Fakhruddin Ali Ahmed | फखरुद्दीन अली अहमद
फखरुद्दीन अली अहमद
जन्म: 13 मई, 1905, दिल्ली
मृत्यु: 11 फरवरी, 1977, दिल्ली
कार्य: भारत के पांचवे राष्ट्रपति
डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद का जन्म 13 मई, 1905 को पुरानी दिल्ली के हौज काजी इलाके में हुआ था. इनके पिता का नाम कर्नल जलनूर अली अहमद था और उनकी माँ लाहोरी के नवाब की बेटी थीं. उनके पिता भारतीय चिकित्सा सेवा में असम में कार्यरत थे. जब वे छोटे थे तो उनके पिता को असम छोड़ने के लिए कहा गया क्योंकि उन्हें कर्नल सिब्राम बोरा के साथ एक समारोह में यूरोपीय देशों के मेहमानों के साथ शिलांग क्लब में भाग लेने से इंकार कर दिया था. परिणाम स्वरुप उन्हें वहां से बहुत दूर उत्तर-पश्चिम प्रांत में स्थानांतरित कर दिया गया.
फखरुद्दीन अली अहमद की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर-प्रदेश के गोंडा जिले के सरकारी हाई स्कूल में हुई थी. दिल्ली गवर्नमेंट के हाई स्कूल से अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए 1923 में इंग्लैंड चले गए. जहाँ पर उन्होंने सेंट कैथरीन कॉलेज, कैम्ब्रिज से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद जब वे लंदन से लौटे तो वर्ष 1928 में लाहौर के (अब पाकिस्तान में) हाई कोर्ट में वकालत करने लगे.
फखरुद्दीन अली अहमद का विवाह 40 वर्ष की अवस्था में 21 वर्षीय आबिदा से 9 नवम्बर, 1945 को हुआ था. आबिदा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त किया था, इनका सम्बन्ध उत्तर प्रदेश के एक संभ्रांत परिवार से था. बाद में बेगम आबिदा को उत्तर प्रदेश से वर्ष 1981 में लोकसभा के लिए निर्वाचित किया गया था.
फखरुद्दीन अली अहमद का राजनैतिक सफर
फखरुद्दीन अली अहमद भारत के एक ऐसे सफल राजनेता थे जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की स्थाई छाप भारतीय जनता के ऊपर छोड़ा, जो आजतक भरतीय जनता के लिए प्रेरणा का श्रोत बना हुआ है. इन्हें असम और भारत के महान सपूत के रूप में भी याद किया जाता है. अपने विचारों के माध्यम से इन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया था. इसके अलावा भारत के राष्ट्रपति के रूप में इन्होंने नि:स्वार्थ सेवा और नैतिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया. महात्मा गांधी और पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में इन्होंने एक लोकप्रिय नेता के रूप में देश का नेतृत्व भी किया.
इंग्लैंड प्रवास के दौरान फखरुद्दीन अली अहमद की मुलाकात वर्ष 1925 में पं. जवाहर लाल नेहरू से हुई. नेहरू जी के प्रगतिशील विचारों से वे बेहद प्रभवित हुए और उन्हें अपना गुरु तथा मित्र मानने लगे एवं वर्ष 1930 से उनके साथ कार्य करने लगे. नेहरू जी के अनुरोध पर फखरुद्दीन अली अहमद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. जबकि उनके सह-धर्मिओं ने उनको मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए राजी किया गया था. उन्होंने देश की आजादी के लिए वर्ष 1940 में सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रीय रूप से भाग लिया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल जाना पड़ा. इसके अलावा उन्हें वर्ष 1942 में 9 अगस्त को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समर्थन में भाग लेने के आरोप में पुनः गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की ऐतिहासिक मुंबई बैठक से वापस लौट रहे थे. इस प्रकार अप्रैल 1945 तक यानि लगभग साढ़े तीन वर्षों तक देश की सुरक्षा को उनसे खतरा बताकर उन्हें एक कैदी के रूप में जेल में रखा गया था.
उन्होंने कांग्रेस पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वे वर्ष 1935 में असम विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गये थे. बाद में वे वर्ष 1936 में असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य बने. इसके बाद वे सितम्बर 1938 में असम प्रदेश में वित्त, राजस्व और श्रम मंत्री बने. उन्होंने अपने मंत्रीत्व काल के दौरान अपनी कुशल प्रशासनिक क्षमताओं का श्रेष्ठ सबूत पेश किया. उन्होंने मंत्री रहते हुए ‘असम कृषि आयकर विधेयक’ लागू किया, यह भारत में पहली ऐसी घटना थी जब चाय बागानों की भूमि पर टैक्स लगाया गया. उनकी श्रमिक-समर्थक नीति की वजह से अंग्रेजों के स्वामित्व वाली ‘असम आयल कंपनी लिमिटेड’ के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. परिणाम स्वरुप अली अहमद को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. इन घटनाओं से उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता भी देखने को मिली.
आजादी के बाद की गतिविधियाँ
भारत को आजादी मिलने के बाद फखरुद्दीन अली अहमद को 1952 में राज्यसभा के लिए चुना गया. बाद में उन्हें असम सरकार का एडवोकेट जनरल बनाया गया। वे कांग्रेस के टिकट पर दो बार (1957-62 और 1962-67) असम विधानसभा के सदस्य चुने गए. वे वर्ष 1957 में चालिहा मंत्रिमंडल में मंत्री बने. वर्ष 1971 में वे बारपेटा निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए थे. अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने खाद्य और कृषि, सहकारिता, शिक्षा, औद्योगिक विकास और कंपनी कानून सहित विभिन्न मंत्रालयों में कुशलता पूर्वक कार्य किया. वे वर्ष 1947-1974 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे.
राष्ट्रपति के रूप में उनका कार्यकाल
वर्ष 1969 में कांग्रेस के विभाजन के समय फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी का साथ चुना क्योंकि उनका नेहरू और उनके परिवार के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था. इसके बाद उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के सहयोग से 29 अगस्त, 1974 को भारत का 5वां राष्ट्रपति चुना गया. डॉ. जाकिर हुसैन के बाद राष्ट्रपति बनने वाले वे दूसरे मुस्लिम थे. वर्ष 1975 में आपातकाल लगने के बाद फखरुद्दीन अली अहमद विपक्ष के निशाने पर थे क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल से सम्बब्धित दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया था.
फखरुद्दीन अली अहमद को प्राप्त सम्मान
फखरुद्दीन अली अहमद एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे. उनकी रुचि उस समय के बेहद लोकप्रिय खेलों और अन्य पाठ्येतर गतिविधियों में भी थी. टेनिस, फुटबाल, क्रिकेट और गोल्फ के खिलाड़ी होने के कारण वे असम फुटबॉल एसोसिएशन और असम क्रिकेट संघ के कई बार अध्यक्ष भी निर्वाचित किए गए थे. इसके अतिरिक्त वे असम खेल परिषद् के उपाध्यक्ष भी रहे. इसके बाद वे वर्ष 1961 में दिल्ली गोल्फ क्लब और दिल्ली जिमखाना क्लब के सदस्य बने. वर्ष 1967 में फखरुद्दीन अली अहमद अखिल भारतीय क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए. राष्ट्रपति के तौर पर यूगोस्लाविया यात्रा के दौरान वर्ष 1975 में कोसोवो के प्रिस्टीना विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था.
निधन
डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद भारत के 5वें राष्ट्रपति के रूप में अपने 5 वर्षों का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के दौरे से लौटने के तुरंत बाद उनका दिल का दौरा पड़ा और 11 फ़रवरी, 1977 को 71 वर्ष की अवस्था में उन्होंने राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में अंतिम सांस ली.