9th hindi

Dramatics in Bihar | बिहार में नाट्यकला

बिहार में नाट्यकला

Dramatics in Bihar

वर्ग – 9

विषय – हिंदी

पाठ 6 – बिहार में नाट्यकला

बिहार में नाट्यकला

सारांश
बिहार राज्य प्रतिभाओं का धनी रहा है । यहाँ एक से बढ़कर एक चित्रकार , नृत्यकार , गायक , वादक पैदा हुए हैं । नाट्यकला के मामले में बिहार पहले भाड़ों की मण्डली के अलावा कुछ नहीं था । इनका उद्देश्य मात्र मनोरंजन था । बाद में बिहार में विक्टोरिया नाटक मंडली , एलिफिस्टन नाटक मण्डली , कर्जन थियेटर , पारसी थियेटर काफी लोकप्रिय रहा । केशव राम भट्ट ने 1876 में पटना नाट्य मण्डली नामक नाटक संस्था की स्थापना की । आरा के पण्डित ईश्वरी प्रसाद वर्मा 1914 में मनोरंजन नाटक मंडली , जगन्नाथ प्रसाद किंकर ने किंकर नाट्य कला मंच 1917 में स्थापित किया । ये कवि , लेखक के साथ साथ अभिनय निर्देशन करते थे । नाटक में बार – बार परिदृश्य बदलने में असुविधा को देखकर घुमावदार मंच बनाया । इस संस्था का नाम महालक्ष्मी थिएटर दिया । आगे चलकर फिल्म निर्माता बने । पुनर्जन्म पर पहली बिहारी फिल्म बना ।
डॉ . एल . एम . घोषाल , डॉ . ए . के . सेन और राजकिशोर प्रसाद ने 1947 में ‘ पटना इप्टा ‘ की स्थापना की । अनिल मुखर्जी ने बिहार आर्ट थिएटर , कालीदास रंगालय ( प्रेक्षागह ) का निर्माण किया ।
एकल व्यक्तित्व वाले चतुर्युज जी बख्तियारपुर से रंग यात्रा प्रारम्भ किया । इनकी नाटकीय प्रस्तुति देखकर पृथ्वी राजकपुर ने काफी प्रशंसा की । बिहार के ग्रामों में सबसे अधिक मंचन होने वाला नाटक चतुर्भुज जी का ही था ।
उन्होंने राष्ट्रीयता , सामाजिक विषमता , नारी जागरण पर ज्यादा ध्यान दिया । इनके नाटक संस्था का नाम ” मगध कलाकार ” है । इप्टा प्रस्तुती में सामाजिक विषमता उत्पीड़न पर ध्यान दिया गया । अनेक नाटककारों ने इप्टा को आगे बढ़ाया । हानूष , काबिरा खड़ा बाजार में , माध वी , महायोग , दूर देश की कथा . मुक्ति पर्व आदि की प्रस्तुती में राष्ट्रीय ख्याति पायी ।
चतुर्भुज जी ने पहले ‘ बिहार ‘ क्लब , बाद में मगधकलाकार की स्थापना किया । जिस नाटक को लिखा स्वयं उसका मंचन भी किया । चतुर्भुज जी , प्यारे मोहन सहाय और सतीश आनंद ने बिहार की रंगमंच को ऊँचाई प्रदान की ।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्यारे मोहन सहाय प्रथम व्यक्ति थे । इन्होंने पटना में ‘ कला संगम ‘ की स्थापना की । सतीश आनन्द मगध कलाकार , ‘ इप्टा ‘ तथा ‘ कलासंगम ‘ से जुड़े रहे । इनकी प्रतिभा अभिनय , निर्देशन के साथ अनुवाद के क्षेत्र अद्वितीय रही है ।
परवेज अख्तर अभिनय और निर्देशन में हमेशा आगे बढ़ते रहे । ये इप्टा से जुड़े रहे । इनके साथ दो भाई क्रमशः तनवीर अख्तर , जावेत अख्तर इप्टा के साथ रहे । जावेद अख्तर ने दूर देश की कथा नामक नाटक लिखा । नाटक लेखन में चतुर्भुज , कामेश्वर सिंह कश्यप , अविनाश चन्द्र मिश्र , जावेद अख्तर और श्रीकांत किशोर का नाम उल्लेखनीय है । रामेश्वर सिंह कश्यप का ‘ लोहा सिंह ‘ रेडियो , नाटक महत्वपूर्ण है इसी श्रेणी में सिद्धनाथ कुमार का नाम भी लिया जाता है । कथाकार हषीकंष सुलभ की रचनाओं में ‘ माटी गाड़ी ‘ , बटोही , धरती आबा , ने राष्ट्रव्यापी गौरव प्राप्त हो ।
बिहार में हिन्दी रंग – मंच का विकास पाना मुजफ्फरपुर , मुंगेर , भागलपुर , पूर्णियाँ , बख्तियारपुर , पंडारक आदि क्षेत्रों में हुआ । भोजपुर के भिखारी ठाकुर ने नाच पार्टी की परंपरा भी शुरूआत की उनकी शैली विदेशिया थी । बटोही नाटक में भिखारी ठाकुर के जीवन संघर्ष तथा रचनात्मक विकास में का आत्मीय तथा प्रभावकारी तटस्थता के साथ प्रस्तुतीकरण किया गया है ।
पटना में अनेक प्रेक्षागृह है जहाँ मंचन का काम होता है । पर ग्रामीण इलाका में मंचन की व्यवस्था ही दूसरी है । मैदान में चौकियों का मंच बनता , वाँस बल्ले से परदे टांगे जाते । एक माइक और पेट्रोमेक्स की रोशनी ही पर्याप्त होती । यह व्यवस्था भीखरी ठाकुर की देन है ।

अभ्यास

प्रश्न 1. बिहार नाट्य कला के विकास में प्राथमिक महत्त्वपूर्ण योगदान किसका रहा का रहा है ।

उत्तर – बिहार नाट्य कला के विकास में प्राथमिक महत्वपूर्ण योगदान है ” केशवराम भट्ट ” का रहा है।

प्रश्न 2. चतुर्भुज के नाटक के क्षेत्र में योगदान का महत्त्व बताइए ।

उत्तर– चतुर्भुज जी के एकल व्यक्तित्व ने जितने गहरे तक हिन्दी रंगमंच को प्रभावित किया राजकपुर जो फिल्मी जगत अन्य किसी से सम्भव नहीं हो सका । नाटक की प्रस्तुती अख्तियारपुर से प्रारंभ की । स्व . पृथ्वी रहे हैं । ने खुलकर उनको प्रशंसा की । इन्होंने एक नाट्य संस्था की स्थापना की जिसे बिहारी कला के नाम से जाना जाता है । बाद में 1852 में मगध कलाकार नामक संस्था बनाया । रंग – मंच की दृष्टि से उन्होंने अनेक नाटक लिखें तथा उसका मंजन भी किया इनकी रचनाओं में कलिंग विजय , अरावली का शेर , मेघनाद , कर्ण , जालियावाला वाग , कुंवर सिंह , झाँसी की रानी प्रमुख है ।

प्रश्न 3. पटना इप्टा की स्थापना किन लोगों ने की थी ?

उत्तर – इप्य की स्थापना डॉ . एस . एम . घोषाल , डॉ . ए . के . सेन और ब्रज किशोर प्रसाद ने 1947 में पटना इप्टा की स्थापना की ।

प्रश्न 4. पृथ्वीराज कपूर कौन थे ? अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त कर उनका एक संक्षिप्त परिचय लिखें ।

उत्तर – पृथ्वीराज कपूर एक फिल्म निर्माता थे ।

प्रश्न 5. बिहार के देहातों में किस बिहारी नाटककार के नाटक सबसे अधिक लोकप्रिय हुए थे ?

उत्तर – बिहार के देहातों में ‘ भिखारी ठाकुर ‘ के नाटक सबसे अधिक लोकप्रिय हुए थे ।

प्रश्न 6. बिहार के किन्हीं तीन महत्वपूर्ण नाटक लेखकों तथा उनके नाटकों का नाम बताइए ।

उत्तर – बिहार के तीन महत्वपूर्ण नाटककार निम्नलिखित हैं
( 1 ) चतुर्भुज – कलिंग विजय , अरावली का शेर , कर्ण , मेघनाद , कुंवर सिंह , झाँसी की रानी , सिराजुद्दला , जालियाँवाला बाग । ( ii ) श्रीकान्त किशोर – ‘ अरण्य कथा ‘ । ( iii ) रामेश्वर सिंह कश्यप – लोहा सिंह ।

प्रश्न 7. बिहार के नाटक के विकास में ‘ केशव रामभट्ट ‘ के योगदान का परिचय दीजिए ।

उत्तर – केशव राम भट्ट ‘ बिहार बन्धु ‘ पत्रिका के सम्पादक थे । वे थियेटर कम्पनियों प्रभावित होते थे पर उसमें व्याप्त कमी व्यवसायिकता तथा स्तरहीनता की आलोचना करते थे । 1876 में उन्होंने “ पटना नाट्य मण्डली ” नामक संस्था की स्थापना की । इसी संस्था के माध्यम से बिहार में साहित्यिक – सामाजिक गंभीरता वाले सोद्देश्य रंगमंच का शुभारम्भ होता है । ये एक नाटककार भी थे ।

प्रश्न 8. आरा के किस नाटककार ने ‘ मनोरंजन नाटक मण्डली की स्थापना की थी किस ई . सन में किस नाटक का मंचन किया था ?

उत्तर – आरा के पं . ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने 1914 में मनोरंजन नाटक मण्डली की स्थापना की थी । उन्होंने भारतेन्दु हरिश्चन्द्र लिखित ‘ हरिश्चन्द्र ‘ नाटक का मंचन किया ।

प्रश्न 9. सतीश आनन्द और परवेज अख्तर की विशेषताओं का परिचय दीजिए ।

उत्तर– ( i ) सतीश आनन्द – सतीश आनन्द एक समर्पित कलाकार थे । ये बिहार की लोक शैलियों से हिन्दी नाटक को जोड़ा । उन्होंने ‘ विदेशिया ‘ का मंचन सफल ढंग से किया । ये अभिनय निर्देशन के साथ अनुवादक भी थे । गोदान तथा मैला आंचल का सफल मंचन किया ।
( ii ) परवेज अख्तर – परवेज अख्तर अभिनय तथा निर्देशन में हमेशा ऊँचाई पर रहे । ये इप्टा से जुड़कर निर्देशन की जवाबदेही समझाकर उसको आगे बढ़ाया । उनके द्वारा निर्देशित – महाभोज हामूष , माधवी , कविरा खड़ा बाजार में , दूर देश की कथा , मुक्ति पर्व तथा अरण्य कथा के मंचनों को बिहार के रंग मंच की अनुपम उपलब्धि मानी जाती है ।।

 

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