8TH SST

bseb 8th history | महिलाओं की स्थिति एवं सुधार

 bseb 8th history | महिलाओं की स्थिति एवं सुधार

bseb 8th history | महिलाओं की स्थिति एवं सुधार

महिलाओं की स्थिति एवं सुधार
पाठ का सारांश-आज अधिकतर लड़कियाँ स्कूल जाती हैं, कॉलेज जाती हैं और नौकरी करती हैं। उनकी शादी की उम्र कानूनन तय है और कानून उन्हें पुरुषों के समान अधिकार देता है। पर, दो सौ साल स्थिति ऐसी नहीं थी। समाज में उनकी स्थिति दोयम दर्जे की थी। उन्हें पढ़ाया नहीं जाता था। उन्हें पर्दा के पीछे रहना पड़ता था। हिन्दू समाज में विधवाओं को सती होना पड़ता था। मरे हुए पति के साथ चिता में बांधकर जिंदा जला दिया जाता था। जहाँ पुरुषों को समाज में तमाम सुविधाएँ प्राप्त थीं, वहीं महिलाएं उन सुविधाओं से वंचित थीं। धर्म और संस्कृति के नाम पर औरतों के साथ बहुत भेद-भाव किया जाता था।
अंग्रेजों को अपना औपनिवेशिक साम्राज्य का औचित्य सिद्ध करना था। अत: जेम्स मिल जैसे अंग्रेज विद्वानों ने उन भारतीय प्रथाओं का विरोध किया जो महिलाओं के खिलाफ थी। अंग्रेज महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए मुखर हुए ।
राजा राममोहन राय ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए अपने प्रयल तेज कर दिये । शिशु हत्या, सती प्रथा जैसी अमानवीय पद्धतियों पर रोक लगाने के लिए आंदोलन हुए और बहु विवाह, पर्दा प्रथा एवं विधवाओं के पुनर्विवाह पर लगे रोक को बदलने की कोशिशें हुई।
पर पैतृक संपत्ति पर महिला अधिकार की बात लंबे समय तक नहीं उठाई गई। उच्च वर्ग की महिलाओं की शिक्षा शुरू हुई पर निम्न वर्ग की महिलाओं को शिक्षा से फिर भी वंचित रखा गया।
सती प्रथा पर विवाद:- ऐसी बर्बर प्रथाओं को समाप्त करने की पहल इस काल के पश्चिमी दार्शनिकों एवं चिंतकों द्वारा की गई जिसने भारतीय बुद्धिजीवी वर्ग को झकझोर दिया.। कानून के द्वारा इस कुप्रथा की समाप्ति के उपाय की पहल राजा राममोहन राय के द्वारा हुई। कट्टरपंथी वर्ग ऐसे आंदोलनों का विरोध कर रहे थे इसलिए राजा राममोहन राय ने कानून का सहारा लिया।
वर्ष 1829 में कानून द्वारा सती प्रथा का अंत हुआ। सामाजिक सुधार लाने के लिए चार विभिन्न प्रणालियों का प्रयोग किया गया-
1. आंतरिक सुधार–विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर बहस व विवाद का आयोजन ।
2. कानून के द्वारा सुधार-बदलाव के लिए कानूनी हस्तक्षेप ।
3. प्रतीकात्मक बदलाव द्वारा सुधार–सामाजिक समस्याओं के प्रति समझौता न करने वाली क्रांतिकारी प्रवृत्ति का प्रदर्शन ।।
4. सामाजिक कार्यों द्वारा सुधार–जिनमें ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जैसे व्यक्तित्व का नाम सर्वोपरि है।
राजा राममोहन राय (1772-1833)–आधुनिक युग के प्रणेता राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में ब्रह्मो सभा के नाम से एक सुधारवादी संगठन बनाया। ब्रह्म समाज संगठन के द्वारा महिलाओं की स्थिति में सुधार की प्रक्रिया अपनाई गई जैसे सती प्रथा पर रोक, महिलाओं की शिक्षा पर बल, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन, अतर्जातीय विवाह को समर्थन, बाल विवाह का विरोध इत्यादि । यह संगठन पश्चिमी विचारधारा को भी दूर कर रहे थे और आंतरिक भारतीय संस्कृति में सुधार के लिए भी काम कर रहे थे।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर एवं विधवा पुनर्विवाह (1820-91):- राजा राममोहन राय की तरह ही ईश्वरचन्द्र ने भी प्राचीन ग्रंथों का हवाल देते हुए, धर्म के वास्तविक रूप को इन सुधारों का आधार बनाने का प्रयास किया ताकि ये सामाजिक बदलाव धर्म विरोधी नहीं लगे। उन्हें विधवा पुनर्विवाह को मान्यता प्रदान करवाने का श्रेय दिया जाता है। अंग्रेज सरकार ने उनके मानते हुए वर्ष 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में एक कानून पारित कर दिया ।
1900 ई. तक लगभग 300 पुनर्विवाह उच्च जातियों में देखी गयीं। बाद में कानून के द्वारा महिलाओं को संपत्ति का अधिकार प्राप्त हुआ, इसलिए विधवाओं की दूसरी शादी कराने का प्रयास नहीं किया गया। यह पैत्रिक संपत्ति को सुरक्षित रखने का एक उपाय भी था।
विद्यासागर को प्रयासों से बाद में ‘ऐज ऑफ कन्सेंट’ (सहमति आयु विधेयक) और ‘नेटिव मैरेज एक्ट’ पारित हुआ। इस कानून ने बहु विवाह का विरोध किया और विवाह की न्यूनतम आयु लड़कियों के लिए 14 वर्ष एवं लड़कों के लिए 18 वर्ष रखी।
स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-1875):-  स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना कर महिला उत्थान के लिए शिक्षा पर बल दिया। आर्य समाजी बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह का समर्थन करते थे
स्वामी विवेकानंद (1863-1902) :- विवेकानंद ने महिला उत्थान के लिए शिक्षा पर जोर दिया । शिक्षा के प्रसार से ही वह महिलाओं की गरिमा को बनाए रखना चाहते थे, जिससे भारतीय संस्कृति का आदर पश्चिमी जगत में स्थापित हो सके।
अल्पसंख्यक समुदाय के बीच भी महिलाओं की स्थिति में सुधार के कई प्रयास हुए। उनीसवीं सदी को पूर्वाद्ध में सैयद अहमद खाँ (1817-98) ने इस्लामी समुदाय में सुधार लाने को प्रयास किये। महिला उत्थान के लिए उन्होंने महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया। सैयद अहमद ने बहु विवाह, पर्दा प्रथा तथा तलाक के परंपरागत नियमों में आधुनिकता के अनुसार संशोधन को विचार सुझाए । शेख अब्दुल्ला और मुमताज अली जैसे समाज सुधारकों ने भी महिलाओं को शिक्षा देने पर बल दिया। पारसी समुदाय में भी स्त्रियों के उत्थान के लिए दादा भाई नौरोजी (1825-1917) और भौरोजी फरदूनजी (1817-1885) ने शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास किए ।
बिहार में महिला को आगे बढ़ाने में ब्रह्म समाज की अहम् भूमिका रही। बिहार में कई स्कूल विशेषकर लड़कियों के लिए खोले और सफलतापूर्वक चलाए गए ।
बाल विवाह एवं विवाह की उम्र:-  वर्ष 1929 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया गया। इस कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के लड़के और 16 साल से कम उम्र की लड़की का विवाह नहीं हो सकता था। बाद में यह उम्र क्रमश: 21 साल व 18 साल कर दी गई।
1870 में शिशु हत्या को अवैध घोषित किया गया। 1861 के अधिनियम द्वारा दहेज को अवैध घोषित किया गया पर यह प्रथा आज भी प्रचलित है जो महिलाओं की स्थिति को प्रभावित करता है। बीसवीं सदी के आने तक जागरूकता की लहर अधिकतर महिला समाज तक पहुँच चुकी थी। अब महिलाएं जागरूक हैं और अपने अधिकारों के लिए लड़ना और जूझना जानती हैं। वे हर क्षेत्र में पुरुषों के समकक्ष आ गयी हैं।
अभ्यास
आइए फिर से याद करें-
सही विकल्प को चुनें-
(i) स्त्रियों की असमानता की स्थिति पर पहली बार किसके द्वारा प्रश्नचिह्न लगाया गया ?
(क) अंग्रेजों के द्वारा (ख) भारतीय शिक्षितों के द्वारा
(ग) महिलाओं के द्वारा (घ) निम्न वर्ग के प्रणेताओं के द्वारा
(ii) शिक्षा किस वर्ग की महिलाओं तक सीमित रहा?
(क) निम्न वर्ग
(ख) मध्यम वर्ग
(ग) उच्च वर्ग
(घ) इनमें से कोई नहीं
(iii) कानून के द्वारा सती प्रथा का अंत कब हुआ?
(क) 1826
(ख) 1827
(ग) 1828
(घ) 1829

(iv) विधवा पुनर्विवाह के प्रति किसने अपना जीवन समर्पित कर दिया ?
(क) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (ख) दयानन्द सरस्वती
(ग) राजाराम मोहन राय (घ) सैयद अहमद खाँ
(v) बाल विवाह निषेध अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ?
(क) 1926
(ख) 1927
(ग) 1928
(घ) 1929
उत्तर-(i) (क) (ii) (ग), (iii) (घ), (iv) (क), (v) (घ)।
आइए विचार करें-
(i) महिलाओं में असमानता की स्थिति मुख्यतः किन कारणों से थी ?
उत्तर-धर्म और संस्कृति के नाम पर महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता था। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा जाता था। रूढ़िवादी एवं संकुचित विचारधारा केवल शिक्षा के द्वारा समाप्त की जा सकती थी, अतः सामाजिक सुधारकों ने महिला शिक्षा पर बल दिया। अशिक्षित व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए आवाज नहीं उठा सकता । वह अपने साथ हो रहे किसी भी असमानता
के खिलाफ सशक्त विरोध नहीं कर सकता। अत: महिलाओं में असमानता की स्थिति मुख्यतः उनके अशिक्षित रहने के कारण थी। फिर धर्म व संस्कृति का हवाला देकर उन्हें पर्दे में रखा जाता था। वे सामाजिक जीवन में भाग नहीं ले सकती थी। विधवाओं को दुबारा विवाह करने की इजाजत नहीं थी । मृत पति के साथ उन्हें भी सती होना यानी पति के संग जलकर मरना पड़ता था।
(ii) सती प्रथा पर किस प्रकार का विवाद रहा? सती विरोधी एवं सती समर्थक विचारों को लिखें।
उत्तर-उन्नीसवीं शताब्दी के हिन्दू समाज में विधवा महिला को अपने जीवन में भारी कष्टों का सामना करना पड़ता था जिसमें सबसे कठोर सती प्रथा थी। इसमें विधवा को उनके पति के साथ चिता पर बाँधकर जिंदा जला दिया जाता था। इसी बात को ध्यान में रखकर सती प्रथा का विरोध प्रारंभ हुआ। दुर्भाग्यवश कुछ लोग समझते थे कि इस अमानवीय परंपरा को धार्मिक मान्यता प्राप्त थी। जबकि वास्तव में यह विधवा स्त्रियों को संपत्ति एवं उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित करने का एक उपाय था।
जहाँ सती प्रथा के विरोधी महिलाओं के साथ हो रही बर्बरता को बंद करवाना चाहते थे वहीं सती समर्थक धर्म के नाम पर इस प्रथा को, अपने निजी स्वार्थ के लिए जारी रखने के पक्ष में थे। पर अंतत: राजा राममोहन राय के प्रयासों से अंग्रेजों ने 1829 ई. में कानून बनाकर सती प्रथा का अंत कर दिया।
(iii) राजा राममोहन राय के द्वारा महिलाओं से संबंधित किस समस्या के खिलाफ आवाज उठायी गयी?
उत्तर-राजा राममोहन राय आधुनिक युग के प्रणेता थे। उन्होंने ब्रह्म सभा और ब्रह्म समाज जैसे संगठन स्थापित किए । ब्रह्म समाज संगठन के द्वारा महिलाओं की स्थिति में सुधार की प्रक्रिया अपनाई गई। जैसे सती प्रथा पर रोक, महिलाओं की शिक्षा पर बल, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहन, अंतर्जातीय विवाह को समर्थन, बाल विवाह का विरोध इत्यादि । समाज में स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए, शिक्षा के प्रसार के लिए कार्य किया एवं संपत्ति का उत्तराधिकार महिलाओं को मिले, इसके लिए आंदोलन किया ।
(iv) ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के महिला सुधार में योगदानों की चर्चा करें।
उत्तर–प्रसिद्ध समाज सुधारक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के नेतृत्व में विधवा विवाह के पक्ष में आंदोलन चलाया गया। इसके लिए उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का हवाला दिया। ऐसा करते हुए वह वास्तव में ऐसे सामाजिक प्रचलन को समाप्त करना चाहते थे जिस पर धर्म की मुहर लगा दी गई थी।
राजा राममोहन राय की तरह ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने भी धर्म के वास्तविक रूप को इन सुधारों का आधार बनाने का प्रयास किया ताकि ये सामाजिक बदलाव धर्म विरोधी नहीं लगे।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के द्वारा विधवा पुनर्विवाह को मान्यता प्रदान करवाने का श्रेय दिया जाता है। अंग्रेज सरकार ने उनके सुझाव को मानते हुए वर्ष 1856 में विधवा विवाह के पक्ष में एक कानून पारित कर दिया।
ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयासों के कारण ही बाद में ‘ऐज ऑफ कन्सेंट’ (सहमति आयु विधेयक) कानून लागू हुआ जिसके परिणामस्वरूप बाद में ‘नेटिव मैरेज ऐक्ट’ पारित हुआ। इसके तहत लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष एवं लड़कों के लिए 18 वर्ष तय हुई।
(v) स्वामी विवेकानन्द ने महिला उत्थान के लिए कौन-कौन से उपाय सुझाए?
उत्तर-स्वामी विवेकानन्द ने महिला उत्थान के लिए महिलाओं की अशिक्षा को जिम्मेदार माना। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के लिए प्रेरित किया। शिक्षा के प्रसार से ही वह महिलाओं की गरिमा को बनाए रखना चाहते थे, जिससे भारतीय संस्कृति का आदर पश्चिमी जगत में स्थापित हो सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *