सोचा एक ऐसी बनाऊं दवाई पीकर जिसे सब बन जाएं भाई
सोचा एक ऐसी बनाऊं दवाई, पीकर जिसे सब बन जाएं भाई।
सोचा एक ऐसी बनाऊं दवाई पीकर जिसे सब बन जाएं भाई
सोचा एक ऐसी बनाऊं दवाई,
पीकर जिसे सब बन जाएं भाई।
सोचा बनाऊं एक ऐसी शरबत,
जो मिटा दे मन से मन की नफरत।
सोचा लिखूँ एक ऐसा गीत,
जिसे सुन बन जाएं हम सब मीत।
सोचा रचूं एक ऐसा संसार,
जहाँ बिखरा हो स्नेह अपार।
सोचा तलाशूं एक ऐसे खुदा को,
जिसे मान मानव – मानव से ना कभी जुदा हो!!!!
Author – Balendu Shekhar ( M.a )