Bihar board class 12th notes Psychology chapter 9
Bihar board class 12th notes Psychology chapter 9
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मनोविज्ञान कौशलों का विकास
[Developing Psychology Skills]
पाठ्यक्रम
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक के रूप में विकास, सामान्य कौशल; विशिष्ट कौशल; साक्षात्कार कौशल; परामर्श कौशल ।
याद रखने योग्य बातें
1. मनोविज्ञान का प्रारंभ एक अनुप्रयोग या उपादेय-उन्मुख विधाशाखा के रूप में हुआ।
2. मनोविज्ञान में सेवार्थी वह व्यक्ति/समूह/संगठन है जो स्वयं ही अपनी किसी समस्या के समाधान में मनोवैज्ञानिक से मदद, निर्देशन या हस्तक्षेप प्राप्त करना चाहता है।
3. कौशल पद को प्रवीणता, दक्षता या निपुणता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका अर्जन या विकास प्रशिक्षण अनुभव के द्वारा किया जा सकता है।
4. एक मनोवैज्ञानिक सेवार्थी के इतिवृत को प्राप्त करने में, उसके समाज-सांस्कृतिक परिवेश, में उसके व्यक्तित्व-मूल्यांकन तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विमाओं में सक्रिय अभिरुचि लेता है।
5. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक संघ ने 1973 में एक कार्य दल गठित किया जिसका उन कौशलों की पहचान करना था जो व्यावसायिक मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक हों।
6. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक संघ द्वारा गठित कार्य दल ने कौशलों के तीन समुच्चयों की संस्तुति या अनुशंसा की: (i) व्यक्तिगत भिन्नताओं का मूल्यांकन, (ii) व्यवहार परिष्करण कौशल तथा (iii) परामर्श एवं निर्देशन कौशल ।
7. सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों की होती है।
8. मनोवैज्ञानिक अपने परिवेश जिनमें घटनाएँ एवं व्यक्ति दोनों शामिल हैं के विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रेक्षण करता है। अपने चारों ओर के वातावरण का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करता है तथा भौतिक स्थितियों को जानने की चेष्टा करता है तथा व्यक्तियों एवं उनके व्यवहारों का भी प्रेक्षण करता है। इसे ही प्रेक्षण कौशल कहते हैं।
9. सहभागी प्रेक्षण प्रेक्षक प्रेक्षण की प्रक्रिया में एक सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह इस स्थिति में स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है, जहाँ प्रेक्षण करना है।
10. संप्रेषण एक सचेतन या अचेतन, साभिप्राय या अनभिप्रेत प्रक्रिया है जिसमें भावनाओं तथा विचारों को वाचिक या अवाचिक संदेश के रूप में भेजा, ग्रहण किया और समझा जाता
11. संप्रेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा अर्थ का संचरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक किया जाता है।
12. हमारी संप्रेषण प्रक्रिया आकस्मिक, अभिव्यक्तिपरक या वाक्पटुता हो सकती है।
13. मानव संप्रेषण अंतरावैयक्तिक, अंतर्वैयक्तिक अथवा सार्वजनिक स्तरों पर हो सकता है।
14. अंतरावैयक्तिक संप्रेषण का संबंध व्यक्ति की स्वयं से संवाद करने की क्रिया को कहते हैं। इसमें विचार-प्रक्रम, वैयक्तिक निर्णयन तथा स्वयं पर केंद्रित विचार शामिल होते हैं।
15. अंतवैयक्तिक संप्रेषण का तात्पर्य उस संप्रेषण से है, जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों से संबंधित होता है, जो एक संप्रेषणपरक संबंध स्थापित करते हैं।
16. वाचक (संभाषण) संप्रेषण का का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जिसका अर्थ है भाषा का उपयोग करके बोलना। भाषा में प्रतीकों का उपयोग किया जाता है जिसमें अर्थ बँधे हुए होते हैं। संभाषण का प्रभावी होने के लिए आवश्यक है कि शब्दों का उपयोग स्पष्ट एवं
परिशुद्ध हो।
17. प्रवण एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसका उपयोग हम प्रतिदिन करते हैं। इसमें एक प्रकार की ध्यान सक्रियता होती है।
18. सुननेवाले को धैर्यवान तथा अनिर्णयात्मक होने के साथ विश्लेषण करते रहना पड़ता है ताकि सही अनुक्रिया दी जा सके।
19. सुनना एवं श्रवण में अंतर यह है कि सुनना एक जैविक क्रिया है जिसमें संवेदी सरणियों के द्वारा संदेश का अभिग्रहण शामिल होता है। सुनना श्रवण का एक आंशिक पक्ष है, इसमें अभिग्रहण, ध्यान, अर्थ का आरोपण तथा श्रवणकर्ता की संदेश के प्रति अनुक्रिया शामिल होते हैं।
20. श्रवण प्रतिक्रिया का प्रारंभिक चरण है उद्दीपक या संदेश का अभिग्रहण करना । ये संदेश श्रव्य और दृश्य हो सकते हैं।
21. जब किसी व्यक्ति को हमारे द्वारा कही गई बातों को फिर से कहने के लिए कहा जाता है तो वह हमारे शब्दों को एकदम से नहीं दोहरा सकता है। वह अपनी समझ से हमारी बातों या विचारों को पुनर्कथित करता है जो उसकी समझ में आया होता है इसी को पुनर्वाक्यविन्यास कहते हैं।
22. संप्रेषण में वर्तमान व्यवहार और अतीत के व्यवहार के बीच एकरूपता तथा वाचिक एवं अवाचित व्यवहार के बीच सुमेल को संगति कहते हैं।
23. अवाचित संकेत-हावभाव, भगिमा, शरीर की बनावट, नेत्र संपर्क, शरीर की गति, पोशाक शैली, हाथों की गति आदि का उपयोग कर विचारों का संप्रेषण किया जाता है।
24. मनोवैज्ञानिक परीक्षण कौशल का संबंध मनोविज्ञान के ज्ञान के आधार से है। इसके अंतर्गत
मनोवैज्ञानिक मापन, मूल्यांकन तथा व्यक्तियों और समूहों, संगठनों तथा समुदायों की समस्या समाधान के कौशल आते हैं।
25. मनोवैज्ञानिक परीक्षणों को उपयोग करते समय वस्तुनिष्ठता, वैज्ञानिक उन्मुखता तथा मानकीकृत व्याख्या के प्रति सजगता रखना आवश्यक होता है।
26. एक उचित संदेश की रचना करना, पर्यावरणीय शोर को नियंत्रित करना तथा प्रतिप्राप्ति देना कुछ तरीके हैं जिनके द्वारा प्रभावी संप्रेषण में होनेवाली विकृतियों को कम किया जा सकता है
27. एक मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए आवश्यक है कि परामर्श एवं निर्देशन के क्षेत्र में भी सक्षमता हो जिसे विकसित करने के लिए मनोवैज्ञानिक को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण कुशल पर्यवेक्षण में दिया जाना चाहिए।
28. परामर्श में सहायतापरक संबंध होता है, जिसमें सम्मिलित होता है वह जो मदद चाह रहा है तथा वह जो मदद देने का इच्छुक है।
29. सेवार्थी-परामर्शदाता संबंध नैतिक आधारों पर ही निर्मित होते हैं।
30. परामर्श में सेवार्थी को प्रभाविता के लिए संदेशों के प्रति जानकारी और संवेदनशीलता अनिवार्य घटक है।
एन. सी. ई. आर. टी. पाठ्यपुस्तक तथा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(Objective Questions)
1. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक संघ के ने एक कार्यदल गठित किया जिसका उद्देश्य किनके लिए आवश्यक कौशलों की पहचान करना था?
(क) समाजशास्त्रियों
(ख) अर्थशास्त्रियों
(ग) व्यावसायिक मनोवैज्ञानिकों
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(ग)
2. प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए आवश्यक आधारभूत कौशल है-
(क) सामान्य कौशल
(ख) विशिष्ट कौशल
(ग) प्रेक्षण कौशल
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
3. सामान्य कौशल किस प्रकार के व्यावसायिक मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक है?
(क) नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिकों को
(ख) औद्योगिक एवं संगठनात्मक क्षेत्र के मनोवैज्ञानिकों को
(ग) सामाजिक या पर्यावरणी क्षेत्र के मनोवैज्ञानिकों को
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
4. सामान्य कौशल में शामिल होते हैं-
(क) वैयक्तिक कौशल
(ख) बौद्धिक कौशल
(ग) वैयक्तिक तथा बौद्धिक कौशल दोनों
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर (ग)
5. मनोवैज्ञानिक अपने परिवेश के किन पक्षों के विभिन्न पहलुओं के बारे में प्रेक्षण करता है ?
(क) घटनाएँ
(ख) व्यक्ति
(ग) घटनाएं एवं व्यक्ति दोनों
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(ग)
6. प्रेक्षण का वह तरीका जिससे हम सीखते हैं कि लोग भिन्न स्थितियों में कैसे व्यवहार करते हैं , कहलाता है-
(क) प्रकृतिवादी प्रेक्षण
(ख) प्रेक्षण
(ग) सहभागी प्रेक्षण
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(क)
7. एक प्रेक्षणकर्ता द्वारा उसी शॉपिंग मॉल की दुकान में अंशकालिक नौकरी लेकर अंदर का व्यक्ति बनकर ग्राहकों के व्यवहार में भिन्नताओं का प्रेक्षण कहलाता है-
(क) प्रकृतिवादी प्रेक्षण
(ख) सहभागी प्रेक्षण
(ग) आत्म-प्रत्यक्षण
(घ) मूल्यांकन प्रेक्षण
उत्तर-(ख)
8. संप्रेषण एक प्रक्रिया है-
(क) सचेतन
(ख) अचेतन
(ग) साभिप्राय
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
9. व्यक्ति की स्वयं से संवाद करने की क्रिया को कहते हैं-
(क) अन्तरवैयक्तिक संप्रेषण
(ख) अंतवैयक्तिक संप्रेषण
(ग) सार्वजनिक संप्रेषण
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(क)
10. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण संबंधित होता है-
(क) स्वयं से
(ख) दो या दो से अधिक व्यक्तियों से
(ग) जनसभा से
(घ) भीड़ से
उत्तर-(ख)
11. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण के प्रकार हैं-
(क) मध्यस्थ आधारित वार्तालाप
(ख) साक्षात्कार
(ग) लघु समूह परिचर्चा
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-(घ)
12. अपनी बातों को रेडियो या टेलीविजन के माध्यम से वक्ता द्वारा कहने को कहते हैं-
(क) सार्वजनिक संप्रेषण
(ख) अंतवैयक्तिक संप्रेषण
(ग) अंतरवैयक्तिक संप्रेषण
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(क)
13. गरम स्टोव को छूने पर अंगुलियो का खींचना और हमारी आँखों में आंसू आना किसका उदाहरण है?
(क) वाचिक संप्रेषण
(ख) अवाचिक संप्रेषण
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर-(ख)
14. श्रवण में कौन-सी विशेषता नहीं होनी चाहिए-
(क) धैर्यवान
(ख) अधैर्यवान
(ग) अनिर्णयात्मक
(घ) ध्यान सक्रियता
उत्तर-(ख)
15. सुननेवाला द्वारा हमारी की गई बातों को अपनी समझ में बातों या विचारों को पुनर्कथित कहलाता है-
(क) पुनर्वाक्यविन्यास
(ख) अभिग्रहण
(ग) ध्यान
(घ) आरोपण
उत्तर-(क)
16. श्रवण प्रक्रिया में किन अंगों की भूमिका नहीं होती है ?
(क) कान
(ख) मस्तिष्क
(ग) नाक
(घ) आँख
उत्तर-(ग)
17. शरीर भाषा में निम्न में कौन-से कारक शामिल हैं?
(क) हावभाव
(ख) हाथ की गति
(ग) भगिमा
(घ) उपयुक्त सभी
उत्तर-(घ)
18. साक्षात्कार के किस भाग में साक्षात्कारकर्ता सूचना और प्रदत्त प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रश्न पूछता है?
(क) प्रारंभ
(ख) मुख्य भाग
(ग) समापन
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(ख)
19. मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करते समय आवश्यक है-
(क) वस्तुनिष्ठता
ख) वैज्ञानिक उन्मुखता
(ग) मानकीकृत व्याख्या
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर (घ)
20. एक प्रभावी परामर्शदाता के गुण नहीं हैं-
(क) प्रामाणिकता
(ख) दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर
(ग) दूसरों के प्रति सकारात्मक अनादर
(घ) तदनुभूति की योग्यता
उत्तर-(ग)
21. मनोवृत्ति का निर्माण निम्नांकित में किस कारक द्वारा प्रभावित नहीं होता है ?
(क) सामाजिक सीखना
(ख) विश्वसनीय सूचनाएँ
(ग) आवश्यकता पूर्ति
घ) श्रोता की विशेषताएँ
उत्तर-(घ)
22. योग में सम्मिलित होता है-
(क) ध्यान
(ख) मुद्रा
(ग) नियम
(घ) ज्ञान
उत्तर-(क)
23. समय प्रबन्ध किस श्रेणी का कौशल है?
(क) वैयक्तिक
(ख) सामूहिक
(ग) राजनैतिक
(घ) धार्मिक
उत्तर-(क)
24. दो या अधिक व्यक्तियों के बीच वार्तालाप और अन्तःक्रिया है-
(क) परीक्षण
(ख) साक्षात्कार
(ग) परामर्श
(घ) प्रयोग
उत्तर-(ख)
25. किसी वस्तु को खोने का बोध या संताप क्या कहलाता है ?
(क) निर्धनता
(ख) वंचन
(ग) सामाजिक असुविधा
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-(ख)
अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. मनोविज्ञान में सेवार्थी किसे कहते हैं ?
उत्तर– मनोविज्ञान में सेवार्थी वह व्यक्ति/समूह/संगठन है जो स्वयं ही अपनी किसी समस्या के समाधान में मनोवैज्ञानिक से मदद, निर्देश या हस्तक्षेप प्राप्त करना चाहता है।
प्रश्न 2. कौशल को परिभाषित कीजिए।
उत्तर– कौशल पद को प्रवीणता, दक्षता या निपुणता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसका अर्जन या विकास प्रशिक्षण अनुभव के द्वारा किया जा सकता है।
प्रश्न 3. अमेरिकी मनोवैज्ञानिक संघ ने कौशलों के किन तीन समुच्चयों की संस्तुति की है?
उत्तर– अमेरिकी मनोविज्ञान संघ ने कौशलों के निम्नलिखित तीन समुच्चयों की संस्तुति की है-
(i) व्यक्तिगत भिन्नताओं का मूल्यांकन,
(ii) व्यवहार परिष्करण कौशल,
(iii) परामर्श एवं निर्देशन कौशल
प्रश्न 4. एक व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक समस्या का निराकरण किस स्तर पर करता है?
उत्तर– एक व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक समस्या का निराकरण वैज्ञानिक स्तर पर करता है।
प्रश्न 5. व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक समस्या का निराकरण वैज्ञानिक स्तर पर किस तरह करते हैं?
उत्तर– वे अपनी समस्याओं को प्रयोगशाला या क्षेत्र में ले जाकर परीक्षण करके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे अपने प्रश्नों को उत्तर गणितीय संभाव्यताओं के आधार पर करते हैं। उसके बाद ही वे किसी विश्वसनीय मनोवैज्ञानिक सिद्धांत या नियम पर पहुॅंचते हैं।
प्रश्न 6. आधारभूत कौशल को कितनी श्रेणियों में बांटा गया है?
उत्तर– आधारभूत कौशल को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
(i) सामान्य कौशल,
(ii) प्रेक्षण कौशल,
(iii) विशिष्ट कौशल ।
प्रश्न 7. अंतर्वैयक्तिक कौशल क्या है?
उत्तर -सुनने की योग्यता एवं तंदनुभूति की क्षमता, दूसरों की संस्कृति के प्रति सम्मान एवं अभिरुचि की भावना, अनुभवों के मूल्यों, दृष्टिकोणों, लक्ष्यों एवं इच्छाओं तथा भय को समझने का खुलापन तथा प्रतिप्राप्ति को ग्रहण करने की सकारात्मक भावना इत्यादि अंतर्वैयक्तिक कौशल है।
प्रश्न 8. संज्ञानात्मक कौशल क्या है?
उत्तर– संज्ञानात्मक कौशल समस्या समाधान की योग्यता, आलोचनात्मक चिंतन और व्यवस्थित तर्कना, बौद्धिक जिज्ञासा तथा नम्यता है।
प्रश्न 9. भावनात्मक कौशल क्या है?
उत्तर-सांवेगिक नियंत्रण एवं संतुलन, अंतर्वैयक्तिक द्वंद्व के प्रति सहनशीलता, अनिश्चितताओं और अस्पष्टताओं के प्रति सहनशीलता भावनात्मक कौशल है।
प्रश्न 10. परावर्ती कौशल क्या है?
उत्तर – स्वयं की अभिप्रेरणाओं, अभिवृत्तियों एवं व्यवहारों को समझने तथा परीक्षण करने की योग्यता, अपने और दूसरों के व्यवहारों के प्रति संवेदनशीलता परिवर्ती कौशल है।
प्रश्न 11. अभिवृत्ति क्या है ?
उत्तर– दूसरों के प्रति सहायता की इच्छा, नए विचारों के प्रति खुलापन, ईमानदारी/अंखडता/ मूल्यपरक नैतिक व्यवहार, व्यक्तिगत साइंस आदि अभिवृत्ति हैं।
प्रश्न 12. प्रेक्षण के दो प्रमुख उपागम कौन-कौन-से हैं?
उत्तर– प्रेक्षण के दो प्रमुख उपागम हैं-
(i) प्रकृतिवादी प्रेक्षण और
(ii) सहभागी प्रेक्षण ।
प्रश्न 13. प्रकृतिवादी प्रेक्षण क्या है ?
उत्तर– प्रकृतिवादी प्रेक्षण एक प्राथमिक तरीका है जिससे हम सीखते हैं कि लोग भिन्न स्थितियों में कैसे व्यवहार करते हैं।
प्रश्न 14. सहभागी प्रेक्षण किसे कहते हैं ?
उत्तर– सहभागी प्रेक्षण में प्रेक्षण की प्रक्रिया में एक सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह उस स्थिति में स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है जहाँ प्रेक्षण करना है।
प्रश्न 15. प्रेक्षण के एक लाभ को लिखिए।
उत्तर– प्रेक्षण का प्रमुख लाभ यह है कि यह प्राकृतिक या स्वाभाविक स्थिति में व्यवहार को देखने और अध्ययन करने का अवसर देता है।
प्रश्न 16. प्रेक्षण की एक कमी को लिखिए ।
उत्तर– प्रेक्षण की एक कमी यह है कि प्रेक्षण करने में अभिनति या पूर्वाग्रह की भावना आ जाती है क्योंकि प्रेक्षक या प्रेक्षित की भावनाएं इसको प्रभावित कर देती हैं।
प्रश्न 17. एक संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक को अन्य कौशलों की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर– एक संगठनात्मक मनोवैज्ञानिक को भी शोध कौशलों के अलावा मूल्यांकन, सुगमीकरण, परामर्शन एवं व्यवहारपरक कौशलों की आवश्यकता होती है जिससे वे व्यक्ति, समूहों, टीमों और संगठनों के विकास की प्रक्रिया को समझ सकें या समझने में मदद कर सकें।
प्रश्न 18. संप्रेषण प्रक्रिया से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर– संप्रेषण एक सचेतन या अचेतन, साभिप्राय या अनभिप्रेत प्रक्रिया है जिसमें भावनाओं तथा विचारों को वाचिक या अवाचिक संदेश के रूप में भेजा, ग्रहण किया और समझा जाता है।
प्रश्न 19. अंतरावैयक्तिक संप्रेषण किसे कहते हैं ?
उत्तर– अंतरावैयक्तिक संप्रेषण का संबंध व्यक्ति की स्वयं से संवाद करने की क्रिया को कहते हैं। विचार-प्रक्रम, वैयक्तिक निर्णयन तथा स्वयं पर केन्द्रित विचार शामिल होते हैं।
प्रश्न 20. अंतर्वैयक्तिक संप्रेक्षण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर– अंतवैयक्तिक संप्रेषण का तात्पर्य उस संप्रेषण से है जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों से संबंधित होता है, जो एक संप्रेषणपरक संबंध स्थापित करते हैं।
प्रश्न 21. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण के अंतर्गत क्या-क्या आते हैं ?
उत्तर– अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण के अंतर्गत अनेक प्रकारों में मुखोन्मुख या मध्यस्थ आधारित वार्तालाप, साक्षात्कार एवं लघु समूह परिचर्चा आते हैं।
प्रश्न 22. सार्वजनिक संप्रेषण से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर– सार्वजनिक संप्रेषण में वक्ता अपनी बातों या संदेशों को श्रोताओं तक पहुॅंचाता है। यह प्रत्यक्ष, जैसे- कोई वक्ता मुखोन्मुख जनसभा में भाषण देता है या अप्रत्यक्ष, जैसे-जहाँ वक्ता रेडियो या टेलीविजन के माध्यम से बात करता है।
प्रश्न 23. चयनात्मक संप्रेषण से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर– जब हम संप्रेषण करते हैं तब हमारा संप्रेषण चयनात्मक होता है। इसका अर्थ है, हमारे पास उपलब्ध शब्दों एवं व्यवहारों के एक विशाल संग्रह में से हम उन शब्दों एवं क्रियाओं को चुनते हैं जिसके बारे में हमारा भरोसा रहता है कि वे हमारे विचारों की अभिव्यक्ति के लिए उपयुक्त हैं।
प्रश्न 24. कूट संकेतन क्या है ?
उत्तर – कूट संकेतन में विचार लेना, उनको अर्थ देना और उनको संदेश के रूप में बदल देना आदि कार्य होते हैं।
प्रश्न 25. संप्रेषण अविराम क्यों है?
उत्तर – संप्रेषण अविराम है क्योंकि यह कभी भी रुकता नहीं चाहे हम सोए या जो हो-हम लगातार विचारों का प्रक्रमण करते रहते हैं। हमारा मस्तिष्क सदैव सक्रिय रहता है
प्रश्न 26. संप्रेषण प्रक्रिया के प्रभावी होने की पात्रा किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर- संप्रेषण प्रक्रिया के प्रभावी होने की मात्रा इस बार पर निर्भर करती है कि संप्रेषण में प्रयुक्त होनेवाले संकेतों या कूटों, जिनका उपयोग संदेश को प्रेषित करने और उसको ग्रहण करने के लिए किया गया है, के प्रति संप्रेषण करनेवाले संप्रेषकों की आपसी समझ कितनी है।
प्रश्न 27. संप्रेषण का बृहत्तर अर्थ क्या है?
उत्तर- संप्रेषण का बृहत्तर अर्थ है-इसमें दो या उससे अधिक व्यक्तियों के बीच एक संबंध होता है जिसमें वे अर्थ निरूपण की हिस्सेदारी में शामिल होते हैं जिससे संदेश के भेजने एवं ग्रहण करने में एक समानता बनी रहती है।
प्रश्न 28. संभाषण क्या है?
उत्तर- भाषा का उपयोग करके बोलना संभाषण है।
प्रश्न 29. सुनना और श्रवण में क्या अंतर है?
उत्तर- सुनना एक जैविक क्रिया है जिसमें संवेदी सरणियों के द्वारा संदेश का अभिग्रहण शामिल होता है। यह श्रवण का एक आंशिक पक्ष है। इसमें अभिग्रहण ध्यान, अर्थ का आरोपण तथा श्रवणकर्ता की संदेश के प्रति अनुक्रिया आदि शामिल होते हैं।
प्रश्न 30. दृष्टि प्रणाली से श्रवण कैसे किया जाता है ?
उत्तर- श्रवण तंत्र के अलावा कुछ लोग अपनी दृष्टि प्रणाली से भी श्रवण करते हैं। वे किसी व्यक्ति की मुखीय अभिव्यक्ति, भंगिमा, गति एवं रूप-रंग का प्रेक्षण करते हैं, जिससे अत्यंत महत्त्वपूर्ण संकेत प्राप्त होते हैं और जिनको मात्र संदेश के वाचिक अंश के श्रवण से नहीं समझा जा सकता है।
प्रश्न 31. मनोयोग का क्या अर्थ है ?
उत्तर- मनोयोग का अर्थ है कि व्यक्ति जो भी करे उस पर अपना संपूर्ण ध्यान केन्द्रित रखे ।
प्रश्न :32. बाल्यावस्था में मनोयोग करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर- बाल्यावस्था में मनोयोग का प्रशिक्षण देने से ध्यान केंद्रित करने की योग्यता का विस्तार हो जाता है और इससे श्रवण की क्षमता बेहतर हो जाती है।
प्रश्न 33. क्रोध का शरीर भाषा में संप्रेषण का उदाहरण दीजिए।
उत्तर- अगर सीधी मुद्रा में सीने पर हाथ बंधे हो, शरीर की मांसपेशियाँ तनी हो, जबड़ों को मांसपेशियों में जकड़न और आँखों की मांसपेशियों में संकुचन हो तो यह संभवतः क्रोध का संप्रेषण करता है।
प्रश्न 34. संगति किसे कहते हैं ?
उत्तर- संप्रेषण में वर्तमान व्यवहार और अतीत के व्यवहार के बीच एकरूपता तथा वाचित एवं अवाचित व्यवहार के बीच सुमेल को संगति कहते हैं।
प्रश्न 35. मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उपयोग कहाँ किया जाता है ?
उत्तर- मनोवैज्ञानिक परीक्षण का उपयोग मुख्यतः सामान्य बुद्धि, व्यक्तित्व, विभेदक अभिक्षकताओं, शैक्षिक उपलब्धियों, व्यावसायिक उपयुक्तता या अभिरुचियों, सामाजिक अभिवृत्तियों तथा विभिन्न अबौद्धिक विशेषताओं के विश्लेषण एवं निर्धारण में किया जाता है।
प्रश्न 36. मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करते समय कितन बातों के प्रति सजग रहना चाहिए?
उत्तर- मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करते समय वस्तुनिष्ठा, वैज्ञानिक उन्मुखता तथा मानकीकृत व्याख्या के प्रति सजगता रखना आवश्यक होता है।
प्रश्न 37. साक्षात्कार क्या है?
उत्तर- एक साक्षात्कार दो या अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है जिसमें प्रश्न-उत्तर प्रारूप या फार्मेट का अनुसरण किया जाता है।
प्रश्न 39. प्रत्यक्ष प्रश्न किसे कहते हैं?
उत्तर- प्रत्यक्ष प्रश्न स्पष्ट होते हैं और इनको विशिष्ट सूचनाओं की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, “अतिम बार आपने कहाँ काम किया था?”
प्रश्न 40. द्विध्रुवीय प्रश्न क्या होते हैं?
उत्तर- इस प्रकार के प्रश्नों में हाँ/नहीं अनुक्रिया अपेक्षित होती है । उदाहरण के लिए, “क्या आप इस कंपनी के लिए काम करना चाहेंगे?”
प्रश्न 41. दर्पण प्रश्न का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर– दर्पण प्रश्न का उद्देश्य होता है कि व्यक्ति ने जो कहा है उस पर परिवर्तन करके विचार करे या उसको आगे बढ़ाए।
प्रश्न 42. परामर्श क्या है ?
उत्तर– परामर्श में सहायतापरक संबंध होता है जिसमें सम्मिलित होता है वह जो मदद चाह रहा है, जो मदद दे रहा है या देने का इच्छुक है, जो मदद देने में सक्षम हो या प्रशिक्षित हो और स्थिति में हो जहाँ मदद लेना और देना सहज हो ।
प्रश्न 43. परामर्श की सफलता किन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर– परामर्श की सफलता परामर्शदाता की योग्यता, कौशल, अभिवृत्ति, व्यक्तिगत गुणों एवं व्यवहारों पर निर्भर करती है।
प्रश्न 44. उच्च चार गुणों को लिखिए जो प्रभावी परामर्शदाता के साथ संबंधित होते हैं।
उत्तर– (i) प्रमाणिकता, (ii) दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर, (iii) तदनुभूति की योग्यता, (iv)
पुनर्वाक्यविन्यास।
प्रश्न 45. प्रामाणिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर– प्रामाणिकता का अर्थ कि व्यक्ति के व्यवहार की अभिव्यक्ति उसके मूल्यों,भावनाओं एवं आंतरिक आत्मबिंब या आत्म-छवि के साथ संगत होती है।
प्रश्न 46. तदनुभूति से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर– यह एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कौशल है जो परामर्शदाता के पास होना चाहिए। ये परामर्शदाता की वह योग्यता है जिसके द्वारा वे सेवार्थी की भावनाओं को उसके ही परिप्रेक्ष्य से समझाता है।
प्रश्न 47. पुनर्वाक्यविन्यास क्या है ?
उत्तर – इसमें परामर्शदाता उस योग्यता का परिचय देता है कि कैसे सेवार्थी की कही हुई बातों को या भावनाओं को विभिन्न शब्दों को उपयोग करते हुए कहा जा सकता है।
प्रश्न 48. मनोवैज्ञानिक परीक्षण के कौशल विकसित करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर– इसमें परामर्शदाता उस योग्यता का परिचय देता है कि कैसे सेवार्थी की कही हुई बातों को या भावनाओं को विभिन्न शब्दों का उपयोग करते हुए कहा जा सकता है।
प्रश्न 49. साक्षात्कार मुखोन्मुख क्या है ? यह किस प्रकार आगे बढ़ती है ?
उत्तर– साक्षात्कार मुखोन्मुख आमने-सामने के वार्तालाप की प्रक्रिया है। यह तीन अवस्थाओं से आगे बढ़ती है, प्रारंभिक तैयारी, प्रश्न एवं उत्तर तथा समापन अवस्था ।
प्रश्न 50. प्रभावी संप्रेषण में होनेवाली विकृतियों को किस प्रकार कम किया जा सकता है?
उत्तर– एक उचित संदेश की रचना करना, पर्यावरणीय शोर को नियंत्रित करना तथा प्रतिपादित देना कुछ तरीके हैं जिनके द्वारा प्रभावी संप्रेषण में होनेवाली विकृतियों को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 51. प्रभावी मनोवैज्ञानिक होने के लिए किन बातों का होना आवश्यक है?
उत्तर– प्रभावी मनोवैज्ञानिक के रूप में विकसित होने के लिए, मनोवैज्ञानिक में सक्षमता,अखंडता,
व्यावसायिक एवं वैज्ञानिक उत्तरदायित्व, लोगों के अधिकारों तथा मर्यादा के प्रति सम्मान की भावना आदि का होना आवश्यक है।
प्रश्न 52. श्रवण कौशलों को सुधारने का एक संकेत बतलाइए।
उत्तर-संप्रेषित की जा रही सूचना प्राप्त करने की शुरुआत में कोई निर्णय लेने से बचना चाहिए। सभी विचारों के प्रति खुलापन रखना चाहिए।
प्रश्न 53. संप्रेषण अंतःक्रियात्मक क्यों है?
उत्तर– संप्रेषण अंतःक्रियात्मक है क्योंकि हम लगातार दूसरों के ओर स्वयं के संपर्क में रहते हैं। दूसरे हमारे भाषणों तथा व्यवहार के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं तथा हम स्वयं भी अपनी वाक्-क्रिया के प्रति अनुक्रिया देते हैं। इस प्रकार हमारे संप्रेषण के आधार पर क्रिया-प्रतिक्रिया चक्र का बने रहना है।
प्रश्न 54. एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए कौन-कौन-सी सक्षमताएँ आवश्यक होती है?
उत्तर – प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए निम्नलिखित सक्षमताएँ आवश्यक है –
(i) सामान्य कौशल,
(ii) प्रेक्षण कौशल,
(iii) विशिष्ट कौशल।
प्रश्न 55. कौन-से सामान्य कौशल सभी मनोवैज्ञानिकों के लिए आवश्यक होते हैं ?
उत्तर– बौद्धिक और वैयक्तिक दोनों प्रकार के सामान्य कौशल सभी मनोवैज्ञानिक के लिए आवश्यक है। एक बार इन कौशलों का प्रशिक्षण प्राप्त कर लेने के बाद ही किसी विशिष्ट क्षेत्र में विशिष्टि प्रशिक्षण देकर उन कौशलों का अग्रिम विकास किया जा सकता है।
लघु उत्तरात्मक प्रश्न
(short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. सामान्य कौशल क्या है ? समझाइए।
उत्तर ये कौशल मूलत: सामान्य स्वरूप के हैं और इनकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिक को होती है चाहे उनकी विशेषज्ञता को क्षेत्र कोई भी हो। ये कौशल सभी व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक के आवश्यक है, चाहे वे नैदानिक एवं स्वास्थ्य मनोविज्ञान के क्षेत्र के हों, औद्योगिक/संगठनात्मक, सामाजिक या पर्यावरणी मनोविज्ञान से संबंधित हों या सलाहकार के रूप में कार्यरत हों। इन कौशलों में वैयक्तिक तथा बौद्धिक कौशल दोनों शामिल होते हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि किसी भी प्रकार का व्यावसायिक प्रशिक्षण (चाहे नैदानिक या संगठनात्मक हो) उन विद्यार्थियों को नहीं दिया जाना चाहिए जिनमें इन कौशलों का अभाव हो । एक बार इन कौशलों का शिक्षण प्राप्त कर लेने के बाद ही किसी विशिष्ट प्रशिक्षण देकर उन कौशलों का अग्रिम विकास किया जा सकता है
प्रश्न 2. बौद्धिक और वैयक्तिक कौशल को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर– बौद्धिक और वैयक्तिक कौशल निम्न हैं-
(i) अंतर्वैयक्तिक कौशल-सुनने की योग्यता एवं तदनुभूति की क्षमता, दूसरों की संस्कृति के प्रति सम्मान तथा अभिरुचि की भावना, अनुभवों, मूल्यों, दृष्टिकोणों, लक्ष्यों एवं इच्छाओं तथा भय को समझने का खुलापन तथा प्रतिप्राप्ति को ग्रहण करने की सकारात्मक भावना इत्यादि। इन कौशलों की वाचिक या अवाचिक रूप से व्यक्त किया जाता है।
(ii) संज्ञानात्मक कौशल-समस्या समाधान की योग्यता, आलोचनात्मक चिंतन और व्यवस्थित तर्कना, बौद्धिक जिज्ञासा तथा नम्यता ।
(iii) भावात्मक कौशल- सांवेगिक नियंत्रण एवं संतुलन, अंतर्वैयक्तिक द्वंद्व के प्रति सहनशीलता, अनिश्चिताओं और अस्पष्टताओं के प्रति सहनशीलता।
(iv) व्यक्तित्व/अभिवृत्ति-दूसरों के प्रति सहायता की इच्छा, नए विचारों के प्रति खुलापन, ईमानदारी/अखंडता/मूल्यपरक नैतिक व्यवहार, व्यक्तिगत साहस।
(v) अभिव्यक्तिपरक कौशल- अपने विचारों, भावनाओं, सूचनाओं को वाचिक, अवाचिक तथा लिखित रूप में संप्रेषित करने की योग्यता ।
(vi) परावर्ती या मननात्मक कौशल-स्वयं की अभिप्रेरणाओं अभिवृत्तियों एवं व्यवहारों को समझने तथा परीक्षण करने की योग्यता अपने और दूसरे के व्यवहारों के प्रति संवेदनशीलता।
(vii) वैयक्तिक कौशल-वैयक्तिक संगठन, स्वास्थ्य, समय प्रबंधन एवं उचित परिधान या वंश।
प्रश्न 3. एक मनोवैज्ञानिक किस प्रकार सभी पक्षों का रिकॉर्ड तैयार करता है जिससे प्रेक्षण की प्रक्रिया में कुछ महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक पक्षों को समझा जा सके ?
उत्तर– (i) धैर्यपूर्वक प्रेक्षक करना ।
(ii) अपने भौतिक परिवेश को निकट से देखना जिससे क्या, कौन, कैसे, कहाँ और कब को समझा जा सके।
(iii) लोगों की प्रतिक्रियाओं, संवेगों और अभिप्रेरणाओं के प्रति जागरूक रहना ।
(iv) उन प्रश्नों को पूछना जिनका उत्तर प्रेक्षण करते समय पाया जा सके।
(v) स्वयं को उपस्थित रखना अपने बारे में सूचना देना, यदि पूछा जाए।
(vi) एक आशावादी कौतूहल या जिज्ञासा से प्रेक्षण करे।
(vii) नैतिक आचरण करें-प्रेक्षण के दौरान लोगों की निजता के मानकों का पालन करें; उनसे प्राप्त सूचनाओं को किसी को भी न बताएँ, इसका ध्यान रखें।
प्रश्न 4. प्रेक्षण के क्या लाभ और हानि हैं ?
उत्तर– प्रेक्षण के लाभ और हानि निम्नलिखित हैं-
(1) इसका प्रमुख लाभ यह है कि यह प्राकृतिक या स्वाभाविक स्थिति में व्यवहार को देखने और अध्ययन करने का अवसर देता है।
(ii) बाहर के लोगों को या उस स्थिति में रहनेवाले लोगों को प्रेक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया सकता है।
(iii) इसकी एक कमी यह है कि प्रेक्षण करने में अभिनति या पूर्वाग्रह की भावना आ जाती है क्योंकि प्रेक्षक या प्रेक्षित की भावनाएँ इसको प्रभावित कर देती हैं।
(iv) किसी दी गई परिस्थिति में दैनदिन क्रियाएँ नित्यकर्म (रूटीन) की तरह होती हैं जो अक्सर प्रेक्षक की दृष्टि से चूक जाती हैं।
(v) दूसरी संभाव्य कमी यह है कि वास्तविक व्यवहार और दूसरों की अनुक्रियाएँ प्रेक्षक की उपस्थिति से प्रभावित हो सकती हैं, इस प्रकार प्रेक्षण का उद्देश्य पराजित हो सकता है।
प्रश्न 5. संप्रेषण की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर– संप्रेषण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) संप्रेषण गतिशील है- क्योंकि इसकी प्रक्रिया निरंतर परिवर्तनशील रहती है। जैसे कि व्यक्ति की अपेक्षाओं, अभिवृत्तियों; भावनाओं तथा संवेगों में परिवर्तन होता रहता है, इस परिवर्तन को हम लगातार अभिव्यक्त करते हैं। इसी से उनका संप्रेषण भी लगातार परिवर्तित होता रहता है।
(ii) संप्रेषण अविराम है- क्योंकि यह कभी भी रुकता नहीं है ‘चाहे हम सोए या जगे हों- हम लगातार विचारों का प्रक्रमण करते रहते हैं। हमारा मस्तिष्क सदैव सक्रिय रहता है।
(iii) संप्रेषण अनुक्रमणीय है- क्योंकि एक बार संदेश भेज देने के बाद हम उसे वापस नहीं कर सकते हैं। अगरं एक बार जबान फिसल जाए, एक बार दृष्टिपात कर दें या संवेगात्मक उत्तेजना को प्रकट कर दें तो हम उसको मिटा नहीं सकते । हमारी क्षमायाचनाएँ या अस्वीकरण इसके प्रभाव को हल्का कर सकती है । लेकिन उसको पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकती जो कहा जा चुका
(iv) संप्रेषण अंतःक्रियात्मक है-क्योंकि हम लगातार दूसरों के और स्वयं के संपर्क में रहते हैं। दूसरे हमारे भाषणों तथा व्यवहार के प्रति प्रतिक्रिया देते हैं तथा हम स्वयं भी अपनी वाक्-क्रिया के प्रति अनुक्रिया देते हैं । इस प्रकार, हमारे संप्रेषण के आधार पर एक क्रिया-प्रतिक्रिया चक्र का बने रहना है।
प्रश्न 6. वाचन क्या है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर– वाचन संप्रेषण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। भाषा को उपयोग करके बोलना वाचन कहलाता है। भाषा में प्रतीकों का उपयोग किया जाता है जिसमें अर्थ बंधे हुए होते हैं। प्रभावी होने के लिए यह आवश्यक है कि संप्रेषक भाषा का सही उपयोग करना जानता हो क्योंकि भाषा प्रतीकात्मक होती है, इसलिए जहाँ तक संभव हो शब्दों का उपयोग स्पष्ट एवं परिशुद्ध होना चाहिए । संप्रेषण किसी संदर्भ के अंतर्गत घटित होता है। इसलिए दूसरे के संदर्भ आधार को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ है प्रेषक जिससे संदर्भ से संदेश प्रेषित कर रहा है, उसके प्रति जानकारी होनी चाहिए। साथ ही उस संदर्भ की व्याख्या की हिस्सेदारी आवश्यक है। अगर नहीं तो अपनी शब्दावली स्तर पर शब्दों के चयन को सुननेवाले के अनुरूप स्तर पर लाना पड़ता है। किसी संस्कृति-विशिष्ट या क्षेत्र अनुरूप अपभाषा तथा शब्दों की अभिव्यक्ति कभी-कभी संप्रेषण की प्रभावित में बाधा बन जाती है।
प्रश्न 7. अभिग्रहण को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर– श्रवण प्रक्रिया का प्रारंभिक चरण है उद्दीपक या संदेश का अभिग्रहण करना। ये संदेश श्रव्य हो सकते हैं। श्रवण प्रक्रिया कुछ जटिल शारीरिक अंत:क्रियाओं पर आधारित होती है जिसमें कान तथा मस्तिष्क की भूमिका होती है। श्रवण तंत्र के अलावा कुछ लोग अपनी दृष्टि प्रणाली में भी श्रवण करते हैं। वे किसी व्यक्ति का मुखीय अभिव्यक्ति, भंगिमा (मुद्रा), गति
एवं रंग-रूप का प्रेक्षण करते हैं, जिससे अत्यंत महत्त्वपूर्ण संकेत प्राप्त होते हैं और जिनको मात्र
संदेश के वाचिक अंश के श्रवण से नहीं समझा जा सकता है।
प्रश्न 8. श्रवण में संस्कृति की भूमिका को समझाइए।
उत्तर– श्रवण में संस्कृति की भूमिका-मस्तिष्क की तरह और हम जिस संस्कृति में पलते-बढ़ते हैं वह भी हमारी श्रवण एवं सीखने की योग्यताओं को प्रभावित करती है । एशियाई संस्कृति, जैसे कि भारत में जब बड़े या वरिष्ठ लोग संदेश देते हैं तब उसकी शांत संप्रेषक की तरह ग्रहण किया जाता है। कुछ संस्कृतियां में ध्यान को नियंत्रित करने पर ध्यान दिया जाता है। उदाहरण के लिए, बौद्ध दर्शन में एक संप्रत्यय होता है जिसको ‘मनोयोग’ कहते हैं। इसका अर्थ है कि आप जो भी करें, उस पर अपना संपूर्ण ध्यान केंद्रित रखें। बाल्यावस्था में ‘मनोयोग’ का
प्रशिक्षण देने से ध्यान केंद्रित करने की योग्यता का विस्तार हो जाता है और इससे श्रवण की क्षमता
बेहतर हो जाती है। व्यक्ति में इससे सहानुभूतिक श्रवण की योग्यता भी बढ़ती है। फिर भी अनेक
संस्कृतियों में श्रवण कौशलों में बढ़ोत्तरी से जुड़े संप्रत्ययों का अभाव है।
प्रश्न 9. साक्षात्कार कौशल को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर– एक क्षात्कार दो या अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है जिसमें प्रश्न-उत्तर प्रारूप या फॉर्मेट का अनुसरण किया जाता है। साक्षात्कार अन्य प्रकार के वार्तालाप की तुलना में अधिक औपचारिक होता है क्योंकि इसका एक पूर्वनिर्धारित उद्देश्य होता है तथा उसकी संरचना केन्द्रित होती है। अनेक प्रकार के साक्षात्कार होते हैं। उनमें से एक रोजगार साक्षात्कार है जिसका अनुभव हममें से अधिकांश लोग करेंगे । अन्य प्रारूपों में सूचना संग्रह संबंधी साक्षात्कार, परामर्शी साक्षात्कार पूछताछ संबंधी साक्षात्कार, रेडियो-टेलीविजन के साक्षात्कार तथा शोध साक्षात्कार आते हैं।
प्रश्न 10. परामर्श के मिथकों का खंडन किस प्रकार करेंगे?
उत्तर– परामर्श के मिथकों का खंडन-
(i) परामर्श का तात्पर्य केवल सूचना देना नहीं होता है।
(ii) परामर्श केवल सलाह देना नहीं होता है।
(iii) किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में चयन या स्थान परामर्श देना नहीं होता है।
(iv) परामर्श और साक्षात्कार समान नहीं है यद्यपि परामर्श में साक्षात्कार प्रक्रिया का उपयोग किया जा सकता है।
(v) परामर्श के अंतर्गत अभिवृत्तियों, विश्वासों और व्यवहारों का अनुनय करके, भर्त्सना करके, धमकी देकर या विवश करके प्रभावित करना नहीं आता है।
प्रश्न 11. परामर्शी साक्षात्कार का विशिष्ट प्रारूप क्या है ?
उत्तर– परामर्शी साक्षात्कार के विशिष्ट प्रारूप इस प्रकार से होते हैं:-
(i) साक्षात्कार का प्रारंभ- इसका उद्देश्य यह होता है कि साक्षात्कार देनेवाला आराम की स्थिति में आ जाए। सामान्यतः साक्षात्कारकर्ता बातचीत की शुरुआत करता है और प्रारंभिक समय में ज्यादा बात करता है।
(ii) साक्षात्कार का मुख्य भाग- यह इस प्रक्रिया का केन्द्र है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता सूचना और प्रदत्त प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रश्न पूछने का प्रयास करता है जिसके लिए साक्षात्कार का आयोजन किया जाता है।
(iii) प्रश्नों का अनुक्रम-साक्षात्कारकर्ता प्रश्नों की सूची तैयार करता है जिसमें विभिन्न क्षेत्रों या श्रेणियों से, जो वह जानना चाहता है, प्रश्न होते हैं।
(iv) साक्षात्कार का समापन-साक्षात्कार का समापन करते समय साक्षात्कारकर्ता ने जो संग्रह किया है उसे उसका सारांश बताना चाहिए। साक्षात्कार का अंत आगे के लिए जानेवाले कदम पर चर्चा के साथ होना चाहिए। जब साक्षात्कार समाप्त हो रहा हो तब साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार देनेवाले को भी प्रश्न पूछने का अवसर देना चाहिए या टिप्पणी करने का मौका देना चाहिए।
प्रश्न 12. एक सेवार्थी-परामर्शदाता संबंधों के नैतिक मानदंड क्या है ?
उत्तर-(i) भौतिक/व्यावसायिक आचरण-संहिता, मानक तथा दिशा-निर्देशों का ज्ञान:सविधियों, नियमों एवं अधिनियमों की जानकारी के साथ मनोविज्ञान के लिए जरूरी कानूनों की जानकारी भी आवश्यक है।
(ii) विभिन्न नैदानिक स्थितियों में नैतिक एवं विधिक मुद्दों को पहचानना और उनका विश्लेषण करना।
(iii) नैदानिक स्थितियों में अपनी अभिवृत्तियों एवं व्यवहार को नैतिक विमाओं को पहचानना और समझना।
(iv) जब भी नैतिक मुद्दों का सामना हो तब उपयुक्त सूचनाओं एवं सलाह को प्राप्त करना।
(v) नैतिक मुद्दों से संबंधित उपयुक्त व्यावसायिक आग्रहिता का अभ्यास करना ।
प्रश्न 13. परामर्श के कौन-से तत्त्व उसके सभी प्रमुख सैद्धांतिक उपागमों में समान होते हैं?
उत्तर-परामर्श के निम्नलिखित तत्त्व उसके सभी प्रमुख सैद्धांतिक उपागमों में समान होते हैं-
(i) परामर्श में सेवार्थी के विचारों, भावनाओं एवं क्रियाओं के प्रति अनुक्रिया करना सम्मिलित होता है।
(ii) परामर्शन में सेवार्थी के प्रत्यक्षण एवं भावनाओं की आधारभूत स्वीकृति होती है, बिना किसी मूल्यांकन मानकों के ।
(iii) गोपनीयता एवं निजता परामर्शन स्थिति के अत्यावश्यक संघटक हैं। वे भौमिक स्थितियों जो इसकी गुणवत्ता का संरक्षण करती है, महत्त्वपूर्ण हैं।
(iv) परामर्श स्वैच्छिक होता है। यह तभी होता है जब कोई सेवार्थी किसी परामर्शदाता के पास जाता है। एक परामर्शदाता सूचना प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार का बलप्रयोग नहीं करता है।
(v) परामर्शदाता और सेवार्थी दोनों इस प्रक्रिया में वाचिक तथा अवाचिक संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। इसी कारण, किसी परामर्शदाता की प्रभाविता के लिए संदेशों के प्रति अभिज्ञता और संवेदनशीलता अनिवार्य घटक है।
प्रश्न 14. प्रभावी संबंधों को किस प्रकार विकसित किया जा सकता है ?
उत्तर-प्रभावी संबंधों को विकसित करना- अधिकतर लोग जो परामर्शदाता से मदद लेते हैं, उनके प्रभावी या संतोषजनक संबंध बेहद कम होते हैं या उनका पूरी तरह अभाव होता है। चूँकि व्यवहार में परिवर्तन अक्सर सामाजिक अवलंब या समर्थन के एक नेटवर्क से आता है इसके लिए जरूरी है कि सेवार्थी दूसरे व्यक्तियों से अच्छा संबंध विकसित करने पर ध्यान दें। परामर्श संबंध वह माध्यम है जिससे इसका प्रारंभ किया जा सकता है। हम सभी की तरह परामर्शदाता
भी पूर्ण नहीं होते हैं, लेकिन दूसरों की तुलना में स्वस्थ एवं सहायक संबंधों का विकास करने की विशेषताओं में प्रशिक्षण प्राप्त होते हैं।
संक्षेप में, परामर्श में सेवार्थी के लिए एक से अधिक परिणामों की अपेक्षा होती है, जो साथ ही घटित होते हैं। सेवार्थी में होनेवाले प्रभावी व्यवहार परिवर्तन बहुपक्षीय होते हैं। इसको इस रूप में देखा जा सकता है कि सेवार्थी अधिक जिम्मेदारी ले, नई अंतर्दृष्टि विकसित करे, विभिन्न प्रकार के व्यवहार करे तथा अधिक प्रभावी संबंध विकसित करने का प्रयास करे।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. संप्रेषण को परिभाषित कीजिए। संप्रेषण प्रक्रिया का कौन-सा घटक सबसे महत्त्वपूर्ण है? अपने उत्तर को प्रासंगिक उदाहरणों से पुष्ट कीजिए।
उत्तर– संप्रेषण एक सचेतन या अचेतन, साभिप्राय या अनभिप्रेत प्रक्रिया है जिसमें भावनाओं तथा विचारों को, वाचित या अवाचित संदेश के रूप में भेजा, ग्रहण किया और समझा जाता है। श्रवण संप्रेषण प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। श्रवण एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसका उपयोग हम प्रतिदिन करते हैं। शैक्षणिक सफलता, नौकरी की उपलब्धि एवं व्यक्तिगत प्रसन्नता
काफी हद तक हमारे प्रभावी ढंग से सुनने की योग्यता पर निर्भर करती है। प्रथमतया, श्रवण हमें एक निष्क्रिय व्यवहार लग सकता है। क्योंकि इसमें चुप्पी होती है लेकिन निष्क्रियता की यह छवि सच्चाई से दूर है। श्रवण में एक प्रकार की ध्यान सक्रियता होती है। सुननेवाले का धैर्यवान तथा अनिर्णयात्मक होने के साथ विश्लेषण करते रहना पड़ता है ताकि सही अनुक्रिया दी जा सके।
प्रश्न 2. उन सक्षमताओं के समुच्चय का वर्णन कीजिए जिनको एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण का संचालन करते समय अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। उत्तर- मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का संचालन परीक्षण पुस्तिका में दी गई सूचना/अनुदेशों के अनुसार ही किया जाता है। इसके लिए आवश्यक तथ्य निम्नलिखित हैं:
(i) परीक्षण का उद्देश्य, अर्थात् इसका उपयोग किसके लिए किया जाना है।
(ii) जनसंख्या की विशेषताएँ जिसके लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
(iii) परीक्षण का वैधताओं के प्रकार अर्थात् किस आधार पर यह कहा जा सकता है कि उसी का मापन करता है जिसके मापन का दावा करता है?
(iv) वैधता के बाहय मानदंड, अर्थात् उन क्षेत्रों पर जिस पर इसकी कार्यशीलता देखी गई है।
(v) विश्वसनीयता सूचकांक, प्राप्तांकों में त्रुटि की क्या संभावनाएँ हैं?
(vi) प्रतिदर्श-मानकीकरण/अर्थात् जब परीक्षण का निर्माण हुआ था तब किसका परीक्षण किया गया था (भारतीयों का, अमेरीकियों का, ग्रामीणों को, साक्षरों का, निरक्षरों का आदि)?
(vii) परीक्षण संचालन के लिए निर्धारित समय ।
(viii) अंक देने की पद्धति, अर्थात किसको अंक दिया जाएगा और इसकी विधि क्या होगी?
(ix) मानक कौन-से उपलब्ध हैं ? किस समूह के संदर्भ में प्राप्तांकों की व्याख्या की जाएगी (पुरुष/महिला, आयु समूह आदि)?
(x) अन्य विशिष्ट कारकों के प्रभाव, जैसे-दबाव स्थितियों या दूसरों की उपस्थिति का प्रभाव आदि।
(xi) परीक्षण की सीमाएँ अर्थात कौन क्या मूल्यांकन नहीं कर सकता ? वे दशाएँ जो अच्छा मूल्यांकन नहीं दे सकती हैं।
प्रश्न 3. परामर्श से आप क्या समझते हैं ? एक प्रभावी परामर्शदाता की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर– साक्षात्कार की योजना, सेवार्थी एवं परामर्शदाता के व्यवहार का विश्लेषण तथा सेवार्थी के ऊपर पड़नेवाले विकासात्मक प्रभाव के निर्धारण के लिए परामर्श एक प्रणाली प्रस्तुत करता है। एक परामर्शदाता इस बात में अभिरुचि रखता है कि वह सेवार्थी की समस्याओं को उसके दृष्टिकोण और भावनाओं को ध्यान में रखकर समझ सके । इसमें समस्या से जुड़े वास्तविक तथ्य या वस्तुनिष्ठ तथ्य कम महत्त्वपूर्ण होते हैं और यह अधिक महत्त्वपूर्ण होता है कि सेवार्थी द्वारा स्वीकार की गई भावनाएं कैसी हैं, उनको लेकर काम किया जाए। इसमें व्यक्ति तथा वह समस्या को किस प्रकार परिभाषित करता है, इसको ध्यान में रखा जाता है।
परामर्श में सहायतापरक संबंध होता है जिसमें सम्मिलित होता है वह जो मदद चाह रहा है, मदद दे रहा है, देने का इच्छुक है, जो मदद देने में सक्षम हो या प्रशिक्षित हो और उस स्थिति में हो जहाँ मदद लेना और देना सहज हो।
एक प्रभावी परामर्शदाता की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) प्रामाणिकता- हमारे अपने बारे में प्रत्यक्षण या अपनी छवि हमारे “मैं” को बनाती है। यह स्व प्रत्यक्षित ‘मैं’ हमारे विचारों, शब्दों क्रियाओं, पोशाक और जीवन शैली के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। यह सभी हमारे ‘मैं’ को दूसरों तक संप्रेषित करते हैं। जो हमारे निकट संपर्क में आते हैं वे अपने लिए हमारे बारे में अलग छवि या धारण बनाते हैं और वे कभी-कभी इस छवि को हम तक पहुंचाते भी हैं। उदाहरण के लिए मित्र हमें बताते हैं कि वे हमारे बारे में क्या पसंद या नापसंद करते हैं। हमारे माता-पिता या अध्यापक हमारी प्रशंसा या आलोचना करते हैं।
हम जिनका आप सम्मान करते हैं वे भी आपका मूल्यांकन करते हैं। ये सामूहिक निर्णय उन लोगों
के द्वारा जिनका आप सम्मान करते हैं, इनको ‘दूसरे महत्त्वपूर्ण’ भी कहा जा सकता है, एक ‘हम’ का विकास करते हैं। इस ‘हम’ में वह प्रत्यक्षण सम्मिलित है जो दूसरे हमारे बारे में बताते हैं। यह प्रत्यक्षण हमारे स्व-प्रत्यक्षित -‘मैं’ जैसा भी हो सकता या उससे भिन्न हो सकता है। जहाँ तक हम अपने स्वयं के बारे में अपने प्रत्यक्षण तथा दूसरों के अपने बारे में प्रत्यक्ष्यण के प्रति जितने जानकार एवं सजग है, इससे हमारी आत्म-जागरुकता का पता चलता है। प्रामाणिकता का
अर्थ है कि हमारे व्यवहार की अभिव्यक्ति आपके मूल्यों, भावनाओं एंव आंतरिक आत्मबिंब या
आत्म-छवि (Self-image) के साथ संगत होती है।
(ii) दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर- एक उपबोध्य (Counselee) परामर्शदाता संबंध में एक अच्छा संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करता है। यह इस स्वीकृति को परावर्तित करता है कि दोनों की भावनाएं महत्त्वपूर्ण हैं। जब हम नए संबंध बनाते हैं तब हम एक अनिश्चितता की भावना एवं दुश्चिता का अनुभव करते हैं। इन भावनाओं को कम किया
जा सकता है अगर परामर्शदाता सेवार्थी जैसा महसूस कर रहा हो उसके बारे में एक सकारात्मक आदर का भाव प्रदर्शित करता है। दूसरों के प्रति सकारात्मक आदर का भाव दिखाने के लिए निम्नलिखित दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखना चाहिए।
(क) जब कोई बोल रहा हो तब ‘मैं’ संदेश का उपयोग की आदेश बनाए न कि ‘तुम’ संदेश की । इसका एक उदाहरण होगा, ‘मैं समझता हूँ’ न कि “आपको/तुमको नहीं चाहिए।”
(ख) दूसरे व्यक्ति को अनुक्रिया तभी देना चाहिए जब व्यक्ति उसकी कही हुई बात को समझ लें।
(ग) दूसरे व्यक्ति को यह स्वतंत्रता देनी चाहिए ताकि वह जैसा महसूस करता है वैसा बता सकें। उसको टोकना या बाधित नहीं करना चाहिए ।
(घ) यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि दूसरा यह जानता है कि व्यक्ति क्या सोच रहा है। अपने को निर्देश आधार के अनुसार ही व्यक्त करना चाहिए अर्थात् उस संदर्भ के अनुसार जिसमें बातचीत चल रही है।
(ड) स्वयं या दूसरों के ऊपर कोई लेबल लगाना चाहिए (उदाहरणार्थ, “तुम एक अंतर्मुखी व्यक्ति हो” इत्यादि)।
(iii) तदनुभूति- यह एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कौशल है जो परामर्शदाता के पास होना चाहिए। तदनुभूति एक परामर्शदाता की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह सेवार्थी की भावनाओं को उसके ही परिप्रेक्ष्य से समझता है । यह दूसरे के जूते में पैर डालने जैसा है, जिसके द्वारा व्यक्ति दूसरों की तकलीफ एवं पीड़ा को महसूस करके समझ सकते हैं। सहानुभूति एवं तद्नुभूति में अंतर होता लगता है कि उसकी दया की किसी को जरूरत है।
(iv) पुनर्वाक्यविन्यास- इसमें परामर्शदाता उस योग्यता का परिचय देता है कि कैसे सेवार्थी को कही हुई बातों को या भावनाओं को विभिन्न शब्दों को उपयोग करते हुए कहा जा सकता है।
प्रश्न 4. क्या आप इस कथन से सहमत हैं कि एक प्रभावी परामर्शदाता होने के लिए उसका व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित होना अनिवार्य है ? अपने तर्कों के समर्थन में कारण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर– हाँ, एक प्रभावी परामर्शदाता होने के लिए उसका व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित होना अनिवार्य है। यह आवश्यक है कि वह परामर्श एवं निर्देशन के क्षेत्र में सक्षम हो । सक्षमताओं को विकसित करने के लिए मनोवैज्ञानिकों को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण कुशल पर्यवेक्षण में दिया जाना चाहिए । गलत व्यवसाय में जाने के भयंकर परिणाम हो सकते हैं। मान लीजिए, कोई व्यक्ति किसी ऐसे काम में चला जाता है जिसके लिए उसके पास अपेक्षित अभिक्षमता का अभाव है, तब उसके सामने समायोजन की या निषेधात्मक संवेगों की गंभीर समस्या विकसित हो सकती
है, वह हीनता मनोग्रंथि से भी ग्रसित हो सकता है । इन कठिनाइयों को वह दूसरे माध्यमों से प्रक्षेपित कर सकता है। इसके विपरीत, अगर कोई ऐसा व्यवसाय चुनता है जिसके लिए उसमें पर्याप्त अनुकूलनशीलता है तब उसको अपने काम से संतुष्टि होगी। इससे उत्पन्न सकारात्मक भावनाएँ उसके समग्र जीवन समायोजन पर अच्छा प्रभाव डालेंगी। परामर्श भी एक ऐसा ही क्षेत्र है जहाँ एक व्यक्ति को प्रवेश करने लिए आत्म-निरीक्षण की आवश्यकता पड़ती है जिसमें वह अपनी अनुकूलता और अपने आधारभूत कौशलों का मूल्यांकन करके देख सके कि वह इस व्यवसाय के लिए प्रभावी है या नहीं। किसी परामर्शदाता की प्रभाविता के लिए संदेशों के प्रति अभिज्ञता (जानकारी) और संवेदनशीलता अनिवार्य घटक है।
प्रश्न 5. एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक को एक कूट मनोवैज्ञानिक से कैसे अलग किया जा सकता है?
उत्तर– अधिकतर लोग सोचते हैं कि वे किसी न किसी प्रकार के मनोवैज्ञानिक हैं। हम अक्सर बुद्धि, हीनता, मनोथि, अनन्यता संकट, मानसिक बाधाओं, अभिवृत्ति, दबाव, संप्रेषण बाधाओं के बारे में बात करते हैं। सामान्यत: इन पदों का परिचय लोगों के लोकप्रिय लेखन तथा जनसंचार के माध्यमों से होता है। मानव व्यवहार के बारे में कई प्रकार के सामान्य बुद्धि के पद लोग अपने जीवन से जुड़ी प्रक्रियाओं से सीख लेते हैं। मानव व्यवहार से जुड़ी कुछ नियमितताओं के अनुभव के आधार पर उनके बारे में सामान्यीकरण किया जाता है। इस प्रकार का दैनिक व्यवसायी (शौकिया) मनोविज्ञान अक्सर उल्टा असर डालता है, कभी-कभी तो अत्यंत भयावह हो सकता है। एक कूट मनोवैज्ञानिक को वास्तविक मनोविज्ञान कैसे अलग करेंगे?
इसका उत्तर कुछ इस प्रकार के प्रश्न पूछकर तैयार किया जा सकता है, जैसे-उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण, शैक्षिक पृष्ठभूमि, संस्थागत संबंधन तथा उसका सेवा देने संबंधी अनुभव आदि । यहाँ पर यह महत्त्वपूर्ण है कि उस मनोवैज्ञानिक का प्रशिक्षण एक शोधकर्ता के रूप में कैसे हुआ है और उसमें व्यावसायिक मूल्यों का आंतरिकीकरण कितना हुआ है। अब इस बात को माना जा रहा है कि मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त उपकरणों का ज्ञान, उनसे जुड़ी विधियों एवं सिद्धांत मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए एक व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक समस्या का निराकरण वैज्ञानिक स्तर पर करता है। वे अपनी समस्याओं को प्रयोगशाला या क्षेत्र में ले जाकर परीक्षण करके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे अपने प्रश्नों का उत्तर गणितीय प्रसंभाव्यताओं के आधार पर प्राप्त करते हैं। उसके बाद ही वह किसी विश्वसनीय मनोवैज्ञानिक सिद्धांत या नियम पर पहुंचते हैं।
यहाँ पर एक और अंतर स्थापित करना चाहिए। कुछ मनोवैज्ञानिक शोध के माध्यम से सैद्धांतिक निरूपणों की खोज करते हैं। जबकि कुछ अन्य हमारे प्रतिदिन की क्रियाओं और व्यवहारों से संबंधित रहते हैं। हमें दोनों प्रकार के मनोवैज्ञानिकों की जरूरत है। हमें कुछ ऐसे वैज्ञानिक चाहिए जो सिद्धांतों का विकास करे जबकि कुछ दूसरे उनका उपयोग मानव समस्याओं के समाधान के लिए करें। यहाँ यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि शोध कौशलों के अलावा एक मनोवैज्ञानिक के लिए वे कौन-सी सक्षमताएँ हैं जो आवश्यक हैं। कुछ दशाएँ ऐसी हैं जो मनोवैज्ञानिकों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवश्यक मानी जा रही है।
इसके अंतर्गत ज्ञान के वे क्षेत्र आते हैं, जिसको शिक्षा और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद व्यवसाय में आने से पूर्व किसी मनोवैज्ञानिक को जानना चाहिए। ये शिक्षकों, अभ्यास करनेवाले
एवं शोध करनेवाले सभी के लिए जरूरी हैं जो छात्रों से, व्यापार से, उद्योगों से और बृहत्तर समुदायों के साथ परामर्शन की भूमिकाओं में होते हैं। यह माना जा रहा है कि मनोविज्ञान में सक्षमताओं को विकसित करना, उनको अमल में लाना और उनका मापन करना कठिन है, क्योंकि विशिष्ट पहचान और मूल्यांकन की कसौटियों पर आम सहमति नहीं बन पाई है।
प्रश्न 6. प्रेक्षण के दो प्रमुख उपागमों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– प्रेक्षण के दो प्रमुख उपागम हैं- (i) प्रकृतिवादी प्रेक्षण तथा (ii) सहभागी प्रेक्षण
(i) प्रकृतिवादी प्रेक्षण (Naturalistic observation)-एक प्राथमिक तरीका है जिससे हम सीखते हैं कि लोग भिन्न स्थितियों में कैसे व्यवहार करते हैं। मान लीजिए, कोई जानना चाहता हैं कि जब कोई कंपनी अपने उत्पाद में भारी छूट की घोषणा करती है तो प्रतिक्रियास्वरूप लोग शपिंग मॉल जाने पर कैसा व्यवहाहर करते हैं। इसके लिए वह शॉपिंग मॉल में जा सकता है जहाँ इन छूट वाली वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है, क्रमबद्ध ढंग से वह प्रेक्षण कर सकता
है कि लोग खरीदारी से पहले या बाद में क्या कहते या करते हैं। उनके तुलनात्मक अध्ययन से, वहाँ क्या हो रहा है, इस बारे में रुचिकर सूझ बन सकती है।
(ii) सहभागी प्रेक्षण (Participant observation)-प्रकृतिवादी प्रेक्षण का ही एक प्रकार है। इसमें प्रेक्षक प्रेक्षण की प्रक्रिया में एक सक्रिय सदस्य के रूप में संलग्न होता है। इसके लिए वह उस स्थिति में स्वयं भी सम्मिलित हो सकता है जहाँ प्रेक्षण करना है। उदाहरण के लिए, ऊपर दी गई समस्या में, एक प्रेक्षणकर्ता उसी शॉपिंग मॉल की दुकान में अशंकालिक नौकरी लेकर अंदर का व्यक्ति बनकर ग्राहकों को व्यवहार में विभिन्नताओं का प्रेक्षण कर सकता है। इस तकनीक का मानवशास्त्री बहुतायत से उपयोग करते हैं जिनका उद्देश्य होता है कि उस सामाजिक व्यवस्था का प्रथमतया दृष्टि से एक परिप्रेक्ष्य विकसित कर सकें जो एक बाहरी व्यक्ति को
सामान्यतया उपलब्ध नहीं होता है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए-
(i) ध्यान। (ii) पुनर्वाक्यविन्यास ।
(iii) अर्थ का आरोपण । (iv) शरीर भाषा ।
उत्तर– (i) ध्यान- एक बार जब उद्दीपक, जैसे-एक शब्द या दृष्टि संकेत या दोनों, ग्रहण किए जाते हैं तो वे मानव प्रक्रमण तंत्र की ध्यान अवस्था पर पहुंचते हैं। इस अवस्था में अन्य उद्दीपक पश्चगमन की अवस्था आ जाते हैं ताकि हम विशिष्ट शब्दों या दृश्य प्रतीकों पर पूरा ध्यान सकें । सामान्यता हमारा ध्यान हम जो सुन रहे हैं और समझ रहे हैं उनके बीच बँटा रहता
है या हमारे आस-पास जो कुछ घटित हो रहा है उसमें उलझा रहता है। मान लीजिए कि एक छात्र कोई सिनेमा देख रहा है। उसके सामने बैठा व्यक्ति अपने बगल में बैठे व्यक्ति के साथ लगातार कानाफूसी कर रहा है। सिनेमाघर का ध्वनि यंत्र भी खड़खड़ा रहा है। साथ ही, उसे आगे आनेवाली परीक्षा के बारे में भी चिंता है। इस तरह से उसका ध्यान अनेक दिशाओं में बँटा रहता है। विभक्त ध्यान किसी संदेश या संकेत को ग्रहण करना कठिन बना देता है।
(ii) पुनर्वाक्यविन्यास- यह कैसे पता चलेगा कि कोई श्रवण कर रहा है कि नहीं? उससे पूछकर कि उसने जो कहा वह उसको फिर से कहे । ऐसा करनेवाले व्यक्ति उसके शब्दों को एकदम से नहीं दोहरा सकता है। वह मूलतः अपनी समझ से आपकी बातों या विचारों को पुनर्कथित करता है वही जो उसकी समझ में आया होता है। इसी को
पुनर्वाक्यविन्यास( Paraphrasing ) कहते हैं। इसके द्वारा व्यक्ति को यह समझ में आ जाता है कि उसने जो कहा वह कितना समझा या सुना गया है। अगर कोई कही हुई बात को संक्षप में दुबारा दोहरा नहीं सकता तब यह इसका साक्ष्य है कि उसने पूरा संदेश ठीक से ग्रहण नहीं किया है अर्थात् या तो सुना नहीं है या समझा नहीं है। हम जब कक्षा में अध्यापक या किसी दूसरे व्यक्ति को सुन रहे हों तब भी इस बार ध्यान रखना चाहिए कि क्या हम उसकी बात दोहरा सकते हैं या नहीं ? सुनी हुई बात को पुनर्वाक्यविन्यास करने का प्रयास करना चाहिए और यदि ऐसा नहीं
कर पाते हैं तब संभव होने पर तत्काल स्पष्टीकरण करना चाहिए।
(iii) अर्थ का आरोपण-किसी भी उद्दीपक को ग्रहण करने के बाद उसको हम एक पूर्वानिर्धारित श्रेणी में रखते हैं, उसे श्रेणी को विकास भाषा के सीखने के साथ ही जुड़ा रहता है। हम उन मानसिक श्रेणियों को विकसित करते है। जिनके द्वारा प्राप्त संदेश की व्याख्या की जाती है। उदाहरण के लिए, हमारी श्रेणीकरण प्रणाली ने ‘पनीर’ शब्द को दुग्ध उत्पाद के रूप में श्रेणीबद्ध कर रहा है, जिसका एक खास स्वाद है, रंग है, जिसके द्वारा हम ‘पनीर’ शब्द का उपयोग सही अर्थ में कर पाते हैं।
(iv) शरीर भाषा-जब हम दूसरों से संवाद करते हैं तब हमारे शब्द हमारे संदेश का पूर्ण अर्थ संप्रेषित नहीं कर पाते हैं। हम सभी जानते हैं कि संप्रेषण का एक बड़ा भाग वाचिक भाषा का उपयोग किए बिना भी हो सकता है। हमें पता है कि अवाचिक क्रियाएँ प्रतीकात्मक होती किसी भी बातचीत की क्रिया से गहराई से जुड़ी रहती हैं। इन्हीं अवाचिक क्रियाओं के अंश को शरीर भाषा (Body Language) कहते हैं।
शरीर भाषा में वह सारे संदेश शामिल होते हैं जो शब्दों के अलावा लोग बातचीत के दौरान उपयोग करते हैं। शरीर भाषा पढ़ते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी एक अवाचित संकेत अपने आप में संपूर्ण अर्थ नहीं रखता है। इसमें हावभाव, भंगिमा, शरीर की बनावट,नेत्र संपर्क शरीर की गति, पोशाक शैली जैसे कारक शामिल होते हैं और इसको एक गुच्छ (Cluster) के रूप में समझना पड़ता है। साथ ही, वाचिक संप्रेषण में अवाचिक संकेतों के अनेक अर्थ हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, सीने पर एक-दूसरे पर रखी गई बाहुओं या भुजाओं का अर्थ होता है कि व्यक्ति स्वयं को अलग रखना चाहता है, परंतु अगर सीधी मुद्रा में सीने पर हाथ बंधे हों, शरीर की मांसपेशियाँ तनी हों, जबड़ों की मांसपेशियों में जकड़न और आँखों की मांसापेशियों में सकुचन हो तो यह संभवतः क्रोध का संप्रेषण करता है।
प्रश्न 8. श्रवण कौशलों को सुधारने के कुछ संकेतों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर श्रवण कौशलों को सुधारने के कुछ संकेत निम्नलिखित हैं-
(i) इस बात की पहचान करनी चाहिए कि प्रेषक एवं संग्राहक दोनों संप्रेषण को प्रभावी बनाने के लिए समान रूप से जिम्मेदार होते हैं।
(ii) संप्रेषित की जा रही सूचना प्राप्त करने की शुरुआत में कोई निर्णय लेने से बचना चाहिए। सभी विचारों के प्रति खुलापन रखना चाहिए ।
(iii) धैर्यवान श्रवणकर्ता बनना चाहिए। अनुक्रिया देने में जल्दी नहीं करना चाहिए।
(iv) अहं कथन से बचना चाहिए। केवल जो चाहते हैं उसकी के बारे में बात नहीं करना चाहिए। दूसरो को भी अवसर देना चाहिए और जो कहना है कहने देना चाहिए।
(v) सांवेगिक अनुक्रियाओं के प्रति सावधान रहना, विशेष रूप से वे शब्द जो भावपूर्ण हों ।
(vi) यह ध्यान रखना चाहिए कि शरीर भंगिमा श्रवण को प्रभावित करती है।
(vii) विमनस्कता को नियंत्रित करना चाहिए।
(viii) अगर कोई संदेह हो तो पुनर्कथन (पुनर्वाक्यविन्यास) करना चाहिए । प्रेषक से पूछना
चाहिए कि वह आपके द्वारा ठीक समझा जा रहा है या नहीं।
(ix) जो कहा जा रहा है उसका मानस-प्रत्यक्षीकरण करना चाहिए। तात्पर्य यह है कि संदेश को मूर्त क्रिया के रूप में अनुदित करना चाहिए ।
प्रश्न 9. मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कौशलों के मूल तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन कौशलों के मूल तत्त्व अग्रलिखित हैं-
(i) विविध प्रकार की विधियों एवं माध्यमों से मूल्यांकन करने की योग्यता, इसमें उन तरीकों का ध्यान रखना भी सम्मिलित है जिसमें विविध व्यक्तियों, युग्मों, परिवारों एवं समूहों के प्रति सम्मान एवं अनुक्रियाशीलता की भावना बनी रहे ।
(ii) निर्णय लेने के लिए प्रदत्त संग्रह करते समय एक प्रणालीबद्ध उपागम के उपयोग की योग्यता।
(iii) मूल्यांकन विधियों के आधारों से जुड़े मनोमितिक मुद्दों का ज्ञान ।
(iv) विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रदत्तों को समाकलित करने से संबंधित मुद्दों की जानकारी रखना।
(v) नैदानिक उद्देश्यों के लिए विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रदत्तों को समाकलित करने की योग्यता।
(vi) निदान के उपयोग एवं निरूपण की योग्यता, जिसमें उपलब्ध नैदानिक उपागमों की सीमाओं और शक्तियों को समझा जा सके।
(vii) कौशलों को बढ़ाने एवं अंमल लाने के लिए पर्यवेक्षण के प्रभावी उपयोग की क्षमता कोई भी जो मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का उपयोग करता है उसका व्यावसायिक रूप से योग्य होना तथा मनोवैज्ञानिक परीक्षण में प्रशिक्षित होना आवश्यक है। मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का संचालन परीक्षण पुस्तिका (मैन्युअल) में दी गई सूचना/ अनुदेशों के अनुसार ही किया जाता है।
प्रश्न 10. साक्षात्कार प्रश्नों के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर– साक्षात्कार प्रश्नों के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-
(i) प्रत्यक्ष प्रश्न – ये स्पष्ट होते हैं और इनको विशिष्ट सूचनाओं की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, “अंतिम बार आपने कहाँ काम किया था?”
(ii) मुक्तोत्तर प्रश्न- ये कम स्पष्ट होते हैं और केवल विषय को बताते हैं। उदाहरण के लिए “आप अपनी नौकरी से कुल मिलाकर कितने प्रसन्न थे?”
(iii) अमुक्तोत्तर प्रश्न – ये अनुक्रिया के विकल्प भी प्रस्तुत करते हैं जिससे अनुक्रिया का प्रसरण संकीर्ण रहता है। उदाहरण के लिए, “क्या आपको लगता है कि उत्पाद संबंधी ज्ञान या संप्रेषण कौशल एक विक्रेता के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण होता है ?”
(iv) द्वि-ध्रुवीय प्रश्न-यह अमुक्तोत्तर प्रश्न का ही एक प्रकार है। इसमें हाँ/नहीं अनुक्रिया अपेक्षित होती है। उदाहरण के लिए, “क्या आप इस कंपनी के लिए काम करना चाहेंगे?”
(v) संकेतन प्रश्न-ये किसी विशिष्ट उत्तर के पक्ष में अनुक्रिया को प्रोत्साहन देते हैं। उदाहरण के लिए, “क्या आप इस पक्ष में नहीं हैं कि इस कंपनी में अधिकारियों का एक संघ (यूनियन) बने ?”
(vi) दर्पण प्रश्न -इसका उद्देश्य होता है कि व्यक्ति ने जो कहा है उसे परावर्तन करके विचार करे या उसको आगे बढ़ाए। उदाहरण के लिए, “मैं इतना परिश्रम करता पर मुझे सफलता नहीं मिलती।” कृपया बताऍं कि ऐसा क्यों होता है।
साक्षात्कार प्रश्नों के उत्तर देना-
(i) अगर प्रश्न समझ में नहीं आया है तो स्पष्टीकरण के लिए पूछना चाहिए ।
(ii) अपने उत्तर में प्रश्न का पुनर्कथन करना चाहिए।
(iii) एक समय में एक ही प्रश्न का उत्तर देना चाहिए।
(iv) नकारात्मक प्रश्नों को सकारात्मक में बदल देना चाहिए।
प्रश्न 11, अपने एक मित्र के व्यक्तिगत जीवन के एक ऐसे पक्ष की पहचान कीजिए जिसे वह बदलना चाहता है। अपने मित्र की सहायता करने के लिए मनोविज्ञान के एक विद्यार्थी के रूप में विचार करके उसकी समस्या के समाधान या निराकरण के लिए एक
कार्यक्रम को प्रस्तावित कीजिए।
उत्तर– मेरा मित्र धूम्रपान करता है। उसकी यह आदत काफी दिनों से है और पिछले कुछ दिनों में उसकी आदत काफी बढ़ गई है। धूम्रपान के कारण उसके व्यक्तिगत जीवन में कठिनाइयाँ सामने आने लगी हैं। प्रतिदिन पारिवारिक कलह से परेशान है। कार्यालय में ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाता है । गहरे अवसाद के दौर से गुजर रहा है। हालांकि ऐसा नहीं है कि उसने धूमपान छोड़ने की कोशिश न की हो । लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका । मनोविज्ञान के छात्र होने के नाते
मैं उसके लिए कुछ करना चाहूँगा। सबसे पहले मैं उसके इस नकारात्मक सोच कि धूम्रपान को वह नहीं छोड़ पाएगा। इसे सकारात्मक सोच में बदलूँगा। उसमें आत्मविश्वास जगाने के बाद उसे किसी ऐसे चिकित्सक या केन्द्र में ले जाऊँगा, जहाँ इस प्रकार की आदतों को छुड़वाने का काम किया जाता हो। मैं इस संबंध में उसके परिवार वालों से भी बात करूंगा और उनको भी आश्वस्त करूंगा और परामर्श दूंगा कि सब काम स्नेह, प्रेम और प्यार से संभव हो सकता है।
इसमें सभी व्यक्ति की बराबर की भागीदारी होनी चाहिए। सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी। जब सब एक साथ इस काम में लगेंगे तो मेरे मित्र में आत्म-विश्वास जोगा और दुगुने जोश से धूम्रपान को छोड़ने की कोशिश करेगा और अंत में उसे इसमें सफलता मिलेगी।
प्रश्न 12. एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक को एक कटु मनोवैज्ञानिकों से कैसे अलग किया जा सकता है?
उत्तर-अधिकतर लोग सोचते हैं कि वे किसी न किसी प्रकार के मनोवैज्ञानिक हैं। हम अक्सर बुद्धिहीनता मनोग्रंथि, अनन्यता संकट, मानसिक बाधाओं, अभिवृत्ति दबाव, संप्रेषण बाधाओं के बारे में बात करते हैं। सामान्यतः इन पदों का परिचय लोगों के लोकप्रिय लेखन तथा जनसंचार के माध्यमों से होता है। मानव व्यवहार के बारे में कई प्रकार के सामान्य बुद्धि के पद लोग अपने जीवन से जुड़ी प्रक्रियाओं से सीख लेते हैं। मानव व्यवहार से जुडी कुछ नियमितताओं के अनुभव के आधार पर उनके बारे में सामान्यीकरण किया जाता है। इस प्रकार के दैनिक व्यवसायी मनोविज्ञान अक्सर उल्टा प्रभाव डालता है, कभी-कभी तो अत्यंत भयावह हो सकता है एक कूट मनोवैज्ञानिक को वास्तविक मनोवज्ञिान से कैसे अलग करेंगे? इसका उत्तर कुछ इस प्रकार के प्रश्न पूछकर तैयार किया जाता है, जैसे- उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण, शैक्षिक पृष्ठभूमि, संस्थागत संबंधन तथा उसका सेवा देने संबंधी अनुभव आदि। यहाँ पर यह महत्त्वपूर्ण है कि उस
मनोवैज्ञानिक का प्रशिक्षण एक शोधकर्ता के रूप में कैसे हुआ है और उसमें व्यावसायिक मूल्यों का आंतरिकीकरण कितना हुआ है ? अब इस बात को माना जा रहा कि मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त उपकरणों का ज्ञान, उनसे जुड़ी विधियों एवं सिद्धांत मनोवैज्ञानिक विशेषता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। उदाहरण के लिए एक व्यावसायिक मनोवैज्ञानिक समस्या का निराकरण वैज्ञानिक स्तर पर करता है। वे अपनी समस्याओं को प्रयोगशाला या क्षेत्र में ले जाकर परीक्षण करके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते हैं वे अपने प्रश्नों का उत्तर गणितीय प्रसंभाव्यताओं के आधार पर प्राप्त करते हैं। उसके बाद ही वह किसी विश्वसनीय मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त या नियम पर पहुंचते हैं। यहाँ पर एक और अंतर स्थापित करना चाहिए। कुछ मनोवैज्ञानिक शोध के माध्यम से सैद्धांतिक निरूपणों की खोज करते हैं जबकि कुछ अन्य हमारे प्रतिदिन की क्रियाओं और व्यवहारों से संबंधित रहते हैं। हमें दोनों प्रकार के मनोवैज्ञानिकों की जरूरत हैं। हमें कुछ ऐसे वैज्ञानिक चाहिए जो सिद्धान्तों का विकास करे जबकि कुछ दूसरे उनका उपयोग मानव समस्याओं के समाधान के लिए करें। यहाँ यह जानना महत्त्वपूर्ण है शोध कौशलों के अलावा एक मनोवैज्ञानिक के लिए वे कौन-सी क्षमताएँ हैं जो आवश्यक हैं। कुछ दशाएँ और सक्षमताएं ऐसी हैं जो मनोवैज्ञानिकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यक मानी जा रही हैं।
इसके अंतर्गत ज्ञान के वे क्षेत्र आते हैं जिसको शिक्षा और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद व्यवसाय में आने से पूर्व किसी मनोवैज्ञानिक को जानना चाहिए। ये शिक्षकों, अभ्यास करनेवाल एवं शोध करनेवाले सभी के लिए जरूरी हैं जो छात्रों से, व्यापार से, उद्योगों से और वृहत्ता समुदायों के साथ परामर्श की भूमिकाओं में होते हैं। यह माना जा रहा है कि मनोविज्ञान में सक्षमताओं को विसरित करना, उनको अमल में लाना और उनका मापना करना कठिन है, क्योंकि विशिष्ट पहचान और मूल्यांकन की कसौटियों पर आम सहमति नहीं बना पायी है।