10th hindi

bihar board 10th hindi | हिरोशिमा

bihar board 10th hindi | हिरोशिमा

 हिरोशिमा
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_सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
*कविता का सारांश:-
मानव-निर्मित ध्वंसात्मक आयुधों की वीभत्सता का जीता-जागता उदाहरण है हिरोशिमा जहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका ने अणुबम का विस्फोट किया और मानवता के कलंक का इतिहास रच गया।
कवि कहता है कि एक दिन सहसा एक सूरज निकला क्षितिज पर नहीं, नगर के बीच। इतनी तेज धूप बदली, इतनी तीव्र ज्वाला निकली कि आदमी की छायाएँ चारों ओर चस्पा हो गईं। यह सूरज पूरब में नहीं उगा था। यह आ गया अचानक नगर के बीच आसमान में और लगा कि काल-सूर्य के पहिए चारों ओर टूट कर बिखर गए अर्थात् अणु-विस्फोट दसों-दिशाएँ दहक उठी।
यह सूरज अधिक देर तक नहीं रहा। बस, उगा और अस्त हुआ। लेकिन कुछ क्षण की चमक में ही दोपहर की रोशनी सूख गई यानी उस सूरज-अणुबम-से ऐसा प्रकाश निकला कि दोपहर का प्रकाश भी फीका हो गया। उस प्रकाश से चौक-सड़क पर मौजूद लोगों की छायाएँ जहाँ-तहाँ अंकित हो गई और उस प्रकाश के उत्ताप से बहुत सारे लोग वाष्प बनकर विलीन हो गए।
वे छायाएँ आज भी देखी जा सकती हैं-पत्थरों पर, पत्थर के टुकड़ों या सीमेंट से बनी सड़कों के उजड़े धरातल पर।
मनुष्य का बनाया सूरज, अर्थात् अणुबम, मानव को ही वाष्प बनाकर सोख गया। उस समय सड़कों, गलियों में चल-फिर रहे लोग, वाष्प की भाँति विलीन हो गए। आस-पास के पत्थरों पर, सड़कों पर, दीवारों पर उस त्रासदी के फलस्वरूप बनी मानव छायाएँ दुर्दान्त मानव के कुकृत्यकी साक्षी हैं।
यहीं द्वितीय विश्व युद्ध अणु-बम का विस्फोट हुआ और एक अनहोनी होती है।

सरलार्थ

बहुमुखी प्रतिभासंपन्न सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता मानवीय विभीषिका का सजीवात्मक चित्रण प्रस्तुत करती है। ‘अज्ञेय’ आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक प्रखर कवि, कथाकार, विचारक और पत्रकार हैं। उन्होंने हिन्दी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया है। सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है।
प्रस्तुत कविता में कवि ने आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट और आशंकाओं को प्रदर्शित किया है। आज दुनिया आण्विक आयुधों को जमा करने में लगी है। विश्व में छाये त्रासदी के बादल यह संकेत कर रहे हैं कि ये नष्टकारी अस्त्र-शस्त्र कभी वीभत्सकारी रूप ले सकते हैं।
‘हिरोशिमा’ इसी शक्ति का शिकार हुआ है। आज भी वहाँ की त्रासदी कण-कण में प्रदीप्त दीख रही है । अमेरिका द्वारा गिराया गया बम साधारण शक्तिवाला नहीं था। वह आग के गोला की तरह आकाश से उतरा और पूरे हिरोशिमा को नि:शेष कर गया । आज भी उस त्रासदी का दंश वहाँ के वासी झेल रहे हैं। मानव द्वारा निर्मित वह सूरज मानव को ही जलाकर राख कर दिया।

प्रद्याश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्न

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक:
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं?
उत्तर-हिरोशिमा ।

(iii) नगर के चौक पर अचानक क्या निकला?
उत्तर-प्रकृति द्वारा सृजित सूरज नहीं बल्कि क्रूर और निष्ठुर मानव द्वारा निर्मित्त सूरज नगर के चौक पर, धरती की फटी मिट्टी से निकला था। कहने का मूलभाव यह है कि हिरोशिमा पर बम विस्फोट क्रूर मनुष्य के ही हाथों हुआ था जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।

(iv) धूप कहाँ से बरसी थी?
उत्तर-धूप अंतरिक्ष से नहीं फटी हुई धरती की मिट्टी से बरसी थी और उसकी गरमी से सारी सृष्टि झुलस गयी थी, जलकर मर गयी थी। करुण-क्रंदन से सारी धरती चीत्कार कर उठी थी। माँ का कलेजा दहल उठा था। हिरोशिमा पर किए गए बम विस्फोट से धुंआ और गरमी
ने धन-जन को अपार क्षति पहुँचाई थी। यह मानव द्वारा किया गया जघन्य अपराध था।

(v) सूरज किस बात का प्रतीक है?
उत्तर-प्रकृति द्वारा सृजित सूरज तो लोक कल्याणकारी भाव रखता है। वह जन-जीवन का कल्याण करता है। किन्तु कविता में प्रयुक्त मानव द्वारा गिराये गए बम-विस्फोट की घटना से संबंधित है। निष्ठुर, निर्दयी मानव द्वारा सृजित बम ही कवि का सूरज है, जिससे अपार धन-जन को क्षति हुई।

2. छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर केः
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हिरोशिमा ।

(iii) ‘छायाएँ मानव-जन की दिशाहीन’ इन पंक्तियों का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-उक्त काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि कहना चाहता है कि जब हिरोशिमा पर बम विस्फोट किया गया था तब चारों तरफ कुहराम मच गया था। और लोग अपनी जान बचाने के लिए जैसे-तैसे दिशाहीन होकर भाग रहे थे। उन्हें अपने का ख्याल ही नहीं था। वे बेसुध और बेपरवाह तथा भयभीत होकर जिधर-तिधर भाग रहे थे।

(iv) दसों दिशाओं में क्या बिखर गये थे?
उत्तर-जब हिरोशिमा पर बम विस्फोट हुआ था उस समय नगर के चौक पर अफरा-तफरी मच गयी थी। प्रतीत होता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये की धूरी टूट गयी है और पहियों के सारे पुर्जे दसों दिशाओं में बिखर गये हों। यहाँ चारों तरफ रथ के पहिए सदृश जन-जन की असंख्य लाशें बिखरी पड़ी हुई थीं जिसे
देखकर कवि का मन सिहर उठा था।

(v) वह कैसा सूरज था जो पूरब में नहीं उगा था?
उत्तर-प्रकृति रूपी सूर्य की यहाँ चर्चा नहीं है। कवि मानव निर्मित सूर्य की चर्चा करता है जो सृष्टि का विध्वंसक था। यहाँ मानव निर्मित बम को सूर्य के रूप में कवि ने प्रयोग किया है-यहाँ तात्पर्य पूरब में प्रतिदिन उगनेवाला सूर्य नहीं मानव निर्मित सूर्य से यानी बम से है।
3. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकरः
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हिरोशिमा ।

(iii) कुछ क्षण तक क्या अस्त-व्यस्त हो गया था?
उत्तर-कवि कहता है कि जब हिरोशिमा पर बम विस्फोट हुआ था तब हर मनुष्य प्राण- रक्षा के लिए दिशाहीन रूप में भाग रहे थे। चारों तरफ अस्त-व्यस्तता दिखायी पड़ती थी। सभी जन प्राण-रक्षा के लिए बेचैन थे, व्याकुल थे।

(iv) ‘छायाएँ मानव-जन की, नहीं मिटीं लंबी हो-होकर’ से क्या अभिप्राय है?
उक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि बम विस्फोट में जो लोग मरे थे उनकी अस्थियाँ लंबे-लंबे रूप में यथावत् पड़ी हुई थीं। प्रतीत होता था कि ये मरी हुई नहीं हैं सुषुप्तावस्था में पड़ी हुई उनकी लम्बी छायाएँ हैं।
इन पंक्तियों से तात्पर्य लाश का ठोस रूप में पड़े रहने से है। उनके रूप-रंग में कहीं कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। ये मरे हुए मानवों की अस्थियों की छायाएँ हैं। ये आजतक भी नहीं मिटी हैं। इनका अस्तित्व आज भी बचा हुआ है। ये हमारे लिए संकेत करती हैं कि देखो, तुम्हारे कुकृत्यों का ही यह फल है। हिरोशिमा की धरती उस विध्वंसकारी कारनामों की साक्षी है।

(v) “मानव ही सब भाप हो गये” से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-उक्त पंक्तियों द्वारा कवि कहना चाहता है कि बम विस्फोट ने मनुष्य के असली रूप को विकृत कर दिया। वे उसकी गरमी में पिघलकर वाष्प के रूप में बदल गए। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ने विस्फोट के प्रभाव से ठोस से तरल और द्रव का रूप धारण कर लिया
और वाष्पीकरण क्रिया द्वारा वाष्प के रूप में बदल गया। यहाँ बम-विस्फोट के विध्वंसकारी रूप एवं मानव की हुई क्षति का कवि ने संवेदना के साथ वर्णन किया है। कहने का मूल भाव यह है कि मनुष्य का मूल अस्तित्व ही मिट गया।

4. मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ।

(ii) प्रस्तुत पंक्तियाँ किस कविता से उद्धृत हैं ?
उत्तर-हिरोशिमा ।

(iii) मानव का रचा हुआ सूरज क्या है? स्पष्ट करें। प्राकृतिक सूरज और मानव-निर्मित सूरज में क्या अन्तर है?
उत्तर-‘मानव का रचा हुआ सूरज और कुछ नहीं अणु बम है जिसके विस्फोट के समय चारों ओर प्रकाश फैलता है। अणु में अपार ऊर्जा भी है। इसी साम्य के कारण कवि ने अणु बम को मानव का रचा हुआ सूरज कहा है। किन्तु दोनों में अन्तर है। प्राकृतिक सूरज जहाँ नियामक है। वहाँ मानव-निर्मित अणु बम विध्वंसात्मक है।

(iv) ‘पत्थर पर लिखी हुई यह जली छाया’ का निहितार्थ क्या है?
उत्तर-छाया लिखी नहीं जाती, उतारी जाती है और कैमरों के द्वारा उतारी जाती है। लिपि लिखी जाती है और अर्थ पूर्ण होती है। कवि के ‘पत्थर पर लिखी हुई यह जली छाया’ से तात्पर्य पत्थरों पर जो काली छायाएँ अंकित हैं उन छायाओं को मनुष्य ने जानबूझ कर अंकित किया है। यह जानते हुए कि इस विस्फोट से भयंकर मानव-संहार होगा, मनुष्य ने यह कार्य किया, यही त्रासदी है। उक्त छायाएँ मानव की काली करतूत की निशानियाँ हैं।

(v) अवतरण का मूल भाव लिखिए।
उत्तर-प्रस्तुत अवतरण में कवि का कहना है कि मानव का बनाया हुआ सूरज ही मानव को वाष्प बनाकर चटकर गया, सोख लिया और दीवारों, पत्थरों और सड़कों की गच (धरातल) पर अंकित जो जली हुई काली छायाएँ हैं वे मानव के इस अमानवीय कार्य की साक्षी हैं। कहने का तात्पर्य यह कि मानव ने अपनी रचनात्मक शक्ति का जो दुरूपयोग किया उसका कुपरिणाम आज उसके सामने हैं। वस्तुतः विश्व-राजनीति में आयुधों की होड़ से जो संकट गहरा रहा है, वह दुखद है।

बोध और अभ्यास
* कविता के साथ :-
प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है?
उत्तर-निकलने वाला सूरज प्रकाशपुंज का गोला नहीं बल्कि अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम है। सूरज क्षितिज पर उदय होते हुए दिखाई देता है किन्तु यह सूरज नगर के चौक पर दिखाई देता है। प्रकाशपुंज अंतरिक्ष से नहीं बल्कि धरती से निकलता हुआ दिखाई देता है।

प्रश्न 2. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम इतना शक्तिशाली था कि उसकी आग की लपटें चारों तरफ बिखर गईं । करुण चीख से वातावरण गुंजायमान हो गया । कोई किसी का दर्द सुननेवाला नहीं था क्योंकि सभी स्वयं अपने दर्द से पीड़ित थे। एक-दूसरे का साथ देनेवाले स्वयं विरक्त हो गये थे। चारों तरफ केवल त्राहिमाम् का स्वर सुनाई पड़ रही थी। छाया देनेवाले वृक्ष, मानव आदि स्वयं बचाव की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे।

प्रश्न 3. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर दोपहर में ही परमाणु बम गिराया गया था। कुछ क्षण के लिए उदय होनेवाले उस सूरज ने इतिहास बनाकर रख दिया। उस समय हिरोशिमावासी ने इस दंश को झेलने के लिए अपना सर्वस्व समर्पण कर दिया किन्तु आनेवाली पीढ़ी भी इस धधकती हुई आग की शिकार बनकर रह गई है।

प्रश्न 4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ?
उत्तर-मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा पर गिराये गये परमाणु बम के कारण पड़ी हुई है। मानव-निर्मित बम ने मानव को ही तबाही की गर्त में धकेल दिया । आयुधों की होड़ में लगी दुनिया स्वयं संकट के बादल से घिरने लगी है। तर्क-वितर्क की परिस्थिति में स्वयं फंसती जा रही है ।

प्रश्न 5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-हिरोशिमा में मनुष्य की साखी (साक्षी) के रूप में अमेरीका द्वारा गिराया गया परमाणु बम है। वर्षों बीत जाने के बाद भी हिरोशिमा वासी इस त्रासदी का दंश झेलने के लिए विवश हैं। साक्ष्य के रूप में उपस्थित रहनेवाला वह काला दिवस आज भी सिहरन पैदा करता है |

प्रश्न 6. व्याख्या करें-
(क) ‘एक दिन सहसा / सूरज निकला’
(ख) काल-सूर्य के रथ के / पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में
(ग) ‘मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया’

उत्तर-(क) प्रस्तुत पंक्ति सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि हिरोशिमा पर गिराये गये बम और उसकी तबाही का वर्णन किया है। अपनी शक्ति-प्रदर्शन में अमेरिका भले ही अपने ऊपर गौरवान्वित होता हो किन्तु उस बम का वीभत्सकारी रूप आज भी विद्यमान है। सूरज की तरह दिखनेवाला वह आग का गोला पूरे हिरोशिमा को ही नष्ट कर डाला । वर्षों बीत जाने के बाद भी वहाँ के वासी इसका
परिणाम भुगत रहे हैं।

ख) प्रस्तुत पंक्ति ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि हिरोशिमा पर गिराये गये बम और उसकी त्रासदी का वर्णन किया है। गिराया गया बम बड़ा ही शक्तिशाली था । कालरूपी सूर्य के पहियों के टूटे हुए अरें चारों तरफ बिखर गये । करुण
चीख से वातावरण द्रवित हो गया। सभी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। कोई भी एक-दूसरे का साथ देनेवाला नहीं था। प्राणों के लाले पड़े हुए। लोग अपना सुध-बुध खो बैठे थे। चीत्कार और कोहराम से दिशाएँ काँप उठी थीं।

(ग) प्रस्तुत पंक्ति ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता से संकलित है। इसमें कवि मानवीय विभीषिका को अत्यंत सजीवात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है। आज दुनिया शक्ति प्रदर्शन में भविष्य को गर्त में धकेल रही है। अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु
बम ईश्वरप्रदत्त नहीं बल्कि मानव-निर्मित था। एक मानव दूसरे मानव के प्रति क्या आस्था एवं विश्वास रखता है, इसका ज्वलंत उदाहरण हिरोशिमा है। आज मानव अपनी ही जाति का दुश्मन बन गया है। अपनी झूठी गरिमा को बनाये रखने के लिए किस-किस तरह के कार्य किये जा रहे हैं। आज दुनिया यह सभी घिनौने कृत्य को देखकर भी अंधी बनी हुई है।

प्रश्न 7. आज के युग में इस कविता की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-आधुनिक युग में दुनिया आयुधों की होड़ में लगी हुई है। जानी-मानी हस्तियाँ जनकल्याण की बात न सोचकर तबाही मचाने के लिए कृतसंकल्पित है। आज सर्वत्र वैश्विक राजनीति के संकट आशंकाओं से जुड़े हुए हैं। हर देश अपने आपको परमाणु शक्ति सम्पन्न बनकर
अपने सामर्थ्य को दिखाना चाहता है। अमेरिका द्वारा हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणुबम इसका ज्वलंत उदाहरण है। अमेरीका की बात कौन कहे आत्मसुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये आयुध पर हो रहे हैं। जनता को भूख और पीड़ा से सरकार का कोई औचित्य नहीं है । उसे केवल अपना सामर्थ्य प्रदर्शन की चिन्ता है। कभी ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का नारा दिया जाता था आज यह दिखावा बन गया है। शक्ति-संपन्न राष्ट्र छोटे और कमजोर राष्ट्रों को आयुध के नाम पर छलते हैं। यदि
यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं है जब कोई देश या उसका हिस्सा हिरोशिमा की तरह त्रासदी का दंश झेलने के लिए विवश हो जाएंगे।

भाषा की बात
प्रश्न 1. कविता में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों का कारक स्पष्ट कीजिए-
क्षितिज, अंतरिक्ष, चौक, मिट्टी, बीचो-बीच, नगर, रथ, गच, छाया।
उत्तर
क्षितिज :- अधिकरण कारक
अंतरिक्ष :- अपादान कारक
चौक :- संबंध कारक
मिट्टी :- अपादान कारक
बीचो-बीच :- संबंध कारक
नगर :- संबंध कारक
रथ :- संबंध कारक
गच :- अधिकरण कारक
छाया :- कर्ता कारक

प्रश्न 2. कविता में प्रयुक्त क्रियापदों का चयन करते हुए उनकी काल रचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– निकला :- वर्तमानकाल
पड़ी :- भूतकाल
उगा था :- भूतकाल
लिखी हैं :- भूतकाल
लिखी हुई :- भूतकाल
है :- वर्तमान काल

प्रश्न 3. कविता से तद्भव शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर– सूरज :- सूरज निकल आया।
धूप :- धूप निकल गयी।
मिट्टी :- मिट्टी गीली है।
पहिया :- पहिया टूट गया।
पत्थर :- पत्थर बड़ा है।
सड़क :- सड़क चौड़ी है।

प्रश्न 4. कविता से संज्ञा पद चुनें और उसका प्रकार भी बताएँ।
उत्तर– सूरज :- व्यक्तिवाचक संज्ञा
नगर :- जातिवाचक संज्ञा
चौक :- जातिवाचक संज्ञा
मानव :- जातिवाचक संज्ञा
रथ :- जातिवाचक संज्ञा
पहिया :- जातिवाचक संज्ञा
अरें :- जातिवाचक संज्ञा
पत्थर :- जातिवाचक संज्ञा
सड़क :- जातिवाचक संज्ञा

प्रश्न 5. निम्नांकित के वचन परिवर्तित कीजिए :
छायाएँ, पड़ी, उगा है, पहियों, अरे, पत्थरों, साखी।
उत्तर– छायाएँ:- छाया
उगा :- उगे
पहियों :- पहिया
अरें अरों
पत्थरों :- पत्थर
साखी :- साखियाँ।
पड़ी° :- पड़ी

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