bihar board 12 history | यात्रियों के नजरिए
bihar board 12 history | यात्रियों के नजरिए
भारतीय इतिहास के विषय : भाग-2 (कक्षा-12)
[Themes in Indian History : Part-II (Class-XII)]
5. समाज के बारे में उनकी समझ
(लगभग दसवीं से सत्रहवीं सदी तक)
THROUGH THE EYES OF TRAVELLERS
Perceptions of Society (C. Tenth to Seventeen Century)
महत्वपूर्ण तथ्य एवं घटनायें
● अब्दुर रज्जाक समरकंदी : यह यात्री हैरात से पंद्रहवीं शताब्दी में भारत आया था और
विजयनगर के विषय में वृतांत लिखा ।
● अल-बिरूनी: यह उज्वेकिस्तान का रहने वाला था और 12 वीं शताब्दी में गजनी में रहकर
अपना यात्रा वृतांत लिखा ।
● किताब-उल-हिन्द : यह ग्रंथ अल-बिरूनी की कृति है । यह ग्रंथ अरबी भाषा में है । इसमें
उसने विभिन्न विषयों पर चर्चा की है।
● अल-हिन्द : सिंध के पूर्व के क्षेत्र के लिए यह शब्द प्रयोग किया जाता था । यह फारसी
का शब्द था।
● हिंद और हिंदुस्तान : तुर्को ने सिंधु से पूर्व रहने वाले लोगों को हिंदू और उनके निवास
क्षेत्र को हिंदुस्तान कहा । उनकी भाषा को हिंदवी कहा गया ।
● सोलाने : ई.पू. छठी शताब्दी में एथेंस का राजनेता एवं कवि था ।
● रिहला : यह अरबी का प्रसिद्ध यात्रा वृतांत है जो इब्नबतूता द्वारा लिखा गया। इसमें 14वीं
शताब्दी के भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में प्रचुर
सामग्री मिलती है।
●1332-33 : मोरक्को यात्री इब्नबतूता ने भारत के लिए प्रस्थान किया ।
● मार्कोपोलो : यह वेनिस का यात्री था और तेरहवीं शताब्दी के अंत में भारत और चीन की
यात्रा की।
● इब्न जुजाई : इसे इब्न बतूता के श्रुतलेखों को लिखने में नियुक्त किया गया था ।
● दुआर्ते बरबोसा : यह एक यूरोपीय लेखक था जिसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज
का एक विस्तृत विवरण लिखा है।
● फ्रांस्वा बर्नियर : फ्रांस का रहने वाला बर्नियर एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शनिक तथा
एक इतिहासकार था । वह 1656 से 1668 ई. तक भारत में रहा ।
● फ्रांस के सामाजिक वर्ग : अल-बिरूनी के अनुसार फ्रांस के चार सामाजिक वर्ग-घुड़सवार
और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य
वैज्ञानिक और कृषक तथा शिल्पकार थे ।
● ताराबाद : दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबाद कहते हैं।
● उलुक : अरब डाक व्यवस्था को उलुक कहा जाता था ।
● दावा : पैदल डाक व्यवस्था को दावा कहा जाता था ।
● ट्रैवल्म इन द मुगल एम्पायर • बर्नियर द्वारा लिखा ग्रंथ है जो आलोचनात्मक अंतर्दष्टि तथा
गहन चिंतन के लिए उल्लेखनीय है।
● बलाहार : भूमि विहीन श्रमिकों को बलाहार कहा जाता था ।
● शिविर नगर : बर्नियर ने मुगलकालीन नगरों को शिविर नगर कहा है क्योंकि ये राज्याश्रित थे।
● 1466-1472 : अफानासी निकितिच निकितिन ने भारत में बिताए ।
● 1518 : दूरते बारबोसा ने भारत की यात्रा की ।
● 1627-31 : बल्ख यात्री महमूद बली ‘बलखी ने भारत की यात्रा की।
एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
बहुविकल्पीय प्रश्न
(Muitiple Choice Questions)
प्रश्न 1. अनेक विदेशी यात्रियों ने भारत की जिन दो चीजों को असामान्य माना है,
वे हैं:
(क) दूध तथा अंडे
(ख) नारियल तथा पान
(ग) पपीता तथा टमाटर
(घ) खरबूजा तथा तरबूज उत्तर-(ख)
प्रश्न 2. भारत में अल-बिरूनी जिसके साथ आया था, उसका नाम था : [B.Exam.2011 (A)]
(क) मोहम्मद गोरी
(ख) तैमूरलेन
(ग) महमूद गजनवी
(घ) नादिरशाह उत्तर-(ग)
प्रश्न 3. अल-बिरूनी भारत में जिस शताब्दी में आया था, वह थी :
(क) ग्यारहवीं
(ख) दसवीं
(ग) चौदहवीं
(घ) सत्रहवीं । उत्तर-(क)
प्रश्न 4. इब्नबतूता की भारत यात्रा को जिस शताब्दी से संबंधित माना जाता है, वह थी :
(क) ग्यारहवीं
(ख) बारहवीं
(ग) चौदहवीं
(घ) तेरहवीं उत्तर-(ग)
प्रश्न 5. इब्नबतूता जिस देश से आया था, उसका नाम था :
[Board Exam.2009, [B.M.2009A, B.Exam.2010(A)]
(क) मोरक्को
(ख) उज्बेकिस्तान
(ग) हेरात
(घ) पुर्तगाल उत्तर-(क)
प्रश्न 6. फ्रांस्वा बर्नियर जिस देश से भारत आया था. उसका नाम था :
(क) पुर्तगाल
(ख) फ्रांस
(ग) इंग्लैंड
(घ) स्पेन उत्तर-(ख)
प्रश्न 7. फ्रांस्वा बर्नियर भारत में जिस शताब्दी में आया वह थी :
(क) सत्रहवीं
(ख) उन्नीसवीं
(ग) अठारहवीं
(घ) पन्द्रहवीं उत्तर-(क)
8. इब्नबतूता किस देश का निवासी था ?
[Board Exam.2009,B.M.2009A,B.Exam.2013(A)]
(क) हेरात
(ख) मोरक्को
(ग) उजबेकिस्तान
(घ) पुर्तगाल उत्तर-(ख)
9. अलबरूनी किसके साथ भारत आया था?
[Board Exam. 2009][B.M.2009A]
(क) मुहम्मद बिन कासिम
(ख) महमूद गजनी
(ग) मुहम्मद गोरी
(घ) बाबर उत्तर-(ख)
10.510 ई० में सर्वप्रथम सती प्रथा के साक्ष्य वाला अभिलेख कहाँ से मिला है ?[B.M.2009A]
(क) एरण
(ख) जूनागढ़
(ग) मस्की
(घ) मेहरौली उत्तर-(क)
11. अबुल फजल कृत ‘आइन-ए-अकबरी’ में किस शासन का वर्णन है ?[B.M.2009A]
(क) बाबर
(ख) अकबर
(ग) जहाँगीर
(घ) शाहजहाँ उत्तर-(ख)
12. ‘किताब-उल-हिन्द- की रचना किसने की थी ? [B.M.2009A]
(क) इब्नबतूता
(ख) अलबरूनी
(ग) मार्कोपालो
(घ) बर्नियार उत्तर-(ख)
13. ‘किताब-उल-रेहला’ में किसका यात्रा वृत्तान्त मिलता है ? [B.M.2009A]
(क) अलबरूनी
(ख) अब्दुल रज्जक
(ग) बर्नियर
(घ) इब्न बतूता उत्तर-(घ)
14. रेहाला किसने लिखी? [B.M.2009A]
(क) अलबरूनी
(ख) इब्नबतूता
(ग) इब्न जुजाई
(घ) मार्कोपोलो उत्तर-(ख)
15. ‘आइन-ए-अकबरी’ कितने भागों में विभक्त है ?
[Board Exam.2009,B.M.2009A,B.Exam.2012(A)]
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पांच उत्तर-(घ)
16. अब्दुलरीज्जाक किस देश का रहने वाला था ? [B.M.2009A]
(क) मिश्र
(ख) लीबिया
(ग) ईराक
(घ) ईरान उत्तर-(घ)
17. दीन-ए-इलाही सम्बन्धित है।
[B.Exam.2011 (A),B.Exam.2013(A)]
(क) बाबर के साथ
(ख) हुमायूँ के साथ
(ग) अकबर के साथ
(घ) जहाँगीर के साथ उत्तर-(ग)
18. लोदी वंश का अंतिम शासक कौन था ? [B.Exam.2011 (A)]
(क) बहलोल लोदी
(ख) सिकन्दर लोदी
(ग) इब्राहिम लोदी
(घ) काफूर उत्तर-(ग)
19. किस प्रशासकीय सुधार के लिए शेरशाह खास तौर पर जाना जाता है ?
[B.Exam.2011(A)]]
(क) बाजार नियंत्रण
(ख) भूमि सुधार व्यवस्था
(ग) मनसवदारी व्यवस्था
(घ) विधि-नियंत्रण व्यवस्था उत्तर-(ख)
20. बाबर की आत्मकथा का क्या नाम था ? [B.Exam.2012(A)]
(क) बाबरनामा
(ख) तुजुक-ए-बाबरी
(ग) किताबुल हिन्द
(घ) रेहला उत्तर-(क)
21. वास्को-डि-गामा कब भारत पहुँचा? [B.Exam.2012(A)]
(क) 17 मई, 1498 ई०
(ख) 17 मार्च, 1598 ई०
(ग) 17 मार्च 1498 ई०
(घ) 17 मई, 1598 ई० उत्तर-(ग)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अब्दुर रज्जाक समरकंदी कौन था ?
उत्तर-(i) यह हैरात से आया यात्री था । यह एक राजनीतिक था और 15वीं शताब्दी में
भारत आया था ।
(ii) इसने अपने विवरण में विजयनगर शहर का विस्तृत विवरण दिया है।
प्रश्न 2. अल-बिरुनी के यात्रा का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-(i) अल-बिरूनी ने स्वयं कहा है कि वह लोगों से धार्मिक चर्चा करना चाहता था।
(ii) वह ऐसे लोगों के लिए एक सूचना का संग्रह देना चाहता था जो उसके साथ सम्बद्ध
होना चाहते हैं।
प्रश्न 3. अल-बिरुनी की भाषा और साहित्य के क्षेत्र में क्या देन है ?
उत्तर-(i) कई भाषाओं में दक्षता हासिल करने के कारण अल-बिरूनी भाषाओं की तुलना
तथा ग्रंथों का अनुवाद करने में सक्षम रहा ।
(ii) उसने कई संस्कृत कृतियों जिनमें पंतजलि का व्याकरण पर ग्रंथ शामिल का अरबी में
अनुवाद किया। अपने ब्राह्मण मित्रों के लिए उसने युक्लिड (यूनानी गणितज्ञ) के कार्यों का संस्कृत में अनुवाद किया ।
प्रश्न 4. फारसी और अरबी में ‘हिन्दू’ शब्द का प्रयोग किस प्रकार किया गया?
उत्तर-(i) ई. पू. छठवीं-पाँचवीं शताब्दी में फारसी में इस शब्द का प्रयोग किया गया है।
इसका प्रयोग सिंधु नदी (Indus) के पूर्व के क्षेत्र के लिए होता था ।
(ii) अरबी लोगों ने फारसी शब्द को जारी रखा और इस क्षेत्र में ‘अल हिन्द तथा यहाँ के
निवासियों को ‘हिन्दी’ कहा ।
प्रश्न 5. इब्नबतूता को यात्रा में कौन-सी प्रमुख कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर-(i) इब्न बतूता को कई बार डाकुओं के आक्रमण का सामना करना पड़ा कारवां के
साथ भी ऐसा हुआ।
(ii) रह-रह कर घर से निकलना उसे अच्छा नहीं लग रहा था । उसे एकाकीपन महसूस
हो रहा था और कई बार बीमार भी पड़ा ।
प्रश्न 6. इब्न जुजाई कौन था ?
उत्तर-(i) इब्न जुजाई को इब्न बतूता ने श्रुतलेखों को लिखने के लिए नियुक्त किया था।
(ii) राजा ने इब्न बतूता से सम्बन्धित अनेक विवरण लिखने का निर्देश दिया । उसका लिखा
गया कथानक अत्यन्त मनोरंजक एवं शिक्षाप्रद था ।
प्रश्न 7. दुआर्ते बरवोसा कौन था ?
उत्तर-(i) यह यूरोप का एक प्रसिद्ध लेखक था ।
(ii) इसने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का विस्तृत विवरण लिखा है ।
प्रश्न 8. ज्यौ वैप्टिस्ट तैवर्नियर के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर-(i) यह एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी जौहरी था जिसने कम से कम छ: बार भारत की यात्रा की।
(ii) वह भारत की व्यापारिक स्थितियों से प्रभावित था और उसने भारत की तुलना ईरान
और आटोमन साम्राज्य से की।
प्रश्न 9. फ्रोस्वा बर्नियर का आरम्भिक परिचय दीजिए ।
उत्तर-(i) फ्रोस्वा बर्नियर फ्रांस का निवासी और भारत की यात्रा करने वाला प्रसिद्ध यात्री
था । वह चिकित्सक, राजनीतिक, दर्शनिक तथा एक इतिहासकार था ।
(ii) वह मुगल साम्राज्य के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए भारत आया था । वह
1656 से 1668 ई. तक भारत में रहा और मुगल वंश से निकट से जुड़ा रहा । वह दारा शिरोह
का चिकित्सक बना था और बाद में मुगल दरबार के आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ
एक बुद्धजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में कार्य किया ।
प्रश्न 10. बर्नियर के कार्यों का महत्त्व बताइए ।
उत्तर-(i) बर्नियर की सूचनायें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इसका अन्दाज इस बात से लगाया
जा सकता है कि उसके कार्य फ्रांस में (1670-71) में प्रकाशित हुए थे और अगले पाँच वर्षों
के भीतर ही अंग्रेजी, डच, जर्मन तथा इटालवी भाषाओं में अनुवाद हो गया ।
(ii) यहीं नहीं 1670 और 1725 के बीच उसका वृत्तांत फ्रांसीसी में आठ बार पुनर्मुद्रित हो
चुका था और 1684 तक यह तीन बार अंग्रेजी में पुनर्मुद्रित हुआ था ।
प्रश्न 11. अल-बिरूनी ने किन तीन अवरोधों की चर्चा की है ?
उत्तर-(i) उसकी समझ से पहला अवरोध भाषा थी। उसके अनुसार संस्कृत अरबी और
फरसी से इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक भाषा से दूसरी में अनुवादित करना
आसान नहीं था ।
(ii) दूसरा अवरोध धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता थी।
(iii) तीसरा अवरोध अभियान था ।
प्रश्न 12. अल-बिरूनी ने जातिप्रथा के सम्बन्ध में अपवित्रता की मान्यता को क्यों नहीं
स्वीकार किया ?
उत्तर-(i) उसके अनुसार प्रत्येक वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता को मूल
स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है।
(ii) सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने बचाता है।
अल-बिरूनी जी देखकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी जीवन असंभव होता ।
प्रश्न 13. इब्न-बतूता ने नारियल का वर्णन किस प्रकार किया है ?
उत्तर-(i) ये पेड़ स्वरूप से सबसे अनोखे तथा प्रकृति में सबसे आश्चर्यजनक वक्षों में से
एक है । ये सर्वथा खजूर के वृक्ष जैसे दिखते हैं ।
(ii) नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानो दो आँखें
तथा एक मुख है और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इसमें जुड़ा
रेशा बालों जैसे दिखाई देते हैं।
प्रश्न 14. इन-बतूता भारतीय शहरों की क्या विशेषता बताता है ?
उत्तर-(i) इब्न बतूता के अनुसार भारतीय शहरों में घनी जनसंख्या थी और सड़कें तथा रंगीन
बाजार भीड़ से भरे होते थे ।
(ii) वह दिल्ली को बड़ा शहर, विशाल आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है।
प्रश्न 15. इब्न-बतूता भारत की सम्पन्नता के क्या कारण बताता है ?
उत्तर-(i) भारतीय कृषि अच्छी थी क्योंकि यहाँ की मिट्टी उत्पादनकारी थी। उससे वर्ष
में दो बार फसलें उगाना संभव होता था ।
(ii) उसने यह भी ध्यान दिया कि उपमहाद्वीपीय व्यापार तथा वाणिज्य अंतर एशियाई तंत्रों
से जुड़ा हुआ था।
प्रश्न 16. बर्नियर का भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है ? पुष्टि
कीजिए।
उत्तर-(i) उसने एक ओर भारत को प्रतिलोम के रूप में दिखाता है या यूरोप को भारत के
प्रतिलोम के रूप में दर्शाया है।
(ii) उसने जो भिन्नतायें महसूस की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया जिससे
भारत पश्चिमी दुनिया से निम्न कोटि का प्रतीत हो ।
प्रश्न 17. बर्नियर भारत में किन आर्थिक वर्गों का उल्लेख करता है।
उत्तर-(i) भारतीय समाज दरिद्र लोगों के समूह से बना है जो अल्पसंख्यक अति अमीर तथा
शक्तिशाली शासक वर्ग के अधीन होता है ।
(ii) गरीबों में सबसे गरीब तथा अमीरों में सबसे अमीर व्यक्ति के बीच नाममात्र का भी
कोई सामाजिक समूह या वर्ग नहीं था । बर्नियर बहुत विश्वास से कहता है, “भारत में मध्य की
स्थिति के लोग नहीं हैं।”
प्रश्न 18. मांटेस्क्यू का प्राच्य निरंकुशवाद क्या है ?
उत्तर-(i) बर्नियर ने बताया कि भारत में निजी स्वामित्व का अभाव है। इसका प्रयोग
मांटेस्क्यू ने अपने प्राच्य निरंकुशवाद में किया ।
(ii) इसके अनुसार एशिया (प्राच्य या पूर्व) में राजा अपनी प्रजा के ऊपर स्वतंत्र प्रभुत्व का
उपभोग करते थे । इसका आधार यह था कि सम्पूर्ण भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा
निजी संपत्ति अस्तित्व में नहीं थी।
प्रश्न 19. बर्नियर के ‘शिविर नगर’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-(i) बर्नियर का आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए
राजकीय सत्ता पर निर्भर थे ।
(ii) उसका विश्वास था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे
और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पवन की ओर बढ़ जाते थे ।
प्रश्न 20. इब्न-बतूता के अनुसार दासियाँ क्या कार्य करती थी?
उत्तर-(i) इब्न-बतूता के अनुसार उपमहाद्वीप में दास प्रथा प्रचलित थी। दासियों को सफाई
कर्मचारी के रूप में रखा जाता था और वे बिना हिचक घरों में घुस जाती थीं।
(ii) दासियाँ गुप्त सूचनाओं को राज्य तक पहुँचाती थी इसके अलावा अन्य कई कार्य करती थीं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. अल-बिरूनी ने भारत में किन-किन विषयों में रुचि ली? उसकी रुचि का
साहित्य और अन्य के लिए क्या लाभ हुआ?
उत्तर-(i) एक यात्री एवं विद्वान के रूप में (As a traveller and as a scholar)-
गजनी में ही अल-बिरूनी की भारत के प्रति रुचि विकसित हुई । यह कोई असामान्य बात नहीं
थी।आठवीं शताब्दी से ही संस्कृत में रचित खगोल विज्ञान, गणित और चिकित्सा संबंधी कार्यो
का अरबी भाषा में अनुवाद होने लगा था। पंजाब के गजनवी साम्राज्य का हिस्सा बन जाने के
बाद स्थानीय लोगों से हुए संपर्कों ने आपसी विश्वास और समझ का वातावरण बनाने में मदद की।
(ii) विचारों का आदान-प्रदान-(Interactions)-अल-बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा
विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया। हालाँकि
उसका यात्रा-कार्यक्रम स्पष्ट नहीं है फिर भी प्रतीत होता है कि उसने पंजाब और उत्तर भारत
के कई हिस्सों की यात्रा की थी।
(iii) उसके लिखने के समय यात्रा वृत्तांत अरबी साहित्य का एक मान्य हिस्सा बन चुके
थे । ये वृत्तांत पश्चिम में सहारा रेगिस्तान से लेकर उत्तर में वोल्गा नदी तक फैले क्षेत्रों से
संबंधित थे । इसलिए, हालाँकि 1500 ई. से पहले भारत में अल-बिरूनी को कुछ ही लोगों ने
पढ़ा होगा, भारत से बाहर कई अन्य लोग संभवतः ऐसा कर चुके हैं।
प्रश्न 2. किताब-उल-हिन्द पर एक लेख लिखिए । [N.C.E.R.T. T.B.Q.1]
Write a note on the Kitab-ul-Hind.
उत्तर-(i) लेखक और भाषा (Writer and Language)-किताब-उल- हिन्द प्रसिद्ध
यात्री, विद्वान और इतिहासकार अल-बिरूनी की कृति है । इसमें विद्वान यात्री ने ग्यारहवीं शताब्दी के भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं, सांस्कृतिक जीवन, भाषा, कला आदि का विवरण छोड़ा है।
अरबी में लीखी गई इस पुस्तक की भाषा सरल और स्पष्ट है । अल-बिरूनी जिसने लेखन
में भी अरबी भाषा का प्रयोग किया था, ने संभवतः अपनी कृतियाँ उपमहाद्वीप के सीमांत क्षेत्रों
में रहने वाले लोगों के लिए लिखी थीं । वह संस्कृत, पाली तथा प्राकृत ग्रंथों के अरबी भाषा में
अनुवादों तथा रूपांतरणों से परिचित था ।
(ii) विषय सामग्री (Subject Matter)—यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन,
त्योहारों, खगोल-विज्ञान, कीनिया, रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं, सामाजिक जीवन भार-तौल तथा
मापन विधियाँ, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में
विभाजित है। इनमें दंतकथाओं से लेकर खगोल-विज्ञान और चिकित्सा संबंधी कृतियाँ सभी
शामिल थीं । पर साथ ही इन ग्रंथों की लेखन-सामग्री शैली के विषय में उसका दृष्टिकोण
आलोचनात्मक था और निश्चित रूप में वह उनमें सुधार करना चाहता था ।
3. शैली (Style) सामान्यतः (हालाँकि हमेशा नहीं) अल-बिरूनी ने प्रत्येक अध्याय में
एक विशिष्ट शैली का प्रयोग किया जिसमें आरम्भ में एक प्रश्न होता था, फिर संस्कृतवादी
परंपराओं पर आधारित वर्णन और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना । आज के कुछ
विद्वानों का तर्क है कि इस लगभग ज्यामितीय संरचना, जो अपनी स्पष्टता तथा पूर्वानुमेयता के
लिए उल्लेखनीय है, का एक मुख्य कारण अल-बिरूनी का गणित की ओर झुकाव था ।
प्रश्न 3. बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केन्द्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।
Discuss the picture of urban centres that emerges from Bernier’s
account. . [N.C.E.R.T. T.B.Q.3]
अथवा, बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है ? [Board Exam. 2009]
अथवा, बर्नियर द्वारा दिए गए भारतीय नगरों और व्यापारियों संबंधी चित्रण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-1.सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का लगभग पंद्रह प्रतिशत भाग नगरों में रहता था।
यह औसतन उसी समय पशश्चिमी यूरोप की नगरीय जनसंख्या के अनुपात से अधिक था ।
2. बर्नियर मुगलकालीन शहरों को “शिविर नगर” कहता है, जिससे उसका आशय उन नगरों
से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे । उसका विश्वास
था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले
जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे ।
3. उसने यह भी सुझाया कि इनकी सामाजिक और आर्थिक नीव व्यवहार्य नहीं होती थी और
ये राजकीय प्रश्रय पर आश्रित रहते थे ।
4. भूस्वामित्व के प्रश्न की तरह ही बर्नियर एक अतिसरलीकृत चित्रण प्रस्तुत कर रहा था।
वास्तव में सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे-उत्पादन केन्द्र, व्यापारिक नगर, बन्दरगाह नगर,
धार्मिक केन्द्र, तीर्थ स्थान आदि । इनका अस्तित्व समृद्ध व्यापारिक समुदायों तथा व्यवसायिक वर्गों के अस्तित्व का सूचक है।
5. अन्य शहरी समूहों में व्यावसायिक वर्ग जैसे चिकित्सक (हकीम अथवा वैद्य), अध्यापक
(पंडित या मुल्ला), अधिवक्ता (वकील), चित्रकार, वास्तुविद, संगीतकार, सुलेखक आदि
सम्मिलित थे । जहाँ कई राजकीय प्रश्रय पर आश्रित थे, कई अन्य संरक्षकों या भीड़भाड़ वाले
बाजार में आम लोगों की सेवा द्वारा जीवनयापन करते थे।
6. व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी
जाति तथा व्यावसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे । पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों
को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ । अहमदाबाद जैसे शहरी केन्द्रों में सभी
महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ
कहा जाता था।
प्रश्न 4. अल-बिरूनी ने भारतीय संस्कृति और इसे देश के रूप में समझने में आने
वाले जिन तीन प्रमुख अवरोधों (Speed-breakers or hindrances) का जिक्र किया है,
उनका संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर-अल-बिरूनी के समक्ष आने वाली बाधाएँ (Hinderances orspeed brakers
faced by Al-Baruni)―
(i) अल-बिरूनी अपने लिए निर्धारित उद्देश्य में निहित समस्याओं से परिचित था । उसने
कई “अवरोधों” की चर्चा की है जो उसके अनुसार समझ में बाधक थे ।
(ii) इनमें से पहला अवरोध भाषा थी । उसके अनुसार संस्कृत, अरबी और फारसी से
इतनी भिन्न थी कि विचारों और सिद्धान्तों को एक भाषा से दूसरी में अनुवादित करना आसान
नहीं था।
(iii) उसके द्वारा चिह्नित दूसरा अवरोध धार्मिक अवस्था और प्रथा में भिन्नता थी।
(iv) अल-बिरूनी के अनुसार तीसरा अवरोध अभियान था । यहाँ रोचक बात यह है कि
इन समस्याओं की जानकारी होने पर भी अल-बिरूनी लगभग पूरी तरह से ब्राह्मणों द्वारा रचित
कृतियों पर आश्रित रहा । उसने भारतीय समाज को समझने के लिए अक्सर, वेदों, पुराणों,
भगवदगीता, पतंजलि की कृतियों तथा मनुस्मृति आदि से अंश उद्धत किए ।
प्रश्न 5. इन-बतूता के उल्लेख के आधार पर नारियल का विवरण दीजिए।
अथवा
मानव सिर जैसे आकार के गिरिदार फल से इन-बतूता का क्या अभिप्राय था ? वह
किस तरह की तुलनाओं से अपने वृत्तांत के पाठकों को यह बताने की कोशिश कर रहा
है कि नारियल देखने में कैसे होते हैं ?
उत्तर-1. मानव सिर जैसे गिरिदार फल से यात्री और विद्वान का विवरण-दाता इब्नबतूता
का अभिप्राय नारियल फल से है । वह अपने विवरण द्वारा अपने लिखे वृत्तांत के पाठकों को बड़े
सुन्दर ढंग से इस फल का आकार के रूप में मानव सिर से तुलना करते हुए बताता है कि नारियल एक असाधारण फल है।
2. नारियल का विवरण (Description of coconut)-ये वृक्ष स्वरूप से सबसे अनोखे
तथा प्रकृति में सबसे विस्मयकारी वृक्षों में से एक हैं । ये हू-ब-हू खजूर के वृक्ष जैसे दिखते
हैं। इनमें कोई अन्तर नहीं है सिवाय एक अपवाद के-एक से काष्ठफल प्राप्त होता है और दूसरे
से खजूर । नारियल के वृक्ष का फल मानव सिर से मेल खाता है क्योंकि इसमें भी मानों दो आँखें
तथा एक मुख हैं और अन्दर का भाग हरा होने पर मस्तिष्क जैसा दिखता है और इससे जुड़ा
रेशा बालों जैसा दिखाई देता है। वे इससे रस्सी बनाते हैं। लोहे की कीलों के प्रयोग के बजाय
इनसे जहाज को सिलते हैं। वे इससे बर्तनों के लिए रस्सी भी बनाते हैं ।
प्रश्न 6. इब्न-बतूता ने भारतीय कृषि, व्यापार और वस्त्र आदि के बारे में जो विवरण
छोड़ा है उसे संक्षेप में लिखिए ।
उत्तर-1. इब्न बतूता ने पाया कि भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादनकारी होने का कारण
मिट्टी का उपजाऊपन था, जो किसानों के लिए वर्ष में दो फसलें उगाना संभव करता था।
2. उसने यह भी ध्यान दिया कि उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के अंतर एशियाई तंत्रों
से भली-भाँति जुड़ा हुआ था। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया, दोनों में बहुत
माँग थी जिससे शिल्पकारों तथा व्यापारियों को भारी मुनाफा होता था। भारतीय कपड़ों, विशेषरूप से सूती कपड़ा, महीन मलमल, रेशम, जरी तथा साटन की अत्यधिक माँग थी। इब्न बतूता हमें बताता है कि महीन मलमल की कई किस्में इतनी अधिक मँहगी थीं कि उन्हें अमीर वर्ग के तथा बहुत धनाढ्य लोग ही पहन सकते थे।
प्रश्न 7. इब्न-बतूता अपने यात्रा काल के दौरान भारतीय संचार प्रणाली को एक अनूठी
प्रणाली क्यों कहता है ? तत्कालीन डाक-प्रणाली का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-1. व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य विशेष उपाय करता था। लगभग
सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय तथा विश्राम गृह स्थापित किए गए थे।
2. इब्न बतूता डाक प्रणाली की कार्यकुशलता देखकर चकित हुआ । इससे व्यापारियों के लिए
न केवल लंबी दूरी तक सूचना भेजना और उधार प्रेषित करना संभव हुआ बल्कि अल्प सूचना
पर माल भेजना भी।
3. डाक प्रणाली इतनी कुशल थी कि जहाँ सिंध से दिल्ली की यात्रा में पचास दिन लगते
थे वहीं गुप्तचरों की खबरें सुलतान तक इस डाक व्यवस्था के माध्यम से मात्र पाँच दिनों में पहुँच
जाती थीं।
प्रश्न 8. चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को
समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निमित करने में सक्षम करता है ?
Discuss the extent to which Bernier’s account enables historians to
reconstruct contemporary rural society. [N.C.ER.T. T.B.Q.8]
उत्तर-बर्नियर का विवरण भारतीय इतिहासकारों के लिए आंशिक रूप से ही उपयोगी माना
जा सकता है क्योंकि उसका विवरण दोषरहित नहीं है। वह एक पाश्चात्य विद्वान इतिहासकार
था। उसका भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है।
1. वह जो विभिन्नताएँ भारत और यूरोप में पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध करता है जिससे
वह भारत को सारी पश्चिम दुनिया से निम्न कोटि का प्रतीत हो, ऐसी स्थिति में रखता है।
2. बर्नियर को भूमि स्वामित्व के प्रश्न के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। वह सारी भूमि
का स्वामी मुगल सम्राट को मानता है जो ठीक नहीं है। वह यह कहता है कि राजकीय भू-स्वामित्व के कारण भूमिधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते । प्रायः ऐसा मनसबदार नहीं कर सकते थे। जागीरदार और साधारण किसानों पर बच्चों को भूमि देने पर पाबंदी नहीं थी।
3. हाँ, उसका यह विवरण ठीक है उस समय किसान गरीब थे। गरीबी के कारण वे भूमि
सुधारों में रुचि नहीं लेते थे। मुगल सम्राटों ने यूरोपीय देशों की तरह बड़े पैमाने पर सिंचाई, बाँध,
तालाब, टैंक, नहरें जैसी सुविधाओं में रुचि नहीं ली। इंग्लैंड जैसे देश की तरह यहाँ कृषि क्रांति
नहीं हुई। यह विवरण ठीक जान पड़ता है लेकिन मुगल राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था। यह विवरण ग्रामीण किसानों के लिए ठीक नहीं जान पड़ता। अकबर के काल में भूराजस्व अधिक नहीं था। फिरोजशाह तुगलक, शेर सूरी और कुछ अन्य शासकों ने सिंचाई
सुविधाएँ बढ़ाने में रुचि ली। अकबर ने भू-व्यवस्था में सुधार किए। इसका उल्लेख इतिहासकार
करते थे।
संक्षेप में, भारतीय इतिहासकारों के लिए बर्नियर का विवरण किसी सीमा तक उपयोगी है।
प्रश्न 9.अब्दुर रज्जाक ने केरल को एक विचित्र देश की संज्ञा किन आधारों पर दी?
उसने कालीकट और मंगलौर के बारे में जो विवरण छोड़ा है उसे संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-1440 के दशक में लिखा गया अब्दुर रज्जाक का यात्रा वृत्तांत संवेगों और
अवबोधनों का एक रोचक मिश्रण है।
(i) कालीकट (Calicat)-एक ओर केरल में कालीकट (आधुनिक कोजीकोड), बंदरगाह
पर उसने जो देखा उसे प्रशंसनीय नहीं माना “यहाँ ऐसे लोग बसे हुए थे जिनकी कल्पना मैंने
कभी भी नहीं की थी।” इन लोगों को उसने एक ‘विचित्र देश’ बताया।
(ii) मंगलौर (Mangalore)-कालांतर में अपनी भारत यात्रा के दौरान वह मंगलौर आया,
और पश्चिमी घाट को पार किया । यहाँ उसने एक मंदिर देखा जिसने उसे प्रशंसा से भर दिया।
(iii) पूजा स्थल (Place of worship)-मंगलौर से नौ मील के भीतर ही, मैंने एक ऐसा
पूजा-स्थल देखा जो पूरे विश्व में अतुलनीय है। यह वर्गाकार था जिसकी प्रत्येक भुजा लगभग
दस गज, ऊँचाई पाँच गज थी और जो चार द्वार-मंडपों के साथ, पूरी तरह से ढले हुए काँसे
से ढंँका हुआ था। प्रवेशद्वार के द्वार-मंडप में सोने की बनी एक मूर्ति थी जो मानव आकृति जैसी
तथा आदमकद थी। इसकी दोनों आँखों में काले रंग के माणिक इतनी चतुराई से लगाए गए थे
कि प्रतीत होता था मानो वह देख सकती हों। इस शिल्प और कारीगरी के क्या कहने ।
प्रश्न 10. इब्न-बतूता द्वारा मुहम्मद-बिन तुगलक की नई राजधानी दौलताबाद से
संबधित विवरण का एक अंश देते हुए बताइए कि उस समय बाजार में संगीत का आयोजन
किस प्रकार किया जाता था?
उत्तर-(i) इब्न बतूता ने अपने भारत संबंधी विवरण में यह बताने का प्रयास किया है कि
परत के जीवन में संगीत मनोरंजन का एक महत्त्वपूर्ण साधन था और उसका आयोजन बाजारों में किया जाता था। अनेक गायिकाएँ गीत गाती थीं और नाचती थीं।
(ii) इब्न बतूता द्वारा दौलताबाद के विवरण से एक अंश दिया जा रहा है :
(क) दौलताबाद में पुरुष और महिला गायकों के लिए एक बाजार है जिसे ताराबबाद कहते
हैं। यह सबसे विशाल और सुंदर बाजारों में से एक है। यहाँ बहुत-सी दुकानें हैं और प्रत्येक
दुकान में एक ऐसा दरवाजा है जो मालिक के आवास में खुलता है-दुकानों को कालीनों से सजाया गया है और दुकान के मध्य में झूला है जिस पर गायिका बैठती है। वह सभी प्रकार की भव्य वस्तुओं से सजी होती है और उसकी सेविकाएँ उसे झूला झुलाती हैं।
(ख) बाजार के मध्य में एक विशाल गुंबद खड़ा है जिसमें कालीन बिछाए गए हैं और
सजाया गया है इसमें प्रत्येक गुरुवार सुबह की इबादत के बाद संगीतकारों के प्रमुख, अपने सेवकों और दासों के साथ स्थान ग्रहण करते हैं । गायिकाएँ एक के बाद एक झुंडों में उनके समक्ष आकर सूर्यास्त का गीत गाती और नाचती हैं जिसके पश्चात् वे चले जाते हैं।
(ग) इस बाजार में इबादत के लिए मस्जिदें बनी हुई हैं-हिन्दू शासकों में से एक-जब भी
बाजर से गुजरता था, गुंबद में उतर कर आता था और गायिकाएँ उसके समक्ष गान प्रस्तुत करती
थीं। यहाँ तक कि कई मुस्लिम शासक भी ऐसा ही करते थे। आपके विचार में इब्न बतूता ने
अपने विवरण में इन गतिविधियों को रेखांकित क्यों किया ?
प्रश्न 11. बर्नियर के अनुसार उस समय के भारतीय उपमहाद्वीप के किसानों को
किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता था ?
उत्तर-बर्नियर द्वारा भारतीय किसानों की दयनीय स्थिति और गरीबी के बारे में हृदयस्पर्शी
विवरण दिया गया है। इसके कुछ अंश और साक्ष्य बर्नियर के विवरण से उद्धृत किए गए हैं :
(i) हिन्दुस्तान के साम्राज्य के विशाल ग्रामीण अंचलों में से कई केवल रेतीली भूमियाँ या
बंजर पर्वत ही हैं । यहाँ की खेती अच्छी नहीं है और इन इलाकों की आबादी भी कम है। यहाँ
तक कि कृषियोग्य भूमि का बड़ा हिस्सा भी श्रमिकों के अभाव में कृषि विहीन रह जाता है। इनमें
से कई श्रमिक गवर्नरों द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के फलस्वरूप मर जाते हैं।
(ii) गरीब लोग जब अपने लोभी स्वामियों की मांगों को पूरा करने में असमर्थ हो जाते हैं
तो उन्हें न केवल जीवन-निर्वहन के साधनों से वंचित कर दिया जाता है, बल्कि उन्हें अपने बच्चों
से भी हाथ धोना पड़ता है, जिन्हें दास बना कर ले जाया जाता है। इस प्रकार ऐसा होता है कि
इस अत्यंत निरंकुशता से हताश हो किसान गाँव छोड़कर चले जाते हैं।
(iii) इस उद्धरण में बर्नियर राज्य और समाज से संबंधित यूरोप में प्रचलित तत्कालीन विवादों
में भाग ले रहा था, और उसका प्रयास था कि मुगल कालीन भारत से संबंधित उसका विवरण
यूरोप में उन लोगों के लिए एक चेतावनी का कार्य करेगा जो निजी स्वामित्व की “अच्छाइयों”
को स्वीकार नहीं करते थे।
प्रश्न 12. बर्नियर की रचना “ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर” पर एक आलोचनात्मक
टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-(i) बर्नियर के ग्रंथ ट्रैवल्स इन द मुगल एम्पायर अपने गहन प्रेक्षण, आलोचनत्मक
अंतर्दृष्टि तथा गहन चिंतन के लिए उल्लेखनीय है। उसके वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों
के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढाँचे में स्थापित करने का प्रयास किया गया है।
(ii) वह निरंतर मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से करता रहा, सामान्यतया
यूरोप की श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए।
(iii) उसका भारत का चित्रण द्वि-विपरीतता के नमूने पर आधारित है, जहाँ भारत को यूरोप
के प्रतिलोम के रूप में दिखाया गया है, या फिर यूरोप का “विपरीत” जैसा कि कुछ इतिहासकार परिभाषित करते हैं। उसने जो भिन्नताएँ महसूस की उन्हें भी पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया, जिससे भारत, पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो।
प्रश्न 13. मुगलकालीन शिल्पकारों की स्थिति के बारे में बर्नियर ने क्या विवरण छोड़ा
है ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-(i) फ्रांसीसी यात्री बर्नियर मुगल सम्राट को एक निरंकुश और अत्याचारी साम्राज्य
के रूप में चित्रित करने का प्रयास उसी प्रकार करता है जैसे सभी साम्राज्यवादी दृष्टिकोण रखने
वाले इतिहासकार करते हैं लेकिन तत्कालीन शिल्पकारों की स्थिति को अभिव्यक्त करने वाले इसके कुछ विवरण अनेक आधुनिक भारतीय इतिहासकारों को किसी हद तक ठीक प्रतीत होते हैं। वे लिखते हैं कि बर्नियर के कुछ विवरण हैं
(ii) कभी-कभी एक अधिक जटिल सामाजिक सच्चाई की ओर इशारा करते हैं। उदाहरण
के लिए वह कहता है कि शिल्पकारों के पास अपने उत्पादों को बेहतर बनाने का कोई प्रोत्साहन
नहीं था क्योंकि मुनाफे का अधिग्रहण राज्य द्वारा कर लिया जाता था।
(iii) उत्पादन हर जगह पतनोन्मुख था। साथ ही वह यह भी मानता है कि पूरे विश्व से
बड़ी मात्रा में बहुमूल्य धातुएँ भारत में आती थीं क्योंकि उत्पादों का सोने और चाँदी के बदले
निर्यात होता था। वह एक समृद्ध व्यापारिक समुदाय जो लंबी दूरी के विनिमय से संलग्न था,
के अस्तित्व को भी रेखांकित करता है।
प्रश्न 14. इब्न-बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।
Analyse the evidence for slavery provided by Ibn-Battuta.
[N.C.ER.T. T.B.Q.4]
अथवा, दास-दासियों की स्थिति पर प्रमुख विदेशी यात्रियों के विवरण देते हुए एक
संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर-(i) जिन यात्रियों ने अपने लिखित वृत्तांत छोड़े वे सामान्यतया पुरुष थे जिन्हें
उपमहाद्वीप में महिलाओं की स्थिति का विषय रुचिकर और कभी-कभी जिज्ञासापूर्ण लगता था।
कभी-कभी वे सामाजिक पक्षपात को “सामान्य” परिस्थिति मान लेते थे। उदाहरण के लिए,
बाजारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुलेआम बेचे जाते थे और नियमित रूप से
भेंटस्वरूप दिए जाते थे। जब इब्न बतूता सिंघ पहुँचा तो उसने सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के
लिए भेंटस्वरूप “घोड़े, ऊँट तथा दास” खरीदे जब वह मुल्तान पहुँचा तो उसने गवर्नर को
“किशमिश के बादाम के साथ एक दास और घोड़ा” भेंट के रूप में दिए । इब्न बतूता बताता
है कि मुहम्मद बिन तुगलक नसीरुद्दीन नामक धर्मोपदेशक के प्रवचन से इतना प्रसन्न हुआ कि उसे “एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास” दे दिए।
(ii) इब्न बूता के विवरण से प्रतीत होता है कि दासों में काफी विभेद था । सुल्तान की सेवा
में कार्यरत कुछ दासियाँ संगीत और गायन में निपुण थीं, और इब्न बतूता सुल्तान की बहन की
शादी के अवसर पर उनके प्रदर्शन से खूब आनंदित हुआ । सुल्तान अपने अमीरों पर नजर रखने
के लिए दासियों को भी नियुक्त करता था।
(iii) दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, और इब्न बतूता
ने इनकी सेवाओं को, पालकी या डोले में पुरुषों और महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से
अपरिहार्य पाया । दासों की कीमत, विशेष रूप से उन दासियों की, जिनकी आवश्यकता घरेलू
श्रम के लिए थी, बहुत कम होती थी और अधिकांश परिवार जो उन्हें रख पाने में समर्थ थे, कम
से कम एक या दो को तो रखते ही थे।
प्रश्न 15.सती प्रथा के कौन से तत्त्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा ?
What were the elements of the practice of sati that drew the attention of
Berneir? [N.C.E.R.T. T.B.Q.5]
अथवा, विद्वान, फ्रांस के यात्री बर्नियर के वृत्तांत में से सती बालिका संबंधी विवरण
के कारण हृदयस्पर्शी मार्मिक विवरण क्यों मानते हैं ? उसके विवरण का इस संदर्भ में सरांश
लिखिए।
उत्तर-(i) बर्नियर जैसे अनेक यूरोपीय यात्रियों तथा लेखकों ने तत्कालीन भारतीय महिलाओं
की दयनीय स्थिति की ओर यदि उनका ध्यान खींचा तो यह तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं थी।
बर्नियर ने तो सती प्रथा को विस्तृत विवरण के लिए चुना । उसने लिखा यद्यपि कुछ भारतीय
महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को (सती होने के अवसर पर) गले लगा लेती थीं लेकिन अन्य विधवा
महिलाओं को तुरंत ही जल भरने के लिए बाध्य किया जाता था।
(ii) यह संभवतः बर्नियर के वृत्तांत के सबसे मार्मिक विवरणों में से एक है :
लाहौर में मैंने एक बहुत ही संन्दर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में बारह
वर्ष से अधिक नहीं थी, की बलि होते हुए देखी। उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिकं मृत प्रतीत हो रही थी। उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता; वह काँपते हुए बुरी तरह से रो रही थी, लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, एक बूढी औरत, जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था, की सहायता से उस अनिच्छुक पीडिता को जबरन घातक स्थान की ओर ले गए, उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ और पैर बाँध दिए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिन्दा जला दिया गया । मैं अपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहलपूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था।
प्रश्न 16. अलबिरूनी कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
[B.M.2009A,B.Exam. 2010 (A)]
उत्तर-अलबिरूनी (Alberuni)-अबू रिसान अलबेरुनीह, जिसका असली नाम मुहम्मद
बिन अहमद था । रवीवा (आजकल रवीवा रूस का एक प्रसिद्ध नगर है।) का निवासी थी।
वह 973 ई. में पैदा हुआ । जब महमूद गजनवी ने 1037 ई. में रवीवा प्रदेश (जो उस समय
ख्वारिज्म राज्य में था) को जीता तो महमूद ने इस विद्वान को पकड़ लिया । वह सुप्रसिद्ध
इतिहासकार होने के साथ-साथ गणित, दर्शन आदि का भी ज्ञाता था । वह कई भाषाओं को अच्छी प्रकार से जानता था जैसे यूनानी, अरबी, फारसी और संस्कृत । वह महमूद गजनवी के साथ भारत आया । यहाँ रहकर उसने संस्कृत, धार्मिक पुस्तकों एवं दर्शन के साथ-साथ पुराणों एवं भगवद्गीता का भी अध्ययन किया । उसने जिस पुस्तक में भारतीय सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, जीवन के साथ-साथ दर्शन और विज्ञान का वर्णन किया है, उस पुस्तक का नाम ‘तहकीकात-ऐ-हिन्द’ है। उसकी यह पुस्तक तत्कालीन इतिहास को जानने का प्रमुख साधन है। इसके अतिरिक्त उसने कई संस्कृत की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद किया । इस तरह उसने भारतीय साहित्य एवं दर्शन का मध्य एशिया में प्रचार करने में मदद की । उसकी मृत्यु 1048 ई. में हो गई।
प्रश्न 17. अलबरूनी द्वारा बताई गई महिलाओं की स्थिति पर प्रकाश डालिये।
[B.M.2009A]
उत्तर-अरबी यात्री अलबरूनी की किताब-उल-हिंद में तत्कालीन (11वीं सदी) भारत की
महिलाओं की दशा का विशद वर्णन है। उनके अनुसार हिन्दू लड़कियों की शादी अल्पायु में ही हो जाती थी, तलाक की प्रथा नहीं थी जबकि सती प्रथा का प्रचलन था। पुरुष एक से चार पत्नियाँ रख सकते थे। देवदासी तथा वेश्यावृत्ति की प्रथा प्रचलित थी। कुल मिलाकर अलबरूनी का विवरण समाज में महिलाओं की कमजोर स्थिति का ही सूचक है।
प्रश्न 18. बर्नियर कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय कीजिए।
उत्तर-फ्रांस्वा बर्नियर एक सुविख्यात फ्रेंच डॉक्टर था तथा 1658 के प्रारम्भ में सूरत पहुँचा
था । हिन्दुस्तान में उसने दूर-दूर तक यात्राएँ की । उसकी यात्रा का प्रारम्भ अहमदाबाद तथा
आगरा से हुआ । तत्पश्चात् उसने कश्मीर और बंगाल की यात्राएँ की । बंगाल-यात्रा के दौरान
वह राजमहल में राज परिवार के साथ रहे । कुछ समय कासिम बाजार रुकने के पश्चात् वह
मसुलीपत्तनम तथा गोलकुंडा के लिए रवाना हुआ तथा वहाँ से वापस सूरत पहुँचा ।
बर्नियर का हिन्दुस्तान आगमन ऐसे समय में हुआ जब शाहजहाँ के बेटों के बीच
उत्तराधिकार का युद्ध चल रहा था । औरंगजेब की तख्तनशीनों उसके हिन्दुस्तान प्रवास के समय
हुई। इस प्रकार बर्नियर को दो-दो प्रभावशाली मुगल शासकों के काल की घटनाओं को
देखने-समझने का अवसर मिला । शाहजहाँ की मृत्यु उस समय हुई जबकि वह मसुलीपत्तनम में
था । उसके यात्रा-वृत्तांत ट्रैवल्स इन दी मुगल एम्पायर का प्रकाशन 1670 के लगभग हुआ।
बर्नियर का यात्रा-विवरण बड़ा ही रोचक तथा व्यापक है । उसने न केवल हिन्दुस्तानियों तथा
मुगलों के तौर-तरीकों तथा परंपराओं, विद्या व ज्ञान के स्रोतों तथा उनके जीवन के लक्ष्यों तथा
कार्य-कलापों का ही वर्णन किया है, बल्कि उनकी विविध प्रकार के तथ्यों से पुष्टि करने की
कोशिश की है। उसने गृह-युद्ध तथा क्रांति, उत्तराधिकार के युद्ध का वर्णन किया है जिसमें मुल्क
के सभी प्रमुख राजनीतिज्ञों ने भाग लिया था। साथ ही उन घटनाओं का भी वर्णन किया है जो
गृह-युद्ध के अंत में तथा उसके हिन्दुस्तान छोड़ने के समय घटित हुई ।
बर्नियर ने राजतरंगिणी पर आधारित कश्मीर के तथा महत्त्वपूर्ण शासकों के संक्षिप्त इतिहास
का, जिसकी रचना शाहजहाँ की आज्ञा से हैदर मलिक द्वारा की गई थी, अनुवाद करने का भी
विचार किया था । यह अनुवाद कार्य पूरा हुआ या नहीं, इस विषय में कुछ संकेत नहीं मिलता।
प्रश्न 19. दिल्ली सल्तनत में उमरा वर्ग की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-दिल्ली सल्तनत में उमरा वर्ग की स्थिति (Position of Umra class of Delhi
Sultanate)-दिल्ली के सुल्तानों और उनके मुख्य अमीरों का जीवन स्तर समकालीन संसार
में उच्चतम था । समकालीन यात्रियों के अनुसार दिल्ली सल्तनत के शासकों की समृद्धि चकाचौंध करने वाली थी । सल्तनत के अमीर वैभवशाली जीवन व्यतीत करते थे । सुल्तान अपने दरबारियों को वर्ष में दो बार-जाड़े और गर्मी में खिल्लत (पोशाक) देता था । बड़े-बड़े दरबारी और उमरा शानदार महलों में ठाठ से रहते थे । वे शानदार दावतों और उत्सवों का आयोजन करते थे । साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ उनको भारी वेतन और भत्ते प्राप्त होते थे । अतः स्पष्ट है कि दिल्ली सल्तनत के अंगर्गत उमरा वर्ग की स्थिति उच्च थी। चौदहवीं शताब्दी में आपसी संघर्ष, अलाउद्दीन खिलजी तथा सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की कठोर नीति एवं तैमूर के आक्रमण से अमीरों की शक्ति क्षीण होती गई।
प्रश्न 20. आइन-ए-अकबरी के अनुसार मुगल काल में कर-निर्धारण की कौन-सी
प्रणाली प्रचलित थी? [B.M.2009A]
उत्तर-आइन-ए-अकबरी में कर निर्धारण की तीन प्रणालियों का उल्लेख मिलता है-
(i) गल्ला बख्शी (बटाई) (ii) जब्ती (नकदी) (iii) नक्स (कनकूट)
बटाई व्यवस्था में खड़ी फसल या खलिहान में रखे अनाज से सरकार अपना हिस्सा ले लेती थी।
नगदी में कर निश्चित होता था। पैदावार कम हो या ज्यादा नियत कर देना ही होता था।
नक्स अथवा कनकूट व्यवस्था में मोटे तौर पर पैदावार को आँककर कर का निर्धारण होता था।
प्रश्न 21. मुगल काल में जमींदारों की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
[B.Exam. 2010,2913(A)]
उत्तर-(i) इस काल में जमींदार दो तरह के थे-छोटे जमींदार और बड़े जमींदार ।
(ii) छोटे जमींदारों का जीवन स्तर साधारण किसानों से थोड़ा ऊपर होता था, परन्तु बड़े
जमींदार ठाट-बाट से रहते थे। अधिकांश जमींदार गाँवों में रहकर अपनी जमींदारी का देखभाल
करते थे। वे कुलीन वर्ग की श्रेणी में ही आते थे ।
(iii) प्राय: बहुत से जमींदार दयालु और अच्छे स्वभाव के होते थे। वे किसानों के दुःख-सुख
को समझते थे और उनके साथ सहानुभूति रखते थे। लेकिन धीरे-धीरे जमींदारी के बँटते जाने
से कुछ लोग चिड़चिड़े और क्रूर होते गये । उनके कोपभाजन बनने के बाद कई किसानों को अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ता था ।
(iv) कई बार भू-राजस्व चुकाने के लिए किसानों को महाजनों से भारी सूद पर कर्ज लेना
पड़ता था । अन्यथा उन्हें अपने जेवर, पशु, मकान आदि गिरवी रखने पड़ते थे ।
(v) कई जमींदार सुरा-सुन्दरी में डूबे रहने के कारण किसानों का जी भरकर सोपण करते थे।
प्रश्न 22. मुगलकालीन शासक वर्ग की जीवन पद्धति पर टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर-मुगल काल में शासक वर्ग की जीवन पद्धति (Life Style of Ruling Class
in Mughal Age)―
(i) शासकीय वर्ग के पास अपार संपत्ति रहने के कारण वे ठाठ और रईसी का जीवन बिताते
थे। उनकी कई पलियाँ होती थीं, उनके पास नौकरों, ऊँटों और घोड़ों का एक पूरा दल होता था।
(ii) उनके घरेलू मामलों और हरम के रख-रखाव पर काफी धन खर्च किया जाता था ।
(iii) इसके बावजूद उनके पास काफी धन बचा रहता था । जिसे वे लोग भव्य भवन और
जन सुविधा के कार्य से संबंधित इमारतें बनवाने पर खर्च करते थे ।
(iv) शेख फरीद भक्करी की जीवनी संबंधित रचना जखीरत-उल ख्वानीन (1642) को पढ़ने
से पता चलता है कि मुगल पदाधिकारी और कुलीन अपने निवास के लिए भव्य और आकर्षक
भवन बनवाया करते हैं ।
प्रश्न 23. मुगल काल में कुलीन वर्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-मुगल काल में कुलीन वर्ग (Nobality in Mughal Age)-
(i) मुगल कुलीनों ने अपनी यह भूमिका अच्छी तरह निभाई । इसके कारण कुछ मात्रा में
ही सही समाज के भौतिक संसाधनों का बंटवारा समाज के लिए हुआ ।
(ii) अपने उपभोग की आरामदायक वस्तुओं के निर्माण के लिए ये कुलीन अपने कारखाने
चलाते थे।
(iii) इनमें कालीन, सोने से जड़े रेशमी वस्त्र और उच्च कोटि के स्वर्णाभूषण आदि व्यक्तिगत
प्रयोग के लिए जाते थे ।
(iv) इसके अतिरिक्त ये विभिन्न देशों से काफी मात्रा में आरामदायक वस्तुओं का आयात
भी करते थे।
(v) ब्रिटिश और डच स्रोतों से अनेक विवरण यह दर्शाते हैं कि यह शासक वर्ग विलासिता
की मूल्यवान वस्तुओं की मांँग करता था और इसके लिए बड़ी राशि खर्च करता था ।
(vi) शिकार मनोरंजन और खेलकूद संबंधी गतिविधियों व अतिरिक्त पर्व-त्यौहारों, घरेलू
शादियों आदि में अपार राशि खर्च की जाती थी।
प्रश्न 24. मुगलकाल में व्यापारियों की स्थिति के विषय पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर-व्यापारियों की सामाजिक स्थिति (Social condition of the Traders)
सत्रहवीं शताब्दी में व्यापारियों की गणना समाज के मध्य वर्ग में होती थी । व्यापारियों को काफी
महत्त्व दिया जाता था । अधिकतर व्यापारी अपने कार्य में अत्यन्त कुशल थे । थोक व्यापारी को
सेठ अथवा बोहरा कहा जाता था । खुदरा व्यापारी वणिक कहलाते थे । देशी तथा विदेशी दोनों
प्रकार का व्यापार उन्नत था । विदेशी व्यापार मुख्यतः नगरों में बसे धनी वर्गों के लाभ के लिए
ही किया जाता था । इस काल में कुछ भारतीय अत्यन्त धनी थे । उनकी गणना विश्व के
धनी व्यापारियों में होती थी। दिल्ली, आगरा, बालासोर तथा बंगाल में कई धनी व्यापारी रहते
थे। उनका रहन-सहन सरदारों जैसा था। वे बड़े-बड़े महलों में रहते थे, कीमती वस्त्र पहनते
थे और सजे-सँवरे घोड़ों की सवारी करते थे। उसके विपरीत कुछ व्यापारी भी थे जो अपनी
दुकानों के ऊपर ही घर बनाकर रहते थे । फ्रांसीसी यात्री बर्नियर लिखता है कि व्यापारी अत्यन्त
धनी होते हुए भी अपने आपको निर्धन दिखाने का प्रयत्न करते थे क्योंकि उन्हें सदा इस बात का
भय रहता था कि कहीं सरकार उनकी सम्पत्ति न छीन ले । इस प्रकार अधिकांश व्यापारी असुरक्षा के कारण दयनीय स्थिति में ही रहते थे ।
प्रश्न 25. अकबर की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।
[B.M.2009A,B.Exam.2011, 2012,2013(A)]
उत्तर-पुनर्स्थापना के दौर से गुजर रहे मुगल साम्राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप ही
अकबर ने जिस धार्मिक नीति का अवलम्बन किया उसका आधार था-सुबह-ए-कुल अर्थात्
सहिष्णुता एवं सबसे शांति बनाये रखने का सिद्धांत। अकबर ने इबादतखाने की स्थापना की तथा सभी धर्मों के बारे में जानकारी ली। सत्य की खोज के दौरान उसने पाया कि कोई भी धर्म पूर्ण नहीं है। अतः सभी धर्मों के सार के रूप में उसने 1581 ई० में नया धर्म दीन-ए-इलाही सामने लाया। इसमें सहिष्णुता, नैतिकता पर जोर था। अपनी नीति को व्यावहारिक रूप देते हुए अकबर ने तीर्थयात्रा कर.समाप्त कर दिया, जजिया कर समाप्त कर दिया, राजपूतों से वैवाहिक संबंध कायम किया। यद्यपि दीन-ए-इलाही विशेष लोकप्रिय नहीं हुआ फिर भी अकबर का प्रयास सराहनीय रहा जिसने न केवल अकबर को महान् बनाया वरन् मुगल शासन को भारत में स्थायित्व प्रदान किया।
प्रश्न 26. मुगलकालीन प्रशासन का वर्णन कीजिए। [B.M.2009A]
अथवा, मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
[B.Exam.2010 (A)]
उत्तर-मुगलों ने न केवल विशाल साम्राज्य की ही स्थापना की वरन् कुशल प्रशासनिक ढाँचे
का भी विकास किया। प्रशासन का सर्वोच्च था-बादशाह। इसे जिल्ले इलाही (ईश्वर की छाया)
माना जाता था। बादशाह धर्म, न्याय तथा सैनिक विभाग का भी प्रमुख था। बादशाह को शासन
में सहायता हेतु कुछ मंत्री भी नियुक्त किये गये थे। इनमें प्रमुख थे-वजीर (प्रधानमंत्री) दीवान
(वित्तमंत्री) मीरबख्शी (सैनिक संचालन) तथा प्रधानकाजी (न्याय विभाग)।
साम्राज्य को प्रांतों (सूबे), प्रांतों को जिलों (सरकारों) में तथा जिले परगने में विभाजित थे।
सूबे के प्रधान सूबेदार होता था। जिले के प्रधान फौजदार होते थे जबकि शिकहार परगने का प्रधान था। कुल मिलाकर प्रशासन पर केन्द्रीय नियंत्रण पूरी तरह स्थापित था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उत्तर
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. इब्न-बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्राओं के
वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए । [N.C.E.R.T. T.B.Q.2]
Compare and contrast the perspectives from which Ibn-Batuta and
Bernier wrote their accounts of their travellers in India.
उत्तर-इब्न बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों (Outlooks) से भारत में अपनी यात्राओं के
वृत्तांत (विवरण) लिखे थे उनकी तुलना और उनमें पाए जाने वाले प्रमुख अंतर नीचे दिए गए हैं-
तुलना (Comparision)–
(i) इब्न बतूता भारत के चौदहवीं शताब्दी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के विषय
में प्रचुर और रोचक जानकारियाँ प्राप्त करना चाहता था । वह पुस्तकों के ज्ञान की अपेक्षा यात्राओं से प्राप्त अनुभव को ज्ञान का अधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत मानता था । यात्रा करना उसका शौक (Hobby) था और वह दूर-दूर रहने वाले नए-नए देशों और उनके लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहता था ।
(ii) इब्न बतूता इस्लाम का एक पक्का अनुयायी था । उसने मक्का की यात्रा (हज) की
और उसके साथ-साथ उसने अनेक मुस्लिम बाहुल्य जनसंख्या के अनेक देशों जैसे सीरिया, ईराक, फारस, यमन ओमान तथा पूर्वी अफ्रीका के अनेक तटीय व्यापारिक बन्दरगाहों की यात्रा की । उसने मुहम्मद तुगलक के काल में न्यायाधीश के कर्तव्य को निभाया और उस समय दिल्ली
सल्तनत से अलग रहने पर सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के आदेश पर चीन की यात्रा की । उसने चीन में वहाँ के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन को समझने का प्रयास किया । उसने दक्षिण भारत (मालाबार तट), मालद्वीप के साथ-साथ श्रीलंका की यात्रा की और भारत के बंगाल तथा असम के लोगों के रीति-रिवाजों, प्रथाओं, संस्कृतियों आदि को समझना चाहा । वह सुमात्रा और वहाँ से चीनी बन्दरगाह जयातुन (क्वानझू) की यात्रा व्यापक रूप से की।
(iii) इब्न बतूता ने नए-नए लोगों की संस्कृतियों, विचारों, आस्थाओं, मान्यताओं को
सावधानी और कुशलतापूर्वक जानना चाहा । वह लम्बी-लम्बी यात्रा करके अपने साहस का परिचय देना चाहता था । उसने यात्रा के दौरान डाकू और लुटेरों को रोकने का प्रयास किया ।
(iv) वह एक अकेला यात्री था । उसने मोरक्को से चलकर भारत और चीन की यात्रा करके
अपने को साहसी होने का परिचय दिया ।
(v) इब्न बतूता ने प्रत्येक वस्तु का वर्णन करने का निश्चय किया जिसने उसे अपने अनूठेपन
के कारण प्रभावित और उत्सुक किया ।
बर्नियर की यात्रा का दृष्टिकोण (Outlook of Barmier’s Travel)-
(i) फ्रांँस्वा बर्नियर एक चिकित्सक, राजनैतिक, दार्शनिक एवं इतिहासकार था । उसकी यात्रा
का उद्देश्य मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश करना था । वह अपने चिकित्सा संबंधी ज्ञान
का शाही दरबारों में प्रयोग करना चाहता था अनेक देशों और उनके अनेक भागों की यात्रा
करके किए गए देशों की तुलना यूरोपीय स्थिति में करना चाहता था । उदाहरण के लिए उसने
भारत की स्थिति की तुलना यूरोप में हुए विकास की तुलना करते हुए उसे (भारतीय स्थिति)
को दयनीय बताया । निःसंदेह यद्यपि उसका मूल्यांकन सदैव पूरी तरह ठीक नहीं था लेकिन उसे ख्याति मिली।
(ii) वह मुगल सेना के साथ जाकर मुगल सैनिक संगठन और उसकी बुराइयों को भी जानना
चाहता था । वह यह जानना चाहता था कि भारत में लोग और मुगल सेना किन-किन वस्तुओं
और वस्त्रों का उपभोग करती हैं।
(iii) इब्न बतूता के विपरीत बर्नियर एक भिन्न बुद्धिजीवी परंपरा से संबधित था । उसने भारत
में जो भी देखा वह उसके सामान्य रूप से यूरोप और विशेष रूप से फ्रांस में व्याप्त (फैली हुई)
स्थितियों से तुलना तथा विभिन्नता को उजागर (सामने लाना) के प्रति अधिक चिंतित था ।
खासकर उन स्थितियों से जिन्होंने उसे अवसादकारी (विनाशकारी) पाया ताकि यह सुनिश्चित
किया जा सके जिन्हें वह सही मानता था । वह भारत को यूरोप के विपरीत रूप में दिखाने का
प्रयास करता रहा।
(iv) इब्नबतूता अपने विवरण के आधार पर पश्चिमी दुनिया की तुलना में भारत को एक
निम्न कोटि प्रतीत होने वाले राष्ट्र चित्रित करना चाहता था । उसने मुगल सम्राटों द्वारा सारी भूमि
को हथियाने, किसानों की दुर्दशा और गरीबी के साथ-साथ कृषि के पिछड़ेपन के लिए जम्मेदार
ठहराया । वह भारतीय समाज को दरिद्र किसानों को निर्धन, समाज में व्याप्त सती प्रथा, अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों की ओर ध्यान खींचता है। वह मुगलों के शहरों को सैन्य शिविर शहर बताता है लेकिन शहरों की जनसंख्या विस्तृत आकार, व्यापारियों में विभिन्न संगठन और शहरी समूहों में अनेक तरह के व्यावसायिक जीवनयापन से बहुत प्रभावित था ।
प्रश्न 2. बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को किस रूप से देखा ? उसे अब्बुल फजल जैसे
इतिहासकार से क्या शिकवा था? बर्नियर का विवरण फ्रांसीसी दार्शनिक और कार्ल मार्क्स
जैसे प्रगतिशील समाजवादियों पर कितना प्रभाव डाल सका ? क्या उसके द्वारा दिए गए
ग्रामीण समाज के चित्रण को आप सत्य मानते हैं ?
उत्तर-(i) बर्नियर और मुगल सम्राट (Bernier and Mughal Empire)-भारत में
आए यूरोपीय यात्री और विवरण देने वाले प्रसिद्ध यात्री बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को इस रूप
में देखा-इसका राजा “भिखारियों और क्रूर लोगों” का राजा था; इसके शहर और नगर विनष्ट
तथा “खराब हवा” से दूषित थे; और इसके खेत “झाड़ीदार” तथा “घातक दलदल” से भरे
हुए थे और इसका मात्र एक ही कारण था-राजकीय भूस्वामित्व ।
(ii) बनियर की अब्बुल फजल जैसे इतिहासकारों से शिकायत (Beniler’s complaint
with historian like Abul Faral) आश्चर्य की बात यह है कि एक भी सरकारी मुगल
दस्तावेज यह इंगित नहीं करता कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था । उदाहरण के लिए,
सोलहवीं शताब्दी में अकबर के काल का सरकारी इतिहासकार अबुल फजल भूमि राजस्व को
‘राजस्व का पारिश्रामिक’ बताता है जो राजा द्वारा अपनी प्रजा को सुरक्षा प्रदान करने के बदले
की गई माँग प्रतीत होती है न कि अपने स्वामित्व वाली भूमि पर लगान । ऐसा संभव है कि यूरोपीय यात्री ऐसी मांँगों को लगान मानते थे क्योंकि भूमि राजस्व की माँग अक्सर बहुत अधिक होती थी। लेकिन असल में यह न तो लगान था, न ही भूमिकर, बल्कि उपज पर लगने वाला कर था।
(iii) फ्रांसीसी दार्शनिकों पर बर्नियर के विवरण का प्रभाव (Impact on Benier
description on french Philospher)-बर्नियर के विवरणों ने अठारहवीं शताब्दी से
पश्चिमी विचारकों को प्रभावित किया । उदाहरण के लिए, फ्रांसीसी दार्शनिक मॉन्टेस्क्यू ने उसके
वृत्तांत का प्रयोग प्राच्य निरंकुशवाद के सिद्धान्त को विकसित करने में किया, जिसके अनुसार
एशिया (प्राच्य अथवा पूर्व) में शासक अपनी प्रजा के ऊपर निर्बाध प्रभुत्व का उपभोग करते थे, जिसे दासता और गरीबी की स्थितियों में रखा जाता था । इस तर्क का आधार यह था कि
सारी भूमि पर राजा का स्वामित्व होता था तथा निजी संपत्ति अस्तित्व में नहीं थी । इस दृष्टिकोण
के अनुसार राजा और उसके अमीर वर्ग को छोड़ प्रत्येक व्यक्ति मुश्किल से गुजर-बसर कर पाता था।
(iv) बर्नियर का विचार एवं काल मार्क्स का एशियाई देशों में भूमि उत्पादन संबंधी
farell(Karl Marx thoughts about land production in Asian Countries thought of Bernier)-उन्नसवीं शताब्दी में कार्ल मार्क्स ने इस विचार को एशियाई उत्पादन शैली के सिद्धान्त के रूप में और आगे बढ़ाया । उसने यह तर्क दिया कि भारत (तथा अन्य एशियाई देशों) में उपनिवेशवाद से पहले अधिशेष का अधिग्रहण राज्य द्वारा होता था । इससे एक ऐसे समाज का उद्भव हुआ जो बड़ी संख्या में स्वायत्त तथा (आंतरिक रूप से) समतावादी ग्रामीण समुदायों से बना था । इन ग्रामीण समुदायों पर राजकीय दरबार का नियंत्रण होता था और जब तक अधिशेष की आपूर्ति निर्विघ्न रूप से जारी रहती थी, इनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाता था । यह एक निष्क्रिय प्रणाली मानी जाती थी।
(v) बनियर के वर्णन में सत्यता (Truthfulness and Benier descriptions)―
ग्रामीण समाज का यह चित्रण सच्चाई से बहुत दूर था । बल्कि सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी
में ग्रामीण समाज में चारित्रिक रूप से बड़े पैमाने पर सामाजिक और आर्थिक विभेद था । एक
ओर बड़े जमींदार थे जो भूमि पर उच्चाधिकारों का उपभोग करते थे और दूसरी ओर “अस्पृश्य”
भूमिविहीन श्रमिक (बलाहार) इन दोनों के बीच में बड़ा किसान था जो किराए के श्रम का प्रयोग
करता था और माल उत्पादन में संलग्न रहता था। साथ ही अपेक्षाकृत छोटे किसान भी थे जो
मुश्किल से ही निर्वहन लायक उत्पादन कर पाते थे ।
प्रश्न 3. जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी के विचारों की व्याख्या पर चर्चा
कीजिए। [N.C.ER.T. T.B.Q.6]
Discuss Al-Biruni’s understanding of the caste syatem.
उत्तर-जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी द्वारा दिए गए विवरण की व्याख्या
(Explanation of Caste system related description given by Al-Biruni)–
(क) जाति व्यवस्था को फारस के सामाजिक वर्गों के माध्यम से समझने का प्रयास
(Effort to understand caste system through the social classes of Persia or modern tran-अल-बिरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति
व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया । उसने लिखा कि प्राचीन फारस में
चार सामाजिक वर्गों को मान्यता थी-घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा
चिकित्सक, खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और अंत में कृषक तथा शिल्पकार । दूसरे शब्दों
में, वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। इसके
साथ ही, उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
(ख) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकृति (Rejectionof traditionofimpurity)-
जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजूद, अल-बिरूनी ने अपवित्रता
की मान्यता को अस्वीकार किया। उसने लिखा कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी
पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है। सूर्य हवा
को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है। अल-बिरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता । उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सनिहित अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी।
(ग) वर्ण व्यवस्था का उल्लेख (Description of Verna Syatem)-अल-बिरूनी
वर्ण व्यवस्था का इस प्रकार उल्लेख करता है-
1. ब्राह्मण-सबसे ऊंँची जाति ब्राह्मणों की है जिनके विषय में हिन्दुओं के ग्रंथ हमें बताते
हैं कि वे ब्रह्मन् के सिर से उत्पन्न हुए थे और क्योंकि ब्रह्म, प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा
नाम है, और सिर……. शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राह्मण पूरी प्रजाति के
सबसे चुनिंदा भाग हैं । इसी कारण से हिन्दू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं ।
2. क्षत्रिय-अगली जाति क्षत्रियों की है जिनका सृजन, ऐसा कहा जाता है, ब्रह्मन् कंधों और
हाथों से हुआ था । उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है
3. वैश्य-उनके पश्चात वैश्य आते हैं जिनका उद्भव ब्रह्मन् की जंघाओं से हुआ था ।
4. शूद्र-शूद्र, जिनका सृजन उनके चरणों से हुआ था ।
5.टिप्पणी-अंतिम दो वर्षों के बीच अधिक अंतर नहीं है। लेकिन इन वर्गों के बीच भिन्नता
होने पर भी ये एक साथ एक ही शहरों और गाँवों में रहते हैं, समान घरों और आवासों में
मिल-जुल कर ।
(घ) विवरण का सामान्य मूलयांकन (General evaluation of description)-
1. जाति व्यवस्था के विषय में अल-बिरूनी का विवरण उसके नियामक संस्कृत ग्रंथों के
अध्ययन से पूरी तरह से गहनता से प्रभावित था । इन ग्रंथों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति
व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था ।
2. उस समय भारतीय समाज के वास्तविक जीवन में यह व्यवस्था इतनी भी कड़ी नहीं थी।
उदाहरण के लिए, अंत्यज (शाब्दिक रूप में व्यवस्था से परे) नामक श्रेणियों से सामान्यतया यह
अपेक्षा की जाती थी कि वे किसानों और जमींदारों के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध करें । दूसरे शब्दों
में, हालाँकि ये अक्सर सामाजिक प्रताड़ना का शिकार होते थे, फिर भी इन्हें आर्थिक तंत्र में शामिल किया जाता था।
प्रश्न 4. क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केन्द्रों में जीवन शैली की सही
जानकारी प्राप्त करने में इब्न-बतूता का वृत्तांत सहायक है ? अपने उत्तर के कारण दजिए।
Do you think Ibn-Batuta’s account is useful in arriving at an
understanding of life in contemporary urban centres ? Give reasons for
your answer. [N.C.E.R.T. T.B.Q.7]
उत्तर-I. वर्णन (Description)-इब्न बतूता का ऐतिहासिक वर्णन अनेक दृष्टियों से
उपयोगी माना जाता है। उसने भारत के दो फलों नारियल तथा पान के बारे में बड़ा स्पष्ट विवरण
दिया है। उसने भारत के अनेक शहरों दिल्ली सहित कई शहरों के लोगों की आबादी सड़कों,
बाजार और शहर की चकाचौंध चमक आदि के बारे में उपयोगी विवरण दिया है जिसका अध्ययन करना इतिहास के विद्यार्थियों के लिए बड़ा उपयोगी है।
II. दिल्ली (Delhi)-(i) जव चौदहवीं शताब्दी में इन्न बतूता दिल्ली आया था उस समय
तक पूरा उपमहाद्वीप एक ऐसे वैश्विक संचार तंत्र का हिस्सा बन चुका था जो पूर्व में चीन से
लेकर पश्चिम में उत्तर-पश्चिमी अफ्रीका तथा यूरोप तक फैला हुआ था ।
(ii) दिल्ली, जिसे तत्कालीन ग्रंथों में अक्सर देहली नाम से उद्धृत किया गया था, का वर्णन
इब्न बतूता इस प्रकार करता है-
दिल्ली बड़े क्षेत्र में फैला घनी जनसंख्या वाला शहर है-शहर के चारों ओर बनी प्राचीर
(दीवार)अतुलनीय (जिसकी तुलना न की जा सके) है, दीवार की चौड़ाई ग्यारह हाथ (एक हाथ
लगभग 20 इंच के बराबर) है; और इसके भीतर रात्रि के पहरेदार तथा द्वारपालों के कक्ष हैं।
प्राचीरों के अन्दर खाद्यसामग्री, हथियार, बारूद, प्रक्षेपास्त्र तथा घेरेबंदी में काम आने वाली मशीनों के संग्रह के लिए भंडारगृह बने हुए थे-प्राचीर के भीतरी भाग में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शहर के एक से दूसरे छोर तक आते-जाते हैं।
(iii) प्राचीर में खिड़कियाँ बनी हैं जो शहर की ओर खुलती हैं और इन्हीं खिड़कियों के
माध्यम से प्रकाश अन्दर आता है। प्राचीर का निचला भाग पत्थर से बना है जबकि ऊपरी भाग
ईंटों से। इसमें एक दूसरे के पास-पास बनी कई मीनारें हैं।
(iv) इस शहर के अट्ठाईस द्वार हैं जिन्हें दरवाजा कहा जाता है, और इनमें से बदायूँ दरवाजा
सबसे विशाल है; मांडवी दरवाजे के भीतर एक अनाज मंडी है; गुल दरवाजे की बगल में एक
फलों का बगीचा है-इस (देहली शहर) में एक बेहतरीन कब्रगाह है जिसमें बनी कब्रों के ऊपर
गुंबद बनाई गई है और जिन कब्रों पर गुंबद नहीं है उनमें निश्चित रूप से मेहराब है। कब्रगाह
में कंदाकार चमेली तथा जंगली गुलाब जैसे फूल उगाए जाते हैं; और फूल सभी मौसमों में खिले
रहते हैं।
III. इब्नबतूता और भारतीय शहर (Ibn Battuta and Indian Cities)-इब्न बतूता
ने उपमहाद्वीप के शहरों को उन लोगों के लिए व्यापक अवसरों से भरपूर पाया जिनके पास
आवश्यक इच्छा, साधन तथा कौशल था । ये शहर घनी आबादी वाले तथा समृद्ध थे सिवाय
कभी-कभी यूद्धों तथा अभियानों से होने वाले विध्वंस के । इन बतूता के वृत्तांत से ऐसा प्रतीत
होता है कि अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा चमक-दमक वाले और रंगीन बाजार
थे जो विविध प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे । इब्न बतूता दिल्ली को एक बड़ा शहर, विशाल
आबादी वाला तथा भारत में सबसे बड़ा बताता है । दौलताबाद (महाराष्ट्र में) भी कम नहीं था
और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था ।
IV. बाजार (Markets)-बाजार मात्र आर्थिक विनियम के स्थान ही नहीं थे बल्कि ये
सामाजिक तथा आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र भी थे । अधिकांश बाजारों में एक मस्जिद तथा
एक मंदिर होता था और उनमें से कम से कम कुछ में तो नर्तकों, संगीतकारों तथा गायकों के
सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए स्थान भी चिह्नित थे ।
V. दोष (Defects)-हालाँकि इब्न बतूता की शहरों की समृद्धि का वर्णन करने में
अधिक रुचि नहीं थी, इतिहासकारों ने उसके वृत्तांत का प्रयोग यह तर्क देने में किया है कि शहर
अपनी संपत्ति का एक बड़ा भाग गाँवों से अधिशेष के अधिग्रहण से प्राप्त करते थे ।
★★★