दुख शब्द से है, मेरा दिल कांपता, मैं क्या सारी दुनिया को है,
दुख शब्द से है, मेरा दिल कांपता, मैं क्या सारी दुनिया को है,
दुख शब्द से है मेरा दिल कांपता मैं क्या सारी दुनिया को है
दुख शब्द से है, मेरा दिल कांपता,
मैं क्या सारी दुनिया को है, वह नापता।
तूने मुझे पग-पग पर रुलाया है,
हर गम में फिर भी मैं मुसकाया है।
मकसद तेरा है करना मुझे बैचेन,
पर जब तक हैं सांसें, मुझमें,
खोऊंगा न अपना चैन।
तू चाहता है मुझे मंजिल से डगमगाना,
पर है बुनियाद मेरी ऐसी पक्की,
वो तेरे डराए न डिगेगी।
जीवन बीता दुखों से खेलते आंख मिचौली,
क्योंकि उम्मीद है कभी तो होगी इस जीवन में होली।
माना दुख से भरा है यह संसार,
पर भगवान की लीला भी है अपरम्पार।
मैनें भी सीख ली है सूरज से,
कितना भी हो दुख काम करो नित धीरज से।
लगता है दुख को बीतने में वक्त,
पर क्यों करें, बार -बार हम उसे अभिव्यक्त।
बात -बात पर रोना, बनाता है हमें कमजोर,
क्यों न भूल इन्हें हम, सारा ध्यान लगाएं आगे बढने की ओर।
क्योंकि हौसला रहेगा हममें जबतक,
गमों के बाद भी मुस्कुराकर शिखर छूते रहेगें हम तब तक।।
Author – Balendu Shekhr ( M.a )