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bihar board 12th political science | भारतीय राजनीति : नए बदलाव

bihar board 12th political science | भारतीय राजनीति : नए बदलाव

            (RECENT DEVELOPMENT IN INDIAN POLITICS)
                                      याद रखने योग्य तथ्य
• इंदिरा गाँधी की हत्या-31 अक्टूबर, 1984
• राजीव का प्रधानमंत्री का कार्यकाल एवं राजीव की हत्या वर्ष-1984-1991 तथा
राजीव की हत्या का वर्ष 1991
• मंडल मुद्दा-मंडल आयोग की सिफारिशों के कारण अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के
आरक्षण दिए जाने से उस आरक्षण के समर्थन और विरोध के बीच चले विवाद।
• नई आर्थिक नीति लागू का वर्ष-1991
• संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन या संप्रग-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) के नेतृत्व
में बनी संयुक्त मोर्चे की सरकार जिसे वाम मोर्चा बाहर से (मनमोहन सिंह की सरकार)
समर्थन दे रहा है (2004 से आज तक)।
• ओबीसी-अन्य पिछड़ा वर्ग (अदर बैकवर्ड्स कास्ट)।
• मंडल आयोग द्वारा सिफारिशें प्रस्तुत करना-1980।
• ओबीसी को आरक्षण प्रतिशत-27 प्रतिशत।
• इंदिरा साहनी केस–सर्वोच्च न्यायालय में ओबीसी को सरकार द्वारा आरक्षण के विरुद्ध
याचिका दायर हुआ था।
• लोकतंत्र-वह सरकार जिसमें अंतिम तौर पर सत्ता के बारे में निर्णय लेना जनता (या
मतदाताओं के हाथों में होता है। यह सरकार जनता की, जनता द्वारा तथा जनता के लिए
कार्य करने वाली कहलाती है।
• भाजपा-1980 में गठित भारतीय जनता दल, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण
आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली जैसे इसके नेता हैं।
• संस्कृति अनेक लोग जीने के ढंग को संस्कृति मानते हैं। जीवन में साहित्य, विभिन्न
कलाएँ, आचार-व्यवहार तथा अभिव्यक्ति, आदि का ढंग (सलीका) भी शामिल होता है।
• गुजरात में सांप्रदायिक दंगे-गोधरा स्टेशन पर कुछ स्वयं सेवकों को जीवित जलाया
जाना तथा उसके बाद प्रतिक्रिया के रूप में मुस्लिम संप्रदाय विरोधी भड़के दंगे तथा
प्रशासन तथा पुलिस की उदासीनता।
• 2004 के लोक सभा चुनाव-राजग (NDA) मोर्चा आर्थिक हारा तथा संप्रग या
संयुक्त प्रगतिशील वामपंथी मोर्चे के बाहरी समर्थन से मनमोहन सिंह की सरकार बनी।
• देश में बढ़ती सहमति की चार प्रमुख बातें-(1) नई धार्मिक नीति पर सहमति। (2)
पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति। (3) देश के शासन में
प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति। (4) विचारात्मक पक्ष की बजाय कार्यसिद्धि पर बल
तथा विचारधारा सहमति के बगैर राजनीतिक गठजोड़ करना।
           एन-सी ई-आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षापयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
                                                      वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. उन्नी-मुन्नी ने अखवार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया है। आप इन्हें कालक्रम के
अनुसार व्यवस्थित करें :
Uncramble a bunch of disarranged press clipping file of Unni-Munni…and
arrange the file chronologically.
(क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(Mandal Recommendations and Anti Reservation Stir)
(ख) जनता दल का गठन (Formation of the Janata Dal)
(ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस (The demolition of Babri Masjid)
(घ) इंदिरा गाँधी की हत्या (Assassination of Indira Gandhi)
(ङ) राजग सरकार का गठन (The formation of NDA government)
(च) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम (Godhra incident and its fallout)
(छ) संप्रग सरकार का गठन (Formation of the USA government)
                                                                             [NCERT,T.B.Q.1]
उत्तर-कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित निम्नलिखित ढंग मे किया जा सकता है
(1) (ख) जनता दल का गठन
(2) (क) मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
(3) (घ) इंदिरा गांँधी का हत्या
(4) (ग) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(5) (ङ) राजग सरकार का गठन
(6) (च) गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
(7) (छ) संप्रग सरकार का गठन
2. निम्नलिखित घटनाओं को कालक्रम के अनुसार ठीक व्यवस्थित करके लिखें:
(क) इस दशक में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों में अफरातफरी मची।
(ख) इंदिरा गांँधी की हत्या के बाद लोकसभा के प्रथम आम चुनाव हुए।
(ग) इस वर्ष के उपरान्त अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की राजनीति ने अहम भूमिका
निभाई।
(घ) इस वर्ष भारत में नई आर्थिक नीति शुरू की गई।
(ङ) इस वर्ष चंद्रशेखर भूतपूर्व प्रधानमंत्री का निधन हुआ।
(च) इस वर्ष प्रसिद्ध पिछड़े वर्ग के आरक्षण के आयोग को अध्यक्ष जनता पार्टी में
शामिल हुए थे।
(छ) कांशीराम ने बसपा का गठन किया।
उत्तर- (च) 1977 में प्रसिद्ध पिछड़े वर्ग के आरक्षण के आयोग को अध्यक्ष जनता पार्टी
में शामिल हुए थे।
(छ) 1984 में कांशीराम ने बसपा को गठन किया।
(ख) 1984 में इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद लोकसभा के प्रथम आम चुनाव हुए।
(ग) 1989 के उपरान्त अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण की राजनीति ने अहम भूमिका निभाई।
(क) 1990 के दशक में भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों में अफरा तफरी मची।
(घ) 1991 में भारत में नई आर्थिक नीति शुरू की गई।
(ङ) 2007 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का निधन हुआ।
3. निम्नलिखित में मेल करें :
(क) सर्वानुमति की राजनीति                   1. शाहबानो मामला
(Politics of Consensus)                   (Shah Bano case)
(ख) जाति आधारित दल                       2. अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(Caste based parties)                      (Rise of OBCs)
(ग) पर्सनल लॉ और लैगिक न्याय            3. गठबंधन सरकार
(Personal law and Gender             (Coalition government)
Justice)
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत         4. आर्थिक नीतियों पर सहमति
(Growing strength of Regional       (Agreement on Economic
Parties)                                                policies)
                                                                                  [NCERT, T.B.Q. 2]
उत्तर-
(क) सर्वानुमति की राजनीति               4. आर्थिक नीतियों पर सहमति
(ख) जाति आधारित दल                    2. अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(ग) पर्सनल लॉ और लैगिक न्याय         1. शाहबानो मामला
(घ) क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत      3. गठबंधन सरकार
4. भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था- [Board Exam.2009A; B.M.2009A]
(क) 25 जून, 1975
(ख) 6 अप्रैल, 1980
(ग) 25 जुलाई, 1978
(घ) 6 मार्च, 1982                        उत्तर-(ख)
5. देश में घटित 26.11.2008 की घटना किससे संबंधित है।         [B.M. 2009A]
(क) क्षेत्रवाद
(ख) जातिवाद
(ग) नक्सलवाद
(घ) आतंकवाद                                        उत्तर-(घ)
6. स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में गृहमंत्री कौन था?                 [B.M. 2009A]
(क) सरदार बल्लभ भाई पटेल
(ख) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
(ग) जगजीवन राम
(घ) डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी                       उत्तर-(क)
7. भारत ने श्रीलंका से अपनी शांति सेना कव वापस बुला ली? [B.M. 2009A]
(क) 1987 में
(ख) 1989 में
(ग) 1992 में
(घ) 1991 में                                                     उत्तर-(ख)
8. गठबंधन सरकारों के होने से संसदीय व्यवस्था में क्या प्रमुख खामियाँ आयी हैं?
                                                                                [B.M. 2009A]
(क) राष्ट्रपति की दुर्बल स्थिति
(ख) प्रधानमंत्री की सबल स्थिति
(ग) क्षेत्रीय दलों का उदय
(घ) सामूहिक उत्तरदायित्व के सूत्र की अवहेलना            उत्तर-(घ)
9. राजीव गाँधी की हत्या कब हुई?                        [B.M.2009A]
(क) अक्टूबर, 1984
(ख) मई, 1991
(ग) जुलाई, 1993
(घ) अगस्त, 1996                                               उत्तर-(ख)
10. 6 दिसम्बर, 1992 को इनमें से कौन-सी घटना हुई?             [B.M.2009A]
(क) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(ख) जनता दल का गठन
(ग) राजग सरकार का गठन
(घ) गोधरा कांड                                          उत्तर-(क)
11. डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के गठबंधन का क्या नाम है? [B.M. 2009A]
(क) संप्रग
(ख) राजग
(ग) पंजाब गठबंधन
(घ) सभी                                        उत्तर-(क)
12. विधायिका में महिलाओं को कितना प्रतिशत आरक्षण देने हेतु विधेयक पर लंबे
समय से संसद में निर्णय नहीं हो पाया है?                 [B.M. 2009A]
(क) 50 प्रतिशत
(ख) 33 प्रतिशत
(ग) 40 प्रतिशत
(घ) 25 प्रतिशत                                 उत्तर-(ख)
13. कांशीराम किस राजनीतिक दल के संस्थापक हैं?            [B.M.2009A]
(क) बहुजन समाज पार्टी
(ख) शिव सेना
(ग) राष्ट्रीय जनता दल
(घ) लोक जनशक्ति पार्टी                         उत्तर-(क)
14. भारतीय संसद पर आक्रमण किया गया था-              [B.M. 2009A]
(क) 2005
(ख) 2006
(ग) 2001
(घ) 2002                                              उत्तर-(ग)
15. भारतीय शांति सेना को श्रीलंका कब भेजा गया?            [B.M.2009A]
(क) 1987
(ख) 1988
(ग) 1989
(घ) 1990                                              उत्तर-(क)
16. भारत में नई आर्थिक नीति के संचालक हैं-                   [B.M.2009A]
(क) डॉ. मनमोहन सिंह
(ख) यशवंत सिन्हा
(ग) वी. पी. सिंह
(घ) इनमें से कोई नहीं                               उत्तर-(क)
                                           अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. 1990 का दशक भारतीय राजनीति में नए बदलाव का दशक क्यों माना जाता है?
संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-(i) 1984 में भारत के प्रथम महिला प्रधानमंत्री के अंगरक्षकों द्वारा 1984 में हत्या।
लोकसभा के चुनाव सहानुभूति की लहर में कांग्रेस का विजयी होना और उनके पुत्र राजीव गांधी
का प्रधानमंत्री बनना परंतु 1989 में कांग्रेस की हार और 1991 में मध्यावधि का चुनाव होना। (ii) राष्ट्रीय राजनीति में मंडल मुद्दा (ओ.बी.सी.) का उदय होना। (iii) विभिन्न सरकारों द्वारा नई
आर्थिक नीति और सुधारों को अपनाकर, उदारीकरण, वैश्वीकरण को बढ़ावा देना। (iv) अयोध्या
में स्थित एक विवादित ढांँचे का विध्वंस, देश में सामाजिक सांप्रदायिक तनाव और दंगे देश में
गठबंधन की राजनीति तेजी से उदित होना और नए राजनैतिक दलों के रूप में भाजपा, उसके
सहयोगी और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के समर्थक दलों का तेजी से उत्थान।
2. गठबंधन युग से कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर-(i) 1989 के चुनाव में कांग्रेस की हार। राष्ट्रीय मोर्चा का जनता दल और कुछ अन्य
क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाया जाना दो राजनैतिक समूहों (वाममोर्चा जिसमें चार पार्टियाँ
सी-पी-आई., सी.पी. एम., फारवर्ड ब्लाक और रिपब्लिकन पार्टी है) भाजपा के समर्थन में वी.पी. सिंह द्वारा सरकार का गठन। (ii) राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार कुछ महीनों के लिए चंद्रशेखर के नेतृत्व में भी रही। (iii) संयुक्त मोर्चे की सरकार एच.डी. देवेगौड़ा तथा इंद्रकुमार गुजराल के नेतृत्व में रही। (iv) राजग गठबंधन (एन.डी.ए.) की सरकार कई बार 1998 से लेकर 2004 तक अटल बिहारी के नेतृत्व में रही। (v) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2004 से अब तक चल रही है।
3. कांग्रेस प्रणाली किसे कहा जाता है? समझाइए।           [B.M. 2009A]
उत्तर-कांग्रेस का जन्म दिसंबर 1885 को हुआ। प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस खुद में ही एक
गठबंधननुमा पार्टी थी। इसमें विभिन्न हित, सामाजिक समूह और वर्ग एक साथ रहते थे। इस
परिघटना को ‘कांग्रेस प्रणाली’ कहा गया।
4. 1960 के दशक में कांग्रेस के पतन के कुछ कारण बताइए।
उत्तर-(i) देश की बहुदलीय प्रणाली और गठबंधन राजनीति की बढ़ती लोकप्रियता। (ii)
ओ-बी-सी. के कारण मंडल और कमंडल की राजनीति कुछ समय तक देश की क्षितिज पर छा
गई। (iii) कई प्रांतों और क्षेत्रों में क्षेत्रीय दलों का उदय और अनेक वर्ग समूहों का कांग्रेस से हटकर उनका बड़े राजनीतिक दलों से जुड़ना। (iv) बहुजन समाज पार्टी का जन्म, उदय एवं विकास। (v) कुछ राजनीतिक दलों द्वारा सांप्रदायिकता की राजनीति करने में सफल होना। (vi) 1971 के बाद बड़ी संख्या में बंगलादेशियों का आगमन एवं वोट की राजनीति के कारण उनकी वापसी के बारे में टालमटोल की राजनीति (vii) 1984 के सिक्ख दंगे एवं उससे पूर्व हुए अमृतसर में स्वर्ण मंदिर में सैन्य बलों का प्रवेश या ब्लूस्टार की घटना।
5. बी०पी० मंडल पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-बी.पी. मंडल का जन्म 1918 में हुआ। वह 1967 से 1970 तथा 1977-1979 में
बिहार से सांसद चुने गए। उन्होंने दूसरे (second) पिछड़े वर्ग आयोग की अध्यक्षता की। इस
आयोग ने अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने की सिफारिश की। वह बिहार के समाजवादी नेता के रूप में प्रसिद्धि पा सके। 1968 में वह डेढ़ माह तक बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे। वह 1977 में जनता पार्टी में शामिल हुए और 1982 में उनका देहांत हो गया।
6. 1980 के दशक से 1991 तक बहुजन राजनीतिक जागृति और गठबंधनों की प्राप्त
सफलताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(1) 1978 में ‘बामसेफ’ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी क्लासेज एम्पलाइज फेडरेशन)
का गठन हुआ। यह सरकारी कर्मचारियों का कोई साधारण-सा ट्रेड यूनियन नहीं था। इस संगठन
ने ‘बहुजन’ यानी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों
की राजनीतिक सत्ता की जबर्दस्त तरफदारी की। इसी का परवर्ती विकास दलित-शोषित समाज
संघर्ष समिति है जिससे बाद के समय में बहुजन समाज पार्टी का उदय हुआ।
(2) बहुजन समाज पार्टी की अगुआई कांशीराम ने की। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपने
शुरुआती दौर में एक छोटी पार्टी थी और इसे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के दलित मतदाताओं का समर्थन हासिल था।
7. कांशीराम का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-कांशीराम का जन्म 1934 में हुआ। वे देश के दलित नेता एवं बहुजन समाज पार्टी
(बसपा) के संस्थापक और सर्वाधिक प्रसिद्धि पाने वाले नेता थे।
उन्होंने अपने समाज और दल की सेवा करने के लिए सरकारी सेवा से त्याग पत्र दिया ताकि
वे सामाजिक और राजनैतिक कार्यों में अपना पूरा समय दिन-रात लगा सकें।
वास्तव में उन्होंने पहले वामसंघ की स्थापना की, फिर डी एस-4 की स्थापना की और
अंतत: 1984 में बहुजन समाज की स्थापना की।
कांशीराम कुशल रणनीतिकार थे। वे राजनीतिक सत्ता को सामाजिक समानता का आधार मानते
थे। उन्होंने उत्तर भारत के राज्यों में दलित राजनीति के संगठनकर्ता के रूप में ख्याति प्राप्त की।
एक दीर्घकालीन बीमारी के उपरांत 2006 में उनका निधन हो गया।
8. गठबंधन राजनीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-(i) वह राजनीति जिसमें चुनाव के पहले अथवा बाद में आवश्यकतानुसार दलों में
सरकार गठन या किसी अन्य मामले (जैसे राष्ट्रपति चुनाव) आपसी सहमति बन जाए और वे सामान्यतः स्वीकृत न्यूनतम साझे कार्यक्रम के अनुसार देश में राजनीति (विरोधी दल के रूप में
या सत्ताधारी गुट के रूप में) तो ऐसी राजनीति को गठबंधन की राजनीति कहते हैं। (ii) 1937 के चुनाव के बाद कुछ प्रांतों में कांग्रेस ने संयुक्त सरकार बनाई थी। (ii) वी.पी. सिंह एवं चंद्रशेखर
द्वारा संयुक्त मोर्चा सरकारें गठबंधन राजनीति के अच्छे उदाहरण हैं। (iv) अटल बिहारी वाजपेयी
के नेतृत्व में राजग राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन अथवा डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठित
प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की राजनीति को स्पष्ट करते हैं।
9. संयुक्त मोर्चा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता का विवेचना कीजिए।
उत्तर―(i) संयुक्त मोर्चा सरकार पहले वी पी सिंह के नेतृत्व में बनी और कांग्रेस की सत्ता
से दूर रखने के लिए सी॰पी॰एम॰ एवं भारतीय जनता पार्टी उसका समर्थन करते रहे।
(ii) कुछ समय के बाद चंद्रशेखर के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी। उससे जनता
दल को देवीदाल का लोकदल और कांग्रेस समर्थन देती रही। वे केवल मात्र 7 महीने तक संयुक्त
सरकार का नेतृत्व करते रहे।
10. राष्ट्रीय लोकतंत्रात्मक गठबंधन की (NDA) सबसे बड़ी विशेषता क्या थी?
उत्तर-यह सबसे बड़े विरोधी दल भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बने लगभग 13
राजनैतिक पार्टियों (या उससे अधिक) का गठबंधन था जिसकी सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में तीन बार बनी। इसका कुल कार्यकाल लगभग 6 वर्ष रहा। वाजपेयी कुछ ही दिनों तक पहली बार प्रधानमंत्री रहे लेकिन आज तक जितने भी गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने हैं उनका कार्यकाल कुल मिलाकर सर्वाधिक दीर्घ ही रहा है।
11. गठबंधन सरकार की एक राजनीतिक समस्या का विश्लेषण कीजिए। [B.M. 2009A]
उत्तर-गठबंधन राजनीति में विचारों की एकरूपता नहीं होती। बार-बार पार्टियांँ गठबंधन
छोड़ती है और इसीलिए प्राय: गठबंधन टूटते रहते हैं या बदलते रहते हैं। इससे लोगों का बहुदलीय प्रणाली में विश्वास कम होता है। प्रायः वे दो दलीय या तीन अथवा कभी-कभी एक दलीय प्रणाली के समर्थक भी बन जाते हैं।
गठबंधन की सरकारें अस्थायी, कम गतिशील और खतरे की लटकी हुई तलवार नीचे कार्य
करती है।
                                          लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जनता दल के शासन काल में ही भारत में एक दूरगामी बदलाव धार्मिक पहचान
पर आधारित राजनीति का उदय हुआ। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-(i) जनता दल 1980 में बना। तब से लेकर 1986 तक देश में एक दूरगामी बदलाव
आया। यह परिवर्तन धार्मिक पहचान पर आधारित राजनीति के उदय का था। इससे धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के बारे में बहसों को सरगर्म किया। आपातकाल के बाद भारतीय जनसंघ जनता पार्टी में शामिल हो गया था।
(i) जनता पार्टी के पतन और बिखराव के बाद भूतपूर्व जनसंघ के समर्थकों ने 1980 में
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बनाई। शुरू-शुरू में भाजपा ने जनसंघ की अपेक्षा कहीं ज्यादा
बड़ा राजनीतिक मंच अपनाया। इसने ‘गांधीवादी समाजवाद’ को अपनी विचारधारा के रूप में
स्वीकार किया। बहरहाल, भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली।
(iii) 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिन्दू राष्ट्रवाद के तत्त्वों पर जोर देना
शुरू किया। भाजपा ने ‘हिन्दुत्व’ की राजनीति का रास्ता चुना और हिन्दुओं को लामबंद करने की रणनीति अपनायी।
2. 1986 से किन नागरिक मसलों ने भारतीय जनता पार्टी को सुदृढ़ता प्रदान की।
                                                  अथवा,
शाहबानो मामला क्या था? इस पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी क्या
रुख अपनाया?
उत्तर -(i) 1986 में ऐसी दो बाते हुई जो एक हिन्दूवादी पार्टी के रूप में भाजपा की राजनीति
के लिहाज से प्रधान हो गई। इसमें पहली बात 1985 के शाहबानो मामले से जुड़ी है। यह मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानो का था। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में अर्जी दायर की थी।
(ii) सर्वोच्च अदालत ने शाहबानो के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने
अदालत के इस फैसले को अपने पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना। कुछ मुस्लिम नेताओं की मांग
पर सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक से जुड़े अधिकारों) अधिनियम (1986) पास किया इस
अधिनियम के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया।
(iii) सरकार के इस कदम का कई महिला संगठन, मुस्लिम महिलाओं की जमात तथा
अधिकांश बुद्धिजीवियों ने विरोध किया। भाजपा ने कांग्रेस सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे अल्पसंख्यक समुदाय को दी गई अनावश्यक रियायत तथा ‘तुष्टिकरण’ करार दिया।
3. वी डी सावरकर कौन था? उन्होंने हिंदुत्व के महत्त्व की किन शब्दों में व्याख्या की।
उत्तर-(I) परिचय (Introduction)-वी-डी. सावरकर भारत के महान् स्वतंत्रता
सेनानी तथा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश के भीतर और देश के बार क्रांतिकारियों से मिलकर देश
की आजादी में भाग लिया। 1 जून, 1909 को उन्हीं के एक घनिष्ठ मित्र और साथी मदन लाल
घींगड़ा ने लंदन में उस अंग्रेज अधिकारी (यानी सर बिलियम कर्जन) की हत्या कर दी, जो अनेक
निर्दोष लोगों की भारत में हत्याओं के लिए जिम्मेवार था वी डी. सावरकर को कुछ समय बाद
(अप्रैल 1910) कैद कर लिया गया और भारत जहाज पर बिठा कर भेज दिया गया। उन्होने विदेशी सरकार को चकमा देकर जहाज से कूदकर समुद्र पार किया। वह उस समुद्र तट पर पहुंँच गए जो उस समय फ्रांसीसियों के कब्जे में था। उन्होंने अपनी पुस्तक में 1857 के विप्लव को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी।
(II) हिंदुत्व और उसकी व्याख्या (Hindutav and it explanation)-(i) ‘हिन्दुत्व’
अथवा ‘हिन्दूपन’ शब्द को वी-डी. सावरकर ने गढ़ा (coined) था और इसको परिभाषित
(defined) करते हुए उन्होंने इसे भारतीय (और उनके शब्दों में हिन्दू) राष्ट्र की बुनियाद (नीव)
बताया। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि भारत राष्ट्र का नागरिक वही हो सकता है जो भारतभूमि को न सिर्फ ‘पितृभूमि’ बल्कि अपनी ‘पुण्यभूमि’ भी स्वीकार करे।
(ii) हिंदुत्व के समर्थकों का तर्क है कि मजबूत राष्ट्र सिर्फ स्वीकृत राष्ट्रीय संस्कृति की
बुनियाद पर ही बनाया जा सकता है। वे यह भी मानते हैं कि भारत के संदर्भ में राष्ट्रीयता की
बुनियाद केवल हिन्दू संस्कृति (जो बहुत उदार एवं जिसकी पाचन शक्ति अद्भुत है।) ही हो
सकती है।
4. 1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं? इन मुद्दों
से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?
State the main issues in Indian politics in the period after 1989. What
defferent configurations of political parties these differences lead to?
                                                                                  [NCERT T.B.Q.3]
उत्तर-1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीति के मुख्य मुद्दे (The main
issues in Indian politics after 1989)–
(i) लोकसभा के आम चुनाव में कांग्रेस की भारी हार। उसे केवल 197 सीटे ही प्राप्त हुई।
इसलिए सरकारें अस्थिर रहीं और 1991 में पुन: मध्यावधि चुनाव हुआ। कांग्रेस की प्रमुखता समाप्त होने के कारण देश के राजनीतिक दलों में आपसी जुड़ाव बढ़ा। राष्ट्रीय मोर्चे की दो बार सरकारें
बनी लेकिन कांग्रेस द्वारा समर्थन खींचने और विरोधी दलों में एकता के अभाव के कारण देश में
राजनैतिक अस्थिरता रही।
(ii) देश की राजनीति में मंडल मुद्दे का उदय हुआ। इसने 1989 के बाद की राजनीति में
अहम भूमिका निभाई। सभी पार्टियाँ वोटों की राजनीति करने लगी इसलिए अन्य पिछड़े वर्ग के
लोगों को आरक्षण दिए जाने के मामले में ज्यादातर दलों में आपसी जुड़ाव हुआ।
(iii)1990 के बाद से ही विभिन्न दलों की सरकारों ने जो आर्थिक नीतियाँ अपनाईं वे बुनियादी
तौर पर बदल चुकी थीं। आर्थिक सुधार और नई आर्थिक नीति के कारण देश के अनेक दक्षिणपंथी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल परस्पर जुड़ने लगे। इस संदर्भ में दो प्रवृत्तियाँ उभरकर आई। कुछ दल गैर-कांग्रेसी गठबंधन और कुछ दल गैर भाजपा गठबंधन के समर्थक बने।
(iv) दिसंबर 1992 में अयोध्या स्थित एक विवादित ढाँचा (बाबरी मस्जिद के रूप में प्रसिद्ध)
विध्वंस कर दिया गया। इस घटना के बाद भारतीय राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बहस तेज हो
गई। इन बदलावों का संबंध भाजपा के उदय और हिंदुत्व की राजनीति से है।
5. गठबंधन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार
मानकर गठजोड़ नहीं करते।” इस कथन के पक्ष या विपक्ष में आप कौन-सा तर्क
देंगे?
In the new era of coalition politics, political parties are not aligning or
re-aligning on the basis of ideology.” What arguments would you put
forward to support or oppose this statement?     [NCERT T.B.Q.4]
उत्तर-पक्ष में तर्क (Argument for Favour)-गठबंधन की राजनीति के भारत में
चल रहे नए दौर (जो प्रायः इंदिरा गांधी द्वारा लगाई गई आपातकालीन स्थिति, 1975 के बाद से
उदित हुई मानी जाती है।) में राजनैतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते।
इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क देते हैं :
(i) 1977 में जे. पी. के आह्वान पर जो जनता दल बना था उसमें कांग्रेस के विरोधी प्रायः
सी.पी. आई को छोड़कर अधिकांश विपक्षी दल जिनमें भारतीय जनसंघ, कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी,
भारतीय क्रांति दल, तेलगूदेशम, समाजवादी पार्टी, अकाली दल … आदि शामिल थे। इन सभी
दलों को हम एक ही विचारधारा वाले दल नहीं कह सकते।
(ii) जनता दल की सरकार गिरने के बाद केन्द्र में राष्ट्रीय मोर्चा बना जिसमें एक ओर जनता
पार्टी के वी•पी• सिंह तो दूसरी ओर उन्हें समर्थन देने वाले सी. पी. एम. वामपंथी और भाजपा
जैसे तथाकथित हिंदुत्व समर्थक गाँधीवादी, राष्ट्रवादी दल भी थे। कुछ ही महीनो के बाद वी.पी.
सिंह प्रधानमंत्री नहीं रहे तो केवल मात्र सात महीनों के लिए चंद्रशेखर को कांग्रेस ने समर्थन दे
दिया जो वहीं चंद्रशेखर जी थे जो इंदिरा, उनके द्वारा लगाई गई आपातकालीन संकट के कट्टर
विरोधी और जनता दल के अध्यक्ष थे। उन्हें और उनके नेता मोरारजी को कारावास की सजाएँ
भुगतनी पड़ी थी।
(iii) कांग्रेस की सरकार 1991 से 1996 तक नरसिंह राव के नेतृत्व में अल्पमत में होते हुए
भी इसलिए जारी रही क्योंकि अनेक ऐसे दलों ने उन्हें बाहर से ऑक्सीजन दी ताकि तथाकथित
साम्प्रदायिक शक्तियाँ सत्ता में न आ सके। वे शक्तियाँ केरल में साम्प्रदायिक शक्तियों से सहयोग
प्राप्त करती है या जाति प्रथा पर टिकी हुई पार्टियों से उत्तर-प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में समर्थन
लेती रही हैं।
(iv) अटल बिहारी जी ने नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन• डी• ए•) की सरकार
लगभग 6 वर्षों तक चली लेकिन उसे जहाँ एक ओर अकालियों ने तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस,
बीजू पटनायक कांग्रेस कुछ समय के लिए समता दल, जनता दल, जनता पार्टी आदि ने भी
सहयोग और समर्थन दिया। यही नहीं जम्मू-कश्मीर के फारुख अब्दुल्ला, वाजपेयी सरकार के कट्टर समर्थक माने जाते रहे।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि राजनीतिक में कोई किसी का स्थायी शत्रु नहीं होता।
अवसरवादिता हकीकत में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उत्तर प्रदेश में कुमारी सुश्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर संयुक्त सरकार बनाती रही है, महाराष्ट्र, में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी और राजस्थान के भारतीय जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी की सरकारें स्थानीय ऐसे निर्दलीय अथवा लघु क्षेत्रीय दलों के सहयोग से चलती रही जो भाजपा को चुनावों मंचों और अभियानों में भला-बुरा कहते रहे हैं। हँसी तो तब आती है जब राज्य विधानसभा के चुनाव के दौरान एक दूसरा गठबंधन या राजनैतिक दल परस्पर कीचड़ उछालते हैं लेकिन उसी काल या दिनों के दौरान केन्द्र में हाथ मिलाते और समर्थन लेते देते हुए दिखाई देते हैं। यह मजबूरी है या लोकतंत्र में भोली-भाली लेकिन जागरूक जनता का मजाक उड़ाने का एक दर्दनाक प्रयास कहा जा सकता है।
विपक्ष में तर्क (Argument for Against)- (i) हम इस कथन से सहमत नहीं है।
गठबंधन की राजनीति के नए दौर में भी वामपंथ के चारों दल अर्थात् सी•पी•एम•, सी.पी.आई.
फारवर्ड ब्लॉक, आर• एस• एस• ने भारतीय जनता पार्टी से हाथ नहीं मिलाया। वह उसे अब भी
राजनीतिक दृष्टि से अस्पर्शनीय पार्टी मानती है।
(ii) समाजवादी पार्टी वामपंथी मोर्चा डी.पी. के जैसे क्षेत्रीय दल किसी भी उस प्रत्याशी को
खुला समर्थन नहीं देना चाहते जो एन.डी.ए. अथवा भाजपा का प्रत्याशी हो क्योंकि उनकी वोटों
की राजनीति को ठेस पहुंँचती है।
(iii) कांग्रेस पार्टी ने अधिकांश मोर्चों पर वी.जे.पी. विरोधी और वी-जे-पी ने कांग्रेस विरोधी
रुख अपनाया है।
6. आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस
दौर में इस पार्टी के विकास-क्रम का उल्लेख करें।
Trace the emergence of BJP as a significant force in post-Emergency
politics..                                                              [NCERT T.B.Q.5]
उत्तर-(i) आपातकाल, श्रीमती इंदिरा गाँधी के समय 1975 से 1977 तक लगभग 18
महीने रहा। इस काल के दौरान भारतीय जनता पार्टी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। वह
जयप्रकाश नारायण की पार्टी में शामिल हुई तो जनता दल के शेष सभी घटक उसे अपने लिए
खतरा मानते थे। वे समझते थे कि आर. एस. एस. के कारण यह दल भारतीय राजनीति पर बन
जाएगा और जनता दल के गठन से पूर्व जो कांग्रेस और आपातकालीन विरोधी पार्टियाँ थीं, समाप्त हो जाएगी।
(ii) नब्बे का दशक कुछ ताकतवर पार्टियों और आंदोलन के उभारे साक्षी रहा। इन पार्टियों
और आंदोलनों ने दलित तथा पिछड़ा वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी) की नुमाइंदगी की। इन
दलों में से अनेक ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं की भी दमदार दावेदारी की। 1996 में बनी संयुक्त मोर्चा
की सरकार में इन पार्टियों ने अहम किरदार निभाया। संयुक्त मोर्चा 1989 के राष्ट्रीय मोर्चा के ही
समान था क्योंकि इसमें भी जनता दल और कई क्षेत्रीय पार्टियां शामिल थीं। इस बार भाजपा ने
सरकार को समर्थन नहीं दिया।
(iii) संयुक्त मोर्चा की सरकार को कांग्रेस का समर्थन हासिल था। इससे पता चलता है कि
राजनीतिक समीकरण किस कदर छुईमुई थे। 1989 में भाजपा और वाम मोर्चा दोनों ने राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को समर्थन दिया था क्योंकि ये दोनों कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखना चाहते थे। इस बार वाममोर्चा ने गैर-कांग्रेसी सरकार को अपना समर्थन जारी रखा लेकिन संयुक्त मोर्चा की सरकार को कांग्रेस पार्टी ने भी समर्थन दिया। दरअसलं, कांग्रेस और वाममोर्चा, दोनों भाजपा को सत्ता से बाहर रखना चाहते थे।
(iv) इन्हें ज्यादा दिनों तक सफलता नहीं मिली और भाजपा ने 1991 तथा 1996 के चुनावों
में अपनी स्थिति लगातार मजबूत की। 1996 के चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का न्यौता मिला। लेकिन अधिकांश दल भाजपा की कुछ नीतियों के खिलाफ थे और इस वजह से भाजपा की सरकार लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी।
आखिरकार भाजपा एक गठबंधन (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-राजग) के अगुआ के रूप में सत्ता में आयी और 1998 के मई से 1999 के जून तक सत्ता में रही। फिर, 1999 में इस गठबंधन ने दोबारा सत्ता हासिल की। राजग की इन दोनों सरकारों में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 1999 की राजग सरकार ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया।
7. कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर
कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर
के पक्ष में तर्क दीजिए।
In spite of the decline of Congress dominance the Congress party continues to influence politics in the country. Do you agree? Give reasons.                                                           [NCERT T.B.Q. 6]
उत्तर-हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि यद्यपि कांग्रेस का पतन हो गया है या कहिए
कि उसका केन्द्र एवं अधिकांश प्रांतों में जो राजनैतिक सता का असर आजादी से लेकर 1960
तक कायम रहा। वह अब 2007 में वैसा नहीं दिखाई देता यद्यपि वह आज भी लोकसभा में सबसे बड़ा दल है। उसी का अध्यक्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) का अध्यक्ष है और उसी का प्रधानमंत्री है। अनेक राज्यों में आज भी वह सत्ता में है। लेकिन देश का राजनैतिक इतिहास इस बात का गवाह है कि 1960 के दशक के अंतिम सालों में कांग्रेस के एकछत्र राज्य को चुनौती
मिली थी लेकिन इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारतीय राजनीति पर अपना प्रभुत्व फिर से
कायम किया। नब्बे के दशक में कांग्रेस की अग्रणी हैसियत को एक बार फिर चुनौती मिली। जो
भी हो, इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस की जगह कोई दूसरी पार्टी प्रमुख हो गई।
अभी भी कांग्रेस पार्टी देश की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी मानी जाती है। 2004 के चुनावों
में कांग्रेस भी पूरे जोर के साथ गठबंधन में शामिल हुई। राजग की हार हुई और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की सरकार बनी। इस गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस ने किया। संप्रग को वाम मोर्चा ने समर्थन दिया। 2004 के चुनावों में एक हद तक कांग्रेस का पुनरुत्थान भी हुआ। 1991 के बाद इस दफे पार्टी के सीटों की संख्या एक बार फिर बढ़ी। जो भी हो 2004 के चुनावों में राजग और संप्रग को मिले कुल वोटों का अन्तर बड़ा कम था। इस तरह दलील प्रणाली सत्तर के दशक की तुलना में एकदम ही बदल गई है।
8. ‘अयोध्या विवाद’ विषय पर संक्षेप में विचार लिखिए।
उत्तर-अयोध्या में वर्षों पुरानी एक ऐतिहासिक इमारत थी संभवत: इसका निर्माण-16वीं
शताब्दी में हुआ। प्रायः हिंदू, पंडित, विद्वान आदि यह दावा करते रहे यह प्राचीन हिंदू मंदिर था
और संभवत: बाबर के आदेश पर उसके शासनकाल में यहाँ मस्जिद का निर्माण किया गया।
अधिकांश मुसलमानों, विद्वानों का यह दावा था कि यह प्रथम मुगल सम्राट बाबर के काल में ही
मस्जिद थी। अधिकांश मुस्लिम अयोध्या स्थित इस मस्जिद को बाबरी मस्जिद कहते थे। इसका
निर्माण मीरबाकी (बाबर के अमीर और दरबारी) ने करवाया था। वस्तुत: मीरबाकी मुगल सम्राट
बाबर का सिपहसलार था।
अनेक हिंदू आज भी मानते हैं कि बाबर बहुत उदार शासक नहीं था। उसने भगवान राम की
जन्मभूमि (अयोध्या) में बने राम मंदिर को तुड़वाकर उसी स्थान पर एक मस्जिद बनवाई थी।
अयोध्या का वह ढाँचा या इमारत मंदिर है या मस्जिद दोनों सम्प्रदाय के लोगों में उठे इस
विवाद ने एक अदालती मुकदमे का रूप ग्रहण कर लिया। मुकदमा अनेक दशकों तक चलता रहा। अंतत: 1940 के दशक में बाबरी मस्जिद में अदालत के आदेश पर ताला लगा दिया गया और मामला अदालत के हवाले ही रहा।
फैजाबाद जिला न्यायालय द्वारा फरवरी 1986 में सुनाए गए फैसले में सुनाया गया कि बाबरी
मस्जिद के अहाते का ताला खोल दिया जाना चाहिए ताकि हिंदू यहाँ पूजा पाठ कर सकें क्योंकि
वे इस जगह को पवित्र मानते हैं।
(4) जैसे ही बाबरी मस्जिद के अहाते का ताला खुला वैसे ही दोनों पक्षों से लाभबंदी होने लगी। अनेक हिन्दू और मुस्लिम संगठन इस मसले पर अपने-अपने समुदाय को लामबंद करने
की कोशिश में जुट गए।
(5) भाजपा ने इसे अपना बहुत बड़ा चुनावी और राजनीतिक मुद्दा बनाया। शिवसेना, बजरंग
दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद् जैसे हिन्दूवादी कुछ संगठनों के साथ भाजपा
ने लगातार प्रतीकात्मक और लामबंदी के कार्यक्रम चलाए। उसने जनसमर्थन जुटाने के लिए
गुजरात, स्थित सोमनाथ से उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या तक एक बड़ी ‘रथयात्रा निकाली।
6 दिसंबर 1992 को इस इमारत को गिरा दिया गया जिसकी वजह से अनेक स्थानों पर
व्यापक दंगे और तनाव व्याप्त रहा।
9. सूचना का अधिकार (Right to information)              [B.M.2009A]
उत्तर-1990 में सूचना के अधिकार के आन्दोलन का प्रारंभ राजस्थान में ‘मजदूर किसान
शक्ति संगठन के नेतृत्व में हुआ। यह जून 2005 में अधिनियम का रूप लेकर संविधान का अंग
बना, जिसे 12 अक्टूबर, 2005 को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया। सूचना प्राप्ति हेतु आवेदन
पत्र के साथ 10 रुपये का रसीद संलग्न कर संबंधित विभाग के सूचना अधिकारी से सम्पर्क करना होगा। जानकारी देने की अवधि 30 दिन है। समय सीमा के उल्लंघन होने पर अधिकारी के लिए स्पष्टीकरण देना अनिवार्य है असंतुष्टता की स्थिति में वरीय अधिकारी के पास आवेदन दिया जा सकता है। सूचना अधिकार का उद्देश्य विभागीय कार्य में पारदर्शिता लाना है।
                                             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. अयोध्या स्थित विवादित ढांँचे (राम मंदिर अथवा बाबरी मस्जिद) के अक्टूबर 1992
के विध्वंस से लेकर वाद की घटनाओं का एक लेख के रूप में विवरण दीजिए।
उत्तर-(1) अयोध्या में जो हिंदू संगठन राम मंदिर (एक भव्य और नए मंदिर के निर्माण
का समर्थन कर रहे थे उन्होंने 1992 के दिसंबर में एक ‘कार सेवा कार्यक्रम का आयोजन किया।
इसके अंतर्गत रामभक्तों का आह्वन किया गया कि वे अयोध्या पहुँचकर राम मंदिर के निर्माण में
श्रमदान करें।
(2) भाजपा, आर• एस• एस• विश्व हिंदू परिषद्, शिव सेना, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, आदि
के आह्वन पर कार सेवा के इच्छुक लोग बड़ी संख्या में अयोध्या पहुंचे। देश में माहौल तनावपूर्ण
हो गया। अयोध्या में यह तनाव सबसे ज्यादा दिखाई दिया।
(3) मान्यवर सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह
विवादित स्थल की सुरक्षा का पूरा प्रबंध करे। जो भी हो 6 दिसंबर 1992 को उत्तर प्रदेश की सरकार उस स्थल की रक्षा नहीं कर सकी और उस ढाँचे को लोगों ने धराशायी कर दिया।
(4) मस्जिद के विध्वंस के समाचार से देश के कई भागों में हिन्दू और मुसलमानों के बीच
झड़प हुई। 1993 के जनवरी में एक बार फिर मुंबई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक
जारी रही। अयोध्या की घटना से कई बदलाव आए। उत्तर प्रदेश में सत्तासीन भाजपा की राज्य
सरकार को केंद्र ने बर्खास्त कर दिया। इसके साथ ही दूसरे राज्यों में भी, जहाँ भाजपा की सरकार थी, राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। चूंँकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस बात का शपथ पत्र दिया था कि ‘विवादित ढाँचे’ की रक्षा की जाएगी इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में उनके विरुद्ध अदालत की अवमानना का मुकदमा दायर हुआ।
(ज) भारतीय जनता पार्टी ने आधिकारिक तौर पर अयोध्या में घटित होने वाली घटना पर
गहरा खेद व्यक्त किया। एक जांँच आयोग नियुक्त किया गया और उसने सरकार के निर्देशानुसार
उन घटनाओं की जांच शुरू की जिनकी वजह से अयोध्या स्थित प्राचीन ऐतिहासिक मस्जिद का
विध्वंस हुआ। अनेक नेताओं ने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर सवाल उठाए। धर्म के नाम पर हिंसा कोई भी सम्प्रदाय करे या कोई राजनीतिक पार्टी करे चाहे वह 1984 के सिख विरोधी दंगे हों या 1992-93 में हुए साम्प्रदायिक दंगे मुम्बई एवं अन्य शहरों और स्थानों में हुए हों या 2002 में फरवरी मार्च में गुजरात में हिंदू या मुसलमानों के विरुद्ध हुए हो। दंगों में दोनों सम्प्रदायों और
अनेक निर्दोष अन्य धर्मावलंबियों की भी जान, मान और माल को हानि पहुँचती है।
2. हमारे देश में जिन विंदुओं और मसलों पर नेताओं, राजनेताओं और दलों में बढ़ती
सहमति दृष्टिगोचर हो रही है, उसका विवरण दीजिए।
उत्तर-प्रस्तावना (Introduction)-2004 के लोकसभा के आम चुनावों के बाद भी
केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में साझी सरकार बनी। वस्तुत: गठबंधन की राजनीति के साथ-साथ
नेताओं, राजनेताओं और राजनीतिक दलों में कई महत्त्वपूर्ण मसलों पर एक व्यापक सहमति बनती जा रही है। विद्वान मानते हैं कि देश में कड़े राजनैतिक मुकाबले और बहुत-से संघर्षों के बावजूद अधिकांश दलों के मध्य एक सहमति उभरती-सी, जान पड़ रही है। वह इस सहमति में चार बातें बताते हैं।
सहमति की चार बातें (Four Points of Agreement)
(i) नई आर्थिक नीति पर सहमति (Agreement on neto economic policies) कई
समूह नई आर्थिक नीति के खिलाफ है, लेकिन ज्यादातर राजनीतिक दल इन नीतियों के पक्ष में
हैं। अधिकतर दलों का मानना है कि नई आर्थिक नीतियों से देश समृद्ध होगा और भारत विश्व
की एक आर्थिक शक्ति बनेगा।
(ii) पिछड़ी जातियों के राजनीतिक और सामाजिक दावे की स्वीकृति (Acceptance
of the political and social claims of the backward castes)-राजनीतिक दलों ने
पहचान लिया है कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक और राजनीतिक दावे को स्वीकार करने की
जरूरत है। इस कारण आज सभी राजनीतिक दल शिक्षा और रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए सीटों के आरक्षण के पक्ष में हैं। राजनीतिक दल यह भी सुनिश्चित करने के लिए तैयार हैं कि
‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ को सत्ता में समुचित हिस्सेदारी मिले।
(iii) देश के शासन में प्रांतीय दलों की भूमिका की स्वीकृति (Acceptance of
role of state level parties in governance of the country)-प्रांतीय दल और राष्ट्रीय दल का भेद अब लगातार कम होता जा रहा है। हमने इस अध्याय में देखा कि प्रांतीय दल केंद्रीय सरकार में साझीदार बन रहे हैं और इन दलों ने पिछले बीस सालों में देश की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
(iv) विचारधारात्मक पक्ष की जगह कार्यसिद्धि पर जोर और विचारधारात्मक सहमति
के लिए राजनीतिक गठजोड़ (Emphasis on pragmatic consideration rather than
ideological position and political alliances without ideological agreement) –
गठबंधन की राजनीति के इस दौर में राजनीतिक दल विचारधारागत अन्तर की जगह सत्ता में
हिस्सेदारी की बातों पर जोर दे रहे हैं जो.मिसाल के लिए, अधिकतर दल भाजपा की ‘हिन्दुत्व’
की विचारधारा से सहमत नहीं हैं लेकिन ये दल भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल हुए और
सरकार बनायी जो पांँच साल तक चली।
उपसंहार (Conclusion)-(i) उपर्युक्त सभी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है और आगामी राजनीति
इन्हीं बदलावों के दायरे में आकार लेगी। प्रतिस्पर्धी राजनीति के बीच मुख्य राजनीतिक दलों में
कुछेक मसलों पर सहमति है। अगर राजनीतिक दल इस सहमति के दायरे में सक्रिय हैं तो
जन-आंदोलन और संगठन विकास के नए रूप, स्वप्न और तरीकों की पहचान कर रहे हैं।
(ii) गरीबी, विस्थापन, न्यूनतम मजदूरी, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा के मसले
जन-आंदोलनों के जरिए राजनीतिक अजेंडे के रूप में सामने आ रहे हैं। ये आंदोलन राज्य को
उसकी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत कर रहे है। इसी तरह लोग जाति, लिंग, वर्ग और क्षेत्र के संदर्भ में न्याय तथा लोकतंत्र के मुद्दे उठा रहे हैं। हम विश्वासपूर्वक कह सकते हैं कि भारत में लोकतांत्रिक राजनीति जारी रहेगी और यह राजनीति एक नया प्रगतिशील राष्ट्रवादी रूप ग्रहण करेगी।
3. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले
बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें
बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।
many people think that a two-party system is required for successful
democracy. Drawing from India’s experience of last twenty years, write
an essay on what advantages the present party system in India has.
                                                                        [NCERT T.B.Q.7]
उत्तर-(1) अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतंत्र के लिए दलीय व्यवस्था आवश्य
है। वे इसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं :
(i) दो दलील व्यवस्था से साधारण बहुमत के दोष समाप्त हो जाते हैं और जो भी प्रत्याशी
या दल जीतता है वह आधे से अधिक अर्थात् 50 प्रतिशत से ज्यादा (मतदान किए गए कुल मतों का अंश) होते हैं।
(ii) देश में सभी को पता होता है कि यदि सत्ता एक दल से दूसरे दल के पास जाएगी तो
कौन-कौन प्रमुख पदों प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, विदेश मंत्री आदि पर आएंँगे। प्रायः इंग्लैंड और अमेरिका में ऐसा ही होता है।
(iii) सरकार ज्यादा स्थायी रहती है और वह गठबंधन की सरकारों के समान दूसरे दलों की
बैसाखियों पर टिकी नहीं होती। वह उनके निर्देशों को सरकार गिरने के भय से मानने के लिए बाध्य नहीं होती। बहुदलीय प्रणालियों में देश में फूट पैदा होती है। दल जातिगत या व्यक्ति विशेष के प्रभाव पर टिके होते हैं और सरकार के काम में अनावश्यक विलंभ होता रहता है।
(iv) बहुदलीय प्रणाली में भ्रष्टाचार फैलता है। सबसे ज्यादा कुशल व्यक्तियों की सेवाओं
का अनुभव प्राप्त नहीं होता और जहाँ साम्यवादी देशों की तरह केवल एक ही पार्टी की सरकार
होती है तो वहाँ दल विशेष या वर्ग विशेष की तानाशाही नहीं होती।
(II) गत बीस वर्षों के भारतीय अनुभव एवं विद्यमान बहुदलीय व्यवस्था के लाभ
(Advantage of the present party system, having India)-भारत विभिन्नताओं वाला बहुत बड़ा देश है। यहाँ गत 60 वर्षों से बहुदलीय प्रणाली जारी है। यह दल प्रणाली देश के लिए निम्नलिखित कारणों से अधिक फायदेमंद जान पड़ती है-
(1) भारत जैसे विशाल तथा विभिन्नताओं वाले देश के लिए कई राजनीतिक दल लोकतंत्र
की सफलता के लिए परम आवश्यक हैं। प्रजातंत्र में दलीय प्रथा प्राणतुल्य होती है। राजनीतिक
दल जनमत का निर्माण करते है। चुनाव लड़ते हैं, सरकार बनाते हैं। विपक्ष की भूमिका भी अदा
करते हैं।
(2) दलीय प्रणाली जनता को राजनीतिक शिक्षा प्रदान करती है। राजनीतिक दल सभाएंँ करते
हैं, सम्मेलन करते हैं, जलूस निकालते हैं तथा अपने दल की नीतियाँ बनाकर जनता के सामने
प्रचार करते हैं सरकार की आलोचना करते हैं। संसद में अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं। और इस प्रकार जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती रहती है।
(3) दलीय प्रणाली के कारण सरकार में दृढ़ता आती है क्योंकि दलीय आधार पर सरकार को
समर्थन मिलता रहता है।
(4) विपक्षी दल सरकार की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं।
(5) दलीय प्रणाली में शासन और जनता दोनों में अनुशासन बना रहता है। राष्ट्रीय हितों पर
अधिक ध्यान दिया जाता है।
(6) अनेक राजनीतिक दल राजनीतिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक सुधार के कार्य भी
करते हैं।
4. साम्प्रदायिकता के मुख्य कारण कौन-कौन से हैं? विवेचना करें।      [B.M.2009A]
उत्तर-स्वतंत्रता के 60 वर्ष बाद भी भारत में विभिन्नता पायी जाती है। इसका प्रमाण यह
है कि केन्द्र और राज्यों में तनावपूर्ण स्थिति साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, भाषावाद आदि महत्त्वपूर्ण
समस्याएँ रही हैं जो भारत की राजनीति पर साम्प्रदायिकता का प्रभाव बहुत ज्यादा है। इसके
उत्तरदायी कारण निम्नलिखित हैं।
(i) हिन्दू-मुस्लिम द्वेष का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि मुस्लिम जनता ने अपने आपको
बहुमत समुदाय से अलग रहकर धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी नीति को दूर रखा। उदाहरण के लिए
जमाएत-ए-इस्लाम और जमीयत-उल-उलेमाए हिंद ने मुसलमानों को चुनाव में भाग नहीं लेने और राष्ट्रीय धारा से अलग रहने की सलाह दी।
(ii) मुसलमानों की धार्मिक रूढ़िवादिता ने साम्प्रदायिकता के बीज बोने में महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाई है कारण मुसलमान अपने इस्लामी कानून और कुरान से संचालित होते हैं।
(iii) मुसलमानों का आर्थिक पिछड़ापन का कारण है साम्प्रदायिकता। अन्य सम्प्रदायों के
मुकाबले मुस्लिम अपने आपको कमजोर मानते थे जिससे निराशा की भावना का उदय हुआ और इस निराशा ने हिंसक गतिविधियों को जन्म दिया।
(iv) सरकार की उदासीनता भी हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने के लिए उत्तरदायी
है, कारण संघीय और राज्य सरकारों ने दृढ़तापूर्वक इस समस्या को हल करने का प्रयास नहीं
किया।
(v) विभिन्न धर्मों के लोगों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना साम्प्रदायिकता को
बढ़ावा देने में सहायक है।
(vi) भारतीय राजनीति में वोट की राजनीति साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देती है। वे सत्ता
हथियाने और इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए धर्म का राजनीति में प्रयोग करते हैं।
(vii) मुस्लिम साम्प्रदायिक संगठनों की तरह हिन्दू साम्प्रदायिक संगठन भी भारत में विद्यमान
हैं। इनमें हिन्दू महासभा, विश्वहिन्दू परिषद्, शिवसेना, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ आदि हैं। इन
संगठनों के हिन्दू नेता अपने भाषणों द्वारा साम्प्रदायिकता की आग में घी डालते हैं। वर्तमान समय में देश साम्प्रदायिकता की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। राजनीतिक दृढ़ता से ही इस समस्या का समाधान हो सकता है।
1. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
“भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस-प्रणाली ने अपना
खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की
नई प्रवृत्ति का भी जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की समाई करने की
इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राजव्यवस्था के सामने एक महत्त्वपूर्ण काम एक ऐसी
दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों का गढ़ने की है जो कारगर तरीके से
विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें”…..                                   -जोया हसन।
(क) इस अध्याय को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची बना
सकते हैं।
(Write a short note on what the author calls challenges of the party system in the light of what you have read in this chapter)
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एकजुटता का होना क्यों जरूरी है
(Given an example from this chapter of the lack of accomodation and
aggrigation mentioned in this passage)
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक
दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की
(Why is it necessary for parties to accommodate and aggregate variety of interests)                                                           [NCERT, T.B.Q.8]
उत्तर-(क) हाँ, हम इस अध्याय को पढ़ने के बाद दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सूची
बना सकते हैं। यह सूची निम्नलिखित हैं-
(1) भारत में बहुदलीय प्रणाली से देश में फूट पैदा होती है। प्रत्येक दल के समर्थक एक-दूसरे
के समर्थकों से ईर्ष्या करने लगते हैं। यह ईर्ष्या कई बार राष्ट्रीय एकता के लिए घातक सिद्ध हो
जाती है।
(2) राजनीतिक दल सदस्यों के व्यक्तित्व को कुचल देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने
दल की प्रत्येक नीति का चाहे वह दोषपूर्ण ही क्यों न हो, मानना आवश्यक होता है। इस प्रकार
उसके व्यक्तित्व के विकास में बाधा होती है।
(3) दलील प्रणाली से भ्रष्टाचार भी फैलता है। बेईमानी को बढ़ावा मिलता है। चुनाव के
समय बहुमत प्राप्त करने के लिए राजनीतिक दल लोगों को कई प्रकार के वचन तथा प्रलोभन
देते हैं। वह दल जिसके पास बहुत अधिक धन होता है अपने सदस्यों को निर्वाचित करवाने के
लिए धन का अनुचित प्रयोग भी करता है और यदि वह सत्ता प्राप्त कर लेता है तो उन्हीं लोगों
को लाभ भी पहुंचाता है जिन्होंने चुनाव के समय सहयोग दिया था।
(4) देश को बहुत-से बुद्धिमान और योग्य व्यक्तियों की सेवाएं प्राप्त नहीं हो सकती।
(5) सत्तारूढ़ दल की तानाशाही की संभावना रहती है क्योंकि चुनाव जीतने के बाद उसे
किसी भी अच्छे-बुरे कानून या नीति को स्वीकृत कराने में कोई कठिनाई नहीं होती।
(6) ये समाज की नैतिकता में गिरावट भी लाते हैं। प्रत्येक दल अपनी प्रशंसा करता है और
दूसरे दलों पर कीचड़ उछालता है। चुनाव में ओछे साधनों का प्रयोग भी करते हैं।
(7) दलील प्रणाली से राष्ट्रीय हितों को हानि पहुंचाती है क्योंकि राजनीतिक दल राष्ट्रीय हितों
की अपेक्षा दलीय हित को महत्त्व देते हैं।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न वर्गों, समूहों, सम्प्रदायों के हितों में भिन्नता होना स्वाभाविक है।
उनका आधार, लिंग, जाति, वंश, सम्प्रदाय आदि हो सकते हैं। लेकिन लोकतंत्र का यह तकाजा
है कि अनेक बार बहुसंख्यक सम्प्रदाय को अल्पसंख्यक को अपना प्रिय अनुज (छोटा/भाई बहन) मानकर उनके विचार सुनने यथासंभव मानने चाहिए ताकि सारे देश में एकजुटता बनी रहे। अंग्रेज और अन्य विदेशी यह न कहें कि जब हम आपको कहते थे कि आप तो राज्य करना ही नहीं जानते, हमेशा परस्पर छोटी-छोटी बातों पर लड़ते-झगड़ते ही रहते हो, हम विभिन्न हितों का समाहार (Accomodation) करके सौहार्द्र एकजुटता परस्पर प्रेम अहिंसा, शांति आदि बना पाएंँगे। ये सभी चीजें लोकतंत्र की प्रणाली की सफलता के लिए जरूरी है।
(ग) इस अध्याय में हमने अयोध्या में विवादित ढाँचे के बारे में पढ़ा। इस विवाद को भारत
के राजनैतिक दलों के सामने एक-दूसरे के साथ मिल-बैठकर समझने, समझाना। एक दूसरे की
भावना की कद्र करना समाहार की क्षमता के लिए चुनौती इसलिए पेश की क्योंकि सभी राजनैतिक दल राष्ट्र की बजाय अपने राजनैतिक स्वार्थ देखते है। वे वोटों की राजनीति करते हैं। यहाँ बहुसंख्यक और अधिक बड़े दल अपने एकाधिकार करते है। यहाँ बहुसंख्यक और अधिक बड़े दल अपने एकाधिकार और वर्चस्व को अल्पसंख्यकों के समर्थन से संपूर्ण देश विशेषकर उत्तर प्रदेश में स्थाई बनाना चाहते हैं। कुछ दल अल्पसंख्यक को उकसाकर या साम्प्रदायिकता का भय दिखाकर सांस्कृतिक स्वार्थ की ओर ढकेलते हैं। संस्कृति हमें कुशल और सद्व्यवहार सिखाती है। वह हमारे सद्व्यवहार का आइना है।
दूसरी ओर बहुसंख्यक लोग अल्पसंख्यकों को राजनीतिक मंच से यह बताने में विफल हो
जाते है या बहुसंख्यक सम्प्रदाय के समर्थक कुछ राजनैतिक दल दिखावा करते हुए उन्हें
(अल्पसंख्यकों को) यह बताने में ईमानदारी नहीं बरतते कि यह सत्य है कि राम का संबंध अयोध्या से था। महाकाव्यकालीन ग्रंथ, प्राचीन परम्पराएँ और करोड़ों लोगों के आस्था और संस्कार उनके एक प्रमुख देवता या भगवान या ईश अवतार से जुड़े रहे हैं।
बहुसंख्यकों को भी मानवतावाद को या इंसानियत को या राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता
देनी चाहिए। कुछ लोगों को ईमानदारी के साथ अगर यह विवाद पहले या अब भी सौंप दिया जाए और राजनीति को दूर रखा जाए तो यह चुनौती का सामना करने की क्षमता राजनैतिक दलों में है।
                                                       ★★★

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