8 biology notes | ध्वनियाँ तरह-तरह की

अध्ययन सामग्री-सुबह में चिड़ियों की चहचहाहट, घर में माता-पिता, भाई-बहनों,
अतिथियों को आवाज, जानवरों की आवाज, घरेलू बर्तन, हवाई जहाज, मोबाइल की रिंगटोन,
टेलीविजन, रेडियो, गाड़ियों आदि की आवाज हम आप प्रत्येक दिन सुनते हैं। इतना ही नहीं प्रत्येक क्षण किसी-न-किसी चीज की आवाज हमें सुनने को मिलते रहता है।
अब प्रश्न उठता है ध्वनि क्या होती है। यह कैसे उत्पन्न होती है। यह कैसे गमन करती
है इसे हम कैसे सुन पाते हैं।कुछ ध्वनि को शोर तो कुछ ध्वनि सुस्वर कहलाती हैं इत्यादि प्रश्न
हमलोगों में घुमता है। इन्हीं समस्याओं का समाधान ही इसका अध्याय है।
ऊर्जा का वह रूप जो हमें सुनने की अनुमति प्रदान करता है उसे ध्वनि कहते हैं।
किसी कारण से किसी वस्तु या माध्यम के कण अपनी माध्य स्थिति के आगे-पीछे या बाएँ-दाएँ
होने लगती है। इस तरह की गति को कंपन कहते हैं और जब किसी माध्यम में कंपन उत्पन्न होते
हैं तो उसमें तथा उसके आस-पास के माध्यम में कंपन का प्रवाह होने लगता है। कंपन के इसी प्रवाह को ध्वनि तरंग कहते हैं। ध्वनि तरंग के रूप में ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है।
वास्तव में ध्वनि की उत्पत्ति वस्तुओं में कम्पन होने से होती है परन्तु सब प्रकार का कम्पन ध्वनि
उत्पन नहीं करता । जिन तरंगों की आवृत्ति 20 कम्पन प्रति सेकेण्ड से 20,000 कम्पन प्रति सेकेण्ड के बीच होती है। उनकी अनुभूति हमें अपने कानों द्वारा होती है और उन्हें हम सुन सकते हैं। जिन तरंगों की आवृत्ति इस सीमा से कम या अधिक होती है उसके लिए हमारे कान सुग्राही नहीं है। अत: ध्वनि शब्द का प्रयोग केवल उन्हों तरंगों के लिए किया जाता है जिनकी अनुभूति हमें अपने कानों द्वारा होती है। भिन्न-भिन मनुष्यों के लिए ध्वनि तरंगों की आवृत्ति परिसर अलग-अलग हो सकती है।
ध्वनि किसी भी माध्यम में (ठोस, द्रव या गैस) में गमन कर सकती है। यानि ध्वनि को
गमन करने के लिए माध्यम आवश्यक होते हैं।
ध्वनि को हम जिस ज्ञानेन्द्रिय द्वारा सुनते हैं। उसे कान कहते हैं। कान मुख्यतः तीन भागों
में बँटा होता है—बाहरी भाग, मध्य भाग तथा आन्तरिक भाग। बाहरी भाग जिसकी आकृति कीप जैसी होती है। कर्ण पल्लव कहलाता है। कान के मध्य भाग में पतली झिल्ली बनी रहती है जिसे कर्ण पटह कहते हैं। जब ध्वनि कंपन कर्ण पटह तक पहुंँचती है तब कर्ण पटह भी कपित होने लगता है। यह कंपन भी तीन हड्डियों द्वारा और कई गुना बढ़ा दिए जाते हैं। ये बढ़े हुए कम्पन मध्य भाग से आन्तरिक भाग में स्थानान्तरित होकर विद्युतीय संकेत में बदल जाते हैं जिसे श्रवण-तंतु द्वारा मस्तिष्क को पहुंँचा दिया जाता है। अंत में मस्तिष्क इसे ध्वनि के रूप में ग्रहण करता है।
कम्पन का आयाम, आवर्तकाल तथा आवृत्ति—किसी वस्तु का अपनी माध्य स्थिति से
बार-बार बाएंँ से दाएँ एवं दाएँ से बाएँ गति करना दोलन गति कहलाता है। कंपन भी दोलन
गति का एक उदाहरण है।
प्रति सेकेण्ड कम्पनों की संख्या आवृत्ति कहलाती है। आवृत्ति को हर्ट्ज में मापा जाता है।
जिसे Hz से सूचित करते हैं। 1 Hz आवृत्ति एक दोलन प्रति सेकेण्ड के बराबर होती है।
कंपित वस्तु एक निश्चित समय अंतराल में अपना एक दोलन पूरा करता है जिसे आवर्तकाल
कहते हैं। इसे सेकेण्ड में मापा जाता है।
कंपित वस्तु अपनी माध्य स्थिति से अधिकतम दूरी तक जाती है। जिसे आयाम कहा जाता
है। इसे मीटर में मापा जाता है। आयाम एवं आवृत्ति किसी ध्वनि के दो महत्वपूर्ण गुण है।
प्रबलता तथा तारत्व―तीव्रता या प्रबलता ध्वनि का वह लक्षण है जिससे ध्वनि धीमी (मंद)
अथवा तीव्र (प्रबल) सुनाई देती है। ध्वनि की तीव्रता एक भौतिक राशि है जिसे शुद्धता से नापा जा सकता है। माध्यम के किसी बिन्दु पर ध्वनि की तीव्रता, उस बिन्दु पर एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकेण्ड तल के लम्बवत् गुण से वाली ऊर्जा के बराबर होती है। ध्वनि की प्रबलता आयाम पर निर्भर करती है। प्रबलता की इकाई डेसीबल होता है। जब किसी कपित वस्तु का आयाम अधिक होता है तो इसके द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रबल होती है। जब आयाम कम होता है तो उत्पन्न ध्वनि मंद होती है।
तारत्व, ध्वनि का वह लक्षण है जिससे ध्वनि को मोटा या तीक्ष्ण कहा जाता है। तारत्व
आवृत्ति पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे ध्वनि की आवृत्ति बढ़ती जाती है। वैसे-वैसे ध्वनि का
तारत्व बढ़ता जाता है तथा ध्वनि तीक्ष्ण अथवा पतली होती जाती है।
ध्वनियों के परिसर-
अश्रव्य ध्वनि -20 Hz से कम आवृत्ति वाले।
श्रव्य ध्वनि -20 Hz से 20,000 Hz आवृत्ति के बीच ।
पराश्रव्य ध्वनि -20,000 Hz आवृत्ति के ऊपर ।
अप्रिय ध्वनि या कर्ण-कटु ध्वनि को शोर कहते हैं। कानों को सुखद लगनेवाली ध्वनियाँ
सुस्वर ध्वनि कहते हैं।
अवांछित ध्वनियाँ को ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। वाहनों की ध्वनियाँ, विस्फोट, हवाई जहाज,
मशीन, लाउडस्पीकर आदि ध्वनि प्रदूषण करते हैं। ऊँची आवाज या तेज आवाज ध्वनि प्रदूषण के लिए उत्तरदायी होते हैं। ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित एवं सीमित करने के उपाय-
□ प्रत्येक वाहन की ध्वनि की सीमा तय करना ।
□ पार्टी, पर्व के अवसर पर ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्र की ध्वनि सीमा को निर्धारित करना ।
□ अवांछित ध्वनि उत्पन्न करने वाले पर प्रतिबंध लगाना ।
□ वैसे यंत्र का प्रयोग पर जोर देना जिससे कम-से-कम ध्वनि उत्पन्न हो।
□ पटाखा, विस्फोट आदि पर प्रतिबंध लगाना इत्यादि उपायों से ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण
पाया जा सकता है।
                                             अभ्यास
1. सही विकल्प चुनिए-
(अ) ध्वनि एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है-
(क) ठोस माध्यम तथा निर्वात्
(ख) द्रव माध्यम तथा गैस माध्यम
(ग) गैस माध्यम तथा द्रव माध्यम
(घ) ठोस, द्रव तथा गैस माध्यम तीनों में से कोई या तीनों
(ब) अश्रव्य ध्वनि कहलाते हैं-
(क) 20 Hz से कम आवृति
(ख) 20000 Hz से अधिक आवृत्ति
(ग) 20 Hz से 20,000 Hz के बीच की आवृत्ति
(स) किसी कंपित वस्तु का अपनी माध्य स्थिति से दोनों ओर अधिकतम दूरी तक का
विस्थापन कहलाता है-
(क) आवृत्ति
(ख) आयाम
(ग) आवर्तकाल
(घ) तारत्व
उत्तर-(अ) (घ), (ब) (क), (स) (ख)।
2. उचित शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) ध्वनि किसी वस्तु के……… द्वारा उत्पन्न होती है।
(ख) प्रति सेकेण्ड होने वाले दोलनों की संख्या को………… कहते हैं।
(ग) कंपित वस्तु एक निश्चित समय अंतराल में अपना एक दोलन पूरा करता है जिसे
     ……………कहते हैं।
(घ) अवांछित ध्वनि को ……… कहते हैं जिसे ……….. करने का उपाय करना चाहिए।
उत्तर-(क) कंपन,(ख) आवृत्ति, (ग) आवर्तकाल, (घ) शोर, कम।
3. निम्न वाद्य यंत्रों में उस भाग को पहचानकर लिखिए जो ध्वनि उत्पन्न करने के लिए
कंपित है।
उत्तर-
(क) ढोलक – चमड़े की सतह
(ख) झाल-    किनारा
(ग) बाँसुरी – जीभी
(घ) एकतारा―तार
(ङ) सितार – तार
4. आपके माता-पिता एक आवासीय मकान खरीदना चाहते हैं जिसमें आपको भी रहना
है। एक मकान मुख्य सड़क के किनारे तथा दूसरा मकान सड़क से दूर एक बगीचे
के पास है। जहाँ इसी सड़क से एक रास्ता जाती है। आप किस मकान को खरीदने
का सुझाव देंगे। उत्तर की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-हम अपने माता-पिता को दूसरे मकान जो बगीचे के पास है, उसे खरीदने का सुझाव
देंगे। क्योंकि मुख्य सड़क पर हमेशा अवांछित ध्वनि सुनने को मिलती रहती है। इतना ही नहीं
कुछ ध्वनि तो कभी-कभी इतनी तेज बजती है कि उसे बर्दास्त करना मुश्किल हो जाता है जो
हमारे दिनचर्या को काफी प्रभावित करता है जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से हमारे मस्तिष्क तथा
कान पर पड़ता है और अप्रत्यक्ष रूप से हमें अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, बहरेपन इत्यादि का शिकार
बना देता है। दूसरी तरफ बगीचा होने के कारण स्वच्छ हवा तथा वायु प्रदूषण से बचे रहने में
मददगार होगा। इतना ही नहीं बगीचा होने के कारण गर्मी से भी बचाव होगा। इस प्रकार बगीचा
के पास वाला मकान खरीदना श्रेष्ठकर होगा।
5. आपका मित्र मोबाइल से हमेशा संगीत सुनता रहता है। क्या वह सही कार्य कर रहा
है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-मेरा मित्र यदि हमेशा मोबाइल से संगीत सुनता रहता है। वह सही कार्य नहीं कर
रहा है। क्योंकि किसी भी यंत्र को आराम की जरूरत होती है और लगातार काम करने से उसकी
क्षमता घटती चली जाती है। हमलोगों का कान तथा दिमाग भी एक यंत्र है। अवांछित ध्वनि
से तथा लगातार ध्वनि सुनने से तथा मोबाइल फोन से रेडियो तरंगें भी आते-जाते रहता है।
परिणामस्वरूप हमारे शारीरिक यंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। किसी ने ठीक ही कहा है-“अति
विनाश का कारण है।”
6. मानव कान का नामांकित चित्र बनाएँ तथा उनके कार्यों को लिखिए।
उत्तर-ध्वनि को हम जिस ज्ञानेन्द्रिय द्वारा सुनते हैं उसे कान कहते हैं। जिसके मुख्यतया
तीन भाग होते हैं। बाहरी भाग, मध्य भाग तथा आन्तरिक भाग। कान का बाहरी भाग जो कीप
की भाँति होता है। उसे कर्ण पल्लव कहते हैं। यह कपित हवा को ग्रहण करती है।
कंपित ध्वनि नालिका के द्वारा पतली झिल्ली (कर्ण पटह) से जा टकराती है। तब कर्ण पटह भी
कंपित होने लगता है।
                        मानव कान का बाह्य तथा आन्तरिक बनावट
यह कंपन भी तीन हड्डियों द्वारा और गुना बढ़ा दिए जाते हैं। ये बढ़े हुए कंपन मध्य
भाग से आन्तरिक भाग में स्थानान्तरित होकर विद्युतीय संकेत में बदल जाते हैं। जिसे श्रवण-तंतु
द्वारा मस्तिष्क को पहुंँचा दिया जाता है। अंत में मस्तिष्क इसे ध्वनि के रूप में ग्रहण करता है।
इस प्रकार कान के विभिन्न अंगों के संचालन के माध्यम से हम ध्वनि सुन पाते हैं।
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