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श्री आमरनाथ गुफा के बारे में कुछ अनसुने तथ्य क्या हैं?

श्री आमरनाथ गुफा के बारे में कुछ अनसुने तथ्य क्या हैं?

श्री आमरनाथ गुफा के बारे में कुछ अनसुने तथ्य क्या हैं?

पवित्र अमर नाथ गुफा का हिन्दू धर्म में अपना ही स्थान है। इसे भगवान नीलकंठ का साक्षात रूप माना जाता है। वैसे तो भगवान शिव के भारत तथा भारत से बाहर कई रहस्यमय निवास स्थल है। जहां भगवान अपने भक्तों को आशीर्वाद देते है पर अमरनाथ गुफा का उसमें अपना ही स्थान है।

अमरनाथ हिन्दू धर्म के दो प्रमुख समुदाय वैष्णव और शैव दोनों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। अमरनाथ गुफा के बारे में सबसे बडी आश्चर्यजनक बात यहां बनने वाला 10 से 12ft प्रकृति शिवलिङ्ग है। इस शिवलिङ्ग का निर्माण कैसे होता है यह एक रहस्य है।

इस स्वयम्भू शिवलिङ्ग की सबसे बड़ी विशेषता यह है की जिस बर्फ से इसका निर्माण होता है वह बहुत ही ठोस बर्फ होती है जबकि गुफा के आस-पास की बर्फ मुलायम है। दूसरी आश्चर्यजनक बात इस शिवलिङ्ग का चंद्रमा की कलाओं के अनुसार घटना-बढ़ना है।

यह पवित्र वह रहस्यमयी गुफा जम्मू-कश्मीर के पहलगांव जिले में दुर्गम हिमालय के पहाड़ो में स्थित है। यह गुफा कितनी पुरानी है इसका आज तक कोई अनुमान नहीं लगा पाया है। तो आइए अमरनाथ गुफा से जुड़े कुछ रोचक वह अनकही बातें जानते है।

शैव धर्म से जुड़ी मान्यता

शैव धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार इस गुफा में आदि कल्प में भगवान शिव ने माता भगवती पार्वती को अमृत्व का ज्ञान दिया था। माता पार्वती को भगवान शिव द्वारा अमृत्व का ज्ञान देने के पीछे यह रोचक प्रसंग है।

भगवान शिव तो अजन्मे औऱ अमर थे पर माता पार्वती को हर कल्प में पुनः जन्म-मरण के चक्र से गुजरना पड़ता था।

औऱ हर कल्प में माता पार्वती को भगवान शिव को पाने के लिए कठोर साधना करनी पड़ती थी। एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव के गले मे पड़ी मुंडमाला के बारे में जानने की जिज्ञासा से भगवान शिव से इसका रहस्य पूछा।

भगवान शिव ने देवी पार्वती को बताया कि इस नरमुंड माला में जितने भी शीश है वे देवी आपके जन्म के प्रतीक है। जितनी बार आपका जन्म होता है मैं उतने ही शीश इस माला में जोड़ देता हूँ। माता पार्वती भगवान शिव के इस कृत्य से बहुत दुःखी हो जाती है और फिर कभी जन्म-मरण के चक्र से गुजरना न पड़े इसके लिए भगवान शिव से अमरकथा सुनाने का आग्रह करती है। माता पार्वती के लाख मनाने पर भोलेनाथ मान जाते है। और इस गोपनीय कथा सुनाने के लिए एक गोपनीय स्थल को खोजने लगते है तभी भगवान शिव की दृष्टि हिमालय पर स्थित एक गुफा पर पड़ती है।जो अत्यंत गोपनीय थी।

इस कथा के ज्ञान को गोपनीय रखने के लिए बारी-बारी से भगवान अपनी प्रिय वस्तुओं का त्याग कर देते है इस क्रम में भगवान शिव सबसे अपनी भुजाओं में पड़े अनन्तनाग का त्याग करते है जिस स्थान पे उन्होंने अनन्तनाग का त्याग किया था आज उसे अनन्तनाग क्षेत्र से जानते है फिर पहलगांव में अपने प्रिय नंदीबैल को,पिस्सू टॉप पहाड़ी पर अपने पिसुओं को, महागुनस पर्वत पर गणेश जी को, चन्दनबाड़ी में अपने माथे के चन्दन को , शेषनाग झील में अपने गले मे पड़े शेषनाग और अंत मे पंचतरणी में पांचो तत्वों का त्याग कर देते है।

इस प्रकार जब शिव ने अपनी सारी वस्तुएँ त्याग दी तो माता पार्वती को इस दिव्या गुफा के अंदर ले आये और अमरकथा की कथा सुनाई जिसे माता भी हमेशा के लिए जन्म-मरण से मुक्त हो गई।

इसी दिव्य कथा का जब भगवान शिव माता पार्वती को जानकारी दे रहे थे तो कारण वश कबूतरों के एक जोड़े ने भी इसे सुन लिया जिससे वे भी अजर-अमर हो गए। ऐसा मन जाता है ये जोड़ा आज भी अमरनाथ गुफा में रहता है और सच्चे भक्तो को अपना दर्शन देते है।

वैष्णव धर्म से जुड़ी मान्यता

मान्यता है कि सत्ययुग में जब भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर को अपने सुर्दर्शन चक्र से 51 हिस्सों में काट दिया था । तो वे टुकड़े अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे जहां आज शक्तिपीठों का निर्माण हुआ है। उन्ही 51 हिस्सों में से माता सती का मस्तक इसी स्थान पर गिरा था जहां आज अमरनाथ गुफा है।

अमरनाथ यात्रा का इतिहास

अमरनाथ गुफा की सबसे पहली यात्रा महर्षि भृगु भगवान शिव के मार्गदर्शन से की। तभी से इस गुफा का ज्ञान सनातन परंपरा गुरु -शिष्यों से आगे बढ़ता गया। हजारों सालों से साधु-मुनी इस गोपनीय स्थल की यात्रा करते रहे। पर 12 वीं सदी में जब अरबों ने कश्मीर पर कब्जा किया तो उन्हीने इस यात्रा पर आने वाली श्रद्धालुओं के साथ अत्याचार करना शुरू कर दिया। अरबों के कश्मीर में कब्जे के कारण धीरे-धीरे यहां पर जाना लोगो ने बन्द कर दिया। और यह ज्ञान पुस्तकों तक सीमित रह गया।

17वीं सदी के आस-पास की घटना है जब बूटा मलिक नाम का एक मुस्लिम गड़रिया जब इस पहाड़ की तलहटियों में अपनी भेड़े चारा रहा था। तो एक साधु ने उसे कोयले से भरी एक कटोरी आग जलाने को दी। जब बूटा मलिक उस कटोरी को घर ले आया तो वे अंगारे सोने में बदल गए। मलिक उस साधु का धन्यवाद करने के लिए जब पुनः पहाड़ पर गया तो वहां वह साधु नहीं था। जब उससे उसे ढूढने के लिए थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे वह एक गुफा दिखाई दी। इस आस से की साधु गुफा में रहता है गुफा में प्रवेश कर गया। उसे वहां साधु तो नही दिख पर एक बहुत ही बड़ा बर्फ का शिवलिङ्ग जरूर दिखा जिसे देख कर मलिक आश्चर्य में पड़ कर। घर वापिस आता है और पूरे गांव को इसके बारे में जानकारी देता है। तभी से इस गुफा की जानकारी पुनः लोगो को पता चली । और पवित्र गुफा यात्रा फिर से शुरू हो गई। आज भी उसी मुस्लिम गड़रिये का परिवार अमरनाथ गुफा मंदिर में पुजारी का काम करता है। कितना अद्भुत संजोग है एक मुस्लिम परिवार द्वारा हिन्दू भगवान की पूजा। काश इसी तरह पूरे देश मे एक दूरसे के धर्म के प्रति सहिष्णुता होती। और सब एक दूरसे के धर्म का समान करते।

भारत सरकार अमरनाथ गुफा के चढ़ावे का 1/4 भाग आज भी उसी गड़रिये के परिवार को देता है। आज अमरनाथ गुफा में मुस्लिम नवाज पड़ते है तो हिन्दू पूजा करता है। जो अद्भुत संजोंग है।

अमरनाथ गुफा की यात्रा हर साल हजारों श्रद्धालु जन को भारत सरकार अपनी विशेष सुरक्षा के अंतर्गत करवाती है जो मई से सितंबर तक चलती है। यात्रा के दौरान भक्तो के खाने-पीने की पूरी व्यवस्था अमरनाथ श्राइन बोर्ड करता है।

जानकारी अच्छी लगी हो तो एक अपवोट करा देना।

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