Subramanyan Chandrashekhar | सुब्रमन्यन चंद्रशेखर
Subramanyan Chandrashekhar Biography in Hindi
जन्म: 19 अक्टूबर 1910
मृत्यु: 21 अगस्त 1995
उपलब्धियां: ‘चंद्रशेखर लिमिट’ की खोज, 1983 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित
सुब्रमन्यन चंद्रशेखर 20वीं सदी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक थे। उन्होंने खगोलशाष्त्र, भौतिकी और एप्लाइड मैथमेटिक्स में सराहनीय कार्य किया। चंद्रशेखर को वर्ष 1983 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। चंद्रशेखर महान भारतीय वैज्ञानिक और भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन के भतीजे थे। चंद्रशेखर मानव की साझी परम्परा में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार, “यह एक तथ्य है कि मानव मन एक ही तरीके से काम करता है। इस बात से एक और बात के पता चलता है कि जिन चीजों से हमें आनन्द मिलता है, वे विश्व के हर भाग में लोगों को आनन्द प्रदान करती है। इस प्रकार हम सब का साझा हित है”। चंद्रशेखर एक महान वैज्ञानिक, एक कुशल अध्यापक और उच्चकोटि के विद्वान थे।
प्रारंभिक जीवन
सुब्रमन्यन चंद्रशेखर का जन्म 10 अक्टूबर 1910 को लाहौर में हुआ था। उनके पिता चंद्रशेखर सुब्रमन्य ऐय्यर भारत सरकार के लेखापरीक्षा विभाग में अधिकारी थे। उनकी माता पढ़ी-लिखी उच्च कोटि की विदुषी महिला थीं। चंद्रशेखर महान भारतीय वैज्ञानिक और भौतिकी के नोबेल पुरस्कार विजेता सीवी रमन के भतीजे थे। बारह साल की उम्र तक चंद्रशेखर की शिक्षा माता-पिता और निजी ट्यूटर के देख-रेख में हुई। 12 साल की उम्र में उन्होंने हिन्दू हाई स्कूल में दाखिला लिया। वर्ष 1925 में उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। सुब्रमन्यन चंद्रशेखर ने भौतिकी विषय में स्नातक की परीक्षा वर्ष 1930 में उतीर्ण की। जुलाई 1930 में उन्हें भारत सरकार की ओर से कैम्ब्रिज विश्विद्यालय, इंग्लैंड, में पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिला।
उन्होंने अपनी पी.एच.डी. वर्ष 1933 में पूरा कर लिया। तत्पश्चात उन्हें ट्रिनिटी कॉलेज के फैलोशिप के लिए चुना गया। इस फैलोशिप की अवधि 1933-37 थी। वर्ष 1936 में वो कुछ समय के लिये हार्वर्ड विश्वविद्यालय के दौरे पर गए थे जब उन्हें शिकागो विश्वविद्यालय में एक रिसर्च एसोसिएट के पद की पेशकश की गयी जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। सितम्बर 1936 में सुब्रमन्यन चंद्रशेखर ने लोमिता दोरईस्वामी से शादी कर ली जो मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनकी जूनियर थीं।
कैरियर
उन्होंने अपने कैरियर ज्यादा समय शिकागो विश्वविद्यालय में बिताया। यहाँ उन्होंने कुछ समय यर्केस वेधशाला, और अस्त्रोफिजीकल जर्नल के संपादक के रूप में बिताया। शिकागो विश्वविद्यालय के संकाय में उन्होंने वर्ष 1937 से लेकर अपने मृत्यु 1995 तक कार्य किया। वर्ष 1953 में वो संयुक्त राज्य अमेरिका के नागरिक बन गए।
खगोलिकी के क्षेत्र में उनकी सबसे बड़ी सफलता उनके द्वारा प्रतिपादित “चन्द्रशेखर लिमिट” नामक सिद्धांत से हुई। इसके द्वारा उन्होंने ‘श्वेत ड्वार्फ’ तारों के समूह की अधिकतम आयु सीमा के निर्धारण की विवेचना का मार्ग प्रशस्त किया। सुब्रमन्यन चन्द्रशेखर ने खगोलिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किये। इस विश्वविख्यात खगोल वैज्ञानिक ने खगोल भौतिकी के अतिरिक्त खगोलिकीय गणित के क्षेत्र में भी उच्च स्तरीय शोध और कार्य किये। “तारों के ठण्डा होकर सिकुड़ने के साथ केन्द्र में घनीभूत होने की प्रक्रिया” पर किये गये उनके अध्ययन संबंधी शोध कार्य के लिए 1983 में उन्हें भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। चन्द्रशेखर सीमा के प्रतिपादन के फलस्वरूप न्यूट्रोन तारों और ‘ब्लैक होल्स’ का पता चला।
चंद्रशेखर लिमिट की खोज के अलावा सुब्रमन्यन चंद्रशेखर द्वारा किये गए प्रमुख कार्यों में शामिल है: थ्योरी ऑफ़ ब्राउनियन मोशन (1938-1943); थ्योरी ऑफ़ द इल्लुमिनेसन एंड द पोलारिजेसन ऑफ़ द सनलिट स्काई (1943-1950); सापेक्षता और आपेक्षिकीय खगोल भौतिकी (1962-1971) के सामान्य सिद्धांत और ब्लैक होल के गणितीय सिद्धांत (1974-1983)।
चंद्रशेखर के जीवन और करियर की यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें तमाम प्रकार की कठिनाईयों से झूझना पड़ा पर ये सब बातें उनके लिए छोटी थीं। वह एक शख्श थे जिन्हें भारत (जहां उसका जन्म हुआ), इंग्लैंड और यूएसए की तीन भिन्न संस्कृतियों की जटिलताओं द्वारा आकार दिया गया।
उनके मार्गदर्शन और देख-रेख में लगभग 50 छात्रों ने पी. एच. डी. किया। अपने विद्यार्थीयों के साथ उनके संबंध हमें गुरू-शिष्य परंपरा की याद दिलाते है। उनके विद्यार्थी उनका बहुत आदर करते थे लेकिन वह उन्हें लगातार उत्साहित भी रहते थे ताकि वे अपने दृष्टिकोण निर्भिक हो कर रखें।
नोबेल पुरस्कार
प्रोफेसर एस चंद्रशेखर को वर्ष 1983 में तारों के संरचना और विकास से सम्बंधित उनके शोध और कार्यों के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हालाँकि उन्होंने पुरस्कार स्वीकार कर लिया पर नोबेल पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र में सिर्फ उनके आरंभिक कार्यों का वर्णन किया गया था जिससे उन्हें घोर निराशा हुई।
पुरस्कार और सम्मान
- 1944: रॉयल सोसाइटी के फेलो बने
- 1949: हेनरी नोर्रिस रुस्सेल लेक्चररशिप
- 1952: ब्रूस पदक
- 1953: रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी के स्वर्ण पदक से सम्मानित
- 1957: अमेरिकन अकादमी ऑफ़ आर्ट्स एंड साइंसेज के रमफोर्ड पुरस्कार से सम्मानित
- 1966: राष्ट्रीय विज्ञान पदक , संयुक्त राज्य अमेरिका
- 1968: भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित
- 1971: नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा हेनरी ड्रेपर मेडल
- 1983: भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार
- 1984: रॉयल सोसाइटी का कोप्ले मेडल
- 1988: इंटरनेशनल अकादमी ऑफ़ साइंस के मानद फेलो
- 1989: गॉर्डन जे लैंग पुरस्कार
- हम्बोल्ट पुरस्कार