Madhubani painting | मधुबनी चित्रकला
मधुबनी चित्रकला
Madhubani painting
वर्ग – 9
विषय – हिंदी
पाठ 5 – मधुबनी चित्रकला
मधुबनी चित्रकला
सारांश
बिहार की लोक चित्रकला से मधुबनी चित्रकला को निकाल दिया जाय तो शायद बिहार को लोक चित्रकला नि : प्राण साबित हो । चित्रकला के सेना में मधुबनी अग्रणी है । तभी तो मिथिला का रंगीन चित्रकारी को अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त है । प्रसिद्ध चित्रकारी उपेन्द्र महारथी यहाँ के चित्रकारी से इतने प्रभावित थे कि सम्पूर्ण बिहार की लोक चित्रकारों पर शोध और अध्ययन वर्षों तक किया ।
मिथिला की चित्रकारी में महिला वर्ग की प्रधानता है । पहले चित्रकारी काम , जमीन और कपड़े तक सीमित था अब कागज कैनवास भी किया जाने लगा । पहले प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था अब कृत्रिम रंगों का प्रयोग हो रहा है । संभ्रात और दलितों के रंग अलग – अलग होते हैं ।
मिथिला चित्रकला के तीन प्रमुख रूप है :
( i ) भूमि आकल्पन ( ii ) भित्ति चित्रण ( iii ) पट चित्रण ।
( i ) भूमि आकल्पन — यह परंपरा हर संस्कृति में रही है । जमीन पर अल्पना बनाने का प्रचलन भिन्न – भिन्न राज्यों में भिन्न – भिन्न नामों से जाना जाता है । महाराष्ट्र में रंगोली , गुजरात की साँथिया पहाड़ी क्षेत्रों में आँजी । बिहार में इसे चौका पुरन के नाम से जाना जाता है । मिथिला में अरिपन कहा जाता है । पूजा , उत्सव , अनुष्ठान , विवाह , मांगलिक अवसरों पर भूमि चित्रण हुआ करता है ।
( ii ) भित्ति चित्रण – दीवाल पर चित्र बनाने की क्रिया को भित्ति कहते हैं । इसमें स्थायित्व पाया जाता है । इसका उदाहरण कोहबर लेखन में होता है ।
कोहबर चित्रों में तीन भाग होते हैं :
( a ) गोसाई घर , ( b ) कोहबर – घर , ( c ) कोहबर घर का कोनिया ।
( iii ) पटचित्र – पटचित्र का विकास विद्यापति के समकालिन राजा शिव सिंह के काल में इस कला का विशेष विकास हुआ । पहले इस तरह के चित्र केवल दीवारों पर चित्रित किया जाता था बाद में कागज कैनवास पर भी किया जाने लगा । चित्र को किनारों से घिरा होना आवश्यक था । दुहरी रेखाओं वाली किनारों में मछली , फूल , फल का अंकन होता है ।
मधुबनी पेंटिंग के नाम से विख्यात इस चित्रकला के मुद्रित रूप भी मिलते हैं । इसमें प्राकृतिक रंगों की मान्यता है । यह पूजा – पाठ के अलावा तांत्रिक उद्देश्यों से भी इस चित्रकला का महत्व है । इसमें चार महादेवियों तथा दस महाविद्याओं की भी परम्परा है ।
इसे सुरक्षित रखने तथा विकास करने में ब्राह्मण तथा कायस्थ परिवारों की महत्वपूर्ण भूमिका है । पहले यह दलित परिवारों में इसकी परंपरा थी । मिथिला चित्रकला में महिलाओं को पुरस्कार प्रदान किया गया है उनका नाम जगदंबा देवी 1970 , सीता देवी 1975 , गंगा देवी 1976 , गोदावरी दत्ता 1980 । इन महिलाओं को “ पद्म श्री ” से भारत सरकार ने अलंकृत किया था ।
आधुनिक काल में रासायनिक रंगों का प्रयोग होने लगा है । रेखा प्रधान चित्र होने के कारण रेखा भी रंग की अस्पष्टता नजर नहीं आती । खाली जगह को भरने या सजावट करने में रुचि और श्रम के प्रमाण मिलते हैं । कहा जाता है कि चित्रकारी खाली जगह रहने पर उसमें दुष्ट आत्मा प्रवेश कर जाती है । एक तरफ मधुबनी चित्रकला वर्षों पुरानी विरासत को बचा रखी है तो दूसरे तरफ अट्रीय ख्याति भी प्राप्त की है ।
अभ्यास
प्रश्न 1. मधुबनी चित्रकला क्या है ? परिचय दीजिए ।
उत्तर – मधुबनी को चित्रकला में महिला वर्ग की प्रधानता रही है । पहले जमीन , भित्ति तथा कपड़े पर चित्रकारी करते थे । अब कागज तथा कैनवास पर भी अंकन करते हैं । अपने चित्रकला में प्राकृतिक रंग का प्रयोग करते अब कृत्रिम रंग का प्रयोग प्रारम्भ हो गया है । मधुबनी की प्रसिद्ध चित्रकला में रेखा रंग का सूक्ष्म प्रयोग देखा जाता है । अब तो मधुबनी पॅटिंग से विख्यात इस चित्रकला के मुद्रित रूप भी मिलते हैं । ये अपनी रेखा चित्र में खाली स्थान नहीं छोड़ते क्योंकि इनकी मान्यता है कि खाली स्थान में दुष्टों का वास होता है ।
प्रश्न 2. मधुबनी चित्रकला के कितने रूप प्रचलित है ?
उत्तर – मधुवनी चित्रकला के तीन रूप प्रचलित हैं : ( i ) भूमि आकलन , ( ii ) भित्ति चित्रण , ( iii ) पट चित्रण ।
प्रश्न 3. कोहवर चित्रकारी क्या है ? बताइए ।
उत्तर – कोहवर चित्रांकन वर्गाकार या आयताकार होता है । वैवाहिक अवसर पर कोहवर अंकन होता है । इसमें तोता , बाँस कमल का पत्ता , मछली नैन – जोगिन और समाचकेवा का चित्रांकन होता है । यह महिलाओं द्वारा किया जाता है ।
प्रश्न 4. मधुबनी चित्रकला में रंग प्रयोग की विशेषता बताइए ।
उत्तर – प्रारम्भ में प्राकृतिक रंग का प्रयोग किया जाता था । ये कलाकार अपना रंग स्वयं बनाते थे । विभिन्न फूल , फल , गोंद तथा छाल से बनाया जाता है । मधुबनी चित्रकार – गोमून , नील , गेरु , बकरी का दूध , कौड़ी , मोती ताँबा , तुतिया , ताजर्वत आदि से रंग तैयार करते हैं ।
प्रश्न 5. मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में किस चित्रकार की विशेष भूमिका निभाई ?
उत्तर – मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में जगदंबा देवी , सीता देवी , गंगा देवी की विशेष भूमिका रही है ।
प्रश्न 6. भूमि आकल्पन से आप क्या समझते हैं ? परिचय दीजिए ।
उत्तर – भूमि आकल्पन की परंपरा हर संस्कृति में रही है । पूजा , अनुष्ठान , विवाह और मांगलिक अवसर पर भूमि चित्रण होता है । अरिपन में कमल , बाँस , पुरइन , मछली आदि का चित्र बनाया जाता है । यह हर राज्य में अलग – अलग नामों से जाना जाता है । महाराष्ट्र में रंगोली , गुजरात में साथिया , पहाड़ी क्षेत्र में आँजो , बिहार में चौका पुरना ।
प्रश्न 7. मधुबनी चित्रकला में खाली स्थान क्यों नहीं छोड़े जाते हैं ?
उत्तर – लोगों की ऐसी धारणा है कि अगर खाली स्थान छोड़ा गया तो उसमें दुष्टों का वास होता है ।
प्रश्न 8. मधुवनी चित्रकला के दलित चित्रकार वाले रूप की कुछ सामान्य विशेषताएँ बताइए ।
उत्तर – दलित समाज के परिवारों में एक स्वतंत्र रूप का विकास हुआ है । इनकी रंग और चित्रण में सुक्ष्म अन्तर पाया जाता है । ये लोग गोबर के रस तथा काले रंग के सहारे चित्रकारी करते हैं । इनका गृहीत विषय लोक जीवन के यथार्थ से अपेक्षाकृत अधिक भरे रहते हैं ।।