bihar board 12 history | विचारक, विश्वास और इमारतें
bihar board 12 history | विचारक, विश्वास और इमारतें
4. सांस्कृतिक विकास
(ईसा पूर्व 600 ईसा संवत 600 तक)
THINKERS, BELIEFS AND BUILDINGS
Cultural Developments (C 600 BCE-600 CE )
महत्वपूर्ण तथ्य एवं घटनायें
● सांची : यह स्थान भोपाल से 20 मील उत्तर-पूर्व की ओर एक पहाड़ी तलहटी में बसा गाँव
है जहाँ अद्भुत स्तूप प्राप्त हुआ है।
● जॉन मार्शल : उन्होंने सांची पर महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा और उसकी प्रति सुल्तान-जहाँ को
भेंट किया।
● पूर्व वैदिक परम्परा की अवधि : ई.पू. 1500 से ई. 1000 तक ।
● व्यक्तिगत यज्ञ की अवधि : ई.पू. 1000 से ई.पू. 500 तक ।
● 64 सम्प्रदाय : समकालीन बौद्ध ग्रंथों के 64 सम्प्रदायों या चिंतन परंपराओं का उल्लेख है।
● त्रिपिटक : इस बौद्ध ग्रंथ में बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन किया गया है।
● विनय पिटक : इस बौद्ध ग्रंथ में संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों
का संग्रह था ।
● नियतिवादी: ऐसी विवारधारा के लोग जो यह विश्वास करते थे कि सब कुछ पूर्व
निर्धारित है।
● लोकायत परंपरा : इनको सामान्य रूप से भौतिकवादी कहा जाता है।
● तीर्थकर : महावीर से पूर्व जैन धर्म के 23 शिक्षक हो चुके थे । इनको तीर्थकर कहा
जाता है।
● पांच महाव्रत : हत्या न करना, चोरी न करना, झूठ न बोलना, ब्रह्मचर्य और धन संग्रह न
करना ।
● अमरावती : आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिला में यह स्थित है और यहाँ से स्तूप मिला है।
● थरोगाथा : यह सुत्तपिटक का हिस्सा है
● चार बौद्ध स्थल : लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर ।
● हर्मिका और यष्टि : स्तूप का सबसे ऊपरी हिस्सा जिसे हर्मिका या यष्टि कहते थे ।
● शालभंजिका : एक सुन्दर स्त्री की मूर्ति होती है जो पेड़ की डाल पकड़े दिखाई गई है।
स्तूप के अलंकरण में इसका प्रयोग हुआ है । यह एक शुभ प्रतीक माना जाता है।
● गर्भगृह : मंदिर का मुख्य भाग जिसमें मूर्तियां रखी जाती हैं।
● ई. पू. छठी शताब्दी : जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय ।
एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
बहुविकल्पीय प्रश्न
(Multiple Choice Questions)
प्रश्न 1. कौन-सा उपनिषद् अथर्ववेद से संबंधित नहीं है ?
(क) प्रश्न उपनिषद्
(ख) मुंडक उपनिषद
(ग) मांडूक्य उपनिषद
(घ) श्वेताश्वर उपनिषद् उत्तर-(घ)
प्रश्न 2. बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक की रचना हुई-
(क) महात्मा बुद्ध के जन्म से पूर्व
(ख) महात्मा बुद्ध के निर्वाण प्राप्त करने के बाद
(ग) महात्मा बुद्ध के जीवन काल में
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं । उत्तर-(ख)
प्रश्न 3. बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग में कौन-सा सिद्धांत नहीं था?
(क) सम्यक् दृष्टि
(ख) सम्यक् वाक्
(ग) सम्यक् चरित्र
(घ) सम्यक् स्मृति । उत्तर-(ख)
प्रश्न 4. बुद्ध के उपदेशों का संकलन है-
(क) वुद्ध चरित्र में
(ख) सुत पिटक में
(ग) अभिधम्म पिटक में
(घ) विनय पिटक में उत्तर-(ख)
प्रश्न 5. महावीर स्वामी ने जैन धर्म के सिद्धांतों में कौन सा सिद्धांत जोड़ा था ?
(क) अहिंसा
(ख) अस्तेय
(ग) ब्रह्मचर्य
(घ) अपरिग्रह । उत्तर-(घ)
प्रश्न 6. भगवान बुन्द्र को किस स्थान पर ज्ञान (बोध) प्राप्त हुआ ? [B.Exam.2011 (A)]
(क) वैशाली
(ख) बोधगया
(ग) सारनाथ
(घ) कपिलवस्तु । उत्तर-(ख)
प्रश्न 7. महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ-
(क) कपिलवस्तु में
(ख) पाटलिपुत्र में
(ग) कुशीनगर में
(घ) गया में । उत्तर-(ग)
प्रश्न 8. ‘कैनन ऑफ श्वेतांबर’ पुस्तक अंतिम रूप से किस स्थान पर संगृहीत
की गई?
(क) बल्लभी
(ख) कन्नौज
(ग) इलाहाबाद
(घ) पाटलिपुत्र । उत्तर-(ग)
प्रश्न 9. जैन आगम लिखे गये हैं-
(क) अवधी में
(ख) पाली में
(ग) प्राकृत में
(घ) मगधी में। उत्तर-(ख)
प्रश्न 10. जैनियों के प्रथम तीर्थकर थे-
(क) पार्श्वनाथ
(ख) ऋषभदेव
(ग) अजितनाथ
(घ) पदमप्रभ । उत्तर-(क)
प्रश्न 11. जैन धर्म के तीर्थकर ऋषभदेव का प्रतीक चिन्ह है-
(क) हाथी
(ख) सर्प
(ग) साँड
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं । उत्तर-(ग)
प्रश्न 12. निम्नलिखित में से कौन-सा जैन साहित्य है ?
(क) प्रबंध कोष
(ख) आराधना कोष
(ग) माध्यमिका सूत्र
(घ) अष्टांग हृदय । उत्तर-(ख)
प्रश्न 13. निम्नलिखित विद्वानों में से कौन-सा सर्वप्रथम भारत आया ?
(क) ह्वेनसांग (Hiuen-Tsang)
(ख) इब्नबतूता (Ibn-Batutah)
(ग) मार्कोपोलो (Marco-Polo)
(घ) फाह्यान (Fe-Hien)। उत्तर-(क)
14. धर्म के बाह्य आडंबर की किस संत ने सर्वाधिक आलोचना की ? [B.M.2009A]
(क) नानक
(ख) तुलसीदास
(ग) एकनाथ
(घ) चैतन्य उत्तर-(क)
15. कनिष्क की राज्यारोहण तिथि है- [B.Exam./B.M.2009A,[B.Exam. 2011 (A)]]
(क) 48 ई.
(ख)78 ई.
(ग) 88 ई.
(घ) 98 ई. उत्तर-(क)
16. कनिष्क ने निम्नांकित धर्म अपनाया- [B.M.2009A]
(क) जैन धर्म
(ख) बौद्ध धर्म
(ग) हिन्दू धर्म
(घ) इस्लाम उत्तर-(ख)
17. साँची स्तूप का निर्माण सर्वप्रथम किसके काल में हुआ ? [B.M. 2009A]
(क) अशोक
(ख) पुष्यमित्र शुंग
(ग) गौतमी पुत्र
(घ) कनिष्क उत्तर-(क)
18. अलवार और नयनार साहित्य की रचना किस भाषा में की गई ? [B.M.2009A]
(क) तेलगू
(ख) तमिल
(ग) कन्नड़
(घ) मलयालम उत्तर-(ख)
19. किस भारतीय शासक को नेपोलियन की संज्ञा दी गई है ?
[B.Exam/B.M.2009A,B.Exam.2013 (A)]
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख) समुद्रगुप्त
(ग) हर्षवर्द्धन
(घ) कनिष्क उत्तर-(ख)
20. साँची के स्तूप में किस ग्रंथ के पात्रों का चित्रण है ? [B.M.2009A]
(क) मेघदूतम्
(ख) जातक
(ग) हर्ष चरित
(घ) मृच्छकटिकम् उत्तर-(ख)
21. ‘रिहला’ नामक ग्रंथ का रचयिता कौन था? [B.M.2009]
(क) इब्नबतूता
(ख) अबुल फजल
(ग) अलबरुणी
(घ) मार्कोपोलो उत्तर-(क)
22. इब्नबतूता किस सुल्तान के शासनकाल में भारत आया था ? (B.M. 2009A]
(क) मुहम्मद बिन तुगलक
(ख) बलबन
(ग) रजिया सुल्तान
(घ) सिकंदर लोदी उत्तर-(क)
23. ‘अलवार’ किस देवता में विश्वास करते थे ? [B.M.2009A]
(क) राम
(ख) कृष्ण
(ग) विष्णु
(घ) शिव उत्तर-(ग)
24. तंजौर के राज राजेश्वर का मंदिर किसने बनवाया ? [B.M.2009A]
(क) कृष्णदेव राय
(ख) राजेन्द्र चोल
(ग) राजराज चोल
(घ) वीर राजेन्द्र उत्तर-(ग)
25. प्रसिद्ध ग्रंथ इन्डिका की रचना किसने की थी ? [B.Exam.2010 (A)]]
(क) कौटिल्य
(ख) मेगास्थनीज
(ग) अलबेरूनी
(घ) इत्सिंग उत्तर-(ख)
26. गुप्तों के काल में कौन चीनी यात्री भारत आया था ? [B.Exam.2010 (A)]
(क) हेन-सांग
(ख) फाह्यान
(ग) इत्सिंग
(घ) वांग-हेन-त्से उत्तर-(ख)
27. भारतीय इतिहास का कौन-सा काल स्वर्ण-काल के नाम से जाना जाता है ?
[B.Exam. 2010 (A)]
(क) मौर्य काल
(ख) गुप्त काल
(ग) मुगल काल
(घ) अंग्रेजों का काल उत्तर-(ख)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. ईसा पूर्व 600 से ईसा संवत् 600 तक ऐतिहासिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
एक उदाहरण भी दीजिए। (Mention the historical sources related with 600
B.C.E.600 CE. Give one example also.)
उत्तर-लगभग ईसा पूर्व 600 से ईसा संवत् 600 तक के प्राचीन भारतीय इतिहास विशेषकर
इस कालांश (Period) के विचारकों, धार्मिक एवं दार्शनिक विश्वासों, परम्पराओं तथा इमारतों,
मूर्तियों एवं सांस्कृतिक विकास आदि को जानने के जिन ऐतिहासिक संसाधनों का हम उपयोग
कर सकते हैं उनमें से हिन्दू धार्मिक ग्रंथ, बौद्ध धार्मिक ग्रंथ, जैन धार्मिक ग्रंथ के अतिरिक्त बड़ी
संख्या में उपलब्ध भौतिक अवशेष या इस काल की इमारतें, मूर्तियाँ, मंदिर, चैत्य, स्तूप आदि हैं।
इस काल के संबंधित स्रोतों में से सांची का स्तूप, भरहूत का स्तूप, बौद्ध त्रिपिटक आदि अच्छे
उदाहरण हैं।
प्रश्न 2. ईसा पूर्व 600 से ईसा संवत् 600 तक के कालांश से सम्बन्धित श्रेष्ठ विचारकों
के नाम लिखिए। (Mention the names of high thinkers related in between the
period 600 BCE to 600 CE.)
उत्तर-(i) ईरान में जरथुस्ट्र (Zarathustra) । (ii) कोंग जि, चीन में । (iii) सुकरात, प्लेटो
एवं अरस्तू, यूनान में। (iv) वर्धमान महावीर एवं गौतम बुद्ध भारत में।
प्रश्न 3. तीन देवी-देवताओं के नाम लिखिए जिनका उल्लेख ऋग्वेद में 1000 ई. से
1500 ई. पू. के बीच किया गया है।
(Write the names of three dieties mention in Rigveda between 1500 B.C.E.-1000 AD.)
उत्तर-(1) अग्नि, (2) इंद्र तथा (3) सोम ।
प्रश्न 4. आप वैदिक संस्कृति के बारे में क्या जानते हैं ?
(What do you know about Vedic Sanskriti?)
उत्तर-वैदिक साहित्य विशेषकर चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद जिस
संस्कृत भाषा में लिखे (या रचे) गए थे वह वैदिक संस्कृति कहलाती है। यह संस्कृत उस संस्कृत
से कुछ कठिन एवं भिन्न थी जिसका प्रयोग हम आजकल करते हैं। वस्तुत: वेदों को ईश्वरीय
ज्ञान के तुल्य माना जाता था तथा यह शुरू में मौखिक रूप में ही ब्राह्मण परिवारों से जुड़े लोगों
तथा कुछ अन्य विशिष्ट परिवारजनों को ही पढ़ाया-सुनाया जाता था। महाकाव्य काल में रामायण
तथा महाभारत की रचना के लिए जिस संस्कृत का प्रयोग किया गया वह वैदिक संस्कृत से
अधिक सरल थी। इसलिए वह संस्कृत और अधिक लोगों में लोकप्रिय हुई थी।
प्रश्न 5. भाग्यवादियों तथा भौतिकवादियों के प्रमुख भेदों का उल्लेख कीजिए।
Mention major differences between Fatalists and Materialists.
उत्तर-भाग्यवादी उनको कहा जाता है जो ये विश्वास करते कि सब कुछ निर्धारित है जो
जिसके भाग्य में है वह उसे समय आने पर अवश्य मिलेगा। वे ईश्वर को भाग्यविधाता मानते
हैं। दूसरी ओर भौतिकवादी उन लोगों को कहा जाता है जो आँखों के समक्ष दुनिया को ही यथार्थ
मानते हैं वे खाओ-पियो और मौज उड़ाओ की संस्कृति में विश्वास रखते हैं। भारत जैसे देश
में अधिकांश लोग भाग्यवादी हैं जबकि पश्चिमी देशों में ज्यादातर लोग भौतिकवादी होते हैं।
प्रश्न 6. जैन धार्मिक ग्रंथों के विद्वानों द्वारा प्रयोग की गई तीन भाषाओं के नाम
fafar I (Write the names of three languages used by scholars of Jain text.)
उत्तर-(i) प्राकृत (ii) संस्कृत (iii) तमिल।
प्रश्न 7. उन देशों एवं क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ घर बुद्ध का संदेश फैला।
(Write the names of regions and countries where message of Buddha
spread.)
उत्तर-बुद्ध का संदेश भारत से भूटान, वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कोरिया, जापान,
श्रीलंका, म्यानमार, थाइलैंड और इंडोनेशिया, चीन आदि में फैला।
प्रश्न 8. किन्हीं चार जगहों के नाम लिखिए जहां पर इस उप-महाद्वीप में स्तूप मिलते हैं?
(Mention names of any four places where we find Stupas in this sub continent.)
उत्तर-(i) साँची (मध्य प्रदेश), (ii) मरुद (मध्य प्रदेश), (iii) अमरावती (आंध्र प्रदेश),
(iv) शाह-जी-की-डेरी (पेशावर में) अब पाकिस्तान में है।
प्रश्न 9. वैदिक काल में देवताओं की उपासना रीति क्या थी?
(What was the method of worship of dieties in vaidie age.)
उत्तर-उपासना रीति थी-स्तुति पाठ करना और यज्ञ बलि (चढ़ावा) अर्पित करना।
ऋग्वैदिक काल में स्तुति पाठ पर अधिक जोर दिया जाता था । स्तुतिपाठ सामूहिक भी होता था
और व्यक्तिगत तौर पर अलग-अलग भी। इन्द्र और अग्नि समस्त जन द्वारा दी गई बलि ग्रहण
करने के लिए बुलाए जाते थे।
प्रश्न 10. तीर्थकर का क्या अर्थ है ? (What is meant by Tirthanker’?)
उत्तर-महावीर से पूर्व जैन धर्म के जो 23 धर्मगुरु हुए थे, उन्हें तीर्थकर के नाम से जाना
जाता है। महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थक सर्वाधिक प्रसिद्ध गुरु माने जाते हैं।
प्रश्न 11. ‘निर्वाण’ शब्द से क्या तात्पर्य है ?
(What is meant by the word ‘Nirwan’?)
उत्तर-बौद्ध धर्म में ‘निर्वाण’ शब्द का अर्थ है-मुक्ति पाना, मोक्ष या जीवन-मरण के बन्धनों
से छुटकारा पाना । बौद्ध धर्म में मोक्ष या निर्वाण प्राप्त करना जीवन का मुख्य उद्देश्य माना जाता
है।
प्रश्न 12. ‘जिन’ शब्द से आप क्या समझते हैं?
(What do you understand by the word Pin’?)
उत्तर-जैन पौराणिक गाथाओं में ‘जिन’ शब्द का अर्थ है-महान विजयी, महावीर स्वामी
को ‘जिन’ का नाम दिया गया है, क्योंकि उन्होंने सुख और दुःख पर विजय प्राप्त कर ली थी।
प्रश्न 13. ‘अहिंसा’ शब्द से आप क्या समझते हैं ?
(What do you mean by the word ‘Ahimsa’?)
उत्तर-किसी भी जीवित पशु-पक्षी एवं मानव को कोई भारी हानि न पहुँचाना अहिंसा
कहलाता है। जैन मत के अनुसार तो निर्जीव पदार्थ को आहत करना अथवा कष्ट पहुँचाना भी
हिंसा और कष्ट न पहुँचाना अहिंसा है। जैन एवं बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों में अहिंसा का बहुत अधिक महत्त्व है।
प्रश्न 14. ‘संघ नाम पद का आशय स्पष्ट करें।
(Clarify the meaning of the word ‘Sangh’.)
उत्तर-बौद्धों के धार्मिक संगठन को ‘संघ’ के नाम से जाना जाता है। बौद्ध संघों में भिक्षु
और भिक्षुणियाँ दोनों रहते थे, परन्तु उन्हें आचरण में शुद्धता लानी पड़ती थी। उन्हें विलासमय
जीवन से दूर रहना पड़ता था और आजीवन विवाह नहीं करना होता था।
प्रश्न 15. ‘धर्म’ से क्या अभिप्राय है?
(What do you mean by ‘Religion’?) )
उत्तर-धर्म या धभ्य एक ही शब्द के पर्यायवाची हैं। जो धर्म आर्यों के लिए अर्थ रखता
था, वही धम्म का अर्थ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए है अर्थात् पूजा-पाठ करना, मूर्तियों पर
जल चढ़ाना, हवन, यज्ञादि करना, ईश स्तुति करना, किसी जीव को कष्ट न पहुँचाना, दूसरे
धर्मों को हानि न पहुँचाना, सबकी प्रलाई करना आदि।
प्रश्न 16. मगध नये-नये धार्मिक आन्दोलनों का केन्द्र क्यों हुआ?
(Why Magadha had become the centreofnew Religious movements?)
उत्तर-(i) उन दिनों मगध राजनैतिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। अत: यहाँ के शासक
जिस धर्म के अनुयायी थे, उस धर्म का प्रचार राज्य भर में होने लगा।
(ii) केवल यही नहीं, मगध उन दिनों सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का
भी केन्द्र धा। वहाँ से धर्म प्रचार करके उसे आगे बढ़ाना सुगम था, अतः इस क्षेत्र (मगध) में
धार्मिक आन्दोलनों के केन्द्र बने।
प्रश्न 17. आप ‘जातक के सम्बन्ध में क्या जानते हैं?
(What do you know about Jatak ?)
उत्तर-जातक कथाओं में महात्मा गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मो की कथाएँ संकलित हैं। ये
कथाएँ पाली भाषा में हैं। इनमें तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक चित्रण मिलते हैं।
जातकों का बौद्ध साहित्य में विशेष महत्त्व है। इन कहानियों से हमें पता चलता है कि महात्मा
बुद्ध जाति प्रथा एवं ब्राह्मणों को अच्छा नहीं मानते थे। काशी, कौशल तथा मगध राज्यों की प्रसिद्ध घटनाओं का विवरण भी जातक कथाओं में मिलता है। जातक कथाएँ अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व रखती हैं।
प्रश्न 18. बौद्ध और जैन सम्प्रदायों को धार्मिक सुधार आन्दोलन क्यों कहा जाता है ?
(Why are sects of the Buddhism and Jainism called the religious reforms
movement?)
उत्तर-जैन तथा बौद्ध मत के प्रमुख सिद्धान्तों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि
महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध किसी नये धर्म के प्रवर्तक नहीं थे । वे तो सुधारक थे, जो हिन्दू
धर्म की त्रूटियों को दूर करना चाहते थे। हिन्दू धर्म में उन दिनों अनेक आडम्बर, जातिवाद,
छुआछूत, ऊँच-नीच की भावना विद्यमान थी। उसमें धार्मिक अनुष्ठान, कर्मकाण्ड एवं पशु बलि
की प्रथा थी। जैन धर्म और बौद्ध धर्म ने उसमें सुधार लाने के अथक प्रयास किये। ये धर्म,
हिन्दू धर्म के सामने चुनौती बनकर खड़े हो गये। इन दोनों में आडम्बर, कर्मकाण्ड, जातिवाद,
छुआछूत, ऊँच-नीच और हिंसा की भावना नहीं थी। अतः इन दोनों सम्प्रदायों को धार्मिक
सुधार आन्दोलन कहा जाता है।
प्रश्न 19. प्राचीन काल में मध्य एशिया में भारत द्वारा संपर्क स्थापित करने का धार्मिक
जीवन पर क्या प्रमुख प्रभाव पड़ा।
What was the main impact of India’s relation in ancient period with centre Asia in the field of Religion?
उत्तर-धार्मिक जीवन सम्बन्धी योगदान (Contribution towards religious life):
कुछ विदेशी शासकों ने हिन्दू धर्म ग्रहण किया। कुछ ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। बौद्ध
धर्म को अपने अनुकूल ढालने के उद्देश्य से कनिष्क के शासनकाल में महायान शाखा बनाई गई,
जिसमें बौद्ध लोग महात्मा बुद्ध की मूर्ति पूजा करते थे। निर्वाण प्राप्ति के स्थान पर अब स्वर्ग
प्राप्ति के लिए साधना करना जरूरी समझा गया। पाली भाषा के स्थान पर इस समय संस्कृत
भाषा का प्रचलत हो गया था। अपनी सरलता एवं लोकप्रियता के कारण बौद्ध-धर्म चीन, जापान
और मध्य एशिया में फैलने लगा।
प्रश्न 20. संक्षेप में सम्राट कनिष्ककालीन बौद्ध सभा का उल्लेख कीजिए।
(Briefly mention the Buddhist Council held during the period of
Kanishka.)
उत्तर-बौद्ध सभा (Buddhist Council) : कालांतर में बौद्ध धर्म में कई विकार आ
गये थे। भिक्षुओं में भष्टाचार बढ़ गया था। अतः बौद्ध धर्म अवनति की ओर बढ़ रहा था।
कनिष्क ने इन दोषों को दूर करने के लिए कश्मीर में ‘कुण्डल वन’ नामक स्थान पर 500 भिक्षुओं
की सभा का आयोजन किया। इस सभा में सभापतित्व का आसन वसुमित्र और उपसभापतित्व
का आसन अश्वघोष ने ग्रहण किया। इस सभा में बौद्ध धर्म के आंतरिक मतभेदों को दूर करने
का प्रयास किया गया । बौद्ध धर्म के त्रिपिटक पर एक भाष्य लिखा गया परन्तु यह कहना पड़ेगा
कि इस सभा का उद्देश्य पूरा न हो सका। बौद्ध धर्म के हीनयान और महायान अपने-अपने ढंग
से धर्म का पालन करते रहे। बौद्ध लोग मूर्तिपूजा आदि नये-नये धार्मिक कर्म-काण्डों में फंँसते
गये।
प्रश्न 21. ‘चैत्य’ क्या है? स्पष्ट करें।
What is ‘Chaitya’? Clarify.
उत्तर-बौद्ध मन्दिरों को ‘चैत्य’ के नाम से जाना जाता था। काले नामक स्थान पर
एक विशाल चैत्य (बौद्ध मन्दिर) है। इस विशाल चैत्य के दोनों ओर सजे हुए स्तम्भों की पंक्तियाँ हैं।
प्रश्न 22. ‘विहार’ से आप क्या समझते हैं ?
What do you understand by the term “Vihar’?
उत्तर-बौद्ध मठों को विहार कहा जाता था। विहारों में बौद्ध भिक्षु वर्षा ऋतु में रहते थे।
नासिक (महाराष्ट्र राज्य) में ऐसे तीन विहार मिले हैं।
प्रश्न 23. ‘स्तूप’ शब्द का क्या अर्थ है ?
What is meaning of the word ‘Stupa’?
उत्तर-महात्मा गौतम बुद्ध की अस्थियों पर अर्द्ध गोलाकार रूप में बने भवनों को
स्तूप के नाम से जाना जाता है। साँची और अमरावती के स्तूप विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 24. दक्षिण के चालुक्यों के राज्य में धार्मिक स्थिति की दो प्रमुख विशेषताएँ
fafati (Write two main features of religious position in Chalukya’s state of
Deccan.)
उत्तर-चालुक्य राजा हिन्दू धर्म के अनुयायी थे, परन्तु उनमें धार्मिक सहनशीलता की भावना
थी। वे बौद्ध तथा जैन विद्वानों का भी आदर करते थे तथा उन्हें आर्थिक मदद देते थे। चालुक्य
राजाओं के शासनकाल में हिन्दू धर्म बहुत उन्नति पर था। बौद्ध-धर्म का पतन हो रहा था किन्तु
हिन्दू धर्म पर्याप्त उन्नति पर था।
प्रश्न 25. दो तर्क देकर बताइए कि गुप्तकाल हिन्दू धर्म का पुनर्डत्थान का काल था।
(Give two arguments to prove that Gupta period was the period of rebirth
of Hindusim.)
उत्तर-इस काल में हिन्दू धर्म उन्नति के शिखर पर था। नये मन्दिरों विशेषकर वैष्णव मंदिरों
तथा मूर्तियों का निर्माण कराया गया। यज्ञ आदि धार्मिक अनुष्ठान पुनः होने लगे थे। सभी गुप्त
सम्राट एवं शासक हिन्दू धर्मावलंबी थे। उन्होंने ब्राह्मणों को खूब दान दिये। इस काल में
अवतारवाद की अवधारणा को बल मिला।
प्रश्न 26. ‘अवतार’ शब्द को परिभाषित कीजिए।
(Define the word ‘Avtar’.)
उत्तर-जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ जाते हैं और धर्म और पुण्य कर्म समाप्त हो जाते हैं
अर्थात् पृथ्वी पर राक्षसी प्रवृत्तियों का बोलबाला हो जाता है तो ईश्वर अपना अवतार (सत्कर्मों
द्वारा समाज को शिक्षा देने वाला तथा समाज को भलाई की और लाने वाला) भेजता है-राम,
कृष्ण, ईसा मसीह, हजरत मोहम्मद के रूप में। यही पैगम्बर (अवतार) अपने सत्कर्मों से समाज
का मार्गदर्शन कर उद्धार करते हैं। कहा गया है-
“यदा-यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानम् धर्मस्य, तदात्मानम् सृजाम्यहम् ।।
परित्राणाय साधुनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे।”
प्रश्न 27. गुप्त काल में ब्राह्मणों की सर्वोच्चता के दो कारण लिखें।
Write two causes of Brahmin’s superiority in Gupta Period.
उत्तर-(i) गुप्त काल के शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे । ब्राह्मण प्राचीन काल से ही विद्या
देने, पढ़ने-पढ़ाने, विवाह संस्कार, जन्म-मृत्यु संस्कार, धार्मिक-संस्कार यज्ञ, हवन, आदि कार्य
करते थे, अत: गुप्तकालीन शासकों ने भी ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया।
(ii) गुप्त काल में अनेक धार्मिक रस्में करने में ब्राह्मणों को बड़ी मात्रा में धन प्राप्त होता
था, उससे उनकी आर्थिक स्थिति में पर्याप्त सुधार आया ।
प्रश्न 28. एन. बी. पी. फेज या ‘उत्तरी काली पॉलिशदार अवस्था’ से आप क्या समझते
हैं ? (What do you know about N.B.P.W.or ‘Northern Black Polished Ware
condition’?)
उत्तर-एन. बी. पी. अवस्था या उत्तरी काली पालिशदार अवस्था (Northern Black
Polished Ware) का प्रारंभ पुरातत्त्व की दृष्टि से छठी शताब्दी ई.पू. में हुआ था। जैसा कि
उत्तरी काला पालिशदार अवस्था’ नाम से स्पष्ट है कि यह एक प्रकार का चिकना, पालिश किया
हुआ चमकदार बर्तन होता है। धनी लोगों द्वारा इसमें भोजन किया जाता था। एन. बी. पी. अवस्था में धातु मुद्रा का चलन हो गया था। भारत में दूसरे नगरवाद का जन्म ए, बी. पी. अवस्था के साथ ही हुआ।
प्रश्न 29. पंच मार्क्ड या आहत मुद्राएंँ क्या हैं ?
(What is punched marked orAhat (engraved) coins?)
उत्तर-ये वे मुद्राएँ थीं जिन पर कोई न कोई चित्र अकित होता था। कई बार इन पर शासक
की आकृति, उनके वंश का निशान और कई बार तिथि भी अंकित होती थी। ऐसी पंच मार्वड
या आहत-मुद्राएँ इतिहास को जानने में बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई हैं।
प्रश्न 30. ‘ग्रामिक’ पद का आशय क्या है ?
(What is meant by the word Gramic?)
उत्तर-बुद्ध-काल में ग्राम प्रधान को ‘ग्रामिक’ कहा जाता था। कई स्थानों पर उसे ग्राम
मालिका भी कहा जाता था। वह गाँव का मुखिया होता था और गाँव में होने वाले झगड़ों का
फैसला करता था। उसकी नियुक्ति राजा द्वारा की जाती थी।
प्रश्न 31. ‘गृहपति’ से आप क्या समझते हैं ?
(What do you understand by ‘Grahpati’?)
उत्तर-गौतम बुद्ध के काल में घर के मालिक को ‘गृहपति’ कहा जाता था। वह अपने
परिवार का मुखिया होता था। वह परिवार की सभी समस्याओं का समाधान करता था।
प्रश्न 32. छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ई.पू. की अवधि के नगरीकरण को
भारत की द्वितीय नगरीकरण क्यों कहा जाता है?
(Why is the urbanisation from 600 B.C. to 400 B.C. Called the Und
urbanisation of India?)
उत्तर-भारत का पहला नगरीकरण हड़प्पा की संस्कृति के साथ प्रारम्भ हुआ और 1500
ई.पू. के लगभग आर्यों द्वारा देश में प्रमुखता प्राप्ति के साथ ही समाप्त हो गया। आर्य लोग ग्रामीण थे। जब हड़प्पा संस्कृति के नगर एक-एक करके नष्ट हो गये तो फिर अगले 1500 वर्ष तक नगर विलुप्त रहे।
ईसा की छठी शताब्दी में बौद्ध काल में पुनः नगरों का श्रीगणेश हुआ। अत: छठी शताब्दी
ई.पू. से चौथी शताब्दी ई.पू. तक बौद्ध काल को भारत का अद्वितीय नगरीकरण काल कहा जाता है।
प्रश्न 33. ‘महापात्र’ पद का आशय स्पष्ट कीजिए।
(Clarify the meaning of the word ‘Mahapatra’?)
उत्तर-महात्मा गौतम बुद्ध के जमाने में राजा की सहायता के लिए अनेक छोटे-बड़े
अधिकारी होते थे। इनमें से उच्च अधिकारियों को महापात्र कहते थे।
प्रश्न 34. ‘बलिसायक’ शब्द के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What doyouknow about the word ‘Balisadhak’?)
उत्तर-वैदिक काल में ‘बलि’ उस धनराशि को कहा जाता था जिसे कबीले वाले स्वेच्छा
से अपने मुखिया को देते थे । बुद्ध काल में यह धनराशि सभी के लिए अनिवार्य कर दी गई।
इस धनराशिं को एकत्र करने वाले को ‘बलिसाधक’ कहा जाता था ।
प्रश्न 35. बुद्धकालीन शासक अपना प्रशासन किस प्रकार चलाते थे ?
(How did the King run administration in Buddha period ?)
उत्तर-बुद्धकालीन राज्यों में राजा प्रमुख होता था। उसके प्रमुख कार्य शान्ति व्यवस्था बनाये
रखना और विजयों द्वारा अपने राज्य का विस्तार करना होता था । शासन को सुचारु रूप से चलाने के उद्देश्य से वह राज्य के सभी छोटे-बड़े अधिकारियों की सहायता लेता था। राजा अपनी स्थायी सेना रखता था, जिसका वेतन राजकीय कोष से दिया जाता था। राज्य की आय के प्रमुख
साधन थे-भूराजस्व और व्यापारियों पर लगाया गया कर (टैक्स) ।
प्रश्न 36. बुद्धकालीन गणतंत्रीय व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the republic’s administration of Buddha period ?)
उत्तर-बुद्धकालीन भारत में पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार के कुछ क्षेत्रों में गणतंत्रीय व्यवस्था
थी । इनके शासन पर सभा या परिषद का नियंत्रण होता था । इन गणंतत्रों की अपनी-अपनी
सेना होती थी । बड़े-बड़े कबीलों के लोग राजा होते थे, जो उनके गणतंत्र में स्थापित सभा के
सदस्य होते थे। कुछ ऐसी भी सेनाएँ होती थीं, जिनमें ब्राह्मणों को नहीं रखा जाता था । शासन
में प्रायः गुलामों और मजदूरों का कोई स्थान नहीं होता था ।
प्रश्न 37. विवेचन करें कि ईसा पूर्व की छठी सदी से चौथी सदी तक नगरीकरण के
कौन-कौन से कारण थे?
Describe which were the causes of urbanisation from 600 B.C.to 400
B.C.?
उत्तर-(i) बुद्ध काल में बड़े-बड़े राज्य अस्तित्व में आ चुके थे इस प्रकार उनकी राजधानियाँ
देखते ही देखते बड़े नगरों में परिवर्तित हो गई।
(ii) सिक्कों के आविष्कार ने जो व्यापार को प्रोत्साहन दिया उसके कारण भी अनेक
व्यापारिक केन्द्र, बड़े-बड़े नगरों में बदल गये । ये नगर प्रायः नदियों के किनारे बसे होते थे और
दूसरे नगरों से सम्बन्धित होते थे । अतः व्यापार को भी नगरीयकरण ने प्रोत्साहन दिया ।
(iii) कुछ स्थान औद्योगिक इकाइयों के रूप में भी उभरे और देखते-देखते ही नगरों में
परिवर्तित होते चले गये ।
प्रश्न 38. ‘ब्रह्मदेव अधिकार’ से आप क्या समझते हैं
What do you know about ‘Brahmdev Adhikar’?
उत्तर-प्राचीन काल में ब्राह्मणों को दिये जाने वाले ‘भूमि-अनुदान’ ब्रह्मदेव अधिकार कहलाते
थे। इन भूमि अनुदानों ने कृषि क्षेत्र को पर्याप्त विस्तृत कर दिया था और इससे समाज में ब्राह्मणों
के आदर में पर्याप्त वृद्धि हुई ।
इन भूमि अनुदानों से यह लाभ हुआ कि दूर स्थित स्थानों पर जो बेकार भूमि पड़ी थी उस
पर ब्राह्मणों द्वारा कबाइली लोगों से कृषि कार्य कराया जाता था ।
प्रश्न 39. ‘शिखर’ पद का क्या आशय है ?
(What do you mean by the word ‘Shikhar’?)
उत्तर-दक्षिणी भारत के मन्दिरों की मीनार जो पर्वत चोटियों की भाँति ऊपर की ओर संकरी
होती जाती हैं अर्थात् ऊपर की ओर उत्तरोत्तर गोलाई कम होती जाती है, ‘शिखर’ कहलाती है।
ऐसे शिखर दक्षिणी भारत के मन्दिरों का एक विशेष गुण या विशेषता है।
प्रश्न 40. ‘काम’ का क्या अर्थ है ? स्पष्ट करें।
(What is meant by Kama’Clanty.)
उत्तर-‘काम’ का अर्थ है शारीरिक सुख भोग । स्त्री-पुरुष के समागम को अथवा
रति-क्रिया को ‘काम’ कहते हैं । शारीरिक सुख-भोग का विवेचन ‘कामशास्त्र’ में किया
गया है।
प्रश्न 41. ‘धर्म’ से आप क्या समझते हैं ?
(What do you understand by ‘Dharma’?)
उत्तर-‘धर्म’ का अर्थ है-सामाजिक नियम व्यवस्था, यहाँ धर्म का अर्थ पूजा-अर्चना से नहीं
है। राज्य और समाज को सुव्यवस्थित बनाने वाली विधि (कानून) धर्मशास्त्र का विषय है ।
प्रश्न 42. ‘मोक्ष’ से आप क्या समझते हैं ?
(What do you understand by ‘Moksa’?)
उत्तर-‘मोक्ष’ मुख्यतः दर्शन सम्बन्धी ग्रंथों का विषय है, जिसका अर्थ है-जन्म और मृत्यु
के चक्र से उद्धार अर्थात् जन्म और मृत्यु के चक्र (आवागमन) से मुक्ति (छुटकारा) । मोक्ष
प्राप्ति का उपदेश गौतम बुद्ध ने भी दिया था, परन्तु बाद में कई ब्राह्मण-पंथी दार्शनिकों ने इसका
भिन्न अर्थ बताकर मार्ग प्रशस्त किया ।
प्रश्न 43. ‘आसन’ पद से आपका क्या आशय है ?
(What do you mean by the word ‘Ashram’?)
उत्तर-मोक्ष प्राप्ति के लिए कई प्रकार के ‘आसन’ अर्थात् विभिन्न स्थिति में शारीरिक
व्यायाम तथा प्राणायाम अर्थात् श्वाँस के व्यायाम सुझाए गये हैं ऐसा माना जाता है कि इन
साधनाओं से चित्त का सांसारिक लगाव दूर हो जाता है और उसमें एकाग्रता आती है ।
प्रश्न 44. ‘कर्म’ का क्या अर्थ है ?
(What is meant by ‘Karma’?)
उत्तर-‘कर्म’ का अर्थ है-“मानव को अपने पूर्व जन्म में किये गये कार्यों का परिणाम
भुगतना पड़ता है ।” दूसरे शब्दों में मनुष्य जो सुख-दुःख भोगता है, वह सांसारिक कारणों से
नहीं, बल्कि ऐसे कारणों से भोगता है, जो न तो उसकी जानकारी में हैं और न उसके वश में
ही हैं।
प्रश्न 45. ‘आदर्शवादी’ से आप क्या समझते हैं ? Terror
(What do you understand by Adarshwadi’?) Roti
उत्तर-आदर्शवादी का अर्थ है-जब कोई व्यक्ति अपने जीवन के साथ कुछ आस्थाओं या
आदर्शों को जोड़ लेता है और उन्हें प्राप्त करने के लिए अपने मार्ग पर अडिग रहता है तथा हर
प्रकार की कठिनाइयों का मुकाबला करता है, ऐसे व्यक्ति को आदर्शवादी कहते हैं ।
प्रश्न 46. दर्शन के सम्प्रदाय कितने और कौन-कौन से हैं ?
(How many and which are the sampradayas of philosophy?)
उत्तर-दर्शन के छः सम्प्रदाय हैं-
(1) सांख्य (2) योग (3) न्याय (4) वैशेषिक (5) मीमांसा (6) वेदान्त । “
प्रश्न 47. भौतिकवादी का क्या अर्थ है ?
(What is meant by ‘Bhotikwadi’ or (Materialist)?)
उत्तर-भौतिकवादी दर्शन में संसार के साथ गहरे लगाव को महत्त्व दिया गया है तथा परलोक
में अविश्वास उत्पन्न किया गया है। चार्वाक के भौतिकवाद में अलौकिक शक्ति का अस्तित्व नहीं है । वह उन्हीं की सत्ता अथवा यथार्थता को स्वीकार करता है जिन्हें मानव की बुद्धि और इन्द्रियों द्वारा अनुभव किया जा सके ।
प्रश्न 48. बर्मा (म्यानमार) और श्रीलंका ने बौद्ध धर्म के लिए क्या किया ?
(What have been done by Burma (Myanmar) and Sri Lanka for Buddhism ?)
उत्तर-(i) बर्मा के लोगों ने बौद्ध के थेरवाद को विकसित किया और महात्मा बुद्ध की प्रार्थना
के लिए अनेक मन्दिर और मूर्तियाँ बनवाई।
(ii) श्रीलंका और बर्मा के बौद्धों ने प्रचुर मात्रा में बौद्ध साहित्य की रचना की, जो भारत
में दुर्लभ था ।
(iii) श्रीलंका में सारे पाली मूल ग्रन्थ एकत्र किये गये और उन पर टीकाएँ लिखी गईं।
प्रश्न 49. कनिष्क के शासनकाल में धर्म प्रचारक कहाँ-कहाँ और क्यों गये ?
(Where and why have gone the religious preachers in the period of
Kanishka?)
उत्तर-कनिष्क के शासनकाल में भारतीय धर्म प्रचारक चीन, मध्य-एशिया और अफगानिस्तान
जाकर बौद्ध धर्म का उपदेश देते थे । चीन से बौद्ध धर्म कोरिया और जापान पहुँचा ।
प्रश्न 50. किन्हीं दो धार्मिक उदाहरणों से सिद्ध करें कि मध्य एशिया के साथ भारत
के घनिष्ठ सम्बन्ध थे । (Prove, giving two religious examples that India had close and deep relations with CentreAsia?)
उत्तर-(i) विश्व की सबसे बड़ी बुद्ध की मूर्ति अफगानिस्तान स्थित बामियान (Bomiyan)
में मिली । यहाँ पर अनेक प्राकृतिक तथा कृत्रिम गुफाएँ हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु रहते थे । बेग्राम
(Begrama) स्थान पर भी विहार तथा स्तूप मिले हैं।
(ii) रूस के मध्य एशियाई क्षेत्रों में कई स्थानों पर विहार और अभिलेख प्रकाश में आये
हैं। भारतीय भाषा की लिखी कुछ पाण्डुलिपियाँ भी मिली हैं ।
प्रश्न 51. बोरोबुदूर के बौद्ध-मन्दिर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the Boddha temple of Borobudur?)
अथवा /Or
विदेश में पाये जाने वाले उन भवनों का नाम लिखें जो भारतीय संस्कृति के विदेश
में फैलाव को सिद्ध करते हैं?
(Write the names of those building which prove that the ancient culture
had spread in the foreign countries?)
उत्तर-बोरोबुदूर के मन्दिर की मूर्तियाँ और नक्काशी इतनी सुन्दर है कि इसे विश्व का.
आठवाँ आश्चर्य कहा जाता है । एक लेखक के अनुसार बोरोबुदूर का स्तूप संसार का सबसे
आश्चर्यजनक स्तूप है । उसकी मूर्तियाँ तथा वास्तुकला भारतीय संस्कृति के फैलाव के सुन्दरतम
उदाहरण हैं।
प्रश्न 52. अंगकोरवाट मन्दिर के विषय में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
(Write a short note on Angkorwat temple.)
उत्तर-भारत का एशियाई देशों से सांस्कृतिक सम्पर्क (The Temple of Angkorwat)-
कम्बोडिया की राजधानी अंगकोरवाट में 12वीं शताब्दी में सूर्य वर्मन द्वितीय ने एक भव्य मन्दिर
का निर्माण कराया । इसमें कई बरामदें, मीनारें और गुम्बद बने हुये हैं । इस मन्दिर के चारों ओर
21/2 मील लम्बी और 650 फुट चौड़ी नहर थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. आर. सी. मजूमदार
के अनुसार-“हर दृष्टि से अंगकोरवाट संसार का एक आश्चर्य है।”
प्रश्न 53. तंत्रवाद की दो विशेषताएँ लिखें।
(Write down the two characteristies of ‘Tantravad’.)
उत्तर-(i) तंत्रवाद में जादू-टोने आदि पर बहुत बल दिया जाता था । इस अवस्था में रोगियों
का इलाज भी तंत्रवादियों के हाथ में आ गया था ।
(ii) कोई प्राकृतिक आपत्ति न आ पड़े, इसलिए लोग तंत्रवादियों के बहकावे में आ जाते थे।
(iii) तंत्रवाद के द्वार स्त्रियों और शूद्रों के लिए खुले थे ।
(iv) अंध-विश्वासी लोग तंत्रवादियों के जाल में फंसकर धन व पुत्र प्राप्ति के लिए व्यर्थ
में व्यय करते थे।
(v) तंत्रवाद का प्रभाव विशेष रूप से अशिक्षित वर्ग पर पड़ा ।
(vi) तंत्रवादी प्राकृतिक शक्तियों जैसे वर्षा कराना, बाढ़ लाना या बचाव करना, किसी गीली
चीज को सूखा करना आदि के बहकावे से जनसाधारण को अपनी ओर आकर्षित करते थे ।
(vii) तंत्रवादियों ने जैन धर्म, बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म को भी अपनी ओर आकर्षित किया।
साँची स्तूप से संबंधित प्रश्न
(Questions related with Sanchi Stupa)
प्रश्न 54. साँची के स्तूप का निर्माण किसने कराया ?
(Who constructed the Sanchi Stupa?)
उत्तर-साँची के स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था ।
प्रश्न 55. साँची स्मारक की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ लिखिए ।
(Write main features of Sanchi memorials.)
उत्तर-(i) इसका गुंबज अर्द्धगोलाकार है । (ii) इसके चारों ओर परिक्रमा का एक रास्ता है।
(iii) इसका तोरण द्वार कलाकृतियों से सज्जित है । (iv) यह पत्थर की एक बड़ी बाड़ से घिरा
हुआ है।
प्रश्न 56. इसके निर्माण में कौन-सी सामग्री का प्रयोग किया गया है ?
(What type of material has been used in it constructions ?)
उत्तर-स्तूप का बाहरी धरातल ईटों का बना हुआ है। इस पर प्लास्टर की एक पतली तह
चढ़ी हुई है।
प्रश्न 57. क्या इस स्मारक के साथ कोई पौराणिक कथा जुड़ी है ?
(Is there any traditional story related with this historical memorial ?)
उत्तर-यह भगवान बुद्ध के समय की जातक कथाओं से जुड़ी मूर्तियों से अलंकृत है ।
प्रश्न 58. इस स्मारक का संरक्षण किस प्रकार किया जाता है ?
(How is this memorial protected?)
उत्तर-मध्यप्रदेश सरकार का पुरातत्त्व विभाग इस मंदिर का संरक्षण करता है ।
प्रश्न 59. इस स्मारक के संरक्षण की आवयकता क्यों है ?
(Why is need of protection of this memorial ?)
उत्तर-साँची स्तूप भारत की एक ऐतिहासिक धरोहर है । दूर-दूर से भारतीय एवं विदेशी
पर्यटक इसे देखने आते हैं । इसके अच्छे रख-रखाव और प्राचीनता के कारण इसके संरक्षण की
आवश्यकता है।
प्रश्न 60. पिटक कितने हैं ? उनके नाम और विशेषताएँ लिखिए । [B.M. 2009A]
(How many Pitaks are there? Write their names and features.)
उत्तर-पिटक-तीन हैं-सुतपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक । इससे इन्हें त्रिपिटक के
नाम से पुकारा जाता है । गौतम बुद्ध के गया में निर्वाण प्राप्त करने के बाद इनकी रचना की
गई। सुतपिटक में महात्मा बुद्ध के उपदेश संकलित किए गए हैं। विनयपिटक में बौद्ध संघ के
नियमों का उल्लेख है और अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन (Philosophy) का विवेचन है ।
प्रश्न 61. बुद्धचरित किसने रचा था? यह क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
(Who has written Buddhacharita? Why is it considered important?)
उत्तर-बुद्धचरितम्-इस पुस्तक को महाकवि अश्वघोष ने रचा : यह ग्रन्थ गौतम बुद्ध के
जीवन चरित्र के विषय में बहुत-सी जानकारी देता है ।
प्रश्न 62. श्रीलंका के दो बौद्ध महाकाव्यों का उल्लेख करे ।
(Mention two epics of Sri Lanka related Budhism.)
उत्तर-महावंश तथा दीपवंश महाकाव्य-ये श्रीलंका के पाली बौद्ध-धर्म सम्बन्धी महाकाव्य
हैं । इनमें श्रीलंका के इतिहास के साथ-साथ दोनों देशों में धार्मिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध होने
के प्रमाण भी हैं । इनसे भारतीय इतिहास पर भी प्रकाश पड़ता है।
प्रश्न 63. मिलिन्द पन्नाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।
(Write a short note on Milind Pannah.)
उत्तर-मिलिन्दपन्नाह (या पह)-इस बौद्ध ग्रंथ में बैक्ट्रियन और भारत के उत्तर पश्चिमी
भाग पर शासन करने वाले हिन्दू यूनानी सम्राट मिनेण्डर एवं प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागसेन के संवाद
का वर्णन दिया गया है । इसमें ईसा की पहली दो शताब्दियों के उत्तर-पश्चिम भारतीय जीवन
की झलक देखने को मिलती है।
प्रश्न 64. वायु पुराण के अनुसार भगवत धर्म के प्रमुख नायकों के नाम बताइए।
(Write the names of main heroes of Bhagwat religion according to Vayu-
Purana.)
उत्तर-भागवत धर्म के प्रमुख नायक (वायु पुराण के अनुसार)-
(1) वासुदेव (वसुदेव व देवकी के संगम से उत्पन्न पुत्र), (2) संकर्षण (वासुदेव व रोहिणी
के संगम से उत्पन्न पुत्र), (3) प्रद्युम्न (वासुदेव व रुक्मणी के संगम से उत्पन्न पुत्र), (4) साम्ब
(वासुदेव व जाम्बवती के संगम से उत्पन्न पुत्र), (5) अनिरुद्ध (कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का पुत्र)
प्रश्न 65. मत्स्य पुराण के अनुसार विष्णु के अवतार कौन से है ?
Who are the Avtars of Vishnu acording to Matsay Puran?
उत्तर-विष्णु के अवतार (मत्स्य पुराण में उल्लेखित)-
(1) मत्स्य
(2) कूर्म या कच्छप
(3) वराह
(4) नरसिंह
(5) वामन
(6) परशुराम
(7) राम
(8) कृष्ण
(9) बुद्ध
(10) कल्कि
नोट-कल्कि का अवतार लेना शेष है।
प्रश्न 66. शैव सिद्धान्त के अनुसार चार पॉश (Posh) के नाम बताइए ।
(Write the name of four Posh according to Shavism.)
उत्तर-पॉश (शैव सिद्धान्त के अनुसार पॉश)-
(i) मल
(2) कर्म
(3) माया
(4) रोधशक्ति।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. शाहजहाँ बेगम कौन थी ? उन्होंने अपनी आत्मकथा में साँची के विषय में क्या
लिखा है ? (Who was Sahajahan Begum ? What has she written in thes
autobiography about Sanchi?) )
उत्तर-परिचय (Introduction) : शाहजहाँ बेगम, भोपाल के नवाब की पत्नी थी, जिसमें
1868 से 1901 तक शासन किया था।
उसकी आत्मकथा के अनुसार साँची की एक झलक (A glimpse of Sanchi
according to autobiography of Shalijahan Begum): 19वीं शताब्दी में बेगम शाहजहाँ ने अपनी आत्मकथा लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने साँची स्तूप की इमारत के विषय में निम्न मुख्य बिन्दुओं का उल्लेख किया है :
(i) यह इमारत भोपाल राज्य के प्राचीन अवशेषों में सबसे अद्भुत कनकखेड़ा (साँची) की
इमारत है। यह मध्यप्रदेश की राजधानी से 20 मील उत्तर-पूर्व की तरफ एक पहाड़ी की तलहटी
में बसे गाँव में स्थित है। यह स्तूप पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है। इसके परिवेश द्वार से ही पत्थर
की विभिन्न वस्तुएँ, बुद्ध की प्रतिमाएँ और एक प्राचीन तोरण द्वार देखा जा सकता है।
(ii) बेगम की आत्मकथा का नाम ताज-उल-इकबाल तारीख भोपाल (यानी भोपाल का
इतिहास है) जिसे 1876 में उन्होंने एच. डी. ब्रास्तो के द्वारा अनुवाद करवाया। बेगम ने साँची
की मूल वस्तुओं और प्रतिमाओं को अंग्रेजों और फ्रांसीसियों द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद भी
इस राष्ट्रीय धरोहर को बचाए रखा और उन्होंने प्लास्टर की प्रतिकृतियों को ही अंग्रेज और
फ्रांसीसी जिज्ञासियों को देकर उन्हें संतुष्ट कर दिया। इस प्रकार साँची की मूलकृति भोपाल राज्य
में अपने स्थान पर आज भी स्थित है।
(iii) बौद्ध धर्म के इस महत्त्वपूर्ण केन्द्र के बारे में शाहजहाँ बेगम आत्मकथा ने जो तथ्य
लोगों के सामने प्रस्तुत किए उससे लोगों के दृष्टिकोण में बौद्ध धर्म के विषय में महत्त्वपूर्ण बदलाव आये। पहाड़ी पर चढ़ते हुये इस पूरे स्तूप समूह, इमारत समूह (Complex) को देखने पर दूर से ही एक विशाल गोलार्द्ध ढाँचा और अन्य कई इमारतें जिनमें पाँचवीं सदी से बना एक हिन्दू मंदिर भी शामिल है, देखा जा सकता है। इस टीले के चारों ओर पत्थर की रेलिंग बनाई गई है।
प्रश्न 2. क्या उपनिषदों के दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों
से भिन्न थे ? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए। [N.CER.T. T.B.Q.1]
(Were the ideas of the Upanishada thinkers different from those of the
Fatalists and Meterialistic ? Give reasons in support of your answer.)
उत्तर-हाँ, मेरे विचारानुसार उपनिषदों के दार्शनिकों के, बौद्धों द्वारा प्रस्तुत किये गये
नियतिवादी और भौतिकवादी विचार भिन्न नहीं थे। मैं अपने उत्तर के लिए निम्न कारण दे रहा हूँ-
(i) जैनियों और बौद्धों के मूलभूत दार्शनिक विचार वर्धमान महावीर के जन्म से पूर्व ही उत्तर
भारत में विद्यमान थे। संसार लाखों वर्ष से निरन्तर चला आ रहा है। ये सभी दार्शनिक मानते हैं।
(ii) अहिंसा को जैन धार्मिक ग्रंथ, बौद्ध धार्मिक ग्रंथ एवं हिन्दुओं के उपनिषदों में भी समान
रूप से महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। (अर्थात् अहिंसा परमो धर्मः)
(iii) उपनिषद कर्म सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। इसका शाब्दिक अर्थ है कि हर व्यक्ति
को बिना फल की चिन्ता किये। केवल अपने कर्म करते रहना चाहिए । भाग्यवादी मानते हैं कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। किसी भी व्यक्ति को अपने भाग्य या भविष्य की चिन्ता नहीं करनी
चाहिए।
(iv) भाग्यवादी तथा भौतिकवादी हिन्दुओं के दार्शनिकों की भाँति मानते हैं कि मानव शरीर
चार तत्त्वों-पृथ्वी, जल, वायु एवं आकाश से बना है।
(v) निर्वाण या मोक्ष जीवन का अंतिम उद्देश्य है। बौद्ध धार्मिक ग्रंथ, जैन धार्मिक ग्रंथ एवं
हिन्दू धार्मिक ग्रंथ एवं उपनिषद् इस दार्शनिक सिद्धांत में यकीन करते हैं।
प्रश्न 3. जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं को संक्षेप में लिखिए। [B.M.2009A]
(Summarise the central teachings of Jainism.) [N.C.E.R.T. T.B.Q.2]
उत्तर-जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाएँ (Central teachings of Jaunism):
(i) जैन धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा या अवधारणा यह है कि सम्पूर्ण विश्व प्राणवान
है। यहाँ तक कि पत्थर, चट्टान और जल में भी जीवन होता है।
(ii) जीवों के प्रति अहिंसा-खासकर इंसानों, जानवरों, पेड़-पौधों और कीड़े मकोड़ों को न
मारना जैन दर्शन का केन्द्र बिन्दु है। वस्तुत: जैन अहिंसा के सिद्धान्त ने सम्पूर्ण भारतीय चिन्तन
परम्परा को प्रभावित किया है।
(iii) जैन मान्यता के अनुसार जन्म और पुनर्जन्म का चक्र कर्म के द्वारा निर्धारित होता है।
कर्म के चक्र से मुक्ति के लिए त्याग और तपस्या की जरूरत होती है। यह संसार के त्याग से ही
संभव हो पाता है । इसीलिए मुक्ति के लिए विहारों में निवास करना एक अनिवार्य नियम बन गया।
(iv)जैन साधु और साध्वी पाँच व्रत करते थे-हत्या न करना, चोरी नहीं करना, झुठ न
बोलना, आचार्य (अमूषा) और धन संग्रह न करना ।
प्रश्न 4. गौतम बुद्ध को बुद्ध के नाम से कैसे जाना गया अथवा वे किस तरह एक
ज्ञानी व्यक्ति बने ?
(How did Gautam Buddha known as Buddha, the enlighted one?)
उत्तर-लगभग 30 वर्ष की अवस्था में गौतम ने अपने पिता के घर अथवा महल को त्याग
दिया। वह जीवन के सत्य को जानने के लिए निकल पड़े।
सिद्धार्थ ने साधना के कई मार्गों का अन्वेषण किया। इनमें एक था शरीर को अधिक-
से-अधिक कष्ट देना जिसके चलते वे मरते-मरते बचे । इन अतिवादी तरीकों को त्यागकर, उन्होंने
कई दिन तक ध्यान करते हुए अंतत: ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद से उन्हें बुद्ध अथवा ज्ञानी
व्यक्ति के नाम से जाना गया है। बाकी जीवन उन्होंने धर्म या सम्यक् जीवनयापन की शिक्षा दी।
प्रश्न 5. साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए।
Discuss the role of the Begums of Bhopal in preserving the Stupa at
Sanchi. [N.C.E.R.T. T.B.Q.3]
उत्तर-साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका (The role of the
Begums of Bhopal in preserving the Stupa of Sanchi):
(i) भोपाल की नवाब (शासन काल 1868-1901), शाहजहाँ बेगम की आत्मकथा ताज-उल
इकबाल तारीख भोपाल (भोपाल का इतिहास) से साँची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों
की भूमिका का पता चलता है। 1876 में एच. डी. ब्रास्तो ने इसका अनुवाद किया। बेगम साँची
के स्तूप की प्रसिद्धि एवं जानकारी का प्रचार-प्रसार करना चाहती थी।
(ii) उन्नीसवीं सदी के यूरोपीयों में साँची के स्तूप को लेकर काफी दिलचस्पी थी। फ्रांसीसियों
ने सबसे अच्छी हालत में बचे साँची के पूर्वी तोरण द्वार को फ्रांस के संग्रहालय में प्रदर्शित करने के लिए शाहजहाँ बेगम से फ्रांस ले जाने की इजाजत मांगी। कुछ समय के लिए अंग्रेजों ने भी ऐसी ही कोशिश की। सौभाग्यवश फ्रांसीसी और अंग्रेज दोनों ही बड़ी सावधानी से बनाई प्लास्टर प्रतिकृतियों से संतुष्ट हो गये। इस प्रकार मूल कृति भोपाल राज्य में अपनी जगह पर ही रही।
(iii) भोपाल के शासकों शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तान जहाँ बेगम ने इस
प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए धन का अनुदान दिया। आश्चर्य नहीं कि जॉन मार्शल
साँची पर लिखे अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को सुल्तानजहाँ को समर्पित किया।
(iv) सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए अनुदान
दिया। वहाँ रहते हुए ही जॉन मार्शल ने अपनी पुस्तकें लिखीं । इस पुस्तक के विभिन्न खंडों के
प्रकाशन में भी सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया । इसलिए यदि यह स्तूप समूह बना रहा है तो
इसके पीछे कुछ विवेकपूर्ण निर्णयों की बड़ी भूमिका है। शायद हम इस मामले में भी भाग्यशाली
रहे हैं कि इस स्तूप पर किसी रेल ठेकेदार या निर्माता की नजर नहीं पड़ी । यह उन लोगों से भी
बचा रहा जो ऐसी चीजों को यूरोप के संग्रहालयों में ले जाना चाहते थे।
(v) बौद्ध धर्म के इस महत्त्वपूर्ण केन्द्र की खोज से आरंभिक बौद्ध धर्म के बारे में हमारी
समझ में महत्त्वपूर्ण बदलाव आये । आज यह जगह आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सफल मरम्मत और संरक्षण का जीता जागता उदाहरण है।
प्रश्न 6. आपके अनुसार स्त्री-पुरुष संघ में क्यों जाते हैं ? [N.C.E.R.T. T.B.Q.5]
(Do you think why Women and Men joined the Sangha ?)
उत्तर-हम सोचते हैं कि पुरुष और महिलाओं ने बौद्ध संघ में इसलिए प्रवेश किया क्योंकि
वहाँ वे धर्म का अधिक नियमित और व्यवस्थित ढंग से अध्ययन, मनन, उपासना, धार्मिक विषयों
पर विचार-विमर्श, बौद्ध धर्म के दर्शन आदि प्रचारकों और अध्यापकों के माध्यम से जान सकते
थे और व्यवहार में ला सकते थे।
बौद्ध संघ एक लोकतांत्रिक संस्था थी। इसमें प्रवेश के लिए कुछ नियम और उपनियम रचे
गये थे। हर बौद्ध भिक्षुक को संघ में रहकर सभी नियमों का पालन करना, साधारण जीवन व्यतीत करना, अनुशासन में रहना, उचित ढंग से अपने विचारों की अभिव्यक्ति करना और भिक्षा माँगकर अपने लिए स्वयं भोजन आदि जुटाना होता था।
संघ में रहते हुए बौद्ध भिक्षुक अध्ययन, अध्यापन कर सकते थे और निर्वाण के लिए बताये
गये मार्ग, सिद्धांतों और शिक्षाओं का अनुसरण कर मोक्ष प्राप्त कर सकते थे।
प्रश्न 7. साँची क्यों बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया ?
(How did Sanchi survive but Amaravati ruined ?)
उत्तर-शायद अमरावती की खोज थोड़ी पहले हो गई थी। तब तक विद्वान इस बात के
महत्त्व को नहीं समझ पाये थे कि किसी पुरातात्त्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय
खोज की जगह पर ही संरक्षित करना कितना महत्त्वपूर्ण था। 1818 में जब साँची की खोज हुई,
इसके तीन तोरण द्वार तब भी खड़े थे। चौथा वहीं पर गिरा हुआ था और टीला भी अच्छी हालत
में था। तब भी यह सुझाव आया कि तोरण द्वारों को पेरिस या लंदन भेज दिया जाये। अंततः
कई कारणों से साँची का स्तूप वहीं बना रहा । इसलिए वह आज भी बना हुआ है जबकि अमरावती का महाचैत्य अब सिर्फ एक छोटा सा टोला है जिसका सारा गौरव नष्ट हो चुका है।
प्रश्न 8. ऋग्वैदिक लोग किन-किन देवताओं को क्यों पूजते थे ? उनकी उपासना
विधि का वर्णन करें। (Which and why were worshiped the gods by Rigvedic people ? Describe their methods of worship.)
उत्तर-आर्यों ने सूर्य, अग्नि, वायु, जल आदि प्राकृतिक शक्तियों को अपने मन में उन्हें दैहिक
(शरीर) रूप में उच्च प्राणियों के रूप में माना। उनमें मानव एवं अच्छे (लाभदायक) पशुओं
के गुण आरोपित किये । ऋग्वेद में सबसे प्रतापी देवता इन्द्र को माना गया । उसे वर्षा और युद्ध
के देवताओं के रूप में माना जाता था। दूसरा देवता अग्नि को माना गया। अग्नि को मानव और
देवताओं का मध्यस्थ माना गया। अग्नि में दी गई आहुतियाँ छुआ बनकर आकाश में जाकर
देवताओं तक पहुँच जाती हैं, ऐसी आर्यों की मान्यता थी। तीसरा देवता वरुण है, जो जल या
समुद्र का देवता है। उसे प्राकृतिक सन्तुलन के रूप में माना जाता है।
इसी प्रकार सोम, मारुत, अदिति, ऊषा आदि अन्य देवी-देवता हैं। देवियों की संख्या देवताओं
से कम है। उपासना विधि है-स्तुति पाठ, यज्ञाहुति, समवेत स्वरों में गान आदि ।
प्रश्न 9. ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में लोगों में धार्मिक अन्तर क्या था?
What was the difference in religious matter of people between Rigvedic
period and later Vedic period ?
उत्तर-(i) धर्म में जटिलता (Compleness in religion) : ऋग्वैदिक धर्म बड़ा सरल
था, उसमें सादगी थी। बिना किसी आडम्बर के वे लोग विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों की पूजा खुले
स्थानों पर करते थे। वे लोग स्वयं ही हवन करते थे। कर्मकाण्डों तथा अन्धविश्वासों का
बोलबाला हो गया था। पुरोहित यज्ञों पर बलि देते थे और एक यज्ञ में कई-कई ब्राह्मण एक साथ
बैठते थे। देवताओं की प्रसन्नता के लिए बलि दी जाती थी। शत्रुओं के नाश और रोग दूर करने
के लिए जादू-टोनों का सहारा भी लिया जाता था।
(ii) नये देवगणों का आना (Enterence of New Gods) : सूर्य, अग्नि, इन्द्र, वरुण आदि
प्राकृतिक शक्तियों के स्थानों पर गणेश, शिव, विष्णु, ब्रह्मा, राम-कृष्ण आदि अवतारों की
पूजा-अर्चना की जाने लगी।
(ii) दर्शन की ओर झुकाव (Leaning towards philosophical matters) : ऋग्वैदिक
काल में दर्शन को विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था किन्तु उत्तर वैदिक काल में विद्वान लोग
दार्शनिक विषयों जैसे-आत्मा, परमात्मा, सृष्टि कर्म, पुनर्जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष आदि पर विचार
करने लगे थे।
प्रश्न 10. ‘नालन्दा’ और ‘बमियान’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Writeshort notes on ‘Nalanda’ and ‘Bamiyan’.
उत्तर-नालंदा (Nalanda): ‘नालंदा’ बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। चीनी
यात्री ह्वेनसांग ने इसके सम्बन्ध में लिखा था कि इसमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे, जिनको 1500 अध्यापक पढ़ाते थे। सभी छात्र छात्रावास में रहते थे। उनके खाने-पीने और अन्य खर्च के लिए राज्य ने 200 गाँव दिये हुए थे, जिनके भूराजस्व से सारा खर्च चलता था। इस विश्वविद्यालय
में अध्ययन के लिए, अपने देश के अलावा विदेशों से भी छात्र आते थे। इसमें प्रवेश पाना सरल
न था। इस विश्वविद्यालय में पढ़े हुए छात्र समाज और राजदरबारों में सम्मान के पात्र होते थे।
बमियान (Bamiyan): यह स्थान अफगानिस्तान में है। यह स्थान प्राचीन काल में बौद्ध
धर्म का प्रमुख केन्द्र था । यहाँ पर बुद्ध की मूर्तियाँ और बौद्ध मठों के बहुत से अवशेष मिले
हैं। गौतम बुद्ध की सबसे बड़ी पत्थर की मूर्ति यहाँ पर मिली है। यहाँ पर कई गुफाएँ ऐसी भी
मिली हैं जिनमें प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षु रहते थे।
प्रश्न 11. तांत्रिकवाद की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
What were the main characteristics of Tantrikwad ?
उत्तर-(i) छठी शताब्दी के लगभग भारत में तंत्रवाद का प्रचार हुआ। इस सम्प्रदाय में स्त्रियाँ
और शूद्र दोनों प्रविष्ट हो सकते थे।
(ii) इसमें जंत्र-तंत्र जादू-टोने पर बल दिया जाता था। तंत्र विद्या के जोर से भक्तगण अपने
दुःखों का निवारण चाहते थे तथा धन-दौलत की कामना करते थे।
(iii) तंत्रवाद ने धीरे-धीरे अपना स्थान सभी धर्मों में बना लिया। दूसरे शब्दों में तत्कालीन
धर्म जैन, बौद्ध, शैव तथा वैष्णव, सभी इससे प्रभावित हुए।
(iv) लोग अपने रोगों तक का इलाज तंत्र-मंत्र द्वारा कराने लगे, इससे जन-साधारण में
अंधविश्वास बढ़ गये।
प्रश्न 12. महायान और हीनयान के सिद्धान्तों में मूलतः क्या अन्तर है ?
What are the differences in the principles of Mahayan and Heenyan?
उत्तर-
फोटो-1
प्रश्न 13. गांधार कला की विशेषताओं का उल्लेख करें। [B.Exam. 2009(Arts)]
उत्तर-बौद्धधर्म में महायान के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ। इनका विकास
गांधार क्षेत्र (अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ। इसलिए इसे गांधार कला कहा
गया। इस पर यूनानी कला-शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की
मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया
गया। ये मूर्तियाँ सजीव प्रतीत होती हैं।
प्रश्न 14. बुद्धकालीन धार्मिक अवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?
What do you know about the religious condition of Buddha period?
उत्तर-(i) छठी शताब्दी ई. पू. में धार्मिक जीवन बड़ा निराशापूर्ण था। वैदिक धर्म की
सरलता समाप्त हो गई थी।
(ii) हिन्दू धर्म में जटिलता आ गई थी और धर्म जन साधारण की समझ से बाहर हो गया
था।
(iii) कई धार्मिक सम्प्रदाय बन गये थे । अत: अनेक देवी-देवताओं की पूजा होने लगी थी।
लोग उनकी चमत्कारिक शक्तियों में अधिक विश्वास करने लगे थे।
(iv) हिन्दू धर्म में व्यर्थ के आडम्बरों, जादू-टोनों, यज्ञ, बलि, अंधविश्वासों पर बल दिया
जाने लगा था।
(v) ब्राह्मणों का समाज में प्रमुख स्थान था। सभी धार्मिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, अत: लोग
धार्मिक शिक्षाओं को समझ नहीं पाते थे।
(vi) ऐसी स्थिति में महावीर स्वामी ने जैन धर्म और महात्मा गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की
स्थापना की। दोनों धर्मों ने सभी जातियों के लिए अपने धर्म में आने के लिए स्वागत के द्वार
खोल दिये थे। दोनों धर्मो ने जीवन की शुद्धता एवं अहिंसा पर बल दिया । अपनी सरलता एवं
आडम्बरविहीनता के कारण ये दोनों धर्म बहुत लोकप्रिय हो गये।
प्रश्न 15. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Differentiate the teaching of Buddhism and Jainism.
उत्तर-बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में निम्न अंतर है:
फोटो-2
प्रश्न 16. मिनेन्द्र कौन था ? उसकी सफलताओं का वर्णन करें।
(Who was Minendra ? Describe his successes.)
उत्तर-डॉ विन्सेण्ट स्मिथ (Dr Vinsent Smith) के मतानुसार मिनेन्द्र डेमोट्रियस के वंश
का था। उसने 160 ई. पू. से 140 ई. पू. तक शासन किया। वह शुंग राजा पुष्यमित्र का समकालीन था। मिनेन्द्र एक बड़ा विजयी राजा था जिसने व्यास नदी को पार करके काठियावाड़, भरहुत (भडौच) और गंगा-यमुना के मध्यवर्ती भागों को जीता। उसने 149 ई. पू. के लगभग पाटलिपुत्र पर भी हमला किया परन्तु वहाँ उसका मार्ग पुष्यमित्र ने रोक लिया। फिर भी मिनेन्द्र के पास एक बड़ा साम्राज्य था जिसमें अफगानिस्तान, पंजाब, काठियावाड़ सिन्ध, राजपूताना (राजस्थान) और मथुरा के भाग शामिल थे। इसके राज्य की राजधानी साकला (वर्तमान स्यालकोट) में अनेक सुन्दर उपवन थे और यह नगर हीरे-मोतियों के लिए प्रसिद्ध थे। मिनेन्द्र,का राजभवन नगर के केन्द्र में था और बड़ा अनुपम था।
मिनेन्द्र बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसने बौद्ध धर्म को अपनाने के बाद अपना जीवन इतनी
पवित्रता से व्यतीत करना आरम्भ कर दिया कि लोग उसकी देवता की भाँति पूजा करने लगे।
वह इतना लोकप्रिय था कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी राख को लेने के लिए लोगों में लड़ाई
हो गई। इस प्रकार मिनेन्द्र ने एक शक्तिशाली सम्राट की भाँति नहीं, बल्कि एक दार्शनिक की
भाँति प्रसिद्धि प्राप्त की।
प्रश्न 17. गुप्त काल की धार्मिक दशा का वर्णन कीजिए।
(Describe the religeous condition of Gupta Period.)
उत्तर-गुप्त काल के सभी सम्राट हिन्दू धर्म के अनुयायी थे, परन्तु वे अन्य धर्मों का भी
आदर करते थे। इस काल में जैन धर्म और बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हो गया था। इसके विपरीत
हिन्दू धर्म विकास की चरम सीमा पर था। इस काल में हिन्दू मन्दिरों का निर्माण कराया गया।
यज्ञ, हवन आदि पुनः होने लगे। ब्राह्मणों का सम्मान बहुत था। सम्राट की ओर से सभी धर्मों
को पूर्ण स्वतंत्रता थी कि वे अपनी मनचाही विधि से पूजा-अर्चना करें। पदों पर नियुक्तियाँ
धर्म या जाति के आधार पर न होकर योग्यता के आधार पर होती थीं। बौद्ध धर्म पतन की ओर
जा रहा था। इसके प्रमुख कारण थे-राजकीय सहायता न मिलना एवं बौद्ध भिक्षुओं में भ्रष्टाचार
का बोलबाला।
प्रश्न 18. गुप्त काल में ब्राह्मणों की सर्वोच्चता के क्या कारण थे?
(What were the reasons of the Brahmin’s super most position ?)
उत्तर-(क) गुप्त काल में मूर्तिपूजा सामान्य हो गई थी। विभिन्न वर्गों के लोगों में जो
पर्व-त्योहार प्रचलित थे, उन्हें धार्मिक रूप दे दिया गया । इससे पुरोहितों की आय बढ़ गई थी।
(ख) छठी शताब्दी के पश्चात् विष्णु की पूजा से मिलने वाले पुण्य फलों के प्रचार के लिए
कई पुस्तकें लिखी गईं, जिनमें सर्वोच्च स्थान भागवत पुराण का है। इसकी कथा पुरोहित लोग
कई दिनों में समाप्त करते थे। इससे उन्हें आर्थिक लाभ होता था।
(ग) ब्राह्मणों को बड़े पैमाने पर ग्राम-दान देना इस बात का द्योतक है कि गुप्त काल में
ब्राह्मणों को श्रेष्ठ समझा जाता था।
(घ) ब्राह्मण गुप्त वंश वालों को क्षत्रिय मानने लगे, जबकि वे मूलतः वैश्य थे, इससे गुप्त
राजाओं की हैसियत धर्मशास्त्र सम्मत हो गई।
(ङ) भारी संख्या में मिले ग्राम-दानों के फलस्वरूप ब्राह्मणों ने खूब धन एकत्र किया ।
उन्होंने कई विशेषाधिकार भी प्राप्त कर लिये थे।
प्रश्न 19. राजतंत्र और धर्म में संबंध स्थापित करें।
उत्तर-प्राचीन भारत में सैद्धान्तिक रूप से राजतंत्र और धर्म में गहरा संबंध था। अर्थशास्त्र
और धर्मसूत्रों में इस बात पर बल दिया गया है कि राजा को क्षेत्रिय वर्ण का होना चाहिए। शास्त्रों
में वर्णित यह व्यवस्था सदैव कारगर नहीं होती थी। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ
गैर-क्षत्रियों को राज्य करते हुए दिखलाया गया है। उदाहरण के लिए नंदवंशी शूद्र थे। मौर्यों को
शुद्र, क्षत्रिय अथवा निम्नकुलोत्पन्न माना गया है। शुंग सातवाहन ब्राह्मण थे। भारत आने वाले मध्य एशिया एशियाई राजाओं को यवन या मलेच्छ माना गया है। अनेक विद्वान गुप्त शासकों को वैश्य मानते हैं। इस प्रकार सैद्धान्तिक रूप से क्षत्रिय को ही आदर्श राजा के रूप में मान्यता थी। परन्तु व्यावहारिक रूप से किसी भी वर्ण को व्यक्ति शक्ति संसाधन सम्पन्न होकर राजा बन जा सकता था।
प्रश्न 20. गुप्त काल में धर्म से जुड़ी वास्तु और मूर्ति कलाकृतियों का उल्लेख कीजिए।
(Mention the progress of architecture and sclupture with related with religion.)
उत्तर-गुप्त काल में भवन निर्माण कला और मूर्तिकला (Art of Architecture and
Sculpture) : गुप्तकाल में भवन निर्माण कला की विशेष उन्नति हुई। गुप्त शासकों ने ईंटों व
पत्थरों की सहायता से सुन्दर मंदिरों एवं शानदार-भवनों का निर्माण कराया । इनके भवनों में झाँसी जिले में ‘देवगढ़ का मंदिर’, भुमरा का शिव मंदिर, जबलपुर जिले में तिगवा का विष्णु मंदिर, गया और साँची के बौद्ध मंदिर, इनके अलावा बौद्ध धर्म के अनेक स्तूप, विहार, चैत्य और मठ भी बनाए गए।
गुप्त काल में मूर्तिकला भी अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। इस काल में महात्मा बुद्ध,
विष्णु, शिव, सूर्य और हिन्दू देवी-देवताओं की अनेक पत्थर, धातु तथा मिट्टी की अति सुन्दर
मूर्तियाँ बनाई गई। मथुरा, सारनाथ और पाटलिपुत्र मूर्तिकला के मुख्य केन्द्र थे। सजीवना और
सुन्दरता इन मूर्तियों की मुख्य विशेषताएँ थीं।
प्रश्न 21. हर्षकालीन भारत की धार्मिक स्थिति का वर्णन करें।
Describe the religious condition of India during Harsha period.
उत्तर-(i) हर्ष की धार्मिक नीति उदार थी। पहले वह शैव था परन्तु बाद में उसने बौद्ध
धर्म ग्रहण कर लिया था।
(ii) उसने बौद्ध धर्म की महायान शाखा के सिद्धान्तों के प्रचार हेतु कन्नौज में एक विशाल
सम्मेलन किया और बौद्ध धर्म के प्रसार हेतु व्याख्यान कराये ।
(iii) कन्नौज में घटित होने वाली घटना, जिसमें महास्तम्भ के फटने से अनेक लोग घायल
हुए, उससे रुष्ट होकर उसने 500 ब्राह्मणों को बन्दी बना लिया और फिर उन्हें निर्वासित कर दिया। इससे उसकी धार्मिक असहिष्णुता का बोध होता है।
(iv) कन्नौज के पश्चात् हर्ष ने प्रयाग में एक महा सम्मेलन बुलाया। इसमें उसके सभी
सामन्त, मंत्री एवं सभ्य लोग सम्मिलित हुए थे। इस अवसर पर गौतम बुद्ध की प्रतिमा का पूजन
हुआ। इस अवसर पर हेनसांग का प्रवचन हुआ। अन्त में हर्ष ने बड़े-बड़े दान दिये, यहाँ तक
कि अपने शरीर के वस्त्र व गहने भी उतारकर दान कर दिये।
प्रश्न 22. शाक्त धर्म पर एक टिप्पणी लिखिए।
Write a short note on Shakt Religion.
उत्तर-विद्वानों के अनुसार शाक्त सम्प्रदाय वैदिक काल समान ही प्राचीन है। इस सम्प्रदाय
का शैव मत के साथ घनिष्ठ संबंध है। आदिशक्ति का स्पष्ट उल्लेख महाभारत में है। पुराणों
की परम्परानुसार शक्ति की उपासना ‘काली दुर्गा’ की उपासना रही। वैदिक साहित्य में उमा,
पार्वती, अम्बिका, हेमवती, रुद्रानी, भवानी आदि नामों का उल्लेख है। ऋग्वेद के दशम् मंडल में
एक पूरा सुक्त ‘शक्ति की उपासना’ का है, जिसे तांत्रिक ‘देवी सूक्त’ कहते हैं। ‘चौंसट यौगनी
का मंदिर’ जो जबलपुर में स्थित है, शाक्तों, धर्म के विकास और प्रगति का प्रतीक है। शाक्तों
के दो वर्ग हैं-कौल्मार्गी और समयाचारी।
पूर्णरूप से अद्वैतवादी साधन कौल कहलाते हैं जो कर्दम व चंदन, शत्रु और पुत्र में, श्मशान
और भवन में, कंचन तथा तृण में भेद नहीं करते हैं। कौलमार्गी पंचमकार की उपासना करते हैं,
जिसमें मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा, मैथन आदि सम्मिलित है।
प्रश्न 23. ‘अलवार’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
Write a short note on Alwara.
उत्तर-अलवार-दक्षिण भारत में रहने वाले भागवत धर्म के उपासकों को ‘अलवार’ कहा
जाता था। ये लोग (अलवार) विष्णु अथवा नारायण में पूर्ण आस्था रखते थे तथा भजनों की
रचना कर अपने इष्टदेव का गुणगान करते थे। इनमें रामानुज का स्थान सर्वप्रमुख है। ‘वेदान्त
सिद्धान्त’ जिसे विशिष्टाद्वैत भी कहा गया है का प्रतिपादन इन्होंने (रामानुज) ही किया था। आग
चलकर माधवाचार्य ने वैशेषिक सम्प्रदाय की स्थापना की और निम्बार्क ने ‘निम्बार्क सम्प्रदाय
की स्थापना की। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रामानुज, माध्वाचार्य, निम्बार्क और बल्लभ
आदि ने न केवल वैष्णव धर्म का प्रचार ही किया वरन् वैष्णव धर्म की भक्ति को दार्शनिक
आधार प्रदान किया।
प्रश्न 24. कर्नाटक में वीरशैव परंपरा से आप क्या समझते हैं ? [B.M. 2009A]
उत्तर-कर्नाटक में बारहवीं शताब्दी में धर्म सुधार का एक नया आंदोलन चला था, जिसके
प्रणेता थे वासवन्ना (1106-1168 ई०)। इनके अनुसार वीर शैव अथवा लिंगायत कहलाते हैं।
ये लोग शिव लिंग की पूजा करते हैं। इनका विश्वास है कि मृत्यु के बाद आत्मा शिव के साथ
एकाकार हो जाती है तथा पुनर्जन्म नहीं होता है। ये लोग मृतक का दाह संस्कार नहीं करते हैं,
बल्कि उसे दफनाते हैं। ये जाति-व्यवस्था एवं छुआछूत को नहीं मानते हैं। ब्राह्मणवादी व्यवस्था
के विपरीत यह बाल-विवाह के विरोधी हैं तथा विधवा विवाह का समर्थन करते हैं। आज भी
कर्नाटक में बड़ी संख्या में लिंगायत समुदाय के लोग निवास करते हैं।
प्रश्न 25. बौद्ध संगीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् समय-समय पर बौद्ध धर्म की व्याख्या हेतु चार बौद्ध
सभाओं का आयोजन हुआ जिन्हें बौद्ध संगीति के नाम से भी जाना जाता है। प्रथम बौद्ध संगीति राजगृह में महाकस्सप की अध्यक्षता में हुई। द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन बौद्ध संगीति पाटलिपुत्र में मोगलिपुत्रतिस्स के नेतृत्व में हुई। जबकि चौथी बौद्ध संगीति कश्मीर के कुण्डलवन में वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई।
प्रश्न 26. ‘जातक’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
Write a short note on Jatak’.
उत्तर-जातक (Jatak) : बौद्ध साहित्य में जातकों का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन
ग्रन्थों में बुद्ध के पूर्व-जन्मों की कथाएँ दी गई हैं। इस दृष्टि से इनका महत्त्व धार्मिक व्यक्तियों
के लिए है। इसके अतिरिक्त जातकों में अनेक ऐसी कथाएँ मिलती हैं जिनसे उस समय के लिए
राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति के महत्त्वपूर्ण पहलुओं की जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर विण्टरनिट्ज के विचारानुसार, “जातक कथाओं का महत्त्व अमूल्य है।यह केवल
इसलिए नहीं कि वे साहित्य और कला का अंश हैं, उनका महत्त्व तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की
भारतीय सभ्यता के दिग्दर्शन कराने में है। यद्यपि मौलिक जातक-संग्रह तो विलुप्त हो गया है,
परन्तु जातकों का ज्ञान हमें इस ग्रंथ पर लिखित एक टीका जातक ट्ठावष्ण’ द्वारा होता है।
शायद इसे किसी बौद्ध भिक्षु ने लिखा था। जातकों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक दोनों प्रकार की
साहित्यिक शैलियों का प्रयोग किया गया है। विद्वानों के अनुसार इनकी गद्य-शैली अधिक सरल
है। सम्भवतः इसे पद्य-शैली की अपेक्षा रचनाकारों द्वारा पहले अपनाया गया था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. साँची की मूर्ति कला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक
सहायता मिलती है ? (Towhat extent does knowledge of Buddhist literature help in understanding the sculpture at Sanchi?) [N.C.E.R.T. T.B.Q.6]
उत्तर-बौद्ध साहित्य से हमें साँची की मूर्ति कला के बारे में व्यापक जानकारी मिलती है।
इन ग्रंथों के अध्ययन के बाद इस स्तूप की मूर्तियों में उल्लेखित सामाजिक और मानव जीवन की
अनेक बातें दर्शकों की समझ में आसानी से आ जाती हैं।
पहली बार देखने पर तो इस मूर्तिकला अंश में फूस की झोंपड़ी और पेड़ों वाले ग्रामीण दृश्य
का चित्रण दिखता है परंतु उन कला इतिहासकारों, जिन्होंने साँची की इस मूर्तिकला का गहराई
से अध्ययन किया है, वे इसे वेसान्तर जातक से लिया गया एक दृश्य बताते हैं। यह कहानी एक
ऐसे दानी राजकुमार के बारे में है जिसने अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को सौंप दिया और स्वयं
अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जंगल में रहने चला गया। जैसा कि इस उदाहरण से स्पष्ट है
अक्सर इतिहासकार किसी मूर्तिकला की व्याख्या लिखित साक्ष्यों के साथ तुलना के द्वारा करते हैं।
बौद्ध मूर्तिकला को समझने के लिए कला इतिहासकारों को बुद्ध के चरित लेखन के बारे
में समझ बनानी पड़ी। बौद्ध चरित लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को
ज्ञान प्राप्ति हुई। कई प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति
प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरणत: रिक्त स्थान बुद्ध के ध्यान की दशा
तथा स्तूप महापरिनिब्बान के प्रतीक बन गये। चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्रायः इस्तेमाल किया गया। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिये गये पहले उपेदश का प्रतीक था। जैसा कि स्पष्ट है ऐसी मूर्तिकला को अक्षरक्षः नहीं समझा जा सकता है उदाहरणत: पेड़ का तात्पर्य केवल एक पेड़ नहीं धा वरन् वह बुद्ध के जीवन की एक घटना का प्रतीक था। ऐसे प्रतीकों को समझने के लिए इतिहासकारों के लिए यह जरूरी है कि वे कलाकृतियों के निर्माताओं की परम्पराओं को जानें।
साँची में उत्कीर्णित दूसरी मूर्तियाँ शायद बौद्ध मत से सीधी जुड़ी नहीं थीं। बहुत-सी दूसरी
मूर्तियाँ भी मिली हैं। उदाहरण के लिए जानवरों के कुछ बहुत खूबसूरत उत्कीर्णन यहाँ पर पाये
गये हैं। इन जानवरों में हाथी, घोड़े, बंदर और गाय-बैल शामिल हैं। हालांकि साँची में जातकों
से ली गई जानवरों की कई कहानियाँ हैं, ऐसा लगता है कि यहाँ पर लोगों को आकर्षित करने
के लिए जानवरों का उत्कीर्णन किया गया था। साथ ही जानवरों को मनुष्यों के गुणों के प्रतीक
के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। उदाहरण के लिए हाथी शक्ति और ज्ञान के प्रतीक माने
जाते थे। इनमें कुछ सुन्दर स्त्रियों की भी मूर्तियाँ हैं, तोरण द्वार के किनारे एक पेड़ पकड़ कर
झूलती हुई।
शुरू-शुरू में विद्वान इस मूर्ति के महत्त्व के बारे में थोड़े असमंजस में थे। इस मूर्ति का
त्याग और तपस्या से कोई रिश्ता नहीं आता था लेकिन साहित्यिक परंपराओं के अध्ययन
से वे समझ पाये कि यह संस्कृत भाषा में वर्णित शालभंजिका की मूर्ति है। लोक परम्परा में यह
माना जाता था कि इसे स्त्री द्वारा छुए जाने से वृक्षों में फूल खिल उठते थे और फल होने लगते
थे। ऐसा लगता है कि यह एक शुभ प्रतीक माना जाता था और इस कारण स्तूप के अलंकरण
में प्रयुक्त हुआ। शालभंजिका की मूर्ति से पता चलता है कि जो लोग बौद्ध धर्म में आये उन्होंने
बुद्ध-पूर्व और बौद्ध धर्म से इतर दूसरे विश्वासों, प्रथाओं और धारणाओं से बौद्ध धर्म को समृद्ध किया । साँची की मूर्तियों में पाये गये कई प्रतीक चिह्न निश्चय ही इन्हीं परम्पराओं से उभरे थे।
प्रश्न 2. वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकता के
विकास की चर्चा कीजिए।
Discuss the development in sculpture and architecture associated with
the rise of Vaishnavism and Shavism.
उत्तर-पृष्ठभूमि (Background)–मुक्तिदाता की कल्पना सिर्फ बौद्ध धर्म तक सीमित
नहीं थी। हम पाते हैं कि इसी तरह के विश्वास एक अलग ढंग से उन परम्पराओं में भी विकसित
हो रहे थे जिन्हें आज हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाता है । इसमें वैष्णव (वह हिन्दू परम्परा जिसमें विष्णु को सबसे महत्त्वपूर्ण देवता माना जाता है) और शैव (वह संकल्पना जिसमें शिव परमेश्वर है) परम्पराएँ शामिल हैं। इनके अंतर्गत एक विशेष देवता की पूजा को खास महत्त्व दिया जाता था। इस प्रकार की आराधना में उपासना और ईश्वर के बीच का रिश्ता प्रेम और समर्पण का रिश्ता माना जाता था। इसे भक्ति कहते हैं।
मूर्तिकला और स्थापत्य (वैष्णवमत और शैवमत से संबंधित ) (Sculpture and
Architecture associated with (Vaishnavism and Shaivism)) :
(क) वैष्णवमत (Vaishanavism) : वैष्णव वाद में कई अवतारों के इर्द-गिर्द पूजा
पद्धतियाँ विकसित हुई । इस परंपरा के अंदर दस अवतारों की कल्पना है। यह माना जाता था
कि पापियों के बढ़ते प्रभाव के चलते जब दुनिया में अव्यवस्था और नाश की स्थिति आ जाती
थी तब विश्व की रक्षा के लिए भगवान अलग-अलग रूपों में अवतार लेते थे। संभवतः
अलग-अलग अवतार देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में लोकप्रिय थे। इन सब स्थानीय देवताओं को
विष्णु का रूप मान लेना एकीकृत धार्मिक परंपरा के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण तरीका था।
(ख) शैवमत (Shaivism) : कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। दूसरे
देवताओं की भी मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। दूसरे देवताओं की भी मूर्तियाँ बनीं । शिव
को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था लेकिन उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में भी
दिखाया गया है। ये सारे चित्रण देवताओं से जुड़ी हुई मिश्रित अवधारणाओं पर आधारित थे।
उनकी खूबियों और प्रतीकों को उनके शिवरोवस्त्र, आभूषण, आयुधों (हथियार और हाथ में
धारण किये गये अन्य शुभ अस्त्र) और बैठने की शैली से इंगित किया जाता था।
(ग) मूर्तिकला और प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना (Sculpture and Worship of
Idols) : इन मूर्तियों के अंकन का मतलब समझने के लिए इतिहासकारों को इनसे जुड़ी हुई
कहानियों से परिचित होना पड़ता है। कई कहानियाँ प्रधम सहस्राब्दि के मध्य से ब्राह्मणों द्वारा
रचित पुराणों में पाई जाती हैं। इनमें बहुत से किस्से ऐसे हैं जो सैकड़ों वर्षों पहले रचने के बाद
सुने-सुनाए जाते रहे थे। इनमें देवी-देवताओं की भी कहानियाँ हैं । सामान्यतः इन्हें संस्कृत श्लोकों
में लिखा गया था। इन्हें ऊँची आवाज में पढ़ा जाता था जिसे कोई भी सुन सकता था । महिलाएँ
और शूद्र जिन्हें वैदिक साहित्य पढ़ने-सुनने की अनुमति नहीं थी, पुराणों को सुन सकते थे।
पुराणों की ज्यादातर कहानियाँ लोगों के आपसी मेल-मिलाप से विकसित हुई। पुजारी,
व्यापारी और सामान्य स्त्री-पुरुष एक से दूसरी जगह आते-जाते हुए अपने विश्वासों और
अवधारणाओं का आदान-प्रदान करते थे। उदाहरण के लिए हम यह जानते हैं कि वासुदेव-कृष्ण
मथुरा इलाके के महत्त्वपूर्ण देवता थे। कई शताब्दियों के दौरान उनकी पूजा देश के दूसरे इलाकों में भी फैल गई।
(घ) हिन्दू मंदिरों का निर्माण (Building of Hindu Temples) : सभी देवी-देवताओं
की की मूर्तियों को रखने के लिए सबसे पहले मंदिर भी बनाये गये । शुरू के मंदिर एक चौकोर
कमरे के रूप में थे जिन्हें गर्भगृह कहा जाता था। इसमें एक दरवाजा होता था जिससे उपासक
मूर्ति की पूजा करने के लिए भीतर प्रविष्ट हो सकता था। धीरे-धीरे गर्भगृह के ऊपर एक ऊँचा
ढाँचा बनाया जाने लगा जिसे शिखर कहा जाता था। मंदिर की दीवारों पर अक्सर भित्ति चित्र
उत्कीर्ण किये जाते थे। बाद के युगों में मंदिरों के स्थापत्य का काफी विकास हुआ। अव मंदिरों
के साथ विशाल सभास्थल, ऊँची दीवारें और तोरण भी जुड़ गये। जल आपूर्ति का इंतजाम भी
किया जाने लगा।
शुरू-शुरू के मंदिरों की एक खास बात यह थी कि इनमें से कुछ पहाड़ियों को काट कर
खोखला करके कृत्रिम गुफाओं के रूप में बनाए गए थे। कृत्रिम गुफाएँ बनाने की परम्परा काफी
पुरानी थी। सबसे प्राचीन कृत्रिम गुफाएँ ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक के आदेश से आजीविक
संप्रदाय के संतों के लिए बनाई गई थीं।
यह परम्परा अलग-अलग चरणों में विकसित होती रही। इसका सबसे विकसित रूप हमें
आठवीं सदी के कैलाशनाथ (शिव का एक नाम) के मंदिर में नजर आता है जिसमें पूरी पहाड़ी
काटकर उसे मंदिर का रूप दे दिया गया था।
एक ताम्रपत्र अभिलेख एलोरा के प्रमुख तक्षक द्वारा इसका निर्माण समाप्त करने के बाद
उसके आश्चर्य को व्यक्त करता है “हे भगवान्, यह मैंने कैसे बनाया ?”
प्रश्न 3. स्तूप क्यों और कैसे बनाये जाते थे ? चर्चा कीजिए।
Discuss how and why Stupas were built ? [N.C.E.R.T. T.B.Q.9]
उत्तर-(i) स्तूप क्यों बनाए जाते थे ? (Why were Srupas built): ऐसी कई अन्य जगहें
थीं जिन्हें पवित्र माना जाता था। इन जगहों पर बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष जैसे उनकी अस्थियाँ
या उनके द्वारा प्रयुक्त सामान गाड़ दिए गए थे। इन टीलों को स्तूप कहते थे।
स्तूप बनाने की परम्परा बुद्ध से पहले की रही होगी, लेकिन वह बौद्ध धर्म से जुड़ गई।
चूँकि उनमें ऐसे अवशेष रहते थे जिन्हें पवित्र समझा जाता था, इसलिए समूचे स्तूप को ही बुद्ध
और बौद्ध धर्म के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठा मिली। अशोकावदान नाम एक बौद्ध ग्रंथ के अनुसार
अशोक ने बुद्ध के अवशेषों के हिस्से हर महत्त्वपूर्ण शहर में बाँटकर उनके ऊपर स्तूप बनाने का
आदेश दिया। ईसा पूर्व दूसरी सदी तक भरहुत, साँची और सारनाथ जैसी जगहों पर स्तूप बनाए
जा चुके थे।
(ii) स्तूप कैसे बनाये गये (How are Stups built) : स्तूपों की वेदिकाओं और स्तंभों पर
मिले अभिलेखों से इन्हें बनाने और सजाने के लिए दिये गये दान का पता चलता है। कुछ दान
राजाओं के द्वारा दिये गये थे (जैसे सातवाहन वंश के राजा), तो कुछ दान शिल्पकारों और
व्यापारियों की श्रेणियों द्वारा दिये गये। उदाहरण के लिए साँची के एक तोरण द्वार का हिस्सा
हाथी दाँत के शिल्पकारों के दान से बनाया गया था। सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने दान के
अभिलेखों में अपना नाम बताया है। कभी-कभी वे अपने गाँव या शहर का नाम बताते हैं और
कभी-कभी अपना पेशा और रिश्तेदारों के नाम भी बताते हैं। इन इमारतों को बनाने में भिक्खुओं
और भिक्खुनियों ने भी दान दिया।
प्रश्न 4. जैन धर्म के मुख्य उपदेशों (शिक्षाओं) का वर्णन कीजिए। भारतीय समाज (जीवन) पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
Describe the main preachings (teaching) of Jain religion. What was the
effect of it on Indian Society (life)?
उत्तर-जैन धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीर थे। उनकी (जैन धर्म की) शिक्षाएँ
निम्नलिखित थीं:
(6) आत्म निग्रह से आत्मज्ञान होता है। इसे प्राप्त करने के लिए सम्यक् विश्वास, सम्यक
ज्ञान तथा सम्यक् कर्म पर बल दिया गया।
(ii) अहिंसा पर बहुत बल दिया जाता था। उनका कथन था कि निर्जीव वस्तुओं में भी
अनुभूति होती है।
(iii) जैन धर्म का पालन करने के लिए पाँच महाव्रत थे-(i) अहिंसा (ii) सत्य (iii) चोरी न
करना (iv) ब्रह्मचर्य (v) अपरिग्रह।
भारतीय समाज पर जैन धर्म के प्रभाव (Effects of Jain Religion on Indian
society) : भारतीय समाज पर जैन धर्म के निम्नलिखित प्रभाव थे :
(अ) जाति-पाँति का खंडन (Opposition of Caste System) : जैन धर्म में जातीय
बन्धनों पर कड़ा प्रहार किया गया। उन्होंने भ्रातृभाव तथा सद्भावना को बढ़ावा दिया। इससे
लोगों में दया, ममता, त्याग आदि भावनाएँ उत्पन्न हुई।
(आ) हिन्दू धर्म की कट्टरता पर प्रहार (Attack on the rigidity of Hindu
religion) : ब्राह्मणों द्वारा अनेक कर्मकाण्डों-यज्ञ, बलि अथवा खर्चीले अनुष्ठानों से जनसाधारण
परेशान था। जैन धर्म बिना आडम्बर के सीधा-सादा धर्म था। इसने लोगों (हिन्दुओं) के मन
पर प्रभाव डाला।
(इ) राजनैतिक दुर्बलता (Political weakness) : जैन धर्म की ‘अहिंसा परमो धर्म’
की नीति से प्रभावित होकर लोगों ने युद्ध के रुचि लेना छोड़ दिया। इसके परिणामस्वरूप कालान्तर में विदेशी शक्तियों ने आकर भारत पर अपना अधिकार जमा लिया।
(ई) खान-पान में परिवर्तन (Changes eating habits)-अहिंसा की भावना से प्रेरित
होकर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया। इससे जीव हत्या तो रुकी ही, साथ ही पशु धन में वृद्धि
भी हुई।
(उ) भारतीय कला, स्थापत्य, कला और साहित्य पर प्रभाव (Effects on Indian
Art, Architecture and Literature) : दिलवाड़े के जैन मन्दिर, माउण्ट आबू का जैन मन्दिर, खजुराहो के जैन मन्दिर एवं अजन्ता-एलोरा की गुफाएँ स्थापत्य कला के सुन्दर नमूने हैं । जैन धर्म के ‘अंग’ ग्रन्थ ऐतिहासिक महत्त्व के हैं।
प्रश्न 5. जैन धर्म का कला, स्थापत्य कला और साहित्य के विकास में योगदान
बताइए । (Mention the contribution of Jain Religion in the development ofArt, Architecture and Literature.)
उत्तर-जैन धर्म के अनुयायियों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कला का भी सहारा लिया ।
उन्होंने भवन निर्माण कला, मन्दिर निर्माण कला, मूर्तिकला और चित्रकला के विकास में भी
महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । जैनियों ने अपने सन्तों की स्मृति में स्तूपों, मठों और मन्दिरों का निर्माण किया और उन्हें पत्थरों की रैलिंग, सुन्दर प्रवेश द्वारों, पाषाण छत्रों, उत्कृष्ट स्तम्भों आदि से अलंकृत किया। जैनियों ने अपनी तीर्थ स्थानों जैसे-पार्श्वन पर्वत, पावापुरी (बिहार), राजगृह,
गिरनार, आबू आदि में अनेक सुन्दर मन्दिरों एवं मूर्तियों की स्थापना की। राजस्थान में आबू पर्वत, पर बना जैन मन्दिर कला का उत्कृष्ट नमूना है। मथुरा, बुन्देलखण्ड और मध्य भारत में उन्होंने कई मन्दिर बनवाये । दक्षिणी भारत में जैनियों के सुन्दर मन्दिर अनेक स्थानों पर आज भी देखे जा सकते हैं।
जैनियों ने पर्वतों की चट्टानों को काट-काटकर सुन्दर मन्दिरों व गुफाओं का निर्माण किया।
उड़ीसा में हाथी-गुफा, ऐलोरा में इन्द्रसभा गुफा और उदयगिरि में सिंह गुफा जैन कला के उत्तम
नमूने हैं। जैन मुनियों व जैन तीर्थस्थानों का भी जैन चित्रकला में चित्रण किया गया है। जैन कला
बड़ी सरल व सादा थी। इसमें बौद्ध और हिन्दू कला की चमक-दमक और अनुकरण का प्रभाव
दिखाई नहीं देता।
जैनियों ने धर्म प्रचार के लिए तथा अपने ग्रन्थ लिखने के लिए जनसाधारण की तत्कालीन
भाषाओं का प्रयोग किया। जैनियों के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘अंग’ तथा ‘उप अंग’ आदि प्राकृत भाषाओं
में लिखे गये। उन्होंने अपभ्रंश भाषा में कई ग्रंथों की रचना की। धीरे-धीरे उन्होंने संस्कृत भाषा
को अपना लिया। उन्होंने व्याकरण, काव्य, कोष, कथाएँ आदि विभिन्न विषयों पर संस्कृत में
उत्तम ग्रन्थों की रचना की। इस प्रकार इस भाषा की उन्नति हुई।
प्रश्न 6. बौद्ध धर्म के मुख्य उपदेशों का वर्णन करो। इनका भारतीय जीवन पर क्या
प्रभाव पड़ा? (Describe the main preachings of Buddhism? What was its effect on Indian life?) [B.M.2009A]
उत्तर-महात्मा गौतम बुद्ध की शिक्षाएँ न तो घोर तप पर आधारित थीं और न हो भोग या
शिथिलता पर शिक्षाओं का आधार चार मूल सिद्धान्त थे-
(i) संसार दु:खों का घर है। (ii) इच्छाएँ ही दुःखों का कारण बनती हैं। (iii) इच्छाओं का
दमन ही दुःखों के नाश का मूल मंत्र है । (iv) इच्छाओं का दमन अष्ट मार्ग द्वारा करना चाहिए।
अष्टमार्ग निम्न हैं : (a) सम्यक् समाधि (b) शुद्ध कथन (c) शुद्ध आचरण (d) शुद्ध दृष्टि (e) शुद्ध
विश्वास (f) शुद्ध संकल्प (g) शुद्ध जीवन (h) शुद्ध विचार ।
मध्यम मार्ग के सिद्धान्त निम्नलिखित थे:
(अ) अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। (आ) कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास । (इ) जाति-पाँति
और छुआछूत में अविश्वास । (ई) ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन । (उ) वेद को ईश्वरीय
ज्ञान का स्रोत न मानना । (ऊ) जन्म-मरण के चक्कर से मुक्ति अर्थात् मोक्ष। (ए) शुद्ध जीवन
पर विशेष बल, जिसमें मनसा, वाचा, कर्मणा, सत्य, अहिंसा पर बल दिया जाता था। (ऐ) यज्ञ
और बलि पर विश्वास न था।
भारतीय जीवन पर प्रभाव (Effect on Indian Life): लोगों में सत्य, अहिंसा आदि नैतिक
गुणों का विकास हुआ। समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव कम हो गया। लोग व्यर्थ के आडम्बरों
से दूर हो गये। तक्षशिला और नालन्दा जैसे विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए देश-विदेश से
विद्यार्थी आते थे। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री बढ़ी। बौद्ध धर्म के विदेशों में फैलने से वहाँ से
सांस्कृतिक और व्यापारिक सम्बन्ध जुड़े।
जातीय बन्धन ढीले पड़ गये। समाज के निम्न वर्ग के लोगों के लिए बौद्ध धर्म के दरवाजे
खुले थे। जो हिन्दू कट्टरता से तंग आकर धर्म परिवर्तन की बात सोचते थे, उन्हें अपना मनचाहा
धर्म मिल गया। जादू-टोना और अंधविश्वासों से लोग दूर हो गये।
प्रश्न 7. जैन धर्म और बौद्ध धर्म में कौन-कौन-सी समानताएँ थीं ?
What were the similarties in Jainism and Buddhism ?
उत्तर-(1) हिन्दू धर्म की कुरीतियों का विरोध (Protest of Arthodox Hinduism):
दोनों धर्मों का जन्म हिन्दू धर्म में फैली कुरीतियों का विरोध करने के लिए ही हुआ था। दोनों
धर्म जाति-पाँति, छुआछूत, ऊंँच-नीच एवं मूर्ति पूजा के विरोधी थे।
(2) दोनों क्षत्रिय राजकुमार (Both Kshatriya Princes) : दोनों धर्मों के प्रवर्तक, क्षत्रिय
राजकुमार थे। दोनों ही जीवों के प्रति दयाभाव रखते थे। दोनों का जनसाधारण पर विशेष प्रभाव था।
(3) अहिंसा पर बल (Stress on Non-voilence) : दोनों धर्म अहिंसा में विश्वास रखते
थे और किसी भी जीव को कष्ट देना महापाप समझते थे।
(4) ईश्वर की सत्ता को न मानना (No faith in God)-बौद्ध और जैन धर्म दोनों ही
ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं रखते थे और वेदों को भी ईश्वर कृत नहीं मानते थे।
(5) यज्ञ व कर्मकांड के विरोधी (No faith in yajnas, sacrifice and Ritual)-जैन
और बौद्ध दोनों ही धर्म यज्ञ, हवन आदि अनुष्ठानों अथवा आडम्बरों से दूर थे और यज्ञ में बलि
देने के कट्टर विरोधी थे।
(6) पवित्रता पर बल (Stress on Pious life)-दोनों धर्म बाहरी व आन्तरिक पवित्रता
के पक्षपाती थे।
(7) जातिवाद का विरोध (Protest of Casteism)-दोनों धर्म जातिवाद के घोर
विरोधी थे और अन्य धर्म वालों का अपने धर्म में आने के लिए स्वागत करते थे।
(8) मोक्ष का समान लक्ष्य (Same or conumon stress on Salvation)-दोनों धर्म जीव
को मुक्ति दिलाने के लिए मोक्ष को आवश्यक मानते थे। वे पुर्नजन्म एवं आवागमन के चक्कर
से मुक्ति चाहते थे।
प्रश्न 8. ईसा पूर्व छठी शताब्दी में दो धार्मिक आन्दोलनों के प्रारंभ होने के चार कारण
बताइए । (Mention the four reasons to start the tworeligious movements in
sixth century B.C.)
उत्तर-ईसा की छठी शताब्दी में जिन दो धार्मिक आन्दोलनों का जन्म हुआ; वे थे-जैन
धर्म और बौद्ध धर्म । इनके प्रारंभ होने के निम्नलिखित कारण थे :
(क) हिन्दू धर्म की जटिलता (Complexity of Hindusim) : हिन्दू धर्म में विभिन्न
प्रकार के आडम्बर और अन्धविश्वास आ गये थे। कर्मकांड बढ़ते जा रहे थे। अच्छे आचरण
तथा हृदय की पवित्रता का लोप हो गया था।
(ख) धार्मिक व्यय (Religious Expenditure)-बड़े-बड़े यज्ञों व हवनों में होने वाले
व्यय से जनसाधारण घबरा गया था । धार्मिक अनुष्ठान दिन-प्रतिदिन महँगे होते जा रहे थे । अतः
जनसाधारण (निर्धन जनता) उनका व्यय सहन करने में असमर्थ था, इसिलए उनका विश्वास इनसे दिन-प्रतिदिन हटता जा रहा था ।
(ग) बलि प्रथा (Sacrifice system)-देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिये प्रायः
पशुओं की बलि चढ़ाई जाती थी। ऐसा करने के लिए हर किसी की आत्मा नहीं मानती थी।
लोग समझ नहीं पा रहे थे कि किस प्रकार से एक बेजुबान पशु की हत्या करने से देवता प्रसन्न
हो जाते हैं। अतः लोगों की रुचि उस धर्म में बढ़ी, जिसमें हिंसा नाममात्र की भी न थी।
(घ) तंत्र मंत्र में विश्वास (Belief in witch craft)-हिन्दू धर्म में बढ़ती हुई जटिलता
के कारण तंत्र-मंत्र एवं जादू टोनों में लोगों का विश्वास अधिक बढ़ गया था। धर्म में ब्राह्मणों
के एकाधिकार के प्रति भी लोगों में रोष बढ़ गया था। अत: लोग ऐसे धर्म की तलाश में थे, जिसमें किसी वर्ग विशेष एकाधिकार न हो।
प्रश्न 9. हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में कौन-कौन-सी समानताएँ हैं ?
Which are the similarties in Hinduism and Buddhism?
उत्तर-(1) निर्माण का सिद्धान्त (The Principle of Salvation)-हिन्दू धर्म और जैन
दोनों के जीवन का लक्ष्य समान है। दूसरे शब्दों में, अच्छा जीवन व्यतीत करके मुक्ति अथवा
निर्वाण प्राप्त करना।
(ii) कर्म सिद्धान्त (The Principle of Karma)-दोनों धर्मों के अनुयायी इस धारणा में
विश्वास रखते हैं कि जिस प्रकार के इस जीवन में मनुष्य कर्म करता है, उसी के अनुसार उसे
अगला जन्म मिलता है।
(iii) शुद्ध आचरण पर जोर (Stress on Good Conduct)-अन्य धर्मों के समान हिन्दू
धर्म में भी सदैव पवित्र जीवन व्यतीत करने पर जोर दिया जाता है। इसी प्रकार गौतम बुद्ध ने
भी जीवन की पवित्रता पर बल दिया। इस प्रकार ही धर्म सदाचार पर जोर देते हैं।
(iv) सहनशीलता (Tolerance)-हिन्दू धर्म व बौद्ध धर्म, दोनों ही अन्य धर्मों पर कठोरता
करने से रोकते हैं। दोनों ही दया तथा सहनशीता में विश्वास रखते हैं, परन्तु अब धर्म के मानने
वाले बदलते जा रहे हैं।
(v) प्रारम्भ में मूर्तिपूजा में विश्वास न होना (No faith in idol worshipping in the
behinning)-आर्यों में प्रारम्भ में मूर्तिपूजा न थी। बाद में विष्णु, शिव, गणेश, रामचन्द्र, कृष्ण
आदि की मूर्तियों की पूजा होने लगी। महात्मा बुद्ध ने भी मूर्तिपूजा की अनुमति नहीं दी, परन्तु
महायान और हीनयान सम्प्रदाय बनने पर बौद्धों में भी मूर्ति पूजा का प्रचलन हो गया।
प्रश्न 10. बौद्ध धर्म के पतन के कारण लिखें। [B.M.2009A, B.Exam.2012(A)]
Mention the causes of the decline of Buddhism.
उत्तर-(1) हिन्दू धर्म में सुधार (Reforms in Hinduism)-हिन्दू धर्म में असंख्य
देवी-देवता हैं। अत: उन्होंने गौतम बुद्ध को भी अवतार मानकर उसकी भी पूजा अर्चन शुरू कर
दी। उनके कुछ सिद्धान्तों जैसे सत्य और अहिंसा को ग्रहण कर लिया । ब्राह्मणों एवं हिन्दू विद्वानो के समय पर चेत जाने के कारण हिन्दू धर्म का विघटन रुक गया। जो लोग हिन्दू धर्म छोड़कर चले गये थे। उसे उन्होंने पुनः स्वीकार कर लिया।
(2) बौद्ध धर्म का विभाजन (Splitin Buddhism)-कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म का
विभाजन हीनयान और महायान के रूप में हो गया था। महायान शाखा को मूर्तिपूजा की छूट
दी गई जिसके फलस्वरूप कई लोगों ने फिर से इस धर्म में प्रवेश पा लिया, जो पहले इसे छोड़
चुके थे।
(3) बौद्ध मठों में भ्रष्टाचार (Corruption in the Buddhist Sanghas)-मठों में
सुख-सुविधाएँ मिल जाने तथा स्त्रियों को भिक्षुणी बनाने की छूट दिये जाने के कारण मठों में
भ्रष्टाचार फैल गया। भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ धामिक कार्यों की आड़ में विषय-वासनाओं में लग
गये । उनका चरित्र भ्रष्ट हो गया। उनके सब त्याग, तपस्या व आदर्श मिट्टी में मिल गये। गौतम
बुद्ध के उपदेशों को भूलकर वे वासनाओं में लिप्त हो गये जिससे समाज पर बहुत बुरा प्रभाव
पड़ा।
(4) राजकीय सहायता का न मिलना (Loss of Royal Parronage)-कनिष्क को मृत्यु
के पश्चात् बौद्धों को राजकीय सहायता मिलनी बन्द हो गई । गुप्त साम्राज्य के आ जाने के कारण हिन्दू धर्म को बढ़ावा मिलता प्रारम्भ हो गया। उधर बौद्ध धर्म धनाभाव के कारण अधिक दिनों
तक नहीं चल सका।
(5) बौद्ध धर्म में जाटलता आना (Arrival of complexity in the Buddhism)-बौद्धों
ने हिन्दुओं के कई सिद्धान्त ग्रहण कर लिये थे । जन साधारण की भाषा को छोड़कर वे संस्कृत
में साहित्य रचना करने लगे थे। अतः यह धर्म जनता की समझ से बाहर होने लगा था।
(6) हिन्दु उपदेशकों का आना (Coming of the Hindu Missionaries)-कुमारिल
भट्ट और शंकराचार्य जैसे हिन्दू विद्वानों के मैदान में आ जाने से बौद्ध विद्वानों की दाल गलनी
बंद हो गई थी। वे इन सिद्धान्त के तर्कों के सामने नहीं ठहर पाते थे।
(7) राजपूत शक्ति का विस्तार (Rise of Rajpoot Power)-सातवीं से ग्यारहवीं शताब्दी
तक सारे उत्तरी भारत में राजपूतों की सत्ता छा गई । राजपूत शक्ति के उपासक थे। वे अहिंसा
को कायरता मानते थे। उनका मत था कि बौद्ध मत में अहिंसा का अर्थ मृत्यु को बुलावा देना
होता है, अतः अहिंसा आदि सिद्धान्त ताक पर रख दिये गये। इससे बौद्ध धर्म का प्रचार कार्य
बन्द होने लगा और वे विदेशों में जाने लगे।
(8) मुसलमानों के आक्रमण (The Muslim Invasions)-बारहवीं शताब्दी में महमूद
गजनवी और अन्य आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किये । बौद्धों में उनके आक्रमण का
मुकाबला करने का साहस न था । अत: वे या तो मारे गये, या निकटवर्ती क्षेत्रों जैसे-नेपाल, तिब्बत, बर्मा, श्रीलंका आदि में चले गये।
(9) हूणों का आक्रमण (Invasions of the Humas)-बौद्धों की अधिकतम हानि हूणों
द्वारा हुई। उन्होंने हजारों भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया। उनके मठों को खण्डहर बना
दिया। तक्षशिला आदि विश्वविद्यालयों को आग लगा दी तथा बौद्ध साहित्य को जला दिया।
इस प्रकार से पंजाब, राजपूताना एवं उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त से बौद्धों का सफाया हो गया था।
प्रश्न 11. बौद्ध और जैन सम्प्रदायों के आंन्दोलनों को धार्मिक सुधार आन्दोलन क्यों
कहा जाता है ? (Why is called the movement of Buddhism and Jainism, the
Religious movements?)
उत्तर-(i) इस काल का समाज चार वर्गों में बँटा हुआ था। ब्राह्मण, जिन्हें पुरोहित और शिक्षा
का काम सौंपा गया था, समाज में सबसे ऊँचा होने का दावा करते थे। वे कई विशेषाधिकारों
के अधिकारी थे; जैसे-दान लेना, करों से छुटकारा और दण्ड की माफी आदि ।
(ii) जो जितने ऊँचे वर्ण का होता था, वह उतना ही सुविधाधिकारी और शुद्ध माना जाता
था। अपराधी, जितना ही नीच वर्ग का होता था, उसके लिये सजा उतनी ही कठोर होती थी।
(iii) यह स्वाभाविक था कि वर्ण विभाजन वाले समाज में तनाव हो क्षत्रिय लोगों ने ब्राह्मणों
के समाज में ऊँचा स्थान पाने पर आपत्ति की। उन्होंने वर्ण व्यवस्था को जन्म मूलक मानने के
विरुद्ध एक आन्दोलन छेड़ दिया ।
जैन धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीर और बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा गौतम बुद्ध
दोनों क्षत्रिय वंश के थे। दोनों ने ब्राह्मणों की मान्यता को चुनौती दी।
(iv) ब्राह्मण प्रधान समाज में वैश्यों का स्थान तीसरी कोटि में था। प्रथम और द्वितीय कोटि
में क्रमशः ब्राह्मण और क्षत्रिय आते हैं। अत: वैश्य ऐसे किसी समाज की तलाश में थे, जहाँ
उनकी स्थिति सुधरे । वैश्यों ने महावीर और गौतम बुद्ध दोनों की उदारतापूर्वक सहायता की । इसके मुख्य कारण थे-इन दोनों का वर्ण व्यवस्था में विश्वास न होना । अहिंसा का उपदेश दिया, जिससे
युद्ध रुक गये और व्यापार में वृद्धि हुई। ब्राह्मणों ने धर्म सूत्र द्वारा सूद लेना वर्जित कर रखा था,
अतः वैश्य उनके विरोधी हो गये।
(v) बौद्ध धर्म और जैन धर्म, दोनों शुद्ध और नियमित जीवन के पक्षपाती थे । भिक्षुओं को
सोना और चाँदी छूना वर्जित था। उन्हें अपने दाताओं से उतना ही लेना होता था, जितने से उनकी प्राण रक्षा हो सके। इसलिए उन्होंने गंगा घाटी के नये जीवन में विकसित भौतिक सुख-
सुविधाओं का विरोध किया।
प्रश्न 12. हिन्दू धर्म एवं बौद्ध धर्म की तुलना कीजिए।
Compare Hinduism and Buddhism.
अथवा, हिन्दू धर्म तथा बौद्ध धर्म की समानताएँ एवं अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Discuss similarities and differences between Hindusim and Buddhism.
उत्तर-(अ) हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में समानताएँ (Similarities of Hinduism and
Buddhism)-
(i) निर्वाण का सिद्धान्त (The Principle of Salavation)-हिन्दू धर्म व जैन धर्म दोनों
के जीवन का लक्ष्य समान है। दूसरे शब्दों में अच्छा जीवन व्यतीत करके मुक्ति अथवा निर्वाण
प्राप्त करना।
(ii) कर्म सिद्धान्त (The Principle of Karma)-दोनों धर्मों के अनुयायी इस धारणा में
विश्वास रखते हैं कि इस प्रकार के इस जीवन में मनुष्य कार्य करता है, उसी के अनुसार उसे
अगला जन्म मिलता है।
(iii) शुद्ध आचरण पर जोर (Stress on good conduct)-अन्य धर्मों के समान हिन्दू
धर्म में सदैव पवित्र जीवन व्यतीत करने पर जोर दिया जाता है। इसी प्रकार गौतम बुद्ध ने भी
जीवन की पवित्रता पर बल दिया। इस प्रकार ही धर्म सदाचार पर जोर देते हैं।
(iv) सहनशीलता (Tolerance)-हिन्दू धर्म व बौद्ध धर्म, दोनों ही अन्य धर्मों पर कठोरता
करने से रोकते हैं। दोनों ही दसरा तथा सहनशीलता में विश्वास रखते हैं, परन्तु अब धर्म नहीं
धर्म में मानने वाले बदलते जा रहे हैं।
(v) प्रारम्भ में मूर्तिपूजा में विश्वास न होना (No faithin idol worshipping in the
beginning)-आर्यों में प्रारम्भ में मूर्तिपूजा न थी। बाद में विष्णु, शिव, गणेश, रामचन्द्र, कृष्ण
आदि की मूर्तियों की पूजा होने लगी। महात्मा बुद्ध ने भी मूर्तिपूजा की अनुमति नहीं दी, परन्तु
महायान व हीनयान सम्प्रदाय बनने पर बौद्धों में भी मूर्तिपूजा का प्रचलन हो गया।
(व) असमानताएँ या अन्तर (Differences)-
1. ईश्वर के विषय में (Faith of God)-हिन्दू धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास
रखता है। उसे सर्वव्यापक, सृष्टि रचयिता और सर्वशक्तिमान मानता है, जबकि महात्मा बुद्ध
ईश्वर के विषय में चुप थे, किन्तु निश्चित रूप से ईश्वर की पूजा को धर्म का अंग नहीं
मानते थे।
2. यज्ञ के विषय में (About Yajanas)-वैदिक धर्म यज्ञों को बहुत महत्त्व देता है। वह
निजी तथा सामूहिक तौर पर यज्ञ करने का अनिवार्य धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा विधि मानता है,
जबकि बौद्ध धर्म में यज्ञों का कोई स्थान नहीं है।
3. मोक्ष के लिए (About Salvation)-हिन्दू धर्म में कई मार्ग जैसे भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग,
तथा कर्म मार्ग का सुझाव देता है जबकि बौद्ध धर्म केवल अष्टांगिक या मध्यम वर्ग मार्ग की ही वकालत करता है।
4. धर्म की प्राचीनतम या काल (Old or Age of Religion)-काल की दृष्टि से हिन्दू
धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है। वह प्रारम्भ से ही मूर्ति पूजकों तथा प्राकृतिक शक्तियों के
पुजारियों का धर्म रहा है जबकि बौद्ध धर्म में मूर्ति-पूजा बाद में आई तथा उसके केवल का
सम्प्रदाय-महायान के अनुयायी ही प्रतिमा पूजक है।
5. वेद (The Vedas)-हिन्दू धर्म के लोग वेदों को ईश्वर वाणी मानते हैं। उनके लिए
वैदिक साहित्य महाकाव्य विशेषकर रामायण तथा श्रीमद् भगवतगीता पूज्य ग्रंथ हैं जबकि बौद्धों
के लिए बौद्ध साहित्य और विशेषकर भगवान बुद्ध के उपदेश ही मान्यता रखते हैं।
6. संस्कृत तथा ब्राह्मणों की स्थिति (Position of Sanskrti and the
Brahamins)-संस्कृत एवं ब्राह्मणों को भी लेकर दोनों धर्मों में बहुत अन्तर है। आर्यों या
हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा संस्कृत भाषा को बहुत पवित्र माना गया है। ब्राह्मणों का आदर करना
भी हिन्दू लोगों के लिए आवश्यक माना गया है और न ही वेदों और संस्कृत को पवित्र माना
गया है।
7. सामाजिक समानता (Social Equality)-हिन्दू धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव बहुत
अधिक था। शूद्र लोगों को न तो वेद पढ़ने की आज्ञा थी और न ही उन्हें मोक्ष का अधिकारी
समझा जाता था। इसके विपरीत महात्मा बुद्ध जात-पात, ऊँच-नीच इत्यादि किसी को भी नहीं
मानते थे वरन् सब मनुष्यों को समान समझते थे।
8. प्रचार (Preachings)-बौद्ध धर्म एक प्रचारक मत था, परन्तु हिन्दू धर्म इस बात में बहुत
पीछे रह गया। बौद्ध भिक्षुओं ने बौद्ध मत का प्रचार करके लोगों को अपने मत में लाने का प्रयत्न
किया। वे एक, संघ में संगठित थे और सुव्यवस्थित ढंग से कार्य करते थे, परन्तु हिन्दू धर्म में
बौद्ध धर्म की भाँति प्रचार करने के लिए कोई संघ नहीं था। इसलिए प्रचार के क्षेत्र में हिन्दू
धर्म बहुत पीछे रह गया।
★★★