Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
BSEB 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi
प्रश्न 1. क्या केवल नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है ?
उत्तर: नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है। नियोजन प्रबंधन का प्राथमिक कार्य है। निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य में क्या करना है, क्यों करना है, किसे करना है, कब करना है, कैसे करना है और किन-किन साधनों के उपयोग से करना है इत्यादि बातों का पहले से ही निर्धारण करना नियोजन कहलाता है। वास्तव में व्यापार की सफलता बहुत हद तक नियोजन पर निर्भर करता है।
प्रश्न 2. अस्थायी अलगाव से क्या समझते हैं ?
उत्तर: अस्थायी तौर पर जब नियोक्ता किसी कर्मचारी को उसके काम से निलंबन करता है या उसे. हटा देता है तो इसे अस्थायी अलगाव कहा जाता है। इसमें नियोक्ता अपने कर्मचारी को उसके बकाये वेतन और अन्य सुविधाओं को देता है। बाद में चलकर नियोक्ता पुनः उस कर्मचारी की नियुक्ति कर देता है। जब कर्मचारी की पुनः नियुक्ति होती है तब उसी समय से कर्मचारी की वेतन तय होता है।
प्रश्न 3. विनियोग निर्णय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: विनियोग का अर्थ होता है पैसे का किसी भी क्षेत्र में निवेश करना। विशेष रूप से अंश और ऋण में पैसे का विनियोग करना लाभदायक होता है। विनियोग करने के संबंध में उचित निर्णय लेना ही विनियोग निर्णय कहलाता है। सोच-समझकर विनियोग का निर्णय करने से निवेशकों को लाभ के रूप में आय की प्राप्ति हो सकती है।
प्रश्न 4. NESI को मॉडल एक्सचेंज क्यों कहा जाता है ?
उत्तर: NESI को विभिन्न कारणों से मॉडल एक्सचेंज कहा जाता है। ये कारण निम्न हैं-
- राष्ट्रव्यापी बाजार उपलब्ध कराना,
- व्यापार में कुशलता निष्पक्षता एवं पारदर्शिता लाना
- समान रूप से उच्च किस्म की सेवाएं प्रदान करना
- राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि को सभी निवेशकों की पहुँच में लाना
- ऋण बाजार का विकास करना
- लागतों में कमी लाना
- अखिल भारतीय स्तर पर सेवायें प्रदान करना।
प्रश्न 5. संदेशवाहन शब्द को लैटिन शब्द भाषा के “Communis” शब्द से लिया गया है। इसका क्या अर्थ हैं ?
उत्तर: संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Comminis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है-Common। किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके।
प्रश्न 6. “प्रबन्ध एक सरल विज्ञान है।” कैसे ?
उत्तर: किसी विषय का व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है, प्रबन्ध भी व्यवस्थित ज्ञान है। विज्ञान की विशेषतायें इसमें पाई जाती हैं। प्रबंध के अनेक सार्वभौमिक सिद्धान्त हैं जो सभी जगह लागू होते हैं। विज्ञान की भाँति प्रबन्ध भी कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है।
प्रश्न 7. अधिकार का अर्थ क्या है ?
उत्तर: किसी भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी के प्रबंधक अपने अधीनस्थों को प्रबंध सम्बन्धी कार्य करने की जिम्मेदारी देता है। तो इसे अधिकार कहा जाता है। अधिकार मिलने से ही अधीनस्थ कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन अच्छी तरह से कर सकते हैं। वास्तव में औद्योगिक युग में कोई भी व्यक्ति न तो सभी कार्य स्वयं कर सकता है और न ही सभी निर्णय स्वयं ले सकता है। अतः वह कुछ कार्य दूसरों को सौंप देता है। इस प्रकार अपने कार्यभार का कुछ भाग दूसरे व्यक्तियों को सौपना ही भारार्पण या अधिकार कहलाता है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबंध संबंधी शक्ति प्राप्त करना ही अधिकार कहलाता है।
प्रश्न 8. ऐसा क्यों कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा है ?
उत्तर: ऐसा कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अन्धा है। क्योंकि जब नियोजन की प्रक्रिया अच्छी तरह से नहीं होती है तो व्यवसायिक संस्था को नियंत्रण भी अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता है। नियोजन और नियंत्रण दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक कार्य है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। नियोजन के बिना नियंत्रण अर्थहीन है तथा नियंत्रण नियोजन के बिना अंधा है। वास्तव में नियंत्रण नियोजन को उदेश्यपूर्ण बनाता है एवं नियोजन नियंत्रण को निर्देशन प्रदान करता है।
प्रश्न 9. वितरण माध्यम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: वितरण माध्यम वस्तुओं को उत्पादक (निर्माता) से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का वह मार्ग है जिसमें वे सभी व्यक्ति एवं संस्थाओं सम्मिलित की जाती है जो बिना किसी परिवर्तन के इनको पहुँचाने का कार्य करती है। निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। उपयुक्त माध्यम वह है जो मितव्ययी हो तथा अधिकतम लाभप्रद हो।
प्रश्न 10. ऐसा क्यों कहा जाता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं ?
उत्तर: प्रबंध के सिद्धान्त सार्वभौमिक है क्योंकि प्रबंध के सभी सिद्धान्त सार्वभौमिक योग्यता और उपयोगिता पर आधारित है। यह मानव के प्रत्येक क्षेत्र आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक में लागू होता है। प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता पड़ती है। अतः प्रबंध की उपयोगिता सार्वभौमिक है।
प्रश्न 11. नियंत्रण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर: नियंत्रण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- उद्देश्य की जानकारी करना (Determining objectives) – इस बात का पता लगाना कि क्या किया जाना है और किस समय किया जाना है।
- साधनों की जानकारी करना (Determining of Resources) – किसी कार्य को करने के लिए कितनी पूँजी और मानवीय शक्ति की आवश्यकता है।
- विचलन का पता लगाना (Determining of deviation) – प्रतिमानों एवं निष्पादन में विचलन का पता लगाना और संशोधन करना।
प्रश्न 12. पूँजी संरचना से क्या आप समझते हैं ?
उत्तर: पूँजी संरचना से आशय पूँजी के दीर्घकालीन साधनों के पारस्परिक अनुपात से है। इसमें समस्त दीर्घकालीन कोष सम्मिलित होते हैं, जैसे – अंश पूँजी, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण तथा संचितियाँ।
प्रश्न 13. उच्च स्तरीय प्रबंध के किन्ही तीन कार्यों को बताएं।
उत्तर: उच्च स्तरीय प्रबंध के दो कार्य निम्नलिखित हैं-
- उच्च स्तरीय प्रबंधक संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं।
- निर्धारित उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधक द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
- निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा विभिन्न साधनों की व्यवस्था की जाती है।
प्रश्न 14. नियंत्रण आगे देखना है। समझाइए।
उत्तर: नियंत्रण का उद्देश्य व्यवसाय के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति है। यही कारण है कि सुधारक कार्यवाहियाँ इस प्रकार की जाती हैं कि भविष्य में उन कमियों और गलतियों को न दोहराया जाए जो कि वर्तमान में की गयी है। इस प्रकार नियंत्रण प्रक्रिया कार्य की वास्तविक प्रगति की समीक्षा ही नहीं वरन् भविष्य के उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति भी है।
प्रश्न 15. प्रबंध के नियंत्रण कार्य में प्रयोग होने वाले ‘विचलन’ शब्द का अर्थ बताएँ।
उत्तर: नियंत्रण प्रक्रिया का अगला तीसरा स्तर प्रमाप (विचलन) और वास्तविक हुए कार्यों के बीच आने वाले अंतर के कारणों को मालूम करना है। इससे यह तथ्य मालूम करने का प्रयत्न किया जाता है कि जो अंतर आया है वह गलत योजना बनने के कारण आया है या योजना ठीक तरह से लागू करने के कारण आया है।
प्रश्न 16. मुद्रा बाजार क्या है ?
उत्तर: मुद्रा बाजार (Money market) वह केन्द्र या बाजार है जिसमें मुद्रा एवं अल्पावधि वित्तीय आस्तियाँ जो मुद्रा के निकट के प्रतिरूप हैं, ली और दी जाती हैं। मुद्रा बाजार में मुद्रा विनिमय-पत्रों, प्रतिज्ञा-पत्रों व अल्पकालीन बिलों को मुद्रावत (near money) कहा जाता है।
प्रश्न 17. विपणन के दो तत्वों को बताइए।
उत्तर: विपणन के दो तत्व निम्नलिखित हैं-
- बाजार तथा
- ग्राहक
प्रश्न 18. उत्पाद के मूल्य संबंधी निर्णय से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: मूल्य निर्धारण विपणन-मिश्रण का दूसरा तत्व है। मूल्यों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को अधिक प्रतीत न हो, संस्था प्रतियोगिता में टिककर उचित लाभ प्राप्त कर सके तथा सरकारी नियंत्रणों से भी अपने आपको बचा सके।
प्रश्न 19. विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है। कैसे ?
उत्तर: विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है, क्योंकि विज्ञापन खराब-से-खराब वस्तुओं और सेवाओं को अच्छा-से-अच्छा बना देता है। विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, वह वास्तव में होता नहीं है। विज्ञापन द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जिससे क्रेता आसानी से भ्रमित हो जाते हैं।
प्रश्न 20. उद्यमिता क्या है?
उत्तर: उद्यमितया या साहसिक कार्यों का अर्थ है-कार्यों को देखना, विनियोग करना, उत्पादन के अवसरों को देखना, उपक्रम को संगठित करना और नई विधि से उत्पादन करना, पूँजी प्राप्त करना, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना, उच्च पद के अधिकारी, प्रबंधकों का चयन जो संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करेंगे।
प्रश्न 21. प्रबंध में हेनरी फेयोल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर: प्रबंध में हेनरी फेयोल का महत्वपूर्ण योगदान है। फेयोल ने प्रबंध के लिए 14 सिद्धांत दिए हैं-
- कार्य विभाजन
- अधिकार एवं उत्तरदायित्व
- अनुशासन
- आदेश की एकता
- निर्देश की एकता
- केन्द्रीयकरण या विकेन्द्रीकरण
- व्यक्तिगत हित सामान्य हित के अधीन
- कर्मचारियों
- सोपान श्रृंखला
- व्यवस्था अथवा क्रमबद्धता
- समता
- कर्मचारियों में स्थायित्व
- पहल क्षमता
- सहयोग की भावना
प्रश्न 22. नियोजन की सीमाएँ लिखें।
उत्तर: नियोजन की सीमाएँ इस प्रकार हैं-
- नियोजन पर किए गए व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
- नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
- नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किए जाते हैं।
- संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
- नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।
प्रश्न 23. क्या जवाबदेही को सौंपा जा सकता है ?
उत्तर: जवाबदेही के संबंध में उल्लेखनीय बात है कि प्रबंधक अपने जवाबदेही का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है किन्तु जवाबदेही मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी की दशा में प्रबंध संचालक अपने कर्तव्यों के लिए संचालक मण्डल के प्रति उत्तरदायी होगा।
वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है परंतु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कंपनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही जवाबदेह होगा। संक्षेपण में हम यह कह सकते. हैं कि केवल अधिकारों को ही सौंपी जा सकता है जवाबदेही को नहीं।
प्रश्न 24. वित्तीय नियोजन के महत्व समझाइए।
उत्तर: पूँजी आधुनिक उद्योगों की जीवन-संजीवनी है। कोई भी उद्योग, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में पूँजी का प्रबंध न हो। कोई भी व्यवसाय शुरू करने का विचार मन में आने की स्थिति से लेकर उसके प्रवर्तन, संचालन, विस्तार और उसके समापन तक सभी परिस्थितियों में पूँजी की आवश्यकता होती है।
आवश्यकतानुकूल एवं समय पर वित्त का प्रबंध न होने पर बड़ी से बड़ी और अच्छी-सेअच्छी योजनाएँ भी असफल हो जाती हैं। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे वित्तीय आयोजन भली-भाँति करें। कम्पनी की भावी सफलता वित्तीय आयोजन की सुदृढ़ता पर ही निर्भर करती है।
यदि इसके निर्माण में पर्याप्त ज्ञान, तकनीकी अनुभव और दूरदर्शिता का प्रयोग किया जाता है तो भविष्य के लिए वरदान सिद्ध होगी। इसके विपरीत अदूरदर्शिता, अपरिपक्व ज्ञान एवं अनुभवहीनता के आधार पर जल्दबाजी में बनाई गई वित्तीय योजना कम्पनी के भविष्य और अंशधारियों के हितों के लिए स्थायी खतरा बन जाती है। उपक्रम के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि भली प्रकार से वित्तीय नियोजन (Financial Planning) किया जाए।
प्रश्न 25. स्थायी पूँजी की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: स्थायी पूँजी की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- इसका उपयोग स्थायी संपत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
- यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
- इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।
प्रश्न 26. शेयर बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर: शेयर बाजार एक ऐसा संगठित बाजार है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। ये प्रतिभूतियाँ वे हैं जो शेयर बाजार की सूची में सम्मिलित हों और जो पहले ही किसी संस्था द्वारा जारी की गई हों। जैसे-सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निर्गमित कंपनियों द्वारा निर्गमित अंश एवं ऋणपत्र, सरकार तथा नगरपालिका द्वारा जारी किये गये ब्रांड आदि तथा विभिन्न प्रयासों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियाँ। शेयर बाजार में प्रतिभूतियों का लेन-देन विनियोग या सट्टे के लिए कुछ निश्चित नियमों के अनुसार किया जाता है।
प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अनुसार, ‘स्टॉक एक्सचेंज का आशय व्यक्तियों के एक ऐसे संगठन या संस्था से है, चाहे वह समामेलित हो या न हो, जिसकी स्थापना प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय और लेन-देन में सहायता नियमन तथा नियंत्रण करने के उद्देश्य से की गई हो।’
प्रश्न 27. विपणन मिश्रण की क्या विचारधारा है ?
उत्तर: विपणन मिश्रण का अर्थ (Meaning of marketing mix) – विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण कहलाता है।
परिभाषा – विपणन मिश्रण की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
- डॉ० आर० एस० डावर के अनुसार, ‘निर्माताओं के द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन-मिश्रण (Marketing mix) का निर्माण करती हैं।’
- कीली एवं लेजर के अनुसार, ‘विपणन मिश्रण उस बड़ी बैटरी की युक्तियों से बना है जिसको क्रेताओं का किसी विशेष वस्तु की खरीद करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से काम में लाया जा सकता है।
- फिलिप कोटलर के अनुसार, ‘एक फर्म का उद्देश्य अपने विपणन घरों के लिए सर्वोत्तम विन्यास (Setting) को खोजना है। यह विन्यास विपणन-मिश्रण कहलाता है।’
विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता/उत्पादक विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण (Marketing mix) कहलाता है। प्रत्येक विक्रेता अनेक घटकों (वस्तु का ब्राण्ड, मूल्य, पैकिंग, विज्ञापन, वितरण, अनुसंधान आदि) का मिश्रण (mix) इस प्रकार करता है कि एक निश्चित समय पर सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।
विपणन रीति-नीति (Marketing Strategy) का एक भाग/हिस्सा विपणन-मिश्रण (Marketing mix) है। विपणन रीति-नीति के अंतर्गत दो बातों का अध्ययन होता है-
- बाजार लक्ष्यों की परिभाषा देना (Definition of Market Targets)
- विपणन-मिश्रण का संयोजन (Composition of marketing mix) जबकि विपणन-मिश्रण उपकरणों का संयोग (Combination) है जिसके माध्यम से विपणन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।
प्रश्न 28. लेबल के विभिन्न प्रकार क्या है ?
उत्तर: लेबल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं-
(i) ब्रांड लेबल – ऐसा लेबल जिस पर केवल वस्तु के ब्रांड का नाम लिखा हो, ब्रांड लेबल कहलाता है। इस लेबल पर वस्तु के ब्रांड के नाम के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
(ii) श्रेणी लेबल – यह एक ऐसा लेबल होता है जिस पर लिखे शब्द या अंक उस वस्तु की क्वालिटी या श्रेणी को प्रदर्शित करते हैं। जैसे-जब इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड, कोलकाता उषा ब्रांड के नाम से पंखे बनाती है जो कि क्वालिटी के आधार पर अनेक प्रकार के हैं। इसी आधार पर उन पर Delux, Prima व Continentel के लेबल लगे होते हैं। इस प्रकार के लेबल श्रेणी लेबल कहलाते हैं।
(iii) विवरणात्मक लेबल – इन लेबलों पर उत्पादन का पूर्ण विवरण लिखा होता है। जैसे-
- वस्तु किन-किन चीज को मिलाकर तैयार की जाती है
- वस्तु का प्रयोग किस प्रकार किया जाए
- वस्तु के विभिन्न प्रयोग
- प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
- उत्पादक का नाम
- उत्पादक की तिथि
- बैच नम्बर आदि। इस तरह के लेबलों का प्रयोग प्रायः दवाई निर्माता करते हैं।
प्रश्न 29. साझेदारी की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर: साझेदारी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- साझेदारी की स्थापना के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों का होना अनिवार्य है।
- साझेदारों के बीच समझौता होना चाहिए जो लिखित या मौखिक हो सकता है।
- किसी वैद्य व्यापार को चलाने के लिए साझेदारी की स्थापना होती है।
- समझौते का उद्देश्य व्यवसाय के लाभ-हानि का बँटवारा करना होता है।
- साझेदारी फर्म के सभी साझेदारों को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने का अधिकार होता है।
इस प्रकार प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेन्ट भी होता है और स्वामी भी।
प्रश्न 30. प्रबन्ध के चार कार्यों की विवेचना कीजिए। अथवा, प्रबन्ध के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर: प्रबन्ध के चार कार्य निम्नलिखित हैं-
- नियोजन- यह प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पहले से ही कार्य नीति निर्धारण करना कि क्या करना है, कब, किसे और कैसे करना है नियोजन कहलाता है।
- नियुक्तिकरण- इसके अंतर्गत व्यक्तियों से पदों को भरा जाता है ताकि कार्यों का निष्पादन किया जा सके।
- संगठन-नियोजन तो किसी विचार को लिख देना मात्र ही है, लेकिन इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए मानव समूह की आवश्यकता होती है। मानव समूह को व्यवस्था में बाँधने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न छोटे-छोटे कार्यों में बाँटा जाता है।
- नियंत्रण- यह प्रबंध का अंतिम तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके अंतर्गत प्रबंधक यह देखता है कि कार्य निश्चित योजना के अंतर्गत हो रहा है या नहीं।
प्रश्न 31. वित्तीय प्रबंध के कार्यों का संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर: वित्तीय प्रबंध के कार्यों को दो भागों में बाँटा जाता है-
1. प्रशासनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-
- वित्तीय पूर्वानुमान
- वित्तीय नियोजन
- कोषों की प्राप्ति
- वित्तीय निर्णय
- विनियोग निर्णय
- आय का प्रबंध
- वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन
- वित्त नियंत्रण
2. नैत्यिक या दैनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-
- वित्तीय अभिलेख रखना
- वित्तीय विवरणों को तैयार करना
- रोकड़ शेष बनाए रखना
- महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रलेखों को सुरक्षित रखना
प्रश्न 32. नियुक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: नियुक्तिकरण से आशय प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए योग्य पदाधिकारियों की नियुक्ति, चुनाव, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदावनति, स्थानांतरण, सेवा समाप्ति आदि से संबंधित नियम सिद्धांत तथा समस्याओं से है।
पीटर ड्रकर के अनुसार, “प्रबंध के प्रमुख रूप से तीन उत्तरदायित्व हैं – (i) प्रबंध कार्य, (ii) श्रमिकों का प्रबंध, (iii) मैनेजर्स का प्रबंध।
प्रश्न 33. उद्यमिता के कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: उद्यमिता के निम्नलिखित कार्य हैं-
- निवेश तथा उत्पादन अवसरों को खोजना।
- एक नये उत्पादन प्रक्रिया को स्वीकार कर एक नये उद्यम का गठन करना।
- पूँजी जुटाना।
- श्रम उपलब्ध करना।
- कच्चे माल की आपूर्ति की व्यवस्था करना।
- स्थान का चयन करना।
- नयी तकनीकों, सामग्री के स्रोतों की जानकारी प्राप्त करना।
- उद्यम के दैनिक कार्य हेतु उच्च प्रबंधकों की नियुक्ति करना।
- नवसृजन का कार्य करना।
- जोखिम उठाना।
प्रश्न 34. उपभोक्ता संरक्षण का महत्त्व क्या है ?
उत्तर: उपभोक्ता संरक्षण के महत्त्व की चर्चा निम्नवत् की जा सकती है-
- अज्ञानी उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा करना।
- सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति चेतना जगाना।
- व्यावसायियों के शोषण से उपभोक्ताओं की रक्षा करना।
- उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरुक करना।
- आवश्यक सूचनाएँ उपलब्ध कराना।
- परिवेदनाओं तथा शिकायतों का शीघ्र निपटारा करना।
- उपभोक्ता की प्रभुसत्ता तथा व्यवसाय की जवाबदेही स्थापित करना।
- प्रदूषण से सुरक्षा प्रदान करना।
- मानव का कल्याण करना।
प्रश्न 35. कार्यशील पूँजी की प्रकृति की विवेचना कीजिए।
उत्तर: कार्यशील पूँजी उस पूँजी को कहा जाता है जिसकी आवश्यकता प्रतिदिन की व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होती है भुविन ने कार्यशील पूँजी की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “कार्यशील पूँजी वह राशि है जो उपक्रम को संचालित करने के लिए आवश्यक है।” इस प्रकार चालू दायित्वों के ऊपर चालू सम्पत्तियों के आधिक्य को कार्यशील पूँजी कहा जाता है। इसकी आवश्यकता कच्चे माल को क्रय करने, वेतन तथा मजदूरी, किराया, विज्ञापन आदि खर्चों के लिए होती है। यह व्यवसाय के सफल संचालन के लिए आवश्यक है। अपर्याप्त कार्यशील पूँजी होने पर संस्था के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
प्रश्न 36. नियंत्रण की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए।
उत्तर: नियंत्रण की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम शामिल हैं-
- प्रमाप विचलन को निर्धारित करना ताकि वास्तविक निष्पादन की जाँच की जा सके।
- वास्तविक निष्पादन की माप विश्वसनीय तरीके से करना।
- वास्तविक निष्पादन की तुलना प्रमाप निष्पादन से करना ताकि विचलन का पता लगाया जा सके।
- विचलन का विश्लेषण करना और यह निर्धारित करना कि क्या यह स्वीकार्य है।
- अस्वीकार्य निष्पादन को तुरंत सही करने का निर्णय लेना।
प्रश्न 37. विज्ञापन सामाजिक बर्बादी है। कैसे ?
उत्तर: जहाँ एक ओर विज्ञापन को आधुनिक व्यवसाय की जान माना जाता है। वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि विज्ञापन पर किया गया व्यय अपव्यय होता है। (Money spent on Advertisement is a waste) जो विद्वान इस मत के समर्थक हैं। वास्तव में वे विज्ञापन के आलोचक हैं और वे इसके दोषों की ओर इशारा करते हैं। विज्ञापन के आलोचकों के अनुसार मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-
(i) लागतों में वृद्धि (Add to Cost) – विज्ञापन करने के संस्था को बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि होता है। इस खर्च को पूरा करने के लिए वस्तु की कीमत में वृद्धि करनी पड़ती है। कोई भी उत्पादक विज्ञापन लागत अपनी जेब से नहीं भरेगा। इस प्रकार विज्ञापन में वस्तुओं की कीमतों में अनावश्यक वृद्धि होती है। इसलिए कहा जाता है कि विज्ञापन लागतें ऊँची कीमतों के रूप में उपभोक्ताओं को हस्तांतरित होता है।
(ii) सामाजिक मूल्यों की अवहेलना (Undermines Social Value) – विज्ञापन लोगों को दिन में स्वपन दिखाने का काम करता है। आज यह लोगों को बनावटीपन की ओर ले जा रहा है। इसके माध्यम से लोगों के नित्य नये नये उत्पादों की जानकारी दी जाती है। इसमें नाम मात्र के उत्पादक उनके काम के होते हैं। नये-नये उत्पादकों की चकाचौंध उन्हें परेशान करने लगते हैं। इसे सामाजिक बुराई मानते हुए कहा जा सकता है कि विज्ञापन से सामाजिक मूल्यों की अवहेलना होती है।
(iii) क्रेताओं को भ्रमित करना (Confuse of Buyers) – कई बार विज्ञापन में वास्तविक को तोड़ मरोड़ कर दिखाया जाता है। उपभोक्ता विज्ञापन पर विश्वास करके वस्तु को खरीद लेते हैं। लेकिन प्रयोग करने पर उपभोक्ता ठगा-सा रह जाता है। बाद में उन्हें पता चलता है कि विज्ञापन में जानकारी कुछ और दी गई थी जबकि माल कुछ और निकला। इस तरह के प्रस्तुतीकरण से लोगों को विज्ञापन से विश्वास समाप्त हो जाता है। विज्ञापन भ्रान्ति उत्पन्न करता है न कि सहायता।
प्रश्न 38. पैकेजिंग के क्या कार्य हैं ?
उत्तर: पैकेजिंग के निम्नलिखित कार्य हैं-
(i) सुरक्षा (Protection) – पैकेजिंक का मुख्य कार्य उत्पाद को धूल, कीड़ों, मकोड़ों नमी, टूट फूट से सुरक्षा प्रदान करना है। उदाहरण, बिस्कुट, जैम, चिप्स, आदि को वातावरणीय स्पर्श से बचा कर रखने की आवश्यकता है।
(ii) पहचान (Identification) – पैकेजिंग उत्पाद पहचान का काम करती है। उत्पाद को विशेष साइज रंग, आकार, के पैकिटों में इस ढंग से पैक किया जाता है कि वे प्रतियोगियों के उत्पाद से बिल्कुल अलग दिखे। जैसे Kodak Roll का पीले रंग व काले रंग के पैक स्वयं बताता है कि वह किसी कम्पनी का उत्पाद है।
(iii) सविधा(Convenience) – पैकजिंग उत्पाद को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, स्टॉक करने व उपभोग करने में सुविधा प्रदान करने का काम करता है। जैसे कोका कोला नई PCT बोतले परिवहन स्टॉक सुविधाजनक बताती है।
(iv) संवर्द्धन (Promotion) – पैकेजिंग के विक्रय संवर्द्धन का काम सरल हो जाता है। जब तक उपभोक्ता के घर में पैकिंग का समान पड़ा रहता है। वह उत्पाद की याद दिलाता रहता है। इस प्रकार पैकेजिंग का एक मूक विक्रयलता की भूमिका अदा करता है। परिणामतः विक्रय वृद्धि होती है।
प्रश्न 39. SEBI के तीन कार्यों को लिखें।
उत्तर: SEBI के कार्य को तीन भागों में बाँटते हैं-
I. संरचनात्मक कार्य (Protective function) – सेबी के सुरक्षात्मक कार्य निम्न प्रकार हैं-
- प्रतिभूति बाजार से संबंधित आचार संहिता लागू करना।
- निवेशकों के प्रतिभूतियों में व्यवहार संबंधी शिक्षा प्रदान करना।
- प्रतिभूतियों में अतिरिक्त ट्रेडिंग की रोकना।
II. संचालन कार्य (Regulatory Function)-
- शेयर बाजारों का अंकेक्षण का काम करना।
- वेंचर कैपिटल फण्ड का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना।
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसी का रजिस्ट्रेशन एवं संचालन करना।
III. विकास संबंधी कार्य (Developmental function)-
- शोध करना।
- स्वतः संचालित संगठनों को प्रोत्साहित करना।
प्रश्न 40. औपचारिक एवं अनौपचारिक सम्प्रेषण में अंतर कीजिए।
उत्तर: औपचारिक एवं अनौपचारिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित अंतर है-
प्रश्न 41. समता का सिद्धान्त का अर्थ बताइए।
उत्तर: हेनरी फेयोल द्वारा विकसित समता का सिद्धान्त प्रबंधकों को अपने अधीनस्थों के साथ व्यवहार करते समय न्याय एवं उदारता का ज्ञान प्रदान करता है जिससे कि उनमें सद्भावना तथा सहयोग की भावना का विकास होता है।
प्रश्न 42. अभिप्रेरण के तीन उद्देश्य लिखिए।
उत्तर: अभिप्रेरण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु
- मानवीय साधनों का अधिकतम उपयोग हेतु
- कुशलता में वृद्धि हेतु।
प्रश्न 43. उपभोक्ताओं के कोई तीन उत्तरदायित्व बताइए।
उत्तर: उपभोक्ता के निम्नलिखित उत्तरदायित्व हैं-
- रसीद व गारंटी/वारंटी कोई लेना न भूले।
- झूठे एवं भ्रामक विज्ञापन से बचे।
- अधिकारों के प्रति सजगता।
प्रश्न 44. संगठन क्या है ?
उत्तर: संगठन से तात्पर्य योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्र से है। संगठन विभिन्न व्यक्तियों, समूहों तथा विभागों में प्रभावपूर्ण समाकूलन तथा समन्वय स्थापित करने की कला है।
जी० ई० मिलवर्ड के अनुसार कार्य और कर्मचारी समुदाय का मधुर समन्वय संगठन कहलाता है।
हैने के अनुसार, “किसी सामान्य उद्देश्य अथवा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विशिष्ट अंगों का मैत्रीपूर्ण संयोजन ही संगठन कहलाता है।”
प्रश्न 45. विपणन एतं विक्रय में क्या अंतर है ?
उत्तर: विपणन और विक्रय में निम्नलिखित अंतर है-
प्रश्न 46. उपभोक्ता के रूप में आपका क्या दायित्व हैं ?
उत्तर: उपभोक्ता के रूप में निम्नलिखित दायित्व हैं-
- क्रय में जल्दबाजी न करें – किसी भी उत्पाद को खरीदने से पूर्व उसका प्रतियोगी मूल्य, गुणवत्ता, मात्रा, उपलब्धता आदि के बारे में पूरी जानकारी कर लेनी चाहिए।
- रसीद व गारंटी कार्ड लेना न भूलें – उपभोक्ता को उत्पादन खरीद करते समय भुगतान की रसीद लेना नहीं भूलना चाहिए।
- गणवत्ता से समझौता न करें – उपभोक्ता को उत्पाद खरीदते समय उसकी गुणवत्ता से कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।
- झूठे एवं भ्रामक विज्ञापन से बचें।
- परिवेदना – शिकायत होने पर संबंधित अधिकारी से तुरन्त सम्पर्क करें।
- अधिकारों के प्रति सजगता।
प्रश्न 47. वित्तीय बाजार के कार्य क्या हैं ?
उत्तर: वित्तीय बाजार बचतकर्ता एवं विनियोग कर्ता के मध्य महत्वपूर्ण माध्यम का कार्य करता है। यह मुख्य रूप से अपनी सेवा प्रदान करता है-
(a) प्राथमिक क्षेत्र से निधि का प्रयोग।
(b) व्यापार या विनियोग क्षेत्र में संसाधनों का वितरण। यह विनियोग कर्ता को लाभदायक माध्यम में अपने फण्ड का प्रयोग करने का अवसर प्रदान करता है ताकि अपने विनियोग पर अधिकतम आय प्राप्त हो सके।
वित्तीय बाजार द्वारा सीमित साधनों के वितरण की प्रक्रिया के मुख्य चार कार्य हैं-
- उत्पादनीय कार्य के लिए बचत का प्रयोग एवं वितरण तथा निधि का बचतकर्ता से विनियोग कर्ता को हस्तांतरण।
- व्यावसायिक इकाई के द्वारा निधि के माँग एवं पूर्ति के क्रियाशक्ति द्वारा वित्तीय सम्पत्ति का मूल्य निधारण।
- निधि की तरलता।
- क्रेता एवं विक्रेता को अपनी आवश्यकता की संतुष्टि के लिए सामान्य जगत उपलब्ध कराना। यह स्टॉक के आपूर्तिकर्ता एवं प्रयोगकर्ता को सूचनाएँ प्रदान कर लेन देन के लागत को कम करता है।
इस तरह वित्तीय बाजार, संसाधनों का सही प्रयोग, स्टॉक का मूल्य निर्धारण विनियोग की तरलता एवं क्रेता एवं विक्रेता के निधि का प्रयोग कर अर्थव्यवस्था को बहुमूल्य सेवा प्रदान करना है।
प्रश्न 48. विकेन्द्रीकरण का अर्थ बताइए। अथवा, विकेन्द्रीकरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर: विकेन्द्रीकरण भारार्पण का ही एक विकसित रूप है जब किसी उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ कर्मचारी की अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में अधिकारों का भारार्पण किया जाता है वह विकेन्द्रीकरण कहलाता है।
इस प्रकार विकेन्द्रीकरण एक प्रकार से प्रेरणा से प्रेरण तथा उत्तरदायित्वों का विवरण है जिसके अंतर्गत निम्नतर स्तरों को लगभग समस्त अधिकार व्यवस्थित रूप से सौंप दिये जाते हैं।
प्रश्न 49. उद्यमी से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर: आर्थिक क्षेत्र में परम्परागत रूप में उद्यमिता का अर्थ व्यवसाय एवं उद्योग में निहित विभिन्न अनिश्चितताओं एवं जोखिम उठाने की योग्यता एवं प्रवृत्ति से होता है। जो व्यक्ति जोखिम सहन करते हैं। उनको साहसी अथवा उद्यमी कहा जाता है।
पीटर किलबर्ड के अनुसार, “उद्यमी व्यापक क्रियाओं का सम्मिश्रण है उसमें विभिन्न क्रियाओं के साथ-साथ बाजार अवसरों का ज्ञान प्राप्त करना, उत्पादन के साधनों का संयोजन एवं प्रबंध करना तथा उत्पादन तकनीक एवं वस्तुओं को अपनाना सम्मिलित है।”
प्रश्न 50. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- सभी प्रकार के स्कंध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बाजार की सुविधा प्रदान करना।
- उचित संवाद के द्वारा सम्पूर्ण भारत में विनियोक्ता को विनियोग की सुविधा प्रदान करना।
- इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक पद्धति द्वारा स्कंध के विपणन में पारदर्शिता की सुविधा प्रदान करना।
- अल्पकालीन निविदा की सुविधा प्रदान करना।
- अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव को पूरा करना।
नेशनल स्टॉक विपणन राष्ट्रीय स्तर पर स्क्रीन आधारित स्वचालित व्यापारिक पद्धति प्रदान करती है। और भारतीय पूँजी बाजार को नया जीवन प्रदान किया।
प्रश्न 51. प्रशिक्षण तथा विकास में कोई तीन अंतर बताइए।
उत्तर: प्रशिक्षण तथा विकास में मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं-
प्रशिक्षण:
- प्रशिक्षण का आशय ऐसी प्रक्रियाएँ हैं जिसके द्वारा किसी कार्य विशेष को करने के लिए कर्मचारियों के ज्ञान, योग्यता, चातुर्य एवं कुशलता में वृद्धि की जाती है।
- प्रशिक्षण का उद्देश्य कर्मचारियों को विशिष्ट कार्य करने के लिए योग्य बनाना है।
- प्रशिक्षण का संबंध मुख्यतः वर्तमान से होता है।
विकास:
- विकास एक नियोजित एवं संगठित प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों को प्रबंध के विभिन्न स्तर पर कार्य करने के लिए विकसित किया जाता है।
- विकास का उद्देश्य कर्मचारियों की क्षमता का पूर्ण उपयोग करना है।
- विकास का संबंध वर्तमान एवं भविष्य दोनों से होता है।
प्रश्न 52. विज्ञापन के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर: सामान्य व्यक्ति की दृष्टि से विज्ञापन का मूलभूत उद्देश्य विक्रय वृद्धि करना है किंतु व्यावसायिक दृष्टिकोण से विज्ञापन का उद्देश्य यहीं तक सीमित नहीं है।
एस० आर० कावर के अनुसार, “विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुँचना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की सहायता करना, प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक और उपभोक्ता के बीच संबंध स्थापित करना है।
विज्ञापन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- नव निर्मित वस्तुओं अथवा सेवाओं की जानकारी देना
- विक्रय वृद्धि करना
- नये-नये बाजार का सृजन एवं विकास करना
- उत्पाद माँग का पोषण करना
- उपभोक्ता को शिक्षित करना
- विक्रेता को विक्रय में सहायता करना
- विज्ञापन की ख्याति में वृद्धि करना
- संशय एवं भ्रामक विचारों को दूर करना
- सावधान करना।
प्रश्न 53. प्रबंध की हमें आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर: प्रबंध की आवश्यकता लगभग सभी संगठन में है। इस आवश्यकता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- संगठन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये
- विभिन्न क्रियाकलापों और कार्यों का समन्वय करने के लिये
- दिये गये कार्य के निष्पादन के लिये निर्धारित प्रक्रिया का प्रयोग करने के लिये।
- समूह क्रियाकलाप में व्यक्ति के सर्वोत्तम सहयोग प्राप्त करने के लिये।
- लगभग सभी प्रकार के व्यवसाय-छोटा-बड़ा, लाभ-अलाभ, सेवा या उत्पादक इकाई के संचालन में सहयोग के लिये।
- संगठन के प्रत्येक अन्तर-संबंधी या अन्तर-आश्रित क्रियाकलाप को निर्देश देने के लिये। प्रबंध इसलिए लाभदायकता के लिये एक आवश्यक प्रक्रिया है।
प्रश्न 54. प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है। कैसे ?
उत्तर: प्रबंध का मुख्य रूप से संबंध व्यवसाय के मानवीय पक्ष से होता है। संस्था के कर्मचारी समाज के ही अंग होते हैं। अत: उनका नेतृत्व व निर्देशन सामाजिक क्रिया का ही एक अंग है। वर्तमान में व्यवसाय ने भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को स्वीकार किया है। वास् में प्रबंध एक सामाजिक क्रिया है क्योंकि मुख्य रूप से उसका संबंध व्यवसाय के मानवीय तर से है।
प्रश्न 55. विपणन के महत्वपूर्ण लक्षण क्या हैं ?
उत्तर: विपणन व्यवसाय के कार्य निष्पादन की एक ऐसी क्रिया है जिसमें वस्तु एवं सेवा का उत्पादक से उपभोक्ता के मध्य प्रत्यक्ष प्रवाह होता है। विपणन के महत्वपूर्ण लक्षण हैं-
- व्यक्ति और संस्था के आवश्यकता की संतुष्टि-विपणन में भावी उपभोक्ता के आवश्यकता की पहचान की जाती है और उनके अनुसार वस्तु एवं सेवा का उत्पादन किया जाता है ताकि उनके आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
- भावी क्रेता के फैशन, आवश्यकता एवं मनोदशा को विश्लेषण के बाद बाजार के माँग के अनुरूप वस्तु एवं सेवा का निर्माण करना।।
- प्रतिस्पर्धी बाजार में विक्रेता से क्रेता के हाथों वस्तु एवं सेवा का आदान-प्रदान करना।
- एकताबद्ध वितरक/मध्यस्थ के माध्यम से उत्पाद का पैसे या बहुमूल्य तत्वों के बदले हस्तांतरण करना।
इस तरह विपणन वस्तु एवं सेवा को उपभोक्ता को उपलब्ध कराने की एक प्रक्रिया है जो उपभोक्ता की इच्छा और आवश्यकता को संतुष्ट करने में सफल होता है।
प्रश्न 56. वित्तीय प्रबंध क्या है ?
उत्तर: वित्तीय प्रबंध का संबंध व्यवसाय की वित्त व्यवस्थाओं से है जो उसके कुशल संचालन एवं उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिये की जाती है। वित्तीय प्रबंध का आशय किसी व्यावसायिक उपक्रम की वित्त संबंधी कुशल व्यापार से है। वित्तीय प्रबंध के द्वारा व्यवसाय के आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करना और सामान्य व्ययों को किया जाता है।
वित्तीय प्रबंध के अर्थ को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपनी-अपनी परिभाषाएँ इस प्रकार दी हैं-
बियरमैन एवं स्मिथ के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध पूँजी के स्रोतों का निर्धारण करने तथा उसके अनुकूलतम उपयोग का मार्ग ढूँढने वाली प्रविधि है।”
जे० एस० मैसी के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध एक व्यवसाय की वह संरचनात्मक क्रिया है जो कुशल संचालन के लिए आवश्यक वित्त को प्राप्त करने तथा उसका प्रभावशाली प्रयोग करने के लिए उत्तरदायी होता है।”
हावर्ड एवं उपटन के अनुसार, “वित्तीय प्रबंध से आशय नियोजन एवं नियंत्रण कार्यों को वित्त कार्य पर लागू करना है।”
प्रश्न 57. वित्तीय नियोजन के दो मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर: वित्तीय नियोजन के दो मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. यह निश्चित करना कि सही समय पर पर्याप्त धन उपलब्ध है-इसका उद्देश्य यह है कि संस्था के सफल संचालन के लिये पर्याप्त फण्ड किस प्रकार उपलब्ध किया जा सके। इसके अन्तर्गत (a) वित्तीय आवश्यकताओं का अनुमान (b) संभावित वित्तीय स्रोतों का अनुमान, (c) फण्ड की उपलब्धता का समय निर्धारित करना।
2. इस बात से सचेत रहना कि जो भी संसाधन प्राप्त किये गये हैं वे आवश्यकताओं के अनुकूल हैं। इससे अत्यधिक धन या अल्प धन के कारण इसकी लागत या खतरे को कम करता है।
इसलिये, वित्तीय नियोजन व्यवसाय में पर्याप्त फण्ड की उपलब्धता के द्वारा सफल संचालन का एक प्रयास है।
प्रश्न 58. उद्यमिता को सृजनशील क्रियाकलाप क्यों समझा जाता है?
उत्तर: उद्यमिता को एक सृजनशील क्रियाकलाप कहा जाता है। क्योंकि उद्यमिता अतिरिक्त धन सृजित करने की गतिशील प्रक्रिया है। यह धन व्यक्तियों द्वारा सृजित किया जाता है। जो पूँजी समय तथा वृत्ति की वचनबद्धता द्वारा किसी उत्पादन अथवा सेवा में मूल्य प्रदान करते हैं। उद्यमिता विशेष रूप से एक व्यापार का एक नया विचार वाला कार्य है। इस क्रिया में निम्न गतिविधियाँ आती हैं-
- किसी नए उत्पादन को शुरू करना।
- किसी उत्पादन की नई विधि का उपयोग करना।
- किसी नए बाजार क्षेत्र में प्रविष्ट होना।
- सामग्री को किसी नए स्रोत से प्राप्त करना।
- एक नए ढंग का संगठन बनाना। अत: कहा जा सकता है कि उद्यमिता एक सृजनशील क्रियाकलाप है।
प्रश्न 59. प्रबंध के सिद्धान्त के आवश्यक तत्व क्या हैं ?
उत्तर: प्रबंध के सिद्धान्त के आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं-
- आचरण एवं निर्णय लेने के लिये निर्देशन
- परिस्थिति के माँग के अनुकूल लचीलापन
- बदलते मानवीय दृष्टिकोण एवं तकनीक का प्रतिफल।
- भू-मण्डलीय स्तर पर समस्या का समाधान।
- सम्पूर्ण संसार में फैले हुए कर्मचारियों एवं ग्राहकों से वार्तालाप।
- सही तकनीक के प्रयोग से नियोजन का क्रियान्वयन।
- व्यवहार में आधारभूत सत्य का प्रयोग।
- प्रबंध का सिद्धान्त, इसलिये संचालन की दक्षता की प्रक्रिया में मदद करता है।
प्रश्न 60. वस्तु के विपणन में पैकिंग के क्या महत्व हैं ?
उत्तर: पैकिंग वस्तु को आकर्षण, सुरक्षा, सुविधा और उपयोगिता प्रदान करता है। वर्तमान व्यावसायिक परिवेश में पैकिंग का महत्व निम्नलिखित लाभ के कारण अधिक हैं-
- जीवन स्तर में सुधार के कारण माँग की वस्तु को इस तरह से पैकिंग की जाय ताकि वस्तु पर ग्राहकों का विश्वास जमा रहे।
- स्वयं सेवा की खुदरा दुकान की बढ़ती लोकप्रियता ग्राहकों को निर्धारित मात्रा में अपनी इच्छानुसार वस्तु के चुनाव स्वयं खरीदने की सुविधा प्रदान करता है।
- विकास का नया अवसर पैकिंग को महत्वपूर्ण बना दिया है। पैकिंग के विशेष तकनीक के कारण वस्तु अधिक दिनों तक टिकाऊ रहती है। जैसे-दूध, सॉफ्ट ड्रिंक, दवाई इत्यादि।
- मूल्य के आधार पर पैकिंग वस्तु के लिये आवश्यक तत्व है। आधुनिक समय में सही पैकिंग के बिना किसी भी वस्तु को क्रय-विक्रय करने में काफी दिक्कत होगी।
प्रश्न 61. पूँजी बाजार की परिभाषा दें।
उत्तर: अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition) – पूँजी बाजार दीर्घकालीन वित्तीय ऋण प्रदान करता है। पूँजी बाजार के अन्तर्गत हम उन सभी सुविधाओं एवं संस्थाओं को सम्मिलित करते हैं जो दीर्घकालीन समय के लिए धन उधार लेने और देने का कार्य करती है अर्थात् पूँजी बाजार में दीर्घकालीन ऋणों के लेन-देनों का बोध होता है।
एल० एन० सिन्हा के अनुसार, “पूँजी बाजार के अन्तर्गत उन सभी सुविधाओं एवं संस्थागत प्रबन्धों को सम्मिलित किया जाता है जो दीर्घकालीन ऋणों से सम्बन्धित हैं।”
बैजर एवं ग्रथमैन के अनुसार, “पूँजी बाजार उन मागों की श्रृंखला की ओर संकेत करता है। जिनके द्वारा समाज की बचतें व्यापारिक संस्थाओं एवं जनता को उपलब्ध कराई जाती हैं। यह अपने अन्तर्गत केवल उस व्यवस्था को ही सम्मिलित नहीं करता जिसके द्वारा जनता प्रत्यक्ष या मध्यस्थों के द्वारा प्रतिभूतियों के ग्रहण करती है परन्तु संस्थाओं के विस्तृत जाल को भी सम्मिलित करता है जो कि अल्पकालीन एवं मध्यकालीन ऋण प्रदान करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर लेते हैं।”
प्रश्न 62. जटिल या संकट बिंदु नियंत्रण क्या है ?
उत्तर: नियंत्रण के अनेक सिद्धांत हैं जिनमें जटिल या संकट बिन्दु नियंत्रण भी एक है। नियंत्रण के इस सिद्धांत में नियंत्रण का ध्यान महत्वपूर्ण स्थानों की ओर आकर्षित करना है। यह सिद्धांत नियंत्रण का बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत से नियंत्रण के कार्य को सफल बनाया जाता है। साथ ही साथ इस सिद्धांत से नियंत्रण का कार्य आसान बनाया जा सकता है।
प्रश्न 63. विपणन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर: विपणन का अर्थ (Meaning of Marketing) – सामान्यतः व्यावसायिक प्रबन्ध का वह भाग जो ‘विक्रय’ से सम्बन्धित हो ‘विपणन’ के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार ‘विपणन’ एवं विक्रय-प्रबन्ध (Sales Management) एक-दूसरे के पर्यायवाची कहे जा सकते हैं। ‘विपणन’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है। संकुचित दृष्टि से विपणन के अन्तर्गत उन समस्त क्रियाओं का समावेश किया जाता है जो वस्तुओं के उत्पादन केन्द्रों से उठाकर उन्हें उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए की जाती है। इस दृष्टि से विपणन के क्षेत्र में केवल क्रय, विज्ञापन, संग्रह परिवहन, श्रेणियन आदि क्रियाएँ ही आती हैं।
किन्तु व्यापक दृष्टि से विपणन की विषय सामग्री के अन्तर्गत विक्रय नीतियाँ, विक्रय प्रबन्ध व संगठन, मूल्य-निर्धारण, वस्तु का विकास व्यावसायिक जोखिमों को कम करने के साधन तथा विपणन अनुसन्धान आदि सभी क्रियाओं का समावेश किया जाता है। आधुनिक समय में विपणन का यह व्यापक अर्थ ही अधिक प्रचलित है। इस अर्थ में विपणन कार्य वस्तुओं का उत्पादन आरम्भ करने से पहले ही प्रारम्भ हो जाती है तथा विक्रय होने के बाद भी निरन्तर चलता है।
प्रश्न 64. पैकेजिंग एवं पैकिंग में अन्तर बतायें।
उत्तर: कुछ विद्वान पैकेजिंग व पैकिंग में कोई अन्तर नहीं मानते हैं और उनकी दृष्टि में दोनों शब्द पर्यायवाची हैं। लेकिन कुछ विद्वान पैकेजिंग को पैकिंग का ही एक भाग मानते हैं। और उनका कहना है कि जब उत्पादों को छोटे-छोटे पैकेटों, डिब्बों या बोतलों में पैक किया जाता है तो यह पैकेजिंग के अन्तर्गत आता है। लेकिन जब बहुत-से छोटे-छोटे पैकेट, डिब्बे या बोतल एकत्रित कर भेजे जाते हैं तो उनको पैकिंग के अन्तर्गत रखा जाता है। इस प्रकार पैकेजिंग पैकिंग का एक अंग है।
प्रश्न 65. कार्यात्मक संगठन के दो लाभ दीजिए।
उत्तर: कार्यात्मक संगठन के दो लाभ निम्नलिखित हैं-
- कार्यात्मक संगठन में विशिष्टीकारण का तत्व पाया जाता है। इसमें सभी क्रियाओं के आधार पर विभिन्न भागों में बाँटकर प्रत्येक कार्य एक विशेषज्ञ को सौंपा जाता है और विशिष्टीकरण के लाभ प्राप्त किये जाते हैं।
- कार्यात्मक संगठन का एक लाभ यह भी है कि इसके द्वारा संगठन के सभी अधिकारियों, प्रबंधकों और कर्मचारियों की कार्य-कुशलता में वृद्धि होती है।