Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
Bihar Board 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
BSEB 12th Physics Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
प्रश्न 1.चित्र में किसी विद्युत क्षेत्र में समविभवी तल दिखलाया गया है V1 > V2 है। विद्युत क्षेत्र में विद्युत बल रेखाओं के वितरण को दिखलायें तथा इनकी दिशा को दर्शायें। विद्युत क्षेत्र की तीव्रता किस क्षेत्र में अधिक है निर्धारित करें।
उत्तर: हम जानते हैं कि विद्युत बल रेखायें समविभवी तल के लम्बवत् होते हैं। चित्र में इन बल रेखाओं के बिन्दीदार रेखाओं से दिखलाया गया है। इन की दिशा ऊँच-विभव से निम्न विभव की ओर होती है।
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता बायीं ओर यानि जिधर समविभवी तल अधिक संघनित है, अधिक होगी।
प्रश्न 2. विभवमापी की सुग्राहिता से आप क्या समझते हैं ? तथा इसकी सुग्राहिता आप कैसे बढ़ा सकते हैं ?
उत्तर: विभवमापी की सुग्राहिता का अर्थ है कि इस उपकरण से कम-से-कम कितना विभवान्तर की माप की जा सकती है। विभवमापी की सुग्राहिता विभव प्रवणता (potential gradient) का मान घटाकर बढ़ायी जा सकती है। इसे प्राप्त करने के लिए-
- विभवमापी तार की लम्बाई बढ़ाई जा सकती है।
- नियत लम्बाई वाले विभवमापी में धारा का मान बढ़ाकर (रिहॉस्टेंट की सहायता से) भी इसकी सुग्राहिता बढ़ायी जा सकती है।
प्रश्न 3. धातु के एक गोले A (त्रिज्या a) को V विभव तक आवेशित किया जाता है। अगर इस गोले A को एक गोलीय खोल B भीतर रखकर एक तार द्वारा जोड़ दिया जाय तो गोला B का विभव क्या होगा?
उत्तर: अगर गोला A को ‘q’ आवेश दिया जाय तो इसका विभव
V = q/4πϵ0a
∴ q= (4π∈0a)V
जब गोला A को गोले B के भीतर रखा जाता है और इन्हें तार से जोड़ दिया जाता है तो कुल आवेश गोला B के बाह्य पृष्ठ पर चला जाता है अत: B का विभव
∴ a < b है
अतः VA < V
यदि गोला A का विभव पहले के विभव V से कम हो जायेगा।
प्रश्न 4. कुलाम्ब के नियमों की सीमा बतायें।
उत्तर: विद्युत स्थैतिक में कुलाम्ब के नियमों की सीमायें-
- यह नियम बिन्दु आवेशों के लिए ही लागु होता है।
- यह नियम सिर्फ स्थिर आवेशों के लिए लागु होता है।
- यह नियम नाभकीय कणों (Protons in nucleus) के नाभीक में स्थाइत्व (Stability) की व्याख्या नहीं कर पाता है।
- कुलाम्ब नियम 10-14m से कम तथा कुछ किलोमीटर से अधिक दूरियों के लिए मान्य नहीं होता है।
प्रश्न 5. किसी माध्यम के परावैद्युतता से आप क्या समझते हैं? इसके मात्रक एवं विमा को लिखें।
उत्तर: माध्यम की परावैद्युतता- यह किसी अचालक माध्यम की विद्युतीय अभिलक्षण होता है कि वह किस हदतक विद्युत गुण को संचरित कर सकता है। इसे प्रायःसे सूचित किया जाता है इसका S.I. मात्रक C2/Nm2 तथा विमा M-1L-3T4A2 होता है।
प्रश्न 6. समान परिमाण के दो बिन्दु आवेश जब नजदिक रखे जाते हैं तो उनके लिए विद्युत बल रेखाओं को खींच कर दिखायें।
उत्तर:
प्रश्न 7. एक समान विद्युत क्षेत्र में रखे विद्युत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर: विद्युत द्विध्रुव की स्थिति ऊर्जा-
विद्युत क्षेत्र में द्विध्रुव को घुमाने में विद्युत क्षेत्र के विरुद्ध कुछ कार्य करना पड़ता है जो उसमें स्थिति ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है।
W = ΔU = Uf – Ui … (1)
जहाँ Ui तथा Uf क्रमशः प्रारंभिक (θ = θ1) तथा अन्तिम अवस्था (θ = θ2) में ऊर्जा है।
अतः विद्युत द्विध्रुव ऊर्जा के लिए हम लिख सकते हैं
प्रश्न 8. डाइइलेक्ट्रिक भंजन तथा डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य से आप समझते हैं?
उत्तर: डाइइलेक्ट्रिक भंजन (Dielectric break down)-जब डाइइलेक्ट्रिक पदार्थ को विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो यह ध्रुवित होने लगता है तथा ध्रुवण का आरोपित विद्युत क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है। अगर विद्युत क्षेत्र का मान एक सीमा से अधिक हो जाता है तो इलेक्ट्रॉन अणु परमाणु से अलग होने लगते हैं और यह मुक्त इलेक्ट्रॉन दूसरे अणु परमाणु से टकराकर और इलेक्ट्रॉन को मुक्त कर देते हैं परिणामतः अधिक और अधिक इलेक्ट्रॉन चालन के लिए उपलब्ध हो जाते हैं और यह चालक के जैसा व्यवहार करने लगता है। इस स्थिति को डाइइलेक्ट्रिक भंजन कहा जाता है।
डाइइलेक्ट्रिक सार्थय (Dilelectric strighth)-डाइइलेक्ट्रिक पर आरोपित विद्युत क्षेत्र का वह अधिकतम मान जिस पर वह बिना जले यानि भंजन अवस्था में बिना पहुंचे रह सकता है, डाइइलेक्ट्रिक साम्थर्य कहलाता है। इसके बाद विद्युत विर्सजन (Spark) होने लगता है। शुष्क हवा के लिए सामान्य दाब पर डाइइलेक्ट्रिक सार्थय लगभग 3 × 106 Vm-1 होता है।
प्रश्न 9. परावैद्युत सामर्थ्य एवं आपेक्षिक परावैधुतांक को परिभाषित करें।
उत्तर: परावैद्युत सामर्थ्य : किसी परावैद्युत पदार्थ का परावैद्युत सामर्थ्य (या शक्ति) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान होता है जिसे वह पदार्थ बिना मंजन हुये सहन कर सकता है। सामान्य दाव पर शुष्क हवा के लिए परावैद्युत सामर्थ्य लगभग 3 × 106Vm-1 होता है।
आपेक्षिक परावैद्युतांक : किसी परावैद्युत माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक निवात के सापेक्ष उस माध्यम का परावैद्युतता होता ∈r है। इसे, या k से सूचित किया जाता है।
अतः किसी परावैद्युत या माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक
यानि ∈r = ϵ/ϵ0 : इसका कोई मात्रक या विमा नहीं होता है। हवा या निर्वात के लिए ∈r =1 लिया जाता है।
प्रश्न 10. चोक कुण्डली क्या है?
उत्तर:
चोक कुण्डली : यह एक उच्च प्रेरकत्व की एक कुण्डली होती है जो नर्म लोहे के क्रोड के उपर विद्युत रोधी रूप में लिपटी रहती है। यह प्रत्यावर्ती परिपथ में विना विद्युत ऊर्जा क्षय के विभावान्तर का मान बढ़ा होता है। अतः इसका उपयोग विभावान्तर बढ़ाने लिए ए-सी प्रतिरोध की अपेक्षा अधिक कारगर होता है। इस कुण्डली की
प्रतिबाधा
z = √R2+ω2L2 होती है। उच्च आवृत्ति के स्रोत रहने पर L का मान कम रहने पर भी wL का मान अधिक होता है अतः इस स्थिति में लौह क्रोड के स्थान पर वायु क्रोड का ही उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 11. ट्रांसफॉर्मर के क्रोड़ परतदार क्यों बनाये जाते हैं?
उत्तर: ट्रांसफॉर्मर के कुण्डली से जब प्रत्यवर्ती धारा प्रवाहित होता है तो फ्लक्स में परिवर्तन के कारण लौह क्रोड में भंवर धारा उत्पन्न होती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास लौह क्रोड को गर्म करने में हो जाती है जिसे लौह क्षय भी कहा जाता है। इस हानी को रोकने के लिए लौह क्रोड को विद्युत रोधी परतदार पट्टियों के रूप में बना देने पर भंवर धारा नहीं बन पाती है और विद्युत ऊर्जा का ह्रास कम हो जाता है।
प्रश्न 12. लेंज के नियम क्या है?
उत्तर: लेंज का नियम : विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में प्रेरित वि०वा० बल या धारा की दिशा लेंज-नियम से प्राप्त होती है। इस नियम के अनुसार-“विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के कारण सभी स्थितियों में परिपथ में प्रेरित धारा या वि०वा०बल की दिशा इस प्रकार की होती है कि वह अपने उत्पन्न कर्ता का विरोध करता है जिसके कारण वह उत्पन्न होता है।
उदाहरण के लिए जब किसी कुण्डली के नजदिक बाध्य चुम्बक का N-ध्रुव लाया जाता है तो । कुण्डली में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार की होती है कि समुख सतह पर N-ध्रुव की उत्पत्ति हो तो आते हुये चुम्बक का N-ध्रुव का विरोध हो। अर्थात् कुण्डली से सम्बन्ध फ्लक्स में वृद्धि होने पर प्रेरित धारा की दिशा ऐसी होती है कि इसके कारण : फ्लक्स में कमी हो।
लेंज का नियम ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुरूप होता है तथा इससे प्रेरण में विद्युत स्रोत की जानकारी भी मिलती है।
प्रश्न 13. आवेश का रैखिक घनत्व से क्या समझते हैं। इसका मात्रक लिखें।
उत्तर: किसी चालक के प्रति एकांक लम्बाई के आवेश के परिमाप को आवेश का रैखिक द्वारा व्यक्त किया जाता है।
∴ λ = q/l
इसका मात्रक C-m-1 होता है।
प्रश्न 14. आवेश का पृष्ठ (तलीय) घनत्व से क्या समझते हैं।
उत्तर: किसी चालक के प्रतिएकांक क्षेत्रफल के आवेश के परिमाप को आवेश का तलीय घनत्व कहा जाता है। इसे σ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
पष्ठ घनत्व
∴ σ = q/A
इसका मात्रक C-m-2होता है।
प्रश्न 15. विद्युत फ्लस्क क्या है?
उत्तर: किसी क्षेत्र के क्षेत्रफल सदिश एवं तीव्रता के अदिश गुणनफल को विद्युत फ्लक्स कहा जाता है। इसे Φ द्वारा सूचित किया जाता है।
∴ Φ= Eds cosθ
जहाँ E= तीव्रता
ds = क्षेत्रफल इसका मात्रक
V – m होता है।
प्रश्न 16. गतिशीलता से क्या समझते हैं?
उत्तर: एकांक परिमाण के विद्युत क्षेत्र से उत्पन्न संवहन (अनुगमन) वेग को गतिशीलता कहा जाता है। इसे प्रायःμ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
∴ μ = Vd/E
प्रश्न 17. कार्बन प्रतिरोध के कलर कोड का क्या तात्पर्य है।
उत्तर: इलेक्ट्रॉनिक के छोटे-छोटे उपकरणों का प्रतिरोध व्यक्त करने के लिए रंगीन संकतों या कलर कोड का उपयोग किया जाता है। प्रतिरोध व्यक्त करने की इसी विधि को कार्बन प्रतिरोध का कलर कोड कहा जाता है। इसमें कुछ दस रंगों का प्रयोग होता है जिसका क्रमांक 0, 1, 2, ……9 तक होता है। इस विधि में पहली एवं दूसरी रंगीन पट्टिका सार्थक अंक को, तीसरी पट्टिका दाशमिक गुणक को तथा चौथी पट्टिका सहन शक्ति को व्यक्त करता है। इस विधि में प्रयुक्त रंगों का क्रमानुसार नाम निम्न है। काला, ‘भूरा, लाल, नारंगी, पीला, हरा, नीला, बैंगनी, धूसर एवं सफेद।
प्रश्न 18. ऐम्पियर को परिभाषित करें।
उत्तर: दो समांतर धारावाही तारों के बीच क्रियाशील बल
प्रश्न 19. अपवाह वेग या अनुगमन वेग से क्या समझते हैं?
उत्तर: वैद्युत क्षेत्र के प्रभाव से उत्पन्न दिष्ट प्रवाह की दिशा में आवेश का औसत वेग ही उसका अपवाह वेग या अनुगमन वेग कहलाता है।
माना कि किसी चालक की लम्बाई । एवं अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल A है।
चालक का आयतन = Al
यदि चालक के एकांक आयतन में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या n हो तो पूरे चालक में स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या = nAL
अतः चालक का आवेश q= nAle
प्रश्न 20. प्रतिघात एवं प्रतिबाधा से क्या समझते हैं?
उत्तर: किसी कुंडली के स्वप्रेरकत्व एवं संघारित के धारिता द्वारा आरोपित परिपथ में धारा के प्रवाह में आरोपित प्रभावी अवरोध को प्रतिघात कहा जाता है। प्रेरण कुण्डली में प्रतिघात Lw
एवं संधारिता में 1/cw होता है।
LCR परिपथ द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के प्रवाह में लगाया गया कुछ प्रभावी अवरोध को प्रतिबाधा कहा जाता है। इसे z द्वारा सूचित किया जाता है।
अतः एक ऐम्पियर प्रबलता की विद्युत धारा वह स्थाई धारा है जो हवा या निर्वात में एक दूसरे से एक मीटर की दूरी पर स्थित दो लंबे, सीधे एवं समांतर चालकों से प्रवाहित होने पर उनके बीच 2 × 10-7N-m-1 का बल उत्पन्न कर देती है।
प्रश्न 21. स्वप्रेरण एवं स्वप्रेरकत्व क्या है? समझावें।
उत्तर: किसी कुंडली से प्रवाहित धारा को परिवर्तित करने पर स्वयं उसी कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहब बल एवं प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होने की घटना को स्वप्रेरण कहा जाता है। किसी कुंडली का स्वप्रेरकत्व प्रेरित विद्युत वाहक बल के संख्यात्मक मान के बराबर होता द्वारा सूचित किया जाता है। इसका मात्रक henry (H) होता है।
प्रश्न 22. धारा घनत्व को परिभाषित करें।
उत्तर: धारा घनत्व के एकांक अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल से प्रवाहित धारा के परिमाण को धारा घनत्व कहा जाता है। इसे प्रायः J द्वारा सूचित किया जाता है।
J = I/A
इसका मात्रक A/m2 होता है।
प्रश्न 23. प्रतिचुम्बकीय पदार्थ से क्या प्रते हैं?
उत्तर: वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य होता हो प्रतिचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र से कम शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र की ओर गतिशील होते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृति एकांक से कम एवं ऋणात्मक होती है।
Ex. विस्मथ, चाँदी, तांबा, जस्ता, सीसा, सोना इत्यादि।
प्रश्न 24. अनुचुम्बकीय पदार्थ से क्या समझते हैं?
उत्तर: वैसे पदार्थ जिनका कुल चुम्बकीय आघूर्ण शून्य नहीं होता है अनुचुम्बकीय पदार्थ कहलाते हैं। ये पदार्थ निम्न चुम्बकीय क्षेत्र से उच्च चुम्बकीय क्षेत्र की ओर, गमन करते हैं। इनकी चुम्बकीय प्रवृत्ति एकांक से कम एवं धनात्मक होता है
Ex. प्लैटिनम, मैंगनीज, ऑक्सीजन, ऑसनियम इत्यादि।
प्रश्न 25. स्थायी चुम्बक किस चीज का बना होता है। इसके गुणों का उल्लेख करें।
उत्तर: स्थायी चुम्बक प्रायः इस्पात का बना होता है। स्थायी चुम्बक के निम्न गुण है।
- उच्च चुम्बक धाराणशीलता
- यांत्रिक परिवर्तन सहन करने की क्षमता
- उच्च निग्राहिता
- अल्प शैथिल्य हानि।
प्रश्न 26. लॉरेंज बल क्या है।
उत्तर: माना कि l लम्बाई के चालक से q आवेश V वेग से प्रवाहित होता है। यदि चालक चुम्बकीय क्षेत्र B में स्थित हो तो लॉरेन्ज के
प्रश्न 27. पोलैरॉइड क्या हैं? इसका उपयोग लिखें।
उत्तर: ऐसी व्यवस्था जिसमें चयनात्मक शोषण द्वारा समतल-ध्रुवित प्रकाश देता है। पोलेरॉइड कहा जाता है।
इसका उपयोग निम्न है-
- रेलगाड़ियों तथा हवाई जहाज के खिड़कियों पर तीव्र प्रकाश को नियंत्रित करने में
- चश्में की शीशे में
- मोटरकार के अग्रदीपों पर तथा वायु पट पर।
प्रश्न 28. पारित्र (Capacitance) की धारिता से क्या समझते हैं?
उत्तर: मान लिया कि संधारित्र के संग्राहक प्लेट पर Q आवेश देने से उसके प्लेटों के बीच विभवान्तर ν हो जाता है।
∴ Q ∝ ν =c ν
जहाँ c एक स्थिर राशि है। इसे संधारित्र की धारिता (capacity of capacitance) कहते हैं। यदि V= 1 हो तो Q = c
अतः संधारित्र के प्लेटों के बीच इकाई विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए दिये गये आवेश को “संधारित्र की धारिता” कहते हैं।
यह धारिता निम्न बातों पर निर्भर करती है-
- प्लेटों के सतहों के समानुपाती
- प्लेटों के बीच के माध्यम की विद्युतशीलता के समानुपाती
- प्लेटों के बीच की दूरी के व्युत्क्रमानुपाती (invessely prop) होता है।
प्रश्न 29. किसी उत्तल लेंस को पानी में पूर्णतः डुबाने पर उसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है, क्यों?
उत्तर: किसी लेंस की फोकस दूरी निम्न सूत्र द्वारा दी जाती है-
जहाँ लेंस पदार्थ का अपवर्तनांक है तथा. माध्यम का अपवर्तनांक तथा r1, एवं r2, लेंस की सतहों की वक्रता त्रिज्याएं हैं।
अतः दिये गए लेंस के लिए-
∴ fw > fa अतः पानी में लेंस की फोकस दूरी हवा की अपेक्षा अधिक होगी।
प्रश्न 30. सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय क्षितिज लाल प्रतीत क्यों होता है?
उत्तर: लॉर्ड रैले (Lord Rayliegh) के अनुसार प्रकीर्णन तीव्रता (I) तरंग लंबाई (λ) के Fourth Power के व्युत्क्रमानुपाती होती है।
अर्थात् I ∝ I/λ4
सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें तिरछी दिशा में वायुमंडल में अधिक दूरी तय करके हमारी आँखों पर पहुंचती हैं। प्रकाश के लाल रंग का तरंग लम्बाई अधिक तथा नीला या बैंगनी का कम होता है।
इस कारण से प्रकाश के लाल रंग का प्रकीर्णन कम तथा नीला या बैंगनी का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। इससे नीला या बैंगनी वायुमण्डल में विलीन हो जाती है। लाल किरणों का प्रकीर्णन कम होने से वह बचा रह जाता है। इस कारण से ही सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्षितिज लाल प्रतीत होता है।
प्रश्न 31. आकाश नीला क्यों दिखाई पड़ता है?
उत्तर: वायुमण्डल में जल कण, धूल-कण, धातुएँ के कण तथा गैस के अणु उपस्थित रहते हैं। सूर्य का श्वेत प्रकाश इन कणों पर आपतित होती है। कण इन प्रकाशों का प्रकीर्णन (Scattering) करता है। इसमें लाल रंग के प्रकाश की तरंग लम्बाई सबसे अधिक होती है।
अत: इसका प्रकीर्णन कम होता है परन्तु नीला रंग का तरंग लम्बाई सबसे कम होता है। इसमें प्रकाश प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। इस कारण से आकाश में नीले रंग के प्रकाश सबसे अधिक . पाये जाते हैं, जिससे आकाश नीला या आसमानी दिखलाई पड़ता है।
प्रश्न 32. प्रकाश वर्ष क्या है ?
उत्तर: निर्वात (vacuum) में प्रकाश 1 वर्ष में जितनी दूरी तय करती है उसे ‘प्रकाश-वर्ष’ कहते हैं।
प्रकाश वर्ष का विमा = दूरी का विमा = [L]
अब निर्वात में प्रकाश द्वारा 1 sec. में तय की गई दूरी
= 3 × 108 मी०
∴ 1 प्रकाश वर्ष = 365 × 24 × 60 × 60 × 3 × 108 मी०
= 9.461 × 1015 मीटर
= 9.461 × 1012 कि० मीटर
सूर्य से पृथ्वी तक प्रकाश को आने में लगभग 8 मिनट लगता है। अतः सूर्य से पृथ्वी की दूरी 8 प्रकाश मिनट होती है। पृथ्वी से निकटतम तारा की दूरी 22 प्रकाश वर्ष है।
प्रश्न 33. प्रकाश के वर्ण विक्षेपण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जब एक श्वेत प्रकाश (White light) की किरण प्रिज्म से गुजरती है तब यह सात . रंगों में विभक्त हो जाता है। इस घटना को “प्रकाश का वर्ण- विक्षेपण” कहते हैं।
इन सातों रंगों को “बैनीआहपीनाला” से जाना जाता है। इसमें बैगनी रंग का प्रिज्म से विचलन सबसे अधिक तथा लाल रंग का सबसे कम होता है। इस कारण से बैगनी सबसे नीचे तथा लाल सबसे ऊपर हो जाता बीच में बाकी पाँच रंगों की किरणें रहती है।
मान लिया कि लाल तथा बैगनी रंग की किरणों का विचलन क्रमशः δR तथा δν है। इसके अपवर्तनांक क्रमशः μR तथा μν है।
∴ δR = (μR- 1)A, जहाँ A प्रिज्म का वर्तक कोण है।
तथा δv = (μν – 1)A
∴ वर्ण विक्षेपण कोण = δν – dR
= (μν – 1)A – (μR – 1) A
= (μν – μR)A
प्रश्न 34. खतरे की सूचना लाल बत्ती से ही क्यों दी जाती है?
उत्तर: लॉर्ड रैले (Lord Rayleigh) के अनुसार प्रकीर्णन तीव्रता (I) तरंग लम्बाई (λ) के forth power के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अर्थात् I ∝ 1/λ4
लाल रंग के प्रकाश की तरंग लम्बाई सबसे अधिक होती है।
अतः इसका प्रकीर्णन कम होता है। इस कारण से लाल वस्तु दूर तक चला जाता है। इससे हमें लाल बहुत दूर से ही दिखलाई पड़ने लगता है। अतः रेलवे में खतरे की सूचना लाल बत्ती से दी जाती है।
प्रश्न 35. प्रकाश के विवर्तन तथा व्यतिकरण की तुलना करें।
उत्तर:
- व्यतिकरण दो फलाबद्ध स्रोतों (coherent source) से निकलने वाली तरंगों के आपसी अध्यारोपण (Super position) के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। परन्तु विवर्तन एक ही तरंगाग्र (wave front) के विभिन्न बिन्दुओं से चलने वाले Secondary wave lets के अध्यारोपण से उत्पन्न होता है।
- व्यतिकरण में सभी चमकीली धारियाँ एक ही तीव्रता की होती हैं। परन्तु विवर्तन में सभी विभिन्न तीव्रताओं के रहते हैं।
- व्यतिकरण में धारियों की चौथाई समान होती है परन्तु विवर्तन में समान नहीं रहती है।
- व्यतिकरण धारियों में न्यूनतम प्रदीपन (minimum illumination) की स्थिति पूर्ण रूप से काली होती है। परन्तु विवर्तन में पूर्ण काली नहीं होती है।
प्रश्न 36. यंत्र की विर्भेदन क्षमता का क्या अर्थ है?
उत्तर: किसी यंत्र की विभेदन क्षमता वह क्षमता है जो बहुत ही निकट के तरंग लम्बाई का प्रतिबिम्ब अलग-अलग बना लें। Na में 5890 Å तथा 5896Å तरंग लम्बाई के दो तरंगों बहुत निकट में रहते हैं। इसे अलग करने को विभेदन क्षमता कहते हैं।
इसकी माप इन दोनों द्वारा objective पर बनाये गये कोण से की जाती है। कोण के छोटा रहने पर विभेदन क्षमता अधिक होती है।
प्रश्न 37. सौर वर्णपट में काली रेखाओं की उपस्थिति का कारण बतलावें।
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश से लगातार वर्णपट प्राप्त होता है। इसमें सात रंग दिखलाई पड़ते हैं। फ्रॉन हाफर (Fraunhofer) नाम के एक वैज्ञानिक ने एक अच्छे यंत्र से देखकर यह पता लगाया कि वर्णपट में सात रंग के अलावा बहुत सी काली-काली रेखाएं हैं।
इन रेखाओं की उपस्थिति का कारण किरचॉफ (Kirchoff) ने बतलाया। इसके लिए उसने एक नियम दिया-“कम ताप पर स्थिर तत्त्व उसी तत्त्व से अधिक ताप स्रोतों से निकले प्रकाश को शोषित कर देता है।”
सूर्य के भीतरी भाग को “प्रकाश मंडल (Photo sphere) कहते हैं।” इसका ताप कई लाख डिग्री या सेन्टीग्रेड रहता है। इसके चारों ओर कम ताप वाला घेरा रहता है। इसे “काल मण्डल (Chromo sphere)” कहते हैं। प्रकाश मण्डल से जब प्रकाश चलता है तब इनमें से कुछ रंगों की रेखा को काल मण्डल शोषित कर लेता है। इसके फलस्वरूप सौर वर्णपट में बहुत.सी काली रेखाएँ दिखलाई पड़ती हैं।
प्रश्न 38. प्रकाश का फोटो सेल क्या है?
उत्तर: फोटो सेल एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सकता है। यह प्रकाश विद्युत प्रभाव के सिद्धान्त पर बनी रहती है। यह मुख्यतः दो प्रकार का होता है-
- प्रकाश उत्सर्जक सेल (Photo emissive cell)
- प्रकाश वोल्टीय सेल (Photo voltaic cell)
उपयोग –
- सिनेमाओं में ध्वनि के पुनः उत्पादन (reproduction) में।
- टेलीविजन तथा फोटोग्राफी में।
- अन्तरिक्ष में Solar battery द्वारा विद्युत उत्पन्न में।
- सड़कों पर बत्तियों के अपने-आप जलने या बुझने में तथा crossing पर signal देने के काम में.
- दरवाजों को अपने-आप खोलने तथा बन्द करने में।
- बैंक, खजानों इत्यादि में चोरों की सूचना देने के काम में।
- मौसम विज्ञान विभाग में दिन के प्रकाश की तीव्रता मापने के काम में।
- तारों के ताप मापने के काम में।
प्रश्न 39. समान फोकस दूरी के एक अवतल एवं एक उत्तल लेंस समाक्षीय रूप में एक दूसरे से सटाकर रखे गये हैं। इस संयोग की क्षमता एवं फोकस दूरी ज्ञात करें।
उत्तर: मान लिया उत्तल एवं अवतल लेसों की क्षमता क्रमशः P, एक P, है तो इस संयोग की क्षमता होगी-
P = P1 + P2
लेकिन यह P2 = -P1 है क्यों कि दोनों की क्षमता समान लेकिन प्रकृति विपरित है।
अतः P = P1 + (-P1) = 0 (शून्य)
अर्थात् इस संयोग की क्षमता शून्य होगी।
अर्थात् फॉकस दूरी अनन्त होगी।
अतः यह संयोग एक सामान्य कांच की प्लेट जैसा कार्य करेगा।
प्रश्न 40. पूर्ण आंतरिक परावर्तन क्या है? इसके लिए दो आवश्यक शर्तों को लिखें।
उत्तर:
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन : जब प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करता है तो अपवर्त्तन के कारण यह अविलम्ब से दूर हट जाता है। अर्थात् r > i होता है। i का मान बढ़ाने के साथ r का मान भी बढ़ता जाता है और i के एक विशेष मान ic पर r = 90° हो जाता है। अब अगर i का मान और बढ़ाया जाय तो किरण दूसरे माध्यम से प्रवेश नहीं कर पाता है बल्कि उसी माध्यम में लौट आता है अर्थात् इसका पूर्ण आन्तरिक परावर्तन हो जाता है। 90° के अपवर्त्तन कोण के संगत आपतन कोण ic को क्रांतिक कोण कहा जाता है जिसका मान दोनों माध्यमों की प्रकृति
पर निर्भर करता है तथा sinic = μ1/μ2
पूर्णतः आन्तरिक परावर्तन के लिए शर्त-
- प्रकाश सघन से विरल की ओर चलना चाहिए
- i > ic होना चाहिए।
प्रश्न 41. ऑप्टिकल फाइवर क्या है?
उत्तर: ऑप्टिकल फाइवर: यह एक प्रकाशिक युक्ति जिसकी सहायता से बिना तीव्रता क्षय के प्रकाश को एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रेषित किया जाता है। यह पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके केन्द्रीय भाग में उच्च कोटि के काँच या क्वार्टज होता है जिसे क्रोड कहा जाता है। यह कम अपवर्तन में आवरण से घिरा रहता है जिसे cladin कहा जाता. है। क्लैडिंग भी एक कवर से ढंका रहता है जिसे Jacket कहा जाता है। एक से लेकर कई सौ फाइवर मिलकर केवल (cable) बनाते हैं।
आज कल इसका उपयोग अनेक रूपों में किया जा रहा है। जैसे-
- चिकित्सीय जाँच में लाइट पाइप के रूप में
- प्रकाशीय संकेतों के सम्प्रेषण में
- इसका उपयोग विद्युत संकतों को भी सूदूर स्थानों पर भेजने में भी किया जाता है।