Bihar board class 11th Geography notes chapter 14
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महासागरीय जल संचलन
(MOVEMENTS OF OCEAN WATERS)
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न :
(i) महासागरीय जल की ऊपर एवं नीचे गति किससे संबंधित है-
(क) ज्वार
(ख) तरंग
(ग) धाराएँ ।
(घ) ऊपर में से कोई नहीं
उत्तर-(ग)
(ii) वृहत् ज्वार आने का क्या कारण है?
(क) सूर्य और चन्द्रमा का पृथ्वी एक ही दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल
(ख) सूर्य और चन्द्रमा द्वारा एक-दूसरे की विपरीत दिशा से पृथ्वी पर
गुरुत्वाकर्षण बल
(ग) तटरेखा का दंतुरित होना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(ख)
(iii) पृथ्वी और चन्द्रमा की न्यूनतम दूरी कव होती है?
(क) अपसौर
(ख) उपसौर
(ग) उपभू
(घ) अपभू
उत्तर-(ग)
(iv) पृथ्वी और चन्द्रमा की न्यूनतम दूरी कब होती है?
(क) अक्टूबर
(ख) जुलाई
(ग) सितम्बर
(घ) जनवरी
उत्तर-(घ)
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) तरंगें क्या है?
उत्तर-तरंगें वास्तव में ऊर्जा हैं। तरगों में जल कण छोटे वृत्ताकार रूप में गति करते है। वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है जिससे तरगें उत्पन्न होती है। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती है तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है।
(ii) महासागरीय तरंगें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त करती हैं?
उत्तर-वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तटरेखा पर निर्मुक्त होती है। बड़ी तरगें खुले महासागरों में पायी जाती है। तरंगे जैसे ही आगे की ओर बढ़ती है बड़ी होती जाती है तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती है।
(iii) ज्वारभाटा क्या है?
उत्तर-चन्द्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल का नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वारभाटा कहा जाता है।
(iv) ज्वारभाटा उत्पन्न होने के क्या कारण हैं?
उत्तर-चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वार भाटाओं की उत्पति होती है। दूसरा कारक, अपकेंद्रीय बल है जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है तथा अपकेंद्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्त्वपूर्ण ज्वारभाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं। चन्द्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर, एक ज्वारभाटा उत्पन्न होता है जब विपरीत भाग पर चन्द्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण उसकी दूरी के कारण कम होता है तब अपकेंद्रीय बल दूसरी तरफ ज्वार उत्पन्न करता है।
(v) ज्वारभाटा नौकासंचालन से कैसे संबंधित हैं?
उत्तर-ज्वारभाटा नौकासंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य संबंधी योजनाओं में मदद करती है। नौकासंचालन में ज्वारीय प्रवाह का अत्यधिक महत्त्व है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
(i) जलधाराएँ तापमान को कैसे प्रभावित करती हैं? उत्तर पश्चिम यूरोप के तटीय क्षेत्रों के तापमान को ये कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर-जलधाराएँ अधिक तापमान वाले क्षेत्रों से कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर तथा इसके विपरीत कम तापमान वाले क्षेत्रों की ओर बहती है। जब ये धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बहती है तो ये उन क्षेत्रों के तापमान को प्रभावित करती हैं। किसी भी जलराशि के तापमान का प्रभाव उसके ऊपर की वायु पर पड़ता है। इसी कारण विषुवतीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशो वाले ठंडे क्षेत्रों की ओर बहने वाली जलधाराएँ उन क्षेत्रों की वायु के तापमान को बढ़ा देती है। उदाहरणार्थ, गर्म उत्तरी अटलांटिक अपवाह जो उत्तर की ओर यूरोप के पश्चिमी तट की ओर बहती है। यह ब्रिटेन और नार्वे के तट पर शीत ऋतु में भी बर्फ नहीं जमने देती। जलधाराओं का जलवायु पर प्रभाव और अधिक स्पष्ट हो जाता है। जब आप समान अक्षांशों पर स्थित ब्रिटिश द्वीप समूह की शीत ऋतु की तुलना कनाडा के उत्तरी पूर्वी तट की शीत ऋतु से करते हैं। कनाडा का उत्तरी-पूर्वी तटा लेब्राडोर की ठंडी धारा के प्रभाव में आ जाता है। इसलिए यह शीत ऋतु में बर्फ से ढका रहता है।
(ii) जलधाराएँ कैसे उत्पन्न होती हैं?
उत्तर-महासागरों में धाराओं की उत्पत्ति कई कारको के सम्मिलित प्रयास के फलस्वरूप संभव होती है। इनमें से कुछ कारक महासागरीय जल की विभिन्न विशेषताओं से संबंधित हैं, कुछ कारक पृथ्वी की परिभ्रमण क्रिया तथा उसके गुरुत्वाकर्षण बल से संबंधित है तथा कुछ बाह्य कारक हैं। इनके अतिरिक्त कुछ ऐसे कारक भी हैं जो धाराओं में परिवर्तन लाते है।
इन्हें रूप परिवर्तन कारक (modifying factors) कहते हैं।
(i) पृथ्वी के परिभ्रमण से संबंधित कारक-पृथ्वी पश्चिम से पूर्व दिशा में अपनी अक्षरेखा के सहारे परिक्रमा करती है। इस गति के कारण जल स्थल का साथ नहीं दे पाता है, जिस कारण वह पीछे छूट जाता है, परिणामस्वरूप जल में पूर्व से पश्चिम दिशा में गति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार विषुवत् रेखीय धाराओं की उत्पत्ति होती है कभी-कभी कुछ जल पृथ्वी की परिभ्रमण दिशा की ओर भी अग्रसर हो जाता है। जिस कारण प्रति विषुवत् रेखीय धारा की उत्पत्ति होती है।
(ii) सागर से संबंधित कारक- -सागरीय जल के तापमान, लवणता, घनत्व आदि में स्थानीय परिवर्तन होते हैं जिस कारण धाराओं की उत्पत्ति होती है।
(iii) बाह्य सागरीय कारक-महासागरीय जल पर वायुमण्डलीय दशाओं का पर्याप्त प्रभाव होता है। इनमें वायुमण्डीय दबाव तथा उनमें भिन्नता, वायु दिशा, वर्षा वाष्पीकरण आदि धाराओं की उत्पत्ति में सहायक होते हैं।
परियोजना कार्य
(i) किसी तालाब के पास जाएँ तथा तरंगों की गति का अवलोकन करें। एक पत्थर फेकें एवं देखें की तरंगें कैसे उत्पन्न होती हैं। एक तरंग का चित्र बनाएँ एवं इसकी लम्बाई, दूरी तथा आयाम को मापें तथा अपनी कापी में इसे लिखें।
उत्तर-इस परियोजना कार्य को स्वयं करें।
(ii) एक ग्लोब या मानचित्र लें, जिसमें महासागरीय धाराएँ दर्शाई गई हैं, यह भी बताएं कि क्यों कुछ जलधाराएँ गर्म हैं व अन्य ठंडी। इसके साथ ही यह भी बताएँ कि निश्चित स्थानों पर यह क्यों विक्षेपित होती है। कारणों का विवेचन करें।
उत्तर-महासागरीय धाराओं को तापमान के आधार पर गर्म व ठंडी जलधाराओं में वर्गीकृत किया जाता है।
(i) ठंण्डी जलधाराएँ ठंण्डे जल को गर्म जल क्षेत्रों में लाती है। ये महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती है (ऐसा दोनों गोलाद्धों में निम्न व मध्य अक्षाशीय क्षेत्रों में होता है) और उत्तरी गोलार्द्ध के उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में यह जलधाराएँ महाद्वीपों के पूर्वी तट पर बहती हैं।
(ii) गर्म जलधाराएं गर्म जल को ठण्डे जल क्षेत्रों में पहुंचाती है और प्रायः महाद्वीपों के पूर्वी तटो पर बहती हैं (दोनों गोलार्धों के निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में)। उत्तरी गोलार्द्ध में ये जलधाराएँ महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर (उच्च अक्षांशीय) क्षेत्रों में बहती है।
पानी के घनत्व में अंतर महासागरीय जलधाराओं की ऊर्ध्वाधर गति को प्रभावित करता है। ठंडा जल गर्म जल की अपेक्षा अधिक सघन होता है। सघन जल नीचे बैठता है जबकि हल्के जल की प्रवृत्ति ऊपर उठने की होती है। ठंडे जल वाली महासागरीय धाराएँ तब उत्पन्न होती है जब ध्रुवों के पास वाले जल नीचे एवं धीरे-धीरे विषवुत् रेखा की ओर गति करते हैं। गर्म जलधाराएँ विषुवत् रेखा से सतह के साथ होते हुए ध्रुवों की ओर जाती है और ठंडे जल का स्थान लेती हैं।
प्रमुख महासागरीय धाराएं प्रचलित पवनों और कोरियोलिस प्रभाव से अत्यधिक प्रभावित होती है। निम्न अक्षांशों से बहने वाली गर्म जलधाराएँ कोरिलोसिस प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपने बाईं तरफ और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने दाईं तरफ मुड़ जाती है (देखें चित्र 14.3)
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उसके आदर्श उत्तर
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. महासागरीय धाराएँ किसे कहते हैं?
उत्तर-जल की एक राशि का एक निश्चित दिशा में लम्बी दूरी तक सामान्य संचलन महासागरीय धारा कहलाता है। ये चौडी़ प्रवाह प्रणाली से लेकर छोटी प्रवाह प्रणाली तक होती है।
2. थर्मोक्लाइन धाराएँ किसे कहते हैं?
उत्तर-जल के घनत्व में अंतर के कारण जो धाराएं उत्पन्न होती है उन्हें थर्मोक्लाइन धाराएँ कहते हैं।
3. गल्फ स्ट्रीम का क्या अर्थ है?
उत्तर– -फ्लोरिडा अतरीप से हटेरास अंतरीप की ओर बहने वाली धारा फ्लोरिडा धारा कहलाती है। हटेरास अंतरीप के पश्चात् इसे गल्फ स्ट्रीम कहते है।
4. तरंग-आवर्त काल किसे कहते है?
उत्तर-किसी निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो क्रमिक तरंगों के बीच के समय को तरंग-आवर्त काल कहते हैं।
5. ‘भग्नोर्मि’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-एक क्रांतिक बिन्दु पर आकर तरंग रूप खंडित होकर विक्षुब्ध जल समूह में बदल जाता है, जिसे भग्नोर्मि कहते है।
6. ‘उद्धावन’ क्या है?
उत्तर-अत्यधिक विक्षुब्ध जल की परत के रूप में जब तरंग स्थल की ओर संचलित होती है, तब इसे उद्धावन कहते हैं।
7. जल में सूर्य का प्रकाश कितनी गहराई तक प्रवेश कर सकता है?
उत्तर-जल में सूर्य का प्रकाश 900 मीटर की गहराई तक प्रवेश कर सकता है, पर केवल 100 मीटर की गहराई तक इतना प्रकाश रहता है, जिसका उपयोग पेड़-पौधे कर सकें।
8. सागरीय जल के तापमान का वार्षिक अंतर किन घटकों पर निर्भर करता है?
उत्तर-(i) विभिन्न गहराइयों में तापमान विभिन्नता, (ii) ताप चालन का प्रभाव, (iii) संवहनी धाराओं का प्रभाव, (iv) जलराशियों का पार्श्व विस्थापन।
9. महासागरीय जल के कौन-से गुण समुद्री जन्तुओं और वनस्पतियों को प्रभावित करते हैं?
उत्तर-(i) जल का तापमान; (ii) जल का घनत्व; (iii) जल की लवणता, (iv) जल का संचरण।
10. उन कारकों के नाम वताइए, जो महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति को नियंत्रित करते हैं।
उत्तर-समुद्री धाराओं की उत्पत्ति को नियंत्रित करने वाली महत्त्वपूर्ण क्रियाविधियाँ है।
(क) समुद्री धरातल पर पवनों का कर्षण तथा (ख) जल घनत्व में अंतर से उत्पन्न असमान बल।
11. तरंग का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर-तरंग वेग निम्न विधि से निश्चित किया जा सकता है-
तरंग का वेग =तरंगदैर्ध्य/तरंग आवर्त काल
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. समुद्री जल की विसंगति तथा समविसंगतीय रेखा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-महासागर महान ऊष्मा भंडार का काम करते हैं। किसी स्थान के औसत तापमान तथा उस स्थान के अक्षांश के औसत तापमान के बीच के अंतर को ऊष्मीय-विसंगति कहते हैं। गर्मजल धाराओं के कारण धनात्मक तथा शीतल जलधाराओं के कारण ऋणात्मक विसंगति उत्पन्न होती है।
2. महासागरीय जलधाराओं की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर– महासागरीय जलधाराओं की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) जलधाराएँ निरतर एक निश्चित दिशा में प्रवाह करती हैं।
(ii) निम्न अक्षांशों के उच्च अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को गर्म जलधाराएँ कहते हैं।
(iii) उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहने वाली धाराओं को ठंडी जलधाराएं कहते हैं।
(iv) उत्तरी गोलार्द्ध की जलधाराएँ अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध की जल-धाराएँ अपने बाईं ओर मुड़ जाती हैं।
(v) निम्न अक्षांशों में पूर्वी तटों पर गर्म जलधाराएँ तथा पश्चिमी तटों पर ठंडी जल धाराएं बहती है।
(vi) उच्च अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर गर्म जलधाराएँ और पूर्वी तटों पर ठंडी जल धाराएँ बहती हैं।
3. साउथैम्पटन (इंग्लैंड) के तट पर प्रतिदिन चार बार ज्वार क्यों आते हैं?
उत्तर-सामान्यतः दिन में दो बार ज्वार आता है। परन्तु साउथैम्पटन (इंग्लैंड के दक्षिणी तट) पर ज्वार प्रतिदिन चार बार आता है। यह प्रदेश इंगलिश चैनल द्वारा उत्तरी सागर तथा अन्ध महासागर को जोड़ता है। दो बार ज्वार अन्ध महासागर की ओर से आते हैं तथा दो बार उत्तरी सागर की ओर से आते हैं।
4. हुगली नदी में नौका संचालन के लिए ज्वार-भाटा का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-ऊँचे ज्वार आने पर नदियों के मुहाने पर जल अधिक गहरा हो जाता है। इस प्रकार बड़े-बड़े जलयान नदी में कई मील भीतर तक प्रवेश कर जाते हैं। कोलकाता हुगली नदी के किनारे समुद्र तट से 120 किमी दूर स्थित है, परन्तु हुगली नदी में आने जाने वाले ज्वार के कारण ही जलयान कोलकाता तक पहुंच पाते हैं। ज्वारीय तरंगें नदियों के जल स्तर को ऊपर उठा देती हैं, जिससे जलयान आंतरिक पतनों तक पहुंच जाते हैं।
5. समुद्री तरंगों की उत्पत्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर-तरगें जल में दोलनी-गतियाँ हैं। समुद्री तरंगों की उत्पत्ति की क्रियाविधि पर यह विश्वास किया जाता है कि ये तरगें जलीय धरातल पर पवनों के घर्षण के कारण बनती है।
तरंगों की ऊंचाई तीन कारकों पर निर्भर करती हैं-(i) पवन वेग, (ii) किसी दिशा विशेष से पवन के बहने की अवधि तथा (iii) जलीय धरातल का विस्तार क्षेत्र, जिस पर पवन चलती है। जहाँ जल गहरा होता है, वहाँ पवन का वेग अधिक होता है तथा उसके बहने की अवधि भी लम्बी होती है। ऐसी परिस्थिति में उच्च तरंग का निर्माण होता है। पवन वेग 160 किमी प्रति घंटा हो और यह पवन 1,600 किमी विशाल समुद्री क्षेत्र में लगातार 50 घंटे तक चले तो 15 मीटर ऊंची तरंगों की उत्पत्ति हो सकती है।
6. भग्नोर्मि तथा उद्धावन किस प्रकार बनती है?
उत्तर-जब कोई तीव्र ढाल वाली तरंग तट की ओर बढ़ती है और इसे तट के उथले जल से गुजरना पड़ता है, तो इसके शृंग की ऊँचाई शीघ्रता से बढ़ती है और तरंग का अग्रढाल अत्यधिक तीव्र हो जाता है। एक क्रांतिक बिन्दु पर आकार तरग रूप में खंडित होकर विक्षुब्ध जल समूह में बदल जाता है, जिसे भग्नोर्मि कहते हैं।
भग्नोर्मि के पश्चात् तरग अत्यधिक विक्षुब्ध जल की परत के रूप में वह स्थल की ओर संचलित होती है, जिसे उद्धावन कहते है।
7. स्वेल और सर्फ में क्या अंतर है?
उत्तर-स्वेल.-(i) खुले सागर में नियमित तरंगों को स्वेल कहा जाता है।
(ii) तट के समीप इन तरंगों की ऊंचाई बढ़ जाती है।
सर्फ–(i) तटीय क्षेत्रों में टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं। (ii) तट के समीप ये तरंगे शोर मचाती हुई तट पर प्रहार करती हैं।
8. ज्वारीय भित्ति किसे कहते हैं?
उत्तर-जब ज्वारीय तरंगें किसी खाड़ी अथवा नदी के मुहाने में प्रवेश करती हैं तो ज्वारीय शृंग नदी के ऊपरी भाग की ओर तेजी से बढ़ती हुई एक खड़ी दीवार की भाँति दिखाई देती हैं, जिसे ज्वारीय भित्ति कहते हैं। जब ज्वार उठता है तो पानी की एक धारा नदी घाटी में प्रवेश करती है। यह लहर नदी के जल को विपरीत दिशा में बहाने का प्रयास करती है। ज्वारीय लहर की ऊंचाई बढ़ जाती है तथा पानी का बहाव उलट जाता है। हुगली नदी में ज्वारीय भित्ति के कारण छोटी नावों को बहुत हानि पहुँचती है। ज्वारीय भित्ति मानव की अनेक प्रकार से सहायता करती है।
9. पवन निर्मित तरंगों के विभिन्न प्रकार बताएँ।
उत्तर-तरंगें पवन के संपर्क से सागरीय जल के आगे-पीछे, ऊपर-नीचे की गति से उत्पन्न होती हैं। पवन द्वारा तरंगें तीन प्रकार की होती हैं-(i) सी (sea), (ii) स्वेल (swell), (iii) सर्फ (surf)।
विभिन्न दिशाओं तथा गतियों से उत्पन्न तरंगों को ‘सी’ कहते हैं। जब ये तरंगें नियमित रूप से एक निश्चित गति तथा दिशा से आगे बढ़ती है तो इसे स्वेल कहते है। समुद्र तट पर शोर करती, टूटती हुई तरंगों को सर्फ कहते हैं। जब ये तरंगें समुद्र तट पर वेग से दौड़ती हैं, तो इन्हें स्वाश (swash) कहते हैं। समुद्र की ओर वापस लौटती हुई तरंगों को बैक वाश कहते हैं।
10. ज्वारभाटा किसे कहते हैं? चर्चा कीजिए।
उत्तर-ज्वारभाटा समुद्र की एक गति है। समुद्र जल नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार उठता है तथा दो बार नीचे उतरता है। समुद्र जल के इस नियमित उतार तथा चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं। पानी के ऊपर उठने की क्रिया को ज्वार तथा पानी के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा कहते हैं।
(i) प्रत्येक स्थान पर ज्वार तथा भाटा की ऊंचाई भिन्न-भिन्न होती है।
(ii) प्रत्येक स्थान पर ज्वार या भाटा की अवधि भिन्न-भिन्न होती है।
(iii) समुद्र जल लगभग 6 घटे और 13 मिनट तक ऊपर चढ़ता है और इतनी देर तक नीचे उतरता है।
(iv) ज्वारभाटा एक स्थान पर नित्य ही एक समय पर नहीं आता।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. दीर्घ ज्वार तथा लघु ज्वार में अंतर बताओ। ज्वार प्रतिदिन 50 मिनट विलम्ब से क्यों आते हैं?
उत्तर -दीर्घ ज्वार-सबसे ऊँचे ज्वार को दीर्घ ज्वार कहते है। यह स्थिति अमावस तथा पूर्णमासी के दिन होती है।
कारण -इस स्थिति में सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीध में होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की संयुक्त आकर्षण शक्ति बढ़ जाने से ज्वार शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य तथा चन्द्रमा के कारण ज्वार उत्पन्न हो जाते है। इन दिनो ज्वार अधिकतम ऊँचा तथा भाटा कम से कम नीचा होता है। दीर्घ ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% अधिक ऊँचा होता है।
लघु ज्वार -अमावस के सात दिन पश्चात् या पूर्णमासी के सात दिन पश्चात् ज्वार की ऊँचाई अन्य दिनों की अपेक्षा नीची रह जाती है। इसे लघु ज्वार कहते हैं। इस स्थिति को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते है जब आधा चाँद होता है।
कारण- इस स्थिति में सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी से समकोण स्थिति पर होते हैं। सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति विपरीत दिशाओं में कार्य करती है। सूर्य व चन्द्रमा के ज्वार तथा भाटा एक-दूसरे को घटाते है। इन दिनो उच्च ज्वार कम ऊंचा तथा भाटा कम नीचा होता है। लघु ज्वार प्रायः साधारण ज्वार की अपेक्षा 20% कम ऊँचा होता है।
2. ज्वार विलम्ब से क्यों आते है? किसी स्थान पर नित्य ज्वारभाटा एक ही समय पर नहीं आता, क्यों?
उत्तर-चन्द्रमा पृथ्वी के इर्द-गिर्द 29 दिन में पूरा चक्कर लगाता है। चन्द्रमा पृथ्वी के चक्कर का 29वाँ भाग हर रोज आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के सामने दोबारा आने में 24 घंटे से कुछ अधिक ही समय लगता है।
समय =24 घंटे 60 मिनट/29 दिन=50 मिनट।
दूसरे शब्दों में प्रत्येक 24 घंटों के पश्चात् चन्द्रमा अपनी पहली स्थिति से लगभग 13° आगे चला जाता है, इसलिए किसी स्थान को चन्द्रमा के ठीक सामने आने में 125×4 = 50 मिनट अधिक लग जाते हैं।
क्योकि दिन में दो बार ज्वार आता है इसलिए प्रतिदिन ज्वार 25 मिनट देरी के अंतर से अनुभव किया जाता है। पूरे 12 घंटे के बाद पानी का चढ़ाव देखने में नहीं आता, परन्तु ज्वार 12 घंटे 25 मिनट बाद आता है। 6 घंटे 13 मिनट तक जल चढ़ाव पर रहता है और पश्चात् 6 घटे 13 मिनट तक जल उतरता रहता है। ज्वार के उतार-चढ़ाव का यह क्रम बराबर चलता रहता है।
3. प्रशांत महासागर की धाराओं का वर्णन करे। इस महासागर के आस-पास के प्रदेशों पर इन धाराओं के प्रभाव वताएँ।
उत्तर-प्रशांत महासागर की धाराएं-प्रशांत महासागर में धाराओं का क्रम
अंधमहासागर के समान ही है। अधिक विस्तार तथा तट रेखा के कारण कुछ भिन्नता है।
मुख्य धाराएं निम्नलिखित है–
(i) उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा- यह गर्म पानी की धारा है जो मध्य अमेरिका के तट से चीन सागर तक बहती है। यह धारा व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूर्वी पश्चिमी दिशा में भूमध्य रेखा के समानान्तर बहती है
(ii) क्यरोसिवो धारा- -चीन सागर में फिलीपाइन द्वीप समूह के निकट पानी एकत्र होने से इस गर्म धारा का जन्म होता है। क्यूरोसिवो धारा चीन के तट के सहारे जापान तक पहुंच जाती है। दक्षिणी द्वीप से टकराकर इसकी दो शाखाएँ हो जाती है। बाहरी शाखा पूर्वी तट पर खुले सागर में बहती है जिसे क्यूरोसिवो धारा कहते है। भीतरी शाखा पूर्वी तट पर खुले सागर में पाश्चमी तट पर बहती है जिसे सुशीमा धारा कहते हैं। इस धारा का रंग गहरा नीला होता है। जापानी लोग इसे काली धारा भी कहते हैं।
(iii) उत्तरी प्रशांत ड्रिफ्ट-क्यूरोसिवो धारा जल 40° उत्तर अक्षांश को पार करके पूर्व की ओर मुड़ जाता है। इसे उत्तरी प्रशांत ड्रिपट कहते हैं।
(iv) कैलोफोर्निया की धारा-यह एक ठंडी धारा है जो कैलीफोर्निया के तट के साथ-साथ भूमध्य रेखा की ओर बहती है। इसके प्रभाव से इस तट की जवायु कठोर व शुष्क हो जाती है।
(v) क्यूराइल की धारा-यह एक ठंडी जल धारा है जो बैरिंग जलडमरूमध्य से साइवेरिया के पूर्वी तट के सहारे जापान के पूर्वी तट तक पहुँच जाती है, इसे ओयाशियो धारा भी कहते हैं।
(vi) दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा-यह एक शक्तिशाली गर्म धारा है, जो भूमध्य रेखा के दक्षिण में बहती है। यह धारा व्यापारिक पवना के प्रभाव से दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट से पश्चिम की ओर आस्ट्रेलिया के न्यूगिनी तक जाती है।
(vii) विपरीत भूमध्य रेखीय धारा -यह एक गर्म जलधारा है, जो भूमध्य रेखा के साथ-साथ शांत हवा की पेटी में पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। यह उत्तरी तथा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराओं की विपरीत दिशा में बहती है।
(viii) पूर्वी आस्ट्रेलिया धारा-फिजी द्वीप के निकट से आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट तक बहने वाली इस गर्म धारा को न्यू साउथ वेल्थ धारा भी कहते हैं। यह धारा न्यूजीलैंड द्वीप को घेर लेती है।
(ix) अंटार्कटिक ड्रिफ्ट-यह अत्यंत ठंडे जल की धारा है जो अंटार्कटिक का महाद्वीप के इर्द-गिर्द बहती है। दक्षिणी प्रशात महासागर में पश्चिमी पवनों के प्रभाव से यह धारा पूर्वी आस्ट्रेलिया से चिल्ली देश के तट तक बहती है।
(x) पेरू की धारा-यह ठंडी जलधारा को लेकर पेरू तक बहती है। यह धारा ऐटाकामा मरुस्थल की जलवायु को कठोर तथा शुष्क बना देती है।
4. अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(i) ठण्डी एवं गर्म महासागरीय धाराएँ
(ii) उच्च ज्वार एवं लघु ज्वार;
(iii) उद्धावन एवं पश्चधावन।
उत्तर-(i) ठण्डी एवं गर्म महसागरीय धाराएँ में अंतर:-
ठण्डी महासागरीय धाराएँ:-
(i) उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर बहती हैं।
(ii) फ्लोरिडा धारा का वेग समुद्री धरातल पर 10 किमी प्रतिघंटा तथा 200 मीटर की गहराई पर 3.5 किमी प्रतिघंटा है।
(iii) पछुवा पवनें पश्चिम से पूर्व की ओर बहती हैं।
गर्म महासागरीय धाराएँ:-
(i) ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के निम्न अक्षांशों से शीतोष्ण कटिबंधीय तथा
उपध्रुवीय क्षेत्रों के उच्च अक्षांशों की ओर प्रवाहित होती हैं।
(ii) गल्फ स्ट्रीम की चौड़ाई 80 किमी तथा गहराई 1.6 किमी है।
(iii) ऊष्ण कटिबंधीय पूर्वी पवनें पूर्व से पश्चिम को बढ़ती है।
(ii) उच्च ज्वार एवं लघु ज्वार में अंतर:-
उच्च ज्वार
(i) पृथ्वी, चन्द्रमा एवं सूर्य एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं।
(ii) यह घटना अमावस्या या पूर्णिमा के दिन घटती है।
(iii) इन दिनों ज्वार अधिकतम ऊँचाई प्राप्त करते हैं।
लघु ज्वार
(i) सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केन्द्र पर समकोण बनाते हैं।
(ii) यह घटना चन्द्र मास के दोनों पक्षों (कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष) की सप्तमी या अष्टमी को घटती है।
(iii) इन दिनों ज्वार की ऊँचाई घटकर सबसे कम हो जाती है।
(iii) उद्धावन तथा पश्चधावन में अंतर:-
उद्धावन
(i) तट के समीप शोर मचाती प्रहार करती हुई तरंग को स्वाश कहते है।
(ii) तरंग-शृंग के टूटने के पश्चात् इसका जल तीव्र गति से तट पर अपरदन
करता है।
पश्चधावन
(i) तटीय क्षेत्रों से सागर की ओर लौटती हुई तरंग को प्रतिक्षिप्त जल कहते हैं।
(ii) टूटती हुई तरंग जल के नीचे मलबे को लेकर पुनः समुद्र की ओर बढ़ती है।
5. संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(i) हिन्द महासागर की धाराएँ;
(ii) ज्वारभाटा की उत्पत्ति।
उत्तर -(i) हिन्द महासागर की धाराएँ-इन धाराओं का परिसंचरण प्रशांत तथा अटलांटिक महासागर की धाराओं के परिसंचरण से भिन्न है। हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में धाराओं का परिसंचरण प्रतिरूप मानसून के ऋतुनिष्ठ परिवर्तन का अनुसरण करता हुआ अपनी दिशा बदल लेता है। यहाँ शीत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु में धाराओं का उत्क्रमण दिखाई देता है। हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग में धाराओं का परिसंचरण प्रतिरूप अन्य दक्षिणी महासागरों के समान ही है, जो दिशा के दृष्टिकोण से घड़ी की सुइयों के प्रतिकूल है। महासागर के उत्तरी भाग में जल का परिसंचरण गर्मियों में घड़ी की सुइयों के अनुकूल होता है। दक्षिणी विषुवतीय धारा पश्चिम की ओर संचलन करती है। अफ्रीका के तट के पास यह दो भागों में बंट जाती है। इसका बड़ा भाग दक्षिण की ओर मोजाबिक तथा आगुलहास.धाराओं के रूप में पूर्व की ओर मुड़कर पश्चिमी पवन अपवाह के रूप में बहता है। आस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट के साथ यह आस्ट्रेलियन धारा के रूप में दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है और फिर दक्षिणी विषुवत् धारा से मिल जाती है। सर्दियों में उत्तरी पूर्वी मानसून धारा विषुवत् रेखा दक्षिण विरुद्ध धारा के रूप में पूर्व की ओर बहती है।
(ii) ज्वारभाटा की उत्पत्ति-ज्वारभाटा सागरों तथा महासागरों के जलस्तर में आवर्ती उतार-चढ़ाव है, जो सूर्य और चन्द्रमा के विभेदी आकर्षण के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। दिन में दो बार, लगभग प्रति 12 घंटे 26 मिनट के बाद समुद्र तल ऊपर उठता है तथा दो बार नीचे गिरता है। समुद्र तल के ऊपर उठने को ज्वार तथा नीचे गिरने को भाटा कहते हैं।
ज्वारभाटा की उत्पत्ति का मूल कारण चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति है। सर्वप्रथम न्यूटन ने यह बताया कि सूर्य, चन्द्रमा तथा ज्वारभाटा का आपस में कुछ संबंध है। चन्द्रमा अपने आकर्षण बल के कारण पृथ्वी के जल को आकर्षित करता है। स्थल भाग कठोर होता है, इस कारण खिच नहीं पाता परन्तु जल भाग तरल होने के कारण ऊपर उठ जाता है। यह जल चन्द्रमा की ओर उठता है। वहाँ पर आसपास का जल सिमटकर उठ जाता है जिसे उच्च ज्वार कहते है। जिस स्थान पर जलराशि कम रह जाती है वहाँ जल अपने तल से नीचे गिर जाता है, उसे लघु ज्वार कहते है। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर दिन-रात में दो बार ज्वार आता है। एक ही समय में पृथ्वी तल पर दो बार ज्वार उत्पन्न होते हैं। जब ठीक चन्द्रमा के सामने तथा दूसरा उससे विपरीत वाले स्थान पर जल ऊपर उठता है, इसे सीधा ज्वार कहते हैं। विपरीत भाग में अपकेंद्रीय बल के कारण जल ऊपर उठता है तथा उच्च ज्वार उत्पन्न होता है इसे अप्रत्यक्ष ज्वार कहते है। इस प्रकार पृथ्वी के एक ओर ज्वार आकर्षण शक्ति की अधिकता के कारण और दूसरी ओर अपकेन्द्रीय शक्ति की अधिकता के कारण उत्पन्न होते हैं।
6. यदि महासागरीय धाराएँ न होती, तो विश्व का क्या हुआ होता? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-महासागरीय धाराएँ मानव जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है-(i) जिन तटों पर गर्म या ठंडी धाराएं चलती हैं वहाँ की जलवायु क्रमश: गर्म या ठंडी हो जाती है। (ii) गर्म धारा के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापक्रम ऊँचा हो जाता है तथा जलवायु सम हो जाती है। ठंडी धारा के कारण शीतकाल में तापक्रम बहुत नीचा हो जाता है और वायु विषम व कठोर हो जाती है। (iii) गर्म धाराओं के समीप के प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है, परन्तु ठंडी धाराओं के समीप के प्रदेशों में कम वर्षा होती है। (iv) गर्म व ठंडी धाराओं के मिलने पर धुंध व कोहरा उत्पन्न होता है। (v) गर्म व ठंडी धाराओं के मिलने से गर्म वायु बड़े वेग से ऊपर उठती है तथा तीव्र तूफानी चक्रवात को जन्म देती है। (vi) गर्म धाराओं के प्रभाव से सर्दियों में बर्फ नहीं जमती तो बन्दरगाह व्यापार के लिए वर्ष भर खुले रहते हैं, परन्तु ठंडी धारा के समीप का तट महीनों बर्फ से जमा रहता है। ठंडी धाराएँ व्यापार में बाधक हो जाती हैं। (vii) धाराएँ जल मार्गों का निर्धारण करती हैं। ठंडे सागरों के साथ बहकर आने वाली हिमशिलाएँ जहाजों को बहुत हानि पहुंचाती हैं। इनसे मार्ग बचाकर समुद्री मार्ग निर्धारित किए जाते है। (viii) प्राचीन काल में धाराओं का जहाजों की गति पर प्रभाव पड़ता था। धाराओं की अनुकूल दिशा में चलने से जहाज की गति बढ़ जाती थी परन्तु विपरीत दिशा में चलने से उनकी गति मंद पड़ जाती थी।(ix)धाराओं के कारण समुद्र जल स्वच्छ, शुद्ध तथा गतिशील रहता है। (x) धाराएँ समुद्री जीवन का प्राण है। ये अपने साथ बहुत-सी गली-सड़ी वस्तुएँ बहाकर लाती है। ये पदार्थ मछलियों के भोजन का आधार हैं।
ऊपर लिखित बातों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि धाराएं न होती तो प्रकृति ही अस्त-व्यस्त हो जाती। समुद्री प्राणियों का जीवन असंभव हो जाता है। जलवायु व्यापार, तापक्रम तथा मानव जीवन पर विपरीत प्रभाव होता और सारे विश्व का अस्तित्व ही बदल जाता। इसलिए धाराएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
7. महासागरीय धाराओं का वेग कैसे मापा जाता है?
उत्तर-तरंग का ऊपरी भाग शीर्ष तथा निम्न भाग गर्त कहलाता है। दो क्रमिक अथवा गर्तों के मध्य की दूरी को तरंगदैर्ध्य कहते हैं। किसी निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो क्रमिक तरंगों के बीच के समय को तरंग आवर्त काल कहते हैं। संचलन करती हुई तरंग का वेग निम्न विधि से निश्चित किया जा सकता है-
तरंग का वेग=तरंगदैर्घ्य/तरंग आवर्त काल
160 किमी प्रति घंटा हो तो यह पवन 1,600 किमी विशाल समुद्री क्षेत्र में लगातार 50 घंटे तक चले तो 15 मीटर ऊँची तरंगों की उत्पत्ति हो सकती है। शक्तिशाली तूफानों के समय तरंगों की ऊंचाई बढ़ जाती है। 12 से 15 मीटर तक ऊंची तरंगों का वेग 30 से 100 मीटर प्रति घंटा होता है तथा इनकी तरंगदैर्ध्य 60 से 120 मीटर के मध्य होती है।