bihar board 11 biology | तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय
bihar board 11 biology | तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय
(NERVOUS CONTROL AND CO-ORDINATION)
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. सबसे बड़े कपाल तंत्रिका तंतु (CranialNerves) का नाम बतायें।
उत्तर-Vagus nerves. .
2. रेनवियर की गाँठ (Node of Ranvier) क्या हैं?
उत्तर-तंत्रिकाक्ष (Axon) के चारों ओर उपस्थित माइलिन आवरण के बीच के अंतराल
को रेनवियर की गाँठ कहा जाता है।
3. नेत्र के शंकु कोशिका (Cone cells) में पाये जाने वाले वर्णक का नाम बतायें।
उत्तर-आयोडोप्सिन (lodopsin)
4. ध्रुवित झिल्ली (Polarised membrane) क्या है?
उत्तर-जब तंत्रिकाक्ष के बाहर धन आवेश (Na+) एवं भीतर की ओर ऋण आवेश
(K+) रहता है तो उसे ध्रुवित झिल्ली कहते हैं।
5. दो तंत्रिका कोशिका (Neuron) के संगम स्थल (Junction) को क्या कहा जाता है?
उत्तर-Synapse.
6. न्यूरॉन के कोशिकाकाय (cyton) के कोशिका द्रव्य में पाया जाने वाला दानेदार
अंगक क्या कहलाता है?
उत्तर-निसेल ग्रेन्यूल।
7. अग्र मस्तिष्क (Fore brain) के तीन मुख्य भागों का नाम बतायें।
उत्तर-सेरीब्रम, थैलामस एवं हाइपोथेलमस।
8. किसी तंत्रिका कोशिका के कितने भाग होते हैं?
उत्तर-तीन भाग-साइटॉन, एक्सॉन एवं डेंड्रॉन।
9. प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) क्या है?
उत्तर-जंतु की बिना इच्छा के अपने आप उद्दीपन के प्रति होने वाली क्रिया, प्रतिवर्ती
क्रिया कहलाती है।
10. प्रतिवर्ती क्रिया का नियंत्रण किसके द्वारा होता है?
उत्तर-स्पाइनल कॉर्ड (मेरुरज्जु) द्वारा।
11. तंत्रिका कोशिका क्या है?
उत्तर-बहुकोशीय प्राणियों में किसी उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया व्यक्त करने वाले विशिष्ट
कोशिका को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं।
12. प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (cerebral hemisphere) के मुख्य पिण्डों (Lobes) का नाम
वतायें।
उत्तर-फ्राँटल (Frontal), पेराइटल (Parietal), टेम्पोरल (Temporal) एवं
ऑक्सीपीटल (occipetal) पिण्ड।
13. प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के गोलाद्धों को जोड़नेवाली तंत्रिका तंतुओं की पट्टियों का नाम
वतायें।
उत्तर-कॉर्पस कैलोसम।
14. शरीर के तापमान का नियंत्रण मस्तिष्क के किस भाग द्वारा होता है?
उत्तर-हाइपोथैलमस।
15, मध्य कर्ण में पायी जानेवाली तीन अस्थियों का नाम बतायें।
उत्तर-मैलियस, इंकस और स्टेपस।
16. कर्ण का कौन सा भाग ध्वनि की पिच का निर्धारण करता है। [N.C.E.R.T. (Q.10)]
उत्तर-अंत: कर्ण (Internal Ear)।
17. मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग कौन सा है? [N.C.ER.T. (Q.10)]
उत्तर-प्रमस्तिष्क (Cerebrum)।
18. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का कौन सा भाग मास्टर क्लॉक की तरह कार्य करता है?
[N.C.ER.T. (Q.10)]
उत्तर-कायिक तंत्रिका तंत्र (Somatic Nervous system)|
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. निम्नलिखित प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए। [N.C.ER.T. (Q.3)]
(a) तंत्रिका तंतु की झिल्ली का ध्रुवीकरण।
(b) तंत्रिका तंतु की झिल्ली का विध्रुवीकरण।
(c) तंत्रिका तंतु के समांतर आवेगों का संचारण।
(d) रासायनिक सिनेप्स द्वारा तंत्रिका आवेगों का संचारण।
(a) तंत्रिका तंतु की झिल्ली का ध्रुवीकरण
उत्तर-(a) जब कोई न्यूरॉन आवेगों का संचारण नहीं करते हैं जैसे कि विराम अवस्था
में तंत्रिकाक्ष झिल्ली Na आयंस की तुलना में K आयंस तथा Cl आयंस के लिए अधिक
पारगम्य होती है। इसी प्रकार से झिल्ली, तंत्रिकाक्ष द्रव में उपस्थित ऋण आवेशित प्रोटिकॉल
में भी अपारगम्य होती है। धीरे-धीरे तंत्रिकाक्ष के तंत्रिका द्रव्य में K+ तथा ऋणात्मक आवेशित
प्रोटॉन की उच्च सांद्रता तथा Na+ की निम्न सांद्रता होती है। इस भिन्नता के कारण सान्द्रता
प्रवणता बनती है। झिल्ली पर पायी जाने वाली इस आयनिक प्रवणता को सोडियम पोटैशियम
पंप द्वारा नियमित किया जाता है। इस पंप द्वारा प्रतिचक्र 3Na+ बाहर की ओर व 2K भीतर
प्रवेश करते हैं। परिणामस्वरूप तंत्रिकाक्ष झिल्ली की बाहरी-सतह धनआवेशित जबकि आंतरिक सतह ऋण आवेशित हो जाती है, इसलिए झिल्ली ध्रुवित हो जाती है। विराम स्थिति में झिल्ली पर इस विभवांतर को विरामकला विभव कहा जाता है।
(b) बाहरी संवेदना के कारण तंत्रिका तंतु का कोई भाग उत्तेजित होता है तब कोशिका
झिल्ली Na+ एवं K- आयनों के लिए पारगम्य हो जाती है। इसी उत्तेजना के कारण Na+
आयन कोशिका झिल्ली के भीतर की ओर तथा K- आयन बाहर की ओर गति करने लगता है। इस स्थानांतरण के कारण न्यूरॉन के बाहर थोड़ी देर के लिए ऋणात्मक आवेश प्रभावी हो
जाता है। कोशिका की यह स्थिति विध्रुवीकरण (Depolarised) कहलाती है। यह अवस्था
ही तंत्रिका आवेग (Nerve impulse) होती है। इसके विद्युत विभवांतर को क्रिया विभव
कहा जाता है।
(c) तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण निम्न प्रकार से होता
है―
एक तंत्रिकाक्ष में तंत्रिका आवेग का संचारण प्रदर्शित करते हुए आरेख।
तंत्रिकाक्ष से कुछ आगे झिल्ली की बाहरी सतह पर धनात्मक आवेश तथा आंतरिक
सतह पर ऋणात्मक आवेश होता है। परिणामस्वरूप A स्थल से B स्थल की ओर झिल्ली
की आंतरिक सतह पर आवेग विभव का संचारण होता है। अत: स्थान A पर आवेग क्रियात्मक
विभव उत्पन्न होता है। तंत्रिकाक्ष की लंबाई के समांतर क्रम का पुनरावर्तन होता है और आवेग
का संचारण होता है। उद्दीपन द्वारा प्रेरित Na+ के लिए बढ़ी पारगम्यता क्षणिक होती है उसके
तुरंत पश्चात् K+ की प्रति पारगम्यता बढ़ जाती है। कुछ ही क्षणों के भीतर K+ झिल्ली के
बाहरी ओर परासरित होता है और उद्दीपन के स्थान पर (विराम विभव का पुन: संग्रह करता
है तथा तंतु आगे के उद्दीपनों के लिए एक बार) फिर उत्तरदायी हो जाते हैं।
(d) तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण सिनोप्सिस द्वारा होता
है। सिनॉप्स का निर्माण पूर्व सिनैप्टिक न्यूरॉन तथा पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्ली द्वारा
होता है। सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं-विद्युत सिनेप्स एवं रासायनिक सिनेप्स।
रासायनिक सिनेप्स द्वारा आवेगों के संचारण में न्यूरोट्रांसमीटर (तंत्रिका संचारी) रसायन
सम्मिलित होते हैं। जब तंत्रिका आवेग, डेंड्राइट्स के सिरों से प्रारंभ होकर तंत्रिकाक्ष के अंतिम
सिरे तक तरंग के रूप में पहुँचता है तो वहाँ Acetyl choline नामक एक रसायन निकलता
है, जो उसे दूसरे न्यूरॉन तक ट्रांसफर कर देता है। मुक्त किया गया तंत्रिका संचारी रसायन
पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर स्थित विशिष्ट ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। इसके फलस्वरूप आयन
चैनल खुल जाते हैं और उसमें आयनों के आगमन से पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर नया विभव
उत्पन्न हो जाता है।
2. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें- [N.C.E.R.T.(Q.5)]
(a) तंत्रीय समन्वयन (Neural co-ordination). (b) अग्रे मस्तिष्क (Fore brain),
(c) मध्य मस्तिष्क(Mid brain), (d) पश्च मस्तिष्क (Hind brain),
(e) रेटिना (Retina), (f) कर्ण अस्थिकाएँ (Ear ossicles),
(g) कोक्लिया (Cochlea), (h) आर्गन ऑफ कॉर्टाई (organ of corti),
(i) सिनॉप्स (Synapse)।
उत्तर-(a) तंत्रीय समन्वयन (Neural co-ordination)-शरीर के विभिन्न अंगो
और अंगतंत्रों के कार्यों का नियंत्रण रासायनिक एवं तंत्रिकीय दोनों तरीको से होता है।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय विशेष ऊतक द्वारा होता है, जिसे तंत्रिकीय ऊतक
कहते हैं।
जब जैव कार्यों में गति या वेग की आवश्यकता होती है तब समन्वय और नियंत्रण की
भूमिका हॉर्मोन नहीं वरन् तंत्रिका तंत्र द्वारा सम्पन्न होती है। जैसे-जब हमारी अंगुलियाँ
अचानक किसी गर्म वस्तु से छू जाती है तो बिना एक क्षण प्रतिक्षा किये ही उसे गर्म वस्तु
से दूर हटा लेते हैं। यह द्रुतगामी अनुक्रिया तंत्रिका तंत्र द्वारा ही संभव होती है। अंगुलियों से
आवेग का संचरण तंत्रिकाओं द्वारा ही संपन्न होता है और इसमें एक सेकेण्ड से भी बहुत
कम समय लगता है।
(b) अग्र मस्तिष्क (Fore brain)-अग्र मस्तिष्क निम्नलिखित तीन भागों का बना
होता है-
(i) सेरीब्रम (cerebrum)-यह मानव मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है जो मस्तिष्क
के 4/5 भाग को बनाता है। एक गहरी लंबवत खाई द्वारा प्रमस्तिष्क (cerebrum) को दो
भागों दाएँ एवं बायें प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध (ceretal hemisphere) में विभक्त करता है। ये
गोलार्द्ध तंत्रिका तंतुओं की पट्टी कार्पस कैलोसम द्वारा जुड़े होते हैं।
प्रमस्तिष्क की बाहरी सतह धूसर द्रव्य (Grey matter) से बना होता है जिसे
Neopallium कहते हैं। इनमें अनेक उभार तथा गढे होते हैं, उभारों को Gyri और गढ्ढों
को Sulci कहते हैं। सेरीब्रम के पृष्ठ सतह पर sylvianfissure नामक रचना उपस्थित होता
है जो इसे Frontal, Parietal, occipetel , एवं Temporal कुल चार Lobes में बाँट
देता है।
कार्य-(i) Frontal lobe, Thinking or Intelligence, voluntary muscles की.
गतियों तथा स्वायत तंत्रिका तंत्र का केन्द्र हे ता है।
(ii) Occipetal Lobes-दृष्टि, श्रवण तथा वाणी का केन्द्र होता है।
(iii) Parietal Lobe-सामान्य चेतना जैसे कष्ट, स्पर्श तथा तापमान इत्यादि के
ज्ञान का केन्द्र होता है।
(iv) Temporal Lobe-स्वाद, गंध, स्मरण शक्ति इत्यादि का केन्द्र होता है। इनमें
से स्मरण शक्ति, ज्ञान तथा निर्णय पूरे cerebral cortex या Neopallium का कार्य
करता है।
(v) थैलामस (Thalamus)- यह चारों ओर से सेरीब्रम द्वारा घिरा रहता है और संवेदी
ओर प्रेरक संकेतों का मुख्य संपर्क स्थल है।
(vi) हाइपोथैलामस (Hypothalamus)-यह थैलामस के आधार पर स्थित मस्तिष्क
का दूसरा मुख्य भाग है। इसमें शरीर के तापमान, खाने और पीने का नियंत्रण केंद्र स्थित
होता है। इसमें कई तंत्रिका स्रावी कोशिकाएँ भी होती हैं जो हाइपोथैलेमिक हॉर्मोन का स्रवण
करती है। प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध का आंतरिक भाग और अंदरुनी अंगों जैसे एमिगडाला,
हिप्पोकैम्पस आदि का समूह मिलकर एक जटिल संरचना का निर्माण करता है, जिसे लिबिंक
तंत्र कहते हैं। यह हाइपोथैलेमस के साथ मिलकर लैगिक व्यवहार, मनोभावों की अभिव्यक्ति
(जैसे-उत्तेजना, खुशी, गुस्सा और भय) आदि का नियंत्रण करता है।
(c) मध्य मस्तिष्क (Mid brain)-यह अग्र मस्तिष्क के थैलामस या हाइपोथैलामस
तथा पश्च मस्तिष्क के पॉन्स के बीच स्थित होता है। एक नाल प्रमस्तिष्क तरल नलिका में
मध्य मस्तिष्क से गुजरती है। मध्य मस्तिष्क का उपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना
होता है जिन्हें कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन कहते है। मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क, मस्तिष्क
स्तंभ बनाते हैं।
मध्य मस्तिष्क देखने और सुनने दोनों क्रियाओं का नियंत्रक केन्द्र होता है।
(d) पश्च मस्तिष्क (Hind brain)- इसके तीन भाग होते हैं-
(i) सेरीवेलम (अनुमस्तिष्क)―यह मस्तिष्क का विकसित एवं दूसरा बड़ा भाग है जो
मस्तिष्क के 1/8 भाग को बनाता है। यह पाँच पिण्डों का बना होता है-बीच में वर्मिस,
दो पार्श्व पिण्ड एवं दो फ्लोकुलर पिण्ड। सेरीबेलम की बाहरी सतह धूसर द्रव्य (Grey
matter) और भीतरी सतह श्वेत द्रव्य (white matter) से बना होता है। धूसर द्रव्य अंदर
की ओर धंसा रहता है जिससे श्वेत द्रव्य वृक्ष की तरह शाखित दिखता है जिसे Arbor
vitae कहते हैं। Arbor vitae के तंतु सेरीबेलम को सेरीब्रम, मध्य मस्तिष्क, पॉन्स तथा
मध्यांश से जोड़ता है।
यह ऐच्छिक पेशियों की गति को नियंत्रित कर शरीर की स्थिति एवं संकुचन बनाये
रखता है।
(ii) पॉन्स वैरोली (Pons varoli) ―यह मध्यांश के ऊपर एक अंडाकार पिंड है जो
मध्यांश को सेरीबेलम से जोड़ता है।
(iii) मध्यांश (Medulla oblongata)―यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है। जो
नीचे की ओर पतला होकर मेरुज्जू से जुड़ा रहता है।
यह श्वसन, परिवहन, हृदय की गति, भोजन नली की तरंग गति (Peristalsis),
निगलना, ग्रन्थियों का स्राव तथा अनैच्छिक क्रिया पर नियंत्रण रखता है। इस पर आघात
पड़ने से जंतु मर सकता है।
(e) रेटिना (Retina)―नेत्र की आंतरिक परत रेटिना कहलाती है। यह पतला और
अर्धपारदर्शक होता है। यह आँख का संवेदनशील परत है। इसमें दो प्रकार की कोशिका पायी
जाती है जिन्हें छड़ एवं शंकु कोशिका कहते है। मनुष्य में इसकी संख्या लगभग 15 करोड़
होती है, जिनमें लगभग 70 लाख शंकु कोशिका एवं शेज छड़ (शलाका) कोशिका होते हैं।
छड़ कोशिका प्रकाश और अंधेरे में भेद करता है और कम रोशनी में भी कार्य करता है। शंकु
कोशिका रंग पहचानने में सहायक होता है और केवल तेज रोशनी में ही क्रियाशील होता है।
रेटिना के छड़ एवं शंकु कोशिका में निकलने वाला तंत्रिका तंतु एक साथ मिलकर दृक् तंतु
(opticNerves) का निर्माण करता है और जिस स्थान पर छड़ और शंकु कोशिका बिल्कुल
नहीं होता है वहाँ से बाहर निकलकर मस्तिष्क में चला जाता है, इस स्थान को अंध बिन्दु
कहते हैं। इसके ठीक ऊपर रेटिना पर एक छोटी खाई रहती है जिसे फोबिया सेंट्रेलिस कहते
हैं। यह रेटिना का संवेदनशील भाग है। इससे होकर प्रकाशीय अक्ष गुजरता है। यह जिस क्षेत्र
में स्थित होता है उसे पीत बिन्दु (yellow spot) कहते हैं। इसे मैक्यूला ल्यूटिया भी कहते
हैं इसमें सिर्फ शंकु कोशिका पायी जाती है।
(f) कर्ण अस्थिकाएँ (Ear ossicles)―मध्य कर्ण में तीन अस्थियाँ पायी जाती हैं,
जिसे कर्ण अस्थिकाएँ कहते हैं। इन अस्थियों को मैलियस, इंकस व स्टेपीज कहते हैं। ये एक
दूसरे से श्रृंखला के रूप में जुड़ी रहती हैं। मैलियस कर्ण पटह झिल्ली से और स्टेपीज
कोक्लिया की फेनेस्ट्रा ऑवेलिस से जुड़ी रहती है। कर्ण अस्थिकाएँ ध्वनि तरंगों को अंतःकर्ण
तक पहुँचने की क्षमता को बढ़ाती है।
(g) कोक्लिया (Cochlea)―अंत: कर्ण के लेबरिथ के घुमावदार भाग को कोक्लिया
कहते हैं। कोक्लिया बेसिलर और राइजनर्स झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभक्त रहता है। ऊपरी
कक्ष को स्केला वेस्टीब्यूली, मध्यकक्ष को मीडिया और निचले कक्ष को स्केला टिंपेनी
कहते हैं। स्केला वेस्टीब्यूली एवं टिपेनी में पेरिलिंफ तथा स्केला मीडिया में एंडोलिंफ भरा
होता है। स्केला वेस्टीब्यूली फेनेस्ट्रा ऑवेलिस एवं स्केला टिपेनी फेनेस्ट्रा रोटण्डा पर समाप्त
होती है। स्केला मीडिया के अघातीय झिल्ली पर आर्गन ऑफ कॉर्टाई स्थित होता है।
(h) आर्गन ऑफ कॉर्टाई (Organ of corti)- यह अंतः कर्ण के कोक्लिया के स्केला
मीडिया के आधारीय झिल्ली पर स्थित होता है जिसमें पायी जानेवाली रोम कोशिकाएँ श्रवण
ग्राही के रूप में कार्य करती हैं। रोम कोशिकाओं का आधारीय भाग अभिवाही तंत्रिका तंतु के
संपर्क में होता है। प्रत्येक रोम कोशिका के उपरी भाग से कई स्टरियों सिलिया नामक प्रवर्ध
निकलता है। रोम कोशिकाओं की श्रृंखला के उपर पतली लचीली टक्टोरियल झिल्ली होती है।
(i) सिनेप्स (synapse)-जहाँ दो न्यूरॉन आपस में मिलते हैं उस स्थान को सिनेप्स
कहा जाता है।
तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संचरण सिनेप्सिम द्वारा होता है।
सिनेप्स दो प्रकार का होता है-विद्युत सिनेप्स एवं रासायनिक सिनेप्स।
विद्युत सिनेप्स पर पूर्व और पश्च न्यूरॉन की झिल्लियाँ एक दूसरे के समीप होती है।
रासायनिक सिनेप्स पर पूर्व एवं पश्च न्यूरोंस की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा
पृथक होती हैं जिसे सिनेप्टिक दरार कहते हैं।
3. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें- [N.C.E.R.T. (Q.6)]
(a) सिनेप्टिक संचरण की क्रियाविधि,
(b) देखने की प्रक्रिया,
(c) श्रवण की क्रिया।
उत्तर-(a) सिनेप्टिक संचरण की क्रियाविधि-तंत्रिका आवेगों का एक न्यूरॉन से
दूसरे न्यूरॉन तक संचरण सिनेप्सिस द्वारा होता है।
जब पूर्व और पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ एक दूसरे के समीप होती है तो उसे
विद्युत सिनेप्स कहते हैं। विद्युतीय सिनेप्सिस से आवेग का संचरण तीव्रता से होता है।
जब पूर्व एवं पश्च सिनेप्टिक न्यूरॉन की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा पृथक
होती हैं तो उसे रासायनिक सिनेप्स कहते हैं।
रासायनिक सिनेप्स द्वारा आवेगों के संचरण में न्यूरोट्रांसमीटर रसायन Acetylchorine
सम्मिलित होते हैं। जब तंत्रिका आवेग डेंड्राइट्स के सिरों से प्रारंभ होकर तंत्रिकाक्ष के अंतिम
सिरे तक तरंग के रूप में पहुँचता है तो वहाँ उपस्थित Acetylcholine उसे दूसरे न्यूरॉन
पर ट्रांसफर कर देता है। मुक्त किया गया तंत्रिका संचारी रसायन पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर
स्थित विशिष्ट ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। इसके फलस्वरूप आयन चैनल खुल जाते हैं और
उसमें आयनों के आगमन से पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर नया विभव उत्पन्न हो जाता है।
(b) देखने की प्रक्रिया-दृश्य तरंगदैर्ध्य में प्रकाश किरणों को कार्निया व लेंस द्वारा
रेटिना पर फोकस करने पर छड़ व शंकु कोशिका में आवेग उत्पन्न होते हैं।
छड़ कोशिका में उपस्थित रोडोप्सिन वर्णक उत्तेजित हो जाते हैं जो विखंडित होकर
स्कॉटॉप्सिन एवं विटामीन A का रूपान्तिरित अणु रेटिनेज नामक प्रोटीन बनाता है जो छड़
में प्रेरणाएँ उत्पन्न करती हैं। इसके परिणामस्वरूप विभवांतर प्रकाश ग्राही कोशिका में संचरित
होती है तथा एक संकेत की उत्पति होती है, जो कि गुच्छिका कोशिकाओं में द्विध्रुवीय
कोशिकाओं द्वारा सक्रिय कोशिका विभव उत्पन्न करता है। इन सक्रिय विभव के आवेगों का
दृक् तंत्रिका द्वारा मस्तिष्क के दृष्टि वल्कुट क्षेत्र में भेजा जाता है, जहाँ पर तंत्रिकीय आवेगों
की विवेचना की जाती है और छवि को पूर्व स्मृति एवं आधार पर पहचाना जाता है।
श्रवण की क्रिया-पिन्ना बाह्य वातावरण की ध्वनि तरंगों को एकत्रित करता है
जो External auditory muscles के द्वारा कर्णपटह झिल्ली तक पहुंचती है। यहाँ से यह
कम्पन्न कर्ण अस्थियों द्वारा फेनेस्ट्रा ऑवेलिस की झिल्ली तक जाती है जिससे उसमें कम्पन
होता है। यह कम्पन स्केला वेस्टीब्यूटी के पेरिलिंफ में पहुँचता है जिससे उसका दबाब बढ़ता
घटता है जिससे राइजनर्स झिल्ली में भी कम्पन्न होता है। ठीक इसी समय स्केला टिंपेनी में
दबाब बढ़ने से आधारीय झिल्ली में भी कम्पन्न होता है। इन दोनों झिल्लियों के कंपन के फलस्वरूप स्केला मीडिया के एंडोलिंफ में भी कम्पन होता है और अंत में ऑर्गन ऑफ कॉर्टाई से संवेदी रोम कोशिकाएँ इसे तंत्रिका आवेग में रूपान्तरित कर देती हैं जो आठवीं कपालीय तंत्रिका तंतु के द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचता है। यही तंत्रिका आवेग, मस्तिष्क के द्वारा आवाज में परिवर्तित होकर सुनाई देता है।
4, (a) आप किस प्रकार किसी वस्तु के रंग का पता लगाते हैं? [N.CER.T. (Q.72]
उत्तर-नेत्र के रेटिना पर उपस्थित शंकु कोशिका रंग पहचानने में सहायक होती हैं।
शंकु कोशिका में आयोडोप्सिन वर्णक पाया जाता है जो विखंडित होकर रेटिनीय एवं फोटॉप्सिन
बनाता है। इसके द्वारा ही रंग भेद करने में सहायता मिलती है।
(b) हमारे शरीर का कौन सा भाग शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करता
है? [N.C.E.R.T. (Q.7]
उत्तर-कर्ण शरीर का संतुलन बनाये रखने में मदद करता है। अंतःकर्ण के अर्धचंद्राकार
नलिका के एम्पुला में उपस्थित क्रिस्टा और युट्रीकुलस ही शरीर के संतुलन के लिए जिम्मेवार
होते हैं। जब हम अपने सिर को दायें या बायें घुमाते है तो नलिका के एंडोलिंफ भी उसी के
अनुसार परिवर्तित होती है, इसके इसी बहाव से उसमें उपस्थित ottolith के कण क्रिस्टी के
संवेदी रोम कोशिका से टकराता है जिससे यह उद्दीपन तंत्रिका तंतु द्वारा मस्तिष्क में जाता
है। मस्तिष्क उन आवश्यक पेशियों को उत्तेजित करता है जो शरीर को संतुलन में लाते हैं।
(c) नेत्र किस प्रकार रेटिना पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करते हैं। [N.C.E.R.T.(Q.7)
उत्तर-नेत्र लेंस के सामने आइरिस के मध्य में एक छिद्र होता है जिसे प्यूपिल (Pupil)
कहते हैं। प्यूपिल के व्यास का नियंत्रण आइरिस के पेशी तंतु करते हैं। जो प्रकाश की मात्रा
के अनुसार फैलकर एवं सिकुड़कर नेत्र के भीतर जानेवाले प्रकाश का नियमन करता है।
5. (a) सक्रिय विभव उत्पन्न करने में Na’ की भूमिका का वर्णन करें। (N.C.E.R.T.(Q.8)]
उत्तर-सामान्य अवस्था में तंत्रिकाक्ष झिल्ली के बाहरी सतह पर Na+ तथा भीतरी
सतह पर K-आयन उपस्थित होते हैं। धीरे-धीरे तंत्रिकाक्ष के तंत्रिका द्रव्य में K+ तथा
ऋणात्मक आवेशित की उच्च सांद्रता तथा Na+ की निम्न सांद्रता प्रवणता बनती है। इस
भिन्नता के कारण सान्द्रता प्रवणता बनती है। झिल्ली पर पाई जानेवाली इस आयनिक प्रवणता
को सोडियम पोटैशियम पंप द्वारा नियमित किया जाता है। इससे प्रतिचक्र 3Na+ बाहर की
ओर व 2K+ कोशिका में प्रवेश करते हैं। इससे झिल्ली ध्रुवित हो जाती है और सक्रिय विभव
उत्पन्न होता है।
(b) सिनेप्स पर न्यूरोट्रांसमीटर मुक्त करने में Ca++ की भूमिका का वर्णन करें।
[N.C.ER.T. (Q.8)]
उत्तर-तंत्रिकाक्ष के छोर पर आश्रय पुटिकाओं में तंत्रिका संचारी अणु Ca++ भरे होते
हैं। जब तक आवेग तंत्रिकाक्ष के छोर तक पहुँचता है यह सिनेप्टिक पुटिका की गति को
झिल्ली की ओर उत्तेजित करता है जहाँ वे प्लाज्मा झिल्ली के साथ जुड़कर Ca++ को सिनेप्टिक दरार में मुक्त कर देते हैं। मुक्त किये गए अणु पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर स्थित विशिष्ट
ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। इसके कारण चैनल खुल जाते हैं। जिससे साइनेप्टिक झिल्ली पर
नया विभव उत्पन्न होता है।
(c) रेटिना पर प्रकाश द्वारा आवेग उत्पन्न होने की क्रियाविधि का वर्णन करें।
[N.C.E.R.T. (Q.8)]
उत्तर-जब प्रकाश की किरण रेटिना पर पड़ती है तो छड़ कोशिका में उपस्थित
रोडोप्सिन वर्णक उत्तेजित हो जाता है और विखंडित होकर स्कॉट्रोप्सिन एवं विटामीन A का रूपान्तरित अणु रेटिनीन नामक प्रोटीन बनाता है जो छड़ में प्रेरणाएँ उत्पन्न करता है। जो दृक् तंतु द्वारा मस्तिष्क में पहुँचता है।
(d) अंत: कर्ण में ध्वनि द्वारा तंत्रिका आवेग उत्पन्न होने की क्रियाविधि का वर्णन
करें। [N.C.E.R.T. (Q.8)]
उत्तर-जब ध्वनि कंपन कर्ण अस्थिकाओं से होते हुए फेनेस्ट्रा रोटण्डा तक पहुँचते हैं
तो यहाँ से कंपन कोक्लिया में भरे द्रव तक पहुँचते हैं जहाँ वे लिंफ में तरंगें उत्पन्न करते
है। लिंफ की तरंगें आधार कला में हलचल उत्तेजित करती हैं।
बेसिलर झिल्ली में गति से रोम कोशिकाएँ मुड़ती हैं और टैक्रोरियल झिल्ली पर दबाब
डालती हैं। फलस्वरूप संगठित अभिवाही न्यूरोस में तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं।
6. निम्नलिखित के बीच में अंतर वतायें- [N.C.E.R.T. (Q.9)]]
(a) आच्छादित और अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष,
(b) दुम्राक्ष और तंत्रिकाक्ष, (c) शलाका और शंकु,
(d) थेलमस और हाइपोथैलामस, (e) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क।
उत्तर-(a) आच्छादित और अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष-
(b) दुम्राक्ष्य और तंत्रिकाक्ष-
(c) शलाका और शंकु-
(d) थेलमस और हाइपोथेलमस-
(e) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क-
7. निम्न में भेद स्पष्ट कीजिए- [N.C.E.R.T.)
(a) संवेदी तंत्रिका एवं प्रेरक तंत्रिका,
(b) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तंतु में आवेग संचरण,
(c) एक्विअस ह्यूमर (नेत्रोद) एवं विट्रियस ह्यूमर (कचाभ द्रव),
(d) अंध विंदु एवं पीत विंदु,
(e) कंपालीय तंत्रिकाएँ व मेरु तंत्रिकाएँ।
उत्तर-(a) संवेदी तंत्रिका एवं प्रेरक तंत्रिका-
(b) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तंतु में आवेग संचरण-
(c) एक्विअस ह्यूमर (नेत्रोद) एवं विट्रियस ह्यूमर (कचाभ द्रव)-
(d) अंध विंदु एवं पीत बिंदु-
(e) कपालीय तंत्रिकाएँ व मेरु तंत्रिकाएँ-
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
1. निम्नलिखित संरचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए-
(a) मस्तिष्क, (b) नेत्र, (c) कर्ण। [N.C.E.R.T.)
उत्तर-(a) मस्तिष्क (Brain)-मस्तिष्क हमारे शरीर का केंद्रीय सूचना प्रसारण अंग
है और यह ‘आदेश व नियंत्रण तंत्र’ की तरह कार्य करता है।
मानव मस्तिष्क खोपड़ी के द्वारा अच्छी तरह सुरक्षित रहता है। खोपड़ी के भीतर कपालीय
मेनिजेज से घिरा होता है, जिसकी बाहरी परत ड्यूरामैटर, बहुत पतली मध्य परत एरेक्नॉइड
और आंतरिक परत पायामैटर कहलाती है।
मस्तिष्क को तीन मुख्य भागों में बाँटा जाता है-
(1) अग्र मस्तिष्क (Fore brain) या प्रोजेनसिफेलॉन-अग्र मस्तिष्क, सेरीब्रम,
थैलामस और हाइपोथैलामस का बना होता है।
मानव मस्तिष्क का सममिता/ (सेजीटल) काट
(i) सेरीब्रम-एक गहरी लंबवत खाई सेरीबम को दो भागों, दाएं व बाएं प्रमस्तिष्क
गोलार्द्धों (cerebral hemisphere) में विभक्त करती है। ये गोलार्द्ध कार्पस कैलोसम नामक
तंत्रिका तंतु की पट्टी द्वारा जुड़े होते हैं।
कार्य-यह बुद्धि विवेक, यादाश्त, ज्ञान, गंध, स्वाद इत्यादि का नियंत्रण केन्द्र
होता है।
(ii) थैलामस-सेरीबम थैलामस नामक संरचना के चारों ओर लिपटा होता है जो कि
संवेदी और प्रेरक संकेतों का मुख्य संपर्क स्थल होता है।
(iii) हाइपोथैलामस-थैलेमस के आधार पर उपस्थित रचना हाइपोथैलामस कहलाता
है यह शरीर के तापमान, खाने और पीने का नियंत्रण केन्द्र होता है। इसमें कई तंत्रिका स्रावी
कोशिकाएँ भी पायी जाती हैं।
(2) मध्य मस्तिष्क (Mid brain) या मिजेनसिफेलॉन-यह अग्र मस्तिष्क के
थैलामस/हाइपोथैलामस तथा पश्च मस्तिष्क के पॉन्स के बीच स्थित होता है। मध्य मस्तिष्क
से एक प्रमस्तिष्क तरल नलिका गुजरती है। मध्य मस्तिष्क का उपरी भाग चार लोबनुमा
उभारों का बना होता हैं जिन्हें कार्पोरा क्वाड्रीगेमिना कहते है।
मध्य मस्तिष्क और पश्च मस्तिष्क, मस्तिष्क स्तंभ बनाते हैं।
(3) पश्च मस्तिष्क (Hind brain) या रौम्बेनसिफेलॉन-यह पॉन्स, सेरीबेलम
(अनुमस्तिष्क) और मध्यांश (मेड्यूला ऑब्लांगाटा) का बना होता है।
(i) पॉन्स (Pons)-पॉन्स रेशेनुमा पथ का बना होता है जो कि मस्तिष्क के विभिन्न
भागों को आपस में जोड़ता है।
(ii) सेरीबेलम-सेरीबेलम मस्तिष्क का 1/8 भाग को बनाता है। यह पाँच पिण्डों का
होता है। बीच में वर्मिस, दो पार्श्व (Lateral) पिण्ड एवं दो फ्लोकुलर पिंड। सेरीबेलम की
बाहरी सतह Grey matter से और भीतरी सतह white matter से बना होता है। Grey
matter अन्दर की ओर धंसा रहता है जिससे कि white matter वृक्ष की तरह शाखित
दिखता है जिसे ‘आर्बर विटी’ कहते हैं।
यह एच्छिक पेशियों की गति को नियंत्रित कर शरीर की स्थिति एवं संतुलन बनाये
रखता है। शरीर को संतुलित रखने का भी कार्य करता है।
(iii) मेडुला ऑब्लांगाटा-यह मस्तिष्क का पिछला भाग है जो नीचे की ओर पतला
होकर मेरुरज्जु से जुड़ जाता है।
यह श्वसन, परिसंचरण, हृदय की गति पाचक रसों का स्राव इत्यादि का नियंत्रण केन्द्र
होता है। इस पर आघात से जन्तु मर सकता है।
(b) नेत्र (Eye)-स्तनधारियों के खोपड़ी में नेत्रकोटर (orbit) नामक अस्थि गर्तिका
(Bony sockets) में एक जोड़ी नेत्र स्थित होती है। नेत्र का मुख्य भाग नेत्र गोलक (Eye
ball) होता है। वयस्क मनुष्य के नेत्र लगभग गोलाकार संरचना है जो नेत्र कोटर के साथ 6
पेशियों द्वारा जुड़ा होता है जिसकी सहायता से इसे इधर-उधर घुमाया जा सकता है। नेत्र
गोलक की रक्षा के लिए इसके ऊपर एवं नीचे दो पलकें एवं तीसरी पारदर्शक पलक निमेषक
पटल (Nictitating Membrane) पाया जाता है। मनुष्य में निमेषक पटल को सेमीलुमरिस
(semilumaris) कहा जाता है।
नेत्र को नम तथा पारदर्शी बनाये रखने हेतु ऊपरी पलक के नीचे लैक्राइमल एवं निचली
पलक के नीचे मिओबोमियन ग्रंथि पायी जाती है।
नेत्र गोलक की रचना (Structure of Eye ball)-इसकी दीवारें तीन परतों की बनी
होती हैं। इन परतों को बाहर से अन्दर की ओर स्केलेरा (श्वेत पटल), कोरॉइड (रक्त पटल)
एवं रेटिना कहते हैं।
नेत्र के भागों को प्रदर्शित करता चित्र
(i) स्क्लेरोटिक (Sclerotic)-यह घने संयोजी ऊतकों का बना होता है। इसका
अग्रभाग कॉर्निया (Cornea) कहलाता है। कॉर्निया की बाहरी सतह कंजेक्टाइवा (conjuctiva) द्वारा घिरा होता है।
(ii) कोरॉइड (Choroid) यह हल्के नीली रंग की परत है जिसमें पिगमेंट कोशिका
एवं रक्त वाहिनियाँ भरी होती हैं। यह नेत्र को पोषक तत्व देती है। नेत्र गोलक के पिछले दो
तिहाई भाग पर कोरॉइड मोटी होती है, लेकिन अग्रभाग में मोटी होकर पक्ष्माभकाय (ciliary
body) बनाती है।
पक्ष्माभकाय आगे की ओर निरंतरता बनाते हुए वर्णक युक्त और अपारदर्शी संरचना
आइरिस बनाती है, जो कि नेत्र का रंगीन देखने योग्य भाग होता है।
लेंस (Lens)-नेत्र गोलक के भीतर पारदर्शी क्रिस्टलीय लेंस होता है जो तंतुओं द्वारा
पक्ष्माभकाय से जुड़ा रहता है। लेंस के सामने आइरिस से घिरा हुआ एक छिद्र होता है जिसे
प्यूपिल (Pupil) कहते हैं। प्यूपिल के व्यास का नियंत्रण आइरिस के पेशी तंतु करते हैं।
(iii) रेटिना (Retina)-यह कोशिकाओं की तीन परतों से बनी होती है अर्थात् अंदर
से बाहर की ओर गुच्छिका कोशिकाएँ, द्विध्रुवीय कोशिकाएँ और प्रकाश ग्राही कोशिकाएँ।
प्रकाश ग्राही कोशिकाएँ दो प्रकार की होती है। शलाका (Rods) और शंकु (cones) इन
कोशिकाओं में प्रकाश संवेदी प्रोटीन प्रकाशीय वर्णक होता है। दिन की रोशनी में देखना और
रंग पहचानना शंकु के कार्य होते हैं तथा स्कोटोपिक (तिमिरानुकुलित) दृष्टि शलाका का कार्य
है। शलाकाओं में बैंगनी लाल रंग का प्रोटीन रोडोप्सिन होता है, जिसमें विटामिन ए का
व्युत्पन्न होता है।
मानव नेत्र में तीन प्रकार के शंकु होते हैं, जिनमें कुछ विशेष प्रकाश वर्णक होते हैं, जो
कि लाल, हरे और नीले प्रकाश को पहचानने में सक्षम होते हैं। विभिन्न प्रकार के शंकुओं
और उनके प्रकाश वर्णकों के मेल से अलग-अलग रंगों के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है।
जब इन शंकुओं को समान मात्रा में उत्तेजित किया जाता है तो सफेद रंग के प्रति संवेदना
उत्पन्न होती है।
दृक् तंत्रिका (Opticnerves) नेत्र तथा रेटिना को नेत्र गोलक के मध्य तथा थोड़ी पश्च
ध्रुव के ऊपर छोड़ती है तथा रक्त वाहिनी यहाँ प्रवेश करती है। प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ उस
भाग में नहीं होती हैं, अत: इसे अंध बिन्दु (Blind spot) कहते हैं। अंध बिन्दु के पार्श्व में
नेत्र के पिछले ध्रुव पर पीला वर्णक बिन्दु (Yellow spot) होता है, जिसे मैक्यूला ल्यूटिया कहते हैं और जिसके केन्द्र में एक गर्त होता है जिसे फोबिया सेंट्रेलिस कहते हैं। फोबिया रेटिना का पतला भाग होता है, जहाँ केवल शंकु होते हैं। यह वह बिन्दु है जहाँ दृष्टि क्रियाएँ अधिकतम होती हैं।
कार्निया और लेंस के बीच की दूरी को एक्वस चैम्बर (जलीय कोष्ठ) कहते है। जिसमें
पतला जलीय द्रव नेत्रोद भरा होता है। लेंस और रेटिना के बीच के रिक्त स्थान को काचाभ
द्रव कोष्ठ (viterous chamber) कहते है और यह पारदर्शी द्रव काचाभ द्रव कहलाता है।
(C) कर्ण (Ear)-कर्ण दो संवेदी क्रियाएँ करते हैं, सुनना और शरीर का संतुलन
बनाना। शरीर क्रिया विज्ञान की दृष्टि से कर्ण को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जाता है।
(i) वाह्य कर्ण (External Ear)-यह पिन्ना या ऑरीकुला तथा बाह्य श्रवण गुहा
(External auditory cavity) का बना होता है। पिन्ना वायु में उपस्थित तरंगों को एकत्र
करता है जो ध्वनि उत्पन्न करती है। पिन्ना में तथा मिटस में कुछ महीन बाल और मोम
स्रावित करने वाली ग्रंथि होती है। बाहा कर्ण ध्वनि तरंगों को संग्रह कर उसके दिशा को
निर्देशित करता है।
(ii) मध्य कर्ण (Middle ear)-मध्य कर्ण तीन अस्थियों का बना होता है, जिन्हें
मैलियस, इंकस और स्टेपीज कहते हैं। ये एक दूसरे से शृंखला के रूप में जुड़ी रहती है।
मैलियस कर्णपट झिल्ली से और स्टेपिज कोक्लिया की फेनेस्ट्रा ओवेलिस से जुड़ी रहती है।
कर्ण अस्थिकाएँ ध्वनि तरंगों को अंत:कर्ण तक पहुँचाने की क्षमता को बढ़ाती है। यूस्टेकियन
नलिका मध्यकर्ण गुहा को फैरिक्स से जोड़ती है। यह नलिका कर्ण पटह के दोनों ओर दाब
को समान रखती है।
(iii) अंत: कर्ण (Internal Ear)-द्रव से भरा अंत:कर्ण लेबरिथ कहलाता है जो कि
अस्थिल (Bony) और झिल्लीनुमा लेबरिथ से बना होता है। अस्थिल लेंबरिंथ वाहिकाओं की
एक श्रृंखला होती है। इन वाहिकाओं के भीतर झिल्लीनुमा लेबरिथ होता है जो कि पेरिलिंफ
द्रव से भरा घिरा रहता है किन्तु झिल्लीनुमा लेबरिथ एडोलिंफ नामक द्रव से भरा रहता है।
लेबरिथ के घुमावदार भाग को कोक्लिया कहते हैं।
कोक्लिया की रचना-बेसिलर और राइजनर्स झिल्लियों के द्वारा तीन कक्षों में विभक्त
होता है। उपरी भाग स्केला वेस्टीब्यूलर, मध्य भाग को स्केला मीडिया और निचले कक्ष को
स्केला टिंपेनी कहते हैं। स्केला वेस्टीब्यूली और स्केला टिंपेनी में पेरिलिंफ द्रव से तथा स्केला
कोक्लिया के काट का दृश्य
मीडिया एडोंलिंफ द्रव से भरा होता है। कोक्लिया के नीचे स्केला वेस्टीब्यूली फेनेस्ट्रा ऑवेलिस
पर समाप्त होती है जबकि स्केला टिपेनी फेनेस्ट्रा रोटण्डा पर समाप्त होता है।
आर्गन ऑफ कॉर्टाई (Organ of corti)-बेसिलर झिल्ली पर यह स्थित होता है,
जिसमें पायी जाने वाली रोम कोशिका श्रवण ग्राही के रूप में कार्य करती है। रोम कोशिकाएँ
आर्गन ऑफ कॉर्टाई की आंतरिक सतह पर श्रृंखला में पायी जाती है। रोम कोशिकाएँ का
आधारी भाग अभिवाही तंत्रिका तंतु के निकट संपर्क में होता है। प्रत्येक रोम कोशिका के
उपरी भाग से कई स्टीरियो सिलिया नामक प्रबर्द्ध निकलता है। रोम कोशिकाओं की श्रृंखला
के ऊपर पतली लचीली टेक्टोरियल झिल्ली होती है।
अंत:कर्ण के कोक्लिया के ऊपर जटिल तंत्र, वेस्टीब्यूलर तंत्र भी होता है। वेस्टीब्यूलर
तंत्र तीन अर्धचंद्राकार (Semilunar) नलिकाओं तथा लघुकोश और युट्रीकल से निर्मित
ऑर्गन ऑफ ऑटोलिथ से बना होता है। प्रत्येक अर्द्धचंद्राकार नलिका एक दूसरे से समकोण
पर भिन्न तल पर स्थित होती है। झिल्लीनुमा नलिकाएँ अस्थिल नलिकाओं के पेरिलसिका
द्रव में डुबी रहती है। नलिका का फुला हुआ आधार भाग एंपुला जिसमें एक उभार निकलता
है, जिसे क्रिस्टा एंपुलरिस कहते हैं। प्रत्येक क्रिस्टा में रोम कोशिकाएँ होती हैं। लघुकोश और
युटीकल में युट्रीकुल में उभारनुमा संरचना मैक्यूला होता है। क्रिस्टा व मैक्यूला वेस्टीब्यूलर
तंत्र के विशिष्ट ग्राही होते हैं, जो शरीर के संतुलन व सही स्थिति के लिए उत्तरदायी
होते हैं।
2. निम्नलिखित की तुलना कीजिए- [N.C.E.R.T. (Q.2)]
(a) केन्द्रीय तंत्रिका परिधीय तंत्रिका तंत्र,
(b) स्थिर विभव और सक्रिय विभव,
(c) कॉरोइड और रेटिना।
उत्तर-(a) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र-
(b) स्थिर विभव और सक्रिय विभव-
(c) कॉरोइड और रेटिना-
3. निम्नलिखित का नामांकित चित्र बनाइए-
(a) न्यूरॉन,
(b) मस्तिष्क,
(c) नेत्र,
(d) कर्ण। [N.C.E.R.T. (Q.1)]
उत्तर-(a) न्यूरॉन-
(b) मस्तिष्क-
मानव मस्तिष्क का सममितार्धी/ (सेजीटल) काट
(c) नेत्र-
(d) कर्ण-
4. प्रतिवर्ती क्रिया और प्रतिवर्ती चाप क्या है? प्रतिवर्ती क्रिया में होनेवाली घटनाओं
का वर्णन करें।
उत्तर–प्रतिवर्ती क्रिया अवांछित बाह्य पदार्थ या उद्दीपन से अनुक्रिया करने के लिए
होती है। पिन चुभने पर हाथ हटाना, मिठाई देखकर मुँह में लार आना, तेज रोशनी में आँख
की पुतली का छोटा होना, आँख के सामने कोई पदार्थ आने पर पलक का बन्द हो जाना,
गर्म वस्तु में हाथ सटने पर हाथ का फौरन खींच लेना प्रतिवर्ती क्रिया के उदाहरण हैं।
अत: ‘उद्दीपन के कारण बिना सोचे समझे तीव्रगति से होने वाली स्वतः प्रेरित क्रिया
को प्रतिवर्ती क्रिया कहते हैं।’ इसके संचालन में मस्तिष्क भाग नहीं लेता है। इस क्रिया में
संवेदी न्यूरॉन द्वारा पहुँचा उद्दीपन नियंत्रण केन्द्र से प्रेरक न्यूरॉन द्वारा कार्य करने वाले स्थल
में अनैच्छिक विधि से पहुँचकर कार्य करता है।
नियंत्रण केन्द्र के अनुसार प्रतिवर्ती क्रिया (cerebral refrences) या स्पाइनल प्रतिवर्ती क्रिया होती है।
प्रतिवर्ती क्रिया (नीजर्क रिफलेक्स) का आरेखी प्रदर्शन
मेरुरज्जु प्रतिवर्ती क्रिया का मार्ग एवं प्रतिवर्ती चाप → उद्दीपन
↓
ग्राही अंग
↓
पेशीय क्रिया ←प्रेरक तंत्रिका ← मेरुरज्जु ← संवेदी न्यूरॉन
प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arch)-वह मार्ग जिसके द्वारा उद्दीपन संवेदी अंग से लेकर
गति करने वाले अंग तक पहुँचती है उसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं। इसे हम निम्न उदाहरण से
स्पष्ट कर सकते हैं-पैर में काँटा चुभने पर उस भाग से उद्दीपन संवेदी न्यूरॉन के द्वारा
मेरुरज्जु में आता है। मेरुरज्जु से प्रतिक्रिया का आदेश प्रेरक न्यूरॉन के द्वारा मांसपेशीयों में
पहुँचकर संकुचन उत्पन्न करता है जिससे पैर हट जाता है। इस क्रिया में जो चाप बनता है
उसे प्रतिवर्ती चाप कहते हैं।
लाभ-(i) इससे मस्तिष्क का कार्यभार कम जाता है। (ii) यह बहुत तेज गति से होती
है जिससे जीव की रक्षा बिना सोचे समझे हमेशा होती रहती है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. मानव मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग कौन है?
(क) ऑप्टिक लोब
(ख) मेडुला ऑब्लांगाटा
(ग) सेरीब्रम
(घ) सेरीबेलम उत्तर-(ग)
2. मस्तिष्क के चारों ओर स्थित सबसे बाहरी झिल्ली क्या कहलाती है-
(क) पायामैटर
(ख) ड्यूरामैटर
(ग) एरेक्नॉयड
(घ) कोई नहीं उत्तर-(ख)
3. प्रोजेन सेफलॉन से विकसित होता है-
(क) मध्य मस्तिष्क
(ख) सेरीबेलम
(ग) सेरीब्रल कॉर्टेक्स
(घ) पॉन्स उत्तर-(ग)
4. मनुष्य में स्पाइनल तंत्रिकाओं की संख्या होती है-
(क) 10 जोड़ी
(ख) 12 जोड़ी
(ग) 30 जोड़ी
(घ) 31 जोड़ी उत्तर-(घ)
5. वृहत मस्तिष्क कहते हैं-
(क) सेरीब्रम को
(ख) मेडुला को
(ग) सेरीबेलम को
(घ) डाएनसेफलॉन को उत्तर-(क)
6. अंत: कर्ण भरा रहता है-
(क) पेरीलिंफ से
(ख) एंडोलिंफ से
(ग) रक्त से
(घ) लिंफ से उत्तर-(ख)
7. दृक् तंतु (optic nerves) कहाँ से उत्पन्न होता है-
(क) ऑप्टिक लोब
(ख) रेटिना
(ग) कान
(घ) नाक उत्तर-(ख)
8. प्रेम और घृणा का केन्द्र कहाँ उपस्थित होता है-
(क) सेरीब्रम
(ख) डायनसिफेलॉन
(ग) सेरीबेलम
(घ) मेडुला ऑब्लांगाटा उत्तर-(ख)
9. मस्तिष्क के किस भाग के क्षतिग्रस्त हो जाने पर यादाश्त शक्ति कमजोर या समाप्त
हो जाती है-
(क) मेडुला
(ख) सेरीबेलम
(ग) सेरीब्रम
(घ) हाइपोथैलामस उत्तर-(ग)
10. कार्टि का अंग (organ of corti) कहाँ स्थित होती है?
(क) स्केलाटिंपेनी
(ख) स्केला भेस्टीबुलाई
(ग) स्केलामेडिया
(घ) कोई नहीं उत्तर-(ग)
11. कार्पोरा क्वाड्रीजेमीन किसका भाग है-
(क) मस्तिष्क
(ख) कान
(ग) आँख
(घ) कोई नहीं उत्तर-(क)
12. पाचक रसों के स्राव का केन्द्र स्थित होता है-
(क) मेडुला ऑब्लांगाटा
(ख) पॉन्स
(ग) सेरीब्रम
(घ) डायनसिफेलॉन उत्तर-(क)
13. रेटिना पर उपस्थित वह बिन्दु जहाँ प्रकाश संवेदी कोशिकाएँ नहीं पायी जाती,
कहलाती है-
(क) अंध बिन्दु
(ख) फोबिया सेंट्रेलिस
(ग) कोर्निया
(घ) पुपिल उत्तर-(क)
14. केवल स्तनधारियों के मस्तिष्क के चारों ओर पायी जानेवाली झिल्ली होती है-
(क) Duramater
(ख) Piamater
(ग) Arachnoid
(घ) Allof these उत्तर-(ग)
15. मस्तिष्क किस तंत्रिका तंत्र का भाग है-
(क) केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र
(ख) परीधिय तंत्रिका तंत्र
(ग) स्वायत तंत्रिका तंत्र
(घ) इनमें से कोई नहीं उत्तर-(क)
16. किसे conditional Reflex का पिता कहा जाता है?
(क) ऑवेरिन
(ख) पावलव
(ग) कैल्विन
(घ) स्मिथ उत्तर-(ख)
17. मानव नेत्र में निमेषक पटल (Nictitating membrane) को किस नाम से जाना
जाता है-
(क) सेमीलुनरिस
(ख) विलकाइन्स
(ग) एक्वस ह्यूमर
(घ) कोई नहीं उत्तर-(क)
18. कोक्लिया (cochlea) एक रचना है जो पाया जाता है-
(क) अंत: कर्ण में
(ख) पेल्विक गर्डिल में
(ग) मध्य कर्ण में
(घ) सभी में उत्तर-(क)
19. डाइटर कोशिका (Dieter cells) पाया जाता है
(क) Retine of eyes
(ख) sebaceous glands
(ग) organ of corti
(घ) utriculeris उत्तर-(ग)
20. केशेरुकी के नेत्र का वह भाग जहाँ से दृकतंत्रिका, रेटिना से बाहर निकलती है-
[N.C.E.R.T. (Q.11)]
(क) फोबिया
(ख) आइरिस
(ग) अंध बिन्दु
(घ) ऑप्टिक काएज्मा उत्तर-(ग)
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