क्या चीजें हैं जो हर किसी को महाराणा प्रताप के बारे में जानना चाहिए?
क्या चीजें हैं जो हर किसी को महाराणा प्रताप के बारे में जानना चाहिए?
क्या चीजें हैं जो हर किसी को महाराणा प्रताप के बारे में जानना चाहिए
महाराणा प्रताप एक नाम जिसको अपनी जीभ पर लाते ही मस्तक स्वयं गर्व से उठ जाता है। उनके विषय में जानने के लिए बहुत कुछ है किन्तु मैं कुछ ऐसी जानकारियाँ देने का प्रयास करूँगा जो बहुत कम लोग जानते हों –
1. महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया का जन्म 9 मई 1540 को हुआ। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था।
2. राणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल ११ शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों के नाम है:-
- महारानी अजब्दे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास
- अमरबाई राठौर :- नत्था
- शहमति बाई हाडा :-पुरा
- अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह
- रत्नावती बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु
- लखाबाई :- रायभाना
- जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
- चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह
- सोलनखिनीपुर बाई :- साशा और गोपाल
- फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा
- खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह
3. महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा के जंगलों में भीलों के बीच एक इमली के पेड़ के निचे कर दिया गया था। जो राजा अपनी प्रजा से इतना जुड़ा हो वही तो सच्चा राजा है।
4. प्रताप ने यह वचन लिया था की जब तक अपनी मेवाड़ धरा को मुगलों से समुचित मुक्त न कर दूँ तब तक राजसी सुख सुविधाओं का त्याग करूँगा। यही कारण था कि उन्होंने भटकना और घास की रोटी खाना स्वीकार था किन्तु मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं थी।
5.महाराणा प्रताप अपने जीवन के अंत मुगलों को धुल चटाते रहे और अपने वचन को लगभग पूरा भी किया। किन्तु मृत्यु के अंत तक उनको बस इसी बात का दुःख था की वो चित्तोड़ दुर्ग को मुगलों से वापस नहीं ले पाए।
6. महाराण प्रताप का कद 7 फुट 5 इंच था। उनके भले का वजन 80 किलो,दोनों तलवारों और भाले का कुल वजन 208 किलो और कवच का वजन 72 किलो था।
7. महाराणा प्रताप की छोटी माँ धीरबाई का बेटा शक्ति सिंह हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की और से लड़ा था।
8. हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा के पास 500 भील और कुछ राजपूत सैनिक थे, कुछ अफगानी सैनिक थे जिनका नेता महाराणा का मित्र हकीम खा सूरी था। राणा ने ग्वालियर के रामशाह तंवर और उनके बेटो को अकबर के विरुद्ध युद्ध मैं शामिल किया। जबकि अकबर की सेना का सेनापति आमेर का राजकुमार मानसिंह कर रहा था।
9. हल्दीघाटी के युद्ध में राणा ने अपनी तलवार के एक प्रहार से ही अकबर के एक सेनापति बहलोल खान को घोड़े समेत दो भागों में चीर दिया था।
10. महाराणा का लगा कि युद्ध उनके हाथों से निकल रहा है तो उन्होंने मानसिंह को मारने की सोची ताकि समूची मुग़ल सेना भयभीत हो जाये। फिर जो दृश्य बना उसके क्या कहने। मैं गारंटी से कहता हूँ कि इतिहास में ऐसा दृश्य आपको कहीं मिल जाये तो मान लूंगा कि वो आठवां अजूबा है।
11.प्रताप के प्रिय घोड़े का नाम था चेतक। जब प्रताप युद्ध में घायल हो गए तो चेतक ने अपनी एक टांग कट जाने के बाबजूद राणा को कई फ़ीट चौड़े नाले को पार करके सुरक्षित युद्ध क्षेत्र से नीकल लिया और फिर प्राण त्याग दिए।
12.डॉक्टर चन्द्रशेखर शर्मा ने अपने रिसर्च पेपर में बताया है कि प्रताप अपनी राजधानी चावंड में ही शिकार पर जाने की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान उन्होंने अपना धनुष निकाला और उसकी डोरी को खींचा। एका-एक उनकी आंत में खिंचाव आ गया। बाद में चावंड में उनका इलाज चला, लेकिन 29 जनवरी 1597 को 57 वर्ष की आयु में आंत में आए खिंचाव के चलते महाराणा प्रताप का निधन हो गया।उनकी मृत्यु पर अकबर भी रोया था वह बोला ऐसा स्वाभिमानी अब कभी नहीं होगा।
13. राणा की 12 साल की बेटी चंपा ने भूख से तड़प कर अपने प्राण राणा की हथेलियों पर तोड़ दिए पर। उसके अंत समय मैं राणा बोले बेटी में अकबर को अभी संधि प्रस्ताव भेजता हूँ उस पर चंपा बोली कि एक चंपा की खातिर क्या अपने रघुकुल की रीती को तोड़ोगे पिताजी तो फिर उन वीरों का क्या होगा जो आपके एक आदेश पर अपने प्राण निछावर करने को तैयार हैं.
14. प्रताप भारत के प्रथम स्वतंत्रता सैनानी कहे जाते हैं।
15.एक बार अब्राहिम लिंकन का भारत दौरा तय हुआ तो बोले माँ तेरे लिए क्या लाऊँ भारत से ,तो माता बोली की बेटे हल्दीघाटी की एक मुट्ठी माटी ले आना मैं उसे स्पर्श करके मरना चाहती हूँ।हालाँकि अब्राहिम लिंकन का वो दौरा सुरक्षा कारणों से रद्द किया गया था। अब्राहिम लिंकन की आत्मकथा में यह स्पष्ट है कि उनकी माँ ने उन्हें बचपन से ही राणा प्रताप और शिवाजी की कहानियाँ सुनाकर बड़ा किया था।
अंत मैं यही कहना चाहता हूँ कि आज प्रताप और इनके जैसे देशभक्तों का हम पर उपकार है क्यूंकि आज हमारे मंदिरों में भगवान् है तो वो इन्हीं के कारण है। वे ऐसे व्यक्ति थे जिनके बारे में लिखते लिखते हाथ दुःख जाते हैं पर मन नहीं भरता। ऐसे “हिन्दुवा सूरज मेवाड़ी रतन” को समूचे भारत का नमन।