bihar board 8th history notes | अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
bihar board 8th history notes | अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
bihar board 8th history notes | अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव
पाठ का सारांश-अंग्रेजी सत्ता के बाद भारत के गाँवों और शहरों, दोनों का जीवन बदल गया था। औपनिवेशिक काल में शहरों में कई तरह के व्यवसाय किये जाते थे। शहरों में व्यापारी, शिल्पकार, शासक तथा अधिकारी रहते थे। अक्सर शहरों की किलेबंदी की जाती थी।
सोलहवीं और सत्रहवीं सदी में मुगलों द्वारा बसाए गए शहर जनसंख्या के जमाव, विशाल भवनों और शहरी समृद्धि के लिए प्रसिद्ध थे। आगरा, दिल्ली, लाहौर जैसे शहर मुगल प्रशासन और सत्ता के महत्वपूर्ण केन्द्र थे। मध्यकाल में इन प्रशासनिक शहरों के अतिरिक्त दक्षिण भारत में मदुरई, तंजावूर, कांचीपूरम जैसे शहर मंदिरों के लिए प्रसिद्ध थे। यहाँ तीर्थ और व्यापार के लिए चहल-पहल रहती थी।
शहरी केन्द्रों में परिवर्तन: – अठारहवीं सदी से शहरों की स्थिति में बदलाव आने लगा। मुगल सत्ता से सम्बद्ध शहरों का पतन होने लगा। अंग्रेजी शासन के केन्द्र लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगापटम, पुणा, नागपुर, बड़ौदा आदि नये शहरी केन्द्रों के रूप में स्थापित होने लगे। व्यापारिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण भी शहरी केन्द्रों में बदलाव के चिह्न देखे गये। गोवा, मछलीपट्टनम, मद्रास (चेन्नई), पांडिचेरी (पुदुचेरी) व्यापारिक केन्द्रों के कारण विकसित शहर बनने लगे। ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार केन्द्र होने के कारण मद्रास, चेन्ई, कलकत्ता (कोलकाता), बम्बई (मुम्बई) का महत्व ‘प्रसिडेंसी शहरों’ के रूप में उभरा । इन शहरों में नये भवनों व संस्थानों का विकास हुआ। नए रोजगार विकसित हुए और शहरों में गाँवों से अधिक लोग आने लगे।
साथ ही मुर्शिदाबाद, ढाका, सूरत, मछलीपट्टनम जैसे शहरों से अंग्रेजी सत्ता के कारण व्यापार सिकुड़ने लगा तो ये शहर उजड़ते गये, जो कभी व्यापार के महत्वपूर्ण केन्द्र थे।
1853 में रेलवे की शुरुआत हुई । रेलवे के विस्तार के बाद रेलवे वर्कशॉप (कारखाना) और रेलवे कॉलोनियों की स्थापना शुरू हो गयी। इसी समय जमालपुर और बरेली जैसे रेलवे शहर भी अस्तित्व में आए।
कानपुर और जमशेदपुर सही मायनों में औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हुए। कानपुर में सूती एवं ऊनी कपड़े तथा चमड़े की वस्तुएं बनती थीं, जबकि जमशेदपुर स्टील उत्पादन के लिए विख्यात हुआ। अठारहवीं सदी के मध्य तक कलकत्ता, बम्बई और मद्रास तेजी से विशाल शहर बन गए।
ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपने कारखाने (वाणिज्यिक कार्यालय) इन्हीं शहरों में बनाए।
शहरी जीवन और सामाजिक परिवेश:-शहरों में सम्पन्नता और गरीबी दोनों साथ-साथ दिखाई देते थे। जहाँ शहरों में अमीर, व्यापारी वर्ग थे वहीं शहरों में रोजगार के नये-नये अवसर बढ़ने से गाँवों से लोग शहरों में काम करने आने लगे पर ये गरीबी और दरिद्रता के माहौल में रहने को मजबूर थे।
अतीत के आइने में भागलपुर शहर: – विहार में गंगा नदी के किनारे बसा भागलपुर शहर बारहवीं सदी से अठारहवीं सदी के मध्य इस शहर पर मुसलमानों का शासन था। तब यह सूफी संस्कृति का एक अहम केन्द्र हुआ करता था। घने मुहल्लों और दर्जनों बाजारों से घिरा भागलपुर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं व्यावसायिक शहरी केन्द्र था। इस शहर में ऐशो-आराम सिर्फ कुछ अमीर लोगों के हिस्से में आते थे। अमीर और गरीब के फासला बहुत गहरा था।
औपनिवेशिक काल में भागलपुर शहर:—यह शहर तीन कस्बों चम्पा, भागलपुर और बरारी को मिलाकर विकसित हुआ। आज तीनों कस्बे भागलपुर नगरपालिका के अंतर्गत हैं। उन्नीसवीं सदी में आधुनिक शिक्षा के प्रसार, भू-राजस्व व्यवस्था एवं व्यवसायों के नये अवसर के कारण बंगालियों एवं मारवाड़ियों का इस शहर में बसना शुरू हो गया। शहर की आबादी बढ़ी, रोजगार बदले, संस्कृति भी बदल गई । उर्दू-फारसी पर आधारित शहरी संस्कृति नई रुचियों के नीचे दब गई। बंगाली विभिन्न आधुनिक व्यवसायों व सेवा अवसरों में छा गये। यह शिक्षा के क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा किये गये प्रयासों के कारण हुआ। मारवाड़ी, जायसवाल, बनिया, व्यापार में छा गये।
ब्राह्मण और कायस्थ शिक्षा के बल पर सरकारी पदों पर काबिज हुए । मुस्लिम वर्ग व्यापारी, कारीगर, बुनकर व मजदूर का काम करते थे। मुस्लिम जुलाहे और हिन्दू तांती जाति के बुनकर रेशमी कपड़े और धागे तैयार करते थे।
1862 ई. में रेलवे की शुरुआत और शिक्षण संस्थाओं की स्थापना ने भागलपुर शहर की कायापलट ही कर दी। रोजगार, व्यवसाय, शिक्षा और अन्य सुविधाओं की उम्मीद में गाँवों व अन्य स्थानों से काफी लोग इस शहर में आने-बसने लगे। गरीब और कामगारों का नया वर्ग ठभरा जो गंगा नदी के किनारे कच्ची झोंपड़ियों में रहने लगे।
ब्रिटिश शासन की भू-राजस्व नीति के परिणामस्वरूप अनेक जमींदार परिवारों का भी शहर में गमन हुआ। कई कस्वों को मिलाकर भागलपुर शहर दूर तक फैली अल्प सघन आबादी वाला शहर बन गया और इसके इर्द-गिर्द नए उपशहरी इलाके बन गए।
व्यवसाय, व्यापार और उद्योग:- रेलवे और गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण भागलपुर शहर की व्यापारिक गतिविधियों में और भी तेजी आई। नतीजा यह हुआ कि भागलपुर एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक शहर बन गया । भागलपुर शहर का सबसे प्रसिद्ध उद्योग तसर सिल्क का कपड़ा तैयार करना था। यह व्यवसाय बहुत पुराने समय से चला आ रहा था। इसलिए इस शहर को सिल्क सिटी भी कहते हैं। यहाँ 810 में करीब 3275 करघे चल रहे थे। यहाँ का तैयार कपड़ा यूरोपीय देशों को भेजा जाता था। वहाँ इसकी बहुत मांग थी।
शासन प्रबंध:-1774 ई. में भागलपुर को जिला बनाया गया। 1936 तक यह जिला चार सब डिविजनों (भागलपुर सदर, बाँका, मधेपुरा, सुपौल) में बँटा था। जिले में न्याय विभाग का सबसे बड़ा अफसर डिस्ट्रिक्ट एवं सेशन्स जज (जिला एवं सत्र न्यायाधीश) कहलाता था। जिले में पुलिस विभाग का सबसे बड़ा अफसर सुपरिटेन्डेंट ऑफ पुलिस (एस. पी.) कहलाता था।
नगरपालिका:–10 वर्ग मील क्षेत्र में विस्तृत भागलपुर शहर के नगरपालिका की स्थापना 1864 ई. में हुई। 1887 ई. में भागलपुर नगरपालिका द्वारा एक जलागार का निर्माण किया गया। शहर की कुल आबादी 1872 ई. में 65,377 थी जो 1931 में 83,847 हो गयी।
शैक्षणिक विरासत:-प्राचीनकाल से भागलपुर शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र था । प्राचीनकाल में अंतीचक (भागलपुर के नजदीक) का विक्रमशीला विश्वविद्यालय था तो मध्यकाल में मौलानायक का खानकाह शहबाजिया हुआ करता था। ब्रिटिश काल में प्राथमिक शिक्षा, दापर सेकेण्डरी शिक्षा और उच्च शिक्षा के प्रचार-प्रसार में यहाँ के जमींदार, बंगाली, मारवाड़ी, ईसाई समुदाय की अहम् भूमिका रही है। इनके द्वारा स्थापित शैक्षणिक संस्थान आज भी यहाँ की शैक्षणिक विरासत को जिन्दा रखे हुए हैं महिला शिक्षा की दिशा में भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। रोजगारपरस्त शिक्षा के लिए 1947-51 में सिल्क इंस्टीट्यूट, नाथनगर में शुरू किया गया था। यहाँ पुस्तकालयों की भी अच्छी संख्या है।
सांस्कृतिक गतिविधियाँ:- स्वतंत्रतापूर्व भागलपुर की सांस्कृतिक विरासत भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही है। शहर में अनेक नामीगिरामी साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी, शिल्पकारों, संगीतकारों एवं फोटोग्राफरों का जमघट लगता था । तब बंगला साहित्य का शहर पर बहुत अधिक प्रभाव था। शरतचन्द्र चटर्जी, विभूति भूषण बंधोपाध्याय, रवीन्द्रनाथ टैगोर भागलपुर प्रवास कर चुके थे। डॉ. शिवनंदन प्रसाद (व्यंग्य), डॉ. शिवशंकर वर्मा (कथा लेखन), जनार्दन प्रसाद झा द्विज, बलाई चंद्र मुखर्जी (बनफूल) आदि रचनाकारों ने भागलपुर का गौरव अपने साहित्य लेखन से बढ़ाया। अभिनय भारती संस्था ने यहाँ रंगमंचीय आंदोलन को आगे बढ़ाया।
धार्मिक स्थल यहाँ कई धार्मिक स्थल भी दर्शनीय हैं। जैसे—बाबा बुढ़ानाथ महादेव मंदिर, दिगम्बर जैन मंदिर, श्वेताम्बर जैन मंदिर, सिक्खों के उपासना स्थल एवं इसाईयों के गिरिजाघर आदि ।
सार्वजनिक भवन:–यहाँ कई उत्कृष्ट सार्वजनिक भवन तत्कालीन शासकों एवं स्थानीय जमीन्दारों की रुचि, पसंद और इच्छाओं, कलात्मक अभिव्यक्तियों को दर्शाते हैं। पुराना रेलवे स्टेशन, क्लिवलैंड हाउस, रवीन्द्र भवन घंटाघर, टाउन हॉल कई दर्शनीय सार्वजनिक भवन हैं यहाँ।
पाठ के अन्दर आए प्रश्नों के उत्तर
1. औपनिवेशिक शहर, मध्यकालीन शहर से किस प्रकार भिन्न थे? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर-मध्यकालीन शहर परम्परागत व्यवसायों, शासन-सत्ता के केन्द्र व मन्दिरों के केन्द्र होने के कारण विकसित हुए थे। जबकि औपनिवेशिक शहर, अंग्रेजों के आधुनिक व्यवसाय-वाणिज्य के कारण विकसित हुए थे। औपनिवेशिक शहरों के विकास के साथ-साथ मध्यकालीन शहरों
में वस्तुओं के उत्पादन कम होने लगे, उन वस्तुओं की मांग घटने लगी और ये शहर उजड़ने लगे।
2. भागलपुर एक व्यावसायिक शहर था । क्या आप इस विचार से सहमत हैं ?
उत्तर-हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि भागलपुर एक व्यावसायिक शहर था। यहाँ प्राचीनकाल से ही तसर सिल्क का कपड़ा तैयार होता था जिस कारण इसे सिल्क सिटी कहा जाता था । यहाँ के बने उत्कृष्ट व कलात्मक कपड़ों की मांग यूरोपीय देशों में भेजा जाता था जहाँ इसकी बहुत मांग थी।
3. आप किसी शहर के शैक्षणिक, धार्मिक, सार्वजनिक एवं सरकारी भवन की सूची बनाएं तथा जानकारी प्राप्त करें कि इनका निर्माण कब हुआ? आप यह बताएं कि इसका उपयोग किस काम के लिए किया जाता है ?
संकेत—यह परियोजना कार्य आप अपने शिक्षक के सहयोग से स्वयं करें।
अभ्यास
आइये फिर से याद करें-
1. सही या गलत बताएं-
(i) भागलपुर शहर का विकास औपनिवेशिक शहरों से भिन्न परम्परागत शहर के रूप में हुआ।
(ii) मुस्लिम काल में भागलपुर शहर सूफी संस्कृति का केन्द्र नहीं था।
(iii) उन्नीसवीं सदी में भागलपुर में बंगाली और मारवाड़ी समुदाय का आगमन हुआ।
(iv) भारत में आधुनिक शहरों का विकास औद्योगीकरण के साथ हुआ।
(v) प्रेसिडेंसी शहरों में ‘गोरे’ और ‘काले’ लोग अलग-अलग इलाकों में रहते थे।
उत्तर-(i) सही, (ii) गलत, (iii) सही, (iv) सही, (v) सही।
2. निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ-
(क) प्रेसिडेंसी शहर (क) बरेली, जमालपुर
(ख) रेलवे शहर (ख) बम्बई, कलकत्ता, मद्रास
(ग) औद्योगिक शहर (ग) कानपुर, जमशेदपुर
उत्तर-
(क) प्रेसिडेंसी शहरn (ख) बम्बई, कलकत्ता, मद्रास
(ख) रेलवे शहर
(ग) औद्योगिक शहर (ग) कानपुर, जमशेदपुर
3. रिक्त स्थानों को भरें-
(क) भागलपुर नगरपालिका की स्थापना ………ई. में हुई थी।
(ख) भागलपुर में सिल्क कपड़ा उत्पादन का केन्द्र…… था।
(ग) भागलपुर में सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संस्कृतिकर्मी……… थे।
(घ) रेलवे स्टेशन कच्चे माल का ….. और आयातित वस्तुओं का…..था।
(ङ) कालजयी उपन्यास……. की रचना शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने की थी।
उत्तर-(क) 1864, (ख) चम्पानगर, नाथनगर मोहल्ला, (ग) शरतचन्द्र, अशेंदु बाबु, हरिकुंज, (घ) संग्रह केन्द्र, वितरण बिन्दु, (ङ) देवदास ।
आइए विचार करें-
(i) शहरीकरण का आशय क्या है?
उत्तर–व्यापारिक एवं राजनीतिक कारणों से किसी क्षेत्र में होनेवाली विकास एवं समृद्धि के उस क्षेत्र में शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। धार्मिक केन्द्र के रूप में भी जब किसी क्षेत्र में आस-पास के लोगों का वहाँ आकर बसना शुरू हो जाता है तो उस क्षेत्र में शहरीकरण शुरू हो जाता है।
किसी क्षेत्र में जब अमीर वर्ग एवं गरीब वर्ग दोनों रहते हों और वहाँ व्यापार फलना-फूलना शुरू हो जाता है तो उस क्षेत्र में शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
(ii) अठारहवीं सदी में नये शहरी केन्द्रों के विकास की प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर-अठारहवीं सदी में शहरों की स्थिति में बदलाव आने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक गतिविधियों में परिवर्तन के साथ पुराने शहर पतनोन्मुख हुए और नए शहरों का विकास होंने लगा। मुगल सत्ता के धीरे-धीरे कमजोर होने के कारण शासन से संबद्ध शहरों का पतन होने लगा। नई क्षेत्रीय शासन केन्द्र लखनऊ, हैदरावाद, सेरिंगापटम, पुणा, नागपुर, बड़ौदा आदि नये शहरी केन्द्रों के रूप में स्थापित होने लगे । व्यापारी, शिल्पकार, कलाकार, प्रशासक तथा अन्य विशिष्ट सेवा प्रदान करने वाले लोग इन नये शासक केन्द्रों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे । व्यापारिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण भी शहरी केन्द्रों में बदलाव के चिह्न देखे गये । यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगल काल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए जैसे पुर्तगालियों ने गोवा में, डचों ने मछलीपट्टनम में, अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) में, फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी (पुदुचेरी) में। व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के कारण इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास शहर विकसित होने लगे। जब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगी तब पुराने व्यापारिक केन्द्र और बंदरगाह अपना महत्व खोने लगे।
(iii) ग्रामीण एवं शहरी अर्थव्यवस्था के अंतर को स्पष्ट करें।
उत्तर— गाँव के लोगों का मुख्य काम खेती होता है जबकि शहरों में अन्य तरह के व्यवसाय किए जाते हैं। गाँवों में अधिकांशतः किसान और खेती के कामों से जुड़े मजदूर व छोटे-मोटे काम करने वाले लोग और छोटे स्तर पर सब्जियाँ, राशन व अन्य दैनिक कामों में आने वाले वस्तुओं के छोटे दुकानदार रहते हैं। जबकि शहरों में छोटे-मध्यम के बड़े व्यापारी, शिल्पकार, शासक तथा अधिकारी रहते हैं। पहले अक्सर शहरों की किलेबंदी की जाती थी, जो ग्रामीण क्षेत्रों से इसके अलगाव को चिह्नित करती थी। शहरों का ग्रामीण जनता पर प्रभुत्व होता था और वे खेती से प्राप्त करों और अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे। अत: ग्रामीण एवं शहरी अर्थव्यवस्था में स्पष्ट और बड़ा अंतर था ।
(iv) भागलपुर शहर एक व्यावसायिक एवं सांस्कृतिक नगर था। कैसे?
उत्तर–प्राचीन भागलपुर शहर की पहचान एक व्यावसायिक और सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में रही है। घने मुहल्लों और दर्जनों बाजार से घिरा भागलपुर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं व्यावसायिक शहरी केन्द्र था। शायरी एवं नृत्य संगीत आमतौर पर मनोरंजन के साधन थे। इस शहर में ऐशो-आराम सिर्फ कुछ अमीर लोगों के हिस्से में आते थे। अमीर और गरीब के बीच फासला बहुत गहरा था । यहाँ व्यापारी, अधिकारी, सरकारी छोटे-बड़े कर्मचारी, कारीगर, जुलाहे, बुनकर, मजदूर; हर वर्ग के लोग रहते थे। रेलवे का विकास और शहर से सटे रेलवे और गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण शहर की व्यापारिक गतिविधियों में और भी तेजी आई जिससे महत्वपूर्ण व्यावसायिक शहर के रूप में इसे विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ । यहाँ बैंकिंग, कम्पनियों के विक्रय एजेंट, हड्डी के काम के अतिरिक्त सिल्क, सूती, ऊनी कपड़े, किराना, अनाज, तेल का थोक व्यापार होता था। इस शहर का सबसे प्रसिद्ध उद्योग तसर सिल्क का कपड़ा तैयार करना था। यह व्यवसाय बहुत पुराने समय से चला आ रहा था। जिसके कारण इसे सिल्क सिटी भी कहा जाता है। यहाँ का कपड़ा यूरोपीय देशों को भेजा जाता था, जहाँ इसकी बहुत मांग थी।
भागलपुर की सांस्कृतिक विरासत भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही है। इस शहर में अनेक नामी-गिरामी साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी, शिल्पकार, संगीतकारों एवं फोटोग्राफों का जमघट लगा रहता था । नामी लेखक शरतचन्द्र, विभूति भूषण बंधोपाध्याय, रविन्द्रनाथ टैगोर
भागलपुर प्रवास कर चुके थे। प्रसिद्ध लेखक बलाई चंद्र मुखर्जी उर्फ बनफूल ने यहाँ लंबे समय तक लेखन कार्य किया था। साहित्यकार व रंगकर्मी राधाकृष्ण सहाय यहीं के थे जिन्होंने कई रचनाओं का बंगला से हिन्दी में अनुवाद किया । शरतचन्द्र ने कालजयी उपन्यास ‘देवदास’, विभूति भूषण बंधोपाध्याय ने ‘पाथेर पांचाली’ का सृजन भागलपुर में ही रहकर किया। अतः भागलपुर शहर एक व्यावसायिक एवं सांस्कृतिक नगर था।
(v) भागलपुर को सिल्क सिटी (रेशमी शहर) कहा जात है। क्यों?
उत्तर-भागलपुर शहर का सबसे प्रसिद्ध उद्योग तसर सिल्क का कपड़ा तैयार करना था। यह व्यवसाय यहाँ बहुत पुराने समय से चला आ रहा था। इसलिए इस शहर को सिल्क सिटी भी कहा जाता है। यहाँ 1810 में करीब 3275 करघे चल रहे थे। इस व्यवसाय का प्रमुख केन्द्र चम्पानगर और नाथनगर मुहल्ला था। रेशम और सूत की मिलावट से ‘बाफ्टा’ तैयार किया जाता था। यहाँ का कपड़ा यूरोपीय देशों को भेजा जाता था, जहाँ इसकी बहुत मांग थी। इन्हीं कारणों से भागलपुर को सिल्क सिटी (रेशमी शहर) कहा जाता था।
(vi) शहरों के सामाजिक परिवेश को समझाएँ।
उत्तर-शहरों में कई तरह के व्यवसाय किये जाने से यहाँ हर वर्ग के लोग व्यापारी, शिल्पकार, शासक, अधिकारी, कामगार, मजदूर, बुनकर, जुलाहे प्रायः हर वर्ग के लोग रहते हैं।पर वहाँ मुख्य तौर पर तीन वर्ग दिखते हैं। एक तो बहुत अमीर लोग जो शासन या व्यापार से जुड़े होते हैं। दूसरे, मध्य वर्ग जो कि शासन से जुड़े अधिकारी या कर्मचारी होते हैं और तीसरे मजदूर या घरों में काम करने वाले कामगार और अन्य बेहद गरीब लोग । अमीर लोग सुविधा सम्पन्न घरों या आलीशान, भवनों में रहते हैं जबकि गरीब लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में, जहाँ सुविधा बिल्कुल नगण्य होती है।