Bihar Board 12th Accountancy Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi
Bihar Board 12th Accountancy Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi
BSEB 12th Accountancy Important Questions Long Answer Type Part 3 in Hindi
प्रश्न 1. S Ltd. issued 5,000 shares of Rs. 100 each at a premium of Rs. 10 each payable as follows :
On Application – Rs. 30
On Allotment – Rs. 40 (including premium)
On First & Final Call – Rs. 40
All the shares were applied for and instalments received on due dates with the exception of the Allotment and First & Final Call on 100 shares, these shares were forfeited and re-issued as fully paid @ Rs. 105 per share.
Pass necessary Journal Entries in the books of the Company.
उत्तर:
संकेत 1: हरण किए गए 100 अंशों पर आवंटन राशि प्राप्त नहीं हुई है और प्रीमियम क्योंकि आवंटन पर देय है, अतः इन अंशों पर प्रीमियम भी प्राप्त नहीं हुआ होगा। अतः हरण की प्रविष्टि में प्रीमियम को डेबिट किया जाएगा।
प्रश्न 2. अ ब लि० ने 1,00,000; 12% पूर्वाधिकार अंशों के लिए आवेदन आमन्त्रित किए। पूर्वाधिकार अंशों का मूल्य 100 रु. प्रति अंश तथा उन्हें 10% के बट्टे पर निर्गमित किया गया था। अंश राशि निम्न प्रकार से देय थी।
आवेदन पर – 30 रु०
आवंटन पर – 20 रु०
प्रथम तथा अन्तिम याचना पर शेष
1,50,000 अंशों के लिए आवेदन प्राप्त हुए। 30,000 अंशों के लिए आवेदनों को रद्द कर दिया गया तथा शेष आवेदकों को आनुपातिक आधार पर अंशों का आवंटन किया गया। सभी याचनाएँ माँग ली गई तथा कुमार के 1,000 अंशों को छोड़ कर सभी याचनाएँ प्राप्त हो गईं। कुमार ने प्रथम तथा अन्तिम याचना का भुगतान नहीं किया, उसके अंशों को जब्त कर लिया गया। जब्त किए गए अंशों में से 700 अंशों को 120 रु० प्रति अंशों की दर से पूर्ण प्रदत्त पुनः निर्गमित कर दिया गया।
अ ब लि० के रोजनामचे में आवश्यक रोजनामचा प्रविष्टियाँ कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 3. गोविन्द लिमिटेड ने 100 रु० वाले 5,000, 12% ऋणपत्र सममूल्य पर निर्गमित किए जिनका भुगतान इस प्रकार होना चाहिए था, 20 रु० आवेदन पर, 20 रु० आवंटन पर, 30 रु० प्रथम याचना पर और शेष 30 रु० अन्तिम याचना पर। जनता ने 6,000 ऋणपत्रों के लिए आवेदन-पत्र भेजे। 4500 ऋणपत्रों के आवेदन-पत्रों को सम्पूर्ण आवंटन कर दिया गया। 800 ऋणपत्रों के आवेदन पत्रों को 500 ऋणपत्र दे दिए गए और 700 ऋणपत्रों के आवेदन-पत्रों को अस्वीकृत कर दिया गया। आवेदन-पत्रों के साथ प्राप्त आधिक्य राशि को आवंटन में प्रयोग किया गया।
जर्नल प्रविष्टियाँ कीजिए, यह मानते हुए कि 200 ऋणपत्रों पर अन्तिम याचना को छोड़कर सभी राशियाँ यथासमय प्राप्त हो गयीं।
उत्तर:
प्रश्न 4. Tirupati Ltd. issue 20,000, 11% Debenture of Rs. 100 each, payable as follows: Rs. 25 on application; Rs. 35 on allotment and Rs. 40 on first and final call.
All the debentures were applied. A, the holder of 500 debentures paid the entire amount on his holding on allotment and B, the holder of 100 debentures failed to pay the allotment and final call. Pass Journal entries.
उत्तर:
प्रश्न 5. Journalise the following transaction :
(a) A Debenture issued at Rs. 95, repayable at Rs. 100
(b) A Debenture issued at Rs. 95, repayable at Rs. 110
(c) A Debenture issued at Rs. 100, repayable at Rs. 110
(d) A Debenture issued at Rs. 106, repayable at Rs. 100
उत्तर:
प्रश्न 6. अपोलो लिमिटेड ने 1 अप्रैल, 2002 को 100 रू० वाले 2,000, 12% ऋणपत्र निर्गमित : किए जिनका तीन वर्ष बाद सममूल्य पर शोधन (भुगतान) किया जाना है। इनके शोधन. के लिए एक शोधन कोष (Sinking fund) की स्थापना का निश्चय किया गया। विनियोगों पर 4% ब्याज प्राप्त होने की सम्भावना है। शोधन कोष तालिका दर्शाती है कि 0.320348. रु० प्रति वर्ष विनियोग करने पर 4% वार्षिक की दर से 3 वर्ष में 1 रु० बन जाता है।
31 मार्च, 2005 को विनियोगों को सममूल्य पर बेच दिया गया और ऋणपत्रों का भुगतान कर दिया गया। जर्नल प्रविष्टियाँ तथा खाते बनाइए। ऋणपत्रों पर ब्याज से सम्बन्धित प्रविष्टियाँ बनाने की आवश्यकता नहीं है।
उत्तर:
नोट 1. अगले वर्ष की जर्नल प्रविष्टियाँ बनाने से पहले पिछले वर्ष का ‘Sinking Fund Investments A/c बना लेना चाहिए क्योंकि प्रत्येक वर्ष ब्याज की गणना ‘Sinking Fund Investments A/c के प्रारम्भिक शेष पर की जाती है ।
2. अन्तिम वर्ष में सिकिंग फंड के वार्षिक प्रावधान की राशि को 34 पैसे से बढ़ा दिया गया है जिससे कि सिकिंग फंड खाते का जोड़ 2.00,000 रु० हो जाए ।
प्रश्न 7. 31 मार्च, 2014 को मोदी. रबड़ लि0 की पुस्तकें निम्न सूचनाएँ उपलब्ध कराती थीं :
31 मार्च, 2015 तथा 2016 को समाप्त होने वाले वर्ष में ऋणपत्र शोधन खाते में अंशदान 1,30,800 रु० प्रति वर्ष था । ऋणपत्र, भुगतान के लिए 31 मार्च, 2016 को देय हुए।
कम्पनी की पुस्तकों में उपयुक्त खाते खोलिए यह मानते हुए कि प्रतिभूतियों से 31 मार्च, 2016 को 13,52,000 रु० प्राप्त हुए और प्रतिभूतियों को ब्याज तुरंत विनियोजित कर दिया जाता था।
उत्तर:
प्रश्न 8. 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष का मैत्री क्लब का प्राप्ति एवं भुगतान खाता रु० 25,000 चंदे से प्राप्त राशि दिखाता है। अतिरिक्त सूचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
वर्ष 2014-15 के लिए चंदे से प्राप्त आय की गणना कीजिए तथा चंदे से संबंधित आवश्यक मदों की प्रारंभिक तथा अंतिम स्थिति विवरण में दिखाइए।
उत्तर:
प्रश्न 9. रोकड़ प्रवाह विवरण का एक अनुमानित प्रारूप तैयार कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 10. विश्लेषण की विभिन्न विधियों की विवेचना करें।
उत्तर: वित्तीय विवरण के विश्लेषण का इतिहास वर्तमान शताब्दी से प्रारम्भ हुआ है। पाश्चात्य देशों में इस पद्धति का प्रयोग साख विश्लेषण के लिए प्रारम्भ हुआ था। सन् 1914 ई० तक साख प्रदान करने वाले केवल वित्तीय विवरणों की वस्तु-स्थिति पर विश्वास करके साख प्रदान करते थे। परन्तु धीरे-धीरे इन विवरणों में प्रदत्त समंकों का विश्लेषण महत्त्वपूर्ण माना जाने लगा और इनके लिए अनेक विधियों का विकास हुआ । वर्तमान में निर्वचन एवं विश्लेषण की मुख्य विधियाँ निम्न हैं : (अ) अनुपात विश्लेषण (Ratio Analysis), (ब) तुलनात्मक विवरणों को तैयार करना (Preparation of Comparative Statements), (स) फण्ड-बहाव विवरण (Fund Flow Statement), (द) रोकड़-बहाव विवरण (Cash Flow Statement), (य) प्रवृत्ति विश्लेषण (Trend Analysis)।
(अ) अनुपात विश्लेषण- वित्तीय विवरणों में प्रदत्त व्यावसायिक तथ्यों का व्यक्तिगत रूप में कोई महत्त्व नहीं होता है। वे आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। अतः उनके आधार पर कोई भी उचित निष्कर्ष उस समय तक नहीं निकाला जा सकता है, जब तक कि विभिन्न मदों के बीच कोई सम्बन्ध स्थापित न किया जाए। दो या दो से अधिक मदों के बीच एक तर्कयुक्त व नियमबद्ध पद्धति के आधार पर सम्बन्ध स्थापना का परिणाम ही ‘अनुपात’ कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अनुपात एक ऐसा संख्यात्मक सम्बन्ध प्रदर्शित करता है, जो वित्तीय विवरणों की दो या दो से अधिक मदों के बीच पाया जाता है। इस सम्बन्ध को अनुपात के रूप में, दर के रूप में या प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
अनुपात विश्लेषण से अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हो सकती है। प्रमुख रूप में प्रबन्ध के आधारभूत कार्य योजना, समन्वय, नियन्त्रण, संवहन एवं पूर्वानुमान के कार्य में सहायता पहुँचाना ही अनुपात विश्लेषण का उद्देश्य होता है। अनुपात विश्लेषण की तकनीक में (i) लेखांकन अनुपातों का निर्धारण, (ii) अनुपातों की गणना, (iii) निकाले गए अनुपातों की प्रमाणित अनुपातों से तुलना, (iv) अनुपातों का निर्वचन तथा (v) अनुपातों के आधार पर प्रक्षेपित वित्तीय विवरण तैयार करना शामिल होता है। .
(ब) तुलनात्मक विवरण- तुलनात्मक वित्तीय विवरण किसी व्यवसाय की वित्तीय स्थिति के इस प्रकार बनाये गये विवरण होते हैं जो विभिन्न तत्त्वों पर विचार करने के लिए समय परिप्रेक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए किये जाते हैं। विश्लेषण हेतु तुलनात्मक विवरणों को तैयार करते समय इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि किसी संस्था के जितने समय के वित्तीय इतिहास का अध्ययन किया जाता हो, उस समय के दौरान समंकों एवं सूचनाओं के एकत्रीकरण की विधियों ‘में भिन्नता न हो।
विश्लेषण एवं निर्वचन के लिए तैयार किये जाने वाले तुलनात्मक विवरणों में तुलनात्मक चिट्ठा, उत्पादन लागत का तुलनात्मक विवरण, तुलनात्मक लाभ-हानि खाता, कार्यशील पूँजी का तुलनात्मक विवरण आदि महत्त्वपूर्ण है। इन तुलनात्मक विवरणों में वित्तीय आँकड़ों एवं सूचनाओं को निम्न प्रकार से दिखलाया जा सकता है :
(i) निरपेक्ष अंकों (मुद्रा मूल्य) के रूप में, (ii) निरपेक्ष अंकों में वृद्धि या कमी के रूप में, (iii) निरपेक्ष अंकों में हुई वृद्धि या कमी के प्रतिशत के रूप में तथा (iv) समान आकार वाले विवरणों के रूप में ।
वित्तीय विवरणों को तुलनात्मक रूप में प्रस्तुत. करके दो वित्तीय अवधियों में हुए परिवर्तनों की जानकारी तथा वित्तीय स्थिति एवं संचालन के परिणामों की दिशा ज्ञात की जा सकती है ।
(स) फण्ड-बहाव विवरण- फण्ड-बहाव विवरण सारांश रूप में तैयार किया गया एक ऐसा विवरण है, जो दो तिथियों पर तैयार किये गये आर्थिक चिट्ठे के वित्तीय मदों में हुए परिवर्तन को दर्शाता है। इसके लिए फण्ड से तात्पर्य कार्यशील पूँजी से लगाया जाता है और बहाव से तात्पर्य फण्ड के निर्माण एवं उत्पत्ति से होता है। इस प्रकार फण्ड-बहाव विवरण एक निश्चित अवधि में कार्यशील पूँजी में हुए परिवर्तनों एवं अन्य वित्तीय मदों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने हेतु तैयार किया जाता है। इससे न केवल संस्था की वित्तीय दशा की सुदृढ़ता के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है, बल्कि प्रबन्ध की वित्तीय नीतियों के सफल क्रियान्वयन के विषय में भी जानकारी मिलती है। यह प्रबन्ध की उस उच्च दक्षता को भी दर्शाता है जिसके सहारे प्रबन्धकीय निर्णय लिये गये होते हैं। यह उन जटिल प्रश्नों का भी सहज उत्तर प्रदान करता है, जिसे वित्तीय विवरणों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह संस्था की प्रगति के मूल्यांकन में, इसकी वित्तीय आवश्यकताओं एवं उनके अनुकूलतम वित्तीय प्रबन्धन के निर्धारण में भी सहायता देता है । इस विवरण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए ए. आई. सी. पी. ए. ने मत प्रकट किया है, “वार्षिक रिपोर्ट में भली-भांति से चित्रित तुलनात्मक फण्ड-बहाव विवरण सम्मिलित करना एक सामान्य प्रथा बन जानी चाहिए ।” हालांकि फण्ड-बहाव विवरण के अनेक उपयोग हैं और यह वित्तीय विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण यंत्र है, फिर भी इसकी अनेक सीमाएँ व मर्यादाएँ हैं, जिन्हें इसका प्रयोग करते समय अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।
(द) रोकड़-बहाव विवरण-रोकड़-बहाव विवरण रोकड़-बहाव का एक विवरण है और रोकड़-बहाव व्यावसायिक संस्था के अन्दर एवं बाहर रोकड़ की गति को दर्शाता है। रोकड़ आगमन रोकड के साधन के रूप में और रोकड बहिर्गमन रोकड के प्रयोग के रूप में माना जाता है। यह विवरण उन कारकों पर भी प्रकाश डालता है, जिनके कारण रोकड़ का आगमन व बहिर्गमन होता है। इस प्रकार रोकड़-बहाव विवरण एक ऐसा विवरण है, जिसे दो चिट्ठों की तिथियों के मध्य रोकड़ स्थिति में हुए परिवर्तन एवं उसके कारकों पर प्रकाश डालने के लिए तैयार किया जाता है। रोकड़-बहाव विवरण संस्था के अल्पकालीन वित्तीय परिवर्तनों के जाँच की एक तकनीक है। यह संस्था की वित्तीय नीतियों और वर्तमान रोकड़ स्थिति के मूल्यांकन में सहायक होता है। भावी अवधि के लिए तैयार किये जाने पर यह प्रबन्ध को संस्था के वित्तीय कार्यकलापों के नियोजन एवं समन्वय में भी सहायक होता है। इस विवरण की सहायता से संस्था का रोकड़ बजट भी तैयार किया जा सकता है।
(य) प्रवृत्ति विश्लेषण-वित्तीय विवरणों के निर्वचन में प्रवृत्ति विश्लेषण का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रवृत्ति सामान्य रूप में एक साधारण रुख को कहते हैं। व्यावसायिक तथ्यों की प्रवृत्ति का विश्लेषण प्रवृत्ति अनुपात या प्रतिशत एवं बिन्दुरेखीय पत्र या चार्ट पर अंकित करके किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत लाभ-हानि खाते या चिट्टे के किसी भी मद के सम्बन्ध में उसकी प्रवृत्ति ज्ञात की जा सकती है, अर्थात् तीन-चार वर्षों के अन्तर्गत उस मद में क्या परिवर्तन हुए हैं, अर्थात् उसमें प्रति वर्ष कमी हुई है अथवा वृद्धि हुई, इसको प्रवृत्ति विश्लेषण के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पिछले छः वर्षों के विक्रय की राशि को एक जगह रखकर यह देख सकते हैं कि प्रति वर्ष उसमें कितनी वृद्धि या कमी हो रही है और उसके आधार पर अगले वर्ष के लिए विक्रय का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
प्रश्न 11. वित्तीय लेखा अनुपात से आप क्या समझते हैं ? इसके उद्देश्यों एवं महत्त्व की व्याख्या करें।
उत्तर: अनुपात एक ऐसा संख्यात्मक सम्बन्ध प्रदर्शित करता है। जो वित्तीय विवरणों के दो या दो से अधिक मदों के बीच मापा जाता है। हंट, विलियम तथा डोनाल्डसन के अनुसार “अनुपात वित्तीय विवरणों या लेखाकन से प्राप्त संख्याओं के सम्बन्ध को अंकगणितीय रूप में प्रदर्शित करने का साधन मात्र है ।”
अनुपात विश्लेषण का उद्देश्य (Objective of Ratio Analysis)- प्रमुख रूप में प्रबंध के आधारभूत कार्य, योजना, समन्वय; नियंत्रण, संवहन एवं पूर्वानुमान के कार्य में सहायता पहुँचाना ही अनुपात विश्लेषण का उद्देश्य होता है और इसका आधार पर भावी घटना के विषय में घोषणा की जाती है-(1) भूतकालीन अनुपात द्वारा लागत, विक्रय, लाभ और अन्य सम्बन्धित तथ्यों की प्रवृति के विषय में ज्ञान प्राप्त हो सकता है और उनके आधार पर भावी घटना के विषय में घोषणा की जाती है। (2) ‘आदर्श अनुपातों’ (Ideal Ratios) की रचना की जा सकती हैं और प्रमुख अनुपात के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध को ‘इच्छित समन्वय’ के लिए प्रयोग किया जा सकता है। (3) विक्रय-नियंत्रण एवं लागत-नियंत्रण में भी अनुपातों की सहायता ली जा सकती है। (4) अनुपात के प्रयोग द्वारा संवहन का कार्य सरल हो जाता है । इसके आधार पर सरलतापूर्वक बताया जाता है कि दो अवधियों कि दो अवधियों के बीच क्या हुआ है। (5) चूँकि अनुपात द्वारा वित्तीय समंकों में एकरूपता आ जाती है, अतः अन्तर्घमंडल तुलना (inter-firm comparison) सम्भव हो जाती है।
अनुपातों का महत्त्व एवं सीमाएँ (Singnificance and Limitations of Ratios)- वित्तीय विवरणों के निर्वचन में अनुपात विश्लेषण का महत्त्व ही अधिक होता है । अनुपातों के आधार पर विश्लेषक अंकों की सतह तक पहुँच सकता है। जिस रूप में संख्याएँ वित्तीय विवरणों में प्रस्तुत की गयी होती हैं, उस रूप में उनका न कोई महत्व होता है। और न वे किसी उद्देश्य को ही पूरा कर सकती है। वस्तुतः मूल रूप में वे मौन होती हैं। अनुपातों का प्रयोग उन्हें बोलने की शक्ति प्रदान करता हैं। इसी प्रकार व्यक्तिगत मदों से सम्बन्धित समंक अपने-आप में थोड़ा या कुछ भी माने नहीं रखते हैं। उनकी पूर्णतया योग्यता अन्य मदों के सम्बन्ध पर ही निर्भर करती हैं। उदाहरण के लिए, आर्थिक चिट्ठे में प्रदर्शित नकद धन का निरपेक्ष मूल्य अपने-आप में महत्त्वहीन होता है। लेकिन जब उसका सम्बन्ध चालू दायित्वों से स्थापित किया जाता है, तो उसका महत्त्व बढ़ जाता है। इस प्रकार अनुपात विश्लेषण के आधार पर अनेक वित्तीय मामलों के सम्बन्ध में जाँच एवं निर्णय लिये जा सकते हैं।
नि:संदेह अनुपात प्रबंध के लिए अमूल्य औजार होते हैं, परन्तु उनका महत्त्व उनके उचित प्रयोग पर ही निर्भर करता है। अनुपातों का गलत प्रयोग प्रबंध को या प्रयोगकर्ता को गुमराह कर सकता है और उनके आधार पर निकाला गया निष्कर्ष गलत हो सकता है। साधारणतया एक एकल अनुपात का सीमित मूल्य या महत्त्व होता है। क्योंकि विश्लेषण में प्रवृति का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। केनेडी एवं मैक्समूलर का कथन है, “एक अकेला अनुपात अपने आप में अर्थहीन होता है, वह सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत नहीं करता है। (A single ratio in itself is meaningless; it does not furnish a complete picture.) इसी प्रकार एक अमुक अनुपात में हुआ परिवर्तन तभी महत्त्वपूर्ण दिखाई दे सकता है, जब उसका अध्ययन अन्य अनुपातों के सम्बन्ध में किया जाए।
अनुपात का प्रयोग करते समय यह भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि प्रयोगकर्ता उन संस्थाओं के विषय में पूर्ण ज्ञान रखता हो, जिनके विवरणों के आधार पर अनुपात की गयी है। साथ ही अनुपातों की गणना लक्ष्य नहीं बल्कि लक्ष्य की प्राप्ति का साधन मात्र होता है। अतः यह पूर्णतया प्रयोगकर्ता के ऊपर निर्भर करता है कि वह इन अनुपातों के आधार पर कैसा निष्कर्ष निकालता है। अनुपातों का प्रयोग करते समय यह भी समस्या है कि किस अनुपात का ‘प्रमाप’ के रूप में माना जाए, ताकि उसके आधार पर वास्तविक अनुपातों की तुलना की जा सके। साधारणतया ऐसा कोई प्रमाप अनुपात नहीं हो सकता है, जिसका तुलनात्मक अध्ययन में प्रयोग किया जा सके। व्यवहार में एक संस्था की परिस्थितियाँ दूसरी संस्था से भिन्न होती हैं और प्रत्येक उद्योग की प्रकृति में भी भिन्नता होता है। फलस्वरूप प्रत्येक उद्योग के लिए प्रमाप अनुपात भी भिन्न-भिन्न होते हैं।
इन सामान्य बातों के अलावा अनुपातों का प्रयोग करते समय निम्न सावधानियां बरतना आवश्यक होता है-
1. प्रयोगकर्ता में यह गुण होना चाहिए कि वह लेखा समंकों की प्रकृति को अच्छी तरह परख सके। यदि लेखा समंकों में एकरूपता, विशेषतः परिभाषात्मक एकरूपता का अभाव हो, तो उनके आधार पर निकाला गया अनुपात भ्रमात्मक हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि एक संस्था शुद्ध बिक्री की रकम को ज्ञात करने के लिए छूट, उपहार आदि घटा देती है और दूसरी. संस्था इस मद को लाभ-हानि खाते में चार्ज करती है, तो दोनों की विक्रय का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए संशोधन करना आवश्यक हो जाता है। जब तक प्रयोगकर्ता लेखा-संबंधी तकनीकों में गूढ ज्ञान नहीं रखेगा, इस प्रकार के समंकों की अतुलनीयता की खोज नहीं कर सकता है।
2. अनुपातों की गणना एवं सम्बन्धित व्यक्तियों को उनके संवहन के बीच समय को अन्तर आवश्यकता से अधिक नहीं होना चाहिए। जो व्यक्ति संस्था में रुचि रखता हो और कुछ विशिष्ट-उद्देश्यों के लिए अनुपातों का विश्लेषण करना चाहता हो तो अनुपातों की उसके लिए उपयोगिता तभी होगी, जब ये अनुपात उचित समय पर और उचित ढंग से उसके पास गमित कर , दिए जाएँ।
3. अनुपातों की उपयोगिता बहुत कुछ प्रस्तुतीकरण के ढंग पर भी निर्भर करती है। प्रस्तुतीकरण की समस्या दो रूपों में महत्त्वपूर्ण होता है। प्रथम, केवल वही अनुपात प्रस्तुत किये जायें, जो प्रत्यक्ष रूप में विचाराधीन समस्या से सम्बन्धित हों। द्वितीय, अनुपात उन्हीं व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत किए जाएँ, जो विचाराधीन समस्या से सम्बन्धित हो। उदाहरण के लिए, विक्रय क्षमता की जाँच करने के लिए विक्रय प्रबन्धक के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए, क्योंकि ‘विक्रय’ का क्षेत्र उसी के अधीन होता है।
4. गत कई वर्षों के अनुपातों का अध्ययन करने एवं उद्योग में लगी हुई अन्य संस्थाओं के अनुपातों को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक प्रमुख समस्या के सम्बन्ध में एक ‘प्रमाप अनुपात’ निश्चित कर लेना चाहिए। इस ‘प्रमाप’ से ‘वास्तविक’ अनुपात की तुलना अधिक लाभप्रद सूचना दे सकती है।
5. अनुपात में सत्यता की मात्रा उतनी ही होती है जितनी कि वित्तीय विवरणों में प्रदत्त समंकों की, जिनके आधार पर अनुपात की गणना की जाती है । यदि वित्तीय विवरणों में प्रदत्त निरपेक्षीय समंक अविश्वसनीय हैं तो अनुपात भी अविश्वसनीय होते हैं।
6. जब दो संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन में अनुपात का प्रयोग किया जा रहा हो, तो यह ध्यान में रखना चाहिए कि दोनों संस्थाओं में प्रयुक्त लेखांकन योजना (Accounting Plan)। एवं आधारभूत सिद्धांतों में भिन्नता न हो।
7. मूल-स्तर में परिवर्तन होने के कारण गत कई वर्षों के आँकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन जटिल एवं भ्रमात्मक हो सकता है।
8. कभी भी ऐसी दो संस्थाओं के आँकड़ों का अनुपात द्वारा विश्लेषण नहीं करना चाहिए, जो आपस में सम्बन्धित न हो या तुलना-योग्य न हों। इस दशा में अनुपातों का प्रयोग सदैव गलत निष्कर्ष प्रदान करता है।
9. अनुपात विश्लेषण निर्वचन एवं निष्कर्ष को कई विधियों में से एक विधि है। इस आधार पर निष्कर्ष निकालते समय अन्य सम्बन्धित तथ्यों एवं कारणों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
प्रश्न 12. वित्तीय विवरण के विश्लेषण का महत्व क्या है ?
उत्तर: वित्तीय विवरणों का विश्लेषण और निर्वचन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिससे प्रबंधक, बैंक, ऋणदाता, अंशधारी तथा विनियोक्ता सभी उपयोगी निष्कर्ष निकालते हैं। संक्षेप में, वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का निम्नलिखित महत्व इस प्रकार है-
(i) वैज्ञानिक निर्णय (Scientific Decision)- निर्णयकर्ता के मन पर सहज ज्ञान के आधार पर निर्णय लेते समय जो विभिन्न प्रभाव पड़ते हैं, उनके बहुत अधिक सीमा तक त्रुटिपूर्ण एवं भ्रामक होने की संभावना रहती है लेकिन वित्तीय विवरणों के विश्लेषण से जो निर्णय प्राप्त होते हैं। वे तथ्यों पर आधारित होने के कारण वैज्ञानिक माने जाते हैं।
(ii) पक्षपात रहित निर्णय (Unbiased Decision)- किसी विषय पर निर्णयकर्ता के व्यक्तिगत अनुभव और स्वभाव का उसके द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है लेकिन वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के आधार पर लिए गए निर्णय इन दोषों से मुक्त होते हैं।
(iii) प्रबंधकीय दृष्टि महत्व (Importance with view point of Management)- वित्तीय विवरणों के विश्लेषण व निर्वचन का महत्व- प्रबंधकीय दृष्टि से बहुत अधिक है। प्रबंधन इस तकनीक का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए कर सकता है-
- व्यवसाय के उत्पादन, विक्रय एवं मूल्य नीतियों की सफलता के मूल्यांकन के लिए।
- विभागों, प्रक्रियाओं आदि की सापेक्षिक कुशलता निर्धारित करने के लिए।
- व्यावसायिक क्रियाओं पर नियंत्रण और अपव्यय को रोकने के लिए।
- विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं के तुलनात्मक अध्ययन पूर्वानुमान के लिए तथा
- समस्त व्यावसीयक क्रिया की सफलता-असफलता के मूल्यांकन के लिए ताकि कमजोरियों को दूर करने के उपाय किये जा सके इत्यादि।
(iv) बाह्य पक्षों के लिए महत्व (Importance for Outside parties)- व्यवसाय के बाह्य पक्षों में लेनदार विनियोजक सरकार, अंकेक्षक, अर्थशास्त्री आदि आते हैं। इनकी दृष्टि से वित्तीय विवरणों के विश्लेषण एवं निर्वचन का अपना अलग महत्व है जो इस प्रकार है-
- व्यवसाय के लेनदार, बैंकर्स आदि इस तकनीक के प्रयोग से संस्था की वित्तीय स्थिति और ऋण परिशोधन क्षमता का मूल्यांकन करते हैं। इस मूल्यांकन के आधार पर ही व्यावसायिक संस्थाओं को साख प्रदान करते हैं।
- सरकार वित्तीय विवरण के समंकों का प्रयोग कम्पनी के नियम और प्रशासन के लिए करती है।
- अर्थशास्त्री वित्तीय विवरणों के विश्लेषण से वर्तमान व्यावसायिक दशाओं की समः। करते हैं तथा पूर्वानुमान करते हैं।
- कम्पनी के अंकेक्षक इस तकनीक का प्रयोग अंकेक्षण कार्यक्रम की योजना बनाने तथा संचालक मण्डल से अंकेक्षण प्रतिवेदन के विवेचन में करते हैं।
(v) अंशधारियों की दृष्टि से महत्व (Importance with view point of share-holders)- व्यवसाय के वर्तमान एवं सम्भावित अंशधारी कम्पनी के अंशों को क्रय करने बेचने या उन्हें रखने के संबंध में निर्णय वित्तीय विवरणों का विश्लेषण करके ही करते हैं। यह विश्लेषण उन्हें वर्तमान, लाभांश दर, अंशों के वर्तमान मूल्य, भावी लाभांश दर, विनियोग की सुरक्षा आदि के संबंध में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सहायक होता है।
प्रश्न 13. अनुपातों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर: अनुपातों का वर्गीकरण (Classification of Ratios)- अनुपातों का वर्गीकरण विभिन्न रूपों में किया जा सकता है। कुछ सम्भावित वर्गीकरण निम्न प्रकार है-
1. विवरण के आधार पर वर्गीकरण (Classification by Statement)- यह वर्गीकरण उन विवरणों के ऊपर आधारित है, जिनमें प्रदत्त सूचनाओं के आधार पर अनुपात निकाले जाते है। चूँकि सम्बन्धी सूचनाएँ दो विवरणों (आर्थिक चिट्ठा एवं लाभ-हानि) से प्राप्त की जा सकती है, इसलिए इस वर्गीकरण के अन्तर्गत निम्न को शामिल कर सकते हैं।
(अ) आर्थिक चिट्ठा का अनुपात (Balance Sheet Ratio)- इसे कभी-कभी वित्तीय अनुपात (Financial ratios) भी कहते हैं । इसके अन्तर्गत निम्न अनुपातों को शामिल करते हैं:
(i) तरलता अनुपात (Liquidity Ratio), (ii) चालू अनुपात (Current Ratio), (iii) स्कन्ध अनुपात (Stock Ratio), (iv) स्वामित्व अनुपात (Proprietory Ratio)।
(ब) लाभ-हानि अनुपात (Profit and Loss Ratio)- इसे कभी-कभी संचालन अनुपात (Operating Ratios) भी कहते हैं। इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं।
(i) आवर्त या बिक्री अनुपात (Turnover or Sales Ratio), (ii) खर्चा अनुपात (Expenses Ratio), (iii) आय अनुपात (Earning Ratio)।
(स) आर्थिक चिट्ठा एवं लाभ-हानि अनुपात (Balance Sheet and Profit & Loss Ratio)- इन अनुपातों की गणना आर्थिक चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाता दोनों के प्रदत्त समंकों के आधार पर की जाती है। इन्हें कभी-कभी संयुक्त अनुपात भी कहते हैं। इसमें बहुधा निम्न को शामिल करते हैं-(i) विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Capital Employed), (ii) अंशधारी फण्ड पर प्रत्याय (Return on Sharcholders Fund), (iii) चालू सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Current Assets Turnover Ratio), (iv) स्थायी सम्पत्तियों पर शुद्ध बिक्री का अनुपात (Ratio of Net Sales to Fixed Assets)।
2. प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण (Classification by Nature)- इस वर्गीकरण के अन्तर्गत अनुपातों की प्रकृति को ध्यान में रखा जाता है । इस विधि के अन्तर्गत अनुपातों का वर्गीकरण निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं।
(अ) तरलता, शोधन-क्षमता या कार्यशील पूँजी अनुपात (Liquidity, Solvency or Working Capital Ratio)
(ब) स्कन्ध अनुपात (Sales Ratio)
(स) देनदार एवं लेनदार अनुपात (Debtors and Creditors Ratios)
(द) विक्रय अनुपात (Sales Ratio)
(य) आय व लाभांश अनुपात (Earnings and Dividend Ratio)
(र) लागत अनुपात (Cost Ratio)
3. प्रयोगकर्ता के आधार पर (Classification by Users)-
(अ) प्रयोगकर्ता के आधार पर (Ratio for Management):
(i) संचालन अनुपात (Liquidity Ratio), (ii) विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Capital Employed), (iii) स्कन्ध आवर्त (Stock Turnover), (iv) देनदारों आवर्त (Debtors Turnover), (v) शोधन-क्षमता अनुपात (Solvency Ratio)
(ब) लेनदारों के लिए अनुपात (Ratios for Creditors) :
(i) चालू अनुपात (Current Ratio), (ii) शोधन अनुपात (Solvency Ratio), (iii) लेनदार आवर्त (Creditors Turnover), (iv) स्थायी सम्पत्ति अनुपात (Fixed Assets Ratio), (v) सम्पत्ति कवर (Assets Cover), (vi) ऋणी सेवा अनुपात (Debt Service Ratio)।
(स) अंशधारियों के लिए अनुपात (Ratios for Shareholders) :
(i) अंशधारियों के फण्ड पर प्रत्याय (Return on Shareholders Fund), (ii) पूँजी मिलान अनुपात (Capital Gearing Ratio), (iii) लाभांश कवर (Dividend Cover), (iv) प्रतिफल दर (Yield Rate), (v) स्वामित्व अनुपात (Proprietory Ratio), (vi) लाभांश दर (Dividend Rate), (vii) अंशों पर सम्पत्ति का कवर (Assets Cover of Shares)।
4. सापेक्षित महत्त्व के आधार पर वर्गीकरण (Classification by Relative Importance)-
(अ) प्राथमिक अनुपात (Primary Ratios) :
(i) विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Capital Employed), (ii) सम्पत्ति आवर्त (Assets Turnover), (iii) लाभ अनुपात (Profit Ratio)।
(ब) गौण निष्पादन अनुपात (Secondary Performance Ratios):
(i) कार्यशील पूँजी आवर्त (Working Capital Turnover), (ii) स्कन्ध का चल सम्पत्तियों पर अनुपात (Stock to Current Assets Ratio), (iii) चालू सम्पत्तियों की स्थायी सम्पत्तियों पर अनुपात (Current Assets to Fixed Assets Ratio), (iv) स्थायी सम्पत्तियों का कुल सम्पत्तियों पर अनुपात (Fixed Assets to Total Assets Ratio)।
(स) गौण साख अनुपात (Secondary Credit Ratios):
(i) लेनदार आवर्त (Creditors Turnover), (ii) देनदार आवर्त (Debtors Turnover), (iii) तरल अनुपात (Liquid Ratio), (iv) चालू अनुपात (Current Ratio), (v) औसत वसूली अवधि (Average Collection Period)।
(द) विकास अनुपात (Growth Ratios) :
(i) बिक्री में विकास दर (Growth Rate in Sales), (ii) शुद्ध सम्पत्तियों में विकास दर . (Growth Rate in Assets)
5. लेखाकंन महत्त्व के आधार पर वर्गीकरण(Classification by Accounting Significance)-
(अ) शोधन अनुपात (Solvency Ratios)
(ब) अर्जन अनुपात (Earning Ratios)
(स) पूँजीकरण अनुपात (Capitalisation Ratios)
(द) साख अनुपात (Creditor Ratios)
(य) प्रबन्ध अनुपात (Management Ratios)
6. उद्देश्य के अनुसार वर्गीकरण (Classification by Purpose)- जिन उद्देश्यों के लिए विश्लेषक अनुपातों का प्रयोग कर सकता है। उनके आधार पर भी अनुपातों का वर्गीकरण किया जा सकता है। सामान्यतः अनुपातों का प्रयोग किसी संस्था की लाभदायकता (Profitability) निष्पादन क्षमता (Activity of Operating Efficiency) या वित्तीय स्थिति की जाँच करने के लिए ही किया जाता है। इस प्रकार उद्देश्य के अनुसार अनुपात निम्न प्रकार के हो सकते हैं-
(अ) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios)
(ब) निष्पादन अनुपात (Activity Ratios)
(स) वित्तीय स्थिति अनुपात (Financial Position Ratios)
प्रश्न 14. रोकड़ प्रवाह विवरण क्या है ? इसे कैसे तैयार किया जाता है ?
उत्तर: रोकड़ प्रवाह विवरण रोकड़ बहाव का एक ऐसा विवरण है जो रोकड़ बहाव व्यावसायिक संस्था के अंदर एवं बाहर रोकड़ की गति को दर्शाता है। रोकड़ आगमन रोकड़ के साधन के रूप में और रोकड़ बहिर्गमन रोकड़ के प्रयोग के रूप में माना जाता है। यह विवरण उन कारकों पर भी प्रकाश डालता है जिसके कारण रोकड़ का आगमन एवं बहिर्गमन होता है। इस प्रकार रोकड़ प्रवाह विवरण एक ऐसा विवरण है, जिसे दो चिट्ठों की तिथियों के मध्य रोकड़ स्थिति में हुए परिवर्तन व उसके कारकों पर प्रकाश डालने के लिए तैयार किया जाता है। करीब-करीब इसकी प्रकृति एवं चरित्र रोकड़ प्राप्ति एवं रोकड़ भुगतान की भाँति ही होती है।
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स ऑफ इण्डिया ने रोकड़ प्रवाह विवरण तैयार करने के लिए लेखांकन मानक (प्रमाप)-3 संशोधित रूप में जारी किया है जिसे संक्षेप में AS-3 revised कहते हैं। ये तो लेखांकन मानक-3 (संशोधित) 01-4-1947 को जारी किया गया था। पर कछ विशेष संस्थाओं के लिए यह 1 अप्रैल, 2001 को या इसके बाद प्रारम्भ होने वाली लेखांकन अवधियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। लेखांकन मानक-3 (संशोधित) के अनुसार रोकड़ प्रवाह विवरण बनाते समय विभिन्न क्रियाकलापों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है जो इस प्रकार है-
- संचालन क्रियाएँ-संचालन क्रियाएँ व्यावसायिक उपक्रम की मुख्य आगम उत्पन्न करने वाली क्रियाएँ होती हैं। उनके आधार पर लाभ-हानि का निर्धारण होता है।
- निवेश क्रियाएँ-निवेश क्रियाओं में दीर्घकालीन सम्पत्तियों तथा अन्य निवेश जो रोकड़ सममूल्य में शामिल नहीं होती है, के क्रय-विक्रय को शामिल किया जाता है।
- वित्तीय क्रियाएँ-वित्तीय क्रियाएँ वे क्रियाएँ हैं जो स्वामी की पूँजी तथा उपक्रम के ऋणों के आकार एवं संरचना में परिवर्तन करती हैं।
सभी क्रियाओं को इन तीन वर्गों में विभाजित करने से रोकड़ प्रवाह विवरण प्रयोग करने वाले को यह सूचना मिल जाती है कि इन क्रियाओं का रोकड़ एवं रोकड़ मूल्यों पर क्या प्रभाव हुआ।
प्रश्न 15. हेमा लि. की पुस्तकों से निम्न सूचनाएँ प्राप्त की गयी हैं :
आपको (i) प्रति समता अंश आय, (ii) मूल्य अर्जन अनुपात, (iii) पूँजीकरण अनुपात, (iv) समता अंशों पर लाभांश प्रतिफल तथा (v) भुगतान अनुपात का आकलन करना है।
उत्तर:
प्रश्न 16. A, B और C साझेदार हैं जो लाभ-हानि को बराबर-बराबर बाँटते हैं। उन्होंने 30 दिसंबर, 2016 को फर्म को विघटित किया जिस तिथि को फर्म की स्थिति निम्न थी-
सभी संपत्तियों का पुस्तकीय मूल्य से 10% कम प्राप्त हुए। लेनदार को पूर्ण भुगतान कर दिया गया। वसूली के व्यय 500 हुए। वसूली खाता, साझेदारों के पूँजी खाता तथा नकद अथवा बैंक खाता तैयार कीजिए।
उत्तर:
Working Notes :
(1) Payment of contingent liabilites Rs. 500
(2) Assets Realised:
प्रश्न 17. रोकड़-बहाव विवरण से आप क्या समझते हैं ? इसके तकनीकों का वर्णन करें।
उत्तर: रोकड़-बहाव विवरण रोकड़-बहाव’ का एक ऐसा विवरण है जो रोकड़-बहाव व्यावसायिक संस्था के अन्दर एवं बाहर रोकड़ की गति को दर्शाता है। रोकड़-आगमन रोकड़ के साधन के रूप में और रोकड़ बहिर्गमन रोकड़ के प्रयोग के रूप में माना जाता है। यह विवरण उन कारकों पर भी प्रकाश डालता है, जिनके कारण रोकड़ का आगमन एवं बहिर्गमन होता है। इस प्रकार रोकड़-बहाव विवरण एक ऐसा विवरण है, जिसे दो चिट्ठों की तिथियों के मध्य रोकड़ स्थिति में हुए परिवर्तन व उसके कारकों पर प्रकाश डालने के लिए तैयार किया जाता है । करीब-करीब इसकी प्रकृति एवं चरित्र रोकड़ प्राप्ति एवं रोकड़ भुगतान की भाँति ही होती है, हालाँकि आधारभूत सूचनाएँ जिनके आधार पर इन दोनों को तैयार किया जाता है, अलग-अलग अभिलेखों से प्राप्त की जाती हैं । अन्य शब्दों में, रोकड़ प्राप्ति एवं भुगतान का विवरण दो तिथियों के चिट्ठों से नहीं तैयार हो सकता है, जबकि रोकड़-बहाव विवरण दो चिट्ठों एवं अन्य सूचनाओं के आधार पर ही तैयार किया जाता है।
रोकड़-बहाव विवरण की तकनीक (Technique of Cash-Flow Statement) रोकड़-बहाव विवरण की प्रकृत्ति एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालने से पहले यह लाभप्रद होगा कि हम उसे तैयार करने की विधि पर विचार करें। रोकड़-बहाव विवरण में व्यवसाय के अन्तर्गत रोकड़ के आगमन एवं बहिर्गमन पर प्रकाश डाला जाता है और एक तरफ उन तमाम साधनों को दर्शाया जाता है जिनसे रोकड़ व्यवसाय के अन्तर्गत आती हैं और दूसरी ओर उन मदों को दिखाया जाता है जिन पर नकद धन प्रयोग किया गया होता है। अतः रोकड़-बहाव विवरण बनाने के लिए यह आवश्यक है कि रोकड़-आगमन (Inflow of Cash) के विभिन्न स्रोतों एवं रोकड़-भुगतान (Outflow of Cash) के विभिन्न मदों के विषय में सैद्धान्तिक ज्ञान प्राप्त कर लें।
1. रोकड़-आगमन के साधन (Sources of Cash)-व्यवसाय के अन्तर्गत जिन लेन-देनों से रोकड़ का आगमन होता है, उन्हें मुख्यतः दो उपवर्गों में रखा जा सकता है-(अ) चालू संचालन सम्बन्धी क्रियाएँ; (ब) वित्तीय क्रियाएँ (लेन-देन) । इन दोनों क्रियाओं के अन्तर्गत भी अनेक उप-क्रियाओं को वर्गीकृत किया जा सकता है । संक्षेप में, रोकड़-आगमन के विभिन्न आगमन स्रोतों को निम्न रूप में सारांशित किया जा सकता है-
(अ) चालू संचालन सम्बन्धी क्रियाएँ-
- वस्तुओं एवं सेवाओं का नकद विक्रय;
- क्षय, उपोत्पाद एवं रद्दी माल का नकद विक्रयः
- ग्राहकों से वसूली-देनदारों से प्राप्ति एवं प्राप्त बिलों की प्राप्ति;
- किराये पर उठायी गयी सम्पत्तियों से प्राप्त किराया;
- विनियोगों पर प्राप्त नकद ब्याज और नकद लाभांश और अन्य कोई रकम;
- आय कर की वापसी (Refund);
- स्थायी सम्पत्तियों एवं अस्थायी विनियोगों की नकद बिक्री।
(ब) वित्तीय लेन-देन-
- प्राप्त बिलों का बैंक से डिस्काउण्ट कराना;
- ऋणपत्रों का निर्गमन नकद, रूप में;
- ऋणों के लिए देय बिल का निर्गमन;
- अंशों का निर्गमन नकद धन के लिए।
2. रोकड़-बहिर्गमन की मदें (Items of Outlow of Cash)- व्यवसाय के अन्तर्गत जिन-जिन क्रियाओं के सम्बन्ध में नकद धन का प्रयोग किया जाता है, उन्हें मुख्यतः संचालन क्रियाओं, स्थायी सम्पत्ति क्रय सम्बन्धी क्रियाओं एवं वित्तीय क्रियाओं के अन्तर्गत शामिल कर सकते हैं। इन क्रियाओं के अन्तर्गत भी अनेक उप-क्रियाओं का वर्गीकरण किया जा सकता है। संक्षेप में एक व्यवसाय के अन्तर्गत रोकड़ प्रयोग की विभिन्न मदें इस प्रकार हैं :
(अ) चालू संचालन सम्बन्धी क्रियाएँ-
- मजदूरी, उत्पादन व्यय व अन्य संचालन व्ययों का नकद भुगतान;
- कच्चे माल का नकद क्रय;
- लेनदारों और देय बिलों का नकद भुगतान;
- ब्याज का नकद भुगतान;
- आय कर का भुगतान;
- नकद लाभाश;
- किसी कानून निर्णय के अन्तर्गत देय राशि का भुगतान।
(ब) सम्पत्तियों का क्रय-
- स्थायी सम्पत्तियों का नकद रूप में क्रय;
- यन्त्र एवं अन्य साधनों के सम्बन्ध में असाधारण मरम्मत पर व्यय;
- अस्थायी विनियोगों का क्रय।
(स) वित्तीय लेन-देन-
- दीर्घकालीन ऋणों, ऋणपत्रों आदि का भुगतान;
- अंश पूँजी को लौटाना एवं शोधन।
व्यवहार में रोकड़-बहाव विवरण के निर्माण के लिए जिन सूचनाओं को प्राप्त किया जाता है, उनमें गैर-नकद लेन-देन (Non-cash transactions) की मदें शामिल हो सकती हैं, जिन्हें अलग करना आवश्यक होता है, क्योंकि इन लेन-देनों का रोकड़-आगमन एवं रोकड़-बहिर्गमन पर प्रभाव नहीं पड़ता है। अत: यह आवश्यक है कि गैर-नकद लेन-देन के विषय में भी जानकारी प्राप्त कर लें । इस प्रकार के गैर-नकद लेन-देनों के अन्तर्गत निम्नलिखित को शामिल करते हैं-
- सम्पत्तियों के मूल्यों में होने वाली ह्रास, कमी एवं क्षय की मान्यता;
- पूर्वदत्त व्ययों का लेखा;
- मूल्यहीन एवं अप्राप्त प्राप्तियों एवं सम्पत्तियों का अपलेखन;
- कमाये गये लाभ का नियोजनः
- स्थायी सम्पत्तियों के पुनर्मूल्यांकन के कारण मूल्य में वृद्धि या कमी;
- स्थायी सम्पत्तियों के अपलेखन का लेखा;
- अमूर्त सम्पत्तियों का अपलेखन;
- संचितियों का सृजन ।
उपर्युक्त के अलावा यह भी आवश्यक हो जाता है कि अदत्त खर्चों एवं प्राप्त आयों के सम्बन्ध में किये गये समायोजन लेखों को ध्यान में रखते हुए ऐसा समायोजन किया जाए कि नकद धन के आधार पर चालू खर्चों आयों के विषय में सही एवं शुद्ध ज्ञान प्राप्त हो सके । स्कन्ध, देनदार, प्राप्त बिल, लेनदार व देय बिल में हुए परिवर्तनों की जाँच व विश्लेषण इस प्रकार से करना चाहिए कि नकद धन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को आँका जा सके।
रीति एवं कार्यविधि (Method and Procedure)- एक आन्तरिक विश्लेषक रोकड़-प्राप्ति एवं रोकड़-भुगतान के जर्नल से एक सारांश तैयार कर सकता है और उस सारांश के आधार पर रोकड़-बहाव विवरण बना सकता है। परन्तु इस रीति एवं कार्यविधि में समय अधिक लग सकता है। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति की व्यवसाय की प्रारम्भिक लेखे की पुस्तकों तक पहुँच भी नहीं पाती है। अन्य रीतियों के लिए निम्न प्रकार के आँकड़े एवं सूचनाएँ आवश्यक होती हैं :
(अ) संस्था, के तुलनात्मक चिट्ठ;
(ब) वर्ष के लिए लाभ-हानि खाता या आय विवरण;
(स) आधिक्य या नियोजन खाता;
(द) वर्ष के दौरान किये गये गैर-नकद लेन-देनों की सूची।
इन प्रलेखों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर रोकड़-बहाव विवरण की रचना निम्न में से किसी भी एक रीति द्वारा की जा सकती है :
I. विवरणात्मक कार्य-चिट्ठा (Work-Sheet) बनाकर;
II. आय विवरण को रोकड़ आधार पर परिवर्तित करके;
III. फण्ड-बहाव विवरण के सिद्धान्त के आधार पर;
IV. प्राप्ति एवं भुगतान खाता बनाकर;
V. ‘ली’ (Lee) द्वारा प्रतिधारित गणितीय सत्र द्वारा:
VI. रोकड़ सम-स्तर चार्ट द्वारा (Cash Break-even Chart)।
यहाँ पर हम केवल III व IV रीतियों का ही वर्णन करेंगे।
प्रश्न 18. निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर 31 दिसम्बर, 2016 को समाप्त होने वाले वर्ष का आय एवं व्यय खाता बनाइए :
उत्तर:
प्रश्न 19. A और B का निम्नलिखित चिट्ठा है जो लाभ-हानि में बराबर के साझेदार हैं-
उन्होंने फर्म के विघटन का निर्णय लिया। सम्पत्तियों से निम्नांकित वसूली हुई :
मशीनरी पर उसके पुस्तकीय मूल्य से 20% कम, प्लाण्ट पर उसके पुस्तकीय मूल्य से 10% कम, देनदार पर 2,000 रु., लेनदारों को 10% की कसौटी पर भुगतान किया गया। विघटन के सम्बन्ध में आवश्यक खाते यह मानकर खोलिए कि विघटन व्यय 500 रु. है।
उत्तर:
प्रश्न 20. साझेदारी फर्म का विघटन किन परिस्थितियों में हो सकता है ?
उत्तर: साझेदारी फर्म का विघटन न्यायालय के आदेश से या न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना भी हो सकता है। भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 40 से 44 तक में साझेदारी फर्म के विघटन के विभिन्न ढंग/तरीकों का वर्णन किया गया है।
1. ‘समझौते द्वारा विघटन (धारा 40)-फर्म का विघटन निम्न परिस्थितियों में हो सकता है-
(अ) सभी साझेदारों की सहमति द्वारा या
(ब) साझेदारों के मध्य अनुबंध के अनुसार।
2. अनिवार्य विघटन (धारा 41)- फर्म का अनिवार्य विघटन निम्न परिस्थितियों में होता है:
(अ) जब कोई एक साझेदार या सभी साझेदार दिवालिया हो जाएं, या किसी अनुबंध को करने में अक्षम हो जाए;
(ब) जब फर्म का व्यवसाय गैर-कानूनी हो जाए अथवा
(स) जब कोई ऐसी स्थिति पैदा हो जाए कि साझेदारी फर्म का व्यवसाय गैर-कानूनी हो जाए, उदाहरणार्थ जब एक साझेदार ऐसे देश का नागरिक हो जिसका भारत के साथ युद्ध घोषित हो जाए।
3. किसी घटना के घटने की स्थिति में (धारा 42)-साझेदारों के बीच अनुबंध की स्थिति में फर्म का विघटन-
(अ) यदि एक निर्धारित अवधि के लिए गठित है तो उस अवधि के समापन पर,
(ब) यदि एक या अधिक उपक्रम के लिए गठित है तो उसके पूरा होने पर।
(स) साझेदारी की मृत्यु पर।
(द) साझेदार के दिवालिया घोषित होने पर होता है।
प्रश्न 21. निम्नलिखित संचालन क्रियाओं से आपको रोकड़ प्रवाह की गणना करनी है :
उत्तर:
प्रश्न 22. एक कम्पनी की चालू सम्पत्तियाँ 15,00,000 रु. है। उसका चालू अनुपात 3.00 तथा तरलता अनुपात 1.25 है। उसकी चालू देयताएँ, तरल सम्पत्तियाँ तथा स्टॉक (माल सूची) की गणना कीजिए।
उत्तर:
Liquid (Quick) Assets = 5,00,000 × 1.25 = 6,25,000
Inventory = Current Assets – Quick Assets
= 15,00,000 – 6,25,000 = 8,75,000
प्रश्न 23. 31.03.2015 तथा 31.03.2016 को ललिता लिमिटेड के निम्न चिट्ठों से रोकड़ प्रवाह विवरण बनाइए।
अतिरिक्त व्यय (i) वर्ष 2015-16 के लिए स्थायी संपत्तियों पर हास 14,700 है।
(ii) वर्ष के दौरान अंशधारियों को 7,000 रु० अंतरिम लाभांश दिया गया है।
उत्तर:
प्रश्न 24. 1 अप्रैल, 2012 को प्रकाश इण्डस्ट्रीज ने 4,00,000 ₹ के 9% प्रत्येक 100 र वाले ऋण पत्र 6% प्रीमियम पर निर्गमित किए जो 31 मार्च, 2016 को 10% प्रीमियम पर शोधन होते हैं। ऋणपत्रों का देय तिथि पर शोधन कर दिया गया। केवल ऋण पत्र के शोधन की जर्नल प्रविष्टियाँ कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 25. वित्तीय विवरण की सीमाएँ बताएँ।
उत्तर: यद्यपि वित्तीय विवरण विभिन्न व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करते हैं, परन्तु इन्हीं सूचनाओं के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष अंतिम एवं शुद्ध नहीं माने जा सकते हैं। साथ ही इन खातों की कुछ निजी सीमाएँ एवं मर्यादाएँ होती हैं और यह नितांत आवश्यक होता है कि इस विवरणों द्वारा प्रदत्त सूचनाओं का प्रयोग करते समय इन मान्यताओं एवं सीमाओं को ध्यान में रखा जाए। वित्तीय विवरण केवल सूचना प्रदान करते हैं और वह भी अंकों के रूप में। ये आवश्यक सूचनाएँ व्यवसाय के लिए गुणों या दोषों पर प्रकाश डालती हैं, इसकी खोज करना विश्लेषक या प्रयोगकर्ता का कार्य है।
सामान्यतया वित्तीय विवरणों का प्रयोग (निर्वाचन के उद्देश्य से) करते समय निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(i) वित्तीय विवरणों द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ सुतथ्य (Precise) नहीं होती हैं। चूँकि वित्तीय विवरणों की रचना लेखा विधि पेशा के कई वर्षों के आधार पर प्रतिपादित एवं प्रयोगमुक्त व्यावहारिक विधियों एवं नियमों के आधार पर की जाती है, अतः इनसे प्राप्त सूचनाओं को सुतथ्यतापूर्वक मापा नहीं जा सकता है।
(ii) वित्तीय विवरण व्यापारिक संस्था की सही वित्तीय स्थिति को नहीं दर्शाते हैं। एक संस्था की वित्तीय स्थिति अनेक कारणों आर्थिक, सामाजिक एवं वित्तीय से प्रभावित होती है; परन्तु वित्तीय स्थिति में केवल वित्तीय कारणों का ही लेखा हो पाता है, आर्थिक व सामाजिक कारणों का उनमें समावेश नहीं हो पाता है। अतः वित्तीय विवरणों द्वारा प्रदर्शित वित्तीय स्थिति सही एवं शुद्ध न होकर वास्तविकता से परे होती है। जब तक आर्थिक एवं सामाजिक घटनाओं के संदर्भ में वित्तीय स्थिति का अध्ययन न किया जाय, उसके संबंध में वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं हो पाता है।
(iii) आर्थिक चिट्ठा एक स्थिर प्रलेख माना जाता है और वह कम्पनी की स्थिति को केवल एक निश्चित क्षण पर दर्शाता है अर्थात् इससे यह पता चलता है कि कम्पनी ने एक निश्चित क्षण’ पर साधनों का किस प्रकार प्रयोग किया है और इस दृष्टिकोण से आर्थिक चिट्ठे को एक तात्कालिक चित्र (Instantaneous photograph) कह सकते हैं। कम्पनी की वास्तविक स्थिति दिन-प्रतिदिन परिवर्तित हो सकती है। इस सीमा के कारण आर्थिक चिट्ठे में दिखावटीपन (Window-dressing) की प्रवृत्ति पायी जाती है।
(iv) आर्थिक चिट्ठा कोई मूल्यांकन विवरण नहीं है अर्थात् इसमें प्रदर्शित मूल्य सम्पत्तियों का उचित मूल्य नहीं होता है। लेखा-विधि के सिद्धांतों के अनुसार आर्थिक चिट्ठे में स्थायी सम्पत्तियों को कालिक लागत (Historical cost) पर दिखाया जाता है, अर्थात् सम्पत्तियों की मूल लागत में से ह्रास की रकम घटाकर दिखाया जाता है। ह्रास की रकम चाहे कितने ही वैज्ञानिक ढंग से क्यों न आकलित की गयी हो, एक अनुमान मात्र होती है। इस प्रकार आर्थिक चिट्ठे में प्रदर्शित सम्पत्तियों का मूल्य वह मूल्य नहीं होता है जिस पर सम्पत्तियों को बेचा जा सकता हो। स्पष्ट है कि इस दशा में व्यवसाय की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं हो पाता है।
(v) लाभ-हानि खाते द्वारा प्रदर्शित लाभ वास्तविक लाभ नहीं होता है। किसी वर्ष के लिए लाभ-हानि खाते द्वारा दिखाया गया लाभ कभी भी गणितीय ढंग या आर्थिक दृष्टिकोण से शुद्ध . नहीं होता है क्योंकि लाभ-हानि खाते में प्रदर्शित बहुत-सी मदें अनुमान के आधार पर निकाली गयी होती हैं।
(vi) वित्तीय विवरणों द्वारा प्रदत्त-सूचनाएँ मूक होती हैं। यह भी ध्यान देने योग्य हैं कि वित्तीय विवरणों के निर्वचन में मानव निर्णय (Human Judgement) निहित होता है और सूचनाएँ अपने आप कुछ नहीं कहती हैं। प्रयोग करने वाला जुबान देता है। प्रायः ऐसा शायद ही संभव हो कि वित्तीय विवरणों के प्रयोग करने वाले विभिन्न व्यक्ति लेखा संबंधी किसी आँकड़े पर एक ही राय रखते हों। प्रत्येक प्रयोगकर्ता अपनी कुशलता एवं अनुभव के आधार पर एक ही सूचना का भिन्न-भिन्न अर्थ लगा सकता है।
(vii) वित्तीय विवरणों की निर्माण तिथि में अंतर होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ तुलना योग्य नहीं हो सकती हैं। साथ ही लेखा-विधि एवं व्यवसाय की प्रकृति में अंतर होने के कारण भी दो संस्थाओं के वित्तीय विवरणों का तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं होता है। दो संस्थाएँ लेखे की अलग-अलग विधि अपना सकती हैं या दोनों के यहाँ अंतिम खाते बनाने की तिथि अलग हो सकती है या दोनों के व्यवसायों में भिन्नता हो सकती है। इन दशाओं में दोनों संस्थाओं की उनके विवरण के आधार परं तुलनात्मक जाँच नहीं की जा सकती है।