bihar board class 12 history | उपनिवेशवाद और देहात
bihar board class 12 history | उपनिवेशवाद और देहात
भारतीय इतिहास के कुछ विषय : भाग-II [ कक्षा-XII]
[Themes in Indian History : Part-III (Class-XII)]
10. सरकारी अभिलेखों का अध्ययन
COLONIALISM AND THE COUNTRYSIDE
(Exploring Official Archives)
महत्वपूर्ण तथ्य एवं घटनायें
● उपनिवेशवाद-जब एक शक्तिशाली राष्ट्र एक कमजोर राष्ट्र पर अधिकार कर लेता है और
संसाधनों पर अधिकार कर लेता है, तो इस विचारधारा को उपनिवेशवाद कहते हैं।
● पहाड़िया और संथाल-ये दोनों जनजातियां राजमहल की पहाड़ियों में रहते हैं।
● 1793 ई.-भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने इस्तमरारी बंदोबस्त स्थाई बंदोबस्त लागू किया।
● 1997 ई.-बर्दमान के राजा ने जब अपनी सम्पदा बेचनी शुरू की तो कम्पनी ने बड़ी नीलामी
करवायी। यह एक सार्वजनिक घटना मानी जाती है।
● चार्ल्स कार्नवालिस-1793 ई. में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया, उस समय वह
बंगाल का गवर्नर था।
● ताल्लुकदार-यह किसी क्षेत्रीय इकाई का प्रबंधक होता था और राजस्व वसूल करता था।
● सूर्यास्त कानून-इस कानून के अंतर्गत निश्चित तिथि के सूर्यास्त तक जमींदार को भू-राजस्व
जमा करना होता था अन्यथा उसकी भूमि की नीलामी कर दी जाती थी।
● अमला-यह जमींदार का एक अधिकारी होता था जो गाँव से राजस्व एकत्र करता था।
● रैयत-इसका अर्थ किसान है परन्तु ये खुद खेती नहीं करते थे बल्कि भिकमी रैयत को आगे
पट्टे पर दे दिया करते थे।
● हवलदार-बंगाल में धनी किसानों और मुखिया को हवलदार कहा जाता था। कुछ अन्य
स्थानों पर वे गॉटीदार या मंडल कहलाते थे।
● पाँचवीं रिपोर्ट-ईस्ट इण्डिया कम्पनी के प्रशासन तथा कियाकलापों के रिपोर्ट को पाँचवीं
रिपोर्ट कहा गया।
● बेनामी-इस शब्द का प्रयोग ऐसे सौदों के लिए किया जाता है जो किसी फर्जी या अपेक्षाकृत
महत्वहीन व्यक्ति के नाम से किये जाते हैं।
● लठियाल-लाठी या डंडे वाले लोगों को लठियाल कहा जाता था। ये जमींदार के लठैत
समर्थक होते थे।
● बुकानन-यह ब्रिटेन का एक चिकित्सक था जिसने अंग्रेजी सरकार के लिए उपयोगी
संसाधनों का प्रेक्षण किया।
● झूम खेती-इसमें एक स्थान पर कुछ वर्षों तक खेती करके फिर उस स्थान को कुछ समय
के लिए परती छोड़ दिया जाता था।
● दामिल-इ-कीह-संथालों के अंग्रेजों द्वारा सीमांकित भू-प्रदेश।
एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
बहुविकल्पीयय प्रश्न
(Multiple Choice Questions)
1. राजमहल की पहाड़ियों में मुख्यता जो लोग रहते थे। वे थे :-
(क) पहाड़िया और संथाल लोग
(ख) पहाड़िया और भील लोग।
(ग) पहाड़िया तथा अंग्रेज लोग
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं। उत्तर-(क)
2. कम्पनी काल में अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता
था वह था:
(क) कोतवाल
(ख) राजा
(ग) रैयत
(घ) जोतदार उत्तर-(ख)
3. 18वीं शताब्दी में बंगाल में नीलामी में कितने प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी होती थी?
(क) 95 प्रदिपाव
(ख) 99 प्रतिशत
(ग) 75 प्रतिशत
(घ) 39 प्रतिशत उत्तर-(क)
4. इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद कितने प्रतिशत से अधिक जमीदारियाँ
हस्तांतरित कर दी गई थीं?
(क) 75 प्रतिशत
(ख) 95 प्रतिशत
(ग) 15 प्रतिशत
(घ) 45 प्रतिशत उत्तर-(क)
5. चार्ल्स कार्नवालिस का जीवन काल था:
(क) 1838-1905
(ख) 1738–1805
(ग) 1638-1705
(घ) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं। उत्तर-(ख)
6. शिकमी-रैयत को बंगाल में जमीन कौन पट्टे पर देता था ?
(क) रैयत
(ख) कम्पनी
(ग) जमींदार
(घ) इक्तेदार उत्तर-(क)
7. ‘अमला’ किसके द्वारा भेजा अधिकारी होता था ?
(क) दीवान
(ख) जमींदार
(ग) कोतवाल
(घ) मनसबदार उत्तर-(ख)
8. प्रायः जोतदार कहाँ रहते थे ?
(क) गाँव में
(ख) शहरों में
(ग) महानगरों में
(घ) कस्बों में उत्तर-(क)
9. महाराजा मेहताब चंद्र का जीवन काल था:
(क) 1820-1879
(ख) 1920-1939
(ग) 1720-1799
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं। उत्तर-(क)
10. भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय कौन थे ? [B.M.2009A]
(क) फ्रांसीसी
(ख) पुर्तगाली
(ग) डच
(घ) अंग्रेज उत्तर-(ख)
11. स्थायी व्यवस्था किस गवर्नर जनरल की नीति थी- [B.M.2009A]
(क) कार्नवालिस की
(ख) वारेन हेस्टिंग्स की
(ग) हेस्टिांस की
(घ) डलहौजी उत्तर-(क)
12. बंगाल में द्वैध शासन लागू करने का श्रेय किसे है ? [B.M.2009A]
(क) क्लाइव
(ख) वारेन हेस्टिंग्स
(ग) कार्नवालिस
(घ) बैटिंग उत्तर-(क)
13. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई थी?
[B.Exam/B.M.2009A, B.Exam.2013(A)]
(क) 1600 ई०
(ख) 1605 ई०
(ग) 1610 ई०
(घ) 1615 ई० उत्तर-(क)
14. 1857 की क्रांति को किसने प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन कहा है ? [B.M. 2009A]
(क) श्याम जी कृष्ण वर्मा
(ख) बी० डी० सावरकर
(ग) मजूमदार
(घ) मार्क्स उत्तर-(ख)
15. स्थायी बंदोबस्ती लागू की गई वर्ष- [B.M.2009A]
(क) 1773 में
(ख) 1774 में
(ग) 1786 में
(घ) 1793 में उत्तर-(घ)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अंग्रेज भारत क्यों और कब आए ?
उत्तर-अंग्रेज भारत में 1600 ई. में आए। वे भारत में व्यापार से होने वाले भारी लाभ की
प्राप्ति के लिए आए थे।
प्रश्न 2. ‘दीवानी’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-दीवानी का अर्थ है, भू-राजस्व लेने का अधिकार। 1765 ई. में इलाहाबाद की संधि
के अनुसार बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अंग्रेजों को दे दी गई थी।
प्रश्न 3. किस तरह से बंगाल में अंग्रेजों को दीवानी मिलने से उनकी स्थिति में स्थिरता
आ गई?
उत्तर-1. अंग्रेज अब कानूनी रूप से बंगाल में लगान इकट्ठा करने के हकदार हो गये थे।
2. बंगाल से लगान के रूप में मिलने वाली अपार सम्पदा से वे अच्छी सेना रख सकते थे
जिसके द्वारा वे अन्य क्षेत्रों को आसानी से जीत सकते थे।
प्रश्न 4. बंगाल की दीवानी मिलने से कम्पनी को क्या दो प्रमुख लाभ हुए ?
उत्तर-1. कम्पनी बंगाल की शासिका और सर्वोच्च अधिकारी बन गई।
2. कम्पनी की आर्थिक स्थिति में सुधार हो गया। इस धनराशि से उसका व्यापार बढ़ा और
इसी धनराशि के कारण विशाल सेना कम्पनी के पास हो गई।
प्रश्न 5. रैयतवाड़ी बंदोबस्त से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-भू-राजस्व की वह प्रणाली, जिसमें रैयतों या किसानों तथा सरकार का सीधा सम्बन्ध
होता था। इसमें जमींदार या अन्य कोई मध्यस्थ न था।
प्रश्न 6. इस्तमरारी बंदोबस्त किसने और कब शुरू किया था ? इसका पुराने जमींदारों
पर क्या प्रभाव पड़ा था ?
उत्तर-इस्तमरारी बंदोबस्त चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में शुरू
किया गया।
प्रभाव : इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद 75 प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ
हस्तांतरित कर दी गई थीं।
प्रश्न 7. चार्ल्स कार्नवालिस कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-चार्ल्स कार्नवालिस, अमेरिका स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सेना का कमांडर था।
जब 1793 ई० में बंगाल में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया, उस समय कार्नवालिस बंगाल
का गवर्नर जनरल था।
प्रश्न 8. राजस्व राशि के भुगतान में जमींदार क्यों चूक करते थे ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-कम्पनी के अधिकारियों का यह सोचना था कि राजस्व माँग निर्धारित किये जाने से.
जमींदारों में सुरक्षा का भाव उत्पन्न होगा और वे अपने निवेश पर प्रतिफल प्राप्ति की आशा से
प्रेरित होकर अपनी संपदाओं में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
प्रश्न 9. कम्पनी के काल में जमींदार राजस्व कैसे इकट्ठा करते थे?
उत्तर-कम्पनी के काल में राजस्व इकट्ठा करने के लिए जमींदार का एक अधिकारी जिसे
आमतौर पर अमला कहते थे, गाँव में आता था। राजस्व इकट्ठा करना एक पारिवारिक समस्या
थी। कभी-कभी खराब फसल और नीची कीमतों के कारण किसानों के लिए अपनी देय राशियों
का भुगतान करना बहुत कठिन हो जाता था और कभी-कभी ऐसा भी होता था कि रैयत
जान-बूझकर भुगतान में देरी कर देते थे। धनवान रैयत और गाँव के मुखिया-जोतदार और
मंडल-जमींदार को परेशानी में देखकर बहुत खुश होते थे क्योंकि जमींदार आसानी से अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकता था। जमींदार बाकीदारों पर मुकद्दमा तो चला सकता था, मगर न्यायिक प्रक्रिया लंबी होती थी।
उदाहणार्थ : 1798 में अकेले बर्दवान जिले में ही राजस्व भुगतान के बकाया से संबधित
30,000 से अधिक बाद लंबित थे।
प्रश्न 10. महाराजा मेहताब चंद कौन था ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-महाराजा मेहताब चंद का जन्म 1820 ई. में हुआ। जब इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया
गया था, तब तेजचंद, बर्दवान का राजा था। उसके बाद मेहताबचंद के शासनकाल में बर्दवान की
जमींदारी काफी फली-फूली। उन्होंने संथालों के विद्रोह और 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजी
हुकूमत का साथ दिया था। 1878 में इनका देहांत हो गया।
प्रश्न 12. बुकानन कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर–फ्रांसीसी बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत में 1794 में आया। उन्होंने 1794
से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। कुछ वर्षों तक वे भारत के गवर्नर जनरल
लार्ड वेलेजली के शल्य-चिकित्सक रहे। उन्होंने अपने प्रवास के दौरान कलकत्ता (अब
कोलकाता) में एक चिड़ियाघर की स्थापना की जो अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। वे कुछ समय
के लिए वानस्पतिक उद्यान के प्रभारी रहे। उन्होंने बंगाल सरकार के अनुरोध पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया। वे 1815 में बीमार हो गए और इंग्लैंड चले गए। बुकानन अपनी माता जी की मृत्यु के पश्चात् उनकी जायदाद के वारिस बने और उन्होंने उनके वंश के नाम ‘हैमिल्टन’ को अपना लिया। इसलिए उन्हें अक्सर
बुकानन-हैमिलटन भी कहा जाता है।
प्रश्न 12. विलियन होजेज कौन था ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-विलियम होजेज एक ब्रिटिश कलाकार था जो कैप्टन कुक के साथ उसकी प्रशांत
महासागर की दूसरी यात्रा (1772-75) के दौरान प्रशांत क्षेत्र में गया था और वहाँ से भारत
आया था। 1781 में वह भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टन क्लीवलैंड का मित्र बन गया था।
क्लीवलैंड के निमंत्रण पर होजेज 1782 में उसके साथ जंगल महालों के भ्रमण पर गया था। वहाँ होजेज ने कई एक्वाटिंट तैयार किए थे। उस समय के अनेक चित्रकारों की तरह होजेज ने भी बड़े सुंदर रमणीय दृश्यों की खोज की थी। वह उस समय के चित्रोपम दृश्यों के खोजी कलाकार
स्वच्छंदतावाद की विचारधारा से प्रेरित थे।
होजेज की चित्रकारी में औपनिवेशिक अधिकारी जिन भू-दृश्यों को भयंकर तथा उजाड़,
उपद्रवी जंगली लोगों का निवास स्थल मानते थे, वे दृश्य मनमोहक और रमणीय दिखाई पड़ते थे।
प्रश्न 13. आप कैसे कह सकते हैं कि पहाड़िया लोगों का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ था ?
उत्तर-पहाड़िया लोगों की जीवनी जंगल से जुड़ी हुई थी इसका स्पष्टीकरण निम्न प्रमुख
कथनों से होता है। पहाड़िया लोग जंगल से खाने के लिए महुआ के फूल इकट्ठे करते थे, बेचने
के लिए रेशम का कोया और राल और काठकोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करते थे।
वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों की छाँह में आराम
करते थे। वे पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे और वह भूमि उनकी पहचान और जीवन
का आधार थी। वे बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। उनके मुखिया लोग अपने समूह
में एकता बनाए रखते थे, आपसी लड़ाई-झगड़े निपटा देते थे और अन्य जातियाँ तथा मैदानी लोगों के साथ लड़ाई छिड़ने पर अपनी जनजाति का नेतृत्व करते थे।
प्रश्न 14. डेविड रिकार्डो कौन था ? उसके अनुसार लगान पारित करने का अधिकार
भू-स्वामी को कब होना चाहिए ?
उत्तर- डेविड रिकार्डो 1820 के दशक तक इंग्लैंड में एक जाने-माने अर्थशास्त्री के रूप
में विख्यात थे।
रिकार्डों के विचारों के अनुसार भू-स्वामी को उस समय लागू ‘औसत लगानों’ का प्राप्त
करने का ही हक होना चाहिए जब भूमि से ‘औसत लगान’ से अधिक प्राप्त होने लगे तो भूस्वामी
को अधिशेष आय होगी जिस पर सरकार को कर लगाने की आवश्यकता होगी। यदि कर नहीं
लगाया गया तो किसान किराया जीवी में बदल जायेंगे और उनकी अधिशेष आय का भूमि के
सुधार में उत्पादन रीति से निवेश नहीं होगा।
प्रश्न 15. भारत में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के क्या कारण थे ? [B.Exam.2009A]
उत्तर- यूरोपीय देशों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में उपनिवेशों की स्थापना की।
(i) कच्चे माल की प्राप्ति।
(ii) निर्मित माल की खपत।
(iii) ईसाई धर्म का प्रचार।
(iv) समृद्धि की लालसा।
कुल मिलाकर यूरोपियन अपने उद्योगों के लिए आवश्यक कच्चे माल एवं इन कच्चे मालों
से तैयार सामानों के बाजार की तलाश में ही भारित की और आए और इसके माध्यम से उनका
उद्देश्य था- अपनी समृद्धि।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अंग्रजी शासन में प्रायः अकाल क्यों पड़ते रहते थे ? सक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-अकाल पड़ने के निम्नलिखित कारण थे :
1. कम्पनी की नीति (Policy of Company)-कम्पनी अपने हित साधन के लिए किसानों
पर दबाव डाल कर उन्हें पटसन, कपास आदि की खेती करने के लिए कहती थी। उसने कभी
भी किसानों से नहीं कहा कि वे अधिक अन्न उगाएँ।
2. कृषकों की रुचि में कमी (Farmers’ Lack of Intesrest) – भारी भू-राजस्व
नीति के कारण कृषकों की कमर टूट गई थी। कभी सूखा, कभी टिड्डी दल आदि के प्रकोप
से किसान टूट चुका था। यह केवल अपने आपको व्यस्त रखने के लिए ही खेती करता था, क्योंकि कृषि से उसे दो जून रोटी मिलना भी दूभर हो गया था। उनका मन डूबता जा रहा था।
3. सरकार की अरुचि (Lack of Interser of the Government) – अंग्रेजों ने अपने
लाभ के लिए रेल मार्ग, सड़क मार्ग आदि पर तो खर्च कर दिया, परन्तु कृषि सुधारों की ओर
उसका जरा भी ध्यान न था।
4. कृत्रिम अभाव (Self-made Scarcity) – कंपनी की मुनाफाखोर प्रवेश वृत्ति से
उसके कर्मचरी भला क्यों पीछे रहते। वे अन्न इकट्ठा करके कृत्रिम अभाव पैदा कर देते थे। जब
माँग अधिक होती, तो अन्न अधिक दामों पर बेचकर भारी मुनाफा कमाते थे। ऐसी दशा में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो जाती थी।
प्रश्न 2. पोलिगारों के विद्रोह का विवरण दीजिए।
उत्तर-भारत के दक्षिणी भाग में जमींदारों को पोलिगार कहा जाता था। इन्होंने अंग्रेजी शासन
के विरुद्ध विद्रोहों में भाग लिया। पोलिगारों ने सर्वसाधारण लोगों के साथ मिलकर विद्रोह में भाग
लिया। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने के उद्देश्य से पर्याप्त शक्ति गठित की। चूँकि अधिकतर इन विद्रोहों का स्वरूप (Nature) स्थानीय था, इसलिए बड़ी आसानी से इन्हें कुचल दिया गया।
जो भी हो इन विद्रोहों से यह तो स्पष्ट होता है कि ब्रिटिश की गलत एवं
नीतियों के विरुद्ध न केवल उत्तर भारत में अपितु सुदूर दक्षिण में भी भारतीय जनता में असन्तोष
व्याप्त था। कालांतर में देश में अंग्रेज विरोधी माहौल बनाने में ऐसे विद्रोहों ने ही भूमिका निभायी थी।
प्रश्न 3. रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी ? इससे क्या सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
उत्पन्न हुए? (V.Imp.)
अथवा, रैयतवाड़ी भू-राजस्व बन्दोबस्ती व्यवस्था की विशेषताओं पर प्रकाश डालें।
[B.Exam.2010 (Arts)
उत्तर- दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त लागू किया गया, जिसके
अंतर्गत किसान भूमि का मालिक था यदि वह भू-राजस्व का भुगतान करता रहे। इस व्यवस्था
के समर्थकों का कहना था कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले थी। बाद में यह यह
व्यवस्था मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इसमें 20-30 वर्ष बाद संशोधन
कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित
त्रुटियाँ थीं-
(i) भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
(ii) भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
(iii) सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान
का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।
प्रभाव – (i) इससे समाज में असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
(ii) सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा
ही होता रहा।
प्रश्न 4. 1793 ई. का स्थायी बंदोबस्त क्या था ? इसकी मुख्य विशेषताओं और बंगाल
के लोगों पर इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-बंगाल में स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया था।
(i) इस व्यवस्था में भूमि जमींदारों को स्थायी रूप से दे दी जाती थी और उन्हें एक निश्चित
धनराशि सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती थी।
(ii) इससे जमींदारों को कानूनी तौर पर मालिकाना अधिकार मिल गये। अब वे किसानों
से मनमाना लगान लेते थे।
(iii) इस व्यवस्था से सरकार को लगान के रूप में एक बँधी-बंधाई धनराशि मिल जाती थी।
(iv) इस व्यवस्था से नये जमींदारों का जन्म हुआ, जो शहरों में बड़े-बड़े बंगलों में और
तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे। गाँव में अनेक कारिन्दे किसानों पर तरह-तरह
के अत्याचार करके भूमि कर ले जाते थे। जमींदार को किसानों के दुःख-सुख से कोई मतलब
न था।
(v) किसानों को बदले में सिंचाई या ऋण सुविधा नाम मात्र को भी नहीं मिलती थी।
प्रश्न 5. द्वैध शासन व्यवस्था का बंगाल पर क्या प्रभाव पड़ा? [B.M.2009A]
उत्तर-द्वैध शासन व्यवस्था द्वारा राबर्ट क्लाइव ने बंगाल के संसाधनों पर अधिकार कर लिया
परंतु कोई जवाबदेही नहीं ली। इससे अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई। उद्योग-धंधे, व्यापार
चौपट हो गये। किसानों और ग्रामीण समाज पर इसका सबसे अधिक बुरा प्रभाव पड़ा। हालांकि
अंग्रेजों द्वारा द्वैध व्यवस्था जल्द ही समाप्त कर दी गई और बंगाल को पूरी तरह कंपनी के नियंत्रण में ले लिया गया।
प्रश्न 6. सहायक संधि पर प्रकाश डालिए। [B.M.2009A]
उत्तर-सहायक संधि ब्रिटिश सरकार द्वारा देशी राज्यों पर अपना साम्राज्यवादी प्रभाव स्थापित
करने के लिए लादी गयी एक योजना थी, जिसकी शुरूआत 1798 ई० में गवर्नर-जनरल लॉर्ड
वेलेस्ली ने की थी। इसके अनुसार संधि बद्ध देशी राज्यों को कुछ शर्ते माननी पड़ती थी, जिसके
अनुसार उनकी स्वतंत्रता काफी कम हो जाती थे। इसके अनुसार देशी राज्यों की रक्षा का भार
ब्रिटिश सरकार अपने ऊपर लेती थी, बदले में देशी राज्यों को अपने राज्य में ब्रिटिश फौज रखनी
पड़ती थी तथा इसके भरण-पोषण के लिए एक निर्धारित रकम भी उसे अदा करनी पड़ती थी।
प्रश्न 7. स्थायी बन्दोबस्त से आप क्या समझते हैं ?
[B.Exam/B.M.2009A, B.Exam.2012,2013 (A)]
उत्तर-1793 ई० में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा बिहार बंगाल, उड़ीसा में भूराजस्व की स्थायी
बन्दोबस्त व्यवस्था लागू की गई। इसमें जमींदारों को भूमि का साथी मानते हुए नियत तिथि पर
निश्चित राजस्व सरकार के पास जमा करना पड़ता था। राजस्व दर सरकार बढ़ा नहीं सकती थी।
कंपनी को आशा थी कि इससे उसकी आय निश्चित हो जायेगी और बार-बार बंदोबस्ती की
व्यवस्था से भी उसे छुटकारा मिला जायेगा। परंतु कर की मात्रा अधिक होने तथ जमींदारों द्वारा
कृषि संबंधी सुधार न होने से इस व्यवस्था के परिणाम सुखद नहीं रहे।
प्रश्न 8. पांचवीं रिपोर्ट पर टिप्पणी लिखें। [B.Exam. 2009A]
उत्तर-भारत में तत्कालीन ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन द्वारा, समय-समय पर किए गए
अनेकों परिवर्तनों का सविस्तार विवरण समय-समय पर कई रिपोर्टों द्वारा दिया गया। इन रिपोर्टी
में कंपनी के प्रशासन तथा क्रिया कलापों के विषय में पूर्ण विवरण दिया गया था। इस क्रम में
दी गई पाँचवीं रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इसके 800 से अधिक पृष्ठ अवशिष्टों के थे जिनमें
जमींदारों और रैयतों की अर्जियाँ, विभिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विविरणियों से संबंधित दस्तावेज और अधिकारियों द्वारा बंगाल तथा मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ शामिल की गई थीं। उक्त रिपोर्ट को पाँचवीं रिपोर्ट कहा जाता है। यह रिपोर्ट सन् 1813 ई० में ब्रिटिश संसद में पेश की गई थी।
प्रश्न 9. जमींदारों की भू-संपदा की नीलामी व्यवस्था के क्या दोष थे ?
उत्तर-जमींदारी की भू-सपदा की नीलामी व्यवस्था के दोष :
(i) भू-संपदा की नीलामी में बोली लगाने के लिए अनेक खरीददार होते थे और संपदाएँ
सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को बेंच दी जाती थीं- बोली सोचे-समझे दी जाती थी।
(ii) भू-संपदा की नीलामी के अनेक खरीददार राजा के अपने ही नौकर या एजेंट होते थे
और राजा की ओर से जमीनों को खरीदा जाता था।
(iii) नीलामी में 95 प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी होती थी।
(iv) राजा (जमींदार) को जमीनें खुले तौर पर बेच दी जाती थी और उनकी जमींदारी का.
नियंत्रण भी उन्हीं के हाथों में रहता था।
प्रश्न 10. ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों थे ?
(NCERT T.B.Q.1)
उत्तर-ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवार हस्ती इसलिए थे, क्योंकि :
(i) 18वीं शताब्दी के अंत में जहाँ एक ओर कई जमींदार आर्थिक दृष्टि से संकट की स्थिति से
गुजर रहे थे वहीं जोतदार धनी किसानों के रूप में अनेक गाँवों में अपनी स्थिति मजबूत किए हुए थे।
(ii) 19वीं शताब्दी के शुरू के वर्षों के आते-आते इन जोतदारों ने जमीन के बड़े-बड़े
भू-खंडों पर (जो कभी-कभी कई हजार एकड़ में फैले थे) प्राप्त कर लिए थे।
(iii) स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी इन जोतदारों का नियंत्रण था और
इस तरह के अनेक क्षेत्रों के गरीब काश्ताकरों (Tilles of the land) पर व्यापक शक्ति का प्रयोग किया करते थे।
(iv) प्रायः ये जोतदार अपनी जमीन का बहुत बड़ा भाग बटाईदार के माध्यम से जुतवाते
थे। ये बटाईदार एक तरह से जोतदार के अधीन होते थे। बटाईदार उनके खेतों पर मेहनत करते
थे। अपने हल और बैल आदि लाते थे और फसल के बाद कुल पैदावार का आधा भाग जोतदारों
को दे देते थे।
(v) कई गाँवों में जोतदारों की ताकत जमींदारों की ताकत की तुलना में अधिक प्रभावशाली
होती थी। ये जोतदार जमींदारों की तरह जमीनों से दूर शहरों में नहीं बल्कि गाँव में रहते थे और
इस तरह गाँवों के गरीब ग्रामीण के काफी बड़े वर्ग पर सीधा नियंत्रण करते थे।
(vi) जब जमींदार गाँव की जमा (लगान) को बढ़ाने की कोशिश करते थे तो ये जोतदार
उन जमींदारों का घोर विरोध करते थे। यही नहीं जमींदारों अधिकारियों को जोतदार उनके कर्तव्यों का पालन करने से रोकते थे। जो रैयत (काश्तकार या जमीन जोतने वाले) जोतदारों के पक्ष में होते थे वे जमींदारों का जमा, लगान इन्हीं जोतदारों के इशारे पर देर से भुगतान करते थे। इस तरह जमींदारों की हालत खस्ता हो जाती थी। उनकी जमींदारियों की नीलामी होती थी तो जोतदार अपने धन और बटाईदारों के सहयोग से जमीनों को खरीद लेते थे।
प्रश्न 11. ब्रिटिश राज्य अथवा सरकार द्वारा लागू किए गए कानूनों के जन साधारण
के लिए अनेक परिणाम हुए। संक्षेप में इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-ब्रिटिश राज्य अथवा सरकार द्वारा लागू किए गए कानूनों का जनसाधारण के लिए
निम्नलिखित परिणाम हुए-
(i) वे कुछ हद तक यह निर्धारित करते हैं कि उन कानूनों के परिणामस्वरूप कौन पहले से
अधिक धनवान बनते हैं और कौन गरीब हो जाते हैं।
(ii) किसे नयी जमीन मिल जाती है और कौन अपनी उस जमीन को खो बैठता है जिसपर
वह रहता और गुजर-बसर करता था।
(iii) किसानों को जब पैसे की जरूरत पड़ती है तो वे कहाँ, किसके पास जाते हैं ?
(iv) लोग कानूनों का पालन करने के लिए मजदूर होते हुए भी ऐसे कानून का विरोध करने
से भी नहीं हिचकते थे जिसे वे अन्यायपूर्ण समझते थे।
(v) ऐसा करते समय लोग यह भी स्पष्ट करने का प्रयास करते थे कि-कानून किस प्रकार
लागू किए जाने चाहिए, और इस प्रकार वे उनके परिणामों में कुछ फेर-बदल कर देते थे।
प्रश्न 12. जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे?
(NCERT T.B.Q.2)
उत्तर-जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए निम्न कदम उठाते थे।
(i) उन्होंने संकट की घड़ी में अर्थात् जमा (लगान) न चुका पाने की स्थिति में कम्पनी राज
से अपनी जमींदारियों को बचाने के लिए अथवा नीलामी की अवस्था से निपटने के लिए कई
रणनीतियाँ बना ली। इन्हीं रणनीतियों में से एक रणनीति फर्जी बिक्री की तकनीक थी।
(ii) फर्जी बिक्री के अंतर्गत जमींदार कई तरह तरह के हथकंडे (चालाकियाँ) अपनाते थे।
उदाहरण लिए बर्दवान के राजा (यानी बड़े जमींदार) ने अपनी जमींदारी का कुछ हिस्सा अपनी
माता को दे दिया। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने फैसला ले
रखा था कि स्त्रियों की सम्पत्ति को छीना नहीं जाएगा।
(iii) जमींदार नीलामी की प्रक्रिया में अपने एजेंटों के माध्यम से जोड़-तोड़ किया करते थे।
कई बार कम्पनी की राजस्व माँग को जान-बूझकर रोक लिया गया और जब भुगतान न की गई
बकाया राशि बढ़ती गई और कम्पनी के अधिकारियों ने उस जमींदार की भूसंपदा (Land Estate) का कुछ भाग नीलाम किया तो जमींदार के आदमियों ने ही अन्य क्रेताओं की तुलना ऊँची-ऊँची बोलियों लगाकर जमींदारी के उस भाग को खरीद लिया। आगे चलकर उन्होंने खरीद की राशि को अदा करने से इंकार कर दिया, इसलिए उस जमीन को विवश होकर कम्पनी को फिर बेचना पड़ा। चालाक और बेईमान जमींदारों के एजेंटों ने उसे फिर खरीद लिया और फिर एक बार खरीद की रकम नहीं अदा की गई, इस प्रकार फिर (यानी तीसरी बार) भू-सम्पदा की नीलामी करनी पड़ी। यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती रही और आखिरकार ब्रिटिश राज और नीलामी के समय बोली लगाने वाले थक गए। विवश होकर कम्पनी उसी पहले जमींदार को नीची कीमत पर भू-संपदा बेच देती थी। संभवतः कम्पनी चालाक जमींदारों से कभी भी राजस्व की पूरी रकम ठीक समय पर वसूल नहीं कर पाती थी।
(iv) कई बार जमींदार बेनामी खरीददारियाँ कर लेते थे। ऐसी खरीददारियों को हम नकली
सौदे कह सकते हैं।
(v) जमींदार लोग और भी कई तरीकों से अपनी जमींदारी को छीनने से बचा लेते थे। जब
कभी कोई बाहरी व्यक्ति नीलामी में कोई जमीन खरीद लेता था तो पुराने जमींदार कोशिश करते
थे कि उन्हें जमीन पर कब्जा न मिले। जमींदार अपने लठियाल (बाहुबलियों) का इस्तेमाल करके
नए खरीददारों को मार-पीट कर भगा देते थे और कभी-कभी तो नए खरीदारों को खेतों में या
गाँव में घुसने ही नहीं दिया जाता था। लोग पुराने जमींदार के प्रति ज्यादा वफादार होते थे और
वे उन्हें अपना अन्नदाता मानते थे। वास्तव में जमींदारों की बिक्री या नीलामी से जमींदार की प्रतिष्ठा अथवा गौरव को धक्का पहुँचता था, इसलिए जमींदार आसानी से विस्थापित नहीं किए जा सकते थे।
(vi) 18वीं शताब्दी के अंतिम दशक (1790 के बाद) में भूमि की कीमत बढ़ी। जमींदार
तकलीफों को झेलने में सफल रहे, उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत बना लिया तो सरकार ने राजस्व वसूली संबंधी नियमों को कुछ लचीला बना दिया, इसलिए जमींदारों की सत्ता और अधिक मजबूत हो गई। दुर्भाग्यवश 1930 की आर्थिक महामंदी, जमींदारों वे भट्ठा बैठाने में सहायक हुई क्योंकि प्रायः कंजूस होते थे, इसलिए जोतदारों ने पुराने जमींदारों के स्थान पर गाँव में अपने पाँव मजबूत कर लिए।
प्रश्न 13. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जमींदारों पर अपना नियंत्रण बढ़ाने हेतु क्या-क्या
कदम उठाए?
उत्तर-ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जमींदारों पर अपना नियंत्रण बढ़ाने हेतु निम्न कदम उठाए-
(i) जमींदारों की सैन्य टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
(ii) सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी व्यवहारियों को कंपनी द्वारा नियुक्त
कलेक्टर की देखरेख में रख दिया गया।
(iii) जमींदारों से स्थानीय न्याय और स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
(iv) समय के साथ-साथ, कलेक्टर का कार्यालय सत्ता के एक विकल्पी केन्द्र के रूप से
उभर आया और जमींदार के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया।
प्रश्न 14. पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई ?
(NCERT T.B.Q.3)
उत्तर-18वीं शताब्दी में पहाड़ी लोगों को पहाड़िया कहा जाता वे राजमहल की पहाड़ियों
के आस-पास रहा करते थे। वे जंगल की उपज से अपना गुजर-बसर करते थे और झूम खेती
किया करते थे। पहाड़ियों को अपना मूल आधार बनाकर पहाड़ी लोग निरंतर आस-पास के मैदानों पर हमले बोलते रहते थे क्योंकि बाहरी किसान एक ही स्थान पर बस कर खेतीबाड़ी करते थे। पहाड़िया लोग अभाव के दिनों या अकाल के वर्षों में स्वयं को जीवित रखने के लिए बाहरी लोगों पर आक्रमण करते थे। वे उनसे जबरदस्ती अनाज, पशु, धन-दौलत लूट ले जाते थे। मैदानों में बसने वाले लोगों को पहाड़िया लोग अपनी ताकत का अहसास कराते थे।
इसके अतिरिक्त पहाड़ी लोगों के यह आक्रमण बाहरी लोगों के साथ अपने राजनीतिक संबंध
बनाने के लिए भी किए जाते थे। मैदानों में रहने वाले जींदारों को प्रायः पहाड़िया मुखिया लोगों
को नियंत्रित रूप से सराज (भू-राजस्व). देकर उनसे शांति खरीदनी पड़ती थी।
कहा जाता है कि बाहर के लोगों में कुछ लोग व्यापारी भी होते थे जिन्हें पहाड़िया लोग
अपने नियंत्रित मार्गों का प्रयोग करने की अनुमति दिया करते थे। जब ऐसा पथकर या मार्ग कर
पहाड़िया मुखिया लोगों को मिल जाता था तो वे व्यापारियों की रक्षा करते थे और व्यापारियों
को वचन देते थे कि उनके माल को कोई नहीं लूटेगा। इस प्रकार कुछ ले-देकर मैदानी इलाकों
के लोग या व्यापारी लोग पहाड़ियों से शांति का आश्वासन पा जाते थे। लेकिन ऐसी शांति संधियाँ
लम्बे समय तक नहीं चलती थीं।
18वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में खेती योग्य-भूमि का बहुत विस्तार होने लगा और पूर्वी
भारत में आक्रामक नीति से सीमाएँ बढ़ने लगी और अंग्रेजों ने जंगलों को कटाई-सफाई के काम
को दिन-रात प्रोत्साहित किया तथा जमींदारों और जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में
बदल दिया। अंग्रेजों ने स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था का विस्तार किया ताकि ब्रिटिश राज की आमदनी बढ़ सके। वैसे भी अंग्रेज वनों को पसंद नहीं करते थे वे जंगलों को उजाड़ और वनवासियों को असभ्य लोग मानते थे। वे मानते थे कि उन पर शासन करना कठिन है, उन्होंने आदिवासियों को
उजाड़ना शुरू कर दिया। जंगलों को साफ करने की उनकी नीति ने चरागाहों और वनों का क्षेत्र
संकुचित कर दिया। इससे पहाड़ी लोगों और स्थायी खेतिहरों के बीच झगड़ा शुरू हो गया। पहाड़ी लोग नीचे गाँव में बसे लोगों से अनाज और पशु की छीना-झपटी करने लगे। अंग्रेज अधिकारियों ने भी पहाड़ियों के खिलाफ अपनी कोशिशें तेज कर दी। अंग्रेजी राज्य को क्रूर नीति के कारण पहाड़ी लोग विदेशी लोगों के शिकार होते चले गए। 1780 के दशक के बाद भागलपुर के जिलाधीश ऑगस्टस क्लीवलैंड ने शांति स्थापना के लिए पहाड़िया मुखियाओं को वार्षिक भत्ता देने का वायदा किया और उस रकम के बदले में उसने पहाड़िया मुखियाओं को ये वचन देने
के लिए दबाव डाला कि वे अपने आदमियों का चाल-चलन ठीक रखने की जिम्मेदारी निभाएँगे।
प्रश्न 15. संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया? [B.Exam./B.M.2009A]
उत्तर-संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध निम्न कारणों से विद्रोह किया :
(i) संथाल लोगें ने पहाड़िया लोगों के सामने संघर्ष के समय झुककर जंगलों के अंदरुनी
हिस्सों में स्थायी रूप से बसना शुरू कर दिया। वे स्थायी रूप से बसकर बाजार के लिए कई
तरह की वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे थे। लेकिन संथालों पर ब्रिटिश शासन ने कर
लगाना शुरू किया। इससे सथाल भड़क उठे।
(ii) लगान भुगतान करने के लिए संथालों को व्यापारियों और साहूकारों से ऊँची ब्याज दर
पर कर्जा लेना होता था। सरकार संस्थालों की बजाय व्यापारियों और साहूकारों का पक्ष लेती थी। संथालों को दामिन इलाके से धीरे-धीरे दावे छोड़ने के लिए मजबूर किया गया।
(iii) 1850 के दशक तक संथाल लोग यह महसूस करने लगे थे कि अपने लिए एक आदर्श
संसार का निर्माण करने के लिए जहाँ उनका अपना शासन हो, जमींदारों, साहूकारों तथा
औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह करने का समय अब आ गया है; 1855-56 के संस्थाल विद्रोह के बाद संथाल परगने का निर्माण कर दिया गया, जिसके लिए 5500 वर्गमील का क्षेत्र भागलपुर और वीरभूम जिलों में से लिया गया।
(iv) ब्रिटिश सरकार ने संथालों के असंतोष को शांत करने के लिए एक नया परगना बनाया
और कुछ विशेष तरह के कानून लागू करके उन्हें संतुष्ट करने की असफल कोशिश की। इससे
संथाल और भड़क गये।
(v) अंग्रेज अधिकारियों ने संथालों के नियंत्रित प्रदेशों और भू-भागों से मूल्यवान पत्थरों
और खनिजों को खोजने की कोशिश की। उन्होंने लौह-खनिज, अभ्रक, ग्रेनाइट और साल्टमीटर
से संबंधित स्थानों की जानकारी प्राप्त कर ली, यही नहीं उन्होंने बड़ी चालाकी के साथ नमक
बनाने और लोहा निकालने की संथालों और स्थानीय पद्धतियों का निरीक्षण किया। इन सबसे संथाल बहुत चिढ़ गए।
(vi) अंग्रेज कम से कम समय में, कम से कम मेहनत करके, ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक
संसाधनों, खनिजों, वन-उत्पाद आदि का दोहन करना चाहते. थे। कुछ अंग्रेज संथालों की
जीवन-शैली की कटु आलोचना करते थे। वे पर्यावरण संरक्षण की चिंता न करके वनों को काटकर कृषि विस्तार के समर्थक थे। ऐसा करने से संथालों को मिलने वाले स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण, शिकार स्थलों, चारागाहों, वन में रह रहे पशुओं और जीव-जंतुओं तथा उत्पादों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था। इन सबके कारण संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह किए।
प्रश्न 16. दक्कन के रैयत, ऋणदाताओं के प्रति क्रोद्ध क्यों घे? (NCERT T.B.D.5)
उत्तर-दक्कन के रैयत (काश्तकार या किसान) ऋणदताओं के प्रति निम्न कारणों से क्रुद्ध थे-
(i) खेती की कीमत या लागतें बढ़ रही थीं। दक्कन में कम्पनी ने रैयतवाड़ी प्रथा लागू की।
उपज का लगभग 50 प्रतिशत कम्पनी रैयतों से छीन लेती थी। इतनी भारी भू-राजस्व की रकम
अदा कर पाना रैयतों के लिए काफी मुश्किल और आर्थिक दृष्टि से कष्टकारी था।
(ii) 1832 के बाद कृषि उत्पादों की कीमतों में तेजी से गिरावट आई और अगले 15 वर्षों
तक इस स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। इसके परिणामस्वरूप किसानों की आमदनी में और
भी गिरावट आई गई। इसी दौरान 1832-34 के दो-तीन वर्षों के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में भयंकर
अकाल फैल गया। दक्कन में एक तिहाई पशुधन मौत के मुँह में चला गया। आदि मानव जनसंख्या भी काल का ग्रास बन गई और जो लोग बचे उनके पास संकट की उस घड़ी का सामना करने के लिए खाद्यान्न नहीं था। राजस्व की बकाया राशियाँ आकाश छूने लगीं। किसानों के पास जीवित रहने, हल खरीदने, शादी-विवाह करने के लिए पैसा उधार लेने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं था। बेईमान ऋणदाता ऊँचा ब्याज लेते थे। रैयतों का कर्ज बढ़ता गया। वर्षों तक उधार की राशियाँ बकाया रहती गईं और ऋणदाताओं पर रैयतों की निर्भरता बढ़ती गई।
(iii) महाराष्ट्र में निर्यात व्यापारी और साहूकार अब दीर्घावधिक ऋण देने के लिए उत्सुक
नहीं रहे। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही है और कपास
की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। इसलिए उन्होंने अपना कार्य-व्यवहार बंद करने, किसानों
की अग्रिम राशियाँ प्रतिबंधित करने और बकाया ऋणों को वापस माँगने का निर्णय लिया। एक
ओर तो ऋण का स्रोत सूख गया वहीं दूसरी ओर राजस्व की माँग बढ़ा दी गई। पहला राजस्व
बंदोबस्त 1820 और 1830 के दशकों में किया गया था। अब अगला बंदोबस्त करने का समय
आ गया था और इस नए बंदोवस्त से माँग की नाटकीय से 50 से 100 प्रतिशत तक बढ़ा
दिया गया।
(iv) ऋणदाता द्वारा ऋण देने से इंकार किए जाने पर रैयत समुदाय को बहुत गुस्सा आया।
वे इस बात के लिए क्रुद्ध नहीं थे कि वे ऋण के गर्त में गहरे से गहरे डूबे जा रहे थे अथवा
कि वे अपने जीवन को बचाने के लिए ऋणदाता पर पूर्ण रूप से निर्भर थे, बल्कि वे इस बात
से ज्यादा नाराज थे कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया कि वह उनकी हालत पर कोई
तरस नहीं खा रहा है। ऋणदाता लोग देहात के प्रथागत मानकों यानि रूढ़ि-रिवाजों का भी उल्लंघन कर रहे थे।
प्रश्न 17. “ऋण का स्रोत सूख गया” इस पद पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-(i) जिन दिनों अमेरिका में गृहयुद्ध चल रहा था और भारतीय कपास के व्यापार में
ब्रिटेन के द्वारा बड़ी मात्रा में भारतीय कपास को आयात करने से मात्रा और कीमतों की दृष्टि
से बड़ी तेजी आई हुई थी तो भारतीयों ने अस्थायी रूप से अमेरिकी राजनीतिक परिस्थितियों को
अपने अनुकूल पाकर यह सपना देखना शुरू कर दिया कि वे अमेरिकी कपास के विरुद्ध बाजार
पर अपना पूरा कब्जा कर लेंगे। वे कहने लगे अब भारत को लंकाशायर में कपास का एकाधिकार बनाए रखने से कौन रोक सकता है लेकिन 1865 में अमेरिका में न केवल गृहयुद्ध समाप्त हुआ बल्कि वहाँ राजनीतिक शांति के साथ-साथ कपास का उत्पादन दुबारा चालू हो गया। शीघ्र ही ब्रिटेन के भारतीय कपास के निर्यात में गिरावट आती चली गई।
(ii) जो लोग महाराष्ट्र के कपास निर्यात व्यापारी या अन्य साहूकार थे उन्होंने लंबे समय
के लिए ऋण देने से मना कर दिया। उन्होंने देखा कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही
है और कीमतों में भारी गिरावट आ रही है। उन्होंने किसानों को अग्रिम राशियाँ (Advance
Amount) देने पर रोक लगा दी और जो पहले रकम दे रखी थी उनसे उन्हें ऋण के रूप में तुरंत लौटाने का आग्रह किया।
(iii) एक ओर तो किसानों का ऋण प्राप्ति का स्रोत सूख गया तो दूसरी ओर सरकार व
जमींदार आदि लोगों ने भू-राजस्व की माँग बढ़ा दी। नए बंदोबस्त (जो 1830 में किया गया)
में बड़े नाटकीय ढंग से 50 से 100 प्रतिशत तक भू-राजस्व की रकम को बढ़ा दिया गया।
(iv) बेचारे निर्धन रैयत (किसान) जिनकी कपास की उपज की कीमत कम हो रही थी,
भू-राजस्व दुगना या चार गुना हो गया तो और वे ऋणदाता की शरण में जाने को मजबूर हो
गए और उन्हें ऋण के नाम पर ऋणदाता अँगूठा दिखा रहा हो तो उसकी ऋण चुकाने की साख को बड़ा बट्टा लगा। व्यापारी, साहूकार, जमींदार और सरकार सभी उन्हें शक की नजर से देखने लगे।
प्रश्न 18. दक्कन दंगा आयोग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-1. जब 1857 का विद्रोह दक्कन में भी फैला तो प्रारंभ में बंबई (मुम्बई) की सरकार
उसे गंभीरतापूर्वक लेने को तैयार नहीं थी। लेकिन अंग्रेजी सरकार ने, जो कि 1857 की याद से
चिंतित थी ने बंबई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन करने के
लिए एक जाँच आयोग बिठाए। इसे विशेष रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था कि
क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर (Level) ही विद्रोह (Revolt) का कारण था। इसमें सभी
साक्ष्य यह प्रमाणित करने के लिए पेश किये गये थे कि सरकार की राजस्व माँग विद्रोह का कारण नहीं थी। निःसन्देह दक्कन दंगा आयोग रिपोर्ट झूठ का पुलिंदा था।
2. यह रिपोर्ट जिसे ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ कहा जाता है, इतिहासकारों को उन दंगों का अध्ययन
करने के लिए आधार सामग्री उपलब्ध कराती है। आयोग ने दंगा पीड़ित जिलों में जाँच-पड़ताल
कराई, रैयत वर्गों, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राजस्व
की दरों, कीमतों और ब्याज के बारे में आँकड़े इकट्ठे किए और जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई
रिपोर्टों का संकलन किया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत-सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई ?
(NCERT T.B.Q.6)
उत्तर-(i) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन सर्वप्रथम बंगाल में स्थापित किया गया था। वहाँ
1793 में इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किया गया था।
(ii) इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने राजस्व की राशि निश्चित
कर दी थी जो प्रत्येक जमींदार को अदा करनी होती थी। जो जमींदार अपनी निश्चित राशि नहीं
चुका पाते थे उनसे राजस्व वसूल करने के लिए उनकी भू-संपदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं। जब
भू-संपदाएँ नीलाम की जाती थीं तो कम्पनी सबसे ऊँची बोली लगाने वाले को भू-संपदा या
जमींदारी बेच देती थी।
(iii) इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद समय पर भू-राजस्व की रकम अदा न
किए जाने पर बाद में 75 प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ नए जमींदारों को हस्तांतरित हो जाती
थीं। जमींदार से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह कम्पनी को नियमित रूप से राजस्व राशि करेगा और यदि वह ऐसा नहीं करेगा तो उसकी सम्पदा नीलाम की जा सकेगी।
(iv) भारतीय जमींदारों ने भूमि के सुधार करने के लिए निवेश नहीं किया। यद्यपि अंग्रेजों
को यह उम्मीद थी कि इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद जमींदार लोग भूमि सुधार करेंगे लेकिन अंग्रेजों की आशा के विरुद्ध भारतीय जमींदारों ने भूमि में निवेश नहीं किया और भू-राजस्व की माँग को अदा करने में वे बराबर कोताही करते रहे, जिसके फलस्वरूप राजस्व की बकाया रकमें बढ़ती गईं। जमींदारों की असफलता के कई कारण थे।
(i) अत्यधिक ऊँचा राजस्व (Maximum High Rent) : प्रारंभिक राजस्व माँगें बहुत
ऊँची थीं, क्योंकि ऐसा महसूस किया गया था कि यदि माँग को आने वाले संपूर्ण समय के लिए
निर्धारित किया जा रहा है तो आगे चलकर कीमतों में बढ़ोत्तरी होने और खेती का विस्तार होने
से आय में वृद्धि हो जाने पर भी कंपनी उस वृद्धि में अपने हिस्से का दावा कभी नहीं कर सकेगी।
इस प्रत्याशित हानि को कम से कम स्तर पर रखने के लिए, कंपनी ने राजस्व को ऊँचे स्तर पर
रखा, और इसके लिए दलील दी कि ज्यों-ज्यों कृषि के उत्पादन में वृद्धि होती जाएगी और कीमतें
बढ़ती जाएँगी, जमींदारों का आर्थिक बोझ धीरे-धीरे कम होता जाएगा।
(ii) निम्न कीमतें (Low Price): यह ऊँची माँग 1790 के दशक में लागू की गई थी
जब कृषि की उपज की कीमतें नीची थीं, जिससे रैयत (किसानों) के लिए, जमींदार को उनकी
देय राशियाँ चुकाना मुश्किल था। जब जमींदार स्वयं किसानों से राजस्व इकट्ठा नहीं कर सकता
था तो वह आगे कंपनी को अपनी निर्धारित राजस्व राशि कैसे अदा कर सकता था?
(iii) प्राकृतिक विपत्तियाँ (Natural Calamities) : राजस्व असमान था। फसल अच्छी
हो या खराब राजस्व का ठीक समय पर भुगतान जरूरी था। वस्तुतः सूर्यास्त विधि (कानून) के
अनुसार, यदि निश्चित तारीख को सूर्य अस्त होने तक भुगतान नहीं आता था तो जमींदारी को
नीलाम (Auction) किया जा सकता था।
(iv) जमींदारों की शक्ति सीमित हो गई (Power of Zamindars was Limited):
इस्तमरारी बंदोबस्त ने प्रारंभ में जमींदार की शक्ति को रैयत से राजस्व इकट्ठा करने और अपनी
जमींदारी का प्रबंध करने तक ही सीमित कर दिया था।
प्रश्न 2. पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न
थी? (NCERTT.B.Q.7)
उत्तर-
प्रश्न 3. अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित
किया? (NCERT T.B.Q.8)
उत्तर-1. 1861 में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध (राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के काल
में दक्षिणी और उत्तरी राज्यों के मध्य दासता के प्रश्न को लेकर यह युद्ध चला था) छिड़ गया
तो ब्रिटेन के कपास क्षेत्र (मंडी तथा कारखानों) में तहलका मच गया।
2. 1860 के दशक से पहले, ब्रिटेन में कच्चे माल के तौर पर आयात की जाने वाली समस्त
कपास का तीन-चौथाई भाग अमेरिका से आता था। ब्रिटेन के सूती वस्त्रों के विनिर्माता काफी
लंबे समय से अमेरिकी कपास पर अपनी निर्भरता के कारण बहुत परेशान थे, क्योंकि इंग्लैंड में
औद्योगिक क्रांति हो चुकी थी और अमेरिका जैसी बढ़िया कपास न तो भारत में और न ही मिस्र
में पैदा होती थी।
3. अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को निम्न तरीके से प्रभावित किया :
(i) जब सन् 1861 में अमेरिकी गृहयुद्ध छिड़ गया तो ब्रिटेन के कपास क्षेत्र (मंडी तथा
कारखानों) में तहलका मच गया।
(ii) अमेरिका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आई।
(iii) बंबई में, कपास के सौदागरों ने कपास की आपूर्ति का आकलन करने और कपास की
खेती को अधिकाधिक प्रोत्साहन देने के लिए कपास पैदा करने वाले जिलों का दौरा किया। जब
कपास की कीमतों में उछाल आया तो बंबई के कपास निर्यातकों ने ब्रिटेन की माँग को पूरा करने
के लिए अधिक से अधिक कपास खरीदने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने शहरी साहूकारों
को अधिक से अधिक अग्रिम (Advance) राशियाँ दी ताकि वे भी आगे उन ग्रामीण ऋणदाताओं को जिन्होंने उपज उपलब्ध कराने का वचन दिया था, अधिक से अधिक मात्रा में राशि उधार दे सकें। जब बाजार में तेजी आती है तो ऋण आसानी से दिया जाता है क्योंकि ऋणदाता अपनी उधार दी गई राशियों की वसूली के बारे में अधिक आश्वस्त महसूस करता है।
(iv) इन बातों का दक्कन के देहाती इलाकों में काफी असर हुआ। दक्कन के गाँवों के रैयतों
को अचानक असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा। उन्हें कपास उगाई जाने वाली प्रत्येक एकड़ के
लिए 100 रु. अग्रिम राशि दी जाने लगी। साहूकार भी लम्बे समय तक ऋण देने के लिए एकदम
तैयार थे।
(v) जब अमेरिका में संकट की स्थिति बनी रही तो बंबई दक्कन में कपास का उत्पादन
बढ़ता गया। 1860 से 1864 के दौरान कपास उगाने वाले एकड़ों की संख्या दोगुनी हो गई। 1862 तक स्थिति यह आई कि ब्रिटेन में जितना भी कपास का आयात होता था उसका 90 प्रतिशत भाग अकेले भारत से जाता था।
(vi) लेकिन इन तेजी से वर्षों में सभी कपास उत्पादकों को समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी। कुछ
धनी किसानों को तो लाभ अवश्य हुआ लेकिन अधिकांश किसान कर्ज के बोझ से और अधिक
दब गए।
(vii) जिन दिनों कपास के व्यापार में तेजी रही, भारत के कपास व्यापारी, अमेरिका को
स्थायी रूप से विस्थापित करके, कच्ची कपास के विश्व बाजार को अपने कब्जे में करने के सपने
देखने लगे। 1861 में बोंबे गजट के संपादक ने पूछा, “दास राज्यों (संयुक्त राज्य अमेरिका) को
विस्थापित करके, लंकाशायर को कपास का एकमात्र आपूर्तिकर्ता बनने से भारत को कौन रोक सकता है ?”
(viii) लेकिन 1865 तक ऐसे सपने आने बंद हो गए। जब अमेरिका में गृहयुद्ध समाप्त हो
गया तो वहाँ कपास का उत्पादन फिर से चालू हो गया और ब्रिटेन में भारतीय कपास के निर्यात
में गिरावट आती चली गई।
(ix) महाराष्ट्र में निर्यात व्यापारी और साहूकार अब दीर्घावधिक ऋण देने के लिए उत्सुक
नहीं रहे। उन्होंने यह देख लिया था कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही है और कपास
की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। इसलिए उन्होंने अपना कार्य-व्यापार बंद करने, किसानों
को अग्रिम राशियाँ प्रतिबंधित करने और बकाया ऋणों को वापस माँगने का निर्णय लिया।
प्रश्न 4. किसानों का इतिहास रखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या
समस्याएँ आती हैं? (NCERT T.B.0.9)
उत्तर-किसान संबंधी इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के दौरान आने वाली
समस्याएँ (Problems during the use of Government sources to write history of farniers): 1. किसानों से संबंर्बोधत इतिहास लिखने के कई स्रोत हैं जिनमें सरकार द्वारा रखे गए राजस्व अभिलेख, सरकार द्वारा नियुक्त सर्वेक्षणकर्ताओं के द्वारा दी गई रिपोर्ट व पत्रिकाएँ जिन्हें हम सरकार की पक्षधर कह सकते हैं, सरकार द्वारा नियुक्त जाँच आयोग की रिपोर्ट अथवा सरकार के हित में पूर्वाग्रह या सोच रखने वाले अंग्रेज यात्रियों के विवरण और रिपोर्ट आदि शामिल हैं।
2. ऐसे ऐतिहासिक स्रोतों पर दृष्टिपात करते समय हमें यह याद रखना होगा कि ये सरकारी
स्रोत हैं और वे घटनाओं के बारे में सरकारी सरोकार और अर्थ प्रतिबिंबित करते हैं।
उदाहरणार्थ : (i) दक्कन दंगा आयोग से विशेष रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया
था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था। संपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत करते
के बाद आयोग ने यह सूचित किया था कि माँग किसानों के गुस्से की वजह नहीं थी।
(ii) रिपोर्ट का मुख्य सार एवं दोष (Main Gist and Defectofthe Report) : इसमें
सारा दोष ऋणदाताओं या साहुकारों का ही था। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि औपनिवेशिक
सरकार यह मानने को कभी भी तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष या रोष कभी कार्यवाही
के कारण भी उत्पन्न हुआ था।
(iii) सरकारी स्रोतों का महत्व एवं सावधानियाँ (Importance of Government
sources and precautions) : सरकारी रिपोर्ट इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए बहुमूल्य स्रोत
सिद्ध होती है लेकिन उन्हें हमेशा सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए और समाचार-पत्रों,
गैर-सरकारी वृत्तांतों, वैधिक अभिलेखों और यथासंभव मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ उनका मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच की जानी चाहिए।
प्रश्न 5. अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारतीय जमींदारों की स्थिति का वर्णन
कीजिए।
उत्तर-अठारहवीं शताब्दी में जमींदारों का जीवन (Lifestyle of Zamindars during
18th century) : अंग्रेजों को सत्ता में आने से पहले उत्तर मुगल सम्राटों के काल में जमींदारों
की अच्छी स्थिति के कई कारणों थे। प्रायः सम्राट अयोग्य थे। उनकी कमजोर स्थिति का लाभ
उठाकर जमींदारों ने मनमाने ढंग से अपने अधिकारों का प्रयोग किया और किसानों का शोषण किया।
अंग्रेजों की सत्ता प्राप्ति के साथ ही उनकी स्थिति और सुधरी। जिन नीतियों को अंग्रेजों ने
अपनाया वे भूमि नीतियाँ जमींदारों के पक्ष में थीं :
(i) जमींदारों और मालगुजारों को भू-स्वामी बना दिया गया।
(ii) अंग्रेज वफादार जमींदारों से लाभ कमाते थे और बेईमान जमींदारों की भूमि नीलाम कर
देते थे।
(iii) जमींदारों को भी काफी लाभ पहुंँचा, क्योंकि इस व्यवस्था के अनुसार इन्हें सरकारी
कोष में एक निश्चित धनराशि भी जमा करवानी पड़ती थी लेकिन वे किसानों से मनमानी धनराशि
लेते थे।
(iv) समय पर भू-राजस्व न देने पर जमींदार किसान की भूमि छीन लेता था।
(v) महालवाड़ी प्रथा के अंतर्गत मालगुजारी का बंदोबस्त अलग-अलग गाँवों या जागीरों
(महलों) के आधार पर उन जमींदारों या उन परिवारों के मुखिाओं के साथ किया, जो भूमि कर
के स्वामी होने का दावा करते थे।
(vi) अंग्रेजों ने जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया। फिर जब जमींदारों ने किसानों का शोषण करना शुरू किया तो कंपनी खामोश रही और जमींदारों के विरुद्ध कुछ भी सुनने को तैयार न हुई।
(vii) जब कंपनी ने विधान परिषद में भारतीय सदस्य लेने शुरू किए तो भारतीय जमींदारों
को ही उसमें स्थान मिला।
प्रश्न 6. प्लासी युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन करें। [B.Exam.2011(A)]
उत्तर-औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुगल साम्राज्य छिन्न-भिन्न होना आरंभ हो गया तथा
साम्राज्य के कई भाग विभिन्न नवाबों के अधीन स्वतंत्र हो गए। बंगाल में तक अलवर्दी
खान ने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। उसमें अनुपम कार्यक्षमता तथा असाधारण योग्यता
थी। उसने अंग्रेजों के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार बनाया, लेकिन यह आज्ञा नहीं दी कि वे अपनी
बस्तियों में किले वनवा सकें। वह 1756 तक शासन करता रहा।
अलवर्दी खान की मृत्यु के बाद उसका पोता सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। उत्तराधिकार
के प्रश्न को लेकर उनका अंग्रेजों के साथ संघर्ष शुरू हुआ। उस संघर्ष के बहुत से कारण थे।
‘सप्तवर्षीय युद्ध’ छिड़ने की आशंका से अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी बस्तियों में दुर्ग बनाने आरंभ
कर दिए। चूंँकि उन्होंने वह सब कुछ नवाब की अनुमति के बिना किया, इसलिए नवाब ने उन्हें
आज्ञा दी कि वे उन दुर्गों को गिरा दें। किंतु अंग्रेजों ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। उसके
साथ ही अंग्रेजों ने सिराजुदौला के प्रतिद्वन्द्वी शौकतजंग का पक्ष लिया। अंग्रेजों ने बंगाल के एक
धनी व्यापारी को शरण दी तथा उसे नवाब को सुपुर्द करने से इन्कार कर दिया। नवाब ने यह
भी आरोप लगाया कि जो व्यापारिक सुविधाएँ अंग्रेजों को सरकार की ओर से प्रदान की गई थीं
वे उनका अनुचित उपयोग कर रहे थे।
परिणामस्वरूप सिराजुद्दौला ने कासिम बाजार में अंग्रेजी कारखाने में अधिकार कर लिया तथा
कलकत्ता के नगर पर भी अधिकार कर लिया। 146 व्यक्तियों को पकड़ लिया गया जिनमें से
एक स्त्री भी थी। उन्हें रात्रि के समय एक बंद कमरे में रखा गया। गर्मी इतनी अधिक थी तथा
स्थान इतना कम था कि उनमें से 123 व्यक्ति दम घुट जाने के कारण मर गए। उस दुर्घटना को
ब्लैकहॉल के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों ने उस घटना को कोरी कल्पना माना हैं।
अंग्रेज इस घटना को बहाना बनाकर नवाब के विरुद्ध षडयंत्र, रचने लगे। नवाब के कोषाध्यक्ष
रायदुर्लभ, नवाब के सेनापति मीरजाफर; बंगाल के सबसे सम्पन्न बैंकर जगत सेठ, इन सबको
नवाब के विरूद्ध विद्रोह करने के लिए अंग्रेजों ने भड़काया।
1757 में क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने प्लासी के मैदान में सिराजुदौला को हराया
और भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव पड़ी।
प्लासी युद्ध का यह परिणाम हुआ कि मीरजाफर को बंगाल की गद्दी पर बैठाया गया। उसने
चौबीस परगने तथा एक करोड़ रूपए कंपनी को दिए। उसने कंपनी के अन्य अंग्रेज अफसरों को
भी उपहार दिए।
एडमिरल वाटसन के शब्दों में- “प्लासी का युद्ध” कंपनी के लिए ही नहीं अपितु सामान्य .
रूप से ब्रिटिश जाति के लिए असाधारण महत्व रखता था।”
★★★