Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 2
Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 2
BSEB 12th History Important Questions Short Answer Type Part 2
प्रश्न 1. अकबर के व्यक्तित्व पर टिप्पणी दें।
उत्तर: अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित हैं और इसकी महानता का मुख्य कारण है-इसका विराट् व्यक्तित्व। साम्राज्य की सुदृढ़ता, साम्राज्य में शांति स्थापना तथा मानवीय भावनाओं से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर मुसलमानों को राहत दिया, राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया बल्कि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया। धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है।
प्रश्न 2. अकबर ने लगान व्यवस्था में कौन-से सुधार किये ?
उत्तर: अकबर ने टोडरमल की सहायता से समस्त भूमि की नाप ईलाही गज से करवाई। समस्त जमीन को पोलज, परौती, चचर और बंजर में विभक्त कर उपज के अनुसार लगान की राशि तय की गई। 1580 में लगान वसूली के लिए दहसाला प्रबंध या जाब्ती व्यवस्था लागू की गई। उपज बढ़ाने के लिए किसानों को सहायता दी जाती थी। आवश्यकतानुसार लगान में कमी की जाती थी या माफी दी जाती थी।
प्रश्न 3. फतेहपुर सीकरी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर: 1556 ई० में जब अकबर बादशाह बना उस समय मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा में थी। 1570 ई० में उसने फतहपुर सीकरी में एक नयी राजधानी बनाने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि अकबर की अजमेर के शेख मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह पर असीम आस्था थी और फतेहपुर सीकरी अजमेर की ओर जानेवाली सीधी सड़क पर अवस्थित था, इसलिए उसने नयी राजधानी के लिए इस जगह का चुनाव किया। यहाँ उसने सुन्दर महल बनवाये। गुजरात विजय की स्मृति में बुलन्द दरवाजा बनवाया। उसने यहाँ शेख सलीम चिश्ती का मकबरा भी बनवाया। किन्तु अधिक दिनों तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी नहीं रह सकी। पश्चिमोत्तर प्रान्त पर ध्यान देने के लिए 1585 में अकबर राजधानी लाहौर ले गया।
प्रश्न 4. खान-ए-खाना के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर: खान-ए-खाना (Khan-a-khana) – खान-ए-खाना का शाब्दिक अर्थ है- खानों (उपाधि खान, मलिक आदि) में सबसे महान। यह एक उपाधि थी जो अकबर ने बैरम को दी थी। बैरम खाँ अकबर का संरक्षक एवं गुरु था। सन् 1556 से 1560 ई० तक बैरम खाँ ने अकबर को अपने दिशा-निर्देश द्वारा राजकार्य चलवाया। सिंहासनारोहण के समय अकबर की आयु केवल 13 वर्ष एवं 4 माह थी। अतः मुगल साम्राज्य स्थिरीकरण में बैरमखाँ का बड़ा हाथ था।
प्रश्न 5. अंबुल फजल कौन था ? उस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: अबुल फजल-वह अकबरकालीन महान कवि, निबन्धकार, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ सेनापति तथा आलोचक था। उसका जन्म 1557 ई० में आगरा के प्रसिद्ध सूफी शेख मुबारक के यहाँ हुआ था। उसने 1574 ई० में अकबर के दरबारियों के रूप में अपना जीवन शुरू किया। उसने कोषाध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री तक के पद पर कार्य किया। यह भारतीय इतिहास में एक महान इतिहासकार के रूप में प्रसिद्ध है। उसने दो प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुस्तकों की रचनाएँ की। वे थीं ‘अकबरनामा’ तथा ‘आइने अकबरी’। ये दोनों ग्रंथ फारसी भाषा में लिखे गये और अकबर कालीन इतिहास जानने के मूल स्रोत हैं।
अकबरनामा अकबर की जीवनी, विजयों, शासन प्रबन्ध के साथ-साथ तत्कालीन भारतीय राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक परिस्थितियों को समझने में भी सहायक हैं। उसने ‘पंचतंत्र’ का अनुवाद फारसी में किया और उसका नाम ‘अनघरे साहिली’ रखा। उसे अकबर के नौ रत्नों में स्थान प्राप्त था। उसने अनेक सैनिक अभियानों का नेतृत्व भी किया। वह पर्याप्त समय तक अकबर का प्रधानमंत्री और परामर्शदाता रहा। उसके विचार सूफी सन्तों से मिलते थे। धार्मिक दृष्टि से उसका दृष्टिकोण बहुत उदार था। कहा जाता है कि उसी ने अकबर को दीन-ए-इलाही नामक धर्म चलाने की प्रेरणा दी थी। इबादतखाने में वह सूफी मत के लोगों का प्रतिनिधित्व किया करता था।
अकबर के नौ रत्नों में दीन-ए-इलाही को अपनाने वाला वह पहला व्यक्ति था। उसे सलीम ने ओरछा नरेश वीरसिंह बुन्देला के साथ सांठ-गांठ करके मरवा डाला था। कहते हैं अबुल फजल की मृत्यु के शोक में अकबर ने तीन दिनों तक दरबार नहीं गया। अकबर ने भावुक होकर कहा था कि “अगर सलीम राज्य चाहता था तो वह मेरी हत्या करवा देता लेकिन अबुल फजल को छोड़ देता।” जब तक भारतीय इतिहास में अकबर का नाम रहेगा तब तक अबुल फजल को अवश्य याद किया जायेगा।
प्रश्न 6. अकबरकालीन युग के नवरत्न पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: अकबर के नवरत्ल-अकबर के पास विद्वानों का समूह था, जो नवरत्नों के नाम से प्रसिद्ध था। जिनमें से प्रसिद्ध विद्वान थे-अबुल फजल, फैजी, रहीम खान-ए-खाना, टोडरमल, तानसेन और बीरबल। बीरबल अपनी बुद्धिमत्ता, तत्परता और हँसी-मजाक के लिए प्रसिद्ध था। वह एक महान् सेनापति भी था। एक अन्य रत्न था, राजा मानसिंह। वह एक महान् सेनापति होने के अलावा अकबर का अति विश्वसनीय सलाहकार भी था। कई अन्य विद्वान भी अकबर के संरक्षण में थे।
तानसेन अकबर के दरबार का एक प्रसिद्ध संगीतकार था। वह अकबर के नवरत्नों में से एक था। उसने अनेक रागों की गायन-शैली में नवीनता का समावेश करके भारतीय संगीत को समृद्ध किया। राग दरबारी इन रागों में सबसे अधिक लोकप्रिय था जिसकी रचना तानसेन ने विशेष रूप से अकबर के लिए की थी। अकबर के शासन काल में भारत की संगीत कला में फारस की संगीत कला की ‘बहुत-सी विशेषताएँ ली गई थीं। अबुल फजल तानसेन के बारे में लिखता है- “उस जैसे संगीतकार भारत में आने वाले हजारों वर्षों तक नहीं होगा।”
प्रश्न 7. चाँद बीबी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1. 1519 ई० में अकबर ने कूटनीतिक स्तर पर कार्यवाही आरम्भ की तथा प्रत्येक दक्कनी राज्य में दूत भेजे और उसने मुगल सत्ता स्वीकार करने को कहा। 1595 ई० में बुरहान की मृत्यु के बाद छिड़े निजामशाही सरदारों के आपसी संघर्ष ने अकबर को अवसर दे दिया। उत्तराधिकार का संघर्ष छिड़ गया।
2. बुरहान की बहन चाँद बीबी इब्राहीम के चाचा और बीजापुर के भूतपूर्व सुल्तान की विधवा थी। वह बहुत योग्य स्त्री थी और उसने आदिलशाह के वयस्क होने के दस साल तक शासन सँभाला था।
3. अहमदनगर के अमीरों में आपस में फूट होने के कारण राजधानी तक मुगलों को बहुत कम विरोध का सामना करना पड़ा। चाँद बीबी ने तरुण सुल्तान बहादुर के साथ स्वयं को किले के अंदर बंद कर लिया। चार महीनों के घेरे के बाद दोनों पक्षों में समझौता हुआ। शर्तों के अनुसार बरार मुगलों को सौंप दिया गया और शेष क्षेत्र पर फिर सुल्तान बहादुर का अधिकार मान लिया गया। 1596 ई० में यह समझौता हुआ।
4. बीजापुर, गोलकुण्डा और अहमदनगर की संयुक्त सेना को 1597 ई० में मुगलों ने बरार से खदेड़ दिया। बीजापुर और गोलकुण्डा की सेनाएँ पीछे हट गईं परन्तु चाँद बीबी ने फिर समझौते की बात चला दी परन्तु उसके विरोधियों ने उसे विश्वासघाती कहा और उसे मार डाला। अहमदनगर पर आक्रमण करके उसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
प्रश्न 8. बुकानन कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: फ्रांसीसी बुकानन एक चिकित्सक था जो भारत में 1794 में आया। उन्होंने 1794 से 1815 तक बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। कुछ वर्षों तक वे भारत के गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली के शल्य-चिकित्सक रहे। उन्होंने अपने प्रवास के दौरान कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक चिड़ियाघर की स्थापना की जो अलीपुर चिड़ियाघर कहलाया। वे कुछ समय के लिए वानस्पतिक उद्यान के प्रभारी रहे। उन्होंने बंगाल सरकार के अनुरोध पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया। वे 1815 में बीमार हो गए और इंग्लैंड चले गए। बुकानन अपनी माताजी की मृत्यु के पश्चात् उनकी जायदाद के वारिस बने और उन्होंने उनके वंश का नाम ‘हैमिल्टन’ को अपना लिया। इसलिए उन्हें अक्सर बुकानन-हैमिल्टन भी कहा जाता है।
प्रश्न 9. मुगलकाल में महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालें।
उत्तर: मुगलकाल में आम महिलाओं में पर्दा-प्रथा का रिवाज था। शिक्षा और सम्पत्ति उनके अधिकार भी सीमित थे। बहु पत्नी प्रथा सती प्रथा भी समाज में प्रचलित थी। मुगल राजपरिवार की महिलाएँ प्रभावी भी थीं। जहाँआरा व्यापार, निर्माण कार्य में रूचि लेती थी तो हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूँनामा की रचना की। नूरजहाँ का मुगल दरबार में प्रभाव तो जगजाहिर ही था।
प्रश्न 10. जमींदार कौन थे ? मुगल व्यवस्था में उनकी क्या भूमिका थीं?
उत्तर: मुगलकालीन ग्रामीण समुदाय में जमींदारी का प्रभावशाली वर्ग था। जमींदार वे थे जिनका भूमि और कृषि से सम्बन्ध तो था परन्तु वे प्रत्यक्ष रूप से कृषि में भाग नहीं लेते थे। जमीन पर उनका पुश्तैनी और मालिकाना हक था।
जमींदारों की मुख्य तीन श्रेणियाँ थीं-
- स्वायत्त सरदार
- मध्यवर्ती जमींदार
- प्राथमिक जमींदार।
इनका मुख्य कार्य राजस्व की वसूली करना तथा कृषि के विस्तार को प्रोत्साहित करना था। आवयकतानुसार ये शांति स्थापना तथा राज्य को सैनिक सेवा. भी प्रदान करते थे।
प्रश्न 11. साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर: साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका (The Role of the Begums of Bhopal in Preserving the Stupa of Sanchi)
(i) भोपाल की नवाब (शासन काल 1868-1901), शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ताज-उल इकवाल तारीख भोपाल (भोपाल का इतिहास) से। 1876 ई० में एच० डी० ब्रास्तो ने इसका अनुवाद किया। बेगम साँची के स्तूप की प्रसिद्धि एवं जानकारी का प्रचार-प्रसार करना चाहती थी।
(ii) उन्नीसवीं सदी के यूरोपीयों में साँची के स्तूप को लेकर काफी दिलचस्पी थी। फ्रांसीसियों ने सबसे अच्छी हालत में बचे साँची के पूर्वी तोरण द्वारा को फ्रांस ले जाने की इजाजत माँगी। कुछ समय के लिए अंग्रेजों ने भी ऐसी ही कोशिश की। सौभाग्यवश फ्रांसिसी और अंग्रेज दोनों ही बड़ी सावधानी से बनाई प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्टि हो गये। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपनी जगह पर ही रही।
(iii) भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान किया। आश्चर्य नहीं कि जॉन मार्शल ने साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को सुल्तानजहाँ को समर्पित किया।
(iv) सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान दिया। वहाँ रहते हुए ही जॉन मार्शल ने उपर्युक्त पुस्तकें लिखीं। इस पुस्तक के विभिन्न खंडों के प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया। इसलिए यदि यह स्तूप समूह बना रहा है तो इसके पीछे कुछ विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका है। शायद हम इस मामले में भी भाग्यशाली रहे हैं कि इस स्तूप पर किसी रेल ठेकेदार का निर्माता की नजर नहीं पड़ी। यह उन लोगों से भी बचा रहा जो ऐसी चीजों को यूरोप के संग्रहालयों में ले जाना चाहते थे।
(v) बौद्ध धर्म के इस महत्वपूर्ण केन्द्र की खोज से आरंभिक बौद्ध धर्म के बारे में हमारी समझ में महत्वपूर्ण बदलाव आये। आज यह जगह आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सफल मरम्मत और संरक्षण का जीता जागता उदाहरण है।
प्रश्न 12. अमीर खुसरो कौन था ? उनके नाम के साथ कौल शब्द कैसे जुड़ा है ?
उत्तर: अमीर खुसरो (1253-1323) महान कवि, संगीतज्ञ तथा खेश निजामुद्दीन औलिया के अनुयायी थे। उन्होंने कौल (अरबी शब्द जिसका अर्थ है कहावत) का प्रचलन करके चिश्ती समा को एक विशिष्ट आकार दिया। कौल को कव्वाली के शुरू और आखिर में गाया जाता था। इसके बाद सूफी कविता का पाठ होता था जो फारसी, हिन्दवी अथवा उर्दू में होती थी और कभी-कभी इन तीनों ही भाषाओं के शब्द इसमें मौजूद होते थे। शेख निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर गाने वाले कव्वाल अपने गायन की शुरुआत कौल से करते हैं। उपमहाद्वीप की सभी दरगाहों पर कव्वाली गाई जाती है।
प्रश्न 13. ‘भक्ति और सूफी आन्दोलन एक-दूसरे के पूरक थे।’ व्याख्या कीजिए।
उत्तर: भारत में मध्यकाल में एक नवीन धार्मिक आन्दोलन प्रारम्भ हुआ। हिन्दुओं के आन्दोलन को भक्ति आन्दोलन तथा मुसलमानों के आन्दोलन को सूफी आन्दोलन कहते हैं। ये दोनों ही आन्दोलन आम जनता पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हुए। हालांकि रीति-रिवाजों में ये एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न थे किन्तु वृहद् दृष्टि से ये एक-दूसरे के पूरक भी थे। दो समुदायों में एक साथ आन्दोलन शुरू होना ही इस तथ्य की पुष्टि करता है कि दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
भक्ति एवं सूफी आन्दोलन के प्रभाव-
- इन आन्दोलनों के सन्तों ने धर्म की जटिलताओं को दूर करके उसे सभी के लिए सरल एवं सुलभ बना दिया।
- भक्ति तथा सूफी दोनों ही आन्दोलनों ने स्थापित धार्मिक व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया था।
- दोनों ही आन्दोलनों में गरीब, लाचार एवं बेबस लोगों की ओर विशेष ध्यान दिया गया था।
- सन्तों एवं सूफियों की वाणी घर-घर तक पहुंच गई।
- सन्तों का जीवन अत्यन्त सादा तथा आदर्शों से भरा हुआ था।
- नृत्य एवं संगीत ईश्वर से प्रेम करने का साधन बना।
- इस आन्दोलन ने जाति प्रथा जैसी सामाजिक व्यवस्था को कमजोर कर दिया।
प्रश्न 14. ‘भुक्ति’ शब्द का क्या आशय है ?
उत्तर: गुप्त काल में प्रांत को ‘भुक्ति’ कहा जाता था। प्रांत भी कई इकाइयों में बँटा हुआ था। भुक्ति का प्रबंध मुख्यतः राजकुमारों अथवा राजवंश के विश्वस्त लोगों को ही सौंपा जाता था।
प्रश्न 15. सूफीवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: सूफीवाद उन्नीसवीं शताब्दी में मुद्रित एक अंग्रेजी शब्द है। सूफीवाद के लिए इस्लामी ग्रंथों में जिस शब्द का इस्तेमाल होता है वह है तसत्वुफ। कुछ विद्वानों के अनुसार यह शब्द ‘सूफ’ से निकला है जिसका अर्थ ऊन है। यह उस खुरदुरे ऊनी कपड़े की ओर इशारा करता है जिसे सूफी पहनते थे। अन्य विद्वान इस शब्द की व्युत्पत्ति ‘सफा’ से मानते हैं जिसका अर्थ है साफ। यह भी संभव है कि यह शब्द ‘सफा’ से निकला हो जो पैगम्बर की मस्जिद के बाहर एक चबूतरा था जहाँ निकट अनुयायियों की मंडली धर्म के बारे में जानने के लिए इकट्ठी होती थी।
प्रश्न 16. सूफी सन्त के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए। इनका जन-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
- एकेश्वरवाद (Mono God) – सूफी लोग इस्लाम धर्म को मानने के साथ एकेश्वरवाद पर जोर देते थे। पीरों और पैगम्बरों के उपदेशों को वे मानते थे।
- रहस्यवाद (Mistensue) – इनकी विचारधारा रहस्यवादी है। इनके अनुसार कुरान के छिपे रहस्य को महत्त्व दिया जाता है। सूफी सारे विश्व के कण-कण में अल्लाह को देखते हैं।
- प्रेम साधना पर जोर (Stress on Love and Meditation) – सच्चे प्रेम से मनुष्य अल्लाह के समीप पहुँच सकता है। प्रेम के आगे नमाज, रोजे आदि का कोई महत्त्व नहीं।
- भक्ति संगीत (Bhakti Music) – वे ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए गायन को विशेष महत्त्व देते थे। मूर्ति-पूजा के वे विरोधी थे।
- गुरु या पीर का महत्व (Importance of Pir or Teacher) – गुरु या पीर को सूफी लोग अधिक महत्त्व देते थे। उनके उपदेशों का वे पालन करते थे।
- इस्लाम विरोधी कुछ सिद्धान्त (Some Principles Against Islam) – वे इस्लाम विरोधी कुछ बातें-संगीत, नृत्य आदि को मानते थे। वे रोजे रखने और नमाज पढ़ने में विश्वास नहीं रखते थे।
प्रश्न 17. चिश्ती सम्प्रदाय के तीन प्रमुख संतों का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर: भारत वर्ष में चिश्ती सम्प्रदाय का प्रवर्तक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को माना जाता है। ये 1192 ई० में भारत में आये।
चिश्ती सम्प्रदाय के तीन प्रमुख संतों का परिचय :
- शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी – यह मुइनुद्दीन चिश्ती के प्रमुख शिष्य थे। ये इल्तुतमिश के समय भारत आये। इनका जन्म 1235 ई० में फरगना के गौस नामक स्थान पर हुआ था। बख्तियार (भाग्य-बन्धु) नाम मुइनुद्दीन का दिया हुआ था।
- फरीदउद्दीन-गंज-ए-शकर – इनका जन्म मुल्तान जिले के कठवाल शहर में 1175 ई. में हुआ था। ये बाबा फरीद के नाम से प्रसिद्ध थे। तीन पलियों में से एक, प्रथम पत्नी बलवन की पुत्री थी जिसका नाम हुजैरा था।
- शेख निजामुद्दीन औलिया – इनका वास्तविक नाम मुहम्मद-बिन-दनियल-अल बुखारी था। इनका जन्म बदायूँ में 1236 ई० में हुआ था। इन्होंने अपने जीवनकाल में दिल्ली के सात सुल्तानों का राज्य देखा था। अमीर खुसरो इन्हीं के शिष्य थे। दुर्भाग्यवश इनका सम्बन्ध किसी भी सुल्तान के साथ मधुर नहीं रहा। इनकी मृत्यु 1325 ई० में हुई।
प्रश्न 18. गुरु नानक कौन थे ? उनके व्यक्तित्व के बारे में किसी एक इतिहासकार का कथन लिखिए।
उत्तर: पंजाब में भक्ति आन्दोलन का ज्वार लाने का श्रेय गुरु नानक जी को है। वे जाति-पाँति, धर्म, वर्ग और मूर्ति पूजा के विरोधी थे। उन्होंने निष्काम भक्ति, शुभ कर्म तथा शुद्ध जीवन को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाया। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे। “उनका स्वाभाविक मिठास और सबसे प्रेम करने की भावना के कारण हिन्दू और मुसलमान दोनों उनका आदर करते थे। इसी कारण से वह दोनों धर्मों को एक-दूसरे के समीप लाने का केन्द्र बन गए।”
प्रश्न 19. रामानुज और रामानंद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1. रामानुज (Ramanuja) – शंकराचार्य के बाद प्रसिद्ध भक्त सन्त रामानुज हुए। उन्हें प्रथम वैष्णव आचार्य माना जाता है। उनका कार्य-काल बारहवीं शताब्दी था। उन्होंने सगुण ब्रह्म की भक्ति पर जोर दिया तथा कहा कि उसकी सच्ची भक्ति, ज्ञान तथा कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
2. रामानन्द (Ramanand) – आचार्य रामानुज की पीढ़ी में स्वामी रामानन्द प्रथम सन्त थे जिन्होंने भक्ति द्वारा जन-साधारण को नया मार्ग दिखाया। उनका समय चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध और पंद्रहवीं शताब्दी के प्रथम पच्चीस वर्ष माने जाते हैं। उनका जन्म प्रयाग (इलाहाबाद) में 1299 ई० में कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने एकेश्वरवाद पर जोर देकर हिन्दू मुसलमानों में प्रेम भक्ति सम्बन्ध के साथ सामाजिक समाधान प्रस्तुत किया। उससे भी अधिक उन्होंने हिन्दू समाज के चारों वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) को भक्ति का उपदेश दिया और निम्न वर्ण के लोगों के साथ खान-पान निषेध का घोर विरोध किया। उनके शिष्यों में सभी जातियों के लोग थे। इनमें शूद्र भी थे। इनके शिष्यों में रविदास चर्मकार थे। कबीर जुलाहे थे, सेनापति नाई, पीपा राजपूत थे और सन्तधना कसाई थे। उन्होंने ब्राह्मणों और क्षत्रियों की उच्चता का खण्डन किया और मानववाद तथा मानवीय समानता जैसे प्रगतिशील विचारों एवं सिद्धान्तों का प्रचार किया उन्होंने अपने उपदेशों का प्रचार क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से किया।
प्रश्न 20. कबीर पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: मध्ययुगीन भारतीय संतों में कबीरदास की साहित्यिक एवं ऐतिहासिक देन स्मरणीय है। वे मात्र भक्त ही नहीं, बड़े समाज सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों का डटकर विरोध किया। अंधविश्वासों, दकियानूसी, अमानवीय मान्यताओं तथा गली-सड़ी रूढ़ियों की कटु आलोचना की। उन्होंने समाज, धर्म तथा दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण विचारधारा को प्रोत्साहित भी किया। कबीर ने जहाँ एक ओर बौद्धों, सिद्धों और नाथों की साधना पद्धति तथा सुधार परम्परा के साथ वैष्णव सम्प्रदायों की भक्ति-भावना को ग्रहण किया वहाँ दूसरी ओर राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक असमानता के विरुद्ध प्रतिक्रिया भी व्यक्त की। इस प्रकार मध्यकाल में कबीर ने प्रगतिशील तथा क्रांतिकारी विचारधारा को स्थापित किया। कबीर एकेश्वरवाद के समर्थक थे। वे मानसिक पवित्रता, अच्छे कर्मों तथा चरित्र की शुद्धता पर बल देते थे। उन्होंने जाति, धर्म या वर्ग को प्रधानता नहीं दी। उन्होंने धार्मिक कुरीतियों, आडम्बरों, अंधविश्वासों तथा कर्मकाण्डों को व्यर्थ बतलाया। उन्होंने मूर्ति-पूजा का खंडन करने के उद्देश्य से लिखा था-
“पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार।
ताते तो चाकी भली पीस खाय संसार॥”
सारांश यह है कि कबीर धार्मिक क्षेत्र में सच्ची भक्ति का संदेश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने निर्गुण-निराकार भक्ति का मार्ग अपनाकर मानव धर्म के सम्मुख भक्ति का मौलिक रूप रखा। यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि “कबीर के राम दशरथ पुत्र राजा राम नहीं है अपतुि घट-घट में निवास करने वाली अलौकिक शक्ति हैं जिसे राम-रहीम, कृष्ण, खुदा वाहेगुरु साईंनाथ कोई भी नाम दिया जाए। उसका रूप एक है। उसकी प्राप्ति के लिए न मंदिर की आवश्यकता है न मस्जिद की। वह सब में विद्यमान हैं और सभी उसे भक्ति तथा गुरु की कृपा से प्राप्त कर सकते हैं।”
कबीर जनसाधारण की भाषा में अपने उपदेश देते थे। उन्होंने अपने दोहों में धार्मिक कुरीतियों, आडम्बरों, अन्धविश्वासों तथा कर्मकाण्डों को व्यर्थ बतलाया।
“कबीर का नाम भारतीय इतिहास में इस कारण लिया जाता है कि उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के आपसी अंतर को दूर करने और एक मनुष्य के दूसरे से अंतर को दूर करने का प्रयास किया।”
प्रश्न 21. सन्त नामदेव पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: नामदेव (Namdev):
(i) मध्यकालीन भक्ति आन्दोलन के विकास एवं लोकप्रियता में महाराष्ट्र के सन्तों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। ज्ञानेश्वर, हेमाद्रि और चक्रधर से आरम्भ होकर रामनाथ, तुकाराम, नामदेव ने भक्ति पर बल दिया तथा एक ईश्वर की सम्पूर्ण मानव जाति सन्तान होने के नाते सबकी समानता के सिद्धान्त को प्रतिष्ठित किया।
(ii) नामदेव ने भरपूर कोशिश के साथ जाति प्रथा का खण्डन किया। नामदेव जाति से दर्जी थे। वे अपने पैतृक व्यवसाय की ओर कभी भी आकृष्ट नहीं हुए तथा साधु संगत को ही उन्होंने चाहा।
(iii) सन्त विमोवा खेचम उनके गुरु थे तथा वे सन्त ज्ञानेश्वर के प्रति गहरी निष्ठा रखते थे। उन्होंने भक्त सन्त प्रचारक बनने के बाद अपने शिष्यों के चुनाव में विशाल हृदय से काम लिया।
(iv) उनका काव्य जो मराठी भाषा में है, ईश्वर के प्रति गहरे प्रेम और भक्ति को व्यक्त करता है। उनके अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी, एकेश्वर तथा सर्वत्र हैं वे समाज सुधारक तथा हिन्दू मुस्लिम एकता के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने भरपूर कोशिश के साथ जाति प्रथा का खण्डन किया। .
(v) कहा जाता है कि उन्होंने दूर-दूर तक यात्राएँ की और दिल्ली में सूफी सन्तों के साथ विचार-विमर्श किया। वे प्रार्थना, भ्रमण, तीर्थयात्रा सत्संग तथा गुरु की सेवा के समर्थक थे। उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में आचरण की शुद्धता, भक्ति की पवित्रता एवं सरसता और चरित्र की निर्मलता पर बल दिया।
प्रश्न 22. मीराबाई पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: गिरिधर गोपाल की भक्त मीराबाई का मध्यकलीन संतों में विशेष स्थान है। उसने भक्ति की जो मंदाकिनी (गंगा) अपने हृदय से निकाली, कविताओं द्वारा प्रवाहित की, उसने केवल राजस्थान की मरुभूमि ही नहीं, अपितु सारे उत्तरी भारत को रसमग्न कर दिया।
मीराबाई का जन्म लगभग 1516 ई० में राजस्थान के मेड़ता परगने के कुड़की या चौकड़ी गाँव में हुआ था। मीरा जोधपुर के शासक रतनसिंह राठौर की पुत्री थी। मीरा अभी 4-5 वर्ष की ही थी कि उसकी माता का देहांत हो गया। उसका पालन-पोषण उसके दादा ने किया। अपने दादा के धार्मिक विचारों से मीरा बहुत प्रभावित हुई।
18 वर्ष की आयु में मीरा का विवाह मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह के बड़े पुत्र भोजराज से कर दिया गया लेकिन मीरा का वैवाहिक जीवन बहुत संक्षिप्त था। विवाह के लगभग एक वर्ष बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई। इस तरह मीरा छोटी आयु में ही विधवा हो गई। कुछ समय बाद उसके ससुर राणा साँगा की भी मृत्यु हो गई। अब मीरा बेसहारा हो गई। अत: वह संसार से मोह त्यागकर कृष्ण-भक्ति में लीन हो गई। वह साधुओं का सत्कार करती और पैरों में घुघरू बाँधकर भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने नाचने लगती।
उसके ससुराल के लोगों ने उसके कार्यों को अपने कुल की मर्यादा के विपरीत समझा। अतः उसे कई प्रकार के अत्याचारों द्वारा मारने के प्रयास किए। लेकिन जहर का प्याला, साँप और सूली आदि भी मीरा का बाल-बाँका न कर सके। इस विषय में मीरा ने स्वयं कहा है कि “मीरा मारी न मरूँ, मेरो राखणहार और”। इससे उसकी भक्ति-भावना और बढ़ गई, लेकिन अत्याचार भी बढ़ते जा रहे थे। कहा जाता है कि मीरा ने अपने ससुराल वालों से तंग आकर गोस्वामी तुलसीदासजी । को पत्र लिखकर उनकी सलाह माँगी। तुलसीदासजी ने मीरा को इस प्रकार उत्तर दिया।
“जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिये ताहि कोटि वैरी सम, यद्यपि परम सनेही।”
इस उत्तर को पाकर मीरा ने घर-बार छोड़ दिया और वह वृंदावन चली गई। वहाँ कुछ समय रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गई। कहा जाता है कि मीरा को द्वारिका से लाने के लिए उनकी ससुराल तथा मायके-दोनों स्थानों से ब्राह्मण आये लेकिन वह नहीं गई। द्वारिका में ही 1574 ई. में मीराबाई का देहांत हो गया।
प्रश्न 23. अलबरूनी के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर: अलबरूनी का जन्म 973 ई० में उजबेकिस्तान के ख्वारिज्म नामक स्थान में हुआ था। वह अरबी, फारसी, संस्कृत आदि कई भाषाओं का जानकार था। 1017 ई० में जब महमूद गजनी के ख्वारिज्म पर आक्रमण किया तब लौटते समय वह अल-बेरूनी को भी साथ ले आया। जब पंजाब गजनी के साम्राज्य में मिला लिया गया तब अल बेरूनी को भारत के संस्कृत के विद्वान ब्राह्मणों से सम्पर्क करने एवं संस्कृत के ग्रन्थों को पढ़ने का मौका मिला। उसने तत्कालीन भारत के धर्म, प्रथाएँ, औषधियाँ, ज्योतिष, त्योहार, दर्शन, विधि, प्रतिमा-निर्माण आदि से सम्बन्धित एक किताब अरबी भाषा में लिखी जिसका नाम है-किताब-उल-हिन्द। यह पुस्तक ग्यारहवीं शताब्दी में भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
प्रश्न 24. विदेशी यात्रियों के विवरणों से भारतीय स्त्रियों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर: बर्नियर तथा इब्नबतूता दोनों ही यात्रियों के विवरणों में स्त्रियों की स्थिति का वर्णन मिलता है। बर्नियर ने एक ‘सती बालिका’ का वर्णन किया है। इसमें एक बालिका को पति के शव के साथ जला दिया जाता है। बर्नियर ने इसे एक हृदय विदारक घटना बताया है। इसी प्रकार इब्नबतूता ने भी दासियों का उल्लेख किया है जिनका उपयोग उनका स्वामी प्रत्येक प्रकार से करता था। स्त्रियाँ बिकाऊ थीं तथा उपहारस्वरूप इनका आदान-प्रदान किया जाता था। इसके अतिरिक्त बादशाहों के विशाल हरम भी स्त्रियों की लाचारी को भी दर्शाते हैं। ये विवरण यही दर्शाते हैं कि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में आम स्त्रियों को कोई विशेष स्थान प्राप्त नहीं था।
प्रश्न 25. 1793 ई० का स्थायी बंदोबस्त क्या था ? इसकी मुख्य विशेषताओं और बंगाल के लोगों पर इसके प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर: बंगाल में स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया था।
- 1. इस व्यवस्था में भूमि जमींदारों को स्थायी रूप से दे दी जाती थी और उन्हें एक निश्चित धनराशि सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती थी।
- इससे जमींदारों को कानूनी तौर पर मालिकाना अधिकार मिल गये। अब वे किसानों से मनमाना लगान लेते थे।
- इस व्यवस्था से सरकार को लगान के रूप में एक बँधी-बँधाई धनराशि मिल जाती थी।
- इस व्यवस्था से नये जमींदारों का जन्म हुआ, जो शहरों में बड़े-बड़े बंगलों में और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे। गाँव में उनके कारिन्दे किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार करके भूमि कर ले जाते थे। जमींदार को किसानों के दुःख-सुख से कोई मतलब न था।
- किसानों को बदले में सिंचाई या ऋण सुविधा नाम मात्र को भी नहीं मिलती थी।
प्रश्न 26. मनसबदारी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर: अकबर ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मनसबदारी व्यवस्था का प्रवर्तन किया। यह दशमलव प्रणाली पर आधारित था। मनसबदार को दो पद जात एवं सवार प्रदान किए जाते थे। ब्लाकमैन के अनुसार, एक मनसबदार को अपने जितने सैनिक रखने पड़ते थे वह जात का सूचक था। वह जितने घुड़सवार रखता था वह सवार का सूचक था।
40 से 500 तक का मनसबदार ‘मनसबदार’ कहलाता था। 500 से 2500 का मनसबदार अमीर कहलाता था। 2500 से अधिक का मनसबदार अमीर एक उम्दा कहलाता था।
मनसबदारों को वेतन में नकद रकम मिलता था। कभी-कभी वेतन में जागीर भी दी जाती थी। इस प्रकार मनसबदारी व्यवस्था मुगल सेना का प्रमुख आधार बन गयी। उसने मुगल साम्राज्य का विस्तार एवं सुव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 27. स्थायी बंदोबस्त से कम्पनी को हुए लाभों का वर्णन करें।
उत्तर: स्थायी व्यवस्था से पूर्व राज्य की होने वाली आय निश्चित न थी। उच्चतम बोली देने वाले ऐसे बहुत कम होते थे जो समय पर अपने धन की अदायगी कर पाते थे। इससे सरकार की आय अनिश्चित बनी रहती थी। अब सरकार को जमींदारी द्वारा प्राप्त धन का एक निश्चित भाग प्राप्त होने लगा। यदि कोई जमींदार धन की अदायगी राज्य को समय पर न कर पाता था तो उसकी भूमि कुर्क कर दी जाती थी। क्योंकि भू-राजस्व राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था, अतः कम्पनी के योग्य कर्मचारियों को इस राजस्व को वसूल करने के लिए लगाया जाता था, फलतः दूसरे विभागों का कार्य ठीक प्रकार से न हो पाता था परंतु इस व्यवस्था के कारण सरकार इस ओर से निश्चित हो गई और अन्य योग्य व्यक्तियों को अन्य विभागों में लगाया जाने लगा जिससे शासन व्यवस्था की क्षमता का बढ़ना निश्चित था।
प्रश्न 28. महालबाड़ी व्यवस्था क्या थी ?
उत्तर: महालबाड़ी नामक भू-व्यवस्था जमींदारी व्यवस्था (स्थायी व्यवस्था) का ही संशोधित रूप था। यह 1801 ई० में अवध क्षेत्र तथा 1803-04 में मराठे अधिकृत प्रदेशों में लागू किया गया था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत प्रति खेत के आधार पर लगान नहीं निश्चित कर प्रत्येक महाल (गाँव या जागीर) के आधार पर निश्चित किया गया। पूरा गाँव सम्मिलित रूप से लगान चुकाने के लिए उत्तरदायी था। इस व्यवस्था में भूमि पर व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं रहता था बल्कि समस्त गाँव का रहता था। इसीलिए इसे महालबाड़ी व्यवस्था कहा गया।
प्रश्न 29. रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? इससे क्या सामाजिक और आर्थिक प्रभाव उत्पन्न हुए ?
उत्तर: दक्षिण और दक्षिण-पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त लागू किया गया, जिसके अंतर्गत किसान भूमि का मालिक था यदि वह भू-राजस्व का भुगतान करता रहे। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना था कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित त्रुटियाँ थीं-
- भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
- भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
- सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।
प्रभाव:
- इससे समाज में असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
- सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा ही होता रहा।
प्रश्न 30. अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) के आस-पास अपना प्रभाव कब और कैसे स्थापित किया ?
उत्तर: अंग्रेजों ने दक्षिण में अपनी फैक्ट्री मसुलीपट्टनम में 1611 में स्थापित की। पर जल्द ही उनकी गतिविधियों का केन्द्र मद्रास (चेन्नई) हो गया जिसका पट्टा 1639 में वहाँ के स्थानीय राजा ने उन्हें दे दिया था। राजा ने उनको उस जगह की किलेबंदी करने, उसका प्रशासन चलाने और सिक्के ढालने की अनुमति इस शर्त पर दी कि बंदरगाह से प्राप्त चुंगी का आधा भाग राजा को दिया जाएगा। यहाँ अंग्रेजों ने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द एक छोटा-सा किला बनाया जिसका नाम फोर्ट सेंट जार्ज पड़ा।
प्रश्न 31. भारत में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना के क्या कारण थे ?
उत्तर: यूरोपीय देशों ने निम्नलिखित कारणों से भारत में उपनिवेशों की स्थापना की-
- कच्चे माल की प्राप्ति
- निर्मित माल की खपत
- इसाई धर्म का प्रचार तथा
- समृद्धि की लालसा।
कुल मिलाकर यूरोपियन अपने उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल एवं इन कच्चे मालों से तैयार सामानों के बाजार की तालाश में ही भारत की ओर आये और इसके माध्यम से उनका उद्देश्य था-अपनी समृद्धि।
प्रश्न 32. 1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर: 1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of the Failure of the Revolt of 1857) – 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस असफलता के निम्न कारण थे-
- यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया।
- यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
- भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
- भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया।
- भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
- अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
- क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी।
प्रश्न 33. ब्रिटिश चित्रकारों ने 1857 के विद्रोह को किस रूप में देखा ?
उत्तर: ब्रिटिश पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, कार्टूनों में 1857 के विद्रोह के दो बिन्दुओं पर बल दिया गया-हिन्दुस्तानी सिपाहियों की बर्बरता और ब्रिटिश सत्ता की अजेयता का प्रदर्शन।।
टॉमस जोन्स वर्कर के 1859 के रिलीज ऑफ लखनऊ इन मेमोरियम, न्याय जैसे चित्रों के माध्यम से ब्रिटिश प्रतिरोध की भावना और उनकी अजेयता के भाव ही प्रदर्शित होते हैं।
प्रश्न 34. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर: 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।
26 फरवरी, 1857 ई० को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई० को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।
प्रश्न 35. 1857 की क्रांति के प्रभाव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: 1857 की क्रांति के प्रभाव – 1857 ई० भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी वर्ष ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के विरुद्ध भारतीयों का असंतोष क्रांति के रूप में प्रकट हुआ। इसे ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ कहा जाता है। इसी के बाद 1858 ई० में एक घोषणा के द्वारा यह कहा गया कि अब भारत का शासन ब्रिटिश महारानी के नाम से होगा।
प्रश्न 36. 1857 के विद्रोह के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर: 1857 के सिपाही विद्रोह के महत्त्वपूर्ण प्रमुख कारण निम्नांकित थे
(i) सामाजिक कारण (Social causes) – अंग्रेजों ने अनेक भारतीय सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए कानून बनाया। उन्होंने सती प्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय हुआ कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं।
(ii) धार्मिक कारण (Religious causes) – ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन करा देते थे। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अत: पंडितों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी।
(iii) सैनिक कारण(Military causes) – भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे।
(iv) तात्कालिक कारण (Immediate causes) – तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अत: उनका भड़कना स्वाभाविक था।
प्रश्न 37. लक्ष्मीबाई कौन थी ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: वह झाँसी (उत्तर प्रदेश) की रानी थीं। अपनी सन्तान न होने पर उसने एक बच्चे को दत्तक पुत्र के रूप में गोद ले लिया था तथा झाँसी का उत्तराधिकारी घोषित किया था। लेकिन अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकार की घोषणा के अधिकार को मान्यता नहीं दी थी। इसी कारण वह 1857 के विद्रोह के दिनों में अंग्रेजी सेनाओं से जूझ पड़ी। उसने नाना साहिब के विश्वसनीय सेनापति तात्यां टोपे और अफगान सरदारों की मदद से ग्वालियर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। अन्त में कालपी के स्थान पर वह अंग्रेजों से संघर्ष करती हुई वीरगति को प्राप्त हुई। उसकी वीरता सभी के लिए प्रेरणा मानी जाती है।
प्रश्न 38. तात्या टोपे कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: तात्या टोपे नाना साहिब की सेना का एक कुशल, अत्यधिक साहसी, परमवीर एवं विश्वसनीय सेनापति था। उसने 1857 के विद्रोह में कानपुर में अंग्रेजों के विरुद्ध कुशलता से गुरिल्ला नीति अपनाते हुए अंग्रेजी सेना की नाक में दम कर दिया था। उसने अंग्रेज जनरल बिन्द्रहैम को बुरी तरह परास्त किया तथा झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का पूर्ण निष्ठा से सहयोग दिया। कालान्तर में सर कोलिन कैम्पवेल ने उसे हराया तथा 1858 में अंग्रेजों ने तात्या टोपे को फाँसी की सजा दे दी।
प्रश्न 39. नाना साहिब कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: नाना साहिब अन्तिम मराठा पेशवा बाजीराव द्वितीय का दत्तक पुत्र था। 1857 के विद्रोहियों ने उन्हें अंग्रेजों के विरुद्ध कानपुर में विप्लव छेड़ने के लिए उकसाया था। जब कानपुर के सिपाहियों और शहर के लोगों ने नाना साहिब के समक्ष बगावत की बागडोर संभालने की प्रार्थना की तो ऐसा करने के अतिरिक्त उनके समक्ष कोई भी विकल्प नहीं था।
सन् 1851 से ही (जब पेशवा बाजीराव द्वितीय की मृत्यु हो गई थी) अंग्रेजों ने नाना साहिब को न तो पेशवा माना और न ही उन्हें पेंशन दी। लम्बे संघर्ष के बाद जब अंग्रेजों ने कानपुर पर अधिकार कर लिया तो नाना साहिब ने अंग्रेज सेनापति नील तथा हैवलॉक को तात्या टोपे की मदद से पराजित कर कानपुर के किले पर पुनः अधिकार कर लिया। दिसम्बर 1857 में नई सेना के आने के बाद सर कोलिन कैम्पवेल ने पुनः नाना साहिब को पराजित किया। नाना साहिब अंग्रेजों के हाथों नहीं आये। वे नेपाल भागकर पहुँचने में कामयाब रहे। उनके प्रशंसक उनकी इस कूटनीति को उनके साहस एवं बहादुरी की ही हिस्सा मानते हैं।
प्रश्न 40. कुंवर सिंह कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: कुंवर सिंह आरा (जगदीशपुर), बिहार में एक स्थानीय जमींदार थे। वह बड़े जमींदार होने के कारण लोगों में राजा के नाम से विख्यात थे। कुंवर सिंह की उम्र बहुत कम थी तो भी उन्होंने आजमगढ़ तथा बनारस में अंग्रेजी फौज को पराजित किया। उन्होंने छापामार युद्ध पद्धति से अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये। उन्होंने ब्रिटिश सेनापति मार्कर को पराजित कर गंगा पार अपने प्रमुख किले जगदीशपुर पहुँचने में सफलता प्राप्त की। अप्रैल 1858 में उनकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 41. मंगल पांडे कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर: मंगल पांडे (Mangal Pandey) – भारतीय इतिहास में प्राय: मंगल पांडे को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वे बैरकपुर (बंगाल) की 34वीं (सैन्य) बटालियन का एक साधारण सिपाही ही थे। उन्होंने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की। सारजेन्ट मेजर हगसन के आदेशानुसार जब किसी भी भारतीय सैनिक ने पांडे को कैद नहीं किया तो उन्होंने हगसन तथा लैफ्टिनेंट बाम को उसके घोड़े सहित ढेर कर दिया। कालान्तर में उन्हें कैद कर लिया गया तथा 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दे दी गई। उनकी वीरता एवं कुर्बानी ने कालान्तर में मेरठ सैनिक छावनी के विप्लव की भूमिका तैयार की।
प्रश्न 42. शैलावासों की स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा, ब्रिटिश शासकों के लिए हिल स्टेशन क्यों महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर: शैलावास को अंग्रेजी में ‘हिल स्टेशन’ कहा जाता है। शैलावासों की स्थापना प्रमुखतः स्वास्थ्यवर्द्धक स्थलों के रूप में की गई है। भारत के प्रायः सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में हिल स्टेशन स्थापित हैं। अनेक व्यक्ति पर्यटन एवं स्वास्थ्य लाभ हेतु इन स्थलों पर जाते हैं। इनकी स्थापना का एक कारण पर्यटनों के आकर्षण का केन्द्र स्थापित करना भी था। राजस्थान में माउण्ट आबू, दक्षिण में ऊटी, उत्तर में मसूरी, मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी का विकास हिल स्टेशन के रूप में हुआ है। हमारे देश के सात उत्तर-पूर्वी राज्य तो प्रमुखतः हिल स्टेशन के लिए ही जाने जाते हैं। अंग्रेज गर्म जलवायु के ‘आदी नहीं’ थे अत: उन्होंने अपनी सुविधा हेतु भी हिल स्टेशन स्थापित किए।
प्रश्न 43. 1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर: 1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of the Failure of the Revolt of 1857) – 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस असफलता के निम्न कारण थे-
- यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया।
- यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
- भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
- भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया।
- भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
- अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
- क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी।
प्रश्न 44. संविधान निर्माताओं की प्रमुख समस्याएँ क्या थी ?
उत्तर: भारत जैसे विशाल देश के लिए जहाँ जीवन के हर पक्ष में विविधता पाई जाती हैं, संविधान बनाना कोई सरल कार्य नहीं रहा होगा। संविधान निर्माताओं की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार थीं-
- पहली समस्या थी भारत की अखंडता को बनाये रखना।
- दूसरी प्रमुख समस्या थी देशी रियासतों की। लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने प्रस्ताव में देशी रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा नहीं होने की छूट दे रखी थी। ऐसी स्थिति में भारतीय संघ में उन्हें सम्मिलित करना एक कठिन कार्य था।
- भारत की सांस्कृतिक विविधता भी एक अन्य प्रमुख समस्या थी। एक संविधान में सभी जातियों, जनजातियों, विभिन्न भाषा-भाषियों के लिए स्थान बनाना सरल कार्य नहीं था। आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़कर रखना भी एक प्रमुख समस्या थी।
- अंग्रेजी शासनकाल शोषण एवं उत्पीड़न का काल था। अतः स्वतंत्रता के साथ आम भारतीयों की बची हुई आशाएँ जुड़ी हुई थीं। इन सभी आशाओं को पूरा करना तथा एक नए भारत का निर्माण करना भी एक प्रमुख समस्या थी।
प्रश्न 45. क्या भारत विभाजन को रोका जा सकता था ?
उत्तर: 1947 में भारत को खण्डित आजादी मिली थी। आजादी के साथ ही भारत का विभाजन भी हो गया तथा एक ब्रिटिश उपनिवेश को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देशों में बाँट दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद भी यह चर्चा का विषय बना रहा कि क्या इस विभाजन को रोका जा सकता था किन्तु तत्कालीन कारकों की विवेचना से यही लगता है कि विभाजन अवश्यम्भावी था-
- अंग्रेजों की नीति थी-फूट डालो, शासन करो। इसके आधार पर उन्होंने सबसे पहले . हिन्दू-मुस्लिम एकता पर प्रहार किया।
- दोनों ही दलों के नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने भी विभाजन को अनिवार्य बना दिया।
- लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वतंत्रता को विभाजन के उस पार खड़ा कर दिया। अंततः काँग्रेस विभाजन के लिए तैयार हो गई।
- काँग्रेस ने मुस्लिमों के साथ तुष्टिकरण की नीति अपनाई जिससे लीग की हठधर्मिता को बल मिला। उन्हें यकीन हो गया था कि यदि वे पाकिस्तान की माँग पर अड़े रहे तो उन्हें पाकिस्तान अवश्य ही मिलेगा।
प्रश्न 46. राष्ट्रवादियों तथा साम्प्रदायवादियों में मुख्य अन्तर क्या था ?
उत्तर: राष्ट्रवादी, भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखते थे जिसमें सभी धर्मों के लोग साथ-साथ सम्मानपूर्ण तरीके से रहते हैं। दूसरी ओर साम्प्रदायिकतावादी भारत को धर्म के आधार पर समूह के रूप में देखते थे। वे व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय हित की अपेक्षा अधिक महत्व देते थे। इस दृष्टिकोण को आधार बनाकर ही मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की मांग की गई थी।
प्रश्न 47. अमरीकी गृहयुद्ध और स्वेज नहर का प्रारम्भ होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर: अमरीकी गृहयुद्ध का प्रारम्भ 1861 में हुआ। तत्पश्चात् अमरीका से कपास अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में आना बन्द हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग में वृद्धि होने लगी। कपास का उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण भारत में होता था। इस समय व्यापारियों तथा बिचौलियों को काफी लाभ हुआ। 1869 में स्वेज नहर का प्रारम्भ होने के साथ ही बम्बई शहर का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया। बम्बई के कपड़ा उद्योग में काफी पैसा लगा तथा यह भारत का सबसे अधिक व्यस्त शहर बन गया।
प्रश्न 48. औद्योगिक शहर के रूप में ब्रिटिश काल में किन नगरों का उदय हुआ ?
उत्तर: सही मायनों में ब्रिटिश काल में केवल दो नगरों का औद्योगिक विकास हुआ। पहला नगर था कानपुर, जहाँ सूती कपड़े, ऊनी कपड़े और चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन होता था। दूसरा नगर था-जमशेदपुर, जहाँ स्टील का उत्पादन होता था। इस काल में भारत में अन्य औद्योगिक नगरों का विकास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि अंग्रेजों की नीति पक्षपातपूर्ण थी। वे एक औपनिवेशिक देश को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे।
प्रश्न 49. गाँधीजी 1917 में चम्पारण क्यों गये ? वहाँ उन्होंने क्या किया ?
उत्तर: 19वीं सदी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इस ‘तिनकठिया’ पद्धति कहा जाता था। किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अंत में गाँधीजी की विजय हुई।
प्रश्न 50. स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में इनका स्थान सर्वोच्च है। भारत की स्वाधीनता उन्हीं की भूमिका का फल है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक नये युग का निर्माण किया और जीवन के अंतिम क्षण तक देश सेवा तथा राष्ट्रीय आंदोलन का पथ-प्रदर्शन करते रहे। इसी कारण उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता था। वे शांति के दूत थे। सत्य और अहिंसा उनके हथियार थे। उनका आंदोलन इसी पर आधारित था।
वैसे तो 1914 ई० में उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया था लेकिन 1919 ई० में अत्यंत प्रभावशाली ढंग से राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित करना शुरू किया और अन्त तक राष्ट्रीय आंदोलन के प्राण बने रहे। 1920 ई० से 1947 ई० तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर उन्हीं के हाथों में रही। इस अवधि में राष्ट्रीय संग्राम के सर्वोच्च नेता के रूप में भारतीय राजनीति का उन्होंने मार्ग दर्शन किया, उसने साधन दिये, उसको नया दर्शन दिया और उसे सक्रिय बनाया। इसी कारण इस अवधि को ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने असहयोग आन्दोलन करते हुए भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को जन-आंदोलन का रूप दिया।
प्रश्न 51. चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे ?
उत्तर: चम्पारण आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे-
- चम्पारण में नील के खेतों में काम करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहे बहुत अत्याचार करते थे।
- गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका के संघर्षों की कहानी सुनकर चम्पारण के कई किसानों ने उन्हें वहाँ आकर उनकी समस्याओं को सुना एवं उनके हितों के लिए सत्याग्रह शुरू कर दिया।
प्रश्न 52. असहयोग आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर: गाँधीजी ने 1920 ई० में असहयोग आंदोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(i) रॉलेट एक्ट – प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 ई० में रॉलेट एक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असंतुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन चलाया।।
(ii) जालियाँवाला बाग की दुर्घटना – रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जालियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलायी गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। भयंकर हत्याकाण्ड हुआ महात्मा गाँधी ने इस हिंसात्मक घटना से दुःखी होकर असहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया।
प्रश्न 53. काँग्रेस में उग्रवादियों की भूमिका का परीक्षण करें।
उत्तर: उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम तथा बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में एक नए एवं तरूण दल का उदय हुआ जो पुराने नेताओं के आदर्श तथा ढंगों का प्रबल आलोचक था। उनका ध्येय था कि काँग्रेस का लक्ष्य स्वराज होना चाहिए। वे काँग्रेस के उदारवादी नीतियों का विरोध करते थे।
1905 से 1919 का काल भारतीय इतिहास में उग्रवादी युग के नाम से जाना जाता है। उस युग के नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। उग्रवादियों ने विदेशी माल का बहिष्कार और स्वदेशी माल अंगीकार करने पर बल दिया।
प्रश्न 54. संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर: संघ सूची में वे विषय रखे जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है। जैसे-प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक-तार व टेलीफोन, रेल मुद्रा, बीघा व विदेशी व्यापार इत्यादि। इस सूची में कुल 35 विषय है।
राज्य सूची में प्रादेशिक महत्त्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं-कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि। इन विषयों की संख्या 66 थी।
समवर्ती सूची में 47 विषय थे। इस सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्यों दोनों कानून बना सकते हैं किंतु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। इस सूची के प्रमुख विषय हैं-बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियंत्रण, समाचार-पत्र, छापेखाने, दीवानी कानून, हिंसा, वन, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि।
प्रश्न 55. भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया ?
उत्तर: भारत का संविधान 26 जनवरी, 1949 को बनकर तैयार हो गया था परन्तु उसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसका एक कारण था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने काँग्रेस के दिसम्बर, 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग का प्रस्ताव पास कराया था और 26 जनवरी, 1930 का दिन ‘प्रथम स्वतन्त्रता दिवस’ के रूप में आजादी से पूर्व ही मनाया गया था। इसके बाद काँग्रेस ने हर वर्ष 26 जनवरी का दिन इसी रूप में मनाया था। इसी पवित्र दिवस की याद ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू करने का निर्णय किया था।
प्रश्न 56. ‘पाँचवीं रिपोर्ट पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन और गतिविधियों से संबद्ध यह पाँचवीं रिपोर्ट थी जिसे 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश किया गया। इसे एक प्रवर समिति ने तैयार किया था। रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इनमें मुख्यत: जमींदारों, रैयतों की अर्जियाँ, कलक्टर की रिपोर्ट बंगाल-मद्रास के राजस्व और न्यायिक और न्यायिक अधिकारियों पर टिप्पणियाँ थी। रिपोर्ट द्वारा ब्रिटिश संसद में लम्बी बहस हुई।
प्रश्न 57. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?
उत्तर: भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमें यह बताती है कि वास्तव में संविधान का क्या उद्देश्य है। यह घोषणा करता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों तथा आदर्शों पर बल देता है
- न्याय : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
- स्वतंत्रता : विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा पूजा-अर्चना की।
- समानता : प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता।
- भ्रातृत्व : व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना तथा आपसी बन्धुत्व बढ़ाना।
प्रश्न 58. फोर्ट विलियम नामक किला कहाँ बनाया गया था ? बाद में यह जगह क्या कहलाई ?
उत्तर: 1698 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सूतानाटी, कालिकाता और गोविंदपुरी की जमींदारी प्राप्त कर ली और वहाँ उन्होंने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया। यही गाँव जल्द ही बढ़कर एक नगर बन गया। जिसे अब कोलकाता कहा जाता है।
प्रश्न 59. प्लासी का युद्ध (1757) किसके बीच हुआ था ?
उत्तर: प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 ई० को बंगाल का नबाब सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के बीच प्लासी के मैदान में हुआ था। यह सही रूप में लड़ाई नहीं थी बल्कि अंग्रेजी सेनापति क्लाइव की कूटनीतिक चाल थी। इसने नबाब के सेनापति मीरजाफर को अपनी ओर मिलाकर लड़ाई का ढोंग रचा था । सेनापति मीरजाफर के विश्वासघात के कारण नबाब की हार हो गई और नबाब सिराजुद्दौला की हत्या कर दी गई। इस तरह क्लाइव का षड़यंत्र सफल रहा। वहीं से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव पड़ गई।
प्रश्न 60. संक्षेप में रॉलेट एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) से भारतीय राष्ट्रीय नेताओं में घोर निराशा व असंतोष देखकर सरकार बुरी तरह घबरा उठी। सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अपना दमनचक्र चला दिया।
2. सरकार ने 1919 ई० के प्रारंभ में रॉलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट में सरकार को दो व्यापक अधिकार मिले
- इस एक्ट के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए तथा दोषी सिद्ध किए जेल में बंद कर सकती है।
- सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के अधिकार को स्थगित कर सकती थी।
3. इस एक्ट के कारण लोगों में रोष की लहर दौड़ गई। अतः देश में विरोध होने लगा। देश भर में विरोध सभाएँ, प्रदर्शन और हड़तालें हुई। सेंट्रल लेजिस्लेटिव कौंसिल से तीन भारतीय सदस्यों-मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहरूलहक ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने दमन शुरू किया। कई स्थानों पर उसने लाठी-गोली आदि का सहारा लिया। इस एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने सत्याग्रह किया। पंजाब के जालियाँवाला बाग में इसी एक्ट के विरुद्ध शांतिपूर्ण जनसभा हो रही थी जिससे क्रुद्ध होकर जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियों की वर्षा करवा दी थी।
प्रश्न 61. 1931 के गाँधी-इरविन समझौते का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर:
- यद्यपि गाँधीजी दूसरे गोलमेल सम्मेलन में भाग लेने गए थे। जनवरी, 1932 ई० को गाँधीजी तथा अन्य नेताओं को बंदी बना लिया गया।
- कांग्रेस को पुनः गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
- एक लाख से अधिक सत्याग्रही बंदी बना लिए गये।
- हजारों प्रदर्शनकारियों की भूमि, मकान तथा संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली।
प्रश्न 62. “सांप्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की ? इसके प्रावधान क्या थे ?
उत्तर: 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने एक घोषणा की जो मेकडॉनल्ड निर्णय या सांप्रदायिक पंचाट के नाम से प्रसिद्ध है।
प्रावधान – इसके अनुसार दलितों को हिंदुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया।
प्रश्न 63. ‘द्विराष्ट्र-सिद्धान्त’ का क्या अर्थ है ? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास की पूर्ण मिथ्या थी ?
उत्तर: द्विराष्ट्र-सिद्धान्त से अभिप्राय यह है कि हिन्दुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र (देश) हैं, अतः वे एक होकर नहीं रह सकते।
यह सिद्धान्त इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक सांझी संस्कृति का विकास किया। सन् 1857 की क्रान्ति में भी वे एकजुट होकर लड़े।
प्रश्न 64. साइमन कमीशन भारत क्यों आया था ?
उत्तर: 1919 ई० के एक्ट के अनुसार यह निर्णय हुआ था कि प्रत्येक दस वर्ष के बाद सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैंड से एक कमीशन भारत आयेगा। इसलिए 1928 ई० में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग (Commission) भारत आया था। इस आयोग में एक भी भारतीय न था, जबकि इसका उद्देश्य भारत के हितों की देखभाल करना था। अतः भारतीयों ने इसका स्थान-स्थान पर बहिष्कार और जोरदार विरोध किया। जहाँ भी यह आयोग गया, वहाँ पर भारतीयों डे दिखाकर ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों के साथ बहिष्कार किया। अंग्रेजों ने प्रदर्शकारियों का दमन बड़ी क्रूरता से किया।
जब यह आयोग लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपतराय ने प्रदर्शन कर रहे जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस के भीषण लाठी प्रहार में लालाजी को कई गहरी चोटें लगी जिनके फलस्वरूप बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसी तरह से लखनऊ में जुलूस का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। उन पर भी जब लाठी प्रहार होने लगा, तो गोविंद बल्लभ पंत ने तुरंत अपना सिर उनके सिर पर रख दिया. जिसके फलस्वरूप पंतजी को पक्षाघात हो गया और जीवन भर वे अपनी गर्दन सीधी रखकर न बैठ पाये।
प्रश्न 65. आजाद हिंद फौज की रचना और गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
- सुभाषचंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन अंग्रेजों के साथ सशस्त्र संघर्ष के लिए किया था। दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होते ही सुभाषचंद्र बोस को उनके कलकत्ता (कोलकाता) स्थित निवास स्थान पर नजरबंद कर दिया गया था जिससे कि वे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ अंग्रेजों के विरुद्ध प्रयुक्त न कर सकें।
- 1941 ई० में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर वे अफगानिस्तान के मार्ग से जर्मनी पहुँच गये। 1943 ई० में बर्मा पहुँच कर जापान द्वारा बंदी किए गये भारतीय सैनिकों को संगठित कर ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया।
- लोभ प्यार से सुभाषचंद्र बोस को नेताजी कहते थे। नेताजी ने युवकों को ललकारा और कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए विदेशों से भी सहायता ली।
- 1945 ई० के बाद जापान की पराजय के बाद भारत की सीमा तक पहुँची हुई आजाद हिंद फौज के पाँव उखड़ गये। अतः आजाद हिंद फौज (Indian National Army) के कई बड़े सैनिक अधिकारियों और सिपाहियों को अंग्रेजों ने पकड़ लिए।
प्रश्न 66. क्रिप्स मिशन कब भारत आया ? क्रिप्स वार्ता क्यों भंग हो गई ?
उत्तर: क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत आया। यह वार्ता इसलिए भंग हो गई क्योंकि सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। क्रिप्स ने काँग्रेस का यह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था कि युद्ध के बाद एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाए।
प्रश्न 67. काँग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?
उत्तर: 1942 ई० के प्रारम्भ में ही ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध प्रयासों में भारतीयों के सक्रिय सहयोग की पुरी तरह आवश्यकता महसूस हुई। ऐसा सहयोग पाने के लिए उसने कैबिनेट मंत्री पर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च, 1942 ई० में एक मिशन भारत भेजा।
सर स्टैफोर्ड क्रिप्स पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्के समर्थक थे।
क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य यहाँ, “जितनी जल्दी सम्भव हो स्वशासन की स्थापना करना था” फिर भी उसकी एवं काँग्रेसी नेताओं की लम्बी बातचीत टूट गई। ब्रिटिश ने नेताओं की यह माँग मानने से इन्कार कर दिया कि शासन सत्ता तुरन्त भारतीयों को सौंप दी जाये। वे इस वायदे से सन्तुष्ट नहीं थे कि भविष्य में भारतीयों को सत्ता सौंप दी जायेगी और फिलहाल वायसराय के हाथों में ही निरकुंश सत्ता बनी रहनी चाहिए।
क्रिप्स मिशन की असफलता से भारतीय जनता रुष्ट हो गई। भारत में द्वितीय महायुद्ध के कारण वस्तुओं का अभाव हो रहा था। चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। अप्रैल, 1942 से अगस्त 1942 ई० के मध्य लगभग 5 महीनों में ब्रिटिश सरकार तथा भारतीयों के मध्य तनाव बढ़ता ही गया। गांधीजी भी अब जुझारू हो गये।
प्रश्न 68. पूना समझौता क्या था? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर: पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) – सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं- डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ० अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।
समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी।
पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।
प्रश्न 69. भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के बारे में लिखें।
उत्तर: क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों में असंतोष का वातावरण बना दिया। इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों को कमजोर स्थिति के चलते भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ गया। भारतीयों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों के बाद यहाँ जापानी शासन कायम हो जायेगा। इसीलिये भारतीयों ने गाँधीजी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नारा दिया और आंदोलन शुरू कर दिया तथा सत्ता भारतीयों के हाथों सौंप देने की माँग की। लेकिन सरकार ने इसे बर्बरतापूर्वक दबा दिया। इस तरह यह विद्रोह असफल सिद्ध हुआ।
प्रश्न 70. पूना समझौता क्या था ? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर: पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं-डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।
समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी। पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण ‘अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।
प्रश्न 71. पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की माँग को स्पष्ट कीजिए। लीग ने यह माँग कब रखी थी ?
उत्तर:
1. जब देश में साम्प्रदायिक दल (लीग तथा हिन्दु सभा) बहुत मजबूत होने लगे थे तो मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग काँग्रेस के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई थी। अब उसने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में समा जाने का खतरा है। उसने इस अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक सिद्धांत का प्रचार किया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। उनका एक साथ रह सकना असंभव है। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पास करके माँग की कि आजादी के बाद दो भाग कर दिए जायें और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नाम का एक अलग राज्य बनाया जाए।
2. हिंदुओं के बीच हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को बल मिला। ‘हिंदू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिंदुओं का देश है।’ यह कहकर हिंदू संप्रदायवादियों ने मुस्लिम लीग की ही की बात दोहराई।
3. दिलचस्प बात यह है कि हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के विरुद्ध एक-दूसरे से हाथ मिलाने में संकोच नहीं किया। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, पंजाब, सिंध और बंगाल में हिंदू संप्रदायवादियों ने काँग्रेस के विरोध में मुस्लिम लीग तथा दूसरे सम्प्रदायवादी संगठनों का मंत्रिमंडल बनवाने में मदद की। सांप्रदायिक दलों ने पूर्ण निष्ठा के साथ स्वराज्य में चल रहे संघर्ष में भाग नहीं लिया तथा न ही उन्होंने जनता की सामाजिक, आर्थिक माँग उठाने में ही रुचि ली। वस्तुतः उन्हीं के कारण देश का विभाजन हुआ और आज हमें भारत के अलावा पाकिस्तान और बांगलादेश भी दिखाई पड़ रहे हैं।
प्रश्न 72. 1940 के अगस्त प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर: इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय जर्मनी द्वारा ब्रिटिश घेराबंदी एवं विश्व के विभिन्न भागों में फासीवादी शक्तियों की विजय से चिन्तित थे। उसने भारत के वायसराय लिनलिथगो को भारतीय नेताओं से बातचीत करने का आदेश दिया ताकि युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग को यथाशीघ्र प्राप्त किया जा सके। वायसराय ने जो 8 अगस्त, 1940 को घोषणा की वह इतिहास में अगस्त प्रस्ताव (August Offer) कहलाती है। इसकी प्रमुख बातें थीं-
- भारत को शीघ्र ही औपनिवेशिक स्तर (या स्वतंत्रता) (Dominion Status) दे दिया जायेगा।
- भारत का नया संविधान बनाने के लिए. एक संविधान सभा का गठन किया जायेगा।
- नई संविधान सभा में भी सम्प्रदायों तथा दलों के प्रतिनिधि शामिल किये जायेंगे।
- भारत की सत्ता तब तक किसी ऐसी सरकार को नहीं सौंपी जाएगी जब तक इसमें सभी सम्प्रदायों तथा तत्वों के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।
- युद्ध सम्बन्धी मामलों पर विचार-विमर्श के लिए पृथक् समिति का गठन होगा जिससे भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देशी राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे।
- महायुद्ध के दौरान वायसराय की कार्यकारिणी परिषद (कौंसिल) में इंग्लैण्ड सरकार कुछ स्थानों पर राष्ट्रवादियों को नियुक्त करेगी।
काँग्रेस ने अगस्त, 1940 ई० के प्रस्तावों को ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की बात नहीं की गई थी। मुस्लिम लीग ने भी अगस्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि इसमें उसकी सर्वाधिक प्रबल माँग-पाकिस्तान बनाने की माँग का कोई जिक्र नहीं था। सन् 1942 ई० को ब्रिटेन की सरकार ने क्रिप्स मिशन को भारत भेजा।
प्रश्न 73. वेवेल योजना क्या थी ? लार्ड वेवेल की भूमिका का महत्व एवं इस योजना की गतिविधियों के साथ-साथ शिमला सम्मेलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: 14 जून, 1945 को लॉर्ड वेवेल ने एक योजना रखी, जिसे वेवल योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
- भारत में व्याप्त जनाक्रोश को कम करना।
- जापान के विरुद्ध भारत का सहयोग प्राप्त करना।
- ब्रिटेन के आगामी चुनाव के लिए अनुदार दल के प्रति जनमत प्राप्त करना।
- इससे स्वशासन की माँग और वायसराय की कार्यकारिणी समिति में मुसलमानों व हिंदुओं की संख्या को बराबर करने को कहा गया।
शिमला अधिवेशन – वेवेल ने देश के सभी दलों के प्रमुख नेताओं को शिमला में 25 जून, 1945 को आमंत्रित किया। यह सम्मेलन वेवेल योजना पर विचार करने के लिए बुलाया गया, इसमें 21 भारतीय नेता शामिल थे। सम्मेलन अच्छे ढंग से चल रहा था, लेकिन जिन्ना इस बात पर अड़ गए कि केवल मुस्लिम लीग ही सारे भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है। अत: यह सम्मेलन असफल हो गया।
प्रश्न 74. भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भड़के ?
उत्तर: सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots) – भारत विभाजन में देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों का भी बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग की ‘सीधी कार्यवाही’ के कारण सारा देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगा था। हत्याएँ, लूटमार, आगजनी, बलात्कार जैसे शर्मनाक कार्य हर कूचे और हर बाजार में देखे जा सकते थे। ये घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही थीं। इन घटनाओं के प्रति नेहरूजी को संकेत करते हुए लेडी माउंटबेटन ने कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों, बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाए।” दूसरी ओर माउंटबेटन ने पटेल को भी ये दंगे रोकने के लिए भारत-विभाजन पर राजी कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।
प्रश्न 75. संविधान क्या है ? भारतीय संविधान कब बनकर तैयार हुआ ? यह लागू कब हुआ?
उत्तर: संविधान एक कानूनी दस्तावेज है जिसके द्वारा किसी देश का शासन चलाया जाता है। भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई० को बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया।
प्रश्न 76. संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ? इस सभा को कब प्रारूप समिति ने अपनी संस्तुतियाँ प्रस्तुत की थीं ?
उत्तर: संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० बी० आर० अम्बेदकर थे। संविधान प्रारूप समिति ने संविधान निर्माण सभा को अपनी संस्तुतियाँ 4 नवम्बर, 1948 को प्रस्तुत की थीं।
प्रश्न 77. देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुई ?
उत्तर: देशी रियायतों का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल (लौह पुरुष) ने किया। इस काम के लिए उन्होंने छोटी रियासतों को मिलाकर उनका एक संघ बनाया। कुछ बड़ी-बड़ी रियासतों को राज्य के रूप में मान्यता दी। कुछ पिछड़े हुए तथा शासन व्यवस्था ठीक न होने वाले राज्यों को केन्द्र की निगरानी में रखा गया।
प्रश्न 78. डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर: संविधान का निर्माण होने पर 26 नवम्बर, 1949 को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, अध्यक्ष संविधान सभा, ने उस पर हस्ताक्षर करते हुए इन बिन्दुओं पर दुःख प्रकट किया था
- भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है।
- इसमें किसी भी पद पर कोई भी शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है।
- भारत में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही बनाए गये।
प्रश्न 79. भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
उत्तर: निरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन 1976 ई० में जोड़ा गया। इसका तात्पर्य यह है कि भारत किसी धर्म या पंथ को राज्य धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता तथा न ही किसी धर्म का विरोध करता है। प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता होगी। धर्म को व्यक्तिगत मामला माना गया है। अतः राज्य लोगों के इस कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा।