12-history

bseb class 12 history | शासक और इतिवृत्त मुगल दरबार

bseb class 12 history | शासक और इतिवृत्त मुगल दरबार

9.                                              मुगल दरबार
                           (लगभग सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियाँ)
                                   KINGSAND CHRONICLES
           The Mugal Courts (C. Sixteenth – Seventeenth Centuries)
                                          महत्वपूर्ण तथ्य एवं घटनायें
● इतिवृत्त : मुगल दरबार के इतिहासकारों द्वारा मुगल साम्राज्य के बारे में लिखे गये विवरण
को आधुनिक इतिहासकारों ने इतिवृत्त (Cronicles) कहा है।
● मोगली : रडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक के युवा नायक का नाम मोगली है जो संभवतः
मुगल शब्द से व्युत्पन्न हुआ है ।
● 1526-30 ई.: बाबर का शासन
● 1530-40; 1555-56 ई. : हुमायूँ का शासन
● 1556-1605: अकबर का शासन
● 1605-1627 : जहाँगीर का शासन
● 1627-1658 : शाहजहाँ का शासन
● 1658-1707 : औरंगजेब का शासन
● तीन प्रसिद्ध इतिवृत्त : अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा
● चगताई तुर्क : ये स्वयं को चंगेज खाँ के सबसे बड़े पुत्र का वंशज मानते थे ।
● रज्मनामा : महाभारत का फारसी में अनुवाद
● सुलेखन : हाथ से लिखने की कला सुलेखन है ।
● नस्तलिक : यह सुलेखन की एक शैली थी जो अकबर को बहुत पसंद थी।
● ईरानी चित्रकार : सैय्यद अली और अब्दुस समद ।
● 1589 ई. : इसी वर्ष अबुल फजल ने अकबरनामा लिखना शुरू किया जो 13 वर्षों में पूरा हुआ।
● 1602 ई. : अबुल फजल की हत्या कर दी गई ।
● अब्दुल हमीद लाहौरी : यह अबुल फजल का शिष्य और वादशाहनामा का लेखक था ।
● अलानकुआ : यह मंगोल रानी थी। दंत कथाओं के अनुसार वह अपने शिविर में आराम
करते समय सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई थी। यहीं से प्रकाश दर्शन का सिद्धान्त
शुरू हुआ।
● सुलह-ए-कुल : पूर्ण शान्ति का आदर्श है ।
● प्रजा के चार सत्व : जीवन, धन, सम्मान (नामस), विश्वास (दीन)
● 1570 ई. : फतेहपुर सिकरी राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित ।
● 1585 ई. : लाहौर में मुगल राजधानी का स्थानान्तरण ।
● 1648 ई. : शाहजहाँनाबाद में मुगल राजधानी का स्थानान्तरण
● कोर्निश : औपचारिक अभिवादन की एक विधि
● शब-ए-मुरस्सा : हिजरी कैलेन्डर के 8वें महीने अर्थात् 14वें सावन को पड़ने वाली पूर्णमासी।
● तख्त-ए-मुरस्सा : आगरा महल का रत्न-जड़ित सिंहासन जो द्वादराकोणीय स्तम्भ पर बना था।
● दीवान-ए-खास : निजी सभाएँ और गोपनीय मुद्दों पर चर्चा का स्थान ।
● नौरोज : इसके अन्तर्गत जन्म दिन पर शासक को विभिन्न वस्तुओं से तौला जाता था ।
● सरप्पा : इसके अन्तर्गत बादशाह जामा, पगड़ी और पटका पुरस्कार रूप में देता था।
● बेगम : शाही परिवार से आने वाली रानी ।
● अगहा : शाही परिवार के अलावा अन्य वर्ग की रानी।
● अगाचा : यह बादशाह की उपपत्नी होती थी।
● इबादतखाना : अकबर का पूजा घर जिसमें सभी वर्गों के लोग आते थे।
                   एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
                                                    बहुविकल्पीय प्रश्न
                                        (Multiple Choice Questions)
प्रश्न 1. मुगल राजवंश के शासकों ने स्वयं के लिए (अपने लिए) जो नाम चुना वह थाः
(क) तुर्क-मंगोल
(ख) मंगोलियावासी
(ग) तैमूरी
(घ) तुर्क-अफगानी                             उत्तर-(ग)
प्रश्न 2. जंगल बुक के लेखक हैं :
(क) रडयार्ड किपलिंग
(ख)वीसेंट स्मिथ
(ग) बैंबर गैस कोइने
(घ) जॉन एफ रिचर्डस                         उत्तर-(क)
प्रश्न 3. रिपब्लिक के लेखक हैं :
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तू
(ग) सुकरात
(घ) अबुल फजल                                उत्तर-(क)
प्रश्न 4. खुर्रम जिस मुगल सम्राट् का नाम था, वह थे :
(क) शाहजहाँ
(ख) जहाँगीर
(ग) अकबर
(घ) कोई भी नहीं                                 उत्तर-(क)
प्रश्न 5. बुलंद दरवाजा जिस स्थान पर है, वह है:
(क) आगरा
(ख) फतहपुर सीकरी
(ग) फतहनगर
(घ) फिरोजपुर                                               उत्तर-(ख)
प्रश्न 6. इतिवृत क्या है ?
(क) भारत का इतिहास है।
(ख) बादशाह के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा है।
(ग) शासक की आत्मकथा है।
(घ) लेखकों की जीवनी है।                                 उत्तर-(ख)
प्रश्न 7. मुगल शासक अपने को तैमूर से क्यों जोड़ते हैं ?
(क) वे तैमूर के वंशज थे ।
(ख) तैमूर शक्तिशाली आक्रमणकारी था ।
(ग) वह धनवान था ।
(घ) उसने भारत पर आक्रमण किया था ।                 उत्तर-(क)
प्रश्न 8. निम्नलिखित में कौन सा मुगल शासक शिवाजी का समकालीन था ?
(क) अकबर
(ख) जहाँगीर
(ग) शाहजहाँ
(घ) औरंगजेब                                                   उत्तर-(घ)
प्रश्न 9. निम्नलिखित में अंतिम मुगल शासक कौन था ? [B.Exam. 2009, 2010 (A)]
(क) बहादुरशाह जफर
(ख) औरंगजेब
(ग) शाहजहाँ
(घ) जहाँगीर                                                 उत्तर-(क)
प्रश्न 10. मुगल काल में किस भाषा का महत्व अधिक था ?
(क) तुर्की
(ख) फारसी
(ग) उर्दू
(घ) हिन्दवी                                                     उत्तर-(ख)
प्रश्न 11. निम्नलिखित में कौन सा इतिहास मुगल वंश से संबंधित नहीं है ?
(क) अकबरनामा
(ख) शाहजहाँनामा
(ग) आलमगीरनामा
(घ) रज्मनामा                                                     उत्तर-(घ)
प्रश्न 12. नस्तलिक किसकी पसंदीदा शैली थी ?
(क) जहाँगीर
(ख) शाहजहाँ
(ग) अकबर
(घ) औरंगजेब                                                   उत्तर-(ग)
13. शेरशाह का मकबरा कहाँ स्थित है ?                    [B.M.2009A]
(क) दिल्ली
(ख) आगरा
(ग) बदायूँ
(घ) सासाराम                                                  उत्तर-(घ)
14. स्थापत्य-कला का संबंध है?                              [B.M.2009A]
(क) चित्र कला से
(ख) मूर्ति कला से
(ग) भवन निर्माण कला से
(घ) सिक्का निर्माण कला से                                  उत्तर-(ग)
15. मुगलकालीन सर्वाधिक ऊर्वरक भूमि कौन सी थी ? [B.M.2009A]
(क) परौती
(ख) छच्छर
(ग) बंजर
(घ) पोलज                                                       उत्तर-(घ)
16. शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण किसकी याद में कराया ? [B.M.2009A]
(क) नूरजहाँ
(ख) जोधा बाई
(ग) जहाँआरा
(घ) मुमताज                                                      उत्तर-(घ)
17. स्थापत्य-कला का सर्वोच्च विकास किस मुगल शासक के काल में हुआ ?
                                 [B.Exam/B.M.2009A,B.Exam.2013 (A)]
(क) अकबर
(ख) जहाँगीर
(ग) शाहजहाँ
(घ) औरंगजेब                                                 उत्तर-(ग)
18. 1609 ई० में हॉकिन्स किस मुगल शासक के दरबार में आया ?
                       [B.Exam./B.M.2009A, B.Exam.2013 (A)]
(क) अकबर
(ख) जहाँगीर
(ग) शाहजहाँ
(घ) औरंगजेब                                                 उत्तर-(ख)
19. तख्त-ए-मुरस्सा का वर्णन किस ग्रंथ में किया गया है?[B.M.2009A]
(क) बाबरनामा
(ख) अकबरनामा
(ग) जहाँगीरनामा
(घ) बादशाहनामा                                           उत्तर-(घ)
20. दामिन-इ-कोह में किन्हें बसाया गया ?        [B.M.2009A]
(क) पहाड़ियों को
(ख) संथालों को
(ग) कोलों को
(घ) मुंडाओं को                                               उत्तर-(ख)
21. बाजार नियंत्रण प्रणाली के लिए कौन शासक प्रसिद्ध है ? [B.M.2009A]
(क) बलबन
(ख) रानियां
(ग) अलाउद्दीन खिलजी
(घ) अकबर                                              उत्तर-(ग)
22. किस शासक ने अपनी राजधानी दिल्ली से उठाकर दौलताबाद करने का प्रयास
किया?                                       [B.M.2009A,B.Exam.2010 (A)]
(क) इल्तुतमिश
(ख) अलाउद्दीन खिलजी
(ग) मुहम्मद बिन तुगलक
(घ) फिरोजशाह तुगलक                                उत्तर-(ग)
23. पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ ? [B.M. 2009A, B.Exam.2010(A)]
(क) 1526 ई०
(ख) 1527 ई०
(ग) 1528 ई०
(घ) 1530 ई०                                           उत्तर-(क)
24. जजिया कर किस मुगल शासक ने समाप्त किया ? [B.M.2009A]
(क) बाबर
(ख) हुमायूँ
(ग) अकबर
(घ) औरंगजेब                                          उत्तर-(ग)
25. तानसेन का मकबरा कहाँ है ?                           [B.M.2009A]
(क) दिल्ली
(ख) आगरा
(ग) झाँसी
(घ) ग्वालियर                                            उत्तर-(घ)
26. बहादुरशाह की मृत्यु कहाँ हुई ?                        [B.M.2009A]
(क) दिल्ली
(ख) लंदन
(ग) कोलंबो
(घ) रंगून                                               उत्तर-(घ)
27. शाहजहाँ द्वारा बसायी गयी राजधानी का नाम क्या था ? [B.M.2009A]
(क) महरौली
(ख) शाहदरा
(ग) निजामुद्दीन
(घ) शाहजहाँबाद                                     उत्तर-(घ)
28. गुलबदन बेगम कौन थी?                                      [B.M. 2009A]
(क) नर्तकी
(ख) गायिका
(ग) लेखिका
(घ) नायिका                                            उत्तर-(ग)
29. ‘जात’ का संबंध किससे था?                                  [B.M.2009A]
(क) जाति
(ख) धर्म
(ग) ओहदा और वेतन
(घ) खानदान                                              उत्तर-(ग)
                                          अति लघु उत्तरीय प्रश्न
                        (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मुगल सम्राटों की दृष्टि क्या थी? उन्होंने अपनी शासकीय दृष्टि के
प्रचार-प्रसार के लिए क्या तरीका अपनाया ?
उत्तर-मुगल साम्राज्य के शासक स्वयं को एक विशाल और विजातीय जनता पर शासनकर्त्ता
मानते थे। हालांँकि असलियत में राजनीतिक परिस्थितियाँ इस भव्य दृष्टि को सीमाबद्ध कर देती
थीं, फिर भी ऐसी दृष्टि सदैव महत्त्वपूर्ण रही। इस दृष्टि के प्रचार-प्रसार का एक तरीका
राजवंशीय इतिहास लिखना-लिखवाना था।
प्रश्न 2. मुगल दरबारी इतिहासकारों ने कौन-से सामान्य मुख्य कार्य किए ?
उत्तर-मुगल राजाओं ने दरबारी इतिहासकारों को विवरणों के लेखन का कार्य सौंपा। इन
विवरणों में बादशाह के समय की घटनाओं का लेखा-जोखा दिया गया। इसके अतिरिक्त उनके
लेखकों ने शासकों को अपने क्षेत्र के शासन में मदद के लिए उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से ढेरों
जानकारियाँ इकट्ठी की।
प्रश्न 3. मुगल काल में दैव्य प्रकाश के विचार का प्रसारण कैसे हुआ ?
उत्तर-सुहरावर्दी दर्शन के मूल में प्लेटो की रिपब्लिक है जहाँ ईश्वर को सूर्य के प्रतीक द्वारा
निरूपित किया गया है। सुहरावर्दी की रचनाओं को इस्लामी दुनिया में व्यापक रूप से पढ़ा जाता
था। शेख मुबारक ने इसका अध्ययन किया था। इसके बारे में उसने अपने पुत्रों फैजी और अबुल
फजल को बताया- जो उसके संरक्षण में प्रशिक्षित हुए थे।
प्रश्न 4. जहाँगीर एक न्यायप्रिय सम्राट थे। इस कथन की तुज-के-जहाँगीरी से एक
संक्षिप्त वर्णन देते हुए सिद्ध कीजिए।
उत्तर-मुगल सम्राटों में जहाँगीर का नाम उसकी न्यायप्रियता और निष्पक्ष निर्णय (फैसला)
के लिए उल्लेखनीय माना जाता है। इस संदर्भ में जहाँगीर ने अपने संस्मरणों में न्याय की जंजीर
को इस प्रकार वर्णित किया है-
राज्यारोहण के बाद मैंने जो पहला आदेश दिया वह न्याय की जंजीर को लगाने का था ताकि
न्याय के प्रशासन में संलग्न लोगों से यदि देर हो जाए अथवा वे न्याय चाहने वाले लोगों के विषय
में मिथ्याचार का व्यवहार करें तो उत्पीड़ित व्यक्ति इस जंजीर के पास आ सके और इसे हिला
कर अपनी पीड़ा की ओर मेरा ध्यान आकर्षित कर सके। इस जंजीर को शुद्ध सोने से बनाया
गया था। यह 30 गज लम्बी थी तथा इसमें 60 घंटियाँ लगी हुई थीं।
प्रश्न 5. मुगल काल में अभिवादन के किसी एक तरीके का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर-अभिवादन का चार तसलीम तरीका दाएँ हाथ को जमीन पर रखने से शुरू होता है।
इसमें तलहबी ऊपर की ओर होती है। इसके बाद हाथ को धीरे-धीरे उठाते हुए व्यक्ति खड़ा
होता है तथा तलहथी को सिल के ऊपर रखता है। ऐसी तसलीम चार बार की जाती है। तसलीम
का शाब्दिक अर्थ आत्मनिवेदन है।
प्रश्न 6. संक्षेप में शब-ए-बारात का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-शब-ए-बारात हिजरी कैलेंडर के आठवें महीने अर्थात् चौदहवें सावन को पड़ने वाली
पूर्णचंद्र रात्रि है। भारतीय उपमहाद्वीप में प्रार्थनाओं और आतिशबाजी के खेल द्वारा इस दिन को
मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस रात मुसलमानों के लिए आगे आने वाले वर्ष का
भाग्य निर्धारित होता है और पाप माफ कर दिए जाते हैं।
प्रश्न 7. ‘जिहाद’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-‘जिहाद’ का शाब्दिक अर्थ है-धर्मयुद्ध । जब-जब मुसलमान आक्रमणकारियों ने
भारत पर आक्रमण किया और भारतीय सेना उनके लिए भारी पड़ी तो उन्होंने सदैव ‘जिहाद’
(अर्थात् धर्म के नाम पर होने वाला युद्ध) का नाम लेकर मुसलमान सैनिकों में उत्साह भरा और
उन्हें जी-जान से लड़ने के लिए प्रेरित किया। राणा सांगा और बाबर के बीच खनवाह के मैदान
में लड़ी जाने वाली लड़ाई में जब राजपूतों के सामने मुगल न टिक सके, तो बाबर ने ‘जिहाद’
का नारा लगाकर मुगलों को दिलोजान से लड़ने के लिए उत्साहित किया और फिर अन्त में बाबर की ही विजय हुई।
प्रश्न 8. ‘जौहर’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-युद्ध के मैदान में जब राजपूत स्वयं को पूरी तरह शत्रुओं से घिरा हुआ पाते थे तथा
उनके प्राण बचने की कोई आशा नहीं दिखाई देती थी, तब राजपूत लोग केसरिया वेश धारण
कर युद्ध-क्षेत्र में कूद पड़ते थे और राजपूत स्त्रियाँ एक विशाल सामूहिक चिता बनाकर अपने
सतीत्व की रक्षा के लिए चिता में जलकर अपने प्राणों को आहुति दिया करती थीं। कभी-कभी
उनके बच्चे एवं कुछ वरिष्ठ नागरिक भी जौहर में भाग लेते थे। इसी को जौहर कहा जाता था।
प्रश्न 9. ‘मसनवी’ से आप क्या समझाते है?
उत्तर-इसमें कोई संदेह नहीं कि बाबर ने छोटी आयु में ही यह सिद्ध कर दिया था कि वह
एक महान वीर, योद्धा एवं विजेता था। इसके अतिरिक्त वह एक साहित्यकार भी था। उसने
 अपनी आत्मकथा ‘तुजक-ए-बावरी’ तुर्की में लिखी थी। वह एक प्रकृति प्रेमी और कवि भी था।
उसकी रचनाओं में से एक प्रसिद्ध रचना ‘मसनवी’ थी, जिससे उसके महान लेखक होने की बात
सिद्ध होती है।
प्रश्न 10. ‘गद्दी’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-‘गद्दी’ का शाब्दिक अर्थ है-राजसिंहासन । जिसे हुमायूँ को शेरशाह से 1540 ई. में
परास्त हो जाने के फलस्वरूप खो देना पड़ा था। अकस्मात् 1545 में शेरशाह की दुर्घटना में मृत्यु
हो गई। उसके अयोग्य उत्तराधिकारियों के काल में हुमायूँ को पुनः (1555 ई. में) गद्दी मिल गई।
प्रश्न 11. ‘डाक चौकी’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-शेरशाह के शासन काल में कुछ सरायों को ‘डाक चौकी’ के रूप में प्रयोग किया
जाता था। इन डाक चौकियों पर डाक (पत्र, चिट्ठी आदि) रखी जाती थी। उस डाक को एक
घुड़सवार लेकर अगली चौकी पर रख देता था। वहाँ से आगे जाने के लिए घुड़सवार लेकर
तैयार खड़ा रहता था जो डाक चौकी सारी डाक एकत्र करके आगे ले जाता था और यह क्रम
इसी प्रकार से चलता रहता था, जब तक कि डाक अपने गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुँच जाती थी।
उस समय डाकघर एवं यातायात के आधुनिक साधन (बस, रेल, हवाई जहाज आदि) नहीं थे।
प्रश्न 12. ‘पट्टा’ क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-पट्टा में भूमि की मिलकियत या कुछ अन्य बातें लिखी होती थीं। बुआई का क्षेत्रफल,
फसल की किस्म और किसान द्वारा देय कर एक पट्टे (कागज) पर लिख दिया जाता था और
कृषक को उसकी सूची दे दी जाती थी। किसी को भी किसान से नियत कर से अधिक लेने
का अधिकार नहीं था।
प्रश्न 13. ‘चेहरा’ क्या होता था?
उत्तर-‘चेहरा’ का अर्थ है-हुलिया लिखना, अर्थात् सैनिकों के शरीर की बनावट, चेहरे के
नयन-नक्श आदि के विषय में लिखना जिसमें सैनिकों को बदला न जा सके। आजकल
उसी प्रकार का पहचान-पत्र (Identity card) होता है। अत: सरकारी रिकार्ड ही चेहरा बता
सकता था।
प्रश्न 14. ‘दाग’ से आप क्या समझते है ?
उत्तर-‘दाग’ का शाब्दिक अर्थ है-निशान लगाना अर्थात् पहचान का चिह्न लगाना । शाही
घोड़ों पर राजकीय निशान लगाया जाता था, जिसे दाग कहा जाता था जिससे घटिया और बढ़िया नस्ल के घोड़ों में अन्तर किया जा सके और घटिया नस्ल के घोड़े से बढ़िया किस्म का घोड़ा न बदला जा सके । सम्भवतः घोड़ों को ‘दाग’ लगाने की प्रथा शेरशाह ने अलाउद्दीन खिलजी से सीखी थी। इससे घुड़सवार सेना का स्टैंडर्ड (स्तर) बना रहता था।
प्रश्न 15. ‘जजिया’ क्या है ? स्पष्ट करें।                           [B.M.2009A]
उत्तर-मुगल काल में ‘जजिया’ एक प्रकार का कर (Tax) था जो मुसलमान शासक हिन्दुओं
से वसूल करते थे। मुगलों की भाँति शेरशाह ने भी हिन्दुओं से जजिया कर लिया था। यह कर
बच्चों, स्त्रियों, अपाहिजों एवं ब्राह्मणों से नहीं लिया जाता था और आर्थिक स्थिति के अनुसार
लिया जाता था अर्थात् निर्धनों से कम और धनवानों से अधिक लिया जाता था।
प्रश्न 16. जहाँगीर के चरित्र के अच्छे पहलू पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-जहाँगीर अनेक गुणों से शोभायमान था । वह बड़ा दयालु और सहदय व्यक्ति था,
जिसे अपने बच्चों से ही नहीं, अपनी प्रजा से भी अत्यधिक प्यार था । वह बड़ा न्यायप्रिय शासक
था। न्याय करते समय वह राजा और रंक में कोई अंतर नहीं समझता था। एक बार अपनी बेगम
नूरजहाँ द्वारा धोबी को तीर लगने पर, जब उसकी मृत्यु हो गई थी तब जहाँगीर ने भरे दरबार
में अपनी बेगम नूरजहाँ के लिए भी वही सजा सुनाई जो एक जनसाधारण के लिए होती है।
जहाँगीर एक अच्छा लेखक भी था। उसकी ‘तुज्के जहाँगीरी’ नामक आत्मकथा इतिहास
का अनमोल रत्न है।
प्रश्न 17. जहाँगीर के चरित्र के बुरे पहलू पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-जहाँ एक ओर जहाँगीर के चरित्र में कई अच्छाइयाँ थीं तो दूसरी ओर कई बुराईयाँ
भी थीं। मदिरा-पान के अवगुण ने उसके सभी गुणों पर पानी फेर दिया था। वह अफीम का
सेवन करता था। वह आलसी तथा विलासी था, अतः उसने अपने शासन की बागडोर नूरजहाँ
को सौंप रखी थी, जिसके कारण उसका दरबार षड्यंत्रों का अड्डा बन गया था।
प्रश्न 18. जहाँगीर के कांगड़ा के विरुद्ध अभियान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-जहाँगीर के समय में कांगड़ा के राजा ने मुगलों से संघर्ष किया। शाही सेनाओं को
इस छोटे से राज्य पर कब्जा करने में लगभग तीन वर्ष लग गए। जहाँगीर कांगड़ा पर विजय
पाने वाला प्रथम मुस्लिम शासक था तथा मुगलों की इस उपलब्धि के उपलक्ष्य में वह 1620 में
स्वयं वहाँ गया। उसने किले के परिसर में मस्जिद का निर्माण किया।
प्रश्न 19. जहाँगीर के असम के विरुद्ध अभियान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-उत्तर पूर्व में लंबे वर्षों तक युद्धरत रहने के कारण अफगान थक चुके थे, किंतु युद्ध
प्रिय अहोम जाति के लोग (असम में) मुगलों के साथ जहाँगीर के शासन काल में प्रतिवर्ष भिड़ते
रहे। सैन्य बल, अचानक हमले तथा नदी नावों के कुशल इस्तेमाल ने उन्हें मुगलों का घोर शत्रु
बना दिया तथा इस संघर्ष के शीघ्र सुलझने के आसार खत्म कर दिए।
प्रश्न 20. शाहजहाँ के चरित्र के गुणों की व्याख्या करें।
उत्तर-शाहजहाँ का अपनी बेगम मुमताज महल से अथाह प्रेम था। आगरा में अपनी बेगम
की यादगार में बनवाया गया ताजमहल इसका जीता-जागता प्रमाण है। उसे अपने बच्चों से
भी अत्यधिक प्यार था। उसने अपनी पुत्रियों (जहाँआरा और रोशन आरा) के नाम से दिल्ली
में दो बाग भी लगवाए। उसके बच्चों (औरंगजेब इसका अपवाद माना जाना चाहिए) को भी
उससे बहुत लगाव था। उसकी पुत्री जहाँआरा ने अपने पिता के साथ कैद में मरना कहीं अच्छा समझा।
शाहजहाँ एक योग्य सेनापति और प्रशासक था। भवन-निर्माण कला में उसकी विशेष रुचि
थी। उसने ताजमहल, लाल-किला और जामा मस्जिद आदि शानदार भवन बनवाए जिन्हें देखकर
आज भी हम आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
प्रश्न 21. शाहजहाँ के बेटों के बीच उत्तराधिकार की लड़ाई में क्या मसले शामिल थे?
उत्तर-जहाँ व्यक्तिगत आकांक्षाएँ निश्चित रूप से राजकुमारों के कदम निर्धारित करती थीं,
लेकिन अविवादित रूप से वे शाही राजव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण पक्षों पर भिन्न विचार रखते थे
जिसके कारण स्थिति और बिगड़ी और वास्तव में इसने औरंगजेब की स्थिति को और मजबूत
किया। यह था इस्लामिक समुदाय में पुनर्जागरणवादी आंदोलनों का बढ़ता महत्त्व ।
प्रश्न 22. ‘जवाबित’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-जवाबित का अर्थ धर्मनिरपेक्ष कानून है। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि
औरंगजेब कट्टर इस्लामी कानून की विचारधारा पर दृढ़ रहने पर भी धर्मनिरपेक्ष कानूनों को जारी
करने से नहीं घबराया। वह इस बात को भली-भाँति समझता था कि वह मुसलमान होने के
साथ-साथ एक शासक भी है। शासक भी ऐसे देश का जिसकी अधिकतर जनसंख्या हिन्दुओं
की है।
प्रश्न 23. ‘शरअ’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-इस्लामी कानून को ‘शरअ’ कहा जाता है। दिल्ली के सुल्तानों ने अपने राज्य को
‘शरअ’ के अनुसार चलाने का प्रयास किया, परंतु मुगल शासकों ने धर्म निरपेक्ष कानूनों का सहारा
अवश्य लिया। अलाउद्दीन तथा कई अन्य सुल्तानों ने ‘शरअ’ से हटकर कानून बनाए जिससे
राज-काज में हिन्दुओं की भी पूछ हो ।
प्रश्न 24. ‘कलमा’ किसे कहते हैं?
उत्तर-कुरान (मजीद) शरीफ की आयतों को कलमा कहते हैं । शाहजहाँ ने ताजमहल की
दीवारों और दरवाजों पर कलमें (कुरान की आयतें) खुदवाए । औरंगजेब ने सिक्कों पर कलमें
लिखवाने बन्द कर दिये ताकि सिक्के असावधानीवश पैरों के नीचे या पृथ्वी पर गिर जाने से
सिक्कों पर लिखे कलमों की बेअदबी (निरादर) न हो।
प्रश्न 25. ‘नौबत’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-‘नौबत’ शब्द का अर्थ है-शाही बैंड । मुगल दरबार में नौबत के वाद्य-संगीत का
प्रयोग बादशाह के दरबार में आने पर किया जाता था। गायक अपने अनेक प्रकार के गीत भी
दरबारियों को सुनाया करते थे और वाद्य-संगीत भी होता था। औरंगजेब ने नौवत और
वाद्य-संगीत की अनुमति दी, परंतु गायकों द्वारा गीत गाने की दरबार में मनाही कर दी।
प्रश्न 26. ‘झरोखा’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-मुगल शासक झरोखे (Balcony) में खड़े होकर लोगों को प्रतिदिन दर्शन दिया करते
थे। इस प्रथा को झरोखा कहा जाता था, परंतु औरंगजेब ने इस प्रथा को बंद कर दिया क्योंकि
उसके अनुसार ऐसा करना इस्लाम के विरुद्ध था।
प्रश्न 27. औरंगजेब की धार्मिक नीति संबंधी दो तथ्य लिखें।
उत्तर-(i) औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह युद्ध क्षेत्र में भी नमाज का समय होने
पर, घोड़े की पीठ पर नमाज पढ़ लेता था।
(ii) उसने दरबार में संगीत बंद करा लिया क्योंकि संगीत इस्लाम धर्म के विरुद्ध है, यह एक
प्रकार का जादू है। उसने झरोखा दर्शन की प्रथा बंद करा दी क्योंकि इस प्रथा को वह इस्लाम
के विरुद्ध (व्यक्ति की पूजा) समझता था।
प्रश्न 28. औरंगजेब द्वारा जजिया कर फिर से लगाये जाने के दो उद्देश्य क्या थे?
उत्तर-(i) औरंगजेब का उद्देश्य मराठों और राजपूतों के विरुद्ध मुसलमानों को संगठित करना था।
(ii) जजिया कर सच्चे और धर्म-भीरु लोगों द्वारा उगाहा जाता था। जो पैसा एकत्र होता
था, वह तमाम उलेमाओं (धार्मिक नेताओं) को जाता था।
प्रश्न 29. औरंगजेब का विरोध किन-किन जातियों ने किया?
उत्तर-(i) औरंगजेब के विरुद्ध जाट, सिक्ख, राजपूत, मराठे, अफगान तथा सतनामी थे।
(ii) अफगानों को छोड़कर सभी जातियों द्वारा उसका विद्रोह उसकी धार्मिक नीति के कारण
हुआ।
                                              लघु उत्तरीय प्रश्न
                               (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मुगल के तीन मूल-पाठों की क्या महत्ता है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-अंग्रेजी में लिखने वाले आधुनिक इतिहासकारों ने मूल-पाठ की इस शैली को
क्रॉनिकल्स (इतिवृत्त/इतिहास) नाम दिया। ये इतिवृत्त घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक
विवरण प्रस्तुत करते हैं। मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक किसी भी विद्वान के लिए ये इतिवृत्त अपरिहार्य स्रोत हैं। एक ओर तो ये इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में तथ्यात्मक सूचनाओं का खजाना थे, जिन्हें दरबार से घनिष्ठ रूप से जुड़े व्यक्तियों द्वारा काफी मेहनत से एकत्रित एवं वर्गीकृत किया गया था। दूसरी ओर इन मूल-पाठों का उद्देश्य उन आशयों को संप्रेषित करना था जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। अतः ये इतिवृत्त हमें इस बात की एक झलक देते हैं कि कैसे शाही विचारधाराएँ रची तथा प्रचारित की जाती थीं।
प्रश्न 2. भारत में मुगल शब्द की कैसे व्युत्पत्ति हुई ? मुगल सम्राट् कौन थे ?
उत्तर-मुगल नाम मंगोल से व्युत्पन्न हुआ है। यद्यपि आज यह नाम एक साम्राज्य की भव्यता
का अहसास कराता है लेकिन राजवंश के शासकों ने स्वयं के लिए यह नाम नहीं चुना था। उन्होंने
अपने को तैमूरी कहा क्योंकि पितृपक्ष से वे तुर्की शासक तिमूर के वंशज थे। पहला मुगल शासक
बाबर मातृपक्ष से चंगेज खाँ का संबंधी था । वह तुर्की बोलता था और उसने मंगोलों का उपहास
करते हुए उन्हें बर्बर गिरोह के रूप में उल्लिखित किया है।
सोलहवीं शताब्दी के दौरान यूरोपियों ने परिवार की इस शाखा के भारतीय शासकों का वर्णन
करने के लिए मुगल शब्द का प्रयोग किया । सोलहवीं शताब्दी से ही इस शब्द का निरंतर प्रयोग
होता रहा है। यहाँ तक कि रडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक के युवा नायक मोगली का नाम
भी इससे व्युत्पन्न हुआ है।
प्रश्न 3. भारत में मुगल साम्राज्य की रचना (स्थापना) कैसे की गई ? बाबर 1526
ई० में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर क्यों बढ़ा था?
उत्तर-मुगलों व स्थानीय सरदारों के बीच राजनीतिक-मैत्रियों के जरिए तथा विजयों के
जरिए भारत के विविध क्षेत्रीय राज्यों को मिलाकर साम्राज्य की रचना की गई। साम्राज्य के
संस्थापक जहीरुद्दीन बाबर को उसके मध्य एशियाई स्वदेश फरगना से प्रतिद्वंद्वी उजबेकों ने भगा
दिया था। उसने सबसे पहले स्वयं को काबुल में स्थापित किया और फिर 1526 में अपने दल
के सदस्यों की आवश्यकताएंँ पूरी करने के लिए क्षेत्रों और संसाधनों की खोज में वह भारतीय
उपमहाद्वीप में और आगे की ओर बढ़ा।
प्रश्न 4. संक्षेप में हुमायूँ के जीवन का राजनीतिक उतार-चढ़ाव बताइए।
उत्तर-बाबर के ज्येष्ठ पुत्र (सबसे बड़े) और उसके राजनैतिक नसीरुद्दीन हुमायूँ (1530-
40, 1555-56) ने साम्राज्य की सीमाओं में विस्तार किया किंतु वह अफगान नेता शेरशाह सूरी
से पराजित हो गया जिसने उसे ईरान के सफावी शासक के दरबार में निर्वासित होने को बाध्य
कर दिया। 1555 में हुमायूँ ने सूरों को पराजित कर दिया किंतु एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु
हो गई।
प्रश्न 5. अकबर से लेकर बहादुरशाह द्वितीय तक संक्षिप्त राजनैतिक घटनाएँ बताइए।
उत्तर-(i) अनेक विद्वान् और व्यक्ति जलालुद्दीन अकबर (1556-1605) को मुगल बादशाहों
में महानतम मानते हैं क्योंकि उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया बल्कि इसे अपने समय का विशालतम, दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ भी किया। अकबर हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं के विस्तार में सफल हुआ और उसने ईरान के सफावियों और तूरान (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाए रखी। अकबर के बाद जहाँगोर (1605-27), शाहजहाँ (1628-58) और औरंगजेब (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्वों वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए। इनके अधीन क्षेत्रीय विस्तार जारी रहा यद्यपि इसकी गति काफी धीमी रही। तीन शासकों ने शासन के विविध यंत्रों को बनाए रखा और उन्हें सुदृढ़ किया।
(ii) सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों के दौरान शाही संस्थाओं के ढाँचे का निर्माण हुआ।
इनके अंतर्गत प्रशासन और कराधान के प्रभावशाली तरीके शामिल थे। मुगल शक्ति का सुस्पष्ट
केन्द्र दरबार था। यहाँ राजनीतिक संबंध गढ़े जाते थे, साथ ही श्रेणियाँ और हैसियतें परिभाषित
की जाती थीं। मुगलों द्वारा शुरू की गई राजनीतिक व्यवस्था सैन्य शक्ति और उपमहाद्वीप की
भिन्न-भिन्न परंपराओं को समायोजित करने की चेतन नीति के संयोजन पर आधारित थी।
(iii) 1707 के बाद औरंगजेब की मृत्योपरांत राजवंश की शक्ति घट गई। दिल्ली, आगरा
अथवा लाहौर जैसे भिन्न राजधानी नगरों से नियंत्रित एक विशाल साम्राज्य तंत्र की जगह क्षेत्रीय
शक्तियों ने अधिक स्वायत्तता अर्जित कर ली। फिर भी सांकेतिक रूप में ही सही पर मुगल शासक की प्रतिष्ठा ने अभी अपनी आभा नहीं खोई थी। 1857 में इस वंश के अंतिम वंशज बहादुरशाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने उखाड़ फेंका।
प्रश्न 6. मुगल दरबार में पांडुलिपियाँ कैसे तैयार की जाती थीं? [B.M.2009A]
उत्तर-पांडुलिपियाँ तैयार करने की प्रक्रिया जटिल एवं लंबी थी। इन्हें राजकीय किताब खाना
में तैयार किया जाता था। कागज बनाने वाले पांडुलिपियों के पन्ने बनाते थे। सुलेखक पाठ नकल
करते थे। कोपत्तागार पन्नों को चमकीला बनाते थे। चित्रकार पन्नों पर दृश्यों को चित्रित करते
थे। अंत में जिल्दसाज पन्नों को एकत्रित कर उसे अलंकृत आवरण से सुसज्जित करते थे।
प्रश्न 7. मुगल काल में पांडुलिपियों के रचनाकारों और उनसे जुड़े सुलेखन कार्यकत्ताओं
आदि को किस प्रकार उनके कार्यों का सम्राट् द्वारा पारितोषित दिया गया ?
उत्तर-पांडुलिपियों की वास्तविक रचना में शामिल कुछ लोगों को भी पदवियों और पुरस्कारों
के रूप में पहचान मिली। इनमें सुलेखकों और चित्रकारों को तो उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा मिली
जबकि अन्य, जैसे कागज बनाने वाले अथवा जिल्दसाज गुमनाम कारीगर ही रह गए।
सुलेखन अर्थात् हाथ से लिखने की कला अत्यंत महत्त्वपूर्ण कौशल मानी जाती थी। इसका
प्रयोग भिन्न-भिन्न शैलियों में होता था। नस्तलिक अकबर की पसंदीदा शैली थी। यह एक ऐसी तरल शैली थी जिसे लंबे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था। इसे 5 से 10 मिलीमीटर की नोक वाले छँटे हुए सरकंडे, जिसे कलम कहा जाता है, के टुकड़े से स्याही में डुबोकर लिखा जाता है। सामान्यतया कलम की नोक में बीच में छोटा-सा चीरा लगा दिया जाता था ताकि वह स्याही
आसानी से सोख ले।
प्रश्न 8. शाहजहाँ के रतन जड़े सिंहासन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-आगरा महल के सार्वजनिक सभा भवन में रखे शाहजहाँ के रत्नजड़ित सिंहासन
(तख्त-ए-मुरस्सा) के बारे में बादशाहनामा में लिखा है-
सिंहासन की भव्य संरचना में एक छतरी है जो द्वादशकोणीय स्तंभों पर टिकी हुई है। इसकी
ऊँचाई सीढ़ियों से गुंबद तक पाँच क्यूबिट (लगभग 10 फुट) है। अपने राज्यारोहण के समय
महामहिम ने यह आदेश दिया कि 86 लाख रुपए के रत्न तथा बहुमूल्य पत्थर और एक लाख
तोला सोना जिसकी कीमत चौदह लाख रुपए है, से इसे सजाया जाना चाहिए। सिंहासन की
साज-सज्जा में सात वर्ष लग गए। इसकी सजावट में प्रयुक्त हुए बहुमूल्य पत्थरों में रूबी था
जिसकी कीमत एक लाख रुपए थी और जिसे शाह अब्बास सफावी ने दिवगंत बादशाह जहाँगीर
को भेजा था। इस रूबी पर महान बादशाह तिमूर साहिब-ए किरान, मिर्जा शाहरूख, मिर्जा उलुग
बेग और शाह अब्बास के साथ-साथ अकबर, जहाँगीर और स्वयं महामहिम के नाम अंकित थे।
प्रश्न 9. मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए ।
                                                                          [N.C.E.R.T. T.B.Q.1]
उत्तर-मुगल दरबार में 16-17वीं शताब्दियों में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया पर विशेष
ध्यान दिया जाता था। इसके लिए एक किताब खाना बनाया गया था। यह ऐसा स्थान था जहाँ
सम्राट की पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता था तथा नई पांडुलिपियों की रचना की जाती थी।
इनकी रचना में अनेक लोग शामिल होते थे। जैसे-कागज तैयार करने वाले, सुलेखन करने वाले,
चित्रकारी करने वाले आदि । इनकी अच्छी जिल्दसाजी की जाती थी और अलंकृत आवरण बैठाया जाता था । पांडुलिपि तैयार करने वालों को सम्राट पदवियां और पुरस्कार देता था। पांडुलिपि के सुलेखन पर विशेष ध्यान दिया जाता था ।
प्रश्न 10. मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कर्म और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह
के बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा? [N.C.E.R.T. TB.Q.2]
उत्तर-बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित करने वाले मुगल दरबार से जुड़े दैनिक
कर्म और विशेष उत्सवों के दिन: मुगल दरबार वह स्थान था जहाँ सिंहासन या तख्त यह आभास
कराता था कि इस पर सम्पूर्ण धरती टिकी है । यह निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है-
(i) इतिवृत्तों में मुगल के संभ्रात वर्गों के बीच हैसियत को निर्धारित करने वाले नियमों को
स्पष्टता से प्रकट किया गया है।
(ii) दरबार में सम्राट के निकटवर्ती ही उसके निकट बैठते थे। दरबारी समाज में मान्य
संबोधनों, शिष्टाचार तथा बोलने के नियम ध्यानपूर्वक निर्धारित किये गये थे। शिष्टाचार के थोड़ा
उल्लघंन पर कठोर दण्ड दिया जाता था ।
(iii) दरबार में अभिवादन पदानुक्रम के अनुसार विभिन्न प्रकार का होता था। जिस व्यक्ति –
के सामने अधिक झुककर अभिवादन किया जाता था, उस व्यक्ति की हैसियत उस व्यक्ति की
हैसियत से अधिक ऊँची मानी जाती थी । यहाँ तक कि राजनयिक दूत भी झुककर ही सम्राट को
अभिवादन करता था ।
(iv) शाही सत्ता की स्वीकृति को अधिक विस्तृत करने के लिए अकबर ने झरोखा दर्शन
की प्रथा शुरू की । सूर्यास्त के समय व्यक्तिगत धार्मिक प्रार्थनाओं के पश्चात् सम्राट पूर्व की ओर मुँह किये एक झरोखा के सामने आता था । झरोखा दर्शन एक घंटे का होता था ।
(v) शाही परिवारों के उत्सव और विवाह धूमधाम से होते थे और लोग खूब उपहार देते
थे। कहा जाता है कि दाराशिकोह और नादिरा के विवाह में 32 लाख रुपये खर्च हुए थे
प्रश्न 11. मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का
मूल्यांकन कीजिए।                                   [N.C.E.R.T. T.B.Q.3]
उत्तर-मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका-
(i) भारतीय उपमहाद्वीप में विशेषकर शासक वर्गों में बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी । इससे
मुगल सम्राटों को कुछ सीमा तक लाभ हुआ । मुगल सम्राटों ने राजपूत घरानों में शदियाँ की जिससे उन्हें राजपूतों का समर्थन मिला और अपने विशाल साम्राज्य की सुरक्षा की । यद्यपि मुगल राजाओं की विभिन्न पलियों का दर्जा अलग-अलग था परन्तु सबने एक अच्छी पत्नी की भूमिका निभाई।
(ii) पत्नियों के अतिरिक्त मुगल परिवार में अनेक महिला तथा पुरुष गुलाम थे ये छोटे काम
से लेकर कौशल निपुणता तथा बुद्धिमत्ता के अलग-अलग कार्यों का संपादन करते थे ।
(iii) नूरजहाँ के पश्चात् मुगल रानियों और राजकुमारियों ने महत्त्वपूर्ण वित्तीय स्रोतों पर
नियंत्रण रखना शुरू कर दिया ।
(iv) मुगल साम्राज्य की स्त्रियों ने इमारतों और बागों के निर्माण में भी रुचि ली थी । उदाहरण
के लिए चाँदनी चौक की रूपरेखा जहाँआरा द्वारा बनाई गई ।
(v) अनेक पारिवारिक संघर्षों को सुलझाने में परिवार की बुजुर्ग स्त्रियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण
थी । हुमायूँनामा में इसकी स्पष्ट झलक मिलती है ।
प्रश्न 12. वे कौन से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर के क्षेत्रों के प्रति मुगल
नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया ?                     [N.C.ER.T. TB.Q.4]
उत्तर-भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान
करने वाले मुद्दे-
(i) साम्राज्य की सुरक्षा-बाहरी क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों का मुख्य उद्देश्य
साम्राज्य सुरक्षा थी । सभी मुगल सम्राटों ने सीमा की सुरक्षा के लिए कई प्रकार व्यवस्थाएंँ की।
सीमा बचाने के लिए उन्होंने अन्य देशों के साथ कूटनीतिक संबंध स्थापित किये ।
(ii) व्यापारिक लाभ-मुगल बादशाह अपने आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहते थे ।
इसलिए बाहरी क्षेत्रों के व्यापारिक संबंध अच्छा रखना चाहते थे । काबुल और कंधार को इसीलिए अपने अधीन रखने का प्रयास किये।
(iii) समानता-मुगलों ने अपनी विदेश नीति में समानता और निष्पक्षता को महत्त्व दिया ।
उन्होंने सभी देशों को समान महत्त्व दिया। उन्होंने धर्म और जाति को महत्त्व नहीं दिया ।
(iv) शक्ति सन्तुलन-मुगल बादशाह विश्व में शक्ति सन्तुलन कायम करना चाहते थे ।
इसलिए उन्होंने बाहरी क्षेत्रों के प्रति अपने को पूर्ण स्वतंत्र रखा । तुर्कियों और उनवेगों ने जाति
के आधार पर संगठन बनाने का प्रयास किया । परन्तु मुगल सम्राटों ने इनको हराकर ऐसा करने
से रोका, क्योंकि इससे शान्ति सन्तुलन बिगड़ सकता था और अशान्ति उत्पन्न हो सकती थी।
प्रश्न 13. मुगल प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। केंद्र किस
तरह से प्रांतों पर नियंत्रण रखता था ?                   [N.C.E.R.T. T.B.Q.5]
(Discuss the major features of Mughal provincial administration. How did the centre control the provinces ?)
उत्तर-I, प्रांतीय प्रशासन (Provincial Administration)-(क) केंद्र में स्थापित कार्यों
के विभाजन को प्रांतों (सूबों) में दुहराया गया था। यहाँ भी केन्द्र के समान मंत्रियों के अनुरूप
अधीनस्थ (दीवान, बख्शी और सद्र) होते थे। प्रांतीय शासन का मुख्य गवर्नर (सूबेदार) होता
था जो सीधा बादशाह को प्रतिवेदन प्रस्तुत करता था।
(ख) प्रत्येक सूबा कई सरकारों में बँटा हुआ था। अक्सर सरकार की सीमाएँ फौजदारों
के नीचे आने वाले क्षेत्रों की सीमाओं से मेल खाती थीं। इन इलाकों में फौजदारों का विशाल
घुड़सवार फौज और तोपचियों के साथ रखा जाता था। परगना (उप-जिला) स्तर पर स्थानीय
प्रशासन की देख-रेख तीन अर्ध-वंशानुगत अधिकारियों, कानूनगो (राजस्व आलेख का रखवाला), चौधरी (राजस्व संग्रह का प्रभारी) और काजी द्वारा की जाती थी।
(ग) शासन के प्रत्येक विभाग के पास लिपिकों का एक बड़ा सहायक समूह, लेखाकार,
लेखा-परीक्षक, संदेशवाहक और अन्य कर्मचारी होते थे जो तकनीकी रूप से दक्ष अधिकारी थे।
ये मानवीकृत नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार कार्य करते तथा प्रचुर संख्या में लिखित आदेश
व वृत्तांत तैयार करते थे। सर्वत्र फारसी को शासन की भाषा बना दिया गया लेकिन ग्राम-लेखा
के लिए स्थानीय भाषाओं का प्रयोग होता था।
II. केंद्र का नियंत्रण (Control of the Centre)-मुगल इतिहासकारों ने प्राय: बादशाह
और उसके दरबार को ग्राम स्तर तक के संपूर्ण प्रशासनिक तंत्र का नियंत्रण करते हुए प्रदर्शित
किया है। इस प्रक्रिया का तनावमुक्त रहना असंभव-सा ही था। स्थानीय जमींदारों और मुगल
साम्राज्य के प्रतिनिधियों के बीच के संबंध कई बार संसाधनों और सत्ता के बँटवारों को लेकर
संघर्ष का रूप ले लेते थे। जमींदार प्रायः राज्य के खिलाफ किसानों का समर्थन संघटित करने
में सफल हो जाते थे।
प्रश्न 14. ईसाई धर्म के प्रति अकबर की जिज्ञासा और इस संबंध में जेसुइट के प्रमुख
सदस्य और उसके परिणाम पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-(क) अकबर ईसाई धर्म के विषय में जानने को बहुत उत्सुक था। उसने जेसुइट
पादरियों को आमंत्रित करने के लिए एक दूतमंडल गोवा भेजा । पहला जेसुइट शिष्टमंडल फतेहपुर सीकरी के मुगल दरबार में 1580 में पहुँचा और वह वहाँ लगभग दो वर्ष रहा । इन जेसुइट लोगों ने ईसाई धर्म के विषय में अकबर से बात की और इसके सद्गुणों के विषय में उलमा से उनका वाद-विवाद हुआ । लाहौर के मुगल दरबार में दो और शिष्टमंडल 1591 और 1595 में भेजे गए ।
(ख) पहले जेसुइट शिष्टमंडल का एक सदस्य मान्सेरेट अपने अनुभवों का विवरण लिखते
हुए कहता है-
उससे (अकबर से) भेंट करने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए उसकी पहुँच कितनी
सुलभ है इसके बारे में अतिशयोक्ति करना बहुत कठिन है। लगभग प्रत्येक दिन वह ऐसा अवसर
निकालता है कि कोई भी आम आदमी अथवा अभिजात उससे मिल सके और बातचीत कर सके। उससे जो भी बात करने आता है उन सभी के प्रति कठोर न होकर वह स्वयं को मधुरभाषी और मिलनसार दिखाने का प्रयास करता है। उसे उसकी प्रजा के दिलो-दिमाग से जोड़ने में इस
शिष्टाचार और भद्रता का बड़ा असाधारण प्रभाव है ।
जेसुइट विवरण व्यक्तिगत प्रेक्षणों पर आधारित हैं और वे बादशाह के चरित्र और सोच पर
गहरा प्रकाश डालते हैं। सार्वजनिक सभाओं में जेसुइट लोगों को अकबर के सिंहासन के काफी
नजदीक स्थान दिया जाता था। वे उसके साथ अभियानों में जाते, उसके बच्चों को शिक्षा देते तथा उसके फुरसत के समय में वे अक्सर उसके साथ होते थे। जेसुइट विवरण मुगलकाल के राज्य अधिकारियों और सामान्य जन-जीवन के बारे में फारसी इतिहासों में दी गई सूचना की पुष्टि करते हैं।
ध्रश्न 15. तैमूर की मृत्यु के बाद बाबर के काबुल पर आधिपत्य स्थापित करने के बीच
के काल में मध्य एशिया की राजनीतिक गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-तैमूर का साम्राज्य बहुत विस्तृत था। उसमें एशिया माइनर (तुर्की), ईरान, मध्य
एशिया (टांस आकिस्याना) अफगानिस्तान और पंजाब तक के भाग सम्मिलित थे। 1404 ई. में
तैमूर की मृत्यु के बाद गृह युद्ध छिड़ गया। तीन शक्तियाँ उभर कर सामने आईं । मध्य एशिया
में उजबेग, ईरान में सफवीं वंश और ईरान के पश्चिम में उसमानी (आटोपन) तुर्क के बीच मध्य
एशिया की छोटी-सी रियास ‘फरमाना’ का 1494 ई. में बाबर शासक बना । वह अपने आपको
तैमूर का उत्तराधिकारी समझता था, तभी उसने समरकंद को जीतने का प्रयास किया, परंतु उसे
फरगाना से भी हाथ धोना पड़ा। विवश होकर वह काबुल की ओर आया। काबुल में फैली
अशान्ति का लाभ उठाकर उसने वहाँ कर सत्ता हथिया ली। 1504 ई. में वह काबुल का शासक
बना। 1510 ई. तक उसने कन्धार, हिरात और बदख्कशाँ पर अधिकार कर लिया। उधर मध्य
एशिया का राजनैतिक घटनाक्रम बड़ी तेजी से घूम रहा था। 1510 ई. में ईरान के शाह इस्माइल
ने उजबेग सरदार शैवानी खाँ को युद्ध में हराकर मार डाला । बाबर के मन में समरकंद को जीतने
की फिर से लालसा जाग उठी। 1510 ई. में उसने फारस के बादशाह की सहायता से समरकंद
जीत ही लिया, लेकिन अब्दुल्ला खाँ उजबेग ने 1513 ई. में बाबर को युद्ध में हराकर समरकंद
को जीतने की लालसा को सदा के लिए दबा दिया और अफगानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़
करने में जुट गया जिससे कि वह भारत विजय के लिए आ सके।
प्रश्न 16.वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं जिनके कारण बाबर पंजाब पर अधिकार करने
के लिए अग्रसर हुआ?
उत्तर-1. जब बाबर की सेना ने सिंधु नदी पार की तो उसके पास 12,000 सैनिक ही थे
किन्तु पंजाब में बड़ी संख्या में सैनिक और सरदारों के उसके पक्ष में मिल जाने से उसके सैनिकों
की संख्या बहुत बढ़ गई थी।
2. बाबर के सैनिकों ने इब्राहिम लोदी की सेना पर आगे-पीछे दोनों ओर से आक्रमण कर
दिया। सामने की ओर से तोपचियों और तीरन्दाजों ने भारी संख्या में शत्रु मार गिराये ।
3. बाबर ने युद्ध में उस्मानी (रुमी) विधि का प्रयोग किया। इसमें उसने सेना के एक अंग
को पानीपत शहर में, जहाँ महानों की संख्या अधिक थी तैनात कर दिया। सेना के दूसरे अंग
की सुरक्षा के लिए उसने खाई खोदकर उस पर पेड़ों की डालियाँ बिछा दीं। सामने गाड़ियों की
कतार खड़ी करके सुरक्षात्मक दीवार बना दी। दो गाड़ियों के बीच ऐसा ढाँचा बनवाया जिस
पर सिपाही तोपें रखकर उन्हें चला सकते थे।
प्रश्न 17. पानीपत की पहली लड़ाई (1526) भारत के इतिहास में एक निर्णायक लड़ाई
समझी जाती है, विवेचना कीजिए।
उत्तर-1. इस लड़ाई में लोदियों की कमर टूट गई। दिल्ली और आगरा तक का सारा प्रदेश
बाबर के अधीन हो गया।
2. इब्राहिम लोदी द्वारा आगरा में एकत्र खजाना अधिकार में आ जाने से बाबर की सारी आर्थिक कठिनाइयाँ दूर हो गई।
3. जौनपुर तक का समृद्ध क्षेत्र भी बाबर के सामने प्रशस्त था।
4. पानीपत की लड़ाई ने उत्तर भारत पर आधिपत्य के लिए संघर्ष के एक नये युग का सूत्रपात
किया।
प्रश्न 18. 1530 में हुमायूँ के गद्दी पर बैठने के समय उत्तरी भारत की राजनैतिक स्थिति
का वर्णन कीजिए।
उत्तर-1. प्रशासन अभी सुसंगठित नहीं हुआ था। आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं थी।
2. अफगानों को पूरी तरह दबाया नहीं जा सका था, वे अब भी मुगलों को भारत से बाहर
खदेड़ने के सपने देख रहे थे।
3. हुमायूँ ने अपने राज्य का बहुत बड़ा भाग भाइयों में बाँट दिया था। काबुल और कंधार
कामरान के पास थे। उसने लाहौर और मुल्तान पर आक्रमण करके उन्हें भी जीत लिया।
4. हुमायूँ के दूसरे भाई असकरी और हिन्दाल भी विद्रोह करने पर तुले हुए थे। अवसर मिलते
ही वे कुछ भी कर सकते थे।
प्रश्न 19. अफगानों के विरुद्ध बाबर की विजय के कारण बताइये।
उत्तर-(i) बाबर की वैज्ञानिक रणनीति-बाबर ने एशिया में अनेक युद्ध किए थे। अतः
उसे विभिन्न जातियों की युद्ध-कला का अच्छा अनुभव था। उसने तुर्कों से घुड़सवार सेना,
ईरानियों से तोपखाने, मंगोलों से छिपकर लड़ने या घात लगाने की कला और उजबेगों से तुलुगमा रणनीति को सीखा था। इस प्रकार उसकी रणनीति वैज्ञानिक थी। भारत की अफगान सेनायें पुराने तरीके से लड़ती थीं। अत वे उसका सामना नहीं कर सकीं।
(ii) बाबर का तोपखाना (Topkhana of Babar)-बाबर की सफलता का प्रमुख कारण
उसका शक्तिशाली तोपखाना था, जिसका संचालन उस्ताद अली खाँ और मुस्तफा खाँ कर रहे
थे। बाबर के तोपखाने ने युद्ध-क्षेत्र में अफगान सेना का भयंकर विनाश किया था।
(iii) बाबर द्वारा सेना का कुशल एवं उत्कृष्ट नेतृत्व (Good commanding on army
by Habar)-बाबर एक जन्मजात सैनिक और अनुभवी सेनापति था। उसे एशिया की नवीन युद्ध कला का पूर्ण अनुभव था। उसकी सेना का संचालन बहुत उत्तम था। उसका विरोधी इब्राहीम
लोदी एक अनुभवहीन और अयोग्य सेनापति था।
(iv) इब्राहिम की अलोकप्रियता (Unpopularity of Ibrahim)-सुल्तान इब्राहिम लोदी
अपने सरदारों से अच्छा व्यवहार नहीं करता था। अत: उसके चाचा आलम खाँ और पंजाब के
सूबेदार दौलत खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। अपनी
अलोकप्रियता के कारण इब्राहिम लोदी मुसीबत के समय अपने सरदारों और भारतीय शासकों का सहयोग न पा सका।
(v) इब्राहिम की दुर्बल गुप्तचर व्यवस्था (Weak C.I.D. of Ibrahim)-इब्राहिम के
गुप्तचर अनुभवी और कुशल नहीं थे, जिससे उसे बाबर की सैन्य जानकारियाँ प्राप्त नहीं हो सका।
प्रश्न 20. बाबर के बाबरनामा पर नोट लिखें।
उत्तर-बाबर एक वीर योद्धा ही नहीं, अपितु एक विद्वान साहित्यकार भी था। उसकी
रचनाओं में सबसे उत्तम उसकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ या ‘तुन्क-ए-बाबरी’ है। श्रीमती
बैबरिज के अनुसार, “बाबर की आत्मकथा एक ऐसा अमूल्य भण्डार है जिसे सेंट अगस्टॉइ तथा
रूसो के स्वीकृति वचन और गिब्बन तथा न्यूटन की आत्म कथाओं के समकक्ष रखा जा सकता
है।” बाबर ने अपनी आत्मकथा को अपनी मातृ-भाषा तुर्की में लिखा था। फारसी में इनका  अनुवाद गुलबदन ने किया। अंग्रेजी में श्रीमती बैवरिज तथा हिन्दी में केशव कुमार ठाकुर के अनुवाद बहुत प्रसिद्ध हैं।
विषय (Subjects)-बाबरनामा में बाबर के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है।
इसमें फरगान, समरकन्द, बाबर की काबुल विजय, भारत के उत्तर-पश्चिम प्रदेश तथा पानीपत,
खनवाह, चन्देरी और घाघरा आदि के प्रसिद्ध भारतीय युद्धों का भी वर्णन है। बाबर के जीवन
में स्थिरता का अभाव था। अत: बाबर की आत्मकथा में केवल 18 वर्ष की घटनायें ही मिलती हैं।
भाषा-शैली (Language and Style)-बाबरनामा की भाषा तुर्की है। इसमे अरबी-फारसी
के शब्दों की अधिकता है। बाबर की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी है। उसकी
वर्णन-शैली भी साधारण और स्पष्ट है। उसे जब अधिक समय मिला तो उसने विस्तार में लिखा
है और जब कम समय मिला तो संक्षेप में वर्णन किया है।
विशेषताएँ (Merits)-(1) बाबर ने सरल और स्पष्ट वर्णन किया है। उसने अपनी भूलों
और कमजोरियों को भी नहीं छुपाया। (2) बाबर को प्रकृति से बड़ा अनुराग था। बाबरनामा में
प्राकृतिक दृश्यों का सुन्दर वर्णन किया है। (3) बाबरनामा के वर्णन सजीव और रोचक हैं।
(4) बाबरनामा में तत्कालीन भारत का प्रामाणिक इतिहास है।
महत्त्व (Importance)-बाबरनामा साहित्यिक तथा ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से एक
महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में मध्य एशियाई राजनीति, तैमूरों के इतिहास, मंगोलों और चुगताइयों के आपसी सम्बन्ध, बाबर की तत्कालीन कठिनाइयाँ, ईरानी, उजबेग शक्ति के उत्थान और संघर्ष तथा बाबर के संघर्षमय जीवन की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार यह ग्रन्थ तत्कालीन भारत और मध्य एशिया की सांस्कृतिक और राजनैतिक जानकारी के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
प्रश्न 21. हुमायूँ के चरित्र में क्या दोष थे? वह अपनी असफलता के लिए स्वयं कहाँ
तक उत्तरदायी था?
उत्तर-हुमायूँ के चरित्र में हमें अच्छी और बुरी दोनों ही प्रकार की बातें मिलती हैं। वह एक
आज्ञाकारी पुत्र था। उसने अपने बाप को अन्तिम इच्छा का प्रसन्नता के साथ पालन किया चाहे
इसके लिए उसे कई प्रकार की कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। वह एक दयालु और उदार.
व्यक्ति था। उसे अपने भाइयों, पुत्रों, मित्रों और सम्बन्धियों से बड़ा प्यार था । वह धार्मिक कर्तव्यों
का भली प्रकार पालन करता था। वह तुर्की और फारसी भाषाओं का जानकार था । गणित, दर्शन और ज्योतिष आदि में उसकी विशेष रुचि थी।
उसमें अनेक अवगुण भी थे। वह आलसी और विलासी था। उसे अफीम खाने और शराब
पीने की बुरी आदतें थीं। उसमें दृढ़ संकल्प का अभाव था । वह ठीक निर्णय पर नहीं पहुँच सकता था। हमेशा अपने एक कार्य को पूरा करने की बजाय उसे अधूरा ही छोड़ देता था क्योंकि उसमें निरन्तर किसी कार्य को करने की क्षमता नहीं थी। वह आवश्यकता से अधिक उदार, दयालु और नम्र था। वह अपने बाप की भाँति दूरदर्शी और चतुर राजनीतिज्ञ नहीं था । वह एक सफल प्रशासक और प्रबन्धक भी नहीं था। वह एक कुशल सेनानायक नहीं था। इस प्रकार वह स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु था।
प्रश्न 22. शेरशाह सूरी के भू-राजस्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-(i) शेरशाह ने भूमि पर लगान की दर निश्चित करने के लिए कृषि योग्य भूमि को
तीन भागों में बाँटा । अच्छी, खराब और साधारण स्तर की भूमि । तीनों प्रकार की भूमि की उपज निश्चित करके उनके औसत पर लगान निश्चित किया जाता था।
(ii) लगान उपज के अनुसार निश्चित किया जाता था। साधारण उपज वाली भूमि की उपज
का एक तिहाई भाग लगान के रूप में देना होता था। लगान अनाज या धन के रूप में नकद,
सरकारी कोष में जमा किया जा सकता था।
(iii) फसल नष्ट होने पर किसानों का लगान माफ कर दिया जाता था। उन्हें राजकोष से
आर्थिक सहायता भी दी जाती थी। सैनिकों को आदेश था कि वे कूच के समय फसल न खराब
करें। यदि अनिवार्य परिस्थितियों के कारण सैनिकों द्वारा खड़ी फसल को नुकसान पहुंँचता था
तो राज्य उसकी क्षतिपूर्ति करता था।
(iv) सरकार और किसानों के बीच पट्ट होते थे। इन पट्टों पर भूमि का क्षेत्रफल, भूमि की
श्रेणी तथा लगान की दर लिखी होती थी। किसान उस पर हस्ताक्षर करता था। इस पट्टे से किसान के अधिकार सुरक्षित हो जाते थे।
प्रश्न 23. शेरशाह द्वारा व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए किए गए कार्य
लिखें।
उत्तर-अपने शासन काल में शेरशाह ने व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिए
निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाए-
(i) शान्ति और व्यवस्था की स्थापना (Establishinent of Peace and Organisation)-
व्यापार और वाणिज्य की उन्नति के लिए शेरशाह ने शान्ति और व्यवस्था की स्थापना की। उसने
चोर-डाकुओं और उपद्रवी जमींदारों का कठोरता से दमन किया।
(ii) सड़कें और सरायें (Roads and Shelters)- व्यापार के विकास के लिए शेरशाह ने
आवागमन के साधनों का सुधार किया। उसने कई बड़ी सड़कों का निर्माण करवाया । पुराने
राजमार्ग को, जिनसे जी. टी. रोड कहा जाता है, शेरशाह ने फिर से खोला । यह सड़क पूर्वी बंगाल में ढाका से लेकर अटक तक है। उसने दूसरी सड़क आगरा से चित्तौड़ तक, तीसरी आगरा से दक्षिण की ओर तथा चौथी सड़क लाहौर से मुल्तान तक बनवायी। यात्रियों की सुख-सुविधा के लिए सड़कों के दोनों ओर छायादार पेड़ लगवाए और प्रति 6 किमी. की दूरी पर सरायें बनवायीं । इनमें हिन्दुओं तथा मुसलमानों के रहने तथा भोजन के लिए अलग-अलग प्रबन्ध था।
इनमें सरकार की ओर से सुरक्षा का भी पूरा प्रबन्ध होता था।
(iii) व्यापारियों की सुरक्षा (Safety of Traders)-शेरशाह ने अपने अधिकारियों को
आदेश दिया कि वे व्यापारियों से अच्छा व्यवहार करें और उन्हें किसी भी प्रकार की हानि न
पहुँचायें । व्यापारियों के जान-माल की रक्षा की जिम्मेदारी गाँव के मुखिया या जमींदार पर होती
थी। यदि कोई हानि हो जाए तो उन्हें अपराधी को पेश करना होता था, नहीं तो स्वयं दण्ड भुगतना पड़ता था। व्यापारियों को दी गई सुरक्षा से व्यापार को बहुत बढ़ावा मिला।
(iv) चुंगी-कर सुधार (Reforms in Chungi-tax)-शेरशाह व्यापार और वाणिज्य को
बढ़ावा देने के लिए अनेक अनुचित कर हटा दिए । चुंगी-कर अनेक स्थानों की अपेक्षा केवल
दो स्थानों पर ही लगाया। एक बार देश में माल के आने पर और दूसरी बार उसकी बिक्री पर
ही व्यापारियों को कर देना पड़ता था।
(v) मुद्रा सुधार (Currency Reforms)-शेरशाह ने व्यापार के विकास के लिए मुद्रा प्रणाली
में भी सुधार किया । उससे पहले खोट मिले मिश्रित धातुओं के सिक्के चलते थे। विदेशी व्यापारी
उन्हें लेने से हिचकते थे लेकिन शेरशाह ने शुद्ध सोने, चाँदी तथा ताँबे के मानव सिक्के ढलवाए।
छोटे सिक्के अधिक ढाले गए। इससे साधारण लोगों को लेन-देन में बड़ी सरलता हो गई।
(vi) मानक बाट और माप (Standard Weight and Measures)- शेरशाह ने अपने सारे
राज्य में मानक बाट और माप लागू किए ताकि भाव निश्चित करने में आसानी हो और हिसाब
भी ठीक से लगाया जा सके। इससे भी व्यापार के विकास को बढ़ावा मिला।
प्रश्न 24. अकबर के शासन के आरम्भिक वर्षों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उसने इन आरम्भिक समस्याओं का किस प्रकार समाधान किया?
उत्तर-(i) अकबर को कठिनाइयाँ तो जन्म काल से ही मिली थीं। जब वह पैदा हुआ, तो
माँ-बाप से बिछुड़ कर चाचा कामरान के पास रहा और बाद में वह अपने माँ-बाप से मिला।
1556 ई. में कलानौर में ही उसे गद्दी पर बैठा दिया और उसकी आयु उस समय केवल 13 वर्ष
और 4 महीने ही थी।
(ii) आगरा के पास अफगान अभी भी सबल थे और हेमू के नेतृत्व में अंतिम लड़ाई की
तैयारी कर रहे थे । काबुल पर आक्रमण करके घेरा डाला जा चुका था। पराजित अफगान शासक सिकन्दर सूर शिवालिक की पहाड़ियों में घूम रहा था।
(iii) अकबर के योग्य संरक्षक बैरम खाँ ने सारी कठिनाइयों को परास्त कर दिया। इससे
प्रसन्न होकर अकबर ने उसे खान-ए-खाना की उपाधि दी। मुगल सेना का पुनर्गठन किया गया।
उस समय सबसे अधिक खतरा हेमू से था।
(iv) चुनार से लेकर बंगाल की सीमा तक का प्रदेश शेरशाह के भतीजे आदिलशाह के अधीन
था। हेमू का पराक्रम इसी बात से सिद्ध होता है कि उससे बाईस लड़ाइयाँ लड़ी और एक भी
नहीं हारीं । हेमू ने आगरा जीत लिया था और एक विशाल सेना के साथ दिल्ली की ओर बढ़ा।
(v) हेमू के नेतृत्व में अफगान सेना और मुगल सेना के बीच 5 नवम्बर, 1566 ई. में पानीपत
की दूसरी लड़ाई हुई। अचानक हेमू को तीर लगा और वह बेहोश होकर गिर पड़ा। अफगान
भागने लगे और जीती हुई लड़ाई हार गए।
प्रश्न 25. मनसबदारी प्रथा से क्या अभिप्राय है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन
कीजिए।                                     [B.M.2009A,B.Exam.2011(A)]
उत्तर-मनसबदारी प्रथा का अर्थ (Meaning of Mansabdari System)-‘मनसब’
अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अभिप्राय उपाधि या प्रतिष्ठा है। अकबर ने जिस सैनिक या
असैनिक अधिकारी की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए ‘मनसब’ दिया, उसको मनसबदार कहा जाने लगा।
अकबर की मनसबदारी प्रथा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) मनसबदारी का वर्गीकरण (Classification of MansabdariSystem)-कम-से-कम
दस और अधिक-से-अधिक दस हजार सैनिक एक मनसबदार रख सकता था। सर्वोच्च मनसब
राजकीय परिवार के व्यक्ति को ही मिलता था।
(ii) नियुक्ति आदि (Appointment etc.)-बादशाह स्वयं ही किसी मनसबदार को
नियुक्ति, पदोन्नति या पदावनति कर सकता था।
(iii) जात एवं सवार (Jat and Sawar)-जिस पद में व्यक्ति का पद, स्थान तथा मासिक
वेतन निश्चित होता था, उसे जात कहा जाता था परंतु घुड़सवारों की संख्या के आधार पर ‘सवार’
पद माना जाता था ।
(iv) अच्छा वेतन (Good Salary)-मनसबदारों को उनके पद के अनुसार वेतन मिलता
था। जैसे 100 जात वाले मनसबदार को 500 सवार मिलते थे जबकि 5,000 वाले को 30,000 रु. मिलते थे।
(v) कार्य भार (Work Load)-यह बादशाह की इच्छा पर निर्भर करता था कि वह अमुक
मनसबदार को सैनिक या असैनिक कार्य करने के लिए कहता था । किसी क्षेत्र में उठे विद्रोह को
दबाने या किसी क्षेत्र को जीतने के लिए कहा जाता था।
(vi) घोड़ों को दागने की प्रथा (Marking of the Horses)-अकबर ने घोड़ों को दागने
और सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा चलाई थी। इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा।
(vii) मनसबदारी की जब्ती (Capturing of Mansabdari)-मनसबदार की अचानक
मृत्यु हो जाने पर उसकी मनसब सरकार जब्त कर लेती थी।
(viii) मनसबदारों के मिले-जुले सवार (Mix Sawars of Mansabdars)-पठान, तुर्क,
राजपूत, मुगल आदि सवार मनसबदारों के अधीन होते थे। इससे किसी एक वर्ग के हाथ में शक्ति
केन्द्रित नहीं होती थी।
प्रश्न 26. अकबर द्वारा भारत में सांस्कृतिक एकता स्थापित करने के प्रयासों की समीक्षा
कीजिए।
उत्तर-(i) आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम
खान-ए-खाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका
दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति
उदार हो गया था।
(ii) 1575 ई. में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने
विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर
उतर आते थे। अतः अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कम हो गई।
(iii) वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अत: कट्टर पंथी मुसलमान
उसे काफिर कहने लगे थे।
(iv) 1579 ई. में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित
कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
(v) अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम
से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
(vi) उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दू ग्रंथों को फारसी अनुवाद करवाया । वह धर्म
को राजनीति से दूर रखता था।
(vii) फतेहपुर सीकरी में पंच महल, जोधाबाई का महल एवं बीरबल के महल में भारतीय
संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।
प्रश्न 27. अकबरकालीन युग में नौरत्न पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-अकबर के नौरत्न (Akbar’s Nine gems)-अकबर के पास विद्वानों का समूह था,
जो नवरत्नों के नाम से प्रसिद्ध था जिनमें से प्रसिद्ध विद्वान थे-अबुल फजल, फैजी, रहीम
खान-ए-खाना, टोडरमल, तानसेन और बीरबल । बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता, तत्परता और हंसी
मजाक के लिए प्रसिद्ध था। वक्त एक महान् सेनापति भी था। एक अन्य रेल था, राजा
मानसिंह । वह एक महान् सेनापति होने के अलावा अकबर का अति विश्वसनीय सलाहकार भी
था। कई अन्य विद्वान् भी अकबर के संरक्षण में थे।
तानसेन अकबर के दरबार का एक प्रसिद्ध संगीतकार था। वह अकबर के नवरत्नों में से
एक था। उसने अनेक रागों की गायन शैली में नवीनता का समावेश करके भारतीय संगीत को
समृद्ध किया । राग दरबारी इन रागों में सबसे अधिक लोकप्रिय था जिसकी रचना तानसेन ने विशेष रूप से अकबर के लिए की थी। अकबर के शासन काल में भारत की संगीत कला में फारस की संगीत कला की बहुत-सी विशेषताएँ ली गई थीं। अबुल फजल तानसेन के बारे में लिखता
है-“उस जैसा संगीतकार भारत में आने वाले हजारों वर्षों तक नहीं होगा।”
प्रश्न 28. दक्कन की राजनीतिक गतिविधियों में मलिक अम्बर की भूमिका का वर्णन
कीजिए।
उत्तर-(i) मराठों की सहायता से मलिक अंबर ने मुगलों द्वारा बरार, अहमदनगर और
बालाघाट में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।
(ii) उस समय दक्कन में मुगलों का सेनापति अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना था। मलिक अम्बर
ने उससे मैत्री सम्बन्ध बनाए रखने में ही हित समझा। इससे उसे अपने अंतरिक विद्रोहियों से
निपटने का समय मिल गया।
(iii) अकबर की मृत्यु के बाद मुगलों की स्थिति दक्षिण में कमजोर हो गई । मलिक अम्बर
ने बरार, बालाघाट और अहमदनगर से मुगलों को खदेड़ने के लिए जोरदार आक्रमण किए।
बीजापुर के सुल्तान ने उसकी सहायता की।
(iv) 1610 ई. तक दक्षिण के अधिकांश क्षेत्र मुगलों से मलिक अम्बर ने छीन लिए । जहाँगीर
ने शाहजादा परवेज को भेजा जिसने विवश होकर अपमानजनक ढंग से मलिक अम्बर से संधि
कर ली।
प्रश्न 29. शाहजहाँ के शासन काल में दक्कन में मुगल साम्राज्य के विस्तार का वर्णन
कीजिए।
उत्तर-(i) शाहजहाँ ने शाहजी भोंसले को पंचहजारी का मनसब दिया और उसे पूना के क्षेत्र
में जागीर दी। कई अन्य महत्त्वपूर्ण मराठा सरदार भी शाहजहाँ से आ मिले।
(ii) 1629 ई. में शाहजहाँ ने अहमदनगर के विरुद्ध विशाल सेना भेजी। अहमदनगर राज्य
का बड़ा हिस्सा मुगल सेना ने छीन लिया। बाद में महावत खाँ को दक्कन का वायसराय बनाया
गया। बीजापुर और निजामशाही के संयुक्त विरोध के फलस्वरूप महावत खाँ कठिन परिस्थिति
में फँस गया।
(iii) इसके बाद शाहजहाँ ने दक्कन की समस्या पर स्वयं ध्यान देना ही उचित समझा। एक
बड़ी सेना बीजापुर पर आक्रमण करने के लिए भेज दी गई। आदिलशाह ने मुगलों के प्रभुत्व
को स्वीकार कर लिया और 20 लाख रु. युद्ध के हर्जाने के रूप में देने स्वीकार किए । गोलकुण्डा
मुगलों की सुरक्षा में देना स्वीकार किया।
(iv) गोलकुण्डा के सुल्तान ने खुतबे से ईरान के शाह का नाम हटाकर शाहजहाँ का नाम
शामिल करना स्वीकार किया। मुगल बादशाह को दो लाख हून सालाना देने की व्यवस्था की ।
(v) बीजापुर में महत्त्वाकांक्षी सरदार शाहजी और उसके पुत्र शिवाजी ने तथा गोलकुण्डा में
प्रमुख अमीर मीर जुमला ने अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र बनाने शुरू कर दिये। मुगलों ने देखा कि
दक्कन में शक्ति संतुलन बिगड़ गया । अत: उन्होंने तटस्थता की नीति में ही अपना हित समझा।
प्रश्न 30. चाँद बीबी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-(i) 1519 ई. में अकबर ने कूटनीतिक कार्यवाही आरम्भ की तथा प्रत्येक
दक्कनी राज्य में दूत भेजे और उनसे मुगल सत्ता स्वीकार करने को कहा। 1595 ई. में बुरहान
की मृत्यु के बाद छिड़े निजामशाही सरदारों के आपसी संघर्ष ने अकबर को अवसर दे दिया। उत्तराधिकार का संघर्ष छिड़ गया।
(ii) बुरहान की बहन चाँद वीबी इब्राहिम के चाचा और बीजापुर के भूतपूर्व सुल्तान की विधवा
थी। वह बहुत योग्य स्त्री थी और उसने आदिलशाह के वयस्क होने के दस साल तक शासन
सँभाला था।
(iii) अहमदनगर के अमीरों में आपस में फूट होने के कारण राजधानी तक मुगलों को बहुत
कम विरोध का सामना करना पड़ा। चाँद बीबी ने तरुण सुल्ताना बहादुर के साथ स्वयं को किले
के अंदर बंद कर लिया ! चार महीनों के घेरे के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। शर्तों के अनुसार बरार मुगलों को सौंप दिया गया और शेष क्षेत्र पर फिर सुल्तान बहादुर का अधिकार मान लिया गया। 1596 ई. में यह समझौता हुआ।
(iv) बीजापुर, गोलकुण्डा और अहमदनगर की संयुक्त सेना को 1597 ई. में मुगलों ने बरार
से खदेड़ दिया। बीजापुर और गोलकुण्डा की सेनाएँ पीछे हट गईं परन्तु चाँद बीबी ने फिर समझौते की बात चला दी परन्तु उसके विरोधियों ने उसे विश्वासघाती कहा और उसे मार डाला ।
अहमदनगर पर आक्रमण करके उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया।
प्रश्न 31. ‘दक्कन में वास्तुकला के विकास’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-(i) कुली कुतुबशाह ने कई इमारतें बनवाई। हैदराबाद स्थित चार मीनार उसी ने बनवाई
थी। 48 मीटर ऊँची चार मंजिलों वाली मीनारें हैं। मेहराबों की दोहरी दीवारों पर महीन मीनाकारी
की है। 1591 ई. में इसका निर्माण हुआ।
(ii) उस काल की सर्वाधिक प्रसिद्ध बीजापुरी इमारतें थीं-इब्राहीम रोजा और गोल गुम्बद ।
गोल गुम्बद 1600 ई. में बना था। यह विश्व का सब बड़ा गुम्बद है। विशाल गुम्बद को
सानुपातिक रखने के लिए चार कोनों पर शुंडकारा मीनारें बनाई गई हैं।
(iii) एक कोने में की गई फुसफुसाहट दूसरे कोने में स्पष्ट सुनाई देती है। अतः यह कहा
जा सकता है कि दक्षिण-स्थापत्य कला अपनी चरम सीमा पर थी।
प्रश्न 32. जजिया से आप क्या समझते हैं ? इसको फिर से लागू किये जाने के क्या
कारण थे?
उत्तर-(1) जजिया एक प्रकार का धार्मिक कर था, जो हिन्दुओं और अन्य गैर-मुस्लिमों से
वसूल किया जाता था। उन्हें इस कर के रूप में गैर-मुस्लिम होने का आर्थिक दण्ड ही भरना
पड़ता था। साथ ही उन्हें सैनिक सेवाओं से भी मुक्त कर दिया जाता था। शरिअत के अनुसार
जो भी हिन्दू, किसी मुसलमान शासक के अधीन रहता था उसके लिए यह कर चुकाना अति
आवश्यक था परन्तु अनेक सम्राटों ने इसे हिन्दुओं से लेना बन्द कर दिया । यह कर बच्चों, स्त्रियों, ब्राह्मणों, गुलामों और पागलों से नहीं लिया जाता था। अकबर के पश्चात् जहाँगीर और शाहजहाँ ने भी इस कर को दोबारा लगाने का प्रयत्न नहीं किया।
2.(i) अधिकतर लेखकों का विचार है कि जजिया कर का मुख्य उद्देश्य हिन्दुओं के अन्दर
हीनता की भावना पैदा करना तथा मुसलमानों की स्थिति को ऊँचा उठाना था। दूसरे शब्दों में,
इसका उद्देश्य शासक और शासित में भेद करना था। यह दोनों धर्मों के बीच दीवार थी। हिन्दुओं
को अपने धर्म से नफरत करने तथा गरीब हिन्दुओं को मुसलमान धर्म ग्रहण करने के लिए प्रेरित
करना था।
(ii) कुछ का कहना है कि औरंगजेब ने यह कर जाटों, सतनामियों आदि को दण्ड देने के
लिए लगाया था ताकि वे दुबारा विद्रोह न करें इसलिए यह धार्मिक कारण न होकर राजनीतिक
कारण था।
3.औरंगजेब एक पक्का हिन्दू-विरोधी सम्राट होने पर भी जजिया कर नहीं लगाना चाहता
था, परन्तु कट्टरपंथियों के राजनीतिक विरोध के डर से उसे ऐसा करना पड़ा। धर्मान्ध लोगों के
दबाव और प्रभाव में आकर उसने जजिया कर को 1679 ई. में दुबारा लगा दिया। इससे हिन्दुओं
के विभिन्न वर्ग औरंगजेब के कट्टर दुश्मन बन गए और मुगल साम्राज्य का नाश करने में उन्होंने
कसर नहीं छोड़ी।
औरंगजेब के जजिया कर दोबारा लगाने के विषय में इतिहासकारों में मतभेद है। इस सम्बन्ध
में यदुनाथ सरकार का कहना है, “हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का षड्यन्त्र था।” दूसरी ओर
जाफर और फारूखी का मत है, “जाटों, सतनामियों मराठों आदि के बार-बार विद्रोह के कारण
क्रोधित होकर ही उसने जजिया कर दुबारा लगाया था ताकि हिन्दुओं को दण्डित किया जा सके।” 1679 ई. में इस कर को दुबारा लगाये जाने के बारे में इतिहासकार जाफर और फारूखी के विचार हैं कि औरंगजेब की अपनी स्थिति इतनी मजबूत न थी इसलिए उसने शासक बनने के कुछ समय पश्चात् यह कर दुबारा लगाया।
जजिया कर औरंगजेब ने चाहे बाह्य दबावों के कारण या आंतरिक प्रेरणा के कारण लगाया।
वह इसके लिए बहाना ढूँढ रहा था। कभी जाटों का विद्रोह हो या सतनामियों का, पर वात कुछ
भी रही हो यह कर दुबाना लगाना उसके लिए मुसीबत बन गया। इसके परिणाम भयंकर निकले।
इसी कारण उसके उत्तराधिकारियों ने उसे दोबारा हटा दिया ।
                                         दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
                            (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
(Discuss with examples, the distinctive feature of Mughal Chronicles.)
                                                                                [N.C.E.R.T. T.B.Q.6]
उत्तर-मुगल इतिहास के विशिष्ट अभिलक्षण (Distinctive features of Mughal
Chronicles):
(i) मुगल साम्राज्य और सत्ता (Power and Mughal Empire) के प्रचार-प्रसार का एक
तरीका राजवंशीय इतिहास लिखना-लिखवाना था। मुगल राजाओं ने दरबारी इतिहासकारों को
विवरणों के लेखन का कार्य सौंपा। इन विवरणों में बादशाह के समय की घटनाओं का
लेखा-जोखा दिया गया। इसके अतिरिक्त उनके लेखकों ने शासकों को अपने क्षेत्र के शासन में
मदद के लिए उपमहाद्वीप के अन्य क्षेत्रों से ढेरों जानकारियाँ इकट्ठी की।
(ii) आधुनिक इतिहास एवं मूल-पाठ (Modern Historians and Original Text):
(क) अंग्रेजी में लिखने वाले आधुनिक इतिहासकारों ने मूल-पाठ की इस शैली को
क्रॉनिकल्स (इतिवृत्त/इतिहास) नाम दिया। ये इतिवृत्त घटनाओं का अनवरत कालानुक्रमिक
विवरण प्रस्तुत करते हैं। मुगलों का इतिहास लिखने के इच्छुक किसी भी विद्वान के लिए ये इतिवृत्त अपरिहार्य स्रोत हैं।
(ख) एक ओर तो ये इतिवृत्त मुगल राज्य की संस्थाओं के बारे में तथ्यात्मक सूचनाओं
का खजाना थे, जिन्हें दरबार से घनिष्ठ रूप से जुड़े व्यक्तियों द्वारा काफी मेहनत से एकत्रित एवं
वर्गीकृत किया गया था।
(ग) दूसरी ओर इन मूल-पाठों का उद्देश्य उन आशयों को संप्रेषित करना था जिन्हें मुगल शासक अपने क्षेत्र में लागू करना चाहते थे। अतः ये इतिवृत्त हमें इस बात की एक झलक देते
हैं कि कैसे शाही विचारधाराएँ रची तथा प्रचारित की जाती थीं।
(iii) साम्राज्य और दरबार से जुड़े हुए (Related with Empire and Court)-मुगल
बादशाहों द्वारा तैयार करवाए गए इतिवृत्त साम्राज्य और उसके दरबार के अध्ययन के महत्त्वपूर्ण
स्रोत हैं। ये इतिवृत्त इस साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले सभी लोगों के सामने एक प्रबुद्ध राज्य
के दर्शन की प्रायोजना के उद्देश्य से लिखे गए थे। इसी तरह उनका उद्देश्य उन लोगों को, जिन्होंने
मुगल शासन का विरोध किया था, यह बताना भी था कि उनके सारे विरोधों का असफल होना
नियत है। शासक यह भी सुनिश्चित कर लेना चाहते थे कि भावी पीढ़ियों के लिए उनके शासन
का विवरण उपलब्ध रहे।
(iv) दरबारी लेखक (Court Writers)-मुगल इतिवृत्तों के लेखक निरपवाद रूप से दरबारी
ही रहे। उन्होंने जो इतिहास लिखे उनके केन्द्रबिन्दु में थीं शासक पर बैद्रित घटनाएँ, शासक का
परिवार, दरबार व अभिजात, युद्ध और प्रशासनिक व्यवस्थाएँ। अकबर, शाहजहाँ और आलमगीर (मुगल शासक औरंगजेब की एक पदवी) की कहानियों पर आधारित इतिवृत्तों के शीर्षक अकबरनामा, शाहजहाँनामा, आलमगीरनामा यह संकेत करते हैं कि इनके लेखकों की निगाह में साम्राज्य व दरबार का इतिहास और बादशाह का इतिहास एक ही था।
(v) तुर्की और फारसी का प्रयोग (Use of Turkey and Persian)-मुगल दरबारी
इतिहास फारसी भाषा में लिखे गए थे। दिल्ली के सुल्तानों के काल में उत्तर भारतीय भाषाओं
विशेषकर हिंदवी व इसकी क्षेत्रीय भिन्नताओं के साथ फारसी, दरबार और साहित्यिक रचनाओं
की भाषा के रूप में, खूब पुष्पित-पल्लवित हुई। चूंकि मुगल चग ताई मूल के थे, अतः तुर्की
उनकी मातृभाषा थी। इनके पहले शासक बाबर ने कविताएँ और अपने संस्मरण इसी भाषा में
लिखे थे।
उदाहरण (Example)-अकबरनामा जैसे ग्रंथ मौलिक रूप में ही मुगल इतिहास फारसी में
लिखे गए थे।
(vi) अनुवाद (Translation)-बाबर के संस्मरणों का बाबरनामा नाम से तुर्की से फारसी
में अनुवाद किया गया था। मुगल बादशाहों ने महाभारत और रामायण जैसे संस्कृत ग्रंथों को
फारसी में अनुवादित किए जाने का आदेश दिया । महाभारत का अनुवाद रज्मनामा (युद्धों की
पुस्तक) के रूप में हुआ।
(vii) हस्तलिखित पुस्तकें (Hand written Books or Manuscript)-मुगल भारत की
सभी पुस्तकें पांडुलिपियों के रूप में थीं अर्थात् वे हाथ से लिखी होती थीं। पांडुलिपि रचना का
मुख्य केन्द्र शाही किताबखाना था। हालाँकि किताबखाना शब्द पुस्तकालय के रूप में अनुवादित
किया जा सकता है, यह दरअसल एक लिपिघर था अर्थात् ऐसी जगह जहाँ बादशाह की
पांडुलिपियों का संग्रह रखा जाता तथा नयी पांडुलिपियों की रचना की जाती थी।
(viii) अनेक प्रकार के शिल्पकारों का योगदान (Contribution of various artisan)-
पांडुलिपियों की रचना में विविध प्रकार के कार्य करने वाले बहुत लोग शामिल होते थे। कागज
बनाने वालों की पांडुलिपि के पन्ने तैयार करने, सुलेखकों की पाठ की नकल तैयार करने, कोफ्तगरों की पृष्ठों को चमकाने के लिए, चित्रकारों की पाठ से दृश्यों को चित्रित करने के लिए और जिल्दसाजों की प्रत्येक पन्ने को इकट्ठा कर उसे अलंकृत आवरण में बैठाने के लिए आवश्यकता होती थी। तैयार पांडुलिपि को एक बहुमूल्य वस्तु, बौद्धिक संपदा और सौंदर्य के कार्य के रूप
में देखा जाता था। इस तरह के सौंदर्य को अस्तित्व में लाकर इन पांडुलिपियों के संरक्षक मुगल
बादशाह अपनी शक्ति को दर्शा रहे थे।
(ix) अकबरनामा और बादशाहनामा (Akbarnama and Badshahnama)-(क) महत्त्वपूर्ण
चित्रित मुगल इतिहासों में सर्वाधिक ज्ञात अकबरनामा और बादशाहनामा (राजा का इतिहास) है।
प्रत्येक पांडुलिपि में औसतन 150 पूरे अथवा दोहरे पृष्ठों पर लड़ाई, घेराबंदी, शिकार, इमारत-निर्माण, दरबारी दृश्य आदि के चित्र हैं।
(ख) अकबरनामा के लेखक अबुल फजल का पालन-पोषण मुगल राजधानी आगरा में
हुआ । वह अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद में पर्याप्त निष्णात था। इससे भी अधिक
वह एक प्रभावशाली विवादी तथा स्वतंत्र चिंतक था जिसने लगातार दकियानूसी उलमा के विचारों का विरोध किया। इन गुणों से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। उसने अबुल फजल को अपने सलाहकार और अपनी नीतियों के प्रवक्ता के रूप में बहुत उपयुक्त पाया । बादशाह का एक मुख्य उद्देश्य राज्य को धार्मिक रूढ़िवादियों के नियंत्रण से मुक्त करना था। दरबारी इतिहासकार के रूप में अबुल फजल ने अकबर के शासन से जुड़े विचारों को न केवल आकार दिया बल्कि उनको स्पष्ट रूप से व्यक्त भी किया।
(ग) अकबरनामा और बादशाहनामा के संपादित पाठान्तर सबसे पहले एशियाटिक सोसाइटी
द्वारा उन्नीसवीं शताब्दी में प्रकाशित किए गए। वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद बीसवीं शताब्दी
के आरंभ में हेनरी बेवरिज द्वारा अकबरनामा का अंग्रेजी अनुवाद किया गया। बादशाहनामा के
केवल कुछ ही अंशों का अभी तक अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है, इसका मूल पाठ अपने संपूर्ण रूप
में आज भी अनुवाद किए जाने की प्रतीक्षा में है।
प्रश्न 2. इस अध्याय में दी गई दृश्य-सामग्री किस हद तक अबुल फजल द्वारा किए
गए ‘तस्वीर’ के वर्णन (स्रोत) से मेल खाती है ?            [N.C.ER.T. TB.Q.7]
(To what extent do you think the visual material presented in this chapter
corresponds with Abul Fazl’s description of the taswir (source)?
उत्तर-I. पर्याप्त सीमा तक अबुल फजल द्वारा ऐतिहासिक स्रोत नं-1(अपनी पाठ्यपुस्तक
पृष्ठ 229) में तस्वीर की प्रशंसा में अबुल फजल के दिए गए विचार इस अध्याय में दृश्य
सामग्री से मेल खाती है।
अबुल फजल चित्रकारी को बहुत सम्मान देता था-
1. किसी भी चीज का उसके जैसा ही रेखांकन बनाना तसवीर कहलाता है । अपनी युवावस्था
के एकदम शुरुआती दिनों से ही महामहिम ने इस कला में अपनी अभिरुचि व्यक्त की है। वे इसे
अध्ययन और मनोरंजन दोनों का ही साधन मानते हुए इस कला को हरसंभव प्रोत्साहन देते हैं।
2. चित्रकारों की एक बड़ी संख्या इस कार्य में लगाई गई है। हर हफ्ते शाही कार्यशाला
के अनेक निरीक्षक और लिपिक बादशाह के सामने प्रत्येक कलाकार का कार्य प्रस्तुत करते हैं और महामहिम प्रदर्शित उत्कृष्टता के आधार पर ईनाम देते तथा कलाकारों के मासिक वेतन में वृद्धि करते हैं-अब सर्वाधिक उत्कृष्ट चित्रकार मिलने लगे हैं और बिहजाद जैसे चित्रकारों की अत्युत्तम कलाकृतियों को तो उन यूरोपीय चित्रकारों के उत्कृष्ट कार्यों के समकक्ष ही रखा जा सकता है जिन्होंने विश्व में व्यापक ख्याति अर्जित कर ली है।
3. ब्योरे की सूक्ष्मता, परिपूर्णता और प्रस्तुतिकरण की निर्भीकता जो अब चित्रों में दिखाई
पड़ती है, वह अतुलनीय है। यहाँ तक कि निर्जीव वस्तुएँ भी प्राणवान प्रतीत होती हैं।
4. सौ से अधिक चित्रकार इस कला के प्रसिद्ध कलाकार हो गए हैं। हिंदू कलाकारों के
लिए यह बात खासतौर पर सही है। उनके चित्र वस्तुओं की हमारी परिकल्पना से कहीं परे हैं।
वस्तुतः पूरे विश्व में कुछ लोग ही उनके समान पाए जा सकते हैं।
II. मुगल सम्राटों द्वारा चित्रकारों को संरक्षण और उनके द्वारा अदा की गई भूमिका,
उनकी स्थिति एवं गतिविधियाँ (The role. position activities and pattern given to
the painters by the Mughal emperor)-
(1) चित्रकारों का सहयोग या प्रवेश (Entry or Cooperation of Painters)-मुगल
पांडुलिपियों की रचना में चित्रकार भी शामिल थे। एक मुगल बादशाह के शासन की घटनाओं
का विवरण देने वाले इतिहासों में लिखित पाठ के साथ ही उन घटनाओं को चित्रों के माध्यम
से दृश्य रूप में भी वर्णित किया जाता था। जब किसी पुस्तक में घटनाओं अथवा विषयों को
दृश्य रूप में व्यक्त किया जाना होता था तो सुलेखक उसके आस-पास के पृष्ठों को खाली छोड़
देते थे। चित्रकार शब्दों में वर्णित विषय को अलग से चित्र रूप में उतारकर वहाँ संलग्न कर
देते थे। ये लघुचित्र होते थे जिन्हें पांडुलिपि के पृष्ठों पर आसानी से लगाया और देखा जा सकता था।
(2) चित्रों को योगदान (Contribution of paintings)-चित्रों को न केवल किसी पुस्तक
के सौंदर्य को बढ़ावा देने वाला बल्कि उन्हें तो, लिखित माध्यम से राजा और राजा की शक्ति
के विषय में जो बात कही न जा सकी हों, ऐसे विचारों के संप्रेषण का भी एक सशक्त माध्यम
माना जाता था। इतिहासकार अबुल फजल ने चित्रकारी का एक ‘जादुई कला’ के रूप में वर्णन
किया है। उसकी राय में यह कला किसी निर्जीव वस्तु को भी इस रूप में प्रस्तुत कर सकती
है कि जैसे उसमें जीवन हो।
(3) उलेमाओं से चित्रकारों का संघर्ष (Conflicts of Painters with Ulemas)-बादशाह,
उसके दरबार तथा उसमें हिस्सा लेने वाले लोगों का चित्रण करने वाले चित्रों की रचना को लेकर
शासकों और मुसलमान रूढ़िवादी वर्ग के प्रतिनिधियों अर्थात् उलमा के बीच निरंतर तनाव बना
रहा । उलमा ने कुरान के साथ-साथ हदीस, जिसमें पैगम्बर मुहम्मद के जीवन से एक ऐसा ही
प्रसंग वणित है, में प्रतिष्ठापित मानव रूपों के चित्रण पर इस्लामी प्रतिबंध का आह्वान किया।
इस प्रसंग में पैगम्बर साहब को प्राकृतिक तरीके से जीवित रूपों के चित्रण की मनाही करते हुए
उल्लिखित किया गया है क्योंकि ऐसा करने से यह लगता था कि कलाकार रचना की शक्ति को
अपने हाथ में लेने की कोशिश कर रहा है। यह एक ऐसा कार्य था जो केवल ईश्वर का ही था।
(4) शरिया व्याख्या में परिवर्तन (Changes in Explanation of Shariyas)-(क)
समय के साथ शरिया की व्याख्याओं में भी बदलाव आया। विभिन्न सामाजिक समूहों ने इस्लामी
परंपरा के ढाँचे की अलग-अलग तरीकों से व्याख्या की। प्रायः प्रत्येक समूह ने इस परंपरा की
ऐसा व्याख्या प्रतिपादित की जो उनकी राजनीतिक आवश्यकताओं से सबसे ज्यादा मेल खाती थी।
जिन शताब्दियों के दौरान साम्राज्य निर्माण हो रहा था उस समय कई एशियाई क्षेत्रों के शासकों
ने नियमित रूप से कलाकारों को उनके चित्र तथा उनके राज्य के जीवन के दृश्य चित्रित करने
के लिए नियुक्त किया। उदाहरण के लिए, ईरान के सफावी राजाओं ने दरबार में स्थापित
कार्यशालाओं में प्रशिक्षित उत्कृष्ट कलाकारों को संरक्षण प्रदान किया। बिहजाद जैसे चित्रकारों
के नाम ने सफावी दरवार की सांस्कृतिक प्रसिद्धि को चारों ओर फैलाने में बहुत योगदान दिया।
(ख) ईरान से भी कलाकार मुगलकालीन भारत आने में सफल हुए। कुछ को मुगल दरबार
में लाया गया जैसे मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद को बादशाह हुमायूँ को दिल्ली तक साथ देने के लिए कहा गया। अन्य ने संरक्षण और प्रतिष्ठा के अवसरों की तलाश में प्रवास किया।
(ग) बादशाह और रूढ़िवादी मुसलमान विचारधारा के प्रवक्ताओं के बीच जीवधारियों के
दृश्य निरूपण पर मुगल दरबार में तनाव बना हुआ था। अकबर का दरबारी इतिहासकार अबुल
फजल वादशाह को यह कहते हुए उद्धृत करता है, “कई लोग ऐसे हैं जो चित्रकला से घृणा करते
हैं पर मैं ऐसे व्यक्तियों को नापसंद करता हूँ। मुझे ऐसा लगता है कि कलाकार के पास खुदा
को पहचानने का बेजोड़ तरीका है। चूंँकि कहीं न कहीं उसे यह महसूस होता है कि खुदा की
रचना को वह जीवन नहीं दे सकता……”
प्रश्न 3. मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे ? बादशाह के साथ उनके
‘संबंध’ किस तरह बने?                                       [N.C.E.R.T. T.B.Q.8]
(What were the distinctive features of the Mughal nobility ? How was
their relationship with the emperor shaped ?)
उत्तर-(i) मुगल अभिजात वर्ग की चारित्रिक विशेषताएँ एवं सम्राट के साथ उनके संबंध
(Characteristics of Mughal Nobility and their relationship with their emperor)
मुगल राज्य का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ इसके अधिकारियों का दल था जिसे इतिहासकार सामूहिक
रूप से अभिजात-वर्ग भी कहते हैं। अभिजात-वर्ग में भर्ती विभिन्न नृ-जातीय तथा धार्मिक समूहों से होती थी। इससे यह सुनिश्चित हो जाता था कि कोई भी दल इतना बड़ा न हो कि वह राज्य की सत्ता को चुनौती दे सके। मुगलों के अधिकारी-वर्ग को गुलदस्ते के रूप में वर्णित किया जाता था जो वफादारी से बादशाह के साथ जुड़े हुए थे। साम्राज्य के निर्माण के आरंभिक चरण से ही तूरानी और ईरानी अभिजात अकबर की शाही सेवा में उपस्थित थे। इनमें से कुछ हुमायूँ के
साथ भारत चले आए थे। कुछ अन्य बाद में मुगल दरबार में आए थे।
(ii) राजपूतों एवं भारतीय मुसलमानों का प्रवेश (Entry of Rajputs and Originally
Indian Muslims)-1560 से आगे भारतीय मूल के दो शासकीय समूहों-राजपूतों व भारतीय
मुसलमानों (शेखजादाओं) ने शाही सेवा में प्रवेश किया। इनमें नियुक्त होने वाला प्रथम व्यक्ति
एक राजपूत भुखिया अंबेर का राजा भारमल कछवाहा था जिसकी पुत्री से अकबर का विवाह
हुआ था। शिक्षा और लेखाशास्त्र की ओर झुकाव वाले हिंदू जातियों के सदस्यों को भी पदोन्नति
किया जाता था। इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण अकबर के वित्तमंत्री टोडरमल का है जो खत्री जाति का था।
(iii) जहाँगीर के काल में (During the reign of Jahangir)-जहाँगीर के शासन में
ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए । जहाँगीर की राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रानी नूरजहाँ (1645) ईरानी थी। औरंगजेब ने राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। फिर भी शासन में अधिकारियों के समूह में मराठे अच्छी खासी संख्या में थे।
(iv) शाहजहाँ के काल में अभिजात वर्ग (Nobility during thereignof Shahjahan)-
चंद्रभान ब्राह्मण ने शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान लिखी अपनी पुस्तक चार चमन (चार बाग)
में मुगल अभिजात-वर्ग का इस प्रकार वर्णन किया है–
(क) मिश्रित स्वरूप (Mixture form)-विभिन्न जातियों (अरब, ईरानी, तुर्की, ताजिक,
कुर्द, ततार, रूसी, अविसीनियाई इत्यादि) और देशों (तुर्की, मिस्र, सीरिया, इराक, अरब, ईरानी,
खुरासान, तूरान) के लोगों, वस्तुतः सभी समाजों से विभिन्न समूहों और श्रेणियों के लोगों को शाही दरबार में आश्रय प्राप्त हुआ।
(ख) भारत से विभिन्न समूहों, ज्ञान और शिल्प में निपुण व्यक्तियों के साथ-साथ योद्धाओं,
उदाहरण के लिए बुखारी और भक्करी, विशुद्ध वंशों के सैय्यद, अभिजात वंश के शेखजादा,
लोधी, रोहिल्ला, युसुफजई जैसी अफगान जनजातियों, राणा, राजा, राव व रायाँ अर्थात् राठौर,
सिसोदिया, कछवाड़ा, हाड़, गोड़, चौहान, पँवार, भादुरिया, सोलंकी, बुंदेला, शेखावत नाम से
संबोधित की जाने वाली राजपूत जातियों व घक्कर, खोकर, बलूची और अन्य सभी भारतीय
जनजातियाँ जो तलवार चलाती थीं व 100 से 7000 जात के मनसब, घास के मैदानों और पर्वतीय भागों से भू-स्वामी, कर्नाटक, बंगाल, असम, उदयपुर, श्रीनगर, कुमायूँ, तिब्बत व किश्तवाड़ इत्यादि क्षेत्रों से सभी जनजातियों और समूहों को शाही दरबार को चूमने (में आने) अथवा रोजगार पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
(v) मनसबदारी प्रथा और अभिजात वर्ग (Mansabdari and Nobility)-सभी सरकारी
अधिकारियों के दर्जे और पदों में दो तरह के संख्या-विषयक ओहदे होते थे : ‘जात’ शाही
पदानुक्रम में अधिकारी (मनसबदार) के पद और वेतन का सूचक था और ‘सवार’ यह सूचित
करता था कि उससे सेवा में कितने घुड़सवार रखना अपेक्षित था। सत्रहवीं शताब्दी में 1,000
या उससे ऊपर जात वाले मनसबदार अभिजात (उमरा जो कि अमीर का बहुवचन है) कहे गए ।
(vi) अभिजातों के विभिन्न कार्य (Different functions of nobility)-सैन्य अभियानों
में ये अभिजात अपनी सेनाओं के साथ भाग लेते थे तथा प्रांतों में वे साम्राज्य के अधिकारियों
के रूप में भी कार्य करते थे। प्रत्येक सैन्य कमांडर घुड़सवारों को भर्ती करता था, उन्हें हथियारों
आदि से लैस करता था और उन्हें प्रशिक्षण देता था। घुड़सवारी फौज मुगल फौज का अपरिहार्य
अंग थी। घुड़सवार सिपाही शाही निशान से पार्श्वभाग में दागे गए उत्कृष्ट श्रेणी के घोड़े रखते
थे। निम्नतम ओहदों के अधिकारियों को छोड़कर बादशाह स्वयं सभी अधिकारियों के ओहदों,
पदवियों और अधिकारिक नियुक्तियों के बदलाव का पुनरीक्षण करता था। मनसब प्रथा की
शुरुआत करने वाले अकबर ने अपने अभिजात-वर्ग के कुछ लोगों को शिष्य (मुरीद) की तरह
मानते हुए उनके साथ आध्यात्मिक रिश्ते भी कायम किए।
(vii) उच्चतम प्रतिष्ठा और विभिन्न मंत्रियों के पद (Highest prestige and different
post of Ministers or highest ofticials)-अभिजात-वर्ग के सदस्यों के लिए शाही सेवा
शक्ति, धन तथा उच्चतम प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक जरिया थी। सेवा में आने का इच्छुक व्यक्ति
एक अभिजात के जरिए याचिका देता था जो बादशाह के सामने तजवीज प्रस्तुत करता था। अगर याचिककर्ता को सुयोग्य माना जाता था तो उसे मनसब प्रदान किया जाता था। मीरबख्शी
(उच्चतम वेतनदाता) खुले दरबार में बादशाह के दाएँ ओर खड़ा होता था तथा नियुक्ति और
पदोन्नति के सभी उम्मीदवारों को प्रस्तुत करता था जबकि उसका कार्यालय उसकी मुहर व हस्ताक्षर के साथ-साथ बादशाह की मुहर व हस्ताक्षर वाले आदेश तैयार करता था। केंद्र में दो अन्य महत्त्वपूर्ण मंत्री थे : दीवान-ए-आला (वित्तमंत्री) और सद्र-उस-सुदुर (मदद-ए-माश अथवा
अनुदान का मंत्री और स्थानीय न्यायाधीशों अथवा काजियों की नियुक्ति का प्रभारी)। ये तीनों
मंत्री कभी-कभी इकट्ठे एक सलाहकार निकाय के रूप में काम करते थे लेकिन ये एक-दूसरे
से स्वतंत्र होते थे। अकबर ने इन तथा अन्य सलाहकारों के साथ मिलकर साम्राज्य की प्रशासनिक, राजकोषीय व मौद्रिक संस्थाओं को आकार प्रदान किया।
(viii) अभिजात वर्ग सम्राट् के प्रति सम्मान और सुरक्षा (Nobility honour to
emperor and security)-दरबार में नियुक्त (तैनात-ए-रकाब) अभिजातों का एक ऐसा सुरक्षित दल था जिसे कभी भी प्रांत या सैन्य अभियान में प्रतिनियुक्त किया जा सकता था। वे
प्रतिदिन दो बार सुबह व शाम को सार्वजनिक सभा भवन में बादशाह के प्रति आत्मनिवेदन करने
के कर्त्तव्य से बंधे थे। दिन-रात बादशाह और उसके घराने की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी वे उठाते थे।
प्रश्न 4. राजस्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्वों की पहचान कीजिए।
(Identify the elements that went into the making of the Mughal ideal of
Kingship.)                                              [N.C.E.R.T. T.B.Q.9]
उत्तर-राजस्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्त्व (Elements of formation
of Mughal Kingship’s Ideal):
(i) एक दैवीय प्रकाश (ADivine Light):
(क) दरबारी इतिहासकारों ने कई साक्ष्यों का हवाला देते हुए यह दिखाया कि मुगल राजाओं
को सीधे ईश्वर से शक्ति मिली थी। उनके द्वारा वर्णित दंतकथाओं में से एक मंगोल रानी
अलानकुआ की कहानी है जो अपने शिविर में आराम करते समय सूर्य की एक किरण द्वारा गर्भवती हुई थी। उसके द्वारा जन्म लेने वाली संतान पर इस दैवीय प्रकाश का प्रभाव था। इस प्रकार पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह प्रकाश हस्तांतरित होता रहा।
(ख) दैविक प्रकाश की महत्ता (Importance of Divine Light)-ईश्वर (फर-ए-इजादी)
से निःसृत प्रकाश को ग्रहण करने वाली चीजों के पदानुक्रम में मुगल राजत्व को अबुल फजल
ने सबसे ऊँचे स्थान पर रखा । इस विषय में वह प्रसिद्ध ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1911 में मृत) के विचारों से प्रभावित था जिसने सर्वप्रथम इस प्रकार का विचार प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार एक पदानुक्रम के तहत यह दैवीय प्रकाश राजा में संप्रेषित होता था जिसके बाद राजा अपनी प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का स्रोत बन जाता था।
(ii) सुलह-ए-कुल : एकीकरण का एक स्रोत (Sulah-Kul as a source of integration)-
(क) मुगल इतिवृत्त साम्राज्य को हिंदुओं, जैनों, जरतुश्तियों और मुसलमानों जैसे अनेक
भिन्न-भिन्न नृजातीय और धार्मिक समुदायों को समाविष्ट किए हुए साम्राज्य के रूप में प्रस्तुत
करते हैं। सभी तरह की शांति और स्थायित्व के स्रोत रूप में बादशाह सभी धार्मिक और नृजातीय समूहों से ऊपर होता था, इनके बीच मध्यस्थता करता था, तथा यह सुनिश्चित करता था कि न्याय और शांति बनी रहे। अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
(ख) महत्त्व (Importance)-अबुल फजल सुलह-ए-कुल (पूर्ण शांति) के आदर्श को
प्रबुद्ध शासन की आधारशिला बताता है। सुलह-ए-कुल में यूँ तो सभी धर्मों और मतों को
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी किंतु उसकी एक शर्त थी कि वे राज्य-सत्ता को क्षति नहीं पहुँचाएँगे
अथवा आपस में नहीं लड़ेंगे।
(ग) सभी के लिए शांति की नीति को लागू करना (Implement of policy of peace
for all)-सुलह-ए-कुल का आदर्श राज्य नीतियों के जरिए लागू किया गया। मुगलों के अधीन
अभिजात-वर्ग मिश्रित किस्म का था-अर्थात् उसमें ईरानी, तूरानी, अफगानी, राजपूत, दक्खनी सभी शामिल थे। इन सबको दिए गए पद और पुरस्कार पूरी तरह से राजा के प्रति उनकी सेवा और निष्ठा पर आधारित थे। इसके अलावा, अकबर ने 1563 में तीर्थयात्रा कर तथा 1564 में जजिया को समाप्त कर दिया क्योंकि यह दोनों कर धार्मिक पक्षपात पर आधारित थे। साम्राज्य के
अधिकारियों को प्रशासन में सुलह-ए-कुल के नियम का अनुपालन करने के लिए निर्देश दे दिए गए।
(घ) पूजा-स्थल (Places of worship)-सभी मुगल बादशाहों ने उपासना-स्थलों के
निर्माण व रख-रखाव के लिए अनुदान दिए । यहाँ तक कि युद्ध के दौरान जब मंदिरों को नष्ट
कर दिया जाता था तो बाद में उनकी मरम्मत के लिए अनुदान जारी किए जाते थे। ऐसा हमें
शाहजहाँ और औरंगजेब के शासन में पता चलता है, हालाँकि औरंगजेब के शासनकाल में
गैर-मुसलमान प्रजा पर जजिया फिर से लगा दिया गया।
(iii) सामाजिक अनुबंध के रूप में न्यायपूर्ण प्रभुसत्ता (Sovereignful of justice in
the form of social contract):
(क) अबुल फजल ने प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबंध के रूप में परिभाषित किया है।
वह कहता है कि बादशाह अपनी प्रजा के चार सत्त्वों की रक्षा करता है-जीवन (जन), धन
(माल), सम्मान (नामस) और विश्वास (दीन) और इसके बदले में वह आज्ञापालन तथा
संसाधनों में हिस्से की माँग करता है। केवल न्यायपूर्ण संप्रभु ही शक्ति और दैवीय मार्गदर्शन के
साथ इस अनुबंध का सम्मान कर पाते थे।
(ख) न्याय के विचार के दृश्य रूप में निरूपण हेतु अनेक प्रतीकों की रचना की गई । न्याय
के विचार को मुगल राजतंत्र में सर्वोत्तम सद्गुण माना गया । कलाकारों द्वारा प्रयुक्त सर्वाधिक
पसंदीदा प्रतीकों में से एक था एक दूसरे के साथ चिपटकर शांतिपूर्वक बैठे हुए शेर और बकरी
(या फिर गाय ) । इसका उद्देश्य राज्य को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में दिखाना था जहाँ दुर्बल तथा
सबल सभी परस्पर सद्भाव से रह सकते थे। सचित्र बादशाहनामा के दरबारी दृश्यों में ऐसे प्रतीक
का अंकन बादशाह के सिंहासन के ठीक नीये एक आले में हुआ है।
प्रश्न 5. “शेरशाह सूरी एक महान् प्रशासक था।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
अथवा, शेरशाह के प्रशासनिक सुधारों का विवेचन कीजिए।
अथवा, शेरशाह के प्रशासनिक सुधारों का वर्णन कीजिए । वाणिज्य और व्यापार को
बढ़ावा देने के लिए उसने क्या उपाय किए ?
उत्तर-“यदि शेरशाह कुछ काल और जीता रहता या उसके उत्तराधिकारी उसके समान योग्य
होते तो महान् मुगल पुनः भारतीय इतिहास के रंगमंच पर नहीं आ सकते थे।”
                                                                                         -Dr.V.A.Smith
शेरशाह के शासन प्रबंध को जानने के लिए निम्न तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है-
(i) केन्द्रीय शासन (Central Administration)-राज्य की समस्त शक्तियाँ शासक के
हाथों में होती थीं। राज्य के काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसको भिन्न-भिन्न भागों
में बाँट दिया गया था। प्रत्येक विभाग का काम एक मंत्री के हाथ में होता था जिसकी सहायता
के लिए कर्मचारी होते थे। मंत्री और अधिकारी पूर्णतः राजा के अधीन होते थे। शेरशाह स्वयं
हर विभाग का काम देखता था।
(ii) प्रान्तीय शासन (Provincial Administration)-शेरशाह ने अपने राज्य को 47
सरकारों (प्रांतों) में बाँट रखा था ‘सरकार’ का मुख्य अधिकारी शिकदार कहलाता था। प्रत्येक
सरकार कई परगनों में बँटी होती थी। परगने भी कई छोटी-छोटी इकाइयों में बँटे हुए थे जिनका
प्रबन्ध पंचायतें करती थीं। समय-समय पर अधिकारियों का स्थानान्तरण कर दिया जाता था
जिससे कि वे अपने क्षेत्र में अपने प्रभाव का अनुचित लाभ न उठा सकें और जनता को परेशान
न कर सकें। घूस लेने वाले और अयोग्य अधिकारियों के साथ कठोरता का व्यवहार किया जाता
था।
(iii) भूमि सुधार (Land Reforms)-शेरशाह ने सारी कृषि भूमि को नाप करवाकर,
किसानों ने लगान उपज का lek 3 भाग लिया। उसने रैयतवाड़ी व्यवस्था को लागू करवाया।
किसान लगान नकद या अनाज के रूप में दे सकते थे। दैवी विपत्ति के समय किसानों को आर्थिक सहायता दी जाती थी। जब कभी सेना के संचालन से खेती को हानि पहुँचती थी तो राज्य उसका हर्जाना देता था।
(iv) सैनिक सुधार (Military Reforms)-शेरशाह स्वयं सैनिकों की भर्ती करता था तथा
उन्हें राज्य के प्रति निष्ठा की शपथ दिलवाता था। उसने सैनिकों का हुलिया (चेहरा) लिखने
और घोड़े दामने की प्रथा चलाई जिससे कि युद्ध के समय अयोग्य और निकम्मे सैनिक और खराब नस्ल के घोड़े न प्रवेश पा सके। वह सैनिकों को नकद वेतन देता था। उसकी सेना में 25,000 पैदल, डेढ़ लाख घुड़सवार तथा पाँच सौ हाथी थे।
(v) न्याय और पुलिस व्यवस्था (Justice and Police system)-वह बिना जाति, धर्म,
वर्ण या वर्ग भेद के न्याय करता था। दण्ड व्यवस्था कठोर थी। दण्ड देने में वह अपने पुत्र
को भी नहीं छोड़ता था। चोरी, डाका, घूस आदि के अपराध में फाँसी दे दी जाती थी। यदि
किसी पुलिस अधिकारी के क्षेत्र में चोरी हो जाती थी तो आठ दिनों में उसे चोरी का पता लगाना
पड़ता था अन्यथा उसे स्वयं हर्जाना देना पड़ता था। इससे भी अपराध कम हो गये क्योंकि पुलिस
किसी तरह के अपराधी को पनपने का मौका नहीं देती थी।
(vi) जासूसी व्यवस्था (Spy System)-विद्रोहियों, षड्यंत्रकारियों आदि का पता लगाना
अब आसान हो गया था। सारे राज्य में जासूसों का जाल फैला हुआ था।
(vii) सड़कें (Roads)-देश की अर्थव्यवस्था, सैनिकों की गतिविधियों, यात्रियों और
व्यापारियों की सुविधा के लिए बड़ी-बड़ी सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये गये तथा सराएँ भी बनवाई गई। उसने चार प्रसिद्ध सड़कें बनवाई जिनमें से ग्रांड ट्रंक रोड आज भी कलकत्ता (कोलकाता) से पेशावर तक जाती है।
(viii) डाक व्यवस्था (Postal System)-प्रत्येक सराय पर दो घुड़सवार होते थे जो डाक
लगाने और ले जाने का प्रबन्ध करते थे। इसे ‘डाक चौकी’ कहा जाता था, जो आजकल के डाक
घर जैसे थे। इससे समाचार एक स्थान से दूसरे स्थान पर आ जा सकते थे।
(ix) मुद्रा सुधार और सार्वजनिक हित के कारण (Coin Reform and Work of
General Welfare)-उसने शुद्ध सोने और चाँदी के सिक्के चलाये। इससे आंतरिक और बाह्य
व्यापार में सुविधा हो गई।
“शेरशाह और अकबर में पहले के किसी भी शासक की तुलना में कानून-निर्माण और प्रजा
की भलाई की भावना अधिक थी।”                                                  ―Roskin
प्रश्न 6. पानीपत के प्रथम युद्ध के परिणाम एवं महत्त्व बताइये।
उत्तर-पानीपत की लड़ाई चाहे एक दिन में समाप्त हो गई थी किन्तु भारत के इतिहास में
यह लड़ाई निर्णायक समझी जाती है। इसके परिणाम इस प्रकार थे-
(i) लोधी वंश की सत्ता का अन्त (End of Lodhi Empire)-पानीपत की पहली लड़ाई
निर्णायक थी। इसमें लोधी सुल्तान इब्राहीम लड़ता हुआ मारा गया। उसकी मृत्यु के साथ ही भारत में लोधी वंश की सत्ता का अन्त हो गया ।
(ii) भारत में मुगल वंश की स्थापना (Establishment of Mughal dynasty)-पानीपत
के युद्ध को जीतकर बाबर ने भारत में मुगल राजवंश की स्थापना की। इस राजवंश ने लगभग
दो शताब्दी तक भारत पर शासन किया।
(iii) अफगान शक्ति पर घातक प्रभाव (Bad effects on Afghan power)-लोधी
अफगान थे । पानीपत की लड़ाई में उनका भयंकर विनाश हुआ था। लेनपूल के अनुसार, “दिल्ली
के अफगाने के लिए पानीपत का युद्ध एक कयामत थी।” इससे उनके शासन और शक्ति का
अन्त हो गया लेकिन कुछ इतिहासकारों का मत है कि पानीपत के युद्ध में अफगान शक्ति का
अन्त नहीं हुआ था। वह केवल झुलस गई थी। शेरशाह के रूप में कुछ समय बाद उसका फिर
उदय हो गया।
(iv) बाबर की आर्थिक स्थिति का सुधार (Improvement of Babar’s in Economic
Condition)-बाबर को दिल्ली सुल्तानों का विशाल घोष और प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा मिला । अब
बाबर की आर्थिक दशा काफी सुधर गयी क्योंकि अब वह एक ऐसे राज्य का स्वामी बन गया
था जिसकी आय उसके अनुमान के अनुसार लगभग दो करोड़ रुपये वार्षिक थी।
(v) बाबर के प्रभाव और गौरव में वृद्धि (Increasing effect of Babar)-पानीपत की
विजय से बाबर लगभग सारे उत्तरी भारत का शासक बन गया था। उसके वंशज केवल मिर्जा
कहलाते थे पर अब उसने अपने को भारत का बादशाह घोषित कर दिया था। रशबुक विलियम
के अनुसार, “अब उसके इधर-उधर भटकने के दिन समाप्त हो गए थे और उसके प्राणों की
रक्षा के लिए या सिंहासन की सुरक्षा के लिए चिन्तित नहीं रहना पड़ता था।” इस प्रकार एक
महान् विजेता के रूप में प्रसिद्ध तथा समृद्ध देश पर अधिकार स्थापित होने से बाबर के प्रभाव
तथा गौरव में बहुत वृद्धि हुई।
(vi) नवयुग का आरम्भ (Beginning of New Era)-पानीपत की विजय के भारत के
इतिहास में एक नये युग का आरम्भ हुआ। भारत में दिल्ली सुल्तान के स्थान पर मुगल साम्राज्य
की स्थापना हुई। मुगल शासकों ने अपनी धार्मिक उदारता की नीति से देश में शान्ति और व्यवस्था स्थापित की। उन्होंने खिलाफत से अपने राजनीतिक सम्बन्ध तोड़ लिये।
प्रश्न 7.पानीपत के युद्ध में विजय प्राप्त करने में बाबर की कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर-बाबर ने 1526 ई. में पानीपत की लड़ाई में इब्राहीम लोधी को हराकर दिल्ली और
आगरा पर अधिकार कर लिया था लेकिन इब्राहीम सेना की पराजय बाबर के कार्य का आरम्भ
मात्र थी। अभी वह भारत का शासक तो क्या उत्तरी भारत का राजा भी नहीं कहा जा सकता
था। उसके सामने अभी अनेक कठिनाइयाँ थीं। जैसे-
(i) स्थानीय जनता में मुगलों के प्रति घृणा एवं शत्रुता की भावना थी। वे बाबर को चंगेज
और तैमूर की तरह क्रूर आक्रमणकारी मानते थे। आगरा पहुँचने पर बाबर ने देखा कि लोग,
भयभीत होकर वहाँ से भाग गए थे। मनुष्यों के लिए अन्न एवं पशुओं के लिए चारा मिलना
कठिन हो गया था।
(ii) भारत की गर्म जलवायु की मुगल सैनिकों के अनुकूल नहीं थी। बाबर के सैनिक अब
लम्बे संघर्ष के विरुद्ध थे और भारत में अधिक देर ठहरना नहीं चाहते थे।
(iii) धन की कमी बाबर के लिए बड़ी समस्या थी निस्सन्देह बाबर को आगरा और दिल्ली
राजकोष से अपार धन मिला था लेकिन अधिक उदारता से दान देने एवं अपव्यय से उसने शीघ्र ही सारा धन लुटा दिया था।
(iv) अफगान विरोध अभी समाप्त नहीं हुआ था। बड़े-बड़े अफगान राजपूत सरदारों ने
स्वतन्त्र राज्यों (सम्भल, मेवात, कालपी, कन्नौज आदि) की स्थापना कर ली थी। वे मुगलों के
कट्टर शत्रु थे। इनका दमन किए बिना बाबर निश्चिन्त नहीं हो सकता था।
(v) राजपूत सरदार भी बाबर से लोहा लेने के लिए तैयार थे । वे राणा सांगा के नेतृत्व में
दिल्ली राज्य पर भी अधिकार करना चाहते थे। राजपूतों की वीरता की कहानियाँ सुनकर बाबर
के सैनिकों का उत्साह हीन हो गया था।
लेकिन बाबर ने प्रत्येक समस्या का धैर्य से सामना किया और उसे सुलझाया । उसने लोगों
की शत्रुता और घृणा की भावना को उदारता की नीति से समाप्त करने का प्रयास किया। उसने
धीरे-धीरे लोगों में विश्वास स्थापित किया कि वह एक दयालु शासक है लुटेरा नहीं। उन अफगान
सरदारों के प्रति उदार नीति अपनाई जिन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। जो इस प्रकार
वश में नहीं आये उनका बलपूर्वक दमन किया। उसे अपने सैनिकों को उत्साहित करने के लिए
ओजस्वी भाषण दिया तथा शराब न पीने की शपथ ली। उसने व्यापार में लगे मुसलमानों के
माल पर भारत में चुंगी माफ कर दी। राजपूतों के विरुद्ध जिहाद (धर्म युद्ध) नारा लगाकर उसने
मुसलमानों के धार्मिक उन्माद का लाभ उठाया।
प्रश्न 8. मुगल साम्राज्य के विस्तार में शाहजहाँ के योगदान का विवेचन कीजिए।
उत्तर-जहाँगीर की मृत्यु (1627 ई.) के पश्चात् उसका पुत्र खुर्रम शाहजहाँ के नाम से शासक
बना । उसने 1627 से 1658 ई. तक राज्य किया। उसके राज्य-काल में मुगल साम्राज्य की सुरक्षा एवं विस्तार के लिए निम्नलिखित कदम उठाए गए :
1. सिंहासन पर बैठने के पश्चात् शाहजहाँ को बुन्देला राजपूतों के विद्रोह का सामना करना
पड़ा । जुझार सिंह (Jujhar Singh) ने 1628 ई. में शाहजहाँ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शाहजहाँ ने एक बड़ी सेना उसके विरुद्ध भेजी। जुझार सिंह की हार हुई और उसे बहुत-सा धन जुर्माने के रूप में मुगल सम्राट को देना पड़ा। कुछ समय के पश्चात् उसने फिर विद्रोह किया तो साही सेना ने उसे राज्य से बाहर मार भगाया और अन्त में वह गोंड नामक एक जंगली कबीले द्वारा मारा गया।
2.1628 ई. में दक्षिण के गवर्नर खान जहान लोधी ने विंद्रोह किया। मराठों तथा अहमदनगर
के सुल्तान ने उसका साथ दिया परन्तु 3 वर्ष लड़ने के पश्चात् उसकी पराजय हुई और 1631
ई. में वह मारा गया।
3. बंगाल में पुर्तगालियों ने अपने कई व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिए थे और अपनी शक्ति
काफी बढ़ा ली थी। उन्होंने लोगों को जबरन ईसाई बनाना शुरू कर दिया था कुछ लोगों को
दास बना कर अन्य देशों में बेचना प्रारम्भ कर दिया। 1631 ई. में बंगाल के सूबेदार ने पुर्तगाल
बस्तियों पर हमला करके 10,000 व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया।
4. शाहजहाँ के राज्य काल में अहमदनगर राज्य को 1636 ई. में मुगल साम्राज्य में मिला लिया
गया तथा बीजापुर और गोलकुण्डा की रियासतों के अनेक भाग (1656-1657 ई.) छीन लिए गए तथा उनसे भारी कर लिये गए । शाहजहाँ के तीसरे पुत्र औरंगजेब ने दक्षिण को समाप्त कर दिया होता यदि शाहजहाँ उसे इजाजत देता ।
5. 1638 ई. में शाहजहाँ को कन्धार विजय का अच्छा अवसर मिला। 1649 ई. में कंधार
मुगलों के हाथों से निकल गया। इसके पश्चात् शाहजहाँ ने कन्धार को जीतने के प्रयत्न भी किए।
1646 ई. में शाहजहाँ ने मध्य एशिया में बल्ख और बदख्शां आदि प्रदेशों को विजय करने का
प्रयास किया। कुछ देर तक यह प्रदेश उसके पास रहे। बाद में उसके हाथ से निकल गये।
प्रश्न 9. औरंगजेब के धार्मिक विचारों की व्याख्या कीजिए । इन विचारों का राज्य की
नीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-औरंगजेब शुरू से ही पक्का कट्टर सुन्नी मुसलमान था। राज सिंहासन पर बैठते ही
उसने अपनी सारी शक्ति इस्लाम धर्म के प्रचार में लगा दी थी। उसने कुरान के नियमों के अनुसार
प्रशासन चलने का प्रयल किया।
1. उसने संगीतकारों को दरबार से हटा दिया और दरबारी गायकों को चले जाने का ओदश दिया।
2. उसने चित्रकला पर रोक लगा दी।
3. सिक्कों पर से कलमा (Kalma) हटाने का आदेश भी दिया ताकि सिक्कों का पाँव के
नीचे आने से उनका निरादर न हो।
4. उसने झरोखे से दर्शन देने की प्रथा को समाप्त कर दिया।
5. उसने मुसलमानों को इस्लाम धर्म के नियमों पर चलाने के लिए धर्म निरीक्षक को नियुक्त
किया और लोगों को रोजा रखने तथा प्रत्येक दिन में पाँच बार नमाज पढ़ने के लिए बाध्य किया।
औरंगजेब ने अकबर की सहनशीलता की नीति में परिवर्तन किया। हिन्दू उसके विरुद्ध हो
गये और मुगल साम्राज्य पतन की ओर बढ़ने लगा । आधुनिक इतिहासकारों का विचार है कि कट्टर सुन्नी मुसलमान होने पर भी औरंगजेब ने अनेक धर्म-निरपेक्ष कानूनों को जारी किया। इन कानूनों को ‘जवाबित’ (Zawabit) कहते हैं। जिस किताब में ऐसे कानून को संगठित किया गया है उसे जवाबित-ए-आलमगीरी कहा जाता है। कुछ इस सन्दर्भ में यह बताते हैं कि औरंगजेब जानता था कि वह ऐसे देश का शासक है जिसकी अधिकांश जनता हिन्दू है और वह जानता था कि इतने अधिक हिन्दुओं से टक्कर लेने का मतलब अपनी बर्बादी करना है। यह सत्य है कि औरंगजेब ने संगीत पर रोक लगाई, परन्तु शाही हरम और अमीर-वजीरों के घरों में स्त्रियों द्वारा गाना-बजाना चलता रहा। कहा जाता है कि औरंगजेब वीणा बजाने में दक्ष था। भारतीय संगीत पर फारसी में पुस्तकें सबसे अधिक औरंगजेब के काल में लिखी गई।
यह भी सत्य है कि सम्राट को सोने-चाँदी और अन्य अमूल्य वस्तुओं से तोलने तथा
ज्योतिषियों द्वारा पंचांग बनाने की प्रथाओं पर रोक लगा दी गई थी, परन्तु राजकुमारों के बीमारी
से उठने पर उन्हें सोने-चाँदी से तोला जाता था तथा सरदारों के घरों व राजघराने में पंचांग न
बनाने सम्बन्धी आदेश का उल्लंघन ही होता गया।
उसने मुसलमान व्यापारियों के लाभ के लिए उन्हें कर-मुक्त किया परन्तु व्यापारियों ने इसका
गलत उपयोग किया। अतः इसे फिर से लगा दिया गया। इसी तरह निर्धन मुसलमानों के लिए
विज्ञान-विभाग में पद सुरक्षित किए परन्तु जल्दी ही इस आदेश को वापिस लेना पड़ा। इस मजबूरी और व्यवहार ने भी औरंगजेब को हिन्दुओं से कठोर व्यवहार करने से रोका। वह चाह कर भी हिन्दुओं से अन्याय न कर सका।
 आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार यह ठीक है कि औरंगजेब ने उड़ीसा, गुजरात, बनारस,
मथुरा में अनेक मन्दिरों, जिसमें सोमनाथ का मन्दिर भी शामिल है तोड़ने के आदेश दिए परन्तु
यह सब उसने केवल हिन्दुओं के विद्रोह आदि को रोकने और उन्हें दण्ड और चेतावनी देने के
लिए किया था। मन्दिरों को तोड़ने का उद्देश्य धार्मिक न होकर राजनीतिक था परन्तु बाद में
मन्दिरों को तोड़ने की नीति को व्यर्थ मानने लगा था । औरंगजेब ने 1679 ई. में जजिया कर पुनः लगा दिया इस बात में सच्चाई है। यह इसीलिए किया गया कि औरंगजेब, जाटों, मराठों, राजपूतों, सतनानियों आदि से लड़ने के लिए, मुसलमानों का सहयोग चाहता था। जजिया से होने वाली आय उलेमा लोगों को प्राप्त कर सकता था। यह सत्य प्रतीत नहीं होता है कि हिन्दुओं पर आर्थिक दबाव डालने के उद्देश्य से जजिया कर लगाया जाता था।
यह बात भी गलत दिखाई देती है कि नौकरियों में औरंगजेब ने पक्षपातपूर्ण व्यवहार अपनाया
क्योंकि औरंगजेब के काल में हिन्दू सरदारों की संख्या शाहजहाँ के समय से अधिक थी।
औरंगजेब कट्टर मुसलमान था, जहाँ वह इस्लाम के नियमों पर चलना चाहता था वहीं दूसरी
ओर एक अच्छा और सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित करना चाहता था जो हिन्दुओं के बिना सम्भव न था।
उसने जजिया और यात्रा-कर दोबारा लगाना चाहा इसके पीछे चाहे कुछ भी कारण रहा हो।
यह सब मुगल साम्राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ और उसके इन्हीं कार्यों के कारण
सतनामियों, जाटों, मराठों, सिक्खों आदि ने समय-समय पर विद्रोह किया, जिसके फलस्वरूप मुगल साम्राज्य का पतन सामने दिखाई देने लगा।
प्रश्न 10. भारत के राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक एकीकरण के क्षेत्र
में अकबर के योगदान की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-(i) भारत से पूर्ण समन्वय (Complete Identification with India)-अकबर
पहला मुगल बादशाह था जिसने मूलतः विदेशी होते हुए भी भारतीय परम्पराओं को अपनाया।
वह बाबर और हुमायूँ की तरह तुर्किस्तान के प्रशंसकों में से नहीं था।
“इतिहास का संबंध, जो कोई शासन करना चाहता है, उससे न होकर जो किसी शासक
ने वास्तविक रूप में किया होता है, उससे (अर्थात् स्वयं व्यक्ति) होता है। इसलिए अकबर पूर्ण
रूप से राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित था। उन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर भारत के हर क्षेत्र
जैसे-राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक में अकबर ने एकरूपता लाने का प्रयत्न किया।”
(ii) राजनीतिक एकता (Political Unity)-अपने वैवाहिक संबंधों, विजयों तथा कूटनीतिक
संबंधों से उत्तरी और दक्षिणी भारत को एक शासक (अकबर) के अधीन लाकर, सब प्रांतों
में एक जैसे अधिकारी, न्याय व्यवस्था, भूमि-कर, सिक्के तथा माप-तौल चलाकर देश में
राजनैतिक और प्रशासनिक एकता लाने का प्रयास किया जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था।
(iii) सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity)-अकबर ने फारसी को तो राष्ट्रीय भाषा का
स्थान दिया ही साथ ही हिंदी, संस्कृत, अरबी, तुर्की, यूनानी आदि भाषाओं के प्रमुख ग्रंथों का
फारसी में अनुवाद कराकर, मुसलमानों के मदरसों में हिंदू बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करवाकर
तथा हिंदू पाठशालाओं को राजकीय सहायता देकर उदारता का परिचय दिया। साथ ही उसने
सांस्कृतिक सह-अस्तित्व का भी प्रदर्शन किया। उसने ललित कलाओं, भवन निर्माण कला,
चित्रकला, संगीत नृत्य आदि की शैलियों के मिलाप में सहयोग दिया। अकबर द्वारा संस्कृत और
हिंदी को प्रोत्साहन देना भी भारतीय संस्कृति के विकास की ओर महत्त्वपूर्ण कदम था।
(iv) सामाजिक एकता (Social Unity)-हिंदू-मुस्लिम विवाह, होली, दशहरा, दीपावली
आदि त्योहार मनाकर योग्यतानुसार हिंदुओं को ऊँचे पद देकर, अकबर ने सिद्ध कर दिया कि वह
मानव-मानव के बीच भेदभाव नहीं मानता ।” अकबर हिंदुओं तथा मुसलमानों में एकता स्थापित
करने और राष्ट्रीय भावना को विकसित करने का प्रयास करने वाला प्रथम मुस्लिम सम्राट था।”
(v) धार्मिक एकता (Religious Uniformity)-अकबर ने सभी धर्मों को अपने-अपने ढंग से पूजा-अर्चना करने की पूरी छूट दे रखी थी। इसीलिए उसने सभी धर्मों को अच्छी बातें लेकर एक नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है, परंतु अकबर ने कभी भी किसी से यह नहीं कहा कि वह इस धर्म को ग्रहण कर ले। यही कारण है कि इस धर्म के
अनुयायियों की संख्या केवल 18 ही थी। उसने जजिया कर तथा तीर्थकर हटाकर बहुसंख्यक
हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं का प्रशंसनीय सम्मान किया। उसके द्वारा निर्मित इबादतखाना वहाँ आयोजित होने वाली धार्मिक विचार-विनिमय की गोष्ठियाँ उसकी धार्मिक एकता स्थापन की नीति का प्रतीक बन गया।
(vi) आर्थिक एकता (Economic Unity)-देश में यातायात के साधनों को सुधार कर
अच्छी सिक्का प्रणाली, माप-तौलों को अपनाकर तथा विदेशों से व्यापारिक संबंध जोड़कर अपने देश की आर्थिक दशा को सुधारा । भूमि संबंधी सुधार लाकर तथा किसानों को उपज के लिए प्रोत्साहित करके देश को समृद्धि के मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया था।
प्रश्न 11. मुगलकालीन प्रशासन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मुगलो ने न केवल विशाल साम्राज्य की ही स्थापना की वरन् कुशल प्रशासनिक ढाँचे
का भी विकास किया। प्रशासन का सर्वोच्च था-बादशाह। इसे जिल्ले इलाही (ईश्वर की छाया)
माना जाता था। बादशाह धर्म, न्याय तथा सैनिक विभाग का भी प्रमुख था। बादशाह को शासन
में सहायता हेतु कुछ मंत्री भी नियुक्त किये गये थे। इनमें प्रमुख थे-वजीर (प्रधान मंत्री), दीवान
(वित्त मंत्री), मीरबख्शी (सैनिक संचालक) तथा प्रधान काजी (न्याय विभाग)।
साम्राज्य को प्रांतों (सूबे), प्रांतों को जिलों (सरकारों) में तथा जिले परगने में विभाजित थे।
सूबे के प्रधान सूबेदार होता था। जिले के प्रधान फौजदार होते थे जबकि शिकहार परगने का प्रधान था। कुल मिलाकर प्रशासन पर केन्द्रीय नियंत्रण पूरी तरह स्थापित था।
(ii) दरबारी रिवाज-दरबारी रिवाज अप्रत्यक्ष रूप से अब भी है। उच्च अधिकारी के पास
उच्च अधिकारी ही बैठता है या आता जाता है । अभिवादन का तरीका बदल गया है। अब झुककर या लेटकर अभिवादन नहीं किया जाता । राष्ट्रपति जैसे बड़े अधिकारी का अब भी झरोखा दर्शन होता है परन्तु खुले में और आमने-सामने होता है ।
(iii) शाही सेवा में भर्ती की विधियाँ-मुगल काल में शाही सेवाओं की भर्ती प्राय: स्वयं
सम्राट या प्रधानमंत्री द्वारा की जाती थी । परन्तु वर्तमान भरतीय शासन में भर्ती की लम्बी प्रक्रिया है । अब प्रतियोगिता परीक्षायें होती हैं और साक्षात्कार होते हैं ।
                                                ★★★

 

 

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