bihar board 12 class history | विभाजन को समझना
bihar board 12 class history | विभाजन को समझना
राजनीति, स्मृति, अनुभव
(UNDERSTANDING PARTITION)
(Politics, Memories, Experiences)
महत्वूपर्ण तथ्य एवं घटनाएँ
● अब्दुल लतीफ – पंजाब विश्वविद्यालय के पुस्तकालय का एक कर्मचारी था। वह मुसलमान
होते हुए भी एक हिन्दू की सहायता करता था।
● छाया सीमा – नये बने भारत और पाकिस्तान राज्यों के बीच बनी सीमा रेखा।
● होलोकास्ट – यह एक घटना है जो जर्मनी के नाजीवादी शासन में घटित हुई। जिसमें असंख्य
लोगों का महाविनाश हुआ।
● 1930 ई. – प्रसिद्ध उर्दू कवि मुहम्मद इकबाल ने एकीकृत भारत संघ के अंदर एक
‘उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य’ की आवश्यकता का प्रस्ताव पेश किया।
● चौधरी रहमत अली – वह कैम्ब्रिज का एक छात्र था। 1933, 1935 में उसने पाकिस्तान
या पाक-स्तान नाम पेश किया।
● 1937-39 ई. – ब्रिटिश भारत के 11 में से 7 प्रांतों में कांग्रेस की सरकार का गठन हुआ।
● 1940 ई. – लाहौर में मुस्लिम लीग ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए कुछ सीमा तक स्वायत्तता
की मांग करते हुए प्रस्ताव पेश किया।
● 1946 के चुनाव – मई से जून 1946 में 11 प्रांतों में सामान्य चुनाव हुए। इन सामान्य
निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस को और मुस्लिम क्षेत्रों में मुस्लिम लीग को शानदार सफलता मिली।
● जून 1946 – मई से जून 1946 तक ब्रिटिश कैबिनेट ने अपने तीन सदस्यों को दिल्ली भेजा।
● हिन्दू महासभा – इसकी स्थापना 1915 ई. में हुई। इसका क्षेत्र उत्तर भारत था।
● यूनियनिस्ट पार्टी – इसकी स्थापना 1923 ई. में हुई। यह पंजाब में हिदू, मुस्लिम और सिक्ख
भूस्वामियों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली राजनीतिक पार्टी थी।
● परिसंघ अथवा महासंघ – यह स्वायत्त और सम्प्रभु राज्यों का संघ था जिसमें केन्द्रीय
सरकार की शक्तियाँ सीमित होती थीं।
●14 अगस्त 1947 – भारत का विभाजन और पाकिस्तान का गठन।
● साम्प्रदायिकता – वह संकीर्ण भावना है जो व्यक्तियों को अपने ही धर्म से प्रेम और अन्य
धर्मानुयायियों के प्रति द्वेष की भावना को उकसाती है।
एन.सी.आर.टी. पाठ्यपुस्तक एवं कुछ अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook & Some Other Important Questions for Examination)
बहुविकल्पीयय प्रश्न
(Multiple Choice Questions)
1. भारत विभाजन से लगभग कितनी संख्या से ज्यादा लोग अपने-अपने वतन से उजड़
गये और दूसरी जगहों पर जाने के लिए विवश हो गए थे :
(क) एक करोड़ से ज्यादा
(ख) दस करोड़ से ज्यादा
(ग) बीस करोड़ से ज्यादा
(घ) चालीस करोड़ से ज्यादा उत्तर-(क)
2. कांग्रेस और मुस्लिम लीग में लखनऊ समझौता कब हुआ :
(क) जनवरी, 1916
(ख) दिसम्बर, 1916
(ग) जनवरी, 1919
(घ) सितम्बर, 1919 उत्तर-(ख)
3. शुद्धि आन्दोलन जिस संस्था या संगठन ने चलाया, वह था :
(क) ब्रह्म समाज
(ख) आर्य समाज
(ग) यंग बंगाल आन्दोलन
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं उत्तर-(ख).
4. मुस्लिम लीग को ढाका में किस वर्ष शुरू किया गया था :
(क) 1906
(ख) 1911
(ग) 1919
(घ) 1939 उत्तर-(क)
5. हिन्दू महासभा की स्थापना किस वर्ष हुई थी:
(क) 1907
(ख) 1915
(ग) 1939
(घ)1929 उत्तर-(ख)
6. युनियनिस्ट पार्टी मुख्यतया किस प्रान्त/प्रदेश में शक्तिशाली थी :
(क) पंजाब
(ख) हिमाचल
(ग) बिहार
(घ) बंगाल उत्तर-(क)
7. मुस्लिम लीग ने अपनी पाकिस्तान निर्माण संबंधी मांग का प्रस्ताव जिस वर्ष सर्वप्रथम
पारित किया था, वह था :
(क) 1946
(ख)1940
(ग) 1907
(घ) 1919 उत्तर-(ख)
8. फ्रंटियर या सीमांत गाँधी किसे कहा जाता था :
(क) खान अब्दुल गफ्फर खान
(ख) सिकन्दर हयात खान
(ग) मोहम्मद अली जिन्ना
(घ) मौलाना आजाद उत्तर-(क)
9. लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस (DirectAction Day) मनाने का ऐलान (घोषणा)
किया था:
(क) 16 अगस्त, 1946
(ख) 16 अगस्त, 1948
(ग) 11 अगस्त, 1945
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं उत्तर-(क)
10. बांग्लादेश की स्थापना हुई :
(क) 1971
(ख) 1871
(ग) 1917
(घ) 1927 उत्तर-(क)
11. उत्तर-पश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य की जरूरत का विचार उर्दू के कवि मुहम्मद
इकबाल ने किम वर्ष सर्वप्रथम रखा था :
(क) 1920
(ख) 1930
(ग) 1945
(घ) 1935 उत्तर-(क)
12. पंजाबी मुसलमान युवक चौधरी रहमत अली ने पाक-स्तान (या पाकिस्तान ) नाम
को प्रस्तुत किया :
(क) 1933,35
(ख) 1931, 32
(ग) 1945,46
(घ) 1906, 07 उत्तर-(क)
13. ब्रिटिश कैबिनेट ने अपना तीन सदस्यीय मिशन दिल्ली भेजा था :
(क) मार्च से जून, 1946
(ख) मई से नवम्बर, 1946
(ग) मार्च से जून, 1942
(घ) जनवरी से मार्च, 1971 उत्तर-(क)
14. पाकिस्तान का गठन हआ :
(क) 1-2 अगस्त, 1947
(ख) 14–15 अगस्त,1947
(ग) 12-13 अगस्त, 1971
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं उत्तर-(घ)
15. 1932 ई० में अखिल भारतीय संघ की स्थापना निम्न में से किसने की थी-[B.M.2009A]
(क) बी0 जी0 तिलक
(ख) विनोबा भावे
(ग) डॉ0 भीमराव अम्बेडकर
(घ) एम0 के0 गाँधी उत्तर-(घ)
16. किस प्रधान मंत्री ने कहा कि ब्रिटिश सरकार जून 1948 तक भारत छोड़ देगी-
[B.M.2009A]
(क) चर्चिल ने
(ख) एटली ने
(ग) माउंटबेटन ने
(घ) किसी ने नहीं उत्तर-(क)
17. किसान आंदोलन के नेता और समाजवादी विचारधारा के पोषक थे-|B.M.2009]
(क) गोविंदबल्लभ पंत
(ख) जिन्ना
(ग) एन0 जी0 रंगा
(घ) कोई नहीं उत्तर-(ग)
18. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई ?
[B.M.2009A,B.Exam.2010 (A)]
(क) 1880
(ख) 1882
(ग) 1885
(घ) 1890 उत्तर-(ग)
19. मुस्लिम लीग ने मुसलमानों हेतु पृथक राष्ट्र पाकिस्तान की मांग कब उठाई ?[B.M.2009A]
(क) 1938 ई०
(ख) 1940 ई०
(ग) 1942 ई०
(घ) 1947 ई० उत्तर-(ख)
20. ‘पूना समझौता’ किस वर्ष हुआ ?
[B.Exam./B.M.2009A,B.Exam. 2013(A)
(क) 1932 ई०
(ख) 1934 ई०
(ग) 1939 ई०
(घ) 1942 ई० उत्तर-(क)
21. द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ किस वर्ष हुआ ? [B.M.2009A]
(क) 1937 ई०
(ख) 1939 ई०
(ग) 1942 ई०
(घ) 1947 ई० उत्तर-(ख)
22. मुस्लिम लीग की स्थापना का श्रेय किसे है ? [B.M.2009]
(क) मौलाना आजाद
(ख) सैयद अहमद खाँ
(ग) आगा खाँ
(घ) जाकिर हुसैन उत्तर-(ग)
23. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक कौन माने जाते हैं? [B.Exam/B.M.2009A]
(क) उमेश चन्द्र बनर्जी
(ख) ए०ओ० राम
(ग) विपिन चन्द्र पाल
(घ) बाल गंगाधर तिलक उत्तर-(ख)
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. 1878 ई. के अधिनियम के विरुद्ध भारतीयों ने अपना रोष क्यों प्रकट
किया?
उत्तर-1878 ई. के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट में भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार पत्रों
पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। भारतीय जनता ने इसका डटकर विरोध किया क्योंकि भारतीयों को लगा कि जैसे उनकी भावनाओं का गला घोंटा जा रहा था। अतः उनके व्यापक रोष और विरोध को देखकर विवश होकर 1882 ई. में लार्ड रिपन को यह एक्ट वापस लेना पड़ा।
प्रश्न 2. अंग्रेजों ने भारत को कौन-सी दो महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्रदान की थीं?
उत्तर-1. भारत को प्रशासनिक और राजनीतिक एकता प्रदान की।
2. भारत में आई.सी.एस. (इण्डियन सिविल सर्विस) की नियुक्तियाँ प्रतियोगिता परीक्षा के
आधार पर की गई तथा एक व्यवस्थित प्रशासनिक ढाँचा दिया।
प्रश्न 3. अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं ने किस प्रकार भारतीय राष्ट्रवाद को प्रोत्साहन दिया?
दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-1. भारत का राष्ट्रवादी आन्दोलन इस बात से भी प्रभावित हुआ कि एशिया और दूसरे
भागों में भी विश्वयुद्ध के बाद राष्ट्रवादी आन्दोलन सक्रिय हो रहे थे।
2. रूसी क्रान्ति के प्रभाव से भी राष्ट्रवादी आन्दोलन को बहुत बल मिला। इस प्रकार जनता
को लगा कि यदि निहत्थे किसान और मजदूर अपने यहाँ के अत्याचारियों के विरुद्ध क्रान्ति कर
सकते हैं तो परतन्त्र राज्यों को जनता भी अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ सकती है।
प्रश्न 4. भारत के आर्थिक एकीकरण ने किस प्रकार राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया ?
उत्तर-आर्थिक एकीकरण का अभिप्राय है अपनी-अपनी आर्थिक जरूरतें व्यापार तथा
वाणिज्य के कारण देश के विभिन्न भाग-शहरों से गाँव तथा विभिन्न प्रदेश परस्पर जुड़ गये।
अंग्रेजों की आर्थिक नीतियों के कारण भारत की आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो
गई थी। आर्थिक एकीकरण के कारण देश के सभी लोग एकजुट होकर ब्रिटिश सरकार की गलत
आर्थिक नीतियों, आर्थिक शोषण आदि विचार-विनियम तथा वाद-विवाद करने लगे। इससे राष्ट्रीय विचारधारा को प्रोत्साहन मिला
प्रश्न 5. मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में कांग्रेस ने 1940 में व्यक्तिगत
सत्याग्रह क्यों प्रारंभ किया?
उत्तर-कांग्रेस चाहती थी कि ब्रिटिश सरकार उसे आश्वासन दे कि जैसे ही दूसरा विश्व
युद्ध समाप्त होगा वह भारत को स्वतंत्रता दंगी। इसीलिए गाँधी जी ने व्यक्तिगत नागरिक अवज्ञा
आन्दोलन 17 अक्टूबर, 1940 को शुरू किया बिनोबा भावे पहले सत्याग्रही थे। सरकार ने लगभग 30 हजार सत्याग्रहियों को पकड़ा और कैद में डाल दिया। ऐसे प्रमुख नेताओं में नायडू,
अरुणा आसफ अली, मियाँ इतीखार-उद्दीन औ-सी.सी. राज गोपालाचारी प्रमुख थे। गाँधी जी
बड़े पैमाने पर सत्याग्रह चलाकर ब्रिटिश सरकार का एक नाजुक स्थिति के समय बड़ी मुसीबत
में डालकर परोक्ष रूप से फासिस्ट देशों की मदद करना नहीं चाहते थे।
प्रश्न 6. मुस्लिम लीग ने क्रिप्स प्रस्तावों को स्वीकार क्यों नहीं किया ?
उत्तर-मुस्लिम लीग ने क्रिप्स मिशन प्रस्तावों को इसीलिए टुकरा दिया क्योंकि लीग की प्रमुख
माँग में पाकिस्तान के निर्माण का कहीं जिक्र नहीं था।
प्रश्न 7. अंग्रेजी शिक्षा भारतवासियों के लिए किस प्रकार से एक छिपा वरदान साबित
हुई?
उत्तर-(i) अंग्रेजी भाषा ने भारतीयों के लिए नये साहित्य, विज्ञान, गणित तथा तकनीकी
विषयों से सम्बन्धित पुस्तकों तथा ज्ञान के द्वार खोल दिए।
(ii) अंग्रेजी शिक्षा ने भारतीयों में राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीय चेतना तथा प्रबुद्धता जगाने मैं
योगदान दिया।
प्रश्न 8. प्रेस ने किन दो तरीकों से भारत में राष्ट्रीय जागृति को बढ़ाने में सहायता प्रदान की?
उत्तर-(i) प्रेस ने ब्रिटिश सरकार की जनविरोधी नीतियों और प्रतिकियावादी दृष्टिकोण को
जनता के सामने खोलकर रख दिया।
(ii) इससे सर्वसाधारण सचेत हो गया। राष्ट्रीय स्वाभिमान, आत्म सम्मान, राष्ट्रभक्ति और
बलिदान भावना से पूर्ण जनमत तैयार हो गया। यह सारा चमत्कार प्रेस का ही था।
प्रश्न 9. ‘द्विराष्ट्र-सिद्धान्त’ का क्या अर्थ है ? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास
की पूर्ण मिथ्या थी?
उत्तर-द्विराष्ट्र सिद्धान्त से अभिप्राय यह है कि हिन्दुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग
राष्ट्र (देश) हैं, अतः वे एक होकर नहीं रह सकते।
यह सिद्धान्त इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक
सांझी संस्कृति का विकास किया। सन् 1857 की क्रान्ति में भी वे एकजुट लड़े।
प्रश्न 10. क्रिप्स मिशन कब भारत आया ? क्रिप्स वार्ता क्यों भंग हो गई?
उत्तर-क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत आया। यह वार्ता इसलिए भंग हो गई क्योंकि
सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। क्रिप्स ने कांग्रेस
का यह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था कि युद्ध के बाद एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाए।
प्रश्न 11. सन् 1947 में भारत-विभाजन के दो कारण बताइए। [B.M.2009A]
उत्तर-(i) भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को कमजोर बनाने के लिए अंग्रेज सरकार ने
हिन्दू-मुस्लिम में फूट डाली, जिसका परिणाम देश का विभाजन था।
(ii) 1945 में ब्रिटेन में बनी मजदूर-दल की सरकार द्वारा भारतीयों को स्वतंत्रता दिलाने के
लिए वचन दिया गया था। विभाजन का प्रश्न भी स्वतंत्रता के साथ जुड़ा हुआ था।
प्रश्न 12. प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-अन्तरिम सरकार में कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को मनोनीत करने के अधिकार को
स्वीकार नहीं किया और जुलाई के अन्त में कैबिनेट मिशन के कथन को भी
अस्वीकार कर दिया तथा सीधी कार्यवाही की घोषणा कर दी। 16 अगस्त, 1946 को सीधी
कार्यवाही दिवस के रूप में मनाया गया। इससे कई प्रान्तों में दंगे भड़क उठे।
प्रश्न- 13. भारतीय राष्ट्रवादियों और साम्प्रदायिकतावादियों की राजनीति में आधारभूत
अन्तर क्या था ?
उत्तर-(i) हिन्दुओं के बीच हिन्दू महासभा जैसे हिन्दूवादी संगठनों के बीच अस्तित्व के
कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को और बल मिला।
(ii) हिन्दू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिन्दुओं का देश है, यह कहकर हिन्दू
साम्प्रदायिकतावादियों ने मुस्लिम साम्प्रदायिकतावादियों की बात दोहराई। इस तरह भारत में उन्होंने भी दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को मान लिया।
प्रश्न 14. 1940 के दशक की कोई चार भारतीय इतिहास से जुड़ी घटनाओं का
उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(क) देश में तीव्रता से साम्प्रदायिकता का विकास।
(ख) ब्रिटिश सरकार की द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को घसीटने के विरुद्ध विनोबा भावे
के नेतृत्व में सत्याग्रह का प्रारंभ।
(ग) आजाद हिन्द फौज का गठन।
(घ) भारत छोड़ो आन्दोलन।
प्रश्न 15. भारत विभाजन का लोगों की जिन्दगी पर पड़े प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-भारत विभाजन की (14-15 अगस्त, 1947) वजह से लाखों लोग उजड़ गए, हजारों
शरणार्थी बनकर रह गए। उनको अपनी जिन्दगी नए सिरे से बुननी पड़ी।
प्रश्न 16. भारत की आजादी से जुड़ी खुशी क्यों बदरंग हो गई थी? इस समय दो
उभरे राष्ट्रों के नामों एवं दोनों में आए आकस्मिक परिवर्तन का उल्लेख करें।
उत्तर-1947 में भारत की आजादी से जुड़ी खुशी विभाजन की हिंसा और बर्बरता से बदरंग
पड़ गई थी। ब्रिटिश भारत के दो सम्प्रभु राज्यों, भारत और पाकिस्तान (जिसके पश्चिमी और
पूर्वी भाग थे) में बँटवार से अनेक अकस्मात बदलाव आए। दोनों देशों में लाखों लोगों की जानें
गयीं, अनेक लोगों की जिंदगियाँ पलक झपकते बदल गई, शहर बदले, भारत बदला, एक नये देश का उदय हुआ और ऐसा नरसंहार, हिंसा तथा विस्थापन हुआ जिसका इतिहास में पहले कोई उदाहरण न था।
प्रश्न 17. क्या मस्जिद के सामने संगीत उचित है। मुसलमान इसका कब और कहाँ
विरोध करते हैं?
उत्तर-संगीत एक आनंदमयी कला है लेकिन मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल के सामने वही संगीत
दु:खदायी और परेशान करने वाला बन जाता है। किसी धार्मिक जुलूस के द्वारा या किसी अन्य
प्रदर्शन के दौरान मस्जिद के बाहर संगीत बजाये जाने से हिन्दु-मुस्लिम अथवा सिख-मुस्लिम हिंसा भड़क सकती है। अधिकांश मुसलमान इसे अपनी इबादत अथवा नमाज में खलल (Distur- bance) मानते हैं। सहनशीलता गैर-इस्लामियों को एक ठीक निर्देश देती है कि ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि साम्प्रदायिक सौहार्द्र नहीं बिगड़ना चाहिए।
प्रश्न 18. मुस्लिम लीग के 1940 के प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-मुस्लिम लीग के 1940 के प्रस्ताव की माँग निम्न थी: भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई
इकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में आवश्यकता के अनुसार इलाकों
का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए ताकि हिंदुस्तान के उत्तर पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे
जिन हिस्सों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है उन्हें इकट्ठा करके ‘स्वतंत्र राज्य’ बना दिया जाए
जिनमें शामिल इकाइयाँ स्वाधीन और स्वायत्त होंगी।
प्रश्न 19. निम्नलिखित पदों का संक्षेप में अर्थ लिखिए :
(क) प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस (DirectAction Day)
(ख) मुसलमानों की स्थायी गुलामी।
उत्तर- (क) 16 अगस्त, 1946 का मुस्लिम लीग ने कांग्रेस और ब्रिटिश सरकार पर दबाव
डालने के लिए सीधे कार्यवाही करने का दिन मनाने की घोषणा की। उसकी योजना के अनुसार यदि उससे पाकिस्तान नहीं दिया जाता तो वह पूरी तरह कानून को अपने हाथ में ले लेती। सड़कों घरों आदि में गैर-इस्लामी लोगों के साथ जो भी उचित समझेंगे, मनमाने ढंग से करेंगे।
(ख) मुसलमानों की स्थायी गुलामी उनके एक नेता ने शब्दों के द्वारा अपने इस संदेश को
घोषित किया था, “यदि देश एक रहता है तो चूँकि देश में हिंदुओं की संख्या मुसलमानों से कई
गुना अधिक है तो जब भी देश में चुनाव होंगे सरकार उसी दल की बनेगी जो बहुसंख्यक
धर्मावलंबियों की होगी अर्थात् हिंदू प्रशासन सरकारी ढाँचे आदि में अपनी चलायेंगे और
अल्पसंख्यक हमेशा के लिए उनके दास बन जायेंगे।”
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की मांग को स्पष्ट कीजिए। लीग ने यह माँग
कब रखी थी?
उत्तर-1. जब देश में साम्प्रदायिक दल (लीग तथा हिन्दू सभा) बहुत मजबूत होने लगे थे
मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग कांग्रेस के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई, अब
उसने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में
मिलजाना जान का खतरा है। उसने इस अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक सिद्धांत का प्रचार किया
कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। उनका एक साथ रह सकना असंभव है। 1940
ई. में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पारित करके मांग की कि आजादी के बाद देश के दो भाग
कर दिए जायें और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नाम का एक अलग राज्य बनाया जाए।
2. हिंदुओं के बीच हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम
लीग के प्रचार को बल मिला। “हिंदू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिंदुओं का देश है।’ यह कहकर हिंदू संप्रदायवादियों ने मुस्लिम लीग ही की बात दोहराई।
3. दिलचस्प बात यह है कि हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के विरुद्ध एक-दूसरे
से हाथ मिलाने में संकोच नहीं किया। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, पंजाब, सिंघ और बंगाल में हिंदू
संप्रदायवादियों ने कांगेस के विरोध में मुस्लिम लीग तथा दूसरे सम्प्रदायवादी संगठनों का मंत्रिमंडल बनवाने में मदद की। सांप्रदायवादी दलों में पूर्ण निष्ठा के साथ स्वराज्य में चल रहे संघर्ष में भाग नहीं लिया तथा न ही उन्होंने जनता की सामाजिक, आर्थिक माँग उठाने में ही रुचि ली। वस्तुतः उन्हीं के कारण देश का विभाजन हुआ और आज हमें भारत के अलावा पाकिस्तान और बंगलादेश भी दिखाई पड़ रहे हैं।
प्रश्न 2. मार्च 1940 में पाकिस्तान संबंधी प्रस्ताव किन परिस्थितियों में पारित हुआ?
उत्तर- दूसरे विश्व युद्ध में भारत को बिना भारतीय नेताओं से पूछे घसीट लिए जाने के
विरोध में जब कांग्रेस मंत्रिमण्डलों ने प्रान्तों से त्यागपत्र दे दिए तो जिन्ना और उसकी मुस्लिम
लोग खुश हुई। उसने उस दिन को मुक्ति दिवस के रूप में मनाया। लीग सरकार ने वायदा चाहा
कि भारत से सम्बन्धित संविधान समस्या पर नए सिरे से पुनः विचार करेगी और विना मुस्लिम
लीग के नेताओं को विश्वास के लिए हुए कांग्रेस को नए संविधान बनाने का अधिकार नहीं देगी।
मार्च 1940 में जिन्ना की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग ने ‘द्वि राष्ट्र सिद्धान्त’ की घोषण की जिसके
अनुसार कहा गया कि भारत में हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और किसी भी क्षेत्र
में उनके हित एक जैसे नहीं हैं। जिन्ना के अनुसार पाकिस्तान का गठन ही भारत में साम्प्रदायिक समस्या का स्थायी समाधान है। जिन्ना के अनुसार उत्तरी पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल, सिंध और उत्तरी पश्चिमी प्रांत वह क्षेत्र है। लगभग एक शताब्दी पहले 29 दिसम्बर, 1930 के इसी प्रकार
के विचारों को मोहम्मद इकबाल ने प्रकट किया था।
प्रश्न 3. 1940 अगस्त प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर-इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय जर्मनी द्वारा ब्रिटिश घेराबंदी एवं विश्व के भिन्न
भागों में फासीवाद शक्तियों की विजय से चिन्तित भी थे। उसने भारत के वायसराय लिनलिथगो
को भारतीय नेताओं से बातचीत करने का आदेश दिया ताकि युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग
को यथाशीघ्र प्राप्त किया जा सके। वायसराय ने जो 8 अगस्त, 1940 को घोषणा की वह इतिहास में अगस्त प्रस्ताव (August Offer) कहलाती है। इसकी प्रमुख बातें थीं-
(i) भारत को शीघ्र की औपनिवेशिक स्तर (या स्वतंत्रता) (Dominion Status) दे दिया
जायेगा।
(ii) भारत में नया संविधान बनाने के लिए एक संधिवान सभा का गठन किया जायेगा।
(iii) नई संविधान सभा में भी सम्प्रदायों तथा दलों के प्रतिनिधि शामिल किये जायेंगे।
(iv) भारत की सत्ता तब तक किसी ऐसी सरकार को नहीं सौंपी जाएगी जिसमें सभी
सम्प्रदायों तथा तत्त्वों के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।
(v) युद्ध सम्बन्धी मामलों पर विचार विमर्श के लिए पृथक् समिति का गठन होगा जिससे
भातीय राष्ट्रवादी नेताओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देशी राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि भी
शामिल किये जायेंगे।
(vi) महायुद्ध के दौरान वायसराय की कार्यकारिणी परिषद (कौंसिल) में इंग्लैण्ड सरकार
कुछ स्थानों पर राष्ट्रवादियों को नियुक्त करेगी।
कांग्रेस ने अगस्त, 1940 ई. के प्रस्तावों को ठुकरा दिया क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की बात
नहीं कही गई थी। मुस्लिम लीग ने भी अगस्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि इसमें उसकी
सर्वाधिक प्रबल मांग-पाकिस्तान बनाने की माँग का कोई जिक्र नहीं था। सन् 1942 ई. को ब्रिटेन
की सरकार ने क्रिप्स मिशल को भारत भेजा।
प्रश्न 4. कांग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?
उत्तर-सन् 1924 ई. को ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध प्रयासों में भारतीयों के सक्रिय
सहयोग की बुरी तरह आवश्यकता महसूस हुई ऐसा सहयोग करने के लिए उसने कैबिनेट मंत्री
सर स्टैफेर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च, 1942 ई. में एक मिशन भारत भेजा।
सर स्टैफेर्ड क्रिप्स पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय
आन्दोलन का पक्का समर्थक था।
क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य यहाँ, “जितनी जल्दी सम्भव
हो स्वशासन की स्थापना करना था” फिर भी उसकी एवं कांग्रेसी नेताओं की लम्बी बातचीत
टूट गई। ब्रिटिश नेताओं ने यह माँग मानने से इनकार कर दिया कि शासन सत्ता तुरन्त भारतीयों
को सौंप दी जाये। वे इस वायदे से सन्तुष्ट नहीं थे कि भविष्य में भारतीयों का सत्ता सौंप दी
जायेगी और फिलहाल वायसराय के हाथों में ही निरकुंश सत्ता बनी रहनी चाहिए।
क्रिप्स मिशन की असफलता से भारतीय जनता रुष्ट हो गई। भारत में द्वितीय महायुद्ध के
कारण वस्तुओं का अभाव हो रहा था। चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। अप्रैल 1942 ई. के मध्य लगभग 5 महीनों में ब्रिटिश सरकार तथा भारतीयों के मध्य तनाव बढ़ता ही गया। गाँधी जी भी अब जुझारू हो गये थे।
प्रश्न 5. कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार द्वारा
रखे गये प्रस्तावों से किस प्रकार भिन्न थे? राष्ट्रीय आन्दोलन ने उन्हें क्यों स्वीकार किया ?
उत्तर-मंत्रियों का एक शिष्टमण्डल ब्रिटिश सरकार द्वारा 1946 में भारत भेजा गया। इस
शिष्टमण्डल को ही कैबिनेट मिशन कहते हैं। इस मिशन को भारत इसलिए भेजा गया था कि
इस बात का निर्णय लिया जा सके कि भारत को स्वतंत्रता कैसे दी जाए। इस शिष्टमण्डल ने
कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों दलों से बातचीत की, परन्तु कोई समझौता न हो सका। अतः
शिष्टमण्डल ने स्वयं ही निम्नलिखित सिफारिशें की:
1. सब प्रान्तों की एक ही केन्द्रीय सरकार हो, जिसके अधीन देश की बाहरी नीति, सुरक्षा,
यातायात के साधन आदि प्रमुख विभाग हों।
2. एक वैधानिक असेम्बली का चुनाव हो जो देश के लिए नया संविधान बनाए।
3. नये संविधान के लागू होने तक सभी राजनैतिक दलों की एक अन्तरिम सरकार बनाई
जाए जो प्रशासन का कार्य चलाए।
राष्ट्रीय आंदोलन के नेताओं ने कैबिनेट मिशन की सिफारिशों को इसलिये स्वीकार कर लिया
क्योंकि वे शीघ्र ही स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे जिसका आश्वासन इन शिष्टमण्डल ने दे दिया था।
प्रश्न 6. ब्रिटेन द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा के बाद की प्रतिक्रियाएँ लिखें।
उत्तर-ब्रिटेन द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा (The Announcement of Britain
regarding the Independence of India): 20 फरवरी, 1947 ई. के दिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने यह घोषणा की कि वह भारत की सत्ता भारतीयों को सौंपकर जून, 1948 तक भारत छोड़ देंगे; परन्तु इसके लिए यह आवश्यक है कि लीग और कांग्रेस परस्पर समझौता कर लें। इधर लीग पाकिस्तान प्राप्त किये बिना समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप कांग्रेस को ब्रिटिश सरकार की भारत-विभाजन योजना स्वीकार कर लेनी पड़ी।
कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि इस समय कांग्रेसी नेता संघर्ष से थक चुके थे और उन्हें
सत्ता का मोह सताने लगा था। अत: उन्होंने शीघ्रता से आधा भारत स्वीकार कर लिया। उन्हें शायद इस बात का भय था कि समझौता न होने की दशा में यदि सरकार ने अपना निर्णय वापस ले लिया तो भारतीय स्वतंत्रता का मामला फिर लटक जायेगा और फिर यदि इंग्लैंड में चुनाव हुए
और वहाँ अनुदार दल की सरकार बन गई तो उन्हें स्वतंत्र सत्ता से भी हाथ धोना पड़ेगा।
फलस्वरूप उन्होंने विजय के इस मुहूर्त को हाथ से न जाने देना ही उचित समझा।
प्रश्न 7. अंतरिम सरकार की असफलता का क्या कारण था ?
उत्तर-अंतरिम सरकार की असफलता (Failure of the Interim Government):
अंतरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों दलों को साथ-साथ कार्य करने का अवसर
मिला; परंतु लीग कांग्रेस के हर कार्य में कोई न कोई रोड़ा अटका देती थी। फलस्वरूप देश में
रचनात्मक कार्य किये जाने की बजाय सांप्रदायिकता पर आधारित रक्तपात और लूटमार जैसे बेहूदा कार्य हुए। ऐसे परिणामों को देखकर कांग्रेस ने यह पूरी तरह निर्णय कर लिया कि लीग के साथ मिलकर कार्य करने से देश का विकास संभव नहीं है। अत: उन्होंने ‘एक आवश्यक बुराई’ के
रूप में भारत-विभाजन स्वीकार कर लिया।
प्रश्न 8. लार्ड माउंटबेटन ने विभाजन की योजना को लागू करने में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-लार्ड माउंटबेटन के प्रयास (The Efforts of Lord Mountbatten): भारत
विभाजन की योजना को लागू करने और उस पर कांग्रेस तथा लीग को सहमत करने में सबसे
बड़ी भूमिका लार्ड और लेडी माउंटबेटन ने निभायी। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ, कूटनीति तथा
व्यक्तिगत प्रभाव द्वारा एक ही माह में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया।
अपने साथियों को हथियार फेंकते देखकर गाँधी जी ने भी दुःखी मन से विभाजन स्वीकार कर
लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।
प्रश्न 9. कांग्रेस ने भारत विभाजन को किस उद्देश्य से स्वीकार किया ?
उत्तर-कांग्रेस ने सांप्रदायिक दंगों के भय से मुक्ति पाने के लिए भी यह विभाजन स्वीकार
किया था। यह भय उन्हें लार्ड और लेडी माउंटबेटन ने दिखाया था परंतु क्या कांग्रेस गवर्नर जनरल की बात मानने की बजाय उस पर यह दबाव नहीं डाल सकती थी कि इन दंगों के ‘खलनायकों’ को कुचला जाए। ब्रिटिश सरकार यदि ‘असहयोग आंदोलन’ और ‘भारत छोड़ो’ जैसे जबरदस्त जनआंदोलन कुचल सकती थी तो क्या सांप्रदायिक दंगे फैलाने वाले कुछ एक लोगों को नहीं कुचल सकती थी। यदि ऐसा हो जाता तो भारत विभाजन अवश्य ही टल सकता था।
प्रश्न 10. भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भड़के ?
उत्तर-सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots) : भारत विभाजन में देश में होने वाले
सांप्रदायिक दंगों का भी बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग
की ‘सीधी कार्यवाही’ के कारण सारा देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगा था। हत्याएँ, लूटमार,
आगजनी, बलात्कार जैसे शर्मनाक कार्य हर कूँचे और हर बाजार में देखे जा सकते थे। ये घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही थी। इन घटनाओं के प्रति नेहरू जी को संकेत करते हुए लेडी माउंटबेटन ने कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाए।” दूसरी ओर माउंटबेटन ने पटेल को भी ये दंगे रोकने के लिए भारत-विभाजन पर राजी कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।
प्रश्न 11. सन् 1942 से 1947 तक भारत के स्वतंत्रता संघर्ष की प्रमुख विशेषताओं
की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-1. सन् 1942 से 1947 तक की अवधि के बीच राष्ट्रीय आंदोलन और उग्र रूप धारण
कर लिया। इस वीच सन् 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध लड़ा गया। क्रिप्स मिशन 1942
और कैबिनेट मिशन 1945 में भारत आये। इसी अवधि अर्थात् 1942 में जापान भारत की सीमाओं तक आ पहुंँचा। सन् 1942 में भारतीय नेताओं ने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ छेड़ दिया। क्रुद्ध जनता ने भारी मात्रा में सरकारी सम्पत्ति को हानि पहुँचाई। अंग्रेजी सरकार ने प्रदर्शनकारियों को सखी से दबाया, परन्तु वे समझे गये कि अब उनके भारत में रहने के दिन समाप्त हो गये हैं।
2. अंग्रेजों के विरुद्ध सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में ‘आजाद हिन्द फौज’ का गठन किया
गया। इस सेना ने जापानी सैनिकों से मिलकर बर्मा की ओर से भारत पर धावा बोल दिया परन्तु
दूसरे विश्व युद्ध में अंग्रेजों व उनके मित्र राष्ट्रों को विजय मिली। इससे विवश होकर आजाद
हिन्द फौज को हथियार डालने पड़े।
3. सन् 1945 में जब दूसरा महायुद्ध समाप्त हुआ तब इंग्लैंड की सरकार परिवर्तित हो गयी।
यह सरकार लेबर पार्टी की थी जो भारत को स्वतंत्रता दिलाने के पक्ष में थी। इसलिये उसने कैबिनेट मिशन जैसे अनेक मिशन भारत भेजे जिससे कि भारत को स्वतंत्र कराने की परिस्थितियों का अध्ययन कराया जा सके। इस प्रकार 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिल गई।
प्रश्न 12. 1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की ? (NCERT T.B.Q.1)
उत्तर-1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने यह मांग की कि उपमहाद्वीप के
मुस्लिम-बहुत इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता प्रदान की जाए। इस अस्पष्ट प्रस्ताव में कहीं भी
विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। बल्कि, इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के
प्रधानमंत्री और यूनियनिष्ट पार्टी के नेता सिकंदर हयात खान ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि वह ऐसे पीकस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें “यहाँ मुस्लिम राज और बाकी जगह हिन्दू राज होगा….। अगर पाकिस्तान का मतलब यह है कि पंजाब में खालिस मुस्लिम राज कायम होने वाला है तो मेरा उससे कोई वास्ता नहीं है।” उन्होंने संघीय इकाइयों के लिए उल्लेखनीय स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढाले (संयुक्त) महासंघ के समर्थन में अपने विचारों को फिर दोहराया।
प्रश्न 13. कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ ?
(NCERT T.B.Q. 2)
उत्तर-प्रारंभ में मुस्लिम लीग के नेताओं ने भी एक संप्रभु राज्य के रूप में पाकिस्तान की
माँग खास संजीदगी से नहीं उठाई थी। प्रारंभ में शायद खुद जिन्ना की पाकिस्तान की सोच को
सौदेबाजी में एक पैंतरे के तौर पर प्रयोग कर रहे थे जिसका कि वे सरकार द्वारा कांग्रेस को मिलने वाली रियासतों पर रोक लगाने और मुसलमानों के लिए और रियासतें प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे।
पाकिस्तान के बारे में अपनी माँग पर मुस्लिम लीग की राय पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी।
उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के बीच
बहुत ही कम समय केवल सात साल रहा।
प्रश्न 14. आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे? (NCERT T.B.0.3)
उत्तर-विभाजन के बारे में आम लोग यह सोचते थे कि यह विभाजन पूर्णतया या तो स्थायी
नहीं होगा अथवा शांति और कानून व्यवस्था बहाल के बाद तो सभी लोग अपने मूल स्थान, गाँव,
कस्बा या शहर अथवा राज्य में वापस लौट आएँगे। वे मानते थे कि पाकिस्तान के गठन का मतलब यह नहीं होगा कि जो लोग एक देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से जाएंगे तो उनके साथ बाद में भी कठोरता होगी उन्हें बीजा और पासपोर्ट जरूरी प्राप्त करना होगा। जो लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों और जानकारों से बिछड़ जाएँगे वह हमेशा के लिए बिछड़े रहेंगे। जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों को जाने-अनजाने में अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि दोनों देशों के लोग पूरी तरह हमेशा के लिए जुदा हो जायेंगे। वस्तुत: आम लोगों का सोचना उनके भोलेपन या अज्ञानता और यथार्थ से आँखें बंद कर लेने के समान था।
पश्न 15. विभाजन के खिलाफ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी? (NCERT I.B.Q.4)
उत्तर-विभाजन के खिलाफ गाँधी जी यह दलील देते थे कि विभाजन उनकी लाश पर होगा।
वे विभाजन के कट्टर विरोधी थे। उन्हें यह यकीन था कि वे देश में साम्प्रदायिक पुनःस्थापना
करने में कामयाब होंगे। लोग घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे और सभी मिलकर दो भाइयों की तरह अपनी सभी समस्याओं का निदान कर लेंगे। प्रारंभ में साम्प्रदायिक सद्भाव पुनः स्थापित
करने में उन्हें सफलता भी मिली। उनकी आयु 77 वर्ष की थी। वह यह मानते थे कि उनके अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिक भाईचारा के विचारों को हिन्दू और मुसलमान दोनों ही मानते हैं। गाँधी जी जहाँ भी गए, पैदल गए। उन्होंने हर जगह हिन्दुओं और मुसलमानों को शांति बनाए रखने, परस्पर प्रेम और एक-दूसरे की रक्षा करने का आह्वान किया। गाँधीजी मानते थे कि सैकड़ों साल से हिन्दू-मुस्लिम इकट्ठे रहते आ रहे हैं, वे एक जैसी वेशभूषा पहनते हैं, एक जैसा भोजन खाते हैं, इसलिए शीघ्र ही आपसी घृणा भूल जायेंगे और वे पहले की तरह एक-दूसरे के दुःख-सुख में हिस्सा लेंगे।
प्रश्न 16. विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना
जाता है? (NCERT T.B.Q.5)
उत्तर-भारत के विभाजन के एक ऐतिहासिक मोड़ इसलिए समझा जाता है क्योंकि विभाजन
तो पहले भी हुए लेकिन यह विभाजन इतना व्यापक और खून-खराबे वाला था कि दक्षिण एशिया के इतिहास में इसे एक नए ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देखा गया। हिंसा अनेक बार हुई। दोनों सम्प्रदाय के नेता विभाजन के दुष्ट परिणामों की कल्पना भी नहीं कर सके। इस विभाजन के दौरान भड़के साम्प्रदायिक दंगों के कारण लाखों लोग मारे गए और नए सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए विवश हुए।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
(Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. वेवेल योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-लार्ड वेवेल अक्टूबर 1943 ई. में भारत के वायसराय नियुक्त हुए। वे भारत की
समस्या के प्रति उदार विचार रखते थे। उन्होंने 14 जून, 1945 ई. को अपनी एक योजना प्रस्तुत
की। उसकी मुख्य बातें निम्न थी-
1. सरकार भारत के राजनैतिक गतिरोध को दूर करके उसे स्वशासन के लक्ष्य की ओर
अग्रसर करना चाहती है।
2. गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद् में शामिल होने के लिए राजनैतिक दलों के नेताओं
को निमंत्रित किया जाता है। गवर्नर जनरल तथा प्रधान सेनापति के अतिरिक्त इसके सभी सदस्य
भारतीय नेता ही होंगे।
3. भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा गवर्नर जनरल को जो विशेषाधिकार दिए गए हैं,
उनका अकारण प्रयोग नहीं किया जायेगा।
4. भारत सरकार का विदेशी (सीमान्त कवायली विषयों को छोड़कर) भारतीय सदस्य के
हाथ में होगा।
5. कार्यकारिणी परिषद् में हिन्दुओं और मुसलमानों की संख्या बराबर होगी।
6. युद्ध की समाप्ति पर भारतीय अपने संविधान का स्वयं निर्माण करेंगे।
7. शिमला में शीघ्र ही भारत के विभिन्न राजनैतिक दलों का सम्मेलन बुलाया जायेगा।
8. सरकार ने कांग्रेस तथा अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को शिमला में लॉर्ड वेवेल से
वार्ता के लिए बुलाया। कांग्रेस ने वेवेल योजना को मान लिया किन्तु मुहम्मद अली जिन्ना ने इसे
अस्वीकार कर दिया। वह इस बात के लिए तैयार न थे कि कांग्रेस गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में कोई प्रतिनिधि मनोनीत करे। उनका कहना था कि मुसलमानों को मनोनीत करने का दायित्व
केवल मुस्लिम लीग का है क्योंकि वह मुसलमानों की एकमात्र प्रतिनिधि संस्था है। इसके विरुद्ध
कांग्रेस एक मुस्लिम प्रतिनिधि को मनोनीत करने के लिए अड़ी हुई थी। अतः यह योजना भी
असफल हो गई।
प्रश्न 2. कैबिनेट मिशन योजना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऐटली व उसकी लेबर पार्टी भारत की राजनीतिक समस्याओं को
यथाशीघ्र हल करना चाहती थी। अत: उसने मार्च, 1946 में भारत में अपनी कैबिनेट के तीन मंत्रियों पैथिक लॉरेंस, सर स्टेफर्ड क्रिप्स तथा ए. वी. एलेक्जेंडर को ऐसा संविधान बनाने के लिए भारत भेजा, जो देश में सभी दलों को मान्य हो। पैथिक लॉरेन्स उस समय भारत मंत्री थे। उन्हें भारत से सच्ची सहानुभूति थी। उन्होंने आते ही स्पष्ट शब्दों में कहा-“मैं स्वतंत्रता प्राप्ति में भारत की सहायता करने आया हूँ।” कैबिनेट मिशन मुसलमानों के लिए पाकिस्तान का एक अलग राज्य
बनाने के विरुद्ध था। इस मिशन ने भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की कांफ्रेंस
बुलाई किन्तु यह समझौता वार्ता भी पूर्ण रूप से असफल रही। कांग्रेस देश को संगठित रखना
चाहती थी, किन्तु मुस्लिम लीग उसके टुकड़े करने पर तुली हुई थी। मुस्लिम लीग की पाकिस्तान
की माँग को न्यायोचित नहीं माना गया। अन्त में कैबिनेट मिशन ने 16 मई, 1946 ई. को
निम्नलिखित सिफारिशें कीं-
1. ब्रिटिश इंडिया के प्रान्तों तथा देशी रियासतों को मिलाकर एक भारतीय संघ बनाया
जाएगा जिसे केवल प्रतीक्षा, विदेशी मामले तथा संचार साधनों के विभाग दिए जायेंगे।
2. संघ की कार्यपालिका तथा विधानमण्डल में प्रान्तों तथा रियासतों के प्रतिनिधि होंगे।
3. विधानमण्डल में साम्प्रदायिक प्रश्नों का निर्णय केवल सदन के सदस्यों के बहुमत से ही
नहीं किया जाएगा बल्कि हिन्दू तथा मुसलमान सदस्यों के अलग-अलग बहुमत लेने भी आवश्यक होंगे।
4. तीन विभागों को छोड़कर अन्य सब विभाग प्रान्तों के अधिकार में होंगे।
5. भारतीय संविधान को बनाने के लिए एक संविधान सभा की व्यवस्था की जायेगी, जिसमें
विभिन्न प्रान्तों, रियासतों तथा जातियों के सदस्य उनकी जनसंख्या के अनुसार लिए जायेंगे।
6. संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे जिनमें से 292 सदस्य प्रान्तों से, 4 सदस्य चीफ
कमिश्नर प्रान्तों से तथा 93 सदस्य भारतीय रियासतों के प्रतिनिधि होंगे।
7. प्रत्येक प्रांत से उसकी जनसंख्या के आधार पर दस लाख की जनसंख्या पर एक सदस्य
के हिसाब से प्रतिनिधि चुनने थे।
8. संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होना था और इसके
लिए केवल तीन प्रकार की व्यवस्था थी-(1) सामान्य स्थान, (2) मुस्लिम स्थान, (3) सिक्ख स्थान।
9. संविधान सभा में सरकार द्वारा कोई सदस्य मनोनीत नहीं किया जाना था।
10. संविधान सभा अपनी इच्छानुसार किसी भी प्रकार का संविधान बना सकती थी।
11. सभी प्रान्तों को तीन वर्गों में बाँटा गया था-
(i) उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बम्बई, मद्रास, बिहार व उड़ीसा अर्थात् हिन्दू बहुसंख्यक प्रांत,
(ii) पंजाब, सिन्ध व उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त अर्थात् पश्चिम के मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत, तथा
(iii) असम व बंगाल अर्थात् पूर्व के मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत।
12. 389 सदस्यों की एक संविधान सभा हो जिसके 292 सदस्य देशी रियासतों के तथा
4 सदस्य चीफ कमिश्नर के प्रान्तों के प्रतिनिधि हों। यह संविधान सभा भारत के संविधान का निर्माण करे।
13. जब तक एक नए संविधान का निर्माण हो, उस समय तक केन्द्र में विभिन्न राजनीतिक
दलों की एक अन्तरिम सरकार बनाई जाए। इसमें 13 सदस्य हों जिनमें 6 कांग्रेसी, 5 मुस्लिम लीग,1 भारतीय ईसाई व 1 पारसी हो।
14. अन्तरिम सरकार के सारे विभाग भारतीय मंत्रियों के अधीन हों।
मुस्लिम लीग इन सिफारिशों से पूर्णतः असंतुष्ट थी, फिर भी कैबिनेट मिशन ने इंग्लैण्ड लौटने
से पूर्व कांग्रेस व मुस्लिम लीग को संविधान सभा के सदस्यों को चुनने तथा अन्तरिम सरकार
बनाने के लिए तैयार कर लिया।
प्रश्न 3. कैबिनेट मिशन से क्या आशय है ? भारतीय नेताओं के साथ इसकी बातचीत
के क्या नतीजे निकले ?
अथवा, कैबिनेट मिशन योजना, 1946 के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के पश्चात् ब्रिटेन में चुनाव हुए और वहाँ श्रमिक दल
की सरकार बनी। प्रधानमंत्री का पद सर क्लेमेट ऐटली ने संभाला। उन्हें भारतीयों के साथ
सहानुभूति थी और वह भारतीय समस्या का समाधान अति शीघ्र कर देना चाहते थे। इस उद्देश्य
से उन्होंने भारत में एक मंत्रिमंडल अथवा कैबिनेट मिशन भेजने की घोषणा की। इस मिशन को
किसी भी प्रकार के निर्णय का पूरा अधिकार था।
मिशन का भारत आगमन (Arrival of the Mission in India): ऐटली की घोषणा
के अनुसार एक मंत्रिमंडलीय मिशन मार्च, 1946 ई. में भारत पहुँचा। मिशन के तीन सदस्य
थे-लॉर्ड पैथिक लारेंस, सर स्टैफर्ड क्रिप्स तथा ए. बी. अलेक्जेण्डर। मिशन ने भारत के विभिन्न
राजनीतिक दलों से बातचीत की और कुल मिलाकर 472 भारतीय नेताओं से भारतीय समस्याओं पर विचार विमर्श किया। इतना प्रयास करने के बावजूद भी वह सांप्रदायिक समस्या तथा पाकिस्तान की माँग के विषय में किसी ठोस निष्कर्ष पर न पहुँच सका। इस प्रश्न का समाधान करने के लिए शिमला में कांग्रेस और मुस्लिम लीग का सम्मिलित अधिवेशन बुलाया गया। अंत में मिशन ने दोनों को अपने निर्णयों पर राजी कर लिया। 16 जुलाई, 1946 ई. के दिन कैबिनेट मिशन ने अपनी योजना प्रस्तुत की। इस योजना के गुण-दोषों का वर्णन इस प्रकार है-
1. गुण (Merits): कैबिनेट मिशन की योजना से कई उद्देश्यों की पूर्ति हुई-
(i) इस योजना के अनुसार पाकिस्तान की माँग को स्वीकार कर लिया गया था और भारत
की अखंडता तथा राष्ट्रीय एकता को सुरक्षित रखा गया था।
(ii) इसमें संविधान संभा व्यवस्था, उसके द्वारा संविधान का निर्माण तथा सभा के सदस्यों
के निर्वाचन की व्यवस्था से भारत के भावी संविधान को प्रजातांत्रिक आधार प्रदान करने का
शानदार प्रयास था।
(iii) संविधान सभा में सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व को अत्यंत सीमित कर दिया गया था।
(iv) संविधान बनने तक अंतरिम सरकार की व्यवस्था भी एक शानदार योजना थी। यह
सरकार पूर्ण रूप से भारतीय होनी थी।
(v) योजना के अनुसार देशी राज्यों की जनता के साथ भी न्याय किया गया था। अब देशी
रियासतों के प्रतिनिधित्व की व्यवस्था भी दी गई थी। विशेष बात यह थी कि ये तनिधि
राजाओं द्वारा मनोनीत न होकर एक मध्यस्थ समिति द्वारा निर्धारित किए जाने थे।
(vi) भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल की सदस्यता छोड़ने का अधिकार दिया जाना स्वतंत्रता प्राप्ति का स्पष्ट चिन्ह था।
(vii) मुस्लिम लीग की संतुष्टि के लिए भी योजना में लगभग सभी महत्वपूर्ण व्यवस्थाएँ
की गई थीं। उदाहरण के लिए प्रांतों को मिलाना, सांप्रदायिक चुनाव व्यवस्था तथा सांप्रदायिक प्रश्न पर निर्णय लेने के लिए संबंधित जातियों के प्रतिनिधियों के बहुमत की व्यवस्था इत्यादि।
2. दोष (Demerits) : (i) भारत संघ की व्यवस्था अवश्य ही एक अच्छा प्रयास था, परंतु
संघ के केन्द्र की शक्तियाँ बहुत कम थीं। इसे केवल विदेश नीति, सुरक्षा तथा संचार संबंधी विषय
ही सौंपे गए थे जिनके आधार पर कोई भी केन्द्रीय सरकार सफल नहीं हो सकती थी।
(ii) कैबिनेट मिशन का दूसरा मुख्य दोष यह था कि प्रांतों को ग्रुपों में बाँटने का आधार
सांप्रदायिक भी हो सकता था। इसके बाद भी पाकिस्तान के निर्माण की संभावना हो सकती थी।
(iii) भावी संविधान का आधार प्रजातांत्रिक अवश्य था, परंतु उसमें अधिक ठोसता नहीं थी।
(iv) योजना में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि प्रांतों का वर्गीकरण अनिवार्य है अथवा
नहीं। इस बात पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग में मतभेद आरंभ हो गया, क्योंकि कांग्रेस इसे ऐच्छिक समझती थी जबकि लीग आवश्यक मानती थी।
(v) देशी रियासतों के लिए यह अनिवार्य नहीं था कि वे भारत संघ में शामिल हों। यह
बात भारतीय अखंडता और एकता के विरुद्ध थी।
(vi) संविधान सभा की शक्तियाँ सीमित थीं। उसे योजना की सिफारिशों से हटकर संविधान
बनाने का अधिकार नहीं था।
(vii) अंतरिम सरकार की शक्तियाँ निश्चित नहीं थी। साथ ही उसमें सिफारिशों से हटकर
संविधान बनाने का अधिकार नहीं था।
(viii) ‘प्रांतीय समूहीकरण’ सिक्खों के हितों के सर्वथा विपरीत था। अधिकांश सिख पंजाब
में ही थे, अत: मुस्लिम प्रांतों का समूह बन जाने के पश्चात् उन्हें मुस्लिम लीग की दया पर ही
निर्भर रहना पड़ता।
(ix) अंतरिम सरकार की अवधि भी स्पष्ट नहीं की गई थी। इस विषय में कुछ नहीं कहा
गया था कि ब्रिटेन कब और किस समय भारत को सत्ता हस्तांतरित करेगा।
(x) योजना का सबसे बड़ा दोष यह था कि इसे केवल स्वीकार अथवा अस्वीकार ही किया
जा सकता है। इसमें किसी अन्य आवश्यक सुधार के लिए सुझाव असंभव था।
प्रश्न 4. माउंटबेटन योजना क्या थी? इसके मुख्य प्रावधान क्या थे ?
अथवा, माउंटबेटन योजना क्या थी? इसके प्रमुख परिणामों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-1. 3 जून, 1947 को लार्ड माउंटबेटन ने भारत विभाजन योजना रखी। इसमें संविधान
सभा को कार्य जारी रखने को कहा गया। यह भी कहा गया कि यह संविधान उन पर लागू नहीं
होगा।
2. पंजाब व बंगाल का विधानमंडल मुस्लिम और गैर-मुस्लिम जिलों के अनुसार बाँटा जायेगा।
3. बलूचिस्तान के लोगों को आत्म-निर्णय लेने का अधिकार होगा।
4. पंजाब, बंगाल व सिलहट में संविधान सभा के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव होगा और
भारतीय राजाओं को संप्रभुसत्ता लौटा दी जायेगी।
प्रावधान (Provisitons):
1. इसमें कहा गया कि ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त, 1947 को भारत की सत्ता ऐसी सरकार
को सौंपेगी जिसका निर्माण जनता की इच्छा के अनुसार हुआ हो।
2. वर्तमान सविधान सभा में सरकार किसी प्रकार की बाधा नहीं डालेगी।
3. संविधान को उन भागों में लागू किया जायेगा जो उसे लागू करना चाहेंगे।
4. इस योजना के अनुसार भारत को दो अधिराज्यों में बाँट ‘दया जायेगा : भारत और
पाकिस्तान। दोनों को 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता दे दी जायेगी।
5. यह तय किया गया कि बंगाल और पंजाब में विधान सभाओं के अधिवेशन दो भागों
में किए जाएंँगे। एक भाग में मुस्लिम बहुमत जिलों के प्रतिनिधि होंगे और दूसरे भाग में हिन्दू
बहुमत जिले के। प्रत्येक भाग बहुमत के आधार पर फैसला करेगा कि वह उस भाग का विधान
चाहते हैं या नहीं।
6. सिंध की विधान सभा तय करे कि वह भारत की संविधान सभा में मिलना चाहती है
या नहीं।
7. असम के मुस्लिम बहुमत प्रांत सिलहट जिले में इस बात का निर्णय जनमत संग्रह द्वारा
लिया जायेगा कि वहाँ की जनता असम में या पूर्वी बंगाल (बंगला देश) में रहना चाहती है।
8. बलूचिस्तान भी तय करे कि वह भारत में रहेगा या अलग।
9. उत्तर-पश्चिम प्रांत में जनमत द्वारा निर्णय होगा।
10. यदि बंगाल, पंजाब और असम के द्वारा भारत का विभाजन मान लिया जाए तो भारत
और पाकिस्तान की सीमाएँ तय करने के लिए गवर्नर जनरल एक कमीशन बनाएगा।
11. भारत और पाकिस्तान राज्यों के बीच लेन-देन विभाजन के लिए भी समझौता होगा।
12. देशी रियासतों को भी भारत या पाकिस्तान में अपनी इच्छानुसार मिलने की छूट होगी।
13. भारत और पाकिस्तान को राष्ट्रमंडल की सदस्यता रखने या छोड़ने का अधिकार होगा।
प्रश्न 5. भारत को किन परिस्थितियों में स्वतंत्रता प्राप्त हुई ?
उत्तर-कैबिनेट मिशन की सिफारिशों से मुस्लिम लीग पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थी। फिर भी
कैबिनेट मिशन ने इंग्लैंड लौटने से पूर्व कांग्रेस व मुस्लिम लीग को संविधान सभा के सदस्यों को
चुनने तथा अन्तरिम सरकार बनाने के लिए तैयार कर लिया। सितम्बर 1946 ई. को जवाहरलाल
नेहरू की अध्यक्षता में अन्तरिम सरकार बनी। कुछ दिनों बगद (अक्टूबर, 1946 ई. में) मुस्लिम
लीग भी इस सरकार में शामिल हो गई, लेकिन उसने संविधान सभा का बहिष्कार किया। वह
देश विभाजन की मांँग पर अड़ी रही। फलस्वरूप देश को साम्प्रदायिक दंगों की आग में जलना
पड़ा। इस तरह क्रिप्स मिशन मुस्लिम लीग की हठधर्मी के कारण असफल हो गया और विभाजन
की मांँग पर अड़ी रही जिससे बंगाल, बिहार तथा बम्बई आदि नगरों में साम्प्रदायिक दंगे हुए जिनमें बड़ी संख्या में हिन्दू-मुसलमान मारे गए। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने 20 फरवरी, 1947 ई. को घोषणा की कि अंग्रेज जून 1948 ई. तक भारत छोड़ देंगे। मार्च 1947 ई. में लार्ड माउंटबेटन भारत में वायसराय बनकर आया। उसने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में समझौते का एक रास्ता निकाला कि देश स्वाधीन तो होगा किन्तु एक नहीं रहेगा। उन्होंने भारत की स्वाधीनता के लिए जो योजना बनायी उसे माउण्ट बेटन योजना कहा जाता है।
मांउटबेटन ने ब्रिटिश सरकार से स्वीकृति लेकर 3 जून, 1947 ई. को अपनी योजना प्रस्तुत
कर दी, जिसे कांग्रेस व लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया। इस योजना की मुख्य विशेषताएँ
निम्नलिखित थीं-
(1) भारत का दो भागों-भारत और पाकिस्तान में विभाजन कर दिया जायेगा।
(2) बंगाल एवं पंजाब का विभाजन किया जाएगा और इस बात का निर्णय यहाँ की व्यवस्थापिकाएँ करेंगी।
(3) असम के सिलहट जिले के लोगों को यह निर्णय करना था कि वे असम में रहना चाहते
हैं अथवा पूर्वी बंगाल में।
(4) पश्चिमोत्तर सीना प्रांत के लोगों को जनमत संग्रह से तय करना था कि वे भारत में
रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में।
(5) दोनों देशों की स्वतंत्रता की तिथि 15 अगस्त निश्चित कर दी गई।
(6) देशी रियासतों को भारत या पाकिस्तान में मिलने अथवा अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए
रखने का अधिकार दिया गया।
(7) दोनों भावी राज्यों को राष्ट्रमंडल में रहने या न रहने की स्वतंत्रता दी गई।
प्रश्न 6. भारत का विभाजन क्यों हुआ?
अथवा, 1947 में भारत के विभाजन के कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर-कई नेताओं के न चाहने पर भी भारत विभाजन को रोका नहीं जा सका। इसके लिए
निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे:
1. सन् 1909 के कानून में मुसलमानों के लिए निर्वाचन का अधिकार देकर अंग्रेजों ने उन्हें
हिन्दुओं से अलग करने का प्रयास किया। ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति से मुस्लिम
लीग की पाकिस्तान की माँग भी और तेजी से बढ़ती गई।
2. कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के साथ सदा समझौता करने की नीति अपनाई। इससे मुस्लिम
लीग को यह आशा हो गई कि यदि वह अपनी माँग पर डटी रही, तो एक न एक दिन पाकिस्तान
की माँग ली जाएगी।
3. मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना की हठधर्मिता के कारण हिन्दू-मुस्लिम दंगे
भड़क उठे, अत: विवश होकर भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया गया।
4. साम्प्रदायिक दंगों ने स्थान-स्थान पर नेताओं और जनता को अत्याचार बंद करने को
लाचार कर दिया था, अन्यथा पूरा देश रक्त के सागर में डूब जाता।
5. सन् 1946 में अन्तरिम सरकार में शामिल होने पर मुस्लिम लीग ने कांग्रेस की योजनाओं
में रुकाव डालनी प्रारम्भ कर दी। कांग्रेस के नेताओं को भी लगने लगा कि वे मुस्लिम लीग पार्टी
के साथ मिलकर सरकार नहीं चला पाएँगे।
5. लार्ड माउंटबेटन भारत में राजनैतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए यहाँ का वायसराय
बनकर आया था। उसने अपने प्रभाव से कांग्रेस पार्टी को विभाजन के लिए तैयार कर लिया था।
प्रश्न 7. “भारत का विभाजन अंग्रेजी सरकार की नीतियों की चरम सीमा तथा
सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न जटिल स्थितियों का परिणाम था।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
अथवा, वर्ष 1930 और 1940 के दशक में सांप्रदायिकता के विकास का विवेचन
कीजिए। राष्ट्रवादी आंदोलन द्वारा इसको रोकने के लिए किये गये प्रयासों का आकलन
कीजिए।
उत्तर-इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत का विभाजन अंग्रेजी सरकार की नीतियों की चरम
सीमा तथा सांप्रदायिक दलों द्वारा उत्पन्न जटिल स्थितियों का परिणाम था। अंग्रेजी सरकार आरंभ से ही ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर चल रही थी। उनकी इस नीति के परिणामस्वरूप देश के सांप्रदायिक दलों को बल मिला। उन्होंने एक-दूसरे के विरुद्ध घृणा और द्वेष की भावना फैलाकर देश के विभाजन की भूमिका तैयार की। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जायेगी-
1. ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति (Divide and Rule Policy) : 1857 ई. के
विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना ली। उन्होंने
भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों दोनों
को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने
लगे।
2. मुस्लिम दल के प्रयत्न (Efforts of the Muslim League): 1906 ई. में मुसलमानों
ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। फलस्वरूप हिन्दू-मुस्लिग भेदभाव बढ़ने
लगा। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में सांप्रदायिकता फैलानी आरंभ कर दी। 1940 ई. तक
हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतना बढ़ गया कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की
माँग की।
3. कांग्रेस की कमजोर नीति (Weak policy of the Congress) : मुस्लिम लीग की
माँगे दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई. के लखनऊ
समझौते के अनुसार कांग्रेस ने सांप्रदायिक चुनाव प्रणाली को स्वीकर कर लिया। कांग्रेस की इस
कमजोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की माँग करनी आरंभ कर दी।
4. सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots): पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम
लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ आरंभ कर दी और सारे देश में सांप्रदायिक दंगे होने लगे। इन दंगों
को केवल भारत-विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।
5. अंतरिम सरकार की असफलता (Failured nterim Government): 1946
ई. में बनी अंतरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर
मिला, परन्तु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप
अंतरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते हैं।
6. इंग्लैंड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा (Declaration to leave India by the
England) : 20 फरवरी, 1947 को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ऐटली ने जून, 1948 ई. तक भारत
छोड़ देने की घोषणा की। घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज केवल उसी दशा में भारत
छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परंतु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारत विभाजन की योजना बनानी आरंभ कर दी।
7. भारत का विभाजन (Division of India) : भारत विभाजन के उद्देश्य हेतु लॉर्ड
माउंटबेटन को वायसराय बना कर भारत भेजा गया। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से एक ही मास
में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। आखिर 1947 ई. को भारत को दो
भागों में बाँट दिया गया।
प्रश्न 8. ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया ? (NCERT T.B.Q.6)
उत्तर-ब्रिटिश भारत का बँटवारा कई कारणों और कारकों की वजह से किया गया :
(i) अंग्रेज ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाते थे। उन्होंने अपनी इस नीति को
सफल बनाने के लिए साम्प्रदायिक ताकतों, साहित्य, लेखों और मध्यकालीन भारतीय इतिहास से ऐसी घटनाओं का बार-बार उल्लेख किया जो साम्प्रदायिकता को बढ़ा सकती थीं।
(ii) मुस्लिम लीग का अस्तित्व उसके द्वारा उठाई जाने वाली पीकस्तान की मांँग की थी।
उसका यह दावा कि भारत में वह मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है और कांग्रेस का यह दावा
कि अनेक मुसलमान विभाजन नहीं चाहते अंतत: ऐतिहासिक दृष्टि से गलत साबित हुआ।
(iii) अनेक हिन्दू संगठनों ने शुद्धिकरण और मुस्लिम संगठनों ने तबलीक आंदोलन चलाकर
देश में साम्प्रदायिक माहौल को खराब किया।
(iv) 1935 और 37 के मध्य कांग्रेसी मंत्रिमंडलों में मुस्लिम लीग को शामिल नहीं किया
गया। इससे मुस्लिम लीग में निराशा हुई। उसने देश विभाजन और पाकिस्तान बनाए जाने की माँग पर जोर दिया।
(v) भारत में देसी रियासतों की संख्या बहुत बड़ी थी। इन रियासतों के शासक भी देश
का बँटवारा चाहते थे ताकि उन्हें विभाजन के बाद मनमानी करने की छूट मिल सके।
(vi) साम्प्रदायिक दंगे कई बार हुए। इन दंगों में कई लोगों की जानें गईं, सम्पत्ति की हानि
हुई और महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार हुए। लोग यह मानते थे कि देश विभाजन के बाद
साम्प्रदायिक दंगे स्थायी तौर पर हल हो जायेंगे। कहने को यह सब कुछ था वस्तुत: बँटवारे के
बाद भी देश में साम्प्रदायिक सद्भाव नहीं बना। मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के प्रस्ताव में पहले
ही पाकिस्तान शब्द का प्रयोग 1933 में चौधरी रहमत अली ने किया। मोहम्मद इकबाल 1930
में उत्तरी पश्चिमी फ्रंटियर मुस्लिम प्रदेश बनाने की जरूरत पर जोर दिया और 1940 में मुस्लिम
लीग ने पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया और 16 अगस्त, 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस
मानकर देश विभाजन की माँग को सुदृढ़ कर दिया।
प्रश्न 9. बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे ? (NCERT T.B.Q.7)
उत्तर-बँटवारे के समय औरतों के अनुभव प्रायः बहुत खराब रहे। अनेक औरतों को अगवा
कर लिया गया। उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया गया। अनेक युवतियों से बलात्कार या
जबरन विवाह अथवा निकाह किए गए। अनेक महिलाओं के गुप्त अंग काट दिए गए। अनेकों
के सामने उनके सुहाग या गोद उजाड़ दी गई। अनेक महिलाओं से धन और गहने लूट लिए गए।
अनेक महिलाओं को शांति स्थापित होने के बाद उनके परिवारजनों ने ही उन्हें स्वीकार नहीं किया। उन्हें अपना पेट भरने के लिए वेश्यावृत्ति जैसे निंदनीय व्यवसाय को अपनाना पड़ा। अनेक पुरुषों ने अपनी माँ, बहन, पत्नी और बेटी को जीवित ही स्वयं जला दिया या मार दिया क्योंकि उन्हें दूर से आती भीड़ को देखकर यह पूरा यकीन हो जाता था कि वह अब अपने महिला परिवारजनों की इज्जत नहीं बचा पायेंगे।
प्रश्न 10. बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली? (NCERT T.B.Q.8)
उत्तर-बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कई कारणों से वदली:
(i) वह मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की माँग छोड़ने के लिए उसे राजी करने
में विफल रही।
(ii) दूसरा मुस्लिम लीग में ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए माँग
कर कुछ कांग्रेसियों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि शायद कुछ समय बाद गाँधी
जी देश की एकता को पुनः स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगे।
(ii) कुछ कांग्रेसी नेता सत्ता के प्रति ज्यादा लालायित थे। वे चाहते थे कि चाहे देश का
विभाजन हो लेकिन अंग्रेज चले जाएँ और उन्हें तुरंत सत्ता मिल जाये।
(iv) मुस्लिम लीग के द्वारा प्रत्यक्ष सीधी कार्यवाही करने की धमकी और बंगाल में उसके
द्वारा बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे भड़काना, हिन्दू महासभा जैसे साम्प्रदायिक दल के द्वारा, हिन्दू राष्ट्र की बात उठाना और कुछ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा यह घोषित कर देना कि यदि लीग और कांग्रेस किसी निर्णय पर नहीं पहुँचेंगे तो भी अंग्रेज भारत को छोड़कर चले जायेंगे। कांग्रेस जानती थी कि 90 साल गुजरने के बाद भी अंग्रेज अपनी महिलाओं, बच्चों आदि के लिए वे खतरे नहीं उठाना चाहते थे जो उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अनुभव किए थे।
(v) 1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुत थी वहाँ मुस्लिम लीग की
सफलता, मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल
न होना और जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार बल देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र
विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही।
प्रश्न 11. मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास
की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है ?
(NCERTT.B.0.9)
उत्तर-मौखिक इतिहास हमारे देश के इतिहास की टूटी कड़ियों को जोड़ने में सहायक है।
जो पुराने लोग विवरण सुनाते हैं वे अपने संस्मरणों, डायरियों, परिवार संबंधी इतिहास और अपने द्वारा लिखे गए ब्यौरों को इतिहासकारों की अनेक कठिनाइयों और स्रोत संबंधी जानकारी को प्राप्ति की कठिनाइयों को दूर करने और इतिहास को समझने में सहायता देते हैं।
हमारे देश का विभाजन अगस्त 1947 में हुआ। लाखों लोगों ने बँटवारे की पीड़ा और उसके
अश्वेत (काले) दौरे को देखा। उनके लिए केवल संवैधानिक विभाजन या राजनैतिक पार्टियों द्वारा
उठाए गए दलगत राजनीतिक मामला नहीं था। मौखिक इतिहास की गवाही देने वाले और सुनने
वाले लोगों के लिए यह बदलावों का ऐसा वक्त था जिनकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी।
1946 से 1950 के और उसके बाद भी जारी रहने वाले इन परिवर्तनों से निपटने के लिए
विद्वानों को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समायोजन की आवश्यकता थी। यूरोपीय
महाध्वंस की भाँति हमें देश विभाजन को एक राजनैतिक घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए
अपितु इससे गुजरने वाले अर्थों के माध्यम से भी समझना चाहिए। किसी घटना की हकीकत को
स्मृतियाँ और अनुभव से भी आकार प्राप्त होता है।
व्यक्तिगत स्मृतियों-जो एक तरह का मौखिक स्रोत है – कि एक खूबी यह है कि उनमें हमें
अनुभवों और स्मृतियों को और बारीकी से समझने का मौका मिलता है। इससे इतिहासकारों को
बँटवारे जैसी घटनाओं के दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, इस बारे में बहुरंगी और सजीव
वृत्तांत लिखने की काबलियत मिलती है। सरकारी दस्तावेजों से इस तरह की जानकारियाँ हासिल
कर पाना नामुमकिन होता है।
परंतु हमें इस बात का पता होना चाहिए कि बँटवारे के बारे में मौखिक विवरण खुद-ब-खुद
या आसानी से उपलब्ध नहीं होते। उन्हें साक्षात्कार (Interview) के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है और साक्षात्कार में भी लोगों के दर्द के अहसास और सूझबूझ से काम लेना पड़ता है। इस संदर्भ में सबसे पहले मुश्किल यही होती है कि मुमकिन है इन अनुभवों से गुजरने वाले निहायत निजी आपबीती के बारे में बात करने को राजी ही न हो। उदाहरणार्थ कोई ऐसी औरत किसी अजनबी के सामने अपने खौफनाक अनुभवों को कैसे बेपर्दा कर देगी जिसका बलात्कार किया गया था ? साक्षात्कार लेने वालों को किसी की एकदम निजी पीड़ा और सदमे में झाँकने से आम तौर पर परहेज करना चाहिए। उन्हें पीड़ित महिला से सघन और उपयोगी जानकारियाँ हासिल करने के लिए आत्मीय संबंध विकसित करने चाहिए। इसके बाद याददाश्त की समस्या आती है, सो अलग। किसी घटना के बारे में कुछ दशक बाद जब बात की जाती है तो लोग क्या याद रखते
हैं या भूल जाते हैं, यह आंशिक रूप से इस पर निर्भर करता है कि बीच के सालों में उनके अनुभव किस तरह के रहे हैं, इस दौरान उनके समुदायों और राष्ट्रों के साथ क्या हुआ है। मौखिक
इतिहासकारों को विभाजन के “वास्तविक” अनुभवों को “बनावटी” यादों के जाल से बाहर
निकालने का चुनौतीपूर्ण काम भी करना पड़ता है।
निष्कर्ष (Conclusion) : विभाजन का एक समग्र वृत्तांत बुनने के लिए बहुत तरह के स्रोतों
का इस्तेमाल करना जरूरी है ताकि हम उसे एक घटना के साथ-साथ एक प्रक्रिया के रूप में
भी देख सकें और उन लोगों के अनुभवों को समझ सकें जो उस स्याह खौफनाक दौर से गुजर
रहे थे।
★★★