bihar board 12 political science | वैश्वीकरण
bihar board 12 political science | वैश्वीकरण
(GLOBALISATION)
याद रखने योग्य बातें
• वैश्वीकरण : एक अवधारणा (Concept) के रूप में वैश्वीकरण की बुनियादी बात
है-प्रवाह (flow)। प्रवाह कई प्रकार के हो सकते हैं विश्व के एक भाग के विचारों का
दूसरे भाग में पहुंँचना, पूंजी का एक से ज्यादा जगहों पर जाना, वस्तुओं का कई-कई
देशों में पहुंँचना और उनका व्यापार तथा बेहतर आजीविका की तलाश में दुनिया के
विभिन्न हिस्सों में आवाजाही। यहाँ सबसे जरूरी बात है-विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव
जो ऐसे प्रवाहों की निरन्तरता से पैदा हुआ है और कायम भी है।
• संयुक्त राष्ट्र का मुख्यालय : न्यूयार्क (अमेरिका) में है।
• संचार के क्षेत्र में क्रांति लोने वाले तीन साधन : 1. टेलीग्राफ, 2. टेलीफोन तथा,
3. माइक्रोचिप के नवनीतम आविष्कार।
• प्रौद्योगिकी की उन्नति का प्रभाव जिन चार क्षेत्रों पर पड़ा : 1. विचारों के प्रवाह,
2. पूंँजी के प्रवाह, 3. वस्तु और 4. लोगों की विश्व के विभिन्न भगों में आवाजाही की
सरलता।
• बहुराष्ट्रीय निगम : वह कम्पनी जो एक से ज्यादा देशों में एक साथ अपनी आर्थिक
गतिविधियांँ चलती हैं, जैसे-पूंजी निवेश, उत्पादन, वितरण या व्यापार आदि।
• वैश्वीकरण का राज्य के स्वरूप या चरित्र पर एक प्रभावशाली या महत्वपूर्ण
प्रभाव : राज्य अब कल्याणकारी नहीं रहे बल्कि वे अब बाजार आर्थिक और सामाजिक
प्राथमिकताओं के प्रमुख निर्धारक है।
• वैश्वीकरण के कालांश में राज्य के दो प्रमुख कार्य : 1. कानून और व्यवस्था बनाये
रखना तथा 2. अपने देश के भू-क्षेत्र तथा नागरिकों की सुरक्षा करना।
• वैश्वीकरण की प्रतीक कुछ वस्तुएँ : 1. आप्रवासी लोग, 2. विदेशी वस्तुएंँ, 3. मुक्त
विश्व व्यापार, 4. विदेशी पूंँजी का निवेश।
• सांस्कृतिक समरूपकता : इसका यह अर्थ नहीं कि किसी विश्व संस्कृति का उदय हो
रहा है। वस्तुतः इसका अर्थ है कि विश्व संस्कृति के नाम पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा
रही है या शेष दुनिया पर अपना तीव्रता से प्रभाव छोड़ रही है। यह प्रभाव खाने-पीने
पहनावे तथा सोच पर देखा जा सकता है।
• मैक्डोनॉल्डीकरण : इसका अर्थ है कि विश्व की विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने को
प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं।
• संरक्षणवाद : वह विचारधारा जो उदारीकरण एवं वैश्वीकरण का विरोध करती है तथा
देशी उद्योगों एवं उत्पादित वस्तुओं को विदेशी मालों की प्रतियोगिता से बचाने के लिए
चुंगी, तटकर आदि का पक्ष लेती है।
• व्यापार : उत्पादकों से उपभोक्ताओं तक वस्तुओं का प्रवाह, व्यापार कहलाता है।
• व्यापार संतुलन : किसी देश के कुल आयात एवं निर्यात मूल्यों का अन्तर यदि निर्यात
मूल्य, आयात मूल्य से अधिक है तो व्यापार-संतुलन देश के अनुकूल है और आयात
मूल्य, निर्यात मूल्य से अधिक होने पर व्यापार-संतुलन देश के प्रतिकूल होता है।
एन०सी०ई०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं अन्य परीक्षापयोगी प्रश्न एवं उनके उत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. वैश्वीकरण के वारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण सिर्फ आर्थिक परिघटना है।
(ख) वैश्वीकरण की शुरुआत 1991 में हुई।
(ग) वैश्वीकरण और पश्चिमीकरण समान हैं।
(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है। [NCERT T.B.Q.1]
उत्तर-(घ) वैश्वीकरण एक बहुआयामी परिघटना है।
2. वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्य रूप से सांस्कृतिक समरूपता आती है। [NCERT T.B.Q.2]
उत्तर-(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
3. वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म सयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
[NCERT T.B.Q.3)
उत्तर-(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
4. वैश्वीकरण के वारे कौन-सा कथन मही है?
(क) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं का आवाजाही है।
(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है। [NCERTT.B.Q.4]
उत्तर-(घ) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव स है।
5. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन गलत है?
(क) वैश्वीकरण के समर्थकों का तर्क है कि इससे आर्थिक समृद्धि बढ़ेगी।
(ख) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे आर्थिक असमानता और ज्यादा बढ़ेगी।
(ग) वैश्वीकरण के पैरोकारों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी।
(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सास्कृतिक समरूपता आगी
उत्तर-(घ) वैश्वीकरण के आलोचकों का तर्क है कि इससे सांस्कृतिक समरूपता आएगी
6. वैश्वीकरण के चलते विश्व का स्वरूप हो गया है- [B.M.2009A]
(क) वैश्विक गाँव
(ख) मुक्त बाजार
(ग) अंतर्राष्ट्रीय विचार मंच
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर – (क)
7. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है? [BM.2009A]
(क) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
(ख) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(ग) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(घ) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर-(घ)
8. वैश्वीकरण के प्रभाव के बारे में कौन-सा कथन सही है? [B.M.2009A]
(क) विभिन्न देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव विषम रहा है।
(ख) सभी देशों और समाजों पर वैश्वीकरण का प्रभाव समान रहा है।
(ग) वैश्वीकरण का असर सिर्फ राजनीतिक दायरे तक सीमित है।
(घ) वैश्वीकरण से अनिवार्य रूप से सांस्कृतिक समरूपता आती है।
उत्तर-(क)
9. वैश्वीकरण के कारणों के बारे में कौन-सा कथन सही है? [B.M.2009A]
(क) वैश्वीकरण का एक महत्त्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी है।
(ख) जनता का एक खास समुदाय वैश्वीकरण का कारण है।
(ग) वैश्वीकरण का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ।
(घ) वैश्वीकरण का एकमात्र कारण आर्थिक धरातल पर पारस्परिक निर्भरता है।
उत्तर-(क)
10. भूमण्डलीकरण किस विचारधारा पर टिका है ? [B.M. 2009A]
(क) समाजवाद
(ख) साम्यवाद
(ग) अराजकतावाद
(घ) उदारवाद उत्तर-(घ)
11. वैश्वीकरण के अन्य नाम हैं- [B.M. 2009A]
(क) भूमंडलीकरण
(ख) विश्वव्यापीकरण
(ग) वैश्वीकरण
(घ) सभी उत्तर-(घ)
12. किसने कहा कि महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने का अधिकार नहीं है?
[B.M. 2009A]
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तू
(ग) मिल
(घ) मार्क्स उत्तर-(ख)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिए। (Define the term ‘Globalisation)
[B.M. 2009A]
उत्तर-वैश्वीकरण वह प्रक्रम है जिसमें हम अपने निर्णयों को दुनिया के एक क्षेत्र में क्रियान्वित
करते हैं, जो दुनिया के दूरवर्ती क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका
निभाते हैं।
2. नव उपनिवेशवाद क्या है? (What is New-Colonialism?)
उत्तर―नव उपनिवेशवाद परंपरागत उपनिवेशवाद का एक नया रूप है। इसके अन्तर्गत
एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश पर सीधे आर्थिक शोषण करने की बजाए
उसका अप्रत्यक्ष रूप से शोषण करता है। एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश आर्थिक सहायता देकर एक कमजोर देश की नीतियाँ तथा उस देश में होने वाली राजनीतिक गतिविधियों पर नियंत्रण करता है तथा उन नीतियों व गतिविधियों को अपने लाभ की ओर प्रभावकारी बनाता है।
3. राष्ट्रतर कम्पनियों से आप क्या समझते हैं?
What is meant by the multinational companies?
उत्तर -वे कम्पनियाँ जो राष्ट्र की सीमाओं से बाहर भी कार्य करती हैं, उन्हें राष्ट्रेतर कम्पनियाँ
कहा जाता है। ऐसी राष्ट्रेतर कम्पनियाँ 20वीं शताब्दी से पहले भी थीं परंतु उनका 20वीं शताब्दी
उत्तरार्द्ध में और भी प्रभाव बढ़ गया। राष्ट्रतर कम्पनियाँ पूँजी की दृष्टि से काफी धन की स्वामी होती हैं तथा उनकी उत्पादन क्षमता भी बहुत अधिक होती है। ऐसी कम्पनियाँ अन्य देशों में उन
देशों के कच्चे माल द्वारा अपने कारखानों में माल बनवाती हैं। परिणामस्वरूप बने माल को अधिक दामों पर बेचकर अधिक-से-अधिक लाभ कमाती हैं। राष्ट्रेतर कम्पनियाँ विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को बड़े प्रतिकूल ढंग से प्रभावित करती हैं।
4. राष्ट्रेतर कम्पनियाँ तीसरी दुनिया को किस प्रकार गरीब करती जा रही हैं?
How are the multinational companies making the third world countries
poor?
उत्तर-राष्ट्रेतर कम्पनियाँ तीसरी दुनिया को गरीब-से-गरीब बना रही हैं। 20वीं शताब्दी में
संसार में इन कम्पनियों की संख्या 11000 थी जो अपनी 8200 कम्पनियों द्वारा काम कर रही थीं। प्रति वर्ष ये कम्पनियाँ तीसरी दुनिया से 50 से 100 बिलियन डालर प्राप्त करती हैं। ये कम्पनियाँ तीसरी दुनिया के देशों में उत्पादन पर नियंत्रण करती है तथा बहुत सा कच्चा माल या तो अपने देशो से सस्ते दामों पर ले जाती हैं या विकासशील देशों में ही बना कर वहीं पर निर्यात करके लाभ उठाती है। इस विदेशी विनिमय से विकासशील देशों की वास्तविक हानि 1967-75 के बीच 18.5 अरब डालर हो गई।
5. वैश्वीकरण के संदर्भ में भारत की क्या भूमिका रही है?
How has India responded to the process of Globalisation? [B.M. 2009A]
उत्तर-24 जुलाई, 1991 को नयी औद्योगिक नीति घोषित किये जाने के साथ ही भारत में
आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण नीतियों का सूत्रपात हुआ था। जनवरी 1995 में भारत में प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया। उसी दिन विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई। 26 सितम्बर, 2000 को प्राग में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वार्षिक बैठक में मुद्रा कोष के प्रबन्धक, विश्व बैंक के अध्यक्ष तथा भारत के वित्तमंत्री यशवन्त सिन्हा ने विश्व के गरीबों का जीवन स्तर उठाने का आह्वान किया तथा विश्व व्यापीकरण (वैश्वीकरण) अपनाने पर बल दिया।
6. वैश्वीकरण के प्रभावों के विषय में दो भिन्न विचारों का वर्णन कीजिए।
Describe two different opinions about effect of Globalisation.
उत्तर-वैश्वीकरण के बारे में दो विचार निम्न प्रकार है-(1) वैश्वीकरण अपनाने से भारत
की आत्मनिर्भरता में वृद्धि होगी। (2) वैश्वीकरण के बारे में इसके आलोचकों का विचार है कि
भारत द्वारा वैश्वीकरण की योजनाएं लागू करने से देश के श्रम बाजार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और
बेरोजगारी बढ़ेगी।
7. कल और आज के वैश्वीकरण में क्या अन्तर है?
What is the difference in globalisation of yesterday and today?
उत्तर कल और आज के वैश्वीकरण में बहुत अंतर है। आज न केवल वस्तुएँ ही एक देश
से दूसरे देश जा रही है अपितु बड़ी संख्या में लोग भी जा रहे है। पहले केवल तैयार की गई
वस्तुएँ ही जाती थीं, अब उनमें कच्चा माल, प्रौद्योगिकी और लोग सम्मिलित हैं। पहले पूर्व
के देशों को ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रमुखता थी और उनकी वस्तुओं की मांग थी। अब स्थिति
विपरीत है। पश्चिम की वस्तुओं का काफी सम्मान है। कई कम्पनियाँ विकासशील देशों के उत्पाद
पर अपना लेबल लगाकर पूरे विश्व बाजार में विकसित देशों के उत्पाद के रूप में बेच रही हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ क्या है? इसमें कौन-कौन-से घटक है?
What is meant by mutual links on universal scale? What are its clements? [NCERT T.B.Q.6]
उत्तर विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव का अर्थ है विश्व के विभिन्न भाग परस्पर एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए हैं। संचार संसाधनों के विकास के साथ यह भावना और अधिक तीव्र हुई है। निसंदेह टेलीग्राफ, टेलीफोन और माइक्रोचिप के नवीनतम अविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार की क्रांति ला दी है। छपाई या मुद्रण ने भी विश्व के विभिन्न भाग में रहने
वाले लोगों को परस्पर जोड़ा है। जो भी हो, संचार-साधनों की तरक्की और उनकी उपलब्धता मात्र से वैश्वीकरण अस्तित्व में आया हो-ऐसी बात नहीं। यहाँ जरूरी बात यह है कि विश्व के विभिन्न भागों के लोग अब समझ रहे हैं कि वे आपस में जुड़े हुए हैं। आज हम इस बात को लेकर सजग हैं कि विश्व के एक हिस्से में घटने वाली घटना का प्रभाव विश्व के दूसरे हिस्से में भी पड़ेगा। बर्ड फ्लू अथवा ‘सुनामी’ किसी एक राष्ट्र की हदों में सिमटे नहीं रहते। ये घटनाएँ राष्ट्रीय-सीमाओं का जोर नहीं मानती।
ठीक इसी तरह जब बड़ी आर्थिक घटनाएं होती हैं तो उनका प्रभाव उनके मौजूदा स्थान
अथवा क्षेत्रीय परिवेश तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि विश्व भर में महसूस किया जाता है।
इसके घटक हैं विचार, पूँजी, वस्तु और लोगों की आवाजाई।
2.वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?
What is the contribution of technology in Globalisation? [NCERT T.B.Q.7]
उत्तर-(1) यद्यपि वैश्वीकरण के लिए कोई एक कारक जिम्मेवार नहीं फिर भी प्रौद्योगिकी
अपने आप में एक अपरिहार्य कारण साबित हुई है। इसमें कोई शक नहीं कि टेलीग्राफ, टेलीफोन
और माइक्रोचिप के नवीनतम आविष्कारों ने विश्व के विभिन्न भागों के बीच संचार की क्रांति कर
दिखायी है।
(2) शुरू-शुरू में जब छपाई (मुद्रण) की तकनीक आयी थी तो उसने राष्ट्रवाद की आधारशिला
रखी। इसी तरह आज हम यह अपेक्षा कर सकते हैं कि प्रौद्योगिकी का प्रभाव हमारे सोचने के तरीके पर पड़ेगा। हम अपने बारे में जिस ढंग से सोचते हैं और हम सामूहिक जीवन के बारे में जिस तर्ज पर सोचते हैं-प्रौद्योगिकी का उस पर असर पड़ेगा।
(3) वस्तु और लोगों की विश्व के विभिन्न भागों में आवाजाही की आसानी प्रौद्योगिकी में
हुई तरक्की के कारण संभव हुई है। इस आवाजाही की गति में अंतर हो सकता है। उदाहरण के
लिए विश्व के विभिन्न भागों के बीच पूँजी और वस्तु की गतिशीलता लोगों की आवाजाही की
तुलना से ज्यादा तेज और व्यापक होती।
3. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का
आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
Critically evaluate the changing role of the state in context of Globalisation. [NCERT T.B.Q. 8]
उत्तर-(1) वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका पर
व्यापक प्रभाव पड़ा है। सबसे सीधा-सरल विचार यह है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है उसे करने की ताकत में कमी आती है। पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ली है।
(2) राज्य अब कुछेक मुख्य कामों तक ही अपनी को सीमित रखता है, जैसे कानून और
व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना। इस तरह से राज्य ने अपने को
पहले के कई लोक-कल्याण कामों से खींच लिया है जिनका लक्ष्य आर्थिक और
सामाजिक-कल्याण होता था। लोक-कल्याणकारी राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक है।
(3) विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय निगम अपने पैर पसार चुके है और उनकी भूमिका बढ़ी
है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आती है।
इसी के साथ एक बात और भी है। वैश्वीकरण से हमेशा राज्य की ताकत में कमी आती
हो एसी बात नहीं। राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व की राजनीति में अब भी विभिन्न
देशों के बीच मौजूद पुरानी ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता का दखल है। राज्य कानून और व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपने अनिवार्य कार्यों को पूरा कर रहे हैं और बहुत सोच-समझकर अपने कदम उन्हीं दायरों से खींच रहे हैं जहाँ उनकी मर्जी हो। राज्य अभी भी महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं।
वस्तुत: कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में इजाफा हुआ है। अब
राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में
सूचनाएँ जुटा सकते हैं। इस सूचना के दम पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं।
उनकी क्षमता बढ़ी हैं, कम नहीं हुई। इस प्रकार नई प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप राज्य अब पहले से ज्यादा ताकतवर हैं।
4. भूमण्डलीकरण के अर्थ व उसकी विशेषताओं का वर्णन करें। [B.M.2009A]
उत्तर-20वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विश्वव्यापी स्तर पर उदारीकरण की लहर आई।
इसने प्रादेशिकता तथा राष्ट्रीय पहचान को धमिल कर दिया तथा व्यापार, यातायात, वित्त व सूचना का ऐसा विचित्र एकीकरण प्रस्तुत किया जिसे भूमण्डलीकरण की संज्ञा दी गई है।
इस प्रकार भूमण्डलीकरण विश्वव्यापी सामाजिक संबंधों का गहनीकरण है जो दूर-दूर स्थित
आबादियों को एक-दूसरे से इस प्रकार जोड़ता है कि वह बहुत दूर होने वाली घटनाओं का स्थानीय घटनाओं पर तथा स्थानीय घटनाओं का मीलों दूर पर होने वाली घटनाओं पर प्रभाव पड़ता है। राजनीति के क्षेत्र में भूमण्डलीकरण अधिक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था की रचना कर सकता है क्योंकि इसने राष्ट्र तथा राज्य व्यवस्था को अधिक प्रभावित किया है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. भूमण्डलीकरण के अर्थ व उसकी विशेषताओं का वर्णन करें। [B.M.2009A]
उत्तर-20वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में विश्वव्यापी स्तर पर उदारीकरण की लहर आई।
इसने प्रादेशिकता तथा राष्ट्रीय पहचान को धूमिल कर दिया तथा व्यापार, यातायात, वित्त व सूचना का ऐसा विचित्र एकीकरण प्रस्तुत किया, जिसे भूमण्डलीकरण की संज्ञा दी गई है।
इस प्रकार भूमण्डलीकरण विश्वव्यापी सामाजिक संबंधों का गहनीकरण है जो दूर-दूर स्थित
आबादियों को एक-दूसरे से इस प्रकार जोड़ता है कि वह बहुत दूर होने वाली घटनाओं का स्थानीय घटनाओं पर तथा स्थानीय घटनाओं का मीलों दूर पर होने वाली घटनाओं पर प्रभाव पड़ता है। राजनीति के क्षेत्र में भूमण्डलीकरण अधिक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था की रचना कर सकता है क्योंकि इसने राष्ट्र तथा राज्य व्यवस्था को अधिक प्रभावित किया है।
2. वैश्वीकरण की आर्थिक परिणतियाँ क्या हुई हैं? इस संदर्भ में वैश्वीकरण ने भारत
पर कैसे प्रभाव डाला है?
What are the economic result of the globalisation? How ltas globalisation affected India in this regard? [NCERT T.B.Q.01
उत्तर-प्रायः जिस प्रकिया को आर्थिक वैश्वीकरण कहा जाता है उसमें दुनिया के विभिन्न
देशों के बीच आर्थिक प्रवाह तेज हो जाता है। कुछ आर्थिक प्रवाह स्वेच्छा से होते हैं जबकि कुछ
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं और ताकतवर देशों द्वारा जबरन लादे जाते है। ये प्रवाह कई किस्म के हो
सकते हैं, जैसे वस्तुओं, पूँजी, जनता अथवा विचारों का प्रवाह।
(2) वैश्वीकरण के चलते पूरी दुनिया में वस्तुओं के व्यापार में इजाफा हुआ है, अलग-अलग
देश अपने होने वाले आयात पर प्रतिबंध लगाते थे लेकिन अब ये प्रतिबंध कम हो गए है।
ठीक इसी तरह दुनिया भर में पूँजी की आवाजाही पर अब कहीं कम प्रतिबंध हैं। व्यावहारिक धरातल पर इसका अर्थ यह हुआ कि धनी देश के निवेशकर्ता अपना धन अपने देश की जगह कहीं और निवेश कर सकते हैं, खासकर विकासशील देशों में जहाँ उन्हें ज्यादा मुनाफा होगा। वैश्वीकरण के चलते अब विचारों के सामने राष्ट्र की सीमाओं की बाधा नहीं रही, उनका प्रवाह अबाध हो उठा है। इंटरनेट और कंप्यूटर से जुड़ी सेवाओं का विस्तार इसका एक उदाहरण है।
(3) जो भी हो, वैश्वीकरण के कारण जिस सीमा तक वस्तुओं और पूँजी का प्रवाह बढ़ा है
उस सीमा तक लोगों की आवाजाही नहीं बढ़ सकी है। विकसित देश अपनी वीजा-नीति के जरिए अपनी राष्ट्रीय सीमाओं को बड़ी सतर्कता से अभेद्य बनाए रखते हैं ताकि दूसरे देशों के नागरिक विकसित देशों में आकर कहीं उनके नागरिकों के नौकरी-धंधे न हथिया लें।
(4) वैश्वीकरण के परिणामों पर सोचते हुए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हर
जगह एक समान नीति अपना लेने का मतलब यह नहीं होता कि हर जगह परिणाम भी समान
होंगे। वैश्वीकरण के कारण दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सरकारों ने एकसाथ आर्थिक नीतियों को अपनाया है, लेकिन विश्व के विभिन्न भागों में इसके परिणाम बहुत अलग-अलग हुए हैं। यहाँ भी हमें सर्व-सामान्य निष्कर्ष निकालने के बजाय संदर्भ-विशेष पर ध्यान देना होगा।
(5) आर्थिक वैश्वीकरण के कारण पूरे विश्व में जनमत बड़ी गहराई से बंट गया है। आर्थिक
वैश्वीकरण के कारण सरकारें कुछ जिम्मेदारियों से अपने हाथ खींच रही हैं और इससे सामाजिक
न्याय से सरोकार रखने वाले लोग चिंतित हैं। इनका कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण से आबादी
के एक बड़े छोटे तबके को फायदा होगा जबकि नौकरी और जन-कल्याण (शिक्षा, स्वास्थ्य,
साफ-सफाई की सुविधा आदि) के लिए सरकार पर आश्रित रहने वाले लोग बदहाल हो जाएंँगे।
(6) सामाजिक न्याय के पक्षधर इस बात पर जोर देते हैं कि कुछ सांस्थानिक उपाय किए
जाने चाहिए या कहें कि ‘सामाजिक सुरक्षा कवच’ तैयार किया जाना चाहिए ताकि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं उन पर वैश्वीकरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके। दुनिया के अनेक आंदोलनों को मान्यता है कि ‘सामाजिक सुरक्षा-कवच’ की बात अव्यावहारिक है और इतना भर उपाय पर्याप्त नहीं होगा। ऐसे आंदोलनों ने बलपूर्वक किए जा रहे वैश्वीकरण को रोकने की आवाज लगाई है क्योंकि इससे गरीब देश आर्थिक रूप से बर्बादी की कगार पर पहुँच जाएंँगे; खासकर इन देशों के गरीब लोग एकदम बदहाल हो जाएंगे। कुछ अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वैश्वीकरण को विश्व का पुन: उपनिवेशीकरण कहा है।
(7) आर्थिक वैश्वीकरण की प्रक्रियाओं के समर्थकों का तर्क है कि इससे समृद्धि बढ़ती है
और “खुलेपन के कारण ज्यादा से ज्यादा आबादी की खुशहाली बढ़ती है। व्यापार की बढ़ती से
हर देश को अपना बेहतर कर दिखाने का मौका मिलता है। इससे पूरी दुनिया को फायदा होगा।
इन लोगों का कहना है कि आर्थिक वैश्वीकरण अपरिहार्य है और इतिहास की धारा को अवरुद्ध
करना कोई बुद्धिमानी नही।
(8) वैश्वीकरण के मध्यमार्गी समर्थकों का कहना है कि वैश्वीकरण ने चुनौतियां पेश की हैं
और सजग-सचेत होकर पूरी बुद्धिमत्ता से इसका सामना किया जाना चाहिए। बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि ‘पारस्परिक निर्भरता’ की रफ्तार अब तेज हो चली है।
वैश्वीकरण के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न भागों में सरकार, व्यवसाय तथा लोगों के बीच जुड़ाव
बढ़ रहा है।
(9) वैश्वीकरण का भारत पर प्रभाव (ImpactofGlobalisation onIndia)–1991
में वित्तीय संकट से उबरने और आर्थिक वृद्धि की ऊँची दर हासिल करने की इच्छा से भारत में
आर्थिक सुधारों की योजना शुरू हुई। इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों पर आयात बाधाएँ हटाई गई।
इन क्षेत्रों में व्यापार और विदेशी निवेश भी शामिल थे। यह कहना जल्दबाजी होगी कि भारत के
लिए यह सब कितना अच्छा साबित हुआ है क्योंकि अंतिम कसौटी ऊँची वृद्धि-दर नहीं बल्कि इस बात को सुनिश्चित करना है कि आर्थिक बढ़वार के फायदों में सबका साझा हो ताकि हर कोई
खुशहाल बने।
2. क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़
रही है?
Do you agree with this argument that globalisation is increasing cultural
diversities? [NCERT T.B.Q. 10]
उत्तर-(1) हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि वैश्वीकरण से सांस्कृतिक विभिन्नता बढ़
रही है। वस्तुत: इससे दुनिया के विभिन्न भाग सांस्कृतिक दृष्टि से एक-दूसरे के नजदीक आ रहे
है। हम अपने देश का ही उदाहरण लेते हैं। हम जो कुछ खाते-पीते-पहनते हैं अथवा सोचते हैं-सब पर इसका असर नजर आता है। हम जिन बातों को अपनी पसंद कहते हैं वे बातें भी वैश्वीकरण के असर में तय होती है।
(2) वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को देखते हुए इस भय को बल मिला है कि यह प्रक्रिया
विश्व की संस्कृतियों को खतरा पहुँचाएगी। वैश्वीकरण से यह होता है क्योकि वैश्वीकरण सांस्कृतिक समरूपता ले आता है। सांस्कृतिक समरूपता का यह अर्थ नहीं कि किसी विश्व-संस्कृति का उदय हो रहा है। विश्व-संस्कृति के नाम पर दरअसल शेष विश्व पर पश्चिमी संस्कृति लादी जा रही है।
(3) कुछ लोगों का तर्क है कि बर्गर अथवा नीली जीन्स की लोकप्रियता का नजदीकी रिश्ता
अमेरिकी जीवनशैली के गहरे प्रभाव से है क्योंकि राजनीतिक और आर्थिक रूप से प्रभुत्वशाली
संस्कृति कम ताकतवर समाजों पर अपनी छाप छोड़ती है और संसार वैसा ही दीखता है जैसा
ताकतवर संस्कृति इसे बनाना चाहती है। जो यह तर्क देते हैं। वे अक्सर दुनिया के
‘मैक्डोनॉल्डीकरण’ की तरफ इशारा करते हैं। उनका मानना है कि विभिन्न संस्कृतियाँ अब अपने
को प्रभुत्वशाली अमेरिकी ढर्रे पर ढालने लगी हैं। चूंकि इससे पूरे विश्व की समृद्ध सांस्कृतिक
धरोहर धीरे-धीरे खत्म होती है इसलिए यह केवल गरीब देशों के लिए ही नहीं बल्कि समूची
मानवता के लिए खतरनाक है।
(4) इसके साथ-साथ यह मान लेना एक भूल है कि वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभाव सिर्फ
नकारात्मक हैं। संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं होती। हर संस्कृति हर समय बाहरी प्रभावों को स्वीकार करती रहती है। कुछ बाहरी प्रभाव नकारात्मक होते हैं क्योंकि इससे हमारी पसंदों में कमी आती है। कभी-कभी बाहरी प्रभावों से हमारी पसंद-नापसंद का दायरा बढ़ता है तो कभी इनसे परंपरागत सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़े बिना संस्कृति का परिष्कार होता है। बर्गर मसालाडोसा का विकल्प नहीं है इसलिए बर्गर से वस्तुत: कोई खतरा नहीं है। इससे हुआ मात्र इतना है कि हमारे भोजन की पसंद में एक चीज और शामिल हो गई है।
(5) दूसरी तरफ, नीली जीन्स भी हथकरघा पर बुने खादी के कुर्ते के साथ खूब चलती है।
यहाँ हम बाहरी प्रभाव के एक अनूठी बात देखते हैं कि नीली जीन्स के ऊपर खादी का कुर्ता पहना जा रहा है। मजेदार बात तो यह है कि इस अनूठे पहनावे को अब उसी देश को निर्यात किया जा रहा है जिसने हमें नीली जीन्स दी है। जीन्स के ऊपर कुर्ता पहने अमेरिकियों को देखना अब संभव है।
(6) सांस्कृतिक समरूपता वैश्वीकरण का अगर एक पक्ष है तो इसी प्रक्रिया से ठीक इसका
उलटा प्रभाव भी पैदा हुआ है। वैश्वीकरण से हर संस्कृति कहीं ज्यादा अलग और विशिष्ट होती
जा रही है। इस प्रक्रिया को सांस्कृतिक विभिन्नीकरण कहते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि संस्कृतियों के मेलजोल में उनकी ताकत का सवाल गौण है परंतु इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि सांस्कृतिक प्रभाव एकतरफा नहीं होता।
3. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को
प्रभावित कर रहा है?
How has Globalisation affected India and how in India affecting
Globalisation? ? [B.M. 2009ABNCERT T.B.Q. 11]
उत्तर-(1) भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalisation in
India)-पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का
है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं को कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनाया जाय। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशो को
निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजों को बनाना सीख सकें। इस
‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कते पैदा हुई। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे
स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितने के वे हकदार थे।
भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।
(2) भारत में वैश्वीकरण को अपनाना (Adoptation of Globalisation in
India)-1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना
लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की समानता, विदेशी पूँजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएंँ ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्योगिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। अब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है। भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही साथ अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है।
(3) भारत में वैश्वीकरण का प्रतिरोध (ResistenceofGlobalisation in India)-
वैश्वीकरण बड़ा बहसतलब मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण
के आलोचक कई तर्क देते हैं।
(क) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी
पूँजीवाद की एक खास अवस्था है जो धनिको को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी)
और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।
(ख) गज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती
है। वैश्वीकरण के दक्षपरायण आलोचना इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को
लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है। वे चाहते हैं कि
कम-से-कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और ‘संरक्षणवाद’ का दौर फिर कायम हो।
सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परंपरागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो देंगे। यहाँ हम गौर करें कि वैश्वीकरण-विरोधी आंदोलन भी विश्वव्यापी नेटवर्क में भागीदारी करते हैं और अपने से मिलती-जुलती सोच रखने वाले दूसरे देशों के लोगों से गठजोड़ करते हैं। वैश्वीकरण-विरोधी बहुत से आदोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।
वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या है?
(क) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने पास-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद
मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आदोलनो से मदद
मिलती है। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई हलकों से हो रहा है। आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ वामपंथी तेवर की आवाजें राजनीतिक दलों की तरफ से उठी हैं तो इंडियन सोशल फोरम जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों के प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतियों मसलन ‘नीम’ को अमेरिकी और यूरोपीय फर्मों ने पेटेण्ट कराने के प्रयास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।
(ख) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न
सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे
विदेशी टी.वी. चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन-डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की
पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध शामिल है।
★★★