Bihar board class 12th solutions sociology
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भारतीय समाज
भारतीय समाज : एक परिचय
(Introducing Indian Society)
स्मरणीय तथ्य
*उपनिवेशवाद (Colonialism) : साम्राज्यवादी देशों द्वारा अन्य छोटे राष्ट्रों में अपनी सरकार
स्थापित करना उपनिवेशवाद है।
*राष्ट्रवाद (Nationalism): राष्ट्रवाद एक ऐसी भावना है जो अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव उत्पन्न करती है। राष्ट्रवाद की भावना के कारण ही हम स्वतंत्र हो सके हैं।
*वर्ग (Class) : भारतीय समाज का विभाजन कई आधारों पर हुआ है, यह विभाजन ही वर्ग कहलाता है।
* साम्प्रदायिकता (Communalism): एक धार्मिक समुदाय का दूसरे धार्मिक समुदाय के प्रति विद्वेष।
*समाजीकरण (Socialization): समाज से सामंजस्य बैठाने की एक प्रक्रिया।
*समाजीकृत (Socialigical): समाज द्वारा बनाए गए या निर्मित किए गए।
*लैंगिक (Gender): समाज में पाए जाने विभिन्न स्त्री-पुरूष विभेद का लैंगिक असमानता की संज्ञा दी गई है।
(एन.सी.ई.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(Objective Questions)
- राष्ट्रीयता का तात्पर्य है : .
[M.Q.2009A]
(क) सामान्य सामाजिक पृष्ठभूमि
(ख) सामान्य जातिगत पृष्ठभूमि
(ग) सामान्य भौगोलिक पृष्ठभूमि
(घ) उपर्युक्त कोई सही नहीं
उत्तर-(ग)
- उपनिवेशवाद निम्नलिखित किस सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था की उपज है ?
.. [M.Q.2009A]
(क) समाजवाद :
(ख) पूँजीवाद
(ग) साम्यवाद
(घ) अंतर्राष्ट्रीयवाद
उत्तर-(ख)
- भारतीय समाज में पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या- [M.Q.2009A]
(क) अधिक है
(ख) कम है
(म) समान है
(घ) उपर्युक्त कोई
उत्तर-(ख)
- भारत में किस प्रांत में स्त्री शिक्षा का दर सर्वाधिक है ? [M.Q.2009A]
(क) महाराष्ट्र
(ख) आंध्र प्रदेश
(ग) तमिलनाडु
(घ) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर-(घ)
- भारत के किस प्रांत में शिक्षा की दर सबसे निम्न है ? [M.Q.2009 A]
(क) उत्तर प्रदेशं
(ख) राजस्थान
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) बिहार
उत्तर-(घ)
- ग्रामीण एवं नगरीय समाज को बीच निम्नलिखित में कौन अंतर का आधार
_ [M.Q.2009 A]
(क) जनसंख्यात्मक आधार
(ख) समुदाय का आकार
(ग) सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
- उपनिवेशवाद का संबंध निम्नलिखित में से किस व्यवस्था से है ?
[M.Q. 2009A]
(क) पूँजीवाद
(ख) समाजवाद
(ग) साम्राज्यवाद
(घ) साम्यवाद
उत्तर-(ग)
- टी० के० उम्मन ने संप्रदायवाद के कितने आयामों को रेखांकित किया है ?
[M.Q.2009 A]
(क) दो आयामों को
(ख) चार आयामों को
(ग) छः आयामों को
(घ) आठ आयामों को
उत्तर-(ग)
- रेडिकल नारीवाद के अनुसार लैंगिक असमानता का मूल कारण क्या है ?
[M.Q.2009A]
(क) पितृसत्ता है
(ख) मातृसत्ता है
(ग) दोनों में कोई भी नहीं
(घ) नहीं कह सकते
उत्तर-(क)
- सामाजिक वर्ग एक समुदाय का कोई भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक किया जा सके। यह कथन किसका है ?
(क) ऑगबर्न तथा निमकॉफ
(ख) मैकाइवर एवं पेज
ग) बोगार्डस
(घ) गॉन एच टैण्डल –
उत्तर-(ख)
- राष्ट्र से अभिप्राय एक जाति अथवा वंशगत विशेषताओं वाला मानव संगठन है। यह
कथन किसका है?
(क) बर्गेस
(ख) मैकाइवर एवं पेज
(ग) लीकॉक
(घ) बोगार्डस
उत्तर-(ग)
- भारतीय समाज का विभाजन कई आधारों पर हुआ है, यह विभाजन ही कहलाता है
(क) समुदाय
(ख) उपनिवेशवाद
(ग) राष्ट्रवाद
(घ) वर्ग
उत्तर-(क)
- आर्थिक आधार पर समाज कितने वर्गों में विभक्त है ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर-(ग) 1
- भारतीय गाँवों की जनसंख्या सामान्यतः से कम होती है(क) चार हजार
(ख) तीन हजार
(ग) पाँच हजार
(घ) सात हजार
उत्तर-(ग)
- उपनिवेशवाद का सम्बन्ध निम्न में किससे है ?
[B.M.2009 A]
(क) राष्ट्रवाद
(ख) प्रजातिवाद
(ग) साम्राज्यवाद
(घ) पूँजीवाद
उत्तर-(घ)
- रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
(1) सामाजिक संरचना ……………. होती है।
(2) भारत में राष्ट्रवाद …………… सदी में जागृत हुआ।
(3) स्त्री-पुरुष विभेद को …………. असमानता की संज्ञा दी गई है।
(4) समाज से सामंजस्य बैठाने की प्रक्रिया को …………… कहते हैं।
(5) व्यक्ति प्रयास करने पर अपने …………… में परिवर्तन ला सकता है।
उत्तर-(1) अमूर्त, (2) 19वीं, (3) लैंगिक, (4) समाजीकरण, (5) वर्ग।
- निम्नलिखित कथनों में सत्य एवं असत्य बताइये :
(1) भारत गाँवों का देश कहलाता है।
(2) भारत में लगभग दस लाख गाँव है।
(3) भारतीय पंचांग के अनुसार सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्य किए जाते हैं।
(4) नगर ग्रामों का छोटा स्वरूप है।
(5) साम्राज्यवादी देशों द्वारा अन्य छोटे राष्ट्रों में अपनी सरकार स्थापित करना उपनिवेशवाद
उत्तर-(1) सत्य, (2) असत्य, (3) सत्य, (4) असत्य, (5) सत्य।
अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ?
B.M.2009 A]
उत्तर-शक्तिशाली एवं उन्नत देशों द्वारा कमजोर और पिछड़े हुए देशों पर अपना अधिकार स्थापित कर लेना उपनिवेशवाद है।
प्रश्न 2. नव उपनिवेशवाद क्या है ?
उत्तर-नए स्वतंत्र हुए देशों पर विकसित देशों द्वारा शोषण विशेषकर आर्थिक शोषण और वर्चस्व स्थापित करने की प्रक्रिया को ‘नव-उपनिवेशवाद’ का नाम दिया जाता है।
प्रश्न 3. सामाजिक वर्ग से क्या आशय है ?
उत्तर-जब जन्म के अतिरिक्त समाज-किसी भी आधार पर विभिन्न समूहों में बँट जाता है तो इस प्रकार के समूहों को सामाजिक वर्ग कहते हैं।
प्रश्न 4. सामाजिक वर्ग की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-“सामाजिक वर्ग एक समुदाय का कोई भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक् किया जा सके।”-मैकाइवर एवं पेज।
“सामाजिक वर्ग उन व्यक्तिों के समुदाय को कहते हैं, जिनकी किसी समाज में सामाजिक . स्थिति आवश्यक रूप से एक समान होती है।”-ऑगबर्न तथा निमकॉफ।
प्रश्न 5. समुदाय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-एक समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह है, जिसमें कुछ अंशों में ‘हम की भावना’ (We feeling) पाई जाती है तथा जो एक निश्चित भू-क्षेत्र में रहता है।-बोगार्डस। •
प्रश्न 6. मानव समाज में वर्ग की स्थिति क्या है ?
उत्तर-मानव समाज में कभी भी सभी व्यक्तियों की स्थिति या वर्ग एक समान नहीं रहे हैं। इनमें किसी-न-किसी आधार पर सदैव असमानता पाई जाती रही है। .
प्रश्न 7. वर्तमान भारतीय समाज में वर्ग की क्या दशा है ?
उत्तर-वर्ग के आधार पर भारत में सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया अभी अपेक्षाकृत नवीन है। आज भारतीय समाज में पश्चिमी देशों के समान ही वर्ग-व्यवस्था पनप रही है; आज का । भारतवासी किसी-न-किसी वर्ग जैसे डॉक्टर वर्ग, इंजीनियर वर्ग, लेखक वर्ग, अध्यापक वर्ग आदि का सक्रिय सदस्य है।
प्रश्न 8. ‘राष्ट्रवाद’ का प्रयोग क्यों किया गया ?
उत्तर-राष्ट्रवाद का प्रयोग राष्ट्र की राजनैतिक स्वतंत्रता की रक्षा या प्राप्ति के हेतु संगठित लड़ाई के लिए किया गया।
प्रश्न 9. भारत में राष्ट्रवाद कब जागृत हुआ ?
उत्तर-भारत में राष्ट्रवाद 19वीं सदी के मध्य में जागृत हुआ।
प्रश्न 10. भारत में राष्ट्रवाद को बढ़ावा किस प्रकार मिला ?
उत्तर-भारत में राष्ट्रवाद को दिशा देने में अनेक राजनीतिक दलों व समूहों क सहभागिता रही है और इनके मिले-जुले प्रयासों से ही 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो सका।
प्रश्न 11. उन देशों के नाम लिखो जिन्होंने 16वीं और 18वीं सदी के मध्य विश्व में साम्राज्यवादी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया। ।
उत्तर-ऐसे देशों में पुर्तगाल, स्पेन, हॉलैंड, इंग्लैंड और फ्रांस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्रश्न 12. सामाजिक संरचना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-सामाजिक संरचना अमूर्त होती है, सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक संरचना का महत्वपूर्ण पक्ष है।
प्रश्न 13. समुदाय के आवश्यक तत्व कौन-से हैं ?
उत्तर-समुदाय के आवश्यक तत्व हैं(i) व्यक्तियों का समूह, (ii) निश्चित भू-भाग, (iii) सामुदायिक भावना।
लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. राष्ट्रवाद क्या है ? राष्ट्र की परिभाषा दीजिए। [B.M.2009 A]
उत्तर-जॉन एच रैण्डल (John H. Randall) का मत है कि राष्ट्रवाद संभवतः एक ऐसे विचार का सिद्धांत है जिसके लिए आज भी मानव समुदाय अपने प्राण न्योछावर करने को सिद्ध करता है। राष्ट्रवाद के अतिरिक्त अन्य कोई सिद्धांत या शक्ति किसी एक देश के निवासियों को रोमांचित नहीं कर पाती और राष्ट्रीय भावना या चेतना को छोड़कर दूसरा कोई विचार एक देश के निवासियों को प्रेरणा एवं जीवनदान प्रदान नहीं कर पाता।
राष्ट्र को अनेक विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है
बर्गेस के अनुसार “वह जनसमूह जिसमें जातीय एकता हो और जो भौगोलिक एकता वाले प्रदेश में बसा हुआ हो, राष्ट्र कहलाता है।”
लीकॉक के अनुसार, “राष्ट्र से अभिप्राय एक जाति अथवा वंशगत विशेषताओं वाला मानव संगठन है।” .
प्रश्न 2. वर्ग का अर्थ और परिभाषा लिखिए।
उत्तर-जब जन्म के अतिरिक्त समाज किसी भी आधार पर विभिन्न समूहों में बँट जाता है तो इस प्रकार के समूहों को सामाजिक वर्ग कहा जाता है। इस प्रकार का विभाजन प्रत्येक समाज में पाया जाता है। कुछ भी हो, विभिन्न विचारकों की परिभाषाओं से वर्ग की धारणा पर्याप्त स्पष्ट हो जाएगी।
(1) मैकाइवर और पेज (Mar:Iver and Page) : “सामाजिक वर्ग एक समुदाय का कोई भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक् किया जा सके।” .
(2) ऑगबन तथा निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff): “सामाजिक वर्ग उन व्यक्तियों के समुदाय को कहते हैं, जिनकी किसी समाज में सामाजिक स्थिति आवश्यक रूप से एक समान होती है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक वर्ग जन्म के अतिरिक्त किसी भी आधार पर बना हुआ व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो सामाजिक स्थिति में अन्य समूहों से भिन्न है। उदाहरणार्थ डॉक्टर वर्ग, धनी वर्ग, निर्धन वर्ग, शिक्षक वर्ग, श्रमिक वर्ग आदि।
प्रश्न 3. वर्ग व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-सामाजिक वर्ग सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रकार है जो कि सबसे अधिक औद्योगिक समाजों में देखने को मिलता है। सामाजिक वर्ग सामान्यतः ऐसे लोगों का समूह है जो धन आय, व्यवसाय और शिक्षा जैसे कारकों के आधार पर संबंधित होते हैं। वर्ग स्तरीकरण की र व्यव ा है जिसमें एक व्यक्ति की सामाजिक परिस्थिति उसके धन के अर्जन पर निर्भर करती है। यह व्यक्तियों को अपना विकास करने की स्वतंत्रता देता है और इससे अपनी स्थिति को बदल
सकता है। वर्ग व्यवसाय को चुनने के लिए बढ़ावा देता है। वर्ग की सदस्यता जाति की सदस्यता की भाँति वंशानुगत नहीं होती। विभिन्न वर्गों के मध्य अन्तरवर्गीय विवाह पर कोई प्रतिबंध नहीं
‘अपनाता है।
प्रश्न 4, ग्रामीण भारत में वर्ग व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-आधुनिक भारत में सामाजिक वर्ग भारतीय सामाजिक संरचना का एक महत्वपूर्ण अंश है। इसकी जड़ें अंग्रेजी शासन के दिनों में पड़ी थीं। अंग्रेजी शासन के दौरान भारत में एक ग्रामीण वर्ग था जो कृषि पर निर्भर करता था। ग्रामीण समुदाय एक आत्मनिर्भर इकाई था। वे केवल अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का ही उत्पादन कर पाते थे। उनके पास बचत नहीं थी। अतः संपूर्ण समाज निर्धन बना रहता था। व्यापारियों, कारीगरों और अन्य लोगों का एक अलग वर्ग था। अंग्रेजी
औपनिवेशिक शासन ने ग्रामीण व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया। भू-राजस्व की नई प्रणाली ने एक नए वर्ग जमींदार वर्ग को जन्म दिया, जो बाद में बड़े-बड़े धू-खंडों के वंशानुगत स्वामी बन गए। जमींदार सरकार को एक निश्चित राशि जमा कराते थे और किसान से जबरदस्ती लगान वसूल करते थे। महाजनों का एक नया वर्ग उभरकर सामने आया जो किसानों को उधार देते थे। अतः उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। इस अंग्रेजी व्यवस्था में सबसे अधिक प्रभावित हुए शिल्पकार। अंग्रेजों ने स्वदेशी ग्रामीण उद्योगों को नष्ट कर दिया। अनेक शिल्पकार श्रमिक बन गए।
प्रश्न 5. भारत के नगरों में वर्ग व्यवस्था को समझाइये।
उत्तर-अंग्रेजी शासन काल से पूर्व भारत अपने कुटीर उद्योगों और हस्त कौशल के लिए विख्यात था। यहाँ की बनी हुई वस्तुएँ सारे संसार में निर्यात की जाती थीं। यूनान, मिन और रोम तक भारत के सूती-रेशमी कपड़े, हीरे-जवाहरात के आभूषण और अन्य कला-कारीगरी की वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं, लेकिन अंग्रेजी शासन काल में भारतीय कुटीर उद्योगों का पतन हो गया। इंग्लैंड की बनी सस्ती वस्तुओं से भारतीय उद्योग प्रतियोगिता नहीं कर सके। अंग्रेजों ने भारतीय कच्चे माल और श्रमिकों की सहायता से पूँजी निवेश किया। श्रमिकों का शोषणं किया जाने लगा।
उद्योगों में निवेश करना आरंभ कर दिया। इस प्रकार एक नए पूँजी वाले वर्ग का उदय हुआ। नगरीय क्षेत्रों में दो वर्ग और थे। छोटे व्यापारियों और दुकानदारों का एक वर्ग था। शिक्षा और प्रशासन से जुड़े लोगों, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, तकनीकविद, प्रोफेसर, क्लर्क और अन्य पेशेवर लोगों का दूसरा वर्ग था। श्रमिक वर्ग भी दो उपवर्गों में बँटे थे। पहले वे जो संगठित उद्योगों में कार्य करते थे और दूसरे वे जो गैर-संगठित उद्योगों में कार्य करते थे। __स्वतंत्रत भारत में नगरों में मध्यम वर्ग गाँव के समद्ध लोगों को अपने में सम्मिलित करता जा रहा है। श्रमिकों में उतनी चेतना नहीं है जितनी स्वतंत्रता पूर्व थी। कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि नगरों में धनी वर्ग, श्रमिक वर्ग, मध्यम वर्ग में समाज बँट हुआ है।
प्रश्न 6. समुदाय से क्या आशय है ? समुदाय की परिभाषा व आवश्यक तत्व लिखिए।
[B.M.2009 A]
उत्तर-समुदाय का अंग्रेजी रूपांतर या शब्द ‘कम्युनिटी’ Community दो लैटिन शब्दों से बना है। ‘Com’ शब्द का अर्थ है-‘एक साथ में’ (Together) और munis का अर्थ है ‘सेवा करना’ (Serving)।
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार, “जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ-साथ इस प्रकार रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में भागीदार न होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या स्थितियों में भाग लेते हों, तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है।”
समुदाय के आवश्यक तत्व (Elements of Community) समुदाय के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तियों का समूह। (ii) निश्चित भू-भाग। (iii) सामुदायिक भावना।
प्रश्न 7. सामाजिक जनांकिकी से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट करें।
[M.Q.2009 A]
उत्तर-सामाजिक जनांकिकी एक बहुआयामी अवधारणा है जो वैज्ञानिक दृष्टि से जनांकिकी संरचना, जनांकिकीय प्रक्रियाएँ तथा इसके सामाजिक पक्षों का अध्ययन है। यह इस बात का अध्ययन करती है कि जनसंख्या-संबंधी विशेषताएँ किस तरह सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती है तथा उससे प्रभावित होती है।
प्रश्न 8. भारत में लैंगिक विषमता के प्रमुख आधारों का उल्लेख करें।
__[M.Q.2009A]
उत्तर-लिंग-भेद सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। लिंग-भेद पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण के कारण नारीवाद से संबंधित कई दृष्टिकोण प्रस्तुत किये गये हैं। जैसे-आमूल परिवर्तनवादी, नारीवाद, समाजवादी, नारीवाद तथा उदारवादी नारीवाद। कुछ अन्य सिद्धांतों के आधार पर भी लिंग-भेद विश्लेषण किया जाता है। भारतवर्ष में पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था इसका मुख्य कारण रहा है।
प्रश्न 9. राष्ट्रवाद की अवधारणा को स्पष्ट करें। ,
[M.Q.2009A]
उत्तर-राष्ट्रवाद का अर्थ होता है राष्ट्र के लोगों में राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र सम्मान एवं राष्ट्रीयता की भावना को जगाना। दरअसल एक राष्ट्र में विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग होते हैं। इन विभिन्न नृजातीय समूहों के बीच एक भावात्मक सूत्र को लाना ताकि वे उसके बँध- कर एक राष्ट्र के हो जाएँ और क्षेत्रीय प्रांतीय उद्देश्यों के ऊपर उद्देश्यों और हितों को महत्त्व दें। साफ शब्दों में कहें तो राष्ट्रवाद का अर्थ है, एक झंडे के नीचे आना और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत होना।
प्रश्न 10. राष्ट्रवाद के विकास में मुस्लिम सुधार आंदोलन की व्याख्या करें।
[M.Q.2009A]
उत्तर-भारतवर्ष में मुस्लिम समुदाय के सुधार आंदोलन तथा राष्ट्रवाद निर्माण की प्रक्रिया में सैय्यद अहमद आदि कुछ महापुरुषों का योगदान उल्लेखनीय है। बंगाल के नवाब लतीफ ने 1863 ई० में मोहम्डन लिटरेरी सोसाइटी की स्थापना की। 1899 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया आंदोलन शुरू किया। इसी प्रकार बदरूद्दीन तैयबजी ने भी सामाजिक सुधार के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
प्रश्न 11. लैंगिक असमानता के प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालें। [B.M.2009 A] .
उत्तर-लैंगिक असमानता का अभिप्राय किसी समाज में लिंग के आधार पर स्त्री और पुरुषों में भेदभाव किए जाने से संबंधित है। विस्तृत अर्थों में लैंगिक असमानता का तात्पर्य उन सामाजिक मूल्यों और मानदंडों से है। जो सांस्कृतिक आधार पर स्त्रियों व पुरुषों में से किसी एक को दूसरे की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हुए उन्हें वैवाहिक, पारिवारिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में अधिक अधिकार देते हैं।
प्रश्न 12. भारत में उपनिवेशवाद की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करें।
__ [M.Q.2009A]
उत्तर-कालक्रम में पश्चिमी दुनिया और खासकर यूरोप औद्योगिक क्रांति एवं वैज्ञानिक तरक्की के बल पर काफी विकसित हुए तथा अफ्रीका एवं एशिया के देश काफी पीछे रह गये। अपने श्रेष्ठ सैन्यबल के आधार पर यूरोप के देश, जैसे-इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस एवं पुर्तगाल आदि अफ्रीका एवं एशिया के देशों पर अपना शासन कायम करने में सफल रहे। उस विस्तारवादी प्रवृत्ति को ही उपनिवेशवाद की संज्ञा दी गयी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. सामाजिक वर्ग की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-सामाजिक वर्ग की विशेिषताएँ (Characteristics of a Social Class)सामाजिक वर्ग को भली-भाँति समझ लेने के उपरांत इसकी विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है :
(1) उतार-चढ़ाव का क्रम (Hierarchical gradation)-प्रत्येक समाज में विभिन्न स्थिति रखने वाले वर्ग पाए जाते हैं। स्थितियों के उतार-चढ़ाव का क्रम चलता रहता है और इसी आधार पर विभिन्न वर्गों का निर्माण होता है।
(2) ऊँच-नीच की भावना (Feeling of Low and Highness)-एक वर्ग के व्यक्ति अपने को दूसरे वर्ग के व्यक्तियों से श्रेष्ठ अथवा हीन समझते हैं। उदाहरण के लिए पूँजीपति वर्ग को ही ले लीजिए-यह वर्ग अपने को दूसरे से उच्च अथवा श्रेष्ठ समझता है।
(3) परस्पर निर्भरता (Mutually Dependent)-समाज में सभी वर्ग आपस में संबंधित होते हैं और एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। ये पूर्णतया स्वतंत्र नहीं होते; वरन् सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए विभिन्न वर्ग आपस में सहयोग करते हैं।
(4) वर्ग चेतना (Class Consciousness)-यह वर्ग का आधारभूत अथवा मौलिक तत्व है। वर्ग चेतना से अभिप्राय यह है कि प्रत्येक वर्ग इस बात के संबंध में सचेत होता है कि उसके वर्ग की सामाजिक प्रतिष्ठा दूसरे वर्गों की तुलना में कैसी है। यही भावना वर्ग के सदस्यों का व्यवहार निश्चित करती है। उदाहरण के लिए, जब चपरासी वर्ग का व्यक्ति, अपने अधिकारी, से बातचीत करता है तो उसका बातचीत का ढंग आदर, सत्कार, नम्रता आदि से ओत-प्रोत होता है। इसी प्रकार अधिकारी वर्ग का व्यक्ति अपने ही समान अधिकारी से बातचीत करते हुए अपने वर्ग की चेतनता के अनुरूप बराबरी का व्यवहार करता है और बातचीत का ढंग औपचारिक न होकर अनौपचारिक होता है। कुछ भी हो, वर्ग चेतना प्रत्येक वर्ग में मौजूद रहती है और सदस्यों के आधार को निश्चित करती है।
(5) सीमित सामाजिक संबंध (Limited Social Relation)—-एक वर्ग के व्यक्ति अपने वर्ग के व्यक्तियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं परन्तु अन्य वर्गों से सीमित संबंध रखते हैं अथवा निश्चित सामाजिक दूरी (Social distance) बनाए रखते हैं। अत: यह कहा जा सकता है कि भिन्न-भिन्न वर्ग एक-दूसरे से सामाजिक दूरी अथवा सीमित सामाजिक संबंधों के आधार पर अलग-अलग रहते हैं।
(6) जन्म पर आधारित नहीं (No based on birth)-वर्ग का आधार जन्म नहीं है वरन् व्यक्ति की योग्यता, धन, आयु, धर्म, लिंग-भेद, शिक्षा, व्यवसाय आदि बातों पर आधारित रहता है। यह बात विभिन्न समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं से स्पष्ट है। व्यक्ति प्रयास करने पर अपने वर्ग में परिवर्तन ला सकता है। .
(7) खुली व्यवसाय (Open System)-प्रत्येक वर्ग के द्वारा सबके लिए खुले रहते हैं, यदि व्यक्ति प्रयास करे तो उच्च वर्ग में आ सकता है और जन्म उस मार्ग में बाधक नहीं है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद निम्न जातियों के व्यक्ति भी वैयक्तिक प्रयास व सामाजिक परिस्थितियों के कारण श्रेष्ठ पदों पर पहुँच सके हैं। इस प्रकार वर्गों की सदस्यता सबके लिए खुली रहती है-बी. ए. प्रथम वर्ष में कोई भी विद्यार्थी समाजशास्त्र विषय ले सकता है यदि उसने अपने स्वयं के प्रयास से इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर ली हो। यह सब क्या है ? वर्ग की खुली व्यवस्था का परिचायक है।
(8) उपवर्ग (Sub-classes)–प्रत्येक वर्ग में अनेक उपवर्ग होते हैं-उदाहरणार्थ, अध्यापक वर्ग को ले लीजिए, इसमें विश्वविद्यालय के अध्यापक, डिग्री कॉलेजों के अध्यापक,
माध्यमिक स्कूलों के अध्यापक, जूनियर हाईस्कूल के अध्यापक और प्राइमरी स्कूल के अध्यापक आ जाते हैं। ये सब शिक्षक वर्ग के ही अनेक उपवर्ग हैं।
(9) जीवन अवसर (Life opportunities)-प्रत्येक वर्ग में जीवन के कुछ विशिष्ट अवसर समान रूप से प्राप्त होते हैं। मैक्स वेबर (Max Weber) महोदय ने ठीक ही कहा है, “हम एक समूह को वर्ग तब कह सकते हैं जबकि उस समूह के लोगों को जीवन के कुछ विशिष्ट अवसर समान रूप से प्राप्त हों।”
(10) वर्ग की विशेष परिस्थिति (Special situation of class)-प्रत्येक वर्ग की परिस्थिति भिन्न होती है क्योंकि सामाजिक वर्ग में जीवन के कुछ अवसर ही वर्ग-विशेष की परिस्थिति को उत्पन्न करते हैं।
(11) आधार (Bases)-सामाजिक वर्ग का मुख्य आधार किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति होती है। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वर्ग-सदस्यता के दूसरे आधार नहीं हैं। राजनीतिक शक्ति, बौद्धिक उन्नति आदि भी वर्ग के आधार हो सकते हैं। फिर भी सामाजिक वर्ग लिंग (Sex) और आयु के आधार की उपेक्षा (Ignore) करते हैं।
(12) अन्य वर्गों की उपस्थिति अनिवार्य है (Presence of others classes is essential)–एक वर्ग दूसरे वर्ग के संबंधों से ही जीवित रह सकता है। एक वर्ग वाला समाज वर्गहीन समाज है। यदि अन्य वर्ग नहीं होंगे तो किसके प्रति हीनता अथवा श्रेष्ठता का भाव प्रदर्शित किया जाएगा ? इसलिए अन्य वर्गों की उपस्थिति प्रत्येक वर्ग के जीवन के लिए अनिवार्य है।
प्रश्न 2. क्या वर्ग आर्थिक आधार या भेद पर आधारित है ?
उत्तर-कार्ल मार्क्स (Karl Marx), मैक्स वेबर आदि कुछ विचारकों का मत है कि सामाजिक वर्ग प्रमुख रूप से आर्थिक भेद पर आधारित है। मार्क्स के अनुसार वर्ग का जन्म उत्पादन के नवीन साधनों के आधार पर होता है। जैसे ही भौतिक उत्पादन के साधनों में परिवर्तन होता है, वैसे ही नए वर्ग का प्रारंभ होता है। औद्योगिक क्रांति से पूर्व समाज में दो वर्गों-जमींदार और कृषक ने जन्म लिया, परंतु औद्योगिक क्रांति के उपरांत भूमि का महत्व दिन-प्रतिदिन कम होता गया और पूँजी की प्रधानता हुई, परिणामस्वरूप पूँजीपति और मजदूर वर्ग का उदय हुआ। अत: कार्ल मार्क्स के अनुसार उत्पादन के साधन, जो आर्थिक संरचना का निर्माण करते हैं, मनुष्य की स्थिति को निश्चित करते हैं। इस स्थिति के अनुरूप ही वर्गों का निर्माण होता है। ___
आर्थिक आधार को ही वर्गों का एकमात्र कारण मान लेना उचित नहीं है। मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) ने कहा है कि वर्ग केवल आर्थिक भेद पर ही आधारित नहीं है अपितु सामाजिक स्थिति पर भी आधारित है। वस्तुतः मार्क्स ने भौतिकवाद पर वर्ग-व्यवस्था का निर्धारण करके वर्ग के सिद्धांत का क्षेत्र बहुत ही सीमित कर दिया है। आर्थिक अथवा भौतिक आधार के अतिरिक्त और भी ऐसे कारक हैं जो भिन्न-भिन्न वर्गों के निर्माण के लिए उत्तदायी हैं। राबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) ने वर्ग के सात आधारों के बारे में लिखा है-(1) संपत्ति, धन, पूँजी अथवा आय। (2) परिवार या रक्त संबंधी समूह। (3) निवास का स्थान। (5) पेशा। (6) शिक्षा। (7) धर्म।
अतः यह कहना ही उचित होगा कि वर्ग-व्यवस्था आर्थिक भेद पर आधारित नहीं है यद्यपि आर्थिक भेद एक प्रमुख व महत्वपूर्ण कारक है। वर्ग की व्याख्या करते समय सभी प्रमुख आधारों को ध्यान में रखना होगा।
प्रश्न 3. ग्रामीण समुदाय की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर-भारत ग्रामों का देश कहलाता है। भारत में लगभग पाँच लाख गाँव हैं। कृषि मुख्य व्यवसाय है। यद्यपि जनसंख्या का एक छोटा भाग अन्य कार्यों को करता है। परन्तु प्रायः वे कार्य भी कृषि पर आधारित हैं। ग्रामीण परिवेश आज भी भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं। ग्रामों का अपना सामाजिक, पारम्परिक, आर्थिक और राजनीतिक महत्व है। ग्रामीण समुदाय की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
(i) कृषि-मुख्य व्यवसाय-कृषि भारत में जीवन यापन का साधन ही नहीं है वरन् यह एक जीवन शैली है। ग्रामीण परिवेश के सभी संबंध कृषि द्वारा प्रभावित होते हैं। कृषि के अतिरिक्त ग्रामों में कुम्हार, बढ़ई, लुहार आदि दस्तकार भी होते हैं परन्तु वे भी अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर करते हैं।
(ii) संयुक्त परिवार प्रणाली-भारतीय ग्रामीण जीवन में संयुक्त परिवार प्रणाली का बहुत अधिक महत्व है। यद्यपि शहरों में भी संयुक्त परिवार पाये जाते हैं परंतु उनका महत्व ग्रामों में अधिक है।
(ii) जाति व्यवस्था-जाति व्यवस्था सदैव भारतीय ग्रामीण समुदाय का आधार रही है। सामाजिक अंतःक्रिया, धार्मिक अनुष्ठान, व्यवसाय और अन्य बातें काफी सीमा तक जाति के मापदंडों से प्रभावित होती हैं।
(iv) जजमानी व्यवस्था-यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक बंधन दूसरे जातिगत परिवारों से संबंधित होते हैं। प्रत्येक गाँव में दो प्रकार के परिवार रहते हैं। एक तो वे हैं जो भूमि के स्वामी हैं और दूसरे वे जो सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं। सेवाओं के बदले में अन्न और नकद मुद्रा प्रदान की जाती है। त्योहारों के अवसर पर पारिश्रमिक और पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है। यह जजमानी प्रथा विभिन्न जातियों को स्थायी संबंधों में बाँधे रखती है।
(v) पंचांग का महत्व-अधिकतर गाँवों में परंपरागत भारतीय पंचांग के अनुसार सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्य किए जाते हैं। दिन-प्रतिदिन के कार्यों में मांगलिक अवसरों और अतिथियों का बहुत अधिक महत्व है।
(vi) सामुदायिक भावना-गाँव के सभी सदस्य व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। उनके संबंध व्यक्तिगत होते हैं। जीवन की सरलता और मित्रता की भावना ग्रामीण जीवन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। अपराध, चोरी, हत्या, दुराचार आदि कम होते हैं। लोग ईश्वर से डरते हैं और परंपरावादी होते हैं। वे नगरीय जीवन की चकाचौंध और मोह से कम प्रभावित होते हैं। साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। उनका व्यवहार रीतियों और परम्पराओं से संचालित होता है।
(vii) निर्धनता और अशिक्षा-ग्रामीण जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करता है। यहाँ मौलिक नागरिक सुविधाओं का भी अभाव है। स्वास्थ्य सुविधाएँ, यातायात, परिवहन, संचार के साधनों की कमी से जीवन-स्तर नीचा है। यद्यपि सरकार ने ग्रामों की दशा सुधारने के लिए बहुत प्रयत्न किए हैं परन्तु कृषि की उत्पादकता कम है और नागरिक सुविधाओं की कमी है।
(viii) रूढ़िवाद-भारत के ग्रामों में सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी है। व्यवसाय में परिवर्तन आसानी से सम्भव नहीं है। ग्रामीण स्वभाव से ही रूढ़िवादी होते हैं। उनके सोचने का आधार, नैतिक मूल्य और परम्पराएँ सभी रूढ़िवाद पर निर्भर करते हैं।
(ix) कठोर सामाजिक नियंत्रण-परिवार, जाति और धर्म की कट्टरता बहुत अधिक होती है। सदस्यों के लिए अनौपचारिक नियमों का पालन करना बहुत आवश्यक होता है। पंचायत गलत कामों के लिए लोगों को दंडित करती है। .
प्रश्न 4. नगरीय समुदाय की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-नगर ग्रामों का बड़ा रूप है। आधुनिक भारतीय नगरों में पाश्चात्य नगरों के समान सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में सम्भव नहीं है। भारत के नगरों की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- सामाजिक विषमता : नगर ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। ये विभिन्न प्रकार के लोगों और संस्कृतियों के मिलन का केन्द्र हैं। संसार के विभिन्न देशों के लोग यहाँ आकर रहना पसंद करते हैं। एक छोटे से क्षेत्र में बड़ी जनसंख्या के निवास करने के कारण जनसंख्या का केन्द्रीकरण हो जाता है।
- सामाजिक नियंत्रण : नगर एक ऐसे स्थान हैं जहाँ व्यक्ति सामाजिक नियंत्रण से मुक्त है। यहाँ अकेलेपन का भी बोध होता है और सत्ता के दबाव भी अधिक होते हैं। नगर का आकार जितना बड़ा होता है उतनी ही बड़ी संख्या नियंत्रण की होती है।
- द्वितीयक समूह : आकार के विशाल होने के कारण नगर प्राथमिक वर्ग के अनुरूप कार्यशील नहीं होता। व्यक्ति मुख्य रूप से एक-दूसरे से अनजान होते हैं और एक-दूसरे के प्रति उदासीन होते हैं। नगरों में संबंध प्रायः औपचारिक होते हैं।
- स्वैच्छिक संस्थाएँ : नगरों की जनसंख्या का आकार इसकी विभिन्नताएँ और आसानी से बनने वाले कारक स्वैच्छिक संस्थाओं के लिए एक पूर्व अथवा आदर्श बनाते हैं। नगरों में द्वितीयक समूह एक प्रकार की स्वैच्छिक विशेषता प्राप्त कर लेते हैं। इनकी सदस्यता रिश्तेदारी पर निर्भर नहीं करती। नगरों में विभिन्न क्लब और संस्थाएँ होती हैं जिनके अपने नियम और कानून होते हैं।
- व्यक्तिवाद : नगरों में अवसरों की अधिकता होती है और सामाजिक गतिशीलता होती है। ये सभी व्यक्ति को अपना स्वतंत्र निर्णय लेने के लिए बाध्य करते हैं और अपने भविष्य के लिए योजनाएं बनाने को प्रेरित करते हैं। प्रतियोगिता अधिक होने के कारण परिवार की देखभाल के कम अवसर मिलते हैं। स्वार्थपरता और व्यक्ति को नगरीय जीवन में बढ़ावा मिलता है।
- सामाजिक गतिशीलता : श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण के कारण नगरीय जीवन में सामाजिक और व्यावसायिक गतिशीलता देखने को मिलती है। नगरों का प्रबन्ध योग्य और सक्षम नागरिकों द्वारा संचालित होता है।
- असमानता : नगरों में अत्यधिक गरीबी और समृद्धि दोनों पाई जाती है। एक ओर झुग्गी-झोपड़ी होती है तो दूसरी ओर शानदार बंगले। जनसंख्या की विभिन्नता और उनकी रुचियों और विचारों के विषय में सहनशीलता और विभिन्नता नगरों की एक विशेषता है।
- स्थान के लिए प्रतियोगिता : बड़े नगरों में कुछ व्यावसायिक केन्द्र अपनी गतिविधियों के लिए प्रसिद्ध हो जाते हैं। वहाँ बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर, थियेटर, बड़े होटल, आभूषण की दुकानें आदि केन्द्रित होते हैं। महँगी व्यावसायिक सेवाएँ जैसे डायग्नोस्टिक क्लीनिक, कानूनी दफ्तर, बैंक आदि केन्द्रित हो जाते हैं। ये सब नगर के केन्द्रीय भाग में स्थित होते हैं।
प्रश्न 5. भारत में ग्रामीण नगरीय समुदायों के मध्य अन्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर-विश्व स्तर पर मानवीय समुदाय को दो विस्तृत श्रेणियों में रखा जाता है() ग्रामीण एवं (ii) नगरीय। ‘दो अमेरिकी समाजशास्त्री सोरोकिन एवं जिमरमैन ने सर्वप्रथम मानव समाज में ग्रामीण एवं नगरीय समुदायों के मध्य पाये जानेवाले अंतरों को बड़े विस्तृत श्रेणियों में रखकर उनकी व्याख्या देने की कोशिश की। ये विस्तृत श्रेणी इस प्रकार हैं
(i) पर्यावरण के घनत्व के स्तर पर
(ii) समुदाय के आधार के स्तर पर
(iii) जनसंख्या के घनत्व के स्तर पर
(iv) पेशाओं के स्तर पर
(v) समुदाय की समरूपता एवं बहुरूपता के स्तर पर
(vi) सामाजिक स्तरीरकण के स्तर पर
(vii) सामाजिक गतिशीलता के स्तर पर
(viii) सामाजिक अन्त:क्रिया के स्तर पर
पर्यावरण के स्तर पर ग्रामीण समुदाय प्रकृति के अधिक करीब होते हैं एवं प्राकृतिक वातावरण से अधिक प्रभावित होते हैं। उदाहरणस्वरूप-भारत के किसान मानसूनी वर्षा पर आज
भी बहुत निर्भरशील हैं, विश्व स्तर पर ग्रामीण समुदाय नगरों की तुलना में छोटे तथा कम घनत्ववाले समुदाय होते हैं। पेशागत दृष्टि से नगरीय समुदाय, ग्रामीण समुदायों से अधिक व्यापक एवं जटिल होते हैं। साथ ही नगरीय समुदाय के आबादी में अधिक बहुरूपता देखी जाती है। पेशागत एवं शैक्षणिक तथा तकनीकी स्तर पर नगरीय आबादी में विविधता के साथ-साथ स्तरीकरण अधिक जटिल एवं मुक्त प्रकृति के होते हैं। फलस्वरूप नगरीय समुदाय में सामाजिक एवं आर्थिक गतिशीलता अधिक पायी जाती है। सामाजिक अन्तःक्रिया का स्वरूप औपचारिक एवं बहुत हद तक कृत्रिम होते हैं।