Dr Zakir Hussain | डॉ. जाकिर हुसैन
डॉ. जाकिर हुसैन
जन्म: 8 फरवरी, 1897, हैदराबाद, तेलन्गाना
मृत्यु: 3 मई, 1969, दिल्ली
कार्य: भारत के तीसरे राष्ट्रपति
जाकिर हुसैन का बचपन और प्रारंभिक जीवन
डॉ. जाकिर हुसैन का जन्म तेलन्गाना के हैदराबाद में 8 फरवरी, 1897 में हुआ था. जन्म के बाद उनका परिवार उत्तर प्रदेश के फरुक्खाबाद जिले के कायमगंज में बस गया. यद्यपि उनका जन्म भारत में हुआ था, परन्तु उनके परिवार के पुराने इतिहास को देखा जाय तो ये वर्तमान पश्तून जनजाति वाले पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाकों से सम्बन्ध रखते थे. यह भी कहा जाता है कि उनके पूर्वज 18वीं शताब्दी के दौरान वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आकर बस गए थे. जब वह केवल 10 वर्ष के थे तो उनके पिता चल बसे और 14 वर्ष की उम्र में उनकी माँ का निधन हो गया था. युवा जाकिर ने इटावा में इस्लामिया हाई स्कूल से अपनी प्रारम्भिक स्कूली शिक्षा पूरी की. बाद में उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ में एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज (जो आजकल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) में दाखिला लिया. यहीं से उन्होंने एक युवा सुधारवादी राजनेता के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की.
एक भारतीय राष्ट्रवादी के रूप में योगदान
डॉ. जाकिर हुसैन 13 मई, 1967 से 3 मई, 1969 तक स्वतंत्र भारत के तीसरे राष्ट्रपति रहे. डॉ. जाकिर हुसैन भारत में आधुनिक शिक्षा के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे और उन्होंने अपने नेतृत्व में राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को स्थापित किया. उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय आजकल जामिया मिलिया इस्लामिया के नाम से एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय के रूप में नई दिल्ली में मौजूद है, जहाँ से हजारों छात्र प्रत्येक वर्ष अनेक विषयों में शिक्षा ग्रहण करते हैं. डॉ. जाकिर हुसैन ने बिहार के राज्यपाल के रूप में भी सेवा की थी और इसके बाद वे अपना राजनीतिक कैरियर समाप्त होने से पहले वे देश के उपराष्ट्रपति रहे तथा बाद में वे भारत के तीसरे राष्ट्रपति भी बने.
बीच के वर्षों की गतिविधियां
जाकिर हुसैन को अलीगढ़ के एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज में अध्ययन के वर्षों के दौरान से ही एक छात्र नेता के रूप में पहचान मिली। राजनीति के साथ-साथ उनकी दिलचस्पी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी थी. अपनी औपचारिक उच्च शिक्षा पूरी करने के बाद वे 29 अक्टूबर, 1920 को उन्होंने कुछ छात्रों और शिक्षकों के साथ मिलकर अलीगढ़ में राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना की (वर्ष 1925 में यह यूनिवर्सिटी करोल बाग, नई दिल्ली में स्थानांतरित हो गयी. दस वर्षों बाद यह फिर से यह जामिया नगर, नई दिल्ली में स्थायी रूप से स्थानांतरित कर दी गयी और इसका नाम जामिया मिलिया इस्लामिया रखा गया था). इस समय उनकी मात्र 23 साल थी.
जाकिर हुसैन की गहरी रुचि और समर्पण, राजनीति की तुलना में शिक्षा के प्रति अधिक था, जिसका स्पष्ट प्रमाण उनका अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री के लिए जर्मनी जाना था. जब वे बर्लिन विश्वविद्यालय में थे तो उन्होंने प्रसिद्ध उर्दू शायर मिर्जा खान गालिब के कुछ अच्छे शायरियों का संकलन किया था. जाकिर हुसैन का विचार था कि शिक्षा का मकसद अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई के दौरान भारत की मदद के लिए मुख्य उपकरण के रूप उपयोग करना था। वास्तव में जाकिर हुसैन का भारत में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लक्ष्य के प्रति इतना समर्पण था कि वे अपने प्रबल राजनीतिक विरोधी मोहम्मद अली जिन्ना का भी ध्यान अपनी तरफ खींचने में सफल रहे.
भारत लौटने के बाद की गतिविधियां
डॉ. जाकिर हुसैन उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए थे परन्तु जल्द ही वे भारत लौट आये. वापस आकर उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया को अपना शैक्षणिक और प्रशासनिक नेतृत्व प्रदान किया. विश्वविद्यालय वर्ष 1927 में बंद होने के कगार पर पहुँच था, लेकिन डॉ. जाकिर हुसैन के प्रयासों की वजह यह शैक्षिक संस्थान अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने में कामयाब रहा था. उन्होंने लगातार अपना समर्थन देना जारी रखा, इस प्रकार उन्होंने इक्कीस वर्षों तक संस्था को अपना शैक्षिक और प्रबंधकीय नेतृत्व प्रदान किया. उनके प्रयासों की वजह से इस विश्वविद्यालय ने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के लिए संघर्ष में योगदान दिया. एक शिक्षक के रूप में डॉ. जाकिर हुसैन ने महात्मा गांधी और हाकिम अजमल खान के आदर्शों को प्रचारित किया। उन्होंने वर्ष 1930 के दशक के मध्य तक देश के कई शैक्षिक सुधार आंदोलन में एक सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य किया.
डॉ. जाकिर हुसैन स्वतंत्र भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति (पहले इसे एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज के नाम से जाना जाता था) चुने गए. वाइस चांसलर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ. जाकिर हुसैन ने पाकिस्तान के रूप में एक अलग देश बनाने की मांग के समर्थन में इस संस्था के अन्दर कार्यरत कई शिक्षकों को ऐसा करने से रोकने में सक्षम हुए. डॉ. जाकिर हुसैन को वर्ष 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. डॉ. जाकिर हुसैन को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपने कार्यकाल के अंत में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था. इस प्रकार वे वर्ष 1956 में भारतीय संसद के सदस्य बन गये. वे केवल एक वर्ष के लिए बिहार के राज्यपाल बनाए, पर बाद में वे पांच वर्ष (1957 से 1962) तक इस पद पर बने रहे.
जाकिर हुसैन को उनके कार्यों को देखते हुआ वर्ष 1963 में भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया. दिल्ली, कोलकाता, अलीगढ़, इलाहाबाद और काहिरा विश्वविद्यालयों ने उन्हें उन्होंने डि-लिट् (मानद) उपाधि से सम्मानित किया था. राज्यपाल के रूप में अपने कार्यकाल के अंत के साथ ही डॉ. जाकिर हुसैन पांच वर्ष की अवधि के लिए देश के दूसरे उप-राष्ट्रपति चुने गए. उन्होंने 13 मई, 1967 को राष्ट्रपति पद ग्रहण किया. इस प्रकार वे भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने. वे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद राष्ट्रपति पद पर पहुचने वाले तीसरे राजनीतिज्ञ थे.
निधन
भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के दो साल के बाद ही 3 मई, 1969 को डॉ. जाकिर हुसैन का निधन हो गया. वे पहले राष्ट्रपति थे जिनका निधन कार्यकाल के दौरान ही हुआ. उन्हें नई दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया (केन्द्रीय विश्वविद्यालय ) के परिसर में दफनाया गया है