Bihar Board Class 10 Hindi | वर्णनात्मक गद्यांश
Bihar Board Class 10 Hindi | वर्णनात्मक गद्यांश
2. वर्णनात्मक गद्यांश (8 अंक)
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1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
साहसी मनुष्य का जीवन ही सच्चा जीवन होता है । साहसी मनुष्य अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते रहते हैं । वे औरों की नकल नहीं करते । वास्तव में साहसी लोग ही संसार की शक्ति होते हैं । साहसी लोग अपने मार्ग पर अकेले ही बढ़ते हैं जैसे शेर जंगल में अकेला ही रहता है । डरपोक लोग ही भेड की तरह मुंड बनाकर रहते हैं ।
संकट झेलना ही जीवन का सार है । जो संकटों से बचता है, वह वास्तविक जीवन से कोसों होता है। जीवन में संकट का सामना करना एक पूँजी है । जो इस पूँजी को जिस मात्रा में लगाता है उसी मात्रा में फल पाता है । जीवन को अनंत मानकर आगे बढ़ने वाला मनुष्य ही जीवन का रहस्य प्राप्त कर सकता है । जीवन का साधक थोड़े से सुखों से संतुष्ट नहीं होता अपितु वह
हिम्मत से सबसे ऊँची फुनगी का फल तोड़कर खाना चाहता है । सागर के अंदर गोता लगाकर तल में मोती पाना चाहता है । उसके लिए दुर्लभ कुछ भी नहीं । वह जंगल में भी अपना मार्ग बना लेता है।
(क) साहसी व्यक्ति में क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं ?
(ख) जीवन का वास्तविक सार क्या है ?
(ग) जीवन का साधक क्या चाहता है ?
(घ) गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर-(क) साहसी लोग दृढ़ता से अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में जुटे रहते हैं। वे किसी की नकल नहीं करते । अपने मार्ग पर शेर की तरह अकेले आगे बढ़ते हैं । यही लोग संसार की शक्ति।
ख) जीवन में संकटों को झेलना ही जीवन का सार है । संकटों से भागने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता । संकटों को झेलना जीवन की पूँजी है। जो इसमें जितना समर्थ होता है वह उतना ही सफल होता है
(ग) जीवन का साधक अपने जीवन में अधिक से अधिक सुख प्राप्त करना चाहता है। अधिक से अधिक ऊँचाइयों को छूना चाहता है । सागर में गोता लगाकर तल से मोती पाना चाहता है । वह अपने आप में इतना समर्थ होता है कि उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं होता।
(घ) शीर्षक- साहस ही जीवन है ।
2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जीवन को सुखी बनाने और आलस्य से बचाने के लिए काम सभी के लिए आवश्यक है। कई नवयुवक काम से डरते और घृणा करते हैं। वे माता-पिता के भरोसे आनंद मनाना चाहते हैं, जबकि उनके लिए सबसे अच्छा मार्ग यही है कि वे सोचकर तय कर लें कि उन्हें किस काम
में अपनी समस्त शक्तियों को लगाना है । अपनी योग्यता के अनुकूल व्यवसाय चुनने में देर न करनी चाहिए ।
कर्म में ही सच्चा सुख है-कुछ लोग काम के अभाव को सुख मानते हैं, परंतु वे गलती पर हैं । निकम्मे मनुष्य का मन शैतान का घर होता है । रिटायर होने पर एक व्यक्ति ने अपने मित्र को खत लिखा-“अब मैंने दिन भर के झंझट से छुट्टी पाई । अब मुझे दस गुनी तनख्वाह मिले तो भी मैं काम नहीं करूँगा।” मानव मन चक्की के समान है । जितना चक्की में गेहूँ डालते जाओगे, उतना उससे आटा निकलता जायेगा । यदि गेहूँ नहीं डालोगे, तो चक्की अपने को पीसने लगेगी।
(क) सफलता पाने के लिए नवयुवकों को क्या करना चाहिए?
(ख) ‘कर्म में ही सच्चा सुख है ।’ आशय स्पष्ट कीजिए ।
(ग) मानव मन की तुलना किससे की गयी है और क्यों ?
(घ) गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर-(क) सफलता पाने के लिए नवयुवकों को काम करने में मन लगाना चाहिए। अपनी योग्यता तथा रुचि का व्यवसाय चुनकर उसमें अपनी समस्त शक्तियों को लगा देना चाहिए।
(ख) कर्म जीवन को गति देता है । निकम्मे व्यक्ति का मन शैतान का घर बन जाता है।
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IIIIII हिन्दी-x
यदि जीवन में कर्म नहीं तो जीवन उस ठहरे हुए पानी के समान हो जाता है जो गंदगी व बदबू
से भर जाता है । बिना कर्म के मनुष्य निर्जीव-सा हो जाता है ।
(ग) मानव मन की तुलना चक्की से की गयी है । जब तक चक्की में गेहूँ पड़ा रहता है
तो आटा निकलता रहता है, यदि उसमें गेहूँ न डाला जाए चक्की स्वयं अपने आप को पीसने
लगेगी । अर्थात् यदि मन कर्म करने में व्यस्त रहेगा तो स्वस्थ रहेगा, यदि कर्म से दूर हो गया
तो अपने आप में घुटने लगेगा ।
(घ) शीर्षक-कर्म ही जीवन है ।
3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जीवन का सबसे बड़ा कलाकार और सबसे सफल व्यक्ति वह है जो उपयुक्त चुनाव करना
जानता है । चुनाव करने में तनिक भी भूल-चूक हो गई तो असफलता, पतन और हानि सुनिश्चित
है । कुछ चुनाव हमारे वश में नहीं हैं; जैसे माता-पिता का, देश-काल का, जन्म-मृत्यु का; किन्तु
कुछ चुनाव हमारे अपने वश में हैं, जिन पर हमारी सफलता और असफलता निर्भर है; जैसे काम
करने या न करने का चुनाव, आलस्य और परिश्रम का चुनाव और अच्छी-बुरी संगति का चुनाव ।
सब चुनावों में अच्छी-बुरी संगति का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण है; क्योंकि इस चुनाव पर ही
हमारा आचरण, हमारा कर्म, हमारे विचार, हमारी कर्मशैली और हमारी भाषा का स्तर निर्भर हैं
। इन्हीं बातों पर हमारे जीवन की सफलता-असफलता की संभावनाएँ टिकी हैं।
(क) इस गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(ख) चुनाव में तनिक-सी भूल हो जाने का क्या परिणाम होता है ?
(ग) कौन-कौन-से चुनाव हमारे वश में नहीं हैं ? किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
(घ) सबसे महत्त्वपूर्ण चुनाव कौन-सा है और क्यों ?
उत्तर-(क) सही चुनाव की उपयोगिता ।
(ख) चुनाव में तनिक-सी भूल होने पर मनुष्य की असफलता, पतन तथा हानि सुनिश्चित
हो जाती है।
(ग) जन्म-मृत्यु, माता-पिता और देश-काल का चुनाव हमारे वश में नहीं हैं।
(घ) जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण चुनाव है संगति का । इसी पर हमारा आचरण, कर्म, विचार,
जीवन-शैली और बोल-चाल निर्भर है ।
4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
पर्व-त्योहार देश की सामाजिक एकता के प्रतीक, ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी, सांस्कृतिक
चेतना के प्रहरी और सद्भावनाओं के प्रेरक होते हैं । पर्व-त्योहारों पर देश की मिट्टी जागती है,
बासी हवा में ताजगी आ जाती है और जीवन की एकरसता में नवीनता आ जाती है। दशहरा,
दीवाली, होली, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, रक्षाबंधन, क्रिसमस, ईद आदि हमारे ऐसे त्योहार हैं, जिनसे
हमारे सामाजिक जीवन में नया उत्साह-आवेग आ जाता है । होली-दीवाली पर हिंदुओं को
मुसलमान और ईसाई प्रेमपूर्वक बधाई देते हैं, परस्पर एक-दूसरे के साथ मिठाई और उपहारों का
आदान-प्रदान करते हैं, इसी प्रकार ईद और क्रिसमस पर हिंदू अपने मुसलमान और ईसाई भाइयों
के प्रति शुभकामनाएँ प्रकट करते हैं । इस प्रकार इन पर्व-त्योहारों पर सर्वत्र सर्वधर्म-समभाव का
सुंदर रूप दिखाई देता है।
(क) पर्व-त्योहारों से देश की किन बातों का परिचय मिलता है ?
(ख) पर्व-त्योहारों का जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) भारतीय पर्व-त्योहारों पर विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के प्रति अपनी
सद्भावनाओं का आदान-प्रदान किस प्रकार करते हैं ?
हिन्दी-x.
(घ) इन त्योहारों पर सर्वत्र सामाजिक जीवन का कौन-सा
सुंदर रूप दिखाई देता है ?
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उत्तर-(क) पर्व-त्योहारों से देश की सामाजिक एकता, सांस्कृतिक चेतना, सद्भावना तथा
ऐतिहासिक घटनाओं का परिचय मिलता है ।
(ख) पर्व-त्योहारों
जन-जीवन में नवीनता, ताजगी, उमंग और सरसता आती
(ग) भारतीय पर्व-त्योहारों पर विभिन्न धर्मों के लोग एक-दूसरे के प्रति बधाई,
।
मिठाई और उपहार देकर अपनी सद्भावना का परिचय देते हैं।
शुभकामना,
(घ) त्योहारों पर सामाजिक जीवन की समानता तथा समरसता का सुंदर रूप दिखाई देता
है । इसे सर्वधर्म-समभाव भी कहते हैं ।
5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
कुछ लोग भाग्यवादी होते हैं और सब-कुछ भाग्य के सहारे छोड़कर कर्म से विरत हो जाते
हैं । ऐसे लोग समाज के लिए बोझ हैं । वे कभी कोई बड़ा काम नहीं कर पाते । बड़ी-बड़ी
खोज, बड़े-बड़े आविष्कार और बड़े-बड़े निर्माण कार्य कर्मशील लोगों के द्वारा ही संभव हो सके
हैं । हम अपनी बुद्धि और प्रतिभा तथा कार्य-क्षमता के बल पर ही सही मार्ग पर चल सकते हैं;
किंतु बिना कठिन श्रम के अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सकते । कठिन परिश्रम करने के बाद पाई
गई सफलता हमारे मन को अलौकिक आनंद से भर देती है । यदि हम अपने कार्य में अपेक्षित
श्रम नहीं करते तो हमारा मन ग्लानि का अनुभव करता है।
(क) बड़े-बड़े कार्य करने के लिए सर्वाधिक आवश्यक क्या है ?
(ख) परिश्रम करने और न करने से हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ग) किस प्रकार के लोग समाज के लिए बोझ हैं?
(घ) जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ कैसे संभव हो सकती हैं?
उत्तर-(क) बड़े-बड़े कार्य करने के लिए सबसे आवश्यक है- भाग्य का भरोसा छोड़कर कर्म
करना ।
(ख) परिश्रम करने से हम जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं तथा आनंद प्राप्त करते हैं।
परिश्रम न करने पर हम असफल होते हैं तथा ग्लानि का अनुभव करते हैं ।
(ग) भाग्य के सहारे जीने वाले तथा कर्म से मुँह मोड़ने वाले लोग समाज के लिए बोझ हैं।
(घ) जीवन में बड़ी उपलब्धियाँ परिश्रम करने से संभव हो पाती हैं।
6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
भिखारी की भाँति गिड़गिड़ाना प्रेम की भाषा नहीं है । यहाँ तक कि मुक्ति के लिए भगवान
की उपासना करना भी अधम उपासना में गिना जाता है । प्रेम कोई पुरस्कार नहीं चाहता। प्रेम
सर्वथा प्रेम के लिए ही होता है । भक्त इसलिए प्रेम करता है कि बिना किए वह रह ही नहीं सकता।
जब तुम किसी मनोहर प्राकृतिक दृश्य को देखकर उस पर मोहित हो जाते हो तो, तुम किसी फल
की याचना नहीं करते और न वह दृश्य ही तुमसे कुछ माँगता है । फिर भी उस दृश्य का दर्शन
तुम्हारे मन को आनंद से भर देता है ।
(क) प्रेम का क्या उद्देश्य होता है ?
(ख) कैसी उपासना अधम मानी गई है ?
(ग) भक्त की क्या विवशता है ?
(घ) प्राकृतिक दृश्य का आनंद प्राप्त करने में और दष्टा- दोनों की क्या भूमिका
उत्तर-(क) प्रेम का उद्देश्य अपने मन
सच्चे प्रेम को व्यक्त करना होता है ।
(ख) भक्ति के बदले भगवान से मुक्ति आदि कुछ माँगना अधम उपासना मानी जाती है।
होती है ?
(ग) भक्त की विवशता यह है कि वह भक्ति के बिना रह नहीं सकता । भगवान के प्रति प्रेम उसकी विवशता है।
(घ) प्राकृतिक दृश्य का आनंद प्राप्त करने के लिए दृश्य और द्रष्टा- दोनों का निस्वार्थ और मुक्त होना अनिवार्य है । जब वे एक-दूसरे से कुछ नहीं चाहते, तभी आनंद का अनुभव कर पाते
7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
अभ्यास आत्मविश्वास का सर्वोत्तम साधन है । भगवान् बुद्धि सबको देता है। जो लोग अभ्यास से उसे बढ़ा लेते हैं, वे बुद्धिमान और विद्वान बन जाते हैं । जो बुद्धि से काम नहीं लेते, वे मूर्ख रह जाते हैं । बेकार पड़े लोहे को भी जंग लग जाता है । इसी प्रकार हम जिस अंग से
काम लेते हैं, वह बलवान हो जाता है, जिससे काम नहीं लेते, वह अंग दुर्बल रह जाता है। प्रकृति द्वारा दी गई शक्तियों का सदुपयोग करना ही अभ्यास है । इससे शक्तियों का विकास होता है। बिना अभ्यास के जहाँ सिद्धि प्राप्त नहीं होती, वहाँ बिना अभ्यास यह स्थिर भी नहीं रहती। विद्यार्थी कुछ दिनों के लिए व्याकरण को दोहराना छोड़ दे, तो पढ़ा-पढ़ाया भूल जाएगा ।
कभी-कभी उसे दोहराता रहे तो वह उसे सदा याद रहेगा, अत: अभ्यास ही नहीं, सत्त अभ्यास करना चाहिए । केवल शिक्षा में ही नहीं, जीवन के किसी भी क्षेत्र में जो सफलता चाहता है, उसके लिए अभ्यास आवश्यक है । अभ्यास से कार्य में कुशलता आती है, कठिनाइयाँ सरल हो जाती हैं, समय की बचत होती है । अभ्यास से साधक के अनुभव में वृद्धि होती है, उसकी त्रुटियाँ छुट जाती हैं और शनैः शनैः वह पूर्णता की ओर अग्रसर होता है ।
(क) अभ्यास के महत्त्व पर प्रकाश डालें।
(ख) विद्यार्थी के जीवन में अभ्यास का क्या योगदान है ?
(ग) अभ्यास से क्या-क्या लाभ होते हैं ?
(घ) गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए ।
उत्तर-(क) अभ्यास हमारे आत्म-विश्वास को बढ़ाने का एक साधन है। अभ्यास के माध्यम से ही मंदबुद्धि बुद्धिमान तथा बुद्धिमान विद्वान बन जाता है । मुख्य रूप से प्रकृति द्वारा दी गई शक्तियों का सदुपयोग कर उनका विकास करना ही अभ्यास है । उदाहरण के तौर पर बुद्धि से काम न लेने वाले लोग मूर्ख ही रह जाते है ।
(ख) विद्यार्थी के लिए अभ्यास करना अति आवश्यक है । यदि वह जो कुछ पढ़ता है उसे दोहराएगा नहीं तो भूल जाएगा । सतत् अभ्यास के बल पर ही कोई भी विद्यार्थी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ सकता है।
(ग) अभ्यास न केवल विद्यार्थी जीवन में ही, बल्कि और सभी क्षेत्रों में भी सफलता पाने की एकमात्र कुंजी है । अभ्यास के द्वारा ही कार्य में कुशलता लाई जा सकती है। समय का सही उपयोग किया जा सकता है तथा कठिनाइयाँ सरल की जा सकती हैं।
(घ) शीर्षक-अभ्यास का जीवन में महत्त्व ।
8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध ऐतिहासिक दृष्टि से काफी बाद में शुरू हुआ, क्योंकि प्रकृति पहले से थी, मनुष्य बाद में आया । लेकिन अपने विकास के क्रम में मनुष्य ने शीघ्र ही प्रकृति पर अपनी इच्छा आरोपित करनी चाही । और तब से, संघर्ष और स्वीकृति का एक लोमहर्षक नाटक मनुष्य और प्रकृति के बीच चला आ रहा है । आज भी मनुष्य प्रकृति का ही पुत्र है. । जन्म,
जीवन, यौवन, जरा, मरण आदि अपनी अनेक स्थितियों में वह आज भी प्राकृतिक नियमों से मुक्त नहीं हो सका है । इसके बावजूद निरन्तर उसकी चेष्टा यही रही है कि वह ज्ञान-विज्ञान की अपनी सामूहिक उद्यमशीलता के बल पर प्रकृति को पूर्णतः अपने वश में कर लें । यह इतिहास मनुष्य विजय और प्रगति का इतिहास है या उसकी पराजय और दुर्गति का, इसे वह स्वयं भी
लीक-ठीक नहीं समझ सका है । पर जिसे हम मनुष्य की जयगाथा कहकर पुलकित हो रहे हैं, वह असल में मनुष्य की पराजय, बल्कि उसके आत्महनन की गाथा है ।
(क) प्रस्तुत गद्यांश का एक उपयुक्त शीर्षक दें।
[2011 (A)]
(ख) विकास के क्रम में मनुष्य किस पर और क्या आरोपित करनी चाही ?
(ग) मनुष्य क्या ठीक-ठीक नहीं समझ सका है ?
(घ) मनुष्य के पराजय और आत्म-हनन की गाथा क्या है ?
उत्तर-(क) प्रकृति पर अनियन्त्रित मानव जीवन अथवा प्रकृति और मानव जीवन ।
(ख) विकास के क्रम में मनुष्य प्रकृति पर अपनी इचछा आरोपित करनी चाही अर्थात् प्रकृति पर अपना अधिपत्य स्थापित करने का प्रयास किया ।
(ग) मनुष्य अपनी हठवादिता के कारण यह नहीं जान सका कि उसका (मानव) इतिहास तथा प्रगति का इतिहास है. अता पराजय और दुर्गति का ।
(घ) प्रकृति पर विजय मनुष्य की जयगाथा नहीं है वस्तुतः यह उसकी पराजय तथा आत्महनन की गाथा है।
9. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
महानगरों में जो सभ्यता फैली है, वह छिछली और हृदयहीन है । लोगों के पारस्परिक मिलन के अवसर तो बहुत हो गए हैं, मगर इस मिलन में हार्दिकता नहीं होती, मानवीय संबंधों में घनिष्ठता नहीं आ पाती । दफ्तरों, ट्रामों, बसों, रेलों, सिनेमाघरों, सभाओं और कारखानों में आदमी हर समय भीड़ में रहता है, मगर इस भीड़ के बीच वह अकेला होता है । मनुष्य के लिए मनुष्यत्व के भीतर पहले जो माया, ममता और सहानुभूति के भाव थे, वे अब लापता होते जा रहे हैं । देशों की पारस्परिक दूरी घट गई है, लेकिन आदमी और आदमी के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(ख) महानगरों की सभ्यता को हृदयहीन क्यों कहा गया है ?
(ग) महानगरों की भीड़ में मानव अकेला क्यों है ?
(घ) “देशों की आपसी दूरी जितनी घट रही है, आदमी और आदमी की दूरी उतनी ही बढ़ रही है” इस दूरी की वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(क) महानगरों में फैलता अलगाव ।
लोगों
(ख) महानगरों की सभ्यता को हृदयहीन इसलिए कहा गया है क्योंकि आज यहाँ में आपसी घष्ठिता नहीं रही ।
(ग) महानगरों की भीड़ में मानव अकेला इसलिए है क्योंकि उसके जीवन में आपसी आत्मीयता, ममता और सहानुभूति नहीं रही ।
(घ) इस दूरी की वृद्धि का कारण है-मानव की हृदयहीनता और आत्मसीमितता।
10. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
मनुष्य अपने नैतिक गुणों से ही जीवधारियों में श्रेष्ठतम माना जाता है । हर व्यक्ति जीवन-पर्यंत सुख की खोज में रहता है । तन के सुख मनुष्य और पशु-पक्षी सभी को समान रूप से चाहिए, किंतु मन और आत्मा के सुख केवल मनुष्यों के लिए हैं । मन के जितने भी सुख
हैं, उनमें सबसे बड़ा है परोपकार का सुख । किसी अंधे को सड़क पार कराने, किसी भूखे को रोटी खिलाने, किसी प्यासे की प्यास बुझाने, किसी निराश-हताश को आशान्वित करने अथवा किसी लाचार, गरीब और जरूरतमंद के काम आने में जो सुख मिलता है, उसकी किसी भी सुख या आनंद से तुलना नहीं की जा सकती । अपने लिए तो दुनिया में सभी प्राणी जीते हैं, पर जब
हम अपने जीवन को दूसरों के लिए अर्पित कर देते हैं तो हमारा जीवन ‘धन्य’ हो जाता है ।
(क) अपनी किस विशेषता के कारण मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है?
(ख) मनुष्य और पशु के सुखों में क्या भिन्नता है ?
(ग)जीवन की धन्यता कब अनुभव होती है ?
(घ)परोपकार के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर-(क) अपने नैतिक गुणों के कारण मनुष्य जीवधारियों में श्रेष्ठतम माना जाता है।
(ख) पशु को केवल तन का सुख चाहिए, जबकि मनुष्य तन, मन और आत्मा तीनों का सुख चाहता है।
(ग) जीवन की धन्यता तब अनुभव होती है जबकि मनुष्य अपने जीवन को दूसरों के लिए- अर्पित कर देता है।
(घ) परोपकार के कुछ काम हैं-किसी अंधे को सड़क पार कराना, भूखे-प्यासे को तृएर करना, किसी निराश-हताश को उत्साह देना, किसी जरूरतमंद गरीब के काम आना।
11. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हम जीवन में सुख-समृद्धि चाहते हैं, ज्ञान, शांति और कीर्ति चाहते हैं, किंतु ये चीजें तभी मिल पाती हैं जब हम इनको पाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील बने रहें । हम अपने समय के एक-एक क्षण को बहुमूल्य मानकर उसका सदुपयोग करें तथा निरंतर परिश्रम करते रहें । यह तभी संभव होगा, जब हम अपने समय का सही विभाजन और नियोजन कर लें; क्योंकि समय सीमित है और करने के लिए काम अनंत हैं । जो काम आवश्यकता और महत्त्व की दृष्टि से पहले पूरे करने
के हैं, उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए । ध्यान रहे कि सभी कामों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए अच्छा स्वास्थ्य और प्रबल इच्छाशक्ति होनी चाहिए । अतएव जहाँ एक ओर हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति सजगता बरतनी चाहिए, वहीं अपना संकल्प भी ऊँचा बनाए रखना चाहिए ।
(क) जीवन में सुख-समृद्धि कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
(ख) समय का विभाजन और नियोजन करना क्यों आवश्यक है ?
(ग) उपर्युक्त गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(घ) कामों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए किन बातों के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर-(क) जीवन में सुख-समृद्धि निरंतर परिश्रमशील तथा सुनियोजित होने से पाई जा सकती
(ख) ढेर सारे कार्यों को सफलता और सुविधापूर्वक करने के लिए समय का विभाजन और नियोजन आवश्यक है।
(ग) सुख-समृद्धि सूत्र ।
(घ) कामों को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए निरंतर परिश्रमी, सुनियोजित होने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य तथा इच्छा-शक्ति को भी बढ़ाना चाहिए ।
12. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
विगत एक-दो दशकों में युवावर्ग में अपव्यय की प्रवृत्ति बढ़ रही है । भोगवाद की ओर युवक अधिक प्रवृत्त हो रहे हैं । वे सुख-सुविधा की प्रत्येक वस्तु पा लेना चाहते हैं और अपनी आय और व्यय में तालमेल बिठाने की उन्हें चिंता नहीं है । धन-संग्रह न सही, कठिन समय के लिए कुछ बचाकर रखना भी वे नहीं चाहते । उन्हें लुभावने विज्ञापनों के माध्यम से लुभाकर उत्पादक व्यवसायी भरमाते हैं । परिणामस्वरूप आज का युवक मात्र उपभोक्ता बनकर रह गया है । अनेक कंपनियाँ और बैंक क्रेडिट कार्ड देकर उनकी खरीद-शक्ति को बढ़ाने का दावा करते हैं और बाद में निर्ममता से वसूलते हैं ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(ख) युवावर्ग में कौन-सी प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है ?
(ग) उत्पादक उपभोक्ता को कैसे भरमाते हैं ?
(घ) बचत करना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-(क) बढ़ता भोगवाद ।
(ख) युवा-वर्ग में भोगवाद के लिए अपव्यय करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
(ग) उत्पादक उपभोक्ताओं को लुभावने विज्ञापनों द्वारा भरमाते हैं ।
(घ) कठिन समय के लिए बचत करना बहुत जरूरी है ।
13. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
वृद्धावस्था का सच्चा आनंद है, आत्मसंतोष । जिन्हें भविष्य की चिंता है वे वृद्ध नहीं हैं, वे तरुण ही हैं; क्योंकि उन्हें कर्म की चिंता रहती है । जो कर्मशील होते हैं उन्हें सदा आत्मसंतोष मिलता है । उदाहरण के लिए जो देश के भविष्य निर्माण के लिए चिंतित होते हैं, उन्हें अपना कार्य समाप्त करके ही आत्म-सुख मिलता है ।
जवाहरलाल नेहरू एवं महात्मा गाँधी तरुण भारत
के तरुण नेता थे । उनमें अदम्य साहस, स्फूर्ति एवं उत्साह था । वृद्धावस्था उनके शरीर को जीर्ण कर सकती थी-मन को नहीं; पर जो लोग एकमात्र शरीर-सुख को ही अपना लक्ष्य मानते हैं उनके जीवन में शारीरिक शक्ति की क्षीणता के साथ-साथ वृद्धावस्था आ जाती है । इस प्रकार के लोग वृद्धावस्था से असंतुष्ट होकर आत्मसंतोष से भी हाथ धो बैठते हैं ।
(क) प्रस्तुत गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) बुढ़ापे का वास्तविक आनंद क्या है ?
(ग) वास्तविक आनंद किसको किस रूप में प्राप्त होता है ?
(घ) वे कौन लोग होते हैं, जो इस आनंद से वंचित रहते हैं ?
उत्तर-(क) आत्मसंतोष का रहस्य-कर्म ।
(ख) ‘आत्मसंतोष’ बुढ़ापे का वास्तविक आनंद है ।
(ग) वास्तविक आनंद कर्मशील लोगों को कर्म करते हुए प्राप्त होता है ।
(घ) जो लोग जीवन-भर शरीर-सुख की साधना में लगे रहते हैं, कोई स्फूर्तिदायक कर्म
नहीं करते, वे बुढ़ापे में आत्मसंतोष से वंचित रहते हैं ।
14. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हमारी बहुत-सी समस्याएँ बिना विचारे कार्य करने का परिणाम होती हैं । बिना विचारे कार्य करने से हम सदा चिंतित एवं अवसन्न होकर अकथनीय कष्टों से अपने जीवन को अभिपूरित कर लेते हैं । अविचारित कार्य करके हम मन ही मन पछताते रहते हैं, किंतु उसका कोई लाभ नहीं होता । कभी-कभी अविचारित कार्यों के दुष्परिणामों का दुष्प्रभाव बहुत भयानक होता है । किंतु
दुःख इस बात का है कि ऐसे कार्यों को करने से पहले मानव कभी यह अनुभव ही नहीं करता कि अविचारित कार्य का दुष्परिणाम उसके लिए विनाशक हो सकता है । विचारपूर्वक कार्य करने वाला ही यह जान सकता है कि कर्त्तव्य क्या है और अकर्त्तव्य क्या है ?
कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य का विवेक रहने से ही मानव कर्म के साथ ज्ञान या बुद्धि का मेल बैठाता है और परिणामस्वरूप अविचारित कर्म के विनाशक परिणामों से बच जाता है। इसलिए सुविचारित कर्म करना ही मानव का सर्वोत्कृष्ट कर्त्तव्य है। इसी के आधार पर जीवन को संपूर्ण, सबल और प्रभावशाली बनाया
जा सकता है।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(ख) अविचारित कार्य करने के क्या परिणाम होते हैं ?
(ग) सुविचारित कार्य करने के क्या लाभ हैं ?
(घ) अविचारित कर्म के दुष्परिणामों से कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर-(क) सुविचारित कर्म ।
(ख) अविचारित कार्य करने वाले लोग सदा समस्याग्रस्त, चितिंत और उदास रहते हैं
(ग) सुविचारित कार्य करने वाला व्यक्ति कर्तव्य और अकर्तव्य के बीच अंतर करके
अविचारित कर्मों के दोषों से बच जाता है ।
(घ) किसी भी कार्य को करने से पहले ठोस विचार कर लेने से अविचारित कर्म के दुष्परिणामों से बचा जा सकता है ।
15. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
भारतीय साहित्य के इतिहास में संत कवियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । हिंदी, मराठी, तमिल, बंगला आदि अनेक भाषाओं में संत कवियों का साहित्य आज की सामाजिक परिस्थितियों में भी प्रासंगिक है । बाहरी आडंबर, अंधविश्वास, दिखावा आदि का सभी संत कवियों ने विरोध किया । वे मनुष्य-मनुष्य के बीच मानवीय संबंधों के पक्षधर थे । उनके मतानुसार ईश्वर के नामों में भेद है, परंतु ईश्वर एक ही है । राम, रहीम, अल्ला, गोविंद एक ही शक्ति के नाम हैं । इसी प्रकार ब्राह्मण-क्षत्री, काले-गोरे, गरीब-अमीर एक ही मिट्टी के बरतन हैं जिन्हें ईश्वर ने बनाया है । इसलिए विविधता को नहीं, एकता को महत्त्व दिया जाना चाहिए ।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए ।
(ख) संत-साहित्य मुख्यतः किन भाषाओं में प्राप्त होता है ?
(ग) संत-साहित्य आज भी प्रासंगिक कैसे है ?. दो कारण बताइए ।
(घ) ईश्वर के बारे में संत कवियों के क्या विचार हैं ?
उत्तर-(क) भारत के संत कवियों का योगदान ।
(ख) संत-साहित्य मुख्यतः हिंदी, मराठी, तमिल, बंगला आदि भाषाओं में प्राप्त होता है।
(ग) संत साहित्य आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि-
आज भी बाहरी आडंबर बने हुए हैं ।
आज भी धर्म के क्षेत्र में अंधविश्वासों का बोलबाला है।
(घ) संत कवियों के अनुसार, ईश्वर एक है । उसे अनेक नामों से जाना जाता है ।