12-economics

bihar board 12 class economics | प्रतिस्पर्धारहित बाजार

bihar board 12 class economics | प्रतिस्पर्धारहित बाजार

                                  [Non-Competitive Market]
                             स्मरणीय बिन्दु (Point of Remember)
1. पूर्ण प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा (Perfect Competition)- पूर्ण प्रतियोगिता बाजार
की वह स्थिति है जिसके अंतर्गत किसी वस्तु के क्रेता व विक्रेता अधिक संख्या में होते
हैं। विक्रेता समरूप वस्तुओं का उत्पादन अथवा विक्रय करते हैं। समूचे बाजार में वस्तु
एक समान कीमत पर बेची जाती है।
2. पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की शर्ते (Conditions of
Perfect Competition)-(i) विक्रेता तथा क्रेताओं
की अधिक संख्या होना, (ii) समरूप वस्तुएँ (iii) फर्मों             
का स्वतंत्र प्रवेश एवं बर्हिगमन (iv) बाजार का पूर्ण ज्ञान
(v) पूर्ण गतिशीलता (vi) संप्राप्ति वक्र (माँग वक्र का
Ox के समान्तर होना।
3. एकाधिकार (Monopoly)-एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु
का केवल एक ही विक्रेता होता है।
4. एकाधिकार की विशेषतायें (Features
of Monopoly)-(i) एक विक्रेता तथा एक
क्रेता, (ii) बाजार में वस्तु के निकट स्थानापनन्न               
का न होना, (iii) नई फर्मों के प्रवेश पर
प्रतिबन्ध, (iv) कीमत, (v) ऋणात्मक ढाल
वाला किन्तु कम लोचदार माँग वक्र (औसत
संप्राप्ति वक्र)।
5. एकाधिकारी फर्म के कुल संप्राप्ति वक्र का आकार (Shape of Total Revenue
of a Monopolistic firm)-यह औसत संप्राप्ति वक्र (माँग वक्र) पर निर्भर करता
है। कुल संप्राप्ति वक्र उल्टा उर्ध्वाधर परवलय होता है।
6. औसत संप्राप्ति वक्र (Average Revenue Curve)-किसी वस्तु की बिक्री से प्राप्त
होने वाली प्रति इकाई आय अथवा राशि औसत आय कहलाती है। इसकी गणना कुल
आय की वस्तु की बेची गई मात्रा से भाग देकर लगाया जा सकता है। सूत्र के रूप में,
                                   कुल आगम
औसत आय (AR) =—————————-
                             वस्तु की बेची गई मात्रा
7. सीमान्त संप्राप्ति (Marginal Revenue)-किसी फर्म द्वारा अपनी वस्तु की एक
इकाई कम या अधिक बेचने से कुल संप्राप्ति में जो परिवर्तन आता है, उसे सीमान्त
संप्राप्ति या सीमांत आय कहते हैं। अय शब्दों में अतिरिक्त इकाई की बिक्री से प्राप्त राशि
सीमांत आय (सीमांत संप्राप्ति) कहलाती है। इसकी गणना निम्न सूत्र की सहायता से की
जाती है।
                         कुल संप्राप्ति में परिवर्तन
सीमांत संप्राप्ति =—————————––  अथवा, MR = TRn- TRn-1
                         मात्रा में परिवर्तन
8. कुल संप्राप्ति तथा सीमांत संप्राप्ति में संबंध
(Relationship between TR and
MR)-जब कुल संप्राप्ति बढ़ रहा है तब
सीमांत संप्राप्ति धनात्मक होता है और जब                   
कुल संप्राप्ति कम होता है, तब सीमान्त
संप्राप्ति ऋणात्मक (Negative) होता है।
जब कुल संप्राप्ति अधिकतम होता है, तब
सीमान्त संप्राप्ति शून्य होता है।
9. सीमांत संप्राप्ति तथा माँग की कीमत लोच में सम्बन्ध (Marginal Revenue and
Price Elasticity of Demand)-सीमान्त संप्राप्ति के मूल्यों का सम्बन्ध माँग की
कीमत लोच से भी होता है। माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती है जब सीमान्त
संप्राप्ति का धनात्मक मूल्य होता है और यह इकाई से कम हो जाती है जब सीमान्त
संप्राप्ति का मूल्य ऋणात्मक होता है।
10. एकाधिकारी फर्म का अल्पकालीन संतुलन (Short Run Equilibrium of the
Monopoly firm)-शून्य लागत की स्थिति में एकाधिकारी फर्म का लाभ उत्पादन के
उस स्तर पर अधिकतम होता है जिस स्तर पर उसका कुल संप्राप्ति अधिकतम होता है।
उत्पादन के इस स्तर पर सीमान्त संप्राप्ति शून्य होता है।
11. एक प्रतियोगी फर्म द्वारा साम्यावस्था में पूर्ति की मात्रा (Quantity supplied in
equilibrium by a Perfect Competitive Firm)-जब औसत संप्राप्ति शून्य होता
है।
12. एकाधिकार में साम्य की शर्तें (Conditions of Equilibrium under
Monopoly)-(i) सीमान्त संप्राप्ति = सीमान्त लागत और (ii) सीमान्त लागत में वृद्धि
हो रही है।
13. एकाधिकारिक फर्म तथा पूर्ण प्रतिस्पर्धा फर्म की साम्यता में तुलना (Comparison
between Equilibrium of the Monopoly firm and Equilibirium of
Perfect Competition)-पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक संतुलन में कम कीमत पर अधिक
वस्तुओं का विक्रय होता है और फर्म का लाभ समाप्त नहीं होता क्योंकि अन्य फर्मों के
उद्योग में प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध होता है।
14. एकाधिकार के विषय पर कुछ आलोचनात्मक मत (Some Critical Views
about Monopoly)-(i) एकाधिकारी उपभोक्ताओं का शोषण करके लाभ कमाता है।
इसे दीर्घकाल में भी लाभ होता है। (ii) दीर्घकाल में इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
(iii) प्रतियोगिता का डर हमेशा बना रहता है। (iv) एकाधिकार से समाज को कई प्रकार
से लाभ भी हो सकते हैं।
15. एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषतायें (Features of Monopolistic
Competition)-(i) फर्मों की संख्या अधिक होती है। (ii) फर्मों के प्रवेश तथा
बर्हिगमन पर कोई प्रतिवन्ध नहीं होता । (iii) फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ समरूप नहीं
होतीं। (iv) फर्म का माँग वक्र बाजार मांँग वक्र नहीं होता।
16. अल्पकाल साम्यावस्था के संदर्भ में एकाधिकारी प्रतियोगिता तथा पूर्ण प्रतियोगिता
में तुलना (Comparison between Monopolistic Competition and Perfect
Competition in terms of Short run Equilibrium)-अल्पकालीन साम्यावस्था
में एकाधिकारी प्रतियोगिता में पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा उत्पादन की मात्रा कम होती है
और कीमतें अधिक होती हैं। यही स्थिति दीर्घकाल में बनी रहती है, परन्तु दीर्घकाल में
लाभ शून्य हो जाता है।
एन०सी०आर०टी० पाठ्यपुस्तक एवं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(NCERT Textbook and Other Important Questions & Answer for Examination)
                           वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
1. अनुकूलतम फर्म का लाभ उसी समय अधिकतम होता है जब-
(a) सीमान्त लागत सीमान्त संप्राप्ति के बराबर होती है
(b) सीमान्त लागत सीमान्त संप्राप्ति से कम होती है।
(c) सीमान्त लागत सीमान्त संप्राप्ति से अधिक होती है।
(d) सीमान्त लागत सीमान्त संप्राप्ति से अप्रभावित रहती है ।
2. अपूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार की स्थिति में-
(a) फर्म का माँग वक्र नीचे की ओर गिरता हुआ जाता है।
(b) फर्म के औसत संप्राप्ति (AR) वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है।
(c) फर्म का सीमान्त संप्राप्ति वक्र औसत संप्राप्ति वक्र के नीचे रहता है।
(d) उपर्युक्त सभी।
3. सैद्धान्तिक रूप से सीमान्त संप्राप्ति-शून्य तथा ऋणात्मक भी हो सकता है, परन्तु,
(a) औसत संप्राप्ति सदैव धनात्मक होता है।
(b) औसत संप्राप्ति सदैव ऋणात्मक होता है।
(c) औसत संप्राप्ति वक्र उसके अनुकूल नहीं होता।
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
4. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत संप्राप्ति वक्र-
(a) x-अक्ष के समानान्तर होता है। (b) Y-अक्ष के समानान्तर होता है।
(c) बाएंँ से दाएँ नीचे गिरता है। (d) बाएँ से दाएँ ऊपर उठता है।
5. पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में वस्तु की मांँग-
(a) पूर्ण लोचदार होती है।
(b) पूर्ण बेलोचदार होती है
(c) इकाई के बराबर होती है
(d) कम बेलोचदार होती है।
6. पूर्ण प्रतियोगी फर्म दीर्घकाल में-
(a) सामान्य लाभ प्राप्त करती है
(b) लाभ प्राप्त करती है।
(c) हानि प्राप्त करती है।
(d) उपर्युक्त सभी।
7. मार्शल के अनुसार कीमत निर्धारण में-
(a) केवल माँग पक्ष आवश्यक है।
(b) केवल पूर्ति पक्ष आवश्यक हैं।
(c) माँग और पूर्ति पक्ष दोनों आवश्यक हैं।
(d) न माँग पक्ष आवश्यक है और न पूर्ति पक्ष ।
8. पूर्ण प्रतियोगिता में-
 (a) AR = MR (b) AR > MR (c) AR <MR (d) AR = MR = 0
9. अपूर्ण प्रतियोगिता में MR वक्र AR वक्र-
(a) की तुलना में धीमी गति से नीचे गिरता है।
(b) की तुलना में तीव्र गति से नीचे गिरता है।
(c) की गति से ही नीचे गिरता है।
(d) उपर्युक्त सभी सत्य ।
10. माँग वक्र होता है।
(a)AR वक्र
(b) MR वक्र
(c) TR वक्र
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
11. एकाधिकारी फर्म
(a) केवल कीमत नियोजन होती है। (b) केवल मात्रा नियोजक होती है।
(c) कीमत नियोजक या मात्रा नियोजक होती है। (d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
12. अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत कम करने पर-
(a) बिक्री पर कोई प्रभाव नहीं होता। (b) बिक्री कम हो जाती है।
(c) बिक्री अधिक हो जाती है। (d) उपर्युक्त सभी स्थितियाँ संभव ।
13. उत्पादन कर रही प्रत्येक फर्म का उद्देश्य होता है-
(a) उत्पादन मात्रा बढ़ाना
(b) लागत कम करना
(c) लाभ अधिकतम करना
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
14. MC वक्र MR के नीचे का अर्थ है कि सन्तुलन बिन्दु पर MR रेखा का ढाल रेखा के
ढाल-
(a) से कम होना चाहिए
(b) के बराबर होना चाहिए।
(c) से अधिक होना चाहिए।
(d) सभी असत्य।
15. अपूर्ण प्रतियोगिता में-
(a) AR और MR वक्र एक गति से नीचे गिरते हैं।
(b) AR वक्र MR वक्र से अधिक तेजी से नीचे गिरता है।
(c) MR वक्र AR वक्र से अधिक तेजी से नीचे गिरता
(d) AR और MR बराबर होते हैं।
16. जिस बाजार में क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है, उस
बाजार को किस श्रेणी में रखा जाता है?
(a) पूर्ण एकाधिकार
(b) अपूर्ण प्रतियोगिता
(c) अल्प विक्रेताधिकार
(d) पूर्ण प्रतियोगिता
17. एकाधिकारिक प्रतियोगिता का विचार प्रस्तुत करने वाले अर्थशास्त्री हैं-
(a) चैम्बरलिन
(b) श्रीमती जान रॉबिन्सन
(c) बामोल
(d) सैम्युलसन
18. एकाधिकारिक प्रतियोगिता में-
(a) विभेदीकृत उत्पादन बेचने वाली कुछ फर्म होती हैं।
(b) समरूप वस्तुएँ बेचने वाली अनेक फर्मे होती हैं।
(c) एक समान उत्पादन बेचने वाली कुछ फर्म होती हैं।
(d) विभेदीकृत उत्पादन बेचने वाली अनेक फर्मे होती है।
19. विक्रय लागत आवश्यक है-
(a) शुद्ध एकाधिकार में
(b) पूर्ण प्रतियोगिता में
(c) अपूर्ण प्रतियोगिता में
(d) उपर्युक्त सभी में
20. सामान्यतः दीर्घ काल में एकाधिकारी फर्म को-
(a) सामान्य लाभ प्राप्त होता है (b) कोई लाभ प्राप्त होता है
(c) कोई लाभ प्राप्त नहीं होता (d) ऊँची लागत पर उत्पादन नहीं करना पड़ता
21. यदि एकाधिकारी वस्तु की स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध होगी तो वह मनमानी कीमत-
(a) वसूल कर सकेगा
(b) वसूल कर सकेगा
(c) से अधिक होना चाहिए।
(d) उपर्युक्त में से कोई भी नहीं
22. यदि कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु उपलब्ध न हो तो एकाधिकारी फर्म अपनी वस्तु
की ऊंँची कीमत प्राप्त करने में समर्थ हो जाएगी-
(a) सही
(b) गलत
(c) अनिश्चित
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
23. एकाधिकारी मूल्य विभेद की महत्त्वपूर्ण शर्त क्या है ?
(a) बाजारों का पृथक् होना
(b) माँग लोच में भिन्नता
(c) क्रय शक्ति में भिन्नता
(d) उपर्युक्त सभी।
24. अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म को समान लाभ प्राप्त हो इसके लिए आवश्यक
(a) औसत लागत, औसत संप्राप्ति के बराबर हो
(b) औसत लागत, औसत संप्राप्ति से कम हो
(c) औसत लागत, औसत संप्राप्ति से अधिक हो
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
25. एकाधिकार से हमारा आशय बाजार की उस स्थिति से है जिसमें एक विशिष्टि
वस्तु की पूर्ति पर-
(a) किसी एक उत्पादक अथवा फर्म का नियंत्रण रहता है।
(b) कई उत्पादकों और फर्मों का नियंत्रण रहता है।
(c) कुछ उत्पादकों और फर्मों का नियंत्रण रहता है।
(d) केवल दो उत्पादकों का नियंत्रण रहता है।
                               -: उत्तर :-
1.(a) 2.(d) 3.(a) 4.(a) 5.(a) 6.(c) 7.(a) 8.(b) 9.(a)
10. (c) 11. (c) 12. (c) 13. (a) 14. (c) 15. (a) 16. (a) 17. (d) 18. (c)
19.(b) 20. (b) 21. (a) 22. (d) 23. (a) 24. (a) 25. (a)
                                      अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
                       (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. किस बाजार संरचना में उपभोक्ता तथा फर्मे दोनों कीमत स्वीकारक होते
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता में उपभोक्ता तथा फर्म दोनों कीमत-स्वीकार एक होते हैं।
प्रश्न 2. पूर्ण प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा की कोई एक शर्त लिखें।
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता में उपभोक्ताओं तथा फर्मों को उत्पाद, आगत तथा उनकी
कीमतों का पूर्ण ज्ञान होता है।
प्रश्न 3. किस प्रकार की बाजार संरचना एकाधिकार कहलाती है?
उत्तर-जिस बाजार संरचना में केवल एक ही विक्रता होता है, उसे एकाधिकार कहते हैं।
प्रश्न 4. प्रतियोगी व्यवहार तथा प्रतियोगी याजार संरचना आपस में किस प्रकार
सम्बन्धित हैं?
उत्तर-ये दोनों आपस में विपरीत सम्बन्धित हैं। बाजार संरचना जितनी अधिक प्रतियोगी
होगी, फर्मों का व्यवहार उतना ही कम प्रतियोगी होगा।
प्रश्न 5.बाजार मांँग वक्र क्या दर्शाता है?
उत्तर-बाजार मांँग वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता कुल मिलाकर
कितनी वस्तुएंँ खरीदने के लिये इच्छुक हैं।
प्रश्न 6. सीमान्त संप्राप्ति वक्र कय औसत वक्र से यहृत दूरी पर होगा ?
उत्तर-सीमान्त संप्राप्ति वक्र तब औसत संप्राप्ति वक्र से बहुत दूरी पर होगा जब औसत
संप्राप्ति बड़ी तेजी से नीचे गिर रहा होगा।
प्रश्न 7. औसत संप्राप्ति वक्र तथा सीमान्त संप्राप्ति वक्र में कब लम्बवत् दूरी बहुत
कम होगी?
उत्तर-औसत संप्राप्ति और सीमान्त संप्राप्ति वक्रों में लम्बवत् दूरी तब बहुत कम होगी
जब AR वक्र का ढलान बहुत कम होगा।
प्रश्न 8. माँग की कीमत लोच तथा सीमान्त संप्राप्ति में क्या संबंध है ?
उत्तर-माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती है, जब सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य
धनात्मक होता है। यह इकाई से कम हो जाती है जब सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य ऋणात्मक
होता है।
प्रश्न 9. अल्पाधिकार क्या है ?
उत्तर-अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। अल्पाधिकार बाजार
की वह स्थिति है जिसमें कुछ बड़ी-बड़ी फर्म होती हैं। यह एकाधिकार और एकाधिकारी
प्रतियोगिता के बीच की बाजार स्थिति है।
प्रश्न 10. बाजार संरचना को कब अल्पाधिकार कहते हैं ?
उत्तर-बाजार संरचना को तब अल्पाधिकार कहते हैं, जब एक विशेष वस्तु
के बाजार में एक से अधिक विक्रेता होते हैं परन्तु उनकी संख्या बहुत ही कम होती है।
प्रश्न 11. किस प्रकार के बाजार में फर्म ही उद्योग है?
उत्तर-एकाधिकार में फर्म ही उद्योग है, क्योंकि इस बाजार में केवल एक ही फर्म
होती है।
प्रश्न 12. एकाधिकार में फर्म ही उद्योग क्यों होती है ?
उत्तर-क्योंकि एकाधिकार में केवल एक ही फर्म होती है।
प्रश्न 13. एकाधिकार में औसत संप्राप्ति वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर-एकाधिकार में औसत संप्राप्ति वक्र का आकार नीचे की ओर ढलान वाला
होता है।
प्रश्न 14. किस प्रकार के बाजार में AR वक्र तथा MR वक्र एक-दूसरे को ढक
लेते हैं?
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में AR वक्र तथा MR वक्र एक-दूसरे को ढक लेते हैं।
प्रश्न 15. कारटेल (Cartel) क्या है?
उत्तर-कारटेल वह बाजार स्थिति है जिसमें एक उत्पाद के उत्पादक एक संगठन बना लेते
हैं और एकाधिकार की तरह व्यवहार करते हैं, परन्तु वे अपनी व्यक्तिगत पहचान बनाये
रखते हैं।
प्रश्न 16. वस्तु A की बाजार संरचना बताएँ-
उत्तर-वस्तु A का बाजार पूर्ण प्रतियोगिता वाला है।
प्रश्न 17. B वस्तु किस प्रकार के बाजार से सम्बन्ध रखती है ?
उत्तर-B वस्तु का बाजार एकाधिकार या एकाधिकारी प्रतियोगिता वाला है।
प्रश्न 18. एक एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र बनायें।
प्रश्न 19. उत्पादक के संतुलन की कौन-सी दो विधियाँ हैं ?
उत्तर-निम्नलिखित दो विधियाँ हैं-
(i) कुल संप्राप्ति = कुल लागत (ii) सीमान्त संप्राप्ति = सीमान्त लागत
प्रश्न 20. नचे दिये चित्र को देखें । q० उत्पादन स्तर के नीचे सीमान्त संप्राप्ति स्तर
तथा औसत संप्राप्ति स्तर में क्या सम्बन्ध है।
उत्तर-qo के नीचे स्तर पर सीमान्त संप्राप्ति का स्तर सीमान्त लागत के स्तर से ऊंँचा है।
प्रश्न 21. जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
                                                                   [NCERT T.B.Q. 3]
उत्तर-माँग वक्र उस समय लोचदार होता है जब कीमत लोच इकाई से अधिक होती है।
जब माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती है, तब सीमांत संप्राप्ति का मूल्य धनात्मक
होती है।
प्रश्न 22. क्या एकाधिकारी फर्म अल्पकाल में उत्पादन जारी रखेगी यदि उसे सबसे
अच्छे उत्पाद पर हानि हो रही है।                              [NCERT T.B.Q. 8]
उत्तर-हाँ, एकाधिकारी फर्म अल्पकाल में उत्पादन जारी रखेगी यदि उसे सबसे अच्छे
उत्पाद पर हानि हो रही है।
प्रश्न 23. प्रतिस्पर्धी व्यवहार तथा प्रतिस्पर्धी बाजार संरचना किस रूप में संबंद्ध
होते हैं ?
उत्तर-प्रतिस्पर्धी व्यवहार तथा प्रतिस्पर्धा बाजार संरचना सामान्यतः व्युत्क्रमानुपातिक
(Inversely) संबंद्ध होते हैं।
प्रश्न 24. यदि बाजार संरचना अधिक प्रतिस्पर्धी होती है तो फर्मों का व्यवहार
कैसा होगा?
उत्तर-यदि बाजार संरचना अधिक प्रतिस्पर्धी होता है तो फर्मों का व्यवहार कम प्रतिस्पर्धी
होता है।
प्रश्न 25. यदि बाजार संरचना कम प्रतिस्पर्धी होती है तो प्रतिस्पर्धा फर्मों का
व्यवहार एक-दूसरे के प्रति कैसा होता है ?
उत्तर-यदि बाजार संरचना कम प्रतिस्पर्धी होती है तो प्रतिस्पर्धी फर्मों का व्यवहार
एक-दूसरे के प्रति अधिक प्रतिस्पर्धी होता है।
प्रश्न 26. माँग वक्र की लोच किस बिन्दु पर होती है ?
उत्तर-माँग वक्र की लोच उस बिन्दु पर होती है जहाँ कीमत लोच इकाई से अधिक
होती है।
प्रश्न 27. माँग वक्र किस बिन्दु पर लोचहीन होता है।
उत्तर-माँग वक्र उस बिन्दु पर लोचहीन होता है जहाँ कीमत लोच इकाई से कम
होती है।
प्रश्न 28. जब कीमत लोच 1 के बराबर होती है तब माँग वक्र किस प्रकार के
लोच में होता है ?
उत्तर-जब कीमत लोच 1 के बराबर होती है तो मांँग वक्र इकाई लोच में होता है। ।
प्रश्न 29. एकाधिकारी फर्म का लाभ पूर्ण रूप से किस पर निर्भर करता है ?
उत्तर-एकाधिकारी फर्म का लाभ पूर्ण रूप से उपभोक्ताओं पर निर्भर करता है।
प्रश्न 30. एकाधिकारी फर्म की स्थिति में कुल संप्राप्ति वक्र की आकृति किस पर
निर्भर करती है?
उत्तर-एकाधिकारी फर्म की स्थिति में कुल संप्राप्ति वक्र (TC) की आकृति माँग वक्र
पर निर्भर करती है।
प्रश्न 31. माँग की कीमत लोच कितनी होती है जब सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य
धनात्मक होता है?
उत्तर-माँग की कीमत लोच । से अधिक होती है जब सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य
धनात्मक होता है।
प्रश्न 32. सीमान्त संप्राप्ति का मूल्य ऋणात्मक है। ऐसी अवस्था में मांँग की लोच
कितनी होगी?
उत्तर-ऐसी अवस्था में माँग की लोच इकाई से कम होगी।
प्रश्न 33. एकाधिकार फर्म से उपभोक्ता को क्या हानि होती है ?
उत्तर-एकाधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को निर्गत (Product) की बहुत ही कम
मात्रा प्राप्त होती है और उपभोग की प्रत्येक इकाई के लिए अधिक कीमत देनी पड़ती है
प्रश्न 34. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अल्पकालीन संतुलन में पूर्ण स्पर्धा की तुलना
में उत्पादन की मात्रा अधिक होती है या कम ।
उत्तर-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में अल्पकालीन संतुलन में पूर्ण स्पर्धा की तुलना में उत्पाद
की मात्रा कम होती है।
प्रश्न 35. वस्तु बाजार में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा किस कारण उत्पन्न होती है ?
उत्तर-वस्तु बाजार में एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा असजातीय वस्तु के कारण उत्पन्न होती है।
प्रश्न 36. एकाधिकार के संतुलन को किस बिन्दु पर परिभाषित किया जाता है ?
उत्तर-एकाधिकार के संतुलन को उस बिन्दु पर परिभाषित किया जाता है जिस पर
सीमांत संप्राप्ति = सीमान्त लागत और सीमानत लागत की वृद्धि की स्थिति होती है। यह बिन्दु
उत्पादन की संतुलन मात्रा को बताता है।
प्रश्न 37. बाजार किसे कहते हैं?
उत्तर-बाजार वह प्रणाली है जिसके अंतर्गत क्रेता व विक्रेता एक-दूसरे के सम्पर्क में
आते हैं। इसके लिये निश्चित स्थान का होना अनिवार्य नहीं है।
प्रश्न 38. बाजार की विशेषताएं (शर्ते) लिखें।
उत्तर-बाजार की विशेषताएँ (शर्ते)-(i) क्षेत्र, (ii) क्रेता तथा विक्रेता, (iii) वस्तु तथा
(iv) प्रतियोगिता।
प्रश्न 39. प्रतियोगिता के आधार पर बाजार के मुख्य रूप लिखें।
उत्तर-बाजार के मुख्य भेद-(i) पूर्ण प्रतियोगिता, (ii) एकाधिकार तथा (iii) अपूर्ण
प्रतियोगिता (एकाधिकारी प्रतियोगिता, अल्पाधिकार तथा द्वि-अधिकार)।
प्रश्न 40. अपूर्ण प्रतियोगी बाजार की तीन संरचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर-(i) एकाधिकारिक प्रतियोगिता, (ii) अल्पाधिकार तथा (iii) द्वि-अधिकार ।
प्रश्न 41. माँग वक्र के आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र-
(a) a मूल बिन्दु से होकर गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
(b) a समस्तरीय रेखा हो । [NCERT T.B.Q. 1]
उत्तर-(a) माँग वक्र Ox के समान्तर होगा।
(b) माँग वक्र का ऋणात्मक ढलान होगा।
प्रश्न 42. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन फर्म
का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है ?    [NCERT T.B.Q. 1]
उत्तर-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने
का कारण उद्योग में फर्मों के निर्बाध प्रवेश होने की स्वतंत्रता है।
प्रश्न 43. यदि एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र का फर्म हो, तो सरकार इसके
प्रबंधन के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकारकर्ता है और
इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के
लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो
जिससे बाजार में मांग और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और
लाभ क्या होंगे?                                              [NCERT T.B.Q. 5]
उत्तर-संतुलन कीमत बाजार कीमत के बराबर होगी। मात्र संतुलित होगी और लाभ
सामान्य होगा।
                                        लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
                         (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1. एक चित्र में विभिन्न बाजार दशाओं के अंतर्गत माँग वक्र दिखाएँ।
उत्तर-
D1D1 = पूर्ण प्रतियोगिता का माँग वक्र
D2D2 = एकाधिकारी प्रतियोगिता का मांँग वक्र
D3D3 = एकाधिकार की माँग वक्र
प्रश्न 2. अल्पाधिकार तथा एकाधिकार में अन्तर बताएँ।
उत्तर-अल्पाधिकार तथा एकाधिकार में अन्तर-
प्रश्न 3. एकाधिकारिक प्रतियोगिता तथा अल्पाधिकार में अन्तर बताएँ।
उत्तर-एकाधिकारिक प्रतियोगिता तथा अल्पाधिकार में अन्तर-
प्रश्न 4. एकाधिकार तथा द्वि-अधिकार में अन्तर करें।
उत्तर-एकाधिकार तथा द्वि-अधिकार में अन्तर-
प्रश्न 5. द्वि-अधिकार क्या है ? इसकी विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-द्वि-अधिकार (Duopoly)-द्वि-अधिकार बाजार की उस स्थिति से है जिसमें
केवल दो ही विक्रेता होते हैं। ये दोनों फर्म समान मूल्य नीति का पालन करती हैं। यदि इनमें
कोई भी विक्रेता अपनी मूल्य नीति में परिवर्तन करता है तो उसका प्रभाव दूसरे पर अवश्य
पड़ता है।
विशेषताएँ (Features)-द्वयधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) इस बाजार में केवल दो ही विक्रेता होते हैं।
(2) वस्तुएँ समरूप भी हो सकती हैं। और भिन्न-भिन्न भी।
(3) दोनों विक्रेता परस्पर निर्भर होते हैं।
(4) दोनों के द्वारा प्रायः सामान्य नीति का पालन किया जाता है।
प्रश्न 6. एकाधिकार की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-विशेषताएँ (Features)-एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता।
(2) एकाधिकारी फर्म और उद्योग में अन्तर नहीं होता।
(3) एकाधिकारी बाजार में नई फर्मों के प्रवेश में बाधाएँ होती हैं।
(4) वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु नहीं होती।
(5) कीमत नियंत्रण एकाधिकारी द्वारा किया जाता है।
(6) एकाधिकार में औसत संप्राप्ति और सीमान्त वक्र अलग-अलग होते हैं।
(7) एकाधिकारी विभिन्न क्रेताओं से अलग-अलग कीमत वसूल कर सकता है, जिसे
कीमत विभेद नीति कहते हैं।
प्रश्न 7. एकाधिकारी फर्मे पूर्ण प्रतियोगी फर्म की तुलना में निम्न उत्पाद क्यों बनाते
हैं ?
उत्तर-एकाधिकारी प्रतियोगिता में सीमान्त संप्राप्ति कीमत से कम होता है। अतः पूर्ण
प्रतियोगी की तुलना में एकाधिकारी प्रतियोगी में कम उत्पादन स्तर पर सीमान्त संप्राप्ति सीमान्त
लागत के बराबर हो जाता है। अतः एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म पूर्ण प्रतियोगी फर्म की तुलना
में कम उत्पादन करती है।
प्रश्न 8. पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में अनतर बताएँ (कोई चार बिन्दु)।
उत्तर-पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में अन्तर-
प्रश्न 9. आय. अनम्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से
इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है ?     [NCERT T.B.Q. 13]
उत्तर-अनम्य कीमत (Rigid Price)-कुछ अर्थशास्त्रिायें का तर्क है कि अल्पाधिकार
बाजार संरचना में वस्तु की अनम्य (Rigid) कीमत होती है। अनम्य कीमत से अभिप्राय है
कि माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाजार कीमत में निर्बाध संचलन नहीं होता । दूसरे शब्दों
में अल्पाधिकार बाजार की स्थिति में कीमत स्थिरता का वातावरण देखने को मिलता है। इसका
कारण यह है कि उसके द्वारा कीमत परिवर्तन का उसे कोई लाभ नहीं मिलने वाला । उदाहरण
के लिए यदि कोई फर्म अपनी कीमत कम करती है तो वह समझती है कि अन्य फंमें भी
अपनी वस्तु की कीमत को कम कर देंगी। इस प्रकार कीमत कम करने पर वह अपनी वस्तु
को अधिक मात्रा में बेच नहीं पाएगी। इस प्रकार यदि फर्म विशेष कीमत में वृद्धि करती है
तो अन्य फर्में कीमत वृद्धि का अनुकरण नहीं करेगी और बाजार में उस वस्तु की माँग कम
हो जाएगी।
फर्म के द्वारा कीमत में अपेक्षाकृत अधिक कमी करने से विक्रय की मात्रा में अपेक्षाकृत
अल्प वृद्धि होती है। इस प्रकार फर्म को बेलोचदार माँग वक्र का अनुभव होता है और कीमत
को कम करने के निर्णय से इसे संप्राप्ति और लाभ की न्यून मात्रा प्राप्त होती है। अत: किसी
भी फर्म को प्रचलित कीमत जो कि पूर्ण प्रतिस्पर्धा की अपेक्षा अधिक अनम्य होती है, में
परिवर्तन करना विवेकपूर्ण नहीं लगता है।
प्रश्न 10. एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर बताएँ (कोई चार
बिन्दु)।
उत्तर-एकाधिकार तथा एकाधिकार प्रतियोगिता में अन्तर-
प्रश्न 11. तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए जिसमें अल्पाधिकारी फर्म
व्यवहार कर सकता है।                           [NCERT T.B.Q. 11]
उत्तर-तीन विभिन्न विधियाँ (Three different ways)-नीचे तीन विभिन्न विधियाँ
दी गई हैं जिनमें अल्पाधिकार फर्म व्यवहार कर सकती है।
(1) द्वि-अधिकारी फर्म आपस में सांठ-गांठ करके यह निर्णय ले सकती हैं कि वे एक
दूसरे से स्पर्धा नहीं करेंगे और एक साथ दोनों फर्मों के लाभ को अधिकतम स्तर तक ले जाने
का प्रयत्न करेंगे। इस स्थिति में दोनों फर्मे एकल एकाधिकारी की तरह व्यवहार करेंगी जिनके
पास दो अलग-अलग वस्तु उत्पादन करने वाले कारखाने होंगे।
(2) दो फर्मों में प्रत्येक यह निर्णय ले सकती है कि अपने लाभ को अधिकतम करने के
लिये वह वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पाद करेंगी। यहाँ यह मान लिया जाता है कि उनकी
वस्तु की मात्रा की पूर्ति को कोई अन्य फर्म प्रभावित नहीं करेंगी।
(3) कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है अल्पाधिकार बाजार संरचना में वस्तु की अनम्य (Rigid) कीमत होती है अर्थात् मांँग में परिवर्तन के फलस्वरूप बाजार कीमत में निर्बाध
संचलन नहीं होता। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा आरम्भ की गई कीमत में
परिवर्तन के प्रति एकाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया प्रकट करती है।
प्रश्न 12. एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की मांँग की वक्र की प्रवणता
ऋणात्मक क्यों होती है ? व्याख्या कीजिए।       [NCERT T.B.Q.9]
उत्तर-एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में फर्म की मांँग
वक्र की प्रवणता का ऋणात्मक होने का कारण (Rea-
son of the demand curve facing a firm under
monopolistic competition negatively
sloped)-एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक
फर्म विभेदात्मक उत्पाद बेचती है। यह फर्म कीमत के                 
कुछ सीमा तक प्रभावित कर सकती है। ऐसी अवस्था
में यह अपने उत्पाद की कीमत का निर्धारण करती है।
यह कम कीमत पर अधिक वस्तुएं बेच सकती है और
अधिक कीमत पर कम वस्तुएँ। अतः एकाधिकारी
प्रतियोगिता में मांँग वक्र ऋणात्मक ढलान वाला होता
है, जैसाकि चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 13. निम्न तालिका की सहायता से कुल संप्राप्ति, सीमान्त संप्राप्ति और औसत
संप्राप्ति वक्र खींचें।
प्रश्न 14. एकाधिकारी प्रतियोगिता और एकाधिकार में औसत संप्राप्ति और सीमान्त
संप्राप्ति वक्रों में मुख्य अन्तर क्या है ?
उत्तर-एकाधिकारी प्रतियोगिता में औसत संप्राप्ति तथा सीमान्त संप्रप्ति वक्र से अधिक
चपटे होते हैं जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है-
                                      दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
                           (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1. औसत एवं सीमान्त संप्राप्ति और औसत तथा सीमान्त लागत के प्रयोग से
एकाधिकार फर्म का संतुलन समझाएँ।
उत्तर-इस विधि के अन्तर्गत फर्म का संतुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ निम्नलिखित
दो शर्तें पूरी होती हैं-
(1) सीमान्त संप्राप्ति = सीमान्त लागत
(2) सीमान्त लागत वक्र सीमान्त संप्राप्ति वक्र को नीचे से ऊपर की ओर काटता होना
चाहिए।
स्टोनियर और हेग के अनुसार, “एक फर्म तब संतुलन में होगी जब उसकी सीमान्त आय
(MR) सीमान्त लागत (MC) के बराबर होगी क्योंकि ऐसी स्थिति में ही फर्म अधिकतम लाभ
प्राप्त कर रही होगी।
बगल के चित्र में औसत लागत AC तथा
सीमान्त लागत वक्र माँग (औसत संप्राप्ति) वक्र
तथा सीमान्त संप्राप्ति वक्र के साथ दर्शाया गया
है।
चित्र से हमें पता चलता है qoके नीचे निर्गत                   
स्तर पर सीमान्त संप्राप्ति स्तर सीमान्त लागत स्तर
से ऊँचा है। तात्पर्य यह है कि वस्तु की एक
अतिरिक्त इकाई के विक्रय से प्राप्त कुल संप्राप्ति
में वृद्धि उस अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत
में वृद्धि से अधिक होती है। इसका अर्थ यह है कि निर्गत की एक इकाई से अतिरिक्त लाभ
का सृजन होगा। चूँकि लाभ में परिवर्तन = कुल संप्राप्ति में परिवर्तन – कुल लागत में
परिवर्तन।
अतः यदि फर्म qo से कम स्तर पर निर्गत का उत्पादन कर रही है, तो वह अपने निर्गत
में वृद्धि लाना चाहेगी क्योंकि इससे उसके लाभ में बढ़ोत्तरी होगी। जब तक सीमान्त संप्राप्ति
वक्र सीमानत लागत वक्र के ऊपर अवस्थित है, तब तक उपर्युक्त तर्क का अनुप्रयोग होगा।
अत: फर्म अपने निर्गत में वृद्धि करेगी। इसमें तब रुकावट आएगी जब निर्गत का स्तर qo पर पहुंँचेगा, क्योंकि इस स्तर पर सीमान्त संप्राप्ति और सीमान्त लागत समान होंगे और निर्गत में वृद्धि से लाभ से किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होगी।
दूसरी ओर यदि फर्म qo से अधिक मात्रा में निर्गत का उत्पादन करती है तो सीमान्त लागत
सीमान्त संप्राप्ति से अधिक होती है। अभिप्राय यह है कि निर्गत की एक इकाई कम करने से कुल
लागत में जो कमी होती है, वह इस कमी के कारण कुल संप्राप्ति में हुई हानि से अधिक होती है।
अतः फर्म के लिए यह उपयुक्त है कि वह निर्गत में कमी लाए। यह तर्क तब तक समीचीन होगा
जब तक सीमान्त लागत वक्र सीमान्त संप्राप्ति वक्र के ऊपर अवस्थित होगा और फर्म अपने निर्गत में कमी को जारी रखेगी। एक बार निर्गत स्तर के qo पर पहुँचने पर सीमान्त लागत और सीमान्त संप्राप्ति के मूल्य समान जाएंँगे और फर्म अपने निर्गत में कमी को रोक देगी।
फर्म अनिवार्य रूप से qo निर्गत स्तर पर पहुँचती है। अत: इस स्तर को निर्गत स्तर का
संतुलन स्तर कहते हैं । निर्गत का यह संतुलन स्तर उस बिन्दु के संगत होता है जहाँ सीमान्त
संप्राप्ति सीमान्त लागत के बराबर होती है। इस समानता को एकाधिकारी फर्म द्वारा उत्पादित
निर्गत के लिये संतुलन की शर्त कहते हैं।
प्रश्न 2. ग्राफ द्वारा कुल संप्राप्ति वक्र से औसत संप्राप्ति के मूल्य की गणना करें।
उत्तर-ग्राफ द्वारा विक्रय की मात्रा के किसी स्तर के लिए औसत संप्रा (संप्राप्ति)
का मूल्य कुल संप्राप्ति वक्र से प्राप्त किया जा सकता है। इसे निम्न रेखाचित्र में सरल
रचना के माध्यम से दर्शाया गया है।
चित्र से पता चलता है कि जब मात्रा 6 इकाइयाँ कुल
है तो समस्तरीय अक्ष पर 6 से होकर एक ऊर्ध्वाकर
रेखा गुजरती है। यह रेखा कुल संप्राप्ति रेखा को
“a” द्वारा चिन्हित बिन्दु जो उर्ध्व अक्ष पर 42 को
दर्शाती है, काटती है। अब उद्गम O और बिन्दु “a”             
को सरल रेखा से जोड़ते हैं। उद्गम (origin) से
किसी एक बिन्दु तक इस किरण की प्रवणता से कुल
संप्राप्ति पर औसत संप्राप्ति का मूल्य प्राप्त होता है।
इस किरण की प्रवणता 7 के बराबर है। अत: औसत
संप्राप्ति का मूल्य 7 है।
प्रश्न 3. नीचे दिये गये आँकड़ों की सहायता से 6 इकाइयों का मूल्य अंकगणितीय
तथा ग्राफविधि द्वारा ज्ञात करें।
                               कुल संप्राप्ति    42
उत्तर-औसत संप्राप्ति =—————=——=7
                                  इकाइयाँ         6
अब हम रेखाचित्र की सहायता से 6वीं इकाई की सीमान्त संप्राप्ति की गणना करें। इसके
लिए निम्न चित्र बनाएँ।
इस चित्र में Ox अक्ष पर निर्गत की इकाइयाँ
दर्शाएँ और OY अक्ष पर कुल संप्राप्ति दर्शाएँ ।
हमने 6वीं इकाई की औसत संप्राप्ति ज्ञात करनी
है । अतः समस्तरीय अक्ष पर मूल्य 6 से होकर
एक उर्ध्वाधर रेखा खींचें जो कुल संप्राप्ति वक्र को                   
‘a’ द्वारा चिह्नित बिन्दु पर काटती है। “a” द्वारा
चिह्नित बिन्दु उर्ध्व अक्ष पर 42 को दर्शाता है।
अब उद्गम o और बिन्दु ‘o’ को एक सरल रेखा
से जोड़ें उद्गम से किसी एक बिन्दु तक इस
किरण की प्रवणता से कुल संप्राप्ति का मूल्य प्राप्त
होता है। इस किरण की प्रवणता 7 के बराबर है।
अतः औसत संप्राप्ति मूल्य है।
प्रश्न 4. अल्पाधिकार किसे कहते हैं ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-अल्पाधिकार (Oligopoly)-अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप
अल्पाधिकार बाजार की ऐसी अवस्था को कहा जाता है जिसमें वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते
हैं और प्रत्येक विक्रेता पूर्ति एवं मूल्य पर समुचित प्रभाव रखता है। प्रो० मेयर्स के अनुसार
“अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि
प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर समुचित प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक विक्रेता इस
बात से परिचित होता है।”
अल्पाधिकार की विशेषताएँ (Characteristics of oligopoly)-अल्पाधिकार की
मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) विक्रेताओं की कम संख्या (A few sellers firms)-अल्पाधिकार में उत्पादकों
एवं विक्रेताओं की संख्या सीमित होती है। प्रत्येक उत्पादक बाजार की कुल पूर्ति में एक
महत्त्वपूर्ण भाग रखता है। इस कारण प्रत्येक उत्पादक उद्योग की मूल्य नीति को प्रभावित करने
की स्थिति में होता है।
(2) विक्रेताओं की परस्पर निर्भरता (Mutual dependence)-इसमें सभी विक्रेताओं
में आपस में निर्भरता पाई जाती है। एक विक्रेता की उत्पाद एवं विक्रय नीति दूसरे विक्रेताओं
की उत्पाद एवं मूल्य नीति से प्रभावित होती है।
(3) वस्तु की प्रकृति (Nature of Product)-अल्पाधिकार में विभिन्न उत्पादकों के
उत्पादों में समरूपता भी हो सकती है और विभेदीकरण भी । यदि उनका उत्पाद एकरूप है तो
इसे विशुद्ध अल्पाधिकार कहा जाता है और यदि इनका उत्पाद अलग-अलग है तो इसे विभेदित
अल्पाधिकार कहा जाता है।
(4) फर्मों के प्रवेश एवं वर्हिगमन में कठिनाई (Difficult entry and exit to
firm)-अल्पाधिकार की स्थिति में फर्मे न तो आसानी से बाजार में प्रवेश कर पाती हैं और
न पुरानी फर्में आसानी से बाजार छोड़ पाती हैं।
(5) अनम्य कीमत (Rigid Price)-कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि अल्पाधिकार
बाजार संरचना में वस्तुओं की अनन्य कीमत होती है अर्थात् माँग में परिवर्तन के फलस्वरूप
बाजार कीमत में निर्बाध संचालन नहीं होता है। इसका कारण यह है कि किसी भी फर्म द्वारा
प्रारंभ की गई कीमत में परिवर्तन के प्रति एकाधिकारी फर्म प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। यदि एक
फर्म यह अनुभव करती है कि कीमत में वृद्धि से अधिक लाभ का सृजन होगा और इसलिये
वह अपने निर्गत (उत्पाद) को बेचने के लिये कीमत में वृद्धि करेगी (अन्य फर्मे इसका
अनुकरण नहीं कर सकती हैं)। अतः कीमत वृद्धि से बिक्री की मात्रा में भारी गिरावट आएगी
जिससे फर्म की संप्राप्ति और लाभ में गिरावट आएगी। अतः किसी फर्म के लिये कीमत में
वृद्धि करना विवेक संगत नहीं होगा। इसी प्रकार कोई भी फर्म अपने उत्पाद की कीमत में कमी
नहीं लाएगी।
(6) आपसी अनुबंध (Mutual Agreement)-कभी-कभी अल्पाधिकार के अंतर्गत
कार्य करने वाली विभिन्न फर्मे आपस में एक अनुबंध कर लेती हैं। यह अनुबंध वस्तु के मूल्य
 तथा उत्पादन की मात्रा के सम्बन्ध में किया जाता है। इसका उद्देश्य सभी फर्मों के हितों की
रक्षा करना तथा उनके लाभों में वृद्धि करना होता है। ऐसी दशा में निर्धारित किया गया मूल्य
एकाधिकारी फर्म के समान ही होगा।
प्रश्न 5. यदि द्वि-अधिकारी (Duopoly) का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित
व्यवहार के जैसा है तो बाजार माँग वक्र के समीकरण q= 200-4p द्वारा दर्शाया जाता
है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन और संतुलन
बाजार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिये।      [NCERT T.B.Q. 12]
उत्तर-q= 200 – 4p (दिया हुआ है)
अब p का मूल्य शून्य रखने पर हम निम्न समीकरण प्राप्त करते हैं-
q = 200 – 0 = 200
अतः कुल मांँगी गई मात्रा = 200
मान लीजिये कि फर्म B वस्तु की शून्य इकाई की पूर्ति करती है और फर्म A मानती है
कि अधिकतम माँग 200 इकाइयाँ हैं, इसलिए वह इसकी आधी अर्थात् 100 इकाइयों की पूर्ति
करने का निर्णय लेती है। दिया हुआ है कि फर्म 100 इकाइयों की पूर्ति कर रही है और फर्म
मानती है कि अधिकतम मांँग 200 इकाइयों में से 100 इकाइयों (200-100) की अब भी मांँग
विद्यमान है। अतः इसकी आधी की पूर्ति अर्थात् 50 इकाइयों की पूर्ति करेगी। अब क्योंकि
B फर्म की पूर्ति 50 इकाइयाँ हो गई है, इसलिए फर्म A यह समझती है कि कुल मांँग 150
(200-50) है और इसकी आधी पूर्ति 75 है। इस तरह दोनों फर्में में एक-दूसरे के प्रति
संचलन जारी रहेगा। इससे संतुलन प्राप्त होगा। अब हम इन चरणों की परीक्षा करें।
अतः दोनों फर्में अन्ततः निम्नलिखित के बराबर निर्गत की पूर्ति करेंगी-
200       200   200     200     200      200      200       200
——- – ——-+——– – ——–+——- – ———+———-=——-
  2           4        8        16        32        64        128         3
बाजार की पूर्ति की कुल मात्रा दोनों फर्मों की पूर्ति की मात्रा के योग के बराबर है।
              200    200          200     400
अर्थात्     ——-+——–=2 ×——-=———
               3          3              3         3
कीमत पूर्ति पर निर्भर करती है। इसके लिये निम्नलिखित सूत्र है-
q = 200 – q
अथवा, 4P = 200 – q
                               400
अथवा, 4P = 200 – ———-
                                 3
                   200
अथवा, 4P =——-
                     3
                  200      1      50
अथवा,  P =———x—- =—–=16.33
                      3       4      3
                                  संख्यात्मक प्रश्नोत्तर
                          (Numerical Type Questions)
प्रश्न 1. निम्न तालिका को पूरा कीजिए-
प्रश्न 2. यदि प्रत्येक इकाई 10 रुपये में बिक रही है तो निम्न तालिका को पूरा
करें-
प्रश्न 3. माना किसी वस्तु की माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित कीमत
5 रुपये प्रति इकाई है। इस कीमत पर उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर फर्म की औसत
संप्राप्ति सीमान्त संप्राप्ति तथा कुल संप्राप्ति अनुसूची तथा वक्र बनाएँ।
उत्तर-
प्रश्न 4. निम्न तालिका को पूरा करें-
                                                 ●●●

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