Rajkumari Amrit Kaur | राजकुमारी अमृत कौर
जन्म: फरवरी 2 सन् 1889, लखनऊ
मृत्यु: 2 अक्टूबर सन् 1964
कार्य/पद: स्वतंत्रता सेनानी, प्रथम भारतीय महिला जो केंद्रीय मंत्री बनी थीं, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान
राजकुमारी अमृतकौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ था। उनका ताल्लुक कपूरथला, पंजाब, के राजघराने से था। देश के विभाजन से पूर्व अमृतकौर अंतरिम सरकार में केन्द्रीय मंत्री थीं। वे महान समाज सुधारक और गांधीवादी भी थीं। देश की आजादी और विकास में उनका योगदाना सराहनीय है।
जीवन
अमृतकौर ‘राजसी कपूरथला̕ परिवार से ताल्लुक रखती थीं परंतु उन्होंने देश की सेवा के लिए राजसी जीवन छोड़ दिया था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह और रानी हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं। अमृत कौर उनकी एकलौती बेटी और सात भाईयों की एकमात्र बहन थीं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा इंग्लैंड के स्कूल शेरबॉन से पूरी की थी। अमृतकौर ने स्नातक की डिग्री ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवसिर्टी से प्राप्त किया था। वे टेनिस की बेहतरीन खिलाड़ी थीं और इस खेल के लिए उनको बहुत सारे पुरस्कार भी मिले थे। वह एक रईस घराने से ताल्लुक रखती थीं और चाहतीं तो शान से राजसी जीवन निवार्ह कर सकती थीं परंतु उन्होंने सारे राजसी सुख छोड़कर देश के लिए काम करना शुरू किया। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। उन्होंने एक समाज सुधारक के तौर पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया। राजा हरनाम सिंह बहुत धार्मिक और नेक दिल इंसान थे, वे अक्सर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं जैसे गोपाल कृष्ण गोखले आदि से मिलते रहते थे। शिक्षा पूरी करने के बाद अमृतकौर ने भी स्वाधीनता संग्राम के प्रति रुचि लेना शुरू किया और स्वतंत्रता सेनानियों के कार्य शैली के बारे में जानकारी हासिल की थी। वे महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं। जलियावाला बाग कांड ने उनको बहुत आहत किया था और वहीं से उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने का निर्णय लिया था। भौतिक सुख सुविधाओं से दूर उन्होंने महात्मा गांधी के साथ देशहित के लिए काम किया। वर्ष 1934 में अमृतकौर हमेशा के लिए महात्मा गांधी के आश्रम में रहने चली गयीं। उन्होंने दलितों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ भी आवाज उठायी थी।
गांधीवादी के रूप में
विदेश से पढ़ाई करके जब वह वापस भारत लौटीं तब उनकी मुलाकात मुम्बई में महात्मा गांधी से हुई। वह उनके विचार से बहुत प्रभावित हुईं थीं। उसी दौरान वह ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का हिस्सा बन गयी। उसके बाद गांधी द्वारा जो भी आंदोलन किए गए, अमृत कौर उसका महत्वपूर्ण हिस्सा थीं। वे महात्मा गांधी के आर्दशों की अनुनायक थीं। नमक सत्याग्रह के दौरान डांडी मार्च में अमृतकौर गांधी जी के साथ थीं।
आजादी के बाद
भारत की आजादी के बाद अमृतकौर जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में केंद्र सरकार में शामिल हुईं। अमृतकौर पहली महिला थीं जो केंद्र में पद संभाल रही थीं। अमृतकौर ने ̔स्वास्थ विभाग̕ का कार्यभार संभाला। केंद्र सरकार में अमृत कौर एकमात्र ईसाई थीं। वर्ष 1950 में उन्होंने ̔विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन̕ के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था। ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली̕ की स्थापना में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही। इसके लिए उन्होंने जर्मनी और न्यूज़ीलैंड से आर्थिक मदद भी ली थी। उन्होंने पुनर्सुधार में भी सहयोग दिया था। अमृतकौर और उनके भाई ने संस्था के कर्मचारियों के ̔हॉलिडे होम̕ के लिए अपनी संपत्ति दान कर दी थी। करीब 14 साल के लिए वे ‘भारतीय रेडक्रास सोसाइटी की अध्यक्ष भी रहीं। भारत के विकास में उनका योगदान सराहनीय था। वर्ष 1957 तक अमृतकौर भारत की ̔स्वास्थ्य मंत्री̕ थीं। उसके बाद वह मंत्रीपद त्यागकर सेवानिवृत्त हो गयीं परंतु कौर जब तक जीवित रहीं वह राज्यसभा की सदस्य थीं। वह एम्स के ‘क्षयरोग समिति’ और ̔सेंट जान्स अंबुलेंस कार्प’ की अध्यक्ष भी थीं।
2 अक्टूबर 1954 में यह महान आत्मा परलोक सिधार गयी।