12th Economics

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1

BSEB 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1. बाजार मूल्यं क्या है ?
उत्तर: किसी समय विशेष पर वस्तु का बाजार में प्रचलित मूल्य की बाजार मूल्य कहलाता है। इसका निर्धारण माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के बीच अस्थायी साम्य द्वारा होता है। बाजार मूल्य को अति अल्पकालीन मूल्य भी कहा जाता है। यह मूल्य न केवल दिन-प्रतिदिन मूल्य बदलता है बल्कि एक ही दिन में कई बार भी बदल सकता है।

प्रश्न 2. उत्पादन फलन क्या है ?
उत्तर: उत्पादन की आगतों तथा अंतिम उत्पाद के बीच तकनीकी फलनात्मक संबंध को उत्पादन फलन कहते हैं। उत्पादन फलन यह बताता है कि एक निश्चित समय में आगतों में परिवर्तन से उत्पादन में कितना परिवर्तन होता है। यह आगतों तथा उत्पादन के भौतिक मात्रात्मक संबंध को बताता है। इसमें मल्य शामिल नहीं होता है।

उत्पादन फलन Q = f (LK)
L= उत्पत्ति के साधन (श्रम)
K = उत्पत्ति के साधन (पूँजी)
Q= उत्पादन की भौतिक मात्रा

प्रश्न 3. माँग की कीमत लोच की परिभाषा दें।
उत्तर: माँग की लोच की धारणा यह बताती है कि कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप किसी वस्तु की माँग में किस गति या दर से परिवर्तन होता है। यह वस्तु की कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिक्रिया या संवेदनशीलता को दर्शाती है।

माँग की कीमत लोच कीमत होने वाले आनुपातिक परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1, 1

प्रश्न 4. पूरक वस्तु और स्थानापन्न वस्तु में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: पूरक वस्तु तथा स्थानापन्न वस्तु में निम्नलिखित अंतर हैं-
पूरक वस्तु:

  1. पूरक वस्तुएँ वे वस्तु हैं जिनका प्रयोग किसी आवश्यकता विशेष को संतुष्ट करने के लिए एक साथ किया जाता है। कार और पेट्रोल पूरक वस्तुएँ हैं।
  2. पूरक वस्तुओं की स्थिति में एक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से दूसरी वस्तु (पूरक वस्तु) की माँग कम हो जाती है और एक वस्तु की कीमत में कमी होने से पूरक वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

स्थानापन्न वस्तु:

  1. स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। चाय और कॉफी स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।
  2. स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति एवं वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दूसरी वस्तु (स्थानापन्न वस्तु) की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत एक वस्तु कीमत में कमी से प्रतिस्थानापन्न .. वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 5. सरकारी बजट के किन्हीं दो उद्देश्यों को समझाइए।
उत्तर:

  1. बजट के माध्यम से सरकार कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने का प्रयास करती है। रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने और कीमत स्थिरता के लिए प्रयत्न करने में बजट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2. सरकार सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सहायता, सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय करके अर्थव्यवस्था में धन और आय के पुनर्वितरण की व्यवस्था करती है।

प्रश्न 6. सीमान्त उपयोगिता और कुल उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: सीमान्त उपयोगिता- किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।

कुल उपयोगिता- किसी निश्चित समय में कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता कुल उपयोगिता होती है। कुल उपयोगिता की गणना करने के लिए सीमान्त उपयोगिताओं को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 7. घाटे का बजट क्या है ?
उत्तर: घाटे का बजट उस बजट को कहा जाता है जिसमें देश का अनुमानित आय अनुमानित व्यय से कम होता है।

प्रश्न 8. मुद्रा के प्राथमिक कार्य समझाइए।
उत्तर: मुद्रा के मुख्य कार्य निम्नलिखित है-

  1. यह विनिमय का माध्यम है। सभी वस्तुएँ और सेवाएँ मुद्रा के माध्यम से खरीदी और बेची जाती है।
  2. यह सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्यांकन करता है।
  3. इसके प्रयोग द्वारा मूल्य संचय का कार्य सरल और सुविधा पूर्ण हो गया है।
  4. यह क्रयशक्ति के हस्तांतरण का सर्वोत्तम साधन है।

प्रश्न 9. ऐच्छिक एवं अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: बेरोजगारी की वह दशा, जब प्रचलित वेतन दर पर कार्य करने को व्यक्ति तैयार नहीं होते, ऐच्छिक बेरोजगारी कहलाती है।

बेरोजगारी की वह दशा, जब प्रचलित दर पर कार्य करने के लिए तैयार व्यक्तियों को कार्य नहीं मिलता, अनैच्छिक बेरोजगारी कहलाती है।

प्रश्न 10. माँग वक्र नीचे क्यों गिरता है ?
उत्तर: माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है, अर्थात् यह वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है। इसका अर्थ है कि कीमत कम होने पर अधिक वस्तुएँ खरीदी जाती है और कीमत अधिक होने पर कम वस्तुएँ खरीदी जाती है। माँग वक्र की ढलान ऋणात्मक होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम- उपभोक्ता वस्तु की सीमांत उपयोगिता को दिये गये मूल्य के बराबर करने के लिए कम कीमत होने पर अधिक क्रय करता है। P= mu
  2. प्रतिस्थापन्न प्रभाव- मूल्य कम होने पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत महँगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु का प्रतिस्थापन्न करता है।
  3. आय प्रभाव- मूल्य में कमी के फलस्वरूप उपभोक आय वृद्धि की स्थिति को महसूस करता है और क्रय बढ़ा देता है।
  4. नये उपभोक्ताओं का उदय।

प्रश्न 11. भुगतान शेष के संघटकों को बताइए।
उत्तर: भुगतान शेष के चार संघटक हैं-

  • व्यापार शेष = निर्यात – आयात
  • चालू खाते का शेष = व्यापार शेष + निवल अदृश्य मदें
  • पूँजी खाते का शेष या पूँजी खाते का योग = विदेशी निवेश (निवल + विदेशी ऋण (निवल) + बैंकिंग (निवल) + रुपये ऋण सेवा + अन्य पूँजी (निवल) + भूल-चूक
  • समग्र शेष = चालू खाता – शेष + पूँजी खाता – शेष

प्रश्न 12. स्फीतिक अंतराल और अवस्फीतिक अंतराल में क्या अंतर है ?
उत्तर: वह स्थिति जिसमें अर्थव्यवस्था में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती केवल कीमतों में वृद्धि होती है तो उसे स्फीतिक अंतराल कहा जाता है। इसके विपरीत अवस्फीतिक अंतराल वह स्थिति है जब कुल पूर्ति कुल मान से अधिक होती है। इसमें उत्पादन और रोजगार घटने लगता है तथा जनता की क्रय शक्ति घट जाती है।

प्रश्न 13. अल्पकालीन औसत लागत ‘U’ आकार का क्यों होता है ?
उत्तर: अल्पकाल में परिवर्तनशील अनुपात का नियम लागू होता है। आरंभ में बढ़ते प्रतिफल के कारण लागत घटती है, फिर स्थिर प्रतिफल की दशा में लागत स्थिर रहती है तथा क्रम में घटते प्रतिफल मिलने पर लागत बढ़ती है। इसी कारण उत्पादन का आकार बढ़ने पर पहले लागत घटती है फिर न्यूनतम होकर स्थिर होती है और अंत में बढ़ती है। इसी क्रम के कारण औसत लागत वक्र U आकार का हो जाता है।

प्रश्न 14. पूर्ण प्रतियोगिता में किसी फर्म के माँग वक्र की प्रकृति क्या होगी ?
अथवा, पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की क्या प्रकृति होती है ?
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज अर्थात् X-अक्ष के समांतर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत का निर्धारण करता है। फर्म उस कीमत को स्वीकार करती है। दी हुई कीमत पर एक फर्म एक वस्तु की जितनी भी मात्रा बेचना चाहती है, बेच सकती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा न केवल OX-अक्ष के समांतर होती है। अपितु औसत आगम तथा सीमांत आगम वक्र को भी ढकती है। कीमत रेखा को पूर्ण प्रतियोगिता फर्म का माँग वक्र भी कहा जाता है।

प्रश्न 15. बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) और साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) में क्या अंतर है ?
उत्तर: बाजार कीमतों पर शद्ध राष्ट्रीय उत्पाद- एक वित्तीय वर्ष में एक देश की घरेल सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूँजी का उपभोग घटाने पर प्राप्त बाजार कीमतों को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

साधन लागत पर शद्ध राष्टीय उत्पाद- एक वित्तीय वर्ष में एक देश की घरेलु सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर प्राप्त साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16. फर्म के अधिकतम लाभ की शर्ते क्या हैं ?
उत्तर: फर्म के अधिकतम लाभ की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • सीमांत आगम तथा सीमांत लागत का संतुलन बिंदु पर आपस में बराबर होना चाहिए यानि MR = MC
  • सीमांत लागत बक्र सीमांत’ आगम रेखा को संतुलन बिंदु पर नीचे काटे।

प्रश्न 17. व्यक्तिक आय क्या है ?
उत्तर: व्यक्तिक आय उन समस्त आयों का योग होती है, जो किसी दिये हुए वर्ष के भीतर व्यक्तियों और परिवारों को वास्तविक रूप में प्राप्त होती है।

व्यक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – सामाजिक सुरक्षा अंशदान – निगम आय कर – अवितरित निगम लाभ + हस्तांतरण भुगतान।
इससे हमें किसी देश में व्यक्तियों और परिवारों को सम्भाव्य क्रय शक्ति का आभास हो जाता है।

प्रश्न 18. सकल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है ?
उत्तर: किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे इस रूप में व्यक्त किया जाता है-

कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल घरेलू उत्पाद (GDP) + देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय – विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।

लेकिन कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा एक विस्तृत धारणा है, जिसके अंतर्गत शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद आ जाता है।

प्रश्न 19. ‘पूर्ति अनुसूची’ एवं ‘पूर्ति वक्र’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: एक निश्चित अवधि में बाजार में विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की विभिन्न मात्राएँ बेची जाती हैं। इसे यदि तालिका द्वारा दर्शाया जाता है तो उसे पूर्ति अनुसूची कहा जाता है।

परंतु जब विभिन्न कीमतों तथा उनपर बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा को जब रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जाता है तो उसे पूर्ति वक्र कहा जाता है।

प्रश्न 20. पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में किन्हीं दो अंतरों को लिखिए।
उत्तर:

  • पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों का प्रवेश तथा बहिर्गमन आसान होता है लेकिन एकाधिकार में फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है लेकिन एकाधिकार में क्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।

प्रश्न 21. आय का चक्रीय प्रवाह क्या है ?
उत्तर: अर्थव्यवस्था के अनेक आर्थिक क्रियाकलाप होते हैं जिनमें उत्पादन, विनिमय और उपभोग मुख्य हैं। इन आर्थिक क्रियाकलापों के दौरान अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच आदान-प्रदान होते रहता है जिसके कारण आय और व्यय चक्रीय रूप से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के बीच प्रवाहित होते हैं। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच आय के चक्रीय रूप से प्रवाहित होने को ही आय का चक्रीय प्रवाह कहा जाता है।

प्रश्न 22. व्यावसायिक बैंक की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: व्यावसायिक बैंक के निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • व्यावसायिक बैंक लेन-देन मुद्रा के रूप में करता है।
  • यह जनता से जमा स्वीकार करता है।
  • लाभ अर्जन इसका उद्देश्य है।
  • साख निर्माण करने की योग्यता इसमें होती है।
  • इसकी प्रकृति पूर्ण रूप से व्यावसायिक होती है।
  • यह माँग जमा पैदा करती है और ये जमाएँ विनिमय माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है।

प्रश्न 23. माँग की लोच से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: माँग की लोच की धारणा हमें मूल्य तथा माँग के परिवर्तन के निश्चित सम्बन्ध को बताती है। मेयर्स के अनुसार, “मूल्य में होने वाले किसी सापेक्षिक परिवर्तन से खरीदी जाने वाली मात्रा में जो सापेक्षिक परिवर्तन होता है, उसका माप ही माँग की लोच है।” अतः माँग की लोच वह दर है जिस पर मूल्य में परिवर्तन होने से माँग की मात्रा में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 24. एकाधिकार की परिभाषा दें।
उत्तर: एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है तथा उस वस्तु की कोई निकटतम प्रतिस्थापन्न वस्तु नहीं होती। इसलिए एकाधिकारी फर्म का वस्तु के उत्पादन और बिक्री पर पूरा नियंत्रण होता है तथा उसको किसी विक्रेता से प्रतियोगिता का सामना करना नहीं पड़ता।

प्रश्न 25. बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर: अर्थशास्त्री बाजार का अर्थ किसी स्थान विशेष नहीं लगाते जहाँ वस्तुएँ खरीदी तथा बेची जाती हैं, बल्कि बाजार शब्द से उन सारे क्षेत्रों का बोध होता है, जिसमें क्रेता और विक्रेता का इस प्रकार का प्रतियोगितापूर्ण तथा स्वतंत्र सम्बन्ध होता है कि इस क्षेत्र में किसी वस्तु के मूल्य का ‘आसानी तथा शीघ्रता से समान होने की प्रवृत्ति पायी जाती है।

प्रश्न 26. एकाधिकारिक प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर: एकाधिकारिक प्रतियोगिता वह बाजार स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के अनेक विक्रेता होते हैं लेकिन प्रत्येक विक्रेता की वस्तु किसी भी अन्य विक्रेता की वस्तु से उपभोक्ता की दृष्टि में किसी-न-किसी प्रकार से भिन्न होती है।

प्रश्न 27. आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: आर्थिक क्रिया वह क्रिया है जिसका सम्बन्ध आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए सीमित साधनों के उपयोग से है। सभी आर्थिक क्रियाएँ अनिवार्य रूप से आय का सृजन नहीं करती हैं।

प्रश्न 28. क्या उपयोगिता मापनीय है ?
उत्तर: हाँ, उपयोगिता मापनीय है। इसका मापन उपभोग की संतुष्टि है। उदाहरणार्थ, एक प्यासे व्यक्ति को पहले ग्लास पानी की उपयोगिता अन्तिम ग्लास पानी की तुलना में अधिक होती है।

प्रश्न 29. घटिया वस्तु के उदाहरण के साथ परिभाषित करें।
उत्तर: घटिया वस्तुएँ वे हैं जिनकी माँग आय बढ़ने के साथ घट जाती है और आय घटने के साथ माँग बढ़ जाती है। घटिया वस्तुओं का आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। मोटा अनाज, मोटा कपड़ा आदि घटिया वस्तुओं के उदाहरण हैं।

प्रश्न 30. आय प्रभाव क्या है ?
उत्तर: मौद्रिक आय समान रहने पर वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वास्तविक आय विपरीत दिशा में घटती या बढ़ती है। उदाहरण के लिए, कीमत में कमी से दी गई आय से अधिक मात्रा में वस्तु प्राप्त होती है। इसके विपरीत कीमत में वृद्धि से दी गई आय से कम मात्रा में वस्तु प्राप्त होती है। वास्तविक आय में इस परिवर्तन को आय प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 31. प्रतिस्थापन प्रभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर: वस्तु की कीमत में परिवर्तन से इसके प्रतिस्थापन्न वस्तुओं के मुकाबले सस्ते या महँगे होने के कारण जो इसकी माँग में परिवर्तन आते हैं उसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 32. समउत्पाद वक्र को समझावें।
उत्तर: परिवर्तन साधन की एक अतिरिक्त इकाई उत्पादन के एक स्थिर साधन पर लगाने से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है उसे सम उत्पाद कहा जाता है। सम उत्पाद वक्र धनात्मक होता है जो उत्पादन में वृद्धि को दर्शाता है।

प्रश्न 33. मौद्रिक लागत क्या है ?
उत्तर: उत्पत्ति के समस्त साधनों के मूल्य को यदि मुद्रा में व्यक्त कर दिया जाये तो उत्पादक इन उत्पत्ति के साधन की सेवाओं को प्राप्त करने में जितना कुल व्यय करता है, मौद्रिक लागत कहलाती है। जे० एल० हैन्सन के शब्दों में, “किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के साधनों को जो समस्त मौद्रिक भुगतान करना पड़ता है उसे मौद्रिक उत्पादन लागत कहते हैं।

प्रश्न 34. सरकारी बजट के महत्व की विवेचना करें।
उत्तर: सरकारी बजट का महत्त्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट होता है-

  • आर्थिक विकास की गति को करना सरकार का महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए अतिरिक्त साधनों की आवश्यकता होती है। अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था बजट के माध्यम से की जाती है।
  • सरकार को प्रशासन चलाने हेत अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा सामान्य सेवाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस पर भारी मात्रा में व्यय होता है, जिसकी व्यवस्था बजट द्वारा की जाती है।
  • आर्थिक पुनरुत्थान हेतु सरकार को अनेक राजकोषीय उपाय करने पड़ते हैं। जैसे-नये कर लगाना, सार्वजनिक एवं निजी निवेश बढ़ाना आदि। यह कार्य बजट में व्यवस्था कर की जाती है।
  • स्फीतिक एवं अवस्फीतिक दबाव से निपटने के लिए बजटीय उपायों का सहारा लेना पड़ता है।
  • यह धन और आय के वितरण में विषमता को कम करता है ताकि सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिल सके।

प्रश्न 35. उपभोक्ता की बचत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: उपभोक्ता की बचत की धारणा का श्रेय प्रो. ड्यूपिट को दिया गया है। परन्तु इसका वैज्ञानिक वर्णन प्रो० मार्शल ने किया है। इनके अनुसार, “देने को तैयार मूल्य में से वास्तव में दिये गये मूल्य को घटा देने पर जो शेष बचता है, वही उपभोक्ता की बचत कही जाती है।”

प्रश्न 36. उपभोक्ता की बचत की मान्यताओं का उल्लेख करें।
उत्तर: उपभोक्ता की बचत निम्न मान्यताओं पर आधारित है-

  • उपयोगिता मापनीय है।
  • वस्तु विशेष का स्वतंत्र महत्व होता है।
  • मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता एवं उपयोगिता ह्रास नियम का लागू होना।
  • स्थानापन्न वस्तुओं का अभाव पाया जाना।

प्रश्न 37. व्यष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध विशिष्ट या व्यक्तिगत आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा से विशिष्ट आर्थिक इकाइयों या व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

अर्थशास्त्र की व्यष्टि शाखा में उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन, साम्य कीमत निर्धारण, एक वस्तु की माँग, एक वस्तु की पूर्ति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।

आर्थिक महामंदी से पूर्व अर्थशास्त्र के रूप में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही अध्ययन किया जाता था। व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत-सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 38. व्यष्टि अर्थव्यवस्था की तीन विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्या का अध्ययन किया जाता है।
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं के निदान में कीमत संयंत्र अर्थात् माँग एवं पूर्ति बलों की क्रिया निर्णायक होती हैं।
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्ति एवं व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन होता है।

प्रश्न 39. व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता स्पष्ट करें।
उत्तर: व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की दो अलग-अलग शाखाएँ हैं। ये दोनों शाखाएँ परस्पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत निर्धारण व्यष्टि विश्लेषण के आधार पर किया जाता है और सामान्य कीमत का निर्धारण समष्टि विश्लेषण के द्वारा होता है। उद्योग में मजदूरी दर निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुद्रा है। सामान्य मजदूरी दर का निर्धारण समष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर शाखाएँ हैं।

प्रश्न 40. व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें। अथवा, सूक्ष्म एवं वृहत अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर हैं-
व्यष्टि अर्थशास्त्र:

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।
  2. इसका विश्लेषण अपेक्षाकृत सरल होता है।
  3. इसका संबंध मूलत: कीमत विश्लेषण से है।
  4. इसके नियम मूलतः सीमान्त विश्लेषण पर आधारित होते हैं।

समष्टि अर्थशास्त्र:

  1. समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का समग्र रूप से अध्ययन किया जाता है।
  2. इसका विश्लेषण बहुत ही कठिन होता है।
  3. इसका संबंध आय विश्लेषण से होता है।
  4. इसके नियम किसी एक पर आधारित न होकर अनेकों पर आधारित हैं।

प्रश्न 41. समष्टि अर्थशास्त्र से आप क्या समझते हैं ? समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र का वर्णन करें। अथवा, समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध सामूहिक या समराष्ट्रीय आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में सामूहिक या समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है।

अर्थशास्त्र की समष्टि शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण, पूँजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, सरकारी व्यय, सरकारी बजट, विदेशी व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की इस शाखा का उदय आर्थिक महामंदी के बाद हुआ है। इस शाखा को आय एवं रोजगार सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 42. एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्यायें क्या हैं ?
अथवा, एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं के नाम लिखें। ये समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ (Central problems of an economy)-

  • क्या उत्पन्न किया जाए ?
  • कैसे उत्पन्न किया जाए और
  • किसके लिये उत्पन्न किया जाए।

केन्द्रीय समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण (Causes of arising of economic problems)-

  • मनुष्य की आवश्यकताओं का असीमित होना।
  • असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सीमित साधनों का होना।
  • सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग होना।

प्रश्न 43. इच्छा और माँग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: इच्छाएँ अनन्त और असीमित होती हैं, परंतु इन असीमित इच्छाओं की पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। इसका संबंध मनुष्य की कल्पनाओं से होता है।

एक निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता किसी वस्तु की जितनी मात्रा खरीदने को इच्छुक तथा योग्य होता है, उसे माँगी गई मात्रा कहा जाता है। इस प्रकार माँगी गई वह मात्रा जो एक निश्चित कीमत पर खरीदी जाती है माँग कहलाती है।

प्रश्न 44. बाजार कीमत और सामान्य कीमत में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: बाजार कीमत और सामान्य कीमत में निम्नलिखित अंतर है-
बाजार कीमत:

  1. यह अल्पकालीन साम्य द्वारा निर्धारित होता है।
  2. यह अस्थायी संतुलन का परिचायक कहा जाता है।
  3. इस पर माँग पक्ष का ही प्रभाव पड़ता है, पूर्ति पक्ष निष्क्रिय रहती है।
  4. यह औसत लागत व्यय के ऊपर या नीचे होता है।
  5. यह सभी प्रकार की वस्तुओं का हो सकता है।

सामान्य कीमत:

  1. यह दीर्घकालीन साम्य द्वारा निर्धारित होता है।
  2. यह अस्थायी संतुलन की ओर संकेत करता है।
  3. इस पर पूर्ति पक्ष का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  4. यह औसत लागत व्यय के समान या उससे अधिक होने की प्रवृत्ति रखता है।
  5. यह केवल पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का ही हो सकता है।

प्रश्न 45. उत्पादन संभावना वक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: वस्तु के पूर्व निर्धारित स्तरों पर उत्पादन होने की दशा में दूसरी वस्तु के अधिकतम संभव उत्पादन को दर्शाने वाली रेखा ही उत्पादन संभावना वक्र है। सामान्यतः यह वक्र दाहिनी ओर ढालू होता है।

प्रश्न 46. गिफिन विरोधाभास क्या है ? समझाएँ।
उत्तर: जब उपभोग की दो वस्तुओं में एक वस्तु घटिया वस्तु हो तथा दूसरी श्रेष्ठ वस्तु हो तब गिफिन का विरोधाभास उत्पन्न होता है घटिया वस्तुएँ वे होती हैं जिसका उपभोग अपनी सीमित आय से तथा श्रेष्ठ वस्तु की ऊँची कीमत के कारण करता है ऐसी दशा में घटिया वस्तु की कीमत में जब कमी होती है तब उपभोक्ता कीमत के घटने के कारण सृजित अतिरिक्त क्रयशक्ति से अच्छी वस्तु का उपभोग बढ़ा देता है तथा घटिया वस्तु का उपभोग घटा देता है। इस प्रकार घटिया वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में कमी होती है। माँग के उस विरोधाभास को गिफिन विरोधाभास के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 47. सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं में क्या अंतर है ?
उत्तर: सामान्य वस्तुओं में आय माँग वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है, अर्थात् बायें से दायें ऊपर चढ़ता हुआ होता है। श्रेष्ठ वस्तुओं का धनात्मक ढाल वाला आय माँग वक्र यह बतलाता है कि उपभोक्ता की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में भी वृद्धि करती है तथा इसके विपरीत आय की प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है।

वे वस्तुएँ जिन्हें उपभोक्ता हेय दृष्टि से देखता है और पर्याप्त आय न होने पर उपभोग करता है, घटिया वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे-मोटा अनाज, मोटा कपड़ा आदि। ऐसी स्थिति में जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय बढ़ती है वह घटिया वस्तुओं का उपभोग घटाकर श्रेष्ठ वस्तुओं का उपभोग बढ़ाता जाता है, अर्थात् घटिया वस्तुओं के लिए आय माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है।

प्रश्न 48. साधन के घटते प्रतिफल के नियम को समझाइए।
उत्तर: जिस पैमाने में उत्पादन के साधन बढ़ाने पर उससे कम अनुपात में उत्पादन बढ़े तो उस पैमाने को घटते हुए प्रतिफल की संज्ञा दी जाती है। जैसे-यदि साधनों को 10 प्रतिशत बढ़ाया जाता है तथा उत्पादन 7 प्रतिशत बढ़ता है तो इस दशा को पैमाने के घटते प्रतिफल की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 49. एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार का वर्णन कीजिए।
अथवा, एकाधिकार की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर: विशेषताएँ (Features)- एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता।
  • एकाधिकारी फर्म और उद्योग में अन्तर नहीं होता।
  • एकाधिकारी बाजार में नई फर्मों के प्रवेश में बाधाएँ होती हैं।
  • वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु नहीं होती।
  • कीमत नियंत्रण एकाधिकारी द्वारा किया जाता है।
  • एकाधिकार में औसत संप्राप्ति और सीमान्त वक्र अलग-अलग होते हैं।
  • एकाधिकारी विभिन्न क्रेताओं से अलग-अलग कीमत वसूल कर सकता है, जिसे कीमत विभेद नीति कहते हैं।

प्रश्न 50. पूरक वस्तु को उदाहरण के साथ परिभाषित करें।
उत्तर: वे वस्तुएँ, जिनका एक के बिना दूसरे का प्रयोग संभव नहीं है, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे-कलम और स्याही, पेट्रोल और कार, मोबाइल और सिम, सूई और धागा पूरक वस्तुएँ हैं। इनमें एक के अभाव में दूसरे का प्रयोग संभव नहीं है। कार है और पेट्रोल नहीं है तो कार नहीं चल सकता। इसे चलाने के लिए पेट्रोल का होना आवश्यक है। इसी तरह बिना सिम के मोबाइल कार्य नहीं कर सकता। मोबाइल को चलाने के लिए सिम का होना आवश्यक है। इस तरह कार और पेट्रोल तथा मोबाइल और सिम पूरक वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 51. एक तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन के चक्रीय प्रवाह को समझाइए।
अथवा, उत्पादन, आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: प्रत्येक अर्थव्यवस्था में होने वाली आर्थिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पादन, आय एवं व्यय का चक्रीय प्रवाह निरंतर चलता रहता है। इसका न आदि है और न अंत। उत्पादन आय को जन्म देता है और प्राप्त आय से वस्तुओं और सेवाओं की माँग की जाती है और माँग को पूरा करने के लिए व्यय किया जाता है। अर्थात् आय व्यय को जन्म देता है। व्यय से उत्पादकों को आय होती है और वह फिर उत्पादन को जन्म देता है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 1

प्रश्न 52. ‘केन्द्रीय बैंक अन्तिम ऋणदाता है।’ कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर: जब व्यावसायिक बैंकों या मुद्रा बाजार की अन्य संस्थाओं को ऋण प्राप्त करने का कोई दूसरा साधन नहीं रहता है तो ऐसी स्थिति में अंतिम ऋणदाता के रूप में केन्द्रीय बैंक उसकी सहायता करता है। इस संबंध में हाटे ने ठीक ही कहा है, “केन्द्रीय बैंक अंतिम समय का ऋणदाता है।”

प्रश्न 53. विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति के तीन-तीन स्रोत बताइए।
उत्तर:
विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए होती है-

  • आयात का भुगतान करने के लिए।
  • विदेशी अल्पकालीन ऋणों के भुगतान के लिए।
  • विदेशी दीर्घकालीन ऋणों के भुगतान के लिए।

एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती है, उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहा जाता है। इसके स्रोत हैं-

  • निर्यात,
  • विदेशों द्वारा देश में निवेश तथा
  • विदेशों से प्राप्त भुगतान।

प्रश्न 54. कुल राष्ट्रीय उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे इस रूप में व्यक्त किया जाता है-

कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल घरेलू उत्पाद (GDP) + देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय – विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।

लेकिन कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा एक विस्तृत धारणा है, जिसके अंतर्गत शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद आ जाता है।

प्रश्न 55. कुल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध घरेलू उत्पाद में क्या अंतर है ? बताएँ।
उत्तर: किसी देश की सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के सकल मूल्य को कुल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें घिसावट भी शामिल होता है।

इसके विपरीत कुल घरेलू उत्पाद में से घिसावट निकालने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध घरेलू उत्पाद कहा जाता है। यह देश की सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध मूल्य होता है।

प्रश्न 56. सरकार के बजट से आप क्या समझते हैं ?
अथवा, सरकारी बजट का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर: आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

प्रश्न 57. खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: 1998 के नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने एक नये सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, जिसे खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आती है। फलतः खाद्यान्न की पर्ति माँग की तलना में कम हो जाती है। पर्ति के सापेक्ष खाद्यान्न की आंतरिक माँग खाद्यान्न की कीमतों को बढ़ाती है जिसके परिणामस्वरूप निर्धन व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता से वंचित हो जाते हैं और क्षेत्र में भूखमरी की समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 58. एक द्वि-क्षेत्र अर्थव्यवस्था से आय के चक्रीय प्रवाह को दर्शायें।
उत्तर: परिवार मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए फर्मों को साधन-सेवाएँ प्रदान करते हैं। इन सेवाओं का प्रयोग कर फर्मे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं और उत्पादित वस्तुओं को परिवार को उनकी सेवाओं के बदले देती हैं। इस प्रकार परिवार और फर्मों के मध्य साधन सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान या प्रवाह चक्रीय रूप से चलता रहता है। इसे वास्तविक प्रवाह कहा जाता है। वास्तविक प्रवाह का तात्पर्य परिवार और फर्मों के मध्य साधन सेवाओं और वस्तुओं के प्रवाह से है। साधन-सेवाओं और वस्तुओं का भुगतान मुद्रा के रूप में होता है। साधन सेवाओं के बदले फर्मे परिवारों को सेवा भुगतान देती है तथा वस्तु पूर्ति के बदले परिवार फर्मों को वस्तुओं का भुगतान देते हैं। इस प्रकार सेवा भुगतान के रूप में फर्मों से परिवार को तथा . वस्तु भुगतान के रूप में परिवार से फर्मों को निरंतर आय का मुद्रा के रूप में प्रवाह होता है। इसे आय का प्रवाह या मुद्रा प्रवाह कहा जाता है। चित्र के माध्यम से भी इसे दर्शाया जा सकता है-
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प्रश्न 59. उपभोक्ता संतुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: अर्थशास्त्र में उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब एक उपभोक्ता दी हुई आय से एक या दो वस्तुओं को इस प्रकार खरीदता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि होती है और उसमें परिवर्तन लाने की कोई प्रवृत्ति जुड़ी होती है।

प्रश्न 60. प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अंतर करें।
उत्तर: प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर है-
प्रत्यक्ष कर:

  1. इस कर को टाला नहीं जा सकता है।
  2. यह कर प्रगतिशील होता है। आय में वृद्धि के साथ इसमें वृद्धि होती है।
  3. आय कर, सम्पत्ति कर, निगम कर इसके उदाहरण हैं।

अप्रत्यक्ष कर:

  1. जिसे व्यक्ति को यह कर चुकाना पड़ता है वह इसे दूसरे व्यक्ति पर टाल सकता है।
  2. यह प्रगतिशील नहीं होता है।
  3. बिक्री कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।

प्रश्न 61. दोहरी गणना की समस्या से क्या तात्पर्य है ? इससे कैसे बचा जाता है ?
उत्तर: दोहरी गणना का तात्पर्य है किसी वस्तु के मूल्य की गणना एक बार से अधिक करना। इसके फलस्वरूप उत्पादित वस्तु और सेवाओं के मूल्य में अनावश्यक रूप से वृद्धि हो जाती है। उदाहरणार्थ, एक किसान एक टन गेहूँ 1400 रु० में आटा मिल को बेचता है। आटा मिल उसका आटा बनाकर 1600 रु० में डबल रोटी बनाने वाले को बेच देता है। डबल रोटी वाला उसका डबल रोटी बनाकर 1800 रु० में दुकानदार को बेचता है और दुकानदार उसे अंतिम ग्राहक को 1900 रु० में बेच देता है। अतः उत्पाद का मूल्य = 1400 रु० + 1600 रु० + 1800 रु० + 1900 रु० = 6700 रु०। इस प्रकार दोहरी गणना के कारण उत्पादन मूल्य 6700 रु० हो जाता है, जबकि वास्तव में केवल 1400 + 200 रु० + 200 रु० + 100 रु० = 1900 रु० के बराबर मूल्य वृद्धि होती है।

दोहरी गणना की समस्या से बचने की दो विधियाँ हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • अंतिम उत्पाद विधि- इस विधि के द्वारा उत्पादन के मूल्य में से मध्यवर्ती के मूल्य को घटा दिया जाता है।
  • मूल्य वृद्धि विधि- इस विधि द्वारा उत्पादन के प्रत्येक चरण में होने वाली मूल्य वृद्धि को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 62. अल्पाधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप है। अल्पाधिकार बाजार की ऐसी अवस्था को कहा जाता है जिसमें वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते हैं और प्रत्येक विक्रेता पूर्ति एवं मूल्य पर समुचित प्रभाव रखता है। प्रो० मेयर्स के अनुसार, “अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर समुचित प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक विक्रेता इस बात से परिचित होता है।”

प्रश्न 63. भुगतान शेष से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: भुगतान शेष एक देश के विदेशी सौदों से संबंधित सभी भुगतानों का लेखा-जोखा है। किंडल बर्गर ने भुगतान शेष की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “भुगतान शेष से अभिप्राय एक दिये गये समय में संबंधित देश के निवासियों तथा विदेश के निवासियों द्वारा सभी प्रकार के आर्थिक लेन-देन का क्रमवार रखा गया व्यौरा है।” तकनीकी दृष्टि से भुगतान शेष सदैव संतुलित होता है। इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों मदों को शामिल किया जाता है। दोहरी लेखा पद्धति में इसे प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न 64. भुगतान शेष तथा व्यापार शेष में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: भुगतान शेष और व्यापार शेष में निम्नलिखित अंतर है-
भुगतान शेष:

  1. भुगतान शेष में दृश्य और अदृश्य दोनों मदें शामिल हैं।
  2. यह एक व्यापक अवधारणा है।
  3. यह सदैव संतुलित रहता है।
  4. विदेशी व्यापार का आशय समझने में यह कम अर्थवान तथा महत्त्वपूर्ण है।

व्यापार शेष:

  1. इसमें केवल दृश्य मदें होती है।
  2. यह एक संकीर्ण अवधारणा है।
  3. इसमें घाटा हो सकता है।
  4. यह विदेशी व्यापार का आशय समझने में अधिक अर्थवान तथा महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 65. माँग को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख करें।
अथवा, माँग के निर्धारकों की व्याख्या करें।
उत्तर: वे तत्व जो किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा को प्रभावित करते हैं माँग को निर्धारित करने वाले तत्त्व कहलाते हैं। ये मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(i) संबंधित वस्तुओं की कीमतें (Prices of related goods)- प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गई वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। जैसे-चाय की कीमत में वृद्धि होने पर सकी प्रतिस्थापन वस्तु कॉफी की माँग में वृद्धि हो जाती है। एक पूरक वस्तु की कीमत में व द्ध होने पर दी गई वस्तु की माँग में कमी हो जाती है। पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होने पर टिर गाड़ी की माँग में कमी हो जाती है।

(ii) आय (Income)- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है यह वस्तु पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है अथवा घटिया वस्तु है।

(iii) रुचि, स्वभाव आदत (Taste, Preference and Habit)- यदि रुचि, स्वभाव और आदत में परिवर्तन अनुकूल हो तो वस्तु की माँग में वृद्धि होती है।

(iv) जनसंख्या- जनसंख्या बढ़ने पर माँग बढ़ती है और इसमें कमी होने पर माँग में कमी आती है।

(v) संभावित कीमत- वस्तु की संभावित कीमत बढ़ने या घटने पर उसकी वर्तमान माँग में वृद्धि या कमी आयेगी।

प्रश्न 66. राजकोषीय घाटे से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: राजकोषीय घाटे कुल व्ययों और कुल प्राप्तियों (उधार के अतिरिक्त) के अंतर के समान होता है। सांकेतिक रूप में,
राजकोषीय घाटा = कुल बजटीय व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ जिसमें ऋण शामिल नहीं है।

यहाँ कुल बजट व्यय = राजस्व व्यय + पूँजी व्यय
राजस्व प्राप्तियाँ = कर राजस्व + गैर कर राजस्व
पूँजी प्राप्तियाँ = पूँजी प्राप्तियाँ ऋण प्राप्तियों के अतिरिक्त
= ऋणों की अदायगी + अन्य प्राप्तियाँ (विनिवेश से प्राप्त)
अतः संक्षेप में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।

प्रश्न 67. मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह में अंतर करें।
उत्तर: मौद्रिक प्रवाह में मुद्रा फर्मों से परिवारों को साधन भुगतान के रूप में तथा परिवारों से फर्मों को उपयोग व्यय के रूप में प्रवाहित होती है, जबकि वास्तविक प्रवाह में वस्तुओं का प्रवाह अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाता है।

प्रश्न 68. ‘अर्थशास्त्र चयन का तर्कशास्त्र है।’ इसकी विवेचना करें।
अथवा, अर्थशास्त्र में सीमितता का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: दुर्लभता पर जोर देते हुए रॉबिन्स ने कहा कि मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त हैं तथा उसकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। साथ ही, सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी संभव होते हैं। ऐसी स्थिति में मनुष्य के सामने चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है कि सीमित साधनों के द्वारा किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा किन्हें छोड़ दे। फलतः व्यक्ति आवश्यकता की तीव्रता पर ध्यान देते हुए पहले सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता है। उसके बाद कम महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता ताकि अधिकतम संतोष की प्राप्ति हो सके। इसी कारण रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को चयन का तर्कशास्त्र कहा है।

प्रश्न 69. मौद्रिक प्रवाह को परिभाषित करें। अथवा, मुद्रा प्रवाह की परिभाषा दें।
उत्तर: मौद्रिक प्रवाह का अभिप्राय उस प्रवाह से है जिसमें फर्मों द्वारा उत्पादन के कारकों को उनकी सेवाओं के बदले में ब्याज, लाभ, मजदूरी तथा लगान के रूप में दी गई मुद्रा का प्रवाह फर्मों से परिवार क्षेत्र की ओर होता है। इसके विपरीत उपभोग व्यय के रूप में मुद्रा का प्रवाह परिवार क्षेत्र से फर्मों की ओर होता है।

प्रश्न 70. बाजार के विस्तार से संबंधित तत्त्व कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
बाजार का विस्तार वस्तु के गुण पर निर्भर करता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • व्यापक माँग
  • व्यापक पूर्ति
  • टिकाऊपन
  • वहनीयता तथा
  • मूल्य में स्थिरता।

बाजार के विस्तार पर देश की आंतरिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • शांति एवं सुरक्षा
  • यातायात. एवं संवादवाहन के साधन
  • सरकारी नीति
  • मौद्रिक एवं बैंकिंग नीति
  • व्यापार का तरीका
  • उत्पादन का तरीका।

प्रश्न 71. बाजार के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करें।
उत्तर: प्रतियोगिता के आधार पर बाजार के तीन प्रकार होते हैं-

  • पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- वह बाजार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है, साथ ही इन दोनों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता भी पायी जाती है, पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार कहलाता है।
  • एकाधिकारी बाजार- वह बाजार जहाँ वस्तु की पूर्ति पर व्यक्ति या उद्योग विशेष का पूर्ण नियंत्रण होता है तथा उनके निकट स्थानापन्न वस्तुएँ भी बाजार में उपलब्ध नहीं होती है, एकाधिकारी बाजार कहलाता है।
  • अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- यह पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार तथा एकाधिकार के बाजार का सम्मिश्रण होता है।

प्रश्न 72. साख निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
अथवा, साख सृजन की परिभाषा दें।
उत्तर: अपने नकद कोषों के आधार पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा माँग जमाओं का निर्माण करना ही साख निर्माण कहलाता है। प्रायः नकद कोषों से कई गुणा अधिक जमाओं का निर्माण कर दिया जाता है। नकद कोषों तथा जमाओं के बीच अनुपात नकद-कोष अनुपात कहलाता है। बैंकों को अनुभव के आधार पर यह ज्ञात है कि कुल जमा का सिर्फ 10% ही नकदी के रूप में निकाला जाता है। जैसे यदि 100 रु० के नकद कोष के बदले में 1000 रु० की माँग जमाओं का निर्माण किया जाता है तो इसे 10 गुणा अधिक साख निर्माण कहा जायेगा।

प्रश्न 73. बचत एवं निवेश हमेशा बराबर होते हैं। व्याख्या करें।
उत्तर: कीन्स के अनुसार आय रोजगार संतुलन निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ बचत एवं निवेश आपस में बराबर होते हैं अर्थात् बचत = निवेश (S = I)

एक अर्थव्यवस्था में विनियोग दो प्रकार के होते हैं-नियोजित विनियोग तथा गैर-नियोजित विनियोग। वस्तुतः नियोजित और गैर नियोजित विनियोग का जोड़ ही वास्तविक विनियोग या कुल विनियोग कहलाता है। संक्षेप में,
IR = Ip + Iu
जहाँ IR = वास्तविक विनियोग
Ip = नियोजित विनियोग तथा
Iu = गैर नियोजित विनियोग

उपर्युक्त समीकरण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वास्तविक विनियोग केवल उसी स्थिति में ही नियोजित विनियोग के बराबर हो सकता है जबकि गैर नियोजित विनियोग शून्य हो। इसका तात्पर्य यह है कि यह आवश्यक सदैव नियोजित विनियोग के बराबर हो।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि
y = C + I
तो हमारा वास्तव में अभिप्राय यह होता है कि
y = C + IR
तथा y = C + S
दोनों समीकरणों को एक साथ प्रस्तुत करने पर
C + S = C + IR
या S = IR
अतः बचतें सदैव वास्तविक निवेश के समान होती है।

प्रश्न 74. रेखाचित्र की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के कुशल तथा अकुशल उपयोग की अवस्था की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के कुशल तथा अकुशल उपयोग की अवस्था को रेखाचित्र की सहायता से निम्न रूप में देखा जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 3
PP = उत्पादन संभावना वक्र
Point A = संसाधनों के कुशल उपयोग को दर्शाता है।
Point B = संसाधनों के अकुशल उपयोग को दर्शाता है।

प्रश्न 75. सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में अंतर कीजिए।
उत्तर: किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से जो अतिरिक्त उपयोगिता मिलती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं।
जबकि उपभोग की सभी इकाइयों के उपभोग से उपभोक्ता को जो उपयोगिता प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 76. साधन के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में अंतर बताइए।
उत्तर: साधन के प्रतिफल- एक फर्म जब अल्पकाल में उत्पत्ति के कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा में परिवर्तन करती है तब उत्पादन की मात्रा में जो परिवर्तन होते हैं। उन्हें साधन के प्रतिफल के नाम से जाना जाता है। इसकी तीन अवस्थाएँ होती हैं। पहली साधन के बढ़ते प्रतिफल या उत्पत्ति वृद्धि अवस्था, दूसरी साधन के स्थिर प्रतिफल या उत्पत्ति समता तथा तीसरी साधन के घटते प्रतिफल या उत्पत्ति ह्रास अवस्था।

पैमाने के प्रतिफल- पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों में समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। यह एक दीर्घकालीन अवधारणा है।

प्रश्न 77. चालू कीमत और स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय में भेद करें।
उत्तर: अगर राष्ट्रीय आय को वर्तमान कीमत से गुणा करके प्राप्त किया जाता है तो उसे चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
NNPMP = GNPMP – Depreciation
साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
NNP at factor cost = NNP at market price अप्रत्यक्ष कर + अनुदान

चालू कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का बाजार मूल्य + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय – घिसावट

परन्तु अगर राष्ट्रीय आय को किसी समय विशेष की कीमत से गुणा करके जाना जाता है तो उसे स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जैसे- 2011-12 की कीमत पर राष्ट्रीय आय को गुणा कर उस वर्ष की राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।

प्रश्न 78. चयनात्मक साख नियंत्रण क्या है ?
उत्तर: वे उपाय जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के कुछ विशेष कार्यों के लिए दी जाने वाली साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है, चयनात्मक साख नियंत्रण कहलाते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं-

  • ऋणों की सीमान्त आवश्यकता में परिवर्तन
  • साख की राशनिंग
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही
  • नैतिक प्रभाव।

प्रश्न 79. पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में निम्नलिखित अंतर है-
पूर्ण प्रतियोगिता:

  1. इसमें बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
  2. इसमें कीमत समान होती है।
  3. कीमत सीमान्त लागत के बराबर होती है।
  4. समरूप वस्तुएँ।
  5. साधनों की पूर्ण गतिशीलता
  6. कोई विक्रय लागत नहीं होती है।

एकाधिकारी प्रतियोगिता:

  1. इसमें बाजार का अपूर्ण ज्ञान होता है।
  2. इसमें कीमत विभेद होता है।
  3. कीमत सीमान्त लागत से अधिक होती है।
  4. निकट स्थानापन्न तथा मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन।
  5. साधनों की गतिशीलता अपूर्ण होती है।
  6. विक्रय लागत आवश्यक होती है।

प्रश्न 80. आर्थिक समस्या को चयन की समस्या क्यों माना जाता है ?
अथवा चनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर: आवश्यकताएँ असीमित और साधन सीमित होते हैं। सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग होने के कारण इन साधनों एवं असीमित आवश्यकताओं के बीच एक संतुलन बनाने का प्रयास किया जाता है और इसी प्रयास से चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है। इस प्रकार आर्थिक समस्या मूलतः चुनाव की समस्या है।

प्रश्न 81. एक वस्तु की कीमत 15% गिर जाने से उसकी माँग 1,000 इकाइयों से बढ़कर 1,200 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच प्रतिशत विधि द्वारा ज्ञात करें।
उत्तर:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = – 15%
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 4
माँग की लोच = 1.33 (अर्थात् एक से अधिक)

प्रश्न 82. एक रेखाचित्र की सहायता से अर्थव्यवस्था में न्यून माँग की स्थिति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: यदि अर्थव्यवस्था में आय का संतुलन स्तर पूर्ण रोजगार के स्तर से पहले निर्धारित हो जाता है तब उसे न्यून माँग की दशा कहते हैं।
AD < AS
बगल के रेखाचित्र की सहायता से इसे देखा जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 5
चित्र में AS सामूहिक पूर्ति वक्र है तथा AD न्यूनमाँग स्तर पर सामूहिक माँग और AD1 पूर्ण रोजगार स्तर पर सामूहिक माँग को प्रदर्शित कर रहे हैं। AD पूर्ण रोजगार स्तर पर आवश्यक वांछनीय सामूहिक माँग AN है जबकि उपस्थित सामूहिक माँग CN है।
अतः न्यून माँग = AN – CN = AC

प्रश्न 83. किसी वस्तु की पूर्ति तथा स्टॉक में क्या अंतर है ?
उत्तर: किसी वस्तु की उपलब्धता उसकी पूर्ति है, जबकि वस्तु का संग्रहण स्टॉक है। माँग पर पूर्ति निर्भर है, किन्तु स्टॉक पर पूर्ति निर्भर नहीं करती है।

प्रश्न 84. कीमत विभेद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: कीमत विभेद से अभिप्राय है किसी एक वस्तु को विभिन्न उपभोक्ताओं को विभिन्न कीमतों पर बेचना। एकाधिकारी की स्थिति में कीमत विभेद की संभावना हो सकती है। एकाधिकारी एक वस्तु को विभिन्न क्रेताओं को अलग-अलग कीमतों पर बेच सकता है।

प्रश्न 85. आय के चक्रीय प्रवाह के दो आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
उत्तर: आय का चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित दो सिद्धान्तों पर आधारित है-

  • किसी भी विनिमय प्रक्रिया में विक्रेता अथवा उत्पादक उतनी ही मुद्रा की मात्रा प्राप्त करता है जितनी क्रेता या उपभोक्ता व्यय करता है अर्थात् क्रेताओं द्वारा खर्च की गई राशि विक्रेताओं द्वारा प्राप्त की गई राशि के बराबर होती है।
  • वस्तुएँ एवं सेवाएँ विक्रेताओं से क्रेताओं की ओर एक दिशा में प्रवाहित होती है, जबकि इन वस्तुओं और सेवाओं के लिए मौद्रिक भुगतान विपरीत दिशा में अर्थात् क्रेता से विक्रेता की ओर प्रवाहित होता है।

प्रश्न 86. बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद की परिभाषा दें।
उत्तर: बाजार कीमतों पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) का अभिप्राय एक वर्ष में एक देश की घरेलू सीमाओं में निवासियों द्वारा उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य से है जिसमें से स्थिर पूँजी के उपभोग को घटा दिया जाता है। इस प्रकार बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद एक देश की घरेलू सीमा में सामान्य निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा एक लेखा वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के बराबर है। इसमें से घिसावट मूल्य घटा दिया जाता है।

बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाजार कीमत पर सफल घरेलू उत्पाद – पूँजी का उपभोग या घिसावट व्यय
NDPMP = GDPMP – Depreciation

प्रश्न 87. औसत बचत प्रकृति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: औसत बचत प्रवृत्ति एक अर्थव्यवस्था के आय तथा रोजगार के एक दिए हुए स्तर पर कुल बचत और कुल आय का अनुपात है। फ्रीजर के अनुसार, “औसत बचत प्रवृत्ति, बचत और आय का अनुपात है।”
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 1

प्रश्न 88. एक अर्थव्यवस्था की किन्हीं तीन केंद्रीय समस्याओं का नाम बतायें।
उत्तर: एक अर्थव्यवस्था की तीन केन्द्रीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं :

  • क्या उत्पादन किया जाता तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए।
  • उत्पादन कैसे किया जाए ?
  • उत्पादन किसके लिए किया जाए ?

प्रश्न 89. निम्नलिखित तालिका से माँग की लोच ज्ञात करें।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 2
उत्तर:
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 3

प्रश्न 90. उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: वस्तु विशेष में किसी उपभोक्ता की आवश्यकता विशेष की संतुष्टि की निहित क्षमता अथवा शक्ति का नाम उपयोगिता है। उपयोगिता इच्छा की तीव्रता का फलन होती हैं। उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक धारणा है जो उपभोक्ता के मानसिक दशा पर निर्भर करता है।

प्रश्न 91. माँग का नियम क्या है ?
उत्तर: माँग का नियम वस्तु की कीमत और उस कीमत पर माँगी जाने वाली मात्रा के गुणात्मक संबंध को बताता है। उपभोक्ता अपनी मनोवैज्ञानिक पद्धति के अनुसार अपने व्यावहारिक जीवन में ऊँची कीमत पर वस्तु की कम मात्रा खरीदता है और कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा। उपभोक्ता की इसी मनोवैज्ञानिक उपभोग प्रवृत्ति पर माँग का नियम आधारित है। माँग का नियम यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत एवं वस्तु की मात्रा में विपरीत संबंध पाया जाता है। दूसरे शब्दों में, अन्य बातें समान रहने की दशा में किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग में कमी हो जाती है तथा इसके विपरीत कीमत में कमी होने पर वस्तु के माँग में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 92. किन्हीं तीन वस्तुओं का नाम बतायें जिनकी माँग लोचदार हो।
उत्तर: तीन लोचदार वस्तुयें निम्नलिखित हैं-

  • रेडियो
  • टेलीविजन
  • स्कूटर।

प्रश्न 93. माँग में विस्तार एवं वृद्धि में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर: माँग में विस्तार एवं वृद्धि में निम्नलिखित अन्तर हैं-
माँग का विस्तार (Extension in Demand):

  1. यह एक ऐसी दशा है, जिसमें अन्य बातों के समान रहने पर केवल कीमत में कमी के कारण वस्तु की माँग बढ़ जाती है।
  2. इसका अर्थ है वस्तु की कम कीमत पर वस्तु की अधिक माँग।
  3. माँग वक्र पर ऊपर से नीचे की ओर संचलन होता है।
  4. माँग वक्र नहीं बदलता।

माँग में वृद्धि (Increase in Demand):

  1. यह एक ऐसी दशा है, जिसमें कीमत के अलावा अन्य घटकों के कारण वस्तु की माँग में वृद्धि होती है।
  2. इसका अर्थ है वस्तु की उसी कीमत पर अधिक माँग अथवा ऊँची कीमत पर वस्तु की उतनी ही माँग।
  3. माँग वक्र दायें या ऊपर की ओर स्थानान्तरित हो जाता है।
  4. माँग वक्र बदला जाता है।

प्रश्न 94. स्थिर लागत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: स्थिर लागतें उस कुल खर्च का जोड़ है जो उत्पादक को उत्पादन के स्थिर साधनों की सेवाओं को खरीदने या भाड़े पर लेने के लिए खर्च करनी पड़ती है। उत्पादन स्तर के शून्य स्तर पर भी कुल स्थिर लागत अपरिवर्तित रहती है।

प्रश्न 95. उपभोग फलन की व्याख्या करें।
उत्तर: कीन्स के अनुसार किसी अर्थव्यवस्था का कुल उपभोग व्यय मुख्य रूप से आय पर निर्भर करता है अथवा यह कहा जा सकता है कि उपभोग आय का फलन है। अर्थात् C = f (y)

अर्थात् उपभोग (c) आय (y) का फलन है। इस प्रकार उपभोग एवं आय का संबंध उपभोग फलन कहलाता है। उपभोग फलन बताता है कि आय के स्तर में वृद्धि होने पर उपभोग में प्रत्यक्ष वृद्धि होती है। लेकिन आय के अंशतः बढ़ने पर उपभोग व्यय की वृद्धि आय की वृद्धि से कम होती है।

प्रश्न 96. संबंधित वस्तु की कीमत में परिवर्तन का वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर: वस्तुएँ तब संबंधित होती है जब (i) एक वस्तु x की कीमत दूसरी वस्तु (y) की माँग को प्रभावित करती है अथवा (ii) एक वस्तु की माँग दूसरी वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी लाती है संबंधित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होने पर उसकी माँग में कमी आती है जबकि कीमत में कमी आने पर माँग में वृद्धि होती है।

स्थानापन्न वस्तुओं में से एक वस्तु की माँग तथा दूसरी वस्तु की कीमत में धनात्मक संबंध होता है अर्थात् एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी स्थानापन्न वस्तुओं की माँग बढ़ती है तथा कीमत कम होने पर माँग कम होती है।

पूरक वस्तुओं के संदर्भ में एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी पूरक वस्तु की माँग कम हो जाएगी तथा कीमत कम हो जाने पर पूरक वस्तु की माँग बढ़ जाएगी।

प्रश्न 97. पूर्ण रोजगार संतुलन और अपूर्ण रोजगार संतुलन में भेद करें।
उत्तर:

  • पूर्ण रोजगार संतुलन की अवस्था में संसाधनों का अपनी अन्तिम सीमा तक प्रयोग होता है जबकि अपूर्ण रोजगार में संसाधनों का अंतिम सीमा तक प्रयोग नहीं होता है।
  • पूर्ण रोजगार संतुलन समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना पर आधारित है। अपूर्ण रोजगार सन्तुलन समग्र आपूर्ति के केंजियन सकल्पना पर आधारित है।
  • पूर्ण रोजगार संतुलन के दो आधार हैं- ‘से’ का बाजार नियम तथा मजदूरी कीमत नम्यता हैं जबकि अपूर्ण रोजगार संतुलन के दो आधार हैं- मजदूरी कीमत अनम्यता तथा श्रम की स्थिर सीमांत उत्पादिता।
  • चित्र के माध्यम से भी दोनों अवस्थाओं को दर्शाया जा सकता है।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 3, 4

प्रश्न 98. राजस्व घाटा क्या होता है ? इस घाटे में क्या समस्याएँ हैं ?
उत्तर: राजस्व व्यय और राजस्व आय के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं। राजस्व प्राप्तियों में कर राजस्व और गैर-कर राजस्व दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। इसी प्रकार राजस्व व्यय में राजस्व खाते पर योजना व्यय और गैर-योजना व्यय दोनों को ही सम्मिलित किया जाता है। राजस्व घाटे में पूंजीगत प्राप्तियों एवं पूंजीगत व्यय की मदें सम्मिलित नहीं होती।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
= (योजना + गैर योजना व्यय) – (कर राजस्व + गैर कर राजस्व)

राजस्व घाटा इस बात को स्पष्ट करता है कि राजस्व प्राप्तियाँ राजस्व व्यय से कम हैं जिसकी पूर्ति सरकार को उधार लेकर अथवा परिसम्पत्तियों को बेचकर पूरी करनी पड़ेगी। इस प्रकार राजस्व घाटे के परिणामस्वरूप या तो सरकार के दायित्वों में वृद्धि हो जाती है अथवा इसकी परिसम्पत्तियों में कमी आ जाती है।

प्रश्न 99. माँग वक्र क्या है ?
उत्तर: जब माँग-तालिका को एक रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया जाता है तो इसे माँग वक्र कहते हैं। माँग वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की कितनी मात्राएँ खरीदी जाएंगी। माँग वक्र का झुकाव ऊपर से नीचे दाहिनी ओर होता है।

प्रश्न 100. उत्पादन की लागतों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: एक उत्पादक उत्पादन की प्रक्रिया में जिन आगतों का उपयोग करता है, वे उत्पादन के साधन या कारक कहलाते हैं। इन आगतों को प्राप्त करने के लिए उत्पादक अथवा फर्म को इनकी कीमत चुकानी पड़ती है। इसे उत्पादन की लागत कहते हैं।

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