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Hadi Rani History in Hindi – हाड़ी रानी का इतिहास

Hadi Rani History in Hindi – हाड़ी रानी का इतिहास

Hadi Rani History in Hindi

हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की हाड़ी रानी – Hadi Rani की जिन्होनें मातृभूमि के लिए और अपने राजा की जीत के लिए इतना बड़ा त्याग किया है कि शायद ही किसी ने किया हो।हाड़ी रानी एक ऐसी वीरागंना थी जिन्होनें अपने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपना मेवाड़ की रानी ने अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए अपने सिर ही काटकर पेश कर दिया। रानी ने खुद की कुर्बानी देकर बलिदान की मिसाल पेश की और इतिहास के पन्नो पर ऐसा करने वाली सर्वश्रेष्ठ वीरांगना कहलाईं। इसके पीछे एक अमर प्रेम कथा छिपी हुई है आइए जानते हैं – हाड़ी रानी की वीरगाथा।

हाड़ी रानी की कहानी – Hadi Rani Biography, Story in Hindi

हाड़ी रानी बूंदी के हाड़ा शासक की बेटी थी। जिनकी शादी उदयपुर (मेवाड़) के सलुंबर के सरदार राव रतन सिंह चूड़ावत से हुई। बाद में इन्हें इतिहास में हाड़ी रानी के नाम से जाना गया। हाड़ी रानी एक ऐसी वीरागंना थी जिन्होनें अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने पति को उसका फर्ज याद दिलाने के लिए अपने सिर ही काटकर पेश कर दिया। ताकि वह अपनी नई-नवेली दुल्हन के मोहपाश में बंधा अपने राष्ट्र धर्म से विमुख ना हो।

यह उस समय की बात है जब मेवाड़ पर महाराणा राजसिंह (1652 – 1680 ई०) का शासन था। इनके सामन्त सलुम्बर के राव चुण्डावत रतन सिंह थे। जिनसे हाल ही में हाड़ा राजपूत सरदार की बेटी से शादी हुई थी। कथा के अनुसार हाड़ी रानी के विवाह को अभी केवल 7 ही दिन हुए थे, हाथों की मेंहदी भी नहीं छूटी थी कि उनके पति को युद्ध पर जाने का फरमान आ गया। जिसमे महाराणा राजसिंह ने राव चुण्डावत रतन सिंह को दिल्ली से ओरंगजेब के सहायता के लिए आ रही अतिरिक्त सेना को रोकने का निर्देश दिया था। चुण्डावत रतन सिंह के लिए यह सन्देश उनका मित्र शार्दूल सिंह ले कर आया था।

पत्र पढ़कर हाड़ी सरदार का मन व्यथित हो गया। अभी उनके विवाह को सात दिन ही हुए थे और पत्नी से बिछड़ने की घड़ी आ गई थी। कौन जानता था कि युद्ध में क्या होगा। एक राजपूत रणभूमि में अपने शीश का मोह त्याकर उतरता है और जरूरत पड़ने पर सिर कटाने से भी पीछे नहीं हटता।

औरंगजेब की सेना तेजी से आगे बढ़ रही थी इसलिए उन्होंने अपनी सेना को युद्ध की तैयारी का आदेश दे दिया। वह इस सन्देश को लेकर अपनी पत्नी हाड़ी रानी के पास पहुँच और सारी कहानी सुनाई। रानी को भी यह खबर सुनकर सदमा लगा पर उसने खुद को संभाल लिया और अपने पति को युद्ध में जाने के लिए तैयार किया। उनके लिए विजय की कामना के साथ उन्हें युद्ध के लिए विदाई दी।

सरदार अपनी सेना लेकर चल पड़ा। किन्तु उसके मन में रह रह कर आ रहा था कि कही सचमुच मेरी पत्नी मुझे भूल ना जाएँ? वह मन को समझाता पर उसका ध्यान उधर ही चला जाता। आखिर हाड़ी सरदार से रहा न गया। आधे मार्ग से उन्होंने पत्नी के पास एक संदेश वाहक भेज दिया। पत्र में लिखा था कि प्रिय, मुझे मत भूलना। मैं जरूर लौटकर आउंगा। मुझे तुम्हारी बहुत याद आ रही है। अगर संभव हो तो अपनी कोई प्रिय निशानी भेज देना। उसे ही देखकर मैं अपना मन हल्का कर लिया करुंगा।

पत्र पढ़कर हाड़ी रानी सोच में पड़ गयी। अगर उनका पति इसी तरह मोह से घिरा रहा तो शत्रुओं से कैसे लड़ेंगे। अचानक उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने संदेशवाहक को अपना एक पत्र देते हुए कहा, “मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी दे रही हूं। इसे थाल में सजाकर सुंदर वस्त्र से ढककर मेरे वीर पति के पास पहुंचा देना, किन्तु याद रखना कि उनके सिवा इसे कोई और न देखे।”

हाड़ी रानी के पत्र में लिखा था, “प्रिय, मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं। तुम्हें मेरे मोह के बंधनों से आजाद कर रही हूं। अब बेफ्रिक होकर अपने कर्तव्य का पालन करना। मैं स्वर्ग में तुम्हारी बाट जोहूंगी।” पत्र संदेशवाहक को देकर हाड़ी रानी ने अपनी कमर से तलवार निकाली और एक ही झटके में अपना सिर धड़ से अलग कर दिया।

संदेश वाहक की आंखों से आंसू निकल पड़े। स्वर्ण थाल में हाड़ी रानी के कटे सिर को सुहाग के चूनर से ढककर संदेशवाहक भारी मन से युद्ध भूमि की ओर दौड़ पड़ा। उसको देखकर हाड़ा सरदार ने पूछा, “क्या तुम रानी की निशानी ले आए?” संदेशवाहक ने कांपते हाथों से थाल उसकी ओर बढ़ा दिया।

हाड़ी सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखता रह गया। उसके मोह ने उससे उसकी सबसे प्यारी चीज छीन ली थी। अब उसके पास जीने को कोई औचित्य नहीं बचा था। उसने मन ही मन कहा , “प्रिये, मैं भी तुमसे मिलने आ रहा हूं।” हाड़ा सरदार के मोह के सारे बंधन टूट चुके थे।

वह शत्रु पर टूट पड़ा। इतना अप्रतिम शौर्य दिखाया था कि उसकी मिसाल मिलना बड़ा कठिन है। जीवन की आखिरी सांस तक वह लंड़ता रहा। औरंगजेब की सहायक सेना को उसने आगे नहीं ही बढऩे दिया, जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़कर भाग नहीं गया था। इस जीत का श्रेय केवल उसके शौर्य को नहीं, बल्कि रानी के उस बलिदान को भी जाता है जो अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा बलिदान और अविस्मरणीय है।

हाड़ी रानी ने मातृभूमि के लिए दी खुद की कुर्बानी –

हाड़ी रानी राजा का यह पत्र देखकर चिंता में पड़ गईं और यह सोचने लगी कि अगर उनके पति इस तरह पत्नी मोह से घिरे रहेंगे तो शत्रुओं से कैसे लड़ेगे। फिर क्या था मातृभूमि के लिए हाड़ी रानी ने खुद की कुर्बानी देने का फैसला लिया।

एक सच्ची वीरांगना और राष्ट्र प्रेम की भावना के चलते हाड़ी रानी ने पति का मोह भंग करने के लिए और राजा को जीत दिलाने के लिए अपनी अंतिम निशानी के रूप में राजा के पास खुद का सिर काटकर संदेशवाहक से भेज दिया।

जब संदेशवाहक ने राजा चूड़ावत के सामने हाड़ी रानी के अंतिम निशानी के रूप में रानी का कटा हुआ सिर पेश किया तब राजा अपनी फटी आंखों से अपनी पत्नी का सिर देखता रह गया और इस तरह राजा का मोह भंग हो गया था क्योंकि राजा की सबसे प्रिय चीज से उनसे छीन ली गई थी।

फिर क्या था हाड़ा सरदार विजय प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ शत्रुओं पर टूट पड़ा और औरंगजेब की सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। लेकिन इस जीत का श्रेय शौर्य को नहीं बल्कि वीरागंना हाड़ी रानी के उस बलिदान को भी जाता है।

राजस्थान के मेवाड़ की हाड़ी रानी की वीरगाथा वाकई लोगों को प्रेरणा देने वाली है और त्याग और बलिदान की भावना को जगाने वाली है। हाड़ी रानी ने अपने पति को जीतने के लिए न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि एक ऐसा बलिदान दिया जिसे शायद ही कोई बहादुर से बहादुर व्यक्ति भी करने की जहमत उठाए।

जी हां मेवाड़ की वीरांगना ने एक ऐसा बलिदान दिया जिसे करना तो दूर सोचना भी शायद मुमकिन नहीं है।

इस तरह हाड़ी रानी ने त्याग और बलिदान देकर अपनी सतीत्व की रक्षा की। इसके साथ ही वीरांगना हाड़ी रानी ने इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। उनके मातृभूमि के त्याग और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा।

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