Bihar board class 11th notes Geography chapter 10
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वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
(ATMOSHPERIC CIRCULATION & WEATHER SYSTEM)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) यदि धरातल पर वायुदाब 1000 मिलीबार है तो धरातल से 1 किमी की ऊँचाई पर वायुदाब कितना होगा?
(क) 700 मिलीबार
(ख) 900 मिलीबार
(ग) 1100 मिलीबार
(घ) 1300 मिलीबार
उत्तर-(ख)
(ii) अंतर ऊष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र प्रायः कहाँ होता है?
(क) भूमध्य रेखा के निकट
(ख) कर्क रेखा के निकट
(ग) मकर रेखा के निकट
(घ) आकर्टिक वृत के निकट
उत्तर-(क)
(iii) उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(क) घड़ी की सुईयों के चलने की दिशा के अनुरूप
(ख) घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा के विपरीत
(ग) समदाब रेखाओं के समकोण पर
(घ) समदाब रेखाओं के सामानंतर
उत्तर-(ख)
(iv) वायुराशियों के निर्माण के उद्गम क्षेत्र निम्नलिखित में से कौन-सा है?
(क) विषुवतीय वन
(ख) साइबेरिया का मैदानी भाग
(ग) हिमालय पर्वत
(घ) दक्कन पठार
उत्तर– -(ख)
(v) निम्नलिखित में कौन सा बल अथवा प्रभाव भूमंडलीय पवनों को विक्षेपित करता है?
(क) दाब प्रवलता
(ख) अभिकेंद्रीय लक्षण
(ग) कोरियोलीसि
(घ) भू-घर्षण
उत्तर-(ग)
(vi) सामान्यत: कितनी ऊँचाई पर 1°C तापमान घट जाता है?
(क) 65 मी.
(ख) 165 मी.
(ग) 500 मी.
(घ) 1000 मी.
उत्तर-(ख)
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) वायुदाब मापने की इकाई क्या है? मौसम मानचित्र बनाते समय किसी स्थान वायुदाब को समुद्र तल तक क्यों घटाया जाता है?
उत्तर-वायुदाब मापने की इकाई मिलीबार है। व्यापक रूप से प्रयोग की जानेवाली इकाई किलो पास्कल है जिसे (hPa) लिखा जाता है। दाब ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने के लिए और तुलनात्मक बनाने के लिए, वायुदाब मापने के बाद इसे समुद्र तल के स्तर पर घटा लिया जाता है।
(ii) जब दाब प्रवणता बल उत्तर से दक्षिण दिशा की तरफ हो अर्थात् उपोषण उच्च दाब से विषुवत् वृत की ओर हो तो उत्तरी गोलार्द्ध में उष्णकटिबंध में पवनें उत्तरी-पूर्वी क्यों होती हैं?
उत्तर-पृथ्वी का अपने पक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करता है। इसे कोरिआलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में अपने बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो जाती हैं। कोरिआलिस प्रभाव दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणताबल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। जितनी दाब प्रवणता अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी।
(iii) भूविक्षेपी पवनें (Geotrophic winds) क्या हैं?
उत्तर-पृथ्वी की सतह से 2-3 किमी की ऊँचाई पर ऊपरी वायुमण्डल में पवनें धरातलीय घर्षण के प्रभाव से मुक्त होती हैं तथा दाब प्रवणता तथा कोरिआलिस प्रभाव से नियंत्रित होती हैं। जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, दाब प्रवणता बल कोरिआलिसि प्रभाव से संतुलित हो जाता है और फलस्वरूप पवनें समदाब रेखाओं के समानांतर बहती हैं। यह पवनें भूविक्षेपी (Geotrophic wind) पवनों के नाम से जानी जाती हैं।
(iv) समुद्र व स्थल समीर का वर्णन करें।
उत्तर-ऊष्मा के अवशेषण के स्थल व समुद्र में भिन्नता पाई जाती है। दिन के दौरान स्थल भाग शीघ्र गर्म हो जाते हैं और समुद्र की अपेक्षा अधिक ताप ग्रहण करते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और न्यून दाब क्षेत्र बनता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठण्डे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की तरफ समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती
हैं। रात्रि में इसके एकदम विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठण्डा होता है। दाब प्रवणता स्थल से समुद्र की तरफ होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।
3. पवनों की दिशा एवं गति को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर– -पवनों की दिशा एवं गति को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं.
(i) दाब प्रवणता बल (ii) कोरिऑक्तिस प्रभाव (iii) अभिकेन्द्रीय त्वरण (iv) भू-घर्षण।
(i) दाब प्रवणता बल- -क्षैतिज वायुदाब के अंतर के कारण वायु में गति आती है। दो स्थानों के बीच में दाब प्रवणता जितनी अधिक होगी वायु उतनी ही तीव्र गति से चलेगी। वायु उच्च भार वाले क्षेत्र से निम्न भार वाले क्षेत्र की ओर चलती है।
(ii) कोरीऑलेस प्रभाव-पृथ्वी के घूर्णनगति के कारण वायु अपनी मूल दिशा से विक्षापित हो जाती है जिसे ओरिऑलिस बल कहा जाता है। इसे बल के कारण उत्तरार्द्ध में पवन दाहिने और दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं, जिसे फेटेल का नियम भी कहा जाता है। यह बल भूमध्य रेखा पर शुन्य है जबकि ध्रुवों पर अधिक हो जाता है। यह बल की दिशा में परिवर्तन करता है न कि वायु की दिशा को।
(iii) अभिकेन्द्रीय त्वरण- भ्रमणशील पृथ्वी के घूर्णन केंद्र की दिशा में वायु के अंदर होने वाले त्वरण के कारण ही पवन हेतु स्थानीय उच्च या न्यून वायु दाब चारों ओर फैल जाती है।
(iv) भू-घर्षण-धरातलीय विषमताओं के कारण पवन के रास्ते में घर्षण तथा अवरोध पैदा होते हैं जो पवनों की गति एवं दिशा को प्रभावित करती है। पर्वत, पठार आदि धरातलीय आकृतियाँ पवनों की दिशा एवं गति को बदल देती है। महासागरों के पवनें, महाद्वीपों की अपेक्षा अधिक गति से चलती है।
4. पवन के अपरदन कार्य से उत्पन्न स्थलाकृतियों का वर्णन करें?
उत्तर-पवन के अपरदन कार्य से निम्नलिखित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
(i) प्लाया (Playa)-प्लाया एक आंतरिक प्रवाह का बेसिन होता है जिसमें एक झील होती है। प्लाया में जल थोड़ी देर हेतु ही रहती है क्योंकि शुष्क जलवायु के कारण वाष्पीकरण की दर अधिक है। प्राय: प्लाया में लवनों का निक्षेप होता है, जिसे प्लाया के क्षारीय निक्षेप कहते हैं।
(ii) मुरु कटटिम (Desert Pavement) – अपवहन महीन पदार्थों को हटा देता है. जिससे भू-पृष्ठ पर बड़ी-बड़ी गुटिकाएँ बच जाती है। इस प्रकार के अवशिष्ट गुटिकाओं वाले परत को मरुकुट्टिम कहते हैं।
(iii) वातगर्त (Deflation Hollows)-पवन अपरदन से उत्पन्न उथले गर्तों को अपवहन गर्त्त अथवा वातवर्गत कहते हैं?
(iv) छत्रक या गारा (Mushroom) -पवन द्वारा अपरदित शैल के हल्के तथा बारीक कण अधिक ऊँचाई तक उठाये जाते हैं, जब बाल के कण गैस पृष्ठ के अनावहित भाग पर पूरे जोर से टकराते हैं। इससे मरुभूमियों में अधिक तथा ऊपरी मात्रा में कम होता है। इस प्रकार एक छतरीनुमा आकृति बन जाती है, जिसे छत्रक कहते हैं। अरबी भाषा में इसे ‘गारा’ (Gara) कहा जाता है।
5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
(i) पवनों की दिशा व वेग को प्रभावित करने वाले कारक बताएँ।
उत्तर-पवनें उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं। भूतल पर धरातलीय विषमताओं के कारण घर्षण पैदा होता है, जो पवनों की गति को प्रभावित करता है। इसके साथ पृथ्वी का घूर्णन भी पवनों के वेग को प्रभावित करता है। अतः पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें तीन संयुक्त प्रभावों का परिणाम है—(a) दाब प्रवणता प्रभाव, (b) घर्षण बल
तथा (c) कोरिआलिस प्रभाव। इसके अतिरिक्त, गुरुत्वाकर्षण बल पवनों को नीचे प्रवाहित करता है।
दाब प्रवणता बल- वायुमण्डलीय दाब भिन्नता एक बल उत्पन्न करता है। दूरी के संदर्भ में दाब परिवर्तन की दर दाब प्रवणता है। जहाँ समदाब रेखाएँ पास-पास हों, वहाँ दाब प्रवणता अधिक व समदाब रेखाओं के दूर-दूर होने से दाब प्रवणता कम होती है।
घर्षण बल—यह पवनों की गति को प्रभावित करता है। धरातल पर घर्षण सर्वाधिक होता है और इसका प्रभाव धरातल से 1 से 3 किमी ऊँचाई तक होता है। समुद्र पर इसका प्रभाव न्यूनतम होता है।
कोरिऑलिस प्रभाव- -पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन पवनों की दिशा को प्रभावित करती है। सन् 1844 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने इसका विवरण प्रस्तुत किया और इसी पर इसे कोरिआलिस बल कहा जाता है। इसके प्रभाव से पवनें उत्तरी गालार्द्ध में अपनी मूल दिशा से दाहिने तरफ व दक्षिण गोलार्द्ध में अपने मूल दिशा से बाईं तरफ विक्षेपित (deflect) हो
जाती हैं। जब पवनों का वेग अधिक होता है तब विक्षेपण भी अधिक होता है। कोरिऑलिस प्रभाव अक्षांशों के समानुपात में बढ़ता है। यह ध्रुवों पर सर्वाधिक और भूमध्यरेखा पर अनुपस्थित होता है।
कोरिऑलिस प्रभाव दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। जितनी दाब प्रवणता अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। इन दो बलों को एक-दूसरे के समकोण पर होने के कारण न्यून दाब क्षेत्र में पवनें इसी के इर्द-गिर्द बहती हैं। भूमध्य रेखा पर कोरिऑलिस प्रभाव शून्य होता है और पवनें समदाब रेखाओं के समकोण बहती हैं। अतः न्यून दाब क्षेत्र और अधिक गहन होने की अपेक्षा भर जाता है। यही कारण है कि भूमध्य रेखा के निकट उष्णकटिबंधीय चक्रवात नहीं बनते।
(ii) पृथ्वी पर वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का वर्णन करते हुए चित्र बनाएँ। 30° उत्तरी व दक्षिण अक्षार्थी पर उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब के सम्भव कारण बताएँ।
उत्तर-उच्च तापमान व न्यूनदाब होने से अंतर उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर वायु संवहन धाराओं के रूप में ऊपर उठती हैं। उष्णकटिबंधों से आने वाली पवनें इस न्यून दाब क्षेत्र में अभिसरण करती हैं। अभिसरित वायु संवहन कोष्ठों के साथ ऊपर उठती हैं। यह क्षोभमण्डल के ऊपर 14 कि. मी. की ऊँचाई तक ऊपर चढ़ती है और फिर ध्रुवों की तरह प्रवाहित होती हैं। इसके परिणामस्वरूप लगभग 30° उत्तर व दक्षिण अक्षांश पर वायु एकत्रित हो जाती है। इस एकत्र वायु का कुछ भाग अवतलन करता है और उपोष्ण उच्चदाब बनता है। अवतलन का एक कारण यह है कि जब वायु 30° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों पर पहुँचती है तो यह ठंडी हो जाती है। धरातल के निकट वायु का अपसरण होता है और यह भूमध्यरेखा की ओर पूर्वी पवनों के रूप में बहती है। भूमध्यरेखा के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसंचरण क्षेत्र (ITCZ) पर मिलती हैं। पृथ्वी की सतह से ऊँचाई पर ऐसा परिसंचरण और इसके विपरीत परसंचरण कोष्ठों (Cells) के रूप में होता है। उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में ऐसे कोष्ठों को हेडले कोष्ठ (Hadley Cell) कहा जाता है। मध्य अक्षांशीय वायु परिसंचरण में ध्रुवों से प्रवाहित होती ठण्डी पवनों का अवतलन होता है और उपोष्ण उच्चदाब कटिबंधीय क्षेत्रों से आती गर्म हवा ऊपर उठती है। धरातल पर ये पवनें पछुआ पवनों के नाम से जानी जाती हैं और इसके कोष्ठ फैरल कोष्ठ के नाम से जाने जाते हैं। ध्रुवीय अक्षाशों पर ठंडी सघन वायु का ध्रुवों पर अवतलन होता है और मध्य अक्षांशों की ओर ध्रुवीय पवनों के रूप में प्रवाहित होती हैं। इन कोष्ठों को ध्रुवीय कोष्ठ कहा जाता है। ये तीन कोष्ठ वायुमण्डलीय सामान्य परिसंचरण का प्रारूप निर्धारित करते हैं। तापीय
ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों में स्थानांतर सामान्य परिसंचरण को बनाए रखता है।
(iii) उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति केवल समुद्रों पर ही क्यों होती है? उष्ण कटिबंधीय चक्रवात से किस भाग में मूसलाधार वर्षा होती है और उच्च वेग की पवनें चलती हैं, क्यों?
उत्तर-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में महासागरों पर होती हैं और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गति करते हैं। ये चक्रवात पवनों के कारण विस्तृत विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं। ये ‘चक्रवात’ अटलांटिक महासागर में ‘हरिकेन’ के नाम से, पश्चिम प्रशान्त और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफून’ और पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली-विली’ के नाम से जाने जाते हैं। इनकी उत्पत्ति व विकास के लिए अनुकूल स्थितियाँ हैं- (a) वृहत समुद्री सतह जहाँ तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो, (b) कोरिऑलिस प्रभाव का होना, (c) उर्ध्वाधर पवनों की गति में कम अंतर होना, (d) कमजोर न्यूनदाब क्षेत्र का होना या कम स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण, (e) समुद्री स्तर पर ऊपरी अपसरण।
चक्रवातों को और अधिक विध्वंसक करने वाली ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है जो इस तूफान के केन्द्र को घेरे होती हैं। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति की जाती है। ये क्षीण होकर क्षय हो जाते हैं। वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात गुजरते हैं, वह तट landfall of cyclone कहलाता है जो चक्रवात 20° उत्तरी अक्षांश से गुजरते हैं, उनकी दिशा अनिश्चित होती है और ये अधिक विध्वंसक होते हैं।
एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केन्द्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल (Spiral) पवनों का परिसंचरण है, जिसे इसकी आँखें कहा जाता है। इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 किलोमीटर तक होता है। इसका केंद्रीय क्षेत्र शांत होता है जहाँ पवनों का अवतलन होता है। केन्द्र के चारों तरफ जहाँ वायु का प्रबल व वृत्ताकार रूप में अरोहण होता है, यह आरोहण क्षोभमण्डल की ऊँचाई तक पहुंचता है। इसी क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है जो 250 कि. मी. प्रति घंटा तक होता है। इन चक्रवातों से मूसलाधार वर्षा होती है। इनका व्यास बंगाल की खाड़ी, अरब सागर व इंडियन महासागर पर 600 से 120 कि. मी. के बीच होता है। यह परिसंचरण प्रणाली धीमी गति से 300 से 500 किमी प्रतिदिन की दर से गति करते हैं। ये तूफान तरंग उत्पन्न करते हैं और तटीय निम्न क्षेत्रों को जलप्लावित कर देते हैं। ये तूफान स्थल पर धीरे-धीरे क्षीण होकर खत्म हो जाते हैं।
परियोजना कार्य
(i) मौसम पद्धति को समझने के लिए मीडिया, अखबार, दूरदर्शन तथा रेडियो से मौसम संबंधी सूचना को एकत्र कीजिए।
(ii) किसी अखबार का मौसम संबंधी भाग, विशेषकर वह जिसमें उपग्रह से भेजा गया मानचित्र दिखाया गया है, पढ़ें। मेधाच्छादित क्षेत्र को रेखांकित करें। मेघों के वितरण से वायुमण्डलीय परिसंचरण की व्याख्या करें। अखबार व दूरदर्शन पर दिखाए गए पूर्वानुमान से तुलना करें। यह भी बताएँ कि सप्ताह के कितने दिन का पूर्वानुमान ठीक था।
उत्तर-परियोजना कार्य (i) एवं (ii) कि किसी अखबार, रेडियो या दूरदर्शन या सभी से मौसम संबंधी विवरणों को इकट्ठा करके स्वयं करें।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वायुदाब किस प्रकार मापा जाता है?
उत्तर-वायुदाब प्रति इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने वाले दाब के रूप में मापा जाता है। वायुदाब के मापन के लिए जिस इकाई का प्रयोग करते हैं उसे मिलीबार (मि बा.) कहते हैं।
2. समदाब रेखा क्या है?
उत्तर-समदाब रेखा एक काल्पनिक रेखा है, जो समुद्र तल पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलती हुई खींची जाती है।
3. कोरियोलिस बल किसे कहते हैं?
उत्तर-‘कोरियोलिस’ बल को विक्षेपित बल भी कहा जाता है। सभी गतिशील वस्तुएँ विषुवत् रेखा की ओर संचलन के समय अपने पथ से विक्षेपित हो जाती हैं जिसे कोरियोलिस कहते हैं, क्योंकि कोरियोलिस नामक वैज्ञानिक ने इसकी खोज की थी।
4. किस क्षेत्र को ‘घोड़ों’ का अक्षांश कहा जाता है?
उत्तर-उपोष्ण उच्च दाब पट्टी, जो कर्क एवं मकर रेखाओं के पास (25° उ.व.द.) से क्रमशः 35° उ.व.द. अक्षांशों के बीच दोनों गोलार्द्धों में स्थित है, हवाओं के ऊपर व नीचे उतरने से यहाँ उच्च दाब बनता है। इस क्षेत्र में दुर्बल पवनों के फलस्वरूप शांत वायु की दशा उत्पन्न हो जाती है। इस क्षेत्र के घोड़ों का अक्षांश कहा जाता है।
5. पवनें क्या होती हैं?
उत्तर-धरातल के समानांतर चलने वाली हवा को पवन कहते हैं। जितनी दाब प्रवणता अधिक होगी, पवन का वेग उतना ही अधिक होगा।
6. ‘डोलड्रम’ किसे कहते हैं?
उत्तर-विषुवत रेखा के दोनों ओर एक शात क्षेत्र स्थित है। यहाँ पवनें दुर्बल हैं तथा इनका धरातलीय प्रवाह बहुत कम है। इन्हें ‘डोलड्रम’ कहते हैं।
7. ‘गरजने वाला चालीसा, प्रचंड पचासा तथा चीखता साठ’ किसके नाम हैं?
उत्तर-ये पछुआ पवनें हैं जिनका वेग प्रचंड है। कभी-कभी ये दोनों ऋतुओं में बड़ी तुफानी होती हैं। अतः पुराने समय नाविकों ने इनका नाम गरजने वाला चालीसा, प्रचण्ड पचासा तथा चीखता साठ-रखा था।
8. स्थल समीर किसे कहते हैं?
उत्तर—ये पवनें रात को स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं, समुद्र पर वायुदाब कम हो जाता है, परन्तु स्थल पर वायुदाब अधिक होता है। इस प्रकार ये पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
9. ‘चिनूक’ को ‘हिम भक्षी’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर-क्योंकि यह हवा सर्दियों के अधिकांश दिनों में घास के मैदानों को हिम से मुक्त रखती हैं। इस प्रकार की हवा रॉकीज पर्वतमाला के पूर्वी ढालों पर ऊपर से नीचे उतरती हैं।
10. ‘मिस्ट्रल’ किसे कहते हैं?
उत्तर-यह हवा का स्थानीय नाम है। यह फ्रांस में आल्प्स में भूमध्य सागर की ओर चलती है। यह अत्यधिक ठंडी, शुष्क एवं तेज बहने वाली पवन हैं।
11. वायुदाब प्रणालियों के दो प्रकार कौन से हैं?
उत्तर-(i) उच्च दाब, (ii) निम्न दाब।
12.60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षाशों पर किस प्रकार का दाब पाया जाता है?
उत्तर-निम्न दाब।
13. उच्च दाब कहाँ पाया जाता है?
उत्तर-30° उत्तरी व 30° दक्षिणी अक्षांशों के साथ।
14. विषुवत् वृत्त के दोनों तरफ से प्रवाहित होने वाली पूर्वी पवनें कहाँ मिलती हैं?
उत्तर-अंतर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) पर।
15. कम दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से संतुलित हो जाता है?
उत्तर-जब समदाब रेखाएँ सीधी हों और घर्षण का प्रभाव न हो, तो दाब प्रवणता बल कोरिऑलिस बल से संतुलित हो जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. वायुमंडलीय दाब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर– वायुमंडल पृथ्वी के धरातल पर पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण टिका है। गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण प्रत्येक वस्तु में भार होता है। वायु में भी एक घनफुट में 1.2 औंस भार होता है। इस भार के कारण पृथ्वी के धरातल पर दबाव पड़ता है। वायुमंडलीय दाब का अर्थ है किसी भी स्थान पर वहाँ की हवा की उच्चतम सीमा के स्तम्भ का भार। समुद्र
तल प्रति वर्ग इंच पर वायुमण्डल का दबाव 6.68 किलोग्राम या 1.3 किलोग्राम प्रति वर्ग सेंटीमीटर होता है। वायुमंडल का औसत या सामान्य दाब 45° अक्षांश पर समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76.92 इंच या 76 सेंटीमीटर या 1013.2 मिलीबार होता है।
2. एक मिलीबार से क्या अभिप्राय है? वायुदाब की माप इकाइयों में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर -एक वर्ग सेमी पर एक ग्राम भार के बल को एक मिलीबार कहते हैं। दूसरे शब्दों में 1000 डाईन प्रति वर्ग सेमी के वायु भार को एक मिलीबार कहते हैं।
1000 मिलीबार के वायुभार को एक बार (Bar) कहते हैं।
विभिन्न माप इकाइयों में सम्बन्ध
30 इंच वायुदाब = 76 सेमी =1013.2 मिलीबार
1 इंच वायुदाब = 34 मिलीबार
1 सेमी वायुदाब = 13.3 मिलीबार।
3. वायुदाब प्रवणता की परिभाषा लिखें।
उत्तर-वायुदाब का वितरण समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। समदाब रेखाओं के अन्तर को वायुदाब प्रवणता कहते हैं। यह दो समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई होती हैं। यह दाब प्रवणता वायु दिशा अथवा वायु वेग को प्रदर्शित करती है। यदि समदाब रेखाएँ एक-दूसरे के निकट हों तो दाब प्रवणता तीव्र होती है तथा तेज पवनें चलती हैं। यदि समदाब रेखाएँ दूर-दूर हों तो वायु की गति मन्द होती है। ऊँचाई के साथ-साथ 34 मिलीबार
प्रति 300 मीटर की दर से वायु दाब कम होता है। वायुमण्डल की ऊपरी परतें हल्की होती हैं। ऊपरी परतों के बोझ तथा दबाव के कारण नीचे की परतों पर सम्पीड़न क्रिया होती है। इसलिए धरातल के निकट की परतों में वायुदाब अधिक होता है।
4. घोड़ों के अक्षांश से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-22° से 35° मध्य के अक्षांशों को अश्व अक्षाश कहते हैं। कर्क रेखा तथा मकर रेखा के निकट का यह शांत मंडल कहलाता है। शांत भूखण्ड में धरातल पर वायु की क्षैतिज गति नहीं होती। पवनें ऊपर से नीचे या नीचे से ऊपर को चलती रहती हैं। ये पवनें न तो स्थाई हैं और न अधिक गति से चलती हैं। वायुमण्डल शांत तथा मौसम साफ रहता है।
लगातार उतरती हुई वायु तथा दबाव के कारण यहाँ उच्च वायु दाब होता है। इन अक्षांशों से ध्रुवों की ओर पश्चिमी पवनें तथा भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।
5. ‘डोलड्रम क्षेत्र’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-यह शांत खंड भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5°N तथा 5°S के बीच स्थित है। इसे भूमध्य रेखा का शांत खंड भी कहते हैं। धरातल पर चलने वाली वायु का अभाव होता है या बहुत ही शांत चलती है। यह शांत खंड भूमध्य रेखा के चारों ओर फैला हुआ है।
इस खंड में वर्ष भर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं तथा तापमान ऊँचा रहता है। वायु गर्म तथा हल्की होकर लगातार संवाहिक धाराओं के रूप में ऊपर उठती हैं तथा धरातल पर वायुदाब कम हो जाता है।
6. फैरल का नियम क्या है? चित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर–धरातल पर पवनें कभी सीधे उत्तर से दक्षिण की ओर नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं। हवा की दिशा में परिवर्तन का कारण, पृथ्वी की दैनिक गति है जब हवाएँ कम चाल वाले भागों से अधिक चाल वाले भागों की ओर जाती हैं तो पीछे रह जाती हैं। इस विक्षेप शक्ति को कोरोलिस बल भी कहा जाता है।
7. वायुराशि क्या होती है? पवन से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-वायुराशि वायुमण्डल का एक छोटा तथा विस्तृत भाग है जिसमें तापमान और आर्द्रता के लक्षण एक समान होते हैं। इस प्रकार वायुराशियों में एकरूपता का पाया जाना इसका मुख्य लक्षण है। एक वायुराशि में एक-दूसरे के ऊपर वायु की विभिन्न परतें होती हैं।
इस प्रकार वायुमंडल में पर्याप्त ऊँचाई तक एक विशाल वायुराशि मे एकरूपता पाई जाती है।
8. स्रोत प्रदेश किसे कहते हैं? ध्रुवीय महाद्वीपीय स्रोत प्रदेशों का वर्णन करें।
उत्तर-धरातल के ऐसे समान क्षेत्र जहाँ वायुराशियों की उत्पत्ति होती है, स्रोत प्रदेश कहलाते हैं। यह प्रदेश पृथ्वी के धरातल पर विस्तृत क्षेत्र है जहाँ एक सम लक्षण पाए जाते है। ऐसे प्रदेश में एक सम धरातल तथा प्रति चक्रवातीय वायु तथा प्रति चक्रवातीय वायु व्यवस्था पाई जाती है। इस अवस्था में अपसारी वायु संचरण होता है। प्रायः स्रोत प्रदेश ध्रुवीय तथा उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाए जाते हैं।
शीतकाल में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया या ध्रुवीय प्रदेश बर्फ से ढके रहते हैं। यहाँ प्रति चक्रवात चलते हैं। वायु स्थित तथा शुष्क होती है तापमान तथा आर्द्रता में एकरूपता पाई जाती है।
9. पृथ्वी के धरातल पर कुछ वायुदाब कटिबंध तापीय कारणों से नहीं बल्कि गतिक कारणों से उत्पन्न हुए हैं। ये कटिबंध कौन-से हैं? इनकी उत्पत्ति की व्याख्या करें।
उत्तर-पृथ्वी भूमध्य रेखा तथा ध्रुवों के बीच उपोष्ण उच्च वायुदाब तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की उत्पत्ति होती है। इनकी उत्पत्ति गतिक कारणों से है। भूमध्य रेखा से ऊपर उठने वाली वायु ठंडी होकर तथा भारी होकर 30° अक्षांशों के निकट नीचे उतरने लगती है।
इसके अतिरिक्त पृथ्वी के घूर्णन के कारण ध्रुवों से आने वाली वायु भी यहाँ नीचे उतरती है, इसलिए यहाँ उच्च वायुदाब उत्पन्न होता है।
60° अक्षांशों के निकट वायुदाब की उत्पत्ति गति कारणों से होती है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इन अक्षांशों से वायु भूमध्य रेखा की ओर तथा ध्रुवों की ओर खिसक जाती है इसलिए यहाँ निम्न वायुदाब स्थापित हो जाता है।
10. ‘चिनूक’ तथा ‘फोएन’ पवनें क्या हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर-ये गर्म तथा शुष्क पवनें हैं। ये पवनें पर्वतों के सम्मुख ढाल पर टकराकर ऊपर चढ़ती हैं। इस क्रिया के कारण ये ठंडी होकर पवन के सामने वाले ढाल पर काफी वर्षा करती हैं।
चिनूक पवनें-अमेरिका में रॉकीज पर्वतों को पार करके प्रेयरी के मैदान में चलने वाली ऐसी पवनों को चिनूक पवनें कहते हैं। चिनूक का अर्थ है-बर्फ खाऊ, क्योंकि ये पवनें अधिक तापक्रम के कारण बर्फ को पिघला देती हैं। कई बार 24 घंटे के समय में 50 F(10°C) तापक्रम बढ़ जाता है।
फोएन पवनें-यूरोप में आल्प्स को पार करके स्विट्जरलैंड में उतरने वाली पवनें को फोएन पवनें कहते हैं।
11. पृथ्वी के सात दाब कटिबंधों के नाम लिखिए।
-पृथ्वी के सात दाब कटिबंध इस प्रकार हैं-
(i) विषुवतीय निम्न दाब पट्टी;
(ii) उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध);
(iii) उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्द्ध);
(iv) उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध);
(v) उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्द्ध);
(vi) ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध);
(vii) ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्द्ध)।
12. पवन और वायुधारा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-पवन और वायुधारा में अंतर-
पवन
(i) धरातल के समान्तर चलने वाली धारा है।
(ii) उच्च दाब से निम्न दाब की ओर वायुमंडलीय दाब प्रवणता का अनुसरण करती है।
(iii) पवन वेग स्थल पर किलोमीटर प्रति घंटा के रूप में तथा समुद्र पर नॉट प्रति घंटा के रूप में व्यक्त किया जाता है
वायुधारा
(i) वायु की ऊर्ध्वाधर गति को वायुधारा कहते हैं।
(ii) वायुदाब के कारण हवा में संचलन उत्पन्न होता है।
(iii) वायु में 1 घन फुट में 1.2 औंस भार होती है।
13. भूमंडलीय और सामयिक पवनों में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-भूमंडलीय और सामयिक पवनें में अंतर-
भूमंडलीय पवनें
(i) प्राथमिक पवनों को भूमंडलीय या प्रचलित पवनें भी कहते हैं।
(ii) इनमें व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें तथा ध्रुवीय पवनें सम्मिलित हैं।
(iii) यह धरातल पर होने वाले ऋतु तापन तथा स्थल एवं जल की विषमताओं को कोई महत्त्व नहीं देता।
(iv) प्राथमिक पवनों में डोलड्रम, व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें तथा ध्रुवीय पवनें शामिल हैं।
सामयिक पवनें
(i) इन्हें द्वितीयक पवनें कहते हैं।
(ii) इनमें मानसून, चक्रवात,प्रति चक्रवात, वायुराशियाँ तथा वाताप आते हैं।
(iii) ये हवाएँ ऋतु के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं।
(iv) मानसून पवनें, चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात, स्थल समीर एवं समुद्र समीर तथा पर्वत समीर एवं घाटी समीर इस प्रकार की पवनें हैं।
14. स्थल और समुद्र समीर में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-स्थल और समुद्र समीर में अंतर,
स्थल समीर
(i) रात के समय स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
(ii) समुद्र की गर्म हवा ऊपर उठकर स्थल पर उतरती है।
(iii) इनका स्थल भागों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता।
(iv) इनका प्रभाव तभी अनुभव होता है जब आकाश साफ हो। दैनिक तापान्तर अधिक हो तथा तेज पवनों का अभाव हो।
समुद्र समीर
(i) ये पवनें दिन के समय समुद्र को और चलती हैं।
(ii) स्थल के कम दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठंडी पवनें चलती हैं।
(iii) जल समीर ठंडी सुहावनी होती है।
(iv) ये गर्मियों में तटीय भागों के तापक्रम को कम करती हैं।
15.मिस्ट्रल और फॉन में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-मिस्ट्रल और फॉन में अंतर-
मिस्ट्रल
(i) इसका स्थानीय नाम मिस्ट्रल है।
(ii) यह शुष्क गर्म और तेज हवा है।
(iii) इसका तापमान 150 से 20° से. के बीच रहता है।
(iv) यह पर्वत के प्रतिपादन या पवन विमुख उत्तरी ढाल पर उत्पन्नता होती है और ढाल पर ऊपर से नीचे की ओर बहती है।
(v) यह हवा सदियों के अधिकांश दिनों में घास के मैदानों को हिम मुक्त रखती है।
फॉन
(i) इसका स्थानीय नाम फॉन है।
(ii) यह अत्यधिक ठंडी, शुष्क एवं तेज बहने वाली पवन है।
(iii) यह तापमान को शून्य अंश से नीचे ले जाती है।
(iv) उच्च भूमियों को निकटवर्ती क्षेत्र, सर्दियों में हिमच्छादित पर्वतों या उच्च भूमियों पर उत्पन्न होकर नीचे की ओर बहने वाली हवा है।
(v) इसका वेग अधिक होता है, ये ठंडी होती हैं और भूमध्य सागर की ओर चलती हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. पवनों के मुख्य प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वायु परिसंचरण के तीन विभिन्न तंत्र हैं-प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक।
(i) प्राथमिक पवनें -इन पवनों का सम्बन्ध घूर्णन करती हुई पृथ्वी के धरातल पर वनों के सामान्य परिसंचरण प्रतिरूप से है। प्राथमिक पवनों में डोलड्रम, व्यापारिक पवनें, पछुआ पवनें तथा ध्रुवीय पवनें शामिल हैं।
डोलड्रम-ये पवनें विषुवत रेखा के दोनों ओर एक शांत क्षेत्र में होती हैं। इनका धरातलीय प्रवाह बहुत कम है।
व्यापारिक पवनें -ये पवनें दोनों गोलार्द्ध में 5° से 30° अक्षांशों के मध्य चलती हैं। उत्तर में इन्हें उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा दक्षिण में दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनें कहते हैं। दोनों पवनें विषुवत रेखा पर अभिसरण करती हैं, जिसे अंतर उष्णकटिबन्धीय अभिसरण क्षेत्र कहते हैं।
पछुआ पवनें-ये मध्य अक्षांशों में 35°से 60° उत्तर व दक्षिण अक्षांशों के बीच चलती हैं। इनकी दिशा परिवर्तनशील है और वेग भी प्रचण्ड है। पछुआ पवनें गर्मी एवं सर्दी दोनों ही ऋतुओं में बड़ी तूफानी होती हैं।
ध्रुवीय पूर्वी पवनें-ये विषुवत रेखा की ओर बहती हैं, जो शीघ्रता से पूर्व से पश्चिम की दिशा ले लेती हैं। इन्हें ध्रुवीय पवनें कहते हैं।
(ii) द्वितीयक पवनें -ये हवाएँ, जो ऋतु के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं, मानसून पवनें, वायुराशियाँ एवं साताग्र, चक्रवात एवं प्रति-चक्रवात, स्थल समीर, पर्वत एवं घाटी समीर ऐसी पवन प्रणालियाँ हैं।
मानसून पवनें :-ये वे मौसमी पवनें हैं जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती हैं। ये पवनें गर्मी में 6 मास समुद्र से स्थल की ओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल समुद्र की ओर चलती हैं। ये एक प्रकार से जल तथा स्थल पवनें हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल तथा स्थल के ठंडा व गर्म होने में विभिन्नता है। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायुदाब में भी अन्तर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा पलट जाती हैं।
पर्वतीय तथा घाटीय पवनें:- ये साधारण दैनिक पवनें हैं जो दैनिक तापान्तर के फलस्वरूप वायु दबाब की विभिन्नता के कारण चलती हैं। पर्वतीय पवनें पर्वतीय प्रदेश में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर बहती हैं। यह तीव्र विकिरण तथा गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती हैं। इसे वायु प्रवाह भी कहते है। इन पवनों के कारण घाटियाँ ठंडी वायु से भर जाती हैं जिससे घाटी के निचले भाग में पाला पड़ता है।
घाटीय पवनें-दिन के समय घाटी की गर्म वायु ढाल से होकर शिखर की ओर ऊपर चढ़ती हैं इन्हें घाटीय पवनें कहते हैं। ये पवनें धाटियों में गर्मी की तीव्रता को कम करती हैं। ऊपर चढ़ने के कारण ये पवनें ठंडी होकर घनघोर वर्षा करती हैं।
(iii) तृतीयक अथवा स्थानीय पवनें-इन पवनों की उत्पत्ति भू-भाग के तत्काल प्रभाव द्वारा होती है। जब ये पवनें अत्यधिक गर्म एवं शुष्क होती हैं तो पशु एवं वनस्पति जगत पर शक्तिशाली प्रभाव डालती हैं। स्थानीय पवनों का एक अन्य वर्ग वायु अपवाह कहलाता है।
बर्फीली हवाओं का स्थानीय नाम उत्तरी एड्रियाटिक तट में बोरा तथा दक्षिणी फ्रांस में मिस्ट्रल है। अन्य प्रकार की स्थानीय पवनें लू, फॉन तथा चिनूक हैं, ये गर्म एवं शुष्क पवनें हैं। में द्वितीयक प्रकार की पवनों को जन्म देते हैं।
(iv) वायुराशियाँ एवं बाताग्र- -ये अभिगामी वायुमंडलीय विक्षोभ हैं, जो पूरे विश्व भर में द्वितीयक प्रकार की पवनों को जन्म देते हैं।
वायुराशियाँ-यह हवा का एक विशाल समूह है, जिसमें तापमान तथा आर्द्रता की दशाएँ, एक समान होती है। वायुराशि अपनी विशेषताएँ अपने स्रोत से प्राप्त करती हैं। दो आधारभूत वायुराशियाँ हैं-ध्रुवीय (P). तथा उष्णकटिबंधीय (T)। इनके तापमान में भारी अंतर रहता है।
ध्रुवीय वायुराशियाँ-ये वायुराशियाँ उच्च अक्षांशों में जन्म लेती हैं। ये ठंडी तथा कम आर्द्र होती हैं।
उष्णकटिबंधीय वायुराशियाँ–अधिक आर्द्र होती हैं।
(v) वाताग्र-विभिन्न गुणों वाली वायुराशियों के मध्य की संपर्क रेखा वाताग्र कहलाती हैं। शीत वाताग्र की उत्पत्ति वहाँ से होती हैं, जहाँ ठंडी हवा गर्म हवा के नीचे संचलन करती है। ठंडी वायु का पिछला सिरा जिसका अनुसरण गर्म वायुराशि करती है, उष्ण वाताग्र कहलाता है। प्रत्येक स्थिति में वर्षा होने की संभावना रहती है। जब दोनों वाताग्र मिल जाते हैं तब इसे अधिधारित वाताग्र कहते हैं।
(vi) चक्रवात-जलवायु की दृष्टि से वायुमंडलीय विक्षोभों में चक्रवात सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, जो मौसम को प्रभावित करते हैं। चक्रवातों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-शीतोष्ण चक्रवात तथा उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।
शीतोष्ण चक्रवात-इनका क्षेत्र दोनों गोलार्द्धों के मध्य अक्षांशों में 35°से 65° अक्षांशों के बीच संकेन्द्रित है। ये बड़े विस्तृत होते हैं। ये श्वेत मेघों की पृष्ठभूमि में काले मेघों का आगमन आने का सूचक हैं। जैसे ही चक्रवात किसी स्थान पर पहुँचता है, बूंदाबाँदी, शुरू हो जाती है और फिर भारी वार्षा होती है। इससे शीत वाताग्र के आगमन की सूचना मिलती है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवात-ये अपने उग्रता तथा व्यापक विनाश के लिए जाने जाते हैं। इनकी जलवायविक विशेषता वर्षा करना है। ये महासागरों के ऊपर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में विकसित होते हैं। इन हवाओं का वेग 120 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा तक होता है। ये कम क्षेत्रफल घेरते हैं। भारत में इनकी प्रचण्डता का अनुभव सर्वाधिक बंगाल की खाड़ी में पूर्वी तट पर होता है। चक्रवात वायुमण्डलीय गतिशीलता के सूचक हैं तथा मानव एवं मानव समाज कल्याण की दृष्टि से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं।
2. वायुदाब के क्षैतिज वितरण के विश्व प्रतिरूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर-वायुदाब का क्षैतिज वितरण सामान्य रूप से उच्च वायुदाब और निम्न वायुदाब को एकांतर कटिबंध के रूप में प्रस्तुत करता है। वायुदाब और तापमान में प्रतिलोमी संबंध है। 30° उत्तर एवं दक्षिण अक्षांशों के पास दो उपोष्ण उच्चदाब के और 60° उत्तर तथा दक्षिण अक्षांशों के पास दो उपध्रुवीय निम्नदाब के मध्यवर्ती क्षेत्र हैं। जिस दिशा में वायुदाब सबसे तेजी से घट रहा हो, उस दिशा में प्रति इकाई दूरी पर वायुदाब में आई गिरावट को दाब प्रवणता कहते हैं। विषुवतीय निम्न वायुदाब कटिबंध की गर्म हवा ऊपर उठने के साथ धीरे-धीरे ठंडी होती जाती है। ऊपरी स्तर पर पहुँचने के बाद यह ध्रुवों की ओर प्रवाहित होने लगती है और अधिक ठंडी होने पर यह 20° तथा 35° अक्षांशों के मध्य नीचे उतरने लगती है।
इसके लिए दो कारक उत्तरदायी हैं। प्रथम-वायु के ठंडा होने से इसका घनत्व बढ़ जाता है, जिससे यह नीचे उतरने लगती है। दूसरा-पृथ्वी का घूर्णन पश्चिमी से पूर्व की ओर होने के कारण ध्रुवों की ओर जाने वाली हवाएँ पूर्व की ओर विक्षेपित हो जाती हैं। अपने पक्ष पर
घूर्णन करती हुई पृथ्वी पर विषुवत रेखा के पास कोई भी बिन्दु सर्वाधिक तीव्र गति से संचलन करता है। जैसे-जैसे हम ध्रुवों की ओर जाते हैं, वेग कम होता जाता है और ध्रुवों पर लगभग शून्य हो जाता है। वेग में अन्तर के कारण सभी गतिशील वस्तुएँ, विषुवत रेखा की ओर अथवा विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर संचलन के समय पथ से विक्षेपित हो जाती हैं। विक्षेपण बल की खोज सर्वप्रथम फ्रांसिसी गणितज्ञ कोरियोलिस ने की थी। इसलिए इसे कोरियोलिस बल कहते हैं बाद में इसे फैरेल के नियम से जाना गया।
इस नियम के अनुसार-सभी गतिशील वस्तुएँ अपने पथ से विक्षेपित हो जाती हैं, जैसे पवन और महासागरीय धाराएँ, जिसकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में बाएँ हैं। विषुवत रेखा से दूर जाने के साथ विक्षेपण दर में वृद्धि होती जाती है। इससे अवरोध उत्पन्न होने लगता है और हवा ऊपर की ओर संचित होने लगती है। इससे कर्क रेखा और 35° उत्तरी अक्षांश मकर रेखा और 35° दक्षिणी अक्षांश के मध्य हवाएँ ऊपर से नीचे उतरने लगती हैं जिससे यहाँ उच्च दाब कटिबंधों की उत्पत्ति होती है। उपोष्ण कटिबंध तथा ध्रुवीय क्षेत्रों से आने वाली हवाएँ 45° उत्तर व दक्षिण आर्कटिक वृत एवं 40° दक्षिण व अंटार्कटिक वृत के मध्य स्थित क्षेत्रों में मिलती हैं। ये उपध्रुवीय निम्न दाब के क्षेत्र हैं।
इस प्रकार कुल सात कटिबन्ध हैं-
(i) विषुवतीय निम्न दाब पट्टी,
(ii) उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध),
(iii) उपोष्ण उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्द्ध)
(iv) उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध),
(v) उपध्रुवीय निम्न दाब पट्टी (दक्षिणी गोलार्द्ध)
(vi) ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (उत्तरी गोलार्द्ध),
(vii) ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी (दक्षिणी गोलाद्ध)।