Bihar board notes class 11th civics
Bihar board notes class 11th civics
Bihar board notes class 11th civics
चुनाव और प्रतिनिधित्व
•निर्वाचन व्यवस्था का अर्थ।
• प्रतिनिधित्व के विभिन्न ढंग, चुनाव और लोकतंत्र।
•भारत में निर्वाचन व्यवस्था।
• समानुपातिक प्रतिनिधित्व
•राज्य सभा के चुनावों में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली
•निर्वाचन क्षेत्रों का आरक्षण
• स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव
•सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
• स्वतंत्र निर्वाचन आयोग।
• विशेष बहुमत। निर्वाचन सुधार।
• प्रत्येक निर्णय लेने में सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते अतः अपने प्रतिनिधि
चुनते हैं।
• प्राचीन यूनानी नगर-राज्य प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के उाहरण हैं।
• प्रतिनिधित्व की प्रणाली भिन्न प्रकार की होती है-(क) प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली,
(ख) अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली, (ग) आनपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली, (घ) सीमित मत
प्रणाली, (ङ) संचित मत-प्रणाली, (च) द्वितीय मतदान प्रणाली, (छ) साम्प्रदायिक अथवा
एक निर्वाचन प्रणाली, (ज) संयुक्त निर्वाचन प्रणाली, (झ) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व, (ञ)
व्यावसायिक प्रतिनिधित्व।
•भारत में वयस्क मताधिकार का प्रयोग किया गया है। 18 वर्ष की आयु पूरी करने पर
प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त है।
•भारत में एक स्वतंत्र चुनाव आयोग का प्रावधान किया गया है। भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य |
चुनाव आयुक्त होते हैं, जिनकी संख्या समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा तय की जाती है।
• बहुमतीय प्रणाली में कोई उम्मीदवार तभी विजयी घोषित किया जा सकता है जबकि उसे |
स्पष्ट बहुमत मिला हो।
• एकल संक्रमणीय प्रणाली तथा दलीय सूची प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व या अल्पसंख्यकों
को प्रतिनिधित्व दिलाने की प्रक्रियाएँ हैं।
•निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: सीमांकन किया जा सकता है परंतु 2026 ई० तक लोकसभा एवं
विधान सभाओं की सीटों की संख्या नहीं बदायी जा सकती है।
•प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव का कार्य जिस अधिकारी के निर्देशन में किया जाता है उसे ।
पीठासीन अधिकारी कहते हैं।
•कोई नागरिक जिसकी आयु 25 वर्ष है वह चुनाव में उम्मीदवार बन सकता है। लोकसभा
व राज्य विधान सभाओं के लिए 25 वर्ष तथा राज्य सभा के लिए न्यूनतम आयु-30 वर्ष है।
पाठ्यपुस्तक के एवं परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
1. निम्न में से उस व्यक्ति का नाम बताइए जिसने लोकसभा का विश्वास मत प्राप्त किये
बिना ही प्रधानमंत्री पद पर कार्य किया।
(क) चरण सिंह
(ख) चन्द्रशेखर
(ग) वी० पी० सिंह
(घ) मोरारजी देसाई
2. लोकतंत्र जनता का जनता के लिए और जनता की सरकार है किसने कहा है ?
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) राजेन्द्र प्रसाद
(ग) नेहरू
(घ) महात्मा गांधी
3. राष्ट्रपति चुनाव में उत्पन्न विवादों को कौन निपटाता है ? [B.M.2009A]
(क) उपराष्ट्रपति
(ख) चुनाव आयोग
(ग) उच्चतम न्यायालय
(घ) प्रधानमंत्री
4. निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य चुनाव आयोग का नहीं है- [B.M.2009A]
(क) मतदाता सूची तैयार करना
(ख) पंचायत चुनावों का पर्यवेक्षण करना
(ग) विधान सभा में निर्वाचन की व्यवस्था करना
(घ) राज्यसभा के उम्मीदवारों का नामांकन की जांच करना उत्तर-(ख)
5. निम्नलिखित में कौन प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सबसे नजदीक बैठता है ? (NCERTT.B.Q.1)
(क) परिवार की बैठक में होने वाली चर्चा
(ख) कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव
(ग) किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन
(घ) ग्राम सभा द्वारा निर्णय लिया जाना
(ङ) मीडिया द्वारा करवाये गए जनमत-संग्रह
उत्तर-उपरोक्त सभी कथनों में से (घ) ग्राम सभा द्वारा निर्णय लिया जाना प्रत्यक्ष प्रजातंत्र
का सर्वोत्तम उदाहरण है।
6. निम्नलिखित में कौन प्रत्यक्ष लोकतंत्र के सबसे नजदीक बैठता है ? (NCERTT.B.Q.1)
(क) परिवार की बैठक में होने वाली चर्चा
(ख) कक्षा-संचालक (क्लास-मॉनीटर) का चुनाव
(ग) किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन
(घ) ग्राम सभा द्वारा निर्णय लिया जाना
(ङ) मीडिया द्वारा करवाये गए जनमत संग्रह
उत्तर-उपरोक्त सभी कथनों में से (घ) ग्राम सभा द्वारा निर्णय लिया जाना प्रत्यक्ष प्रजातंत्र
का सर्वोत्तम उदाहरण है।
7. इनमें कौन-सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता ? (NCERTT.B.Q. 2)
(क) मतदाता सूची तैयार करना
(ख) उम्मीदवारों का नामांकन
(ग) मतदान केन्द्रों की स्थापना
(घ) आचार संहिता लागू करना
(ङ) पंचायत के चुनाव का पर्यवेक्षण
उत्तर-(ङ) पंचायत के चुनाव का पर्यवेक्षण चुनाव आयोग नहीं करता।
8. ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता है जो-
(क) सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
(ख) देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो।
(ग) चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
(घ) 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है। (NCERT T.B.Q.4)
उत्तर-सर्वाधिक वोट से जीतने उम्मीदवार विजयी घोषित किया जाता है जो उस निर्वाचन
क्षेत्र में किसी भी दूसरे उम्मीदवार से अधिक मत प्राप्त करता है।
9. निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है ? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द
अथवा पद को बदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें। (NCERT T.B.Q.6)
(क) एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली (‘सबसे आगे वाला जीते प्रणाली’) का
पालन भारत के हर चुनाव में होता है।
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव का पर्यवेक्षण नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
उत्तर-(क) भारत में सभी चुनाव ‘सर्वाधिक वोट से जीत’ प्रणाली से कराए जाते हैं।
भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषदों के सदस्यों को छोड़कर बाकी
सभी चुनाव ‘सर्वाधिक वोट से जीत’ प्रणाली (FPTP) से सम्पन्न कराए जाते हैं।
(ख) निर्वाचन आयोग स्थानीय निकायों के चुनाव का सुपरविजन (पर्यवेक्षण) नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से हटा सकता है।
(घ) निर्वाचन आयोग में एक से अधिक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति विधिक आदेश
सूचक है।
10. इनमें कौन-सा कार्य चुनाव आयोग नहीं करता? (NCERTT.B.Q.2)
(क) मतदाता सूची तैयार करना
(ख) उम्मीदवारों का नामांकन
(ग) मतदान केन्द्रों की स्थापना
(घ) आचार संहिता लागू करना
(ङ) पंचायत के चुनाव का पर्यवेक्षण
उत्तर-(ङ) पंचायत के चुनाव का पर्यवेक्षण चुनाव आयोग नहीं करता।
11. ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ प्रणाली में वही प्रत्याशी विजेता घोषित किया जाता
है जो-
(क) सर्वाधिक संख्या में मत अर्जित करता है।
(ख) देश में सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले दल का सदस्य हो।
(ग) चुनाव-क्षेत्र के अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा मत हासिल करता है।
(घ) 50 प्रतिशत से अधिक मत हासिल करके प्रथम स्थान पर आता है। (NCERT T.B.0. 4)
उत्तर-सर्वाधिक वोट से जीतने उम्मीदवार विजयी घोषित किया जाता है जो उस निर्वाचन
क्षेत्र में किसी भी दूसरे उम्मीदवार से अधिक मत प्राप्त करता है।
12. निम्नलिखित में कौन-सा कथन गलत है? इसकी पहचान करें और किसी एक शब्द
अथवा पद को यदलकर, जोड़कर अथवा नये क्रम में सजाकर इसे सही करें। (NCERT T.B.0.6)
(क) एक फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट प्रणाली (“सबसे आगे वाला जीते प्रणाली’) का
पालन भारत के हर चुनाव में होता है।
(ख) चुनाव आयोग पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव का पर्यवेक्षण नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति किसी चुनाव आयुक्त को नहीं हटा सकता।
(घ) चुनाव आयोग में एक से ज्यादा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति अनिवार्य है।
उत्तर-(क) भारत में सभी चुनाव ‘सर्वाधिक वोट से जीत’ प्रणाली से कराए जाते हैं।
भारत में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यसभा और विधान परिषदों के सदस्यों को छोड़कर बाकी
सभी चुनाव ‘सर्वाधिक वोट से जीत’ प्रणाली (FPTP) से सम्पन्न कराए जाते हैं।
(ख) निर्वाचन आयोग स्थानीय निकायों के चुनाव का सुपरविजन (पर्यवेक्षण) नहीं करता।
(ग) भारत का राष्ट्रपति निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से हटा सकता है।
(घ) निर्वाचन आयोग में एक से अधिक निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति विधिक आदेश
सूचक है।
प्रश्न 1. निर्वाचन व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-आधुनिक युग में जनता के प्रतिनिधियों द्वारा शासन चलाया जाता है। जनता अपने
प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है और वे प्रतिनिधि सरकार का निर्माण करते हैं। ये प्रतिनिधि जनता
से शक्ति प्राप्त करके देश में शासन चलाते हैं। भारत के संविधान द्वारा प्रतिनिधियों को चुने जाने
का तरीका निश्चित किया गया है जिसे निर्वाचन प्रणाली या निर्वाचन व्यवस्था कहा जाता है।
प्रश्न 2. प्राचीन यूनान (ग्रीक) के नगर-राज्यों में प्रचलित प्रत्यक्ष लोकतंत्र के स्वरूप
का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्राचीन यूनान में प्रचलित लोकतंत्र का स्वरूप आधुनिक लोकतंत्र से भिन्न था। प्राचीन
लोकतंत्र का स्वरूप प्रत्यक्ष था; परंतु इसमें जो वयस्क व्यक्ति भाग लेते थे वे यूनान की जनसंख्या
के 15 प्रतिशत से भी कम होते थे। दासों, स्त्रियों, बच्चों तथा विदेशियों को मताधिकार नहीं था।
लोकतंत्र प्रणाली कुछ इस प्रकार की थी कि एक मतदाता सिपाही भी था, न्यायाधीश प्रशासी सभा
का सदस्य भी होता था। प्रायः प्रत्यक्ष लोकतंत्र आधारित सरकारें भीड़ तंत्र की ओर झुक जाती
थीं।
प्रश्न 3. लोकतंत्र में वयस्क के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मताधिकार का अर्थ है मत देने का अधिकार। वयस्क मतधिकार प्रणाली के अनुसार
लोकतंत्रीय देशों में प्रत्येक उस नागरिक को मतदान का अधिकार दिया जाता है जो एक निश्चित
आयु सीमा को पार करके वयस्क हो चुका है। व्यस्क मताधिकार देते समय जाति, धर्म, भाषा
या लिंग आदि का भेदभाव नहीं किया जाता। लोकतंत्रीय देशों में वयस्क मताधिकार का बहुत
महत्त्व है। लोकतंत्र का मुख्य आधार समानता है और वयस्क मताधिकार में सभी को समान समझा
जाता है। इससे सभी नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है और उनमें आत्मश्विास तथा
स्वाभिमान जागृत होता है।
प्रश्न 4. निर्वाचन आयोग के दो कार्य बताइए।
उत्तर-चुनाव आयोग के दो कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) मतदाता सूची तैयार करना। (ii) निष्पक्ष चुनाव कराना।
प्रश्न 5. निर्वाचन व्यवस्था में तीन प्रस्तावित सुधार बताइए।
उत्तर-(i) निर्वाचन की घोषणा तथा निर्वाचन प्रक्रिया पूर्ण होने तक मंत्रियों द्वारा सरकारी
तंत्र के प्रयोग पर पाबन्दी। (ii) निर्वाचन से पूर्व अधिकारियों की नियुक्ति व स्थानान्तरण पर
प्रतिबन्धा (iii) मतदाता पहचान पत्र के प्रयोग की अनिवार्यता।
प्रश्न 6. भारत में मतदाता की योग्यताएंँ क्या हैं ?
उत्तर-मतदाता की योग्यताएंँ :-
(i) वह भारत का नागरिक हो। (ii) वह 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। (iii) उसका
नाम मतदाता सूची में हो।
प्रश्न 7. भारत में गुप्त मतदान किस प्रकार सुनिश्चित किया जाता है ?
उत्तर भारत में मतदाता के लिए गुप्त मतदान की व्यवस्था की गयी है। मतदान केन्द्र पर
मतदाता को एक मत पत्र (अब कम्प्यूटराइज मशीन) दिया जाता है जिस पर सभी उम्मीदवारों
के नाम भीकत होते हैं। मतदाता एक ऐसे स्थान पर जाकर, जहाँ वह अकेला ही होता है और
कोई अन्य व्यक्ति उसे देख नहीं सकता, अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगाता है
(अब बटन दबाता है) मत पत्र को मोड़कर मतपेटी में डाला जाता है उसे (या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग
मशीन को) सील कर दिया जाता है। इस प्रकार किसी को भी यह पता नहीं चल पाता कि मतदाता
ने अपना मत किस उम्मीदवार को दिया है।
प्रश्न 8. भारत में वयस्क मताधिकार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 में कहा गया है कि लोकसभा तथा राज्य विधान
सभाओं के सदस्यों का चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा। 18 वर्ष की आयु प्राप्त
भारत का नागरिक मताधिकार का प्रयोग करेगा। भारत के प्रत्येक वयस्क नागरिक को जाति, पंथ,
धर्म, लिंग, जन्म स्थान के भेदभाव के बिना समान मतदान का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 9. ‘सर्वाधिक वोट से जीत’ व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-जब पूरे देश को कुल उतने निर्वाचन क्षेत्रो में बाँट दिया जाता है जितने कि कुल सदस्य
चुने जाने हों और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है तो उस निर्वाचन क्षेत्र में
जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक वोट प्राप्त होते हैं उसे विजयी (निर्वाचित) घोषित किया जाता
है। विजयी प्रत्याशी के लिए यह जरूरी नहीं कि उसे कुल मतों का बहुमत मिले। इस विधि को
सर्वाधिक वोट से जीत कहते हैं। इसे बहुलवादी व्यवस्था भी कहा जाता है।
प्रश्न 10. समानुपातिक प्रतिनिधित्व से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-प्रत्येक पार्टी चुनाव से पहले अपने प्रत्याशियों की एक प्राथमिकता सूची जारी कर
देती है और अपने उतने ही प्रत्याशियों को उस प्राथमिकता सूची से चुन लेती है जितनी सीटों का
कोटा उसे मिलता है। चुनावों की इस व्यवस्था को समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते हैं। इस
प्रणाली में किसी पार्टी को उतने ही प्रतिशत सीटें प्राप्त होती हैं जितने प्रतिशत वोट मिलते हैं।
इजरायल में इसी प्रणाली से चुनाव किया जाता है।
प्रश्न 11. चुनाव घोषणा पत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-प्रायः आम चुनाव के समय प्रत्येक राजनीतिक दल लोगों के साथ कुछ ऐसे वायदे
करता है कि यदि वह सत्तारूढ़ हो अर्थात् चुनाव में यदि जनता उसके दल को विजय दिलाती
है तो वह दल देश व जनता के हित के लिए क्या-क्या कार्य करेगा। अत: जिस लेख में
कोई राजनीतिक दल अपने कार्यक्रमों, नीतियों तथा उद्देश्यों को बतलाता है, उसे चुनाव घोषणा
पत्र कहते हैं।
प्रश्न 12. भारतीय निर्वाचन प्रणाली की किन्हीं दो कमियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर– भारतीय निर्वाचन प्रणाली की दो प्रमुख कमजोरियां निम्नलिखित हैं:-
(i) भारतीय निर्वाचन प्रणाली का एक प्रमुख दोष यह है कि यहाँ धन तथा बाहुबल का प्रयोग
किया जाता है, जिस कारण योग्य तथा ईमानदार व्यक्ति चुनाव में भाग लेने से बचना चाहते हैं।
(ii) भारतीय चुनाव व्यवस्था का दूसरा प्रमुख दोष है कि जाली मतदान, सरकारी तंत्र का
दुरुपयोग अथवा अन्य किसी प्रकार की असंवैधानिक गतिविधि द्वारा चुनाव जीतने वाले प्रत्याशी
के विरुद्ध चुनाव याचिकाओं का न्यायालय में शीघ्र निपटारा नहीं होता और तब तक नया चुनाव
आ जाता है।
प्रश्न 13. अल्पसंख्यकों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की किन्हीं दो पद्धतियों के नाम बताओ।
उत्तर-अल्पसंख्यकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने के लिए जो पद्धतियाँ अपनायी जाती हैं उनमें
से दो प्रमुख पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं :-
1. आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली-जिसमें दो तरीके हैं- एक एकल संक्रमणीय मत
प्रणाली तथा दूसरी सूची प्रणाली।
2. संचित मत प्रणाली-इसके अनुसार मतदाता चाहे तो अपने सारे मत एक ही उम्मीदवार
को दे सकता है।
प्रश्न 14. स्थगित चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-जब किसी चुनाव क्षेत्र में किसी राजनीतिक दल के उम्मीदवार की अचानक मतदान
शुरू होने से पूर्व मृत्यु हो जाती है तो चुनाव आयोग उस क्षेत्र विशेष में चुनाव को स्थगित कर
देता है। परन्तु निर्दलीय प्रत्याशी की मृत्यु होने पर चुनाव स्थगित नहीं किया जाएगा।
प्रश्न 15. निम्नलिखित में से कौन-सी राज्य सभा और लोकसभा के सदस्यों के चुनाव
की प्रणाली में समान हैं ?
(क) 18 वर्ष से ज्यादा की उम्र का हर नागरिक मतदान करने के योग्य हैं।
(ख) विभिन्न प्रत्याशियों के बारे में मतदाता अपनी पसंद को वरीयता क्रम में रख
सकता है।
(ग) प्रत्येक मत का सामान्य मूल्य होता है।
(घ) विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक मत प्राप्त होना चाहिए।
उत्तर-जैसा कि हम जानते हैं राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव की श्रेणी
में आता है। इस चुनाव में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग किया जाता है। राज्यों की
विधान सभाओं के सदस्य जनता द्वारा चुने जाते हैं और वे सदस्य या विधायक राज्य सभा सदस्यों
का चुनाव करते हैं। हमारे संविधान में संघीय इकाइयों को राज्य सभा में प्रतिनिधित्व जनसंख्या
के आधार पर दिया गया है। जिस संघीय क्षेत्रों में विधान सभाएं नहीं होती वहांँ पर राज्य सभा
के सदस्यों के चुनाव हेतु एक विशेष निर्वाचन मण्डल गठित किया जाता है। इस प्रकार अन्ततः
मतदाता भारतीय नागरिक ही है जो लोकसभा के सदस्यों को प्रत्यक्ष रूप से तथा राज्यसभा सदस्यों
को अप्रत्यक्ष रूप से चुनता है। अत: उपरोक्त चारों बातों में से प्रथम अर्थात् (क) भाग वाला
कथन सही है कि राज्य सभा और लोक सभा के चुनाव में यह सामान्य है कि प्रत्येक नागरिक
जो 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुका है वह योग्य मतदाता है।
प्रश्न 1. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं ? लोकतंत्र में इसके
महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-सार्वभौम वयस्क मताधिकार-लोकतंत्र में जनता ही शासन का आधार होती है।
जनता के मत से सरकार चुनी जाती है। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का अर्थ यह है कि मत
देने का अधिकार बिना जाति, धर्म, वर्ग अथवा लिंग भेद किए, सभी वयस्क नागरिकों को दिया
जाना चाहिए। इसमें शिक्षा या सम्पत्ति आदि की कोई शर्त नहीं होती है। 1988 ई० तक भारत
में वयस्कों की आयु 21 वर्ष थी परंतु एक संशोधन के द्वारा अब यह 18 वर्ष कर दी गयी है।
वयस्क मताधिकार का लोकतंत्र में महत्त्व :-
(i) लोकतंत्र तब तक वास्तविक लोकतंत्र नहीं हो सकता जब तक कि प्रतिनिधियों के चुनाव
में प्रत्येक नागरिक का योगदान न हो।
(ii) मानव स्वतंत्रता की रक्षा का एक उपाय सभी नागरिकों को मताधिकार देना है। लास्की
का कहना है- “प्रत्येक वयस्क नागरिक का अधिकार है वह यह बतलाए कि शासन का संचालन
किन लोगों से करना है। इस प्रकार प्रजातंत्र में वयस्क मताधिकार मिलने से समाज के प्रत्येक
नागरिक राजनीतिक जागरुकता बनाए रखते हैं। सरकार पूरे समाज के कल्याण के लिए
बाध्य होती है।
प्रश्न 2. भारत में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किस प्रकार चुनाव प्रक्रिया को हानि
पहुंँचाता है ? इसे दूर करने के कोई दो सुझाव दीजिए।
उत्तर भारत में चुनाव के समय सत्ता दल द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया जाता
है। निर्वाचन से ठीक पहले महत्त्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्रों में मनमाने ढंग से व्यापक संख्या में
अधिकारियों का स्थानान्तरण किया जाता है जिससे सत्तारूढ़ दल को मदद मिल सके। इसके
अतिरिक्त केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के मन्त्री सरकारी कार्य के नाम पर चुनाव के लिए
दौरे तथा सरकारी पद व सरकारी तन्त्र का दुरुपयोग करते हैं।
सुधार-सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के दो प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-
(i) चुनाव की घोषणा से लेकर चुनावों के परिणाम घोषित होने तक की अवधि में मंत्रियों
के सभी प्रकार के सरकारी दौरों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
(ii) निर्वाचन से ठीक पहले सरकार द्वारा अधिकारियों के स्थानांतरण व नियुक्तियों पर रोक
लगा दी जाए।
प्रश्न 3. पृथक निर्वाचन-मंडल और आरक्षित चुनाव-क्षेत्र के बीच क्या अंतर है?
संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन-मंडल को क्यों स्वीकार नहीं किया ? (NCERT T.B.Q.5)
उत्तर-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र व्यवस्था से अभिप्राय है कि किसी निर्वाचन क्षेत्र में सभी
मतदाता वोट डालेंगे लेकिन प्रत्याशी उसी समुदाय या सामाजिक वर्ग का होगा जिसके लिए यह
सीट आरक्षित है।
पृथक् निर्वाचन मण्डल की स्थापना अंग्रेज सरकार ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर
करने के लिए की थी। इसका अर्थ यह था कि किसी समुदाय के प्रतिनिधि के चुनाव में केवल
उसी समुदायी के लोग वोट डाल सकेंगे।
संविधान सभा में अनेक सदस्यों ने इस व्यवस्था को दोषपूर्ण बताया और कहा कि इससे
समाज में एकता नहीं हो पाएगी। पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था भारत के लिए अभिशाप रही
है। भारत का विभाजन कराने में इस व्यवस्था का भी सहयोग रहा है। पृथक निर्वाचन मंडल में
उम्मीदवार (प्रत्याशी) केवल अपने समुदाय या वर्ग का हित ही सोच पाता है और एकीकृत समाज
के भावों को उपेक्षा करने लगता है। परंतु आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र व्यवस्था में विजयी प्रत्याशी अपने
क्षेत्र के अन्तर्गत समाज के सभी वर्गों के हित की बात सोचने को बाध्य रहता है। यही कारण
है कि संविधान निर्माताओं ने पृथक निर्वाचन मंडल की पद्धति को अस्वीकार कर दिया। प्रत्येक
राज्य में आरक्षण के लिए निर्वाचन क्षेत्रों का एक कोटा होता है जो उस राज्य में उसके वर्ग या
समुदाय की जनसंख्या के अनुपात में होता है। परिसीमन आयोग इन निर्वाचन क्षेत्रों में परिवर्तन
कर सकता है।
प्रश्न 4. क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ है? क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की किन्हीं दो
विशेषताओं तथा किन्हीं दो सीमाओं की व्याख्या कीजिए।
अथवा, बहुलवादी निर्वाचन व्यवस्था के दो गुण तथा दो दोषों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर-क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व-इस व्यवस्था को सर्वाधिक वोट से जीत व्यवस्था भी कहते हैं।
इस व्यवस्था में पूरे देश को प्रादेशिक क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है। ये निर्वाचन क्षेत्र लगभग
बराबर-बराबर आकार में होते हैं। उम्मीदवारों में से निर्वाचक अपनी पसन्द के उम्मीदवार को मत
देता है और इस प्रकार जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं वह विजयी घोषित
किया जाता है। इस व्यवस्था में यह आवश्यक नहीं है कि विजयी उम्मीदवार को आधे से अधिक
मत मिले। केवल उसे अन्य उम्मीदवारों से अलग-अलग प्रत्येक से अधिक मत मिलना आवश्यक
होता है। क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के चार प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
(i) क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का आकार छोटा होता है। अतः मतदाताओं और प्रतिनिधि में सम्पर्क
बना रहता है :-
(ii) निर्वाचन क्षेत्र छोटा होने के कारण खर्च भी कम होता है।
(iii) यह प्रणाली सरल है। मतदाता एक मत का ही प्रयोग करता है। मतों की गिनती करना
भी आसान होता है।
(iv) निर्वाचन क्षेत्र छोटा होने के कारण संसद में प्रत्येक क्षेत्र के हितों का प्रतिनिधित्व होता
रहता है। राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ स्थानीय हितों की भी पूर्ति होती रहती है।
क्षेत्रीय अथवा बहुलवादी प्रतिनिधित्व के दो दोष (सीमाएं)-
(i) क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व स्पष्ट तथा सही ढंग से लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व नहीं करता।
(ii) क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व या प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की सोच तथा आवश्यकताएँ
भिन्न-भिन्न हो सकती हैं।
प्रश्न 5. आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के गुण तथा दोषों का परीक्षण कीजिए।
उत्तर-देश के शासन में अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए जिस चुनाव
प्रणाली का प्रयोग किया जाता है उसे आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली का
मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को उनकी जनसंख्या के आधार पर समान प्रतिनिधित्व देना
है। इसके निम्नलिखित गुण हैं :-
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के गुण :-
(i) प्रत्येक वर्ग या दल को उचित प्रतिनिधित्व-इस प्रथा के अनुसार समाज का कोई
भी वर्ग या देश का कोई भी दल प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं रहता। जिस वर्ग या दल के पीछे
जितने मतदाता होते हैं उसको उसी अनुपात से विधानमण्डल प्रतिनिधित्व मिल जाता है।
(ii) अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा-इस प्रणाली में अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व
मिल जाता है।
(iii) कोई वोट व्यर्थ नहीं जाता-इस प्रणाली के अधीन प्रत्येक मत गिना जाता है। यदि
कोई उम्मीदवार सफल नहीं होता तो उसके मत दूसरे उम्मीदवारों को हस्तान्तरित कर दिए जाते
हैं और इस प्रकार कोई भी मत व्यर्थ नहीं जाता।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोष :-
(i) यह प्रक्रिया जटिल है। मतदाता के लिए अपने मत का उचित प्रयोग करना कठिन है।
(ii) बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होने के कारण जनता का अपने प्रतिनिधित्व से सीधा सम्पर्क
स्थापित नहीं हो पाता है।
(iii) इस प्रणाली में प्रत्येक वर्ग के प्रतिनिधि विधान मंडल पहुंचकर अपने-अपने वर्गीय हितों
को महत्व देते हैं, जिससे राष्ट्रीय हितों की हानि होती है।
प्रश्न 6. भारत की चुनाव-प्रणाली का लक्ष्य समाज के कमजोर तबके की नुमाइंदगी
को सुनिश्चित करना है। लेकिन अभी तक हमारी विधायिका में महिला सदस्यों की संख्या
10 प्रतिशत तक भी नहीं पहुंचती। इस स्थिति में सुधार के लिए आप क्या उपाय सुझाएँगे?
उत्तर-भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण
की व्यवस्था की गई है। परन्तु संविधान में इसी प्रकार की आरक्षण व्यवस्था समाज के अन्य
कमजोर और उपेक्षित वर्गों के लोगों के लिए नहीं की गई। जैसा कि हम देखते हैं कि लोकसभा
और राज्य विधानसभाओं के अन्दर महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण अभी तक नहीं किया
गया है। विभिन्न राजनीतिक दल महिलाओं की सीटों के आरक्षण की बात करते हैं परन्तु इस प्रकार
का विधेयक संसद में लाने का प्रयास किया जाता है तो कोई दल विचारधारा को तथा कोई दल
तकनीकी कमियों को प्रकट करने की कोशिश के आधार पर विधेयक का विरोध करने लगता
है। इस प्रकार अभी तक महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित नहीं होने दिया गया है यद्यपि
मांँग सभी दल करते हैं कि महिलाओं को आरक्षण मिलना चाहिए।
प्रश्न 7. चौदहवीं लोकसभा में विभिन्न दलों की स्थिति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-चौदहवीं लोकसभा में दलों की स्थिति (मई 2005 ई०)
दल
राष्ट्रीय दल :-
कांग्रेस
भाजपा
भाकपा
माकपा
बसपा
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी 9 ए.आई.ए.डी.एम.के.
क्षेत्रीय व अन्य
पंजीकृत दल :-
समाजवाद पार्टी 36 आर. एस. पी.
राजद
डी. एम. के.
शिवसेनत
बीजू जनता दल 11 अन्य दल
शिरोमणी अकाली दल 8 निर्दलीय दल
तेलगुदेशम पार्टी
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा 5
प्रश्न 8. एक नये देश के संविधान के बारे में आयोजित किसी संगोष्ठी में वक्ताओं
ने निम्नलिखित आशाएँ जतायीं। प्रत्येक कथन के बारे में बताएं कि उनके लिए
फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (सर्वाधिक मत से जीत वाली प्रणाली) उचित होगी या समानुपातिक
प्रतिनिधित्व वाली प्रणाली?
(क) लोगों को इस बात की साफ-साफ जानकारी होनी चाहिए कि उनका प्रतिनिधि
कौन है ताकि वे उसे निजी तौर पर जिम्मेदार ठहरा सकें।
(ख) हमारे देश में भाषाई रूप से अल्पसंख्यक छोटे-छोटे समुदाय हैं और देश भर
में फैले हैं, हमें इनकी ठीक-ठीक नुमाइंदगी को सुनिश्चित करना चाहिए।
उत्तर-(क) F.P.T.P.(ख) समानुपातिक प्रतिनिधित्व।
प्रश्न 9. भारत में चुनाव आयोग के अधिकार एवं कार्य क्या हैं ? [B.M.2009A]
उत्तर-निर्वाचन आयोग के अधिकार एवं कार्य:-चुनाव व्यवस्था लोकतांत्रिक प्रणाली
का प्राण है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भारतीय संविधान में एक ऐसे सांविधानिक आयोग
की स्थापना की गई है जिसका प्रमुख कार्य भारतीय संघ के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, लोकसभा,
राज्यसभा एवं भारतीय संघ के सभी राज्यों के विधान मंडलों के चुनाव संपन्न कराना है। इसी
सांविधानिक आयोग का निर्वाचन आयोग के नाम से जाना जाता है। निर्वाचन आयोग, मुख्य
निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य आयुक्त से संबंधित व्यवस्था अनुच्छेद-324 में की गई है। मुख्य चुनाव
आयुक्त एवं अन्य आयुक्तों को नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। मुख्य चुनाव आयुक्त का
कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की अवधि तथा अन्य आयुक्त का 6 वर्ष या 62 वर्ष के लिए की
जाती है। आयोग निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन मतदाता सूची तैयार करना, राजनीतिक दलों की
मान्यता प्रदान करना एवं चुनाव करवाना है।
प्रश्न 1. एक भूतपूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने एक राजनीतिक दल का सदस्य बनकर
चुनाव लड़ा। इस मसले पर कई विचार सामने आए। एक विचार यह था कि भूतपूर्व मुख्य
चुनाव आयुक्त एक स्वतंत्र नागरिक है। उसे किसी राजनीतिक दल में होने और चुनाव लड़ने
का अधिकार है। दूसरे विचार के अनुसार, ऐसे विकल्प की संभावना कायम रखने से चुनाव
आयोग की निष्पक्षता प्रभावित होगी। इस कारण, भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयोग की निष्पक्षता
को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। आप इसमें किस पक्ष से सहमत हैं और
क्यों?
उत्तर-किसी भी चुनाव प्रणाली को सही रूप से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित की जाए। यदि लोकतंत्र को वास्तविक रूप देना है
तो यह अत्यावश्यक है कि चुनाव प्रणाली निष्पक्ष व पारदर्शी हो। भारत के संविधान में अनुच्छेद
324(1) में यह व्यवस्था की गयी है कि संसद और प्रत्येक राज्य विधान मण्डल के लिए कराए
जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों के लिए
निर्वाचक नामावली तैयार कराने और उन सभी निर्वाचनों के संचालन अधीक्षण, निर्देशन और
नियंत्रण एक आयोग में निहित होगा (जिसे इस संविधान में निर्वाचन आयोग कहा गया है)। भारत
का निर्वाचन आयोग एक सदस्यीय अथवा बहुसदस्यीय हो सकता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं
निर्वाचन आयुक्तों को ईमानदारी से स्वतंत्रतापूर्वक अपने कार्यों एवं दायित्वों का निर्वाह करना
चाहिए। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराया जाना ही लोकतंत्र की सफलता का सूचक है और
अनिवार्य शर्त भी। यदि लोकतंत्र को वास्तविक रूप देना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि चुनाव
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हो। चुनाव प्रणाली निष्पक्ष और पारदशी होना चाहिए। मुख्य निर्वाचन
आयुक्त की भूमिका इस कार्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। यदि शासक दल किसी पक्षपात
करने वाले व्यक्ति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करे तो निर्वाचन में निष्पक्षता संदिग्ध हो
सकती है। अत: आजकल एक धारणा यह भी है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति में विपक्ष
के नेता एवं सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श किया जाए ताकि निर्वाचन आयोग
की निष्पक्षता बनी रहे।
इस प्रश्न के अनुसार यदि सेवानिवृत्ति के बाद चुनाव आयुक्त के किसी राजनीतिक दल के
साथ मिलने और चुनाव लड़ने की छूट होने की संभावना बनती है तो वह अपने कार्यकाल में उस
राजनीतिक दल के पक्ष में निर्वाचन कार्य को प्रभावित करना शुरू कर सकता है। अतः मुख्य
निर्वाचन आयुक्त को रिटायर होने के बाद भी राजनीतिक दल का सदस्य बनने और चुनाव लड़ने
पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए।
प्रश्न 2. भारत का लोकतंत्र अब अनगढ़ ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली को छोड़कर
समानुपातिक प्रतिनिध्यात्मक प्रणाली को अपनाने के लिए तैयार हो चुका है’ क्या आप इस
कथन से सहमत हैं ? इस कथन के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दें। NCERT TR.Q.10)
उत्तर-जब भारत का संविधान बनाया गया तो वहाँ इस बात पर विवाद होने के पश्चात् कि
भारत की परिस्थितियों को देखते हुए भारत के चुनाव में ‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ अर्थात् सर्वाधिक
वोट से जीत वाली प्रणाली को अपनाया गया। केवल राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति तथा राज्यसभा और
विधान परिषद के सदस्यों के निर्वाचन में समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाया गया। उस
समय सर्वाधिक मत जीत वाली प्रणाली को अपनाने से एक दल का वर्चस्व रहा जिसके साथ-साथ
अनेक छोटे दल भी उभर कर आए।1989ई. के बाद भारत में बहुदलीय गठबंधन की
कार्यप्रणाली प्रचलन में आई। यद्यपि सर्वाधिक मत जीत प्रणाली को अपनाने का कारण इसके सरल
प्रणाली होने के साथ-साथ इस बात की संभावना को भी ध्यान में रखा गया था कि समानुपातिक
प्रणाली में किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने में कठिनाई आ सकती है। पर आज जबकि FPTP
प्रणाली से ही हम पाते हैं कि भारत में गठबन्धन सरकारें बनाना अनिवार्य हो गया है। इसके साथ
ही जो पार्टी चुनाव के समय लोकसभा में कांग्रेस ने 48% मत प्राप्त करके 415 सीटें प्राप्त की
थीं जबकि भाजपा ने 24% मत प्राप्त किया और केवल दो सीटें प्राप्त की। इस प्रकार इस प्रणाली
में जहाँ मतों के अनुपात में सीटें उपलब्ध नहीं होती वहीं यह भी एक अत्यधिक विचारणीय प्रश्न
है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में कई उम्मीदवार होने के कारण विजयी उम्मीदवार यदि 30 प्रतिशत
मत प्राप्त करता है तो 70 प्रतिशत मत हारने वाले उम्मीदवारों में बंट जाते हैं। इस प्रकार विजयी
उम्मीदवार उस जनता का प्रतिनिधित्व करता है जो अल्पमत में है। अत: आज के युग में सही
प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के लिए यदि समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को अपनाया जाए तो यह
अधिक हितकर हो सकता है। भारत जो विविधताओं का देश है उसमें प्रत्येक वर्ग, समुदाय और
विचारधाराओं का उचित प्रतिनिधित्व हो पाएगा और संसद या राज्य विधानमण्डल में प्रत्येक
नागरिक को अपना प्रतिनिधित्व दिखाई देगा जिससे वह अपने को असहाय महसूस नहीं करेंगे।
प्रश्न 3. सर्वाधिक मत जीत प्रणाली के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-‘फर्स्ट पास्ट द पोस्ट’ प्रणाली अथवा क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली में पूरे देश को समान
जनसंख्या के अनुपात में विभिन्न क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है जितने कि सदस्य चुने जाते हैं। निर्वाचन
क्षेत्रों की सीमाएंँ समय-समय पर बदली जाती हैं। ऐसा जनसंख्या के घटने या बढ़ने के कारण
किया जाता है। उत्तर प्रदेश, दिल्ली की सीटों पर जनसंख्या अनुपात में असमानता होने से निर्वाचन
क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या असमान है। इसमें सुधार हेतु पुनर्सीमन किया जा रहा है।
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के गुण-
(i) यह प्रणाली सरल तथा व्यावहारिक है। इस चुनाव प्रणाली में मतदाता को कई उम्मीदवार
में से किसी एक का ही चुना हाता हा मतदाताका अपमाणपसन्द का उम्मीदवार चुनने में कोई
कठिनाई नहीं होती।
(ii) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का एक गुण यह भी है कि इससे राष्ट्र का आर्थिक विकास
होता है।
(iii) इस प्रणाली के कारण जनता के हितों की रक्षा होती है। प्रत्येक प्रतिनिधि एक राजनीतिज्ञ
होता है। वह देश की राजनीति में अपनी रुचि रखता है और दोबारा चुने जाने के उद्देश्य से अपने
निर्वाचन क्षेत्र की जनता के हितों की पूर्ति कराता है।
(iv) राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है। प्रतिनिधि राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखकर कार्य करते हैं।
(v) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के लोगों के प्रति उत्तरदायी
होता है। यदि प्रतिनिधि जनता के हित में कार्य नहीं करता है तो जनता अगले चुनाव में उसे अपना
समर्थन नहीं देती। इस भय के कारण प्रतिनिधि अपने उत्तरदायित्व को परा करने का प्रयास करते
रहते हैं।
(vi) इस प्रणाली में मतदाता और प्रतिनिधि के बीच सीधा सम्पर्क बना रहता है। साधारणतया
एक निर्वाचन क्षेत्र में एक प्रतिनिधि चुना जाता है। इसमें मतदाता अपनी शिकायतों को अपने
प्रतिनिधि तक आसानी से पहुंचा सकता है और प्रतिनिधि उन शिकायतों का निराकरण करता है।
(vii) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लोकतंत्रीय सिद्धांतों पर आधारित है। लोकतंत्र का प्रमुख
सिद्धांत है कि सभी मनुष्य समान हैं। किसी के प्रति भी जाति, धर्म, लिंग, वर्ण या नस्ल आदि
के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
(viii) प्रादेशिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के पक्ष में एक तर्क यह भी कि इसमें प्रतिनिधि मंत्रिमंडल
का निर्माण आसानी से कर लेते हैं।
(ix) यह प्रणाली कम खर्चीली है क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र अधिक बड़ा नहीं होता। उम्मीदवारों
को अपने चुनाव प्रचार में अधिक पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के दोष-
(i) इस प्रकार की प्रणाली में यह दोष है कि प्रतिनिधि राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा अपने क्षेत्र
के हितों पर अधिक ध्यान देता है। इस प्रकार राष्ट्रीय हितों की अवहेलना होने लगती है।
(ii) मतदाताओं की पसन्द सीमित हो जाती है क्योंकि उम्मीदवार उसी निर्वाचन क्षेत्र से होते
हैं और यदि उनमें कोई भी योग्य उम्मीदवार नहीं है तो भी मतदाता को उन्हीं में से एक को मत
देना होता है।
(iii) मतदाताओं की आवश्यकताओं और हितों में भिन्नता होती है। इस कारण एक प्रतिनिधि
के लिए यह संभव नहीं कि वह सभी के हितों का प्रतिनिधित्व कर सके।
(iv) इस प्रणाली में अल्पसंख्यकों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।
(v) इस प्रणाली का एक दोष यह भी है कि इसमें उम्मीदवार सभी वर्गों का मत प्राप्त करने
के लिए झूठे आश्वासन देने लगते हैं।
(vi) मतदाताओं को भ्रष्ट किए जाने की संभावना रहती है।
प्रश्न 4. व्यावसायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली किसे कहते हैं? उसके गुण-दोषों का वर्णन
कीजिए।
उत्तर– व्यवसायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली-प्रादेक्षिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को त्रुटिपूर्ण मानते
हुए कुछ राजनीतिशास्त्रियों ने विकल्प के रूप में व्यावसायिक या प्रकार्यात्मक पद्धति का सुझाव
दिया है। व्यावसायिक प्रतिनिधित्व का आधार पेशा या व्यवसाय होता है, न कि प्रादेशिक क्षेत्र।
एक ही व्यवसाय में लगे लोगों के हित एक समान होते हैं न कि एक प्रदेश में रहने वाले लोगों
के। श्रमिकों का प्रतिनिधित्वं श्रमिक, वकीलों का प्रतिनिधित्व वकील, डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व
डॉक्टर, किसानों का प्रतिनिधित्व किसान तथा व्यापारियों का प्रतिनिधित्व व्यापारी ही करें तो देश
में सच्चा लोकतंत्र स्थापित होगा।
व्यावसायिक प्रतिनिधित्व के गुण-
(i) यह प्रणाली क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व प्रणाली के दोषों को दूर करती है। इस प्रणाली से चुने
गए प्रतिनिधियों वाला विधानमण्डल वास्तव में लोगों के विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करेगा।
(ii) गिल्ड समाजवादी कोल का कथन है कि “वास्तविक लोकतंत्र एक सर्वशक्तिमान
प्रतिनिधि सभा में संगठन में पाया जाता है।” उयुग्वी ने कहा है कि “विभिन्न गुटों को प्रतिनिधित्व
प्रदान करके जनइच्छा को उपयुक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जा सकती है।”
(iii) व्यावसायिक प्रतिनिधित्व में क्योंकि प्रतिनिधि व्यवसाय के आधार पर चुने जाते हैं अत:
इसमें अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का प्रश्न नहीं होता।
(iv) व्यावसायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली एक व्यावहारिक प्रणाली है। यदि निम्न सदन के
प्रतिनिधि प्रादेशिक प्रतिनिधित्व के आधार पर चुने जाएं तो सच्चा लोकतंत्र स्थापित होगा।
व्यवसायिक प्रतिनिधित्व के दोष-
(i) इसके फलस्वरूप राष्ट्रीय विधायिका वर्गीय और विशेष हितों की सभा बन जाएगी और
ये प्रतिनिधि राष्ट्रीय हितों की उचित ध्यान नहीं रखेंगे।
(ii) व्यावसायिक प्रतिनिधित्व सामाजिक गुटों की स्वायत्तता पर अधिक बल देता है जो राज्य
के सर्वोच्च सत्तात्मक प्राधिकरण के लिए चुनौती बन जाती है।
(iii) राष्ट्रीय एकता को हानि पहुँचती है।
(iv) व्यावसायिक प्रतिनिधित्व से आर्थिक पक्ष का प्रतिनिधित्व तो ठीक-ठाक हो जाता है
परंतु मानव जीवन के अन्य पक्षों की अवहेलना होती है।
प्रश्न 5. भारत के विगत 14 आम चुनावों के दौरान मतदाताओं के प्रतिमानों व रुझानों
का वर्णन कीजिए।
उत्तर-विगत चौदह आम चुनावों के दौरान भारतीय मतदाताओं के द्वारा मतदान व्यवहार के
जो प्रतिमान व रुझान प्रकट हुए हैं उनका विवरण इस प्रकार है- मतदाताओं के निर्णय अपने
सामाजिक समूह, दीर्घव्यवस्था की दशा, दल का नेतृत्व करने वाले नेताओं तथा दल की छवि,
चुनाव अभियान तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान देते हुए मतदान किया गया है। भारतीय मतदाता के
बारे में जो प्रारम्भ में आशंकाएं प्रकट की गयी थीं उन्हें मतदाता ने निर्मूल सिद्ध किया और लोकतंत्र
की जड़ों को मजबूत करते हुए भारतीय मतदाता ने अपनी परिपक्वता का परिचय दिया है। समय
के साथ निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका और उनका भाग्य अन्धकारमय बना है। 1951-52 ई.
से लेकर 1969 ई० तक पहले आम चुनावों में भारतीय मतदाताओं ने कांग्रेस के पक्ष में मतदान
किया है। 1971 ई० में इन्दिरा गांधी ने नेतृत्व और उनके द्वारा दिए गए ‘गरीबी हटाओ’ के नारे
का सम्मान करते हुए कांग्रेस (ई) को भारी बहुमत से चुनाव जिताया। 1977 ई० में इन्दिरा गांँधी
की नीतियों को ठुकराते हुए भारतीय मतदाता ने जनता पार्टी को सत्तारूढ़ किया परंतु उसके घटक
दलों में एकता और समन्वय की भावना न रहने के कारण 1980 ई० में भारतीय मतदाता ने फिर
से राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी को कांग्रेस (ई) को भारी बहुमत
से चुनाव जिताया। 1984 ई० में इंदिरा गांधी की हत्या से उत्पन्न सहानुभूति और भ्रष्टाचार समाप्त
करने की आशा में राजीव गांधी को पूर्ण बहुमत दिया। इसके बाद से स्थानीय हितों की उपेक्षा
से नाराज होकर भारतीय मतदाता किसी एक दल को पूर्ण बहुमत न देते हुए गठबन्धन का जनादेश
देता आया है।
1989, 1991, 1996, 1988, 1999, 2004 ई० इन सभी आम चुनावों में भारतीय मतदाता
का सम्मान गठबन्धन सरकारों की ओर उन्मुख हुआ है। स्वतंत्र निर्दलीय उम्मीदवारों की ओर
मतदाताओं का झुकाव अब बहुत ही कम रह गया है।
प्रश्न 6. भारत की निर्वाचन पद्धति के दोषों का वर्णन करते हुए उनके सुधार के उपाय
बताइए।
उत्तर-भारत में अब तक 14 आम चुनाव हो चुके हैं। यद्यपि ये सभी चुनाव सामान्यतः
शान्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुए परंतु कुछ ऐसी त्रुटियाँ आ गयी हैं जिनके कारण जनता की आस्था
चुनावों में कम होने लगी है। अतः प्रबुद्ध वर्ग का ध्यान चुनाव में सुधार की ओर आकर्षित हुआ
है। 1983-84 ई० में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त श्री आर. के. त्रिवेदी ने चुनाव प्रक्रिया की
ये कमियाँ बताई। एक चुनाव में धन का बढ़ता प्रयोग, दो फर्जी मतदान, तीन चुनाव में बाहुबल
का प्रयोग और चार मतदान केन्द्रों पर कब्जा।
1990 में दिनेश गोस्वामी समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए-
(i) मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने की घटनाओं को रोकने के लिए पुनर्मतदान कराया जाए।
(ii) आरक्षित सीटों के लिए रोटेशन पद्धति अपनायी जाए।
(iii) सभी मतदाताओं को फोटो पहचान पत्र दिए जाए।
(iv) चुनाव याचिकाओं का शीघ्र निपयरा किया जाए।
(v) इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों का प्रयोग किया जाए।
(vi) किसी भी रिक्त स्थान के लिए 6 माह के अन्दर उपचुनाव कराया जाए।
विविध पक्षों द्वारा दिए गए सुझावों में से अधिकांश स्वीकार किए जा चुके हैं परंतु अभी
भी चुनाव प्रक्रिया में अनेक त्रुटियाँ हैं और इन त्रुटियों का उपचार निम्न प्रकार से किया
जा सकता है :-
(क) FPTP के स्थान पर PR पद्धति अपनायी जानी चाहिए तभी राजनीतिक दलों को प्राप्त
जन समर्थन और प्राप्त सीटों की संख्या में अन्तर को समाप्त किया जा सकता है।
(ख) चुनाव में धन के अत्यधिक प्रयोग पर अंकुश लगाना जरूरी है। इसके लिए
निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
(i) राजनीतिक दलों के आय-व्यय की विधिवत जांँच हो।
(ii) संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों।
(iii) चुनाव अवधि में सार्वजनिक संस्थाओं को अनुदान देने पर रोक लगे।
(iv) चुनाव खर्च राज्य सरकार द्वारा वहन करना।
(ग) चुनाव में बाहुबल और हिंसा का प्रयोग रोकने के कदम उठाये जाएं। इसके लिए
संबंधित राज्य से बाहर के राज्यों की पुलिस और अर्धसैनिक बल पर्याप्त मात्रा में बुलाए जाएँ।
हथियारों के लाने ले जाने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
(घ) जाली मतदान रोकने के लिए फोटो पहचान पत्र अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए।
(ङ) चुनाव में अपराधी तत्वों को खड़ा होने से रोकने के लिए जन प्रतिनिधित्व कानून में
परिवर्तन किया जाना चाहिए।
(च) निर्दलीय उम्मीदवारों की बड़ी संख्या को कम करने के लिए 1996 में जमानत की
राशि दस गुना बढ़ा दी गयी है।
(छ) सत्तादल द्वारा प्रशासनिक तन्त्र का दुरुपयोग रोकने के लिए चुनाव शुरू होने के दिन
से लेकर नयी सरकार का गठन होने तक कामचलाऊ सरकार कार्य करे।
(ज) निर्वाचन याचिकाओं की सुनवाई शीघ्रता से की जानी चाहिए।
(झ) प्रत्येक 10 वर्ष बाद निर्वाचन क्षेत्रों का अनिवार्य तौर पर परिसीमन कराया जाए।
प्रश्न 7. लोकतंत्र में चुनाव क्यों आवश्यक है ? चुनाव सुधार के लिए सरकार द्वारा
किए गए प्रयासों को लिखें।
उत्तर-लोकतंत्र में लोग दो तरह से शासन में भागीदारी निभाते हैं। एक प्रत्यक्ष ढंग से और
दूसरा अप्रत्यक्ष ढंग से अप्रत्यक्ष ढंग से लोकतंत्र में भागीदारी अपने प्रतिनिधि के माध्यम से निभाते
हैं। लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। चुने गये प्रतितिधि ही शासन और प्रशासन को
चलाने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। सुयोग्य प्रतिनिधि ही लोगों की इच्छा, आवश्यकता और
समस्याओं को भली भाँति समक्ष सकते हैं इसलिए लोकतंत्र में चुनाव आवश्यक है।
लोकतंत्र में चुनाव में हमेशा गड़बड़ी होती रही है या गड़बड़ी होने की आशंका बनी रहती
है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत में 1951 में प्रथम आम चुनाव हुए तब से लेकर आज
तक चुनावों में व्यापाक धांधली हुई है जो लोकतंत्र को ककित किया है। इसलिए भारत सरकार
चुनाव सुधार के लिए कई प्रयास किये हैं। इसके लिए कई समितियाँ भी बनाई जैसे-तारा कुण्डे
समिति, 1975 गोस्वामी समिति 1990, आदि। इसके अलावे भी चुनाव सुधार के लिए सरकार
द्वारा अनेक उपाय किये हैं जैसे- 1983 ई० में चुनाव आयोग सभी राजनीतिक दलों के साथ बैठक
की जिसमें निष्पक्ष चुनाव पर सहमती बनी, 1996 में जन प्रतिनिधि कानून में कई संशोधन किए
1997 में राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी नियमों में परिवर्तन किया। 2002 में सर्वोच्च
न्यायालय ने यह निर्देश जारी किया की अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोका जाय।
न्यायालय के निर्देश के बाद सरकार ने यह निर्णय किया कि चुनाव आचार संहिता लागू
होने के बाद कोई भी पार्टी कोई ऐसी घोषणा या निर्देश नहीं जारी कर सकता है जिसे निष्पक्ष
चुनाव होने में समस्या उत्पन्न हो सकती है।